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rajaarkey
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by rajaarkey » 20 Dec 2014 14:00
Jemsbond wrote:Thanks for the faster updates!!!!!!!!!
Love reading with fast updates
dhanywad mitr
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rajaarkey
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by rajaarkey » 20 Dec 2014 14:01
संघर्ष--23
गतान्क से आगे.................
धीरे धीरे धन्डहर पार होने लगा. धन्नो चाची अपनी बात आगे बढ़ती हुई बोली "देख तू मेरी बात का बुरा मत मानना ...मैं जो भी कहती हूँ खूल कर कहती हूँ. तेरी मा सच मे बहुत ही अच्छी औरत है लेकिन ये गाओं वाले बस अफवाह फैला कर दूसरों को बेइज़्ज़त करना ज़्यादे पसंद करतें हैं." फिर आगे बोली "तेरी मा और चौधरी के बीच जो कुच्छ भी हुआ वह तेरी मा के शरीर की ज़रूरत भी थी...इस लिए इसमे कोई बहुत बुरी बात नही है. और वैसे भी बीते दीनो को याद करने से कोई फ़ायदा नही होता" यह सुनकर सावित्री ने कुछ भी नही बोली लेकिन धन्नो अपनी बात जारी रखते हुए कही "इस गाओं मे औरतों की जिंदगी बहुत ही बेकार है ..बस किसी तरह एक एक दिन काट जाए यही बहुत बड़ी बात है." फिर बोली "दूसरों को क्या कहूँ मैं तो खूद इस गाँव के गंदे लोगों से बहुत परेशान हो चुकी हूँ..देख ना तेरे सामने ही मेरी जवान बेटी की शादी तोड़ कर गाँव के कुच्छ बदमाश मेरी खिल्ली उड़ाते हैं लेकिन मेरी बेटी भी दूध के धोइ है बिल्कुल मेरी तरह. मुसम्मि बेचारी किसी के तरफ भी नज़र उठा कर नही देखती लेकिन उसके भी नाम को लोग इज़्ज़त से नही देखना चाहते और उसके बारे मे भी काफ़ी उल्टी सीधी बातें करतें हैं." धन्नो की इस बात से सावित्री बिल्कुल ही राज़ी नही थी और जानती थी की मा बेटी दोनो कितनी चुदैल हैं. चलते चलते गाओं काफ़ी नज़दीक आने लगा तभी सावित्री ने देखा कि साइकल वाला आदमी वापस आ रहा था. देखते ही सावित्री चौंक गयी. धन्नो से बोली "वो..आदमी आ रहा है...चाची " चाची ने पलट कर पीछे देखा तो एक अधेड़ उम्र का आदमी साइकल तेज़ी से चलाता हुआ आ रहा था. धन्नो उसके चेहरे को देखते ही उसे पहचान गयी और वो आदमी भी धन्नो को देखते ही साइकल रोक कर खड़ा हो गया. धन्नो ने तुरंत उस आदमी का पैर छ्छू ली और फिर बोली "अरे सगुण चाचा आप इधेर कैसे?" उस अधेड़ उम्र के आदमी ने मुस्कुराता हुआ बोला "बस ऐसे ही थोड़ा कस्बे की ओर कुच्छ काम था इस वजह से इधेर आना हुआ, चलो इसी बहाने तुमसे मुलाकात हो गयी" सावित्री एकदम से सन्न हो कर सबकुच्छ देख और सुन रही थी. धन्नो चाची ने जब उस आदमी का पैर छ्छू कर बात करने लगी तब सावित्री समझ गयी की ये आदमी कोई परिचित है. फिर उस आदमी ने धन्नो से पुचछा "अरे अपनी बेटी की दुबारा शादी के बारे मे कुच्छ सोची की नही " इस पर धन्नो ने जबाव दी "अरे सगुण चाचा , मोसाम्मि की शादी को आप को ही करानी है. मैं क्या करूँ इस गाओं मे तो मानो जीना दूभर हो गया है. उसकी शादी कितनी मेहनत से की थी लेकिन गाओं के कुच्छ कमीनो ने उसकी शादी को तुड़वा कर ही दम लिया. " इस पर उस आदमी ने कुच्छ चुपचाप रहा फिर बोला "अरे तो हाथ पे हाथ रख के बैठी रहेगी तब कैसे होगा शादी....कुच्छ दौड़ना और लड़का खोजना पड़ेगा तब तो जा कर कहीं शादी हो पाएगी..." धन्नो ने कहा "हां ठीक कहते हैं, फिर भी कोई लड़का बताइए जो आपकी जानकारी मे हो." इस पर उस आदमी ने कहा "अरे लड़के तो बहुत है लेकिन सब के सब तो कुँवारी ही खोजते हैं और किसी को जैसे ही पता चलता है की लड़की की एक बार शादी हो चुकी है साले भाग खड़े होते है. वैसे चलो मैं कोशिस करूँगा तुम्हारे लिए धन्नो." धन्नो काफ़ी खुश हो गयी. लेकिन सावित्री के दिमाग़ मे यही बात थी की यही वो आदमी था जो की कुच्छ देर पहले धन्नो चाची को पेशाब करते हुए दोनो चूतदों को खूब देखा और उसे देख कर मुस्कुराया भी था. तभी उस आदमी ने धन्नो के बगल मे खड़ी हो कर बातें सुन रही सावित्री की ओर इशारा कर के पुचछा "धन्नो ये कौन लड़की है?" धन्नो ने जबाव दी "मेरे पड़ोस मे रहने वाली सीता जो विधवा हो गयी थी उसी की लड़की है" तब उस आदमी ने फिर कहा "ये भी तो शादी लायक हो गयी है" धन्नो ने कहा "हा क्यो नही . आज कल तो लड़कियाँ जहाँ जवान हुई वहीं शादी के लायक उनका शरीर होते देर नही लगती और आप तो जानते ही हैं की मेरे इस गाओं मे जवान लड़की को घर मे रखना कितना मुश्किल काम होता है" इस बात को सुनकर उस आदमी ने फिर कहा "हा धन्नो तुम सच कहती हो अब तो जमाना ही बहुत खराब हो गया है. वैसे इसकी शादी मे कोई परेशानी आए तो मुझे बताना मैं इसकी शादी एक अच्छे लड़के से करवा दूँगा.." इतना कह कर उस आदमी ने सावित्री को नीचे से उपर तक आँखों से तौलने लगे फिर धन्नो ने कहा "अरे सगुण चाचा इसकी मालकिन तो इसकी मा सीता है मैं इसमे कुच्छ नही बोल सकती ...वैसे भी सीता हमसे नाराज़ ही रहती है...संयोग था की आज रश्ते मे सावित्री मुझसे मिल गयी सो हम दोनो बातें करते घर को ओर जा ही रहे थे की आप भी मिल गये" इतना सुनकर सगुण चाचा ने हंसते हुए बोले "तुम औरतों को तो मौका मिला नही की झगड़ा होते देर नही लगती..चलो ठीक है ये भी तो आख़िर तेरी बेटी की तरह ही है...चलो मैं एक दिन आ कर इसकी मा से मिल लूँगा ...वो मुझे जानती है." सावित्री ये सुन कर कुच्छ खुश तो हुई लेकिन उसे समझ नही आ रहा था की आख़िर उसकी मा इस आदमी को कैसे जानती है.
फिर सावित्री उस आदमी की ओर कुच्छ चकित अवस्था मे हो कर देख रही थी की उस आदमी ने सावित्री के गाल को प्यार से मीज़ता हुआ कहा "अरे बेटी तुम मुझे नही जानती ...मेरा नाम सगुण है और मुझे लोग प्यार से सगुण चाचा कहते हैं और मैं एक सामाजिक आदमी हूँ और शादी विवाह कराता हूँ इस लिए मुझे बहुत लोग जानते हैं.. तुम अपनी मा से मेरे बारे मे पुच्छना..." सावित्री के गाल के मीज़ने के अंदाज उसे ठीक नही लगा और उसका पूरा शरीर झनझणा उठा. उसके बाद सगुण ने धन्नो से कहा "वैसे परसों तुम चाहो तो मैं एक लड़के वाले लेकर आउन्गा और तुम उन्हे लड़की दीखा देना बोलो कैसा रहेगा " इस पर धन्नो ने कुच्छ सोचते कहा "मैं तो तैयार हूँ सगुण चाचा लेकिन लड़की दिखाने का काम गाओं मे अपने घर पर नही होगा नही तो इन अवारों को जैसे पता चला की ये फिर काम बिगाड़ने पर लग जाएँगें..और नतीजा फिर वही होगा" इस पर सगुण चाचा ने पुचछा "तो तुम्ही बताओ कहाँ पर लड़की को देखना चाहती हो वहीं पर मैं लड़के के बाप को लेकर आउन्गा"
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rajaarkey
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by rajaarkey » 20 Dec 2014 14:02
धन्नो ने कहा "मैं तो सोचती हूँ की आप के ही घर पर लड़की को दीखा दिया जाय" इस पर सगुण मे कहा "ठीक रहेगा तो चलो परसों दोपहर के 12 बजे मैं लड़के के बाप को लेकर आउन्गा. लड़का बाहर मे नौकरी करता है और उसकी उम्र करीब 27 के आस पास होगी और वैसे भी तो दूसरी शादी मे मन चाहा लड़का मुस्किल होता है मिलना बोलो यदि पसंद है तब तुम परसों दोफर के 12 बजे तक मेरे घर पर आ जाना" "ठीक है सगुण चाचा" धन्नो ने जबाव दिया और आगे पुछि "आप के घर पे कौन कौन है " इसपर सगुण ने कहा " इस समय तो वो मयके गयी है और मेरे एक बेटा अपने बहू और बच्चो को लेकर बाहर ही रहता है ...मेरा घर एक दम खाली है ..तुम्हे कोई परेशानी नही होगी सही समय तक बेटी मुसम्मि को ले कर आ जाना " इतना कह कर सगुण ने अपनी साइकल पर बैठा और अपने घर के ओर चल दिया. फिर सावित्री और धन्नो अपने गाओं के ओर चलने लगी और अब एक दम से अंधेरा होना सुरू हो गया था. फिर भी सावित्री इस आदमी के बारे मे जानना चाहती थी इस वजह से पुछि "कौन था चाची " इस पर धन्नो ने कहा "अरे बहुत सामाजिक आदमी हैं..सगुण चाचा .इन्होने ने बहुत सारी शादियाँ कराई हैं और मुसम्मि की भी यही शादी कराए थे. तेरी मा भी इन्हे जानती है. चलो परसों मैं भी मुसम्मि को लड़कों वालों को दिखवा कर शादी पक्की करवा लेना चाहती हूँ. ....अच्छा ए बता की जब मैं पेशाब कर रही थी तब ये ही साइकल से गुज़रे थे क्या?" इस पर सावित्री एक दम चुप रही और हल्की सी मुकुरा दी . धन्नो ने सावित्री की ओर देखकर हंसते हुए गलियाँ देती बोली "अरे कुत्ति कहीं की तू तो आज मेरी गांद को सगुण चाचा को दीखवा ही दी ...है राम क्या सोचेंगे मेरे बारे मे की कैसी औरत है सड़क पर गांद खोलकर मुतती है...." इस पर सावित्री ने कुच्छ नही बोली. लेकिन उसके मन मे यही था की उस समय जिस अंदाज मे सावित्री को देख कर मुस्कुराए उससे लगता था की सगुण एक रंगीन किस्म के आदमी भी थे. और दूसरी बार जब गाल को मीसा तब भी उनकी नियत बहुत अच्छी नही लगी. धन्नो ने सावित्री से कहा "देखो कल मैं तुम्हारे दुकान पर आउन्गि कुच्छ समान तो लेना ही पड़ेगा जब लड़की को दिखवाना है." सावित्री ने धन्नो से कहा " ठीक है चाची आना"
उसके बाद दोनो गाओं मे घुसने से पहले ही एक दूसरे से अलग अलग हो गयीं ताकि सावित्री की मा को ऐसा कुच्छ भी ना मालूम हो जिससे वो सावित्री पर गुस्सा करे.
सावित्री घर पहुँचने के बाद तुरंत पेशाब करने घर के पीच्छवाड़े गयी और पेशाब की और फिर वापस घर के काम मे लग गयी. रश्ते मे धन्नो चाची ने जो भी बात उसकी मा सीता के बारे मे बताई थी वह सावित्री के दिमाग़ मे घूम रहा था. लेकिन जब मुसम्मि के शादी की बात याद आते ही उसका भी मन लालच से भर गया की उसकी भी शादी जल्दी हो जाती तो बहुत अच्छी होती. लेकिन सावित्री अपनी ग़रीबी को भी भली भाँति जानती थी. लेकिन पता नही क्यूँ सगुण चाचा के नाम से कुच्छ आशा की किरण दिखाई दे रही थी. अंदर ही अंदर शादी की इच्छा प्रबल होती जा रही थी. सावित्री यही सोच रही थी की आख़िर वो कैसे अपनी मा या किसी से खूद के शादी के बारे मे कहे. वैसे आज जो कुच्छ भी दुकान मे पंडिताइन के साथ हुआ वह सावित्री के मन मे एक दर्द की तरह याद आ रहा था. लेकिन सावित्री को जब जब ये बात याद आती की कैसे उसने पंडिताइन को खूब पीटा तब उसका मनोबल काफ़ी उँचा हो जाता. शायद उसे अपनी ताक़त का असली अहसास होने लगा था.
दूसरे दिन जब सावित्री दुकान पर चलने की तैयारी की तभी खंडहर के पास आवारों की याद आते ही मन घबरा गया. लेकिन पता नही क्यूँ उनकी गंदी बाते सावित्री को फिर से सुनने की इच्च्छा हो रही थी. उन अवारों की गंदी हरकत अब अच्च्छा लग रहा था. रश्ते पर चलते चलते खंडहर आ गया और सावित्री की नज़रें इधेर उधेर शायद उन आवारों को ही तलाशने लगी थी. तभी पीछले दिन वाले दोनो आवारा खंडहर के एक दीवाल के पास बैठे नज़र आ गये. सावित्री को काफ़ी डर लगने लगा था. उसे ऐसा लग रहा था की आज भी वी दोनो ज़रूर कुछ अश्लील बात बोलेंगे. आख़िर जैसे ही सावित्री उस खंडहर के पास रश्ते पर बैठे हुए दोनो अवारों के पास से गुज़री ही थी की दोनो उसे ही घूर रहे थे और मुस्कुरा रहे थे. अचानक एक ने बोला "हम पर भी तो कुच्छ दया करो मेरी जान....हम लोग एक अच्छे इंसान हैं ..तुम जैसे चाहो वैसे हम दोनो पेश आएँगे...बस एक बार हमे भी अपना रस पीला दो..." सावित्री बिना कुच्छ बोले रश्ते पर चलती रही तभी उसे लगा की दोनो बदमाश उसके पीछे पीछे चल रहे हों. सावित्री के अंदर हिम्मत नही थी की वो पीछे पलट कर देखे. लेकिन जब दूसरे बदमाश की आवाज़ उसके कान मे टकराई तो उसे लगा की दोनो ठीक उसके पीछे ही चल रहे हों. दूसरे ने कहा "रानी ...हम दोनो रात मे 12 बजे के करीब तुम्हारे घर के पीछे वाले बगीचे मे आ कर हल्की सी सिटी मारेंगे और तुम धीरे से आ जाना....ज़रूर आना ...कोई ख़तरा नही है..हम दोनो पक्के खिलाड़ी है..