दो भाई दो बहन compleet

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raj..
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Re: दो भाई दो बहन

Unread post by raj.. » 15 Dec 2014 08:56

रिया देख रह थी कि अजीब सी खुशी उसके छोटे भाई के चेहरे पर

छाई हुई थी.

"आज पता नही क्यो में बहोत खुश हूँ, तुम मुझसे आज कुछ भी

बाँट सकते हो, अपनी हर ख्वाइश हर ख़याल" रिया ने कहा,

"सच मे रिया आज में अपनी वो ख्वाइश पूरी करना चाहता हूँ जो पूरे

हफ्ते से में तुम्हे लेकर देख रहा हूँ."

"में कुछ समझी नही." रिया ने कहा.

"अभी समझ जाओगी." कहकर जय ने दो तकिया बिस्तर पर से उठाए

और रिया को पेट के बल लिटाते हुए वो तकिये उसके पेट के नीचे लगा

दिया. ऐसा करने से रिया की चूतड़ हवा मे उठ गये थे और उसकी

चूत और गंद का छेद सॉफ दिखाई दे रहा था.

जय उसके उपर लेट गया और धीरे से उसके कान मे कहा, "अब तुम्हे

मज़ा आएगा रिया जब तुम ये नही जानती होगी कि मेरा लंड तुम्हारी

गंद मे घुसेगा की तुम्हारी चूत मे... है ना अजीब खेल"

जय की बात सुनकर रिया के बदन मे भी एक अजीब मस्ती भर गयी. वो

सोचने लगी सही मे क्या अजीब खेल है कि उसे खुद नही मालूम होगा

की लंड कौन से छेद मे आएगा.

जय ने पहले उसकी चूत और गंद के छेद को थोड़ा सहलाया फिर अपने

लंड को उसकी चूत के द्वार पर रख कर धीर धीरे अंदर घुसाने

लगा.

"उः उईईईईई" वो सिसक पड़ी.

जय ने एक धक्का मार अपने लंड को बाहर निकाल लिया, रिया सोच मे पड़

गयी कि पता नही अब ये कौन से छेद मे घुसेगा पर जय ने वापस

अपने लंड को उसकी चूत मे घुसा दिया. उसकी चूत उत्तेजना मे बह

पड़ी, दो तीन धक्कों के बाद उसने फिर अपने लंड को बाहर खींच

लिया.

जय अब उसकी चूत से बहते रस से अपने लंड को गीला कर उसकी गंद के

छेद पर अपने लंड को रगड़ता हुआ उसके छेद को गीला कर रहा था.

रिया को लगा कि अब जय अपना लंड उसकी गंद मे डालेगा लेकिन रिया की

सोच के विपरीत उसने अपन लंड एक बार फिर उसकी चूत मे पेल दिया.

"रिया मुझे यहाँ से तो दिखाई नही देगा लेकिन तुम अपनी चुचियों

से खेलो, अपने निपल को भींचो....मेने देखना चाहता हूँ तुम्हे

अपने आपसे खेलते हुए." जय ने उसकी चूत मे धक्के मारते हुए कहा.

रिया ने खिलखिलाते हुए अपने दोनो हाथ अपनी छाती के नीचे किए और

अपने दोनो निपल को उंगलियों मे ले भींचने लगी, अब वो अपनी

चुचियों को मुठ्ठी मे भर मसल रही थी.

जय अब ज़ोर के धक्के मार रहा था. बिना रुके वो ज़ोर से और अंदर ताल

डालते हुए उसे चोद रहा था. एक नई उत्तेजना रिया के शरीर मे भरती

जा रही थी, उसका बदन अकड़ रहा था.

"ओह जय चोदो मुझे ओह हाआँ ज़ोर से और जोए से.. ओह कितना

अच्छा लग रहा है... चोडओवू और चूओड़ो

पर जय था कि आज वो रिया को पागल कर देना चाहता था, एक बार फिर

उसने अपना लंड उसकी चूत से निकाल लिया. रिया की चूत से छूटे रस

और खुद के वीर्य से भीगे अपने लंड को वो एक बार फिर रिया की गंद

पर घिसने लगा. गंद मे लंड घुसाने से वो डर रहा था...... हर

बार रिया को लगता कि वो अभी घुसाएगा... एक अजीब मस्ती उसकी चूत

और गंद मे फैली हुई थी..... उसे लगा की जय अब लंड उसकी गंद मे

घुसाएगा तो जय ने एक बार फिर अपना लंड उसकी चूत मे घुसा धक्के

मारने लगा.

लंड चूत मे घुसते हुए फिर एक नई मस्ती रिया के बदन मे दौड़

गयी. जय ने अपने हाथ रिया के बदन के नीचे किए और उसके दोनो

हाथ को पीठ पर कर पकड़ लिया. उसने रिया की हाथो को ठीक किसी

घोड़े की लगाम की तरह पकड़ रखा था. जय अब ज़ोर ज़ोर से उसकी

चूत मे धक्के मारने लगा जैसे के किसी घोड़ी की सवारी कर रहा हो.

रिया ने कई बार अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश की पर हर बार जय ने

उसके हाथों को कस कर पकड़ लिया. रिया को पता नही क्यों ऐसा लग

रहा था कि उस पर चढ़ा इंसान उसका भाई नही कोई अजनबी है जो

बरसों से उसके सपने मे आ उसे इसी तरह चोद्ता था.

जय ने अपने लंड को एक बार फिर बाहर निकाला और उस बार उसकी गंद के

छेद पर रख ज़ोर लगाने लगा. रिया को लगा कि उसकी गंद फॅट

जाएगी....

'उउईईई माआआ" एक दर्द की सिसकारी उसके मुँह से निकली, उसे लगा

की उसकी गंद फ़ैलते हुए जय के लंड को जगह दे रही है. जय प्यार

से और धीरे धीरे अपने लंड को अपनी बेहन की गंद मे घुसा रहा

था. थोड़ी ही देर मे रिया को मज़ा आने लगा, उसे लगा कि लंड उसकी

गंद मे नही बल्कि उसकी चूत मे है.

आज उसे पता चला की गंद मराने मे भी उतना ही मज़ा आता है. जय

ने उसके हाथों को छोड़ दिया और उसके कुल्हों को पकड़ अब ज़ोर ज़ोर से

अपने लंड को उसकी गंद मे पेलने लगा.

'ओह जे हाआआं फाड़ दो मेरी गाअंड कूऊव ऑश क्या मज़ाअ आ

रहा हाईईइ ऑश हाँ और ज़ोर से ऑश फाड़ दो मेरी गंद आाज."

जय के शरीर मे उबाल आ रहा था और वो ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने

लगा. आख़िर उसने ज़ोर का धक्का आर अपना वीर्य अपनी बेहन की गंद मे

छोड़ दिया, जय तब तक धक्के मारता गया जब तक कि उसके अंडकोषों ने

वीर्य की एक एक बूँद ना उगल दी.

दोनो थक कर अलग हो गये....

"क्या तुम्हे कभी पिताजी की याद आती है?" जय ने रिया से पूछा.

"बहोत कम....." रिया ने साफ साफ जवाब दिया, "जय वो इंसान किसी

काम का नही है... उसे याद कर अपना समय बर्बाद मत करो."

रिया को जय पर गुस्सा आ रहा था वो सोने ही जा रही थी जय ने ये

सवाल पूछ लिया था. अब उसके जेहन मे फिर उस नमकूल इंसान की

छवि रहेगी और वो चाह कर भी सो नही सकेगी. एक अंजाने भय ने

उसके ख़यालों ने घेर लिया.... उसे याद आने लगा जब वो फिर से

अपने बाप से मिली थी..........

रिया को फिर एक बार जय पर गुस्सा आ रहा था, जिन बातों को वो याद

नही करना चाहती थी, जय ने फिर वही विषय छेड़ दिया था... उसके

बाप का. वो फिर उस दिन को याद करने लगी जिस दिन घर से जाने

के बाद पहली बार उसकी अपने बाप से मुलाकात हुई थी.

रिया उन दिनो हाइवे पर बने एक छोटे रेस्टोरेंट कम शॉपिंग स्टोर

मे काम कर रही थी.

"सोचा था कभी मुझसे यहाँ मुलाकात होगी." उसके पिता ने उसे वहाँ

देख कर पूछा .

उसके पिता ने एक फेडेड जीन्स और एक प्लैइन शर्ट पहन रखी थी. वो

उसके भरे और गदराए बदन को घूर रहा था. दुकान की गुलाबी ड्रेस

मे वो बहोत ही सुन्दर दिखाई दे रही थी. उसकी कल्पनाए उसके

ख़याल ज़ोर पकड़ने लगे जो वो रिया के बचपन से जवानी की दौर मे

देखता रहा था.

"पिताजी आप यहाँ," उसकी बढ़ी हुई दाढ़ी और मूछों के पीछे से

अपने पिता को पहचानते हुए उसने कहा.

"काफ़ी बड़ी हो गयी हो?" उसके पिता ने उसकी उभरी हुई चुचियों की ओर

देखते हुए कहा.

"आप यहाँ क्या कर रहे है?" उसने पूछा.

"आज कल में एक ट्रैलोर नुमा वॅन चला रहा हूँ, इससे मेरे रहने का

खर्चा भी बच जाता है. में जानता हूँ कि ये कोई बड़ा काम नही

है फिर भिग़ुज़ारा हो जाता है. मैने तुम्हारी लिए भी कुछ बचा

रखे है."

"मेरे लिए?" उसने चौंकते हुए पूछा.

"हां, तुम हमेशा आगे पढ़ने के लिए कहा करती थी ना." उसने

जवाब दिया, "में जानता हूँ कि में कभी अच्छा बाप नही बन पाया,

पर में तुम्हारे लिए हमेशा सोचा करता था, इसलिए मेने पैसे

बचाने शुरू कर दिए."

"क्या सच मे" रिया ने अस्चर्य से कहा, उसे लगा कि जो आज तक वो इस

इंसान के बारे मे सोचती रही वो कितना ग़लत था.

"तुम्हारी शिफ्ट कब ख़तम होगी?

"करीएब 25 मिनिट के बाद." रिया ने अपनी घड़ी देखते हुए कहा.

"ठीक है फिर तुम्हारी शिफ्ट के बाद हम कुछ बात कर सकते हैं."

उसने कहा.

25 मिनिट तक वो रिया को ग्राहको से बात करते और उनके ऑर्डर का

सामान देते देखते रहा. उसे विश्वास नही हो रहा था कि उसकी बेटी

इतनी बड़ी और सुंदर हो गयी थी. उसकी नज़रें उसका ही पीछा करती,

वो उसके बदन उसकी मसल टाँगे, भरी हुई चुचियों को ही घूरे जा

रहे था.

क्रमशः..................

raj..
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Re: दो भाई दो बहन

Unread post by raj.. » 15 Dec 2014 08:57

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गतान्क से आगे.......

रेस्टोरेंट मे आने वाले ग्राहक भी ये जानते थे कि वो रिया को कभी

पा नही सकते पर एक बड़ी टिप का ललाच दे वो उसे ज़्यादा से ज़्यादा

देर अपनी टेबल पर रोक लेते. और इस बात का फ़ायदा उठाते कभी उसकी

हाथों को तो कभी उसकी कमर को छू लेते. कुछ तो उसकी स्कर्ट के

नीचे हाथ डाल उसके चूतदों तक को सहला देते थे. एक ग्राहक ने

तो हद ही कर दी थी उसने उसे खींच कर गोद मे बिठा लिया और उसके

गालों को चूम लिया था.

ये सब देख कर आज़य रिया का पिता गरमा उठा. टेबल के नीचे पॅंट

के अंदर उसका लंड उसे तकलीफ़ देने लगा, और रिया को पाने की लालसा

उसके मन मे और जाग उठी.

रिया की ड्यूटी ख़तम हुई तो वो अपने पिता के टेबल की ओर बढ़ गयी,

उसने उसे बैठने के लिए कहा तो वो लकड़ी की बनी कुर्सी पर उसके

सामने बैठ गयी.

"में तुम्हे काम करते देख रहा था, बहोत ही आछे तरीके से काम

कर रही थी तुम." उसने कहा, "और लगता है यहाँ आने वाले सभी

कोई तुम्हे पसंद भी करते है."

"रिया अपनी आँखे घूमा सोचने लगी, "थॅंक्स, लेकिन में सुंदर तो

हूँ लेकिन अगर मेरी जगह कोई भी लड़की ऐसी यूनिफॉर्म मे काम करेगी

तो वो लोग उसे पसंद करेंगे."

"हो सकता है तुम सही कह रही हो. फिर भी मुझे तुम पर नाज़ है."

आज़य ने अपनी बेटी को घूरते हुए कहा.

उसकी बात सुनकर रिया मुस्कुरा दी पर वो शंकित नज़रों से अपने बाप

को देखने लगी. आज जिंदगी मे पहली बार उसने उसके लिए कोई अछी

बात कही थी, उसे डर लगने लगा कि यहाँ आने का उसका कोई और

मकसद तो नही है.

"सॉरी हम बात के विषय से हट गये," उसने कहा, "में तुम लोगों

को छोड़ कर चला गया ये सब के लिए अच्छा ही हुआ, हालत ही कुछ

ऐसे थे कि में तुम लोगों को गुड बाइ नही बोल पाया, तुम्हारी मा

ने माहॉल ही ऐसा बना दिया था घर का."

रिया को बड़ा अजीब लग रहा था कि वो इस इंसान से क्या कहे, जो एक

दिन अचानक ही उन्हे छोड़ कर गायब हो गया था और आज अचानक किसी

भूत की तरह उसके सामने आ खड़ा हो गया था.

रिया के मन मे इस इंसान के लिए कोई लगाव या अप्नत्व नही था और

जो कुछ इज़्ज़त उसके मन मे अपने बाप के लिए थी वो बरसो पहले

ख़तम हो चुकी थी. अगर उसके मन कुछ था तो वो था उसका गुस्सा और

डर जिसकी बदौलत वो घर के हर प्राणी पर हुकुम चलता था.

थोड़ी देर चुप रहने के बाद उसने अपने हाथ मे अपनी बेटी रिया का

चेहरा लिया और उसके होठों को हल्के से चूम लिया, "अपने उन्नीसवे

जनमदिन की बधाई हो. में जनता हूँ कि कुछ महीने लेट हूँ फिर

भी मुझे याद है... है ना."

उसे विश्वास नही हो रहा था कि ये बाप जिसने उसे कभी बेटी नही

समझा उसका जनमदिन भी याद रख सकता है. "थॅंक यू डॅडी."

"क्या तुमने कॉलेज जाना शुरू किया?" उसने पूछा.

"में यहाँ फुल टाइम जॉब कर रही हूँ और एक एक पैसा अपनी पढ़ाई

के लिए जमा कर रही हूँ." उसने जवाब दिया. "अगले साल में

दाखिला ले लूँगी, तब तक अच्छे पैसे जमा हो जाएँगे, यहा टिप

अच्छी मिलती है."

आज़य अपने सामने रखी कोफ़ी के सीप लेने लगा. उसने अपनी नज़रें

घूम कर रेस्टोरेंट मे बैठे ग्राहकों को देखने लगा, सभी उसकी

सुंदर बेटी को देख रहे थे. उसने अपनी नज़रें फिर रिया के सुंदर

चेहरे पर कर दी, और अपना हाथ टेबल के नीचे कर उसकी नंगी

जांघों पर रख धीरे धीरे सहलाने लगा.

एक अजीब सी सनसनी दौड़ गयी रिया के शरीर मे लेकिन उसने वो हाथ

हटाया नही, "इस बढ़ी हुई दाढ़ी मुछ मे आप कितने अलग अलग दीखते

है." जब आपने मुझे चूमा तो आपकी मुछ मुझे गढ़ रही थी."

"में इन्हे बढ़ाना नही चाहता था लेकिन अगर तुम सड़क पर हो तो

हालात मजबूर कर देते है," उसने जवाब दिया.

वो उसकी आँखों मे झाँकते हुए अपने हाथ को उपर की ओर बढ़ाता रहा

और जब उसके हाथों ने उसकी पॅंटी की एलास्टिक के अंदर हाथ डाला तो

वो उछल पड़ी, एक शीत लहर दौड़ गयी उसके शरीर मे. वो उसके

पॅंटी की एलास्टिक से खेलता रहा और उसकी मुलायम चॅम्डी को सहलाता

रहा.

दोनो एक दूसरे की आँखों मे देख रहे थे कि आज़य का हाथ उसकी

जांघों के बीच पहौन्च गया.

उसके हाथों ने जैसे उस पर कोई जादू कर दिया हो ना चाहते हुए

उसकी टाँगे अपने आप खुल गयी और उसकी उंगलियाँ उसकी चूत के किनारे

को छूने लगी.

उसे पता था कि जो रहा है वो ग़लत है, दिमाग़ के किसी कोने से

आवाज़ आ रही थी कि वो इसे रोक दे पर दिल था कि ना जाने किस भावना

मे बहा हुआ था. पिता की जुदाई कर दर्द अब भी उसके सीने मे था,

हर लड़की को अपने बाप का साथ चाहिए, और रिया को अपने बाप की

काफ़ी ज़रूरत थी.

"क्या आज भी तुम पापा की वही पुरानी रिया हो? उसने प्यार भरी आवाज़

मे पूछा.

"रिया का चेहरा खुशी से उछल पड़ा और होठों पर एक मीठी मुस्कान

आ गयी, आज वो अपने पिता के साथ थी एक इंसान के साथ, एक जानवर

के साथ नही जो वो कभी बन गया था. "हाँ डॅडी में आज भी

आपकी वही प्यारी रिया हूँ, आप कहाँ चले गये थे मुझे छोड़ कर?

"में बहोत प्यार करता हू तुमसे...." कहकर उसने रिया को अपनी ओर

खींचा और उसके होठों को एक बार फिर चूम लिया.

इस प्यार ने रिया के दिल मे एक अजीब सी खुशी भर दी थी. उसने रिया

को अपने से अलग किया, "चलो में तुम्हे अपना वॅन दिखाता हूँ,

यहीं पास मे है."

रिया के दिमाग़ ने एक बार फिर उसे आगाह किया कि अब भी समय है वो

पीछे हट जाए, पर दिल था की मानने को तैयार नही था. वो अपने

पिता के साथ रहना चाहती थी, उसके प्यार को पाना चाहती थी जिसके

लिए वो बरसों से तड़प रही थी.

आज़य ने टेबल पर बिल के पैसे छोड़े और रिया का हाथ पकड़

रेस्टोरेंट के बाहर आ गया. रिया उसके हाथो मे हाथ डाले चल रही

थी. वहाँ पर खड़ी कई ट्रक और कारों को पार करते हुए वे उसकी

वॅन के पास आ गये

आज़य ने पॅसेंजर साइड का दरवाज़ा खोला और रिया की वॅन मे चढ़ने मे

मदद करने लगा. रिया की छोटी ड्रेस उपर चढ़ते समय जब उपर

हुई तो उसकी नज़र रिया की भरे हुए चूतदों पर पड़ी और साथ ही

उसकी निगाह उसकी पॅंटी पर गयी जहाँ एक धब्बा सा बना हुआ था.

"ओह्ह्ह्ह कितना अछी तरह से डेकरेट किया हुआ अंदर से," रिया वॅन के

अंदर की सुंदरता देखते हुए बोली.

"हाँ ये मेरा घर ना होते हुए भी घर है, एक चलता फिरता घर."

उसने कहा.

थोड़ी देर वॅन का निरक्षण करने के बाद वो एक छोटे से पलंग या

दीवान की ओर बढ़ गयी. दीवारों पर कई तस्वीरे लगी हुई थी.

"डॅडी! ये तो सब मेरी तस्वीरे है," दीवारों पर टेप सी चिपकी

तस्वीरों को पहचानते हुए बोली.

"मेने तुमसे कहा था ना कि तुम मेरी प्यारी गुड़िया हो." उसने कहा.

आज़य की बातों ने जैसे उसके दिल को छू लिया था, जिस इंसान को वो

नफ़रत करती थी आज उसी के लिए उसके दिल मे प्यार उमड़ पड़ा, "सही

मे में हूँ?"

उसने एक तस्वीर की ओर इशारा किया जिसमे वो और रिया घुटनो तक पानी

मे समुद्र मे खड़े थे, लहरें उनके पावं को छू कर लौट जाती.

उसने एक बिकिनी पहन रखी थी और सूरज की चमकती धूप मे उसका

बदन चमक रहा था.

"हाँ ये उस समय की तस्वीर है जब आप हमे गोआ ले गये थे," उसने

याद करते हुए कहा, "मुझे बहोत मज़ा आया था वहाँ लेकिन पानी

कितना ठंडा था है.. ना."

"तुम उन छुट्टियों को लेकर कितनी खुश थी ना." आज़य ने उसे याद

दिलाते हुए कहा.

"आप बहोत बदल गये है?" रिया उसके मधुर जाल मे आसानी से

फस्ते हुए बोली.


raj..
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Re: दो भाई दो बहन

Unread post by raj.. » 15 Dec 2014 08:57

वो अपनी गुड़िया को देखने लगा जो दीवान पर करीब करीब लेटी थी,

पीछे की ओर सिर किए उसका मासल बदन उस गुलाबी ड्रेस मे लिपटा हुआ

था और उसकी सुडौल और लंबी टाँगे कितनी अछी लग रही थी साथ ही

उसकी भारी और कड़ी चुचियाँ.

"और तुम मेरी गुड़िया एक सुन्‍दर परी बन गयी हो." उसने कहा.

उसने झुकते हुए एक बार फिर उसके होठों को अपने होठों मे लिया और

इस बार उसके होठों कोखोलते हुए अपनी जीब उसके मुँह मे डाल दी. रिया

ने भी अपनी जीब उसकी जीब से मिला दी लेकिन इस वॅन मे अकेले मे उसे

डर लग रहा था.

उसे लगा कि एक शीत लहर ने उसके निपल को तना दिया है, लेकिन ये

उसका भ्रम था आज़य की उंगलिया उसकी गुलाबी ड्रेस के उपर से उसके

निपल को दबा रही थी. मन ही मन जितना वो उससे नफ़रत करती

शरीर की काम अग्नि उसकी हरकतों का उतना ही साथ दे रही थी. उसकी

चूत मे अजीब सी हलचल मची हुई थी जो गीली होती जा रही थी.

"ये सही नही है.. छोड़ दीजिए मुझे,"

"तुम अपने पापा से प्यार करती हो ना गुड़िया..." उसने उसे जोरों से

चूमते और उसके होठों को चूस्ते हुए कहा.

उसने उसके दाएँ हाथ को पकड़ा और उसकी मुलायम और नाज़ुक उंगलियों

को अपने तने लंड पर दबा दी. रिया ने ना चाहते हुए भी उसके लंड

को पॅंट के उपर से पकड़ लिया, वो तन रहा था. वो अपना हाथ खींच

लेना चाहती थी लेकिन उसके लंड की गर्मी ने उसके हाथो को जैसे

बाँध दिया हो. उसकी उंगलिया मन्त्र मुग्ध हो उसके लंड की लंबाई और

मोटाई मापने लगी.

रिया के मुँह से खेलने के बाद उसका जीब उसके कान की ओर बढ़ी, अपनी

सांसो की गरम भाप उसने उसके कान पर छोड़ी और फिर उसके कान की लौ

को चूमने लगी. एक अजीब खुशी उसके बदन मे दौड़ गयी.

"प्लीज़ पापा रुक जाइए ये सही नही है," रिया ने कहा चाहा लेकिन

उसकी आवाज़ गले मे घूट कर रह गयी और उसकी उंगलिया अब भी अपने

पापा के लंड से खेल रही थी.

"आराम से गुड़िया.." वो धीरे से उसके कान मे पुशफुसाया, "में भी

देखूं कि मेरी गुड़िया मेरी ग़ैरहज़री मे मुझे कितना मिस करती रही

थी."

रिया की चूत मे खुजली मचनी शुरू हो गयी थी, "मुझे डर लग

रहा है पापा."

"कुछ नही होगा, इसमे डरने की क्या बात है, तुम्हे अपने पापा पर

भरोसा है ना.." उसने कहा.

उसने अपने पॅंट की ज़िप खोल कर अपनी पॅंट ढीली कर दी. रिया की

उंगलियाँ उसकी पॅंट के अंदर पहुँची और उसके नंगे खड़े लंड पर

जाकड़ गयी. जैसे ही उसकी हथेली ने तने हुए लंड को अपनी मुठ्ठी मे

लिया उसके दिल की धड़कने तेज हो गयी. वो उसके लंड को मसल्ने लगी

और वहीं उसकी चूत गीली होने लगी.

वो अपने घुटनो के बाल हो गया और रिया के चाहेरे को पकड़ अपना लंड

उसके मुँह के आगे कर दिया. रिया को जैसे ही अहसास हुआ कि वो क्या

करने जा रहा है उसने वहाँ से उठना चाहा तो रिया के चेहरे पर

उसकी पकड़ और कस गयी.

"तुम्हे मारने पर मुझे मजबूर मत करो..." उसने गुर्राते हुए कहा,

वो जानवर वापस आ गया था.

अपने बाप के गुस्से और मार का ख़ौफ़ आज भी उसके मन मे इतना था कि

रिया ने खुद को उसके हवाले कर दिया. उसने उसके होठों को अपने लंड

पर दबाया और उसका लंड रिया की खुले और गरम मुँह मे घुसता

चला गया.

उसके वीर्य की बूंदे के स्वाद ने उसके मुँह को नमकीन सा कर दिया

था, मन मे डर पर दिल मे चाहत लेते हुए रिया उसके लंड को चूसने

लगी.

"ऑश गुड़िया तुम्हारा मुँह मेरे लंड पर कितना अच्छा लग रहा है..."

वो खुशी मे सिसक पड़ा.

वो उसके सिर को पकड़े उसके सिर को अपने लंड पर उपर नीचे करने

लगा. कभी तो वह अपने लंड को उसके गले तक धकेल देता. रिया अब

मन लगाकर जोरों से उसके लंड को चूस रही थी.

"मुझे उमीद नही थी कि इस जनम मे तुमसे दुबारा मुलाकात होगी, ये

तो हमारा नसीब था कि हम टकरा गये," उसने झूट बोला, "हमे तो

मिलना ही था गुड़िया."

उसका एक हाथ उसके सिर पर से खिसक कर उसकी गर्दन पर आ गया और

उसकी गुलाबी ड्रेस की ज़िप को पीछे से नीचे तक खींचता चला

गया. रिया ने महसूस किया कि उसकी ड्रेस कुछ ढीली पड़ गयी है.

रिया उसके लंड को चूस रही थी और उसने आगे से उसकी ड्रेस को

नीचे करते हुए उसके भरी चुचियों को नंगा कर दिया. अब वो उन

चुचियों को अपने हाथों मे ले मसल्ने लगा, भींचने लगा.

"पापा की प्यारी गुड़िया अब काफ़ी बड़ी हो गयी है.." उसने कामुक भरी

आवाज़ मे कहा.

उसने अपने लंड को रिया के मुँह से निकाला और उसे थोड़ा धक्का देते

हुए पलंग पर चित लीटा दिया और खुद उसके बगल मे लेट गया.

आज़य रिया की आँखों मे झाँकने लगा जहाँ उसे डर के साथ चाहत

भी नज़र आई. वो मुस्कुराते हुए उसकी ओर बढ़ा और अपने होंठ उसके

होठों पर रख अपनी जीब उसके मुँह मे डाल दी. रिया पहले तो घबराई

लेकिन चाहत डर पर हावी हो गयी और उसने अपनी जीब उस जीब से मिला

दी और जोरों से उसकी जीब को चूसने लगी. वो उसकी खड़ी चुचियों

को मसल्ने लगा और रिया के मुँह से मादक सिसकारियाँ फूटने लगी.

"तुम्हारा शरीर कितना अछा लग रहा है," आज़य ने उससे कहा.

उत्तेजना अपने चरम सीमा पर थी. रिया उसे पाना चाहती थी, उसके

नाज़ुक हाथ उसके खड़े लंड पर जाकड़ गये और वो उसे ज़ोर से मसल्ने

लगी. चूत मे उठती गर्मी और खुजली से वो परेशान हो रही थी,

उससे रहा नही जा रहा था.

"ओह पापा मुझे चूओदिए प्लीज़ अब नही सहा जाताअ ओह पापा

अपना खड़ा लंड मेरी चूत मे डाल कर मुझे प्यार कीजिए पापा..." वो

सिसक पड़ी.

आज़य खुद पर मुस्करा पड़ा, उसे शुरू से ही पता था कि वो आज इसे पा

के रहेगा. उसकी हाथ उसकी चुचियों से खिसकते हुए नीचे की ओर

बढ़े, पहले तो उसने उसकी गुलाबी ड्रेस के उपर से उसके पेट को

सहलाया फिर अपने होठों से चूमने लगा.

फिर नीचे खिसकते हुए वो उसकी टाँगो के बीच आ गया. उसकी ड्रेस

को उसकी कमर तक उपर कर वो उसकी नंगी जांघों को चूमने लगा.

अपनी जीब से चाटने लगा, फिर अपनी हथेली उसकी गीली हुई पॅंटी के

उपर से उसकी चूत के उपर रख दी.

फिर चूत को मसल्ते हुए वो अपनी जीब पॅंटी के साइड से उसकी चूत

के किनारों पर फिराने लगा, रिया की सिसकिया तेज हो गयी. काम अग्नि

की ज्वाला उसके शरीर मे तांडव मचाने लगी. उसने अपनी टाँगे आपस

मे जोड़ी और आज़य ने उसकी पॅंटी नीचे खिसका दी. रिया ने पॅंटी को

अपने पैरों मे फँसा निकाल डी और दूर उछाल कर फैंक दी.

एक बार फिर उसने अपनी टाँगे फैला दी और आज़य का चेहरा उसकी टाँगो के

बीच आ गया. उसने अपना मुँह उसकी चूत पर रखा और उससे छूटते

शहद को पीने लगा, वो जोरों से उसकी चूत को चूस रहा था.

आज़य की जीब ने तो जैसे उसकी अग्नि को और भड़का दिया, "ओ डेडडी

हां चूसो ऐसे ही चूवसो और ज़ोर से चूसो ऑश हाआना काअतो

मेरी चूओत को ऑश."

रिया ने दोनो हाथों से उसके सिर को पकड़ा और अपनी टाँगे उसकी गर्दन

मे फँसा अपनी चूत उपर को उठाते हुए उसके मुँह को अपनी चूत

पर और दबा दिया.

"हाआँ पाप चूवसिए अपनी इस गुड़िया की चूत को ऑश हाआँ और

चूवसिए. ऑश हाआँ मेरा छूटने वाला है..हां आरू ज़ोर से

चूसिए."

सिसकते हुए उसने अपनी टाँगे और कस दी, तभी जैसे ज्वालामुखी फट

पड़ा हो उस तरह उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया. चूत की अग्नि शांत तो

हो गयी लेकिन बुझी नही थी.

आज़य एक बार फिर घुटनो के बल हुआ और उसने अपनी शर्ट उतार दी फिर

अपनी पॅंट के बकल खोले और बैठ गया, उसकी बेटी ने उसकी पॅंट को

उसकी टाँगो से अलग कर दिया. अब रिया पीछ को हो लेट गयी और अपनी

टाँगे फैला दी.

आज़य उसकी टाँगो के बीच आ गया और अपने लंड को पकड़ उसकी चूत

के मुँह पर रख दिया. फिर धक्का देते हुए उसने अपने लंड को अंदर

घुसा दिया. रिया ने भी अपनी कमर को उपर उठा उसके लंड को अपनी

चूत को जड़ तक ले लिया.

आज़य अब उसकी चुचियों को पकड़ ज़ोर ज़ोर के धक्के मार रहा था.

रिया ने अपनी टाँगे उसकी कमर मे लपेट ली और नीचे से कमर उछाल

उसके हर धक्के का जवाब दे रही थी.

'ओह पापा चूडिए अपनी गुड़िया को ऑश हाआँ और ज़ोर से पापा ऑश

हाआँ और ज़ोर से." वो सिसक रही थी और वो धक्के मार रहा था.

'हां गुड़िया ले ले मेरे लंड को आं अपनी चूत मे जाकड़ ले इसे अपनी

चूत मे हाआना ले और लीयी"

फिर आज़य ने करवट बदली और रिया को अपने उपर ले लिया. उसके

चूतदों को नीचे से पकड़ वो अपनी कमर उठा लंड को अंदर

घुसाने लगा. रिया ने अपनी टाँगो को उसकी इर्द गिर्द ठीक से रखा और

फिर उछल उछल कर वो धक्के लगाने लगी. वो उपर उठती और ज़ोर से

नीचे बैठते हुए उसके लंड को अपनी चूत की जड़ तक ले लेती.

क्रमशः..................


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