राधा का राज compleet

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The Romantic
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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 09 Nov 2014 08:27

मुकुल उस वक़्त मेरी गर्दन पर और मेरी नितंबों पर अपने दाँत गढ़ा रहा था. मैं मस्त हुई जा रही थी. फिर मुकुल ने मेरे सिर को पकड़ा और अपने लंड पर झुकने लगा. मैं उसका इरादा समझ कर कुछ देर तक मुँह को इधर उधर घुमाती रही. मगर उसके आगे मेरी एक नही चल पा रही थी. वो मेरे खूबसूरत होंठों पर अपना काला लंड फेरने लगा. मुझे उसके लंड से पेशाब की बदबू आ रही थी जिससे मेरा जी मचलने लगा. लंड के आगे के टोपे की मोटाई देख कर मैं काँप गयी. लंड से चिपचिपा प्रदार्थ निकल कर मेरे होंठों पर लग रहा था. लेकिन मैने अपना मुँह नही खोला. मुकुल ने काफ़ी कोशिश की मेरे मुँह को खोलने की मगर मैने उसकी एक ना चलने दी.

कुछ देर बाद अरुण ने मुझे गोद से उठा कर कोहनी और घुटनों के बल पर चौपाया बनाकर पीछे से मेरी योनि को च्छेदने लगा. योनि की फाँकें अलग कर अपनी उंगलियाँ अंदर बाहर करने लगा. उसने मेरी योनि से अपनी उंगलियाँ निकाल कर एक उंगली को खुद चाता और दूसरी उंगली मुकुल को चाटने दिया.

" ले देख चाट कर अगर इससे अमृत का स्वाद ना आए तो कहना." अरुण ने कहा.

"एम्म्म बॉस मज़ा आ गया… बड़ी नसीली चीज़ है. आज तक इतना मज़ा कभी नही आया."

मुकुल मेरे सिर को वापस अपने लंड पर दबा रहा था. मुझे मुँह नहीं खोलता देख कर मेरे निपल्स को बुरी तरह मसल्ने लगा. मेरे निपल्स इतनी बुरी तरह मसल रहा था और खींच रहा था मानो उसे आज मेरे बदन से ही उखाड़ फेंकने का मन हो. मैं जैसे ही चीखने के लिए मुँह खोली उसका मोटा लंड जीभ को रास्ते से हटाता हुआ गले तक जाकर फँस गया.

मेरा दम घुटने लगा था. मैने सिर को बाहर खींचने के लिए ज़ोर लगाया तो उसने अपने हाथ को कुछ ढीला कर दिया. लंड आधा ही बाहर निकला होगा उसने दोबारा मेरे सिर को दाब दिया. और इस तरह वो मेरे मुँह को किसी योनि की तरह चोदने लगा.

उधर अरुण मेरी योनि मे अपनी जीभ अंदर बाहर कर रहा था. मैं कामोत्तेजना से चीखना चाहती थी मगर गले मे मुकुल का लंड फँसा होने के कारण मेरे मुँह से सिर्फ़ "उूउउन्न्ञणनह उम्म्म फफफफफफफम्‍म्म" जैसी आवाज़ें निकल रही थी. मैं उसी अवस्था मे वापस झार गयी.

काफ़ी देर तक चूसने चाटने के बाद अरुण उठा. उसके मुँह, नाक पर मेरा कामरस लगा हुआ था. उसने अपने लंड को मेरी योनि के द्वार पर सटा दिया. फिर बहुत धीरे धीरे उसे अंदर धकेलने लगा. खंबे के जैसे अपने मोटे ताजे लंड को पूरी तरह मेरी योनि मे समा दिया. योनि पहले से ही गीली हो रही थी इसलिए कोई ज़्यादा दिक्कत नहीं हुई. लेकिन उसका लंड काफ़ी मोटा होने से मुझे हल्की से तकलीफ़ हो रही थी. वो अपने लंड को वापस पूरा बाहर निकाला और फिर एक जोरदार धक्के से पूरा समा दिया. फिर तो उसके धक्के लगातार हो चले.

मुकुल मेरा मुख मैंतुन कर रहा था. दोनो के लंड दोनो तरफ से मेरे बदन मे अंदर बाहर हो रहे थे और मैं जीप मे झूला झूल रही थी. मेरे दोनो उरोज़ पके हुए अनार की तरह झूल रही थे. दोनो ने मसल कर काट कर दोनो स्तनो का रंग भी अनारो की तरह लाल कर दिया था.

कुछ देर बाद मुझे लगने लगा कि अब मुकुल डिसचार्ज होने वाला है. ये देख कर मैने लंड को अपने मुँह से निकाल ने का सोचा. मगर मुकुल ने शायद मेरे मन की बात पढ़ ली. उसने मेरे सिर को प्युरे ताक़त से अपने लंड पर दबा दिया. मूसल जैसा लंड गले के अंदर तक घुस गया. उसका लंड अब झटके मारने लगा. फिर ढेर सारा गरम गरम वीर्य उसके लंड से निकल कर मेरे गले से होता हुआ मेरे पेट मे समाने लगा. मेरी आँखें दर्द से उबली पड़ी थी. दम घुट रहा था. काफ़ी सारा वीर्य पिलाने के बाद लंड को मेरे मुँह से निकाला. उसका लंड अब भी झटके खा रहा था. और बूँद बूँद वीर्य अब भी टपक रहा था. मेरे होंठों से उसके लंड तक वीर्य एक रेशम की डोर की तरह चिपका हुआ था. मैं ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रही थी. उसके वीर्य के कुछ थक्के मेरी नाक पर और मेरे बालों पर भी गिरे.

अरुण पीछे से ज़ोर ज़ोर से धक्के दे रहा था. और मैं हर धक्के के साथ मुकुल के ढीले पड़े लंड से भिड़ रही थी. इससे मुकुल का ढीला लंड फिर कुछ हरकत मे आने लगा. मैं सिर को उत्तेजना से झटकने लगी "ऊउीई माआ ऊऊहह हूंंम्प्प" जैसी उत्तेजित आवाज़ें निकालने लगी. मेरी योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया. मगर उसके रफ़्तार मे कोई कमी नहीं आई थी. मेरी बाहें मेरे बदन को और थामे ना रख सकी. और मेरा सिर मुकुल की गोद मे धँस गया. उसके काम रस से लिसडे ढीले पड़े लंड से मेरा गाल रगड़ खा रहा था. काफ़ी देर तक धक्के मारने के बाद उसके लंड ने अपनी धार से मेरी योनि को लबालब भर दिया. जब तक पूरा वीर्य मेरी योनि मे निकल नही गया तब तक अपने लंड को अंदर ही डाले रखा. धीरे धीरे उसका लंड सिकुड कर मेरी योनि से बाहर निकल आया.

हम तीनो गहरी गहरी साँसें ले रहे थे. खेल तो अभी शुरू ही हुआ था. दोनो ने कुछ देर सुसताने के बाद अपनी जगह बदल ली. अरुण ने अपना लंड मेरे मुख मे डाल दिया तो मुकुल मेरी योनि पे चोट करने लगा. दोनो ने करीब दो घंटे तक मेरी इसी तरह से जगह बदल कर चुदाई की. मैं तो दोनो का स्टॅमिना देख कर हैरान थी. दोनो ने कई बार मेरे मुँह मे , मेरी योनि मे और मेरे बदन पर वीर्य की बरसात की. मैं उनके सीने से चिपके साँसे ले रही थी.

"अब तो छोड़ दो. अब तो तुम दोनो ने अपने मन की मुदाद पूरी कर ली. मुझे अब आराम करने दो. मैं बुरी तरह थक गयी हूँ." मैने कहा.

मगर दोनो मे से कोई भी मेरी मिन्नतें सुनने के मूड मे नहीं लगा. घंटे भर मेरे बदन से खेलने के बाद और अपने लंड को आराम देने के बाद दोनो के लंड मे फिर दम आने लगा. अरुण सीट पर अब लेट गया और मुझे उपर आने का इशारा किया. मैं कुछ कहती उस से पहले मुकुल ने मुझे उठाकर उसके लंड पर बैठा दिया. मैं अपने योनि द्वार को अरुण के खड़े लंड पर टिकाई. अरुण ने अपने लंड को दरवाजे पर लगाया. मैं धीरे धीरे उसके लंड पर बैठ गयी. पूरा लंड अंदर लेने के बाद मैं उसके लंड पर उठने बैठने लगी. तभी दोनो के बीच आँखों ही आँखों मे कोई इशारा हुआ. अरुण ने मुझे खींच कर अपने नग्न बदन से चिपका लिया. अरुण मेरे नितंबों को फैला कर मेरे पिच्छले द्वार पर उंगली से सहलाने लगा. फिर उंगली को कुछ अंदर तक घुसा दिया. मैं चिहुनक उठी. मैं उसका इरादा समझ कर सिर को इनकार मे हिलाने लगी तो अरुण ने मेरे होंठ अपने होंठों मे दबा लिए. मुकुल ने अपनी उंगली निकाल कर मेरे योनि से बहते हुए रस को अपने लंड और मेरी योनि पर लगा दिया. मैं इन दोनो बलिष्ठ आदमियों के बीच बिल्कुल असहाय महसूस कर रही थी. दोनो मेरे बदन को जैसी मर्ज़ी वैसे मसल रहे थे.

क्रमशाश...........................


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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 09 Nov 2014 08:28

राधा की कहानी--6

गतान्क से आगे....................

मुकुल ने अपना लंड मेरे गुदा द्वार पर सटा दिया. "नहीं प्लीज़ वहाँ नहीं" मैने लगभग रोते हुए कहा. मेरी फट जाएगी. प्लीज़ वहाँ मत घुसाओ. मैं तुम दोनो को सारी रात मेरे बदन से खेलने दूँगी मगर मुझे इस तरह मत करो मैं मर जाउन्गि" मैं गिड गीडा रही थी मगर उनपर कोई असर नही हो रहा था. मुकुल अपने काम मे जुटा रहा. मैं हाथ पैर मार रही थी मगर अरुण ने अपने बलिष्ठ बाहों और पैरों से मुझे बिल्कुल बेबस कर दिया था. मुकुलने मेरे नितंबों को फैला कर एक जोरदार धक्का मारा.

"उूुउउइई माआ मर गाईए" मेरी चीख पूरे जंगल मे गूँज गयी. मगर दोनो हंस रहे थे. "सुउुउराअज… .ससुउउराअज मुझे ब्चाआओ….."

"थोड़ा स्बर करो सब ठीक हो जाएगा. सारा दर्द ख़त्म हो जाएगा." मुकुल ने मुझे समझाने की कोशिश की. मेरी आँखों से पानी बह निकला. मैं दर्द से रोने लगी. दोनो मुझे चुप कराने की कोशिश करने लगे. मुकुल ने अपने लंड को कुछ देर तक उसी तरह रखा.

कुछ देर बाद मैं जब शांत हुई तो मुकुल ने धीरे धीरे आधे लंड को अंदर कर दिया. मैने और राज ने शादी के बाद से ही खूब सेक्स का खेल खेला था मगर उसकी नियत कभी मेरे गुदा पर खराब नहीं हुई. मगर इन दोनो ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. मेरी दर्द के मारे जान निकली जा रही थी. दोनो के जिस्म के बीच सॅंडविच बनी हुई च्चटपटाने के अलावा कुछ भी नही कर पा रही थी.

आधा लंड अंदर कर के मुकुल मेरे उपर लेट गया. उसके शरीर के बोझ से बाकी बचा आधा लंड मेरे अशोल को चीरता हुआ जड़ तक धँस गया. ऐसा लग रहा था मानो किसीने लोहे की गर्म सलाख मेरे गुदा मे डाल दी हो. मैं दोनो के बीच सॅंडविच की तरह लेटी हुई थी. एक तगड़ा लंड आगे से और एक लंड पीछे से मेरे बदन मे ठुका हुआ था. ऐसा लग रहा था मानो दोनो लंड मेरे बदन के अंदर एक दूसरे को चूम रहे हों. कुछ देर यूँ ही मेरे उपर लेटे रहने के बाद मुकुल ने अपने बदन को हरकत दे दी. अरुण शांत लेटा हुआ था. जैसे ही मुकुल अपने लंड को बाहर खींचता मेरे नितंब उसके लंड के साथ ही खींचे चले जाते थे. इससे अरुण का लंड मेरी योनि से बाहर की ओर सरक जाता और फिर जब दोबारा मुकुल मेरे गुदा मे अपना लंड ठोकता तो अरुण का लंड अपने आप ही मेरी योनि मे अंदर तक घुस जाता . उस छोटी सी जगह मे तीन जिस्म ग्डमड हो रहे थे. हर धक्के के साथ मेरा सिर गाड़ी के बॉडी से भिड़ रहा था. गनीमत थी कि साइड मे कुशन लगे हुए थे वरना मेरे सिर मे गूमड़ निकल आता. मुकुल के मुँह से "हा…हा…हा" जैसी आवाज़ हर धक्के के साथ निकल रही थी. उसके हर धक्के के साथ ही मेरे फेफड़े की सारी हवा निकल जाती और फिर मैं साँस लेने के लिए उसके लंड के बाहर होने का इंतेज़ार करती.मैं दोनो के बीच पिस रही थी. मैं भी मज़े लेने लगी. बीस पचीस मिनट तक मुझे इस तरह चोदने के बाद एक साथ दोनो डिसचार्ज होगये. मेरे भी फिर से उनके साथ ही डिसचार्ज हो गया. इस ठंड मे भी हम पसीने से बुरी तरह भीग गये थे.मेरा पूरा बदन गीला गीला और चिपचिपा हो रहा था. दोनो छेदो से वीर्य टपक रहा था.

तीनों के "आआआअहह ऊऊऊहह" से पूरा जंगल गूँज रहा था.

अरुण तो चोद्ते वक़्त गंदी गंदी गालियाँ निकालता था. हम तीनो बुरी तरह हाँफ रहे थे. मैं काफ़ी देर तक सीट पर अपने पैरों को फैलाए पड़ी रही.

मुझे दोनो ने सहारा देकर उठाया. मेरे जांघों के जोड़ पर आगे पीछे दोनो तरफ ही जलन मची हुई थी. दोनो के बीच मैं उसी हालत मे बैठ गयी. दोनो के साथ सेक्स होने के बाद अब और शर्म की कोई गुंजाइश नही बची थी. दोनो मेरे नग्न बदन को चूम रहे थे और अश्लील भाषा मे बातें करते जा रहे थे. दोनो के लंड सिकुड कर छोटे छोटे हो चुके थे.

कुछ देर बाद मुकुल ने पीछे से एक बॉक्स से कुछ सॅंडविच निकाले जो शायद अपने लिए रखे थे. हम तीनों ने उसी हालत मे आपस मे मिल बाँट कर खाया. पानी के नाम पर तो बस रम की बॉटल ही आधी बची थी. मुझे मना करने पर भी उस बॉटल से दो घूँट लेने परे. दो घूँट पीते ही कुछ देर मे सिर घूमने लगा और बदन काफ़ी हल्का हो गया. मैने अपनी आँखें बंद कर ली. मैं इस दुनिया से बेख़बर थी. तभी दोनो साइड के दरवाजे खुलने और बंद होने की आवाज़ आई. मगर मैने अपनी आँखें खोल कर देखने की ज़रूरत भी महसूस नही की. मैं उसी हालत मे अपनी नग्नता से बेख़बर गाड़ी की सीट पर पसरी हुई थी.

कुछ देर बाद वापस गाड़ी का दरवाजा खुला और मेरी बाँह को पकड़ कर किसीने बाहर खींचा. मैने अपनी आँख खोल कर देखा की सड़क के पास घास फूस इकट्ठा करके एक अलाव जला रखा है.

पास ही उस फटी हुई चादर को फैला कर ज़मीन पर बिच्छा रखा था. उस चादर पर अरुण नग्न हालत मे बैठा हुआ शायद मेरा ही इंतेज़ार कर रहा था. मुकुल मुझे खींच कर अलाव के पास ले जा रहा था. मैं लड़खड़ाते हुए कदमो से उसके साथ खींचती जा रही थी. दो बार तो गिरने को हुई तो मुकुल ने मेरे बदन को सहारा दिया. उसके नग्न बदन की चुअन अपने नंगे बदन पर पा कर मुझे अब तक की पूरी घटना याद आ गयी. मैं उसके पंजों से अपना हाथ छुड़ाना चाहती थी मगर मुझे लगा मानो बदन मे कोई जान ही नही बची है.

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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 09 Nov 2014 08:29

मेरे अलाव के पास पहुँचते ही अरुण ने अपना हाथ बढ़ा कर मुझे अपनी गोद मे खींच लिया. मुकुल भी वही आकर बैठ गया. दोनो वापस मेरे नग्न बदन को मसल्ने कचॉटने लगे. मेरे एक एक अंग को तोड़ मरोड़ कर रख दिया. थकान और नशे से वापस मेरी आँखें बंद होने लगी. दोनो एक एक स्तन पर अपना हक़ जमाने की कोशिश कर रहे थे. दोनो की दो दो उंगलियाँ एक साथ मेरी योनि के अंदर बाहर हो रही थी. मैं उत्तेजना से तड़पने लगी. मैं दोनो के सिरों को जाकड़ कर अपनी चुचियों पर भींच रही थी.

अरुण घुटने के बल उठा और मेरे सिर को बालों से पकड़ कर अपने लंड पर दबा दिया. वीर्य से सने उसके लंड को मैने अपना मुँह खोल कर अंदर जाने का रास्ता दिया. मैं उनके लंड को चूसने लगी और मुकुल मेरी योनि और नितंबों पर अपनी जीभ फेरने लगा. मुझे दोनो ने हाथों और पैरों के बल पर किसी जानवर की तरह झुकाया और अरुण ने मेरे सामने से आकर अपना लंड वापस मेरे मुँह मे डाल दिया. तभी मुकुल ने वापस अपने लंड को मेरी योनि के अंदर डाल दिया. दोनो एक साथ मेरे आगे और पीछे से धक्का मारते और मैं बीच मे फाँसी दर्द से कराह उठती.

इस तरह जो संभोग चालू हुआ तो घंटों चलता रहा दोनो ने मुझे रात भर बुरी तरह झिझोर दिया. कभी आगे से कभी पीछे से कभी मुँह मे तो कभी मेरी दोनो चुचियों के बीच हर जगह जी भर कर मालिश की. मेरे पूरे बदन पर वीर्य का मानो लेप चढ़ा दिया. पूरा बदन वीर्य से चिपचिपा हो रहा था. ना तो उन्हों ने इसे पोंच्छा ना मुझे ही अपने बदन को सॉफ करने दिया. दोनो मुझे तब तक रोन्द्ते रहे जब तक ना संभोग करते करते वो निढाल हो कर वहीं पर गये. मैं तो मानो कोमा मे थी. मेरे बदन के साथ जो कुछ हो रहा था मुझे लग रहा था मानो कोई सपना हो. दोनो आख़िर निढाल हो कर वहीं लुढ़क गये.

रात को कभी किसी की आँख खुलती तो मुझे कुछ देर तक झींझोरने लगता. पता ही नहीं चला कब भोर हो गयी. अचानक मेरी आँख खुली तो देखा चारों ओर लालिमा फैल रही है. मैं दोनो की गोद मे बिल्कुल नग्न लेटी हुई थी. मेरा नशा ख़त्म हो चुका था. मुझे अपनी हालत पर शर्म आने लगी. मुझे अपने आप से नफ़रत होने लगी. किस तरह मैने उन्हे अपनी मनमानी कर लेने दिया. जी मे आ रहा था कि वहीं से कोई पत्थर उठा कर दोनो के सिर फोड़ दूं. मगर उठने लगी तो लगा मानो मेरा निचला बदन सुन्न हो गया हो. दर्द की अधिकता के कारण मैं लड़खड़ा कर वापस वहीं पसर गयी. मेरे गिरने से दोनो चौंक कर उठ बैठे और मेरी हालत देख कर मुस्कुरा दिए. मेरे फूल से बदन की हालत बहुत ही बुरी हो रही थी. जगह जगह लाल नीले निशान परे हुए थे. मेरे स्तन दर्द से सूजे हुए थे. दोनो ने सहारा देकर मुझे उठाया. मुकुल मुझे अरुण की बाहों मे छोड़ कर मेरे कपड़े ले आया तब तक अरुण मेरे नग्न शरीर से लिपटा हुया मेरे होंठों को चूमता रहा. एक हाथ मेरे स्तनो को मसल रहे थे तो दूसरा हाथ मेरी जांघों के बीच मेरी योनि को मसल रहा था. दोनो ने मिल कर मुझे कपड़े पहनने मे मदद की मगर अरुण ने मुझे मेरी ब्रा और पॅंटी वापस नही की उन दो कपड़ों को उसने हमारे संभोग की यादगार के रूप मे अपने पास रख लिया.

मैने सूमो मे बैठ कर बॅक मिरर पर नज़र डाली तो अपनी हालत देख कर रो पड़ी. होंठ सूज रहे थे चेहरे पर वीर्य सूख कर सफेद पपड़ी बना रहा था. मुझे अपने आप से घिंन आरहि थी. सड़क के पास ही थोड़ा पानी जमा हुआ था. जिस से अपना चेहरा धो कर अपने आप को व्यवस्थित किया.

दोनो मुझे अपने बदन से उनके दिए निशानो को मिटाने की नाकाम कोशिश करते देख रहे थे. अरुण मेरे बदन से लिपट कर मेरे होंठो को चूम लिया. मैने उसे धकेल कर अपने से अलग किया. "मुझे अपने घर वापस छोड़ दो." मैने गुस्से से कहा. अरुण ने सामने की सीट पर बैठ कर जीप को स्टार्ट किया. जीप एक ही झटके मे स्टार्ट हो गयी.

"ये….ये तो एक बार मे ही स्टार्ट हो गयी…" मैने उनकी तरफ देखा तो दोनो को मुझ पर मुस्कुराते हुए पाया. मैं समझ गयी कि ये सब दोनो की मिली भगत थी. मुझे चोदने के लिए ही सूनसान जगह मे लेजा कर गाड़ी खराब कर दिया. सारा दोनो की मिली जुली प्लॅनिंग का हिस्सा था. मैं चुप चाप बैठी रही और दोनो को मन ही मन कोस्ती रही.

घंटे भर बाद हम घर पहुँचे. रास्ते मे भी दोनो मेरे स्तनो पर हाथ फेरते रहे. मगर मैने दोनो को गुस्से से अपने बदन सी अलग रखा. हम जब तक घर पहुँचे राज अपने काम पर निकल चुका था जो की मेरे लिए बहुत ही अच्छा रहा वरना उसको मेरी हालत देख कर सॉफ पता चल जाता कि रात भर मैने क्या क्या गुल खिलाएँ हैं. मेरे लिए उसकी गहरी आँखों को सफाई देना भारी पड़ जाता.

मैने दरवाजा खोला और अंदर गयी. दोनो मेरे पीछे पीच्चे अंदर आ गये. मैं उन्हे रोक नही पाई.

"मैं बाथरूम मे जा रही हूँ नहाने के लिए तुम वापस जाते समय दरवाजा भिड़ा देना."

"जानेमन इतनी जल्दी भी क्या है. अभी एक एक राउंड और खेलने का मन हो रहा है." अरुण ने बदतमीज़ी से अपने दाँत निकाले.

"नही….चले जाओ नही तो मैं राज शर्मा को बता दूँगी. राज शर्मा को पता चल गया तो वो तुम दोनो को जिंदा नही छोड़ेगा." मैने दोनो की ओर नफ़रत से देखा.

"अरे नही जानेमन तुम हम मर्दों से वाकिफ़ नही हो. अभी अगर जा कर मैने कह दिया कि तुम्हारी बीवी सारी रात हमारे साथ गुलचर्रे उड़ाने के लिए रात भर हमारे पास रुक गयी तो तुम्हारा हज़्बेंड हमे ही सही मानेगा. देती रहना तुम अपनी सफाई. हाहाहा…." अरुण मेरी बेबसी पर हंस रहा था मुझे लग रहा था कि अभी दोनो का गला दबा दूं. मैं चुप छाप खड़ी फटी फटी आँखों से उसे देखती ही रह गयी.

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