हिन्दी में मस्त कहानियाँ
Re: हिन्दी में मस्त कहानियाँ
आज़ाद! ठीक से तकिये पर मुख रख ले और तकिया में मुँह दबा ले. मैं समझ गया कि अब वह मेरी गान्ड में अप'ना 10" का मूसल ठोकेगा और साला मुँह दबाने के लिए कह रहा है जिस'से कि मेरी आवाज़ ना निक'ले. मैने वैसे ही किया. डर भी लग रहा था, पर इस नये तज़ूर'बे के बारे में सोच सोच मैं काफ़ी उत्तेजित भी हो गया था और मेरा लंड पूरा खड़ा हो गया था.
गुल ख़ान मेरी गान्ड के ठीक पीछे अप'ने पैरों पर खड़ा होके मेरी पीठ पर झुक गया और उस'ने अप'नी बाहें मेरी छाती पर कस ली/ तभी मुझे उस'का लंड अप'नी गान्ड के छेद पर महसूस हुवा और मैने तकिये में दाँत भींच के अप'ना चेहरा और कस के गाढ दिया. मेरी गान्ड का किला फ़तेह होने वाला था. गुल ख़ान ने लंड का दबाव मेरी गांद में दिया और एक तेज़ दर्द की लहर मेरे सारे बदन में दौड़ गयी. मैं कस'मासाया पर मैने सोच रखा था कि चाहे जो हो जा'य मुझे गले से आवाज़ बाहर नहीं निकलने देनी है.
फिर गुल ख़ान अप'ने लंड के सुपारे को मेरी गान्ड में कुच्छ देर हिलाता रहा. जिस'से मेरी गान्ड में भरा जमा हुवा नारियल तेल फैल'ने लगा. उस'के लंड का सुपारा मेरी गान्ड में अट'का 'पच' 'पच' कर के हिल रहा था. तभी उस'ने मेरी गान्ड पर और दबाव बढ़ाना शुरू किया और मुझे लंड अंदर सरक'ता साफ मालूम पड़ा. कुच्छ दूर तक तो बिना दर्द के अंदर सरक गया परंतु इस'के बाद मुझे ऐसे लगा कि जैसे मेरी गान्ड चीरी जा रही हो. तभी मैने अप'ना ध्यान शमी की पह'ली चुदाई की तरफ मोड़ दिया.
अब मुझे महसूस हो रहा था कि जब शमी की चूत में मैने पह'ली बार लंड पेला था तो उसे भी ऐसा दर्द हुवा होगा. मैं यह सोच कर पहली बार गान्ड मार'वाने के दर्द को झेल'ने लगा कि अभी कुच्छ देर पह'ले जब मैने अप'नी सग़ी बहन की चूत को ऐसा ही दर्द दिया था तो अब मैं क्यों चिल्लाउ. मैं अप'ने ख़यालों में खोया हुवा था और उधर गुल ख़ान ने मेरी नारियल तेल से सनी गान्ड में पूरा 10" का लंड जड़ तक पेल दिया था. उस'की बाहें मेरी छाती पर और कस गयी.
फिर गुल ख़ान ने आधा लंड मेरी गान्ड से निकाला और वापस धीरे से पूरा अंदर डाल दिया. ऐसा उस'ने तीन बार किया और तीस'री बार मुझे दर्द महसूस नहीं हुवा. फिर तो अचानक तूफान आ गया. अब गुल ख़ान सुपरे तक लंड बाहर खींच एक ही झट'के में पूरा जड़ तक घुसा रहा था. धीरे धीरे उस'की स्पीड बढ़'ती गयी और मुझे केवल पच्च पच्च सुनाई पड़ रहा था. मेरा लंड तन गया था और जब गुल ख़ान ने मेरी छाती से एक हाथ नीचे बढ़ाके मेरा लंड पक'डा तो मुझे बहुत मज़ा आया. मैं बोल पड़ा,
गुल ख़ान मेरे लंड को सर'का मारो. ओह तुम तो गान्ड मार'ने के पूरे एक्सपर्ट हो. गुल ख़ान ने मेरे लंड को मुत्ठी में जाकड़ लिया और वह मेरे लंड को मूठ मार'ने लगा. उधर बहुत तेज़ी के साथ उस'का लंड भी मेरी गान्ड में अंदर बाहर हो रहा था. तभी शमी कमरे में आ गयी और जैसे ही वह मूड के वापस जाने लगी गुल ख़ान बोल पड़ा,
शमी बेटे यहाँ आओ और बैठो. देखो मैं तुम्हारे भाई से तुम्हारा बद'ला कैसे ले रहा हूँ. ठीक से नहा ली हो ना. अभी दर्द कम हो गया न. शमी ने हां में गर्दन हिला दी.
ले साले झेल मेरा लंड. आज तेरी गान्ड फाड़ के बिटिया का बदला लूँगा. ले झेल.... गुल ख़ान मेरे लंड को मुठियाते हुए दना डन मेरी गान्ड में लंड पेल रहा था. तभी मेरे लंड से फव्वारा छूटा और तभी मुझे अप'नी गान्ड में गुल ख़ान के रस का फव्वारा महसूस हुवा. उस दिन और कुच्छ नहीं हुवा. शमी और दिन की अपेक्षा आज बहुत जल्द अप'ने कम'रे में जा कर सो गयी. मैं भी जल्द सो गया. दूसरे दिन मैं और शमी रोज की तरह यूनिवर्सिटी और स्कूल गये. दुस'री रात शमी राज़ी हो गयी. तीसरे दिन जब तक अम्मी अब्बू नहीं आ गये तब तक शमी इस खेल की खिलाड़ी बन चुकी थी. तो दोस्तो कैसी लगी ये कहानी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त
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चाचा की बेटी
हाई दोस्तों,
मेरे विद्यालय की छुट्टियाँ में मैंने अपने गॉंव जाने का प्लान बनाया | मेरा गॉंव पूरी तरह से हरियाली और खेत – खालिआलों से भरा है | मुझे गॉंव आकर घूमने का मौका साल में एक बार ही मिलता हैं इसलिए मैं घूमने – फिरने और एश करने में कोई कसर नहीं छोड़ता |
गॉंव मैं मेरी दादी के साथ मेरे चाचा – चाची और उनकी बेटी अंजू रहती है | इस बार मैं पुरे १ साल बाद गॉंव गया था इसीलिए मुझे वहाँ काफ़ी अच्छा लग रहा था और बहुत उत्सह भी था सबसे मिलने का क्यूंकि मुझे सब दिल से चाहते हैं | गॉंव आते ही सबसे पहले चाची और अंजू आए मुझे घर ले जाने के लिए आए | उस वक्त मेरी निगाहें बस अंजू पर ही टिकी हुई थी, वो काफ़ी बड़ी हो चुकी थी और सुन्दर भी लग रही थी | मैं अपने आप को रोकना चाहता था पर उसके स्तन के उभार ने तो जैसे मेरी नज़रों पर ही काबू कर लिया था |
अगली सुबह मैं अंजू के साथ खेत की तरफ घूमने निकल पड़ा | हम दोनों बातें करते – करते घर से बहुत दूर निकल आये थे और फिर कुछ देर के बाद हम दोनों थक कर वहीँ एक पेड़ के निचे बैठ गए | हमारे चारों खेतों में लंबी – लंबी इंक की फसल होने के कारण हमें कोई चाहकर भी देख नहीं सकता था | कुछ देर इधर – उधर की बातों में उलझाते हुए मैंने अचानक उससे यौन सम्बंधित विषय की बातें करना शुरू कर दिया | अंजू एक दम घबरा गई और सहमी – सी आवाज में बोली,
“ऐसी बातें करना .. हमें शोभा नहीं देता . . ! !”
तभी मैंने अंजू को प्यार से समझाया जिसपर वो कुछ देर न – न करती हुई मान गई और हम दोनों एक दूसरे से यौन समन्धित बातें करने लगे जिससे मेरा लंड पैंट अंदर ही सलामी देने लगा | अंजू १७ साल की हो चुकी थी और हर तरह से देसी माल लग रही थी, मुझे अंजू को बस खुल्ले सांड की तरह चोदने का मन करने लगा |
कुछ देर बातें करने के बाद हम दोनों एक दूसरे के कुछ और करीब आकर बैठ गए फिर एक दूसरे को टकटकी लगाकर देखने लगे | मैंने अपने हाथो से अंजू के खुले बालों को खोल सहलाने लगा और धीरे – धीरे उसकी पीठ पर हाथों को फेरने लगा जिससे अंजू ने सहमते हुए धीमे सी आवज़ में कहा,
अंजू – क्या. . . कर रहे हो . . .? ?
मैंने अंजू से कुछ न कहते हुए उसके होठों को चूमने लगा जिसपर पहले अंजू ने मेरा हल्का- हल्का विरोध किया पर आखिर अपने तन की गर्मी आगे हार मन ली | मैंने अंजू को समझाया की,
“इस तरह के शारीरिक समंध से कुछ नहीं होता. . हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं. .यह तन की गर्माहट तो कुदरत की ही देन है . . ! !”
मेरे कई देर समझाने के बाद अंजू आखिकार मान ही गई और मुझे इज़ाज़त दे दी | मैंने अंजू को उसी वक्त गले लगा लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा और अपने हाथों से उसकी पीठ को मसलने लगा और फिर धीरे – धीरे उसके मुलायम गालों तक पहुँच उसके होठों पर चूमने लगा | अब अंजू के मुंह से भी कामुक आवाजें निकल रही थी और उसका पूरा शरीर काँप रहा था |
अब मैंने धीरे से अंजू की कुर्ती को उतारा और उसके ब्रा को चाटने लगा, उसने काले रंग का ब्रा पहने हुए था फिर मैंने उसके ब्रा की हुक खोली और ब्रा उतार दिया | उसके गोरे – गोरे स्तन अब मेरे सामने थे जिन्हें मैंने चुमते हुए अपने दोनों हाथों से दबाना शुरू कर दिया और उसकी चूचकों को अपने होठों में भींचकर पीने लगा | मेरे ऐसा करने से अंजू झटपटाने लगी और गरम- गरम सिस्कारियां भरने लगी मैंने उसका हाथ थाम लिया और फिर कुछ देर उसके स्तनों को पीने के बाद पीछे से उसकी पीठ को चूमना शुरू कर दिया और उसके पेट पर अपना हाथ फेरने लगा | कुछ देर बाद मैंने अपनी जीभ से अंजू की नाभि के इर्द – गिरध चाटने लगा |
कुछ देर यह सब करने के बाद मैंने अंजू की सलवार का नाडा खोल उसे उतार वहीँ मिटटी की क्यारियों में रख गिरा दिया | उसकी जांघ बहुत गोरी- गोरी थी, उसने लाल रंग की पैंटी पहनी हुई थी | मैंने उसकी जाँघों को चूमना शुरू कर दिया और चुमते – चुमते उसकी पैंटी तक पहुँच उसकी चुत के उप्पर अपनी जीभ रगड़ने लगा | कुछ देर यूँही करने के बाद मैंने उसकी पैंटी को उतारा और अब उसकी उसकी चिकनी – कुंवारी चुत में अपनी ऊँगली अंदर – बाहर करने लगा |
अंजू को बहुत मज़ा आ रहा था जिससे मैंने मेरा जोश बढ़ा और मैंने उसे वहीँ मिटटी में लेटकर अपने लंड को उसकी चुत के छेद पर रगड़ने लगा | अब मैं मंजू के गोरे बदन पर लेट मस्त में एक ज़ोरदार झटका लगाया जिससे पहले वो जोर के चिल्लाई और उसकी चुत में हुए दर्द के कारण रोने लगी मैंने इसकी परवाह न करते हुए पहले उसकी चुत को चाटने लगा फिर जैसे ही गर्मी चढ़ी तो मैंने फिर अंजू की चुत में धक्के देना शुरू कर दिया | जिससे अब वो पूरी तरह कामुकता में डूबकर लेने लगी | मैंने लगभग ४५ मिनट अंजू की चुत में अपने लंड को रौन्धाया और उसकी चुत को मसलते हुए अपना सारा घड़ा वीर्य उसकी चुचों पर ही छोड़ दिया |
हम तभी अपने कपड़े पेहेन समय पर घर पहुँच गए | अब अंजू भी मुझसे काफ़ी करीब आ चुकी थी और जब भी मुझे मौका मिलता मैं उसे दबोच लेता |
हाई दोस्तों,
मेरे विद्यालय की छुट्टियाँ में मैंने अपने गॉंव जाने का प्लान बनाया | मेरा गॉंव पूरी तरह से हरियाली और खेत – खालिआलों से भरा है | मुझे गॉंव आकर घूमने का मौका साल में एक बार ही मिलता हैं इसलिए मैं घूमने – फिरने और एश करने में कोई कसर नहीं छोड़ता |
गॉंव मैं मेरी दादी के साथ मेरे चाचा – चाची और उनकी बेटी अंजू रहती है | इस बार मैं पुरे १ साल बाद गॉंव गया था इसीलिए मुझे वहाँ काफ़ी अच्छा लग रहा था और बहुत उत्सह भी था सबसे मिलने का क्यूंकि मुझे सब दिल से चाहते हैं | गॉंव आते ही सबसे पहले चाची और अंजू आए मुझे घर ले जाने के लिए आए | उस वक्त मेरी निगाहें बस अंजू पर ही टिकी हुई थी, वो काफ़ी बड़ी हो चुकी थी और सुन्दर भी लग रही थी | मैं अपने आप को रोकना चाहता था पर उसके स्तन के उभार ने तो जैसे मेरी नज़रों पर ही काबू कर लिया था |
अगली सुबह मैं अंजू के साथ खेत की तरफ घूमने निकल पड़ा | हम दोनों बातें करते – करते घर से बहुत दूर निकल आये थे और फिर कुछ देर के बाद हम दोनों थक कर वहीँ एक पेड़ के निचे बैठ गए | हमारे चारों खेतों में लंबी – लंबी इंक की फसल होने के कारण हमें कोई चाहकर भी देख नहीं सकता था | कुछ देर इधर – उधर की बातों में उलझाते हुए मैंने अचानक उससे यौन सम्बंधित विषय की बातें करना शुरू कर दिया | अंजू एक दम घबरा गई और सहमी – सी आवाज में बोली,
“ऐसी बातें करना .. हमें शोभा नहीं देता . . ! !”
तभी मैंने अंजू को प्यार से समझाया जिसपर वो कुछ देर न – न करती हुई मान गई और हम दोनों एक दूसरे से यौन समन्धित बातें करने लगे जिससे मेरा लंड पैंट अंदर ही सलामी देने लगा | अंजू १७ साल की हो चुकी थी और हर तरह से देसी माल लग रही थी, मुझे अंजू को बस खुल्ले सांड की तरह चोदने का मन करने लगा |
कुछ देर बातें करने के बाद हम दोनों एक दूसरे के कुछ और करीब आकर बैठ गए फिर एक दूसरे को टकटकी लगाकर देखने लगे | मैंने अपने हाथो से अंजू के खुले बालों को खोल सहलाने लगा और धीरे – धीरे उसकी पीठ पर हाथों को फेरने लगा जिससे अंजू ने सहमते हुए धीमे सी आवज़ में कहा,
अंजू – क्या. . . कर रहे हो . . .? ?
मैंने अंजू से कुछ न कहते हुए उसके होठों को चूमने लगा जिसपर पहले अंजू ने मेरा हल्का- हल्का विरोध किया पर आखिर अपने तन की गर्मी आगे हार मन ली | मैंने अंजू को समझाया की,
“इस तरह के शारीरिक समंध से कुछ नहीं होता. . हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं. .यह तन की गर्माहट तो कुदरत की ही देन है . . ! !”
मेरे कई देर समझाने के बाद अंजू आखिकार मान ही गई और मुझे इज़ाज़त दे दी | मैंने अंजू को उसी वक्त गले लगा लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा और अपने हाथों से उसकी पीठ को मसलने लगा और फिर धीरे – धीरे उसके मुलायम गालों तक पहुँच उसके होठों पर चूमने लगा | अब अंजू के मुंह से भी कामुक आवाजें निकल रही थी और उसका पूरा शरीर काँप रहा था |
अब मैंने धीरे से अंजू की कुर्ती को उतारा और उसके ब्रा को चाटने लगा, उसने काले रंग का ब्रा पहने हुए था फिर मैंने उसके ब्रा की हुक खोली और ब्रा उतार दिया | उसके गोरे – गोरे स्तन अब मेरे सामने थे जिन्हें मैंने चुमते हुए अपने दोनों हाथों से दबाना शुरू कर दिया और उसकी चूचकों को अपने होठों में भींचकर पीने लगा | मेरे ऐसा करने से अंजू झटपटाने लगी और गरम- गरम सिस्कारियां भरने लगी मैंने उसका हाथ थाम लिया और फिर कुछ देर उसके स्तनों को पीने के बाद पीछे से उसकी पीठ को चूमना शुरू कर दिया और उसके पेट पर अपना हाथ फेरने लगा | कुछ देर बाद मैंने अपनी जीभ से अंजू की नाभि के इर्द – गिरध चाटने लगा |
कुछ देर यह सब करने के बाद मैंने अंजू की सलवार का नाडा खोल उसे उतार वहीँ मिटटी की क्यारियों में रख गिरा दिया | उसकी जांघ बहुत गोरी- गोरी थी, उसने लाल रंग की पैंटी पहनी हुई थी | मैंने उसकी जाँघों को चूमना शुरू कर दिया और चुमते – चुमते उसकी पैंटी तक पहुँच उसकी चुत के उप्पर अपनी जीभ रगड़ने लगा | कुछ देर यूँही करने के बाद मैंने उसकी पैंटी को उतारा और अब उसकी उसकी चिकनी – कुंवारी चुत में अपनी ऊँगली अंदर – बाहर करने लगा |
अंजू को बहुत मज़ा आ रहा था जिससे मैंने मेरा जोश बढ़ा और मैंने उसे वहीँ मिटटी में लेटकर अपने लंड को उसकी चुत के छेद पर रगड़ने लगा | अब मैं मंजू के गोरे बदन पर लेट मस्त में एक ज़ोरदार झटका लगाया जिससे पहले वो जोर के चिल्लाई और उसकी चुत में हुए दर्द के कारण रोने लगी मैंने इसकी परवाह न करते हुए पहले उसकी चुत को चाटने लगा फिर जैसे ही गर्मी चढ़ी तो मैंने फिर अंजू की चुत में धक्के देना शुरू कर दिया | जिससे अब वो पूरी तरह कामुकता में डूबकर लेने लगी | मैंने लगभग ४५ मिनट अंजू की चुत में अपने लंड को रौन्धाया और उसकी चुत को मसलते हुए अपना सारा घड़ा वीर्य उसकी चुचों पर ही छोड़ दिया |
हम तभी अपने कपड़े पेहेन समय पर घर पहुँच गए | अब अंजू भी मुझसे काफ़ी करीब आ चुकी थी और जब भी मुझे मौका मिलता मैं उसे दबोच लेता |
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कुँवारी जवानी--1
गर्मी की तपती हुई दोपहर थी !
मै मस्तराम की 'कुँवारी जवानी' पढ़कर अपने लौड़े को मुठिया रहा था।
इसे मैने लखनऊ के चारबाग स्टेशन के बाहर एक फुटपाथ से खरीदा था।
किताब की कीमत थी 50 रूपये।
लेकिन जो मजा मिल रहा था उसकी कीमत का कोई मूल्य नहीं था।
इस किताब को पढ़ कर मै पचासों बार अपना लौड़ा झाड़ चुका था और हर बार उतनी ही लज्जत और मस्ती का अहसास होता था जैसे पहली बार पढ़ने पर हुआ था।
कहानी में एक ऐसे ठर्की बूढ़े का जिक्र था जिसे घर बैठे-बैठे ही एक कुँवारी चूत मिल जाती है !
इस कहानी को पढ़कर मै भी दिन में ही सपना देखने लगा था जैसे मुझे भी घर बैठे-बैठे ही कुँवारी चूत मिल जायेगी और फिर मै उसमें अपना मोटा मूसल घुसा कर भोषड़ा बना दूंगा।
यही सोच-सोच के लौड़े को मुठियाकर पानी निकाल देता था।
लेकिन फिर एक अजीब सी चिन्ता भीतर कहीं सिर उठाने लगती की कहीं अपनी जवानी बरबाद तो नहीं कर रहा हूँ।
इसी चिन्ता से ग्रस्त मै मिला 'बाबा लौड़ा भस्म भुरभुरे' से।
जिनकी दुकान आलमबाग में एक गली के अंदर थी।
पहले तो भीतर जाने में संकोच लगा लेकिन जब देखा की दुकान एकदम किनारे हैं और कोई भी इधर आता जाता नहीं दिख रहा तो मै जल्दी से भीतर घुस गया। पूरी की पूरी दुकान तरह-तरह की जड़ी बूटियों से भरी पड़ी थी।
लौड़ा भस्म भुरभुरे ने मुझे अपनी मर्दाना ताकत को बरकरार रखने का एक नुस्खा बताया।
मूठ चाहे जितना मारो लेकिन हर महीने एक चूत का भोग जरूर करना वरना लौड़े को मूठ की आदत पड़ जायेगी फिर लड़की देखकर भी पूरा तनाव नहीं आ पायेगा।
इस बात का डर भी लगा रहेगा की कहीं मैं बुर को चोदकर उसे ठण्डा कर पाऊगा भी या नहीं।
इस सोच से एक मानसिक कुंठा दिमाग में घर कर जायेगी। जिसकी वजह से लौड़े में पूरी तरह से तनाव नहीं आ पाता।
इसके अलावा उन्होंनें भैसे के वृषण का कच्चा तेल, बैल के सींग का भस्म व ताजा- ताजा ब्याही औरत की चूत का बाल यानि झाँटों को जलाकर उसमें गर्भवती औरत की चूची का कच्चा दूध मिलाकर एक घुट्टी दी।
कुल मिलाकर एक हजार रूपये का लम्बा बिल बना। मगर मर्दाना ताकत बरकरार रहें ताकि बुर चोदने का मजा लेता रहूँ, इस लोभ के आगे एक हजार क्या था....मिट्टी।
तो मै बात कर रहा था तपती हुई दोपहर की। जब मै कमरे में पंखे की ठण्डी हवा में चारपाई पर लेटा अपने लौड़े पर भैसे के बृषण का कच्चा तेल लगा रहा था।
कमाल की बात ये थी की लौड़ा भस्म भुरभुरे की दवा काफी कारगर साबित हो रही थी। लौड़े पर तेल लगाते ही लौड़ा काफी सख्त हो जाता था जैसे भैंसे और बैल की ताकत मेरे लौड़े में ही समा गई हो।
इतना टाइट की 12 साल की कच्ची बुर को भी फाड़ कर घुस जाय।
अगर इस वक्त मुझे कोई कच्ची बुर ही मिल जाती तो मै उसे छोड़ने वाला नहीं था।
और हुआ भी वहीं।
मानों भगवान ने मेरी सुन ली।
घर बैठे-बैठे चूत की व्यवस्था हो गई थी।
मेरे घर के पिछवाड़े एक ईमली का पेड़ था।
जहाँ अक्सर लड़के लड़कियाँ ईमली तोड़ने आ जाते थे।
दिन भर मै उन लोगों को हाँकता ही रहता था।
लेकिन आज की तरह मेरी नियत मैली नहीं थी।
मैने बाहर कुछ लड़कियों की फुसफुसाती आवाज सुनी तो कान शिकारी लोमड़ी की तरह सतर्क हो गये।
मै लौड़े को हाथ से मुठियाते हुए खिड़की तक पहुँचा और पीछे झाँका तो मानों मुँह माँगी मुराद मिल गई।
एक छोटी लड़की लगभग 11 साल की नीचे से ईमली उठा-उठा कर अपनी स्कर्ट की झोली में डाल रही थी।
लेकिन मेरी नियत उस लड़की पर उतनी खराब नहीं हुई जितनी उस लड़की पर जो ईमली की एक डाल पर चढ़ कर ईमली तोड़कर नीचे फेंक रही थी।
सीने के ऊभार बता रहे थे की अभी 14-15 के बीच में ही थी।
यानि एकदम कोरी, कुँवारी, चिपकी हुई, अनछुई, रेशमी झाँटों वाली कसी बुर।
सोच के ही लौड़े के छेद से लसलसा पानी चू गया।
मेरा कमीना दिल सीने के पिंजरे में किसी बौराये कुत्ते की तरह जोर-जोर से भौंकने लगा।
देखकर कसा-कसा लाल चिपचिपा बिल, भौंकने लगता है ये साला दिल!
ये मस्तराम की शायरी थी जो इस वक्त मेरे दिमाग में हूटर की तरह बज रहा था।
फिर क्या था- मैने बनियान पहनकर एक लुंगी लपेटी और एक डण्डा उठाकर धड़धड़ाते हुए वहाँ पहुचा।
वही हुआ जो होना लाजमी था।
छोटी भाग खड़ी हुई लेकिन बड़ी जाल में फँस गई।
"नीचे ऊतर साली चोट्टी...."- मैने डण्डा जमीन पर पटककर उसकी तरफ देखा।
वो एक डाल पर दुबकी बैठी थी।
नीचे से मै उसकी कोरी जवानी देख रहा था।
दोनों टागों के बीच लाल रंग की छोटी सी कच्छी।
जिसके नीचे उसकी कच्ची बुर छिपी हुई थी।
देखकर ही लौड़ा हिनहिनाने लगा।
जब मैने देखा की मेरे डाँटने पर वो नीचे नहीं आ रही तो मैने प्यार से पुचकारा-
"चल...नीचे उतर...नहीं मारूगा...अगर मेरे 10 गिनने तक नीचे नहीं आई तो समझ लेना..."
फिर वो डरते सहमते नीचे उतरने लगी।
मै लुंगी के नीचे लौड़े को सोहराता हुआ स्कर्ट के नीचे उसकी गोरी-गोरी गदराई टागों को देखकर मस्ताया हुआ था।
कुल मिलाकर अभी कच्ची कली थी जो धीरे-धीरे खिल रही थी।
गर्मी की तपती हुई दोपहर थी !
मै मस्तराम की 'कुँवारी जवानी' पढ़कर अपने लौड़े को मुठिया रहा था।
इसे मैने लखनऊ के चारबाग स्टेशन के बाहर एक फुटपाथ से खरीदा था।
किताब की कीमत थी 50 रूपये।
लेकिन जो मजा मिल रहा था उसकी कीमत का कोई मूल्य नहीं था।
इस किताब को पढ़ कर मै पचासों बार अपना लौड़ा झाड़ चुका था और हर बार उतनी ही लज्जत और मस्ती का अहसास होता था जैसे पहली बार पढ़ने पर हुआ था।
कहानी में एक ऐसे ठर्की बूढ़े का जिक्र था जिसे घर बैठे-बैठे ही एक कुँवारी चूत मिल जाती है !
इस कहानी को पढ़कर मै भी दिन में ही सपना देखने लगा था जैसे मुझे भी घर बैठे-बैठे ही कुँवारी चूत मिल जायेगी और फिर मै उसमें अपना मोटा मूसल घुसा कर भोषड़ा बना दूंगा।
यही सोच-सोच के लौड़े को मुठियाकर पानी निकाल देता था।
लेकिन फिर एक अजीब सी चिन्ता भीतर कहीं सिर उठाने लगती की कहीं अपनी जवानी बरबाद तो नहीं कर रहा हूँ।
इसी चिन्ता से ग्रस्त मै मिला 'बाबा लौड़ा भस्म भुरभुरे' से।
जिनकी दुकान आलमबाग में एक गली के अंदर थी।
पहले तो भीतर जाने में संकोच लगा लेकिन जब देखा की दुकान एकदम किनारे हैं और कोई भी इधर आता जाता नहीं दिख रहा तो मै जल्दी से भीतर घुस गया। पूरी की पूरी दुकान तरह-तरह की जड़ी बूटियों से भरी पड़ी थी।
लौड़ा भस्म भुरभुरे ने मुझे अपनी मर्दाना ताकत को बरकरार रखने का एक नुस्खा बताया।
मूठ चाहे जितना मारो लेकिन हर महीने एक चूत का भोग जरूर करना वरना लौड़े को मूठ की आदत पड़ जायेगी फिर लड़की देखकर भी पूरा तनाव नहीं आ पायेगा।
इस बात का डर भी लगा रहेगा की कहीं मैं बुर को चोदकर उसे ठण्डा कर पाऊगा भी या नहीं।
इस सोच से एक मानसिक कुंठा दिमाग में घर कर जायेगी। जिसकी वजह से लौड़े में पूरी तरह से तनाव नहीं आ पाता।
इसके अलावा उन्होंनें भैसे के वृषण का कच्चा तेल, बैल के सींग का भस्म व ताजा- ताजा ब्याही औरत की चूत का बाल यानि झाँटों को जलाकर उसमें गर्भवती औरत की चूची का कच्चा दूध मिलाकर एक घुट्टी दी।
कुल मिलाकर एक हजार रूपये का लम्बा बिल बना। मगर मर्दाना ताकत बरकरार रहें ताकि बुर चोदने का मजा लेता रहूँ, इस लोभ के आगे एक हजार क्या था....मिट्टी।
तो मै बात कर रहा था तपती हुई दोपहर की। जब मै कमरे में पंखे की ठण्डी हवा में चारपाई पर लेटा अपने लौड़े पर भैसे के बृषण का कच्चा तेल लगा रहा था।
कमाल की बात ये थी की लौड़ा भस्म भुरभुरे की दवा काफी कारगर साबित हो रही थी। लौड़े पर तेल लगाते ही लौड़ा काफी सख्त हो जाता था जैसे भैंसे और बैल की ताकत मेरे लौड़े में ही समा गई हो।
इतना टाइट की 12 साल की कच्ची बुर को भी फाड़ कर घुस जाय।
अगर इस वक्त मुझे कोई कच्ची बुर ही मिल जाती तो मै उसे छोड़ने वाला नहीं था।
और हुआ भी वहीं।
मानों भगवान ने मेरी सुन ली।
घर बैठे-बैठे चूत की व्यवस्था हो गई थी।
मेरे घर के पिछवाड़े एक ईमली का पेड़ था।
जहाँ अक्सर लड़के लड़कियाँ ईमली तोड़ने आ जाते थे।
दिन भर मै उन लोगों को हाँकता ही रहता था।
लेकिन आज की तरह मेरी नियत मैली नहीं थी।
मैने बाहर कुछ लड़कियों की फुसफुसाती आवाज सुनी तो कान शिकारी लोमड़ी की तरह सतर्क हो गये।
मै लौड़े को हाथ से मुठियाते हुए खिड़की तक पहुँचा और पीछे झाँका तो मानों मुँह माँगी मुराद मिल गई।
एक छोटी लड़की लगभग 11 साल की नीचे से ईमली उठा-उठा कर अपनी स्कर्ट की झोली में डाल रही थी।
लेकिन मेरी नियत उस लड़की पर उतनी खराब नहीं हुई जितनी उस लड़की पर जो ईमली की एक डाल पर चढ़ कर ईमली तोड़कर नीचे फेंक रही थी।
सीने के ऊभार बता रहे थे की अभी 14-15 के बीच में ही थी।
यानि एकदम कोरी, कुँवारी, चिपकी हुई, अनछुई, रेशमी झाँटों वाली कसी बुर।
सोच के ही लौड़े के छेद से लसलसा पानी चू गया।
मेरा कमीना दिल सीने के पिंजरे में किसी बौराये कुत्ते की तरह जोर-जोर से भौंकने लगा।
देखकर कसा-कसा लाल चिपचिपा बिल, भौंकने लगता है ये साला दिल!
ये मस्तराम की शायरी थी जो इस वक्त मेरे दिमाग में हूटर की तरह बज रहा था।
फिर क्या था- मैने बनियान पहनकर एक लुंगी लपेटी और एक डण्डा उठाकर धड़धड़ाते हुए वहाँ पहुचा।
वही हुआ जो होना लाजमी था।
छोटी भाग खड़ी हुई लेकिन बड़ी जाल में फँस गई।
"नीचे ऊतर साली चोट्टी...."- मैने डण्डा जमीन पर पटककर उसकी तरफ देखा।
वो एक डाल पर दुबकी बैठी थी।
नीचे से मै उसकी कोरी जवानी देख रहा था।
दोनों टागों के बीच लाल रंग की छोटी सी कच्छी।
जिसके नीचे उसकी कच्ची बुर छिपी हुई थी।
देखकर ही लौड़ा हिनहिनाने लगा।
जब मैने देखा की मेरे डाँटने पर वो नीचे नहीं आ रही तो मैने प्यार से पुचकारा-
"चल...नीचे उतर...नहीं मारूगा...अगर मेरे 10 गिनने तक नीचे नहीं आई तो समझ लेना..."
फिर वो डरते सहमते नीचे उतरने लगी।
मै लुंगी के नीचे लौड़े को सोहराता हुआ स्कर्ट के नीचे उसकी गोरी-गोरी गदराई टागों को देखकर मस्ताया हुआ था।
कुल मिलाकर अभी कच्ची कली थी जो धीरे-धीरे खिल रही थी।