इस आसन में मेरा चेहरा उनकी चिकनी मांसल पीठ पर दबा हुआ था और मौके का फ़ायदा उठा कर मैंने उनकी उस मस्त पीठ को खूब चुम्मा और चाटा उधर मौसी ने भी मन भर कर उनका लंड चूसा आख़िर जब सब पिक्चर खतम हो गये तो मौसाजी उठाकर एक दीवाल से सट कर खड़े हो गये और खड़े खड़े ही मुझसे उनकी गान्ड मारने को कहा इस आसान में ऐसा मज़ा आया कि कह नहीं सकता मैंने उन्हें दीवाल से सटाकर घचा घच चोद डाला
इसके बाद मेरी गान्ड मारने का कार्यक्रम फिर शुरू हो गया उस रात तो मानों वे पागल हो गये थे मौसी तो थक कर कुछ देर बाद सो गयी थी पर मौसाजी पर तो नशा सा सवार था बड़ी बेरहमी से रात भर उन्होंने मेरी गान्ड मारी मुझे काफ़ी दर्द भी हो रहा था पर उसकी परवाह ना करके वे रात भर मुझपर सांड़ जैसे चढे रहे और चोदते रहे
इस तरह मरवा मरवा कर मेरी गान्ड नरम होकर काफ़ी खुल गयी आईने में जब अंकल ने मुझे मेरी गान्ड दिखाई तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि यहा वही गुदा है सकरे भूरे छेद के बजाय अब एक गुलाबी बड़ा छेद दिखता था और उसके थोड़े पपोटे से निकल कर लटक आए थे, बिलकुल जैसे गान्ड ना हो, चुदी हुई चुनमूनियाँ हो { दोस्तो एक बार फिर याद दिलवा दूं कि यहाँ मैं चूत को चुनमूनियाँ कह रहा हूँ आपका दोस्त राज शर्मा } अब मुझे ज़रा भी दर्द नहीं होता था और मैं ऐसे मरवाता था जैसे औरतें आसानी से चुदवाती हैं मेरा आनंद इससे बढ़ गया पर अंकल थोड़े उदास हो गये थे उन्हें मेरी टाइट किशोर गान्ड मारना बहुत अच्छा लगता था
ख़ास कर जब मुझे थोड़ा दर्द होता था तब उन्हें बहुत मज़ा आता था उनके अनुसार पुरुष पुरुष संभोग में गुदा में थोड़ा दर्द हो तो सोने में सुहागा हो जाता है दौरे पर जाते समय वे एक महँगी क्रीम ले आए और बोले कि मैं वह अपनी गुदा मे लगा लूँ उससे मेरा गुदा फिर टाइट हो जाएगा और वापस आकर फिर मेरा कौमार्य भंग करने में उन्हें बड़ा आनंद आएगा
अंकल के दौरे पर जाने के बाद मौसी ने मुझे दो दिन पूरा आराम करने को कहा खुद भी उसने आराम किया और सिवाय कुछ चुंबनो के, हमने दो दिन कामकर्म को पूरी छुट्टी दे दी दो दिन बाद जब हमने पूरी वासना से फिर रति शुरू की तो पहला काम मैंने यह किया कि मौसी के पीछे पड गया कि वह अंकल जैसे ही मुझे भी मूत पिलाए
मौसी का गुलाम compleet
Re: मौसी का गुलाम
पहले तो वह मान नहीं रही थी और नखरा कर रही थी कि ऐसा गंदा काम मुझ जैसे छोटे बच्चे के साथ वह कैसे कर सकती है पर मैंने भी इतनी ज़िद की और बिलकुल बाल हठ पर उतर आया कि आख़िर उसे मानना पड़ा मैं जानता था कि मन ही मन वह भी इस काम को करने के लिए उत्तेजित थी अपनी सग़ी बड़ी बहन के बेटे के मुँह में मूतने की कल्पना उसे बहुत मादक लगी होगी
आख़िर वह मान गयी और हम बाथरूम में गये मैं ज़मीन पर मुँह खोल कर लेट गया मौसी उकड़ूम होकर मेरे मुँह पर बैठ गई उसकी चुनमूनियाँ बस दो इंच उपर मेरे मुँह पर थी और उसका ज़रा सा लाल मूत्रछिद्र मुझे सॉफ दिख रहा था जब वह मूती तो उस खुले छिद्र में से निकलती रुपहली धार मुझे ऐसी लगी कि जैसे अमृत की धार हो
मेरे मुँह में वह खारा गरमा गरम शरबत गया और मैं मस्त हो गया विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरी प्यारी मौसी, मेरी माँ की सग़ी छोटी बहन मेरे मुँह में मूत रही है मैंने प्यासे की तरह उस अमृत का पान किया और एक बूँद भी छलकने नहीं दी उसके मूत्र के प्रति मेरी यह आस्था देखकर उसे भी बड़ा अच्छा लगा
उसके बाद तो मुझे मौसी का मूत पीने की आदत लग गयी अब मुझे समझ में आने लगा था कि क्यों मौसाजी उसके पीछे दीवाने थे मैंने पानी पीना करीब करीब बंद ही कर दिया जब प्यास लगती, ज़िद करके मौसी को खींच कर बाथरूम ले जाता और वह मेरे मुँह में मूत देती मौसी को भी इसमें बड़ा मज़ा आता था पर बार बार बाथरूम जाने में उसे बड़ी कोफ़्त होती थी इसलिए उसने मुझे बाथरूम ना जाकर कहीं भी उसका मूत पी सकूँ ऐसी ट्रेनिंग देना शुरू कर दी
उसने मुझे मुँह खोल कर उसे अपनी चुनमूनियाँ पर सटाकर अपनी पूरी चुनमूनियाँ मुँह में लेना सिखा दिया इससे जब वह मूतती थी तो सारा मूत सीधा मेरे गले में उतरता सिवाय उसके मूतने से उठती खल खल की आवाज़ के, बाहर से पता भी नहीं चलता कि वह मूत रही है एक बूँद भी नहीं छलकती थी कोई देखता तो समझता कि लडका चुनमूनियाँ चूस रहा है
यह सीखने के बाद हमारा काम आसान हो गया कभी भी कहीं भी मौसी मेरे मुँह में मूत सकती थी किचन में चुनमूनियाँ चुसवाते समय, ब्लू फिल्म देखते हुए या पलंग पर रति करते हुए रात को भी मौसी को इससे बड़ा आराम हो गया क्योंकि चुदवा चुदवा कर अक्सर उसे बहुत बार पिशाब लगती थी पर अब बिस्तर से उठ कर नहीं जाना पड़ता था वहीं बिस्तर में वह मेरे मुँह में मूत लेती थी
रात को भी मैं उसकी जांघों पर सिर रखकर सोता था इसलिए नींद में भी जब मौसी को पिशाब लगती, वह मुझे हिला कर जगाती, मेरा मुँह अपनी चुनमूनियाँ पर सटाती और मूत देती फिर आराम से सो जाती कई बार इस कार्य से वह इतना उत्तेजित होती कि आधी नींद में ही मुझसे चुनमूनियाँ चुसवा लेती या फिर चुदवा लेती
एक दो बार वह खेल खेल में गिलास में मूत कर मुझे पीने दे देती और उसे पीता देखकर अपनी चुनमूनियाँ में उंगली करती हुई मज़ा लेती पर उसकी चुनमूनियाँ पर मुँह लगाकर पीने में हम दोनों को ज़्यादा मज़ा आता था, मुझे भी और उसे भी
क्रमशः……………………
आख़िर वह मान गयी और हम बाथरूम में गये मैं ज़मीन पर मुँह खोल कर लेट गया मौसी उकड़ूम होकर मेरे मुँह पर बैठ गई उसकी चुनमूनियाँ बस दो इंच उपर मेरे मुँह पर थी और उसका ज़रा सा लाल मूत्रछिद्र मुझे सॉफ दिख रहा था जब वह मूती तो उस खुले छिद्र में से निकलती रुपहली धार मुझे ऐसी लगी कि जैसे अमृत की धार हो
मेरे मुँह में वह खारा गरमा गरम शरबत गया और मैं मस्त हो गया विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरी प्यारी मौसी, मेरी माँ की सग़ी छोटी बहन मेरे मुँह में मूत रही है मैंने प्यासे की तरह उस अमृत का पान किया और एक बूँद भी छलकने नहीं दी उसके मूत्र के प्रति मेरी यह आस्था देखकर उसे भी बड़ा अच्छा लगा
उसके बाद तो मुझे मौसी का मूत पीने की आदत लग गयी अब मुझे समझ में आने लगा था कि क्यों मौसाजी उसके पीछे दीवाने थे मैंने पानी पीना करीब करीब बंद ही कर दिया जब प्यास लगती, ज़िद करके मौसी को खींच कर बाथरूम ले जाता और वह मेरे मुँह में मूत देती मौसी को भी इसमें बड़ा मज़ा आता था पर बार बार बाथरूम जाने में उसे बड़ी कोफ़्त होती थी इसलिए उसने मुझे बाथरूम ना जाकर कहीं भी उसका मूत पी सकूँ ऐसी ट्रेनिंग देना शुरू कर दी
उसने मुझे मुँह खोल कर उसे अपनी चुनमूनियाँ पर सटाकर अपनी पूरी चुनमूनियाँ मुँह में लेना सिखा दिया इससे जब वह मूतती थी तो सारा मूत सीधा मेरे गले में उतरता सिवाय उसके मूतने से उठती खल खल की आवाज़ के, बाहर से पता भी नहीं चलता कि वह मूत रही है एक बूँद भी नहीं छलकती थी कोई देखता तो समझता कि लडका चुनमूनियाँ चूस रहा है
यह सीखने के बाद हमारा काम आसान हो गया कभी भी कहीं भी मौसी मेरे मुँह में मूत सकती थी किचन में चुनमूनियाँ चुसवाते समय, ब्लू फिल्म देखते हुए या पलंग पर रति करते हुए रात को भी मौसी को इससे बड़ा आराम हो गया क्योंकि चुदवा चुदवा कर अक्सर उसे बहुत बार पिशाब लगती थी पर अब बिस्तर से उठ कर नहीं जाना पड़ता था वहीं बिस्तर में वह मेरे मुँह में मूत लेती थी
रात को भी मैं उसकी जांघों पर सिर रखकर सोता था इसलिए नींद में भी जब मौसी को पिशाब लगती, वह मुझे हिला कर जगाती, मेरा मुँह अपनी चुनमूनियाँ पर सटाती और मूत देती फिर आराम से सो जाती कई बार इस कार्य से वह इतना उत्तेजित होती कि आधी नींद में ही मुझसे चुनमूनियाँ चुसवा लेती या फिर चुदवा लेती
एक दो बार वह खेल खेल में गिलास में मूत कर मुझे पीने दे देती और उसे पीता देखकर अपनी चुनमूनियाँ में उंगली करती हुई मज़ा लेती पर उसकी चुनमूनियाँ पर मुँह लगाकर पीने में हम दोनों को ज़्यादा मज़ा आता था, मुझे भी और उसे भी
क्रमशः……………………
Re: मौसी का गुलाम
मौसी का गुलाम---16
गतान्क से आगे………………………….
ललिता नौकरानी दूसरे दिन वापस काम पर आने वाली थी, इसलिए मौसी ने मुझे चुदाई नहीं करने दी कारण नहीं बताया बोली की निरंतर रतिक्रीडा से एक दिन आराम सेहत के लिए ज़रूरी है हम पूरे कपड़े पहनकर घर में बिलकुल असली मौसी भांजे जैसे बैठे थे शाम को ललिता मिलने आई वह यह बताने आई थी कि वह गाँव से लौट आई है और कल से काम पर आएगी
वह मझली उम्र की कसे बदन की एक नाटी औरत थी उसकी स्वस्थ छरहरी काया से ही मालूम होता था कि काफ़ी मेहनती है इसीलिए ऐसी कसी हुई है थी वाहा साँवली पर उसकी त्वचा बड़ी चिकनी दमकती हुई थी मेरे ख्याल से वह पैंतीस और चालीस साल के बीच की होगी पिछली बार मैंने उसे चाहा सात साल पहले देखा था जब मैं और माँ यहाँ आए थे तब से अब तक मुझे उसमें कोई फरक नज़र नहीं आया, वैसी ही चुस्त तंदुरुस्त लग रही थी
आते ही मौसी उसपर गुस्से में बरस पडी कि इतने दिन कहाँ थी, दो दिन बोल कर गयी और दस दिन गायब रही मौसी की डाँट को वह बड़े आराम से मुस्कराते हुए सुनती रही जैसे कि उसे मालूम था कि इस डाँट में कोई दम नहीं है मौसी की आवाज़ में गुस्से के साथ एक बड़ी आत्मीयता और प्यार की भावना थी अपनी नौकरानी के लौट आने की खुशी भी उसमें थी
आख़िर मौसी शांत हुई और ललिता को बोली कि कल दोपहर से काम पर आ जाए ललिता ने फिर पूछा "बाई, पान लाऊ कल?" मौसी हँसने लगी और हाँ बोली मेरी ओर ललिता ने मुस्काराकर देखा और मुझे कुछ देर सिर से पाँव तक घूरती रही फिर एक बार मौसी की तरफ देखकर वह मुस्कराती हुई कल आने का वादा कराकर चली गयी
उनकी आपस की बात सुनकर मुझे शंका हुई कि कुछ बात है पर मौसी से पूछने की हिम्मत नहीं हुई सोचा कल पता चल ही जाएगा
रात को गहरी नींद सो कर हम ताजे होकर उठे मेरा लंड फिर मस्त तन्ना रहा था और मौसी भी मदमस्त लग रही थी पर सिवाय मुझे प्यार से चूमने के और अपना मूत पिलाने के, उसने कुछ नहीं किया जब वह खाना बना रही थी, मैं मचलता हुआ उसके पीछे खड़ा होकर उसके नितंबों की लकीर में साड़ी के उपर से ही अपना लंड घिसता हुआ ब्लओज़ के उपर से उसके मम्मे दबाने लगा
गतान्क से आगे………………………….
ललिता नौकरानी दूसरे दिन वापस काम पर आने वाली थी, इसलिए मौसी ने मुझे चुदाई नहीं करने दी कारण नहीं बताया बोली की निरंतर रतिक्रीडा से एक दिन आराम सेहत के लिए ज़रूरी है हम पूरे कपड़े पहनकर घर में बिलकुल असली मौसी भांजे जैसे बैठे थे शाम को ललिता मिलने आई वह यह बताने आई थी कि वह गाँव से लौट आई है और कल से काम पर आएगी
वह मझली उम्र की कसे बदन की एक नाटी औरत थी उसकी स्वस्थ छरहरी काया से ही मालूम होता था कि काफ़ी मेहनती है इसीलिए ऐसी कसी हुई है थी वाहा साँवली पर उसकी त्वचा बड़ी चिकनी दमकती हुई थी मेरे ख्याल से वह पैंतीस और चालीस साल के बीच की होगी पिछली बार मैंने उसे चाहा सात साल पहले देखा था जब मैं और माँ यहाँ आए थे तब से अब तक मुझे उसमें कोई फरक नज़र नहीं आया, वैसी ही चुस्त तंदुरुस्त लग रही थी
आते ही मौसी उसपर गुस्से में बरस पडी कि इतने दिन कहाँ थी, दो दिन बोल कर गयी और दस दिन गायब रही मौसी की डाँट को वह बड़े आराम से मुस्कराते हुए सुनती रही जैसे कि उसे मालूम था कि इस डाँट में कोई दम नहीं है मौसी की आवाज़ में गुस्से के साथ एक बड़ी आत्मीयता और प्यार की भावना थी अपनी नौकरानी के लौट आने की खुशी भी उसमें थी
आख़िर मौसी शांत हुई और ललिता को बोली कि कल दोपहर से काम पर आ जाए ललिता ने फिर पूछा "बाई, पान लाऊ कल?" मौसी हँसने लगी और हाँ बोली मेरी ओर ललिता ने मुस्काराकर देखा और मुझे कुछ देर सिर से पाँव तक घूरती रही फिर एक बार मौसी की तरफ देखकर वह मुस्कराती हुई कल आने का वादा कराकर चली गयी
उनकी आपस की बात सुनकर मुझे शंका हुई कि कुछ बात है पर मौसी से पूछने की हिम्मत नहीं हुई सोचा कल पता चल ही जाएगा
रात को गहरी नींद सो कर हम ताजे होकर उठे मेरा लंड फिर मस्त तन्ना रहा था और मौसी भी मदमस्त लग रही थी पर सिवाय मुझे प्यार से चूमने के और अपना मूत पिलाने के, उसने कुछ नहीं किया जब वह खाना बना रही थी, मैं मचलता हुआ उसके पीछे खड़ा होकर उसके नितंबों की लकीर में साड़ी के उपर से ही अपना लंड घिसता हुआ ब्लओज़ के उपर से उसके मम्मे दबाने लगा