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अब आगे....
भाभी: सिर्फ बात ही करोगे ना ???
भाभी की इस बात में छिपी शरारत को मैं भांप गया था!!!
मैं: मुझे सिर्फ आपसे बात करनी है और कुछ नहीं ....
माँ ने मुझे छत पे सोने के लिए कहा पर मैंने मन कर दिया की मुझे बहुत जोर से नींद आ रही है| उन्हें संतुष्टि दिलाने के लिए आज मैंने भोजन के उपरांत टहला भी नहीं और सीधे चारपाई पे गिरते ही सो गया|
सभी औरतें छापर के तले लेट गईं और अब मैं बेसब्री से इन्तेजार करने लगा की कब भाभी मुझे उठाने आएँगी|
सच कहूँ तो मन में अजीब सी फीलिंग्स जाग रही थी.. एक अजब सी बेचैनी... मैं बस करवटें बदल रहा था और ये नहीं जानता था की भाभी मुझे अपने घर के दरवाजे पे खड़ी करवटें बदलते देख रही थी| वो मेरे सिराहने आईं और नीचे बैठ के मेरे कानों में खुस-फुसाई:
भाभी: मानु चलो.... बात करते हैं|
मैं चौंकते हुए उन्हें देखने लगा और उनके पीछे-पीछे घर की और चल पड़ा| अंदर पहुँच भाभी दरवाजा बंद काने लगीं तो मैंने उन्हें रोक दिया:
मैं: भौजी प्लीज दरवाजा बंद मत करो.... मैं आपसे सिर्फ और सिर्फ बात करने आया हूँ|
भाभी: मानु मैं तुम्हारी बैचनी समझ सकती हूँ… पूछो क्या पूछना है?
अंदर दो चारपाइयां बिछी थीं, एक पे नेहा सो रही थी और दूसरी भाभी की चारपाई थी| मैं भाभी वाली चारपाई पे बैठ गया और भाभी नेहा की चारपाई पे|
मैं: मुझे जानना है की आखिर क्यों आपने मुझे अपने पति होने का दर्जा दिया? ऐसी कौन सी बात है जो आप मुझसे छुपा रहे हो?
भाभी: मानु आज मैं तुम्हें अपनी सारी कहानी सुनाती हूँ :
"हमारी शादी होने के बाद से ही तुम्हारे भैया और मेरे बीच में कुछ भी ठीक नहीं हो रहा था| सुहागरात में तो उन्होंने इतनी पी हुई थी की उन्हें होश ही नहीं था की उनके सामने कौन है? उस रात मुझे पता चला की तुम्हारे भैया की नियत मेरी छोटी बहन पर पहले से ही बिगड़ी हुई थी... उन्होंने मेरी बहन के साथ सम्भोग भी किया है!"
मैं: ये आप क्या कह रहे हो?
भाभी: सुहागरात को वो नशे में धुत थे की जब वो मेरे साथ वो सब कर रहे थे तब उनके मुख से मेरी बहन सोनी का नाम निकल रहा था| अपनी बहन का नाम सुनके मेरे तो पाँव टेल जमीन ही सरक गई| मैं तुम्हारे भैया को इस अपराध के लिए कभी माफ़ नहीं कर सकती.. उन्होंने मेरे साथ जो धोका किया...
इतना कहते हुए भाभी फूट-फूट के रोने लगीं| मुझसे भाभी का रोना बर्दाश्त नहीं हुआ और मैं उठ के उनके पास जाके बैठ गया और उन्हें चुप करने लगा| भाभी ने सुबकते हुए अपनी बात जारी रखी....
भाभी: मानु तुम्हारे भैया ना मुझसे और ना ही नेहा से प्यार करते हैं| उन्हें तो लड़का चाहिए था और जब नेहा पैदा हुई तो उन्होंने अपना सर पीट लिया था| और सिर्फ वो ही नहीं .. घर का हर कोई मुझसे उम्मीद करता है की मैं लड़का पैदा करूँ| तुम ही बताओ इसमें मेरा क्या कसूर है?
मैंने भाभी को अपनी बाँहों में भर लिया... मुझे उनकी दुखभरी कहानी सुन अंदर ही अंदर हमारे इस सामाजिक मानसिकता पे क्रोध आने लगा| पर मैंने भाभी के समक्ष अपना क्रोध जाहिर नहीं किया ... बस धीरे-धीरे उनके कंधे को रगड़ने लगा ताकि भाभी शांत हो जाये|
भाभी को सांत्वना देते-देते मैं उनकी तरफ खींचता जा रहा था .. भाभी ने अपना मुख मेरे सीने में छुपा लिया और उनकी गरम-गरमा सांसें मेरे तन-बदन में आग लगा चुकी थीं| पर अब भी मेरा शरीर मेरे काबू में था और मैं कोई पहल नहीं करना चाहता था, क्योंकि मेरी पहल ऐसे होती जैसे मैं उनकी मजबूरी का फायदा उठा रहा हूँ| मैं बस उन्हें सांत्वना देना चाहता था.. और कुछ नहीं| भाभी की पकड़ मेरे शरीर में तेज होने लगी.. जैसे वो मुझसे पहल की उम्मीद रख रही थी... उन्होंने मेरी और देखा ... उनकी आँखों में मुझे अपने लिए प्यार साफ़ दिखाई दे रहा था| उनके बिना बोले ही उनकी आँखें सब बयान कर रही थी.... मैं उनकी उपेक्षा समझ चूका था पर मेरा मन मुझे पहल नहीं करने दे रहा था... शायद ये मेरे मन में उनके प्रति प्यार था|
मुझे पता था की यदि मैं और थोड़ी देर वहां रुका तो मुझसे वो पाप दुबारा अवश्य हो जायेगा| इसलिए मैं उठ खड़ा हुआ और दरवाजे के ओर बढ़ा ... परन्तु भाभी ने मेरे हाथ थाम के मुझे रोक लिया... मैंने पलट के उनकी ओर देखा तो उनकी आँखें फिर नम हो चलीं थी| मैं भाभी के नजदीक आया ओर अपने घटनों पे बैठ गया...
मैं: भौजी ... प्लीज !!!
प्लीज सुनते ही भाभी की आँखों से आंसूं छलक आये....
भाभी: मानु .. तुम भी मुझे अकेला छोड़ के जा रहे हो?
ये सुनते ही मेरे सब्र का बांध टूट गया… मैंने उन्हें अपने सीने से लगा लिया|
मैं: नहीं भौजी... मैं आपके बिना नहीं जी सकता| बस मैं अपने आप को ये सब करने से रोकना चाहता था| पर अगर आपको इस सब से ही ख़ुशी मिलती है तो मैं आपकी ख़ुशी के लिए सब कुछ करूँगा|
मैं फिर से खड़ा हुआ और जल्दी से दरवाजा बंद किया और कड़ी लगा दी| मैं भाभी के पास लौटा और उन्हें उठा के उनकी चारपाई पर लेटा दिया| भाभी ने अपनी बाहें मेरे गले में दाल दी थीं और मुझे छोड़ ही नहीं रही थी.. उन्हें लगा की कहीं मैं फिर से उन्हें छोड़ के चला ना जाऊँ|
मुझे डर था की अगर मैंने कुछ शुरू किया और किसी ने फिर से रंग में भांग दाल दिया तो हम दोनों का मन ख़राब हो जायेगा इसलिए मैंने भाभी से स्वयं पूछा :
मैं: भाभी आज तो कोई नहीं पानी डालेगा ना?
भाभी: नहीं मानु... तुम्हारे अजय भैया भी छत पे सोये हैं|
मैं: आपका मतलब.. छत पे आज पिताजी, अशोक भैया और अजय भैया सो रहे हैं| आज तो किस्मत बहुत मेहरबान है!!!
भाभी: मेरी किस्मत को नजर मत लगाओ !!!
ये बात तो तय थी की आज अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा नहीं होगा... मतलब आज सब कुछ अचानक मेरे पक्ष में था| मेरे मन में एक ख्याल आया ... क्यों न मैं भाभी को वो सुख दूँ जिसके लिए वो तड़प रही हैं| मैंने भाभी से कहा कुछ नहीं बस उनके होंठों को धीरे से चुम लिया... और मैंने दूर हटना चाहा पर भाभी की बाहें जो मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द थीं उन्होंने मुझे दूर नहीं जाने दिया| मैं भाभी के ऊपर फिर से झुक गया और उनके होंठों को अपने होंटों की गिरफ्त में ले लिया... सबसे पहला आक्रमण भाभी ने किया... उन्होंने मेरे होंठों का रास पान करना शुरू कर दिया और मेरी गर्दन पर अपनी पकड़ और मजबूत कर दी| भाभी का ये आक्रमण करीब पांच मिनट चला... अब मुझे भी अपनी प्रतिक्रिया देनी थी.. की कहीं भाभी को बुरा न लगे| मैंने भाभी के गुलाबी होंठों को अपने दांतों टेल दबा लिया और उन्होंने चूसने लगा... मैंने अपनी जीभ भाभी के मुख में दाखिल करा दी और उनके मुख की गहराई को नापने लगा| रात की रानी की खुशबु कमरे को महका रही थी... और भाभी और मैं दोनों बहक ने लगे थे पर मेरे मन में आये उस ख्याल ने मुझे रोक लिया|
अब मुझे असहज (अनकम्फ़ोर्टब्ले) महसूस हो रहा था... क्योंकि इतनी देर झुके रहने से पीठ में दर्द होने लगा था|मैंने अपनी कमर सीढ़ी की और भाभी के ऊपर आ गया .. उनके माथे को चूमा .... फिर उनकी नाक से अपनी नाक रगड़ी.... उनके दायें गाल को अपने मुख में भर के चूसा और अपने दाँतों के निशान छोड़े.. फिर उनके बाएं गाल को चूसा और उसपे भी अपने दांतों के निशान छोड़े... और धीरे-धीरे नीचे बढ़ने लगा|
उनकी योनि के पास आके रुक गया... और फिर धीरे-धीरे उनकी साडी ऊपर करने लगा| मुझे इस बात की तसल्ली थी की आज हमें कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा …मुझे ये जान के बिलकुल भी आस्चर्य नहीं हुआ की आज भी भाभी ने पैंटी नहीं पहनी थी| मैंने भाभी के योनि द्वार को चूमा... फिर उन्हें धीरे से अपने होंठों से रगड़ ने लगा| भाभी किसी मछली की तरह मचलने लगीं... मैंने उन पतले-पतले द्वारा को अपने मुख में भर लिया और चूसने लगा... अभी तक मैंने अपनी जीभ उनकी योनि में प्रवेश नहीं कराई थी और भाभी की सिस्कारियां शुरू हो चुकी थीं...
स्स्स...अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ... स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स माआआआआउउउउउउउ उम्म्म्म्म्म्म्म ....
जैसे ही मैंने अपनी जीभ की नोक से भाभी के भगनसे को छेड़ा... भाभी मस्ती में उछाल पड़ीं और अपने सर को तकिये पे इधर-उधर पटकने लगी| भाभी की प्रतिक्रिया ने मुझे चौंका दिया और मैं रूक गया... भाभी ने अपनी उखड़ी हुई सांसें थामते हुए कहा:
"मानु रुको मत.... प्लीज !!!"
मैंने रहत की सांस ली और अपने काम में जुट गया| अब मैंने अपनी जीभ भाभी के गुलाबी योनि में प्रवेश करा दी| अंदर से भाभी की योनि धा-धक रही थी.. एक बार को तो मन हुआ की जल्दी से अपना पजामा उतारूँ और अपने लंड को भाभी की योनि में प्रवेश करा दूँ ! पर फिर वाही ख्याल मन में आया और मैंने अपने आप को जैसे-तैसे कर के रोक लिया| मैंने भाभी की योनि में अपनी जीभ लपलपानी शुरू कर दी... उनकी योनि से आ रही महक मुझे मदहोश कर रही थी और साथ ही साथ प्रोत्साहन भी दे रही थी| मैंने भाभी की योनि की खुदाई शुरू कर दी थी और भाभी की सीत्कारियां तेज होने लगीं थी....
स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स म्म्म्म्म्म्म्म्म्म ह्ह्ह्ह ... अन्न्न्न्न्न्न्ह्ह्ह्ह माआआंउ....
भाभी के अंदर का लावा बहार आने को उबाल चूका था| और एक तेज चीख से भाभी झड़ गईं...
आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह .....मानु.......
भाभी का रस ऐसे बहार आया जैसे किसी ने नदी पे बना बाँध तोड़ दिया हो.... कमरे में तो पहले से ही रात रानी के फूल की खुशबु फैली हुई थी उसपे भाभी के योनि की सुगंध ने कमरे को मादक खुशबु से भर दिया और उस मादक खुशभु ने मुझे इतना बहका दिया की मैंने भाभी के रस को चाटना शुरू कर दिया| उसका स्वाद आज भी मुझे याद है... जैसे किसी ने गुलाब के फूल की पंखुड़ियों को शहद में भिगो दिया हो...
मैं सारा रस तो नहीं पी पाया पर अब भी मैं भाभी की योनि को बहार-बहार से चाट के साफ़ कर रहा था... भाभी की सांसें समान्य हो गई और उनके चेहरे पे संतुष्टि के भाव थे.. उन्हें संतुष्ट देख के मेरे मन को शान्ति प्राप्त हुई| भाभी ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया.... मैं भाभी के ऊपर था और मेरा लंड ठीक भाभी की योनि के ऊपर| बस फर्क ये था की मैंने अपने पजामे का नाड़ा नहीं खोला था इसलिए मेरा लंड तन चूका था परन्तु कैद में था|
मैं ठीक भाभी के ऊपर था ... भाभी की सांसें आगे होने वाले हमले के कारन तेज हो रहीं थीं... भाभी ने अपना हाथ मेरे लंड पे रख दिया... ये सोच के की मैं उनके साथ सम्भोग करूँगा| परन्तु वे मेरे मन में उठ रहे विचार के बारे में नहीं जानती थी| जैसे ही भाभी के हाथ ने मेरे लंड को छुआ मैंने भाभी की आँखों में देखते हुए ना में गर्दन हिला दी| भाभी मेरी इस प्रतिक्रिया से हैरान थी.. मित्रों जब कोई सामने से आपको सम्भोग के लिए प्रेरित करे तो ना करना बहुत मुश्किल होता है... परन्तु यदि आपके मन में उस व्यक्ति के प्रति आदर भाव व प्रेम है और उसकी ख़ुशी के लिए आप कुछ भी करने से पीछे नहीं हटोगे, ऐसी आपकी मानसिकता हो तो आप अपने आप पर काबू प् सकते हो अन्यथा आप सिर्फ और सिर्फ एक वासना के प्यासे जानवर हो!!! ऐसा जानवर जो अपनी वासना की तृप्ति के लिए किसी भी हद्द तक जा सकता है|
मैं: नहीं भाभी... आज नहीं
भाभी: क्यों?
मैं: भाभी मैंने कुछ सोचा है....
भाभी: क्या?
मैं: आपके जीवन में दुखों का आरम्भ आपकी सुहागरात से ही शुरू हुआ था ना? तो क्यों ना वाही रात आप और मैं फिर से मनाएं?
भाभी: मानु तुम मेरे लिए इतना सोचते हो... ?
मैं: हाँ क्योंकि मैं आपसे प्यार करता हूँ... और हमारी सुहागरात कल होगी| तब तक आपको और मुझे हम दोनों को सब्र करना होगा|
भाभी: परन्तु मानु .... तुम्हें वहाँ दर्द हो रहा होगा!
भाभी ने मेरे लंड की ओर इशारा करते हुए कहा|
मैं: आप उसकी चिंता मत करो... वो थोड़ी देर में शांत हो जायेगा| आप दिन भर के काम के बाद ओर अभी आई बाढ़ के बाढ़ तो थक गए होगे... तो आप आराम करो|
इतना कह के मैं चल दिया .. पर भाभी की आवाज सुन के मैं वहीँ रुक गया|
भाभी: मानु.. तुम सोने जा रहे हो?
मैं: हाँ
भाभी: मेरी एक बात मानोगे?
मैं: हुक्म करो!
भाभी: तुम मेरे पास कुछ और देर नहीं बैठ सकते... मुझे तुम से बातें करना अच्छा लगता है| दिन में तो हम बातें कर नहीं सकते|
मैं: ठीक है....
और मैं नेहा की चारपाई पर बैठ गया|
भाभी: वहाँ क्यों बैठे हो मेरे पास यहाँ बैठो...
सच कहूँ मित्रों तो मैं भाभी से दूर इसलिए बैठा था की कहीं मैं अपना आपा फिर से ना खो दूँ| पर भाभी के इस प्यार भरे आग्रह ने मुझे उनके पास जाने के लिए विवश कर दिया|
मैं उठा और भाभी की चारपाई पर लेट गया... कुछ इस प्रकार की मेरी पीठ दिवार से लगी थी और टांगें सीधी थी| भाभी ठीक मेरे बगल में लेटी हुई थीं.. उन्होंने मेरी कमर में झप्पी डाल ली और बोलने लगीं:
भाभी: मानु ... तुम पूछ रहे थे ना की क्यों मैंने तुम्हें अपने पति का दर्जा दिया? क्योंकि तुम मुझे कितना प्यार करते हो... तुमने अभी जो मेरे लिए किया .. तुम्हारे भैया ने कभी मेरे साथ नहीं किया| तुम मेरी ख़ुशी के लिए कितना सोचते हो.. और मुझे यकीन है की मेरी ख़ुशी के लिए तुम कुछ भी करोगे... पर "उन्हें" तो केवल अपनी वासना मिटानी होती थी| तुम नेहा से भी कितना प्रेम करते हो... जब मैं शहर आई थी तब तुमने नेहा का कितना ख्याल रखा और उस दिन जब नेहा ने तुम्हारी चाय गिरा दी तब भी तुम उसी का पक्ष ले रहे थे| तुम्हारे मन में स्त्रियों के लिए जो स्नेह है वो आजकल कहाँ देखने को मिलता है.. तुम्हारी इन्ही अच्छाइयों ने मुझे सम्मोहित कर दिया... जब तुम छोटे थे तब हमेशा मेरे साथ खेलते थे और मैं खाना बना रही होती थी और तुम मेरी गोद में आके बैठ जाते थे और मेरा दूध पीते थे| सच कहूँ मानु तो तुम मेरी जिंदगी हो... मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती|
तुम ये कभी मत सोचना की तुमने कोई पाप किया है .... क्योंकि आज जो भी कुछ हुआ हमारे बीच में वो पाप नहीं था... बल्कि तुमने एक अतृप्त आत्मा को सुख के कुछ पल दान किये हैं|
ये कहते-कहते भाभी का हाथ मेरे लंड पे आ गया ....वो अब भी सख्त था| मैं मन के आगे विवश था और मेरा सब्र टूट रहा था... मैंने अपना हाथ भाभी के हाथ पे रख दिया और उन्हें रोकने लगा.. दरअसल मैं कल रात के बारे में सोच रहा था और नहीं चाहता था की मैं भाभी के लिए जो सरप्राइज मैंने प्लान किया है उसे मैं ही ख़राब करूँ!
भाभी: मानु.... तुम मेरे लिए इतना कुछ सोच रहे हो.. मुझे खुश करने के लिए तुम जो प्लान कर रहे हो... मेरा भी तो फर्ज बनता है की मैं भी तुम्हारा ख्याल रखूँ| प्लीज मुझे मत रोको....
अब मेरे सब्र ने भी जवाब दे दिया और मैंने अपना हाथ भाभी के हाथ से हटा लिया.... भाभी ने मेरे पजामे का नाड़ा खोला और मेरे कच्छे में बने टेंट जो देखा .... फिर उन्होंने अपने हाथ से मेरे लंड को आजाद किया... अब समां कुछ इस प्रकार था की रात रानी की खुशबु में मेरे लंड की भीनी-भीनी सुगंध घुल-निल गई| भाभी ने पहले तो मेरे लंड को अपने होंठों से छुआ .. उनकी इस प्रतिक्रिया से मेरे शरीर में जहर-झूरी छूट गई और मैं काँप सा गया| भाभी ने आव देखा न ताव और झट से मेरे लंड को अपने होठों में भर लिया| भाभी ने अभी तक अपनी जीभ का प्रयोग नहीं किया था ... मेरे लंड को अंदर ले के भाभी ने उसे अपने थूक से नहला दिया और जैसे ही उन्होंने मेरे लंड से अपनी जीभ का संपर्क किया मुझे जैसे बिजली का झटका लगा... और ये तो केवल शुरुआत थी.. भाभी ने मेरे लंड को अपने मुख में भर के अंदर निगलना शुरू किया जिससे मेरे लंड के ऊपर की चमड़ी खुल गई और छिद्र सीधा भाभी के गले के अंत में लटके हुए उस मांस के टुकड़े से टकराया| मैं सहम के रह गया और भाभी को उबकाई आ गई.. उनकी आँखों में पानी था जैसा की उबकाई आने पर आ जाता है| परन्तु भाभी ने फिर भी मेरे लंड को नहीं छोड़ा और उसे धीरे-धीरे चूसने लगीं|
बीच-बीच में भाभी अपनी जीभ मेरे लंड के छिद्र पे रगड़ देती तो मैं तड़प उठता और मेरे मुख से मादक सिस्कारियां फुट पड़तीं|
"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स" आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ....
मुझे इतना मजा कभी नहीं आय जितना उस पल आ रहा था... भाभी मेरे लंड को किसी टॉफी की भाँती चूस रही थी.. मजे को और दुगना करने के लिए मैंने भाभी से कहा:
"भौजी ...अपने दांत से धीरे-धीरे काटो!"
भाभी ने अपने दांत मेरे लंड पे गड़ाना शुरू कर दिया... और मैं आनंद के सागर में गोते लगाने लगा.. मेरी आँखें बंद हो चुकी थी और भाभी का मुख इतना गीला प्रतीत हो रहा था की पूछो मत! भाभी ने अब मेरे लंड को आगे पीछे कर के चूसना शुरू कर दिया ... जब वो लंड को अंदर तक लेटिन तो सुपाड़ा खुल जाता और जब भाभी लंड बहार निकलती तो लंड की चमड़ी बिल्कुक बंद हो जाती... ये सब भाभी बिना किसी चिंता और दर के कर रही थी.. उनकी चूसने की गति इतनी धीमे थी की एक पल के लिए लगा जैसे ये कोई सुखदाई सपना हो... और मैं इस सपने को पूरा जीना चाहता था|
मैं अब चार्म पे पहुँच चूका था और अब बर्दाश्त करना मुश्किल था... मैंने भाभी से दबी हुई आवाज में अनुरोध किया:
मैं: भाभी ... प्लीज छोड़ दो ... मेरा निकलने वाला है... वार्ना सारे कपडे गंदे हो जायेंगे!!!
भाभी ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपने आक्रमण को जारी रखा.... मुझसे अब और कंट्रोल नहीं हुआ... और अंदर की वासना कुछ इस तरह बहार आई जैसे किसी ने कोका कोला की बोतल का मुंह बंद करके जोर से हिलाया हो और जब दबाव बढ़ गया तो बोतल का मुख खोल दिया... सारा वीर्य रस भाभी के मुख में भर गया... मुझे तो लगा की भाभी सब का सब मेरे ही पजामे के ऊपर उगल देंगी... परन्तु उन्होंने सारा का सारा रस पी लिया... मेरी सांसें कुछ सामान्य हुईं| और मैंने अपने लंड की और देखा वो बिलकुल चमक रहा था ... भाभी के मुख में रहने से उनके रस में लिप्त!!! मैंने भाभी की ओर देखा तो उनके चेहरे पे अनमोल सुख के भाव थे... मैंने उनके माथे पे चुम्बन किया और खड़ा होके अपना पजामा बंधा|
मैं: भौजी आपने तो जान ही निकाल दी थी....
भाभी: क्यों?
मैं: मुझे लगा था की आज तो मेरे नए कुर्ते-पजामे का बुरा हाल होना है पर आपने तो ... कमाल ही कर दिया|
बहभी: मुझसे काबू नहीं हुआ ... मैंने आजतक ऐसा कभी नहीं किया... बल्कि मुझे तो इससे घिन्न आती थी... पर तुमने आज ....
मैं: मैं आज क्या ?
भाभी: तुमने आज मेरी साड़ी जिझक निकाल दी .... पर ये सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए था... पर ये तो बताओ की तुम शुरू-शुरू में मुझे रोक क्यों रहे थे|
अब मैं अपना पजामे का नाड़ा बांध चूका था|
मैं: क्योंकि मैं ये सब कल के लिए बचाना चाहता था|
भाभी ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया.... उनके और मेरे मुख से हमारे काम-रस की सुगंध आ रही थी| हम दोनों ही मन्त्र मुग्ध थे... और फिर से भाभी और मैंने एक गहरा चुम्बन किया ... भाभी ने मुझे इशारे से कहा की लोटे में पानी है.. कुल्ला कर के सोना|
मैंने भाभी का हाथ पकड़ के उठाया और हम दोनों स्नान घर तक गए और साथ-साथ कुल्ला किया| करीबन ढाई बजे थे.. अब समय था सोने का... भाभी का तो पता नहीं पर मैं थका हुआ महसूस कर रहा था और नींद भी आ रही थी| मैं बिस्तर पे पड़ा और घोड़े बेच के सो गया|
एक अनोखा बंधन
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Re: एक अनोखा बंधन
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अब आगे....
माँ ने मुझे उठाया.. समय देखा तो सुबह के छह बजे थे…. नया दिन... नया जोश और रात के प्लान के बारे में सोच के उत्साह से रोंगटे खड़े हो गए थे| मन में उल्लास था.... भाभी को देखा तो वो नेहा को तैयार कर रही थी... मैंने उनकी और देखा और मुस्कुरा के नहाने चला गया| पर मैं आनेवाले खतरे से अनजान था...
नहा धो के तैयार हो गया और शांत मन से रात के प्लान के लिए मन ही मन सोचने लगा... मन में तो ख्याल था की फूलों की सेज सजी हो पर ये भी डर था की ये फूल किसी से नहीं छुपेंगे... और कहीं इन्हीं फूलों का फायदा भैया ना उठा लें!!!! अभी मैं मन ही मन सोच रहा था की तभी पिताजी ने मेरे कान के पास एक ऐसा बम फोड़ा की मेरा सारा शरीर सुन हो गया.....
पिताजी: क्यों लाड-साहब रात को छत पे क्यों नहीं सोये?
मैं: बहुत थक गया था... इसीलिए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला|
पिताजी: थक गया था? ऐसा कौन सा पहाड़ खोद दिया तुमने?
चन्दर भैया: चाचा मानु भैया कल रात को जानवरों को चारा डालने में भाभी की मदद कर रहे थे... इसीलिए थक गए!
भैया की बात सुनके दोनों चाचा-भतीजा हँसने लगे| मैं भी उनका साथ देने के लिए हँसा... असल में मुझे भाभी की बातें याद आ रही थी और मैं भैया से नफरत करने लगा था| पर यदि मैं अपनी नफरत जाहिर करता तो कोई भी भाभी और मुझपे शक करता| अभी तक भाभी और मेरे रिश्ते को सब दोस्तों जैसे रिश्ता ही समझते थे... और मैं नहीं चाहता था की वे सब इस ब्रह्म से बहार अायें|
पिताजी: तो लाड-साहब चलना नहीं है क्या?
मैं: (चौंकते हुए ) कहाँ?
पिताजी: जिस काम के लिए आये थे?
मैं: किस काम के लिए?
पिताजी: तुम तो यहाँ आके अपनी भाभी के साथ इतना घुल-मिल गए की यात्रा के बारे में भूल ही गए|
पिताजी की बात सुन मैं झेंप गया... और मुझे याद आय की दरअसल गाँव आने का प्लान बनाने के लिए मैंने पिताजी को काशी विश्वनाथ घूमने का लालच दिया था| यही कारन था की पिताजी गाँव आने के लिए माने थे| कहाँ तो मैं अपनी और भाभी के सुहागरात के सपने सजोने में लगा था और कहाँ पिताजी की बात सुन मेरे होश उड़ गए| दरअसल यात्रा का प्लान मैंने ही बनाया था और क्योंकि मुझे भाभी से मिलने की इतनी जल्दी थी इसलिए मैंने सबसे पहले गाँव आने का प्लान बनाया और उसके बाद हम यात्रा करके दिल्ली लौट जायेंगे| जबकि पिताजी का कहना था की हम पहले यात्रा करते हैं उसके बाद गाँव जायेंगे.. अब मुझे अपने ऊपर अधिक क्रोध आ रहा था... की आखिर क्यों मैंने थोड़ा सब्र नहीं किया|
पिताजी: क्या सोच रहे हो? मैंने तुमसे राय नहीं माँगी है... हम कल ही निकालेंगे और यात्रा कर के दिल्ली लौट जायेंगे|
चन्दर भैया ने पिताजी की बात सुनी और सब को सुनाने के लिए चल दिए| मेरा दिमाग अब कंप्यूटर की तरह काम करने लगा और मैं कोई न कोई तर्क निकालना चाहता था की हम कुछ और दिनों के लिए रुक जाएं और तभी मेरे दिमाग में एक शार्ट सर्किट हुआ और मुझे एक बात सूझी .....
आगे मेरे और पिताजी के बीच हुई बात को मैं अभी गोपनीय रख रहा हूँ.. इसका पता आपको अवश्य चलेगा... अभी ये बात आपको नहीं बताने का सिर्फ यही तर्क है की आपको इसका आनंद आगे मिले|
जब ये बात भाभी के कानों तक पहुँची भाभी भागी-भागी बड़े घर की ओर आईं... पिताजी मुझसे बात करके कल यात्रा पे जाने के लिए रिक्शे का इन्तेजाम करने के लिए निकल चुके थे| मैं घर के आँगन में अपने सर पे हाथ रखे बैठा हुआ था ... अचानक भाभी मेरे सामने ठिठक के खड़ी हो गईं... उनके आँखों में आँसूं थे.... चेहरे पे सवाल ... और जुबान पे मेरा नाम ....
भाभी: मानु.... क्या मैंने जो सुना वो सच है? तुम कल जा रहे हो?
मैं: हाँ....
भाभी: पर तुमने मुझे पहले बताया क्यों नहीं?
मैं: भूल गया था...
भाभी: अब मेरा क्या होगा? मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती... मैं मर जाऊँगी....
इतना कह के भाभी बहार चली गईं.. मुझे चिंता होने लगी की कहीं भाभी कुछ ऐसा-वैसा कदम न उठा लें| इसलिए मैं उनके पीछे भागा.... मुझे ये देख के राहत मिली की भाभी भूसे के करे के बहार कड़ी हो के रसिका भाभी से कुछ पूछ रही हैं| उनके इशारे से मैं समझ चूका था की भाभी यही पूछ रहीं थीं की क्या मैं सच में वापस जा रहा हूँ? और रसिका भाभी ने भी बात को ज्यादा तूल ना देते हुए हाँ में सर हिलाया और रसोई की और चल दीं| मैंने इशारे से भाभी को अपने पास बुलाया... और भाभी भारी क़दमों के साथ मेरी ओर बढ़ने लगीं|
इससे पहले की आप लोगों को शक हो की आखिर हर बार मुझे ओर भाभी को अकेले में बात करने का समय कैसे मिल जाता है, मैं आपको स्वयं बता देता हूँ| माँ, नेहा और बड़की अम्मा (बड़ी चाची) खेत में आलू खोद के निकाल रहीं थी| पिताजी तो पहले ही रिक्शे वाले से बात करने के लिए जा चुके थे| चन्दर भैया और अजय भैया खेतों में सिंचाई और जुताई में लगे थे और रसिका भाभी तो यूँ हैं इधर-उधर टहल रहीं थी.. जब से मैं आया था मैंने उन्हें कोई भी काम नहीं करते देखा था!!!
भाभी घर में दाखिल हुईं और मैंने उन्हें चारपाई पे बिठाया... उनके मुख पे हवाइयाँ उड़ रहीं थी... कोई भी भाव नहीं थे... जैसे की कोई लाश हो| मैं मन ही मन अपने आपको कोस रहा था... मैं अपने घुटनों पे उनके समक्ष बैठ गया:
मैं: भौजी... मुझे माफ़ कर दो... सब मेरी गलती है| मैंने आपको कुछ नहीं बताया... सच कहूँ तो इन चार दिनों में आपके प्यार में मैं खुद भूल गया था| गाँव आने का मेरे पास कोई बहाना नहीं था इसलिए मैंने पिताजी से काशी-विश्वनाथ की यात्रा का प्लान बनाया... पिताजी तो चाहते थे की हम पहले यात्रा करें और फिर गाँव जायेंगे और आखिर में दिल्ली लौट जायेंगे| पर मैं आपसे मिलने को इतना आतुर था की मैंने कहा की हम पहले गाँव जायेंगे.. और फिर वहां से यात्रा करने के लिए निकलेंगे और वहीँ से वहीँ दिल्ली निकल जायेंगे... इसीलिए ये सब हुआ| मुझे सच में नहीं पता था की आपका प्यार मुझे आपसे दूर नहीं जाने देगा|
भाभी मेरी आँखों में देख रही थी.. और उनकी आँखों में आँसूं छलक आये थे| जब-जब मैं भाभी को ऐसे देखता हूँ तो मेरे नस-नस में खून खौल उठता है...
भाभी: मानु मेरा क्या होगा ?? तुम मुझे छोड़ के चले जाओगे???
भाभी के इस प्रश्न का मेरे पास कोई जवाब नहीं था... और भाभी के चेहरे पे छाई मायूसी का कारन भी तो मैं ही था| मेरी गर्दन नीचे झुक गई और मुझे अपने ऊपर कोफ़्त होने लगी!!! पर मैं भाभी को ढांढस बंधने लगा... मैंने उनके चेहरे को ऊपर किये और उनके आँसूं पोंछें ....
मैं: भाभी अभी भी हमारे पास 24 घंटे हैं|
भाभी मेरी और बड़ी उत्सुकता से देखने लगी ....
मैं: मैं ये पूरे 24 घंटे आपके साथ ही गुजारूँगा...
तभी पीछे से माँ आ गईं ... मुझे और भाभी को इस तरह देख के वो हैरान थी और इससे पहले की वो कुछ पूछतीं मैं खुद ही बोल पड़ा:
मैं: माँ देखो ना भौजी को... जब से इन्हें पता चला है की हम कल जा रहे हैं ये मुँह लटका के बैठीं हैं... आप ही कुछ समझाओ....
माँ: पर हम तो....
मैंने माँ की बात बीच में ही काट दी...
मैं: माँ पिताजी रिक्शे वाले से बात करने निकले हैं और वो कह रहे थे की आप उनका सफारी सूट मत भूल जाना|
मैं: हाँ अच्छा याद दिलाया तूने... मैं अभी रख लेती हूँ| और बहु तुम उदास मत हो ...
मैं: और हाँ माँ, पिताजी ने कहा था की सर और पेट दर्द की दवा भी रख लेना|
मैंने फिर से माँ की बात काट दी...
माँ: ये सब तू मुझे बताने के बजाये खुद नहीं रख सकता?
इससे पहले की माँ कुछ और बोलेन मैं भाभी को खींच के बहार ले गया... अभी दरवाजे तक पहुंचा ही था की नेहा भी आ गई और भाभी के उदास मुँह का कारन पूछने लगी| मैंने उसकी बात घूमते हुए कहा की चलो मेरे साथ बताता हूँ|
मैंने अपने दायें हाथ से भाभी का बायां हाथ पकड़ा था और अपने बाएँ हाथ की ऊँगली नेहा को पकड़ा रखी थी| मैं दोनों को रसोई के पास छप्पर में ले आया ... वहां पड़ी चारपाई पे भाभी को बैठाया और नेहा के प्रश्नों का उत्तर देने लगा:
मैं: आप पूछ रहे थे न की आपकी मम्मी उदास क्यों हैं?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया...
मैं: आपकी मम्मी की उदासी का कारन मैं हूँ|
मेरी बात सुन के भाभी और नेहा दोनों मेरी और देखने लगे...
मैं: मैं कल वापस जा रहा हूँ ना इसलिए ...
नेहा: चाचू आप वापस नहीं आओगे ?
मैंने ना में सर हिला दिया... और ये देख भाभी अपने आप को रोक नहीं पाईं और रो पड़ीं| मैंने भाभी को गले से लगाया और उनकी पीठ पे हाथ फेरते हुए चुप कराने लगा...
मैं: भाभी प्लीज चुप हो जाओ वार्ना नेहा भी रोने लगेगी|
भाभी का रोना जारी था और नेहा भी सुबकने लगी थी...
मैं: भाभी आपको मेरी कसम ... प्लीज चुप हो जाओ...
मेरी कसम सुन के भाभी ने रोना बंद किया और आगे जो हुआ उसे देख के भाभी और मैं हम दोनों हँस पड़े... नेहा ने रोना शुरू कर दिया था और उसका रोना ऐसा था जैसे फैक्ट्री का किसी ने साईरन बजा दिया हो जो हर सेकंड तेज होता जा रहा था ... ये इतना मजाकिया था की मैं और भाभी अपना हँसना रोक ना पाये| चलो भाभी हंसी तो सही वार्ना मुझे भाभी को ..... (ये अभी नहीं बताऊँगा|)
नेहा को चिप्स बहुत पसंद थे इसलिए मैंने उसे अपनी जेब में पड़ा आखरी नोट दिया और चिप्स खरीद के खाने के लिए कहा| भाभी मना करने लगीं पर मैंने फिर भी उसे जबरदस्ती भेज दिया... भाभी की आँखें नम थीं... मैंने बात को बदलना चाहा:
मैं: भौजी आप स्नान कर लो... तरो-ताजा महसूस करोगे| फिर आपको भोजन भी तो बनाना है, क्योंकि रसिका भाभी तो कुछ करने वाली नहीं|
भाभी बड़े बेमन से उठीं.. ऐसा लगा जैसे उनका मन ही ना हो मुझसे दूर जाने को| मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा:
मैं: भौजी वैसे मैंने आपको वादा किया था की मैं पूरे २४ घंटे आपके साथ रहूँगा... अभी तो आप स्नान करने जा रहे हो... अगर कहो तो मैं भी चलूँ आपके साथ?
भाभी: ठीक है.... चलो !!!
उनका जवाब सुन के मैं सन्न रह गया... मैंने तो मजाक में ही बोल दिया था| खेर मैं ख़ुशी-ख़ुशी उनके साथ चल दिया... भाभी ने अंदर से कमरा बंद किया और मैं उनके स्नान घर के सामने चारपाई खींच कर बैठ गया... जैसे मैं कोई मुजरा सुनने आया हूँ| टांगें चढ़ा कर जैसे कोई अंग्रेज आदमी कोई शो देखने आया हो!!!
भाभी ने आज हलके हरे रंग की साडी पहनी हुई थी... वो मेरे सामने कड़ी हुईं और अपना पल्लू नीचे गिरा दिया... उनके स्तन के बीचों बीच की दूधिया लकीर मुझे साफ़ दिखाई दे रही थी| हाथ बेकाबू होने लगे... और मन किया की भाभी को किसी शेर की भाँती दबोच लूँ| भाभी ने अपने ब्लाउज के बटन खोलने चालु कर दिए थे ....पर मैं उठ खड़ा हुआ ...
मैं: भौजी मैं जा रहा हूँ ....
भाभी: क्यों ?
मैं: भाभी आपको इस तरह देख के मेरा कंट्रोल छूट रहा है| मैं ये सब आज रात के लिए बचाना चाहता हूँ|
फिर भाभी ने ऐसी बात बोली की मैं एक पल के लिए सोच में पड़ गया|
भौजी: और अगर रात को मौका नहीं मिला तो?..... तुम तो कल चले जाओगे ... पता नहीं फिर कभी हम मिलें भी या नहीं...
बार-बार भाभी के कटीले प्रश्न मेरी आत्मा को चोटिल कर रहे थे... पर उनकी बातों में सच्चाई थी| भाभी की बात में दम तो था परन्तु मैं फिर भी खतरा उठाने को तैयार था... मैं भाभी की सुहागरात वाला तौफा ख़राब नहीं करना चाहता था|मैं भाभी की ओर बढ़ा ओर उन्हें अपनी बाँहों में भरा ... उनके बदन पे मेरा दबाव तीव्र था और उन्हें ये संकेत दे रहा था की आप चिंता मत करो... सब ठीक होगा और आपका सुहागरात वाला सरप्राइज मैं ख़राब नहीं होने दूँगा|
अपनी बात को पक्का करने के लिए मैंने उनके होंठों को चूम लिया... परन्तु ये चुम्बन बहुत ही छोटा था...
(जैसे छोटा रिचार्ज!!!)
मैं: भाभी मैं बहार जा रहा हूँ आप दरवाजा बंद कर लो|
भाभी: मानु मेरी एक बात मानोगे ?
मैं: हाँ बोलो...
भाभी: कल मत जाओ ... कोई भी बहाना बनाके रुक जाओ| मुझे भरोसे है की तुम ये कर सकते हो|
मैं: भौजी कल की वाराणसी की ट्रैन की टिकट बुक है| अगर मैं अपनी बीमारी का बहाना भी बना लूँ तो भी पिताजी मुझे ले जाए बिना नहीं मानेंगे ... फिर तो चाहे उन्हें यहाँ तक एम्बुलेंस ही क्यों न बुलानी पड़े!
मैं इस बारे में और बात कर के फिर से भाभी की आँखें नम नहीं करना चाहता था इसलिए मैं सीधा बहार की ओर निकल लिया और कमरे का दरवाजा सटा दिया| बहार आके मैंने चैन की साँस ली और वापस छापर के नीचे पहुंचा जहाँ नेहा चारपाई पे बैठी चिप्स खा रही थी| मैं नेहा के पास बैठ गया और उसने चिप्स वाला पैकेट मेरी ओर बढ़ा दिया ... मैंने भी उसमें से थोड़े चिप्स निकाले और खाने लगा| नेहा कहानी सुनने के लिए जिद्द करने लगी... वो हमेशा रात को सोने से पहले मुझसे कहानी सुन्ना पसंद करती थी| मैं उसे मना नहीं कर पाया.. और चूहे, कबूतरों और गिलहरी की कहनी बना के सुनाने लगा| कहानी सुनते-सुनते नेहा मेरी गोद में ही सर रख के सो गई और मैं उसके सर पे हाथ फेर ने लगा... तभी उस अकड़ू ठाकुर की बेटी माधुरी वहाँ आ गई| वो मेरे सामने पड़ी चारपाई पे बैठ गई और भाभी के बारे में पूछने लगी.. मैंने उसे बताया की भाभी स्नान करने गई हैं अभी आत होंगी ... पर ये तो उसका बहाना| अब उसने मेरे ऊपर अपने सवाल दागे ...:
माधुरी: तो आप दिल्ली में कहाँ रहते हो?
मैं: डिफेन्स कॉलोनी
माधुरी: आपके स्कूल का नाम क्या है?
मैं: मॉडर्न स्कूल
माधुरी: आपके विषय कौन-कौन से हैं?
मैं: जी एकाउंट्स और मैथ्स
माधुरी: आपकी कोई गर्लफ्रेंड है? उन्सका नाम तो बताओ...
मैं: मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है न ही मैं बनाना चाहता हूँ| आप अपने बारे में भी तो कुछ बताइये?
माधुरी: मैं राजकीय शिक्षा मंदिर में पढ़ती हूँ ... दसवीं में हूँ मेरा भी कोई बॉयफ्रेंड नहीं है|
जैसे मैं उसके बॉयफ्रेंड के बारे में जानने के लिए उत्सुक था....| माधुरी मुझसे घुलने-मिलने की कोशिश कर रही थी और कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रही थी| दिमाग कह रहा था की:
तुम जो इतना मुस्कुरा रही हो... क्या बात है जिसे छुपा रही हो???
मैं उसके सवालों का जवाब बहुत ही संक्षेप में दे रहा था क्योंकि मेरी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी.. वैसे भी मेरा व्यक्तित्व ही बड़े मौन स्वभाव का है.. मैं बहुत काम बोलता हूँ और उसका व्यक्तित्व ठीक मेरे उलट था| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मेरी और आकर्शित महसूस कर रही हो ... तभी उसने सबसे विवादित प्रश्न छेड़ दिया:
माधुरी: तो मानु जी, आपके शादी के बारे में क्या विचार हैं|
मैं: शादी? अभी?
मेरा इतना बोलना था की भाभी भी अपने बाल पोंछते हुए आ गईं... वो हमें बातें करते हुए देख रही थी और जल भून के राख हो चुकीं थी| वो मेरे पास आई और कुछ इस तरह से खड़ी हुई की उनकी पीठ माधुरी की ओर थी... और मेरी ओर देखते हुए अपना गुस्सा प्रकट किया और नेहा को मेरी गोद में से उठा के अपने घर की ओर चल दीं| मैं समझ गया की बेटा आज तेरी शामत है !!! मैं भाभी के पीछे एक दम से तो नहीं जा सकता था वर्ना माधुरी को शक हो जाता| मैं मौके की तलाश में था की कैसे माधुरी को यहाँ से भगाऊँ? मन बड़ा बेचैन हो रहा था... मेरी हालत ऐसी थी जैसे मुझे सांप सूंघ गया हो, और माधुरी पटर-पटर बोले जा रही थी|
अब आगे....
माँ ने मुझे उठाया.. समय देखा तो सुबह के छह बजे थे…. नया दिन... नया जोश और रात के प्लान के बारे में सोच के उत्साह से रोंगटे खड़े हो गए थे| मन में उल्लास था.... भाभी को देखा तो वो नेहा को तैयार कर रही थी... मैंने उनकी और देखा और मुस्कुरा के नहाने चला गया| पर मैं आनेवाले खतरे से अनजान था...
नहा धो के तैयार हो गया और शांत मन से रात के प्लान के लिए मन ही मन सोचने लगा... मन में तो ख्याल था की फूलों की सेज सजी हो पर ये भी डर था की ये फूल किसी से नहीं छुपेंगे... और कहीं इन्हीं फूलों का फायदा भैया ना उठा लें!!!! अभी मैं मन ही मन सोच रहा था की तभी पिताजी ने मेरे कान के पास एक ऐसा बम फोड़ा की मेरा सारा शरीर सुन हो गया.....
पिताजी: क्यों लाड-साहब रात को छत पे क्यों नहीं सोये?
मैं: बहुत थक गया था... इसीलिए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला|
पिताजी: थक गया था? ऐसा कौन सा पहाड़ खोद दिया तुमने?
चन्दर भैया: चाचा मानु भैया कल रात को जानवरों को चारा डालने में भाभी की मदद कर रहे थे... इसीलिए थक गए!
भैया की बात सुनके दोनों चाचा-भतीजा हँसने लगे| मैं भी उनका साथ देने के लिए हँसा... असल में मुझे भाभी की बातें याद आ रही थी और मैं भैया से नफरत करने लगा था| पर यदि मैं अपनी नफरत जाहिर करता तो कोई भी भाभी और मुझपे शक करता| अभी तक भाभी और मेरे रिश्ते को सब दोस्तों जैसे रिश्ता ही समझते थे... और मैं नहीं चाहता था की वे सब इस ब्रह्म से बहार अायें|
पिताजी: तो लाड-साहब चलना नहीं है क्या?
मैं: (चौंकते हुए ) कहाँ?
पिताजी: जिस काम के लिए आये थे?
मैं: किस काम के लिए?
पिताजी: तुम तो यहाँ आके अपनी भाभी के साथ इतना घुल-मिल गए की यात्रा के बारे में भूल ही गए|
पिताजी की बात सुन मैं झेंप गया... और मुझे याद आय की दरअसल गाँव आने का प्लान बनाने के लिए मैंने पिताजी को काशी विश्वनाथ घूमने का लालच दिया था| यही कारन था की पिताजी गाँव आने के लिए माने थे| कहाँ तो मैं अपनी और भाभी के सुहागरात के सपने सजोने में लगा था और कहाँ पिताजी की बात सुन मेरे होश उड़ गए| दरअसल यात्रा का प्लान मैंने ही बनाया था और क्योंकि मुझे भाभी से मिलने की इतनी जल्दी थी इसलिए मैंने सबसे पहले गाँव आने का प्लान बनाया और उसके बाद हम यात्रा करके दिल्ली लौट जायेंगे| जबकि पिताजी का कहना था की हम पहले यात्रा करते हैं उसके बाद गाँव जायेंगे.. अब मुझे अपने ऊपर अधिक क्रोध आ रहा था... की आखिर क्यों मैंने थोड़ा सब्र नहीं किया|
पिताजी: क्या सोच रहे हो? मैंने तुमसे राय नहीं माँगी है... हम कल ही निकालेंगे और यात्रा कर के दिल्ली लौट जायेंगे|
चन्दर भैया ने पिताजी की बात सुनी और सब को सुनाने के लिए चल दिए| मेरा दिमाग अब कंप्यूटर की तरह काम करने लगा और मैं कोई न कोई तर्क निकालना चाहता था की हम कुछ और दिनों के लिए रुक जाएं और तभी मेरे दिमाग में एक शार्ट सर्किट हुआ और मुझे एक बात सूझी .....
आगे मेरे और पिताजी के बीच हुई बात को मैं अभी गोपनीय रख रहा हूँ.. इसका पता आपको अवश्य चलेगा... अभी ये बात आपको नहीं बताने का सिर्फ यही तर्क है की आपको इसका आनंद आगे मिले|
जब ये बात भाभी के कानों तक पहुँची भाभी भागी-भागी बड़े घर की ओर आईं... पिताजी मुझसे बात करके कल यात्रा पे जाने के लिए रिक्शे का इन्तेजाम करने के लिए निकल चुके थे| मैं घर के आँगन में अपने सर पे हाथ रखे बैठा हुआ था ... अचानक भाभी मेरे सामने ठिठक के खड़ी हो गईं... उनके आँखों में आँसूं थे.... चेहरे पे सवाल ... और जुबान पे मेरा नाम ....
भाभी: मानु.... क्या मैंने जो सुना वो सच है? तुम कल जा रहे हो?
मैं: हाँ....
भाभी: पर तुमने मुझे पहले बताया क्यों नहीं?
मैं: भूल गया था...
भाभी: अब मेरा क्या होगा? मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती... मैं मर जाऊँगी....
इतना कह के भाभी बहार चली गईं.. मुझे चिंता होने लगी की कहीं भाभी कुछ ऐसा-वैसा कदम न उठा लें| इसलिए मैं उनके पीछे भागा.... मुझे ये देख के राहत मिली की भाभी भूसे के करे के बहार कड़ी हो के रसिका भाभी से कुछ पूछ रही हैं| उनके इशारे से मैं समझ चूका था की भाभी यही पूछ रहीं थीं की क्या मैं सच में वापस जा रहा हूँ? और रसिका भाभी ने भी बात को ज्यादा तूल ना देते हुए हाँ में सर हिलाया और रसोई की और चल दीं| मैंने इशारे से भाभी को अपने पास बुलाया... और भाभी भारी क़दमों के साथ मेरी ओर बढ़ने लगीं|
इससे पहले की आप लोगों को शक हो की आखिर हर बार मुझे ओर भाभी को अकेले में बात करने का समय कैसे मिल जाता है, मैं आपको स्वयं बता देता हूँ| माँ, नेहा और बड़की अम्मा (बड़ी चाची) खेत में आलू खोद के निकाल रहीं थी| पिताजी तो पहले ही रिक्शे वाले से बात करने के लिए जा चुके थे| चन्दर भैया और अजय भैया खेतों में सिंचाई और जुताई में लगे थे और रसिका भाभी तो यूँ हैं इधर-उधर टहल रहीं थी.. जब से मैं आया था मैंने उन्हें कोई भी काम नहीं करते देखा था!!!
भाभी घर में दाखिल हुईं और मैंने उन्हें चारपाई पे बिठाया... उनके मुख पे हवाइयाँ उड़ रहीं थी... कोई भी भाव नहीं थे... जैसे की कोई लाश हो| मैं मन ही मन अपने आपको कोस रहा था... मैं अपने घुटनों पे उनके समक्ष बैठ गया:
मैं: भौजी... मुझे माफ़ कर दो... सब मेरी गलती है| मैंने आपको कुछ नहीं बताया... सच कहूँ तो इन चार दिनों में आपके प्यार में मैं खुद भूल गया था| गाँव आने का मेरे पास कोई बहाना नहीं था इसलिए मैंने पिताजी से काशी-विश्वनाथ की यात्रा का प्लान बनाया... पिताजी तो चाहते थे की हम पहले यात्रा करें और फिर गाँव जायेंगे और आखिर में दिल्ली लौट जायेंगे| पर मैं आपसे मिलने को इतना आतुर था की मैंने कहा की हम पहले गाँव जायेंगे.. और फिर वहां से यात्रा करने के लिए निकलेंगे और वहीँ से वहीँ दिल्ली निकल जायेंगे... इसीलिए ये सब हुआ| मुझे सच में नहीं पता था की आपका प्यार मुझे आपसे दूर नहीं जाने देगा|
भाभी मेरी आँखों में देख रही थी.. और उनकी आँखों में आँसूं छलक आये थे| जब-जब मैं भाभी को ऐसे देखता हूँ तो मेरे नस-नस में खून खौल उठता है...
भाभी: मानु मेरा क्या होगा ?? तुम मुझे छोड़ के चले जाओगे???
भाभी के इस प्रश्न का मेरे पास कोई जवाब नहीं था... और भाभी के चेहरे पे छाई मायूसी का कारन भी तो मैं ही था| मेरी गर्दन नीचे झुक गई और मुझे अपने ऊपर कोफ़्त होने लगी!!! पर मैं भाभी को ढांढस बंधने लगा... मैंने उनके चेहरे को ऊपर किये और उनके आँसूं पोंछें ....
मैं: भाभी अभी भी हमारे पास 24 घंटे हैं|
भाभी मेरी और बड़ी उत्सुकता से देखने लगी ....
मैं: मैं ये पूरे 24 घंटे आपके साथ ही गुजारूँगा...
तभी पीछे से माँ आ गईं ... मुझे और भाभी को इस तरह देख के वो हैरान थी और इससे पहले की वो कुछ पूछतीं मैं खुद ही बोल पड़ा:
मैं: माँ देखो ना भौजी को... जब से इन्हें पता चला है की हम कल जा रहे हैं ये मुँह लटका के बैठीं हैं... आप ही कुछ समझाओ....
माँ: पर हम तो....
मैंने माँ की बात बीच में ही काट दी...
मैं: माँ पिताजी रिक्शे वाले से बात करने निकले हैं और वो कह रहे थे की आप उनका सफारी सूट मत भूल जाना|
मैं: हाँ अच्छा याद दिलाया तूने... मैं अभी रख लेती हूँ| और बहु तुम उदास मत हो ...
मैं: और हाँ माँ, पिताजी ने कहा था की सर और पेट दर्द की दवा भी रख लेना|
मैंने फिर से माँ की बात काट दी...
माँ: ये सब तू मुझे बताने के बजाये खुद नहीं रख सकता?
इससे पहले की माँ कुछ और बोलेन मैं भाभी को खींच के बहार ले गया... अभी दरवाजे तक पहुंचा ही था की नेहा भी आ गई और भाभी के उदास मुँह का कारन पूछने लगी| मैंने उसकी बात घूमते हुए कहा की चलो मेरे साथ बताता हूँ|
मैंने अपने दायें हाथ से भाभी का बायां हाथ पकड़ा था और अपने बाएँ हाथ की ऊँगली नेहा को पकड़ा रखी थी| मैं दोनों को रसोई के पास छप्पर में ले आया ... वहां पड़ी चारपाई पे भाभी को बैठाया और नेहा के प्रश्नों का उत्तर देने लगा:
मैं: आप पूछ रहे थे न की आपकी मम्मी उदास क्यों हैं?
नेहा ने हाँ में सर हिलाया...
मैं: आपकी मम्मी की उदासी का कारन मैं हूँ|
मेरी बात सुन के भाभी और नेहा दोनों मेरी और देखने लगे...
मैं: मैं कल वापस जा रहा हूँ ना इसलिए ...
नेहा: चाचू आप वापस नहीं आओगे ?
मैंने ना में सर हिला दिया... और ये देख भाभी अपने आप को रोक नहीं पाईं और रो पड़ीं| मैंने भाभी को गले से लगाया और उनकी पीठ पे हाथ फेरते हुए चुप कराने लगा...
मैं: भाभी प्लीज चुप हो जाओ वार्ना नेहा भी रोने लगेगी|
भाभी का रोना जारी था और नेहा भी सुबकने लगी थी...
मैं: भाभी आपको मेरी कसम ... प्लीज चुप हो जाओ...
मेरी कसम सुन के भाभी ने रोना बंद किया और आगे जो हुआ उसे देख के भाभी और मैं हम दोनों हँस पड़े... नेहा ने रोना शुरू कर दिया था और उसका रोना ऐसा था जैसे फैक्ट्री का किसी ने साईरन बजा दिया हो जो हर सेकंड तेज होता जा रहा था ... ये इतना मजाकिया था की मैं और भाभी अपना हँसना रोक ना पाये| चलो भाभी हंसी तो सही वार्ना मुझे भाभी को ..... (ये अभी नहीं बताऊँगा|)
नेहा को चिप्स बहुत पसंद थे इसलिए मैंने उसे अपनी जेब में पड़ा आखरी नोट दिया और चिप्स खरीद के खाने के लिए कहा| भाभी मना करने लगीं पर मैंने फिर भी उसे जबरदस्ती भेज दिया... भाभी की आँखें नम थीं... मैंने बात को बदलना चाहा:
मैं: भौजी आप स्नान कर लो... तरो-ताजा महसूस करोगे| फिर आपको भोजन भी तो बनाना है, क्योंकि रसिका भाभी तो कुछ करने वाली नहीं|
भाभी बड़े बेमन से उठीं.. ऐसा लगा जैसे उनका मन ही ना हो मुझसे दूर जाने को| मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा:
मैं: भौजी वैसे मैंने आपको वादा किया था की मैं पूरे २४ घंटे आपके साथ रहूँगा... अभी तो आप स्नान करने जा रहे हो... अगर कहो तो मैं भी चलूँ आपके साथ?
भाभी: ठीक है.... चलो !!!
उनका जवाब सुन के मैं सन्न रह गया... मैंने तो मजाक में ही बोल दिया था| खेर मैं ख़ुशी-ख़ुशी उनके साथ चल दिया... भाभी ने अंदर से कमरा बंद किया और मैं उनके स्नान घर के सामने चारपाई खींच कर बैठ गया... जैसे मैं कोई मुजरा सुनने आया हूँ| टांगें चढ़ा कर जैसे कोई अंग्रेज आदमी कोई शो देखने आया हो!!!
भाभी ने आज हलके हरे रंग की साडी पहनी हुई थी... वो मेरे सामने कड़ी हुईं और अपना पल्लू नीचे गिरा दिया... उनके स्तन के बीचों बीच की दूधिया लकीर मुझे साफ़ दिखाई दे रही थी| हाथ बेकाबू होने लगे... और मन किया की भाभी को किसी शेर की भाँती दबोच लूँ| भाभी ने अपने ब्लाउज के बटन खोलने चालु कर दिए थे ....पर मैं उठ खड़ा हुआ ...
मैं: भौजी मैं जा रहा हूँ ....
भाभी: क्यों ?
मैं: भाभी आपको इस तरह देख के मेरा कंट्रोल छूट रहा है| मैं ये सब आज रात के लिए बचाना चाहता हूँ|
फिर भाभी ने ऐसी बात बोली की मैं एक पल के लिए सोच में पड़ गया|
भौजी: और अगर रात को मौका नहीं मिला तो?..... तुम तो कल चले जाओगे ... पता नहीं फिर कभी हम मिलें भी या नहीं...
बार-बार भाभी के कटीले प्रश्न मेरी आत्मा को चोटिल कर रहे थे... पर उनकी बातों में सच्चाई थी| भाभी की बात में दम तो था परन्तु मैं फिर भी खतरा उठाने को तैयार था... मैं भाभी की सुहागरात वाला तौफा ख़राब नहीं करना चाहता था|मैं भाभी की ओर बढ़ा ओर उन्हें अपनी बाँहों में भरा ... उनके बदन पे मेरा दबाव तीव्र था और उन्हें ये संकेत दे रहा था की आप चिंता मत करो... सब ठीक होगा और आपका सुहागरात वाला सरप्राइज मैं ख़राब नहीं होने दूँगा|
अपनी बात को पक्का करने के लिए मैंने उनके होंठों को चूम लिया... परन्तु ये चुम्बन बहुत ही छोटा था...
(जैसे छोटा रिचार्ज!!!)
मैं: भाभी मैं बहार जा रहा हूँ आप दरवाजा बंद कर लो|
भाभी: मानु मेरी एक बात मानोगे ?
मैं: हाँ बोलो...
भाभी: कल मत जाओ ... कोई भी बहाना बनाके रुक जाओ| मुझे भरोसे है की तुम ये कर सकते हो|
मैं: भौजी कल की वाराणसी की ट्रैन की टिकट बुक है| अगर मैं अपनी बीमारी का बहाना भी बना लूँ तो भी पिताजी मुझे ले जाए बिना नहीं मानेंगे ... फिर तो चाहे उन्हें यहाँ तक एम्बुलेंस ही क्यों न बुलानी पड़े!
मैं इस बारे में और बात कर के फिर से भाभी की आँखें नम नहीं करना चाहता था इसलिए मैं सीधा बहार की ओर निकल लिया और कमरे का दरवाजा सटा दिया| बहार आके मैंने चैन की साँस ली और वापस छापर के नीचे पहुंचा जहाँ नेहा चारपाई पे बैठी चिप्स खा रही थी| मैं नेहा के पास बैठ गया और उसने चिप्स वाला पैकेट मेरी ओर बढ़ा दिया ... मैंने भी उसमें से थोड़े चिप्स निकाले और खाने लगा| नेहा कहानी सुनने के लिए जिद्द करने लगी... वो हमेशा रात को सोने से पहले मुझसे कहानी सुन्ना पसंद करती थी| मैं उसे मना नहीं कर पाया.. और चूहे, कबूतरों और गिलहरी की कहनी बना के सुनाने लगा| कहानी सुनते-सुनते नेहा मेरी गोद में ही सर रख के सो गई और मैं उसके सर पे हाथ फेर ने लगा... तभी उस अकड़ू ठाकुर की बेटी माधुरी वहाँ आ गई| वो मेरे सामने पड़ी चारपाई पे बैठ गई और भाभी के बारे में पूछने लगी.. मैंने उसे बताया की भाभी स्नान करने गई हैं अभी आत होंगी ... पर ये तो उसका बहाना| अब उसने मेरे ऊपर अपने सवाल दागे ...:
माधुरी: तो आप दिल्ली में कहाँ रहते हो?
मैं: डिफेन्स कॉलोनी
माधुरी: आपके स्कूल का नाम क्या है?
मैं: मॉडर्न स्कूल
माधुरी: आपके विषय कौन-कौन से हैं?
मैं: जी एकाउंट्स और मैथ्स
माधुरी: आपकी कोई गर्लफ्रेंड है? उन्सका नाम तो बताओ...
मैं: मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है न ही मैं बनाना चाहता हूँ| आप अपने बारे में भी तो कुछ बताइये?
माधुरी: मैं राजकीय शिक्षा मंदिर में पढ़ती हूँ ... दसवीं में हूँ मेरा भी कोई बॉयफ्रेंड नहीं है|
जैसे मैं उसके बॉयफ्रेंड के बारे में जानने के लिए उत्सुक था....| माधुरी मुझसे घुलने-मिलने की कोशिश कर रही थी और कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रही थी| दिमाग कह रहा था की:
तुम जो इतना मुस्कुरा रही हो... क्या बात है जिसे छुपा रही हो???
मैं उसके सवालों का जवाब बहुत ही संक्षेप में दे रहा था क्योंकि मेरी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी.. वैसे भी मेरा व्यक्तित्व ही बड़े मौन स्वभाव का है.. मैं बहुत काम बोलता हूँ और उसका व्यक्तित्व ठीक मेरे उलट था| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मेरी और आकर्शित महसूस कर रही हो ... तभी उसने सबसे विवादित प्रश्न छेड़ दिया:
माधुरी: तो मानु जी, आपके शादी के बारे में क्या विचार हैं|
मैं: शादी? अभी?
मेरा इतना बोलना था की भाभी भी अपने बाल पोंछते हुए आ गईं... वो हमें बातें करते हुए देख रही थी और जल भून के राख हो चुकीं थी| वो मेरे पास आई और कुछ इस तरह से खड़ी हुई की उनकी पीठ माधुरी की ओर थी... और मेरी ओर देखते हुए अपना गुस्सा प्रकट किया और नेहा को मेरी गोद में से उठा के अपने घर की ओर चल दीं| मैं समझ गया की बेटा आज तेरी शामत है !!! मैं भाभी के पीछे एक दम से तो नहीं जा सकता था वर्ना माधुरी को शक हो जाता| मैं मौके की तलाश में था की कैसे माधुरी को यहाँ से भगाऊँ? मन बड़ा बेचैन हो रहा था... मेरी हालत ऐसी थी जैसे मुझे सांप सूंघ गया हो, और माधुरी पटर-पटर बोले जा रही थी|
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Re: एक अनोखा बंधन
15
अब आगे....
मेरी कोई भी प्रतिक्रिया ना पाते हुए उसने खुद ही बात खत्म की:
माधुरी: लगता है आपका बात करने का मन नहीं है|
मैं: नहीं ऐसी कोई बात नहीं... दरअसल मुझे कल वापस निकलना है.. उसकी पैकिंग भी करनी है|
माधुरी: ओह! मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं... मैं शाम को आती हूँ तब तक तो आपकी पैकिंग हो जाएगी ना?
मैं: हाँ
माधुरी उठ के चल दी पर एक पल के लिए मैं उसकी कही बात को सोचने लगा| आखिर उसका ये कहना की "मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं... " का मतलब क्या था? खेर अभी मैं इस बातको तवज्जो नहीं दे सकता था क्योंकि भाभी नाराज लग रहीं थी| मैं तुरंत भाभी के पीछे उनके घर की ओर भागा| वहाँ पहुँच के देखा तो भाभी अपनी चारपाई पर बैठी हैं ओर नेहा दूसरी चारपाई पे सो रही है|
मैं: भौजी?
भाभी: कैसी लगी माधुरी?
मैं: क्या?
भाभी: बड़ा हँस के बात कर रहे थे उससे?
मैं: भौजी ऐसा नहीं है... आपको ये लग रहा है की वो मुझे अच्छी लगती है ओर हमारे बीच में वो सब....!!!
भाभी: और नहीं तो|
मैं: भौजी आप पागल तो नहीं हो गए? मैं सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ| मैं वहाँ नेहा को कहानी सुना रहा था, जिसे सुनते हुए नेहा सो गई और तभी माधुरी वहाँ आ घमकी ... मैंने उसे नहीं बुलाया .... वो अपने आप आई थी| और हँस-हँस के वो बोल रही थी.. मैं तो बस संक्षेप में उसकी बातों का जवाब दे रहा था और कुछ नहीं... मेरे दिल में उसके लिए कुछ भी नहीं है|
भाभी: मैं नहीं मानती!!!
मैं: ठीक है... मैं ये साबित करता हूँ की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ|
भाभी के शब्द मुझे शूल की तरह चुभ रहे थे| मैं भाग के रसोई तक गया और वहाँ से हंसिया उठा लाया... और भाभी को दिखाते हुए बोला:
मैं: अपनी नस काट लूँ तब तो आपको यकीन हो जायेगा की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ?
भाभी भागती हुई मेरे पास आई और मेरे हाथ से हंसिया छुड़ा के दूर फैंक दिया:
भाभी: मानु मैं तो मजाक कर रही थी... मुझे पता है की तुम मेरे आलावा किसी से प्यार नहीं करते|
मैं: भौजी प्लीज दुबारा ऐसा मत करना वर्ना आप मुझे खो...
मैं अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था की उन्होंने अपना हाथ मेरे होंठों पे रख दिया और मुझे गले लगा लिया...
मुझे खुद को होश नहीं था की मैं ऐसा कदम उठाने जा रहा था... अगर मुझे कुछ हो जाता तो मेरे माँ-बाप का क्या होता? मैंने ये सब सोचा क्यों नहीं? क्या इसी को प्यार कहते हैं!!!
खेर हम अलग हुए ... भोजन के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी ... इसलिए भाभी ने जल्दी-जल्दी भोजन बनाना शुरू किया और मैं उनके सामने बैठा उन्हें निहारने में लगा था| भाभी भी मेरी और देख के मुस्कुरा रही थी... और मेरा दिमाग रात के उपहार के लिए योजना बना रहा था| मन में एक बात की तसल्ली थी तो एक बात का डर भी| तसल्ली इस बात की कि घर में लोग होने कि वजह से कम से कम चन्दर भैया तो भाभी के साथ नहीं सोयेंगे और डर इस बात का कि अगर रात को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा शुरू हो गया तो घर के सब लोग उठ जायेंगे और मेरे सरप्राइज कि धज्जियां उड़ जाएंगी|
दोपहर के भोजन के बाद घर के सब लोग खेत में काम करने जा चुके थे, केवल मैं, भाभी, नेहा और रसिका भाभी ही रह गए थे| रैक भाभी तो हमेशा कि तरह एक चारपाई पे फ़ैल के सो गईं... नेहा मेरे साथ चिड़िया उड़ खेल रही थी... देखते ही देखते भाभी भी हमारे साथ खेलने लगीं| जब हम ऊब गए तो नेहा मेरी गोद में सर रख के लेट गई और मैं भाभी कि गोद में| तकरीबन 1 घंटा ही बीता था कि माधुरी फिर से आ गई... उसे देख मैं भाभी से अलग होक बैठ गया कि कहीं वो शक न करने लगे|
देखने में माधुरी बुरी तो नहीं थी... ठीक थी .. पर मेरे लिए तो भाभी ही सबकुछ थी| उसे सामने देख के मैं और भाभी दोनों ही अनकम्फ़ोर्टब्ले थे... क्योंकि वो उस अकड़ू ठाकुर कि बेटी थी इसलिए भाभी उसे कुछ कह भी नहीं सकती थी|
भाभी उठ के स्वयं चली गई और साथ-साथ नेहा को भी ले गई| जैसा कि आप सभी ने देखा हो ग कि फिल्म में जब लड़के वाले लड़की देखने जाते हैं तो अधिकतर माँ बाप लड़का=लड़की को अकेला छोड़ देते हैं ताकि वो आपस में कुछ बात कर सकें| परन्तु मैं सबसे ज्यादा विचिलित था .. मुझे पता था कि भाभी का मूड फिर ख़राब हो गया होगा| माधुरी मेरे पास एके बैठ गई और पूछने लगी:
माधुरी: तो मानु जी पैकिंग तो हो गई आपकी, अब कब आओगे ?
मैं: पता नहीं.... शायद अगले साल
माधुरी: अगले साल?
उसे बड़ी चिंता थी मेरे अगले साल आने कि??? इस से पहले कि हम और बात करते ... नेहा भागती हुई आई और मुझे अपने साथ खींच के लेजाने लगी| माधुरी पूछ भी रही थी कि कहाँ ले जा रही है? परन्तु नेहा बस मुझे खींचने में लगी हुई थी... मैंने माधुरी से इन्तेजार करने को कहा और नेहा के पीछे चल दिया|नेहा मेरी ऊँगली पकड़ के खींच के मुझे भुट्टे के खेत में ले आई... मैं भी हैरान था कि भला उसे यहाँ क्या काम? जब देखा तो भाभी भुट्टे के खेत में बीचों-बीच बैठी है| उन्हें देख के पहले तो मैं थोड़ा परेशान हुआ... फिर नेहा ने इशारे से ऊपर लगी भुट्टे कि एक बाली मुझे तोड़ने के लिए कहा, मैंने उसे ये बाली तोड़ के दे दी| मैंने भाभी से पूछा कि आप यहाँ क्या कर रहे हो... तो वो मुस्कुराते हुए बोली:
"तुम्हारा इन्तेजार !!!"
मैं: भौजी धीरे बोलो कोई सुन लेगा?
भाभी: कोई भी नहीं है यहाँ... सभी तालाब के पास वाले खेत में काम कर रहे हैं| काका-काकी भी वहीँ हैं अब बोलो?
मैं: और वो जो वहाँ बैठी है?
भाभी: तुम्हारी वजह से उसे कुछ नहीं कहती वर्ना ...
मैं: मेरी वजह से? मैंने कब रोक आपको?
भाभी: मैं देख रही हूँ वो तुम्हें पसंद करने लगी है!!!
मैं: आपने फिर से शुरू कर दिया?
ये कहके मैं अपने पाँव पटकता हुआ वापस आ गया... पता नहीं मुझे भाभी कि इस बात पे हमेशा मिर्ची लग जाती थी| वापस आके मैं माधुरी के सामने वाली चारपाई पे बैठ गया|
माधुरी: कहाँ गए थे आप?
मैं: नेहा को भुट्टे कि बाली तोड़ के देने गया था|
माधुरी: वो उसका क्या करेगी?
मैं: पता नहीं.. शायद खेलेगी|
माधुरी: आपके बाल खुश्क लगते हैं... अगर कहो तो मैं तेल लगा दूँ?
मैं उसकी बात सुन के हैरानी से उसे देखने लगा... आखिर ये मेरे बालों में तेल क्यों लगाना चाहती है? क्या ये मुझसे प्यार करती है? या इसके बाप ने इसे सीखा-पढ़ा के मुझे फंसने भेजा है? मुझपे कब से सुर्खाब के पर लग गए कि ये मुझमें दिलचस्पी ले रही है?
मैं: नहीं शुक्रिया ... दरअसल मैं आज अपने सर में तेल लगाना भूल गया इसलिए इतने रूखे लग रहे हैं|
एक पल को तो लगा कि मैं उसे कह दूँ कि आप मुझ में इतनी दिलचस्पी न लो पर फिर मैंने सोचा कि अगर मैं गलत निकला तो खामखा बेइज्जती हो जाएगी| तभ भाभी आ गई...
भाभी: अरे माधुरी शाम हो रही है.. ठकुराइन तुझे ढूंढती होंगी|
माधुरी: मैं तो उन्हें बता के आई हूँ|
भाभी: तेरे पापा भी आ गए होंगे...
माधुरी: अरे बाप रे.... भाभी मैं बाद में आती हूँ|
ना जाने क्यों अपने बाप का नाम सुनते ही वो भाग खड़ी हुई... पर उसके जाते ही मैंने चैन कि सांस ली|
भाभी: अब तो खुश हो ना?
मैं: (एक लम्बी साँस लेते हुए) हाँ !!!
अब मुझे सच में चिंता होने लगी थी... अगर रात का सरप्राइज फ्लॉप हो गया तो भाभी का दिल टूट जायेगा... और मैं किसी भी कीमत पे उनका दिल नहीं तोडना चाहता था|मन में बस एक ही ख़याल आ रहा था की किस्मत कभी भी किसी को दूसरा मौका नहीं देती... तो मुझे ही मौका पैदा करना होगा| मगर कैसे??? शाम होने को आई थी... सभी लोग घर लौट आये थे| पिताजी, चन्दर भैया और अजय भैया और बड़के दादा (बड़े चाचा) एक साथ बैठे कल कितने बजे निकलना है उसके बारे में बात कर रहे थे| इधर भाभी भोजन बनाने में व्यस्त थी... मैं ठीक उनके सामने बैठा था.... परन्तु अब समय था प्लान बनाने का ... इसलिए मैं चुप-चाप उठा और पिताजी के पास जाके बैठ गया| किसी भी प्लान को बनाने से पहले हालत का जायज़ा लेना जर्रोरी होता है ... इसलिए मैं उनकी बात सुनने के लिए वहीँ चुप-चाप बैठ गया| पिताजी ने अभी तक मेरे और उनके बीच हुई बात का जिक्र किसी से भी नहीं किया था!!!
पिताजी की बातों से ये तो साफ़ था की आज सब लोग छत पे नहीं बल्कि रसोई के पास वाली जगह पे ही सोने वाले हैं| अब मुझे सब से मुख्य बातों पे ध्यान देना था:
१. रसिका भाभी को अजय भैया से दूर रखना और
२. चन्दर भैया को भाभी से दूर रखना|
अगर इनमें से एक भी काम ठीक से नहीं हुआ तो भाभी का दिल टूट जायेगा| समय था मुझे अपनी पहली चाल चलने का... मैं तुरंत भाभी के पास पहुंचा और रसिका भाभी के बारे में पूछा... ये सुन के भाभी थोड़ा हैरान हुईं क्योंकि मैंने आज तक कभी भी किसी से भी रसिका भाभी के बारे में नहीं पूछा था| भाभी ने मुझे बताया की रसिका भाभी बड़े घर में अपने कमरे में सो रही हैं| मुझे ये निश्चित करना था की रसिका भाभी बड़े घर में ही रहे| मैं उनके पास पहुँचा और उन्हें जगाया, जब मैंने उनके सोने का कारन पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि उनका बदन टूट रहा है खेर मैंने बात को बदला और हम गप्पें हाँकने लगे... भाभी को लगा की शायद मैं कल जा रहा हूँ तो उनसे ऐसे ही आखरी बार बात करने आया हूँ| भोजन का समय हो चूका था और मुझे अपनी दूसरी चाल चलनी थी| सबसे पहले मैंने रसिका भाभी से जिद्द की कि आज हम एक साथ ही भोजन करेंगे... एक साथ भोजन का मतलब था कि आमने सामने बैठ के भोजन करना| साथ मैं तो मैं सिर्फ और सिर्फ अपनी प्यारी भाभी के साथ ही भोजन करता था| ये सुन के रसिका भाभी को थोड़ा अचरज तो हुआ पर मैंने उन्हें ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया और मैं हम दोनों का भोजन लेने रसोई पहुँच गया| इधर मेरी प्यारी भाभी मेरे इस बर्ताव से बड़ी अचंभित थी!!! मैं भोजन लेके रसिका भाभी के पास पहुँच गया... और मेरे पीछे-पीछे नेहा भी अपनी थाली ले के आ गई| भोजन करते समय भी रसिका भाभी और मैं गप्पें मारते रहे| भोजन समाप्त होने के बाद मैंने रसिका भाभी से उनकी थाली ले ली... भाभी मना कर रही थी पर मैं अपनी जिद्द पे अड़ा था|
मैं जल्दी से थाली रख के हाथ मुंह धोके वापस आया और अजय भैया को ढूंढने लगा.... भैया मुझे कुऐं के पास टहलते दिखाई दिए| मैं उनके पास पहुँचा और थोड़ा इधर-उधर कि बातें करने लगा... फिर मैंने रसिका भाभी कि बिमारी कि बात छेड़ दी| बात सुन के भैया को तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ा... मुझे मेरा प्लान चौपट होता दिख रहा था| मुझे उम्मीद थी कि शायद ये बात जान के अजय भैया, रसिका भाभी के आस-पास ना भटकें| अब बारी थी चन्दर भैया को सेट करने की... मैं उनके पास पहुँचा... वो तो सोने की तैयारी कर रहे थे| उन्हें देख के लग रहा था की थकान उनके शरीर पे भारी हैं|घर के सभी पुरुष भोजन कर चुके थे... रसिका भाभी खाना खाते ही लेट चुकीं थी| मुझे छोड़के सभी पुरषों के बिस्तर आस-पास लगे हुए थे और वे सभी अपने-अपने बिस्तर पर लेट चुके थे... पिताजी, बड़के दादा (बड़े चाचा) सो चुके थे... अजय भैया की चारपाई चन्दर भैया के पास ही थी और वो भी लेट चुके थे|
अब केवल घर की स्त्रियां ही भोजन कर रहीं थी.... मुझे कैसे भी कर के भाभी तक ये बात पहुँचानी थी की वे आज रात के सरप्राइज के लिए तैयार रहे| इसलिए मैं टहलते-टहलते छापर के नीचे पहुँच गया... माँ भोजन समाप्त कर उठ रहीं थी| बड़की अम्मा (बड़ी चाची) भी लगभग उठने ही वालीं थी और भाभी बड़े आराम से भोजन कर रहीं थी| जब माँ और अब्द्की अम्मा (बड़ी चाची) भोजन कर के चले गए तब मैंने भाभी को आँख मारते हुए कहा:
मैं: भौजी आपका तौफा बिलकुल तैयार है|
भाभी: अच्छा?
मैं: मैं सोने जा रहा हूँ... जब आपको लगे सब सो गए हैं तब आप मुझे उठा देना|
भाभी: ठीक है!!!
भाभी के चेहरे से उनकी प्रसन्ता झलक रही थी...और उन्हें खुश देख के मैं भी खुश था| खेर मैं अपने बिस्तर पे आके लेट गया और ऐसा दिखाया की जैसे मैं घोड़े बेच के सोया हूँ पर असल में मैं उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था जब भाभी मुझे उठाने आएं| करीब रात के ग्यारह बजे भाभी मुझे उठाने आईं... मैं चुप-चाप उठा और उनके पीछे-पीछे चल दिया| अंदर पहुँच के भाभी ने दरवाजा बंद किया .... जैसे ही वो पलटीं मैं उनके सामने खड़ा था| मैंने आगे बढ़के उन्हें अपने सीने से लगा लिया... भाभी मेरे इस आलिंगन से कसमसा गईं और मुझसे ऐसे चिपक गईं जैसे कोई जंगली बेल पेड़ से चिपक जाती है| आज मैं किसी भी जल्दी में नहीं था क्योंकि मैं चाहता था की भाभी हर एक सेकंड को महसूस करे और हमेशा याद रखे| मैं उन्हें इतनी खुशियाँ देना चाहता था की भाभी साड़ी उम्र इन पलों को याद रखे| करीब पाँच मिनट बाद जब हमारा आलिंगन टूटा तो मैंने भाभी से दरख्वास्त की:
मैं: भौजी... आप पलंग पे ठीक वैसे बैठ जाओ जैसे आप अपनी शादी वाली रात बैठे थे|
भाभी घुटने मोड़े ओए एक हाथ का घूँघट काढ़े पलंग पे बैठी थी... और सच बताऊँ मित्रों तो वो बिलकुल एक नई नवेली दुल्हन जैसी दिख रही थी| मैं किसी कुँवर की तरह उनकी ओर बढ़ा ओर उनकी तरफ मुँह करके ठीक सामने बैठ गया| मैंने अपने हाथ से उनका घूँघट बड़ी सहजता के साथ उठाया...भाभी की नजरें नीचे झुकीं थी... मैंने जब उनकी ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई तब हमारी आँखें एक दूसरे से मिलीं और कुछ क्षण के लिए मैं उनकी आँखों में देखता ही रहा| ऐसा लगा जैसे चाँद बादलों से निकल आया हो... मैंने ध्यान दिया की भाभी ने थोड़ा बहुत साज श्रृंगार किया है... उनके होंठों पे लाली थी.... बाल सवरें और खुले हुए.... चेहरा दमक रहा था... उनके शरीर से मीठी-मीठी गुलाब जल की खुशबु आ रही थी... सच कहूँ तो मैंने भाभी को देखना कभी कल्पना भी नहीं की थी... और मैं खुद को भाभी की तारीफ करने से नहीं रोक पाया:
"आप खूबसूरत हैं इतने,
के हर शख्स की ज़ुबान पर आप ही का तराना है,
हम नाचीज़ तो कहाँ किसी के काबिल,
और आपका तो खुदा भी दीवाना है... |"
मैंने आगे बढ़ के उनके लाल होंठों को चूम लिया... मेरे दोनों हाथों ने भाभी के चेहरे को कैद कर रखा था और मैं अपने होंठों से उनके होंठों को चूस रहा था... भाभी भी जवाबी हमला कर रही थी .... कभी मैं तो कभी भाभी, हमारे थिरकते लबों को चूम और चूस रहे थे... ऐसा करीब पाँच मिनट तक चला.... जब मैं और भाभी अलग हुए तो भाभी ने कहा:
"मानु... तुम्हारे लिए कुछ है?"
मैं: क्या?
भाभी उठीं और खिड़की में रखा गिलास उठा लाईं|
मैं: दूध.... पर इसकी क्या जर्रूरत थी?
भाभी: ये एक रसम होती है की दुल्हन अपने दूल्हे को अपने हाथ से दूध पिलाये|
भाभी मेरे पास बैठ गईं और मुझे अपने हाथ से दूध पिलाया... मैंने केवल आधा गिलास ही दूध पिया और बाकी मैंने भाभी की और बढ़ा दिया....
भाभी: मानु मुझे दूध अच्छा नहीं लगता....
मैं: मेरे लिए पी लो !
और ये कह के मैंने भाभी के हाथ से गिलास ले लिया और उन्हें स्वयं पिलाने लगा...
अब आगे....
मेरी कोई भी प्रतिक्रिया ना पाते हुए उसने खुद ही बात खत्म की:
माधुरी: लगता है आपका बात करने का मन नहीं है|
मैं: नहीं ऐसी कोई बात नहीं... दरअसल मुझे कल वापस निकलना है.. उसकी पैकिंग भी करनी है|
माधुरी: ओह! मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं... मैं शाम को आती हूँ तब तक तो आपकी पैकिंग हो जाएगी ना?
मैं: हाँ
माधुरी उठ के चल दी पर एक पल के लिए मैं उसकी कही बात को सोचने लगा| आखिर उसका ये कहना की "मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं... " का मतलब क्या था? खेर अभी मैं इस बातको तवज्जो नहीं दे सकता था क्योंकि भाभी नाराज लग रहीं थी| मैं तुरंत भाभी के पीछे उनके घर की ओर भागा| वहाँ पहुँच के देखा तो भाभी अपनी चारपाई पर बैठी हैं ओर नेहा दूसरी चारपाई पे सो रही है|
मैं: भौजी?
भाभी: कैसी लगी माधुरी?
मैं: क्या?
भाभी: बड़ा हँस के बात कर रहे थे उससे?
मैं: भौजी ऐसा नहीं है... आपको ये लग रहा है की वो मुझे अच्छी लगती है ओर हमारे बीच में वो सब....!!!
भाभी: और नहीं तो|
मैं: भौजी आप पागल तो नहीं हो गए? मैं सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ| मैं वहाँ नेहा को कहानी सुना रहा था, जिसे सुनते हुए नेहा सो गई और तभी माधुरी वहाँ आ घमकी ... मैंने उसे नहीं बुलाया .... वो अपने आप आई थी| और हँस-हँस के वो बोल रही थी.. मैं तो बस संक्षेप में उसकी बातों का जवाब दे रहा था और कुछ नहीं... मेरे दिल में उसके लिए कुछ भी नहीं है|
भाभी: मैं नहीं मानती!!!
मैं: ठीक है... मैं ये साबित करता हूँ की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ|
भाभी के शब्द मुझे शूल की तरह चुभ रहे थे| मैं भाग के रसोई तक गया और वहाँ से हंसिया उठा लाया... और भाभी को दिखाते हुए बोला:
मैं: अपनी नस काट लूँ तब तो आपको यकीन हो जायेगा की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ?
भाभी भागती हुई मेरे पास आई और मेरे हाथ से हंसिया छुड़ा के दूर फैंक दिया:
भाभी: मानु मैं तो मजाक कर रही थी... मुझे पता है की तुम मेरे आलावा किसी से प्यार नहीं करते|
मैं: भौजी प्लीज दुबारा ऐसा मत करना वर्ना आप मुझे खो...
मैं अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था की उन्होंने अपना हाथ मेरे होंठों पे रख दिया और मुझे गले लगा लिया...
मुझे खुद को होश नहीं था की मैं ऐसा कदम उठाने जा रहा था... अगर मुझे कुछ हो जाता तो मेरे माँ-बाप का क्या होता? मैंने ये सब सोचा क्यों नहीं? क्या इसी को प्यार कहते हैं!!!
खेर हम अलग हुए ... भोजन के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी ... इसलिए भाभी ने जल्दी-जल्दी भोजन बनाना शुरू किया और मैं उनके सामने बैठा उन्हें निहारने में लगा था| भाभी भी मेरी और देख के मुस्कुरा रही थी... और मेरा दिमाग रात के उपहार के लिए योजना बना रहा था| मन में एक बात की तसल्ली थी तो एक बात का डर भी| तसल्ली इस बात की कि घर में लोग होने कि वजह से कम से कम चन्दर भैया तो भाभी के साथ नहीं सोयेंगे और डर इस बात का कि अगर रात को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा शुरू हो गया तो घर के सब लोग उठ जायेंगे और मेरे सरप्राइज कि धज्जियां उड़ जाएंगी|
दोपहर के भोजन के बाद घर के सब लोग खेत में काम करने जा चुके थे, केवल मैं, भाभी, नेहा और रसिका भाभी ही रह गए थे| रैक भाभी तो हमेशा कि तरह एक चारपाई पे फ़ैल के सो गईं... नेहा मेरे साथ चिड़िया उड़ खेल रही थी... देखते ही देखते भाभी भी हमारे साथ खेलने लगीं| जब हम ऊब गए तो नेहा मेरी गोद में सर रख के लेट गई और मैं भाभी कि गोद में| तकरीबन 1 घंटा ही बीता था कि माधुरी फिर से आ गई... उसे देख मैं भाभी से अलग होक बैठ गया कि कहीं वो शक न करने लगे|
देखने में माधुरी बुरी तो नहीं थी... ठीक थी .. पर मेरे लिए तो भाभी ही सबकुछ थी| उसे सामने देख के मैं और भाभी दोनों ही अनकम्फ़ोर्टब्ले थे... क्योंकि वो उस अकड़ू ठाकुर कि बेटी थी इसलिए भाभी उसे कुछ कह भी नहीं सकती थी|
भाभी उठ के स्वयं चली गई और साथ-साथ नेहा को भी ले गई| जैसा कि आप सभी ने देखा हो ग कि फिल्म में जब लड़के वाले लड़की देखने जाते हैं तो अधिकतर माँ बाप लड़का=लड़की को अकेला छोड़ देते हैं ताकि वो आपस में कुछ बात कर सकें| परन्तु मैं सबसे ज्यादा विचिलित था .. मुझे पता था कि भाभी का मूड फिर ख़राब हो गया होगा| माधुरी मेरे पास एके बैठ गई और पूछने लगी:
माधुरी: तो मानु जी पैकिंग तो हो गई आपकी, अब कब आओगे ?
मैं: पता नहीं.... शायद अगले साल
माधुरी: अगले साल?
उसे बड़ी चिंता थी मेरे अगले साल आने कि??? इस से पहले कि हम और बात करते ... नेहा भागती हुई आई और मुझे अपने साथ खींच के लेजाने लगी| माधुरी पूछ भी रही थी कि कहाँ ले जा रही है? परन्तु नेहा बस मुझे खींचने में लगी हुई थी... मैंने माधुरी से इन्तेजार करने को कहा और नेहा के पीछे चल दिया|नेहा मेरी ऊँगली पकड़ के खींच के मुझे भुट्टे के खेत में ले आई... मैं भी हैरान था कि भला उसे यहाँ क्या काम? जब देखा तो भाभी भुट्टे के खेत में बीचों-बीच बैठी है| उन्हें देख के पहले तो मैं थोड़ा परेशान हुआ... फिर नेहा ने इशारे से ऊपर लगी भुट्टे कि एक बाली मुझे तोड़ने के लिए कहा, मैंने उसे ये बाली तोड़ के दे दी| मैंने भाभी से पूछा कि आप यहाँ क्या कर रहे हो... तो वो मुस्कुराते हुए बोली:
"तुम्हारा इन्तेजार !!!"
मैं: भौजी धीरे बोलो कोई सुन लेगा?
भाभी: कोई भी नहीं है यहाँ... सभी तालाब के पास वाले खेत में काम कर रहे हैं| काका-काकी भी वहीँ हैं अब बोलो?
मैं: और वो जो वहाँ बैठी है?
भाभी: तुम्हारी वजह से उसे कुछ नहीं कहती वर्ना ...
मैं: मेरी वजह से? मैंने कब रोक आपको?
भाभी: मैं देख रही हूँ वो तुम्हें पसंद करने लगी है!!!
मैं: आपने फिर से शुरू कर दिया?
ये कहके मैं अपने पाँव पटकता हुआ वापस आ गया... पता नहीं मुझे भाभी कि इस बात पे हमेशा मिर्ची लग जाती थी| वापस आके मैं माधुरी के सामने वाली चारपाई पे बैठ गया|
माधुरी: कहाँ गए थे आप?
मैं: नेहा को भुट्टे कि बाली तोड़ के देने गया था|
माधुरी: वो उसका क्या करेगी?
मैं: पता नहीं.. शायद खेलेगी|
माधुरी: आपके बाल खुश्क लगते हैं... अगर कहो तो मैं तेल लगा दूँ?
मैं उसकी बात सुन के हैरानी से उसे देखने लगा... आखिर ये मेरे बालों में तेल क्यों लगाना चाहती है? क्या ये मुझसे प्यार करती है? या इसके बाप ने इसे सीखा-पढ़ा के मुझे फंसने भेजा है? मुझपे कब से सुर्खाब के पर लग गए कि ये मुझमें दिलचस्पी ले रही है?
मैं: नहीं शुक्रिया ... दरअसल मैं आज अपने सर में तेल लगाना भूल गया इसलिए इतने रूखे लग रहे हैं|
एक पल को तो लगा कि मैं उसे कह दूँ कि आप मुझ में इतनी दिलचस्पी न लो पर फिर मैंने सोचा कि अगर मैं गलत निकला तो खामखा बेइज्जती हो जाएगी| तभ भाभी आ गई...
भाभी: अरे माधुरी शाम हो रही है.. ठकुराइन तुझे ढूंढती होंगी|
माधुरी: मैं तो उन्हें बता के आई हूँ|
भाभी: तेरे पापा भी आ गए होंगे...
माधुरी: अरे बाप रे.... भाभी मैं बाद में आती हूँ|
ना जाने क्यों अपने बाप का नाम सुनते ही वो भाग खड़ी हुई... पर उसके जाते ही मैंने चैन कि सांस ली|
भाभी: अब तो खुश हो ना?
मैं: (एक लम्बी साँस लेते हुए) हाँ !!!
अब मुझे सच में चिंता होने लगी थी... अगर रात का सरप्राइज फ्लॉप हो गया तो भाभी का दिल टूट जायेगा... और मैं किसी भी कीमत पे उनका दिल नहीं तोडना चाहता था|मन में बस एक ही ख़याल आ रहा था की किस्मत कभी भी किसी को दूसरा मौका नहीं देती... तो मुझे ही मौका पैदा करना होगा| मगर कैसे??? शाम होने को आई थी... सभी लोग घर लौट आये थे| पिताजी, चन्दर भैया और अजय भैया और बड़के दादा (बड़े चाचा) एक साथ बैठे कल कितने बजे निकलना है उसके बारे में बात कर रहे थे| इधर भाभी भोजन बनाने में व्यस्त थी... मैं ठीक उनके सामने बैठा था.... परन्तु अब समय था प्लान बनाने का ... इसलिए मैं चुप-चाप उठा और पिताजी के पास जाके बैठ गया| किसी भी प्लान को बनाने से पहले हालत का जायज़ा लेना जर्रोरी होता है ... इसलिए मैं उनकी बात सुनने के लिए वहीँ चुप-चाप बैठ गया| पिताजी ने अभी तक मेरे और उनके बीच हुई बात का जिक्र किसी से भी नहीं किया था!!!
पिताजी की बातों से ये तो साफ़ था की आज सब लोग छत पे नहीं बल्कि रसोई के पास वाली जगह पे ही सोने वाले हैं| अब मुझे सब से मुख्य बातों पे ध्यान देना था:
१. रसिका भाभी को अजय भैया से दूर रखना और
२. चन्दर भैया को भाभी से दूर रखना|
अगर इनमें से एक भी काम ठीक से नहीं हुआ तो भाभी का दिल टूट जायेगा| समय था मुझे अपनी पहली चाल चलने का... मैं तुरंत भाभी के पास पहुंचा और रसिका भाभी के बारे में पूछा... ये सुन के भाभी थोड़ा हैरान हुईं क्योंकि मैंने आज तक कभी भी किसी से भी रसिका भाभी के बारे में नहीं पूछा था| भाभी ने मुझे बताया की रसिका भाभी बड़े घर में अपने कमरे में सो रही हैं| मुझे ये निश्चित करना था की रसिका भाभी बड़े घर में ही रहे| मैं उनके पास पहुँचा और उन्हें जगाया, जब मैंने उनके सोने का कारन पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि उनका बदन टूट रहा है खेर मैंने बात को बदला और हम गप्पें हाँकने लगे... भाभी को लगा की शायद मैं कल जा रहा हूँ तो उनसे ऐसे ही आखरी बार बात करने आया हूँ| भोजन का समय हो चूका था और मुझे अपनी दूसरी चाल चलनी थी| सबसे पहले मैंने रसिका भाभी से जिद्द की कि आज हम एक साथ ही भोजन करेंगे... एक साथ भोजन का मतलब था कि आमने सामने बैठ के भोजन करना| साथ मैं तो मैं सिर्फ और सिर्फ अपनी प्यारी भाभी के साथ ही भोजन करता था| ये सुन के रसिका भाभी को थोड़ा अचरज तो हुआ पर मैंने उन्हें ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया और मैं हम दोनों का भोजन लेने रसोई पहुँच गया| इधर मेरी प्यारी भाभी मेरे इस बर्ताव से बड़ी अचंभित थी!!! मैं भोजन लेके रसिका भाभी के पास पहुँच गया... और मेरे पीछे-पीछे नेहा भी अपनी थाली ले के आ गई| भोजन करते समय भी रसिका भाभी और मैं गप्पें मारते रहे| भोजन समाप्त होने के बाद मैंने रसिका भाभी से उनकी थाली ले ली... भाभी मना कर रही थी पर मैं अपनी जिद्द पे अड़ा था|
मैं जल्दी से थाली रख के हाथ मुंह धोके वापस आया और अजय भैया को ढूंढने लगा.... भैया मुझे कुऐं के पास टहलते दिखाई दिए| मैं उनके पास पहुँचा और थोड़ा इधर-उधर कि बातें करने लगा... फिर मैंने रसिका भाभी कि बिमारी कि बात छेड़ दी| बात सुन के भैया को तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ा... मुझे मेरा प्लान चौपट होता दिख रहा था| मुझे उम्मीद थी कि शायद ये बात जान के अजय भैया, रसिका भाभी के आस-पास ना भटकें| अब बारी थी चन्दर भैया को सेट करने की... मैं उनके पास पहुँचा... वो तो सोने की तैयारी कर रहे थे| उन्हें देख के लग रहा था की थकान उनके शरीर पे भारी हैं|घर के सभी पुरुष भोजन कर चुके थे... रसिका भाभी खाना खाते ही लेट चुकीं थी| मुझे छोड़के सभी पुरषों के बिस्तर आस-पास लगे हुए थे और वे सभी अपने-अपने बिस्तर पर लेट चुके थे... पिताजी, बड़के दादा (बड़े चाचा) सो चुके थे... अजय भैया की चारपाई चन्दर भैया के पास ही थी और वो भी लेट चुके थे|
अब केवल घर की स्त्रियां ही भोजन कर रहीं थी.... मुझे कैसे भी कर के भाभी तक ये बात पहुँचानी थी की वे आज रात के सरप्राइज के लिए तैयार रहे| इसलिए मैं टहलते-टहलते छापर के नीचे पहुँच गया... माँ भोजन समाप्त कर उठ रहीं थी| बड़की अम्मा (बड़ी चाची) भी लगभग उठने ही वालीं थी और भाभी बड़े आराम से भोजन कर रहीं थी| जब माँ और अब्द्की अम्मा (बड़ी चाची) भोजन कर के चले गए तब मैंने भाभी को आँख मारते हुए कहा:
मैं: भौजी आपका तौफा बिलकुल तैयार है|
भाभी: अच्छा?
मैं: मैं सोने जा रहा हूँ... जब आपको लगे सब सो गए हैं तब आप मुझे उठा देना|
भाभी: ठीक है!!!
भाभी के चेहरे से उनकी प्रसन्ता झलक रही थी...और उन्हें खुश देख के मैं भी खुश था| खेर मैं अपने बिस्तर पे आके लेट गया और ऐसा दिखाया की जैसे मैं घोड़े बेच के सोया हूँ पर असल में मैं उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था जब भाभी मुझे उठाने आएं| करीब रात के ग्यारह बजे भाभी मुझे उठाने आईं... मैं चुप-चाप उठा और उनके पीछे-पीछे चल दिया| अंदर पहुँच के भाभी ने दरवाजा बंद किया .... जैसे ही वो पलटीं मैं उनके सामने खड़ा था| मैंने आगे बढ़के उन्हें अपने सीने से लगा लिया... भाभी मेरे इस आलिंगन से कसमसा गईं और मुझसे ऐसे चिपक गईं जैसे कोई जंगली बेल पेड़ से चिपक जाती है| आज मैं किसी भी जल्दी में नहीं था क्योंकि मैं चाहता था की भाभी हर एक सेकंड को महसूस करे और हमेशा याद रखे| मैं उन्हें इतनी खुशियाँ देना चाहता था की भाभी साड़ी उम्र इन पलों को याद रखे| करीब पाँच मिनट बाद जब हमारा आलिंगन टूटा तो मैंने भाभी से दरख्वास्त की:
मैं: भौजी... आप पलंग पे ठीक वैसे बैठ जाओ जैसे आप अपनी शादी वाली रात बैठे थे|
भाभी घुटने मोड़े ओए एक हाथ का घूँघट काढ़े पलंग पे बैठी थी... और सच बताऊँ मित्रों तो वो बिलकुल एक नई नवेली दुल्हन जैसी दिख रही थी| मैं किसी कुँवर की तरह उनकी ओर बढ़ा ओर उनकी तरफ मुँह करके ठीक सामने बैठ गया| मैंने अपने हाथ से उनका घूँघट बड़ी सहजता के साथ उठाया...भाभी की नजरें नीचे झुकीं थी... मैंने जब उनकी ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई तब हमारी आँखें एक दूसरे से मिलीं और कुछ क्षण के लिए मैं उनकी आँखों में देखता ही रहा| ऐसा लगा जैसे चाँद बादलों से निकल आया हो... मैंने ध्यान दिया की भाभी ने थोड़ा बहुत साज श्रृंगार किया है... उनके होंठों पे लाली थी.... बाल सवरें और खुले हुए.... चेहरा दमक रहा था... उनके शरीर से मीठी-मीठी गुलाब जल की खुशबु आ रही थी... सच कहूँ तो मैंने भाभी को देखना कभी कल्पना भी नहीं की थी... और मैं खुद को भाभी की तारीफ करने से नहीं रोक पाया:
"आप खूबसूरत हैं इतने,
के हर शख्स की ज़ुबान पर आप ही का तराना है,
हम नाचीज़ तो कहाँ किसी के काबिल,
और आपका तो खुदा भी दीवाना है... |"
मैंने आगे बढ़ के उनके लाल होंठों को चूम लिया... मेरे दोनों हाथों ने भाभी के चेहरे को कैद कर रखा था और मैं अपने होंठों से उनके होंठों को चूस रहा था... भाभी भी जवाबी हमला कर रही थी .... कभी मैं तो कभी भाभी, हमारे थिरकते लबों को चूम और चूस रहे थे... ऐसा करीब पाँच मिनट तक चला.... जब मैं और भाभी अलग हुए तो भाभी ने कहा:
"मानु... तुम्हारे लिए कुछ है?"
मैं: क्या?
भाभी उठीं और खिड़की में रखा गिलास उठा लाईं|
मैं: दूध.... पर इसकी क्या जर्रूरत थी?
भाभी: ये एक रसम होती है की दुल्हन अपने दूल्हे को अपने हाथ से दूध पिलाये|
भाभी मेरे पास बैठ गईं और मुझे अपने हाथ से दूध पिलाया... मैंने केवल आधा गिलास ही दूध पिया और बाकी मैंने भाभी की और बढ़ा दिया....
भाभी: मानु मुझे दूध अच्छा नहीं लगता....
मैं: मेरे लिए पी लो !
और ये कह के मैंने भाभी के हाथ से गिलास ले लिया और उन्हें स्वयं पिलाने लगा...