ज़िंदगी के रंग compleet

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rajaarkey
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Re: ज़िंदगी के रंग

Unread post by rajaarkey » 14 Oct 2014 15:16

किरण:"चल तू फ्रेश हो जा फिर थोड़ी देर मे काम पे भी जाने का वक़्त होने वाला है. मैं चाइ बनाती हूँ." मोना मुँह हाथ धोने के बाद रसोई मे चली गयी. किरण ने भी चाय पका ली थी. वो दोनो ड्रॉयिंग रूम मे आकर छेड़ छाड़ करने लगी. मोना ने अपना मोबाइल फोन खोला तो उसमे अली की 16 मिस कॉल्स आई हुई थी. "क्या मुझे उससे बात करनी चाहिए." वो अभी ऐसा सौच ही रही थी के मोबाइल बजने लगा."

किरण:"अली का फोन है ना? उठा ले वो भी तेरे लिया परेशान होगा." ये सुन कर मोना ने फोन उठा लिया.

मोना:"हेलो"

अली."मोना खुदा का शूकर है तुम ने फोन तो उठाया. मैं तो बहुत परेशान हो गया था. कहाँ हो तुम बताओ मैं तुम्हे लेने आ रहा हूँ. मेरे भाई की तरफ से मे माफी माँगता हूँ. अब्बा ने भी उसे खूब डांटा है. हो सके तो माफ़ कर दो प्लीज़."

मोना:"माफी कैसी अली? ठीक ही तो वो कह रहे थे."

अली:"बहुत नाराज़ हो ना? बताओ तो सही हो कहाँ?"

मोना:"मैं किरण के घर मे हूँ और अब यहीं रहोँगी. प्लीज़ अली बहस नही करना पहले ही मेरे सर मे दर्द हो रही है. हम कल कॉलेज मे बात करते हैं." ये कह कर उसने फोन काट दिया. कोई 15 मिनिट बाद जब वो दोनो घर से निकलने लगी तो घर की घेंटी बजी. किरण ने दरवाज़ा खोल के देखा तो अली के वालिद असलम सहाब वहाँ खड़े थे.........

किरण:"जी?"

असलम:"बेटी मे अली का बाप हूँ. क्या आप मोना हो?"

किरण:"आरे अंकल आइए ना. मैं किरण हूँ पर मोना भी इधर ही है. मोना देखो कौन आया है?" असलम साहब घर मे दाखिल जैसे ही हुए तो उनकी नज़र मोना पर पड़ी. जब उसे देखा तो देखते ही रह गये. यौं तो देल्ही ख़ौबसूरत लड़कियो से भरी पड़ी है पर पर ये नाज़-ओ-नज़ाकत भला कहाँ देखने को मिलती थी? हुष्ण के साथ अगर आँखौं मे शराफ़त भी दिखे तो ये जोड़ लाजवाब होता है. उन्हे अपने बेटे की पसंद को देख कर बहुत खुशी हुई और अपनी मरहूम बीवी की याद आ गयी. मोना ने आगे बढ़ कर उनसे आशीर्वाद लिया. वो उसके सर पर प्यार देते हुए बोले

असलम:"उठो बेटी हमरे यहाँ बच्चो की जगा कदमो मे नही हमारे दिल मे होती है और बडो का अदब आँखौं मे."

मोना:"हमारे यहा दुनिया भर की ख़ुसीया माता पिता के चर्नो मे ही होती हैं."

असलम:"जीती रहो बेटी. आज कल के दौर मे इतना मा बाप का अहेत्राम करने वाले बच्चे कहाँ मिलते हैं?" उन दोनो को इतने जल्दी घुलते मिलते देख किरण को बहुत अच्छा लग रहा था.

किरण:"आप दोनो बैठ कर बाते करे मैं कुछ चाइ पानी का बंदोबस्त करती हूँ."

असलम:"आरे बेटी इस तकलौफ की क्या ज़रोरत है?"

किरण:"आरे अंकल तकलौफ कैसी? मैं बस अभी आई." ये कह कर वो रसोई की ओर चली गयी.

असलम:"मोना बेटी सब से पहले तो मैं आप से जो बदतमीज़ी इमरान ने की उसके लिए माफी चाहता हूँ."

मोना:"आप क्यूँ माफी माँग के मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं?

वैसे भी उन्हो ने ऐसा तो कुछ नही कहा."

असलम:"नही बेटी उस दिन आप घर मे पहली बार आई थी और उसे आपसे इस तरहा से नही बोलना चाहिए था. इन की मा के गुज़रने के बाद मा बाप दोनो की ज़िमेदारी मैने अकेले ने ही उठाई है पर जिस तरहा से वो आप से पेश आया उसके बाद सौचता हूँ शायद मेरी परवरिश मे ही कोई कमी रह गयी है."

मोना:"नही आप प्लीज़ ऐसे मत कहिए. ग़लती तो सब से हो जाती है ना?"

असलम:"तो फिर क्या आप उस नलायक की ग़लती को माफ़ कर सकती हो?"

मोना: मैं उस बात को भूल भी चुकी हूँ."

असलम:"तुम्हारे संस्कार के साथ साथ तुम्हारा दिल भी बहुत बड़ा है. देखो बेटी मुझे नही पता के आप और अली केसे मिले या आप को वो गधा केसे पसंद आ गया लेकिन एक बाप होने के नाते से बस ये कहना चाहूँगा के आप दोनो अभी अपनी तालीम पे ध्यान दो. ये प्यार मोहबत, शादी बिवाह के लिए तो पूरी ज़िंदगी पड़ी है लेकिन अगर इस समय को आप ने यौं ही बिता दिया तो इसकी कमी पूरी ज़िंदगी महसूस करोगे. आप समझ रही हो ना जो मैं कह रहा हूँ?"

मोना:"ज..जी."

असलम:"मैं समझ सकता हूँ के शायद आप को मेरी बाते कड़वी लगे पर मेरा मक़सद वो है जिस मे हम सब की भलाई हो. आप के पिता के बारे मे भी सुना है के वो टीचर हैं और एक टीचर से बढ़ के तालीम की आहेमियत भला कौन जान सकता है? मुझे पूरा यकीन है के वो भी चाहांगे के पहले आप अपनी तालीम मुकामल करो. और रही बात आप की ज़रूरतो की तो वो सब आप मुझ पे छोड़ दो. मैं वादा करता हूँ के अब आप पे कोई परेशानी का साया भी नही पड़ने दूँगा."

क्रमशः....................


rajaarkey
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Re: ज़िंदगी के रंग

Unread post by rajaarkey » 14 Oct 2014 15:17

ज़िंदगी के रंग--11

गतान्क से आगे..................

मोना:"अंकल आप इस प्यार से यहाँ आए मेरे लिए ये ही बहुत है और मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत नही."

असलम:"क्या आप ने अभी तक उस बात के लिए माफ़ नही किया?"

मोना:"नही नही अंकल वो बात नही. हम ग़रीबो के पास बस अपनी इज़्ज़त और आत्म सम्मान के इलावा क्या होता है? आप के बेटे ने एक बात तो सही कही थी, मेरा रिश्ता ही अभी क्या है? फिर आप ही बताइए मैं किस रिश्ते से आप से मदद ले सकती हूँ?"

असलम:"बेटी रिश्ते का क्या है? खून के रिश्ते ही तो सिर्फ़ रिश्ते नही होते ना? अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं चाहूँगा के कल को तुम हमारे घर दुल्हन बन के आओ. बोलो अब क्या ये रिश्ता तुम्हे कबूल है?" मोना को तो ऐसे जवाब की तवको ही नही की थी. ये सुन कर उसका चेहरा शरम से टमाटर की तरहा लाल हो गया. उसके चेरे पे ये शरम असलम साहब ने भी फॉरन महसूस की और उन्हे बहुत अछी लगी. एक बार फिर उन्हे अपनी मरहूम धरम पत्नी की याद आ गयी. "आज अगर वो ज़िंदा होती तो उसने भी कितनी खुश होना था?" वो सौचने लगे. बड़ी मुस्किल से मोना उन्हे जवाब दे पाई

मोना:"जी." इसी दौरान किरण भी चाइ और पकोडे ले कर आ गयी.

असलम:"बेटी इस की क्या ज़रूरत थी?"

किरण:"अंकल मुझे तो बुरा लग रहा है के आप पहली बार आए और मैं कुछ ज़्यादा नही कर पाई. अगर पता होता के आप आ रहे हैं तो पहले से ही तैयारी शुरू कर देते."

असलम:"नही नही ये भी बहुत ज़्यादा है. वैसे किरण बेटी अगर आप बुरा ना मानो तो आप से एक गुज़ारिश कर सकता हूँ?"

किरण:"अंकल गुज़ारिश कैसी? आप बेटी समझ कर हूकम दीजिए."

असलम:"जीतो रहो बेटी. तुम ने ये बात कह कर साबित कर दिया के जो मैने जैसा तुम्हारे बारे मे सौचा है वो ठीक है. वैसे तो मैं मोना के लिए अछी से अछी रहने के लिए जगह का इंटेज़ाम कर सकता हूँ पर एक अकेली लड़की को देल्ही जैसे शहर मे सर छुपाने के लिए छत से ज़्यादा ज़रूरत ऐसे साथ की होती है जो उस पे बुराई का साया भी ना पड़ने दे. फिर आप तो उसकी दोस्त भी हो. अगर आप बुरा ना मानो तो क्या मोना यहाँ आप के साथ रह सकती है?"

किरण:"अंकल मोना मेरे लिए मेरी बेहन की तरहा है. मुझे तो खुशी होगी अगर वो यहाँ मेरे साथ रहे तो."

असलम:"बेटी अब जो मैं कहने जा रहा हूँ उम्मीद है आप उसका बुरा नही मनाओगी. आप के घर आने से पहले मे आप के बारे मैने थोड़ी बहुत पूछ ताछ की थी. आप के पिता के देहांत का जान कर बहुत दुख हुआ. ये भी पता चला के आप के यहा कोई हाउस गेस्ट रहते हैं. मैं समझ सकता हूँ के आप के लिए घर का गुज़ारा चलाना कितना मुस्किल होता होगा. बेटी अब मोना आप के घर पे हमारी अमानत के तोर पे रहेगी. इस दुनिया के जितने मुँह हैं उतनी बाते करते हैं. मैं चाहता हूँ के आप उस करायेदार को यहाँ से रवाना कर दें. रही आप के खर्चे की बात तो आज से उसका ज़िम्मा मेरा है. अभी आप ये रख लो और हर महीने मैं खर्चा पहुचा दिया करूँगा. अगर किसी और चीज़ की ज़रोरत पड़े तो बिलाझीजक मुझे फोन कर दीजिए गा. ये मेरा कार्ड भी साथ मे है." ये कहते हुए असलम सहाब ने नोटो की एक बड़ी गड़डी निकाल के अपने कार्ड समेत किरण को थमा दी. नोटो को देखते ही किरण की आँखे चमक उठी और साथ मे उनके खर्चा उठाने का सुन वो बहुत खुश हो गयी. आख़िर किसी तरहा से उस मनोज से जान छुड़ाने का मौका तो मिला.

rajaarkey
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Re: ज़िंदगी के रंग

Unread post by rajaarkey » 14 Oct 2014 15:18

मोना:"इस की क्या ज़रोरत है?"

किरण ने फॉरन ही उसे टोकते हुए कहा

किरण:"वो इतने प्यार से दे रहे हैं ना तो इनकार नही करते. उनका शुक्रिया अदा करो."

मोना:"श...शुक्रिया." वो शरम से बोली. ये सब उसे ठीक नही लग रहा था और इस तरहा फॉरन किरण का पेसे पकड़ लेना उसे अच्छा नही लगा था. काश के उसे किरण की मजबूरी का अंदाज़ा होता. किरण के लिए ये पैसे नासिरफ़ ज़रूरी थे बल्कि उसके लिए एक दरिंदे की क़ैद से छुटकारे का ज़रिया भी थे.

असलम:"कोई बात नही. ये तो मेरा फर्ज़ बनता है."

किरण:"आरे बतो मे कुछ याद ही नही रहा. 5 मिनिट मे अगर काम पे ना पोहन्चे तो गड़बड़ हो जाएगी. अंकल आप बुरा ना मानिए पर हमे फॉरन जाना पड़ेगा."

असलम:"घबराओ मत मे अपनी गाड़ी पे छोड़ देता हूँ. बताओ कहाँ जाना है?" किरण ने जल्दी से उन्हे पता बताया और कुछ ही देर मे वो दोनो असलम सहाब की गाड़ी मे कॉल सेंटर की जानिब जा रही थी. तीनो ही अपनी अपनी सौचौं मे गुम थे. किरण आज़ादी की नयी ज़िंदगी का सौच रही थी तो मोना एक ही दिन मे कितना कुछ हो गया ये सौच रही थी और असलम सहाब शीशे से मोना को देख कर सौच रहे थे के कम से कम उनके बेटे की पसन्द तो उन पे गयी. और यौं मोना की ज़िंदगी का सफ़र एक नये मोड़ पे चल पढ़ा. कुछ ही आरसे मे उसकी ज़िंदगी एक नये शहर मे इतनी जल्दी बदल जाएगी ये उसने सौचा नही था. पर उसे क्या पता था के ज़िंदगी ने उसे अभी और क्या क्या रंग दिखाने हैं?.

रात के 12 बज रहे थे और असलम सहाब अपने कमरे मे लेटे हुए थे. नींद आँखौं से दूर थी और आज जो हुआ उसके बारे मे सौच रहे थे. कभी कभार इंसान सौचता तो कुछ और है पर हो उससे कुछ और जाता है. ये ही कुछ असलम सहाब के साथ भी हुआ था. घर मे दोनो बेटो को झगरता देख उन्हे बहुत दुख हुआ था. पर अली की आँखौं मे गुस्सा देख मामला ठंडा करने के लिए इमरान को उन्हों ने झाड़ दिया था. मोना से मिलने वो कोई बेटे का रिश्ता पक्का करने नही गये थे बल्कि उससे मिल कर ये मामला हमेशा के लिए ख्तम करने गये थे. बहुत जूतिया घिस घिस के वो यहाँ तक पोहन्चे थे और ये नही चाहते थे के कभी ऐसा उनके बेटो के साथ भी हो. इमरान की शादी बड़े उँचे घराने मे करवाई थी और अब ऐसा ही उन्हो ने अली के लिए भी सौच रखा था. अली ने जब उन्हे किरण के घर मोना है ये बता के वहाँ का पता दिया तो वो गये तो इस कहानी को हमेशा के लिए ख़तम करने गये थे पर हुआ वो जो उन्हो ने भी नही सौचा था. किरण के बारे मे थोड़ी छान बीन उन्हो ने कोई बहाना ढूढ़ने के लिए की थी और जो पेसे भी बाद मे उसे दिए वो कुछ घेंटे पहले एक क्लाइंट से पेमेंट ली थी जो उनके पास थी. फिर ये सब हुआ केसे? जाने क्यूँ मोना को देख कर उन्हे अपनी मरहूम पत्नी की याद आ गयी. वो भी तो छोटे से शहर की थी और संस्कार भी वैसे ही थे जैसे उन्हो ने मोना मे देखे. पेसे तो पहले ही बहुत हैं पर ऐसी लड़की भला कहाँ मिलेगी? "अली लाख गधा सही पर कम से कम पसंद तो बाप जैसी ही है." वो सौच कर मुस्कुराने लगे.


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