वो जानती थी कि अगर थोड़ी देर और बैठी रही तो वही उनका पैर पकड़े हुए झाड़ जाएगी.पर उसे ऐसा नही करना था,उसे इन दोनो मर्दो को ये एहसास बिल्कुल नही होने देना था कि वो उनसे चुदना चाहती है.उसने अपनी चूत को भींचा & ससुर के पैरो को नीचे रख बिस्तर से उतर गयी,"अब आप सो जाइए,पिताजी.मैं भी जाती हू."
जवाब मे विरेन्द्र जी केवल सर ही हिला पाए.रीमा निकल कर अपने कमरे मेपहुँची & जल्दी-2 अपने कपड़े उतारने लगी.अपनी चूत से चिपकी गीली पॅंटी हटा कर वो बिस्तर पे लेट गयी & अपने हाथो से अपने जिस्म मे लगी आज बुझाने लगी.
खिलोना compleet
Re: खिलोना
खिलोना पार्ट--6
"अरे,बेटी मैं कर लूँगा.तुम क्यू तकलीफ़ कर रही हो!"
"हां,हां,देख रही हू आप कर लेंगे.",रीमा स्टूल पे चढ़ गयी,"इस्पे चढ़ने मे ही आप परेशान हो गये,दद्दा."रीमा ने सारी का पल्लू अपनी कमर मे खोंसा,"लाइए डब्बे दीजिए,मैं रखती हू."
किचन मे उपर बने कॅबिनेट्स मे दर्शन डब्बे रखने जा रहा था जब रीमा आकर उसकी मदद करने लगी.
"वाह,दद्दा.तुमने इन्हे नर्स से अपनी असिस्टेंट बना लिया!",शेखर दफ़्तर से लौट आया था.
"मैं तो कर लेता भाय्या, पर इसके आगे तो मेरी 1 नही चलती.",जवाब मे दर्शन हंसते हुए बोला.तभी बाहर सब्ज़ीवाले की आवाज़ आई,"भाय्या,ज़रा स्टूल थाम लो तो मैं सब्ज़ी ले आऊ,रात के खाने के लिए कोई सब्ज़ी नही है."
"ठीक है,दादा.",शेखर ने स्टूल थाम लिया.उसका चेहरा रीमा की नंगी कमर के पास था.बीच-2 मे वो झुक के डब्बे उठाता & उसे थमा देता.वो इस तरह खड़ा था की उसका चेहरा रीमा की कमर से बस कुच्छ इंच दूर था.उसके बदन से आती मस्त खुश्बू शेखर को मदहोश कर रही थी.रीमा का भी बुरा हाल था,उसके जेठ की गरम साँसे वो अपनी कमर पे महसूस कर रही थी & उसकी चूत मचलने लगी थी.
दोनो मदहोश से ये भूल ही गये थे कि 1 स्टूल के उपर खड़ा था तो दूसरा उसे संभालने के लिए नीचे स्टूल को थामे था.रीमा का पैर फिसला & वो नीचे गिरने लगी कि शेखर ने उसे थाम लिया,अब वो अपने जेठ की गोद मे थी.शेखर ने उसे ऐसे पकड़ा कि उसका 1 हाथ उसकी पीठ को घेरे था तो दूसरा उसकी कमर को.वो एकटक रीमा को घुरे जा रहा था,रीमा ने शर्मा के अपनी नज़रे नीची कर ली,"नीचे उतारिये ना."
शेखर ने बहुत धीरे से उसे नीचे उतारा & ऐसा करने मे उसका जो हाथ पीठ को थामे था,उस से उसने रीमा की बगल से उसकी 1 चूच्ची को दबा दिया & दूसरे से उसकी कमर को.ज़मीन पे खड़ा करते हुए उसने अपने गुज़रे हुए भाई की विधवा को अपने बदन से चिपका कर अपने खड़े लंड का एहसास उसे करा दिया.रीमा के गाल लाल हो गये थे & माथे पे पसीना छलक आया था.
गेट बंद होने की आवाज़ आई तो दोनो अलग हो गये.दर्शन किचन मे आया तो शेखर अपने रूम मे जा चुका था.बचा काम करके रीमा भी अपने कमरे मे चली गयी थी,कितने दीनो बाद किसी मर्द के सीने से लग उसने अपनी चूत पे लंड का & चूची पे हाथ का एहसास किया था.पर अभी अपनी आग बुझाने का वक़्त नही था,सास को दवा जो पिलानी थी.
-------------------------------------------------------------------------------
रात को खाने के बाद वो छत पे गयी जहा शेखर ने बहाने से कई बार उसके बदन को हाथ लगाया.वो जानती थी कि अगर वो थोड़ी देर और वाहा रुकी तो वो आज खुद उस से चुदने को तैय्यार हो जाएगी जोकि उसे बिल्कुल नही करना था.दोनो बाप-बेटे को बिल्कुल नही लगना चाहिए था कि वो खुद उनके साथ सोई थी बल्कि उन्हे तो हमेशा ये लगना चाहिए था कि उन्होने अपनी बहू का फ़ायदा उठाया.वो शेखर को गुड नाइट कह के नीचे आ गयी.
अपनी सास को सुला उसने परदा हटा वो अपने ससुर के पास गयी,वो बिस्तर पे हेडबोर्ड से टेक लगा पैर फैलाए बैठे थे,"अभी सोए नही आप.",वो उनके पैरो के पास बैठ गयी,"लाइए पैर दबा दू."
"ओह्ह..ओह!रीमा तुम फिर परेशान हो रही हो.मैं दर्शन से करवा लेता ना!"
जवाब मे रीमा बस मुस्कुरा के फिर से घुटनो पे बैठ उनके पैर दबाने लगी.अगर उन्हे उसकी परेशानी की इतनी चिंता होती तो वो अभी तक दर्शन को बुला उस से ये काम करवा चुके होते,पर उन्हे तो अपने बहू के जिस्म का दीदार & एहसास जो करना था.रीमा ये सोच मन ही मन मुस्कुराइ.
"आज तेल के साथ मालिश कर देती हू.ज़्यादा आराम मिलेगा.",वो उठी & थोड़ी देर मे तेल लेकर आ गयी & घुटनो पे बैठ गयी.उसके ससुर ने अपना पाजामा घुटनो तक चढ़ा लिया था.रीमा ने उसे थोड़ा & उपर कर उनकी जाँघो को भी पाजामे से बाहर कर दिया.अपनी बहू के कोमल हाथो का एहसास जाँघो पे महसूस करते ही वीरेन्द्रा साक्शेणा का लंड खड़ा होने लगा.
रीमा ने हाथो मे तेल लगा अपने ससुर के पैरो की मालिश शुरू कर दी.कल ही की तरह आज फिर उसका आँचल सीने से नीचे गिर गया.उसके हाथो मे तेल लगा था & छुने से सारी खराब हो जाती.वो पशोपेश मे पड़ी थी कि तभी कुच्छ ऐसा हुआ जो उसने सपने मे भी नही था,विरेन्द्र जी ने हाथ बढ़ा उसका पल्लू उठाया & उसकी कमर मे अटका दिया.ऐसा करने मे उनका हाथ उसकी कमर के शायद सबसे कोमल हिस्से को छु गया &रीमा के बदन मे बिजली सी दौड़ गयी.
"अरे,बेटी मैं कर लूँगा.तुम क्यू तकलीफ़ कर रही हो!"
"हां,हां,देख रही हू आप कर लेंगे.",रीमा स्टूल पे चढ़ गयी,"इस्पे चढ़ने मे ही आप परेशान हो गये,दद्दा."रीमा ने सारी का पल्लू अपनी कमर मे खोंसा,"लाइए डब्बे दीजिए,मैं रखती हू."
किचन मे उपर बने कॅबिनेट्स मे दर्शन डब्बे रखने जा रहा था जब रीमा आकर उसकी मदद करने लगी.
"वाह,दद्दा.तुमने इन्हे नर्स से अपनी असिस्टेंट बना लिया!",शेखर दफ़्तर से लौट आया था.
"मैं तो कर लेता भाय्या, पर इसके आगे तो मेरी 1 नही चलती.",जवाब मे दर्शन हंसते हुए बोला.तभी बाहर सब्ज़ीवाले की आवाज़ आई,"भाय्या,ज़रा स्टूल थाम लो तो मैं सब्ज़ी ले आऊ,रात के खाने के लिए कोई सब्ज़ी नही है."
"ठीक है,दादा.",शेखर ने स्टूल थाम लिया.उसका चेहरा रीमा की नंगी कमर के पास था.बीच-2 मे वो झुक के डब्बे उठाता & उसे थमा देता.वो इस तरह खड़ा था की उसका चेहरा रीमा की कमर से बस कुच्छ इंच दूर था.उसके बदन से आती मस्त खुश्बू शेखर को मदहोश कर रही थी.रीमा का भी बुरा हाल था,उसके जेठ की गरम साँसे वो अपनी कमर पे महसूस कर रही थी & उसकी चूत मचलने लगी थी.
दोनो मदहोश से ये भूल ही गये थे कि 1 स्टूल के उपर खड़ा था तो दूसरा उसे संभालने के लिए नीचे स्टूल को थामे था.रीमा का पैर फिसला & वो नीचे गिरने लगी कि शेखर ने उसे थाम लिया,अब वो अपने जेठ की गोद मे थी.शेखर ने उसे ऐसे पकड़ा कि उसका 1 हाथ उसकी पीठ को घेरे था तो दूसरा उसकी कमर को.वो एकटक रीमा को घुरे जा रहा था,रीमा ने शर्मा के अपनी नज़रे नीची कर ली,"नीचे उतारिये ना."
शेखर ने बहुत धीरे से उसे नीचे उतारा & ऐसा करने मे उसका जो हाथ पीठ को थामे था,उस से उसने रीमा की बगल से उसकी 1 चूच्ची को दबा दिया & दूसरे से उसकी कमर को.ज़मीन पे खड़ा करते हुए उसने अपने गुज़रे हुए भाई की विधवा को अपने बदन से चिपका कर अपने खड़े लंड का एहसास उसे करा दिया.रीमा के गाल लाल हो गये थे & माथे पे पसीना छलक आया था.
गेट बंद होने की आवाज़ आई तो दोनो अलग हो गये.दर्शन किचन मे आया तो शेखर अपने रूम मे जा चुका था.बचा काम करके रीमा भी अपने कमरे मे चली गयी थी,कितने दीनो बाद किसी मर्द के सीने से लग उसने अपनी चूत पे लंड का & चूची पे हाथ का एहसास किया था.पर अभी अपनी आग बुझाने का वक़्त नही था,सास को दवा जो पिलानी थी.
-------------------------------------------------------------------------------
रात को खाने के बाद वो छत पे गयी जहा शेखर ने बहाने से कई बार उसके बदन को हाथ लगाया.वो जानती थी कि अगर वो थोड़ी देर और वाहा रुकी तो वो आज खुद उस से चुदने को तैय्यार हो जाएगी जोकि उसे बिल्कुल नही करना था.दोनो बाप-बेटे को बिल्कुल नही लगना चाहिए था कि वो खुद उनके साथ सोई थी बल्कि उन्हे तो हमेशा ये लगना चाहिए था कि उन्होने अपनी बहू का फ़ायदा उठाया.वो शेखर को गुड नाइट कह के नीचे आ गयी.
अपनी सास को सुला उसने परदा हटा वो अपने ससुर के पास गयी,वो बिस्तर पे हेडबोर्ड से टेक लगा पैर फैलाए बैठे थे,"अभी सोए नही आप.",वो उनके पैरो के पास बैठ गयी,"लाइए पैर दबा दू."
"ओह्ह..ओह!रीमा तुम फिर परेशान हो रही हो.मैं दर्शन से करवा लेता ना!"
जवाब मे रीमा बस मुस्कुरा के फिर से घुटनो पे बैठ उनके पैर दबाने लगी.अगर उन्हे उसकी परेशानी की इतनी चिंता होती तो वो अभी तक दर्शन को बुला उस से ये काम करवा चुके होते,पर उन्हे तो अपने बहू के जिस्म का दीदार & एहसास जो करना था.रीमा ये सोच मन ही मन मुस्कुराइ.
"आज तेल के साथ मालिश कर देती हू.ज़्यादा आराम मिलेगा.",वो उठी & थोड़ी देर मे तेल लेकर आ गयी & घुटनो पे बैठ गयी.उसके ससुर ने अपना पाजामा घुटनो तक चढ़ा लिया था.रीमा ने उसे थोड़ा & उपर कर उनकी जाँघो को भी पाजामे से बाहर कर दिया.अपनी बहू के कोमल हाथो का एहसास जाँघो पे महसूस करते ही वीरेन्द्रा साक्शेणा का लंड खड़ा होने लगा.
रीमा ने हाथो मे तेल लगा अपने ससुर के पैरो की मालिश शुरू कर दी.कल ही की तरह आज फिर उसका आँचल सीने से नीचे गिर गया.उसके हाथो मे तेल लगा था & छुने से सारी खराब हो जाती.वो पशोपेश मे पड़ी थी कि तभी कुच्छ ऐसा हुआ जो उसने सपने मे भी नही था,विरेन्द्र जी ने हाथ बढ़ा उसका पल्लू उठाया & उसकी कमर मे अटका दिया.ऐसा करने मे उनका हाथ उसकी कमर के शायद सबसे कोमल हिस्से को छु गया &रीमा के बदन मे बिजली सी दौड़ गयी.
Re: खिलोना
उसने उनके पैरो पे तेल मालिश शुरू कर दी &थोड़ी ही देर मे उसे अपने ससुर के पाजामे मे वो जाना-पहचाना तंबू नज़र आ गया.विरेन्द्र जी तो जैसे नज़रो से ही उसके सीने की गोलैईयों का रस पी रहे थे.रीमा की चूत जो शाम को शेखर की हर्कतो से गीली हो गयी थी अब तो बस जैसे बहने लगे थी.अपनी जाँघो को हल्के से रगड़ते हुए वो उनकी टाँगे सहलाने लगी.
दोनो इस खेल का मज़ा ले रहे थे.रीमा का दिल तो कर रहा था की अपने ससुर के उपर चढ़ जाए & उनके बदन से अपने बदन की प्यास बुझा ले पर ऐसा वो कर नही सकती थी.
"आज ज़रा कमर की भी मालिश कर दो.",विरेन्द्र जी ने अपना कुर्ता उतार दिया & पलट के पेट के बल लेट गये.रीमा को उनके बालो भरे चौड़े सीने की बस 1 झलक सी मिली.रवि का सीना बिल्कुल चिकना था & वो हमेशा सोचा करती थी कि कैसा लगता होगा बालो भरे सीने मे हाथ फिराना उसे चूमना...
उसके ससुर लेटे उसका इंतेज़ार कर रहे थे.रीमा ने पहले तो बगल मे बैठे हुए ही मालिश शुरू की पर इस पोज़िशन मे वो ठीक से ये काम कर नही पा रही थी.उसके ससुर शायद उसकी परेशानी समझ गये थे,"मेरे दोनो तरफ घुटने रख के बैठो तो ठीक से कर पओगि."
रीमा ने सारी घुटनो तक उठाई & जैसे उन्होने कहा वैसे बैठ गयी.मालिश शुरू हो गयी.रीमा घुटनो पे खड़े-2 थोडा थक गयी तो अपनेआप उसके घुटने मूड गये & वो अपने ससुर की गंद पे बैठ गयी.विरेन्द्र जी के मुँह से आह निकल गयी तो उसे लगा कि उन्हे दर्द हो रहा है,वो फ़ौरन उठ गयी.
"बैठी रहो,बहू.मुझे कोई परेशानी नही है.वैसे भी ऐसे खड़े हुए तो तुम थक जाओगी."
रीमा वापस उनकी गंद पे बैठ गयी & मालिश करने लगी.चूत को 1 मर्दाना जिस्म का एहसास हुआ तो वो अपने आप बहुत हौले-2 उनकी गंद पे रगड़ खाने लगी.रीमा मस्त हो अपने ससुर की कमर सहला रही थी,"ज़रा पीठ की भी मालिश कर दो.",विरेन्द्र जी की आवाज़ आई.
वो झुक कर उनके पीठ की मालिश करने लगी.अब उसकी कमर हल्के-2 हिल कर उसकी चूत को उसके ससुर की गंद पे रगड़ रही थी & जब भी वो आगे झुकती तो उसकी छातिया उनकी पीठ को च्छू सी जाती.रीमा आँखे बंद किए ये खेल खेल रही थी कि तभी उसके ससुर ने करवट ली.
उनके ऐसा करने से वो अब सीधा उनके लंड पे आ बैठी थी.रीमा की साँस अटक गयी.उसके ससुर की आँखो मे वासना की भूख सॉफ नज़र आ रही थी.उसकी सारी घुटनो से कुच्छ उपर आ गयी थी.उनके हाथ वही घुटनो के उपर उसकी जाँघ से लग गये,"ज़रा सीने पे भी मालिश कर दो."
रीमा ने हाथो मे तेल लिया & उनके बालो भरे सीने की मालिश करने लगी.जब वो झुकती तो रीमा की ब्लाउस के गले मे से झँकति चूचिया विरेन्द्र जी के चेहरे के बिल्कुल सामने आ जाती.उनकी नज़रे तो वही टिकी हुई थी....और रीमा...उसे उनके बालो से खेलने बहुत अच्छा लग रहा था.वो आँखे बंद किए उनके सीने को सहलाने लगी & उनके निपल्स के आस-पास उसके हाथ दायरे मे घूमने लगे.कमर हिलाते हुए उनके लंड पे चूत को रगड़ रही थी.तभी विरेन्द्र जी का हाथ उसे जाँघो से होता हुआ उसकी सारी मे घुसता महसूस हुआ तो वो जैसे नींद से जागी.
वो सीधी हुई & अपनी घुटने सीधे करते हुए पलंग से उतर गयी,"अब आप आराम करिए,पिताजी.मैं भी सोने जाती हू."
वो लड़खड़ते हुए जैसे की नशे मे हो,अपने कमरे मे पहुँची & पिच्छली रात की हितरह अपने कपड़े & गीली पॅंटी को उतार अपने हाथोसे अपनी चूत को रगड़ने लगी.
"मालिक,मैने 127 नंबर. वाली कोठी के रामभाजन को कह दिया है,उसका भतीजा गणेश रोज़ आकर काम कर जाएगा...क्या करू मलिक, बात ही ऐसी है,जाना तो पड़ेगा-.."
"..-क्या बेकार की बातें कर रहे हो, दर्शन!",वीरेन्द्रा जी ने नाश्ते की प्लेट अपनी ओर खींची,"..बेफ़िक्र होकर जाओ & बिटिया की शादी निपताओ.यहा हमे कोई तकलीफ़ नही होगी."
"हा,दद्दा.और मैं भी तो हू.यहा कोई परेशानी नही होगी.",रीमा भी आकर टेबल पे बैठ गयी.दर्शन कल से 3 महीने की छुट्टी पे अपने गाओं जा रहा था,उसकी बेटी की की शादी के लिए.उसी के बारे मे बातें हो रही थी.
वीरेंद्र जी ने देखा कि रीमा कहीं जाने के लिए तैय्यार है,आज उसने सलवार कमीज़ पहनी थी जो की काफ़ी कसी हुई थी & उसके बदन की गोलाइयाँ उसमे से पूरी तरह से उभर रही थी.दुपपते सीने से नीचे था & कमीज़ के गले से 1 इंच क्लीवेज नज़र आ रहा था.उनकी निगाहे वही पे अटक गयी,"कही बाहर जा रही हो क्या?"
"जी.वो जो नये अकाउंट के लिए अप्लाइ किया था ना,आज बॅंक मे उसी के लिए बुलाया था.नाश्ता करके वही जाऊंगी."
"मैं तुम्हे छ्चोड़ दूँगा.",शेखर भी नाश्ता करने आ गया था.रीमा ने आज उसे मना नही किया,जानती थी कि वो मानेगा तो है नही.
थोड़ी देर बाद वो मार्केट मे शेखर की कार से उतर रही थी.आज फिर कार से बॅंक की ओर जाते हुए शेखर का हाथ उसकी कमर पे था.बॅंक मे उसे थोड़ी देर इंतेज़ार करने को कहा गया तो दोनो 1 दीवार से लगी कुर्सियो मे से 2 पे बैठ गयी.शेखर उस से सॅट के यू बैठा था कि उसकी टाँग & जाँघ रीमा की टाँग & जाँघ से बिल्कुल सटे हुए थे.उसका 1 हाथ पीछे से कुर्सी पे टीका रीमा की पीठ सहला रहा था.दोनो इधर-उधर की बाते करने लगे कि तभी किसी आदमी ने 1 फॉर्म फाड़ कर फेंका तो उसके कुच्छ टुकड़े पंखे की हवा से उड़ उनकी तरफ आ गये & 1 टुकड़ा रीमा की क्लीवेज मे अटक गया.
दोनो इस खेल का मज़ा ले रहे थे.रीमा का दिल तो कर रहा था की अपने ससुर के उपर चढ़ जाए & उनके बदन से अपने बदन की प्यास बुझा ले पर ऐसा वो कर नही सकती थी.
"आज ज़रा कमर की भी मालिश कर दो.",विरेन्द्र जी ने अपना कुर्ता उतार दिया & पलट के पेट के बल लेट गये.रीमा को उनके बालो भरे चौड़े सीने की बस 1 झलक सी मिली.रवि का सीना बिल्कुल चिकना था & वो हमेशा सोचा करती थी कि कैसा लगता होगा बालो भरे सीने मे हाथ फिराना उसे चूमना...
उसके ससुर लेटे उसका इंतेज़ार कर रहे थे.रीमा ने पहले तो बगल मे बैठे हुए ही मालिश शुरू की पर इस पोज़िशन मे वो ठीक से ये काम कर नही पा रही थी.उसके ससुर शायद उसकी परेशानी समझ गये थे,"मेरे दोनो तरफ घुटने रख के बैठो तो ठीक से कर पओगि."
रीमा ने सारी घुटनो तक उठाई & जैसे उन्होने कहा वैसे बैठ गयी.मालिश शुरू हो गयी.रीमा घुटनो पे खड़े-2 थोडा थक गयी तो अपनेआप उसके घुटने मूड गये & वो अपने ससुर की गंद पे बैठ गयी.विरेन्द्र जी के मुँह से आह निकल गयी तो उसे लगा कि उन्हे दर्द हो रहा है,वो फ़ौरन उठ गयी.
"बैठी रहो,बहू.मुझे कोई परेशानी नही है.वैसे भी ऐसे खड़े हुए तो तुम थक जाओगी."
रीमा वापस उनकी गंद पे बैठ गयी & मालिश करने लगी.चूत को 1 मर्दाना जिस्म का एहसास हुआ तो वो अपने आप बहुत हौले-2 उनकी गंद पे रगड़ खाने लगी.रीमा मस्त हो अपने ससुर की कमर सहला रही थी,"ज़रा पीठ की भी मालिश कर दो.",विरेन्द्र जी की आवाज़ आई.
वो झुक कर उनके पीठ की मालिश करने लगी.अब उसकी कमर हल्के-2 हिल कर उसकी चूत को उसके ससुर की गंद पे रगड़ रही थी & जब भी वो आगे झुकती तो उसकी छातिया उनकी पीठ को च्छू सी जाती.रीमा आँखे बंद किए ये खेल खेल रही थी कि तभी उसके ससुर ने करवट ली.
उनके ऐसा करने से वो अब सीधा उनके लंड पे आ बैठी थी.रीमा की साँस अटक गयी.उसके ससुर की आँखो मे वासना की भूख सॉफ नज़र आ रही थी.उसकी सारी घुटनो से कुच्छ उपर आ गयी थी.उनके हाथ वही घुटनो के उपर उसकी जाँघ से लग गये,"ज़रा सीने पे भी मालिश कर दो."
रीमा ने हाथो मे तेल लिया & उनके बालो भरे सीने की मालिश करने लगी.जब वो झुकती तो रीमा की ब्लाउस के गले मे से झँकति चूचिया विरेन्द्र जी के चेहरे के बिल्कुल सामने आ जाती.उनकी नज़रे तो वही टिकी हुई थी....और रीमा...उसे उनके बालो से खेलने बहुत अच्छा लग रहा था.वो आँखे बंद किए उनके सीने को सहलाने लगी & उनके निपल्स के आस-पास उसके हाथ दायरे मे घूमने लगे.कमर हिलाते हुए उनके लंड पे चूत को रगड़ रही थी.तभी विरेन्द्र जी का हाथ उसे जाँघो से होता हुआ उसकी सारी मे घुसता महसूस हुआ तो वो जैसे नींद से जागी.
वो सीधी हुई & अपनी घुटने सीधे करते हुए पलंग से उतर गयी,"अब आप आराम करिए,पिताजी.मैं भी सोने जाती हू."
वो लड़खड़ते हुए जैसे की नशे मे हो,अपने कमरे मे पहुँची & पिच्छली रात की हितरह अपने कपड़े & गीली पॅंटी को उतार अपने हाथोसे अपनी चूत को रगड़ने लगी.
"मालिक,मैने 127 नंबर. वाली कोठी के रामभाजन को कह दिया है,उसका भतीजा गणेश रोज़ आकर काम कर जाएगा...क्या करू मलिक, बात ही ऐसी है,जाना तो पड़ेगा-.."
"..-क्या बेकार की बातें कर रहे हो, दर्शन!",वीरेन्द्रा जी ने नाश्ते की प्लेट अपनी ओर खींची,"..बेफ़िक्र होकर जाओ & बिटिया की शादी निपताओ.यहा हमे कोई तकलीफ़ नही होगी."
"हा,दद्दा.और मैं भी तो हू.यहा कोई परेशानी नही होगी.",रीमा भी आकर टेबल पे बैठ गयी.दर्शन कल से 3 महीने की छुट्टी पे अपने गाओं जा रहा था,उसकी बेटी की की शादी के लिए.उसी के बारे मे बातें हो रही थी.
वीरेंद्र जी ने देखा कि रीमा कहीं जाने के लिए तैय्यार है,आज उसने सलवार कमीज़ पहनी थी जो की काफ़ी कसी हुई थी & उसके बदन की गोलाइयाँ उसमे से पूरी तरह से उभर रही थी.दुपपते सीने से नीचे था & कमीज़ के गले से 1 इंच क्लीवेज नज़र आ रहा था.उनकी निगाहे वही पे अटक गयी,"कही बाहर जा रही हो क्या?"
"जी.वो जो नये अकाउंट के लिए अप्लाइ किया था ना,आज बॅंक मे उसी के लिए बुलाया था.नाश्ता करके वही जाऊंगी."
"मैं तुम्हे छ्चोड़ दूँगा.",शेखर भी नाश्ता करने आ गया था.रीमा ने आज उसे मना नही किया,जानती थी कि वो मानेगा तो है नही.
थोड़ी देर बाद वो मार्केट मे शेखर की कार से उतर रही थी.आज फिर कार से बॅंक की ओर जाते हुए शेखर का हाथ उसकी कमर पे था.बॅंक मे उसे थोड़ी देर इंतेज़ार करने को कहा गया तो दोनो 1 दीवार से लगी कुर्सियो मे से 2 पे बैठ गयी.शेखर उस से सॅट के यू बैठा था कि उसकी टाँग & जाँघ रीमा की टाँग & जाँघ से बिल्कुल सटे हुए थे.उसका 1 हाथ पीछे से कुर्सी पे टीका रीमा की पीठ सहला रहा था.दोनो इधर-उधर की बाते करने लगे कि तभी किसी आदमी ने 1 फॉर्म फाड़ कर फेंका तो उसके कुच्छ टुकड़े पंखे की हवा से उड़ उनकी तरफ आ गये & 1 टुकड़ा रीमा की क्लीवेज मे अटक गया.