प्यार हो तो ऐसा compleet

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rajaarkey
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Re: प्यार हो तो ऐसा

Unread post by rajaarkey » 03 Nov 2014 06:37



धीरज और नीरज प्रेम को ऐसे रूप में देख कर बहुत हैरान हैं… पर वो प्रेम से कुछ पूछने की हिम्मत नही करते.

नीरज, धीरे से धीरज से पूछता है, “स्वामी जी लड़की के साथ…कुछ अजीब नही है ?”

“चुप कर स्वामी जी सुन लेंगे तो बहुत डाँट पड़ेगी” – धीरज ने नीरज को धीरे से कहा


“क्या बात है धीरज ?” --- प्रेम ने पूछा


“कुछ नही स्वामी जी…. बस यू ही” --- धीरज ने जवाब दिया


कोई 30 मिनूट में वो सभी खेतो से निकल कर गाँव में साधना के घर पहुँच जाते हैं


साधना दौड़ कर अपनी मा के मृत शरीर से लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगती है. सभी बहुत भावुक अवस्था में चुपचाप देखते रहते हैं. गाँव के दूसरे लोग भी धीरे-धीरे उनके घर की तरफ आने लगते हैं.


गुलाब चंद भाग कर प्रेम के पास आता है और पूछता है, “बेटा… सरिता कहा है ?”


“जी अभी वो तो नही पता….. लेकिन हाँ वो ठाकुर की हवेली की क़ैद से आज़ाद हो चुकी है…आप फिकर ना करें सब कुछ ठीक हो जाएगा”


“क्या ठीक हो जाएगा बेटा… मदन सुबह से गायब है…बिम्ला चल बसी और सरिता का कुछ पता नही… अब और क्या ठीक होगा ?” – गुलाब चंद इतना कह कर अपना सर पकड़ कर बैठ जाता है


“जी मैं समझ सकता हूँ….भीमा सरिता को हवेली से छुड़ा कर अपने साथ ले गया है. और मुझे यकीन है कि वो सुरक्षित होगी” ---- प्रेम ने गुलाब चंद से कहा


साधना तभी अपनी मा के शरीर को छ्चोड़ कर प्रेम के पास आती है और अपने आँसू पोंछते हुवे कहती है, “भीमा दीदी को लेकर हमारे खेत की तरफ ही आ रहा था ना.. मुझे डर लग रहा है प्रेम.”


“चिंता मत करो साधना मैं वापिस खेतो में ही जा रहा हूँ…मैं बस तुम्हे यहा तक छ्चोड़ने आया था” --- प्रेम ने कहा



“प्रेम मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा” ---- गोविंद ने प्रेम से कहा


साधना गोविंद की तरफ देखती है.

प्रेम उसका परिचय देता है, “साधना ये गोविंद है…. मेरा ख़ास मित्र”

वो ये बाते कर ही रहे थे कि साधना एक दम से बोलती है, “अरे !! दीदी तो वो आ रही है”


प्रेम मूड कर देखता है

सरिता लड़खड़ाती हुई भीमा के साथ घर की तरफ आ रही थी.


साधना भाग कर सरिता से लिपट जाती है और कहती है, “दीदी तुम ठीक तो हो”

“बस जींदा हूँ…ठीक तो क्या होना था” ---सरिता ने कहा


साधना, सरिता को अपनी मा के बारे में कुछ नही बता पाती. सरिता खुद अंदर आ कर अपनी मा के मृत श्रीर को देखती है और साधना से रोते हुवे पूछती है, “क्या हुवा मा को ?”


साधना फिर से रोने लगती है और अपनी दीदी को गले लगा लेती है. सरिता रोते, बीलखते हुवे अपनी मा के मृत शरीर पर गिर जाती है.


सभी लोग फिर से भावुक हो जाते हैं.


“तुम यही रूको मैं मंदिर हो कर आता हूँ” प्रेम ने गोविंद से कहा और वाहा से चल दिया


साधना प्रेम को जाते हुवे देखती है और दौड़ कर उसके पास आती है, “तुम अकेले कहा जा रहे हो प्रेम ?”

rajaarkey
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Re: प्यार हो तो ऐसा

Unread post by rajaarkey » 03 Nov 2014 06:38



“मंदिर जा रहा हूँ साधना…. पिता जी से मिल आउ, वरना वो कहेंगे की इतने दीनो बाद वापिस आया और आ कर देखा भी नही” --- प्रेम ने कहा


“ठीक है… पर अब खेत में मत जाना”


“एक बात बताओ साधना ?”


“क्या खेत में पहले भी कभी ऐसा हुवा है ?”

“नही प्रेम.. पहले तो कभी ऐसा नही हुवा ?”


“क्या मदन पहले भी कभी यू बिना बताए कही गया है ?”


“नही प्रेम.. भैया कभी ऐसे बिना बताए कही नही गये… मुझे बहुत डर लग रहा है… कही भैया किसी मुसीबत में ना हो ?”


“तुम चिंता मत करो… में देखता हूँ कि क्या चक्कर है ?”

“हां पर तुम अब रात को खेत में मत जाना”


“नही अभी मैं मंदिर जा रहा हूँ.. फिर घर जाउन्गा… सभी से एक बार मिल लूँ. सुबह देखेंगे कि क्या चक्कर है इस खेत का”


“प्रेम वो ठाकुर के आदमी दुबारा आए तो ?”


“गोविंद यही है साधना और धीरज और नीरज भी यही हैं. वैसे गोविंद के होते किसी बात की चिंता नही है. मैं भी जल्दी ही आ जाउन्गा”


“ठीक है प्रेम अपना ख्याल रखना”


प्रेम मंदिर की तरफ चल पड़ता है.





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सतपुरा के जंगल में रात के वक्त किसी इंसान का होना अजीब सी बात है. पर जब महोबट से भरे दिल जंगल में फँस जायें तो क्या कर सकते हैं


“ये हम किस मुसीबत में फँस गये मदन ?”


“घबराओ मत वर्षा.. भगवान जो करते हैं आछे के लिए करते हैं”


“क्या अछा है इसमे… सुबह से हम भूके प्यासे भटक रहे हैं… पता नही हम कहा हैं और कहा जा रहे हैं”



“ऐसे दिल छोटा करने से कुछ हाँसिल नही होगा वर्षा.. वैसे भी हमे घर से तो भागना ही था”


“पर अचानक तो नही… और वो भी इस जंगल के रास्ते तो हरगिज़ नही, पता है ना तुम्हे ये जंगल कितना भयानक है”


“रूको” – मदन ने कहा

“क्या हुवा अब ?”


“ये पेड़ ठीक रहेगा.. चलो रात इस पेड़ पर बीताते हैं… सुबह देखेंगे क्या करना है ?”


“क्या ? रात हम इस पेड़ पर बीताएँगे” – वर्षा हैरानी में पूछती है.

rajaarkey
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Re: प्यार हो तो ऐसा

Unread post by rajaarkey » 03 Nov 2014 06:39



हवेली में रहने वाली वर्षा के लिए सब कुछ बहुत अजीब है. वो बहुत परेशान और डरी हुई है. पर प्यार की खातिर सब कुछ किए जा रही है.



“हमे गाँव की तरफ भागना चाहिए था.. हम क्यों इस जंगल की तरफ आए कल ?” वर्षा ने कहा


“अब आ गये तो आ गये… ये बाते छ्चोड़ो और जल्दी इस पेड़ पर चढ़ो… कोई जुंगली जानवर आ गया तो हम दोनो की चटनी बना कर खा जाएगा”


“मुझे डराव मत मदन… मैं पहले से ही बहुत डरी हुई हूँ”

“अछा ठीक है.. अब जल्दी से चढ़ो”


वर्षा जैसे-तैसे पेड़ पर चढ़ जाती है. उसके चढ़ने के बाद मदन भी पेड़ पर चढ़ जाता है.



दोनो पेड़ के उपर एक मोटे से तने पर बैठ जाते हैं और चैन की साँस लेते हैं




“वो दोनो कहा होंगे मदन ?”


“पता नही…. थे तो वो हमारे आगे लेकिन जंगल में घुसते ही वो जाने किधर चले गये”


“ये तो मुझे भी पता है… मैं पूछ रही हूँ कि वो अब कहा हो सकते हैं”


“क्या पता शायद वो दोनो भी हमारी तरह जंगल में भटक रहे होंगे. इस जंगल से निकलना इतना आसान नही है”


“तो हम कैसे निकलेंगे यहा से ?”


“निकलेंगे, ज़रूर निकलेंगे… मैने कहा आसान नही है…. पर नामुमकिन भी तो नही है… मैं हूँ ना तुम्हारे साथ”



“मुझे भूक लगी है मदन?”


“अभी रात में कुछ मिलना मुस्किल है… मैं नीचे उतर कर देखता हूँ.. हो सकता है कोई फल का पेड़ मिल जाए”


“नही नही तुम अब नीचे मत जाओ… मुझे इतनी भी भूक नही लगी”


“झूट बोल रही हो हैं ना… सुबह से कुछ नही खाया और कहती हो इतनी भी भूक नही लगी. मैने रास्ते भर चारो तरफ देखा पर कोई फल का पेड़ नही मिला… एक बार यहा भी देख लेता हूँ ?”


“वर्षा मदन की और देख कर रोने लगती है… नही कही मत जाओ मुझे सच में भूक नही है”



मदन आगे बढ़ कर वर्षा के चेहरे को हाथो में लेकर उसके माथे को चूम लेता है और कहता है, “तुम चिंता मत करो… सब ठीक हो जाएगा… कल सुबह सबसे पहले तुम्हारे खाने का इंतज़ाम करूँगा”

“पर मदन वो खेत में क्या था ?”


“क्या पता… मैने खुद ऐसा पहली बार देखा है”


“वो दोनो ठीक तो होंगे ना ?”

“हाँ-हाँ ठीक होंगे… वो भी तो हमारे साथ जंगल में घुसे थे”


“इस जंगल के बारे में बहुत बुरी-बुरी अफवाह है मदन”


“ये सब छ्चोड़ो वर्षा और हमारी-तुम्हारी बात करो”


“तुम्हे ऐसे में भी प्यार सूझ रहा है ?”


“दिल में प्यार जींदा रखो वर्षा… हमारे पास यही तो सबसे अनमोल ताक़त है”

मदन जब वर्षा से कहता है ‘दिल में प्यार जींदा रखो वर्षा… हमारे पास यही तो सबसे अनमोल ताक़त है’ तो वर्षा मायूसी भरे शब्दो में मदन से कहती है, “क्या ये प्यार की ताक़त हमे इस भयानक जंगल से निकाल पाएगी ?”

वर्षा जीवन की वास्तविकता को देख कर थोड़ा घबरा रही है. अभी तक उसने बस हवेली की जींदगी देखती थी. उस जींदगी में आराम ही आराम था. एक आम आदमी की जींदगी का उशे पता ही नही था. अपने आप को जंगल के बीच ऐसे हालात में पा कर वो दुखी और मायूस है. शायद ये स्वाभाविक भी है


मदन शायद उसके दिल की बात समझ जाता है और कहता है, “तुम्हारे लिए तो ये सब बहुत अजीब है.. मैं समझ सकता हूँ. पर कल जंगल में घुसने के अलावा हमारे पास और कोई चारा नही था. मैं सिर्फ़ तुम्हारे लिए खेत से भागा, वरना मैं अपने खेत को छ्चोड़ कर हरगिज़ कहीं नही जाता”


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