“अरे कहा हो..???”तब तक जेठानी की आवाज़ गूंजी.
मैं दबे पांव वहाँ से बरामदे की ओर चली आई, जहाँ जेठानी के साथ मेरी बड़ी ननद भी थी. दूर से होली के हुलियारों की आवाज़ें हल्की-हल्की आ रही थी. जेठानी के हाथ में वैसी ही बोतल थी जो ‘ये’ और ननदोई जी पी चुके थे और जबरन मेरे भाई को पीला रहे थे. मैं लाख ना-नुकुर करती रही कि आज तक मैंने कभी दारू नहीं पिया लेकिन वो दोनों कहां मानने वाली थी..???
जबरन मेरे मुँह से लगा कर ननद बोली, “भाभी, होली तो होती ही है नए-नए काम करने के लिये, आज से पहले आपने वो खारा शरबत पिया नहीं होगा जो चार-पाँच गिलास गटक गई और अभी तो होली के साथ-साथ आपके खाने-पिने की शुरुआत हुई है, जो आपने सोचा भी नहीं होगा वो सब….”
जेठानी उसकी बात काट के बोली, “अरे तुने पिलाया भी तो है बेचारी अपनी छोटी ननद को… ले गटक मर्दों की अलमारी से निकाल के लाए है हम…”
फिर थोड़ी देर में बोतल खाली हो गई. ये मुझे बाद में अहसास हुआ कि आधे से ज्यादा बोतल उन दोनों ने मिल के मुझे पिलाया और बाकि उन दोनों ने……… लग रहा था कि कोई तेज तेजाब ऐसा गले से जा रहा हो, भभक भी तेज थी, लेकिन उन दोनों ने मेरी नाक बंद की और उसका असर भी 5 मिनट के अंदर होने लगा. मैं इतनी चुदासी हो रही थी कि कोई भी (मेरा भाई भी) आ के मुझे चोद देता तो मैं मना नहीं करती. ननद अब अंदर चली गई थी.
थोड़ी देर में होली के हुलियारों की भीड़ एकदम पास में आ गई. वो ज़ोर-ज़ोर से कबीरा, गालियां और फाग गा रहे थे. जेठानी ने मुझे उकसाया और हम दोनों ने जरा सा खिड़की खोल दी, फिर तो तूफ़ान ही आ गया. गालियों का और रंग का सैलाब फुट पड़ा. नशे की मारी मैं……. मैंने भी 1 बाल्टी रंग उठा के सीधे फेंका. ज्यादातर मेरे गाँव के रिश्ते से देवर लगते थे, पर फागुन में कहते है ना कि बुढवा (budhava) भी देवर लगते है इसलिए होली के दिन तो बस एक रिश्ता होता है, लंड और चूत का.
रंग पड़ते ही वो बोल उठे, “हे भौजी खोला केवाड़ी, उठावा साड़ी, तोहरी बुरिया में हम चलाइब गाड़ी.”
“अरे ये भी बुर में जायेंगे, लौड़े का धक्का खायेंगे.” दूसरा बोला.
मैं मस्त हो उठी. जेठानी ने मुझे एक idea दिया. मैंने खिड़की खोल के उन्हें अपना आँचल लहरा के, रसीले जोबन का दर्शन करा के उन्हें न्योता दे दिया.
सब झूम-झूम के गा रहे थे,
“अरे नक बेसर कागा लई भागा, सैंया अभागा ना जागा. अरे हमरी भौजी का….
उड़-उड़ कागा, बिंदिया पे बैठा, मथवा का सब रस लई भागा,
उड़-उड़ कागा, नथिया पे बैठा, होंठवा का सब रस लई भागा, अरे हमरी भौजी का….
उड़-उड़ कागा, चोलीया पे बैठा, जुबना का सब रस लई भागा,
उड़-उड़ कागा, करधन पे बैठा, कमर का सब रस लई भागा, अरे हमरी भौजी का….
उड़-उड़ कागा, साया पे बैठा, चूत का सब रस लई भागा,”
एक हुडदंगी जेठानी से बोला, “अरे नई भौजी को बाहर भेजा ना…. होली खेले को…. वरना हम सब अंदर घुस के…..”
जेठानी ने घबरा के कहा, “अरे भेजती हू अंदर मत आना……”
मैं भी नशे में तो थी, बोल उठी, “अरे आती हूँ, देखती हू कितनी लंबी और मोटी है तुम लोगों की पिचकारी.? और कितना रंग है उसमे.? या सब कुछ अपनी बहनों की बाल्टी में खाली कर के आए हो.?!?”
अब तो वो और बैचेन हो गए. जेठानी ने खिड़की बंद कर दिया. उधर से मेरी छोटी ननद आ गई. अब हम लोगों का plan कामयाब हो गया. हम दोनों ने पकड़ कर उसकी साड़ी, चोली सब उतार दी और मेरी साड़ी चोली उसे पहना दी.
(bra ना तो उसने पहनी थी ना मैंने, वो तो सुबह की होली में ही फट गई थी. उसके कपड़े मैंने पहन लिए और दरवाजा थोड़ा खोल के धक्के दे के उसे हुलियारों के हवाले कर दिया. उसकी चोली मुझे थोड़ी Tight पड़ रही थी. सो मैंने ऊपर के दो बटन खुले ही छोड़ दिये और उसकी साड़ी को जैसे-तैसे लपेट लिया.)
सुबह से रंग, पेन्ट, वार्निश इतना पुत चुका था कि चेहरा तो पहचाना जा नहीं रहा था. हाँ साड़ी और आँचल की झलक और चोली का दर्शन मैंने उन सब को इसीलिये करा दिया था कि ज़रा भी शक ना रहे. बेचारी ननद पल भर में ही वो रंग से सराबोर हो गई. उसकी साड़ी, चोली सब देह से चिपके हुए, जोबन का मस्त किशोर उभार साफ-साफ झलक रहा था, यहाँ तक कि कड़े चुचुक (Nipples) भी……. नीचे भी पतली साड़ी जांघों से चिपकी, गोरी गुदाज़ रानें साफ साफ दिख रही थी. फिर तो किसी ने चोली के अंदर हाथ डाल के जोबन पे रंग लगाना, मसलना शुरू किया तो किसी ने सीधे जांघों के बीच……
जेठानी ने ये नज़ारा देख के ज़ोर से बोला, “ले लो बिन्नो आज होली का मज़ा, अपने भाइयों के साथ.”
मैं जेठानी के साथ बैठी देख रही थी अपनी छोटी ननद की हालत जो…. लेकिन मेरा मन कर रहा था कि काश मैं ही चली जाती उसकी जगह… इतने सारे मर्द…….. कम से कम……. सुबह से इतनी चुदवासी लग रही थी…. सोचा था गाँव में इतनी खुल के होली होती है और नई बहु को तो सारे के सारे मर्द कस-कस के रगड़ते होंगे लेकिन यहां तो एक भी लंड……. इस समय कोई भी मिल जाता तो…. चुदवाने को कौन कहे….??? मैं ही पटक के उसे चोद देती. दारू के चक्कर में जो थोड़ी बहुत झिझक थी वो भी खत्म हो गई थी.
होली में फट गई चोली.....................
Re: होली में फट गई चोली.....................
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A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.
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Re: होली में फट गई चोली.....................
तब तक एक किशोर, चेहरा रंग से अच्छी तरह पुता और साथ में मेरी बड़ी छिनाल ननद.
वो हँस के मुझसे बोली, “ये तेरा छोटा देवर है. ज़रा शर्मीला है लेकिन कस के रंग लगाना…” फिर क्या था,
“अरे शर्म क्या.? मैं इसका सब कुछ छुडा दूंगी, बस देखते रहिये.” और मैंने उसे कस के पकड़ लिया.
वो बेचारा ना-ना करता रहा, लेकिन मेरी ननद और जेठानी इतने ज़ोर-ज़ोर से मुझे ललकार रही थी कि मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था. उसके चेहरे पे मैंने कस के रंग लगाया, मुलायम गाल रगड़ डाले…..
“हाय भाभी, रंग देवर के साथ खेल रही है या उसके कपड़ो के साथ…अरे देवर-भाभी की होली है, ज़रा कस के….” जेठानी ने चढ़ाया, “अरे फाड़ दे कपड़े इसके…पहले कपड़े फाड़ फिर इसकी गाण्ड.”
फिर क्या था.? मैंने पहले तो कुर्ता खींच के फाड़ दिया. जेठानी ने उसके दोनों हाथ पकड़े तो मैंने पजामे का नाडा भी खोल दिया. अब वो सिर्फ चड्डी में. ननद ने भी उसके साथ मिल के मेरी साड़ी खींच दी और चोली खींचते हुए फाड़ दी. पेटीकोट को ऊपर नाड़े में ही खौंस दिया मैंने…..
चड्डी उसकी तनी हुई थी. एक झटके में मैंने उसे भी नीचे खींच दिया और उसका 6 inch का तन्नाया लंड बाहर. शरमा कर उसने उसे छिपाने की कोशिश की लेकिन तब तक उसे गिरा के मैं उसके ऊपर चढ़ चुकी थी. दोनों हाथों में कालिख लगा के उसके गोरे लंड को कस-कस कर मुट्ठिया रही थी. तब तक मेरी ननद ने मेरी भी वही हालत कर दी और बोली, “भाभी अगर हिम्मत है तो इसके लंड को अंदर ले के होली खेलिए.”
मैं तो चुदासी थी ही, थोड़ी देर चूत मैंने उसके लंड के ऊपर रगड़ी और फिर एक झटके में अंदर.
“साले, ये ले मेरी चुची. रगड़, मसल और कस के चोद….. अगर अपनी माँ का बेटा है तो दिखा दे कि तू असली मर्द है….. ले ले चोद और अगर किसी रंडी, छिनाल की औलाद है तो…..” मैंने बोला और हचक-हचक के चोदना शुरू कर दिया.
इतनी देर से मेरी प्यासी चूत को लंड मिला था. वो कुछ बोलना चाहता था लेकिन मेरी जेठानी ने उसका मुँह रंग लगाने के साथ-साथ बंद भी कर रखा था. थोड़ी देर में अपने आप वो चूतड़ उछालने लगा और फिर मैंने भी अपनी चूत सिकोड़ के, चुचियाँ उसके सीने पे रगड़-रगड़ के चोदना शुरू कर दिया. मेरे बदन का सब रंग उसकी देह में लग रहा था. ननद मेरी चुचियों पर रंग लगाती और वही रंग मैं उसके सीने पर पोत देती.
थोड़ी देर तक तो वो नीचे रहा लेकिन फिर मुझे नीच गिरा कर खुद ऊपर चढ़ के चोदने लगा. नशे में चूर मुझे कुछ नहीं पता चल रहा था बस मज़ा बहुत आ रहा था. कल रात से ही जो मैं झड नहीं पाई थी और बहुत चुदासी हो रही थी. वो तो चोद ही रहा था, साथ में ननद भी कभी मेरे चुचक पर तो कभी clit पे रंग लगाने के बहाने फ्लिक कर देती.
तभी मैंने देखा कि ननदोई जी, उन्होंने उंगली के इशारे से मुझे चुप रहने को कहा और कपड़े उतार के अपना खूब मोटा कड़ा लंड (penis)…………… मैं समझ गई और मेरे पैर जो उसकी पीठ पे थे पूरी ताकत से मैंने कैची की तरह कस के बांध लिये. वो बेचारा तिलमिलाता रहा… लेकिन जब तक वो समझे उसकी गाण्ड चिर कर उन्होंने खूब मोटा लाल सुपाडे वाला लंड उसकी गाण्ड के छेद पर लगा दिया था और कमर पकड़ कर जो करारा धक्का मारा एक बार में ही पूरा सुपाड़ा अंदर पैबस्त हो गया. बेचारा चीख भी नही पाया क्योंकि उसके मुँह में मैंने जानबूझ के अपनी मोटी चुची ठेल दी थी.
वो हँस के मुझसे बोली, “ये तेरा छोटा देवर है. ज़रा शर्मीला है लेकिन कस के रंग लगाना…” फिर क्या था,
“अरे शर्म क्या.? मैं इसका सब कुछ छुडा दूंगी, बस देखते रहिये.” और मैंने उसे कस के पकड़ लिया.
वो बेचारा ना-ना करता रहा, लेकिन मेरी ननद और जेठानी इतने ज़ोर-ज़ोर से मुझे ललकार रही थी कि मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था. उसके चेहरे पे मैंने कस के रंग लगाया, मुलायम गाल रगड़ डाले…..
“हाय भाभी, रंग देवर के साथ खेल रही है या उसके कपड़ो के साथ…अरे देवर-भाभी की होली है, ज़रा कस के….” जेठानी ने चढ़ाया, “अरे फाड़ दे कपड़े इसके…पहले कपड़े फाड़ फिर इसकी गाण्ड.”
फिर क्या था.? मैंने पहले तो कुर्ता खींच के फाड़ दिया. जेठानी ने उसके दोनों हाथ पकड़े तो मैंने पजामे का नाडा भी खोल दिया. अब वो सिर्फ चड्डी में. ननद ने भी उसके साथ मिल के मेरी साड़ी खींच दी और चोली खींचते हुए फाड़ दी. पेटीकोट को ऊपर नाड़े में ही खौंस दिया मैंने…..
चड्डी उसकी तनी हुई थी. एक झटके में मैंने उसे भी नीचे खींच दिया और उसका 6 inch का तन्नाया लंड बाहर. शरमा कर उसने उसे छिपाने की कोशिश की लेकिन तब तक उसे गिरा के मैं उसके ऊपर चढ़ चुकी थी. दोनों हाथों में कालिख लगा के उसके गोरे लंड को कस-कस कर मुट्ठिया रही थी. तब तक मेरी ननद ने मेरी भी वही हालत कर दी और बोली, “भाभी अगर हिम्मत है तो इसके लंड को अंदर ले के होली खेलिए.”
मैं तो चुदासी थी ही, थोड़ी देर चूत मैंने उसके लंड के ऊपर रगड़ी और फिर एक झटके में अंदर.
“साले, ये ले मेरी चुची. रगड़, मसल और कस के चोद….. अगर अपनी माँ का बेटा है तो दिखा दे कि तू असली मर्द है….. ले ले चोद और अगर किसी रंडी, छिनाल की औलाद है तो…..” मैंने बोला और हचक-हचक के चोदना शुरू कर दिया.
इतनी देर से मेरी प्यासी चूत को लंड मिला था. वो कुछ बोलना चाहता था लेकिन मेरी जेठानी ने उसका मुँह रंग लगाने के साथ-साथ बंद भी कर रखा था. थोड़ी देर में अपने आप वो चूतड़ उछालने लगा और फिर मैंने भी अपनी चूत सिकोड़ के, चुचियाँ उसके सीने पे रगड़-रगड़ के चोदना शुरू कर दिया. मेरे बदन का सब रंग उसकी देह में लग रहा था. ननद मेरी चुचियों पर रंग लगाती और वही रंग मैं उसके सीने पर पोत देती.
थोड़ी देर तक तो वो नीचे रहा लेकिन फिर मुझे नीच गिरा कर खुद ऊपर चढ़ के चोदने लगा. नशे में चूर मुझे कुछ नहीं पता चल रहा था बस मज़ा बहुत आ रहा था. कल रात से ही जो मैं झड नहीं पाई थी और बहुत चुदासी हो रही थी. वो तो चोद ही रहा था, साथ में ननद भी कभी मेरे चुचक पर तो कभी clit पे रंग लगाने के बहाने फ्लिक कर देती.
तभी मैंने देखा कि ननदोई जी, उन्होंने उंगली के इशारे से मुझे चुप रहने को कहा और कपड़े उतार के अपना खूब मोटा कड़ा लंड (penis)…………… मैं समझ गई और मेरे पैर जो उसकी पीठ पे थे पूरी ताकत से मैंने कैची की तरह कस के बांध लिये. वो बेचारा तिलमिलाता रहा… लेकिन जब तक वो समझे उसकी गाण्ड चिर कर उन्होंने खूब मोटा लाल सुपाडे वाला लंड उसकी गाण्ड के छेद पर लगा दिया था और कमर पकड़ कर जो करारा धक्का मारा एक बार में ही पूरा सुपाड़ा अंदर पैबस्त हो गया. बेचारा चीख भी नही पाया क्योंकि उसके मुँह में मैंने जानबूझ के अपनी मोटी चुची ठेल दी थी.
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A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.
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Re: होली में फट गई चोली.....................
हाँ ननदोई जी, मार लो साले की गाण्ड….. खूब कस के पेल दो पूरा लंड अंदर, भले ही फट जाए साले की…… बाद में मोची से सिलवा लेगा. (मैं सोच रही थी कि मेरा देवर है तो ननदोई जी का तो साला ही हुआ ना..) लेकिन छोडना मत.”
साथ में मैं कस के उसकी पीठ पकड़े हुए थी. तिल-तिल कर उनका पूरा लंड समा गया. एक बार जब लंड अंदर घुसा तो फिर तो वो लाख कसमसाता रहा, छटपटाता रहा, लेकिन ननदोई जी भी सटा-सट, गपा-गप उसकी गाण्ड मारते रहे. एक बात और….. जितनी ज़ोर से उसकी गाण्ड मारी जा रही थी उतना ही उसके लंड की शक्ति और चुदाई का जोश बढ़ता जा रहा था. हम दोनों के बीच वो अच्छी तरह से Sandwich बन गया था. लंड उसका भले ही ‘मेरे उनके’ या ननदोई की तरह लम्बा-मोटा ना हो पर देर तक चोदने और ताकत में कम नहीं था. जब लंड उसकी गाण्ड में घुसता तो उसी तेजी से वो मेरी चूत में पेलता और जब वो बाहर निकलते तो साथ में वो भी. थोड़ी देर में मेरी देह काँपने लगी.
मैं झड़ने के कगार पर थी और वो भी… जिस तरह उसका लंड मेरी चूत में हो रहा था.
“ओह्ह…ओह्ह… हा..हआआआआ… बस….ओह्ह्ह्ह…… झड़ रहीईईईइ हूऊउउऊ……” कस-कस के मैं चूतड़ उचका रही थी और उसकी भी आँखे बंद हुई जा रही थी.
तब तक ननद ने एक बाल्टी पानी हम दोनों के चेहरे पे कस के फेंका और हमारे चेहरों से रंग भी उतरने लगा. अब थोड़ा नशा भी हल्का हो गया था.
मैंने उसे देखा तो…….
“अरे ये………..ये तो मेरा भाई है.” मैंने पहचाना लेकिन तब तक हम दोनो झड़ रहे थे और मैं चाह के भी उसको हटा नहीं पा रही थी. सच पूछिए तो मैं हटाना भी नहीं चाह रही थी. क्योंकि मेरी रात भर की प्यासी और पनियाई चूत में वीर्य की बरसात जो हो रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे कई सालों के बाद सावन इतना झूम के बरसा हो.
ननदोई अभी भी कस के उसकी गाण्ड मार रहे थे. हम लोगों के झड़ने के थोड़ी देर बाद जब वो भी झड़ के हटे, तब मेरा भाई मुझसे अलग हो पाया.
जब मेरा भाई मुझसे अलग हुआ तो मेरे पास ही खड़ा हो गया. ननदोई सा मेरे सामने ही नंगे खड़े थे. मेरी नज़र उनके लौड़े पर थी. ननद ने चोली और घाघरी पहन रखी थी जो पूरी तरह से रंग, कीचड़ और गोबर से सनी हुई थी.
मैंने मेरे भाई की ओर देखा, उसका लंड अब मुरझा चुका था. वो घूर-घूर कर मेरे मम्मे देखे जा रहा था. मुझे शर्म सी आने लगी तो ख्याल आया कि मैं सबके सामने नंगी खड़ी हूँ. जल्दी-जल्दी मैंने अपने नाड़े में खोंसे हुए पेटीकोट को बाहर निकाला और पास ही पड़ी मेरी साड़ी को देह से लपेट लिया. मेरी चोली का कुछ पता नहीं था.? चूंकि साड़ी मेरी छिनाल छोटी ननद की थी, इसलिए थोड़ी छोटी थी. मेरी पूरी देह को ढक नहीं पा रही थी. मेरे कड़े चुचक साड़ी में से साफ़-साफ़ झलक रहे थे. ननदोई सा और मेरा भाई मुझे घूरे जा रहे थे.
तब तक मेरी छोटी ननद भी आ गई थी. रंग से सराबोर थी बेचारी. वो और जेठानी जी मेरे भाई को लेके रसोईघर की तरफ़ चली गई. मैं समझ गई कि फिर से छोटी छिनाल ननद को खुजली हो रही है परन्तु इस बार तो मेरी जेठानी भी साथ में थी. हाँ भई, मेरी चुदाई देख कर तो उनकी चुत भी पनिया गई होगी और फिर अपने ननदोई जी का मोटा लंड भी तो देख लिया था उन्होंने. खैर मेरे मन में ये ख्याल भी आया कि जेठानी जी ने भी तो ननदोई जी का लंड घोंटा ही होगा कई बार. क्योंकि मेरे ससुराल में तो सब के सब चुदक्कड ही थे.
साथ में मैं कस के उसकी पीठ पकड़े हुए थी. तिल-तिल कर उनका पूरा लंड समा गया. एक बार जब लंड अंदर घुसा तो फिर तो वो लाख कसमसाता रहा, छटपटाता रहा, लेकिन ननदोई जी भी सटा-सट, गपा-गप उसकी गाण्ड मारते रहे. एक बात और….. जितनी ज़ोर से उसकी गाण्ड मारी जा रही थी उतना ही उसके लंड की शक्ति और चुदाई का जोश बढ़ता जा रहा था. हम दोनों के बीच वो अच्छी तरह से Sandwich बन गया था. लंड उसका भले ही ‘मेरे उनके’ या ननदोई की तरह लम्बा-मोटा ना हो पर देर तक चोदने और ताकत में कम नहीं था. जब लंड उसकी गाण्ड में घुसता तो उसी तेजी से वो मेरी चूत में पेलता और जब वो बाहर निकलते तो साथ में वो भी. थोड़ी देर में मेरी देह काँपने लगी.
मैं झड़ने के कगार पर थी और वो भी… जिस तरह उसका लंड मेरी चूत में हो रहा था.
“ओह्ह…ओह्ह… हा..हआआआआ… बस….ओह्ह्ह्ह…… झड़ रहीईईईइ हूऊउउऊ……” कस-कस के मैं चूतड़ उचका रही थी और उसकी भी आँखे बंद हुई जा रही थी.
तब तक ननद ने एक बाल्टी पानी हम दोनों के चेहरे पे कस के फेंका और हमारे चेहरों से रंग भी उतरने लगा. अब थोड़ा नशा भी हल्का हो गया था.
मैंने उसे देखा तो…….
“अरे ये………..ये तो मेरा भाई है.” मैंने पहचाना लेकिन तब तक हम दोनो झड़ रहे थे और मैं चाह के भी उसको हटा नहीं पा रही थी. सच पूछिए तो मैं हटाना भी नहीं चाह रही थी. क्योंकि मेरी रात भर की प्यासी और पनियाई चूत में वीर्य की बरसात जो हो रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे कई सालों के बाद सावन इतना झूम के बरसा हो.
ननदोई अभी भी कस के उसकी गाण्ड मार रहे थे. हम लोगों के झड़ने के थोड़ी देर बाद जब वो भी झड़ के हटे, तब मेरा भाई मुझसे अलग हो पाया.
जब मेरा भाई मुझसे अलग हुआ तो मेरे पास ही खड़ा हो गया. ननदोई सा मेरे सामने ही नंगे खड़े थे. मेरी नज़र उनके लौड़े पर थी. ननद ने चोली और घाघरी पहन रखी थी जो पूरी तरह से रंग, कीचड़ और गोबर से सनी हुई थी.
मैंने मेरे भाई की ओर देखा, उसका लंड अब मुरझा चुका था. वो घूर-घूर कर मेरे मम्मे देखे जा रहा था. मुझे शर्म सी आने लगी तो ख्याल आया कि मैं सबके सामने नंगी खड़ी हूँ. जल्दी-जल्दी मैंने अपने नाड़े में खोंसे हुए पेटीकोट को बाहर निकाला और पास ही पड़ी मेरी साड़ी को देह से लपेट लिया. मेरी चोली का कुछ पता नहीं था.? चूंकि साड़ी मेरी छिनाल छोटी ननद की थी, इसलिए थोड़ी छोटी थी. मेरी पूरी देह को ढक नहीं पा रही थी. मेरे कड़े चुचक साड़ी में से साफ़-साफ़ झलक रहे थे. ननदोई सा और मेरा भाई मुझे घूरे जा रहे थे.
तब तक मेरी छोटी ननद भी आ गई थी. रंग से सराबोर थी बेचारी. वो और जेठानी जी मेरे भाई को लेके रसोईघर की तरफ़ चली गई. मैं समझ गई कि फिर से छोटी छिनाल ननद को खुजली हो रही है परन्तु इस बार तो मेरी जेठानी भी साथ में थी. हाँ भई, मेरी चुदाई देख कर तो उनकी चुत भी पनिया गई होगी और फिर अपने ननदोई जी का मोटा लंड भी तो देख लिया था उन्होंने. खैर मेरे मन में ये ख्याल भी आया कि जेठानी जी ने भी तो ननदोई जी का लंड घोंटा ही होगा कई बार. क्योंकि मेरे ससुराल में तो सब के सब चुदक्कड ही थे.
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