14
गतान्क से आगे.......
दोनो की साँसे तेज हो चली थी और दोनो झड़ने की कगार पर थे.
रिया नीचे झुकी और अपन चुचि को अपने पापा के मुँह मे दे दिया. आज़य
ने भी उसके निपल को मुँह मे भर चूसने लगा.
ऑश पापा हाँ खा जाइए मेरी चुचि को ऑश हां मारो मेरी चूत
ज़ोर से ऑश हाअ और अंदर तक दूऊ ऑश में तो गयी...." और उसकी
चूत ने पानी छोड़ दिया.
आज़य ने भी अपनी कमर उपर तक उठा अपने लंड को और अंदर तक
धकेलते हुए पानी छोड़ दिया. रिया की चूत से उसके पानी और पापा के
वीर्य की मिश्रित धार बह रही थी, वो उसकी छाती पर गिर गहरी
साँसे लेने लगी.
शरीर की काम अग्नि शांत हुई, दिल की चाहत ठंडी पड़ गयी और
दिमाग़ पहली बार दिल पर हावी होने लगा.
"ये मेने क्या कर डाला," उसने अपने आपसे पूछा.
"मेने इन्हे क्यों ऐसा करने दिया? वो नींद मे बड़बड़ा उठी, जय उसकी
बगल मे गहरी नींद सोया हुआ था.
"मेने इस जानवर को कैसे दुबारा अपनी जिंदगी मे दाखिल होने
दिया," उसने अपनी आँखों से बहते आँसुओं को पौंच्छा, उसे अहसास हुआ
जो कुछ उस दिन हुआ वो उसकी ग़लती नही थी. वो बकरी की खाल ओढ़े
एक भेड़िया था जिसने उसे अपनी बातों से बहका और फुसला लिया था.
आख़िर जो कुछ हुआ रिया ने उसे स्वीकार कर लिया और पक्का मन बना
लिया कि फिर वो उसे अपनी जिंदगी मे दाखिल नही होने देगी. उसने अपने
बगल मे लेटे अपने भाई जय पर निगाह घुमाई फिर अपनी आँखों से
बहते आंशुओं को पौछ सो गयी.
सुबह का सूरज उग चुका था और अपनी रोशनी चारों तरफ फैलने
लगा था. सूरज की किर्ने कमरे के पर्दों से होती हुई कमरे को उजाले
से भरने लगी जिसमे रिया और जय एक ही बिस्तर पर सो रहे थे. आज
से पहले कभी दोनो पूरी रात साथ सोकर नही गुज़ारी थी.
पीछले कई सालों मे वो एक दूसरे को अछी तरह समझ चुके थे
थे. उन्होने कभी इस बात की परवाह नही की कि उनके रिश्ते को लेकर
समझ क्या कहेगा या फिर अगर मा को पता चला तो वो क्या कहेगी.
दरवाज़े पर हुई आहट ने रिया की नींद खोल दी. उसने जल्दी से अपने
शरीर को कंबल से ढका और अपने बगल मे लेटे अपने भाई जय को
देखने लगी.
जैसे ही दरवाज़ा खुला उसकी तो जैसे सांस ही हलक मे अटक गयी.
झटके से दरवाज़ा खुला और उसकी मा हाथ मे कपड़ों के बाल्टी लिए
कमरे मे आ गयी. उसने बाल्टी को नीचे रखा और अचानक उसकी नज़र
रिया पर पड़ी.
"ये क्या है? उनकी मा अस्चर्य भरे स्वर मे कहा, "तुम यहाँ इसके
कमरे मे क्या कर रही हो?
थोड़ी ही देर मे कमरे मे बिखरे दोनो के कपड़े देख उनकी मा के
समझ मे सब आ गया. उनका चेहरा गुस्से से लाल होने लगा.
"तुम दोनो समझते क्या हो अपने आप को? कोई लाज शरम है कि नही
है, मुझे तो देख कर और सोच कर ही तुम दोनो से घृणा होने लग
रही है. " उनकी मम्मी गुस्से से बोली," तुम दोनो की आज की हरकत
देख मुझे लगता है कि तुम दोनो की इस घर मे कोई ज़रूरत नही है
निकल जाओ हमारे घर से तुम दोनो अभी की अभी और कभी लौट कर
वापस मत आना."
मम्मी की बात सुनकर रिया गुस्से से बिस्तर से उठी. "आप हमे क्या
समझती है, पहले तो पापा के साथ ऐसा व्यवहार करती रही. उन्हे
जाने से रोकने के बदले आप चुप चाप बैठी रही. आपने हमे जनम
ज़रूर दिया होगा लेकिन आप हमारी मा कभी नही बन सकी. मुझे कई
बार अपनी जिंदगी मे आपकी जारोरत पड़ी लेकिन आपको मेरे लिए समय
ही नही था. आप ने जय की मा बनने की कोशिश ज़रूर की लेकिन आप
बन ना सकी, बल्कि आपकी जगह मेने उसे मा बनकर उसका साथ दिया.
इससे पहले कि आप हमारे बारे मे कोई राई कायम करे आप अपने आप को
आईने मे देख लीजिए, ना आप पत्नी बन सकी ना ही आप अपने बच्चो
की मा बन सकी."
रिया ने ज़मीन पर बीखरे कपड़ों मे से अपने कपड़े उठाए और पहन
लिए. जय भी उठ चुका था और लेटा हुआ अपनी बेहन को और अपनी मा
को देख रहा था जो दरवाज़े पर खड़ी थी.
"जय उठो यहाँ से और अपना समान पॅक करो, अभ यहाँ पर हमारी
ज़रूरत नही है," रिया ने अपनी मम्मी की ओर देखते हुए कहा. "हम
यहाँ से कहीं दूर जाकर अपनी जिंदगी नये सीरे से शुरू करेंगे."
"में क्या कर सकती थी? उसकी मा रोते हुए बोली, "तुम्हारे पिता ने
कभी इस घर को अपना घर नही समझा, हमेशा एक अजनबी की तरह
रहे वो घर मे. उनके जानवर जैसे व्यवहार के आगे हम कर भी क्या
सकते थे?"
रिया ने अपने आँसुओं को रोकने की बहोत कोशिश की लेकिन वो रोक ना
पाई. अब भी दिल के किसी कोने से वो अपनी मा को प्यार करती थी,
लेकिन फिर भी जो कुछ हुआ उसके लिए वो अपनी मा को कभी माफ़ नही
कर सकती थी, "आख़िर तुम उन्हे रोकने की कोशिश तो कर सकती थी."
जब रिया घूम कर आल्मिराह से अपने और जय के कपड़े निकाल कर बिस्तर
पर रखने लगी तो उनकी मा वहाँ से चली गयी. जय पलंग से उठा
और वही कपड़े जो उसने रात को पहन रखे थे पहन कर तैयार हो
गया.
"जय इन सब समान को दो तीन बॅग और कार्टून मे पॅक कर लो." रिया
ने कहा.
"लेकिन हम जाएँगे कहाँ? उसने रिया से पूछा.
रिया ने अपने भाई की तरफ देखा और मुस्कुरा कर बोली, "चिंता मत
करो, सब ठीक हो जाएगा, में तुम्हारा ख्याल रखूँगी और तुम मेरा
ख्याल रखना."
थोड़ी देर बाद जय स्टोर रूम से दो बड़े कार्टून ले आया. रिया अपने
और जय के कपड़ों को अछी तरह समेटने लगी. फिर कमरे मे नज़रें
घूमाने लगी कि कहीं कुछ छूट तो नही गया.
"तुम समान पॅक करो." रिया ने कहा, "में अभी आती हूँ."
रिया अपने कमरे से निकल कर नीचे हाल आ गयी. जिस घर को उसने
बचपन से अपना समझा था पता नही क्यों आज वो एक पराए घर
जैसा लग रहा था. पुरानी यादें पुरानी बातें, इस घर मे बीताए
हुए लम्हे उसकी आँख मे फिर आँसू ले आए. उसने बहोत कोशिश की
लेकिन फिर चंद कतरे आँखेओं से बह ही गये. उसके कानो मे अपने
बाप की आवाज़ अभी गूँज रही थी.
"तुम पापा की प्यारी गुड़िया हो ना?"
रिया को लगा कि इन आवाज़ों से उसके कान फॅट जाएँगे, उसने अपने दोनो
हाथ कानो पर रख दिए और एक कुर्सी पर बैठ गयी, आँसू तर तर
उसकी आँखों से बह रहे थे.
"तुम अपने पापा से प्यार करती हो ना?"
"वो मेरी ग़लती नही थी, तुम ही वहशी जानवर बन गये थे," वो ज़ोर
से चिल्लाई जैसे की अपने कानो मे गूँजती आवाज़ को अपने से दूर
भागना चाहती हो जो चाह कर भी उसके कानो से नही जा रही थी.
"मेने कुछ पैसे तुम्हारे लिए भी बचा कर रखे है,"
"वो मेरी ग़लती नही थी," वो एक बार फिर ज़ोर से चिल्लाई. हराम जादे
वो मेरी ग़लती नही थी, तुमने मुझे इस्तामाल किया था."
अपने जज्बातों को संभाल वो वापस अपने कमरे मे आई और अपनी
आल्मिराह के लॉकर को खोल उसने वो पैसे निकाले जो वो आज तक वो जमा
करती आई थी.
"क्या तुम तैयार हो?" उसने जय को पूछा.
"हां ऐसा लगता है," जय को अब भी विश्वास नही हो रहा था कि वो
ये घर छोड़ कर जा रहे है.
दो भाई दो बहन compleet
Re: दो भाई दो बहन
थोड़ी देर बाद रिया की गाड़ी उस घर से दूर होने लगी. रिया ने अपना
एक हाथ जय के हाथ पर रखा और उसे सहलाने लगी.
"जय जो भी होगा अच्छे के लिए होगा, में हूँ ना तुम्हारे साथ."
* * * * * * * * * * * *
उस रात राज ने दो बार रोमा के बिस्तर से निकलने की कोशिश की लेकिन
रोमा की बाहें उसके बदन से ऐसे लिपटी थी कि वो निकल ना सका, अगर
वो उसकी बाहों को हटता तो रोमा की नींद खुल जाती जो वो नही
चाहता था.
"प्लीज़ मुझे छोड़ कर मत जाओ," रोमा नींद मे बड़बड़ाई.
राज ने रोमा को कस मे अपनी बाहो मे भर के अपने से चिपका लिया और
उसके चेहरे को चूमते हुए बोला, "डरो मत में कहीं नही जा रहा."
"अगर तुम्हारी इच्छा हो रही है तो तुम मुझे चोद सकते हो." रोमा ने
उसे चूमते हुए कहा.
"में तुमसे प्यार करता हूँ इसलिए यहाँ तुम्हारे पास हूँ ना कि
तुम्हारे शरीर के लिए," राज ने उसके कान मे फुसफुसाते हुए
कहा, "हां अगर तुम्हारी इच्छा हो रही है...."
राज अपने हाथ को उसके शरीर पर फिराने लगा, अपनी उंगलियों से उसके
बदन के नाज़ुक हिस्सों को घिसने लगा. रोमा के शरीर मे एक नई मस्ती
छाने लगी. उसे राज की हर्कतो से गुदगुदी होने लगी थी साथ ही
चूत मे हलचल भी हो रही थी.
"प्लीज़ राज मत करो ना गुदगुदी हो रही है आउच....."
गुदगुदी की वजह से उसे हँसी छूट रही थी. अपनी हँसी को रोकने के
लिए उसने अपना चेहरा तकिये में छुपा लिया, लेकिन राज था कि उसे
छेड़ता जा रहा था. उसे पता था कि रोमा के किस अंग को किस समय
छूना चाहिए.
रोमा अपनी हर कोशिश से राज को रोकने की कोशिश कर रही थी, आँख
बंद किए वो उसे मार रही थी धक्का दे रही थी लेकिन राज फिर भी
उस पर हावी था. आख़िर हंसते हंसते रोमा की साँसे उखाड़ने लगी और
आँखों मे आँसू आ गये तो राज ने अपने हाथ पीछे खींच लिए.
"तुम सच मे कभी कभी पागल हो जाते हो?" रोमा ने एक गहरी सांस
लेते हुए कहा.
राज ने कुछ कहा नही. रोमा पीठ के बल लेटी हुई थी, राज उसकी
पीठ पर लेट गया और अपना हाथ उसके नीचे करते हुए उसकी फूली
हुई चुचियो को अपने हाथ मे ले भींचने लगा. वो उसके निपल से
खेलने लगा, उसका लंड तन खड़ा रोमा की गंद पर ठोकर मारने लगा.
"अब आगे तुम्हारा क्या करने का इरादा है?" रोमा ने अपने भाई से
पूछा.
"में तो तुम्हे चोदने की सोच रहा था." राज ने उसकी चुचियों को
जोरों से भींचते हुए कहा.
"जिंदगी मे आगे क्या करने का इरादा है? में ये पूछ रही थी,"
रोमा ने कहा, "या फिर ये चुदाई, ये घर और तुम्हारी वो कहानिया
और तालाब का किनारा यही तुम्हारे लिए जिंदगी है."
"मुझे लगा कि तुम्हे मेरी कहानियाँ पसंद है." राज ने कहा.
उसकी बात सुनकर रोमा मुस्कुरा दी. "मुझे तुम्हारी कहानिया बहोत
पसंद है, लेकिन इससे तो जिंदगी नही चलेगी, आगे भी तो कुछ
करना पड़ेगा और में जानती हूँ कि जिंदगी में तुम बहोत कुछ कर
सकते हो."
राज उसके पीठ से उतर उसके बगल मे लेट गया, "लेकिन अचानक ये सब
बातें क्यों?' उसने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा.
"मेरे फाइनल एग्ज़ॅम अगले महीने शुरू हो रहे हैं," रोमा ने उसे याद
दिलाते हुए कहा, "उसके बाद कॉलेज तो जाना नही है, तो मेने सोचा
कि क्यों ना हम साथ साथ रहें."
"तुम मुझसे बहोत प्यार करती हो ना?" रा ने पूछा.
"तुम जानते हो कि में तुमसे बहोत प्यार करती हूँ. पर क्या तुम
मुझसे इतना ही प्यार करते हो कि यहाँ से निकल मेरे साथ एक नई
जिंदगी शुरू कर सको?" रोमा ने उसके हाथ को अपने हाथ मे लेते हुए
कहा.
राज उसकी भावनाए और उसके प्यार को समझ रहा था. थोड़ी देर वो
सोचता रहा फिर बोला, "में क्या करूँ?
"कोई अछी सी नौकरी ढूंड कर कर लो." रोमा ने कहा, "साथ साथ
अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करो. कुछ ऐसा करो कि जिंदगी मे फिर
पीछे मूड कर देखने की ज़रूरत ना हो."
राज को रोमा पर झल्लाहट आने लगी थी, वो कई बार ये भाषण अपने
माता पिता के मुँह से सुन चुका था, क्या बुराई थी कि अगर वो कुछ
नही कर रहा था तो.
"राज" रोमा ने उसे पुकारा.
"क्या है बोलो, में सुन रहा हूँ." उसने खीजते हुए कहा.
"नही मुझे लगता है कि तुम मेरी बात नही सुन रहे हो" राज के इस
रूखेपण से रोमा का दिल भर आया और उसकी आँखों मे आँसू आ
गयी. "अगर तुम यहाँ रहना चाहते हो तो में तुम्हे रोकूंगी नही
लेकिन मेरे लिए रहना शायद मुश्किल हो." रोमा ने जवाब दिया.
"रोमा में तुम्हे रोकुंगा नही, तुम्हारी भी अपनी जिंदगी है." राज
ने रूखेपण से कहा.
रोमा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, "तुम बहोत ही मतलबी हो, क्या
तुम मेरे लिए इतना भी नही कर सकते..... तुम्हारे लिए ये तालाब का
किनारा ही सब कुछ है, में तुम्हारे लिए कुछ भी नही?"
राज रोमा की बात सुनकर कुछ बोला नही. उसके बगल मे लेटा हुआ वो
सोच रहा था कि वो क्या करे. वो सोचता रहा.
"राज" रोमा ने उसे पुकारा.
राज कुछ कहना चाहता था लेकिन उसकी आँखों मे आँसू आ गये. एक
अंजाने डर ने जैसे उसके अंदर की सारी ताक़त छीन ली थी. वो यहाँ
रहते हुए तो रोमा को जय जैसे लोगों से तो बचा सकता था. पर
समाज और दुनिया के बीच रहकर उसकी रक्षा करना उसका ख़याल
रखना, ये सब वो कैसे करे उसकी समझ मे नही आ रहा था.
"राज"
राज ने कुछ कहा नही बल्कि अपने चेहरे को उसके चेहरे से सटा दिया.
रोमा को जब राज के रोने का अहसास हुआ तो वो समझ गयी और उसने अपनी
बाहों खोल उसे अपनी बाहों मे बाँध लिया. उसकी आँखों से बहते
आँसुओं को उसने चूम लिया.
"में तुमसे बहोत प्यार करती हूँ, और बड़ी मुश्किल से तुम्हे पाया
है और में तुम्हारे प्यार को और तुम्हे खोना नही चाहती" रोमा ने
उसे चूमते हुए कहा, "अब हिम्मत से काम लो और मेरे साथ चलो,
में तुम्हारे बिना ज़्यादा दिन नही रह पाउन्गि."
"रोमा तुम्हे जिंदगी मे कोई मुझसे भी अच्छा मिल जाएगा?" राज ने
कहा.
"लेकिन तुम तो नही ना." कहते हुए उसने राज के आँसुओं से भरे
चेहरे को अपने हाथों मे लिया और उसके होठों को चूसने लगी.
राज सोचने लगा, उसकी जिंदगी कितनी आकेली और तन्हा रही थी आज
तक. जब उसके दिल मे रोमा के लिए भावनाए जनम ले रही थी, तो
वो कितना डर रहा था कि कहीं इसे पता ना चल जाए. उस समय उसे
नही पता था कि रोमा के दिल मे भी उसके लिए वही जज़्बा वही प्यार
था. पर आज जब कि दोनो एक दूसरे से अपने जज्बातों का इज़हार कर
चुके थे एक दूसरे को अपना चुके थे तो अचानक वो रोमा को खोने
के डर से कांप उठा. उसे लगा कि वो रोमा के बिना नही रह पाएगा.
"ठीक है में चलूँगा तुम्हारे साथ," राज ने आख़िर अपने दिल की
बात कह ही दी.
"सच मे, तुम आओगे मेरे साथ," रोमा को अपने कानो पर विश्वास नही
हो रहा था, "एक बार फिर से कहो की तुम आओगे."
"हां मे आउन्गा तुम्हारे साथ" उसने कहा, वो अपनी प्यारी बेहन और
प्रेमिका को खुश देखना चाहता था.
"ओह्ह्ह्ह राज में बता नही सकती कि में कितनी खुश हूँ," रोमा ने
खुशी मे कहा, "राज हम दोनो आने वाली जिंदगी मे साथ साथ
रहेंगे और एक दूसरे को खुश रखेंगे."
खुशी के मारे रोमा ने राज को अपने उपर खींच लिया. उसने अपनी टाँगे
फैला दी और अपनी टाँगे उसकी कमर मे लपेट ली, "क्या तुम तयार हो?"
इन जज्बाती बातों के बीच उसकी उत्तेजना बह गयी थी और लंड एक बार
मुरझा कर ढीला पड़ गया था, "नही." उसने धीरे से कहा.
"मुझे छुओ..... मुझे भीचो.... मुझे मस्लो...." उसने राज से
कहा, "और जब तुम्हारा लंड खड़ा और तन जाए तो मुझे प्यार
करो....... हमारी आने वाली जिंदगी के लिए हम जश्न मनाएँगे."
राज ने अपने होंठ उसके होठों पर रखे फिर उसके होठों को खोलते
हुए अपनी जीब उसके मुँह मे डाल दी. रोमा ने भी उसकी जीब से अपनी
जीब मिला दी और उसकी जीब को चूसने लगी.
क्रमशः..................
एक हाथ जय के हाथ पर रखा और उसे सहलाने लगी.
"जय जो भी होगा अच्छे के लिए होगा, में हूँ ना तुम्हारे साथ."
* * * * * * * * * * * *
उस रात राज ने दो बार रोमा के बिस्तर से निकलने की कोशिश की लेकिन
रोमा की बाहें उसके बदन से ऐसे लिपटी थी कि वो निकल ना सका, अगर
वो उसकी बाहों को हटता तो रोमा की नींद खुल जाती जो वो नही
चाहता था.
"प्लीज़ मुझे छोड़ कर मत जाओ," रोमा नींद मे बड़बड़ाई.
राज ने रोमा को कस मे अपनी बाहो मे भर के अपने से चिपका लिया और
उसके चेहरे को चूमते हुए बोला, "डरो मत में कहीं नही जा रहा."
"अगर तुम्हारी इच्छा हो रही है तो तुम मुझे चोद सकते हो." रोमा ने
उसे चूमते हुए कहा.
"में तुमसे प्यार करता हूँ इसलिए यहाँ तुम्हारे पास हूँ ना कि
तुम्हारे शरीर के लिए," राज ने उसके कान मे फुसफुसाते हुए
कहा, "हां अगर तुम्हारी इच्छा हो रही है...."
राज अपने हाथ को उसके शरीर पर फिराने लगा, अपनी उंगलियों से उसके
बदन के नाज़ुक हिस्सों को घिसने लगा. रोमा के शरीर मे एक नई मस्ती
छाने लगी. उसे राज की हर्कतो से गुदगुदी होने लगी थी साथ ही
चूत मे हलचल भी हो रही थी.
"प्लीज़ राज मत करो ना गुदगुदी हो रही है आउच....."
गुदगुदी की वजह से उसे हँसी छूट रही थी. अपनी हँसी को रोकने के
लिए उसने अपना चेहरा तकिये में छुपा लिया, लेकिन राज था कि उसे
छेड़ता जा रहा था. उसे पता था कि रोमा के किस अंग को किस समय
छूना चाहिए.
रोमा अपनी हर कोशिश से राज को रोकने की कोशिश कर रही थी, आँख
बंद किए वो उसे मार रही थी धक्का दे रही थी लेकिन राज फिर भी
उस पर हावी था. आख़िर हंसते हंसते रोमा की साँसे उखाड़ने लगी और
आँखों मे आँसू आ गये तो राज ने अपने हाथ पीछे खींच लिए.
"तुम सच मे कभी कभी पागल हो जाते हो?" रोमा ने एक गहरी सांस
लेते हुए कहा.
राज ने कुछ कहा नही. रोमा पीठ के बल लेटी हुई थी, राज उसकी
पीठ पर लेट गया और अपना हाथ उसके नीचे करते हुए उसकी फूली
हुई चुचियो को अपने हाथ मे ले भींचने लगा. वो उसके निपल से
खेलने लगा, उसका लंड तन खड़ा रोमा की गंद पर ठोकर मारने लगा.
"अब आगे तुम्हारा क्या करने का इरादा है?" रोमा ने अपने भाई से
पूछा.
"में तो तुम्हे चोदने की सोच रहा था." राज ने उसकी चुचियों को
जोरों से भींचते हुए कहा.
"जिंदगी मे आगे क्या करने का इरादा है? में ये पूछ रही थी,"
रोमा ने कहा, "या फिर ये चुदाई, ये घर और तुम्हारी वो कहानिया
और तालाब का किनारा यही तुम्हारे लिए जिंदगी है."
"मुझे लगा कि तुम्हे मेरी कहानियाँ पसंद है." राज ने कहा.
उसकी बात सुनकर रोमा मुस्कुरा दी. "मुझे तुम्हारी कहानिया बहोत
पसंद है, लेकिन इससे तो जिंदगी नही चलेगी, आगे भी तो कुछ
करना पड़ेगा और में जानती हूँ कि जिंदगी में तुम बहोत कुछ कर
सकते हो."
राज उसके पीठ से उतर उसके बगल मे लेट गया, "लेकिन अचानक ये सब
बातें क्यों?' उसने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा.
"मेरे फाइनल एग्ज़ॅम अगले महीने शुरू हो रहे हैं," रोमा ने उसे याद
दिलाते हुए कहा, "उसके बाद कॉलेज तो जाना नही है, तो मेने सोचा
कि क्यों ना हम साथ साथ रहें."
"तुम मुझसे बहोत प्यार करती हो ना?" रा ने पूछा.
"तुम जानते हो कि में तुमसे बहोत प्यार करती हूँ. पर क्या तुम
मुझसे इतना ही प्यार करते हो कि यहाँ से निकल मेरे साथ एक नई
जिंदगी शुरू कर सको?" रोमा ने उसके हाथ को अपने हाथ मे लेते हुए
कहा.
राज उसकी भावनाए और उसके प्यार को समझ रहा था. थोड़ी देर वो
सोचता रहा फिर बोला, "में क्या करूँ?
"कोई अछी सी नौकरी ढूंड कर कर लो." रोमा ने कहा, "साथ साथ
अपनी आगे की पढ़ाई पूरी करो. कुछ ऐसा करो कि जिंदगी मे फिर
पीछे मूड कर देखने की ज़रूरत ना हो."
राज को रोमा पर झल्लाहट आने लगी थी, वो कई बार ये भाषण अपने
माता पिता के मुँह से सुन चुका था, क्या बुराई थी कि अगर वो कुछ
नही कर रहा था तो.
"राज" रोमा ने उसे पुकारा.
"क्या है बोलो, में सुन रहा हूँ." उसने खीजते हुए कहा.
"नही मुझे लगता है कि तुम मेरी बात नही सुन रहे हो" राज के इस
रूखेपण से रोमा का दिल भर आया और उसकी आँखों मे आँसू आ
गयी. "अगर तुम यहाँ रहना चाहते हो तो में तुम्हे रोकूंगी नही
लेकिन मेरे लिए रहना शायद मुश्किल हो." रोमा ने जवाब दिया.
"रोमा में तुम्हे रोकुंगा नही, तुम्हारी भी अपनी जिंदगी है." राज
ने रूखेपण से कहा.
रोमा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, "तुम बहोत ही मतलबी हो, क्या
तुम मेरे लिए इतना भी नही कर सकते..... तुम्हारे लिए ये तालाब का
किनारा ही सब कुछ है, में तुम्हारे लिए कुछ भी नही?"
राज रोमा की बात सुनकर कुछ बोला नही. उसके बगल मे लेटा हुआ वो
सोच रहा था कि वो क्या करे. वो सोचता रहा.
"राज" रोमा ने उसे पुकारा.
राज कुछ कहना चाहता था लेकिन उसकी आँखों मे आँसू आ गये. एक
अंजाने डर ने जैसे उसके अंदर की सारी ताक़त छीन ली थी. वो यहाँ
रहते हुए तो रोमा को जय जैसे लोगों से तो बचा सकता था. पर
समाज और दुनिया के बीच रहकर उसकी रक्षा करना उसका ख़याल
रखना, ये सब वो कैसे करे उसकी समझ मे नही आ रहा था.
"राज"
राज ने कुछ कहा नही बल्कि अपने चेहरे को उसके चेहरे से सटा दिया.
रोमा को जब राज के रोने का अहसास हुआ तो वो समझ गयी और उसने अपनी
बाहों खोल उसे अपनी बाहों मे बाँध लिया. उसकी आँखों से बहते
आँसुओं को उसने चूम लिया.
"में तुमसे बहोत प्यार करती हूँ, और बड़ी मुश्किल से तुम्हे पाया
है और में तुम्हारे प्यार को और तुम्हे खोना नही चाहती" रोमा ने
उसे चूमते हुए कहा, "अब हिम्मत से काम लो और मेरे साथ चलो,
में तुम्हारे बिना ज़्यादा दिन नही रह पाउन्गि."
"रोमा तुम्हे जिंदगी मे कोई मुझसे भी अच्छा मिल जाएगा?" राज ने
कहा.
"लेकिन तुम तो नही ना." कहते हुए उसने राज के आँसुओं से भरे
चेहरे को अपने हाथों मे लिया और उसके होठों को चूसने लगी.
राज सोचने लगा, उसकी जिंदगी कितनी आकेली और तन्हा रही थी आज
तक. जब उसके दिल मे रोमा के लिए भावनाए जनम ले रही थी, तो
वो कितना डर रहा था कि कहीं इसे पता ना चल जाए. उस समय उसे
नही पता था कि रोमा के दिल मे भी उसके लिए वही जज़्बा वही प्यार
था. पर आज जब कि दोनो एक दूसरे से अपने जज्बातों का इज़हार कर
चुके थे एक दूसरे को अपना चुके थे तो अचानक वो रोमा को खोने
के डर से कांप उठा. उसे लगा कि वो रोमा के बिना नही रह पाएगा.
"ठीक है में चलूँगा तुम्हारे साथ," राज ने आख़िर अपने दिल की
बात कह ही दी.
"सच मे, तुम आओगे मेरे साथ," रोमा को अपने कानो पर विश्वास नही
हो रहा था, "एक बार फिर से कहो की तुम आओगे."
"हां मे आउन्गा तुम्हारे साथ" उसने कहा, वो अपनी प्यारी बेहन और
प्रेमिका को खुश देखना चाहता था.
"ओह्ह्ह्ह राज में बता नही सकती कि में कितनी खुश हूँ," रोमा ने
खुशी मे कहा, "राज हम दोनो आने वाली जिंदगी मे साथ साथ
रहेंगे और एक दूसरे को खुश रखेंगे."
खुशी के मारे रोमा ने राज को अपने उपर खींच लिया. उसने अपनी टाँगे
फैला दी और अपनी टाँगे उसकी कमर मे लपेट ली, "क्या तुम तयार हो?"
इन जज्बाती बातों के बीच उसकी उत्तेजना बह गयी थी और लंड एक बार
मुरझा कर ढीला पड़ गया था, "नही." उसने धीरे से कहा.
"मुझे छुओ..... मुझे भीचो.... मुझे मस्लो...." उसने राज से
कहा, "और जब तुम्हारा लंड खड़ा और तन जाए तो मुझे प्यार
करो....... हमारी आने वाली जिंदगी के लिए हम जश्न मनाएँगे."
राज ने अपने होंठ उसके होठों पर रखे फिर उसके होठों को खोलते
हुए अपनी जीब उसके मुँह मे डाल दी. रोमा ने भी उसकी जीब से अपनी
जीब मिला दी और उसकी जीब को चूसने लगी.
क्रमशः..................
Re: दो भाई दो बहन
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गतान्क से आगे.......
राज ने अपने दोनो हाथ उसकी चुचियों पर रख उन्हे मसल्ने लगा.
कभी वो उसके निपल को भींचता तो कभी उसकी चुचियो की गोलियों
को. उसने अपना चेहरा नीचे झुकाया और उसके निपल को अपने दांतो
मे ले हौले हौले काटने लगा.
रोमा के शरीर मे उत्तेजना बढ़ने लगी, वो उन्माद मे सिसकने
लगी, 'ऑश राज्ज्जज्ज्ज ऑश हाआँ काटो मेरी चूचियों को.... ओह हन
भींच डालो इनहूओ."
उत्तेजना मे रोमा अपनी कमर उठा अपनी चूत को उसके लंड पर रगड़
रही थी.उसने महसूस किया कि राज का लंड तनने लग रहा है. उससे
रहा नही जा रहा था वो उसके लंड को अपनी चूत मे लेना चाहती
थी.
राज ने अपनी टाँगो से रोमा की टाँगे और फैला दी और अपने को इस तरह
उसके उपर कर दिया कि उसका लंड ठीक उसकी चूत के मुँह पर लगा
था, लेकिन उसे अंदर घुसाने के बजाय वो अपने लंड को धीरे धीरे
उसकी चूत पर रगड़ने लगा.
ओह राज..... क्यों तडपा रहे हूऊऊ..... प्लीज़ घुसा दो ना
अंदर.... देखो ना मुझसे अब नही रहा जाता.... प्लीज़ चोदो ना
मुझे.." रोमा सिसक पड़ी.
पर राज ने उसकी करहों पर ध्यान नही दिया और अपने लंड को उसकी
चूत पर घिसता रहा. उसका लंड रोमा की चूत से छूटे पानी से पूरा
गीला हो चुका था. फिर अपने आपको थोड़ा नीचे खिसकाते हुए उसने
उसकी एक चुचि के निपल को अपने मुँह मे ले किसी बच्चे की तरह
चुलबुलाने लगा.
रोमा उत्तेजना मे किसी पंछी की तरह फड़फदा रही थी... उसे अब
बर्दाश्त नही हो रहा था. वो राज के सिर को पकड़ जोरों से अपनी
चुचि पर दबा रही थी.
"ऑश राज क्यों तडपा रहे हूऊ.... ओह प्लीज़ चोदो ना
मुझे .... डाल दो अपने लंड को मेरी चूओत मे......" रोमा अब उत्तेजना
मे जोरों से सिसक रही थी.
लेकिन आज की रात तो राज रोमा के साथ पूरी तरह खेलने के मूड मे
था, वो उछल कर रोमा के पेट पर बैठ गया और अपने खड़े लंड को
उसकी चुचियों के बीच की घाटी मे रख दिया. फिर उसकी दोनो
चुचियो को पकड़ अपने लंड पर दबाया और अपना लंड आगे पीछे
करने लगा.
रोमा भी अपने प्रेमी के खेल को समझ गयी और जब भी राज अपने
लंड को आगे की ओर धकेल्ता तो वो पहले तो अपनी जीब से उसे चाटती
और फिर दूसरी बार अपना मुँह खुला रखती जिससे लंड सीधा उसके मुँह
मे पल भर के लिए घूस्ता और बाहर निकल जाता.
राज ज़ोर ज़ोर से रोमा की चुचियों को चोदने लगा, रोमा उसके गीले
लंड को चाटती तो कभी चूस्ति. लेकिन रोमा की उत्तेजना आपे चरम
सीमा पर पहुँच चुकी थी, और अब एक पल भी रुकना उसके लिए
मुश्किल हो रहा था.
रोमा ने राज को धक्का दिया और उसे अपने से अलग कर दिया. राज पीठ
के बल बिस्तर पर था, और इसके पहले कि वो कई और शैतानी करता
रोमा उसके उपर चढ़ गयी और अपनी टाँगों को उसके अगल बगल मे
ढंग से रख उसके लंड को अपनी चूत से लगाया और उस पर बैठती
चली गयी.
थोड़ी देर उसके लंड पर बैठ वो उसके लंड को अपनी चूत मे अड्जस्ट
करती रही फिर थोडा सा उपर उठ ज़ोर से नीचे बैठ गयी और उसके
लंड को पूरा अपनी चूत मे ले लिया.
"ओह राज तुम्हारा गरम लंड मेरी चूत मे कितना अछा लग रहा
है....."
रोमा अब उछल उछल कर उसके लंड को अपनी चूत मे ले रही थी. रोमा
जब ठप की आवाज़ से उसके लंड पर बैठती तो राज भी अब अपनी कमर
उपर कर अपने लंड को और अंदर तक घुसा देता.
राज अब उसके कुल्हों को पकड़ नीचे से धकके मार रहा था. रोमा थी
कि वो और उछल उछल कर उसे चोद रही थी. उसने झुकते हुए अपनी
चुचि राज के मुँह मे दे दी. रोमा जब उपर उठती तो राज अपनी कमर
उपर उठा अपने लंड को अंदर घुसा देता और जब उसकी कमर नीचे को
होती तो रोमा ज़ोर से उसकी कमर पर बैठ जाती. दोनो ताल से ताल मिला
चुदाई कर रहे थे.
"हां राज ऐसे ही अंदर तक घुसा कर चोदो मुझे ओह राज आअज
भर दो मेरी चूत को अपने लंड से ओह. हाां और ज़ोर से धकक्के
मारो... और ज़ोर से... हाआँ "
राज ने रोमा को कमर से पकड़ा और करवट बदल ली. उसका लंड अभी
भी उसकी चूत मे घुसा हुआ था. करवट बदाल्ते ही रोमा ने अपनी
टाँगे उसकी कमर से लपेट ली और उसे बेतहाशा चूमने लगी.
राज ने उसकी दोनो चुचियों को मसल्ते हुए ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने
लगा. हर धक्के पर वो अपने लंड को उसकी चूत की जड़ तक पेल देता.
"ऑश राज हाआँ और ज़ोर से ऑश हाआँ फाड़ दो मेरी चूऊत को ऑश
मेरा छूटने वाला है ओह हाआअँ में गयी.." सिसकते हुए रोमा
की चूत ने पानी छोड़ दिया.
राज भी झड़ने की कगार पर था. पर उसने अपना लंड को रोमा की चूत
से बाहर निकाला और उसकी पेट पर बैठ अपने लंड को उसके मुँहे मे दे
दिया.
रोमा ने भी अपना मुँह खोला और उसके लंड को चूसने लगी. राज ने दो
तीन धक्के ज़ोर के उसके मुँह मे लगाए और अपना पानी रोमा के मुँह मे
छोड़ दिया जिसे रोमा पी गयी. दोनो की साँसे उखाड़ रही थी. राज उसके
उपर से हट उसके बगल मे लेट गया.
"राज मुझे कभी छोड़ कर मत जाना." रोमा उसकी छाती पर अपना सिर
रखते हुए फुसफ्साई.
"कभी नही जाउन्गा मेरी जान." राज उसके बालों मे हाथ फेरते हुए
बोला.
"राज मुझे अपने से चिपका लो, में थोड़ी देर सोना चाहती हूँ."
* * * * *
दूसरी सुबह राज अपने किचन मे अपने लिए चाइ बना रहा था. रोमा
अभी भी सो रही थी.
तभी फोन की घंटी बजी, वैसे तो वो कभी फोन उठाता नही था,
लेकिन कई बार घंटी बजने पर उसने फोन उठाकर "हेलो" कहा.
"राज में जय बोल रहा हूँ."
जय का फोन इस समय आना उसे अच्छा नही लगा. माना कि वो उसका
ख़ास दोस्त था लेकिन अब भी उसे उस पर गुस्सा आ रहा था फिर भी
अपने गुस्से को छिपाते हुए वो बोला, "हां जय."
अपने दोस्त की बदली हुई आवाज़ से वो समझ गया कि राज अब भी गुस्सा
है फिर भी हिम्मत कर उसने कहा, देखो राज मेरा रिया और मम्मी का
झगड़ा हुआ और मम्मी ने मुझे और रिया को घर से बाहर निकाल दिया
है.....अब में सहर मे रिया के साथ हूँ.... मेने फोन इसलिए
किया जो कुछ भी उस दिन रोमा के साथ मेने किया उसके लिए में बहोत
शर्मिंदा हूँ प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना. मेने नही सोचा था कि
बात इतनी बढ़ जाएगी... प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना और रोमा से भी
कह देना ."
राज को जय की बात पर विश्वास नही हुआ फिर भी उसने धीरे से
कहा, "हां क्यों नही.... तो तुम आज कल रिया के साथ हो."
"हाआँ" जय ने कहा, "वैसे तो रिया की रूम मेट रानी भी उसके साथ
है..."
मुझे नही पता था कि तुम रिया के साथ सहर मे रहोगे" राज ने
कहा.
"मेने भी नही सोचा था," जय ने कहा, "पर मेरे पास दूसरा कोई
चारा भी नही था."
"ऐसा क्या हो गया कि घर छोड़ना पड़ गया? राज ने पूछा, वो जानना
चाहता था कि आख़िर हुआ क्या है जो इतनी जल्दी इतनी बड़ी बात हो
गयी.
जय ने कुछ जवाब नही दिया और विषय को बदलते हुए कहा, "तुम
दोनो खुद आकर नही जगह नही देखना चाहोगे."
गतान्क से आगे.......
राज ने अपने दोनो हाथ उसकी चुचियों पर रख उन्हे मसल्ने लगा.
कभी वो उसके निपल को भींचता तो कभी उसकी चुचियो की गोलियों
को. उसने अपना चेहरा नीचे झुकाया और उसके निपल को अपने दांतो
मे ले हौले हौले काटने लगा.
रोमा के शरीर मे उत्तेजना बढ़ने लगी, वो उन्माद मे सिसकने
लगी, 'ऑश राज्ज्जज्ज्ज ऑश हाआँ काटो मेरी चूचियों को.... ओह हन
भींच डालो इनहूओ."
उत्तेजना मे रोमा अपनी कमर उठा अपनी चूत को उसके लंड पर रगड़
रही थी.उसने महसूस किया कि राज का लंड तनने लग रहा है. उससे
रहा नही जा रहा था वो उसके लंड को अपनी चूत मे लेना चाहती
थी.
राज ने अपनी टाँगो से रोमा की टाँगे और फैला दी और अपने को इस तरह
उसके उपर कर दिया कि उसका लंड ठीक उसकी चूत के मुँह पर लगा
था, लेकिन उसे अंदर घुसाने के बजाय वो अपने लंड को धीरे धीरे
उसकी चूत पर रगड़ने लगा.
ओह राज..... क्यों तडपा रहे हूऊऊ..... प्लीज़ घुसा दो ना
अंदर.... देखो ना मुझसे अब नही रहा जाता.... प्लीज़ चोदो ना
मुझे.." रोमा सिसक पड़ी.
पर राज ने उसकी करहों पर ध्यान नही दिया और अपने लंड को उसकी
चूत पर घिसता रहा. उसका लंड रोमा की चूत से छूटे पानी से पूरा
गीला हो चुका था. फिर अपने आपको थोड़ा नीचे खिसकाते हुए उसने
उसकी एक चुचि के निपल को अपने मुँह मे ले किसी बच्चे की तरह
चुलबुलाने लगा.
रोमा उत्तेजना मे किसी पंछी की तरह फड़फदा रही थी... उसे अब
बर्दाश्त नही हो रहा था. वो राज के सिर को पकड़ जोरों से अपनी
चुचि पर दबा रही थी.
"ऑश राज क्यों तडपा रहे हूऊ.... ओह प्लीज़ चोदो ना
मुझे .... डाल दो अपने लंड को मेरी चूओत मे......" रोमा अब उत्तेजना
मे जोरों से सिसक रही थी.
लेकिन आज की रात तो राज रोमा के साथ पूरी तरह खेलने के मूड मे
था, वो उछल कर रोमा के पेट पर बैठ गया और अपने खड़े लंड को
उसकी चुचियों के बीच की घाटी मे रख दिया. फिर उसकी दोनो
चुचियो को पकड़ अपने लंड पर दबाया और अपना लंड आगे पीछे
करने लगा.
रोमा भी अपने प्रेमी के खेल को समझ गयी और जब भी राज अपने
लंड को आगे की ओर धकेल्ता तो वो पहले तो अपनी जीब से उसे चाटती
और फिर दूसरी बार अपना मुँह खुला रखती जिससे लंड सीधा उसके मुँह
मे पल भर के लिए घूस्ता और बाहर निकल जाता.
राज ज़ोर ज़ोर से रोमा की चुचियों को चोदने लगा, रोमा उसके गीले
लंड को चाटती तो कभी चूस्ति. लेकिन रोमा की उत्तेजना आपे चरम
सीमा पर पहुँच चुकी थी, और अब एक पल भी रुकना उसके लिए
मुश्किल हो रहा था.
रोमा ने राज को धक्का दिया और उसे अपने से अलग कर दिया. राज पीठ
के बल बिस्तर पर था, और इसके पहले कि वो कई और शैतानी करता
रोमा उसके उपर चढ़ गयी और अपनी टाँगों को उसके अगल बगल मे
ढंग से रख उसके लंड को अपनी चूत से लगाया और उस पर बैठती
चली गयी.
थोड़ी देर उसके लंड पर बैठ वो उसके लंड को अपनी चूत मे अड्जस्ट
करती रही फिर थोडा सा उपर उठ ज़ोर से नीचे बैठ गयी और उसके
लंड को पूरा अपनी चूत मे ले लिया.
"ओह राज तुम्हारा गरम लंड मेरी चूत मे कितना अछा लग रहा
है....."
रोमा अब उछल उछल कर उसके लंड को अपनी चूत मे ले रही थी. रोमा
जब ठप की आवाज़ से उसके लंड पर बैठती तो राज भी अब अपनी कमर
उपर कर अपने लंड को और अंदर तक घुसा देता.
राज अब उसके कुल्हों को पकड़ नीचे से धकके मार रहा था. रोमा थी
कि वो और उछल उछल कर उसे चोद रही थी. उसने झुकते हुए अपनी
चुचि राज के मुँह मे दे दी. रोमा जब उपर उठती तो राज अपनी कमर
उपर उठा अपने लंड को अंदर घुसा देता और जब उसकी कमर नीचे को
होती तो रोमा ज़ोर से उसकी कमर पर बैठ जाती. दोनो ताल से ताल मिला
चुदाई कर रहे थे.
"हां राज ऐसे ही अंदर तक घुसा कर चोदो मुझे ओह राज आअज
भर दो मेरी चूत को अपने लंड से ओह. हाां और ज़ोर से धकक्के
मारो... और ज़ोर से... हाआँ "
राज ने रोमा को कमर से पकड़ा और करवट बदल ली. उसका लंड अभी
भी उसकी चूत मे घुसा हुआ था. करवट बदाल्ते ही रोमा ने अपनी
टाँगे उसकी कमर से लपेट ली और उसे बेतहाशा चूमने लगी.
राज ने उसकी दोनो चुचियों को मसल्ते हुए ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने
लगा. हर धक्के पर वो अपने लंड को उसकी चूत की जड़ तक पेल देता.
"ऑश राज हाआँ और ज़ोर से ऑश हाआँ फाड़ दो मेरी चूऊत को ऑश
मेरा छूटने वाला है ओह हाआअँ में गयी.." सिसकते हुए रोमा
की चूत ने पानी छोड़ दिया.
राज भी झड़ने की कगार पर था. पर उसने अपना लंड को रोमा की चूत
से बाहर निकाला और उसकी पेट पर बैठ अपने लंड को उसके मुँहे मे दे
दिया.
रोमा ने भी अपना मुँह खोला और उसके लंड को चूसने लगी. राज ने दो
तीन धक्के ज़ोर के उसके मुँह मे लगाए और अपना पानी रोमा के मुँह मे
छोड़ दिया जिसे रोमा पी गयी. दोनो की साँसे उखाड़ रही थी. राज उसके
उपर से हट उसके बगल मे लेट गया.
"राज मुझे कभी छोड़ कर मत जाना." रोमा उसकी छाती पर अपना सिर
रखते हुए फुसफ्साई.
"कभी नही जाउन्गा मेरी जान." राज उसके बालों मे हाथ फेरते हुए
बोला.
"राज मुझे अपने से चिपका लो, में थोड़ी देर सोना चाहती हूँ."
* * * * *
दूसरी सुबह राज अपने किचन मे अपने लिए चाइ बना रहा था. रोमा
अभी भी सो रही थी.
तभी फोन की घंटी बजी, वैसे तो वो कभी फोन उठाता नही था,
लेकिन कई बार घंटी बजने पर उसने फोन उठाकर "हेलो" कहा.
"राज में जय बोल रहा हूँ."
जय का फोन इस समय आना उसे अच्छा नही लगा. माना कि वो उसका
ख़ास दोस्त था लेकिन अब भी उसे उस पर गुस्सा आ रहा था फिर भी
अपने गुस्से को छिपाते हुए वो बोला, "हां जय."
अपने दोस्त की बदली हुई आवाज़ से वो समझ गया कि राज अब भी गुस्सा
है फिर भी हिम्मत कर उसने कहा, देखो राज मेरा रिया और मम्मी का
झगड़ा हुआ और मम्मी ने मुझे और रिया को घर से बाहर निकाल दिया
है.....अब में सहर मे रिया के साथ हूँ.... मेने फोन इसलिए
किया जो कुछ भी उस दिन रोमा के साथ मेने किया उसके लिए में बहोत
शर्मिंदा हूँ प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना. मेने नही सोचा था कि
बात इतनी बढ़ जाएगी... प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना और रोमा से भी
कह देना ."
राज को जय की बात पर विश्वास नही हुआ फिर भी उसने धीरे से
कहा, "हां क्यों नही.... तो तुम आज कल रिया के साथ हो."
"हाआँ" जय ने कहा, "वैसे तो रिया की रूम मेट रानी भी उसके साथ
है..."
मुझे नही पता था कि तुम रिया के साथ सहर मे रहोगे" राज ने
कहा.
"मेने भी नही सोचा था," जय ने कहा, "पर मेरे पास दूसरा कोई
चारा भी नही था."
"ऐसा क्या हो गया कि घर छोड़ना पड़ गया? राज ने पूछा, वो जानना
चाहता था कि आख़िर हुआ क्या है जो इतनी जल्दी इतनी बड़ी बात हो
गयी.
जय ने कुछ जवाब नही दिया और विषय को बदलते हुए कहा, "तुम
दोनो खुद आकर नही जगह नही देखना चाहोगे."