फिर एक दिन ठाकुर ने शिकार का प्रोग्राम बनाया. इस बार एक ठाकुर की हवेली मे एक और ठाकुर हवेली का मेहमान बना हुआ था जिसके साथ मधुलिका की शादी की बात चल रही थी. मधुलिका अगले साप्ताह तक एमबीबीएस के इम्तिहान देकर हवेली मे आने वाली थी. फिर उसकी मर्ज़ी से शादी की बात करनी थी. उसके आने के स्वागत की तय्यारियाँ हवेली मे चल रही थी. दूसरा ठाकुर भी ठाकुर के साथ शिकार पर जा रहा था.
इसलिए इस बार की तय्यारियाँ कुछ अलग ही थी, ये एक दिन और दो रात का प्रोग्राम था. ठाकुर रणबीर जैसे बहादुर इंसान का इस शिकार पर ना रहने का बार बार अफ़सोस जता रहा था. पर इतनी जल्दी हवेली की सुरक्षा के लिए कोई दूसरा रखा भी तो नही जा सकता था. खैर ठीक दिन ठाकुर अपने लश्कर के साथ शिकार के लिए रवाना हो गया.
घोड़े, साईस, जीप ड्राइवर और कई मुलाज़िम ठाकुर के साथ शिकार पर चले गये, पीछे रह गये ठकुराइन, कुछ दासियाँ इकके दुके नौकर और रणबीर.
ठाकुर साहेब अपने लश्कर के साथ शाम 4 बजे निकल गये. मालती को ठकुराइन ने पहले ही बता दिया था की उसे दो दिन अब हवेली मे ही रहना पड़ेगा. इसके अलावा भी ठकुराइन ने मालती से बहोत कुछ कहा था. मालती जैसी ही दो तीन औरतें हवेली मे काम करने वाली थी पर वो सब रात मे अपने अपने घर चली जाती थी.
हवेली के नौकरों को हवेली के भीतर आने की आग्या नही थी इसलिए वो अपना काम ख़तम कर रणबीर को मिले जैसे कमरों मे रहना पड़ता था. इसलिए रजनी ने मालती को सहेली ज़्यादा और नौकरानी कम समझती थी और उसे हवेली मे अपने साथ रख लिया था. ठाकुर की अनुपस्थिति मे अब हवेली की कमान उसके हाथ मे थी.
रणबीर ने ठाकुर के जाते ही हवेली का मेन गेट बंद करवा दिया. मेन गेट मे एक छोटा दरवाजा था जिसमें से लोग हवेली मे आते जाते थे. वो अपनी ड्यूटी पर मुस्तैदी से गेट के पास बने कमरे मे मौजूद था. रात मे वो 4-5 बार पूरी हवेली का चक्कर लगाता था. नयी जगह नये लोग फिर नये शौक़ जैसे घुड़सवारी, जीप चलाना इन सब मे उसका इतना मन लग गया की उसे सूमी की याद भी नही आई.
मालती चाची को वो हवेली से आते जाते देखता था. लेकिन इस महॉल मे कोई बात करने का मौका उसे नही मिला था. रात के 10.00 बजे होंगे, रणबीर अपने कमरे मे बैठा था तभी उसे किसिके कदमों के चलने की आवाज़ सुनाई पड़ी.वो फ़ौरन चौकन्ना हो गया. तभी उसे कंबल मे लिपटा एक साया उसके कमरे की तरफ आता दीखाई दिया. उसकी बंदूक पर पकड़ मजबूत हो गयी, पास आते ही उस साए ने कंबल उतार दी और रणबीर ने देख की वो मालती चाची थी.
"चाची आप इस समय और यहाँ, किसी ने नेदेख लिया तो ग़ज़ब हो जाएगा." रणबीर ने चौंकते हुए कहा.
मालती ने उसे चुप रहने का इशारा किया और अपने पीछे आने के लिए कहा. मालती को इस रात के समय मे अकेले देखते ही रणबीर की कई दीनो की शांत नदी हुई भावनाए भड़क उठी.
सूमी ना सही पर मालती इन हालत मे क्या बुरी थी, ये सोच वा तुरंत मालती के पीछे हो लिया. मालती उसे हवेली के भीतर ले जाने लगी तो उसके कदम रुक गये और उसने पूछा, "चाची हवेली के भीतर तो किसी मर्द को इस समय जाने की इजाज़त नही है?"
तब मालती ने उससे कहा, "अब ठकुराइन ही इस हवेली की हेड है और उसे तुमसे कुछ बात करनी है."
रणबीर असमंजस मे मालती के साथ हवेली मे घुस गया. मालती उसे कयी चक्कर दार गालियों से घूमाते हुए एक बड़े कमरे मे ले गयी. दीवारों पर बड़े बड़े आईने, बीचों बीच एक बड़ा सा तखत पुर कमरे मे बीचे आलीशान गाळीचे और दूधिया प्रकाश मे नाहया आह विशाल कमरा था. रणबीर की तो एक बार आँखें चौंधियाँ गयी.
तभी बहोत ही आकर्षित सारी मे सजी धजी क्रीम सेंट से महकती ठकुराइन उसके सामने आई और आदेश भरे लहजे मे बोली, "ये बंदूक और कारतूस उतार एक तरफ रख दो. यहाँ इनकी कोई ज़रूरत नही है. रणबीर ने फ़ौरन उन्हे एक तरफ रख दिया. वो ठकुराइन के रूप को देख रहा था इतने पास से ठकुराइन को उसने पहले कभी नही देखा था. उसके जीवन मे कई लड़कियाँ और औरतें आई थी पर ठकुराइन रजनी के मुक़ाबले कोई भी नही थी.
"ठाकुर साहेब से हमने तुम्हारी बहादुरी के कई कारनामे सुने है. हां इसी मालती को भी तुमने बहोत बहादुरी दीखाई है. हम भी तुम्हारी बहादुरी देखना चाहते है. हमे भी पता तो चले की तुम हवेली को संभाल सकते हो और जो हवेली मे हैं उन्हे भी." ठाकुरानी ने कहा.
ठाकुर की हवेली compleet
Re: ठाकुर की हवेली
तभी मालती ने रणबीर की तरफ एक आँख दबाई. खेला खाया रणबीर सब समझ गया. गाँव के ऐसी कई औरतों को तो वह रंडी और कुत्ते कह फ़ौरन काबू मे कर लेता था पर इस बार मामला ठकुराइन का था पर अंत तो एक जैसा ही होना था.
"ठकुराइन जी आपके के लिए तो में अपनी जान दे दूँगा, मेरे रहते आप पर कोई आँच ना आएगी, आअप जो भी हुकुम करें बंदा पीछे नही हटेगा." रणबीर ने झुक कर सलाम किया.
"मुझे ऐसे ही लोग पसंद है जो जो भी बात कही जाए उसे तुरंत मान ले. पर पहले मालती के साथ जाओ और यह जैसे कहे वैसे ही करते जाना. हां याद रहे उस दिन जिसा नहीं जब यह तीन दिन तक यहाँ आके रोई थी." ऐसा कह ठकुराइन कमरे से बाहर चली गयी.
तब मालती ने कहा, "पहले इस कमरे मे बने बाथरूम मे जाओ. वहाँ सब कुछ मौजूद है, इतरा, फुलेल, सेंट, क्रीम, साबुन शॅमपू और तुम्हारे लिए चोला. चूड़ीदार और दुपट्टा, सज धज कर बाहर आओ." यह कह कर मालती जिधर ठकुराइन गई थी उधर चल पड़ी.
रणबीर अपने भाग्य पर इठलाता हुआ स्नान घर मे गया और जो मालती ने बताया था वो सब वहाँ सलीके से रखा हुआ था. आज वह जी हर के नहाया. ऐसा साबुन उसने जिंदगी मे पहले कभी नही लगाया था. शरीर का रोम रोम फुलक उठा. फिर जब उसने वस्त्रा पहेने और अपने आप को आईने मे देखा तो देखता ही रह गया. उन वस्त्रों मे वह किसी राजकुमार से कम नही लग रहा था. वह बाहर आया तो उसने मालती को इंतेज़ार करते पाया.
मालती इस बार उसे दूसरे कमरे मे ले गयी, जो पहले कमरे से भी आलीशान था. सुंदरता और सजावट का क्या कहना. एक से एक बेश कीमती सामानों से सज़ा हुआ था वा कमरे. होता भी क्यों नही कमरा मधुलकिया के लिए तय्यार हुआ था जो अगले साप्ताह यहाँ आने वाली थी. कमरे के बीचों बीच रखी एक विशाल पलंग पर रजनी एक नाइटी पहने अढ़लेटी मुद्रा मे थी. वह मंद मंद मुस्कुरा रही थी.
रणबीर बहोत देर तक उसकी तरफ नही देख सका और उसकी नज़रें झुकती चली गयी. तभी कोमल आवाज़ उसके कान मे पड़ी, "रणबीर आओ, यहाँ पलंग पर मेरे पास बैठो. रणबीर पलंग के कोने पर बैठ गया और ठकुराइन से परे देखने लगा.
"तो मालती यही है वो जिसने उस दिन तुम्हारी गांद की दुर्गति की थी, और तुम तीन दिन तक ठीक से चल भी नही पे थी. तो इतनी ताक़त है इसमे. मेरा मतलब इसके मे. हम नही मानते जब तक की हम खुद नही देख ले."
"ठकुराइन विश्वास कीजिए, मेरी गांद को तो आपने खुद देखी है, बल्कि खोद खोद के भी देखा है. मेरे मना करते रहने पर भी यह नही मना और मेरी गांद की दुर्गति कर के ही छोड़ी."
रणबीर जो सुन रहा था उसे अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा था. ये दोनो औरतें किस तरह खुले शब्दों का इस्तामाल कर बात कर रहे थी और मालती चाची क्या ठकुराइन से इतनी खुली हुई हो सकती है.
उनकी बातें सुन कर रणबीर का भी लंड खड़ा होने लग गया था और सोचा जब ओखली मे सर दे ही दिया है तो मूसलों से क्या डरना. उसे वही करना है जैसे कहा जाता है. अपनी तरफ से कोई उत्तावलापन नही दीखाना है. बड़े लोगों का मामला है. बड़े बुड्ढे ठीक ही कहते है की बिना सोचे समझे बड़े लोगों की गंद मे नही बढ़ाना चाहिए. उनका क्या कब गंद भींच ले और बाहर निकलना मुश्किल हो जाए.
"ठीक है पहले हम अपनी आँखो से सब देखेंगे फिर फ़ैसला करेंगे. मालती उठो और तुम दोनो वह सब मेरी आँखों के सामने करो. इसे भी ठीक से समझा देना. जैसे उस दिन हुआ था वैसे ही होना चाहिए नही तो भोसड़ी की गंद मे भूस भरवा देंगे. मैं भी ठकुराइन हूँ कोई कोठे पर बैठी रंडी नही की कोई मा का लॉडा आए और चोद्के लंड समेटता हुआ चला जाए.
"ठकुराइन जी आपके के लिए तो में अपनी जान दे दूँगा, मेरे रहते आप पर कोई आँच ना आएगी, आअप जो भी हुकुम करें बंदा पीछे नही हटेगा." रणबीर ने झुक कर सलाम किया.
"मुझे ऐसे ही लोग पसंद है जो जो भी बात कही जाए उसे तुरंत मान ले. पर पहले मालती के साथ जाओ और यह जैसे कहे वैसे ही करते जाना. हां याद रहे उस दिन जिसा नहीं जब यह तीन दिन तक यहाँ आके रोई थी." ऐसा कह ठकुराइन कमरे से बाहर चली गयी.
तब मालती ने कहा, "पहले इस कमरे मे बने बाथरूम मे जाओ. वहाँ सब कुछ मौजूद है, इतरा, फुलेल, सेंट, क्रीम, साबुन शॅमपू और तुम्हारे लिए चोला. चूड़ीदार और दुपट्टा, सज धज कर बाहर आओ." यह कह कर मालती जिधर ठकुराइन गई थी उधर चल पड़ी.
रणबीर अपने भाग्य पर इठलाता हुआ स्नान घर मे गया और जो मालती ने बताया था वो सब वहाँ सलीके से रखा हुआ था. आज वह जी हर के नहाया. ऐसा साबुन उसने जिंदगी मे पहले कभी नही लगाया था. शरीर का रोम रोम फुलक उठा. फिर जब उसने वस्त्रा पहेने और अपने आप को आईने मे देखा तो देखता ही रह गया. उन वस्त्रों मे वह किसी राजकुमार से कम नही लग रहा था. वह बाहर आया तो उसने मालती को इंतेज़ार करते पाया.
मालती इस बार उसे दूसरे कमरे मे ले गयी, जो पहले कमरे से भी आलीशान था. सुंदरता और सजावट का क्या कहना. एक से एक बेश कीमती सामानों से सज़ा हुआ था वा कमरे. होता भी क्यों नही कमरा मधुलकिया के लिए तय्यार हुआ था जो अगले साप्ताह यहाँ आने वाली थी. कमरे के बीचों बीच रखी एक विशाल पलंग पर रजनी एक नाइटी पहने अढ़लेटी मुद्रा मे थी. वह मंद मंद मुस्कुरा रही थी.
रणबीर बहोत देर तक उसकी तरफ नही देख सका और उसकी नज़रें झुकती चली गयी. तभी कोमल आवाज़ उसके कान मे पड़ी, "रणबीर आओ, यहाँ पलंग पर मेरे पास बैठो. रणबीर पलंग के कोने पर बैठ गया और ठकुराइन से परे देखने लगा.
"तो मालती यही है वो जिसने उस दिन तुम्हारी गांद की दुर्गति की थी, और तुम तीन दिन तक ठीक से चल भी नही पे थी. तो इतनी ताक़त है इसमे. मेरा मतलब इसके मे. हम नही मानते जब तक की हम खुद नही देख ले."
"ठकुराइन विश्वास कीजिए, मेरी गांद को तो आपने खुद देखी है, बल्कि खोद खोद के भी देखा है. मेरे मना करते रहने पर भी यह नही मना और मेरी गांद की दुर्गति कर के ही छोड़ी."
रणबीर जो सुन रहा था उसे अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा था. ये दोनो औरतें किस तरह खुले शब्दों का इस्तामाल कर बात कर रहे थी और मालती चाची क्या ठकुराइन से इतनी खुली हुई हो सकती है.
उनकी बातें सुन कर रणबीर का भी लंड खड़ा होने लग गया था और सोचा जब ओखली मे सर दे ही दिया है तो मूसलों से क्या डरना. उसे वही करना है जैसे कहा जाता है. अपनी तरफ से कोई उत्तावलापन नही दीखाना है. बड़े लोगों का मामला है. बड़े बुड्ढे ठीक ही कहते है की बिना सोचे समझे बड़े लोगों की गंद मे नही बढ़ाना चाहिए. उनका क्या कब गंद भींच ले और बाहर निकलना मुश्किल हो जाए.
"ठीक है पहले हम अपनी आँखो से सब देखेंगे फिर फ़ैसला करेंगे. मालती उठो और तुम दोनो वह सब मेरी आँखों के सामने करो. इसे भी ठीक से समझा देना. जैसे उस दिन हुआ था वैसे ही होना चाहिए नही तो भोसड़ी की गंद मे भूस भरवा देंगे. मैं भी ठकुराइन हूँ कोई कोठे पर बैठी रंडी नही की कोई मा का लॉडा आए और चोद्के लंड समेटता हुआ चला जाए.
Re: ठाकुर की हवेली
मालती ने एक एक करके अपने कपड़े उतारने शुरू किए और देखते ही देखते पूरी नंगी हो गयी. रणबीर भोंचका सा वैसे ही बैठा रहा.
"चल तू भी उतार और शुरू हो जा." ठकुराइन की आवाज़ गूँजी.
रणबीर भी मालती की तरह नंगा हो गया. उसका लंड खड़ा तो था पर पूरी तरह से तना नही था. तब रजनी ने मालती को पलंग पर चोपाया कर दिया और रणबीर को कहा की उसकी गंद पहले ठीक से चाट कर तय्यार करे.
रणबीर को इन दो औरतों की हरकतें कुछ अटपटी लग रही थी पर यह सारा खेल और महॉल उत्तेजना पैदा करने वाला था.
रणबीर ने अपना मुँह मालती की हवा मे उँची उठी हुई गांद पर झुकाया और गांद के छेद पर जीभ फिराने लगा. अभी उसका मुँह सूखा हुआ था. वह बीच मे रजनी के चेहरे की तरफ भी देख रहा था और रजनी एक उंगल उठा देती की लगे रहो अपने काम पर. रणबीर काफ़ी देर तक मालती की गांद चाटता रहा मालती ओह्ह्ह हाआँ करती उससे अपनी गांद चटवाती रही.
तभी रजनी ने कहा, "मालती तू तो कहती थी की इसका लंड लोहे की सलाख की तरह कड़ा है, पर मुझे तो ढीला ढाला सा ही लग रहा है."
मालती अब बैठ गयी और रणबीर के लंड को मुठियाने लगी और बोली, "ठकुराइन आपको देख कर शर्मा रहा है."
"अक्चा तो ये बात है, चल रे हां क्या कहते हैं इसको,, हां अपना लॉडा मेरे हाथ मे दे. तो ये मुझे देख कर मुरझाया हुआ है, तब तो मुझे ही पूरा खड़ा करना पड़ेगा. रणबीर ने रजनी के आगे अपना लंड कर दिया ज्सिका रजनी बहोत ही बारीकी से निरक्षण करने लगी.
वो लंड की चॅम्डी को उपर नीचे करने लगी. पूरी चमड़ी छील सूपदे पर अंगूठे का दबाव दे रही थी.
तभी रजनी ने रणबीर के लंड को अपने मुँह मे ले लिया. कई देर तक वो लंड पर अपनी जीब फेरती रही फिर मुँह मे पूरा लंड ले मुँह आगे पीछे करते हुए चूसने लगी.
कुछ देर तक लंड चूसने के बाद रजनी ने लंड को मुँह से निकाला और बोली, "हां अब पूरा तय्यार है, वाह क्या मस्ताना और सख़्त लंड है, चल मालती अब तू भी तय्यार हो जा अपने पीचवाड़े मे लंड लेने के लिए. हूँ अब मज़ा आएगा." रजनी ने एक भूकि बिल्ली जैसे चूहे से खेलती है वैसे ही रणबीर के लंड से खेल रही थी. उसकी आँखों मे चमक थी. वासना से उसका चेहरा सुर्ख लाल हो कमरे की दूधिया रोशनी मे चमक रहा था.
"चल तू भी उतार और शुरू हो जा." ठकुराइन की आवाज़ गूँजी.
रणबीर भी मालती की तरह नंगा हो गया. उसका लंड खड़ा तो था पर पूरी तरह से तना नही था. तब रजनी ने मालती को पलंग पर चोपाया कर दिया और रणबीर को कहा की उसकी गंद पहले ठीक से चाट कर तय्यार करे.
रणबीर को इन दो औरतों की हरकतें कुछ अटपटी लग रही थी पर यह सारा खेल और महॉल उत्तेजना पैदा करने वाला था.
रणबीर ने अपना मुँह मालती की हवा मे उँची उठी हुई गांद पर झुकाया और गांद के छेद पर जीभ फिराने लगा. अभी उसका मुँह सूखा हुआ था. वह बीच मे रजनी के चेहरे की तरफ भी देख रहा था और रजनी एक उंगल उठा देती की लगे रहो अपने काम पर. रणबीर काफ़ी देर तक मालती की गांद चाटता रहा मालती ओह्ह्ह हाआँ करती उससे अपनी गांद चटवाती रही.
तभी रजनी ने कहा, "मालती तू तो कहती थी की इसका लंड लोहे की सलाख की तरह कड़ा है, पर मुझे तो ढीला ढाला सा ही लग रहा है."
मालती अब बैठ गयी और रणबीर के लंड को मुठियाने लगी और बोली, "ठकुराइन आपको देख कर शर्मा रहा है."
"अक्चा तो ये बात है, चल रे हां क्या कहते हैं इसको,, हां अपना लॉडा मेरे हाथ मे दे. तो ये मुझे देख कर मुरझाया हुआ है, तब तो मुझे ही पूरा खड़ा करना पड़ेगा. रणबीर ने रजनी के आगे अपना लंड कर दिया ज्सिका रजनी बहोत ही बारीकी से निरक्षण करने लगी.
वो लंड की चॅम्डी को उपर नीचे करने लगी. पूरी चमड़ी छील सूपदे पर अंगूठे का दबाव दे रही थी.
तभी रजनी ने रणबीर के लंड को अपने मुँह मे ले लिया. कई देर तक वो लंड पर अपनी जीब फेरती रही फिर मुँह मे पूरा लंड ले मुँह आगे पीछे करते हुए चूसने लगी.
कुछ देर तक लंड चूसने के बाद रजनी ने लंड को मुँह से निकाला और बोली, "हां अब पूरा तय्यार है, वाह क्या मस्ताना और सख़्त लंड है, चल मालती अब तू भी तय्यार हो जा अपने पीचवाड़े मे लंड लेने के लिए. हूँ अब मज़ा आएगा." रजनी ने एक भूकि बिल्ली जैसे चूहे से खेलती है वैसे ही रणबीर के लंड से खेल रही थी. उसकी आँखों मे चमक थी. वासना से उसका चेहरा सुर्ख लाल हो कमरे की दूधिया रोशनी मे चमक रहा था.