सारिका कंवल की जवानी के किस्से

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The Romantic
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 07:46

मैं इतनी जोश में आ गई कि मुझे लगा कि मैं अब तब छूट जाऊँगी, मेरा पानी निकलने लगा। वो कभी जीभ घुमाता तो कभी जीभ घुसाने की कोशिश करता।
उसने अब मेरी योनि के दोनों तरफ की पंखुड़ियों को दांतों में दबा कर काटने लगा मैं कसमसाने लगी और उसके सर के बालों को नोचने लगी, पर उसे तो किसी चीज़ की परवाह नहीं थी।
मैंने उसे धक्का दिया और वो पीठ के बल बिस्तर पर गिर गया मैंने अपनी ब्रा को निकाल दी और उसके ऊपर अपने दोनों पैर फैला कर चढ़ गई।
मैं उसके ऊपर लेट गई और उसके सर के बालों को जोरों से पकड़ कर उसके चेहरे को चूमने लगी, फिर उसके होंठों को होंठों से लगा कर चूसने लगी।
इसी बीच मैं अपनी योनि को उसके लिंग के ऊपर दबाती और अंडरवियर के ऊपर से ही अपनी कमर को घुमा-घुमा कर योनि को लिंग के ऊपर रगड़ती जा रही थी।
उसने मेरे मांसल चूतड़ों को अपनी हथेलियों से पकड़ कर दबाने के साथ मुझे अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया, मैं उसके पूरे चेहरे, गले और सीने को प्यासी गाय की तरह चूमने और चूसने लगी।
मैंने उसकी घुंडियों को बारी-बारी से चूसना शुरु कर दिया और वो उत्तेजना में मुझे अपनी बाँहों में पूरी ताकत से भींचने लगा, ऐसे मानो जैसे मुझे निचोड़ कर रख देगा आज।
मैं कभी उसके घुंडियों को और होंठों को अपनी दांतों से काट लेती तो वो सिसकी भरते हुये ‘आह-आह’ करने लगता और अपनी कमर को ऊपर उठाता, साथ ही मुझे अपनी ओर ऐसे खींचता, जैसे अंडरवियर के अन्दर से ही मेरी योनि में लिंग घुसा देना चाहता हो।
अब उसने मुझे करवट लेकर अपनी बगल में लिटाया और होंठों से होंठ लगा कर चूमने लगा और एक हाथ से मेरे स्तनों को दबाने लगा।
उसके हाथ स्तनों पर पड़ते ही मैं कराहने लगी, वो बेरहमी से उन्हें मसलने लगा।
मैं ‘उफ्फ्फ उफ्फ्फ हाय हाय..’ करती रही।
उसने मेरे चूचुक को चुटकी में भर कर मसल दिया तो दूध की एक तेज़ धार निकली जो उसके सीने पे लगी।
इसके बाद वो अपना मुँह मेरे स्तनों में लगा मेरे चूचक को मुँह में भर चूसने लगा ऐसा लग रहा था जैसे मेरा दूध पी रहा हो।
मुझे ठण्ड लग रही थी सो मैंने एक हाथ से कम्बल को खींचा और दोनों को ढक लिया, पर अगले ही पल उसने उसे हटा मेरी कमर तक सरका दिया।
मैंने भी उसके सर को एक हाथ से सहारा दिया और दूसरे हाथ से उसके अंडरवियर में डाल उसके लिंग को हाथ से पकड़ लिया। वो मेरे स्तनों का दूध पीने में मग्न था और मैं उधर उसके लिंग से खेलने में।
उसका मोटे लिंग को पकड़ कर कभी मैं हिलाती, तो कभी सुपाड़े के ऊपर ऊँगलियां फिराती तो कभी उसके अंडकोष को दबाती। उसके अंडकोष को जब मैं दबाती तो वो दर्द से सहम सा जाता।
अब उसके लिंग के मूत्रद्वार से चिकना तथा लसलसा सा पानी भी बूंद-बूंद कर निकलने लगा था।
उसने अब आगे बढ़ने की सोची और मुझे चित लिटा दिया और पहले वाले स्तन को छोड़ दूसरे को पकड़ उसमें से दूध पीने लगा और पहले वाले को हाथ से मसलता जा रहा था।
उसने दोनों हाथों से मेरी दोनों स्तनों को पकड़ के स्तनपान करने लगा और और मैंने अपनी दोनों टांगों से उसके अंडरवियर को खोले की कोशिश शुरू कर दी उसके घुटनों तक सरका दिया।
वो पूरी मस्ती में मेरे स्तनों को बेरहमी से दबाने और चूसने लगा साथ ही उन्हें कभी-कभी काट लेता।
मुझे भी अब इतनी खुमारी चढ़ गई कि मैं बड़बड़ाने लगी- हाय क्या करते हो… आराम से चूसो जानू… तुम्हारे ही हैं… प्यार से प्लीज ह्ह्हम्म्म्म हम्म्म्म हम्म्म्म…!
उसने जी भर कर चूसने के बाद मेरे पेट को हर जगह चूमा फिर मेरी नाभि में जीभ डाल कर प्यार किया मेरी हालत और भी बुरी होती जा रही। पर मैंने शायद ठान ली थी जैसे कि आज पूरा मजा लूँगी, सो उसे वो हर चीज़ करने दिया जो उसका मन कर रहा था।
थोड़ी देर नाभि से खेलने के बाद वो अपनी जीभ को रगड़ते हुए मेरी योनि के ऊपर ले आया और मेरी योनि के बालों वाले हिस्से को चूमने लगा।
फिर मेरी पैंटी जो अभी जाँघों तक थी, उसे पूरा निकाल दिया और मुझे पूरी तरह नंगी करके मेरी टांगों को फैला कर चौड़ी कर दिया।
उसने मेरी योनि को बड़े प्यार से देखा और बालों को योनि के ऊपर से हटाते हुए कहा- कितनी प्यारी बेबी(योनि) है आपकी, किसी पावरोटी की तरह फूली और एक खिले हुए फूल की तरह सुंदर…!
फिर उसने उसे चूम लिया और फिर एक उंगली डाल उसे टटोलने लगा मैं बिल्कुल एक भूखी नागिन की तरह हो गई और सिसकारने और कराहने लगी।
और मैंने अपनी दोनों टाँगें उसके कंधों पर चढ़ा कर उसको गले से अपनी जाँघों में दबा दिया। उसने अपनी उंगली बाहर निकाली और अपनी जीभ को मेरी योनि की दरार में ऊपर से नीचे फिराया और चाटने लगा।
वो मेरी योनि के छेद में जीभ को घुसाने की कोशिश करता और फिर दोनों पंखुड़ियों को दांतों से दबा कर खींचता और होंठों से चूसता जैसे कोई खाने को चूसता हो।
मैं तो इतनी गर्म हो चुकी थी इस ठण्ड में भी कि मेरा बदन बाहर से तो कांप रहा था, पर अन्दर आग ऐसी कि किसी को जला कर राख कर दे।
मैंने बहुत देर तक उसे बर्दाश्त किया, फिर उसे अपनी टांगों से धक्का दिया तो वो अलग हो गया और मैं लपक के उठ कर उसके लिंग को दबोच लिया और चूसने लगी।
मैं पूरे जोश में उसके सुपाड़े को दांतों से काटने लगी तो मुझसे विनती करने लगा- आह नहीं.. आह नहीं.. बस करो…!
उसकी ऐसी हालत देख मैंने उसके अंडकोष को मुठी में भर कर जोर-जोर से दबाने लगी, इससे तो और वो और भी तड़पने लगा और कहने लगा- आह नहीं… आह नहीं.. बस करो.. मर जाऊँगा.. जान..!
उसने जोर लगा कर मुझे हटाया और मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरे ऊपर आ गया।
उसने मेरी दोनों हाथों को पकड़ा और कहा- आज तुमने मुझे बहुत तड़पाया है अब बदला लूँगा…!
मैं भी तो जैसे यही चाह रही थी, सो मैंने अपनी टाँगें फैला कर उसके बीच उसे जकड़ लिया। वो मेरे ऊपर आ गया और मेरे होंठों को होंठों से लगा जोरों से चूसने लगा।
मैंने कम्बल को खींच दोनों को ढक लिया। अब वो अपना पूरा वजन मेरे ऊपर लाद कर लेट गया, उसका मुँह मेरे मुँह से चूमने में लगा था, उसके हाथ मेरे बालों और कंधे को थामे थे, उसका सीना मेरे स्तनों के ऊपर था, पेट पर पेट नाभि पर नाभि और योनि पर लिंग था।
मैंने एक हाथ से उसके पीठ को जोर लगा कर पकड़ी थी, दूसरे हाथ से उसके कूल्हों को पकड़ कर खींच रही थी और टांगों को उसके जाँघों पर चढ़ा दी थी।
उसका रोम-रोम मुझे अन्तरंग सुख दे रहा था, उसके बाल मेरे बदन में गुदगुदी सी पैदा कर रहे थे, दोनों की कमर ऐसे नाच रही थी, जैसे योनि लिंग को खा जाना चाहती हो और लिंग योनि में कहीं छिप जाने को तड़प रहा हो।
हम दोनों ही एक-दूसरे से साँपों की तरह लिपटे एक-दूसरे को प्यार करने और अंगों को सहलाने लगे।
मुझे अब सहन नहीं हो रहा था और मैंने उससे कह दिया- अब देर किस बात की है, जल्दी से लंड मेरी बुर में घुसा दो..!

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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 07:48

उसने मेरी बात सुनते ही कहा- अभी लो जान..!
उसने लिंग को एक हाथ से पकड़ कर मेरी योनि की छेद पर सुपारे को भिड़ा दिया और फिर मुझे कंधों से पकड़ कर कहा- तैयार हो जाओ मेरी जान!
मैंने भी उसके कमर को हाथों से पकड़ अपनी कमर उठा दी, उसका गर्म सुपाड़ा मेरी योनि के मुख में था, तभी उसने जोर से झटका दिया, मैं कराह उठी- उई माँ.. मर गईईईईइ… प्यार से…करो न!
उसका लिंग एक झटके में मेरी योनि की दीवारों को चीरता हुआ मेरी बच्चेदानी से जा टकराया।
मुझे दर्द तो हुआ पर जो सुख मिला वो किसी स्वर्ग के सुख से कम नहीं था। उसने मुझे पूरी ताकत से पकड़ा और अपने लिंग को मेरी योनि में और दबाता गया। मैं भी उसे अपनी योनि के ऊपर उसे खींचने लगी, साथ ही कमर को उठाती जा रही थी।
ऐसा लग रहा था जैसे मैं उठना चाह रही हूँ, पर वो मुझे उठने नहीं देना चाहता है और मुझे और जोरों से दबाता रहा।
हालांकि उसका लिंग पूरी तरह मेरी योनि में था, फिर भी ऐसा लग रहा था जैसे अभी और अन्दर जाना चाहता हो। सो बार-बार जोर पर जोर लगा कर लिंग मेरी योनि में दबाता। मैं किसी हिरनी की तरह नीचे से अपने कूल्हों को नचाने लगी और जाँघों को खोलती, फिर उसमें उसके कमर को जकड़ उसे खींचती, हाथों और पैरों से फिर खोलती और फिर खींचती। मुझे ऐसे में बहुत मजा आ रहा था और उसे भी।
मेरी योनि बहुत गीली हो चुकी थी और मुझे उसका लिंग योनि के अन्दर फिसलता सा लगने लगा। इस बीच हम लगातार एक-दूसरे को चूमते और चूसते जा रहे थे।
उसने अब मुझसे कहा- कितना मजा आ रहा है, आपका जिस्म किसी गद्दे जैसा है जहाँ पकड़ता हूँ सिर्फ मांस ही मांस मिलता है और योनि कितनी गर्म और चिपचिपी है… मुझे बहुत मजा आ रहा है।
मैंने भी अपनी योनि को भींचते हुए उसके लिंग को दबाती हुई बोली- अब देर किस बात की है.. जोर लगाओ और चोदो मुझे…!
उसने मेरी बात सुनते ही एक हाथ मेरे चूतड़ के नीचे रख कर पकड़ा और अपना लिंग थोड़ा बाहर खींच कर फिर से धक्का दिया और फिर.. और फिर.. धक्कों पर धक्कों को लगाने लगा।
मैं 5-6 धक्कों में ही मदमस्त हथिनी सी हो गई और बड़बड़ाने लगी- ओह… ओह… म्मम्म… ह्म्म्म… हाय जानू कितना मजा आ रहा है… चोदते रहो..!”
वो भी धक्के लगाते हुए कहने लगा- ह्म्म्म हाँ.. लो मेरी जान और लो बुर को उछालो और.. मस्त बेबी है बड़ी प्यारी है…
हम दोनों वासना के सागर में गोते लगाने लगे, हमने पूरी ताकत झोंक दी थी। हम दोनों एक-दूसरे के जिस्मों को ऐसे मसल रहे थे, जैसे बरसों से प्यासे हों।
वो जोरों से धक्के लगाए जा रहा था और मैं भी अपनी कमर ऊपर कर उसके धक्कों का स्वागत किए जा रही थी। वो इतनी देर में हाँफने लगा था और मेरे मुँह से भी सिसकारियाँ बंद होने का नाम नहीं ले रही थीं।
बाहर ठण्ड थी, पर कम्बल के अन्दर हम दोनों पसीने में लथपथ हुए जा रहे थे।
समय के साथ उसका जिस्म और भी गर्म होता जा रहा था और मुझे उसके गर्म बदन का स्पर्श बहुत सुखद लग रहा था। वो ज्यों-ज्यों धक्के लगाता, उसका बदन सख्त होता जाता। मुझे ऐसा लगने लगा जैसे कोई गठीला सांड मेरे ऊपर चढ़ा हो।
उसने मेरे गले पर जीभ फिराते हुए मुझे चाटना शुरू कर दिया और कहा- आपके जिस्म की खुशबू मुझे पागल कर रही है।
वैसे मुझे भी उसके जिस्म की खुशबू मदहोश सा किए जा रही थी।
उसने मेरे स्तनों को दबाया और कहा- मुझे चोदते हुए आपके दुद्धू चूसने हैं।
मैंने भी मस्ती में कह दिया- जो मर्ज़ी करना है.. करो.. मगर चोदते रहो..!
उसने कम्बल को हटा दिया और मेरे स्तनों के ऊपर टूट पड़ा। वो उन्हें बारी-बारी से दबाने और चूसने लगा और साथ ही धक्के भी लगाने लगा।
उसके धक्के अब धीमे पड़ने लगे। उसने मेरी योनि में रुक-रुक कर धक्के लगाने शुरू कर दिए, पर धक्के इतने जोरदार होते कि हर धक्के पर मैं कुहक जाती। मैं समझ गई कि वो थक गया है।
मैंने उससे पूछा- अब क्या हुआ.. ऐसे क्यों चोद रहे हो, तेज़ी से चोदो न!
उसने कहा- हाँ.. करता हूँ… थोड़ा रुको!
तब मैंने कहा- आप नीचे हो जाओ अब..!
उसने एक हाथ मेरे कूल्हों के नीचे रखा और दूसरा मेरे पीठ पर फिर करवट ले कर पलट गया। अब मैं उसके ऊपर थी, पर उसने लिंग को बाहर नहीं आने दिया शायद वो मेरी योनि से लिंग बाहर नहीं निकालना चाहता था।
मैंने उसके सीने पर हाथ रख कर सीधी होकर उसके लिंग पर बैठ गई और धक्के लगाने लगी। मेरी योनि से पानी रिस-रिस कर धीरे-धीरे बहने लगा था, जिसकी वजह से उसके अंडकोष भीग गए थे और जब मैं उछलती तो मेरे कूल्हों पर लगता जिससे मुझे चिपचिपाहट महसूस हो रही थी।
मैं पूरी मस्ती से भर गई थी। उसका लिंग मेरी योनि के अन्दर हलचल सा मचा रहा था और मैं पूरी ताकत से धक्के लगाने लगी। कुछ ही देर में मेरी जांघें भी जवाब देने लगीं और मेरी गति धीमी पड़ने लगी।
मैंने उसकी तरफ देखा और उसने मेरी तरफ और उसने मेरे स्तनों को मसलते हुए कहा- अपने दुद्धू मुझे पिलाओ..!
मैंने भी बड़े प्यार से अपने स्तन को हाथ में पकड़ा और झुक कर उसके मुँह में लगा दिया और दूसरे हाथ से उसके सर को सहारा देकर उसे स्तनपान कराने लगी।
उसने भी चूचुक को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया और दोनों हाथों से मेरे नितम्बों को पकड़ अपनी ओर खींचने लगा और नीचे से अपनी कमर उठा कर नाचने लगा।
उसके ऐसा करने से उसका लिंग भी मेरी योनि में घूमने लगा। मुझे बहुत मजा आ रहा था और मैं भी अपनी योनि को उसके लिंग पर दबाते हुए कमर को उसी के साथ नचाने लगी।
कुछ देर के बाद वो मेरे स्तनों को चूसते हुए उठने लगा, उसका लिंग अभी भी मेरी योनि में था। उसके पैर अभी भी सीधे थे पर वो उठ कर बैठ गया था और अब मैं उसकी गोद में थी।
उसने मेरी टांगों को आगे की तरफ कर सीधा कर दिया और मुझे पीठ की तरफ झुका कर मेरे ऊपर चढ़ गया। मैंने अपनी टाँगें ऊपर उठा दीं और फैला दीं।
उसने मेरे कन्धों को पकड़ा और मेरे होंठों पर होंठ रख कर चूसने लगा। मैंने खुद को तैयार कर लिया कि अब वो क्या करने वाला है, उसने अपनी कमर पीछे की और फिर 2-4 बार जोर का धक्का दिया। मैं ‘उई माँ’ करते हुए कराहने लगी।
इसके बाद तो उसने लगातार धक्के देने शुरू कर दिए।
मैं भी अपनी पूरी रफ़्तार से अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर उसका साथ देने लगी। मुझे बहुत मजा आने लगा था और मैं बस चरमसुख से कुछ दूर ही थी।
मैंने उसे अपनी बाँहों में कस लिया और टांगों से उसे अपनी और खींचते हुए कराह कर बोली- और तेज़ और तेज़ आह्ह्ह आह्ह्ह चोदो मुझे, मेरी बेबी को चोदो, मेरा पानी निकाल दो.. अपने लंड से..आःह्ह्ह आह्ह्ह चोदो न…!
उसने भी पूरे जोश से धक्के देते हुए कहा- हाँ.. हाँ.. हाँ.. लो.. ये लो चुद लो , आज आपको मुता दूँगा चोद-चोद कर, सारा रस निचोड़ दूँगा बेबी की, ये लो ये लो..!

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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से

Unread post by The Romantic » 17 Dec 2014 07:50

मैं ‘ओह ओह ओह ओह’ करती अपने शरीर को ऐंठने लगी, मेरी योनि की मांसपेशियाँ सिकुड़ने और ढीली होने लगीं और मैंने उसे अपनी पूरी ताकत से पकड़ कर अपनी योनि को ऊपर उठाती हुई झड़ गई।
मैं अभी शांत हुई भी नहीं थी कि उसने भी जोरों के धक्के लगाए और अपना रस मेरी योनि के भीतर छोड़ दिया और मेरे ऊपर निढाल हो कर लेट गया।
मैं भी अपनी आँखें बंद किए शांत लेट गई। मैंने उसे अपने ऊपर से हटाया वो मेरे बगल में पीठ के बल लेट गया और सुस्ताने लगा। मैं भी अपने साँसों पर काबू पाने की कोशिश में थी।
मुझे अब ठण्ड लगने लगी थी, मेरी योनि भी ‘लसलस’ करने लगी थी, सो मैंने कम्बल ओढ़ने और योनि को साफ़ करने सोच उठ कर बैठ गई। तभी मेरी नज़र उसके लिंग पर पड़ी।
मैंने देखा कि उसका लिंग अभी भी तनतनाया हुए खड़ा था जबकि उसे झड़े कुछ ही मिनट हुए थे। मैं इससे पहले कि कुछ समझ पाती उसने झटके से पकड़ अपने ऊपर गिरा दिया और कहा- अभी कहाँ जा रही हो जान, अभी तो मजा बाकी है।
और उसने मेरी टांगों को अपनी कमर के दोनों तरफ फैला कर मुझे अपनी बाहों में भर लिया और फिर अपना लिंग मेरी योनि में घुसा दिया और कहा- चलो अब चुदो।
मैं हैरान थी कि यह कैसे हो रहा है क्योंकि अक्सर मर्द झड़ने के बाद इतनी जल्दी दुबारा तैयार नहीं होते, उन्हें दुबारा तैयार होने में काफी समय लगता है।
मैंने उससे पूछा- क्या आपने कोई दवा खाई है?
उसने कहा- हाँ.. आपको चोदने के ख्याल से मैं पागल हुआ जा रहा था, तो मैंने एक कैप्सूल मैनफोर्स का खा लिया है। क्योंकि मैं रात भर आपको चोदना चाहता था।
मैंने उससे कहा- अपनी मर्दानगी पर शक था क्या आपको?
उसे शायद मेरी यह बात बुरी लग गई और वो आक्रामक रूप लेने लगा। उसने मुझे मेरे बालों से पकड़ कर अपनी ओर खींचा और मेरे एक स्तन को बेरहमी से मसलते हुए कहा- अब नाटक बंद भी करो और चुदो।
मैं सोचने लगी कि यह क्या हो गया, अभी तक तो अच्छा खासा माहौल था।
फिर मेरे मन में ख्याल आया कि औरत के लिए भला यही होता है कि मर्द का साथ दे, क्योंकि मर्द औरतों से शारीरिक रूप से अधिक ताकतवर होते हैं तो मैंने भी अपनी भलाई के लिए उसी की भाषा अपना ली।
मैंने कहा- अच्छा यह बात है… तो लो।
मैंने भी जोर का एक धक्का दिया।
फिर क्या था उसने भी जवाब में नीचे से धक्का दिया और हम दोनों धक्के पे धक्के देने लगे। वो मुझे नीचे से धक्के दे रहा था और मैं ऊपर से, साथ ही वो मेरी जीभ को चूसने लगा।
वो इतनी जोश में था जैसे उसके रगों का खून दुगनी रफ़्तार से दौड़ रहा हो, पागलों की तरह से मुझे नोचने-खसोटने लगा। वो मेरे मुँह से निकलती लार को पी जाता।
उसके ऐसे जोश ने मुझे भी जोश में ला दिया और मैं भी उसके लिंग को पूरी तेज़ी के साथ अपनी योनि में अन्दर-बाहर करने लगी और अपने नाख़ून उसके पूरे जिस्म में चुभाने लगी।
उसने मुझे धक्का दे कर नीचे गिरा दिया और मेरी टांगों को पकड़ कर मुझे पेट के बल उल्टा कर दिया। उसने मेरे हाथों और पैरों को बिस्तर पर फैला दिया, ऐसे जैसे कोई मेंढक मरने के बाद हो जाता है।
उसने मेरे पीछे झुक कर मेरी पीठ को चूमना शुरू कर दिया और फिर जहाँ-तहाँ दांतों से काटने लगा। मैं तड़प उठी और कराहने लगी, वैसे तो मैं चीखना चाहती थी पर बच्चों की वजह से अपनी आवाज दबा दे रही थी, पर अपनी कराह नहीं रोक पा रही थी।
वो ऐसी हरकतें कर रहा था, जैसे आज मुझे मार डालेगा, तो मैंने अपनी समझ लगाई और उससे कहा- जानू.. क्या करते हो.. प्यार से करो न.. मैं कहीं भागी थोड़े जा रही हूँ, तुम्हारे लिए ही तो हूँ।
मेरी बातों का उस पर कुछ असर सा दिखने लगा और उसने मेरे कूल्हों को दबाते हुआ पूछा- ये बड़े और मोटे चूतड़ किसके लिए हैं?
मैं समझ गई कि ये दवा का असर है, सो मौके को समझते हुए कहा- आपके लिए जानू।
उसने कहा- अगर मेरे लिए हैं, तो मैं इन्हें खा जाना चाहता हूँ।
मैंने कहा- ठीक है.. तुम्हारी मर्ज़ी, पर प्यार से।
उसने कहा- हाँ.. जान प्यार से ही खाऊँगा.. इतनी प्यारे जो हैं।
फिर उसने मेरे कूल्हों को चाटना शुरू कर दिया, उसकी जीभ ने मेरे कूल्हों को गीला कर दिया और दांतों से काटने की वजह से कूल्हों पर निशान बनने लगे थे।
उसने मेरी योनि में दो ऊँगलियां घुसा दीं और फिर पूछा- यह पावरोटी सी बुर किसके लिए है जान?
मैंने कहा- आप ही तो चोद रहे हो तो और किसके लिए होगी, आपके लिए ही है।
उसने कहा- इसमें क्या जाएगा?
मैंने कहा- आपका लंड…
इसके बाद उसने मुझे कूल्हों को ऊपर उठाने को कहा, फिर मेरी योनि में लिंग घुसेड़ दिया और जोर-जोर से धक्के देने लगा। वो मुझे बड़ी बेरहमी से धक्के देता रहा, मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं मर ही जाऊँगी। पर कुछ ही देर में मैं फिर से गर्म हो गई।
उसने कहा- मैं आज तुम्हारी बेबी को चोद कर सारा रस निकाल दूँगा।
मैंने भी जोश में आकर कह दिया, “हाँ.. निकाल दो.. मेरी बुर से पसीना.. चोद-चोद कर, मेरी बेबी को चोदो।
उसके धक्के इतने तेज़ होते कि मैं सरक के आगे चली जाती। तब उसने मेरे बालों को एक हाथ से पकड़ा और दूसरे से मेरे कंधे को जोर से थामा, फिर तेज़ी से धक्के देने लगा। उसके तेज़ धक्कों से मैं दस मिनट के भीतर दो बार झड़ गई और कुछ देर बाद वो भी।
मैं हाँफते-हाँफते गिर गई और कुछ देर यूँ ही पड़े रहने की सोची, पर उसने मुझे पल भर का आराम नहीं करने दिया। सुबह चार बजे तक मुझे जैसे-तैसे उठा-पटक करके मेरे साथ सम्भोग करता रहा।
अंत में वो थक कर इतना चूर हो गया कि उससे हिला नहीं जा रहा था और सो गया। मैंने भी चैन की साँस ली और सो गई।
मैं सुबह उठ कर संतुष्ट लग रही थी पर मुझे इस बात का बुरा लगा कि उसने दवा खाई, सो मैंने उससे कह दिया था कि हम दुबारा कभी नहीं मिलेंगे, जिसकी वजह से उसे भी बुरा लगा। करीब एक हफ़्ते तक उसने मुझसे बात नहीं की, लेकिन हम लाख किसी से दूर जाना चाहें मुमकिन तभी होता है जब किस्मत चाहे और हुआ भी वही, दो हफ्ते बाद हमारी बात-चीत फिर शुरू हो गई और इस बीच सम्भोग भी हुआ। कुछ दिनों ये चलता रहा, जब तक कि अमर वापस नहीं आए।

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