घर का बिजनिस -20
वो रात मैंने दीदी की चुदाई में गुजारी। सुबह जब मैं उठा तो 10:00 बज चुके थे और मैं इसी तरह बेड पे नंगा ही पड़ा हुआ था। मैं उठा और नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया। मैंने नहाकर कपड़े पहन लिए और नाश्ते के लिए बाहर निकला तो देखा कि अरविंद साहब भी आए बैठे थे और दीदी को सोफे पे ही किस कर रहे थे और ऋतु रूम से उन दोनों के लिए शराब लेकर आ रही थी। जो कि उसने टेबल पे रख दी और मेरी तरफ देखकर हल्का सा मुश्कुरा दी और सर झुकाकर वहाँ से चली गई।
ऋतु के जाते ही मैंने किचेन में अम्मी को आवाज दी- “अम्मी प्लीज़्ज़ बहुत भूख लगी है नाश्ता दे दो…”
मेरी आवाज सुनकर अरविंद साहब ने अपना सर उठाया और मेरी तरफ देखकर हँसते हुये बोले- अरे यार, क्या इतनी देर तक सोते रहते हो?
मैंने भी हँसते हुये कहा- “क्या करूं अरविंद साहब? काम ही ऐसा है हमें रात-रात भर जागना पड़ता है…”
अरविंद साहब भी हँस पड़े और बोले- हाँ यार, ये तो है। अच्छा एक बात पूछूं गुस्सा तो नहीं करोगे?
मैं- अरे नहीं सर, आप बोलो क्या बोलना है, मैं भला गुस्सा क्यों करूंगा?
अरविंद- अच्छा, जब तुम अपनी बहनों को इस तरह चुदवाते हुये देखते हो तो क्या तुम्हारा दिल नहीं करता कि तुम भी इनकी चुदाई करो?
मैं- “अरविंद साहब, बात ये है कि अगर दिल करता भी है तो क्या हुआ? हमें पैसे खुद चोदने के लिए नहीं मिलते बलकि आप जैसों से चुदवाने के मिलते हैं…”
अरविंद शराब का पेग दीदी के हाथ से लेकर एक ही सांस में पीते हुये बोला- और अगर मैं कहूं कि तुम मेरे साथ मिल के अपनी बड़ी बहन की चुदाई करो तो?
मैं- नहीं सर, ऐसा किस तरह हो सकता है भला?
अरविंद- यार, तुम सिर्फ़ इतना बताओ, जितना मैं पूछ रहा हूँ बाकी मेरा काम है?
मैं- “ठीक है सर, भला मैं आपको नाराज तो नहीं कर सकता। लेकिन आप ऐसा क्यों चाहते हैं ये समझ में नहीं आ रहा…”
अरविंद- सच तो ये है कि मैं देखना चाहता हूँ कि बहन भाई या खूनी रिश्तों में चुदाई से कितना मजा आता है?
मैं- “ओके सर, आप जब चाहो मैं मना नहीं करूंगा आपको…”
अरविंद मेरी बात सुनकर कुछ सोच में पड़ गये और बोले- “तो ऐसा है कि जब मैं कहूं और जहाँ कहूं तुम अंजली को अपने साथ ले आना और फिर वहाँ इसकी चुदाई करोगे…”
मैं- “ठीक है, मैं तैयार हूँ…” और तब तक मेरा नाश्ता भी आ चुका था और मैं नाश्ता करने में लग गया।
और अरविंद दीदी की चूचियां को मसलने में लग गया। नाश्ता करने के बाद मैं वहाँ से उठ गया और ऋतु के रूम की तरफ चल पड़ा। जैसे ही मैं रूम में दाखिल हुआ तो मुझे अपने रूम में आता देखकर ऋतु थोड़ा घबरा गई और खड़ी हो गई।
मैं- क्या हुआ ऋतु? तुम मुझे देखकर खड़ी क्यों हो गई?
ऋतु- “न…नहीं तो भाई, बस ऐसे ही आओ बैठो…”
मैं ऋतु के पास जाकर बेड पे बैठ गया और ऋतु का हाथ पकड़कर नीचे की तरफ खींचा और बोला- तुम भी बैठो ना खड़ी क्यों हो? ऋतु सर झुकाकर बैठ गई और अपने होंठ काटने लगी। उस वक़्त ऋतु का जिश्म हल्का सा कांप भी रहा था।
मैं- ऋतु मेरी जान, क्या बात है? मेरा यहाँ आना तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या?
ऋतु- नहीं तो भाई, आपने ऐसा क्यों सोचा है?
मैं- “यार, मेरे रूम में आने से तुम घबरा रही हो ना इसलिए पूछ लिया…”
ऋतु- नहीं भाई, ऐसी कोई बात नहीं है। भला मैं क्यों घबराऊँगी आपसे?
मैं- “अच्छा, ऐसा है कि जब तुम्हारा डर खतम हो जाए तो मेरे रूम में आ जाना ओके…” मैं इतना बोलकर वहाँ से उठा और अपने रूम की तरफ चल पड़ा।
जैसे ही मैं ऋतु के रूम से बाहर आया तो पायल ने मुझे देख लिया और मेरा हाथ पकड़कर अपने रूम में ले गई और बोली- हाँ भाई, क्या बात हुई ऋतु से?
मैंने कहा- पहले तुम बताओ, कल वो तुम्हें क्या बोल रही थी?
पायल ने मेरी तरफ देखा और नाराज होते हुये बोली- “भाई जब तक आप नहीं बताओगे मैं भी नहीं बताऊँगी…”
मैंने पायल को अपनी तरफ खींच लिया और अपने सीने से लगाकर बोला- “जान, क्यों नाराज हो रही हो अपने भाई से? चल बताता हूँ…” और जो दीदी और ऋतु के साथ बातें हुई थी सब बता दिया।
पायल मेरी बातें सुनकर सोच में पड़ गई और कुछ देर के बाद बोली- भाई, अगर मैं आपको एक काम कहूं तो आप करोगे क्या?
मैं- हाँ पायल, क्यों नहीं? तुम बताओ तो सही क्या काम है?
पायल- “भाई, आप कसम खाओ… जिससे आप सबसे ज्यादा प्यार करते हो उसकी कसम खाओ कि आप मेरी बात मानोगे…”
मैं- अरे यार, जब मैंने बोल दिया है कि मैं तुम्हारी बात मानूंगा तो फिर कसम कहाँ से आ गई?
पायल- “भाई, आप मेरे इतमीनान के लिए ही कसम खा लो प्लीज़्ज़…”
मैं- “ओके बाबा, और पायल के सर पे ही हाथ रखकर कसम खा ली…” जिससे पायल भी खुश हो गई।
पायल- “थैंक्स भाई, आपने आज ये तो बता दिया कि आप सबसे ज्यादा मेरे साथ प्यार करते हो…” और मेरे साथ और भी ज्यादा लिपट गई और मुझे किस करने लगी।
कुछ देर के बाद मैंने पायल को खुद से अलहदा किया और उसे बेड पे बिठा दिया और कहा- “हाँ, अब बताओ क्या बात थी? जिसके लिए तुमने मुझसे कसम ली है…”
पायल- “भाई, मैं चाहती हूँ कि आप पहली बार खुद करो ऋतु के साथ…”
मैं हैरानी से पायल की तरफ देखते हुये बोला- पायल, ये क्या बोल रही हो तुम? तुम्हें पता है कि इस काम के लिए घर में कोई भी नहीं मानेगा?
पायल- हाँ भाई पता है, लेकिन आपको उसकी गाण्ड मारने की इजाजत तो मिल ही चुकी है ना उसके बाद अगर मोका मिले तो चोद डालो साली को, बाद में कोई क्या कर सकता है?
मैं पायल की बात सुनकर अंदर से खुश हो गया। क्योंकि बात तो पायल ने ठीक ही कही थी कि जब फुद्दी खुल ही गई हो तो कोई क्या कर सकता है? लेकिन पायल से बोला- लेकिन पायल, तुम ऐसा क्यों चाहती हो?
पायल- “भाई, मैं आपसे कुछ भी नहीं छुपाऊँगी। लेकिन अभी आप मुझसे कुछ नहीं पूछो प्लीज़्ज़…”
मैं- ठीक है पायल, मैं कोशिश करूंगा कि ये काम कर सकूं…” और वहाँ से उठकर सीधा अपने रूम में आ गया।
रूम में आया तो अम्मी ऋतु के साथ मेरे बेड पे बैठी हुई थी। मुझे देखते ही अम्मी ने कहा- “आलोक बेटा, मैं चाहती हूँ कि आज से तुम अपनी छोटी बहन की रोजाना मालिश कर दिया करो ताकि इसका जिश्म भी थोड़ा सेट हो जाए…”
मैंने ऋतु की तरफ देखा जो कि सर को झुकाकर अपनी उंगलियों को मरोड़ रही थी और कहा- “जी अम्मी, जैसे आप कहो। मैं ऋतु की रोजाना मालिश कर दिया करूंगा…”
मेरी बात सुनकर अम्मी मेरे रूम से निकल गई और जाते वक़्त आँख भी मार गई जिससे मैं समझ गया कि अम्मी क्या चाहती हैं। अम्मी के जाने के बाद मैंने ऋतु से कहा- “चलो अलमारी से कोई चादर निकालो और बेड पे बिछा दो ताकि तेल से बेडशीट खराब ना हो जाये…”
ऋतु फौरन उठी और अलमारी से एक चादर निकालकर बेड पे बिछाने लगी और मैं वहाँ खड़ा उसे ये सब करता देखता रहा।
चादर बिछाने के बाद ऋतु अपना सर झुकाकर बेड के पास ही खड़ी हो गई। लेकिन अब मुझे समझ में नहीं आ रहा थी कि मैं क्या करूं? और ऋतु को क्या कहूं? खैर मैंने अपनी हिम्मत बढ़ाई और वापिस मुड़ा और दरवाजा लाक कर दिया और फिर अलमारी से एक चादर निकालकर अपने कपड़े उतार के चादर बाँध ली और ऋतु की तरफ देखे बिना ही लाइट आफ कर दी जिससे रूम में काफी अंधेरा हो गया था। लेकिन खिड़की से आने वाली रोशनी भी इतनी थी कि हम एक दूसरे को देख सकते थे।
मैंने ऋतु से कहा- “चलो अपने कपड़े उतारो और बेड पे लेट जाओ ताकि मैं तुम्हारी मालिश कर दूँ…”
ऋतु ने मेरी बात सुनी लेकिन कुछ नहीं बोली और सर झुकाकर चुपचाप खड़ी रही तो मैं आगे बढ़ा और जाकर ऋतु के कंधों पे अपने हाथ रख दिए और कहा- “देखो ऋतु, तुम बहन हो मेरी और मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ। मुझसे इतना क्यों शर्मा रही हो? चलो शाबाश जल्दी से कपड़े उतारो अपने…”
जब ऋतु फिर भी नहीं हिली तो मैंने कहा- “चलो ऐसा करो कि तुम यहाँ अपने कपड़े उतार के अपने ऊपर एक चादर ले लो मैं तब तक बाथरूम से होकर आता हूँ…”
जब मैं बाथरूम से वापिस आया तो देखा कि ऋतु बेड पे उल्टी लेटी हुई थी और उसके ऊपर एक चादर थी जो कि उसने मुझसे शरम की वजह से ओढ़ रखी थी और उसके कपड़े बेड के साथ ही रखी चेयर पे पड़े हुये थे। मैंने बगल से तेल की बोतल उठा ली और ऋतु के पास बेड पे बैठ गया और अपने काँपते हाथों से ऋतु के ऊपर पड़ी चादर को हटाने लगा लेकिन ऋतु ने ऊपर के दोनों किनारे अपने हाथों में पकड़ रखे थे जिससे चादर नीचे नहीं हुई तो मैंने बगल से पकड़कर चादर उसके ऊपर से हटा दी जिससे ऋतु का नंगा और सफेद जिश्म और उसकी सेक्सी गाण्ड मेरी आँखों के सामने बिल्कुल नंगी हालत में आ गई जो कि मुझे पागल कर देने के लिए काफी थी।
अब मैंने अपना हाथ बढ़ा के ऋतु की गाण्ड पे रखा तो मेरी छोटी और मासूम बहन जिसको हम सब घर वाले इस गंदगी में घसीट रहे थे एकदम से काँप गई।
अब मैंने अपना हाथ अपनी बहन की गाण्ड से हटा लिया और तेल की बोतल से तेल उसकी कमर और गाण्ड पे गिराने लगा। क्योंकि तेल हल्का सा ठंडा था जिससे ऋतु के जिश्म में झुरझुरी सी हुई लेकिन फिर से ऋतु आराम से लेट गई।
अब मैं ऋतु की बगल में बैठा अपने हाथों को आजादी से अपनी छोटी बहन की कमर और गाण्ड पे घुमाने लगा और तेल मलने लगा। मेरे इस तरह मालिश करने से ऋतु को अब सकून के साथ मजा भी आ रहा था, जिसका अंदाजा मुझे उसकी हल्की आवाज में निकलने वाली सिसकियों से हो रहा था।
कुछ देर तक इसी तरह तेल मलने के बाद मैं उठा और ऋतु की टाँगों के ऊपर घुटनों के करीब बैठ गया और अपने हाथों से उसकी गाण्ड को अच्छे से मसलने लगा जिससे कभी मेरे हाथ अपनी छोटी बहन की गाण्ड के सुराख को भी छू जाते लेकिन ऋतु अब किसी भी किश्म का ऐतराज नहीं कर रही थी लेकिन हाँ मजा जरूर ले रही थी अपने बड़े भाई के हाथों अपनी गाण्ड की मालिश करवाकर। फिर मैंने अपने हाथ ऋतु की गाण्ड से हटा लिए और उसके कंधों की तरफ बढ़ा दिए, जिसके लिए मुझे भी घुटनों से ऊपर होना पड़ा जिससे मेरा खड़ा और पूरा टाइट लौड़ा अपनी बहन की गाण्ड को छूने लगा तो मैंने अपने लण्ड के ऊपर पड़े कपड़े को हटा दिया। जिससे मेरा लण्ड ऋतु की गाण्ड को सही से छुआ तो हम दोनों बहन भाई के मुँह से एक साथ आअह्ह… की हल्की सी आवाज निकल गई। अब मैंने अपने लण्ड को थोड़ा सा अपनी बहन की गाण्ड के सुराख पे सेट किया और उसकी कमर और कंधों की मालिश करने लगा जिससे ऋतु के साथ मेरा भी मजे से बुरा हाल हो रहा था।
मैंने अचानक ऋतु से कहा- ऋतु मजा आ रहा है ना मालिश में?
ऋतु ने भी बस- “हाँ भाई, बहुत अच्छा लग रहा है… बस इसी तरह करो, रुको नहीं प्लीज़्ज़…”
ऋतु की बात सुनकर मैं समझ गया कि लौंडिया तैयार है तो मैं थोड़ा पीछे हटा और ऋतु की गाण्ड को अपने दोनों हाथों से थोड़ा खोल दिया और ठीक उसकी गाण्ड के सुराख पे अच्छा खासा थूक फेंक दिया। एक तो तेल और दूसरा थूक लगाकर मैंने फिर से अपने लण्ड को ऋतु की गाण्ड के सुराख पे रख दिया और हल्का सा दबाने लगा।
लण्ड को ऋतु की गाण्ड पे दबाते ही मेरे लण्ड का आधा सुपाड़ा ऋतु की गाण्ड को खोलकर अंदर घुस गया तो ऋतु के मुँह से सस्सीई… की हल्की सी आवाज निकली। लेकिन उसने कुछ बोला नहीं तो मैंने फिर से दबाव बढ़ा दिया। जिससे मेरे लण्ड का सुपाड़ा अपनी छोटी बहन की गाण्ड को खोलकर घुस गया। सुपाड़े के घुसने के बाद मैं वहीं रुक गया। क्योंकि मैं जानता था कि ऋतु इस वक़्त काफी तकलीफ में होगी। कुछ देर के बाद मैं फिर से अपने लण्ड को जोर देने लगा जिससे मेरा लण्ड फिर से आगे जाने लगा।
और करीब एक इंच और घुसा होगा कि ऋतु के मुँह से- “सस्स्सीई… भाई प्लीज़्ज़… रुको…” की आवाज निकल गई।
जिसे सुनते ही मैं वहीं रुक गया और ऋतु का दर्द खतम होने का इंतेजार करने लगा। कोई एक मिनट के बाद ही ऋतु ने अपने जिश्म को ढीला छोड़ दिया तो मैंने एक हल्का सा झटका दिया जिससे मेरा कोई 3” के करीब लण्ड अपनी बहन की गाण्ड में चला गया। इतना लण्ड घुसते ही ऋतु ने- “आऐ माँ… बस करो भाई… और नहीं करना… प्लीज़्ज़… मैं मर गई… ऊओ बस भाई… अभी निकालो बाहर दर्द हो रहा है…”
मैं अब वहीं रुका रहा और ऋतु के कंधों और कमर पे हाथ घुमाने लगा और कहा- “बस मेरी जान, आज इससे ज्यादा नहीं करूंगा। डरो नहीं बस आज के लिए इतना ही बर्दाश्त कर लो। ठीक है…”
मेरी बात सुनकर ऋतु ने हाँ में सर हिला दिया तो मैंने अपने लण्ड को वहीं जितना अंदर जा चुका था अंदर-बाहर करने लगा जिससे मैं कोई 3 मिनट में ही ऋतु की गाण्ड में ही फारिग़ हो गया, क्योंकि ऋतु की गाण्ड बड़ी टाइट थी और ऐसे लग रहा था कि जैसे वो मेरे लण्ड को भींच रही हो।
फारिग़ होने के बाद ऋतु ने उठकर अपनी गाण्ड को अच्छी तरह साफ किया और अपने कपड़े पहनकर मेरे रूम में से निकल गई।
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Re: Hot stori घर का बिजनिस
घर का बिजनिस -21
अगले दिन जब में सोकर उठा और अपने रूम से बाहर आया तो अम्मी ने मुझे देखते ही ऋतु को आवाज दी और कहा- चलो बेटी, तुम्हारा भाई उठ गया है नाश्ता दे दो भाई को…”
कुछ ही देर के बाद जब ऋतु मेरे लिए नाश्ता लेकर आई तो मैं उसे देखता ही रह गया क्योंकि उस वक़्त ऋतु ने हल्का सा काटन का पाजामा पहन रखा था और उसके ऊपर एक ढीली सी शर्ट थी जिसमें मेरी छोटी बहन का जिश्म गजब ढा रहा था। क्योंकि ऋतु को इस ड्रेस में देखते ही मेरा लण्ड पूरा हार्ड हो गया था और दिल कर रहा था कि अभी पकड़ लूँ और यहाँ सबके सामने ही साली की फुद्दी को खोलकर रख दूँ।
अम्मी- बेटा, क्या देख रहे हो अपनी बहन को? नजर लगानी है क्या इसे?
मैं- “अरे अम्मी, मेरी नजर का तो पता नहीं पर लगता है किसी और की नजर लग जाएगी इसे…”
अम्मी- “चल कमीना कहीं का, कुछ तो ख्याल रख। अभी मेरी बच्ची बहुत छोटी है उसकी नजर बर्दाश्त नहीं कर सकती…”
मैं- “नहीं अम्मी, अब इतनी छोटी भी नहीं है हमारी बहना, जितना आप इसे बना रही हैं…”
ऋतु हमारी इन बातों से लाल हो रही थी बोली- “भाई नाश्ता तो कर लो…”
मैं- “मेरी जान, अपने हाथों से करवा दो ना आज अपने भाई को…”
अम्मी- “चल ऋतु, तू जा अभी यहाँ से। नहीं तो ये कमीना तो अभी नाश्ते के साथ तुझे भी खा जाएगा…”
ऋतु अम्मी की बात सुनते ही वहाँ से चली गई और मैं उसे जाते हुये उसकी गाण्ड को घूरने लगा जो कि बारीक पाजामे की वजह से साफ नजर आ रही थी और मेरे लण्ड को तड़पा रही थी।
अम्मी- “चल आलोक, नाश्ता कर ले फिर बाजार से कुछ सामान ले आना और वापिस आकर ऋतु की मालिश आज पूरी कर देना…”
मैं अम्मी की बात समझ गया और बोला- “अम्मी, क्यों ना मैं पहले ऋतु की मालिश कर दूँ। सामान तो आप भी ले ही आओगी…”
अम्मी हँसते हुये बोली- “अच्छा ठीक है, मैं चली जाती हूँ लेकिन याद रखना सिर्फ़ पीछे से ही करना जितना भी करना है क्योंकि ऋतु की जवानी को देखकर काफी लोग तैयार हो चुके हैं पैसे देने को। लगता है कि अब इसकी बोली ही लगेगी…”
मैंने नाश्ता किया और उठकर ऋतु के रूम की तरफ चला गया, जहाँ दीदी और बुआ भी बैठी हुई थीं। मुझे देखते ही दीदी ने कहा- हाँ भाई, क्या बात है? कोई काम था क्या?
मैं- “नहीं दीदी, काम तो कोई नहीं था। बस अम्मी ने कहा है कि ऋतु की मालिश कर दूँ अभी…”
बुआ- ओहोहो, तो मेरा भतीजा अपनी बहन की मालिश करने आया है। चलो भाई, हम जाते हैं फिर यहाँ से…”
दीदी- बैठो ना बुआ, हमसे क्या शरमाना है भाई को। क्यों भाई? हमारे सामने ही कर सकोगे ना आप ऋतु की… चू… ओह सारी मालिश
ऋतु दीदी की बात से बुरी तरह शर्मा गई और उठकर वाश-रूम में घुस गई। ऋतु के इस तरह शरमाने से दीदी और बुआ भी हेहेहेहेहे करके हँसने लगी और फिर वहाँ से उठकर बाहर की तरफ चल पड़ी।
तो बाजी ने मेरी तरफ मुड़ के कहा- देखो आलोक, आज इसे तैयार करो क्योंकि कल इसे काम पे लगना है समझ गये…”
मैंने हाँ में सर हिला दिया और कहा- “जी दीदी, मैं कोशिश करूंगा, अगर मान गई तो ठीक है…”
दीदी ने कहा- मैंने और बुआ ने उसे अच्छी तरह समझा दिया है। वो तुम्हें परेशान नहीं करेगी और जो कहोगे करेगी…” दीदी इतना बोलकर रूम से निकल गई।
तो मैंने ऋतु को आवाज दी और कहा- चलो ऋतु, दीदी और बुआ चली गई हैं। आ जाओ रूम में, मालिश नहीं करनी क्या?
जब ऋतु वाश-रूम में से बाहर आई तो उसने सिर्फ़ एक चादर लपेट रखी थी अपने ऊपर और आकर बेड के पास खड़ी हो गई और आहिस्ता सी आवाज में बोली- भाई, लाइट बंद कर दें?
मैंने कहा- क्यों? लाइट चलने दो ना प्लीज़्ज़… आओ ऐसे अच्छी तरह तेल लगा सकूंगा मैं…”
ऋतु ने नजर उठाकर मेरी तरफ देखा और कुछ बोले बिना ही बेड पे लेट गई तो मैं आगे बढ़ा और अपनी कमीज उतार के बगल में रख दी और तेल की बोतल पकड़कर बेड पे बैठ गया। फिर मैंने ऋतु की बगल से चादर का किनारा पकड़ा और ऋतु के ऊपर से चादर को खींच लिया।
चादर के हटते ही मेरी आँखों के सामने मेरी बहन की कमर और गाण्ड जो कि बिल्कुल नंगी थी सामने आ गई और मैं कुछ देर तक इस नजारे को देखता ही रह गया। फिर अचानक मैं थोड़ा सा नीचे झुका और ऋतु की गाण्ड पे हल्की सी किस कर दी।
जिससे ऋतु तड़प गई और- “आअह्ह… भाई, ये आप क्या कर रहे हो? प्लीज़्ज़ ये नहीं करो…”
मैंने ऋतु को कहा- “ऋतु कुछ नहीं होता मेरी जान, मैं भाई हूँ तुम्हारा, तुम्हारे साथ जो भी करूंगा तुम्हें मजा और सकून देने के लिए ही करूंगा…”
अबकी बार ऋतु चुप रही और कुछ नहीं बोली। तो मैंने ऋतु की बाडी पे तेल लगाने की बजाये उसकी कमर पे हाथ फेरना और गाण्ड को सहलाना शुरू कर दिया। मेरे इस तरह करने से ऋतु के मुँह से हल्की आवाज में सिसकियां निकलने लगी थीं जिससे साफ पता चल रहा था कि ऋतु को इससे मजा आ रहा है और वो काफी गरम भी हो गई है।
फिर अचानक मैंने ऋतु को एक झटके से सीधा कर दिया और उसकी छोटी-छोटी चूचियों को अपने हाथों में भर लिया। लेकिन ऋतु ने अपनी आँखों को बंद कर लिया और अपने होंठों को काटने लगी और साथ ही मुँह से उन्म्मह की हल्की आवाज में सिसकियां भरने लगी लेकिन मुझे मना नहीं किया।
अब मैं थोड़ा आगे हुआ और ऋतु के होंठ, जो कि मजे की वजह से लरज़ रहे थे, से अपने होंठ लगा दिए जिसे ऋतु ने अपने होंठों में भर लिया और किस करने लगी और साथ ही मुझे अपनी तरफ खींच लिया। ऋतु की किस में बड़ी शिद्दत थी, कभी वो अपनी जुबान को मेरे मुँह में घुसाकर किस करती, और कभी मेरी जुबान को अपने मुँह में भर के चूसने लगती। जिससे मैं भी मजे से पागल होने लगा। कुछ देर तक हम दोनों बहन भाई इसी तरह किस करते रहे और फिर मैंने अपने होंठ अपनी बहन के होंठों से अलग किए और उसकी चूचियों पे रख दिए और चूसने लगा।
जिससे ऋतु को और भी मजा आने लगा और वो- “ऊओ भाई… उन्म्मह… पी लो भाई आज अपनी बहन की चूचियों को हूंणमम…”
अब मैं ऋतु की चूचियों को चूसने के साथ हल्का-हल्का दबा भी रहा था और कुछ देर के बाद मैं ऋतु की चूचियों से नीचे की तरफ हुआ और उसके पेट और फिर आहिस्ता-आहिस्ता उसकी फुद्दी के ऊपर की तरफ भूरे बालों के पास अपनी जुबान घुमाने लगा तो ऋतु पागल ही हो उठी और मेरे सर को अपनी फुद्दी की तरफ दबाने लगी और आअह्ह… भाई नहीं प्लीज़्ज़… ये क्या कर दिया आपने… उन्म्मह… की आवाज से मेरे सर को भी अपनी फुद्दी की तरफ दबाने लगी। अब मैंने जैसे ही ऋतु की फुद्दी के ऊपर अपनी जुबान को घुमाया तो ऋतु के जिश्म को एक झटका सा लगा और इसके साथ ही ऋतु ने अपने हाथों के साथ मेरे सर को अपनी फुद्दी के साथ दबा लिया और- “हाँ भाई… यहाँ से चाटो प्लीज़्ज़… यहाँ ज्यादा मजा आ रहा है… उन्म्मह…”
ऋतु की फुद्दी काफी ज्यादा गरम और गीली हो चुकी थी और उसमें से निकलने वाला गाढ़ा सा नमकीन पानी मुझे बड़ा मजा दे रहा था और मैं अपनी जुबान को ऊपर से नीचे की तरफ चलाने लगा जिससे ऋतु और भी तड़पने लगी और- “आअह्ह… भाई, खा जाओ अपनी बहन की फुद्दी को… ऊओ… भाई मुझे कुछ हो रहा है… ऊओ… भाई…” की आवाज के साथ ही ऋतु का जिश्म अकड़ने लगा और फिर उसे 3-4 झटके लगे और उसकी फुद्दी से पानी का सैलाब सा निकलकर मेरे मुँह में जाने लगा जिसे मैं मजे से पी गया।
ऋतु फारिग़ होने के बाद कुछ निढाल सी हो गई और अपनी आँखों को बंद किए लंबी सांसें भरने लगी तो मैं उसकी टाँगों में से उठकर बगल में बैठ गया और अपना मुँह उसके करीब करके बोला- ऋतु मेरी जान मजा आया तुम्हें?
मेरी बात सुनते ही ऋतु ने अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ देखकर हल्का सा मुश्कुरा उठी और फिर मुझे अपनी तरफ खींच लिया और किस करने लगी।
हम दोनों ने कुछ देर किस की और फिर मैं उठा और अपने लण्ड को उसके मुँह के पास कर दिया और बोला- “चलो अब इसे भी अपने मुँह में लेकर प्यार करो…”
ऋतु ने कहा- “भाई इसे प्यार करना जरूरी है क्या?
तो मैंने हाँ में सर हिला दिया और कहा- “हाँ मेरी जान, असल मजा तो इसे प्यार करने से ही आता है…”
ऋतु कुछ देर तक मेरी तरफ देखती रही और फिर आहिस्ता से अपना मुँह खोल दिया और मेरे लण्ड का सुपाड़ा को अपने मुँह में भर लिया और चाटने लगी जिससे मुझे भी मजा आने लगा। लेकिन क्योंकि ऋतु ने कभी किसी का लण्ड अपने मुँह में नहीं लिया था और ऊपर से मेरे इतना बड़ा और मोटा लण्ड वो अपने मुँह में लेने की कोशिश में अपने दाँत मेरे लण्ड के साथ रगड़ रही थी जिससे मुझे हल्की तकलीफ भी हो रही थी। जिसकी वजह से मैंने ऋतु के मुँह से अपना लण्ड निकाल लिया।
अगले दिन जब में सोकर उठा और अपने रूम से बाहर आया तो अम्मी ने मुझे देखते ही ऋतु को आवाज दी और कहा- चलो बेटी, तुम्हारा भाई उठ गया है नाश्ता दे दो भाई को…”
कुछ ही देर के बाद जब ऋतु मेरे लिए नाश्ता लेकर आई तो मैं उसे देखता ही रह गया क्योंकि उस वक़्त ऋतु ने हल्का सा काटन का पाजामा पहन रखा था और उसके ऊपर एक ढीली सी शर्ट थी जिसमें मेरी छोटी बहन का जिश्म गजब ढा रहा था। क्योंकि ऋतु को इस ड्रेस में देखते ही मेरा लण्ड पूरा हार्ड हो गया था और दिल कर रहा था कि अभी पकड़ लूँ और यहाँ सबके सामने ही साली की फुद्दी को खोलकर रख दूँ।
अम्मी- बेटा, क्या देख रहे हो अपनी बहन को? नजर लगानी है क्या इसे?
मैं- “अरे अम्मी, मेरी नजर का तो पता नहीं पर लगता है किसी और की नजर लग जाएगी इसे…”
अम्मी- “चल कमीना कहीं का, कुछ तो ख्याल रख। अभी मेरी बच्ची बहुत छोटी है उसकी नजर बर्दाश्त नहीं कर सकती…”
मैं- “नहीं अम्मी, अब इतनी छोटी भी नहीं है हमारी बहना, जितना आप इसे बना रही हैं…”
ऋतु हमारी इन बातों से लाल हो रही थी बोली- “भाई नाश्ता तो कर लो…”
मैं- “मेरी जान, अपने हाथों से करवा दो ना आज अपने भाई को…”
अम्मी- “चल ऋतु, तू जा अभी यहाँ से। नहीं तो ये कमीना तो अभी नाश्ते के साथ तुझे भी खा जाएगा…”
ऋतु अम्मी की बात सुनते ही वहाँ से चली गई और मैं उसे जाते हुये उसकी गाण्ड को घूरने लगा जो कि बारीक पाजामे की वजह से साफ नजर आ रही थी और मेरे लण्ड को तड़पा रही थी।
अम्मी- “चल आलोक, नाश्ता कर ले फिर बाजार से कुछ सामान ले आना और वापिस आकर ऋतु की मालिश आज पूरी कर देना…”
मैं अम्मी की बात समझ गया और बोला- “अम्मी, क्यों ना मैं पहले ऋतु की मालिश कर दूँ। सामान तो आप भी ले ही आओगी…”
अम्मी हँसते हुये बोली- “अच्छा ठीक है, मैं चली जाती हूँ लेकिन याद रखना सिर्फ़ पीछे से ही करना जितना भी करना है क्योंकि ऋतु की जवानी को देखकर काफी लोग तैयार हो चुके हैं पैसे देने को। लगता है कि अब इसकी बोली ही लगेगी…”
मैंने नाश्ता किया और उठकर ऋतु के रूम की तरफ चला गया, जहाँ दीदी और बुआ भी बैठी हुई थीं। मुझे देखते ही दीदी ने कहा- हाँ भाई, क्या बात है? कोई काम था क्या?
मैं- “नहीं दीदी, काम तो कोई नहीं था। बस अम्मी ने कहा है कि ऋतु की मालिश कर दूँ अभी…”
बुआ- ओहोहो, तो मेरा भतीजा अपनी बहन की मालिश करने आया है। चलो भाई, हम जाते हैं फिर यहाँ से…”
दीदी- बैठो ना बुआ, हमसे क्या शरमाना है भाई को। क्यों भाई? हमारे सामने ही कर सकोगे ना आप ऋतु की… चू… ओह सारी मालिश
ऋतु दीदी की बात से बुरी तरह शर्मा गई और उठकर वाश-रूम में घुस गई। ऋतु के इस तरह शरमाने से दीदी और बुआ भी हेहेहेहेहे करके हँसने लगी और फिर वहाँ से उठकर बाहर की तरफ चल पड़ी।
तो बाजी ने मेरी तरफ मुड़ के कहा- देखो आलोक, आज इसे तैयार करो क्योंकि कल इसे काम पे लगना है समझ गये…”
मैंने हाँ में सर हिला दिया और कहा- “जी दीदी, मैं कोशिश करूंगा, अगर मान गई तो ठीक है…”
दीदी ने कहा- मैंने और बुआ ने उसे अच्छी तरह समझा दिया है। वो तुम्हें परेशान नहीं करेगी और जो कहोगे करेगी…” दीदी इतना बोलकर रूम से निकल गई।
तो मैंने ऋतु को आवाज दी और कहा- चलो ऋतु, दीदी और बुआ चली गई हैं। आ जाओ रूम में, मालिश नहीं करनी क्या?
जब ऋतु वाश-रूम में से बाहर आई तो उसने सिर्फ़ एक चादर लपेट रखी थी अपने ऊपर और आकर बेड के पास खड़ी हो गई और आहिस्ता सी आवाज में बोली- भाई, लाइट बंद कर दें?
मैंने कहा- क्यों? लाइट चलने दो ना प्लीज़्ज़… आओ ऐसे अच्छी तरह तेल लगा सकूंगा मैं…”
ऋतु ने नजर उठाकर मेरी तरफ देखा और कुछ बोले बिना ही बेड पे लेट गई तो मैं आगे बढ़ा और अपनी कमीज उतार के बगल में रख दी और तेल की बोतल पकड़कर बेड पे बैठ गया। फिर मैंने ऋतु की बगल से चादर का किनारा पकड़ा और ऋतु के ऊपर से चादर को खींच लिया।
चादर के हटते ही मेरी आँखों के सामने मेरी बहन की कमर और गाण्ड जो कि बिल्कुल नंगी थी सामने आ गई और मैं कुछ देर तक इस नजारे को देखता ही रह गया। फिर अचानक मैं थोड़ा सा नीचे झुका और ऋतु की गाण्ड पे हल्की सी किस कर दी।
जिससे ऋतु तड़प गई और- “आअह्ह… भाई, ये आप क्या कर रहे हो? प्लीज़्ज़ ये नहीं करो…”
मैंने ऋतु को कहा- “ऋतु कुछ नहीं होता मेरी जान, मैं भाई हूँ तुम्हारा, तुम्हारे साथ जो भी करूंगा तुम्हें मजा और सकून देने के लिए ही करूंगा…”
अबकी बार ऋतु चुप रही और कुछ नहीं बोली। तो मैंने ऋतु की बाडी पे तेल लगाने की बजाये उसकी कमर पे हाथ फेरना और गाण्ड को सहलाना शुरू कर दिया। मेरे इस तरह करने से ऋतु के मुँह से हल्की आवाज में सिसकियां निकलने लगी थीं जिससे साफ पता चल रहा था कि ऋतु को इससे मजा आ रहा है और वो काफी गरम भी हो गई है।
फिर अचानक मैंने ऋतु को एक झटके से सीधा कर दिया और उसकी छोटी-छोटी चूचियों को अपने हाथों में भर लिया। लेकिन ऋतु ने अपनी आँखों को बंद कर लिया और अपने होंठों को काटने लगी और साथ ही मुँह से उन्म्मह की हल्की आवाज में सिसकियां भरने लगी लेकिन मुझे मना नहीं किया।
अब मैं थोड़ा आगे हुआ और ऋतु के होंठ, जो कि मजे की वजह से लरज़ रहे थे, से अपने होंठ लगा दिए जिसे ऋतु ने अपने होंठों में भर लिया और किस करने लगी और साथ ही मुझे अपनी तरफ खींच लिया। ऋतु की किस में बड़ी शिद्दत थी, कभी वो अपनी जुबान को मेरे मुँह में घुसाकर किस करती, और कभी मेरी जुबान को अपने मुँह में भर के चूसने लगती। जिससे मैं भी मजे से पागल होने लगा। कुछ देर तक हम दोनों बहन भाई इसी तरह किस करते रहे और फिर मैंने अपने होंठ अपनी बहन के होंठों से अलग किए और उसकी चूचियों पे रख दिए और चूसने लगा।
जिससे ऋतु को और भी मजा आने लगा और वो- “ऊओ भाई… उन्म्मह… पी लो भाई आज अपनी बहन की चूचियों को हूंणमम…”
अब मैं ऋतु की चूचियों को चूसने के साथ हल्का-हल्का दबा भी रहा था और कुछ देर के बाद मैं ऋतु की चूचियों से नीचे की तरफ हुआ और उसके पेट और फिर आहिस्ता-आहिस्ता उसकी फुद्दी के ऊपर की तरफ भूरे बालों के पास अपनी जुबान घुमाने लगा तो ऋतु पागल ही हो उठी और मेरे सर को अपनी फुद्दी की तरफ दबाने लगी और आअह्ह… भाई नहीं प्लीज़्ज़… ये क्या कर दिया आपने… उन्म्मह… की आवाज से मेरे सर को भी अपनी फुद्दी की तरफ दबाने लगी। अब मैंने जैसे ही ऋतु की फुद्दी के ऊपर अपनी जुबान को घुमाया तो ऋतु के जिश्म को एक झटका सा लगा और इसके साथ ही ऋतु ने अपने हाथों के साथ मेरे सर को अपनी फुद्दी के साथ दबा लिया और- “हाँ भाई… यहाँ से चाटो प्लीज़्ज़… यहाँ ज्यादा मजा आ रहा है… उन्म्मह…”
ऋतु की फुद्दी काफी ज्यादा गरम और गीली हो चुकी थी और उसमें से निकलने वाला गाढ़ा सा नमकीन पानी मुझे बड़ा मजा दे रहा था और मैं अपनी जुबान को ऊपर से नीचे की तरफ चलाने लगा जिससे ऋतु और भी तड़पने लगी और- “आअह्ह… भाई, खा जाओ अपनी बहन की फुद्दी को… ऊओ… भाई मुझे कुछ हो रहा है… ऊओ… भाई…” की आवाज के साथ ही ऋतु का जिश्म अकड़ने लगा और फिर उसे 3-4 झटके लगे और उसकी फुद्दी से पानी का सैलाब सा निकलकर मेरे मुँह में जाने लगा जिसे मैं मजे से पी गया।
ऋतु फारिग़ होने के बाद कुछ निढाल सी हो गई और अपनी आँखों को बंद किए लंबी सांसें भरने लगी तो मैं उसकी टाँगों में से उठकर बगल में बैठ गया और अपना मुँह उसके करीब करके बोला- ऋतु मेरी जान मजा आया तुम्हें?
मेरी बात सुनते ही ऋतु ने अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ देखकर हल्का सा मुश्कुरा उठी और फिर मुझे अपनी तरफ खींच लिया और किस करने लगी।
हम दोनों ने कुछ देर किस की और फिर मैं उठा और अपने लण्ड को उसके मुँह के पास कर दिया और बोला- “चलो अब इसे भी अपने मुँह में लेकर प्यार करो…”
ऋतु ने कहा- “भाई इसे प्यार करना जरूरी है क्या?
तो मैंने हाँ में सर हिला दिया और कहा- “हाँ मेरी जान, असल मजा तो इसे प्यार करने से ही आता है…”
ऋतु कुछ देर तक मेरी तरफ देखती रही और फिर आहिस्ता से अपना मुँह खोल दिया और मेरे लण्ड का सुपाड़ा को अपने मुँह में भर लिया और चाटने लगी जिससे मुझे भी मजा आने लगा। लेकिन क्योंकि ऋतु ने कभी किसी का लण्ड अपने मुँह में नहीं लिया था और ऊपर से मेरे इतना बड़ा और मोटा लण्ड वो अपने मुँह में लेने की कोशिश में अपने दाँत मेरे लण्ड के साथ रगड़ रही थी जिससे मुझे हल्की तकलीफ भी हो रही थी। जिसकी वजह से मैंने ऋतु के मुँह से अपना लण्ड निकाल लिया।
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Re: Hot stori घर का बिजनिस
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अब मैंने ऋतु को उल्टा लिटा दिया और उसके पेट के नीचे एक तकिया रख दिया और बगल से तेल उठाकर अपने लण्ड और ऋतु की गाण्ड पे अच्छी तरह से लगा दिया और अपने लण्ड को ऋतु की गाण्ड पे रगड़ने लगा। फिर मैंने अपने लण्ड और ऋतु की गाण्ड पे थूक भी लगा दिया कि आसानी रहे और लण्ड को अपनी सबसे छोटी बहन की गाण्ड के सुराख पे सेट कर दिया और जोर लगाने लगा। जिससे मेरे लण्ड का सुपाड़ा मेरी बहन की गाण्ड में उतर गया। सुपाड़े के घुसते ही मैं रुक गया और ऋतु के कान के पास कहा- जान, आज अपने भाई का पूरा लण्ड लोगी ना?
ऋतु ने हल्की सी हूंन की आवाज निकाली और फिर से चुप हो गई तो मैंने ऋतु की गाण्ड को अपने दोनों हाथों से खोल दिया और कहा- “जान, जितना अपनी गाण्ड को खुला रखोगी, उतना ही दर्द कम होगा। ठीक है ना…”
ऋतु ने मेरी बात सुनते ही हाँ में सर हिला दिया तो मैंने अपने लण्ड को गाण्ड में दबाना शुरू कर दिया जिससे मेरा लण्ड आहिस्ता से मेरी बहन की गाण्ड में घुसने लगा और जैसे ही मेरा लण्ड कोई 4” के करीब ऋतु की गाण्ड में गया था कि ऋतु ने- “ऊओ… भाई, प्लीज़्ज़… रुक जाओ…” कहा।
तो मैं रुक गया और कहा- “जान करने दो, जो भी दर्द होना है एक बार ही हो जाने दो…”
ऋतु ने कुछ देर के बाद कहा- “भाई, जो भी करना है एक बार ही कर डालो प्लीज़्ज़… इस तरह बार-बार दर्द होता है…”
मैंने ऋतु की बात पूरी होते ही उसकी कमर को जोर से पकड़ लिया और पूरी ताकत से झटका लगाया जिससे मेरा लण्ड ऋतु की गाण्ड को खोलता हुआ पूरा घुस गया और ऋतु के मुँह से एक जोरदार चीख निकल गई- “आऐ अम्मीईई… प्लीज़्ज़… भाई बाहर निकालो… मेरी फट गई है… मुझे नहीं करना है कुछ भी… ऊओ… प्लीज़्ज़… भाई बाहर निकालो… नहीं तो मैं मर जाऊँगी…”
ऋतु की चीखों को सुनकर अम्मी और दीदी फौरन ऋतु के रूम में आ गई और हमें इस हालत में देखकर अम्मी और दीदी जल्दी से ऋतु के दोनों तरफ बैठ गई और उसके बालों को सहलाने लगी और अम्मी ने कहा- “बस मेरी बच्ची, अब हो गया है जो होना था बस थोड़ा सा सबर करो…”
ऋतु को क्योंकि काफी ज्यादा दर्द हो रहा था और उसकी आँखों से आँसू भी निकल रहे थे तो वो रोते हुये बोली- “अम्मी, प्लीज़्ज़… भाई को बोलो कि बाहर निकाल ले, मेरी फट गई है…”
अम्मी ने मुझे आँख से इशारा किया और कहा- “चलो आलोक, निकालो बाहर, कुछ ख्याल करो बहन है ये तुम्हारी…”
मैं अम्मी के इशारे को समझ गया और कहा- “ओके अम्मी, लेकिन आप इसे भी तो बोलो ना कि अपनी गाण्ड को ढीला करे ताकि मैं अपने लण्ड को बाहर निकालूं…”
मेरी बात सुनते ही ऋतु ने अपना जिश्म ढीला कर दिया तो मैंने अपने लण्ड को हल्का सा बाहर खींचा और फिर आराम से घुसा दिया। मेरे इस तरह करने से अम्मी ने कहा- “हाँ, इसे ज्यादा जोर से नहीं करो… वरना मेरी बेटी को दर्द होगा… बस इसी तरह आराम-आराम से कर लो तुम और फिर जाओ यहाँ से…”
मेरी बात सुनते ही ऋतु ने अपना जिश्म ढीला कर दिया तो मैंने अपने लण्ड को हल्का सा बाहर खींचा और फिर आराम से घुसा दिया। मेरे इस तरह करने से अम्मी ने कहा- “हाँ, इसे ज्यादा जोर से नहीं करो… वरना मेरी बेटी को दर्द होगा… बस इसी तरह आराम-आराम से कर लो तुम और फिर जाओ यहाँ से…”
अब मैं ऋतु की गाण्ड में इतने आराम और प्यार से अंदर-बाहर कर रहा था कि ऋतु कुछ ही देर में रोना और चिल्लाना खतम करके आराम से लेट गई और अपना जिश्म भी पूरी तरह से ढीला कर दिया। जिश्म को ढीला छोड़ते ही मेरा लण्ड कुछ आसानी से अंदर-बाहर होने लगा जिससे मेरा मजा भी बढ़ गया था और अब तो ऋतु भी कभी-कभी अपनी गाण्ड को मेरे लण्ड की तरफ दबा देती थी जिससे मैं और भी मजे से पागल होने लगा।
अम्मी और दीदी ऋतु के दोनों तरफ से बैठी उसके बालों और चूचियों को सहला रही थी जिससे ऋतु को भी अब मजा आ रहा था लेकिन क्योंकि ऋतु का पहली बार था और वो भी इतने बड़े लौड़े से तो दर्द तो होना ही था।
अब मैं भी फारिग़ होने ही वाला था कि मैंने अपने लण्ड को तेजी के साथ अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया जिससे ऋतु फिर दर्द की वजह से- “आअह्ह… भाई प्लीज़्ज़… आहिस्ता करो… इस तरह दर्द हो रहा है… अम्मी प्लीज़्ज़ भाई को मना करो ना… उन्म्मह…” की आवाज करने लगी।
लेकिन क्योंकि मैं अब अंत पे था इसलिए रुका नहीं और धक्के मारता रहा और कुछ ही झटकों में फारिग़ होकर ऋतु की गाण्ड के ऊपर ही गिर गया।
कुछ देर तक मैं इसी तरह अपनी बहन की गाण्ड में लण्ड घुसाये लेटा रहा कि तभी अम्मी ने कहा- “चलो आलोक, अब उठो भी… देखो तो सही ऋतु की क्या हालत हो गई है…”
मैं जैसे ही उठा और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और देखा तो मुझे अपने लण्ड के ऊपर हल्की सी लाली नजर आई और जब मेरी नजर अपनी छोटी बहन ऋतु की गाण्ड पे पड़ी तो मैं थोड़ा परेशान हो गया।
लेकिन तभी अम्मी ने कहा- “कुछ नहीं हुआ बस थोड़ा सूज गई है और बस अभी थोड़ा गरम पानी से टिकोर करूंगी तो ठीक होना शुरू हो जाएगी…”
अम्मी की बात सुनकर मैं वहाँ से उठा और वाश-रूम की तरफ चल पड़ा और साफ सफाई के बाद वापिस आया तो, तब तक अम्मी ने ऋतु को बेड पे बिठा दिया था।
जैसे ही ऋतु की नजर मेरे लण्ड पे पड़ी तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं जैसे उसे यकीन नहीं आ रहा हो मेरे लण्ड पे।
अम्मी ने कहा- बेटी, क्या देख रही हो? इस तरह मेरे बेटे को नजर लगाओगी क्या?
ऋतु अम्मी की बात सुनकर बुरी तरह शर्मा गई और सर झुकाकर बैठ गई।
तो दीदी ने हँसते हुये कहा- “अरे मेरी जान बहना, ये हमारा भाई नहीं बलकि हमारा शौहर भी है तो फिर इससे क्या शरमाना…”
दीदी की बात सुनकर मैं हँस पड़ा और बोला- “हाँ ऋतु, दीदी सही बोल रही हैं लेकिन मैं ऐसा शौहर हूँ कि जिसे अपनी इन गश्तियों की खुली फुद्दी ही मिलती है, सील-पैक नहीं…”
दीदी- अच्छा भाई, तो अभी जो तुमने मेरी इस मासूम बहन की गाण्ड को खोला है इसका क्या?
अम्मी- “अरे बेटा, अगर तुम इनकी फुद्दी की सील खोलोगे तो हम क्या करेंगे? कोई इतने पैसे नहीं देगा, जितने अभी हम लेते हैं…”
दीदी- “हाँ भाई, लेकिन तुम्हें मना भी कोई नहीं करता है। जब दिल करे जिसके साथ दिल करे, करो…”
मैं- “अच्छा बाबा, मैं कब बोल रहा हूँ कि तुम लोग मुझसे अपनी सील खुलवाओ…”
अम्मी- अच्छा ऋतु, चलो उठो बेटी। अब मैं तुम्हें बाथरूम ले चलूं…” और इसके साथ ही ऋतु को अपने साथ उठाकर बाथरूम की तरफ चली गई।
अम्मी के जाते ही दीदी मेरे करीब हो गई और मेरे लण्ड को अपने हाथ में पकड़कर बोली- भाई सच बताना, ऋतु के साथ मजा आया है क्या आपको?
मैं- “हाँ दीदी, सच तो ये है कि ऋतु की गाण्ड बहुत टाइट थी और उसने मुझे मजा भी दिया है…”
दीदी- “अच्छा तो फिर कहीं अब उसकी सील-पैक फुद्दी खोलने का दिल तो नहीं कर रहा मेरे भाई का…”
दीदी की बात सुनते ही मेरे लण्ड में फिर से जान आना शुरू हो गई जिसे महसूस करते ही दीदी हँस पड़ी और बोली- “नहीं भाई, समझाओ इसे। अभी नहीं कल की रात सबर करो उसके बाद जितना दिल चाहे चोद लेना ऋतु को कोई भी तुम्हें ऋतु की चुदाई से मना नहीं करेगा…”
अगले दिन रात के 8:00 बजे ही बापू ने मुझसे कहा- “आलोक, आज रात तुमने सारा टाइम गेस्ट-रूम के दरवाजे के बाहर ही बैठना है क्योंकि अगर रूम में किसी भी चीज की जरूरत हुई तो तुम उन्हें दे सको…”
मैं- ठीक है बापू, लेकिन आज आ कौन रहा है?
बापू- बेटा एक एम॰पी॰ है। गुजरानवाला से आ रहा है। अभी दो घंटे तक आ जाएगा, बूढ़ा आदमी है (नाम नहीं लिखूंगा उस एम॰पी॰ का)
मैं- “ठीक है बापू, उसे किसी भी चीज की कमी नहीं होगी आप टेंशन नहीं लो…”
बापू- “अच्छा आलोक, मैं अभी चलता हूँ और हाँ मैंने वहाँ गेस्ट-रूम में शराब की नयी बोतल भी रख दी है…”
मैं- “ठीक है बापू, मैं ले लूँगा आप परेशान नहीं हों…”
बापू- “बेटा, तुम समझ नहीं रहे हो? ये ही एम॰पी॰ है हमारे पास कि हम अब इस पैसे वालों की दुनियां में घुस कर पैसा कमा सकें और इस काम में ये एम॰पी॰ हमारे बहुत काम आएगा…” बापू की बात भी सही थी क्योंकि इन लोगों के पास ही तो सारा पैसा होता है जो कि हम गरीबों की खून की कमाई का पैसा ही होता है।
मैंने सर हिला दिया तो बापू वहाँ से उठे और बाहर निकल गये। और उनके जाने के बाद मैं उठा और ऋतु के रूम की तरफ चल पड़ा, जहाँ ऋतु के साथ अम्मी और बुआ भी थीं।
मुझे देखते ही अम्मी ने कहा- आओ आलोक बैठो, क्या बात है? क्या आ गये हैं वो लोग?
मैं- “नहीं अम्मी, अभी नहीं। अभी कुछ टाइम है। मैं तो बस वैसे ही आ गया था यहाँ…”
बुआ- “हाँ, तो आओ ना यहाँ बैठो हमारे पास और देखो कि किस तरह हम ऋतु को तैयार करती हैं…”
मैं- “नहीं बुआ, आप लोग ही बैठो मैं दीदी की तरफ जा रहा हूँ…”
अम्मी- “आलोक, तुम ऐसा करो कि अभी जब तक वो लोग आ नहीं जाते गेस्ट-रूम को देख लो कि किसी चीज की कमी ना हो…”
मैं- “ठीक है अम्मी, मैं दीदी और पायल को ले जाता हूँ अपने साथ…”
अम्मी- “नहीं आलोक, उनको भी तैयार होने दो। ये काम तुम खुद ही देख लो अभी…”
मैं- क्यों अम्मी? दीदी और पायल ने कहाँ जाना है?
अम्मी- “बेटा, आज जो एम॰पी॰ आ रहा है उसके दोस्तों को तुम्हारी दीदी और पायल ही संभालेंगी…”
मैंने हाँ में सर हिला दिया और वहाँ से उठकर गेस्ट-रूम की तरफ चल पड़ा और सोचने लगा कि आज मेरी तीनों बहनों की जम के चुदाई होने वाली है और वो भी कमाल की होगी। क्योंकि ऋतु के साथ तो एक ही आदमी करेगा लेकिन पता नहीं दीदी और पायल के साथ कितने लोग चुदाई करेंगे?
अब मैंने ऋतु को उल्टा लिटा दिया और उसके पेट के नीचे एक तकिया रख दिया और बगल से तेल उठाकर अपने लण्ड और ऋतु की गाण्ड पे अच्छी तरह से लगा दिया और अपने लण्ड को ऋतु की गाण्ड पे रगड़ने लगा। फिर मैंने अपने लण्ड और ऋतु की गाण्ड पे थूक भी लगा दिया कि आसानी रहे और लण्ड को अपनी सबसे छोटी बहन की गाण्ड के सुराख पे सेट कर दिया और जोर लगाने लगा। जिससे मेरे लण्ड का सुपाड़ा मेरी बहन की गाण्ड में उतर गया। सुपाड़े के घुसते ही मैं रुक गया और ऋतु के कान के पास कहा- जान, आज अपने भाई का पूरा लण्ड लोगी ना?
ऋतु ने हल्की सी हूंन की आवाज निकाली और फिर से चुप हो गई तो मैंने ऋतु की गाण्ड को अपने दोनों हाथों से खोल दिया और कहा- “जान, जितना अपनी गाण्ड को खुला रखोगी, उतना ही दर्द कम होगा। ठीक है ना…”
ऋतु ने मेरी बात सुनते ही हाँ में सर हिला दिया तो मैंने अपने लण्ड को गाण्ड में दबाना शुरू कर दिया जिससे मेरा लण्ड आहिस्ता से मेरी बहन की गाण्ड में घुसने लगा और जैसे ही मेरा लण्ड कोई 4” के करीब ऋतु की गाण्ड में गया था कि ऋतु ने- “ऊओ… भाई, प्लीज़्ज़… रुक जाओ…” कहा।
तो मैं रुक गया और कहा- “जान करने दो, जो भी दर्द होना है एक बार ही हो जाने दो…”
ऋतु ने कुछ देर के बाद कहा- “भाई, जो भी करना है एक बार ही कर डालो प्लीज़्ज़… इस तरह बार-बार दर्द होता है…”
मैंने ऋतु की बात पूरी होते ही उसकी कमर को जोर से पकड़ लिया और पूरी ताकत से झटका लगाया जिससे मेरा लण्ड ऋतु की गाण्ड को खोलता हुआ पूरा घुस गया और ऋतु के मुँह से एक जोरदार चीख निकल गई- “आऐ अम्मीईई… प्लीज़्ज़… भाई बाहर निकालो… मेरी फट गई है… मुझे नहीं करना है कुछ भी… ऊओ… प्लीज़्ज़… भाई बाहर निकालो… नहीं तो मैं मर जाऊँगी…”
ऋतु की चीखों को सुनकर अम्मी और दीदी फौरन ऋतु के रूम में आ गई और हमें इस हालत में देखकर अम्मी और दीदी जल्दी से ऋतु के दोनों तरफ बैठ गई और उसके बालों को सहलाने लगी और अम्मी ने कहा- “बस मेरी बच्ची, अब हो गया है जो होना था बस थोड़ा सा सबर करो…”
ऋतु को क्योंकि काफी ज्यादा दर्द हो रहा था और उसकी आँखों से आँसू भी निकल रहे थे तो वो रोते हुये बोली- “अम्मी, प्लीज़्ज़… भाई को बोलो कि बाहर निकाल ले, मेरी फट गई है…”
अम्मी ने मुझे आँख से इशारा किया और कहा- “चलो आलोक, निकालो बाहर, कुछ ख्याल करो बहन है ये तुम्हारी…”
मैं अम्मी के इशारे को समझ गया और कहा- “ओके अम्मी, लेकिन आप इसे भी तो बोलो ना कि अपनी गाण्ड को ढीला करे ताकि मैं अपने लण्ड को बाहर निकालूं…”
मेरी बात सुनते ही ऋतु ने अपना जिश्म ढीला कर दिया तो मैंने अपने लण्ड को हल्का सा बाहर खींचा और फिर आराम से घुसा दिया। मेरे इस तरह करने से अम्मी ने कहा- “हाँ, इसे ज्यादा जोर से नहीं करो… वरना मेरी बेटी को दर्द होगा… बस इसी तरह आराम-आराम से कर लो तुम और फिर जाओ यहाँ से…”
मेरी बात सुनते ही ऋतु ने अपना जिश्म ढीला कर दिया तो मैंने अपने लण्ड को हल्का सा बाहर खींचा और फिर आराम से घुसा दिया। मेरे इस तरह करने से अम्मी ने कहा- “हाँ, इसे ज्यादा जोर से नहीं करो… वरना मेरी बेटी को दर्द होगा… बस इसी तरह आराम-आराम से कर लो तुम और फिर जाओ यहाँ से…”
अब मैं ऋतु की गाण्ड में इतने आराम और प्यार से अंदर-बाहर कर रहा था कि ऋतु कुछ ही देर में रोना और चिल्लाना खतम करके आराम से लेट गई और अपना जिश्म भी पूरी तरह से ढीला कर दिया। जिश्म को ढीला छोड़ते ही मेरा लण्ड कुछ आसानी से अंदर-बाहर होने लगा जिससे मेरा मजा भी बढ़ गया था और अब तो ऋतु भी कभी-कभी अपनी गाण्ड को मेरे लण्ड की तरफ दबा देती थी जिससे मैं और भी मजे से पागल होने लगा।
अम्मी और दीदी ऋतु के दोनों तरफ से बैठी उसके बालों और चूचियों को सहला रही थी जिससे ऋतु को भी अब मजा आ रहा था लेकिन क्योंकि ऋतु का पहली बार था और वो भी इतने बड़े लौड़े से तो दर्द तो होना ही था।
अब मैं भी फारिग़ होने ही वाला था कि मैंने अपने लण्ड को तेजी के साथ अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया जिससे ऋतु फिर दर्द की वजह से- “आअह्ह… भाई प्लीज़्ज़… आहिस्ता करो… इस तरह दर्द हो रहा है… अम्मी प्लीज़्ज़ भाई को मना करो ना… उन्म्मह…” की आवाज करने लगी।
लेकिन क्योंकि मैं अब अंत पे था इसलिए रुका नहीं और धक्के मारता रहा और कुछ ही झटकों में फारिग़ होकर ऋतु की गाण्ड के ऊपर ही गिर गया।
कुछ देर तक मैं इसी तरह अपनी बहन की गाण्ड में लण्ड घुसाये लेटा रहा कि तभी अम्मी ने कहा- “चलो आलोक, अब उठो भी… देखो तो सही ऋतु की क्या हालत हो गई है…”
मैं जैसे ही उठा और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और देखा तो मुझे अपने लण्ड के ऊपर हल्की सी लाली नजर आई और जब मेरी नजर अपनी छोटी बहन ऋतु की गाण्ड पे पड़ी तो मैं थोड़ा परेशान हो गया।
लेकिन तभी अम्मी ने कहा- “कुछ नहीं हुआ बस थोड़ा सूज गई है और बस अभी थोड़ा गरम पानी से टिकोर करूंगी तो ठीक होना शुरू हो जाएगी…”
अम्मी की बात सुनकर मैं वहाँ से उठा और वाश-रूम की तरफ चल पड़ा और साफ सफाई के बाद वापिस आया तो, तब तक अम्मी ने ऋतु को बेड पे बिठा दिया था।
जैसे ही ऋतु की नजर मेरे लण्ड पे पड़ी तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं जैसे उसे यकीन नहीं आ रहा हो मेरे लण्ड पे।
अम्मी ने कहा- बेटी, क्या देख रही हो? इस तरह मेरे बेटे को नजर लगाओगी क्या?
ऋतु अम्मी की बात सुनकर बुरी तरह शर्मा गई और सर झुकाकर बैठ गई।
तो दीदी ने हँसते हुये कहा- “अरे मेरी जान बहना, ये हमारा भाई नहीं बलकि हमारा शौहर भी है तो फिर इससे क्या शरमाना…”
दीदी की बात सुनकर मैं हँस पड़ा और बोला- “हाँ ऋतु, दीदी सही बोल रही हैं लेकिन मैं ऐसा शौहर हूँ कि जिसे अपनी इन गश्तियों की खुली फुद्दी ही मिलती है, सील-पैक नहीं…”
दीदी- अच्छा भाई, तो अभी जो तुमने मेरी इस मासूम बहन की गाण्ड को खोला है इसका क्या?
अम्मी- “अरे बेटा, अगर तुम इनकी फुद्दी की सील खोलोगे तो हम क्या करेंगे? कोई इतने पैसे नहीं देगा, जितने अभी हम लेते हैं…”
दीदी- “हाँ भाई, लेकिन तुम्हें मना भी कोई नहीं करता है। जब दिल करे जिसके साथ दिल करे, करो…”
मैं- “अच्छा बाबा, मैं कब बोल रहा हूँ कि तुम लोग मुझसे अपनी सील खुलवाओ…”
अम्मी- अच्छा ऋतु, चलो उठो बेटी। अब मैं तुम्हें बाथरूम ले चलूं…” और इसके साथ ही ऋतु को अपने साथ उठाकर बाथरूम की तरफ चली गई।
अम्मी के जाते ही दीदी मेरे करीब हो गई और मेरे लण्ड को अपने हाथ में पकड़कर बोली- भाई सच बताना, ऋतु के साथ मजा आया है क्या आपको?
मैं- “हाँ दीदी, सच तो ये है कि ऋतु की गाण्ड बहुत टाइट थी और उसने मुझे मजा भी दिया है…”
दीदी- “अच्छा तो फिर कहीं अब उसकी सील-पैक फुद्दी खोलने का दिल तो नहीं कर रहा मेरे भाई का…”
दीदी की बात सुनते ही मेरे लण्ड में फिर से जान आना शुरू हो गई जिसे महसूस करते ही दीदी हँस पड़ी और बोली- “नहीं भाई, समझाओ इसे। अभी नहीं कल की रात सबर करो उसके बाद जितना दिल चाहे चोद लेना ऋतु को कोई भी तुम्हें ऋतु की चुदाई से मना नहीं करेगा…”
अगले दिन रात के 8:00 बजे ही बापू ने मुझसे कहा- “आलोक, आज रात तुमने सारा टाइम गेस्ट-रूम के दरवाजे के बाहर ही बैठना है क्योंकि अगर रूम में किसी भी चीज की जरूरत हुई तो तुम उन्हें दे सको…”
मैं- ठीक है बापू, लेकिन आज आ कौन रहा है?
बापू- बेटा एक एम॰पी॰ है। गुजरानवाला से आ रहा है। अभी दो घंटे तक आ जाएगा, बूढ़ा आदमी है (नाम नहीं लिखूंगा उस एम॰पी॰ का)
मैं- “ठीक है बापू, उसे किसी भी चीज की कमी नहीं होगी आप टेंशन नहीं लो…”
बापू- “अच्छा आलोक, मैं अभी चलता हूँ और हाँ मैंने वहाँ गेस्ट-रूम में शराब की नयी बोतल भी रख दी है…”
मैं- “ठीक है बापू, मैं ले लूँगा आप परेशान नहीं हों…”
बापू- “बेटा, तुम समझ नहीं रहे हो? ये ही एम॰पी॰ है हमारे पास कि हम अब इस पैसे वालों की दुनियां में घुस कर पैसा कमा सकें और इस काम में ये एम॰पी॰ हमारे बहुत काम आएगा…” बापू की बात भी सही थी क्योंकि इन लोगों के पास ही तो सारा पैसा होता है जो कि हम गरीबों की खून की कमाई का पैसा ही होता है।
मैंने सर हिला दिया तो बापू वहाँ से उठे और बाहर निकल गये। और उनके जाने के बाद मैं उठा और ऋतु के रूम की तरफ चल पड़ा, जहाँ ऋतु के साथ अम्मी और बुआ भी थीं।
मुझे देखते ही अम्मी ने कहा- आओ आलोक बैठो, क्या बात है? क्या आ गये हैं वो लोग?
मैं- “नहीं अम्मी, अभी नहीं। अभी कुछ टाइम है। मैं तो बस वैसे ही आ गया था यहाँ…”
बुआ- “हाँ, तो आओ ना यहाँ बैठो हमारे पास और देखो कि किस तरह हम ऋतु को तैयार करती हैं…”
मैं- “नहीं बुआ, आप लोग ही बैठो मैं दीदी की तरफ जा रहा हूँ…”
अम्मी- “आलोक, तुम ऐसा करो कि अभी जब तक वो लोग आ नहीं जाते गेस्ट-रूम को देख लो कि किसी चीज की कमी ना हो…”
मैं- “ठीक है अम्मी, मैं दीदी और पायल को ले जाता हूँ अपने साथ…”
अम्मी- “नहीं आलोक, उनको भी तैयार होने दो। ये काम तुम खुद ही देख लो अभी…”
मैं- क्यों अम्मी? दीदी और पायल ने कहाँ जाना है?
अम्मी- “बेटा, आज जो एम॰पी॰ आ रहा है उसके दोस्तों को तुम्हारी दीदी और पायल ही संभालेंगी…”
मैंने हाँ में सर हिला दिया और वहाँ से उठकर गेस्ट-रूम की तरफ चल पड़ा और सोचने लगा कि आज मेरी तीनों बहनों की जम के चुदाई होने वाली है और वो भी कमाल की होगी। क्योंकि ऋतु के साथ तो एक ही आदमी करेगा लेकिन पता नहीं दीदी और पायल के साथ कितने लोग चुदाई करेंगे?