भूत बंगला पार्ट-16
गतान्क से आगे..................
लड़की की कहानी जारी है ..............................
वो आँखों में खून लिए कमरे के दरवाज़े के बाहर खड़ी थी. हाथ में एक बहुत बड़ा सा पथर था. उसे अपने दोनो तरफ एक नज़र दौड़ाई. आस पास कोई नही था.
"कौन है?" कमरे का दरवाज़ा खटखटाने पर अंदर से आवाज़ आई. उसने कोई जवाब नही दिया और फिर से दरवाज़ा खटखटाया.
दरवाज़ा एक लड़के ने खोला जो तकरीबन उसके बराबर ही लंबा था पर कद काठी में उससे कहीं ज़्यादा मज़बूत था.
"क्या है?" लड़के ने पुचछा
जवाब में उसका वो हाथ जिसमें पथर था हवा में उठाया और अगले ही पल पथर का वार सीधा लड़के के सर पर पड़ा. उसके सर से खून बह चला और वो लड़खडकर ज़मीन पर गिर पड़ा. लकड़े के गिरने के बाद उसने अपने दोनो तरफ एक नज़र दौड़ाई और अंदर आकर कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया.
इस लड़के से उसकी कोई दुश्मनी नही थी पर इसने उसके दोस्त पर हाथ उठाया था जो उसके बिल्कुल भी गवारा नही था. उस वक़्त तो उसकी समझ में नही आया के क्या करे और बड़ी मुश्किल से अपने दोस्त को खींच कर दूर ले गयी थी ताकि झगड़ा ख़तम हो सके पर दिल ही दिल में उसने सोच लिया था के इसका बदला वो खुद लेगी और ये करने के लिए उसको रात का वक़्त बिल्कुल ठीक लगा.
उस वक़्त कमरे में उस लड़के के सिवा कोई नही था. वो कुच्छ देर तक खड़ी हुई उसके नीचे ज़मीन पर गिरे हुए जिस्म की तरफ देखती रही. उसके सर से खून निकलकर ज़मीन पर बह रहा था. ज़्यादा देर उसको वहाँ छ्चोड़ना ठीक नही था और वो अब उसको ऐसे भी नही छ्चोड़ सकती थी क्यूंकी उसने उसका चेहरा देख लिया था.
उसने कमरे का दरवाज़ा एक बार फिर खोला और बाहर नज़र दौड़ाई. बाहर अब भी सन्नाटा था. उसने उस लड़के के हाथ पकड़ा और खींच कर उसको कमरे से बाहर निकाला. दिल की धड़कन अब उसको खुद भी शोर लग रही थी. लग रहा था के कहीं कोई सुन ना ले और अगर कोई आ गया तो वो फस जाएगी. दुनिया की उसको कोई फिकर नही थी पर डर ये था के अगर उसके दोस्त को पता चला तो वो उसके बारे में जाने क्या सोचेगा.
बहुत ही खामोशी से लड़के के बेहोश जिस्म को खींचती हुई वो तीसरे माले की छत पर ले आई. उसको वो वक़्त अब भी याद था जब उसने गाओं में पहली बार एक लड़के के सर पर तब पथर मारा था जब उन लड़को ने उसके दोस्त की पिटाई की थी और अब भी वो वैसा ही कर रही थी. फरक सिर्फ़ ये था के इस बार वो पथर मारकर वहाँ से भागी नही.
लड़के के बेहोश जिस्म को खींचती हुई वो छत के उस किनारे की तरफ लाई जिसके नीचे कुच्छ कन्स्ट्रक्षन वर्क चल रहा था जिसकी वजह से नीचे बहुत सारे पथर पड़े हुए थे. उसने छत से नीचे एक बार देखा और जब यकीन हो गया के दूर दूर तक कोई नही है, उसने लड़के का जिस्म को तीसरी मंज़िल से नीचे धकेल दिया. जिस्म नीचे पत्थरो में गिरने की एक हल्की सी आवाज़ उसके कानो में आई और फिर पहली की तरह ही सन्नाटा च्छा गया. अंधेरा होने की वजह से वो नीचे देख नही पा रही थी.
पहली के जैसी खामोशी के साथ ही वो सीढ़ियाँ उतरकर फिर नीचे पहुँची और उस जगह पर गयी जहाँ उसने उस लड़के को फेंका था. वो पत्थरो में गिरा पड़ा था और चारों तरफ उसका खून फेला हुआ था. एक नज़र डालने से ही पता चलता था के वो मर चुका है पर उसने फिर भी अपनी तसल्ली के लिए एक बार उसकी साँस और दिल की धड़कन देखी. जब यकीन हो गया के लड़का पूरी तरह मर चुका है तो वो मुस्कुराइ और मुड़कर अपने घर की तरफ चल दी.
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"तुम्हें वो लड़का याद है जिसने मुझे थप्पड़ मारा था?" उस लड़के ने पुचछा
वो दोनो आज काफ़ी दिन बाद अकेले में मिल रहे थे. वो प्यार से उसकी गोद में सर रखे लेटा हुआ था.
"हां याद है" वो बोली
"वो मर गया" लड़का उसकी तरफ देखते हुए बोला "घर की छत से कूद कर स्यूयिसाइड कर ली उसने"
"अच्छा हुआ" वो बोली "तुम इस बारे में क्यूँ सोच रहे हो. थके हुए हो ना. सो जाओ चुप चाप"
"तुम गाओ ना" लड़का बोला "तुम गाती हो तो फ़ौरन नींद आ जाती है"
"इतना बुरा गाती हूँ मैं?" वो बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली "के सुनने वाला बोर होके सो जाए?"
उसकी बात पर वो दोनो ही हस पड़े
इशान की कहानी जारी है............................
कल रात प्रिया के घर पर जो हुआ था उसके बाद मुझे उसके सामने जाने में बड़ा अजीब सा लग रहा था इसलिए मैने उसके सेल पर मेसेज कर दिया था के मैं ऑफीस थोड़ा लेट आऊंगा. सच तो ये था के मैं पहले ये डिसाइड करना चाहता था के उसके सामने बिहेव कैसे करूँ, कैसे उसको फेस करूँ और क्या कहूँ.
मेरे दिल का एक कोना ये कह रहा था के उसने खुद मुझे डिन्नर के लिए इन्वाइट किया, खुद मेरे सामने अपनी शर्ट खोली और खुद ही कहा के वो ये अपनी मर्ज़ी से कर रही है पर मेरा दिल का दूसरा कोना ये कह रहा था के मैं ज़रूरत से ज़्यादा आगे बढ़ गया था. पहली बार में मुझे इतना ज़्यादा नही करना चाहिए था वरना वही होता जो हुआ. अब मैं खुद ही एक अनकंफॉरेटीब्ल सिचुयेशन में पहुँच गया था.
दूसरी ऑफीस ना जाने की वजह ये थी के मैं घर जाकर आराम करना चाहता था. मैं कल पूरी रात बंगलो 13 के सामने अपनी कार में पड़ा हुआ सोया था. मैने बंगलो 13 के गेट के सामने एक लड़की को खड़ा हुआ देखा था जो गाना गा रही थी. पहली बार मुझे पता चला था के वो गाने की आवाज़ कहाँ से आती थी और फिर वही हुआ था जो हमेशा होता था. उसके गाने की आवाज़ ने मुझे ऐसा मदहोश किया के मैं फ़ौरन नींद के आगोश में चला गया.
गुज़री रात ने मेरे एक सवाल का जवाब दिया था पर उसके साथ ही दिल में जाने और कितने सवाल खड़े कर दिए थे. अब मैं ये जानता था के मुझे जो गाना सुनाई देता है वो गाता कौन है पर उसके साथ ही और सवाल ये उठ गये थे के ये गाना मुझे क्यूँ सुनाई देता है. और वो लड़की कौन थी? उसने मुझे मेरे नाम से बुलाया था, मेरा नाम कैसे जानती थी वो? रात को उस वक़्त बंगलो में क्या कर रही थी? जितना मैं इस बारे में सोचता मेरा दिमाग़ उतना ही घूमने लगता. दिल ही दिल में मैं कहीं शायद ये मान चुका था के वो लड़की वही आत्मा है जो इतने लोग कहते हैं के वहाँ भटकती है. आख़िर पूरा शहेर तो ग़लत नही हो सकता? पर फिर मेरा वकील का दिमाग़ इस बात को झुटलाने लगता और इस कन्फ्यूषन का नतीजा ये हुआ के घर पर आराम करने के बजाय मैं अदिति के बारे में और पता करने के लिए अकॅडमी ऑफ म्यूज़िक की पुरानी प्रिन्सिपल के यहाँ जा पहुँचा.
"वो लड़की अब मर चुका है मिस्टर आहमेद" प्रिन्सिपल म्र्स द'सूज़ा ने कहा "अब उसके बारे में कुच्छ लिखकर क्यूँ उस बेचारी की बदनामी करना"
वो एक बूढ़ी औरत थी जिसके चेहरे पर ही उसकी गुज़री हुई ज़िंदगी की समझ नज़र आती थी. उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी जो इस बात का सबूत थी के वो एक बहुत ही इंटेलिजेंट औरत थी. ज़िंदगी में काफ़ी कुच्छ देखा था उसने और ज़िंदगी से काफ़ी कुच्छ सीखा भी था.
"मैं उसको बदनाम नही करना चाहता मॅ'म" मैने कहा "उस बेचारी का खून हुआ और फिर उसपर अपने पाती के साथ बेवफ़ाई का दाग भी लगाया गया. मैं जानता हूँ के क़ानून उसके पति को सज़ा दे चुका है पर मैं चाहता हूँ के उस बेचारी की इमेज भी उस घर की इमेज के साथ ही सॉफ हो जाए"
मैं झूठ पर झूठ बोले जा रहा था.
"क्या मालूम करना चाहते हैं आप?" म्र्स डी'सूज़ा ने मेरी बात समझते हुए बोला
"जो कुच्छ भी आप बता सकें" मैने पेन और नोटेपेड निकाला
"वो एक बहुत ही सिंपल लड़की था, बहुत साइलेंट टाइप. किसी से फ़िज़ूल बात नही करता था और गॉड क्या वाय्स दिया था उसको. जब वो गाता था ना तो जैसे पूरा दुनिया रुक जाता था. हमको कई बार नींद नही आता था तो हम रात को उसको फोन करता था और वो हमको फोन पे गाना सुनाके सुला देता था" वो मुस्कुराते हुए बोली. जवाब में मैं भी मुस्कुरा दिया.
"हम स्कूल में उसका बॉस था पर वैसे हम उसका मदर, सिस्टर सब कुच्छ था. कुच्छ टाइम हमारे साथ ही रहा वो इस घर में जब उसके पास रहने को जगह नही थी. हमको भी उसने ज़्यादा नही बताया था अपने बारे में. कहती थी के उसके माँ बाप मर चुके थे और उसके रिश्तेदार परेशान करते थे इसलिए भाग कर अकेली शहेर आ गयी थी पर हम जानता था के वो झूठ बोलता है"
"कैसे?" मैने पुचछा
"अरे वो छ्छोकरी रात को फोन पे किसी से बात करता था. कई बार हमको लगता था के वो किसी छ्होकरे के साथ भाग कर आया है. पर फिर धीरे धीरे उसका वो फोन पे बात करना ख़तम हो गया और वो पहले से साइलेंट लड़की और भी ज़्यादा साइलेंट हो गया. बहुत सॅड रहता था. हम पुछ्ता था तो बताता ही नही था. सारा दिन कहीं जॉब करता, शाम को बच्चा लोग को म्यूज़िक सिखाता और रात को चुप सो जाता. और फिर एक दिन फोन आया के उसने अपना बॉस से शादी कर लिया"
"मिलने आती थी वो आपसे?" मैने पुचछा
"हाँ कभी कभी वरना जब हमको नींद नही आता था तो हम उसको रात को फोन कर लेता था. और फिर एक दिन हम न्यूसपेपर में पढ़ा के हमारा बच्ची को उसका वो बस्टर्ड हज़्बेंड मार डाला" कहते कहते म्र्स डी'सूज़ा की आँखों से आँसू बह चले.
"म्र्स डी'सूज़ा उसके पति का कहना था के अदिति उसको धोखा दे रही थी और आपने खुद कहा के वो किसी लड़के के साथ भागकर आई थी तो क्या ........"
"हमारा छ्छोकरी एकदम मदर मेरी का माफिक प्यूर था मिस्टर आहमेद" उन्होने मेरी बात बीचे में ही काट दी "वो अगर किसी छ्होकरे के साथ था तो वो रिश्ता ख़तम हो चुका था ये हम अच्छी तरह जानता है. और अगर उसका हज़्बेंड को ऐसा लगा के हमारा छ्छोकरी उसको धोखा दिया ये तो उस हरामी का ही ग़लती रहा होएंगा. वो सताया होएंगा उस बच्ची को. और जब कोई परेशान हो तो वो सहारा तो ढूंढता ही है ना?
थोड़ी देर बाद मैं उनके घर से बाहर निकला तो मैं वहीं का वहीं था. वो मुझे कुच्छ भी ऐसा नही बता पाई थी जो मुझे पोलीस फाइल्स से नही मिला था. मैं अब भी वहीं था और उस लड़की के बारे में कुच्छ नही जानता था. एक बड़ा रेप केस, सोनी मर्डर केस में मदद माँग रही रश्मि सोनी और अब ये अदिति की कहानी, मेरी ज़िंदगी अचानक एक ऐसे तेज़ ढर्रे पर चल पड़ी थी के मेरे लिए कदम मिलना मुश्किल हो गया था.
म्र्स डी'सूज़ा के घर से निकलकर मैं सोच ही रहा था के घर जाऊं या ऑफीस के मेरा फोन बजने लगा. कॉल रश्मि की थी. वो आज की ही फ्लाइट से वापिस आ रही थी.
फोन रखा ही था के घंटी दोबारा बजने लगी. इस बार कॉल प्रिया की थी. मुझे समझ नही आया के रिसीव करूँ या ना करूँ. आख़िर में मैने कॉल रिसीव कर ही ली.
"कहाँ हैं आप?" वो बोली
"कुच्छ काम है वहीं अटक गया हूँ. क्या हुआ?" मैने पुचछा
"वो कुच्छ लोग मिलने आए थे आपसे वो रेप केस के मामले में" वो बोली
"नाम और नंबर ले ले. मैं कॉल कर लूँगा बाद में" मैने कहा
"ले लिए मैने. चले गये वो लोग"
मैं एक पल के लिए बात ख़तम कर दूं पर फिर ना जाने क्या सोचके कल रात के बारे में बोल ही पड़ा. उसको अवाय्ड भी तो नही कर सकता था.
"प्रिया यार कल रात तेरे घर....." मैने कहना शुरू ही किया था के वो बीच में बोल पड़ी
"सर वो मेरा घर था. कोई भी आ सकता था. मैं रोकती नही तो क्या करती?"
मैने एक लंबी राहत की साँस ली. मतलब उसको कल रात की बात का बुरा नही लगा. उल्टा वो तो ये सोच रही थी के मैं उसके रोकने पर नाराज़ हो जाऊँगा. मैं हस पड़ा.
"थॅंक गॉड आप हसे. मुझे तो लग रहा था के आपका दिमाग़ आज काफ़ी गरम होगा." उसने कहा
"दिमाग़ तो गरम ही है पर कल रात की बात को लेकर नही किसी और बात को लेकर. मैं ऑफीस आ रहा हूं अभी. कुच्छ खाने का इंतज़ाम करके रख और कुच्छ ठंडा भी मंगवा लेना" मैने कहा
"मैं तो कब्से कह रही हूँ के ऑफीस में एक फ्रिड्ज रख लो कम से कम ठंडा पानी तो मिलेगा पीने को" कहते हुए उसने फोन काट दिया.
मैने ऑफीस की तरफ गाड़ी घुमाई ही थी. आधे रास्ते में मुझे प्रिया की कही बात याद आई और जैसे मेरे दिमाग़ की बत्ती जली. फ्रिड्ज. मैने गाड़ी वापिस बंगलो 13 की तरफ घुमा दी.
जैसा की मुझे उम्मीद थी, श्यामला बाई मुझे बंगलो पर ही सफाई करती हुई मिल गयी.
"चुप चाप अपना काम करती रहो और मुझे अपना करने दो तो 100 के 2 नोट तुम्हारे" मैने कहा तो उसके चेहरे पर चमक आ गयी और उसने मुझे अंदर आने दिया.
घर के अंदर आते ही मैं किचन में पहुँचा और वहाँ रखे उस बड़े से फ्रीदे के सामने जा खड़ा हुआ. कल जब मैं और रश्मि आए थे तो फ्रिड्ज की सारी ट्रेस निकली हुई बाहर रखी थी जो अब अंदर लगी हुई थी.
"ये अंदर तुमने लगाई हैं?" मैं हैरान खड़ी श्यामला बाई से पुचछा
"हाँ. कल आप लोगों के जाने के बाद" वो उसी हैरानी से मुझे देखते हुई बोली.
मैने फ्रिड्ज पर एक नज़र डाली.
"इसकी चाभी तुम्हारे पास है?" मैने फ्रिड्ज के लॉक की तरफ देखते हुए कहा
"मैने तो हमेशा इसको खुला ही देखा है. फ्रिड्ज में ताला लगाने की क्या ज़रूरत है" वो ऐसे बोली जैसे मैं कोई पागलों वाला सवाल कर रहा था.
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मैने फ्रिड्ज का दरवाज़ा खोला और अंदर लगे उस हुक को देखा जो बाहर से लॉक में चाबी घुमाने पर अंदर अटक जाता था. वो हुक फ्री था और आसानी से मेरे हाथ से ही घूम गया.
"कुच्छ ठंडा पीना है क्या आपको?" श्यामला मुझे इतने गौर से फ्रिड्ज की तरफ देखते हुए पुच्छ बेती
ठंडा तो मुझे उस वक़्त पीना था पर उस वक़्त मेरे दिमाग़ में वो आखरी बात थी.
"ये पाकड़ो" मैने एक एक करके फ्रिड्ज के अंदर रखी ट्रेस निकालनी शुरू कर दी.
"क्या कर रहे हैं?" उसने फ़ौरन पुचछा पर जब मैने अपने पर्स से 100 के 2 नोट निकालकर उसकी तरफ बढ़ाए तो वो चुप हो गयी.
जब फ्रिड्ज की सारी ट्रेस निकल गयी तो मैने खड़ा होकर एक बार उसकी तरफ देखा. वो फ्रिड्ज तकरीबन मेरे ही जितना लंबा था और काफ़ी चौड़ा भी था. मैने अपना सर थोड़ा नीचे झुकाया और फ्रिड्ज के अंदर घुस गया. अंदर घुसकर मैं सिकुड़कर नीचे को बैठ गया.
"क्या कर रहे हैं आप?" श्यामला बाई ने लगभज् चिल्लाते हुए मुझसे पुचछा. मैने उसके सवाल पर कोई ध्यान नही दिया और फ्रिड्ज का दरवाज़ा बंद करके हुक अंदर की तरफ से घुमाया. हुक अपनी जगह पर जाके अटक गया. मतलब बाहर खड़े किसी भी आदमी के लिए वो फ्रिड्ज लॉक्ड था.
मैं जब बंगलो से निकला तो एक बहुत बड़े सवाल का जवाब मुझे मिल चुका था. जिस किसी ने भी सोनी को मारा था वो वहीं घर में ही था. वो उसको मारकर कहीं गया नही बल्कि वहीं घर में ही रहा और जब अगले दिन मौका पाकर उस वक़्त भाग निकला जब घर का दरवाज़ा खोला गया था. और वो लोग जिन्हें मैने घर में उस रात देखा था पर जब मैं और सोनी घर में गये तो नही थे वो भी शायद यहीं च्छूपे हुए थे क्यूंकी हमने पूरा घर छ्चान मारा था और वो कहीं और मौजूद नही थे. फ्रिड्ज इतना बड़ा था के 2 लोग उसमें आसानी से सिकुड़कर घुस सकते थे.
"साहब" मैं जा ही रहा था के पिछे से श्यामला बाई की आवाज़ आई. मैने पलटकर उसकी तरफ देखा.
"आप बोले थे ना के मैं कुकछ अगर घर में मिला तो आपको लाकर दूँ. पैसे देंगे आप" वो बोली
"हां याद है" मैने कहा
"ये मिला मेरे को" उसने एक कपड़े का टुकड़ा मेरी तरफ बढ़ाया.
वो एक सफेद रंग का स्कार्फ या रुमाल था. देखकर अंदाज़ा लगाना मुश्किल था के लड़के का था या लड़की का. एक पल के लिए तो मुझे लगा के श्यामला बाई शायद ऐसे ही कोई रुमाल मुझे थमाके पैसे निकालने के चक्कर में है पर वो रुमाल देखने से ही काफ़ी महेंगा सा लग रहा था. दोनो तरफ हाथ से की गयी गोलडेन कलर की कढ़ाई थी और कपड़े भी काफ़ी महेंगा मालूम पड़ता था. ऐसा रुमाल श्यामला बाई के पास नही हो सकता, ये सोचकर मैं उसे पैसे देने चाह ही रहा था के उस रुमाल पर मुझे कुच्छ ऐसा नज़र आया के मेरा उसको रख लेने का इरादा पक्का हो गया.
रुमाल के एक कोने पर गोलडेन कलर के धागे से 2 लेटर्स कढ़ाई करके लिखे गये थे.
एच.आर.
मेरे दिमाग़ में फ़ौरन एक ही नाम आया.
हैदर रहमान.
पहले तो मैने सोचा के पोलीस स्टेशन जाकर मिश्रा से बात करूँ पर जब मैने उसको फोन किया तो वो पोलीस स्टेशन में नही था. मैने उसको अपने ऑफीस आकर मुझसे मिलने को कहा और ऑफीस पहुँचा.
"फाइनली" प्रिया मुझे देखकर बोली "सरकार की तशरीफ़ आ ही गयी. सारी दिन अकेली बोर हो गयी मैं. खाना भी ठंडा हो गया है"
"अब तो भूख ही ख़तम हो गयी यार" मैने कहा और अपनी डेस्क पर बैठ गया.
"क्यूँ कहीं से ख़ाके आ रहे हो क्या?" वो उठकर मेरे करीब आई.
मैं कुर्सी पर सीधा होकर लेट सा गया और आँखें बंद करके इनकार में सर हिलाया.
"तो भूख क्यूँ नही है? तबीयत ठीक है?" कहते हुए वो घूमकर डेस्क के मेरी तरफ आई और मेरे माथे पर हाथ लगाके देखा.
"बुखार तो नही है" वो बोली
"नही तबीयत तो ठीक है. बस ऐसे ही भूख ख़तम हो गयी" कहते हुए मैने आँखें खोली तो फिर वही नज़र सामने था जहाँ अक्सर मेरी नज़र अटक जाती थी. उसकी बड़ी बड़ी चूचिया जो उसके पिंक टॉप के उपेर ऐसे उठी हुई थी जैसे 2 माउंट एवरेस्ट. मेरी नज़र एक पल के लिए फिर वहीं अटक गयी और खुद प्रिया को भी अंदाज़ा हो गया के मैं कहाँ देख रहा हूँ.
"ओह प्लीज़ सर......." वो बोली
"क्या?" मैने मुस्कुराते हुए उसकी नज़र से नज़र मिलाई.
"मुझे लगा था के अब आप ऐसे नही घुरोगे" वो हस्ती हुई बोली और टेबल के दूसरी तरफ जा बैठी.
"वो क्यूँ?" मैने पुचछा
"अरे अब देख तो लिया आपने. आँखों से भी देख लिया और अपने हाथों से भी देख लिया" वो हल्के से शरमाते हुए बोली.
"अरे तो एक बार देख लिया तो इसका मतलब ये थोड़े ही है के इंटेरेस्ट ख़तम हो गया" मैने उसे छेड़ते हुए कहा.
"तो अब क्या डेली सुबह शाम एक एक बार दिखाया करूँ?" वो आँखें फेलाति हुई बोली.
"सच?" मैं एकदम खुश होता हुआ बोला "क्या ऐसा कर सकती है तू?"
"बिल्कुल नही" वो थोड़ा ज़ोर से बोली और हस्ने लगी "वो आपका बिर्थडे गिफ्ट था जो आपको कल मिल गया."
"याअर ये तो ग़लत बात है" मैने कहा
"क्या ग़लत है?" वो बोली
"ये तो शेर के मुँह खून लगाने वाली बात हो गयी. एक बार ज़रा थोड़ी देर के लिए दिखा कर तो जैसे और देखने की ख्वाहिश बढ़ा दी तूने"
"थोड़ी देर के लिए? और बस देखा आपने" वो इस बात की तरफ इशारा करते हुए बोली के मैने काफ़ी देर तक देखे थे और देखने के साथ दबाए और चूसे भी थे.
मैं जवाब में हस पड़ा.
"वैसे ये सब मज़ाक ही है ना?" उसने पुचछा
"शायद और शायद नही" मैने गोल मोल सा जवाब दिया
"इस बात का क्या मतलब हुआ?"
मैने फिर जवाब नही दिया
"एक बात बताइए सर" उसने पुचछा "लड़को को इनमें क्या अच्छा लगता है?"
"ऑपोसिट अट्रॅक्ट्स यार" मैने कहा "लड़को को ऑफ कोर्स लड़की के जिस्म की तरफ अट्रॅक्षन होती है तो ऑफ कोर्स लड़की के ब्रेस्ट्स की तरफ भी अट्रॅक्षन होती है. और जैसी तेरी हैं, ऐसे तो हर बंदा चाहता है के उसकी गर्ल फ्रेंड या बीवी की हों"
"जैसी मेरी हैं मतलब?" उसने अपनी चूचियो की तरफ देखते हुए कहा
"मतलब के तेरी बड़ी हैं काफ़ी और ज़्यादातर लड़को को बड़ी छातिया अच्छी लगती हैं" मैने कहा तो वो इनकार में सर हिलाने लगी.
"याद है आपको मैं एक शादी में गयी थी और मैने एक कज़िन के बारे में बताया था जिसके साथ मेरी एक लड़के को पटाने की शर्त लगी थी?" उसने पुचछा तो मैने हाँ में सर हिलाया
"हाँ याद है"
"सर मेरी उस कज़िन के पास लड़कियों जैसा कुच्छ नही है. बस शकल से लड़की है वो. सीने पर ज़रा भी उभार नही है और फिर वो लड़का उससे जाकर फस गया. मुझे तो उसने घास भी नही डाली" वो बोली तो मैं हस पड़ा
"अरे और भी कई बातें होती हैं जो लड़को को पसंद होती हैं. सिर्फ़ ब्रेस्ट्स नही" मैने कहा
"और क्या?" वो ऐसे बोली जैसे मैं उसकी टूवुशन क्लास ले रहा था.
मैं कुच्छ कह ही रहा था के मेरे ऑफीस के दरवाज़े पर नॉक हुआ और मिश्रा अंदर आया.
क्रमशः.............................
Re: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट-17
गतान्क से आगे..................
मैने मिश्रा को वो सारी बात बता दी जो मुझे बंगलो और सोनी मर्डर केस के बारे में पता चली थी. जो एक बात मैं उससे भी च्छूपा गया वो थी हैदर रहमान का रुमाल वहाँ मिलने की बात. मैं अब तक हैदर रहमान से मिला नही था और उसके बारे में कोई भी बात करने से पहले ज़रूरी था के मैं पहले खुद ये डिसाइड करूँ के क्या वो ऐसा कर सकता है या नही. और उसके लिए फिलहाल अभी और इन्फर्मेशन हासिल करना ज़रूरी था.
"फ्रिड्ज?" मिश्रा हैरत से बोला "उस फ्रिड्ज में जगह है इतनी?"
"मेरी हाइट 6 फुट से ज़्यादा है और मैं पूरा आ गया उसके अंदर. उसके बाद भी इतनी जगह थी के तू भी अंदर घुस सकता था. वो फ्रिड्ज बहुत बड़ा है यार" मैने कहा
"और ये ख्याल आया कैसे तुझे?" उसने पुचछा
एक पल के लिए मेरे दिमाग़ में आया के मैं उसको रश्मि और मेरे बंगलो में जाने के बारे में बता दूँ पर उसका नतीजा ये होता के वो मुझसे और ज़्यादा सवाल पुचहता और फिलहाल मेरे पास उसको बताने के लिए और ज़्यादा कुच्छ ख़ास था नही.
"मुझे याद था के मैने एक बहुत बड़ा फ्रिड्ज देखा था जब तू और मैं तलाशी लेने गये थे. अपने घर में फ्रिड्ज से कुच्छ निकल रहा था तब मुझे ख्याल आया के फ्रिड्ज के अंदर भी तो कोई हो सकता है क्यूंकी उसकी ट्रेस मैने बाहर रखी हुई देखी थी" मैने कहानी बनाते हुए कहा
"ह्म" मिश्रा बोला "और निकला कब होगा वो?"
"कभी भी निकल सकता है यार. अंदर बैठा रहा होगा काफ़ी देर तक और जब मौका मिला तो निकल भागा. घर की इतनी सारी खिड़कियाँ है वो कहीं से भी निकल सकता था" मैने कहा पर मिश्रा मेरे जवाब से सॅटिस्फाइड नही था.
"तू एक बहुत बड़ा पॉइंट मिस कर रहा है मेरे भाई" वो बोला "अगर उस बंदे ने खून किया था तो उसको क्या दरकार थी वहीं घर में ही बैठे रहने की और वो भी फ्रिड्ज में घुसके. उसने खून किया था यार वो सॉफ बचके निकल सकता था वहाँ से. वहीं घर में बैठे रहने की क्या ज़रूरत थी उसको?"
मिश्रा जो कह रहा था वो बिल्कुल सही था. इस बारे में मैने बिल्कुल नही सोचा था. अगर कोई किसी की जान ले सबसे पहली रिक्षन वहाँ से निकल भागना होता है. अगर उसको घर से कुच्छ लेना ही था तो पूरी रात थी उसके पास. वो आराम से घर की तलाशी लेकर वहाँ से निकल सकता था. बंगलो 13 के नाम से तो वैसे भी लोग डरते थे और उसके आस पास भी नही जाते थे तो इस बार का तो कोई डर ही नही था के कोई देख सकता था. तो फिर वो आदमी खून करने के बाद भला वहाँ क्यूँ रहेगा?
"कह तो तू सही रहा है" मैने कहा "पर जो भी वजह थी, इतना तो हम जानते हैं के सोनी का खूनी उसकी जान लेके के बाद घर से निकला नही. अट लीस्ट दरवाज़े से तो नही. और अनलेस आंड अंटिल उसके पास कोई मॅजिकल पवर्स थी, मैं पूरे दावे के साथ कहता हूँ के वो वहीं फ्रिड्ज के अंदर च्छूपा बैठा था जब उस नौकरानी ने आकर घर का दरवाज़ा खोला और जहाँ तक मेरा ख्याल है, जब वो पोलीस को बुलाने बंगलो के सामने वाली चौकी की तरफ गयी, तभी वो वहाँ से निकल भागा"
"पक्के तौर पर तो मैं खुद उस फ्रिड्ज को देखने के बाद ही कुच्छ कह सकता हूँ. कल लगाऊँगा उधर का चक्कर. वैसे अब मेरा कोई फयडा तो है नही इसमें क्यूंकी केस सी.बी.आइ के पास है पर अगर मैने कुच्छ कमाल कर दिखाया तो मेरी वाह वाह हो जाएगी" वो मुस्कुराता हुआ बोला
हम थोड़ी देर और इधर उधर की बातें करते रहे और फिर वो उठकर मेरे ऑफीस से जाने लगा. जाते जाते वो पलटा.
"अरे इशान तू वो अदिति के बारे में कोई बुक लिख रहा था ना"
"अदिति नही बंगलो के बारे में" मैने कहा
"हाँ वही" वो बोला "एक बात पता चली है मुझे. सोचा तेरे फ़ायडे की हो सकती है. उस अदिति का हज़्बेंड अभी भी ज़िंदा है. जैल में उमेर क़ैद की सज़ा काट रहा है. तू चाहे तो मिल सकता है उससे. शायद उससे कुच्छ इन्फर्मेशन मिल सके तुझे"
मैं, रुक्मणी और देवयानी डिन्नर टेबल पर साथ बैठे थे. वो दोनो बिल्कुल नॉर्मल थी पर मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था. जबसे उन दोनो को बिस्तर पर एक साथ देखा था, ना जाने क्यूँ उन दोनो के सामने मैं बड़ा अनकंफर्टबल फील करता था. दोनो साथ हों तब भी और अगर रुक्मणी अकेली हो तब भी मुझे उससे बात करते हुए बार बार वही सीन याद आता था. वो दोनो अपनी मर्ज़ी की भी मलिक थी और इस घर की भी और मैं तो यहाँ फ्री में रह रहा था तो हिसाब से मुझे उन दोनो के कुच्छ भी करने पर कोई ऐतराज़ नही होना चाहिए थे. ऐसा तो कुच्छ भी नही था के उन दोनो में से कोई एक मेरी प्रेमिका या बीवी थी जिसकी वजह से मुझे उनकी इस हरकत पर ऐतराज़ हो रहा था पर फिर भी ना जाने क्यूँ, घर के अंदर आते ही मुझे ऐसा लगने लगता था के उन दोनो के सामने से हट जाऊं.
सबसे ज़्यादा परेशान मुझे ये बात करती थी के देवयानी जानती थी के मैने उन दोनो को देखा है इसलिए मैं कोशिश यही करता था के उसके सामने ना आऊँ और अगर आ भी जाऊं तो उससे नज़र ना मिलाउ.
"इतने खामोश क्यूँ हो इशान?" देवयानी ने मुस्कुराते हुए पुचछा "कोई बात परेशान कर रही है क्या?"
मैने इनकार में गर्दन हिलाई पर जानता था के उसने जान भूझकर ये बात छेड़ी है. अब उसने कह दिया है तो रुक्मणी भी मुझसे ज़रूर वही सवाल करेगी क्यूंकी उसको भी मेरा बर्ताव बदला हुआ लग रहा था. सवालों से बचने का मुझे एक ही तरीका दिखाई दे रहा था और वो ये था के मैं बात को बदल दूँ.
जो एक बात मेरे दिमाग़ में चल रही थी और जिसके बारे में मैं रुक्मणी से पुच्छना भी चाहता था वो ये थी के बंगलो 13 के साइड वाले घरों में कौन रहता है. अगर उस रात कोई बंगलो में कोई आया गया था जब सोनी का खून हुआ था तो बहुत मुमकिन के उन घरों के लोगों में से किसी ने देखा हो. बंगलो 13 के आस पास बना हुआ लॉन और गार्डेन काफ़ी बड़ा था और घर के चारों तरफ एक ऊँची दीवार थी जिस वजह से दोनो तरफ के घर असल बंगलो से थोड़ी दूर पर थे पर ऐसा हो सकता था के शायद उन घर के लोगों में से किसी ने कुच्छ देखा हो. मिश्रा ने मुझे बताया था के वो ऑलरेडी पुच्छ चुका है और कुच्छ हासिल नही हुआ पर फिर भी मैने खुद पता लगाना ठीक समझा. मुसीबत ये थी के मैं रुक्मणी के साथ भी बड़ा अनकंफर्टबल फील कर रहा था इसलिए उससे बात कर नही पाया. पर इस वक़्त जबकि मैं खुद ही बात बदलना चाहता था तो इस वक़्त मैं वो बात उठा सकता था. वैसे भी दोनो बहनो को गॉसिप करने में बड़ा मज़ा आता था तो इस बहाने टॉपिक ऑफ डिस्कशन मेरे खामोश रहने से हटकर बंगलो 13 बन सकता था.
"आपको पता है के बंगलो 13 के आस पास के घरों में कौन रहता है?" मैने सवाल किया तो दोनो बहनो ने पहले तो मुझे हैरत से पुचछा फिर थोड़ी देर बाद रुक्मणी बोली.
"उस लेन में ज़्यादा लोग नही रहते. कुल मिलके 15 घर हैं. बंगलो 7 तक के घरों में तो फॅमिलीस रहती हैं पर फिर 8,9.10,11 खाली पड़े हैं. फिर 12 ऑक्युपाइड है और 14,15 खाली हैं. उस मनहूस बंगलो के आस पास कोई रहना नही चाहता इसलिए लोग घर छ्चोड़ छ्चोड़के चले गये"
भले ही वो लेन खाली पड़ी हो पर मेरे मतलब की बात मैं सुन चुका था. बंगलो 12 में कोई रहता है.
"12 में कौन रहता है?" मैने पुचछा
"वो घर कम होटेल ज़्यादा है. बना भी इस तरीके से हुआ है के उसको होटेल के हिसाब से इस्तेमाल किया जा सके" रुक्मणी बोली
"मैं समझा नही" मैने कहा
"वो जिस औरत का है वो इस दुनिया में अकेली है. कोई नही है उसके आगे पिछे. उस घर में अकेली रहती है इसलिए उसने किरायेदार रखने शुरू कर दिए. घर को 1 रूम और 2 रूम सेट्स में बाँट रखा है जिन में वो किरायेदार रखती है. इस इलाक़े के सबसे बड़ी औरत है वो" रुक्मणी ने मुस्कुराते हुए कहा.
"बड़ी?" मैने फिर सवाल किया
"मोटी है बहुत. हाढ़ से ज़्यादा. इतना वज़न होगा उस औरत में के अगर किसी वज़न नापने वाली मशीन पर कदम रख दे तो मशीन ही टूट जाए" कहकर दोनो बहें ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी.
"वैसे नेचर की काफ़ी अच्छी है वो" हसी रोकते हुए रुक्मणी बोली "वैसे लोग कहते हैं के किराया काफ़ी ज़्यादा लेती है"
"फिलहाल कोई किरायेदार रह रहा है वहाँ?" मैने पुचछा
"पता नही पर मैने सुना था के वो सोनी के मर्डर के बाद उस बेचारी को भी काफ़ी नुकसान हुआ है. जो एक किरायेदार था वो खून होने के 2 दिन बाद ही घर छ्चोड़के भाग गया था और अब कोई वहाँ रहने की हिम्मत नही करता. क्यूँ तुम शिफ्ट होने की सोच रहे हो क्या?" इस बात पर वो दोनो फिर ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी.
"नही मेरा ऐसा की नेक इरादा नही है" मैने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा "वैसे आप गयी हैं कभी बंगलो 12 में?"
"हाँ मेरा तो पूरा घर देखा हुआ है" रुक्मणी बोली "कभी कभी चली जाती हूँ ऐसे ही बात करने"
"उस घर से बंगलो 13 नज़र आता है?" मैने बात जारी रखते हुए कहा.
"नही वैसे तो नही दिखाई देता क्यूँ दोनो घरों के बीच एक ऊँची दीवार है और तुमने तो देखा ही है के बंगलो 13 का कॉंपाउंड कितना बड़ा है. घर का कॉंपाउंड कम रेस कोर्स ज़्यादा लगता है. पर हां अगर बंगलो 12 की छत पर जाओ तो वहाँ से बंगलो 13 दिखाई देता है. पर तुम ये सब क्यूँ पुच्छ रहे हो" रुक्मणी ने पुचछा
उसके इस बात का मेरे पास कोई जवाब नही था इसलिए मैं चुप ही रहा पर थोड़ी देर बाद जवाब देवयानी ने दिया.
"इशान अगर तुम ये जानने की कोशिश कर रहे हो के खून की रात बंगलो 12 से किसी ने कुच्छ देखा था तो तुम्हें झांवी से बात करनी चाहिए"
मुझे उसकी अकल्मंदी पर हैरत हुई. वो फ़ौरन समझ गयी थी के मैं क्या कोशिश कर रहा हू.
"ये झांवी कौन है?" मैने पुचछा
"नौकरानी है" देवयानी सीधा मेरी नज़र से नज़र मिलाते हुए बोली "बंगलो 12 में मैं भी गयी हूँ इशान. उस घर की मालकिन मिसेज़ पराशर इतनी मोटी हैं के अपनी कुर्सी से उठ तक नही पाती तो इस बात का सवाल ही नही के उन्होने कुच्छ देखा हो. हां पर वो नौकरानी झांवी एक पक्की छिनाल है. अगर उसने बंगलो 13 में कुच्छ नही देखा तो समझ जाओ के किसी ने नही देखा"
मैं देवयानी की बात सुनकर मुस्कुरा उठा.
"कहते हैं के कोई बंजारन है वो" रुक्मणी ने डाइनिंग टेबल से उठते हुए कहा.
अगले दिन की सुबह मेरे लिए एक प्यार भरी सुबह थी क्यूंकी मेरी आँख रश्मि की आवाज़ सुनकर खुली.
"हां रश्मि जी" मैं फ़ौरन अपने बिस्तर पर उठकर बैठ गया "कहिए"
"फर्स्ट यू गॉटा स्टॉप कॉलिंग मे रश्मि जी. आंड सेकंड्ली मैं सोच रही थी के आप मिलने आ सकते हैं क्या?" दूसरी तरफ से रश्मि की आवाज़ आई जिसने सुनकर मेरे दिल की धड़कन कई गुना बढ़ गयी. वही सुरीली मधुर आवाज़.
"हाँ बिल्कुल" कहते हुए मैने घड़ी की तरफ नज़र डाली. सुबह के 7 बज रहे थे. 11 बजे मेरी कोर्ट में रेप केस को लेकर हियरिंग थी. 4 घंटे का वक़्त अभी और था मेरे पास.
"मैं अभी एक घंटे में आपके पास पहुँचता हूँ" मैने बिस्तर से उठकर खड़े होते हुए कहा
"ठीक है" रश्मि बोली "कुच्छ खाकर मत आईएगा. ब्रेकफास्ट साथ में करेंगे"
"डील" कहते हुए मैने फोन डिसकनेक्ट किया.
मुझे अपने उपेर हैरत थी के सिर्फ़ एक उसकी आवाज़ सुनकर ही मैं किसी बच्चे की तरह खुश हो रहा था. सुबह जैसे एक अलग ही रोशनी फेला रही थी और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैने अभी अभी पूरी दुनिया पर जीत हासिल की हो. जाने क्या था उसकी आवाज़ में पर मेरा दिल जैसे मेरे अपने ही बस में नही था. किसी छ्होटे बच्चे की तरह मैं जल्दी जल्दी उससे मिलने के लिए तैय्यार हो रहा था. आजकल तो जैसे मेरी ज़िंदगी ही बस 2 आवाज़ों में खोकर रह गयी थी. एक वो गाने की आवाज़ जो मैं सुनता था और दूसरी रश्मि की. फरक सिर्फ़ इतना था के गाने की आवाज़ सुनकर मेरी रूह को सुकून मिलता था पर रश्मि की आवाज़ मेरी दिल को बेचैन भी करती थी और सुकून भी देती थी और वो भी एक साथ, एक ही वक़्त पे.
जब उसने अपने होटेल कर दरवाज़ा मेरे लिए मुस्कुराते हुए खोला तो मुझे लगा के मैं वहीं चक्कर खाकर गिर जाऊँगा. उसका वो मुझे देखकर मुस्कुराना और फिर नज़र झुखा लेना मुझे ख़तम कर देने के लिए काफ़ी था. वो मुझे देखकर खुश भी हो रही थी और साथ ही शायद शर्मा भी रही थी और मेरे ख्याल से शरम की वजह मेरी और उसकी आखरी मुलाक़ात थी जब मैने जाने क्यूँ कह दिया था के उसका मुझपर पूरा हक है. जो भी था, बस उस वक़्त तो मैं उसको ऐसे देख रहा था जैसे कोई पतंगा रोशनी को देखता है.