रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रतन को गुस्सा आ गया और वो सीधा थाने जा कर उनके खिलाफ रपट लिखा आया. मगर हुया क्या. अगले दिन हमने देखा की थानेदार की महफ़िल दमले के साथ जमी है. सब एक ढाबे के बाहर बैठे शराब पी रहे हैं. ये सब रतन ने देखा. रतन को देखते ही दमले ने मुस्कुरा कर कहा, “ किसे रपट लिखवाएगा भोंसले को? अबे भद्वे भोंसले मेरा पक्का यार है यार क्या समझे. अगर ज़्यादा उच्छल कूद की तो बस्ती मे जीना हराम कर दूँगा.”
उसकी धमकी सुन कर रतन डर कर चुप चाप घर चला आया. उसने अगले दिन थाने जाकर अपनी शिकायत खारिज कर दी. और हम सबको हिदायत दी कि हम उसके खिलाफ कोई शिकायत ना करें. बल्कि जितना हो सके अपने को बचा कर रखें.
अगले दो हफ्ते साब ठीक चलता रहा. धीरे धीरे दमले के बर्ताव मे बदलाव दिखा. हम भी कुच्छ आश्वस्त होने लगे. वो रतन को बुला कर उसके साथ बातें करता और मेरी ओर भूल कर भी आँखें उठा कर नही देखता. हमे समझ मे नही आ रहा था उसमे अचानक आए इस तरह के बर्ताव की वजह क्या थी.
मैने कई बार रतन को दमले की तरफ से सावधान रहने की हिदायत दी लेकिन मैने देखा की मेरा कहा ज़्यादा असर नही छ्चोड़ पा रहा है. साँप अपने जहरीले दाँत कितने दिन तक छिपा कर रख सकता है. बहुत जल्दी ही उसकी असलियत सामने आ गयी.
दो हफ्ते बाद आई होली. मैं तो पहले से ही कुच्छ शंकित थी. मगर रतन पूरी तरह दमले की तरफ से आश्वस्त था. उस दिन सुबह सवेरे दमले आकर रतन को बुला कर ले गया. घंटे भर जब वो वापस आए तो रतन नशे मे धुत था. वो लड़खड़ते हुए घर लौटा. पीछे पीछे दमले की पूरी टोली थी. वो सब हल्ला करते और नाचते हुए साथ चल रहे थे. कुच्छ कुच्छ देर बाद “बुरा ना मानो होली है” की आवाज़ें लगा रहे थे. रतन उनके बीच लड़खड़ते कदमो से चल रहा था.
मैं दरवाजा नही खोलना चाहती थी. सास ससुर ने भी मुझे दरवाजा खोलने से मना कर दिया. मगर रतन को दरवाजे पर लुढ़कते देख कर मैं अपने आप को नही रोक सकी. मैने दरवाजा खोल दिया और रतन को सम्हलने की कोशिश करने लगी.
“ क्या हुआ?..... आअप…?” मैं उन्हे सम्हाल रही थी.
“ इसने कुच्छ ज़्यादा चढ़ा ली.” दमले गंदी हँसी हंसता हुया बोला. मैने झटक कर गुस्से से जलती निगाहों से उसे देखा. मगर उस पर मेरे गुस्से का कोई असर नही पड़ा था.
“भाभी जी ऐसी भी क्या नाराज़गी है हम देवरों से. आज तो दुश्मन भी गले मिलते हैं फिर हम तो आपके देवर ठहरे. हमसे होली नही खेलोगी.”
“ देखो मुझे ये सब पसंद नही है. मुझे हाथ भी मत लगाना.” मैने उनको झिड़कते हुए कहा. मगर किसी डाँट या झिड़की का असर तो आदमियों पर होता है वो तो पूरे जानवर थे जानवर.
“ अरे अपनी भाभी तो नाराज़ हो रही है. हम तो अपनी सुंदर भाभी से होली खेलने आए है और ये हमे ऐसे दुतकार रही है मानो हम गली के कुत्ते हों. अरे थाम तो ज़रा इसे. आज अगर इसके साथ होली नही खेली तो लानत है ऐसी दादागिरी से.” दमले मेरे विरोध से नाराज़ हो गया था.
एक ने मुझे पीछे से पकड़ कर ज़मीन से उठा लिया और घर के अंदर ले आए. फिर वो आदमी मुझे पीछे से पकड़ कर खड़ा हो गया. मेरी दोनो बाँहें उसने अपने बाजुओं से थाम रखी थी जिससे मेरी ओर से कोई ग़लत हरकत ना हो सके. मेरी सारी का पल्लू मेरे सीने पर से हट कर ज़मीन पर लोट रहा था. मैं ब्लाउस मे अपने मोटे मोटे उरजों को छिपाये खड़ी थी.
दमले हंसते हुए तसल्ली से चलता हुआ मेरे सामने आया. उसने अपनी जेब से एक बॉटल निकाली और उसमे से लाल गाढ़ा रंग निकाल कर अपने दोनो हाथों पर मला.
“ इस लाल रंग मे तेरा रूप और खिल उठेगा.”
मैं चुपचाप उसकी हरकतों को देख रही थी. मेरे सास ससुर मेरे साथ होती ये ज़बरदस्ती डर से चुपचाप खड़े देख रहे थे. मेरे ससुर ने एक बार उनका विरोध किया तो एक ने जेब से एक लंबा सा चाकू निकाल लिया. जिसे देख कर मेरे ससुर जी ने अपने होंठ सी लिए. मेरे पति देव मेरे पास ज़मीन पर बैठे मुझे तुकर तुकर देख रहे थे. नशे की अधिकता की वजह से उनका दिमाग़ काम नही कर रहा था और अगर काम भी कर रहा हो तो भी उनका जिस्म साथ नही दे रहा था.
दमले ने सामने आकर अपने दोनो हाथों मे लाल रंग को अच्छि तरह मला फिर मुझे अपनी दोनो हथेलिया खोल कर दिखाया. फिर उसने मेरे एक गाल पर अपने होंठ रख कर एक बार चूमा फिर अपने रंगे हुए हाथों से मेरे पूरे चेहरे को अच्छे से रंग दिया. सब हंस रहे थे. मैं कसमसा रही थी. मेरा पूरा चेहरा लाल हो गया था.
फिर उसने अपने दोनो हाथों को वापस रंग कर मेरे दोनो हाथों को रंगा.
“क्या चिकना माल है यारों. ऐसा लग रहा किसी मक्खन की डली पर हाथ फिरा रहा हूँ. रतन तू साला बहुत किस्मेत वाला है.” कहकर वो मेरे नंगे चिकने पेट पर रंग लगाने लगा. पूरे पेट पर अपने खुरदुरे हाथों को फेर रहा था. जब पेट पूरा रंग दिया तो मेरी पीठ की बारी आई. मेरा जो जो अंग कपड़ों से बाहर था सबको उसने लाल रंग मे रंग दिया. मैं पीछे वाले आदमी की पकड़ मे मचल रही थी. मगर उसके बंधन से अपने आपको छुड़ाना मुश्किल लग रहा थ.दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः............
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -20
गाटांक से आगे...
“ बहुत दिनो से इच्छा थी की तेरे साथ मैं देवर भाभी वाली होली खेलूँ मगर मौका ही नही मिल रहा था. आज मैं अपने मन की करके ही रहूँगा. ओये करीम, कस के पकड़ कर रख साली को. बहुत नखरे दिखा रही है आज तो इसके साथ जम कर होली खेलेंगे. फिर वो आज के बाद कभी हमे प्यार करने से नही रोका करेगी. ” मैने अपने आप को बचाने के लिए उस आदमी की गिरफ़्त मे एक आख़िरी कोशिश की मगर मेरा जिस्म उसकी बाँहों मे मचल कर ही रह गया.
“अबे रतन तेरी बीवी बड़ी केटीली चीज़ है. उफ़फ्फ़ कहाँ से लाया है रे इसे उठाकर?”उसने रतन की ओर देख कर भद्दी तरह से आँख मारी. मेरे ससुर जी ने मुझे बचाने के लिए दमले पर झपते मगर उन्हे बीच मे ही थाम लिया गया. दो आदमियों ने उन्हे थाम कर पहले घूँसो और लातों से उनको मारा फिर जब वो निढाल हो गये तो पास पड़ी एक कुर्सी पर धक्का दिया. ससुरजी लड़खड़ा कर कुर्सी पर गिर गये. तभी एक आदमी कहीं से एक नाइलॉन की रस्सी ढूँढ लाया. उन लोगों ने सास और ससुर को कुर्सियों पर बिठा कर उनके हाथ पैर बाँध दिए. उसके बाद रत्तन के हाथ पैर भी आपस मे बाँध दिए. उनके मुँह मे कपड़े ठूंस दिए जिससे वो चिल्ला नही सकें. मैं उनका मकसद समझ कर छ्छूटने के लिए च्चटपटा रही थी मगर मुझे उस आदमी ने इतनी बुरी तरह जाकड़ रखा था कि मेरी एक नही चल रही थी. मैं समझ गयी थी कि आज मेरा इनके हाथों से बच पाना ना मुमकिन था.
जब तक ये सब होता रहा तब तक मुझे रंगना रुका रहा. एक बार जब तीनो को जाकड़ कर बाँध दिया गया तो दमले वापस मेरी ओर घूमा. उसकी आँखों मे वासना की आग जल रही थी. वो मेरे पूरे जिस्म को निहार रहा था.
“भाभी जी अपने घर वालों को समझाती क्यों नही हो. हम कितने शौक से आपके साथ होली खेलने आए हैं और ये हैं की हमे रोकने मे लगे हुए हैं.” दमले भद्दी तरह से हंसते हुए कहा. वो अपनी उंगलियों से मेरे नाज़ुक होंठों को मसल रहा था. मैं अपने दाँतों से उसकी उंगलियों को काट खाना चाहती थी मगर वो मेरा इरादा भाँप गया और मेरे मुँह खोलते ही उसने अपनी उंगलियाँ हटा ली.
“मेरी प्यारी रजनी भाभी अब तक तो हम अपरिचितों कि तरह होली खेल रहे थे अब हम देवर भाभी की तरह गरम होली खेलेंगे. बुरा ना मानो…….”
“ होली है….” बाकी मुस्टांडों ने नारा लगाया.
इस बार उसने अपने हाथों मे वापस ढेर सारा रंग लगाया. फिर हंसते हुए मेरी ओर बढ़ा. मैं उससे बचने के चक्कर मे अपने बदन को सिकोड़ने लगी. मगर पीछे से उस आदमी की जाकड़ इतनी मजबूत थी कि लाख कोशिशों के बाद भी मैं अपने आप को बचाने मे सफल नही हो पा रही थी.
उसने अपने लाल हाथ मुझे दिखाते हुए मेरे ब्लाउस के नीचे से अंदर डाल दिए. मैं च्चटपटा उठी मगर उसे तो मेरी कसमसाहट मे भी मज़ा ही आ रहा था.
“छ्चोड़ दे मुझे कुत्ते….छ्चोड़ दे. नही तो मैं शोर मचा मचा कर पूरी बस्ती को इकट्ठा कर लूँगी.” मैं चीख रही थी.
“ चिल्ला जितना चिल्ला सकती है चिल्ला. तेरे बचाव के लिए कोई नही आने वाला.”
तभी एक ने आगे बढ़ कर एक कपड़ा मेरे खुले मुँह मे ठूंस दिया. अब मुँह से “गूऊँ गून” के अलावा कोई आवाज़ नही निकाल पा रही थी.
“एम्म कैसे मचल रही है. लेखु आज तो मज़ा ही आ गया होली खेलने मे. मा कसम ऐसी केटीली चीज़ के साथ होली खेलने की इच्छा कितने दिनो से थी. “ कह कर उसने मेरी ब्रा के अंदर हाथ डाल कर मेरे मम्मो को मसल्ते हुए कहा, “ भाई लोगों बड़े ही मजेदार मम्मे हैं साली के देख क्या साइज़ है. अभी इतने शानदार हैं तो जब इनमे दूध आएगा तो क्या शान दार लगेंगे. बिल्कुल जापानी गुब्बारों की तरह.”
वो मेरे स्तनो को काफ़ी ज़ोर ज़ोर से मसल्ने लगा. मेरे सास ससुर ने आँखें बंद कर ली थी और रतन अपने आप को रस्सियों से छुड़ाने के लिए कसमसा रहा था.
“ उस्ताद अकेले अकेले मज़े ले रहे हो. हम यारों का भी तो कुच्छ ख्याल रखो. हमे देखने तो दो नज़रों को.” एक ने दमले को कुरेदा.
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
“ अच्छा ? मैं तो भूल ही गया था.” फिर मेरी ओर देख कर,” माफ़ करना रजनी इनको भी दिखाओ हमारा होली मिलन. सालों दूर से ही देखना. किसी ने आगे बढ़ने की कोशिश की तो भेजे मे सुराख कर दूँगा. पहले मुझे निबट लेने दो फिर तो ये तुम लोगों को ना नही करेगी.”
उसने मेरे ब्लाउस के गिरेबान को अपने दोनो हाथों से पकड़ कर ज़ोर से झटका दिया और मेरे ब्लाउस के बटन्स टूट कर इधर उधर हवा मे उड़ गये. मेरा ब्लाउस सामने से दो टुकड़ों मे बँट गया था. उसने मेरे ब्लाउस को मेरे बदन से अलग करना चाहा मगर मैं जी जान से उसे रोक रही थी. मेरा विरोध देख कर उसने मेरे ब्लाउस को फाड़ कर हटा दिया.
“ वाह वाह गुरु….क्या मस्त बोबे हैं साली के. एक दम किसी हेरोयिन की तरह कसे हुए दिख रहे हैं.” एक ने कहा. मैं अपने हाथों से किसी तरह अपने योवनो को लोगों की भूखी नज़र से छिपाने की कोशिश कर रही थी. मगर एक ओर से धकति तो दूसरी ओर से छलक जाते. साइज़ बड़े होने का नुकसान खल रहा था. मैं झुक कर अपने आप को सिकोड भी नही पा रही थी क्योंकि उस आदमी मुझे सख्ती से पीछे से थाम रखा था.
“ हाहाहा…तेरा उस्ताद ऐसे ही नही रिस्क लिया करता. माल बढ़िया हो तो जान पर भी खेल जाने को दिल करता है.” दमले ने अपने दोनो हाथों मे एक शीशी से हरा रंग उधेला. उसे पूरी तरह अपनी हथेलियों पर फैलाने के बाद उसने अपने पीछे वाले को इशारा किया. उस आदमी ने मेरे दोनो बाजुओं को पीछे से पकड़ लिए. अब मेरे दोनो वक्ष एक दम सामने थे बिना किसी लुकाव ढकाव के. उसने अपनी एक एक हथेली मेरे एक एक स्तन पर रख दी. दो पल वैसे ही रखे रहने के बाद उन्हे वापस पीछे खींच लिया. मैने देखा की मेरे दोनो स्तनो पर निपल्स के चारों ओर उसकी हथेली और पाँचों उंगलियाँ छपि हुई थी.
“ वाआह उस्ताद क्या लग रही है अब.” सब मेरी मजबूरी पर हंस रहे थे और मेरे घर वाले अपनी बेबसी पर आँसू बहाने के अलावा कुच्छ नही कर पा रहे थे.
उसने अब मेरे दोनो स्तनो को वापस थाम लिया और पूरे स्तनो को रंगने लगे. मैने झुक का अपना बचाव करने की काफ़ी कोशिश की मगर पीछे से पकड़े आदमी ने मेरी एक नही चलने दी. उसने मसल मसल कर पूरे स्तन पर हरा रंग लगा दिया. मैं पीछे वाले के बाहों मे जकड़ी हुई च्चटपटा रही थी.
“ देख ऱत्तन तेरी बीवी क्या लग रही है. मानो किसी महान कलाकार ने पैंटिंग किया है इसके बदन पर….हाहाहा” दमले हमारी मजबूरी पर हंस रहा था.
“ बॉस. उपर का काम तो ख़तम हो गया है. अब नीचे भी तो रंग दो.” एक ने हंसते हुए कहा. मैं ये सुनकर ही तो फड़फदा उठी. ससुर जी ये सुनते ही अपने आप को नही रोक पाए और अपने बंधानो को खोलने की कोशिश मे मचल उठे. बगल वाले आदमी ने एक जोरदार झापड़ उनके गाल पर मारा. थप्पड़ इतना तेज था कि होंठ से खून निकल गया और वो चकरा कर वापस धम से कुर्सी पर पसर गये.
“कामीनो छ्चोड़ दो मेरी बहू को और मेरे बेटे को. तुम्हे जो चाहिए ले जाओ मगर हमारी इज़्ज़त से मत खेलो” सास भी उनसे गिड़गिदने लगी तो करीम ने आगे बढ़ कर उन दोनो के मुँह मे कपड़ा ठूंस दिया.
दमले वापस मेरी ओर घूमा और मेरे कमर मे लिपटी सारी के प्लीट्स पेटिकोट से खींच कर निकाल लिए और सारी को मेरे बदन से अलग कर दिया. अब मेरे बदन पर सिर्फ़ एक पुरानी सी सफेद पेटिकोट थी. नीचे मैने कुच्छ नही पहन रखा था. घर के अंदर पॅंटी की मैने कभी ज़रूरत ही नही महसूस की मगर आज लग रहा था कि काश मैं ढेर सारे कपड़ों मे लिपटी होती और ये गुंडे उन्हे हटाते हटाते थक जाते.
उसने मेरे पेटिकोट के सामने लटक रही उसकी डोर को अपनी उंगलियों से पकड़ा.
“प्लीईएज…….मुझे इतना जॅलील मत करो……..प्लीयज मुझीई चचोड़ दूऊ……..” सारे गुंडे मेरी बेबसी पर हंस रहे थे और मैं उनके सामने गिड़गिदा रही थी. मगर मेरी मिन्नतों से किसी का भी मन नही पासीजा. मैने अपनी आँखें सख्ती से बंद कर ली, ” प्लीएज…इस तरह मेरी इज़्ज़त की धज्जियाँ मत उड़ाओ. मुझ पर रहम करो मेरे सास ससुर के सामने मुझीई नंगा मत करूऊ. मैं हाथ जोड़तिीई हूऊं तुम लोगों सीई”
लेकिन भूखे भेड़ियों का मन किसी की मिन्नतों से कभी पासीजता है भला. और उसने मेरे पेटिकोट की डोर को खींच दिया. पेटिकोट को कमर पर सम्हालने वाली इकलौती गाँठ खुल कर ढीली हो गयी. मैने शर्म से अपनी आँखें बंद कर रखी थी. मेरे घर वालों का भी यही हाल था. मैं अब इन सड़क छाप गुण्डों के सामने पूरी तरह नंगी होने जा रही थी. दमले ने मेरे ढीले हो चुके पेटिकोट को खींच कर नीचे कर दिया. मेरा पेटिकोट टाँगों पर से सर सरता हुआ ज़मीन पर गिर गया. क्रमशः............