अधूरा प्यार--13 एक होरर लव स्टोरी
गतांक से आगे ..........................................
"अरे शीनू! आज कॉलेज नही जाना क्या?" मम्मी ने नीचे से आवाज़ लगाई...
"जा रही हूँ मम्मी जी! बस ऋतु आ जाए एक बार!" नीरू ने उपर से ही आवाज़ लगाकर जवाब दिया और परदा हटाकर सामने सड़क की और देखा. ऋतु का घर सामने वाली गली में कुच्छ घर छ्चोड़ कर ही था. उसे जब ऋतु आती नही दिखाई तो सीढ़ियों से तेज़ी से उतरती हुई नीचे आई और ऋतु के घर फोन मिलाया,"हेलो, नमस्ते आंटिजी!"
"नमस्ते बेटी!" फोन पर शायद ऋतु की मम्मी थी..
"आई नही ऋतु अभी तक.. मैं वेट कर रही हूँ उसका.." नीरू ने पूचछा...
"बस अभी अभी निकली है बेटी.. देख.. पहुँच गयी होगी.." उधर से जवाब मिला ही था कि डोर बेल बज उठी.
"लगता है आ गयी.. अच्च्छा आंटीजी!" कहकर नीरू ने फोन रखा और अपनी किताबें उठा कर बाहर की ओर निकल गयी.. ऋतु दरवाजे पर ही खड़ी उसका इंतजार कर रही थी..
"कर दिया ना क्लास से लेट.. क्या कर रही थी अभी तक तू?" नीरू ने बाहर निकलते ही ऋतु से शिकायती लहजे में कहा..
"अरे मैं आई थी यार.. तुझे पता है.. वो दोनो आज फिर चौंक पर खड़े थे.. मैं वापस चली गयी.. खम्खा आज फिर पंगा खड़ा कर देते.. कोई भरोसा नही उस बंदर का..." ऋतु ने नीरू के साथ साथ चलते हुए मुँह सा बनाकर कहा..
"कौन दोनो? किसकी बात कर रही है तू?" नीरू ने आस्चर्य से पूचछा...
"अरे वही यार.. जिनका फोन गुम गया था बस में.. आज फिर यहाँ आए हुए थे.. पता नही क्या प्राब्लम है..?" ऋतु ने जवाब देते हुए कॉलेज के सामने वाली सड़क पार करने के लिए दोनो और देखा," ओह माइ गोड! वो खड़े दोनो.. चल सीधी चल.. !"
दोनों ने तेज़ी से सड़क पार की और कॉलेज में घुस गयी...
"नीरू को नज़र भर देख लेने से ही मेरी सारी थकान मिट गयी यार" रोहन ने कलेजे पर हाथ रखते हुए रवि को कहा...
"तू थकान मिटाने आया था या बात करने.. अगर तू यूँही 50 गज दूर खड़ा होकर उसके खुद तेरे पास आने का इंतजार करता रहा ना तो इस जनम में भी बेचारी यूँही चली जाएगी.. मैने कहा था ना गेट पर खड़ा होने के लिए.. तब तो तेरी फट गयी..." रवि उसको खींचते हुए गेट की तरफ ले गया....
" पर यार, ये अच्च्छा नही लगता.. समझा कर.. अमन ने बोला है ना गौरी को.. वो कर लेगी बात!" रोहन ने उसको वापस खींच लिया..," चल चलते हैं वापस!"
"अरे शीनू! तू अब आई है.. तुझे कोई पूछ रहा था..." उनको देखकर एक लड़की उनके पास आ गयी....
"कौन? और तू बाहर क्या कर रही है.. क्लास में नही गयी क्या?" नीरू ने सामने से आ रही लड़की को देखकर पूचछा...
"गयी थी यार.. सिर्फ़ 1 मिनिट लेट थी, सर ने निकल दिया.. तुम भी मत जाना.. कोई फायडा नही अब!" लड़की ने जवाब दिया..
उन्न दोनो का मुँह लटक गया.. साथ वाले पार्क में बैठते ही नीरू ने पूचछा..," कौन पूच्छ रहा था मुझे..?"
"पता नही यार.. कोई अंजान लड़की थी.. पहले नीरू करके पूचछा.. फिर शीनू करके.. नीरू भी तेरा ही नाम है क्या?" लड़की ने जवाब देकर सवाल किया....
"नही! मेरा नाम शीनू ही है..!" नीरू ने कहते हुए पूचछा," कॉलेज की नही थी क्या?"
"कॉलेज की होती तो मैं पहचान ही ना लेती.. कोई बाहर से आई थी.. तुम्हारा घर भी पूच्छ रही थी.. मैने बता दिया... शायद इस शहर की ही नही थी वो.. हरयाणा साइड का पुट था आवाज़ में...!"
"कौन हो सकती है ?" नीरू दिमाग़ पर ज़ोर लगाकर सोचने ही लगी थी कि एक और लड़की सामने से उनकी और ही आ रही थी..," हाई!"
"हाई सोना! क्या हाल हैं?" ऋतु और नीरू ने लगभग एक साथ पूचछा..
"मैं तो ठीक हूँ.. 'वो मिली क्या?" सोना ने उनके पास बैठते हुए कहा...
"कौन?" ऋतु ने पूचछा..
"पता नही.. एक सुंदर सी लड़की सुबह सुबह तुम्हे पूछ्ति फिर रही थी.." सोना ने जवाब दिया...
नीरू अपनी उंगली को दाँतों के बीच दे कर अपने नाख़ून कुतरने लगी और अपनी आँखों को सोचने के अंदाज में चौड़ी कर लिया..," हद है यार.. कौन हो सकती है..?"
"तू छ्चोड़ ना.. जो कोई भी होगी.. घर बता दिया ना उसने!" ऋतु ने नीरू के सिर पर हाथ मारा..
"आ शीनू! इधर आना एक बार!" कॉलेज के अंदर की तरफ से आ रही शिल्पा ने उनसे थोड़ा दूर खड़े होकर ही नीरू को पुकारा..
"हुम्म.. आ रही हूँ!" नीरू ने कॉपी उठाई और शिपा के पास आकर खड़ी हो गयी..," अब तू भी ये मत कहना कि मुझे कोई ढूँढ रही थी.."
"हाँ.. पर तुझे कैसे पता?" शिल्पा ने पलट कर कहा...
"बस पता लग गया.. हर किसी से उसने ये बात पूछि है शायद! चल छ्चोड़.. कुच्छ और भी काम था क्या?"
"हाँ.. तेरे पास टाइम है ना?" शिल्पा ने उसका हाथ पकड़ कर कहा...
"हां बोल! ये पीरियड तो खाली ही समझ!" नीरू ने कहा और उसके साथ साथ चलने लगी....
"तेरा नाम नीरू भी है ना?" शिपा ने यहीं से बात शुरू की...
"कितनी बार कहूँ यार.. कोई मुझे नीरू ना कहा करो.. मेरा नाम शीनू है शीनू!" नीरू चिड सी गयी...
"गुस्सा क्यूँ होती है? तुझे पसंद नही तो कॉपी पर क्यूँ लिखा हुआ है?" शिल्पा ने कॉपी पर लिखे नाम की और इशारा किया...
"हे भगवान! ये किसने लिख दिया...? नीरू ने झट से पेन निकाला और पूरे नाम को मिटा दिया..," मेरे साथ ऐसा मज़ाक मत किया करो यार.. प्लीज़!"
"मैने क्या किया है शीनू? मैने तो सिर्फ़ लिखा दिखाया है.. 'वो लड़की भी पहले नीरू ही पूच्छ रही थी.. जब मेरी समझ में नही आया तो उसने शीनू कहा.. घर पूच्छ रही थी तेरा.. पर मुझे पता ही नही था.. खैर मुझे तुझसे कोई और बात करनी है..!" शिल्पा ने उसका हाथ पकड़ा और पार्क के एक कोने में अपने सटक उसको भी बिठा लिया...
"बोल!" नीरू का मूड खराब हो गया था...
" देख मुझे पता है तुझे ये सब पसंद नही.. फिर भी, सुन लेना पूरी बात.. बीच में उठकर मत भागना.." शिल्पा ने भूमिका बाँधी...
"ऐसी क्या बात है? बोल ना!" नीरू ने उत्सुकतावश उसकी तरफ देखा...
" वो....... कोई तेरे लिए 500 किलोमीटर से चलकर आया है.. पूरी बात सुन लेगी ना!"
"कौन आया है? क्या कह रही है तू.. अब पहेलियाँ मत बुझा.. जो बोलना है.. एक लाइन में बोल दे..." नीरू बात जान'ने के लिए जिगयासू सी हो गयी...
"रोहन! बहुत प्यार करता है तुझसे... सुन तो!" उठकर भाग रही नीरू का हाथ पकड़कर शिल्पा ने वापस खींच लिया," मैने पहले ही कहा था कि तू पूरी बात सुन लेना एक बार! फिर तेरी मर्ज़ी है..."
"और कोई भी बात कर ले.. पर ये बकवास बातें मुझे पसंद नही.. क्या होता है प्यार? 500 किलोमीटर दूर से किसी को मुझसे प्यार हो गया.. उसको कोई सपना आया था क्या मेरा!" नीरू ने व्यंग्य किया...
"हां.. सपने ही आते हैं उसको तेरे.. तभी आया है वो यहाँ पर.. पता है तुझे या सब अच्च्छा क्यूँ नही लगता? तेरे सीने में दिल नही है.. इसीलिए!" शिल्पा ने सपस्ट करने की कोशिश की....
"हा हा हा हा.. मेरे सीने में दिल नही है.. व्हाट ए जोक यार.. फिर मैं जिंदा कैसे हूँ.. ये क्या धड़क रहा है मेरे दिल में..." नीरू ने अपना दायां हाथ सीने पर रखकर अपनी धड़कन को महसूस किया..,"आज तो फर्स्ट एप्रिल भी नही है.. फिर क्या इरादा है तेरा.." नीरू अब तक हंस रही थी...
"तू मेरी बात को सीरीयस क्यूँ नही ले रही...!" शिल्पा ने नीरू के दोनो कंधे पकड़े और उसको झकझोर दिया...
"क्या सीरीयस लूँ यार तेरी बातों को.. कौनसी शदि में जी रही है तू.. अब ये कोई बात हुई की मेरे सीने में दिल नही है... 500 किलोमीटर दूर बैठे किसी को मेरे सपने आते हैं.. उसको मुझसे प्यार हो गया है.. हा!" नीरू उसकी बातों से चिदती हुई बोली...
"यार, दिल से मेरा मतलब फीलिंग्स से है.. तू एक बार उस'से मिल ले बस! तुझे सब समझ आ जाएगा...!" शिल्पा ने ज़ोर देकर कहा....
" किस'से मिल लूँ? कहाँ मिल लूँ?" नीरू ने मजबूर होकर कहा...
"आ.. मेरे साथ तू एक बार कॉलेज के गेट तक आ!" शिल्पा नीरू को उठाकर लगभग ज़बरदस्ती खींचती हुई कॉलेज के गेट पर ले गयी.. रोहन और रवि को जैसे ही नीरू ने अपनी और आते देखा.. उसकी घिग्गी बँध गयी.. अपना हाथ छुड़ाकर भागती हुई वापस अंदर आई और ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी....
"क्या हुआ? तू भाग क्यूँ आई..?" शिल्पा उसके पिछे पिछे आई और गुस्से से उसको देखने लगी....
"ये..." नीरू अब भी ज़ोर ज़ोर से हंस रही थी..," इसको आते हैं मेरे सपने.. अरे तेरा उल्लू बना दिया... इनको हम बस में मिले थे..अमृतसर से आते हुए.. तब से पिछे पड़ें हैं.. हा हा हा हा..."
कहानी जारी है...............................
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अधूरा प्यार--14 एक होरर लव स्टोरी
गतांक से आगे ...............................
अधूरा प्यार--14
"क्या हुआ? बात हुई क्या उस'से?" अमन जैसे घर पर रोहन और रवि का ही इंतजार कर रहा था," बात बनी कि नही?"
रोहन ने आकर बिस्तेर पर पसरते हुए अपना सिर 'ना' में हिला दिया," गेट तक आई थी.. वापस भाग गयी.. एक और लड़की थी उसके साथ!" रोहन ने सीधा लटेकर अपने चेहरे को तकिये से ढक लिया...
"मैने तो बोला था इसको.. सीधी बात करनी चाहिए थी.. जनाब तो गेट के पास खड़ा होने से भी डर रहे थे.. ऐसे बात थोड़े ही बन'ती है यार..." रवि हताश होता हुआ बोला...
अमन रवि की और देखकर मुस्कुराया,"बन जाएगी यार.. पर सब्र तो करना पड़ेगा ना.. ये काम इतनी जल्दी नही होने वाला है.. एक मिनिट! मैं गौरी से बात करता हूँ!" कहकर अमन ने फोन निकाल लिया....
"हेलो!"
"हाँ अमन, बोलो!"
"क्या रहा? क्या बात हुई शीनू से?" अमन ने सीधे बात पर ही आते हुए पूचछा....
"वो... मैं आजकल कॉलेज नही जा रही.. मैने शिल्पा को बोला था बात करने के लिए.. सब समझा भी दिया था उसको! उसका नंबर. देती हूँ.. तुम उसी से बात कर लो.." गौरी ने जवाब दिया...
"हूंम्म.. लाओ! दो नंबर." अमन ने कहते हुए नंबर. नोट करने के लिए रोहन का फोन उठा लिया...
गौरी ने अमन को शिल्पा का नंबर. लिखवा दिया," एक मिनिट अमन! क्या इस सबके लिए शेखर नही फोन नही कर सकता उसको?"
"हां हाँ! मुझे क्या प्राब्लम है..? शेखर कर लेगा! कोई खास वजह है क्या?" अमन ने पूचछा....
"नही.. बस ऐसे ही.. वो.. वो उस'से बात भी करना चाहती है..." गौरी ने टालते टालते भी बात कह ही दी...
"ठीक है! मैं अभी उसको बोल देता हूँ... वो बात कर लेगा!" अमन मुस्कुराया और फोन काट दिया..
"एक मिनिट! मैं शेखर को उठाकर लाता हूँ... शिल्पा ने बात की हैं नीरू के साथ.. वोही बताएगी क्या पोज़िशन है?" अमन ने कहा और बाहर निकल गया...
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"क्या बात है बे? तू तो सेट्टिंग कर भी आया और मुझे बताया तक नही!" अमन ने दूसरे कमरे में घुसते ही सो रहे शेखर को पकड़ कर ज़ोर से हिला दिया.. शेखर हड़बड़कर उठ बैठा," क्या? ... क्या हुआ?"
"ले.. ये ले तेरी शिल्पा का नंबर., उसको तुझसे बात करनी हैं.. और हां.. ये पूच्छना मत भूलना की नीरू का क्या रेपोंस रहा.." अमन ने शेखर का फोन उठा शिल्पा का नंबर. डाइयल किया और फोन शेखर को पकड़ा दिया..
शेखर ने फोन काटा और अमन को घूर्ने लगा....
"जा रहा हूँ साले.. करले फोन अकेले अकेले.." अमन हंसा और बाहर निकल गया...
शिल्पा के बारे में सोचते ही शेखर की धड़कने बढ़ गयी.. 'आख़िर क्या बात करनी हैं उसको' सोचते हुए शेखर ने दरवाजा अंदर से बंद किया और रिडाइयल करके फोन कान से लगा लिया..
"हेलो!" शिल्पा की मीठी सी आवाज़ फोन पर उभरी..
"हाई शिल्ल्लपा! मैं, ... शेखर!" शेखर ने आवाज़ से शिल्पा का परिचय करवाया..
"ओह्ह.. हाई! .... आपके पास मेरा नंबर. कहाँ से आया..?" शिल्पा की ज़ुबान लड़खड़ा गयी...
"मुझे तो यही बताया गया है कि आपको मुझसे कुच्छ बातें करनी हैं.. इसीलिए मैं तो समझा की आपने ही दिया होगा!" शेखर ने आराम से बिस्तेर पर पसरते हुए कहा...
"नही तो.. मैने तो कोई... मतलब.. मुझे तो..." शिल्पा ने कयि तरह से अपनी बात पूरी करने की कोशिश की.. पर कर नही पाई.. कॅंटीन में लगे शीशे के सामने खड़ी हो अपने आपको यूँ निहारने लगी मानो शेखर उसको देखने ही आ रहा हो...
"सॉरी देन! होप आइ डिड्न'ट डिस्टर्ब यू.. आइन्दा ऐसी ग़लती नही करूँगा..." शेखर ने उसकी ना-नुकर पर रूठ जाने का नाटक सा किया....
"नही.. नही.. मेरा मतलब था.. हां.. मुझे.. मुझे करनी थी बात.. वो..." शिल्पा के मुँह से अनायास ही निकल गया...
"थॅंक्स!... वो क्या?" शेखर मन ही मन मुस्कुराता हुआ बोला...
"वो... कब जा रहे हो यहाँ से?" शिल्पा को और कुच्छ सूझा ही नही....
"कहो तो... आज ही निकल जाउ?" शेखर ने अपने होंतों पर जीभ फेरते हुए आँखें बंद कर शिल्पा का सलोना चेहरा याद किया...
"नही.. नही.. मेरा मतलब है कि...." शिल्पा फिर रुक गयी...
"हूंम्म.. बोलो भी अब.. बोल भी दो यार!" शेखर के दिमाग़ पर मस्ती सवार हो गयी...
"क्कक्या?" शिल्पा हड़बड़ी के साथ बोली...
"और कुच्छ नही तो 'आइ लव यू!' ही बोल दो..." शेखर कहकर हँसने लगा..
"क्कैसे.. मतलब..." शिल्पा की हालत फोन पर ही खराब हो गयी...
"मतलब में ही उलझी रहोगी या कुच्छ काम की बात भी करोगी.." शेखर ने फिर उसको छेड़ा...
"क्क्या बात... करनी हैं.. मेरी समझ में नही आ रहा.." शिल्पा की साँसे उखाड़ने लगी थी.. उसकी समझ में ही नही आ रहा था की क्या बोले और क्या नही...
"वही.. वो नीरू ने क्या जवाब दिया.. रोहन के बारे में..." शेखर के इस सवाल को सुनते ही शिल्पा का ध्यान खुद पर से हटकर नीरू पर चला गया... और इसी के साथ वा सामान्य भी हो गयी.....
"ओह्ह! शी ईज़ इंपॉसिबल शेखर. मैने उसको समझाने के क्या क्या नही किया! पर उस'से इस बारे में बात करना ही बेकार है... पहली बात तो वो मानती ही नही की 'प्यार-प्रेम' जैसा कुच्छ वास्तव में होता भी है.. दूसरे रोहन के बारे में वो समझती है कि 'वो' बस में मिलने के बाद से ही उसके पीछे पड़ा है.. 'सपने' वाली बात उसको 'ड्रम्मा' से ज़्यादा कुच्छ नही लगी..."
"कुच्छ उम्मीद है अभी...तुम्हारी तरफ से..?" शेखर ने भी संजीदा होकर पूचछा..
"मुझे नही लगता उस पर कोई फ़र्क़ पड़ेगा.. पर तुम कहो तो मैं एक बार और कोशिश करूँ!" शिल्पा ने शेखर की बात को तवज्जो देते हुए कहा...
"नही.. अभी रहने दो.. अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं बता दूँगा... बाइ दा वे, थॅंक्स फॉर नाउ!"
"ये.. कैसी बात कर रहे हो.." शिल्पा ने बात पूरी भी नही की थी कि फोन कट गया.. फोन शेखर ने जानबूझ कर काटा था.. उसको विस्वास था कि अगर 'कुच्छ' होगा तो फोन वापस ज़रूर आएगा.. और उसका विस्वास सही निकला...
"फोन क्यूँ काट दिया था" शिल्पा हताश सी होकर बोली...
"मुझे लगा बात हो गयी है.. सॉरी!" शेखर ने कहा...
"नही.. हां.. मेरा मतलब था कि.... " शिल्पा फिर अटकने लगी...
"क्या बात है.. बोलो भी..?"
"हम.... वो... एक बार मिल सकते हैं क्या?" शिल्पा ने हड़बड़ाहट में जल्दी से कहा और जवाब को दिल की गहराई तक उतारने के लिए अपनी आँखें बंद कर ली...
"हां.. क्यूँ नही? पर कहाँ...?" शेखर का दिल मचल उठा....
"कहीं भी.. जहाँ तुम कहो!" शिल्पा की खुशी का कोई ठिकाना नही था...
"ओके! मैं बाद में फोन करता हूँ.. और कुच्छ?" शेखर ने कहकर फोन को चूम लिया.. इस चुंबन की आहत शिल्पा को अपने कानो में सुनाई पड़ी...
"आइ लव यू!" शिल्पा ने झट से कहा और जवाब सुन'ने से पहले ही फोन काट दिया....
"मम्मी! कोई लड़की आई थी क्या?" नीरू ने घर के अंदर घुसते ही दरवाजा बंद करते हुए पूचछा...
"नही तो! किसी को आना था क्या शीनू?" दरवाजा खोलकर वापस अंदर जा रही मम्मी जी पलट गयी...
"नही.. पर कॉलेज में कोई मुझे पूच्छ रही थी.. इसीलिए.." नीरू ने आनमने ढंग से जवाब दिया और उपर चढ़ने लगी...
"अरे.. खाना तो खा ले बेटी.. सुबह भी ऐसे ही निकल गयी थी तू!" मम्मी जी ने नीचे से आवाज़ लगाई....
"आ रही हूँ मम्मी! ज़रा कपड़े बदल लूँ..." नीरू ने जवाब दिया और उपर कमरे में घुस गयी..
अंदर घुसते ही उसकी निगाह टेबल पर पेपर वेट के नीचे फड्फाडा रहे कागज पर जाकर जम गयी.. उत्सुकता से उसने कागज निकाला और यूँही पढ़ने लगी.. पर जैसे जैसे वह पहली लाइन से दूसरी और दूसरी से तीसरी लाइन पर पहुँची.. उसके हाथ पैर जमने लगे और वह उसमें लिखे शब्दों के जाल में उलझती चली गयी...
"नाम बदल लेने से तकदीर नही बदल जाती नीरू! और खास तौर से तब; जब तकदीर की 'वो' गाढ़ी रेखायें शदियो पुराने इश्क़ का गला घोंट कर एक दूसरे के लिए प्यासी दो आत्माओ के एक हो चुके लहू में डुबोकर सातवें आसमान से भी उपर लिखी गयी हों."
नीरू अचंभित सी उस कागज के टुकड़े को निहारती रही, फिर दनदनाती हुई नीचे की और भागी..
"मम्मी! कौन गया था उपर? कौन आया था घर में?" नीरू का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था...
"बता तो रही हूँ, कोई नही आया.. मैं तो सुबह से ही यहाँ हूँ.. क्या हो गया?" मम्मी ने बेफिक्री वाले अंदाज में बैठे बैठे ही कहा...
बिना कुच्छ बोले नीरू बाहर निकली और दूसरी गली पर लगे गेट की कुण्डी देखी.. पर वहाँ तो ताला लगा हुआ था...
'उनकी इतनी हिम्मत हो गयी कि दीवार फांदकर चोरों की तरह घर में घुसने लगे' बड़बड़ाती हुई नीरू ने कागज के टुकड़े टुकड़े किए और डस्टबिन में फैंक वापस उपर चली गयी...
"सीसी...क्क्क...कौन.. है?" नीरू जड़ सी होकर कमरे से अटॅच्ड बाथरूम के दरवाजे के सामने खड़ी हो डर के मारे सूखे पत्ते की तरह काँपने लगी.. दोबारा उसकी हिम्मत दरवाजे को छ्छूने तक की नही हुई...
"मुंम्म्मममय्ययययययययययययी" अचानक नीरू की इश्स चीख से पूरा का पूरा घर दहल गया...
नीरू की आवाज़ सुनकर मम्मी जी बदहवास सी दौड़ी दौड़ी उपर आई.. देखा; नीरू दरवाजे के सामने ही खड़ी खड़ी काँप रही थी...," क्या हुआ शीनू? क्या हुआ बेटी?" किसी अनहोनी की आशंका से घबराकर उपर दौड़ी आई मम्मीजी को जब नीरू सही सलामत खड़ी नज़र आई तो उसको थोड़ी राहत मिली.. उसके पास आते ही उन्होने नीरू को बाहों में लेकर अपने साथ चिपका लिया...
"ववो.. बाथरूम में कोई है?" मम्मी जी से चिपकी नीरू ने आँखें तक नही खोली...
"चुप कर.. डरपोक कहीं की.. कौन होगा?" कहते हुए मम्मी जी ने ज़ोर से दरवाजे को अंदर धकेला तो वो खुल गया.. अंदर कोई नही था..," देख.. कोई भी तो नही है...!"
"पर कोई था मम्मी.. यहाँ ज़रूर कोई आया था.. दरवाजा भी नही खुला था अभी.. !" नीरू ने डरते डरते आँखें खोल कर बाथरूम के अंदर झाँका..
"पागल.. तुझे पता है ना ये थोड़ा ज़ोर लगाने से खुलता है.. चल जा.. कपड़े बदल ले.. मैं तेरे साथ ही नीचे चलूंगी..." मम्मी ने उसको धाँढस बाँधते हुए कहा...
"नही.. मैं नीचे ही बदल लूँगी... चलो!" अपने कपड़े उठती हुई नीरू मम्मी जी के साथ साथ नीचे चल दी...
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"मम्मी!" नीरू ने खाना खाते हुए कहा...
"हां बेटी!"
"मेरा नाम पहले नीरू था ना?"
"क्यूँ बेवजह उठाती है पुरानी बातों को.. तुझे मना किया है ना किसी को भी वो नाम बताने से!" मम्मी जी थोड़ी नर्वस हो गयी...
"मम्मी!" नीरू ने खाना खाते हुए कहा...
"हां बेटी!"
"मेरा नाम पहले नीरू था ना?"
"क्यूँ बेवजह उठती है पुरानी बातों को.. तुझे मना किया है ना किसी को भी वो नाम बताने से!" मम्मी जी थोड़ी नर्वस हो गयी...
"मैं किसी को नही बताती मम्मी.. पर फिर भी.. बताइए ना! आप सब को क्यूँ 'उस' नाम से इतनी एलेयर्जी है?" नीरू के मंन में रह रह कर कागज पर लिखी पंक्तियाँ कौंध रही थी..
"कह दिया ना! कोई बात नही है.. हमें 'वो' नाम पसंद नही है बस.. तेरा नाम शीनू ही है.. और कुच्छ नही.. अब बिना सिर पैर की बातें छ्चोड़ और खाना खाकर पढ़ाई कर ले.." मम्मी जी ने कहा और उठकर बाहर चली गयी.. पर इस'से नीरू का कौतूहल शांत नही हुआ, उल्टा नाम के पिछे छिपि सच्चाई जान'ने की उसकी जिगयसा बढ़ गयी..
ऋतु के आने के बाद दोनो पढ़ने के लिए उपर चली गयी....
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रात करीब 12 बजे! नीरू को लाइट बंद करके अपनी किताबें बिस्तेर के साथ लगी टेबल पर रख कर लेटी हुए मुश्किल से आधा घंटा ही हुआ था.. अचानक कमरे में फैले हुए से प्रकाश से उसकी आँखें खुल गयी.. खिड़की के सामने कमरे में एक साया उभर आया था और रोशनी उसके पिछे से उत्सर्जित होती प्रतीत हो रही थी.. इसी कारण वह 'साए' के हवा में लहराते कपड़ों के अलावा कुच्छ भी देख पाने में समर्थ नही थी...नीरू डर के मारे इतनी सहम गयी कि उसकी चीख भी ना निकल सकी..बिस्तेर पर बैठकर नीरू पिछे दीवार से चिपक गयी. वह कुच्छ समझ पाती, इस'से पहले ही 'साए' ने बोलना शुरू कर दिया..
"घबराओ मत नीरू! तुम्हे किसी तरह की तकलीफ़ नही होगी.. ना ही मेरा मकसद तुम्हे डराना है. तुम्हे लग रहा होगा कि तुम जाग रही हो.. पर ऐसा नही है! दर-असल मैं तुम्हारे सपने में हूँ.. हां! तुम सपना ही देख रही हो.. अब मेरी बातें ध्यान से सुन'ना.. मेरा मकसद सिर्फ़ तुम्हे तुम्हारे अतीत से अवगत कराना है.. ऐसा अतीत, जिसको सुनकर तुम्हारी आँखें भर आएँगी... तुम चाहो तो मुझसे सवाल भी कर सकती हो.. ठीक है ना?"
"आ..आ.. हां!" नीरू के माथे पर पसीना छलक आया... उसके पास 'हाँ' बोलने के अलावा कोई चारा भी नही था...
"एक लड़की थी, प्रिया दर्शिनी.. और एक लड़का था देव! दोनो एक दूसरे से बे-इंतहा मोहब्बत करते थे.. मोहब्बत भी इतनी कि मर कर भी उनकी रूहें एक दूसरे के लिए तड़पति रही.. जन्मो-जनम! प्रिया का प्यार आज भी अपने देव का इंतजार कर रहा है.. और देव को अपनी प्रिया की तलाश में दर दर भटकना पड़ रहा है.. देव की तलाश आख़िरकार पूरी हुई. उसको पता चल चुका है कि उसकी 'प्रिया' इस जनम में कौन है.. पर प्रिया का दिल इस जनम में उसकी रूह के साथ ना होने की वजह से वो अपने प्यार को पहचान नही पा रही... तुम सुन रही हो ना?"
"आ..हां!" बड़ी मुश्किल से नीरू के गले से आवाज़ निकल पाई...
"तुम्हे पता है वो दोनो कौन हैं?" साए ने शालीनता से फिर पूचछा...
"हहाँ.. नही!" नीरू एकदम सिमट'ती हुई बोली...
"जान'ना नही चाहोगी?"
"नही.. एम्म.. हन!" नीरू की धड़कने धीरे धीरे संतुलित होती जा रही थी और उसके दिमाग़ ने काम करना आरंभ कर दिया था...
"तो सुनो! इस जनम में उस लड़के का नाम है रोहन! और लड़की का नाम है नीरू; यानी की तुम!" कहकर साया नीरू के जवाब की प्रतीक्षा करने लगा...
नीरू के मुँह से कोई प्रतिक्रिया नही निकली.. साथ रखी टेबल पर उसका हाथ 'कुच्छ' ढूँढने लगा...
"तुम सुन रही हो ना?" साए की आवाज़ कमरे में गूँज उठी....
नीरू ने आव देखा ना ताव.. पेपर वेट हाथ में आते ही उसने ज़ोर से उसको साए की तरफ दे मारा.... निशाना एकदम सटीक था.. पर....
साया नीरू के हाथ की हरकत देख संभलते हुए एक तरफ को झुक गया.. और आवाज़ उसके पिछे से आई,"ओये तेरी मा... मार डाला रे!"
टॉर्च उसके हाथ से छ्छूट कर फर्श पर जा गिरी और वह अपना सिर दोनो हाथों में दबाकर वहीं बैठ गया..
साया तेज़ी से पिछे घूमकर अपना सिर पकड़े बैठे आदमी पर झुका और ज़बरदस्ती उसको उठाने की कोशिश करने लगा,"जल्दी भाग यार.. वरना फँस गये समझो!"
"अबे तुझे भागने की पड़ी है, यहाँ सिर फूट गया मेरा.. रुक एक मिनिट.. बीच में परदा नही होता तो गया था मैं तो काम से.." उठने की कोशिश करता हुआ वह बोला...
नीरू को आवाज़ जानी पहचानी सी महसूस हुई... उसने हिम्मत दिखाते हुए झट से उठकर लाइट ऑन कर दी..
"तूमम्म्मम???????" नीरू ने अपनी आवाज़ को दबाने का भरसक प्रयास किया..
रोहन और रवि दोनो उसके सामने मुजरिमों की तरह सिर झुका कर हाथ बाँधे खड़े थे.. हैरान परेशान नीरू की समझ में ही नही आया कि क्या बोले और क्या नही.. वह अजीब सी नज़रों से बिस्तेर के पास खड़ी उन्हे घूरती रही..
आख़िरकार वो मिनिट भर का मौन रोहन ने ही तोड़ा,"तेरा ही प्लान था ना ये.. अब भुगत!" नज़रें चुराते हुए उसने नीरू को पल भर के लिए देखा और फिर नज़रें झुका ली... नीरू भव्शुन्य सी खड़ी अब भी उन्हे घूर रही थी...
पेपर वेट हालाँकि सीधा रवि के सिर में नही लगा था.. फिर भी पेपर वेट के आधे साइज़ का गोला उसके सिर पर उभर आया था.. उसको सहलाते हुए वो रोहन पर बरस पड़ा," साले.. ऐसे करते हैं क्या भूतों की आक्टिंग? तू तो ऐसे बोल रहा था जैसे रामलीला के डाइलॉग पढ़ पढ़ कर बोल रहा हो.. 2 घंटे की रेहेअर्स्सल की ऐसी की तैसी करवा दी.. फिर प्लान में क्या कमी थी.. तूने ही तो बोला था कि अगर मैं नीरू के सपने में आ सकूँ तो बात बन सकती है...."
"चल छ्चोड़.. अब खिसक ले यहाँ से...!" रोहन ने नीरू की और देखते हुए धीरे से कहा और रवि को खिड़की की तरफ घुमा दिया....
जैसे ही रवि ने खिड़की से बाहर पैर रखा; नीरू लगभग चिल्लाते हुए बोली,"आए!"
और रवि ने अपना बाहर निकाला हुआ पैर वापस खींच लिया," सॉरी भ.. भा.. नीरू जी! आइन्दा ऐसी ग़लती नही होगी.. मैं कान पकड़ता हूँ..."
"मरना है क्या? जीने से उतर कर जाओ!" नीरू लगभग गुर्राते हुए बोली....
"ज्जई.. पर..!" रवि नीरू की ओर क्रितग्य नज़रों से देखने लगा...
"आज के बाद घर में इस तरह कदम रखे तो बचकर नही जाने दूँगी.. शोर मचा दूँगी मैं.. चलो अब.. मेरे पिछे पिछे आओ! आवाज़ मत करना!" नीरू ने कहा और कमरे से बाहर निकल गयी...
दरवाजे से बाहर निकलते हुए रोहन ने मूड कर नीरू की और देखा.. मन में एक कसक सी उठी.. जैसे वापस अंदर चला जाए.. नीरू को उसकी और अपनी कहानी सुनाने के लिए.. उसको हमेशा के लिए अपना बनाने के लिए.. पर नीरू की आँखों में झलक रहा हूल्का सा गुस्सा उसको अहसास करा रहा था कि नीरू ने सिर्फ़ उनको बख्शा है.. माफ़ नही किया...
नीरू ने बिना आवाज़ किए दरवाजे की कुण्डी लगाई और वापस उपर आ कर अपना पेट पकड़ कर बुरी तरह हँसने लगी.. और हँसती रही.. जाने कितनी ही देर!
कहानी जारी है .................................
गतांक से आगे ...............................
अधूरा प्यार--14
"क्या हुआ? बात हुई क्या उस'से?" अमन जैसे घर पर रोहन और रवि का ही इंतजार कर रहा था," बात बनी कि नही?"
रोहन ने आकर बिस्तेर पर पसरते हुए अपना सिर 'ना' में हिला दिया," गेट तक आई थी.. वापस भाग गयी.. एक और लड़की थी उसके साथ!" रोहन ने सीधा लटेकर अपने चेहरे को तकिये से ढक लिया...
"मैने तो बोला था इसको.. सीधी बात करनी चाहिए थी.. जनाब तो गेट के पास खड़ा होने से भी डर रहे थे.. ऐसे बात थोड़े ही बन'ती है यार..." रवि हताश होता हुआ बोला...
अमन रवि की और देखकर मुस्कुराया,"बन जाएगी यार.. पर सब्र तो करना पड़ेगा ना.. ये काम इतनी जल्दी नही होने वाला है.. एक मिनिट! मैं गौरी से बात करता हूँ!" कहकर अमन ने फोन निकाल लिया....
"हेलो!"
"हाँ अमन, बोलो!"
"क्या रहा? क्या बात हुई शीनू से?" अमन ने सीधे बात पर ही आते हुए पूचछा....
"वो... मैं आजकल कॉलेज नही जा रही.. मैने शिल्पा को बोला था बात करने के लिए.. सब समझा भी दिया था उसको! उसका नंबर. देती हूँ.. तुम उसी से बात कर लो.." गौरी ने जवाब दिया...
"हूंम्म.. लाओ! दो नंबर." अमन ने कहते हुए नंबर. नोट करने के लिए रोहन का फोन उठा लिया...
गौरी ने अमन को शिल्पा का नंबर. लिखवा दिया," एक मिनिट अमन! क्या इस सबके लिए शेखर नही फोन नही कर सकता उसको?"
"हां हाँ! मुझे क्या प्राब्लम है..? शेखर कर लेगा! कोई खास वजह है क्या?" अमन ने पूचछा....
"नही.. बस ऐसे ही.. वो.. वो उस'से बात भी करना चाहती है..." गौरी ने टालते टालते भी बात कह ही दी...
"ठीक है! मैं अभी उसको बोल देता हूँ... वो बात कर लेगा!" अमन मुस्कुराया और फोन काट दिया..
"एक मिनिट! मैं शेखर को उठाकर लाता हूँ... शिल्पा ने बात की हैं नीरू के साथ.. वोही बताएगी क्या पोज़िशन है?" अमन ने कहा और बाहर निकल गया...
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"क्या बात है बे? तू तो सेट्टिंग कर भी आया और मुझे बताया तक नही!" अमन ने दूसरे कमरे में घुसते ही सो रहे शेखर को पकड़ कर ज़ोर से हिला दिया.. शेखर हड़बड़कर उठ बैठा," क्या? ... क्या हुआ?"
"ले.. ये ले तेरी शिल्पा का नंबर., उसको तुझसे बात करनी हैं.. और हां.. ये पूच्छना मत भूलना की नीरू का क्या रेपोंस रहा.." अमन ने शेखर का फोन उठा शिल्पा का नंबर. डाइयल किया और फोन शेखर को पकड़ा दिया..
शेखर ने फोन काटा और अमन को घूर्ने लगा....
"जा रहा हूँ साले.. करले फोन अकेले अकेले.." अमन हंसा और बाहर निकल गया...
शिल्पा के बारे में सोचते ही शेखर की धड़कने बढ़ गयी.. 'आख़िर क्या बात करनी हैं उसको' सोचते हुए शेखर ने दरवाजा अंदर से बंद किया और रिडाइयल करके फोन कान से लगा लिया..
"हेलो!" शिल्पा की मीठी सी आवाज़ फोन पर उभरी..
"हाई शिल्ल्लपा! मैं, ... शेखर!" शेखर ने आवाज़ से शिल्पा का परिचय करवाया..
"ओह्ह.. हाई! .... आपके पास मेरा नंबर. कहाँ से आया..?" शिल्पा की ज़ुबान लड़खड़ा गयी...
"मुझे तो यही बताया गया है कि आपको मुझसे कुच्छ बातें करनी हैं.. इसीलिए मैं तो समझा की आपने ही दिया होगा!" शेखर ने आराम से बिस्तेर पर पसरते हुए कहा...
"नही तो.. मैने तो कोई... मतलब.. मुझे तो..." शिल्पा ने कयि तरह से अपनी बात पूरी करने की कोशिश की.. पर कर नही पाई.. कॅंटीन में लगे शीशे के सामने खड़ी हो अपने आपको यूँ निहारने लगी मानो शेखर उसको देखने ही आ रहा हो...
"सॉरी देन! होप आइ डिड्न'ट डिस्टर्ब यू.. आइन्दा ऐसी ग़लती नही करूँगा..." शेखर ने उसकी ना-नुकर पर रूठ जाने का नाटक सा किया....
"नही.. नही.. मेरा मतलब था.. हां.. मुझे.. मुझे करनी थी बात.. वो..." शिल्पा के मुँह से अनायास ही निकल गया...
"थॅंक्स!... वो क्या?" शेखर मन ही मन मुस्कुराता हुआ बोला...
"वो... कब जा रहे हो यहाँ से?" शिल्पा को और कुच्छ सूझा ही नही....
"कहो तो... आज ही निकल जाउ?" शेखर ने अपने होंतों पर जीभ फेरते हुए आँखें बंद कर शिल्पा का सलोना चेहरा याद किया...
"नही.. नही.. मेरा मतलब है कि...." शिल्पा फिर रुक गयी...
"हूंम्म.. बोलो भी अब.. बोल भी दो यार!" शेखर के दिमाग़ पर मस्ती सवार हो गयी...
"क्कक्या?" शिल्पा हड़बड़ी के साथ बोली...
"और कुच्छ नही तो 'आइ लव यू!' ही बोल दो..." शेखर कहकर हँसने लगा..
"क्कैसे.. मतलब..." शिल्पा की हालत फोन पर ही खराब हो गयी...
"मतलब में ही उलझी रहोगी या कुच्छ काम की बात भी करोगी.." शेखर ने फिर उसको छेड़ा...
"क्क्या बात... करनी हैं.. मेरी समझ में नही आ रहा.." शिल्पा की साँसे उखाड़ने लगी थी.. उसकी समझ में ही नही आ रहा था की क्या बोले और क्या नही...
"वही.. वो नीरू ने क्या जवाब दिया.. रोहन के बारे में..." शेखर के इस सवाल को सुनते ही शिल्पा का ध्यान खुद पर से हटकर नीरू पर चला गया... और इसी के साथ वा सामान्य भी हो गयी.....
"ओह्ह! शी ईज़ इंपॉसिबल शेखर. मैने उसको समझाने के क्या क्या नही किया! पर उस'से इस बारे में बात करना ही बेकार है... पहली बात तो वो मानती ही नही की 'प्यार-प्रेम' जैसा कुच्छ वास्तव में होता भी है.. दूसरे रोहन के बारे में वो समझती है कि 'वो' बस में मिलने के बाद से ही उसके पीछे पड़ा है.. 'सपने' वाली बात उसको 'ड्रम्मा' से ज़्यादा कुच्छ नही लगी..."
"कुच्छ उम्मीद है अभी...तुम्हारी तरफ से..?" शेखर ने भी संजीदा होकर पूचछा..
"मुझे नही लगता उस पर कोई फ़र्क़ पड़ेगा.. पर तुम कहो तो मैं एक बार और कोशिश करूँ!" शिल्पा ने शेखर की बात को तवज्जो देते हुए कहा...
"नही.. अभी रहने दो.. अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं बता दूँगा... बाइ दा वे, थॅंक्स फॉर नाउ!"
"ये.. कैसी बात कर रहे हो.." शिल्पा ने बात पूरी भी नही की थी कि फोन कट गया.. फोन शेखर ने जानबूझ कर काटा था.. उसको विस्वास था कि अगर 'कुच्छ' होगा तो फोन वापस ज़रूर आएगा.. और उसका विस्वास सही निकला...
"फोन क्यूँ काट दिया था" शिल्पा हताश सी होकर बोली...
"मुझे लगा बात हो गयी है.. सॉरी!" शेखर ने कहा...
"नही.. हां.. मेरा मतलब था कि.... " शिल्पा फिर अटकने लगी...
"क्या बात है.. बोलो भी..?"
"हम.... वो... एक बार मिल सकते हैं क्या?" शिल्पा ने हड़बड़ाहट में जल्दी से कहा और जवाब को दिल की गहराई तक उतारने के लिए अपनी आँखें बंद कर ली...
"हां.. क्यूँ नही? पर कहाँ...?" शेखर का दिल मचल उठा....
"कहीं भी.. जहाँ तुम कहो!" शिल्पा की खुशी का कोई ठिकाना नही था...
"ओके! मैं बाद में फोन करता हूँ.. और कुच्छ?" शेखर ने कहकर फोन को चूम लिया.. इस चुंबन की आहत शिल्पा को अपने कानो में सुनाई पड़ी...
"आइ लव यू!" शिल्पा ने झट से कहा और जवाब सुन'ने से पहले ही फोन काट दिया....
"मम्मी! कोई लड़की आई थी क्या?" नीरू ने घर के अंदर घुसते ही दरवाजा बंद करते हुए पूचछा...
"नही तो! किसी को आना था क्या शीनू?" दरवाजा खोलकर वापस अंदर जा रही मम्मी जी पलट गयी...
"नही.. पर कॉलेज में कोई मुझे पूच्छ रही थी.. इसीलिए.." नीरू ने आनमने ढंग से जवाब दिया और उपर चढ़ने लगी...
"अरे.. खाना तो खा ले बेटी.. सुबह भी ऐसे ही निकल गयी थी तू!" मम्मी जी ने नीचे से आवाज़ लगाई....
"आ रही हूँ मम्मी! ज़रा कपड़े बदल लूँ..." नीरू ने जवाब दिया और उपर कमरे में घुस गयी..
अंदर घुसते ही उसकी निगाह टेबल पर पेपर वेट के नीचे फड्फाडा रहे कागज पर जाकर जम गयी.. उत्सुकता से उसने कागज निकाला और यूँही पढ़ने लगी.. पर जैसे जैसे वह पहली लाइन से दूसरी और दूसरी से तीसरी लाइन पर पहुँची.. उसके हाथ पैर जमने लगे और वह उसमें लिखे शब्दों के जाल में उलझती चली गयी...
"नाम बदल लेने से तकदीर नही बदल जाती नीरू! और खास तौर से तब; जब तकदीर की 'वो' गाढ़ी रेखायें शदियो पुराने इश्क़ का गला घोंट कर एक दूसरे के लिए प्यासी दो आत्माओ के एक हो चुके लहू में डुबोकर सातवें आसमान से भी उपर लिखी गयी हों."
नीरू अचंभित सी उस कागज के टुकड़े को निहारती रही, फिर दनदनाती हुई नीचे की और भागी..
"मम्मी! कौन गया था उपर? कौन आया था घर में?" नीरू का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था...
"बता तो रही हूँ, कोई नही आया.. मैं तो सुबह से ही यहाँ हूँ.. क्या हो गया?" मम्मी ने बेफिक्री वाले अंदाज में बैठे बैठे ही कहा...
बिना कुच्छ बोले नीरू बाहर निकली और दूसरी गली पर लगे गेट की कुण्डी देखी.. पर वहाँ तो ताला लगा हुआ था...
'उनकी इतनी हिम्मत हो गयी कि दीवार फांदकर चोरों की तरह घर में घुसने लगे' बड़बड़ाती हुई नीरू ने कागज के टुकड़े टुकड़े किए और डस्टबिन में फैंक वापस उपर चली गयी...
"सीसी...क्क्क...कौन.. है?" नीरू जड़ सी होकर कमरे से अटॅच्ड बाथरूम के दरवाजे के सामने खड़ी हो डर के मारे सूखे पत्ते की तरह काँपने लगी.. दोबारा उसकी हिम्मत दरवाजे को छ्छूने तक की नही हुई...
"मुंम्म्मममय्ययययययययययययी" अचानक नीरू की इश्स चीख से पूरा का पूरा घर दहल गया...
नीरू की आवाज़ सुनकर मम्मी जी बदहवास सी दौड़ी दौड़ी उपर आई.. देखा; नीरू दरवाजे के सामने ही खड़ी खड़ी काँप रही थी...," क्या हुआ शीनू? क्या हुआ बेटी?" किसी अनहोनी की आशंका से घबराकर उपर दौड़ी आई मम्मीजी को जब नीरू सही सलामत खड़ी नज़र आई तो उसको थोड़ी राहत मिली.. उसके पास आते ही उन्होने नीरू को बाहों में लेकर अपने साथ चिपका लिया...
"ववो.. बाथरूम में कोई है?" मम्मी जी से चिपकी नीरू ने आँखें तक नही खोली...
"चुप कर.. डरपोक कहीं की.. कौन होगा?" कहते हुए मम्मी जी ने ज़ोर से दरवाजे को अंदर धकेला तो वो खुल गया.. अंदर कोई नही था..," देख.. कोई भी तो नही है...!"
"पर कोई था मम्मी.. यहाँ ज़रूर कोई आया था.. दरवाजा भी नही खुला था अभी.. !" नीरू ने डरते डरते आँखें खोल कर बाथरूम के अंदर झाँका..
"पागल.. तुझे पता है ना ये थोड़ा ज़ोर लगाने से खुलता है.. चल जा.. कपड़े बदल ले.. मैं तेरे साथ ही नीचे चलूंगी..." मम्मी ने उसको धाँढस बाँधते हुए कहा...
"नही.. मैं नीचे ही बदल लूँगी... चलो!" अपने कपड़े उठती हुई नीरू मम्मी जी के साथ साथ नीचे चल दी...
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"मम्मी!" नीरू ने खाना खाते हुए कहा...
"हां बेटी!"
"मेरा नाम पहले नीरू था ना?"
"क्यूँ बेवजह उठाती है पुरानी बातों को.. तुझे मना किया है ना किसी को भी वो नाम बताने से!" मम्मी जी थोड़ी नर्वस हो गयी...
"मम्मी!" नीरू ने खाना खाते हुए कहा...
"हां बेटी!"
"मेरा नाम पहले नीरू था ना?"
"क्यूँ बेवजह उठती है पुरानी बातों को.. तुझे मना किया है ना किसी को भी वो नाम बताने से!" मम्मी जी थोड़ी नर्वस हो गयी...
"मैं किसी को नही बताती मम्मी.. पर फिर भी.. बताइए ना! आप सब को क्यूँ 'उस' नाम से इतनी एलेयर्जी है?" नीरू के मंन में रह रह कर कागज पर लिखी पंक्तियाँ कौंध रही थी..
"कह दिया ना! कोई बात नही है.. हमें 'वो' नाम पसंद नही है बस.. तेरा नाम शीनू ही है.. और कुच्छ नही.. अब बिना सिर पैर की बातें छ्चोड़ और खाना खाकर पढ़ाई कर ले.." मम्मी जी ने कहा और उठकर बाहर चली गयी.. पर इस'से नीरू का कौतूहल शांत नही हुआ, उल्टा नाम के पिछे छिपि सच्चाई जान'ने की उसकी जिगयसा बढ़ गयी..
ऋतु के आने के बाद दोनो पढ़ने के लिए उपर चली गयी....
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रात करीब 12 बजे! नीरू को लाइट बंद करके अपनी किताबें बिस्तेर के साथ लगी टेबल पर रख कर लेटी हुए मुश्किल से आधा घंटा ही हुआ था.. अचानक कमरे में फैले हुए से प्रकाश से उसकी आँखें खुल गयी.. खिड़की के सामने कमरे में एक साया उभर आया था और रोशनी उसके पिछे से उत्सर्जित होती प्रतीत हो रही थी.. इसी कारण वह 'साए' के हवा में लहराते कपड़ों के अलावा कुच्छ भी देख पाने में समर्थ नही थी...नीरू डर के मारे इतनी सहम गयी कि उसकी चीख भी ना निकल सकी..बिस्तेर पर बैठकर नीरू पिछे दीवार से चिपक गयी. वह कुच्छ समझ पाती, इस'से पहले ही 'साए' ने बोलना शुरू कर दिया..
"घबराओ मत नीरू! तुम्हे किसी तरह की तकलीफ़ नही होगी.. ना ही मेरा मकसद तुम्हे डराना है. तुम्हे लग रहा होगा कि तुम जाग रही हो.. पर ऐसा नही है! दर-असल मैं तुम्हारे सपने में हूँ.. हां! तुम सपना ही देख रही हो.. अब मेरी बातें ध्यान से सुन'ना.. मेरा मकसद सिर्फ़ तुम्हे तुम्हारे अतीत से अवगत कराना है.. ऐसा अतीत, जिसको सुनकर तुम्हारी आँखें भर आएँगी... तुम चाहो तो मुझसे सवाल भी कर सकती हो.. ठीक है ना?"
"आ..आ.. हां!" नीरू के माथे पर पसीना छलक आया... उसके पास 'हाँ' बोलने के अलावा कोई चारा भी नही था...
"एक लड़की थी, प्रिया दर्शिनी.. और एक लड़का था देव! दोनो एक दूसरे से बे-इंतहा मोहब्बत करते थे.. मोहब्बत भी इतनी कि मर कर भी उनकी रूहें एक दूसरे के लिए तड़पति रही.. जन्मो-जनम! प्रिया का प्यार आज भी अपने देव का इंतजार कर रहा है.. और देव को अपनी प्रिया की तलाश में दर दर भटकना पड़ रहा है.. देव की तलाश आख़िरकार पूरी हुई. उसको पता चल चुका है कि उसकी 'प्रिया' इस जनम में कौन है.. पर प्रिया का दिल इस जनम में उसकी रूह के साथ ना होने की वजह से वो अपने प्यार को पहचान नही पा रही... तुम सुन रही हो ना?"
"आ..हां!" बड़ी मुश्किल से नीरू के गले से आवाज़ निकल पाई...
"तुम्हे पता है वो दोनो कौन हैं?" साए ने शालीनता से फिर पूचछा...
"हहाँ.. नही!" नीरू एकदम सिमट'ती हुई बोली...
"जान'ना नही चाहोगी?"
"नही.. एम्म.. हन!" नीरू की धड़कने धीरे धीरे संतुलित होती जा रही थी और उसके दिमाग़ ने काम करना आरंभ कर दिया था...
"तो सुनो! इस जनम में उस लड़के का नाम है रोहन! और लड़की का नाम है नीरू; यानी की तुम!" कहकर साया नीरू के जवाब की प्रतीक्षा करने लगा...
नीरू के मुँह से कोई प्रतिक्रिया नही निकली.. साथ रखी टेबल पर उसका हाथ 'कुच्छ' ढूँढने लगा...
"तुम सुन रही हो ना?" साए की आवाज़ कमरे में गूँज उठी....
नीरू ने आव देखा ना ताव.. पेपर वेट हाथ में आते ही उसने ज़ोर से उसको साए की तरफ दे मारा.... निशाना एकदम सटीक था.. पर....
साया नीरू के हाथ की हरकत देख संभलते हुए एक तरफ को झुक गया.. और आवाज़ उसके पिछे से आई,"ओये तेरी मा... मार डाला रे!"
टॉर्च उसके हाथ से छ्छूट कर फर्श पर जा गिरी और वह अपना सिर दोनो हाथों में दबाकर वहीं बैठ गया..
साया तेज़ी से पिछे घूमकर अपना सिर पकड़े बैठे आदमी पर झुका और ज़बरदस्ती उसको उठाने की कोशिश करने लगा,"जल्दी भाग यार.. वरना फँस गये समझो!"
"अबे तुझे भागने की पड़ी है, यहाँ सिर फूट गया मेरा.. रुक एक मिनिट.. बीच में परदा नही होता तो गया था मैं तो काम से.." उठने की कोशिश करता हुआ वह बोला...
नीरू को आवाज़ जानी पहचानी सी महसूस हुई... उसने हिम्मत दिखाते हुए झट से उठकर लाइट ऑन कर दी..
"तूमम्म्मम???????" नीरू ने अपनी आवाज़ को दबाने का भरसक प्रयास किया..
रोहन और रवि दोनो उसके सामने मुजरिमों की तरह सिर झुका कर हाथ बाँधे खड़े थे.. हैरान परेशान नीरू की समझ में ही नही आया कि क्या बोले और क्या नही.. वह अजीब सी नज़रों से बिस्तेर के पास खड़ी उन्हे घूरती रही..
आख़िरकार वो मिनिट भर का मौन रोहन ने ही तोड़ा,"तेरा ही प्लान था ना ये.. अब भुगत!" नज़रें चुराते हुए उसने नीरू को पल भर के लिए देखा और फिर नज़रें झुका ली... नीरू भव्शुन्य सी खड़ी अब भी उन्हे घूर रही थी...
पेपर वेट हालाँकि सीधा रवि के सिर में नही लगा था.. फिर भी पेपर वेट के आधे साइज़ का गोला उसके सिर पर उभर आया था.. उसको सहलाते हुए वो रोहन पर बरस पड़ा," साले.. ऐसे करते हैं क्या भूतों की आक्टिंग? तू तो ऐसे बोल रहा था जैसे रामलीला के डाइलॉग पढ़ पढ़ कर बोल रहा हो.. 2 घंटे की रेहेअर्स्सल की ऐसी की तैसी करवा दी.. फिर प्लान में क्या कमी थी.. तूने ही तो बोला था कि अगर मैं नीरू के सपने में आ सकूँ तो बात बन सकती है...."
"चल छ्चोड़.. अब खिसक ले यहाँ से...!" रोहन ने नीरू की और देखते हुए धीरे से कहा और रवि को खिड़की की तरफ घुमा दिया....
जैसे ही रवि ने खिड़की से बाहर पैर रखा; नीरू लगभग चिल्लाते हुए बोली,"आए!"
और रवि ने अपना बाहर निकाला हुआ पैर वापस खींच लिया," सॉरी भ.. भा.. नीरू जी! आइन्दा ऐसी ग़लती नही होगी.. मैं कान पकड़ता हूँ..."
"मरना है क्या? जीने से उतर कर जाओ!" नीरू लगभग गुर्राते हुए बोली....
"ज्जई.. पर..!" रवि नीरू की ओर क्रितग्य नज़रों से देखने लगा...
"आज के बाद घर में इस तरह कदम रखे तो बचकर नही जाने दूँगी.. शोर मचा दूँगी मैं.. चलो अब.. मेरे पिछे पिछे आओ! आवाज़ मत करना!" नीरू ने कहा और कमरे से बाहर निकल गयी...
दरवाजे से बाहर निकलते हुए रोहन ने मूड कर नीरू की और देखा.. मन में एक कसक सी उठी.. जैसे वापस अंदर चला जाए.. नीरू को उसकी और अपनी कहानी सुनाने के लिए.. उसको हमेशा के लिए अपना बनाने के लिए.. पर नीरू की आँखों में झलक रहा हूल्का सा गुस्सा उसको अहसास करा रहा था कि नीरू ने सिर्फ़ उनको बख्शा है.. माफ़ नही किया...
नीरू ने बिना आवाज़ किए दरवाजे की कुण्डी लगाई और वापस उपर आ कर अपना पेट पकड़ कर बुरी तरह हँसने लगी.. और हँसती रही.. जाने कितनी ही देर!
कहानी जारी है .................................
Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी
अधूरा प्यार--15 एक होरर लव स्टोरी
गतांक से आगे ...............................
"हा हा हा हा हा....हा हा हा हा हा... फिर? हा हा हा हा हा" सुबह अमन और शेखर कभी रवि के सिर पर उभरे गोले और कभी उसकी चेहरे पर उभरे शिकायती अंदाज को देख देख लोटपोट हो रहे थे...
"फिर क्या? वो तो अच्च्छा हुआ उसको हम पर रहम आ गया.. अगर चिल्ला देती तो वहाँ हमारा क्या होता.. खुद ही सोच लो... मरवा दिया था साले ने!" रवि ने रोहन को घूरते हुए कहा..
"ये लो.. खुद का प्लान.. ज़बरदस्ती ले गया.. और अब मुझे कोस रहा है.. मैने कहा था क्या? ये सब करने को..." बोलते बोलते रोहन की भी हँसी छ्छूट गयी...
"प्लान में क्या कमी थी बोल? यहाँ आधे घंटे तक तेरे साथ थूक रगड़ाई की.. तू सही बोलने भी लग गया था.. वहाँ जाकर तेरी क्या ऐसी तैसी हो गई? आधे घंटे की बात को तूने 2 मिनिट में बोल दिया.. मैं क्या करता...?" रवि ने शेखर और अमन से अपने लिए समर्थन माँगा...
"पता नही यार.. उसके सामने जाते ही सब कुच्छ भूल गया.. क्या का क्या निकलने लगा मुँह से.. मेरी खुद समझ में नही आ रहा था..." रोहन ने अपनी ग़लती खुद ही स्वीकार कर ली...
"होता है... होता है बॉस! प्यार में ऐसा ही होता है.." अमन बीच में ही बोल पड़ा," पर ये बात तो सॉफ है कि नीरू को तुम्हारी हरकत पर ज़्यादा गुस्सा नही आया... इसका मतलब.. चान्स तो हैं!" कहते हुए अमन ने आइयिने में खुद को एक नज़र देख रहे शेखर को टोका,"तू कहाँ की तैयारी में है भाई?"
"मुझे किसी से मिलने जाना है.." शेखर के चेहरे पर खुशी और उत्साह सॉफ झलक रहा था...
"कौनसी 'किस' से मिलने जा रहा है बे? तू तो कुच्छ बताता ही नही है.. हमसे भी किसी की बात कर लिया कर यार..." अमन ने उसके चेहरे के भावों को ताड़ते हुए उसको छेड़ा....
"बात बन गयी तो ज़रूर बताउन्गा... शाम को लौटकर.. हे हे!" शेखर मुस्कुराया और बाहर निकल गया....
"वाह भाई वाह! सब सेट होते जा रहे हैं भाई रवि! कहो तो सलमा को बुला लूँ आज.. आख़िर हम भी इंसान हैं..." अमन रवि को देखते हुए बोला...
रवि अचानक संजीदा हो गया.. कुच्छ देर सोचता रहा; फिर बोला," नही यार! खाली सेक्स से ज़्यादा मज़ा तो ऐसे पत्थर खाने में ही आ जाता है" रवि ने अपने गोले की ओर इशारा किया," मैं इसकी जगह होता तो भाभी जी को ज़बरदस्ती उठा कर टीले पर ले जाता.. उसके बाद तो उसको याद आ ही जाएगा ना...!"
"डॉन'ट वरी! मेरे दिमाग़ में एक और प्लान है..." अमन ने कुच्छ सोचते हुए कहा...
"पर अब की बार मैं साथ नही जाउन्गा.. पहले बोल देता हूँ.. !" रवि ने सिर पर बने गोले को सहलाया...
"ठीक है.. अब की बार तू घर पर आराम करना.. मैं जाउन्गा रोहन के साथ!" अमन हँसने लगा...,"आख़िर मुझे भी तो भाभी जी को देखना है.."
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"तूने उनको ऐसे ही निकल जाने दिया? पकड़वाया क्यूँ नही..? उनकी तो धुनाई होनी चाहिए थी.. ऐसे कैसे घुस गये घर में..? अजीब आदमी हैं!" कॉलेज के बाद नीरू के घर बैठी ऋतु ने उसकी आपबीती सुन'ने के बाद प्रतिक्रिया दी...
"पता नही यार.. मैने भी पहले ऐसा ही सोचा था.. फिर जाने क्यूँ उनकी दया सी आ गयी.. शरीफ ही लगते हैं बेचारे.. वरना कमरे में घुसने के बाद तो वो मेरा मुँह भी दबा सकते थे.. मैं क्या कर लेती? मेरे लाइट जलते ही उनके चेहरे ऐसे सफेद हो गये थे कि अगर और कोई होता तो उन्हे चोर समझ लेता..." नीरू हँसने लगी....
"ये बात तो है शीनू...पर हैं दोनो अजीब! भला ये भी कोई तरीका है लड़की पटाने का... शराफ़त से दिन में सीधे आकर बात करनी चाहिए थी.. 'सपने' में आने की नौटंकी क्यूँ की?" ऋतु ने बात आगे बढ़ाई...
"हूंम्म.. ये आइडिया अब तू उनको दे दे.. सीधे आकर बात करनी चाहिए थी!" नीरू ने मुँह बनाकर ऋतु की नकल की.. जैसे मैं उनका इंतजार ही कर रही हूँ यहाँ...!"
"अरे किसी ना किसी से तो शादी करनी ही है तुझे.. फिर उसमें क्या कमी है? स्मार्ट है.. शरीफ है... मुझे कहता तो मैं तो झट से तैयार हो जाती.. पर भगवान देता ही उसको है, जिसको उसकी ज़रूरत ना हो.. तू सारी उमर ऐसे ही बैठी रहेगी क्या?..... इस घर में?" ऋतु ने अपने मन की बात कह दी...
"हां! बैठी रहूंगी ऐसे ही.. मुझे तो शादी के नाम से ही नफ़रत है..!" नीरू ने जवाब दिया....
"पर क्यूँ यार? तू ऐसी क्यूँ है?" ऋतु ने ज़ोर देकर कहा....
"पता नही ऋतु.. पर मैं पक्का शादी नही करूँगी.. मुझे पता है... अब इस टॉपिक को बंद कर और किताब खोल ले.. आइन्दा अगर उन्होने कोई हरकत की तो मैं उन्हे छ्चोड़ूँगी नही...!" नीरू ने कहते हुए अपनी किताब निकाल ली....
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"हाई शिल्पा!" शेखर ने कॉलेज से थोड़ी दूर हटकर खड़ी उसका इंतजार कर रही शिल्पा के पास गाड़ी रोकते हुए कहा...
शिल्पा नज़रें तक ना उठा सकी.. हाथ में पकड़ी कॉपी को यूँही सीने से चिपकाए खड़ी रही,"हाई"
शेखर ने दूसरी तरफ झुक कर खिड़की खोल दी..," आओ, बैठो ना!"
शिल्पा ने नज़रें उठाकर दायें बायें देखा और फिर नज़रें झुका गाड़ी के आगे से निकल कर झट से गाड़ी में बैठ गयी.. शेखर ने गाड़ी घुमाई और शहर से बाहर निकल कर सरपट दौड़ने लगी...
"कहाँ जा रहे हो?" शिल्पा ने अपने चेहरे पर लटक आई बालों की लट को पिछे करते हुए नज़रें हल्की सी शेखर की ओर उठाते हुए पूचछा...
"कहाँ चलना चाहिए?" शेखर ने गाड़ी की रफ़्तार धीमी की और मुस्कुरकर उसकी और देखते हुए पूछा.. शिल्पा सहमी हुई सी बैठी थी...
"मुझे क्या पता? कहीं भी चलो!" शिल्पा उचक कर थोडा संभाल कर बैठ गयी...
"पर बुलाया तो तुम्ही ने था.. अब और किसको पता होगा?" शेखर शरारत से मुस्कुराने लगा...
"मतलब तुम आना नही चाहते थे! है ना?" शिल्पा ने शंकित निगाहों से शेखर की आँखों में झाँका...
"ये किसने कहा?" शेखर हँसने लगा...
"ऐसे क्यूँ हंस रहे हो? मैने बुलाकर कोई ग़लती कर दी क्या?" शिल्पा का चेहरा उतर गया...
"तुम तो अब भी वैसी ही हो.. बात बात पर चिड जाती हो.. मैं तो सोचा करता था कि तुम बड़ी होकर समझदार हो गयी होगी.. हा हा हा..."
शिल्पा के चेहरे पर अनायास ही शेखर की बात सुनकर चमक आ गयी," क्या तुम सच में मेरे बारे में सोचा करते थे...?"
"और नही तो क्या?" शेखर ने कहा और अचानक चुप हो गया...
शिल्पा के बदन में 'रज़ाई' वाली बात याद करते ही झुरजुरी सी दौड़ गयी.. अपनी बाँह से अपने सीने को छिपाती हुई सी वह बोली...,"क्या सोचा करते थे?"
शेखर से रोड से गाड़ी नीचे उतार कर एक टीले पर ले जाकर खड़ी कर दी.. और शिल्पा को अजीब सी निगाहों से घूर्ने लगा.. शिल्पा को उसकी नज़रें अपने कमसिन बदन में गडती हुई सी महसूस हो रही थी... उसने अपना चेहरा घुमा लिया और बाहर की और देखने लगी," बोलो ना.. क्या सोचा करते थे..?"
"यही कि मैं तुम्हे भूल क्यूँ नही पता..." शेखर ने थोड़ा रुक कर फिर बोलना शुरू किया..," ये भी कि तू भी मुझे याद करती होगी या नही... करती थी क्या?"
शिल्पा ने अचानक चेहरा घूमकर अपनी नज़रें उसकी नज़रों से मिला दी.. शेखर का उसको 'तू' कहकर बोलना उसे बहुत प्यारा और 'अपना' सा लगा.. वह यूँही उसकी आँखों में देखती रही.. पर कुच्छ बोली नही...
"तुम सच में.... बड़ी हो गयी हो शिल्पा.." शेखर उसकी आँखों में आँखें डाले हुए ही बोला...
शिल्पा की नज़रें शर्म के मारे झुक गयी और गोरे गालों पर हया की लाली नज़र आने लगी," ऐसा क्यूँ कह रहे हो?"
"और नही तो क्या? बड़ी नही हो गयी होती तो मुझसे प्यार होने के बावजूद इतने दिन बाद यूँ मिलने पर अब तक चुप ना बैठी रहती.. मुझसे लिपट गयी होती अब तक.." शेखर ने अपना हाथ बढ़ा उसके गालों को छू लिया.. उसका छूना ही था कि शिल्पा उसकी बाहों में ढेर हो गयी.. बाहें शेखर के गले में डाल उस'से चिपकती हुई सिसकने लगी," तुम नही जानते शेखर.. एक एक पल में तुम्हे कितनी बार याद किया है मैने.. कितनी तदपि हूँ मैं.. तुम्हारे लिए.. अब तो मैने उम्मीद ही छ्चोड़ दी थी.. तुम्हारे लौट कर मेरी जिंदगी में आने की..."
शिल्पा का सारा बदन प्यासा होकर अकड़ गया.. मधुर मिलन की आस में.. उसकी चूचियाँ ठोस होकर शेखर के सीने में चुभने सी लगी..,"अब वापस नही जाओगे ना!" शिल्पा के मुँह से 'आह' सी निकली...
"ज़ाउन्गा!" शेखर मुस्कुराने लगा," पर तुम्हे साथ लेकर..."
शिल्पा चौंक कर पिछे हटी और विस्मय से उसकी आँखों में देखने लगी.. फिर एक ज़ोर का घूँसा उसकी छाती में जड़ा और वापस चिपक गयी.. दुगने जोश के साथ!
"मैने मम्मी पापा से बात कर ली है.. वो शाम को तुम्हारे घर पर फोन करेंगे.. नंबर. दे देना अपना!" शेखर अब भी मुस्कुरा रहा था...
शिल्पा इस असीम खुशी को दिल में दबाकर ना रख सकी.. उसकी आँखों से झार झार आँसू बहने लगे.. भाववेश में उसने शेखर के गालों पर अपने तपते होन्ट रख दिए," आइ लव यू, शेखर!"
रात को कमरे में बैठकर पढ़ रही नीरू को रह रह कर कुच्छ अजीब सा लग रहा था.. जाने ऐसा क्यूँ था? पर वह बार बार सामने वाली खिड़की की और देख रही थी.. पर्दे की हल्की सी हुलचल भी उसका ध्यान अपनी और खींच लेती.. कल रात रोहन और रवि इसी खिड़की से अंदर आए थे.. अचानक कुच्छ याद करके नीरू उठी और खिड़की के पास गयी.. परदा हटाकर उसने देखा.. खिड़की आज बंद थी.. उसने चितकनी खोली और बाहर झाँकने लगी.. खिड़की के साथ साथ एक पाइप उपर पानी की टंकी तक जा रहा था.. वो ज़रूर इसी के सहारे उपर चढ़े होंगे...
अचानक नीरू को हँसी आ गयी.. वह मूडी और हंसते हुए ही बिस्तेर पर जाकर पसर गयी," ईडियट्स!" नीरू के मुँह से निकला.. लाइट जलती ही छ्चोड़ उसने किताबें टेबल पर रखी और कंबल में घुस गयी... कल रात के ख़यालों में खोए खोए ही उसको कब नींद आ गयी.. पता ही नही चला..
"क्कऔन है?" अचानक कमरे में हुई आहट से उसकी नींद खुल गयी और चौंकते हुए उसने अपनी आँखें खोल दी... आज उसके मन में डर कम और गुस्सा ज़्यादा था.. वह सीधी पर्दे की और देखती हुई बोली," कौन है वहाँ? मैं शोर मचा दूँगी..!"
पर उधर से कोई जवाब नही मिला..
पर्दे की हुलचल नीरू को सामान्य नही लग रही थी.. उसने झट से एक बार फिर पेपर वेट अपने हाथों में थम लिया," लगता है, आज फिर तुम्हारा सिर फूटेगा.... चुपचाप वापस जाओ!" नीरू ने मारने के लिए अपना हाथ उपर उठाया और कुच्छ सोचकर वापस नीचे कर लिया,"तुम्हारी प्राब्लम क्या है? अंदर आ जाओ!"
कोई जवाब ना मिलने पर नीरू चुपके से उठी.. और सावधानी से खिड़की की और बढ़ने लगी.. पर्दे के पास जाकर वह कुच्छ देर खड़ी रही और अचानक परदा एक तरफ सरका दिया.. वहाँ कोई नही था..
"हे भगवान!" नीरू ने खिड़की से बाहर झाँका.. पर पूरी सड़क सुनसान थी.. अपने माथे पर हाथ रखकर नीरू ने लंबी साँस ली और खिड़की अंदर से बंद कर दी.. पर वापस मुड़ते ही उसकी साँस, उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी..
बिस्तेर पर, जहाँ से वो अभी उठकर आई थी; पेपर वेट के नीचे दबा एक कागज का टुकड़ा फड्फाडा रहा था.. अचंभे और दह्सत से नीरू सिहर उठी.. "ये कैसे हो सकता है?" नीरू अपने आप में ही बड़बड़ाई और कमरे में चारों तरफ किसी की मौजूदगी को महसूस करने की कोशिश करने लगी..
पर कुच्छ होता तो मिलता! भारी और थके हुए कदमों से नीरू बिस्तेर की ओर बढ़ी और कागज का टुकड़ा पेपरवेट के नीचे से निकाल कर पढ़ने लगी...
" प्यार अमर होता है नीरू, वो कभी नही मरता! तुम्हे सोच भी नही सकती कि तुम दोनो एक दूसरे से कितना प्यार करते थे.. आज खुद रोहन को भी अहसास नही है कि तुम उसके लिए क्या थी.. और वो तुम्हारे लिए क्या था.. मुझे पता है कि तुम्हे कुच्छ याद नही है.. पर नियती तुम दोनो को फिर से मिलाना चाहती है.. इस बात को नज़रअंदाज मत करो! अपने अतीत को जान'ने की कोशिश करो! जान'ने की कोशिश करो की तुम्हारे घर वाले तुम्हारा नाम नीरू से बदल कर शीनू करने पर मजबूर क्यूँ हो गये... रोहन से मिलो! उसके दिल में तुम्हारे लिए उसके ज़ज्बात और असीम प्यार को महसूस करने की कोशिश करो!"
नीरू का दिमाग़ चकरा गया.. उसने डर के बावजूद कमरे का कोना कोना छान मारा.. पर कुच्छ नही मिला.. मुश्किल से एक मिनिट के अंदर ये सब हो गया.. कोई अंदर आया और लेटर रख गया.. हुल्की सी भी आहट किए बिना.. कौन ऐसा कर सकता है..?
अचानक बाथरूम में शुरू हुई पानी की 'टॅप - टाप' ने तो उसकी जान ही निकाल कर रखी दी... ज़ोर से चीखते हुए वह बाद-हवास सी होकर बाहर निकली और नीचे की और भागी...
चीक्ख सुनकर पहले ही मम्मी पापा बाहर निकल कर आ चुके थे," क्या हुआ बेटी?" दोनो ने लगभग एक साथ पूचछा...
नीरू नीचे जाते ही मम्मी से लिपट गयी.. उसका शरीर थर थर काँप रहा था..," उपर...! उपर कोई है मम्मी!" नीरू की उपर देखने की हिम्मत तक नही हो रही थी...
नीरू की बात सुनते ही पापा उपर की और भागे.. कमरे में जाकर उन्होने एक एक चीज़ का जयजा लिया.. बिस्तेर पर रखे उस कागज के टुकड़े के अलावा उनको वहाँ कुच्छ भी नही मिला... अच्छि तरह देख भाल कर नीचे आए पापा ने नीरू से पूचछा," ये क्या है शीनू? "
"पता नही.. मैं बस एक मिनिट के लिए बिस्तेर से उठी थी.. वापस आई तो वहाँ 'ये' रखा हुआ मिला.. पता नही किसने रख दिया..." कहकर नीरू रोने लगी...
"रो क्यूँ रही है बेटी? कोई परेशान कर रहा है क्या?" मम्मी ने नीरू को पापा से अलग ले जाते हुए पूचछा...
सवाल सुनते ही नीरू के जहाँ में रोहन और रवि की तस्वीर उभर गयी.. फिर कुच्छ देर रुक कर बोली," नही मम्मी! ऐसा तो कुच्छ नही है..!"
"कहीं ऐसा तो नही किसी ने तेरी किसी किताब में ये डाल दिया हो.. और खोलते हुए बिस्तेर पर गिर गया हो...."पापा ने पास आते हुए पूचछा....
"नही पापा! बिस्तेर पर ये पेपर वेट के नीचे दबा हुआ था.. किसी ने अभी रखा है.. थोड़ी देर पहले..." नीरू ने पापा की और देखते हुए कहा...
पापा का चेहरा लटक गया और माथे पर चिंता और गुस्से की लकीरें उभर आई.. अचानक कुच्छ सोच कर उसने फोन निकाला और मानव का नंबर. डाइयल किया..
"नमस्ते अंकल जी! इतनी रात को कैसे याद किया...?" मानव किसी गस्त से वापस आ रहा था...
"कोई शीनू को परेशान कर रहा है बेटा.. टाइम मिले तो आ जाना एक बार.. यहीं बैठकर बात कर लेंगे...
"क्यूँ नही अंकल जी? प्राब्लम ज़्यादा सीरीयस हो तो अभी आ जाता हूँ.." मानव ने विनम्रता से कहा...
"नही... ऐसी कोई बात नही है.. तुम कल आ जाना.. मैं तो सुबह जल्दी ही निकल जाउन्गा.. तुम्हारी आंटिजी से बात कर लेना.. समय रहते ही समस्या का कुच्छ इलाज हो जाए तो बेहतर होता है..." पापा ने फोन पर कहा...
"नो प्राब्लम अंकल जी.. मैं कल जल्द से जल्द आने की कोशिश करूँगा...!"
"ठीक है बेटा.. अब रखता हूँ.." कहकर पापा ने फोन रख दिया....
तीनो नीचे ही लेट गये थे.. नीरू मम्मी के पास थी.. उसकी आँखों में नींद का नामोनिशान तक नही था... वह इसी उधेड़-बुन में थी कि कल मानव के सामने रोहन और रवि का जिकर करे या ना करे..
सोचते सोचते उसका दिमाग़ लेटर में लिखी उस बात पर चला गया " अपने अतीत को जान'ने की कोशिश करो! जान'ने की कोशिश करो कि तुम्हारे घर वाले तुम्हारा नाम नीरू से बदल कर शीनू करने पर मजबूर क्यूँ हो गये..."
"मम्मी! " नीरू उठकर बैठ गयी..
"हां बिट्टू! क्या बात है?" मम्मी ने प्यार से पूचछा..
"तुम मुझे बताते क्यूँ नही, मेरा नाम क्यूँ बदला..." नीरू असहज हो गयी थी...
"सो जा बेटी.. सुबह बात करेंगे!" मम्मी ने नीरू का हाथ खींचकर उसको ज़बरदस्ती लिटाने की कोशिश की...
नीरू चिड गयी,"मुझे नींद नही आ रही मम्मी.. आख़िर ऐसी क्या बात है जो आप बार बार टाल रहे हैं.. बताइए ना पापा!" नीरू ने उठकर बैठ गये पापा की तरफ देखा....
"शीनू अब बड़ी हो गयी है.. मेरे ख़याल से बताने में कोई हर्ज़ नही.." पापा ने मम्मी से राय ली...
"पर बाबा जी ने माना किया था!" मम्मी ने आशंकित नज़रों से पापा की और देखा...
कुच्छ देर चुपचाप सोचते रहने के बाद पापा अतीत की यादों में खोते चले गये....
"तू जब 5 साल की ही थी शीनू! एक दिन अचानक मुझे तुम्हारे प्रिन्सिपल ने फोन करके हॉस्पिटल पहुँचने को बोला... मेरी तो जान ही निकल गयी थी... बदहवास सा हॉस्पिटल पहुँचा तो जाकर पता लगा; तुम कोई नाम बार बार चिल्लाते हुए बेहोश हो गयी थी... नाम याद नही आ रहा.." पापा ने दिमाग़ पर ज़ोर देते हुए कहा और फिर आगे बताने लगा.....
"हॉस्पिटल से छुट्टी के बाद मैं तुम्हे सीधा घर ले आया... आँखें खोलने के बाद भी तुम सहमी सहमी सी लग रही थी.. पहले पहल हुमने इस बात को ज़्यादा तवज्जो नही दी.. पर तुम्हारा अजीब व्यवहार बढ़ता ही चला गया.. ना तुम ज़्यादा बात करती थी.. और ना ही उसके बाद बच्चों के साथ खेलना पसंद था तुम्हे.. गुम्सुम सी यूँही रहने लगी.. "
"इस बात को भी हम नज़रअंदाज कर देते.. पर जब तुमने सोते हुए चिल्लाना शुरू कर दिया तो हमे बड़ी चिंता होने लगी.. कयि अच्छे डॉक्टर्स को दिखाया.. पर कहीं बात नही बनी.. कुच्छ डॉक्टर्स ने बताया भी कि इस उमर तक बच्चों की स्मृति में पूर्वजनम की बातें संचित रहती हैं.. हो ना हो ये उसी का असर है..."
"रिश्तेदारों के बार बार कहने पर हम तुम्हे एक सिद्ध बाबा जी के पास ले गये.. मुझे तो यकीन था ही नही कि कुछ असर होगा.. पर उन्होने तो चमत्कार ही कर दिया.. एक यग्य करके उन्होने तुम्हारा नाम 'नीरू' से शीनू रखने को कहा... उन्होने बताया था कि तुम्हारे शरीर में घुसकर कोई आत्मा तुम्हारे पूर्वजनम की दुखदायी यादों को जगाने की कोशिश कर रही है... उन्होने ज़्यादा कुच्छ नही बताया.. सिर्फ़ इतना ही कहा था कि नाम बदल कर यहाँ से ले जाने पर वो आत्मा दिग्भ्रमित हो जाएगी.. और दोबारा परेशान नही करेगी... उन्होने ये भी हिदायत दी कि तुम्हे इस बारे में कभी कुच्छ ना बताया जाए.. तुम्हारे इस बारे में ज़्यादा सोचने से पूर्वजनम कि वो दर्दनाक यादें फिर से जीवंत हो सकती हैं..."
"उसके बाद हम तुम्हे घर लेकर आ गये.. मुझे ये सब मज़ाक जैसा लग रहा था.. पर तुम्हारे चेहरे पर लौटी मुस्कुराहट ने मेरी सोच बदल दी... फिर मैने हर रेकॉर्ड में तुम्हारा नाम बदलवा दिया... यही बात है जो हम तुम्हे बताकर बेवजह परेशान नही करना चाहते थे..." कहकर पापा चुप होकर नीरू की आँखों में देखने लगे....
नीरू हतप्रभ सी रोहन और उस रहस्मयी लेटर के बारे में सोचने लगी.....
नीरू ऋतु के साथ कॉलेज जाने के लिए निकली ही थी कि घर के सामने पोलीस ज़ीप आकर रुकी. गाड़ी को खुद मानव ही ड्राइव करके लाया था. अंदर बैठा हुआ ही मानव तब तक उसको अपलक देखता रहा जब तक वा उसकी नज़रों से औझल नही हो गयी.. पर नीरू ने अपनी नज़रें तक नही मिलाई और उसके पास से निकल गयी....
इस पूरी दुनिया में एक नीरू ही थी जो मानव को पसंद थी.. बेहद पसंद! नीरू के चेहरे की अनुपम सुंदरता और नज़ाकत, उसका संजीदा स्वाभाव और नज़रें हमेशा नीची करके चलना मानव को हमेशा चित्ताकर्षक लगता था.. पर ये भी नीरू का स्वाभाव ही था जिसने मानव को आज तक अपने दिल की बात उसके आगे जाहिर करने से रोक रखा था.. यही वजह थी कि वह सोचता था कि उसको 'प्यार' जताना ही नही आता.....
मानव की नज़रें मूड कर दूर तक जाती हुई नीरू का पिच्छा करती रही.. अचानक उसने एक लंबी साँस ली और गाड़ी से उतर कर घर की डोर बेल बजाई.... 6 फीट लंबे, गतीले शरीर पर 26 साल की उमर में ही पोलीस की वर्दी खूब जम रही थी.. और उस पर लगे तीन स्टार तो किसी भी लड़की का सपना हो सकते थे...
"आ गये बेटा! शीनू अभी अभी कॉलेज के लिए निकली है..." मम्मी जी ने दरवाजा खोलते हुए कहा....
"हाँ आंटी जी.. देखा था मैने उसको रास्ते में...!" मानव अंदर आकर बैठते हुए बोला... मम्मी जी किचन में चली गयी...
"अरे! उसको वापस क्यूँ नही ले आए.. उसी के बारे में तो बात करनी थी...!" मम्मी ने अफ़सोस सा जताया...," मैं उसकी सहेली के पास फोन करके उसको वापस बुलाती हूँ!" मम्मी ने बाहर आकर एक फोन किया और वापस अंदर चली गयी...
"मुझे तो उस'से बोलते हुए डर सा लगता है आंटी जी.. वो तो कभी देखती तक नही मेरी और... जाने कितनी ही बार आमना सामना हो जाता है हमारा.. पर अंजानों की तरह साइड से निकल जाती है..! अब बताओ भला मैं उसको कैसे टोकता, रास्ते में!" मानव कहकर हँसने लगा....
"अरे नही बेटा! तू तो जानता है.. उसका स्वाभाव ही ऐसा है.. मुझे तो डर लगा रहता है, पराए घर की अमानत है... शादी के बाद भी उसका व्यवहार नही बदला तो...!" मम्मी ने चाय बनाकर मानव को दी और उसके पास बैठ गयी....
"क्क..क्या उसकी शादी पक्की कर दी..?" बनावटी आस्चर्य और खुशी प्रकट करते हुए मानव बोला....
"अभी कहाँ? पर कोई ढंग का रिश्ता हो तो बताना.. इसके पापा उतावले हो रहे हैं इसकी शादी के लिए... तुम तो सब जानते ही हो!" मम्मी ने मुस्कुरकर कहा..
"ओह्ह.. ज़रूर!" मानव के कलेजे को ठंडक मिली," वो अंकल जी कुच्छ जिकर कर रहे थे... क्या माम'ला है....?"
मम्मी उठी और ड्रॉयर में रखा 'वो' कागज का टुकड़ा मानव को पकड़ा दिया.. मानव खोल कर पढ़ने लगा....
" प्यार अमर होता है नीरू, वो कभी नही मरता! तुम्हे सोच भी नही सकती कि तुम दोनो एक दूसरे से कितना प्यार करते थे.. आज खुद रोहन को भी अहसास नही है कि तुम उसके लिए क्या थी....." इतना पढ़कर हो मानव रुक गया...
"ये... रोहन कौन है? मैने सुना है कहीं...!" मानव ने दिमाग़ पर ज़ोर डाला.. पर 'रोहन' का नाम और उसके द्वारा लिया गया 'नीरू' नाम उसके जहाँ से उतर गया था...
"पता नही बेटा...! पर शीनू को भी पता होता तो वो ज़रूर बता देती.. उसको भी मालूम नही है कुच्छ.. कल रात को भागती हुई नीचे आई थी.. बहुत डरी हुई थी.. किसी ने उसके कमरे में ये लेटर डाल दिया... इसी से इतनी परेशान हो गयी बेचारी... फिर मामले के बढ़ने से पहले ही निपट लें तो बेहतर होता है.. लड़की की जात है.. बात बाहर निकल गयी तो लोग जाने कैसी कैसी बातें करने लगते हैं..." मम्मी ने दुख भरे लहजे में कहा....
"पर ये लेटर तो नीरू के नाम पर लिखा गया है.." कहते हुए मानव फिर से पहली लाइन से पढ़ना शुरू हो गया...
"यही बात तो हमारी समझ में नही आ रही बेटा.. दर-असल पहले शीनू का नाम 'यही' था.. पर बहुत छ्होटी थी तभी बदल दिया था ये नाम... जाने किस मुए को ये बात पता चल गयी... और अब इसको परेशान करने पर तुला है...."
"हां.. मैने भी सुना था एक बार.. शीनू का नाम पहले 'नीरू' होने के बारे में.."
मम्मी जी की बातें सुनते सुनते मानव लेटर पढ़ता जा रहा था.. अचानक एक जगह रुक कर उसकी आँखें सिकुड गयी... और कुच्छ सोचकर वह उच्छल पड़ा..,"ओह्ह माइ गोड!"
"क्या हुआ बेटा?" मम्मी ने आशंकित होकर पूचछा...
"एक मिनिट.." मानव बाहर गया और ज़ीप से सी.डी. केस डाइयरी निकाल कर लाया... वापस आकर उसने कुच्छ पेज पलते और कागज का एक टुकड़ा उसमें से निकाल कर दोनो को टेबल पर साथ साथ रख लिया....
"ये क्या है बेटा?" मम्मी को उसकी हरकत समझ में नही आई...
"कुच्छ नही.. आप निसचिंत रहें.. आपकी प्राब्लम तो सॉल्व हो ही गयी समझो.. अब मैं चलता हूँ..." कहकर मानव तेज़ी से खड़ा हो गया....
"ठीक है बेटा.. 'उनसे' अगर इस बारे में कुच्छ बात करनी हो तो फोन कर लेना.." मम्मी जी साथ खड़े होते हुए बोली....
"एक बात कहूँ आंटी जी.. अगर बुरा ना मानो तो!" मानव ने वापस पलट'ते हुए कहा...
"हां बोलो ना बेटा.. क्या बात है..?" मम्मी ने उसके चेहरे की और देखा...
"वैसे तो.... ये बात घर के बड़ों को ही करनी चाहिए... पर.... मुझे शीनू बहुत पसंद है... आप.. और पापा अगर..." कहकर मानव चुप हो गया.. आयेज उसको समझ ही नही आया की कैसे बात पूरी करे!
बात समझ में आते ही मम्मी जी का चेहरा खिल उठा," ये तो उसके लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी बेटा... मैं इसके पापा के आते ही बात करती हूँ.. वो तुम्हारे घर फोन कर देंगे.."
खुशी से फूली नही समा रही मम्मी जी ने अपने हाथ उठा मानव के सिर पर हाथ रख दिया... मानव का भी यही हाल था.. जाने कितने दीनो के बाद वह किसी से अपने दिल की बात कह पाया था...
जैसे ही मानव बाहर निकला, उसको सामने से नीरू वापस आती दिखाई दी.. उसने लाख कोशिश की उसको टोकने की.. पर उसके मुँह से 'हाई' तक ना निकल पाया.. नीरू सिर झुकाए हुए ही साइड में खड़ी होकर मानव के रास्ता छ्चोड़ने का इंतजार करने लगी..
मानव सिर खुजाता हुआ उसके सामने से हटकर गाड़ी में जा बैठा.. और नीरू उसको बिना देखे ही अंदर चली गयी....
क्रमशः
गतांक से आगे ...............................
"हा हा हा हा हा....हा हा हा हा हा... फिर? हा हा हा हा हा" सुबह अमन और शेखर कभी रवि के सिर पर उभरे गोले और कभी उसकी चेहरे पर उभरे शिकायती अंदाज को देख देख लोटपोट हो रहे थे...
"फिर क्या? वो तो अच्च्छा हुआ उसको हम पर रहम आ गया.. अगर चिल्ला देती तो वहाँ हमारा क्या होता.. खुद ही सोच लो... मरवा दिया था साले ने!" रवि ने रोहन को घूरते हुए कहा..
"ये लो.. खुद का प्लान.. ज़बरदस्ती ले गया.. और अब मुझे कोस रहा है.. मैने कहा था क्या? ये सब करने को..." बोलते बोलते रोहन की भी हँसी छ्छूट गयी...
"प्लान में क्या कमी थी बोल? यहाँ आधे घंटे तक तेरे साथ थूक रगड़ाई की.. तू सही बोलने भी लग गया था.. वहाँ जाकर तेरी क्या ऐसी तैसी हो गई? आधे घंटे की बात को तूने 2 मिनिट में बोल दिया.. मैं क्या करता...?" रवि ने शेखर और अमन से अपने लिए समर्थन माँगा...
"पता नही यार.. उसके सामने जाते ही सब कुच्छ भूल गया.. क्या का क्या निकलने लगा मुँह से.. मेरी खुद समझ में नही आ रहा था..." रोहन ने अपनी ग़लती खुद ही स्वीकार कर ली...
"होता है... होता है बॉस! प्यार में ऐसा ही होता है.." अमन बीच में ही बोल पड़ा," पर ये बात तो सॉफ है कि नीरू को तुम्हारी हरकत पर ज़्यादा गुस्सा नही आया... इसका मतलब.. चान्स तो हैं!" कहते हुए अमन ने आइयिने में खुद को एक नज़र देख रहे शेखर को टोका,"तू कहाँ की तैयारी में है भाई?"
"मुझे किसी से मिलने जाना है.." शेखर के चेहरे पर खुशी और उत्साह सॉफ झलक रहा था...
"कौनसी 'किस' से मिलने जा रहा है बे? तू तो कुच्छ बताता ही नही है.. हमसे भी किसी की बात कर लिया कर यार..." अमन ने उसके चेहरे के भावों को ताड़ते हुए उसको छेड़ा....
"बात बन गयी तो ज़रूर बताउन्गा... शाम को लौटकर.. हे हे!" शेखर मुस्कुराया और बाहर निकल गया....
"वाह भाई वाह! सब सेट होते जा रहे हैं भाई रवि! कहो तो सलमा को बुला लूँ आज.. आख़िर हम भी इंसान हैं..." अमन रवि को देखते हुए बोला...
रवि अचानक संजीदा हो गया.. कुच्छ देर सोचता रहा; फिर बोला," नही यार! खाली सेक्स से ज़्यादा मज़ा तो ऐसे पत्थर खाने में ही आ जाता है" रवि ने अपने गोले की ओर इशारा किया," मैं इसकी जगह होता तो भाभी जी को ज़बरदस्ती उठा कर टीले पर ले जाता.. उसके बाद तो उसको याद आ ही जाएगा ना...!"
"डॉन'ट वरी! मेरे दिमाग़ में एक और प्लान है..." अमन ने कुच्छ सोचते हुए कहा...
"पर अब की बार मैं साथ नही जाउन्गा.. पहले बोल देता हूँ.. !" रवि ने सिर पर बने गोले को सहलाया...
"ठीक है.. अब की बार तू घर पर आराम करना.. मैं जाउन्गा रोहन के साथ!" अमन हँसने लगा...,"आख़िर मुझे भी तो भाभी जी को देखना है.."
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"तूने उनको ऐसे ही निकल जाने दिया? पकड़वाया क्यूँ नही..? उनकी तो धुनाई होनी चाहिए थी.. ऐसे कैसे घुस गये घर में..? अजीब आदमी हैं!" कॉलेज के बाद नीरू के घर बैठी ऋतु ने उसकी आपबीती सुन'ने के बाद प्रतिक्रिया दी...
"पता नही यार.. मैने भी पहले ऐसा ही सोचा था.. फिर जाने क्यूँ उनकी दया सी आ गयी.. शरीफ ही लगते हैं बेचारे.. वरना कमरे में घुसने के बाद तो वो मेरा मुँह भी दबा सकते थे.. मैं क्या कर लेती? मेरे लाइट जलते ही उनके चेहरे ऐसे सफेद हो गये थे कि अगर और कोई होता तो उन्हे चोर समझ लेता..." नीरू हँसने लगी....
"ये बात तो है शीनू...पर हैं दोनो अजीब! भला ये भी कोई तरीका है लड़की पटाने का... शराफ़त से दिन में सीधे आकर बात करनी चाहिए थी.. 'सपने' में आने की नौटंकी क्यूँ की?" ऋतु ने बात आगे बढ़ाई...
"हूंम्म.. ये आइडिया अब तू उनको दे दे.. सीधे आकर बात करनी चाहिए थी!" नीरू ने मुँह बनाकर ऋतु की नकल की.. जैसे मैं उनका इंतजार ही कर रही हूँ यहाँ...!"
"अरे किसी ना किसी से तो शादी करनी ही है तुझे.. फिर उसमें क्या कमी है? स्मार्ट है.. शरीफ है... मुझे कहता तो मैं तो झट से तैयार हो जाती.. पर भगवान देता ही उसको है, जिसको उसकी ज़रूरत ना हो.. तू सारी उमर ऐसे ही बैठी रहेगी क्या?..... इस घर में?" ऋतु ने अपने मन की बात कह दी...
"हां! बैठी रहूंगी ऐसे ही.. मुझे तो शादी के नाम से ही नफ़रत है..!" नीरू ने जवाब दिया....
"पर क्यूँ यार? तू ऐसी क्यूँ है?" ऋतु ने ज़ोर देकर कहा....
"पता नही ऋतु.. पर मैं पक्का शादी नही करूँगी.. मुझे पता है... अब इस टॉपिक को बंद कर और किताब खोल ले.. आइन्दा अगर उन्होने कोई हरकत की तो मैं उन्हे छ्चोड़ूँगी नही...!" नीरू ने कहते हुए अपनी किताब निकाल ली....
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"हाई शिल्पा!" शेखर ने कॉलेज से थोड़ी दूर हटकर खड़ी उसका इंतजार कर रही शिल्पा के पास गाड़ी रोकते हुए कहा...
शिल्पा नज़रें तक ना उठा सकी.. हाथ में पकड़ी कॉपी को यूँही सीने से चिपकाए खड़ी रही,"हाई"
शेखर ने दूसरी तरफ झुक कर खिड़की खोल दी..," आओ, बैठो ना!"
शिल्पा ने नज़रें उठाकर दायें बायें देखा और फिर नज़रें झुका गाड़ी के आगे से निकल कर झट से गाड़ी में बैठ गयी.. शेखर ने गाड़ी घुमाई और शहर से बाहर निकल कर सरपट दौड़ने लगी...
"कहाँ जा रहे हो?" शिल्पा ने अपने चेहरे पर लटक आई बालों की लट को पिछे करते हुए नज़रें हल्की सी शेखर की ओर उठाते हुए पूचछा...
"कहाँ चलना चाहिए?" शेखर ने गाड़ी की रफ़्तार धीमी की और मुस्कुरकर उसकी और देखते हुए पूछा.. शिल्पा सहमी हुई सी बैठी थी...
"मुझे क्या पता? कहीं भी चलो!" शिल्पा उचक कर थोडा संभाल कर बैठ गयी...
"पर बुलाया तो तुम्ही ने था.. अब और किसको पता होगा?" शेखर शरारत से मुस्कुराने लगा...
"मतलब तुम आना नही चाहते थे! है ना?" शिल्पा ने शंकित निगाहों से शेखर की आँखों में झाँका...
"ये किसने कहा?" शेखर हँसने लगा...
"ऐसे क्यूँ हंस रहे हो? मैने बुलाकर कोई ग़लती कर दी क्या?" शिल्पा का चेहरा उतर गया...
"तुम तो अब भी वैसी ही हो.. बात बात पर चिड जाती हो.. मैं तो सोचा करता था कि तुम बड़ी होकर समझदार हो गयी होगी.. हा हा हा..."
शिल्पा के चेहरे पर अनायास ही शेखर की बात सुनकर चमक आ गयी," क्या तुम सच में मेरे बारे में सोचा करते थे...?"
"और नही तो क्या?" शेखर ने कहा और अचानक चुप हो गया...
शिल्पा के बदन में 'रज़ाई' वाली बात याद करते ही झुरजुरी सी दौड़ गयी.. अपनी बाँह से अपने सीने को छिपाती हुई सी वह बोली...,"क्या सोचा करते थे?"
शेखर से रोड से गाड़ी नीचे उतार कर एक टीले पर ले जाकर खड़ी कर दी.. और शिल्पा को अजीब सी निगाहों से घूर्ने लगा.. शिल्पा को उसकी नज़रें अपने कमसिन बदन में गडती हुई सी महसूस हो रही थी... उसने अपना चेहरा घुमा लिया और बाहर की और देखने लगी," बोलो ना.. क्या सोचा करते थे..?"
"यही कि मैं तुम्हे भूल क्यूँ नही पता..." शेखर ने थोड़ा रुक कर फिर बोलना शुरू किया..," ये भी कि तू भी मुझे याद करती होगी या नही... करती थी क्या?"
शिल्पा ने अचानक चेहरा घूमकर अपनी नज़रें उसकी नज़रों से मिला दी.. शेखर का उसको 'तू' कहकर बोलना उसे बहुत प्यारा और 'अपना' सा लगा.. वह यूँही उसकी आँखों में देखती रही.. पर कुच्छ बोली नही...
"तुम सच में.... बड़ी हो गयी हो शिल्पा.." शेखर उसकी आँखों में आँखें डाले हुए ही बोला...
शिल्पा की नज़रें शर्म के मारे झुक गयी और गोरे गालों पर हया की लाली नज़र आने लगी," ऐसा क्यूँ कह रहे हो?"
"और नही तो क्या? बड़ी नही हो गयी होती तो मुझसे प्यार होने के बावजूद इतने दिन बाद यूँ मिलने पर अब तक चुप ना बैठी रहती.. मुझसे लिपट गयी होती अब तक.." शेखर ने अपना हाथ बढ़ा उसके गालों को छू लिया.. उसका छूना ही था कि शिल्पा उसकी बाहों में ढेर हो गयी.. बाहें शेखर के गले में डाल उस'से चिपकती हुई सिसकने लगी," तुम नही जानते शेखर.. एक एक पल में तुम्हे कितनी बार याद किया है मैने.. कितनी तदपि हूँ मैं.. तुम्हारे लिए.. अब तो मैने उम्मीद ही छ्चोड़ दी थी.. तुम्हारे लौट कर मेरी जिंदगी में आने की..."
शिल्पा का सारा बदन प्यासा होकर अकड़ गया.. मधुर मिलन की आस में.. उसकी चूचियाँ ठोस होकर शेखर के सीने में चुभने सी लगी..,"अब वापस नही जाओगे ना!" शिल्पा के मुँह से 'आह' सी निकली...
"ज़ाउन्गा!" शेखर मुस्कुराने लगा," पर तुम्हे साथ लेकर..."
शिल्पा चौंक कर पिछे हटी और विस्मय से उसकी आँखों में देखने लगी.. फिर एक ज़ोर का घूँसा उसकी छाती में जड़ा और वापस चिपक गयी.. दुगने जोश के साथ!
"मैने मम्मी पापा से बात कर ली है.. वो शाम को तुम्हारे घर पर फोन करेंगे.. नंबर. दे देना अपना!" शेखर अब भी मुस्कुरा रहा था...
शिल्पा इस असीम खुशी को दिल में दबाकर ना रख सकी.. उसकी आँखों से झार झार आँसू बहने लगे.. भाववेश में उसने शेखर के गालों पर अपने तपते होन्ट रख दिए," आइ लव यू, शेखर!"
रात को कमरे में बैठकर पढ़ रही नीरू को रह रह कर कुच्छ अजीब सा लग रहा था.. जाने ऐसा क्यूँ था? पर वह बार बार सामने वाली खिड़की की और देख रही थी.. पर्दे की हल्की सी हुलचल भी उसका ध्यान अपनी और खींच लेती.. कल रात रोहन और रवि इसी खिड़की से अंदर आए थे.. अचानक कुच्छ याद करके नीरू उठी और खिड़की के पास गयी.. परदा हटाकर उसने देखा.. खिड़की आज बंद थी.. उसने चितकनी खोली और बाहर झाँकने लगी.. खिड़की के साथ साथ एक पाइप उपर पानी की टंकी तक जा रहा था.. वो ज़रूर इसी के सहारे उपर चढ़े होंगे...
अचानक नीरू को हँसी आ गयी.. वह मूडी और हंसते हुए ही बिस्तेर पर जाकर पसर गयी," ईडियट्स!" नीरू के मुँह से निकला.. लाइट जलती ही छ्चोड़ उसने किताबें टेबल पर रखी और कंबल में घुस गयी... कल रात के ख़यालों में खोए खोए ही उसको कब नींद आ गयी.. पता ही नही चला..
"क्कऔन है?" अचानक कमरे में हुई आहट से उसकी नींद खुल गयी और चौंकते हुए उसने अपनी आँखें खोल दी... आज उसके मन में डर कम और गुस्सा ज़्यादा था.. वह सीधी पर्दे की और देखती हुई बोली," कौन है वहाँ? मैं शोर मचा दूँगी..!"
पर उधर से कोई जवाब नही मिला..
पर्दे की हुलचल नीरू को सामान्य नही लग रही थी.. उसने झट से एक बार फिर पेपर वेट अपने हाथों में थम लिया," लगता है, आज फिर तुम्हारा सिर फूटेगा.... चुपचाप वापस जाओ!" नीरू ने मारने के लिए अपना हाथ उपर उठाया और कुच्छ सोचकर वापस नीचे कर लिया,"तुम्हारी प्राब्लम क्या है? अंदर आ जाओ!"
कोई जवाब ना मिलने पर नीरू चुपके से उठी.. और सावधानी से खिड़की की और बढ़ने लगी.. पर्दे के पास जाकर वह कुच्छ देर खड़ी रही और अचानक परदा एक तरफ सरका दिया.. वहाँ कोई नही था..
"हे भगवान!" नीरू ने खिड़की से बाहर झाँका.. पर पूरी सड़क सुनसान थी.. अपने माथे पर हाथ रखकर नीरू ने लंबी साँस ली और खिड़की अंदर से बंद कर दी.. पर वापस मुड़ते ही उसकी साँस, उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी..
बिस्तेर पर, जहाँ से वो अभी उठकर आई थी; पेपर वेट के नीचे दबा एक कागज का टुकड़ा फड्फाडा रहा था.. अचंभे और दह्सत से नीरू सिहर उठी.. "ये कैसे हो सकता है?" नीरू अपने आप में ही बड़बड़ाई और कमरे में चारों तरफ किसी की मौजूदगी को महसूस करने की कोशिश करने लगी..
पर कुच्छ होता तो मिलता! भारी और थके हुए कदमों से नीरू बिस्तेर की ओर बढ़ी और कागज का टुकड़ा पेपरवेट के नीचे से निकाल कर पढ़ने लगी...
" प्यार अमर होता है नीरू, वो कभी नही मरता! तुम्हे सोच भी नही सकती कि तुम दोनो एक दूसरे से कितना प्यार करते थे.. आज खुद रोहन को भी अहसास नही है कि तुम उसके लिए क्या थी.. और वो तुम्हारे लिए क्या था.. मुझे पता है कि तुम्हे कुच्छ याद नही है.. पर नियती तुम दोनो को फिर से मिलाना चाहती है.. इस बात को नज़रअंदाज मत करो! अपने अतीत को जान'ने की कोशिश करो! जान'ने की कोशिश करो की तुम्हारे घर वाले तुम्हारा नाम नीरू से बदल कर शीनू करने पर मजबूर क्यूँ हो गये... रोहन से मिलो! उसके दिल में तुम्हारे लिए उसके ज़ज्बात और असीम प्यार को महसूस करने की कोशिश करो!"
नीरू का दिमाग़ चकरा गया.. उसने डर के बावजूद कमरे का कोना कोना छान मारा.. पर कुच्छ नही मिला.. मुश्किल से एक मिनिट के अंदर ये सब हो गया.. कोई अंदर आया और लेटर रख गया.. हुल्की सी भी आहट किए बिना.. कौन ऐसा कर सकता है..?
अचानक बाथरूम में शुरू हुई पानी की 'टॅप - टाप' ने तो उसकी जान ही निकाल कर रखी दी... ज़ोर से चीखते हुए वह बाद-हवास सी होकर बाहर निकली और नीचे की और भागी...
चीक्ख सुनकर पहले ही मम्मी पापा बाहर निकल कर आ चुके थे," क्या हुआ बेटी?" दोनो ने लगभग एक साथ पूचछा...
नीरू नीचे जाते ही मम्मी से लिपट गयी.. उसका शरीर थर थर काँप रहा था..," उपर...! उपर कोई है मम्मी!" नीरू की उपर देखने की हिम्मत तक नही हो रही थी...
नीरू की बात सुनते ही पापा उपर की और भागे.. कमरे में जाकर उन्होने एक एक चीज़ का जयजा लिया.. बिस्तेर पर रखे उस कागज के टुकड़े के अलावा उनको वहाँ कुच्छ भी नही मिला... अच्छि तरह देख भाल कर नीचे आए पापा ने नीरू से पूचछा," ये क्या है शीनू? "
"पता नही.. मैं बस एक मिनिट के लिए बिस्तेर से उठी थी.. वापस आई तो वहाँ 'ये' रखा हुआ मिला.. पता नही किसने रख दिया..." कहकर नीरू रोने लगी...
"रो क्यूँ रही है बेटी? कोई परेशान कर रहा है क्या?" मम्मी ने नीरू को पापा से अलग ले जाते हुए पूचछा...
सवाल सुनते ही नीरू के जहाँ में रोहन और रवि की तस्वीर उभर गयी.. फिर कुच्छ देर रुक कर बोली," नही मम्मी! ऐसा तो कुच्छ नही है..!"
"कहीं ऐसा तो नही किसी ने तेरी किसी किताब में ये डाल दिया हो.. और खोलते हुए बिस्तेर पर गिर गया हो...."पापा ने पास आते हुए पूचछा....
"नही पापा! बिस्तेर पर ये पेपर वेट के नीचे दबा हुआ था.. किसी ने अभी रखा है.. थोड़ी देर पहले..." नीरू ने पापा की और देखते हुए कहा...
पापा का चेहरा लटक गया और माथे पर चिंता और गुस्से की लकीरें उभर आई.. अचानक कुच्छ सोच कर उसने फोन निकाला और मानव का नंबर. डाइयल किया..
"नमस्ते अंकल जी! इतनी रात को कैसे याद किया...?" मानव किसी गस्त से वापस आ रहा था...
"कोई शीनू को परेशान कर रहा है बेटा.. टाइम मिले तो आ जाना एक बार.. यहीं बैठकर बात कर लेंगे...
"क्यूँ नही अंकल जी? प्राब्लम ज़्यादा सीरीयस हो तो अभी आ जाता हूँ.." मानव ने विनम्रता से कहा...
"नही... ऐसी कोई बात नही है.. तुम कल आ जाना.. मैं तो सुबह जल्दी ही निकल जाउन्गा.. तुम्हारी आंटिजी से बात कर लेना.. समय रहते ही समस्या का कुच्छ इलाज हो जाए तो बेहतर होता है..." पापा ने फोन पर कहा...
"नो प्राब्लम अंकल जी.. मैं कल जल्द से जल्द आने की कोशिश करूँगा...!"
"ठीक है बेटा.. अब रखता हूँ.." कहकर पापा ने फोन रख दिया....
तीनो नीचे ही लेट गये थे.. नीरू मम्मी के पास थी.. उसकी आँखों में नींद का नामोनिशान तक नही था... वह इसी उधेड़-बुन में थी कि कल मानव के सामने रोहन और रवि का जिकर करे या ना करे..
सोचते सोचते उसका दिमाग़ लेटर में लिखी उस बात पर चला गया " अपने अतीत को जान'ने की कोशिश करो! जान'ने की कोशिश करो कि तुम्हारे घर वाले तुम्हारा नाम नीरू से बदल कर शीनू करने पर मजबूर क्यूँ हो गये..."
"मम्मी! " नीरू उठकर बैठ गयी..
"हां बिट्टू! क्या बात है?" मम्मी ने प्यार से पूचछा..
"तुम मुझे बताते क्यूँ नही, मेरा नाम क्यूँ बदला..." नीरू असहज हो गयी थी...
"सो जा बेटी.. सुबह बात करेंगे!" मम्मी ने नीरू का हाथ खींचकर उसको ज़बरदस्ती लिटाने की कोशिश की...
नीरू चिड गयी,"मुझे नींद नही आ रही मम्मी.. आख़िर ऐसी क्या बात है जो आप बार बार टाल रहे हैं.. बताइए ना पापा!" नीरू ने उठकर बैठ गये पापा की तरफ देखा....
"शीनू अब बड़ी हो गयी है.. मेरे ख़याल से बताने में कोई हर्ज़ नही.." पापा ने मम्मी से राय ली...
"पर बाबा जी ने माना किया था!" मम्मी ने आशंकित नज़रों से पापा की और देखा...
कुच्छ देर चुपचाप सोचते रहने के बाद पापा अतीत की यादों में खोते चले गये....
"तू जब 5 साल की ही थी शीनू! एक दिन अचानक मुझे तुम्हारे प्रिन्सिपल ने फोन करके हॉस्पिटल पहुँचने को बोला... मेरी तो जान ही निकल गयी थी... बदहवास सा हॉस्पिटल पहुँचा तो जाकर पता लगा; तुम कोई नाम बार बार चिल्लाते हुए बेहोश हो गयी थी... नाम याद नही आ रहा.." पापा ने दिमाग़ पर ज़ोर देते हुए कहा और फिर आगे बताने लगा.....
"हॉस्पिटल से छुट्टी के बाद मैं तुम्हे सीधा घर ले आया... आँखें खोलने के बाद भी तुम सहमी सहमी सी लग रही थी.. पहले पहल हुमने इस बात को ज़्यादा तवज्जो नही दी.. पर तुम्हारा अजीब व्यवहार बढ़ता ही चला गया.. ना तुम ज़्यादा बात करती थी.. और ना ही उसके बाद बच्चों के साथ खेलना पसंद था तुम्हे.. गुम्सुम सी यूँही रहने लगी.. "
"इस बात को भी हम नज़रअंदाज कर देते.. पर जब तुमने सोते हुए चिल्लाना शुरू कर दिया तो हमे बड़ी चिंता होने लगी.. कयि अच्छे डॉक्टर्स को दिखाया.. पर कहीं बात नही बनी.. कुच्छ डॉक्टर्स ने बताया भी कि इस उमर तक बच्चों की स्मृति में पूर्वजनम की बातें संचित रहती हैं.. हो ना हो ये उसी का असर है..."
"रिश्तेदारों के बार बार कहने पर हम तुम्हे एक सिद्ध बाबा जी के पास ले गये.. मुझे तो यकीन था ही नही कि कुछ असर होगा.. पर उन्होने तो चमत्कार ही कर दिया.. एक यग्य करके उन्होने तुम्हारा नाम 'नीरू' से शीनू रखने को कहा... उन्होने बताया था कि तुम्हारे शरीर में घुसकर कोई आत्मा तुम्हारे पूर्वजनम की दुखदायी यादों को जगाने की कोशिश कर रही है... उन्होने ज़्यादा कुच्छ नही बताया.. सिर्फ़ इतना ही कहा था कि नाम बदल कर यहाँ से ले जाने पर वो आत्मा दिग्भ्रमित हो जाएगी.. और दोबारा परेशान नही करेगी... उन्होने ये भी हिदायत दी कि तुम्हे इस बारे में कभी कुच्छ ना बताया जाए.. तुम्हारे इस बारे में ज़्यादा सोचने से पूर्वजनम कि वो दर्दनाक यादें फिर से जीवंत हो सकती हैं..."
"उसके बाद हम तुम्हे घर लेकर आ गये.. मुझे ये सब मज़ाक जैसा लग रहा था.. पर तुम्हारे चेहरे पर लौटी मुस्कुराहट ने मेरी सोच बदल दी... फिर मैने हर रेकॉर्ड में तुम्हारा नाम बदलवा दिया... यही बात है जो हम तुम्हे बताकर बेवजह परेशान नही करना चाहते थे..." कहकर पापा चुप होकर नीरू की आँखों में देखने लगे....
नीरू हतप्रभ सी रोहन और उस रहस्मयी लेटर के बारे में सोचने लगी.....
नीरू ऋतु के साथ कॉलेज जाने के लिए निकली ही थी कि घर के सामने पोलीस ज़ीप आकर रुकी. गाड़ी को खुद मानव ही ड्राइव करके लाया था. अंदर बैठा हुआ ही मानव तब तक उसको अपलक देखता रहा जब तक वा उसकी नज़रों से औझल नही हो गयी.. पर नीरू ने अपनी नज़रें तक नही मिलाई और उसके पास से निकल गयी....
इस पूरी दुनिया में एक नीरू ही थी जो मानव को पसंद थी.. बेहद पसंद! नीरू के चेहरे की अनुपम सुंदरता और नज़ाकत, उसका संजीदा स्वाभाव और नज़रें हमेशा नीची करके चलना मानव को हमेशा चित्ताकर्षक लगता था.. पर ये भी नीरू का स्वाभाव ही था जिसने मानव को आज तक अपने दिल की बात उसके आगे जाहिर करने से रोक रखा था.. यही वजह थी कि वह सोचता था कि उसको 'प्यार' जताना ही नही आता.....
मानव की नज़रें मूड कर दूर तक जाती हुई नीरू का पिच्छा करती रही.. अचानक उसने एक लंबी साँस ली और गाड़ी से उतर कर घर की डोर बेल बजाई.... 6 फीट लंबे, गतीले शरीर पर 26 साल की उमर में ही पोलीस की वर्दी खूब जम रही थी.. और उस पर लगे तीन स्टार तो किसी भी लड़की का सपना हो सकते थे...
"आ गये बेटा! शीनू अभी अभी कॉलेज के लिए निकली है..." मम्मी जी ने दरवाजा खोलते हुए कहा....
"हाँ आंटी जी.. देखा था मैने उसको रास्ते में...!" मानव अंदर आकर बैठते हुए बोला... मम्मी जी किचन में चली गयी...
"अरे! उसको वापस क्यूँ नही ले आए.. उसी के बारे में तो बात करनी थी...!" मम्मी ने अफ़सोस सा जताया...," मैं उसकी सहेली के पास फोन करके उसको वापस बुलाती हूँ!" मम्मी ने बाहर आकर एक फोन किया और वापस अंदर चली गयी...
"मुझे तो उस'से बोलते हुए डर सा लगता है आंटी जी.. वो तो कभी देखती तक नही मेरी और... जाने कितनी ही बार आमना सामना हो जाता है हमारा.. पर अंजानों की तरह साइड से निकल जाती है..! अब बताओ भला मैं उसको कैसे टोकता, रास्ते में!" मानव कहकर हँसने लगा....
"अरे नही बेटा! तू तो जानता है.. उसका स्वाभाव ही ऐसा है.. मुझे तो डर लगा रहता है, पराए घर की अमानत है... शादी के बाद भी उसका व्यवहार नही बदला तो...!" मम्मी ने चाय बनाकर मानव को दी और उसके पास बैठ गयी....
"क्क..क्या उसकी शादी पक्की कर दी..?" बनावटी आस्चर्य और खुशी प्रकट करते हुए मानव बोला....
"अभी कहाँ? पर कोई ढंग का रिश्ता हो तो बताना.. इसके पापा उतावले हो रहे हैं इसकी शादी के लिए... तुम तो सब जानते ही हो!" मम्मी ने मुस्कुरकर कहा..
"ओह्ह.. ज़रूर!" मानव के कलेजे को ठंडक मिली," वो अंकल जी कुच्छ जिकर कर रहे थे... क्या माम'ला है....?"
मम्मी उठी और ड्रॉयर में रखा 'वो' कागज का टुकड़ा मानव को पकड़ा दिया.. मानव खोल कर पढ़ने लगा....
" प्यार अमर होता है नीरू, वो कभी नही मरता! तुम्हे सोच भी नही सकती कि तुम दोनो एक दूसरे से कितना प्यार करते थे.. आज खुद रोहन को भी अहसास नही है कि तुम उसके लिए क्या थी....." इतना पढ़कर हो मानव रुक गया...
"ये... रोहन कौन है? मैने सुना है कहीं...!" मानव ने दिमाग़ पर ज़ोर डाला.. पर 'रोहन' का नाम और उसके द्वारा लिया गया 'नीरू' नाम उसके जहाँ से उतर गया था...
"पता नही बेटा...! पर शीनू को भी पता होता तो वो ज़रूर बता देती.. उसको भी मालूम नही है कुच्छ.. कल रात को भागती हुई नीचे आई थी.. बहुत डरी हुई थी.. किसी ने उसके कमरे में ये लेटर डाल दिया... इसी से इतनी परेशान हो गयी बेचारी... फिर मामले के बढ़ने से पहले ही निपट लें तो बेहतर होता है.. लड़की की जात है.. बात बाहर निकल गयी तो लोग जाने कैसी कैसी बातें करने लगते हैं..." मम्मी ने दुख भरे लहजे में कहा....
"पर ये लेटर तो नीरू के नाम पर लिखा गया है.." कहते हुए मानव फिर से पहली लाइन से पढ़ना शुरू हो गया...
"यही बात तो हमारी समझ में नही आ रही बेटा.. दर-असल पहले शीनू का नाम 'यही' था.. पर बहुत छ्होटी थी तभी बदल दिया था ये नाम... जाने किस मुए को ये बात पता चल गयी... और अब इसको परेशान करने पर तुला है...."
"हां.. मैने भी सुना था एक बार.. शीनू का नाम पहले 'नीरू' होने के बारे में.."
मम्मी जी की बातें सुनते सुनते मानव लेटर पढ़ता जा रहा था.. अचानक एक जगह रुक कर उसकी आँखें सिकुड गयी... और कुच्छ सोचकर वह उच्छल पड़ा..,"ओह्ह माइ गोड!"
"क्या हुआ बेटा?" मम्मी ने आशंकित होकर पूचछा...
"एक मिनिट.." मानव बाहर गया और ज़ीप से सी.डी. केस डाइयरी निकाल कर लाया... वापस आकर उसने कुच्छ पेज पलते और कागज का एक टुकड़ा उसमें से निकाल कर दोनो को टेबल पर साथ साथ रख लिया....
"ये क्या है बेटा?" मम्मी को उसकी हरकत समझ में नही आई...
"कुच्छ नही.. आप निसचिंत रहें.. आपकी प्राब्लम तो सॉल्व हो ही गयी समझो.. अब मैं चलता हूँ..." कहकर मानव तेज़ी से खड़ा हो गया....
"ठीक है बेटा.. 'उनसे' अगर इस बारे में कुच्छ बात करनी हो तो फोन कर लेना.." मम्मी जी साथ खड़े होते हुए बोली....
"एक बात कहूँ आंटी जी.. अगर बुरा ना मानो तो!" मानव ने वापस पलट'ते हुए कहा...
"हां बोलो ना बेटा.. क्या बात है..?" मम्मी ने उसके चेहरे की और देखा...
"वैसे तो.... ये बात घर के बड़ों को ही करनी चाहिए... पर.... मुझे शीनू बहुत पसंद है... आप.. और पापा अगर..." कहकर मानव चुप हो गया.. आयेज उसको समझ ही नही आया की कैसे बात पूरी करे!
बात समझ में आते ही मम्मी जी का चेहरा खिल उठा," ये तो उसके लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी बेटा... मैं इसके पापा के आते ही बात करती हूँ.. वो तुम्हारे घर फोन कर देंगे.."
खुशी से फूली नही समा रही मम्मी जी ने अपने हाथ उठा मानव के सिर पर हाथ रख दिया... मानव का भी यही हाल था.. जाने कितने दीनो के बाद वह किसी से अपने दिल की बात कह पाया था...
जैसे ही मानव बाहर निकला, उसको सामने से नीरू वापस आती दिखाई दी.. उसने लाख कोशिश की उसको टोकने की.. पर उसके मुँह से 'हाई' तक ना निकल पाया.. नीरू सिर झुकाए हुए ही साइड में खड़ी होकर मानव के रास्ता छ्चोड़ने का इंतजार करने लगी..
मानव सिर खुजाता हुआ उसके सामने से हटकर गाड़ी में जा बैठा.. और नीरू उसको बिना देखे ही अंदर चली गयी....
क्रमशः