सेक्सी हवेली का सच --16
दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा पार्ट -१६ लेकर आपके लिए हाजिर हूँ
दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े
तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉ
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रूपाली कार लेकर हॉस्पिटल पहुँची. साथ में भूषण भी आया था. पायल को उसने वहीं हवेली में छ्चोड़ दिया था. हवेली से हॉस्पिटल तक तकरीबन एक घंटे की दूरी थी. जब रूपाली हॉस्पिटल पहुँची तो इनस्पेक्टर ख़ान वहाँ पहले से ही मौजूद था.
रूपाली ने उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे फिर किसी बात का इंतेज़ार कर रही हो. ख़ान जैसे पोलिसेवाले मौके हाथ से नही जाने देते इस बात को वो अच्छे से जानती थी. पर उसकी उम्मीद से बिल्कुल उल्टा हुआ. ख़ान ने कुच्छ नही कहा. बस इशारे से उस कमरे की तरफ सर हिलाया जहाँ पर ठाकुर अड्मिट थे.
रूपाली कमरे में पहुँची तो उसका रोना छूट पड़ा. पट्टियों में लिपटे ठाकुर बेहोश पड़े थे. उसने डॉक्टर की तरफ देखा.
"सर में चोट आई है" डॉक्टर ने रूपाली का इशारा समझते हुए कहा "बेहोश हैं. कह नही सकता के कब तक होश आएगा."
"कोई ख़तरे की बात तो नही है ना?" रूपाली ने उम्मीद भरी आवाज़ में पुचछा
"सिर्फ़ एक" डॉक्टर बेड के करीब आता हुआ बोला "जब तक इन्हें होश नही आ जाता तब तक इनके कोमा में जाने का ख़तरा है"
"इसलिए पिताजी को हमने शहेर भेजने का इंतज़ाम करवा दिया है" तेज की आवाज़ पिच्चे से आई तो सब दरवाज़े की तरफ पलते. दरवाज़े पर तेज खड़ा था.
"कल सुबह ही इन्हें शहेर ट्रान्स्फर कर दिया जाएगा" तेज ने कहा और आकर ठाकुर के बिस्तर के पास आकर खड़ा हो गया. उसने दो पल ठाकुर की तरफ देखा और कमरे से निकल गया.
रूपाली सारा दिन हॉस्पिटल में ही रुकी रही. शाम ढालने लगी तो उसने भूषण को हॉस्पिटल में ही रुकने को कहा और खुद हवेली वापिस जाने के लिए निकली. हॉस्पिटल से बाहर निकालकर वो अपनी कार की तरफ बढ़ी ही थी के सामने से ख़ान की गाड़ी आकर रुकी.
"मुझे लगा ही था के आप यहीं मिलेंगी" पास आता ख़ान बोला
"कहिए" रूपाली ने कहा
"ठाकुर साहब आज आपकी गाड़ी में निकले थे ना?" ख़ान बोला
"जी हां" रूपाली ने कहा
"मतलब के उनकी जगह गाड़ी में आप होती तो हॉस्पिटल में बिस्तर पर भी आप ही होती" ख़ान मुस्कुराते हुए बोला "समझ नही आता के इसे आपकी खुश किस्मती कहीं या ठाकुर साहब की बदनसीबी"
"आप मुझे ये बताने के लिए यहाँ आए थे?" रूपाली हल्के गुस्से से बोली
"जी नही" ख़ान ने कहा "पुचछा तो कुच्छ और था आपसे पर इस वक़्त मुनासिब नही है शायद. क्या आप कल पोलीस स्टेशन आ सकती हैं?
"ठाकूरो के घर की औरतें पोलीस स्टेशन में कदम नही रखा करती. हमारी शान के खिलाफ है ये. पता होना चाहिए आपको" रूपाली को अब ख़ान से चिड सी होने लगी थी इसलिए ताना मारते हुए बोली
"चलिए कोई बात नही" ख़ान भी उसी अंदाज़ में बोला "हम आपकी शान में गुस्ताख़ी नही करेंगे. कल हम ही हवेली हाज़िर हो जाएँगे."
इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती ख़ान पलटकर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गया. जाते जाते वो फिर रूपाली की तरफ देखकर बोला
"मैने तो ये भी सुना था के ठाकूरो के घर की औरतें परदा करती हैं. आप तो बेझिझक बिना परदा किए ठाकुर साहब के कमरे में चली आई थी. आपकी कैसे पता के ठाकुर साहब बेहोश थे. होश में भी तो हो सकते थे" ख़ान ने कहा और रूपाली को हैरान छ्चोड़कर अपनी गाड़ी में बैठकर निकल गया
हवेली पहुँचते हल्का अंधेरा होने लगा था. रूपाली तेज़ी से कार चलती हवेली पहुन्नची. उसे लग रहा था के पायल हवेली में अकेली होगी पर वहाँ उसका बिल्कुल उल्टा था. हवेली में पायल के साथ बिंदिया और चंदर भी थे. बिंदिया को देखते ही रूपाली समझ गयी के उसने बात मान ली है और वो तेज के साथ सोने को तैय्यार है. पर तेज आज रात भी हवेली में नही था.
"नमस्ते मालकिन" बिंदिया ने हाथ जोड़ते हुए कहा "अब कैसे हैं ठाकुर साहब?"
"अभी भी सीरीयस हैं" रूपाली ने जवाब दिया "तू कब आई?"
"बस अभी थोड़ी देर पहले" बिंदिया ने कहा और वहीं नीचे बैठ गयी
रूपाली ने पायल को पानी लेने को कहा. वो उठकर गयी तो चंदर भी उसके पिछे पिछे किचन की तरफ चल पड़ा.
"मुझे आपकी बात मंज़ूर हैं मालकिन" अकेले होते ही बिंदिया बोली
"अभी नही" रूपाली ने आँखें बंद करते हुए कहा "बाद में बात करते हैं"
उस रात रूपाली ने अकेले ही खाना खाया. बिंदिया और चंदर को उसने हवेली के कॉंपाउंड में नौकरों के लिए बने कमरो में से 2 कमरे दे दिए. खाने के बाद वो चाय के कप लिए बड़े कमरे में बैठी थी. तभी बिंदिया सामने आकर बैठ गयी.
"आक्सिडेंट कैसे हुआ मालकिन?" उसने रूपाली से पुचछा
"पता नही" रूपाली ने जवाब दिया "ये तो कल ही पता चलेगा"
दोनो थोड़ी देर खामोश बैठी रही
"तो तुझे मेरी बात से कोई ऐतराज़ नही?" थोड़ी देर बाद रूपाली ने पुचछा. बिंदिया ने इनकार में सर हिला दिया
"तो फिर जितनी जल्दी हो सके तो शुरू हो जा. अब चूँकि ठाकुर साहब बीमार हैं तो मुझे घर के काम काज देखने के लिए तेज का सहारा लेना होगा जिसके लिए ज़रूरी है के वो घर पर ही रुके"
बिंदिया ने बात समझते हुए हाँ में सर हिलाया
"पर एक बात समझ नही आई. तू एक तो तरफ तो तेज को संभालेगी और दूसरी तरफ चंदर?" रूपाली ने चाय का कप बिंदिया को थमाते हुए पुचछा
"उसकी आप चिंता ना करें" बिंदिया ने मुस्कुराते हुए कहा
रात को सब अपने अपने कमरे में चले गये. रूपाली अपने कमरे में लेटी सोने की कोशिश कर रही थी. नींद उसकी आँखों से जैसे कोसो दूर थी. तभी बीच का दरवाज़ा खुला और पायल रूपाली के कमरे में दाखिल हुई. हल्की रोशनी में रूपाली देख सकती थी के वो अपने कमरे से ही पूरी तरह नंगी होकर आई थी.
"माँ की तरह बेटी भी उतनी ही गरम है. जिस्म की गर्मी संभाल नही रही" रूपाली ने दिल में सोचा
"आज नही पायल" उसने एक नज़र पायल की तरफ देखते हुए कहा
उसकी बात सुनकर पायल फिर दोबारा अपने कमरे की तरफ लौट गयी.
सुबह रूपाली उठी तो उसका पूरा जिस्म दुख रहा था. हर रात बिस्तर पर रगडे जाने के जैसे उसे आदत पड़ गयी थी. बिना चुदाई के नींद बड़ी मुश्किल से आई. उसने घड़ी की तरफ नज़र डाली तो सुबह के 6 बज रहे थे. वो बिस्तर से उठी. पायल के कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था. उसने कमरे में नज़र डाली तो देखा के पायल बिस्तर पर पूरी तरह से नंगी पड़ी सो रही थी. शायद कल रात रूपाली के मना कर देने की वजह से ऐसे ही जाकर सो गयी थी.
वो उठकर नीचे आई. भूषण ठाकुर के पास हॉस्पिटल में ही था इसलिए उसने बिंदिया को नाश्ता बनाने के लिए कहने की सोची. वो हवेली से बाहर आकर बिंदिया के कमरे की तरफ चली. दरवाज़े पर पहुँचकर बिंदिया को आवाज़ देने की सोची तो कमरे में से बिंदिया के करहने की आवाज़ आई. गौर से सुना तो रूपाली समझ गयी के कमरे के अंदर बिंदिया और चंदर का खेल जारी था.
"सुबह सुबह 6 बजे" सोचकर रूपाली मुस्कुराइ और वापिस हवेली में आकर खुद किचन में चली गयी.
उसने सुबह सवेरे ही हॉस्पिटल जाने की सोची. पूरी रात ठाकुर के बारे में सोचकर वो अपने आप को कोस्ती रही के क्यूँ उसने अपनी गाड़ी ठाकुर को दे दी थी. आख़िर प्यार करती थी वो ठाकुर से. अंदर ही अंदर उसका दिल चाह रहा था था के जो ठाकुर के साथ हुआ काश वो उसके साथ हो जाता.
सुबह के 10 बजे तक रूपाली तेज के आने का इंतेज़ार करती रही. उसने कहा था के वो ठाकुर को शहेर के हॉस्पिटल में शिफ्ट करने का इंतज़ाम कर रहा है इसलिए रूपाली ने उसके साथ ही हॉस्पिटल जाने की सोची. पर 10 बजे तक तेज नही आया बल्कि अपने कहे के मुताबिक इनस्पेक्टर ख़ान आ गया.
"सलाम अर्ज़ करता हूँ ठकुराइन जी" ख़ान ने अपनी उसी पोलीस वाले अंदाज़ में कहा. रूपाली ने सिर्फ़ हाँ में सर हिलाते हुए उसे बैठने का इशारा किया. ख़ान की कही कल रात की बात उसे अब भी याद थी के वो बिना परदा किए हॉस्पिटल में ठाकुर के कमरे में आ पहुँची थी.
"कहिए" उसने ख़ान के बैठते ही पुचछा
"एक ग्लास पानी मिल सकता है?" ख़ान ने कमरे में नज़र दौड़ते हुए कहा. रूपाली ने पायल को आवाज़ दी और एक ग्लास पानी लाने को कहा.
"इस इलाक़े में मैं जबसे आया हूँ तबसे इस हवेली में मुझे सबसे ज़्यादा इंटेरेस्ट रहा है" ख़ान ने कहा. तभी पायल पानी ले आई. ख़ान ने पानी का ग्लास लिया और एक भरपूर नज़र से पायल को देखा. जैसे आँखों ही आँखों में उसका X-रे कर रहा हो. रूपाली ने पायल को जाने का इशारा किया
"जान सकती हूँ क्यूँ?" रूपाली ने कहा तो ख़ान चौंका
"क्यूँ क्या?" उसने पुचछा
"हवेली में इतना इंटेरेस्ट क्यूँ?"रूपाली ने पुचछा
"ओह्ह्ह्ह" ख़ान को जैसे अपनी ही कही बात याद आई "आपकी पति की वजह से"
"मतलब?"
"मतलब ये मॅ'म के आपके पति इस इलाक़े के एक प्रभाव शालि आदमी थी और आपके ससुर उसने भी ज़्यादा. इस गाओं के कई घरों में आपके खानदान की वजह से चूल्हा जलता था तो ऐसे कैसे हो गया के आपके पति को मार दिया गया?" ख़ान ने आगे को झुकते हुए कहा
"ये बात आपको पता लगानी चाहिए. पोलिसेवाले आप हैं. मैं नही" रूपाली ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया
"वही तो पता लगाने की कोशिश कर रहा हूँ. काफ़ी सोचा है मैने इस बारे में पर कोई हल नही निकल रहा. वो क्या है के आपके पति की हत्या की वजह है ही नही कोई सिवाय एक के" ख़ान ने कहा
"कहते रहिए" रूपाली ने जवाब दिया
"अब देखिए. आपके खानदान का कारोबार सब ज़मीन से लगा हुआ है. जो कुच्छ है सब इस इलाक़े में जो ज़मीन है उससे जुड़ा हुआ है. और दूसरे आपकी पति एक बहुत सीधे आदमी थे ऐसा हर कोई कहता है. कभी किसी से उनकी अनबन नही रही. तो किसी के पास भी उन्हें मारने की कोई वजह नही थी क्यूंकी ज़मीन तो सारी ठाकुर खानदान की है. झगड़ा उनका किसी से था नही" ख़ान बोलता रहा
"आप कहना क्या चाह रहे है हैं?" रूपाली को ख़ान की बात समझ नही आ रही थी
"आपको क्या लगता है ये पूरी जायदाद किसकी है?" ख़ान ने हवेली में फिर नज़र दौड़ाई
"हमारी" रूपाली ने उलझन भारी आवाज़ में कहा "मेरा मतलब ठाकुर साहब की"
"ग़लत" ख़ान ने मुस्कुराते हुए कहा "ये सब आपका है मॅ'म. इस पूरी जायदाद की मालकिन आप हैं"
"आप होश में है?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में कहा "सुबह सुबह पीकर आए हैं क्या?"
"मैं मुस्लिम हूँ मॅ'म और हमारे यहाँ शराब हराम है. पूरे होश में हूँ मैं" ख़ान सोफे पर बैठते हुए बोला
"ये सब मेरा? आपका दिमाग़ ठीक है?" रूपाली ने उसी गुस्से से भरे अंदाज़ में पुचछा
"वो क्या है के हुआ यूँ के ये जायदाद ठाकुर शौर्या सिंग की कभी हुई ही नही" ख़ान ने अपनी बात जारी रखी "उनके बाप ने अपनी ये जायदाद पहले अपने दूसरे बेटे के नाम की थी. क्यूँ ये कोई नही जानता पर जब उनका दूसरा बेटा गुज़र गया तो उन्हें नयी वसीयत बनाई और जायदाद अपनी बहू यानी आपकी सास सरिता देवी के नाम कर दी. सरिता देवी ने जब देखा के आपके पति पुरुषोत्तम सब काम संभाल रहे हैं और एक भले आदमी हैं तो उन्हें सब कुच्छ आपके पति के नाम कर दिया"
रूपाली आँखें खोल ख़ान को ऐसे देख रही थी जैसे वो कोई अजूबा हो
"अब आपके पति की सबसे करीबी रिश्तेदार हुई आप तो उनके मरने से सब कुच्छ आपका हो गया" ख़ान ने फिर आगे को झुकते हुए कहा
"ज़रूरी तो नही" रूपाली को समझ नही आ रहा था के वो क्या कहे
"हां ज़रूरी तो नही है पर क्या है के आपके पति के मरने से एक हफ्ते पहले उन्होने एक वसीयत बनाई थी के अगर उन्हें कुच्छ हो जाए तो सब कुच्छ आपको मिले. तो इस हिसाब से आप हुई इस पूरी जायदाद की मालकिन" ख़ान ये बात कहकर चुप हो गया
कमरे में काफ़ी देर तक खामोशी रही. ख़ान रूपाली को देखता रहा और रूपाली उसे. उसकी समझ नही आ रहा था के ख़ान क्या कह रहा है और वो उसके बदले में क्या कहे
"आपको ये सब कैसे पता?" आख़िर रूपाली ने ही बात शुरू की
"पोलिसेवला हूँ मैं ठकुराइन जी" ख़ान फिर मुस्कुराया "सरकार इसी बात के पैसे देती है मुझे"
"ऐसा नही हो सकता" रूपाली अब भी बात मानने को तैय्यार नही थी
"अब सरिता देवी नही रही, आपके पति की हत्या हो चुकी है, एक देवर आपका अय्याश है जिसे दुनिया से कोई मतलब नही और दूसरा विदेश में पढ़ रहा है और अभी खुद बच्चा है" ख़ान ने रूपाली की बात नज़र अंदाज़ करते हुए कहा
"तो?" रूपाली के सबर का बाँध अब टूट रहा था
"अच्छा एक बात बताइए" ख़ान ने फिर उसका सवाल नज़र अंदाज़ कर दिया "आपकी ननद कामिनी कहाँ है?
"विदेश" रूपाली ने जवाब दिया
"मैने पता लगाया है. उसके पासपोर्ट रेकॉर्ड के हिसाब से तो वो कभी हिन्दुस्तान के बाहर गयी ही नही" ख़ान ने जैसे एक और बॉम्ब फोड़ा
रूपाली को अब कुच्छ अब समझ नही आ रहा था. वो बस एकटूक ख़ान को देखे जा रही थी
"कब मिली थी आप आखरी बार उससे?" ख़ान ने पुचछा
"मेरे पति के मरने के बाद. कोई 10 साल पहले" रूपाली ने धीरे से कहा
"मैने लॅब से आई रिपोर्ट देखी है. जो लाश आपकी हवेली से मिली है वो किसी औरत की है और उसे कोई 10 साल पहले वहाँ दफ़नाया गया था" बोलकर ख़ान चुप हो गया
रूपाली की कुच्छ कुच्छ समझ आ रहा था के ख़ान क्या कहना चाह रहा है. हवेली में मिली लाश? कामिनी? नही, ऐसा नही हो सकता, उसने दिल ही दिल में सोचा.
"बकवास कर रहे हैं आप" रूपाली की अब भी समझ नही आ रहा था के क्या कहे
"बकवास नही सच कह रहा हूँ. और अब जबकि ठाकुर भी लगभग मरने वाली हालत में आ चुके हैं तो बस आपके 2 देवर ही रह गये और फिर हवेली आपकी" ख़ान बोला
रूपाली का दिल किया के उसे उठकर थप्पड़ लगा दे.
"कहना क्या चाहते हैं आप?" उसकी आँखें गुस्से से लाल हो उठी
"यही के ठाकुर आपकी ही गाड़ी में मरते मरते बचे हैं. आपके पति की हत्या ये जायदाद आपके नाम हो जाने के ठीक एक हफ्ते बाद हो गयी. आपकी ननद का कहीं कुच्छ आता पता नही. आपका देवर सालों से हिन्दुस्तान नही आया. इतनी बड़ी जायदाद बहुत कुच्छ करवा सकती है" ख़ान ने ऐसे कहा जैसे रूपाली को खून के इल्ज़ाम में सज़ा सुना रहा हो
"अभी इसी वक़्त हवेली से बाहर निकल जाइए" रूपाली चिल्ला उठी.
"मैं तो चला जाऊँगा मॅ'म" ख़ान ने उठने की कोई कोशिश नही की "पर सच तो आख़िर सच ही है ना"
"तो सच पता करने की कोशिश कीजिए" रूपाली उठ खड़ी हुई "और अब दफ़ा हो जाइए यहाँ से"
ख़ान ने जब देखा के अब उसे जाना ही पड़ेगा तो वो भी उठ गया और रूपाली की तरफ एक आखरी नज़र डालकर हवेली से निकल गया.
ख़ान चला तो गया पर अपने पिछे कई सवाल छ्चोड़ गया था. रूपाली के सामने इस वक़्त 2 सबसे बड़े सवाल थे के जायदाद के बारे में जो ख़ान ने बताया था वो आख़िर कभी ठाकुर ने क्यूँ नही कहा? और दूसरा सवाल था कामिनी के बारे में पर इस वक़्त उसने इस बारे में सोचने से बेहतर हॉस्पिटल में कॉल करना समझा क्यूंकी तेज अभी तक नही आया था.
उसने आगे बढ़कर फोन उठाया ही था के सामने से तेज आता हुआ दिखाई दिया
"कहाँ थे अब तक?" रूपाली ने थोड़ा गुस्से में पुचछा
"हॉस्पिटल" तेज सोफे पर आकर बैठ गया "रात भर वहीं था"
रूपाली को तेज की बात पर काफ़ी हैरत हुई
"रात भर?" उसने तेज से पुचछा
"हाँ" तेज ने आँखें बंद कर ली
"मुझे बता तो देते" रूपाली ने उसके पास बैठते हुए कहा
"सोचा आपको बताऊं फिर सोचा के सुबह घर तो जाऊँगा ही इसलिए आकर ही बता दूँगा" तेज वैसे ही आँखें बंद किए बोला
"शहेर कब शिफ्ट करना है?" रूपाली ने पुचछा
"ज़रूरत नही होगी. डॉक्टर का कहना है के अब हालत स्टेबल है. वो अभी भी बेहोश हैं, बात नही कर सकते पर ख़तरे से बाहर हैं" तेज ने कहा तो रूपाली को लगा के उसके सीने से एक बोझ हट गया. वो भी वहीं सोफे पर बैठ गयी.
"मैं शाम को देख आओंगी. अभी तुम जाकर आराम कर लो" उसने तेज से कहा तो वो उठकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया
तेज के साथ साथ ही रूपाली भी उठकर अपने कमरे की तरफ जाने लगी. तभी उसे सामने हवेली के कॉंपाउंड में चंदर खड़ा हुआ दिखाई दिया. वो बाहर चंदर की तरफ आई
"क्या कर रहे हो?" उसने पुचछा तो चंदर फ़ौरन उसकी तरफ पलटा
"जी कुच्छ नही" उसने सर झुकाते हुए कहा "ऐसे ही खड़ा था"
"एक काम करो" रूपाली ने चंदर से कहा "तुम हवेली की सफाई क्यूँ शुरू नही कर देते. काफ़ी दिन से गाओं से आदमी बुलाकर करवाने की कोशिश कर रही हूँ पर काम कुच्छ हो नही पा रहा है. तुम अब यहाँ हो तो तुम ही करो"
चंदर ने हां में सर हिला दिया
"जो भी समान तुम्हें चाहिए वो सामने स्टोर रूम में है." रूपाली ने सामने स्टोर रूम की तरफ इशारा किया और वापिस हवेली में आ गयी.
कमरे में आने से पहले उसने बिंदिया को उपेर आने का इशारा कर दिया था. उसके पिछे पिछे बिंदिया भी उसके कमरे में आ गयी
"तुझे जिस काम के लिए यहाँ बुलाया है तू आज से ही शुरू कर दे. तेज को इशारा कर दे के तू भी उसे बिस्तर पर चाहती है" उसने बिंदिया से कहा
"जी ठीक है" बिंदिया ने हाँ में सर हिला दिया
"और ज़रा चंदर से चुदवाना कम कर. तेज ने देख लिए तो ठीक नही रहेगा" रूपाली ने कहा
बिंदिया के जाने के बाद रूपाली वहीं बिस्तर पर बैठ गयी. उसे कामिनी वाली बात परेशान किए जा रही थी. दिल ही दिल में उसने फ़ैसला किया के वो कामिनी से बात करेगी और फोन उठाया.
उसने अपनी डाइयरी से कामिनी का नंबर लिया और डाइयल किया. दूसरी तरफ से आवाज़ आई के ये नंबर अब सर्विस में नही है. कामिनी का दिल बैठने लगा. क्या ख़ान की बात सच थी? तभी उसे नीचे बेसमेंट में रखा वो बॉक्स ध्यान आया. जो बात उसके दिमाग़ में आई उससे उसका डर और बढ़ गया. वो उठकर बेसमेंट की और चल दी.
बेसमेंट में पहुँचकर रूपाली सीधे बॉक्स के पास आई.
सेक्सी हवेली का सच compleet
Re: सेक्सी हवेली का सच
सेक्सी हवेली का सच --17
दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा पार्ट -१7 लेकर आपके लिए हाजिर हूँ
दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े
तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉ
म पर पढ़ सकते है अगर आपको लिंक मिलने मैं कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मुझे मेल कर सकते हैं अब आप कहानी पढ़ें
बेसमेंट में खड़ी रूपाली एकटूक सामने रखे बॉक्स को देखने लगी. उसकी समझ नही आ रहा था के बॉक्स में किस चीज़ के होने की उम्मीद करे. वो अभी अपनी सोच में ही थी के उसे सीढ़ियों से किसी के उतरने की आवाज़ सुनाई दी. पलटकर देखा तो वो पायल थी.
"क्या हुआ?" उसने पायल से पुचछा
"छ्होटे मलिक आपको ढूँढ रहे हैं" पायल ने तेज की और इशारा करते हुए कहा
रूपाली ने बॉक्स बाद में खोलने का इरादा किया और वापिस हवेली में आई. तेज उपेर अपने कमरे में ही था.
"क्या हुआ तेज?" वो तेज के कमरे में दाखिल होती हुई बोली
"वो हमें कुच्छ काम से बाहर जाना था पर हमारी गाड़ी स्टार्ट नही हो रही. तो हम सोच रहे थे के क्या हम आपकी कार ले जा सकते हैं? घंटे भर में ही वापिस आ जाएँगे" तेज ने पहली बार रूपाली से कुच्छ माँगा था
रूपाली जानती थी के वो फिर कहीं शराब पीने या किसी रंडी के पास ही जाएगा पर फिर भी उसने पुचछा
"कहाँ जाना है? पूरी रात के जागे हुए हो तुम. आराम कर लो"
"आकर सो जाऊँगा" तेज ने कहा "कुच्छ ज़रूरी काम है"
रूपाली ने उससे ज़्यादा सवाल जवाब करना मुनासिब ना समझा. वो नही चाहती थी के तेज उससे चिडने लगे
"मैं कार की चाभी लाती हूँ" कहते हुए वो अपने कमरे की और बढ़ गयी.
अपने कमरे में आकर रूपाली ने चाभी ढूंढी और वापिस तेज के कमरे की और जाने ही लगी थी के उसे ख़ान की कही बात याद आई के ये सारी जायदाद अब उसकी है. उसने दिल ही दिल में कुच्छ फ़ैसला किया और वापिस तेज के कमरे में आई.
तेज तैय्यार खड़ा था. रूपाली ने उसे एक नज़र देखा तो दिल ही दिल में तेज के रंग रूप की तारीफ किए बिना ना रह सकी. उसका नाम उसकी पर्सनॅलिटी के हिसाब से ही था. उसके चेहरे पर हमेशा एक तेज रहता था और वो भी अपने बाप की तरह ही बहुत खूबसूरत था. वो तीनो भाई ही शकल सूरत से बहुत अच्छे थे. बस यही एक फरक था ठाकुर शौर्या सिंग की औलाद में. जहाँ उनके तीनो लड़के शकल से ही ठाकुर लगते थे वहीं उनकी बेटी कामिनी एक मामूली शकल सूरत की लड़की थी. उसे देखकर कोई कह नही सकता था के वो चारों भाई बहेन थे.
रूपाली ने चाभी तेज को दी और बोली
"अब पिताजी हॉस्पिटल में है तो मैं सोच रही थी के तुम कारोबार क्यूँ नही संभाल लेते?"
तेज हस्ता हुए उसकी तरफ पलटा
"कौन सा कारोबार भाभी? हमारी बंजर पड़ी ज़मीन? और कौन सी हमारी फॅक्ट्री हैं?"
"ज़मीन इसलिए बंजर है क्यूंकी उसकी देखभाल नही की गयी. तुम्हारे भैया होते तो क्या ऐसा होने देते?" रूपाली पूरी कोशिश कर रही थी के तेज को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हो.
भाई का ज़िक्र आते ही तेज फ़ौरन खामोश हो गया और फिर ठहरी हुई आवाज़ में बोला
"भाय्या हैं नही इसी बात का तो अफ़सोस है भाभी और उससे ज़्यादा अफ़सोस इस बात का है के जिसने उनकी जान ली वो शायद आज भी कहीं ज़िंदा घूम रहा है. और आप तो जानती ही हैं के मुझसे ये सब नही होगा. आप विदेश से कुलदीप कोई क्यूँ नही बुलवा लेती? और कितनी पढ़ाई करेगा वो?"
कहते हुए तेज कमरे के दरवाज़े की तरफ बढ़ा और इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती वो कमरे के बाहर निकल गया. जाते जाते वो कह गया के एक घंटे के अंदर अंदर वापिस आ जाएगा.
रूपाली खामोशी से तेज के कमरे में खड़ी रह गयी. उसकी कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या करे. दिमाग़ में लाखों सवाल एक साथ चल रहे थे. ख़ान की कही बात अब भी दिमाग़ में चल रही थी. वो तेज से बात करके ये भी जानना चाहती थी के क्या उसे इस बात का शक है के ये पूरी जायदाद रूपाली के नाम है पर ऐसा कोई मौका तेज ने उसे नही दिया.
उसने दिल ही दिल में ठाकुर के वकील से बात करने की कोशिश की. उसे जाने क्यूँ यकीन था के ख़ान सच बोल रहा था पर फिर भी उसने अपनी तसल्ली के लिए वकील से बात करने की सोची.
उसने तेज के कमरे पर नज़र डाली. वो तेज के कमरे की तलाशी भी लेना चाहती थी. भूषण की कही बात के उसके पति की मौत का राज़ हवेली में ही कहीं है उसे याद थी. एक पल के लिए उसने सोचा के कमरे की तलाशी ले पर फिर उसने अपना दिमाग़ बदल दिया. तेज हवेली में ही था और उसे शक हो सकता था के उसके कमरे की चीज़ें यहाँ वहाँ की गयी हैं. रूपाली चुप चाप कमरे से बाहर निकल आई.
नीचे पहुँचकर वो बड़े कमरे में सोफे पर बैठ गयी. तभी बिंदिया आई.
"छ्होटे मलिक कहीं गये हैं?" उसने रूपाली से पुचछा
"हाँ कहीं काम से गये हैं. क्यूँ?" रूपाली ने आँखें बंद किए सवाल पुचछा
"नही वो आपने कहा था ना के मैं उनके करीब जाने की कोशिश शुरू कर दूँ. तो मैने सोचा के जाकर उनसे बात करूँ" बिंदिया थोडा शरमाते हुए बोली
"दिन में नही.दिन में किसी को भी शक हो सकता है. तुझे मेहनत नही करनी पड़ेगी. रात को किसी बहाने से तेज के कमरे में चली जाना." रूपाली ने खुद ही बिंदिया को रास्ता दिखा दिया
बिंदिया ने हां में सर हिला दिया
रूपाली की समझ में नही आ रहा था के अब क्या करे. दिमाग़ में चल रही बातें उसे पागल कर रही थी. समझ नही आ रहा था के पहले वकील को फोन करे, या तेज के कमरे की तलाशी ले, या हॉस्पिटल जाकर ठाकुर साहब को देख आए या नीचे रखे बॉक्स की तलाशी ले.
एक पल के लिए उसने फिर बसेमेंट में जाने की सोची पर फिर ख्याल दिमाग़ से निकाल दिया. वो बॉक्स की तलाशी आराम से अकेले में लेना चाहती थी और इस वक़्त ये मुमकिन नही था. और तेज कभी कभी भी वापिस आ सकता था. उसने फ़ैसला किया के वो ये काम रात को करेगी.उसने सामने रखा फोन उठाया और ठाकुर साहब के वकील का नंबर मिलाया. दूसरी तरफ से ठाकुर साहब के वकील देवधर की आवाज़ आई.
"कहिए रूपाली जी" उसने रूपाली की आवाज़ पहचानते हुए कहा
"जी मैं आपसे मिलना चाहती थी. कुच्छ ज़रूरी बात करनी थी" रूपाली ने कहा
"जी ज़रूर" देवधर बोला "मुझे लग ही रहा था के आप फोन करेंगी"
देवधर की कही इस बात ने अपने आप में ये साबित कर दिया के जो कुच्छ ख़ान ने कहा था वो सच था
"मैं कल ही हाज़िर हो जाऊँगा" देवधर आयेज बोला
"नही आप नही" रूपाली ने फ़ौरन मना किया "मैं खुद आपसे मिलने आऊँगी"
वो जानती थी के गाओं से शहेर तक जाने में उसे कम से कम 3 घंटे लगेंगे पर जाने क्यूँ वो देवधर से बाहर अकेले में मिलना चाहती थी.
"जैसा आप बेहतर समझें" देवधर ने भी हां कह दिया
"अभी कह नही सकती के किस दिन आऊँगी पर आने से एक दिन पहले मैं आपको फोन कर दूँगी" रूपाली ने कहा
देवधर ने फिर हां कह दी तो उसने फोन नीचे रख दिया.
दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा पार्ट -१7 लेकर आपके लिए हाजिर हूँ
दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े
तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉ
म पर पढ़ सकते है अगर आपको लिंक मिलने मैं कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मुझे मेल कर सकते हैं अब आप कहानी पढ़ें
बेसमेंट में खड़ी रूपाली एकटूक सामने रखे बॉक्स को देखने लगी. उसकी समझ नही आ रहा था के बॉक्स में किस चीज़ के होने की उम्मीद करे. वो अभी अपनी सोच में ही थी के उसे सीढ़ियों से किसी के उतरने की आवाज़ सुनाई दी. पलटकर देखा तो वो पायल थी.
"क्या हुआ?" उसने पायल से पुचछा
"छ्होटे मलिक आपको ढूँढ रहे हैं" पायल ने तेज की और इशारा करते हुए कहा
रूपाली ने बॉक्स बाद में खोलने का इरादा किया और वापिस हवेली में आई. तेज उपेर अपने कमरे में ही था.
"क्या हुआ तेज?" वो तेज के कमरे में दाखिल होती हुई बोली
"वो हमें कुच्छ काम से बाहर जाना था पर हमारी गाड़ी स्टार्ट नही हो रही. तो हम सोच रहे थे के क्या हम आपकी कार ले जा सकते हैं? घंटे भर में ही वापिस आ जाएँगे" तेज ने पहली बार रूपाली से कुच्छ माँगा था
रूपाली जानती थी के वो फिर कहीं शराब पीने या किसी रंडी के पास ही जाएगा पर फिर भी उसने पुचछा
"कहाँ जाना है? पूरी रात के जागे हुए हो तुम. आराम कर लो"
"आकर सो जाऊँगा" तेज ने कहा "कुच्छ ज़रूरी काम है"
रूपाली ने उससे ज़्यादा सवाल जवाब करना मुनासिब ना समझा. वो नही चाहती थी के तेज उससे चिडने लगे
"मैं कार की चाभी लाती हूँ" कहते हुए वो अपने कमरे की और बढ़ गयी.
अपने कमरे में आकर रूपाली ने चाभी ढूंढी और वापिस तेज के कमरे की और जाने ही लगी थी के उसे ख़ान की कही बात याद आई के ये सारी जायदाद अब उसकी है. उसने दिल ही दिल में कुच्छ फ़ैसला किया और वापिस तेज के कमरे में आई.
तेज तैय्यार खड़ा था. रूपाली ने उसे एक नज़र देखा तो दिल ही दिल में तेज के रंग रूप की तारीफ किए बिना ना रह सकी. उसका नाम उसकी पर्सनॅलिटी के हिसाब से ही था. उसके चेहरे पर हमेशा एक तेज रहता था और वो भी अपने बाप की तरह ही बहुत खूबसूरत था. वो तीनो भाई ही शकल सूरत से बहुत अच्छे थे. बस यही एक फरक था ठाकुर शौर्या सिंग की औलाद में. जहाँ उनके तीनो लड़के शकल से ही ठाकुर लगते थे वहीं उनकी बेटी कामिनी एक मामूली शकल सूरत की लड़की थी. उसे देखकर कोई कह नही सकता था के वो चारों भाई बहेन थे.
रूपाली ने चाभी तेज को दी और बोली
"अब पिताजी हॉस्पिटल में है तो मैं सोच रही थी के तुम कारोबार क्यूँ नही संभाल लेते?"
तेज हस्ता हुए उसकी तरफ पलटा
"कौन सा कारोबार भाभी? हमारी बंजर पड़ी ज़मीन? और कौन सी हमारी फॅक्ट्री हैं?"
"ज़मीन इसलिए बंजर है क्यूंकी उसकी देखभाल नही की गयी. तुम्हारे भैया होते तो क्या ऐसा होने देते?" रूपाली पूरी कोशिश कर रही थी के तेज को अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास हो.
भाई का ज़िक्र आते ही तेज फ़ौरन खामोश हो गया और फिर ठहरी हुई आवाज़ में बोला
"भाय्या हैं नही इसी बात का तो अफ़सोस है भाभी और उससे ज़्यादा अफ़सोस इस बात का है के जिसने उनकी जान ली वो शायद आज भी कहीं ज़िंदा घूम रहा है. और आप तो जानती ही हैं के मुझसे ये सब नही होगा. आप विदेश से कुलदीप कोई क्यूँ नही बुलवा लेती? और कितनी पढ़ाई करेगा वो?"
कहते हुए तेज कमरे के दरवाज़े की तरफ बढ़ा और इससे पहले के रूपाली कुच्छ कहती वो कमरे के बाहर निकल गया. जाते जाते वो कह गया के एक घंटे के अंदर अंदर वापिस आ जाएगा.
रूपाली खामोशी से तेज के कमरे में खड़ी रह गयी. उसकी कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या करे. दिमाग़ में लाखों सवाल एक साथ चल रहे थे. ख़ान की कही बात अब भी दिमाग़ में चल रही थी. वो तेज से बात करके ये भी जानना चाहती थी के क्या उसे इस बात का शक है के ये पूरी जायदाद रूपाली के नाम है पर ऐसा कोई मौका तेज ने उसे नही दिया.
उसने दिल ही दिल में ठाकुर के वकील से बात करने की कोशिश की. उसे जाने क्यूँ यकीन था के ख़ान सच बोल रहा था पर फिर भी उसने अपनी तसल्ली के लिए वकील से बात करने की सोची.
उसने तेज के कमरे पर नज़र डाली. वो तेज के कमरे की तलाशी भी लेना चाहती थी. भूषण की कही बात के उसके पति की मौत का राज़ हवेली में ही कहीं है उसे याद थी. एक पल के लिए उसने सोचा के कमरे की तलाशी ले पर फिर उसने अपना दिमाग़ बदल दिया. तेज हवेली में ही था और उसे शक हो सकता था के उसके कमरे की चीज़ें यहाँ वहाँ की गयी हैं. रूपाली चुप चाप कमरे से बाहर निकल आई.
नीचे पहुँचकर वो बड़े कमरे में सोफे पर बैठ गयी. तभी बिंदिया आई.
"छ्होटे मलिक कहीं गये हैं?" उसने रूपाली से पुचछा
"हाँ कहीं काम से गये हैं. क्यूँ?" रूपाली ने आँखें बंद किए सवाल पुचछा
"नही वो आपने कहा था ना के मैं उनके करीब जाने की कोशिश शुरू कर दूँ. तो मैने सोचा के जाकर उनसे बात करूँ" बिंदिया थोडा शरमाते हुए बोली
"दिन में नही.दिन में किसी को भी शक हो सकता है. तुझे मेहनत नही करनी पड़ेगी. रात को किसी बहाने से तेज के कमरे में चली जाना." रूपाली ने खुद ही बिंदिया को रास्ता दिखा दिया
बिंदिया ने हां में सर हिला दिया
रूपाली की समझ में नही आ रहा था के अब क्या करे. दिमाग़ में चल रही बातें उसे पागल कर रही थी. समझ नही आ रहा था के पहले वकील को फोन करे, या तेज के कमरे की तलाशी ले, या हॉस्पिटल जाकर ठाकुर साहब को देख आए या नीचे रखे बॉक्स की तलाशी ले.
एक पल के लिए उसने फिर बसेमेंट में जाने की सोची पर फिर ख्याल दिमाग़ से निकाल दिया. वो बॉक्स की तलाशी आराम से अकेले में लेना चाहती थी और इस वक़्त ये मुमकिन नही था. और तेज कभी कभी भी वापिस आ सकता था. उसने फ़ैसला किया के वो ये काम रात को करेगी.उसने सामने रखा फोन उठाया और ठाकुर साहब के वकील का नंबर मिलाया. दूसरी तरफ से ठाकुर साहब के वकील देवधर की आवाज़ आई.
"कहिए रूपाली जी" उसने रूपाली की आवाज़ पहचानते हुए कहा
"जी मैं आपसे मिलना चाहती थी. कुच्छ ज़रूरी बात करनी थी" रूपाली ने कहा
"जी ज़रूर" देवधर बोला "मुझे लग ही रहा था के आप फोन करेंगी"
देवधर की कही इस बात ने अपने आप में ये साबित कर दिया के जो कुच्छ ख़ान ने कहा था वो सच था
"मैं कल ही हाज़िर हो जाऊँगा" देवधर आयेज बोला
"नही आप नही" रूपाली ने फ़ौरन मना किया "मैं खुद आपसे मिलने आऊँगी"
वो जानती थी के गाओं से शहेर तक जाने में उसे कम से कम 3 घंटे लगेंगे पर जाने क्यूँ वो देवधर से बाहर अकेले में मिलना चाहती थी.
"जैसा आप बेहतर समझें" देवधर ने भी हां कह दिया
"अभी कह नही सकती के किस दिन आऊँगी पर आने से एक दिन पहले मैं आपको फोन कर दूँगी" रूपाली ने कहा
देवधर ने फिर हां कह दी तो उसने फोन नीचे रख दिया.
Re: सेक्सी हवेली का सच
सेक्शी हवेली का सच --18
दोस्तो आपका दोस्त राज शर्मा हाजिर है पार्ट 18 के साथ
तेज के लौट आने पर रूपाली उसके साथ हॉस्पिटल पहुँची. डॉक्टर के हिसाब से ठाकुर की हालत में सुधार पर उसे ऐसा कुच्छ ना लगा. ठाकुर अब भी पूरी तरह बेहोश थे. रूपाली ने थोड़ा वक़्त वहीं हॉस्पिटल में गुज़ारा और लौट आई. भूषण अब भी वहीं हॉस्पिटल में ही था.
चंदर ने हवेली के कॉंपौंत में काफ़ी हद तक सफाई कर दी थी. कुच्छ दिन से चल रहे काम का नतीजा ये था के पहले जंगल की तरह उग चुकी झाड़ियाँ अब वहाँ नही थी. अब हवेली का लंबा चौड़ा कॉंपाउंड एक बड़े मैदान की तरह लग रहा था जिसे रूपाली पहले की तरह हरा भरा देखना चाहती थी.
हमेशा की तरह ही तेज फिर शाम को गायब हो गया. वो रूपाली की गाड़ी लेकर गया था. उसने जाने से पहले ये कहा तो था के वो रात को लौट आएगा पर रूपाली को भरोसा नही था के वो आएगा.
खाने के बाद रूपाली अपने कमरे में बैठी हुई कामिनी की वो डाइयरी देख रही थी जिसमें उसने काफ़ी शेरो शायरी लिखी हुई थी. साथ ही उसने काग़ज़ का वो टुकड़ा रखा हुआ था जो उसे कामिनी की डाइयरी के अंदर से मिला था और जिसकी हॅंड राइटिंग कामिनी की हॅंडराइटिंग से मॅच नही करती थी. रूपाली दिल ही दिल में इस बात पर यकीन कर चुकी थी की इस सारी उलझन की एक ही कड़ी है और वो है कामिनी. कामिनी की पूरी डाइयरी में शायरी थी जिसमें से ज़्यादातर शायरी दिल टूट जाने पर थी. डाइयरी की आख़िरी एंट्री पुरुषोत्तम के मरने से एक हफ्ते की थी जो कुच्छ इस तरह थी जिसपर रूपाली का सबसे ज़्यादा ध्यान गया
तू भी किसी का प्यार ना पाए खुदा करे
तुझको तेरा नसीब रुलाए खुदा करे
रातों में तुझको नींद ना आए खुदा करे
तू दर बदर की ठोकरें खाए खुदा करे
आए बाहर तेरे गुलिस्ताँ में बार बार
तुझपर कभी निखार ना आए खुदा करे
मेरी तरह तुझे भी जवानी में घाम मिले
तेरा ना कोई साथ निभाए खुदा करे
मंज़िल कभी भी प्यार की तुझको ना मिल सके
तू भी दुआ में हाथ उठाए खुदा करे
तुझपर शब-ए-विसल की रातें हराम हो
शमा जला जलके बुझाए खुदा करे
हो जाए हर दुआ मेरी मेरे यार ग़लत
बस तुझपर कभी आँच ना आए खुदा करे
दिल ही दिल में रूपाली शायरी की तारीफ किए बिना ना रह सकी. लिखे गये शब्द इस बात की तरफ सॉफ इशारा करते थे के कामिनी का दिल टूटा या किसी वजह से. उसके प्रेमी ने या तो हवेली के डर से उसका साथ निभाने से इनकार कर दिया था या कोई और वजह थी पर जो भी थी, वो आदमी ही इस पहेली की दूसरी कड़ी था. और शायद वही था जो रात को चोरी से हवेली में आने की हिम्मत करता था. पर डाइयरी में कहीं भी इस बात की तरफ कोई इशारा नही था के वो आदमी आख़िर था तो कौन था. परेशान होकर रूपाली ने डाइयरी बंद करके वापिस अपनी अलमारी में रख दी.
वो बिस्तर पर आकर बैठी ही थी के कमरे के दरवाज़ा पर बाहर से नॉक किया गया. रूपाली ने दरवाज़ा खोला तो सामने बिंदिया खड़ी थी.
"क्या हुआ?" उसने बिंदिया से पुचछा
"ये आज आया था" कहते हुए बिंदिया ने उसकी तरफ एक एन्वेलप बढ़ा दिया "आप जब हॉस्पिटल गयी थी तब. मैं पहले देना भूल गयी थी"
रूपाली ने हाथ में एन्वेलप लिए. वो एक ग्रीटिंग कार्ड था उसके जनमदिन पर ना पहुँचकर देर से आए थे.
रूपाली ने ग्रीटिंग कार्ड लेकर दरवाज़ा बंद कर दिया और अपने बिस्तर पर बैठकर एन्वेलप खोला. कार्ड उसके छ्होटे भाई इंदर ने भेजा था. ये वो हर साल करता था. हर साल एक ग्रीटिंग कार्ड रूपाली को पहुँच जाता था. चाहे कोई और उसे जनमदिन की बधाई भेजे ने भेजे पर इंदर ने हर साल उसे एक कार्ड ज़रूर भेजा था.
रूपाली ने ग्रीटिंग खोलकर देखा. ग्रीटिंग पर फूल बने हुए थे जिसके बीच इंदर और रूपाली के माँ बाप ने बिर्थडे मेसेज लिखा हुआ था. रूपाली बड़ी देर तक कार्ड को देखती रही. इस बात के एहसास से उसकी आँखों में आँसू आ गये के उसके माँ बाप को आज भी उसका उतना ही ख्याल है जितना पहले था. उसने सोचा के अपने घर फोन करके बता दे के उसे कार्ड मिल गया है और अपने माँ बाप से थोड़ी देर बात करके दिल हल्का कर ले. ये सोचकर उसके कार्ड सामने टेबल पर रखा और कमरे से बाहर जाने लगी.
दरवाज़े की तरफ बढ़ते रूपाली के कदम अचानक वहीं के वहीं रुक गये. उसके दिल की धड़कन अचानक तेज होती चली गयी और दिमाग़ सन्न रह गया. उसे समझ नही आया के क्या करे और एक पल के लिए वहीं की वहीं खड़ी रह गयी. दूसरे ही पल वो जल्दी से मूडी और अपनी अलमारी तक जाकर कामिनी की डाइयरी फिर से निकाली. कामिनी की डाइयरी से उसने वो पेज निकाला जिसपर कामिनी के साइवा किसी और की लिखी शायरी थी. उसने जल्दी से वो पेज खोला और टेबल पर जाकर ग्रीटिंग कार्ड के साथ में रखा. उसने एक नज़र काग़ज़ पर डाली और दूसरी ग्रीटिंग कार्ड पर. काग़ज़ पर लिखी शायरी और ग्रीटिंग कार्ड के एन्वेलप पर लिखा अड्रेस एक ही आदमी का लिखा हुआ था. दोनो हंदवरटिंग्स आपस में पूरी तरह मॅच करती थी. इस बात में कोई शक नही था के कामिनी की डाइयरी में पेपर उसे मिला था, उसपर शायरी किसी और ने नही बल्कि उसके अपने छ्होटे भाई इंदर ने लिखी थी.
रूपाली का खड़े खड़े दिमाग़ घूमने लगा और वहीं सामने रखी चेर पर बैठ गयी. जिस आदमी को वो आज तक अपने पति का हत्यारा समझ रही थी वो कोई और नही उसका अपना छ्होटा भाई था. पर सवाल ये था के कैसे? इंदर हवेली में बहुत ही कम आता जाता था और कामिनी से तो उसने कभी शायद बात ही नही की थी? तो कामिनी और उसके बीच में कुच्छ कैसे हो सकता था? और दूसरा सवाल था के अगर कामिनी का प्रेमी ही उससे रात को मिलने आता था तो उसका भाई वो आदमी कैसे हो सकता है? रूपाली का घर एक दूसरे गाओं में था जो ठाकुर के गाओं से कई घंटो की दूरी पर था? तो उसका भाई रातों रात ये सफ़र कैसे कर सकता है? कैसे ये बात सबकी और सबसे ज़्यादा रूपाली की नज़र से बच गयी के उसके अपने भाई और ननद के बीच कुच्छ चल रहा है और क्यूँ इंदर ने ये बात उसे नही बताई?
और सबसे ज़रूरी सवाल जो रूपाली के दिमाग़ में उठा वो ये था के क्या उसके भाई ने ही डर से पुरुषोत्तम का खून किया था?
काफ़ी देर तक रूपाली उस काग़ज़ के टुकड़े और सामने रखे ग्रीटिंग कार्ड को देखती रही. जब कुच्छ समझ ना आया के क्या करे तो वो उठकर अपने कमरे से बाहर निकली और नीचे बेसमेंट की और बढ़ गयी. बेसमेंट पहुँचकर उसने वहीं कोने में रखा एक भारी सा सरिया उठाया और उस बॉक्स के पास पहुँची जो वो काफ़ी दिन से खोलने की कोशिश में थी. बॉक्स पर लॉक लगा हुआ था जिसपर रूपाली ने सरिया से 2 3 बार वार किया. लॉक तो ना टूट सका पर बॉक्स की कुण्डी उखड़ गयी और लॉक के साथ नीचे की और लटक गयी. रूपाली ने बॉक्स खोला और उसे सामने वही दिखा जिसकी वो उम्मीद कर रही थी.
बॉक्स में किसी लड़की के इस्तेमाल की चीज़ें थी. कुच्छ कपड़े, परफ्यूम्स, जूते और मेक अप का समान. एक नज़र डालते ही रूपाली समझ गयी के ये सारा समान कामिनी का था क्यूंकी जिस दिन कामिनी हवेली से गयी थी उस दिन रूपाली . उसे ये सारा समान पॅक करते देखा था. रूपाली ने बॉक्स से चीज़ें बाहर निकालनी शुरू की और हर वो चीज़ जो कामिनी के साथ होनी चाहिए थी वो इस बॉक्स में थी. रूपाली एक एक करके सारी चीज़ें निकालती चली गयी और कुच्छ ही देर मे उसे बॉक्स में रखा कामिनी का पासपोर्ट और वीसा भी मिल गया. रूपाली की दिमाग़ में फ़ौरन ये सवाल उठा के अगर ये सारी चीज़ें यहाँ हैं तो रूपाली विदेश में कैसे हो सकती है और अगर वो विदेश में नही है तो कहाँ है? क्या वो उसके भाई के साथ भाग गयी थी और अब उसके भाई के साथ ही रह रही है?
रूपाली समान निकाल ही रही थी के अचानक उसे फिर हैरानी हुई. कामिनी के समान के ठीक नीचे कुच्छ और भी कपड़े थे पर उनको देखकर सॉफ अंदाज़ा हो जाता था के वो कामिनी के नही हैं. कुच्छ सलवार कमीज़ और सारी थी जो रूपाली के लिए बिल्कुल अंजान थी. वो कपड़े ऐसे थे जैसे के उसने अपने घर के नौकरों के पहने देखा और इसी से उसे पता चला के ये कपड़े कामिनी के नही हो सकते क्यूंकी कामिनी के सारे कपड़े काफ़ी महेंगे थे.अंदर से कुच्छ ब्रा निकली जिन्हें देखकर अंदाज़ा हो जाता था के ये कामिनी के नही हैं क्यूंकी कामिनी की छातियो का साइज़ ब्रा के साइज़ से बड़ा था.
रूपाली ने सारा समान बॉक्स से निकालकर ज़मीन पर फैला दिया और वहीं बैठकर समान को देखने लगी. जो 2 सवाल उसे परेशान कर रहे थे वो ये थे के कामिनी कहाँ है और बॉक्स के अंदर रखे बाकी के कपड़े किसके हैं? हवेली में सिर्फ़ 3 औरतें हुआ करती थी. वो खुद, उसकी सास और कामिनी और तीनो में से ये कपड़े किसी के नही हो सकते और ख़ास बात ये थी के इन कपड़ों को कामिनी के कपड़ों के साथ ऐसे च्छुपाकर ताले में क्यूँ रखा गया था? कामिनी अभी अपनी सोच में ही थी के बाहर से कार की आवाज़ आई. तेज वापिस आ चुका था. उसने समान वहीं बिखरा छ्चोड़ा और बेसमेंट में ताला लगाकर बड़े कमरे में पहुँची.
दोस्तो आपका दोस्त राज शर्मा हाजिर है पार्ट 18 के साथ
तेज के लौट आने पर रूपाली उसके साथ हॉस्पिटल पहुँची. डॉक्टर के हिसाब से ठाकुर की हालत में सुधार पर उसे ऐसा कुच्छ ना लगा. ठाकुर अब भी पूरी तरह बेहोश थे. रूपाली ने थोड़ा वक़्त वहीं हॉस्पिटल में गुज़ारा और लौट आई. भूषण अब भी वहीं हॉस्पिटल में ही था.
चंदर ने हवेली के कॉंपौंत में काफ़ी हद तक सफाई कर दी थी. कुच्छ दिन से चल रहे काम का नतीजा ये था के पहले जंगल की तरह उग चुकी झाड़ियाँ अब वहाँ नही थी. अब हवेली का लंबा चौड़ा कॉंपाउंड एक बड़े मैदान की तरह लग रहा था जिसे रूपाली पहले की तरह हरा भरा देखना चाहती थी.
हमेशा की तरह ही तेज फिर शाम को गायब हो गया. वो रूपाली की गाड़ी लेकर गया था. उसने जाने से पहले ये कहा तो था के वो रात को लौट आएगा पर रूपाली को भरोसा नही था के वो आएगा.
खाने के बाद रूपाली अपने कमरे में बैठी हुई कामिनी की वो डाइयरी देख रही थी जिसमें उसने काफ़ी शेरो शायरी लिखी हुई थी. साथ ही उसने काग़ज़ का वो टुकड़ा रखा हुआ था जो उसे कामिनी की डाइयरी के अंदर से मिला था और जिसकी हॅंड राइटिंग कामिनी की हॅंडराइटिंग से मॅच नही करती थी. रूपाली दिल ही दिल में इस बात पर यकीन कर चुकी थी की इस सारी उलझन की एक ही कड़ी है और वो है कामिनी. कामिनी की पूरी डाइयरी में शायरी थी जिसमें से ज़्यादातर शायरी दिल टूट जाने पर थी. डाइयरी की आख़िरी एंट्री पुरुषोत्तम के मरने से एक हफ्ते की थी जो कुच्छ इस तरह थी जिसपर रूपाली का सबसे ज़्यादा ध्यान गया
तू भी किसी का प्यार ना पाए खुदा करे
तुझको तेरा नसीब रुलाए खुदा करे
रातों में तुझको नींद ना आए खुदा करे
तू दर बदर की ठोकरें खाए खुदा करे
आए बाहर तेरे गुलिस्ताँ में बार बार
तुझपर कभी निखार ना आए खुदा करे
मेरी तरह तुझे भी जवानी में घाम मिले
तेरा ना कोई साथ निभाए खुदा करे
मंज़िल कभी भी प्यार की तुझको ना मिल सके
तू भी दुआ में हाथ उठाए खुदा करे
तुझपर शब-ए-विसल की रातें हराम हो
शमा जला जलके बुझाए खुदा करे
हो जाए हर दुआ मेरी मेरे यार ग़लत
बस तुझपर कभी आँच ना आए खुदा करे
दिल ही दिल में रूपाली शायरी की तारीफ किए बिना ना रह सकी. लिखे गये शब्द इस बात की तरफ सॉफ इशारा करते थे के कामिनी का दिल टूटा या किसी वजह से. उसके प्रेमी ने या तो हवेली के डर से उसका साथ निभाने से इनकार कर दिया था या कोई और वजह थी पर जो भी थी, वो आदमी ही इस पहेली की दूसरी कड़ी था. और शायद वही था जो रात को चोरी से हवेली में आने की हिम्मत करता था. पर डाइयरी में कहीं भी इस बात की तरफ कोई इशारा नही था के वो आदमी आख़िर था तो कौन था. परेशान होकर रूपाली ने डाइयरी बंद करके वापिस अपनी अलमारी में रख दी.
वो बिस्तर पर आकर बैठी ही थी के कमरे के दरवाज़ा पर बाहर से नॉक किया गया. रूपाली ने दरवाज़ा खोला तो सामने बिंदिया खड़ी थी.
"क्या हुआ?" उसने बिंदिया से पुचछा
"ये आज आया था" कहते हुए बिंदिया ने उसकी तरफ एक एन्वेलप बढ़ा दिया "आप जब हॉस्पिटल गयी थी तब. मैं पहले देना भूल गयी थी"
रूपाली ने हाथ में एन्वेलप लिए. वो एक ग्रीटिंग कार्ड था उसके जनमदिन पर ना पहुँचकर देर से आए थे.
रूपाली ने ग्रीटिंग कार्ड लेकर दरवाज़ा बंद कर दिया और अपने बिस्तर पर बैठकर एन्वेलप खोला. कार्ड उसके छ्होटे भाई इंदर ने भेजा था. ये वो हर साल करता था. हर साल एक ग्रीटिंग कार्ड रूपाली को पहुँच जाता था. चाहे कोई और उसे जनमदिन की बधाई भेजे ने भेजे पर इंदर ने हर साल उसे एक कार्ड ज़रूर भेजा था.
रूपाली ने ग्रीटिंग खोलकर देखा. ग्रीटिंग पर फूल बने हुए थे जिसके बीच इंदर और रूपाली के माँ बाप ने बिर्थडे मेसेज लिखा हुआ था. रूपाली बड़ी देर तक कार्ड को देखती रही. इस बात के एहसास से उसकी आँखों में आँसू आ गये के उसके माँ बाप को आज भी उसका उतना ही ख्याल है जितना पहले था. उसने सोचा के अपने घर फोन करके बता दे के उसे कार्ड मिल गया है और अपने माँ बाप से थोड़ी देर बात करके दिल हल्का कर ले. ये सोचकर उसके कार्ड सामने टेबल पर रखा और कमरे से बाहर जाने लगी.
दरवाज़े की तरफ बढ़ते रूपाली के कदम अचानक वहीं के वहीं रुक गये. उसके दिल की धड़कन अचानक तेज होती चली गयी और दिमाग़ सन्न रह गया. उसे समझ नही आया के क्या करे और एक पल के लिए वहीं की वहीं खड़ी रह गयी. दूसरे ही पल वो जल्दी से मूडी और अपनी अलमारी तक जाकर कामिनी की डाइयरी फिर से निकाली. कामिनी की डाइयरी से उसने वो पेज निकाला जिसपर कामिनी के साइवा किसी और की लिखी शायरी थी. उसने जल्दी से वो पेज खोला और टेबल पर जाकर ग्रीटिंग कार्ड के साथ में रखा. उसने एक नज़र काग़ज़ पर डाली और दूसरी ग्रीटिंग कार्ड पर. काग़ज़ पर लिखी शायरी और ग्रीटिंग कार्ड के एन्वेलप पर लिखा अड्रेस एक ही आदमी का लिखा हुआ था. दोनो हंदवरटिंग्स आपस में पूरी तरह मॅच करती थी. इस बात में कोई शक नही था के कामिनी की डाइयरी में पेपर उसे मिला था, उसपर शायरी किसी और ने नही बल्कि उसके अपने छ्होटे भाई इंदर ने लिखी थी.
रूपाली का खड़े खड़े दिमाग़ घूमने लगा और वहीं सामने रखी चेर पर बैठ गयी. जिस आदमी को वो आज तक अपने पति का हत्यारा समझ रही थी वो कोई और नही उसका अपना छ्होटा भाई था. पर सवाल ये था के कैसे? इंदर हवेली में बहुत ही कम आता जाता था और कामिनी से तो उसने कभी शायद बात ही नही की थी? तो कामिनी और उसके बीच में कुच्छ कैसे हो सकता था? और दूसरा सवाल था के अगर कामिनी का प्रेमी ही उससे रात को मिलने आता था तो उसका भाई वो आदमी कैसे हो सकता है? रूपाली का घर एक दूसरे गाओं में था जो ठाकुर के गाओं से कई घंटो की दूरी पर था? तो उसका भाई रातों रात ये सफ़र कैसे कर सकता है? कैसे ये बात सबकी और सबसे ज़्यादा रूपाली की नज़र से बच गयी के उसके अपने भाई और ननद के बीच कुच्छ चल रहा है और क्यूँ इंदर ने ये बात उसे नही बताई?
और सबसे ज़रूरी सवाल जो रूपाली के दिमाग़ में उठा वो ये था के क्या उसके भाई ने ही डर से पुरुषोत्तम का खून किया था?
काफ़ी देर तक रूपाली उस काग़ज़ के टुकड़े और सामने रखे ग्रीटिंग कार्ड को देखती रही. जब कुच्छ समझ ना आया के क्या करे तो वो उठकर अपने कमरे से बाहर निकली और नीचे बेसमेंट की और बढ़ गयी. बेसमेंट पहुँचकर उसने वहीं कोने में रखा एक भारी सा सरिया उठाया और उस बॉक्स के पास पहुँची जो वो काफ़ी दिन से खोलने की कोशिश में थी. बॉक्स पर लॉक लगा हुआ था जिसपर रूपाली ने सरिया से 2 3 बार वार किया. लॉक तो ना टूट सका पर बॉक्स की कुण्डी उखड़ गयी और लॉक के साथ नीचे की और लटक गयी. रूपाली ने बॉक्स खोला और उसे सामने वही दिखा जिसकी वो उम्मीद कर रही थी.
बॉक्स में किसी लड़की के इस्तेमाल की चीज़ें थी. कुच्छ कपड़े, परफ्यूम्स, जूते और मेक अप का समान. एक नज़र डालते ही रूपाली समझ गयी के ये सारा समान कामिनी का था क्यूंकी जिस दिन कामिनी हवेली से गयी थी उस दिन रूपाली . उसे ये सारा समान पॅक करते देखा था. रूपाली ने बॉक्स से चीज़ें बाहर निकालनी शुरू की और हर वो चीज़ जो कामिनी के साथ होनी चाहिए थी वो इस बॉक्स में थी. रूपाली एक एक करके सारी चीज़ें निकालती चली गयी और कुच्छ ही देर मे उसे बॉक्स में रखा कामिनी का पासपोर्ट और वीसा भी मिल गया. रूपाली की दिमाग़ में फ़ौरन ये सवाल उठा के अगर ये सारी चीज़ें यहाँ हैं तो रूपाली विदेश में कैसे हो सकती है और अगर वो विदेश में नही है तो कहाँ है? क्या वो उसके भाई के साथ भाग गयी थी और अब उसके भाई के साथ ही रह रही है?
रूपाली समान निकाल ही रही थी के अचानक उसे फिर हैरानी हुई. कामिनी के समान के ठीक नीचे कुच्छ और भी कपड़े थे पर उनको देखकर सॉफ अंदाज़ा हो जाता था के वो कामिनी के नही हैं. कुच्छ सलवार कमीज़ और सारी थी जो रूपाली के लिए बिल्कुल अंजान थी. वो कपड़े ऐसे थे जैसे के उसने अपने घर के नौकरों के पहने देखा और इसी से उसे पता चला के ये कपड़े कामिनी के नही हो सकते क्यूंकी कामिनी के सारे कपड़े काफ़ी महेंगे थे.अंदर से कुच्छ ब्रा निकली जिन्हें देखकर अंदाज़ा हो जाता था के ये कामिनी के नही हैं क्यूंकी कामिनी की छातियो का साइज़ ब्रा के साइज़ से बड़ा था.
रूपाली ने सारा समान बॉक्स से निकालकर ज़मीन पर फैला दिया और वहीं बैठकर समान को देखने लगी. जो 2 सवाल उसे परेशान कर रहे थे वो ये थे के कामिनी कहाँ है और बॉक्स के अंदर रखे बाकी के कपड़े किसके हैं? हवेली में सिर्फ़ 3 औरतें हुआ करती थी. वो खुद, उसकी सास और कामिनी और तीनो में से ये कपड़े किसी के नही हो सकते और ख़ास बात ये थी के इन कपड़ों को कामिनी के कपड़ों के साथ ऐसे च्छुपाकर ताले में क्यूँ रखा गया था? कामिनी अभी अपनी सोच में ही थी के बाहर से कार की आवाज़ आई. तेज वापिस आ चुका था. उसने समान वहीं बिखरा छ्चोड़ा और बेसमेंट में ताला लगाकर बड़े कमरे में पहुँची.