नौकरी हो तो ऐसी

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The Romantic
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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 21 Dec 2014 17:23


थोड़ी ही देर मे पूजा ख़तम हुई और सब लोग बाहर निकलने लगे मैं भी बाहर आके खड़ा हो गया, मैं जिस महिला से चिपक रहा था और जिस से संभोग करने की इच्छा कर रहा था वो मेरे सामने से गुजर रही थी, वो अपने पति के साथ आई थी, उसने अपने पति से कुछ कहा और उसका पति बाहर जाके खड़ा हो गया, अभी लगभग सभी लोग चले गये थे, बरामदे मे बस 3-4 पुरुष और 5-6 महिलाए खड़ी थी, जो कि निकलने की तैय्यारि मे थी, रात के लगभग 8 बज रहे थे.

मैं एक पलंग पे जाके बैठ गया, और वो महिला दरवाजे पे खड़ी थी, थोड़ी देर बाद मुझे वो कुछ तो इशारा देने लगी, परंतु मेरे कुछ समझ मे नही आ रहा था, लंबे समय के इशारो के बाद मुझे पता चला कि ये मुझे अपने पीछे आने के लिए कह रही है, मैं तुरंत खड़ा हुवा और सबकी नज़रे चुराते हुए बंगले पीछे आके उसके पीछे चलने लगा, सेठ जी के बंगले के पीछे बहुत बड़ा बगीचा है. यह मैने सबेरे सुना था, अभी अपनी आँखोसे देख रहा था, चारो और अंधेरा ही अंधेरा था, बड़े बड़े वृक्ष थे, फुलो की महेक हवा को सुगंधित कर रही थी, परंतु बंगले मे की गयी थोड़ी बहुत रोशनाई के कारण मैं उस लाल सारी वाली महिला को देख पा रहा था.

मैं उसके पीछे 3-4 मिनट तक चला और फिर वो रुक गयी, और एक छोटिसी दीवार के पीछे चली गयी, मैं भी उसके पीछे गया, जैसे ही मैं उस दीवार के पीछे पहुचा उसने मुझे हाथ देते हुए अपनी ओर खिचा, और हसणे लग गयी, और मुझसे चिपक गयी, 3-4 मिनट. चलने के कारण उसकी सासे थोड़ी तेज़ चल रही थी. उस दीवार के सामने एक छोटा सा रास्ता था, जिससे हम आए थे, दीवार के पीछे थोड़ा सा उजाला नज़र आ रहा था, क्यू कि उसके बगल मे ही एक बिजली का खंबा था और उसपे एक मिन्मिनि सी लाइट जल रही थी, नीचे हरी घास पाँव को छू जा रही थी, बहुत ही सुहाना मौसम था, अंग- अंग मे रोमांच उठ रहा था, हरी घास पे पड़ी पानी की छोटी छोटी निर्मल बूंदे पाव को छूकर गुदगुदी कर रही थी, आकाश मे चाँद नज़र आ रहा था, जैसे वो हमारी प्रणयक्रीड़ा देखने आया हो.

सामने लाल सारी वाली महिला जिसके बारे मे सोच सोच के मैं रोमांचित हो गया था, खड़ी थी, मेरी बाहो मे आने के लिए तरस रही थी. उसने मेरी पॅंट का ज़िप खोलते हुए मेरे लंड को बाहर निकाला, और क्षण की भी देरी ना करते हुए उसे मूह मे लेके चूसने लगी, और उसपे अपनी थूक जड़ने लगी, ठंडी हवाए शरीर को छू जा रही थी, अंग पे रोमांच उठ रहा था, अब इस मदमस्त हसीना के कारण शरीर तप्त और गर्म होने लगा था, मेरा हथौड़ा फिरसे अपने पूर्व स्वरूप मे आ गया था और उस महिला के मूह मे डुबकिया लगते हुए रस्क्रीड़ा का आनंद ले रहा था.

मैं बहुत ही गरम हो गया था अब मुझे सिर्फ़ उसकी चूत दिखाई दे रही थी, मैने उसे खड़ा किया और दूसरे हाथ से उसकी सारी खिचनी शुरू की वो बोली "सारी मत निकालो, कोई आएगा तो हम क्या बताएँगे जी " मैं बोला "यहा कोई नही आनेवाला …" और उसके ब्लाउस के बटन खोल दिए, अब उसकी वो सुंदर, मदमस्त और गोल गोल चुचिया मेरे सामने थी जिन्हे देखने के लिए मैं पागल हुआ जा रहा था, मैने उसके दाए निपल को मूह मे लिया और उसपे थोडा ठूकते हुए चूसने लगा उसके मूह से आहह आआआआआहह की आवाज़े निकालने लगी, जल्द ही मैने उसकी पॅंटी खोल दी, और उसकी मदमस्त चिड़िया मेरे सामने आ गयी.

मैने उसकी सीता का दर्शन लिया और अपनी उंगली उसमे घुसा दी, उंगली पल भर मे ही बहुत गीली हो गयी, मैने उंगली निकाल के फिरसे उसके मूह मे डाल दी, क्या अजीब और अविस्मरणीय नज़ारा था, मैने दो तीन उंगलिया उसकी चूत मे डाल दी और उंगलिया निकाल के उसके मूह मे डालने लगा, उसकी चूत की महेक से वातावरण मोहित हो गया था, और मुझे उसे चोदने की बहुत ही तीव्र इच्छा हो रही थी.
मैने उसे घोड़ी की तरह खड़ा किया, और निशाना लगाते हुए अपना लंड उसकी चूत के होल पे रखा, ज़्यादा प्रकाश ना होने के कारण कुछ ठीक से दिखाई नही दे रहा था, मैने लंड पे थोड़ी थूक डाल दी, और लंड को चूत के होल से आगे बढ़ा दिया, और ज़ोर का झटका देते हुए चूत के अंदर प्रवेश करवा दिया, आग जैसे मानो शरीर पे गिरती हो, और कोई चिल्लाता है उस तरह वो महिला मेरा लंड अंदर जाते ही चिल्लाई, मैने उसे अपने पुश्ता बाहो मे अच्छे से जाकड़ रखा था इसलिए वो हिल नही पायी, परंतु उसके मूह से निकली आवाज़ से मैं डर सा गया था.

The Romantic
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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 21 Dec 2014 17:24


मैने उसकी नीचे गिरी हुई पॅंटी को उठाया और उसके मूह मे घुसेड दिया, और अपने लंड को फिरसे निशाने पे लगाते हुए, ज़ोर्से झटके मारना शुरू किया शुरुआत के 5 मिनट मे ही वो महिला 2 बार झाड़ चुकी थी.

मैं अब नीचे बैठ गया, और उसे मेरे तरफ मूह करते हुए अपने लंड के उपर बैठने की आग्या दी, वो लंड के उपर जैसे ही बैठने लगी, लंड अंदर अंदर जाने लगा, वैसे ही वो चिल्लाने लगी, मैने उसके हाथ पकड़ लिए और उसे पूरी तरह अपने लंड पे बिठा दिया, पूरा 10 इंच का लंड अंदर जाने की बजह से उसके पेट अक्स रहा था जो कि मैं देख पा रहा था और उसे सहना उस महिला के लिए बहुत कठिन हो रहा था, अभी मैं नीचेसे जोर्के धक्के देना शुरू हो गया, और उसे पूरी तरह घायल कर दिया, वो फिरसे झड़ी, मैने उसे तुरंत नीचे घास पे गिराया और उसपे सवार होते हुए कुछ ऐसे ज़ोर्से धक्के मारने लगा कि उसको नानी याद आ गयी, अब मुझसे रहा नही गया, और तेज़ धक्को के बजह से उसके अंदर मेरा वीर्यपात हो गया, मैं उसके शरीर से पूरी तरह चिपक गया, अभी मेरा लंड उसके चूत मे फुव्वारे मारे ही जा रहा था, थोड़ी देर मे वो थोड़ा शांत हो गया, मैने उसे बाहर ना निकलते हुए उस महिला की चूत के अंदर रखते हुए, उसे पूरी तरह अपने बाहो मे जाकड़ के उससे चिपक गया, वो भी मेरे सर के चुम्मे लेने लगी.

दरवाजे पे कोई ठोक रहा था "बाबूजी …..अरे वो बाबूजी नींद से जागीए नीचे सेठ जी आपको बुला रहे है" ये शब्द कान पे पड़ते ही मैं जाग उठा और मुझे याद आया, वो नाश्ता, वो आरती,पूजा, वो लाल सारी वाली महिला…..ओह भगवान तो यह सब महेज एक सपना था. दोस्तो गाँव मे आकर मैने क्या क्या गुल खिलाए ये सारी बाते बताउन्गा दोस्तो कैसी लगी ये कहानी ज़रूर बताना

Jemsbond
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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by Jemsbond » 21 Dec 2014 17:25

nice. waiting for more....

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