बुझाए ना बुझे ये प्यास compleet

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rajaarkey
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Joined: 10 Oct 2014 10:09

Re: बुझाए ना बुझे ये प्यास

Unread post by rajaarkey » 22 Dec 2014 13:18



महक इतनी सुंदर तो नही थी लेकिन उसके नाक नक्श काफ़ी तीखे थे.
5" फीट 6 की लंबाई, गोरा बदन. गोल चेहरा, ऊम्र के हिसाब से बड़ी
बड़ी चुचियाँ जो काफ़ी भरी भरी लगती थी. 45 साल की उम्र मे
फिर भी उसका बदन काफ़ी सुडौल था, गोल गोल चूतड़ जो किसी को भी
लुभा सकते थे. घुँगरले भूरे बॉल जो उसके कंधों तक आते थे
और नीली आँखों जो उसके चेहरे पर चमक पैदा कर देती थी.

उसके पति एक कन्ज़्यूमर कंपनी मे सेल्स मॅनेजर थे, और काम के
लिहाज से अक्सर टूर पर रहा करते थे. गर्मियाँ की छुट्टी ख़तम
होने वाली थी और उसका बेटा सोनू वापस अपने हॉस्टिल चले जाने वाला
था, उसके पास समय ही समय था इसीलिए शायद वो सब ख्वाशे एक
बार फिर उसके जहाँ मे उठ रही थी.

थोडी देर चॅनेल बदल बदल कर वो टीवी देखती रही फिर जब नींद
आने लगी तो उसने टीवी बंद किया और अपने कमरे मे जाकर सो गयी.

दूसरे दिन शाम को जब उसका बेटा कॉलेज के कुछ दोस्तों से मिलकर
घर आया तो उसने अपनी मा से कहा की क्या वो शनिवार की शाम को
अपने कुछ दोस्तों को घर पर एक छोटी सी पार्टी के लिए बुला सकता
है. वैसे भी उसके पति दो दिन बाद टूर पर जाने वाले थे इसलिए
उसने सोनू को इजाज़त दे दी. सोनू उसे थॅंक्स कहते हुए अपने कमरे मे
कुछ फोन करने चला गया.

शनिवार आया और घर का आँगन सोनू के दोस्तों से भरने लगा. सोनू
ने करीब 10 दोस्तों को बुलाया था जिनमे से 8 आ चुके थे, इनमे कुछ
लड़कियाँ भी थी. महक ने देखा की सभी हाशी मज़ाक करते हुए
हंस खेल रहे थे.

सब को अपने आप मे मशगूल देख महक एक कोक की बॉटल लेकर
बच्चों को मस्ती करते देखने लगी. जिस तरह लड़कियाँ लड़कों के
साथ हंस खेल रही थी, ये देख कर उसे जलन होने लगी. उसे
जिंदगी मे कभी ये मौका नही मिला था. वो एक साधारण परिवार से
थी जिन्हे लड़को की दोस्ती आक्ची नही लगती थी. फिर उसकी शादी भी
छोटी उमर मे ही हो गयी थी.

लड़कों पर उसने ख़ास नज़र नही डाली थी, लेकिन तभी एक लड़का
घर मे घुसता उसे दीखाई दिया.

"दोस्तों में आ गया हूँ अब आप पार्टी शुरू कर सकते है." उसने ज़ोर
से कहा जिससे सब को सुनाई दे सके.

"ऱाज़" सभी ज़ोर से चिल्ला पड़े और दौड़ कर उसके पास आ गये.
लड़कियाँ तो जैसे उसे देख पागल हो गयी वो सब दौड़ कर उससे
लीपटने लगी जैसे की कोई उनका बीछड़ा हुआ प्रेमी आ गया हो.

"राज?" महक मन ही मन सोचने लगी. सोनू के दोस्तों मे उसके किसी
दोस्त का नाम राज नही था, फिर कौन है ये?

महक भी उस लड़के राज को देखने लगी जो आते ही आकर्षण का केन्द्रा
बन गया था. उसने देखा की राज का बदन काफ़ी कसरती थी, चौड़े
कंधे, चौड़ा सीना और काफ़ी हॅंडसम लग रहा था. महक अपने बेटे
सोनू की और बढ़ी ये जानने के लिए की ये राज कौन है?

"मम्मी वो राज है, राज शर्मा," सोनू ने कहा, "आप भूल गयी मेरे
साथ स्कूल मे पढ़ा करता था."

"हे भगवान ये राज है, कितना बड़ा हो गया है." महक ने कहा.

राज सोनू के साथ 5थ स्ट्ड मे साथ मे पढ़ता था. और एक दो बार ही
महक की उससे मुलाकात हुई ती जब वो छुट्टी के दिन सोनू के साथ
खेलने उनके घर आया था. फिर उसके बाद सोनू ने कभी कभार ही
उसका ज़िकरा किया था. उस समय मुश्किल से उसकी लंबाई 5'फ्ट 3 होगी और
आज ये लंबा चौड़ा करीब 5'फ्ट 11 की हिएगत और काफ़ी सुंदर लगने
लग गया था. वो एक बार फिर उससे परिचय करने के लिए उसकी और
बढ़ गयी.

"हेलो राज, पहचाना मुहे?" महक ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाते हुए
कहा.

"ओह्ह हाँ म्र्स सहगल में आपको कैसे भूल सकता हूँ." कहकर राज ने
महक का हाथ अपने हाथ मे ले लिया, "कैसी है आप... सोनू अक्सर आप
के बारे मे बात करता रहता है." राज ने आँख मरते हुए उसके हाथ
को चूम लिया.

राज को सोनू की मम्मी महक हमेशा से ही आक्ची लगती आई थी. जब
भी वो सोनू के घर जाता था वो टीरची निगाहों से महक को ही
घूरा करता था. वो सुंदर है वो ये जानता था और जब लड़कियाँ उसे
प्रभावित होती थी उसे पता चल जाता था. लड़कियों पर उसके
व्यक्तित्वा का असर जल्दी ही चढ़ जाता था और यही आज महक के साथ
हो रहा था.

rajaarkey
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Re: बुझाए ना बुझे ये प्यास

Unread post by rajaarkey » 22 Dec 2014 13:19


राज ने जिस तरह से उसके हाथ को पकड़ थोड़ा दबाते हुए चूमा था
उसे विश्वास नही हो रहा था. उसके अंदाज़ ने एक बार फिर उसकी भावनाओं
को अंदर से झंझोड़ दिया था, और उसके पैर कांप उठे थे. एक
नौजवान लड़के के लिए दिल मे उठी सोच को सोच वो एक जवान लड़की की
तरह शर्मा गयी.

"में ठीक हूँ, तुम कैसे हो?" महक ने जवाब दिया और अपना चेहरा
को हाथों से छिपाते हुए दौड़ कर घर कर अंदर भाग गयी जैसे
की आँख मे कुछ गिर गया हो.

घर मे पहुंकते ही वो अपने आप को संभालने लगी. उसकी समझ मे
नही आ रहा था की जवान लड़का जो उसके बेटे की उम्र का था, उसका
दोस्त था उसपर ऐसा क्या जादू कर सकता है. ऐसा असर तो उसका अपना
पति भी उसपर नही कर पाया था जब वो पहली बार उससे मिली थी और
वो खुद जवान थी.

उसने निश्चय कर लिया की वो घर के अंदर ही रहेगी, जिससे की वो राज
के सामने ना पड़ जाए और उसकी दबी भावनाओ को फिर उभरने का मौका
मिले. अपने जज्बातों को दबाने के लिए वो टीवी देखने लगी.

थोडी देर बाद उसे प्यास लगी और वो किचन मे अपने लिए कोक लेने
गयी. उसने थोड़ा कोक एक ग्लास मे डाला और पीने लगी. कोक ख़तम
कर वो सींक के पास खड़ी हो गयी ग्लास धोने के लिए. वो खिड़की के
बाहर झाँक कर ठंडी हवा का मज़ा ले रही थी की एक अव्वाज़ ने उसे
चौंका दिया.

"जब मेने तुम्हारे हाथ को चूमा था और तुम्हे आँख मारी थी तो
तुम्हारी चूत मे सनसनी मच गयी थी ना? राज अपने बदन को उसके
बदन से चिपका कर उसके कान मे फुसफुसा रहा था.

महक उसकी इस हरकत से उछाल पड़ी और उसे अपने से परे धकेलते हुए
चिल्ला कर बोली, "तुम्हे शरम नही आती ऐसी हरकत करते
हुए,मुझसे इस तरह से बात मत करो, आख़िर तुम मुझे समझते क्या
हो? "

महक उसे बुरा भला कह कर वहाँ से भगा देना चाहती थी लेकिन
उसका दीमाग उसका साथ नही दे रहा था, दिल मे एक अजीब उथल पथल
मची हुई थी. एक बार फिर उसके पावं कमजोर हो काँपने लगे थे.

राज ने ही उसकी बात का बुरा नही माना और ना ही कोई जवाब दिया, वो
अपने आपको को उससे और चिपकते हुए उसकी गर्दन को चूमने लगा और
अपनी गरम साँसे उसके खुले ब्लाउस के बीच उसकी चुचि के दरार मे
छोड़ने लगा.

राज के होठों का स्पर्श और साथ मे उसकी गरम साँसों ने फिर महक
के बदन मे एक सनसनी मच डी. बरसों की दबी भवनाई फिर उमड़
पड़ी. उसे विश्वास नही हो रहा था की उसके निपल ब्रा मे क़ैद
ब्लाउस के अंदर तनने लगे थे.

"मुझे ऐसा लगता है की तुम्हारी चूत बरसों से प्यासी है, और
किसी मोटे लंबे लंड की तलबगार है. राज ने उसकी कमर मे हाथ डाल
उसे अपने से और चिपकते हुए कहा."

महक के समझ मे नही आ रहा था की वो क्या जवाब दे.

"जब मेने तुम्हे पहली बार छुआ था तभी में समझ गया था की
तुम एक गरम औरत हो जो जाम कर किसी से चुड़वाना चाहती हो..." राज
के आत्मविश्वास से कहे शब्दों ने महक को हैरत मे दल दिया था


rajaarkey
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Re: बुझाए ना बुझे ये प्यास

Unread post by rajaarkey » 22 Dec 2014 13:20

बुझाए ना बुझे ये प्यास--9

महक समझ रही थी की राज सही कह रहा है. हां वो उससे चुड़वाना
चाहती थी, उसका दिल तो कर रहा था की राज वहीं किचन मे उसकी
जमकर चुदाई कर उसकी बरसों की प्यास को ठंडा कर दे.

एक तरफ पत्नी धरम समाज का डर उसके दिल मे था जो कह रहा था
की वो राज को सॉफ माना कर दे, "नही ये कभी नही हो सकता तुम
ग़लत हो चलो जाओ यहाँ से..."

पर जिस्म की आग और बदन से उठती कामग्नी वो सिर्फ़ इतना ही कह
पाई..." आज नही... हम यहाँ कुछ नही कर सकते... कोई भी किसी
समय यहाँ आ सकता है....फिर कभी मौका मिला तो देखेंगे."

महक का जवाब सुनकर राज की हिम्मत और खुल गयी. वो समझ गया की
थोडी हिम्मत दीखने की ज़रूरत है और वो उसे चोद सकता है. वो
उसकी और बढ़ा और उसने उसके टॉप के उपर से उसकी कठोर चुचियों को
अपने हाथों मे पकड़ मसल्ते हुए कहा, "सब अपने आपमे मस्त है और
चुदाई कर रहे है... यहाँ अब कोई नही आएगा."

महक ने महसूस किया की राज का लंड उसकी शॉर्ट्स के उपर से उसकी गॅंड
की दरार पर ठोकर मार रहा था. उसके लंड के स्पर्श ने ही उसके
अंदर की कामग्नी को और बढ़का दिया और उसकी चूत और गीली होने
लगी और वो सिसक पड़ी, "ऊईइ मा ओह."

तुम्हे अक्चा लग रहा है ना? इस तरह चुचियों को मसलवाने मे
मज़ा आआटा है ना तुम्हे.." राज ने उसकी चुचियों को और जोरों से
मसल्ते हुए कहा.

"हां भींच दो मेरी चुचियों को ऑश मसल डालो इन्हे." महक
जोरों से सिसक पड़ी.

"तुम्हारे निपल पर कोई चिकोटी काटता है तो तुम्हे और अच्छा लगता
है ना? राज ने उसके टॉप के उपर से उसके एक निपल को अपनी उंगली और
अंगूठे मे ले जोरों से भींच दिया.

महक की समझ मे नही आया की वो क्या जवाब दिया. आज तक उसने ये
सब नही किया या करवाया था..... ना ही उसके पति ने इस तरह की
बातें की थी उसके साथ... एक अजीब सी सनसनी मची थी उसके
शरीर मे.... वो सिसकते हुए सिर्फ़ इतना ही कह पाई.. "श हाआँ
मुझे बहोट आCछा लगता है.. काट दो मेरे निपल भींच दो
इन्हे...."

राज के हाथों का जादू उसकी चुचियों से होते हुए ठीक उसकी चूत
पर असर कर रहा था और वो चाह रही थी की वो रुके नही बस उसकी
चुचियों को इसी तरह मसलता जाए.

राज उसकी चुचियों को भींच रहा था उसके निपल पर चिकोटी काट
रहा था और महक अपने चूतड़ पीछे कर उसके लंड पर रगड़ने
लगी थी.

राज ने उसे कमर से पकड़ अपनी तरफ थोड़ा खींचा और एक हाथ से
उसकी चुचि को मसल्ते हुए अपना दूसरे हाथ सामने से उसकी जांघों के
बीच रख दिया. महक ने अपनी टाँग फैला दी जिससे राज का हाथ
आसानी से उसकी चूत तक पहुँच सके.

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