कथा भोगावती नगरी की

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Re: कथा भोगावती नगरी की

Unread post by sexy » 19 Sep 2015 09:53

तभी राज वैद्य वनसवान का शयनकक्ष में आगमन हुआ , नाक के बालों को जला डालने वाली दुर्गंध और देवी सुवर्णा का जी मिचलाते देख वह समझ गये की महाराज ने अचेतावस्था में ही ग्लानि से शैया पर मल – मुत्र का त्याग कर दिया है.

तथापि इस दुर्धार रोग में स्वच्चता को अत्यधिक प्रधानी और महत्वता देना आवश्यक है ऐसा ना करंबे पर रोगी की मृत्यु निश्चित है ऐसा सोच कर उन्होने प्रथम तो चेहरे पर स्वच्छ रुमाल बाँधा देवी सुवर्णा को परामर्श दिया “देवी आप अविलंब स्नान कर शुचिरभूत हो लें और दास दासी से महाराज द्वारा हगे गये मल को स्वच्छ कराएँ , इस मलमें दुर्धर रोग के विषाणु और जीवाणु हो सकते हैं”

गंदी बदबू से देवी सुवर्णा को तो उबकाई आराही थी बड़ा बुरा हाल था , परंतु पत्नी धर्म भी तो निभाना था , गले तक आए उल्टी को उसने किसी प्रकार गले तक ही सीमित रखा और साडी का पल्लू नाक पर लपेट कर वह उल्टी करने बाहर चली गई.
पीछे पीछे वैद्य जी चलने लगे , सुवर्णा ने उन्हें बगल के कक्ष में रुकने का इशारा किया और मुँह तक आती उबकाई को दबाते हुए वहाँ से तेज़ी से निकल गयीं.

वनसवान जी अपने झोले से कुछ टटोलने लग गये , ताड़पत्र और लेखनी निकाली और उसमें कुछ लिखने लग गये , कुछ क्षण हुए और तब देवी सुवर्णा का आगमन हुआ .

“क्षमा करिएगा वैद्य जी , उस दुर्गंध में एक क्षण भी रुकना दुश्वार था और मुझे मीतली सी आने लगी , मैने सेवकों को वहाँ सफाई करने के लिए कह दिया है ” देवी सुवर्णा ने स्पष्टीकरण दिया.

“कोई बात नहीं देवी” उन्होने कुछ सोचते हुए कहा “मैं महाराज के रोग और लक्षणों के बारे में चिंतन कर रहा था और मेरी धारणा है कि यह दुर्धर रोग आम नहीं , कदाचित् किसी ने क्रिया कराई है”

“क्या? वह कैसे?” सुवर्णा ने पूछा.

“कुछ तो समस्या अवश्य है ,जो हमारे दृष्टिक्षेप में नहीं है” वनसवान ने सोचा.

तभी वहाँ द्वितवीर्य का आगमन हुआ वनसवान ने उसे अपनी धारणा के बारे में बताया और उसने सुवर्णा से पूछा

“देवी क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानतीं हैं जिसका महाराज ने अहित किया हो?”

” अमात्य द्वितवीर्य मैं हैरान हूँ यह कैसा विचित्र प्रश्न आप कर रहे हैं?” सुवर्णा ने चिढ़ कर कहा.

“क्षमा देवी” द्वितवीर्य ने कहा “परंतु यदि किसी ने क्रिया कराई है तो उस व्यक्ति की महाराज से क्या शत्रुता हो सकती है इसका उत्तर पाने के उद्देश्य से मैने प्रश्न किया”

“निस्संदेह! परंतु आप इस बात से अवश्य ही अवगत हैं कि महाराज कितने भोग विलासी हैं” सुवर्णा ने कहा

“जी हाँ देवी” द्वितवीर्य ने प्रत्युत्तर दिया

“अब उन्होने कब किसी की भार्या पर कुदृष्टि डाल कर उसे अपनी परिचारिका मंडल में शामिल कर स्त्रियों की योनियों का भेदन और चोदन अपने लॅंड द्वारा निर्ममता से किया इसका कोई हिसाब नहीं इसकी गिनती तो हम स्वयं नहीं रख सकती , कदाचित् ऐसे महकामी राजा को ऐसी ही किसी अबला स्त्री की हाय लगी है” सुवर्णा रुंवासी हो कर बोली

“परेशान मत हों देवी , क्रिया कराने वाला अवश्य ही कोई मनुष्य है” वनसवान ने कहा

“क्या???कैसे पता लगाया आपने?”
“वह सब छोड़िए आपने अभी अभी बतलाया कि महाराज को स्त्रियों के चोदन में आनंद आता था” द्वितवीर्य बोले
“कैसी बातें कर रहे हो मंत्री जी?” वनसवान ने टोका.
“मैं केवल कारण जानना चाहता हूँ , महाराज के अपमान का मेरा कोई हेतु नहीं” द्वितवीर्य ने स्पष्ट किया
“आपका कथन सत्य है उन्होने अपनी तरुणाई में स्वयं कई स्त्रियों का बलपूर्वक चोदन किया बल्कि अपने सैनिकों को भी दूसरे राज्य की स्त्रियों को सार्वजनिक चोदने की आज्ञा दी ”

“यह तो अत्याचार हुआ , परंतु फिर इस विचित्र आदेश का पालन क्या सेना ने किया?” द्वितवीर्य ने प्रश्न किया
“सेना ने आज्ञा पालन करने का प्रयास अवश्य किया परंतु यह बात स्वयं महाराज ने ही मुझे बताई है कि जब जब किसी कुमारीका का उनकी सेना सार्वजनिक चोदन करने का प्रयास करती तब तब उनके लिंग कट-कट कर गिर पड़ते” देवी सुवर्णा ने बताया.

“ओह.. तो यह बात है” द्वितवीर्य ने सोचते हुए कहा
“हाँ और इसी कारण तत्कालीन सेनानायक को भी अपना पौरुष गँवाना पड़ा” सुवर्णा ने जानकारी दी.
“परंतु इन स्त्रियों में सैनिकों से बैर मोल लेने का ऐसा साहस नहीं हो सकता , निश्चयी ही उन्हें कोई भड़काता होगा”
द्वितवीर्य ने कहा.

“भोगावती का राजगुरु बृहदलिंग” देवी सुवर्णा की यह कहते हुए आवाज़ भर्रा गयी.

“और आप यह बात कैसे जानती हैं , देवी?” द्वितवीर्य ने पूछा

“वह इसलिए कि मैं ही भोगावती की राजकन्या हूँ और महाराज के अत्याचार को रोकने के लिए मैने ही भोगावती की अबला स्त्रियों की रक्षा के लिए मैने ही बृहदलिंग का आव्हान किया था” देवी सुवर्णा ने उत्तर दिया.

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Re: कथा भोगावती नगरी की

Unread post by sexy » 19 Sep 2015 09:53

“तब तो यह सब आपका ही किया धरा है देवी ” द्वितवीर्य ने आँखें छोटी कर कहा.

“होश में तो हैं अमात्य ? आप सीधे सीधे देवी सुवर्णा को दोषी ठहरा रहे हैं” वनसवान ने गरजते हुए कहा.

“स्वयं देवी यह कह रही है और इनकी बातों से तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है , पूर्ववर्ती भोगावती राज्य की राजधानी ही आज की पुंसवक राज्य की राजधानी है , अपनी प्रजा को बचाने के लिए उन्होनें महाराज के आदेशों की अवहेलना की” द्वितवीर्य ने कहा.

“द्वितवीर्य आपकी महाराज के प्रति निष्ठा सराहनीय है परंतु हम महाराज की अर्धांगिनी होने के साथ साथ उनकी मुख्य सलाहकार और पुंसवक राज्य की पट्टरानी भी हैं और इस नाते हमने महाराज की आततायी नीतियों का पुरजोर विरोध किया”
देवी सुवर्णा ने कहा .

“वास्तविकता यही है द्वितवीर्य , आपका देवी सुवर्णा पर संशय अकारण है” वनसवान ने समझाते कहा.

“मैं विस्मित हूँ कि आप देवी का बचाव क्यूँ कर्रहे हैं वनसवान जी ? कहीं आप भी तो षड्यंत्र में शामिल नहीं ? क्या मैं नहीं जानता की देवी सुवर्णा को पट्ट रानी के पद से हटा कर महाराज देवी ज्योत्सना को पट्ट रानी नियुक्त करने वाले थे? मुझे बड़ा आश्चर्य है वनसवान जी महाराज के रोग निवारण करने के बजाए आप उनके रोग को अधिक गंभीर बनाने की चेष्टा कर रहे हैं” द्वितवीर्य ने वनसवान का विरोध करते हुए कहा.

“द्वितवीर्य , हमें तुमको इस बारे में अपनी सफाई देने की कोई आवश्यकता नहीं , हम दुबारा तुम्हें याद दिला दें , महाराज की रोगवस्था में हमने ही राज्य की व्यवस्था को संभाला हुआ है इस नाते तुम्हारे साथ साथ पूरा राज्य और प्रजा हमारे अधीनस्थ हैं. इस समय हमारी प्राथमिकता महाराज की रोग मुक्ति है अन्य कुछ नहीं” देवी सुवर्णा ने निर्णय सुनाते कहा .

“जब तक आप महाराज के संग हैं तब तक रोग मुक्ति संभव ही नहीं” द्वितवीर्य ने चिल्ला करकहा “आप कुलटा हैं अपने ही पति की हत्या करा कर आप स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ होना चाहतीं हैं , आपने महाराज की सुंदर परिचारिकाओं और अपनी सौतनों के साथ साथ राज्य के वीर योद्धाओं और सशस्त्र सेना को घनघोर वन में मरने भेज दिया , जिससे आपका मार्ग निष्कंटक हो जाए और आप इस दुष्ट वनसवान के साथ सत्ता सुख भोगें आख़िर आप तो भोगावती की राजकन्या भोगिनी हैं न , जिसने कई राजाओं का लिंग अपने मादक हाव भाव द्वारा उत्तेजित कर उखाड़ लेती हैं??? क्या करने वालीं थी आप महाराज के साथ ?? क्या उनका भी आप लिंग उखाड़ने की मंशा रखती हैं”

“मूर्ख द्वितवीर्य यह क्या अनर्गल प्रलाप करता है?” वनसवान क्रोधित हो कर बोले “देवी पर इतने गंभीर आरोप?”

“महाराज जैसे अत्याचारी का लिंग उखाड़ लेती हम , परंतु उनकी अर्धांगिनी होने के नाते यह हमारी ही हानि होती इसीलिए परिचारिका मंडल को बर्खास्त करवा कर हमने उन स्त्रियों को मुक्त कराया तथापि महाराज के इस रोग के कारण यौन संसर्ग की मनाही थी परंतु महाराज का कामभाव जाग्रत था.. परिचारिका मंडल को बर्खास्त कर हमने अप्रत्यक्ष रूप से उनका भला ही किया है” सुवर्णा ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा “किंतु फिर भी महाराज के विश्वासपात्रों का समाधान नहीं होता तो उनके पुनर्विचार लिए एक उचित स्थल है” सुवर्णा ने कहा फिर ताली बजा कर सैनिकों को बुलाया “सैनिकों अमात्य द्वितवीर्य को उनके प्रासाद में नज़र बंद कर लिया जाए”

“जो आज्ञा देवी” सैनिकों ने कहा और आमात्य को धकियाते वहाँ से चल पड़े.

“इस अपमान का आपको मूल्य चुकाना होगा देवी” द्वितवीर्य बहार जाते समय बड़बड़ाते हुए बोला किंतु सैनिक ने तत्क्षण ही उसकी गान्ड पर भाला चूभोया “महामंत्री से ऐसा दुर्व्यवहार?” द्वितवीर्य ने अपने पार्श्वभाग को हाथों से मलते पूछा , सैनिक हंसते हुए बोला “मंत्री जी आपकी गान्ड में कीड़े लग गये हैं उन्हीं में से एक को मारा है मैने , कृपया उपकार मानिए”

इधर वैद्य जी और देवी सुवर्णा महाराजके कक्ष में पंहुचे , महाराज अपनी शैया पर पीठ टिका कर बैठे थे. दुर्धर रोग ने उनको काफ़ी कमजोर कर दिया था , यद्यपि वैद्य वनसवान की औषधियों द्वारा उनका स्वास्थ्य थोड़ा सुधरा नज़र आ रहा था .
“प्रणाम महाराज” वनसवान जी ने कहा , सुवर्णा महाराज के सिरहाने आ कर बैठ गयी. “प्रणाम” महाराज ने क्षीण आवाज़ में कहा.

महाराज का स्वास्थ्य तोड़ा सुधरा तो था किंतु उनकी कामेच्छा भी वन में किसी चीतल की भाँति कुलाँचे मारने लगी थी. यों भी उनके राज्य परिचारिका मंडल की बर्खास्तगी से उन्हें सदमा पंहुचा था . अपने बगल में देवी सुवर्णा जैसी सुवर्ण की कांति युक्त बड़े स्तन और नितंब की स्वामिनी मानों महाराज को साक्षात देवी कामिनी लग रहीं थी.

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Re: कथा भोगावती नगरी की

Unread post by sexy » 19 Sep 2015 09:54

बेचारा महाराज भी अपनी कामभावना को कब तक दबाते ? उन्होने लोक लाज कीपरवाह न करते हुए स्वपत्नी सुवर्णा के स्तनों का मर्दन लेटे हुए ही करना शुरू कर दिया.

देवी सुवर्णा की स्थिति बड़ी विचित्र हो गयी एक तरफ तो पति कामाभिभूत हुआ जा रहा है और सामने वैद्य बैठा हुआ है.
परंतु वह कहते हैं न स्व-पत्नी और वैद्य से कभी कुछ छुपाना नहीं चाहिए अन्यथा रोग का निदान होना संभव नहीं है.
उचित निदान के अभाव में घाव और अधिक गहरे चौड़े और हरे ही बने रहते हैं जो और अधिक पीड़ा पंहुचाते हैं.

देवी सुवर्णा को सकुचाते देख कर वनसवान बोले “देवी कृपया संकोच न कीजिए , इस दुर्धर रोग के कारण ही महाराज कामाभिभूत हुए जा रहे हैं , वह जो करना चाहते हैं करने दीजिए , वैसे भी उनमें आपका चोदन करने लायक शक्ति बची ही कहाँ हैं ? मेरा परामर्श है कि महाराज को कोई बात अंदर से खाए जा रही है , जब तक मैं कारण न जान लूँ तब तक रोग का निदान करना संभव न होगा. इधर महाराज भी कामभावना से ग्रस्त हो रहे हैं , क्या आप उनके लिंग को चूम चाट कर उन्हें काम रस से छुटकारा दिला सकतीं हैं ? इस दौरान मैं महाराज से सवाल जवाब कर लूँगा?”

“जैसा आप उचित समझे वनसवान जी” देवी सुवर्णा ने अपना स्तन महाराज की पकड़ से छुड़ाते कहा.

देवी सुवर्णा ने महाराज के शरीर से कंबल खींचा और लाज लज्जा छोड़ कर उनके नग्न शरीर पर स्वयं चौड़ी हो कर औंधे मुँह लेट गयीं . महाराज ने क्षीण आवाज़ में प्रतिकार किया ” अरे.. अरे… देवी यह क्या कर रही हैं ? ज़रा धीरज से काम लें , अरे वनसवान जी आप देवी को रोकिए हम अपनी पत्नी का सार्वजनिक चोदन नहीं कर सकते”

“क्यों महाराज अपने ही भोगावती की स्त्रियों का सार्वजनिक चोदन करने की आज्ञा दी थी अपने सैनिकों को , हम तो भोगवती की राज कन्या हैं , आप हमें चोद्ने से क्यों कतराते हैं” सुवर्णा ने उनकी छाती चाटते पूछा

महाराज क्षीण आवाज़ में बोले “आप हमारी पत्नी भी हैं और हम स्व पत्नी को गुप्त रूप से चोद्ते हैं”
अब वनसवान ने महाराज से सवाल जवाब करना शुरू किया “आपकी पत्नी भी तो स्त्री है , फिर यह दोहरा मापदंड क्यों?”
महाराज ने जवाब दिया ” यह समाज द्वारा स्थापित मापदंड है , हम उसी का पालन कर रहे हैं”

“कैसा मापदंड?” सुवर्णा महाराज की नाभि में थूक कर बोली “पुरुष स्व – पत्नी पर कौड़ी खर्च नहीं करता वहीं बीच चौराहे रंडी काओं पर स्वर्ण मुद्रा खुशी खुशी खर्च कर देता है ”

“यह वास्तव में भिन्न विषय है देवी , पुराना मद्य जहाँ उच्च गुणवत्ता लिए होता है वहीं पुरानी पत्नी की भग्नासा , बासी सड़े हुए भोजन की भाँति पति को प्रतीत होती है” महाराज ने कहा.

देवी सुवर्णा का अपनी इस प्रकार बेइज़्ज़ती सुनकर मुँह उतर गया

वनसवान बोले “मुझे प्रसन्नता है महाराज कि आप अपने विचार खुल कर प्रकट कर रहे हैं , वैद्य और स्व पत्नी से कुछ छुपाना न चाहिए , अब आपके रोग का निदान अवश्य ही हो जाएगा ”

” हाँ..आह ह.. आशा करता हूँ” महाराज कराहते बोले” देवी सुवर्णा अब उनके टटटे का अपनी लंबी लंबी उंगलियों से मर्दन करने में व्यस्त थी

तत्पश्चात वनसवान ने देवी सुवर्णा द्वारा सुनाई गयी यौन छल्लों , बृहद लिंग और बाबू लोहार और सार्वजनिक चोदन वाली बातें उनके सामने दोहराई और प्रश्न किया ” अपने इस समस्या से निजात कैसे पाई?”

महाराज बोले “बृहद लिंग ने स्त्रियों को हमारा विरोध करने के लिए उकसाया और इस कार्य में बाबू लोहार ने यौन छल्ले लगवा कर उसका साथ दिया”

“लोहार को तो हमने कारावास भेज दिया किंतु बृहद लिंग गुप्त हो गया था..परंतु विशेष बात यह थी की स्त्रियाँ यौन छल्ले अभी भी लगवा रहीं थी. सेना नायक लिंगन्ना का लिंग कटने से सैनिकों का मनोबल गिरा था और स्त्रियाँ हमारे लिंग कटे सैनिकों के सामने नग्न घूम कर अश्लील हाव भाव कर ठूंठ कह कर प्रताड़ित करतीं थी” महाराज ने कहा

“हाँ हाँ यह तो हम जानते हैं लेकिन फिर क्या हुआ?” वनसवान ने पूछा

“फिर.. फिर… हमारी सेना में कार्यरत अभियांत्रियों ने एक अभिनव यंत्र बनाया , जी.. जिसे उन्होने नाम दिया “तड़ितलिंग”
इस यंत्र को लिंग पर पहनकर जब किसी यौन छल्ले पहने हुई स्त्री का चोदन किया जाता तो यौन छल्ले में विद्युत की धारा प्रवाहित हो जाती जिससे स्त्री को अत्यधिक दाब वाला झटका सा लगता , यौन छल्ले के दांतेदार किनारे आपस में भीड़ कर बेकार हो जाते और दूसरे झटके के साथ ही लिंग पूरी तरह योनि में प्रविष्ट हो कर चोदन मर्दन क्रिया आरंभ हो जाती”

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