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गतांक से आगे...........................
रत्ना: दीदी !!! तुम भी सुरेश.......ये क्या कह रही हो...
भाभी : क्या मतलब...
रत्ना: तुम भी सुरेश के साथ..
भाभी : हट...बदतमीज़...वो मेरा देवर है मैं उसके साथ...तुमने सोचा भी कैसे
रत्ना: अभी तुमने ही तो कहा कि "वो जाने से पहले लेना न्ही भूलता"
भाभी: उउई माआ..... मैं तो आशीर्वाद की बात कर रही थी और तुमने क्या सोच लिया हाए राम.....
रत्ना: ओफफफफफफफफफ्फ़ नही भी
भाभी : क्या रत्ना तुमने तो मेरी...है अब एसी बात ना क्रोन्ी तो अभी जाना पड़ेगा
रत्ना: भाभी तुम भी ..बहुत ज़्यादा करती हो.. तुम्हे थकान न्ही होती..
भाभी: थकान ..कैसी थकान और फिर इसमे थकान कैसी... इसमे तो मज़ा आता है लेकिन जब खुशी से हो और अपनी चाय्स के साथ हो...
रत्ना: सच कह रही हो...दीदी एक बात पूछु...
भाभी : हाँ पूच्छ
रत्ना: अप नाराज़ तो न्ही होंगी
भाभी : क्यों क्या पूछने वाली हो तुम..
रत्ना: बस कुछ प्राइवेट...
भाभी: ये ही कि अब्ब दर्द हो रहा है कि नही...
रत्ना: न्ही दीदी कुछ टाइम पास करना चाहती हूँ इसलिए पूछा
भाभी : हाँ पूछ
रत्ना: आप लखनऊ के किस कॉलेज मैं थी,,
भाभी: कॉलेज !!!!!!!! मैं तो कॉलेज गई ही न्ही मेरे भाई मुझे कॉलेज न्ही जाने देते थे...कहते बहुत होगयि पड़ाई लिखाई
रत्ना: तो स्कूल के बाद घर .....
भाभी: हाँ
रत्ना: तो स्कूल मैं कोई बॉय फ्रेंड तो होगा ही आपका
भाभी : न्ही री मेरी एसी किस्मत कहा , मैने तो अपने वो दिन अकेले ही बिताए..
रत्ना: क्या स्कूल मैं अभी अप किसी को पसंद न्ही करती थी
भाभी :हाँ करती थी मेरी क्लास फेलो रीमा को ..
रत्ना: तो आपके साथ भाई साहब को पूरा मज़ा आया होगा पहली रात को
भाभी: क्या कहना चाहती हो तुम..और इतना एरॉटिक बातें क्यों कर रही तो आज...
रत्ना: मुझे क्या पता उन्हे मज़ा आया या न्ही लेकिन मेरी बात है तो मुझे तो पूरा मज़ा आया था..
रत्ना: अरे ये बाद मैं पहले ये ब्ताओ की कॉलेज मैं कोई लड़का न्ही पसंद आया था
भाभी: अरे बाबा कैसे आता मेरा कलाज "गर्ल्स ओन्ली" था ..मैं कलाज मैं कोई मर्द न्ही था सब फीमेल थी ..
रत्ना: अच्छा...........तो फिर पहली रात मैं तो तुम्हे बहुत दिक्कत हुई होगी
भाभी: हाँ हुई थी
रत्ना: स्टार्ट किसने किया था भाई साहब ने या तुमने
भाभी: तुम और सुरेश मैं किसने किया था
रत्ना: पहले क्वेस्चन मैने किया है ..........
भाभी: इन्होने.....
रत्ना: पहले क्या किया........
भाभी: छ्चोड़ ना ...बेकार मैं मूड बन जाएगा और ये थके थके है अभी
रत्ना: प्लीज़ दीदी बोलोना मज़ा आ रहा है अब्ब थोड़ा गर्मी बढ़ रही है
भाभी: हम शादी करके आए मैं तो बहुत थॅकी थी .लेकिन इन रस्मो ने मुझे बहुत थका दिया था इसलिए सब रस्मे निपटने के बाद अपपनी ननद जी मुझे एक रूम मैं बिठा कर चली गई पूरा रूम बहुत भरा हुआ था सारे सामानो से .. मुश्किल से बैठने भर की जगह हो पा रही थी.. मैं बैठते ही सो गई तुरंत ..कब रात हो गई पता ही न्ही चला रात करीब 10...न्ही 10.30 हो रहे होंगे तब ये आए और बोले तुमने कुछ खाया या न्ही..मैने कहा हाँ खा लिया .......................
ये कैसा परिवार !!!!!!!!!
Re: ये कैसा परिवार !!!!!!!!!
फिर ये बोले मिल ली सब से . मैने कहा अभी कहा मूह दिखाई तो कल होगी
रमेश: अच्छा ..तो आज मेरा कोई चान्स है मेरा
मैं : जी..............आपका चान्स
रमेश : हाँ भाई हमने भी तो कई साल से आज के दिन का इंतज़ार किया था जब मैं मेरी दुल्हन का घूँघट उठाउँगा
मैं शांत रही क्योंकि मैं बोलती भी तो क्या बोलती...पहली बात तो किसी मर्द के पास बैठी थी
रमेश: लगता है कि तुम बहुत शर्मा रही हो..
मैं : जी...........
फिर रमेश ने मेरे घूँघट को उठाने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया कि किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया वो रूबी थी अपपने चंडीगढ़ वाले मामा की बेटी ..ये बोले कोन है तो रूबी ने कहा हम मैं भैया रूबी..
हाँ रूबी ब्ताओ क्या है तो रूबी ने कहा क्या आप भाभी को रिज़र्व करके बैठ गये हमे भी भाभी से बात करने दो...
रत्ना: अरे क्या दीदी छ्चोड़ो ये सब... काम की बातें ब्ताओ केवल...
भाभी : बदी उतावली हो रही है जैसे तू तो कुँवारी ही है अभी तक तुमने तो करवाया न्ही होगा
रत्ना: मैने कब कहा कि मैं कुँवारी हूँ और शादी शुदा कुँवारी कैसे रह सकती है...और आदमी सुरेश जैसा हो तो फिर कहने ही क्या
भाभी: हाँ तो फिर दिन भर मशीन चलती है
रत्ना: तेल पानी का टाइम भी न्ही देते...बहुत ठोकू है ये
भाभी: है तो सब एक ही बाप की औलाद
रत्ना: यानी की तुम भी दिनभर
भाभी: अब न्ही बिटिया के होने के बाद से थोड़ा कम किया है न्ही तो ये तो दिन दिन भर बाहर न्ही निकलने देते थे मुझे
रत्ना: हइई.... कैसे भाभी प्लीज़ बताओ...कैसे करते थे....
भाभी: क्या मतलब...कैसे करते थे
रत्ना: क्या वो गंदी शन्दि बातें भी करते है करने के टाइम
भाभी: न्ही करते वक़्त बिल्कुल चुप रहते है
रत्ना: क्या भैया का कही और भी कोई चक्कर है
भाभी: मुझे न्ही लगता ..वो तो मेरे मैं ही जूते रहते है इनके पास फ़ुर्सत कहा है
रत्ना: अक्चा पीछे से भी करवाती होगी तब तो
भाभी: पीछे से.......वो भी कोई जगह है...करवाने की
रत्ना: और क्या मैं तो बहुत मना करती हूँ लेकिन ये कभी न्ही मानते
भाभी : हाए राम...................पीछे से कैसे होता होगा..
रत्ना :आज ट्राइ कर लेना
भाभी: धत्त्त...............
इतने मैं खाना बन कर तैयार हो जाता है . और भाभी खाना लगाने के बाद किचन की सफ़ाई मैं जुट जाती है रत्ना बाहर आकर टेबल पर पानी व्गारह लगाने लगती है सुरेश की पीठ रत्ना की तरफ थी और रत्ना के बिल्कुल सामने रमेश बैठे थे रत्ना ने जानबूझ कर अपपना पल्लू नीचे गिरा लिया ताकि उसके उरजो के दर्शन रमेश को हो जाए और वो उसकी तरफ आकर्षित हो जाए. पानी रखते समय एक बार रत्ना इतना झुकी कि उसकी पूरी ब्रा दिखने लगी लेकिन रमेश ने उधर देखना भी गंवारा न्ही किया पानी लगा कर वो किचन मैं फिर चली गई और भाभी के साथ आई
फिर सब लोग एक साथ खाना खाने बैठ गये.... और खाना खाकर वो दो नो अपपने रूम मैं चले गये सोने के ल्लिइईईई............
भैया भाभी अपपने कमरे मैं सो चुके थे ... सुरेश भी आज दिन मैं ही 2 बार करके कोटा पूरा कर चुका था इसलिए वो भी सो गया था लेकिन नींद रत्ना की आँखो से कोसो दूर थी ..रत्ना के कान बराबर वाले कमरे पर लगे थे कि वाहा क्या हो रहा है लेकिन कोई आहट ना मिलने से वो बहुत खुश नज़र आ रही थी ..10 मिनूट तक छत पर ल्गे पंखे को देखते देखते जब उसकी आँखे तक गई तो बेड से दबे पाँव उठी और दरवाज़ा खोलकर बाथरूम गई वाहा अपनी मूतने की मधुर आवाज़ के साथ उसने पेशाब करना सुरू किया और इस तरह से बैठ गई कि जैसे अभी सुरेश पीछे से आकर उसे पकड़ लेगा और एक बार फिर से मस्ती का खेल स्टार्ट हो जाएगा लेकिन उसका सोचना केवल सोचने तक ही सीमित रहा करीब 10 मिनूट उसी पोज़िशन मैं बैठे रहने के बाद भी सुरेश न्ही आया थोड़ी देर के लिए रत्ना को आश्चर्य हुआ कि आज सुरेश आया क्यों न्ही आज तक एसा न्ही हुआ था कि सुरेश घर पर हो और वो बाथरूम से अकेले ही बाहर निकली हो हालाँकि वो गई तो हमेशा अकेले थी लेकिन आती डबल होकर थी यानी सुरेश के साथ .. लेकिन आज उसे अपपनी "सीटी"[पेशाब के समय निकलने वाली आवाज़] बहुत बुरी लगी थी और उसे बहुत बुरा लग रहा था आज रमेश को देखकर उसकी भावनाए मचल गई थी ..सुरेश उसके लिए मौज़ूद था लेकिन आज उसका दिल सुरेश के लिए तैयार न्ही था लेकिन रमेश के लिए वो तैयार न्ही थी क्योंकि रमेश ने उसे कभी भाव ही न्ही दिया था वो बाथरूम से उठी और बाहर निकली और अपपने कमरे की तरफ बढ़ चली लेकिन रूम खोलने से पहले ही उसके दिल ने उसको अपपने रूम का दरवाज़ा खोलने से मना कर दिया और वो पलट कर भाभी के रूम की तरफ चली गई .रूम अंदर से बंद था और कोई आवाज़ भी न्ही आ रही थी
Re: ये कैसा परिवार !!!!!!!!!
बहुत ही मस्त कहानी है दोस्त