अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

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raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:52

अधूरा प्यार--16 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ...............................

"ओहू! आप एक बार बात तो कर लो उनसे.. इतना अच्च्छा रिश्ता खुद चलकर आया है.. मैं तो कहती हूँ, बात बन जाए तो चट माँगनी पर ब्याह कर देंगे अपनी शीनू का...." मानव के निकलते ही मम्मी जी ने फोन लगा लिया था...

"अच्च्छा ठीक है.. मैं अभी बात करके बताता हूँ... पर उनको बोलूं क्या?" पापा ने असमन्झस से पूचछा...

"अब ये बात भी क्या मैं ही सम्झाउ? बोल देना की मानव को पसंद है.. और हम भी बहुत खुश हैं इस रिश्ते से....." मम्मी ने बात पूरी भी नही की थी कि नीरू दरवाजा खोलकर अंदर आ गयी

"किसके रिश्ते की बात हो रही है मम्मी..?" नीरू आते ही मम्मी से लिपट गयी...

"अच्च्छा रखती हूँ जी.. आप बता देना मुझे भी..." मम्मी ने कहा और फोन रख दिया...

"क्या हुआ मम्मी? मानव आया था! कुच्छ पता चला...." नीरू ने मम्मी के फोन रखते ही पूचछा...

"मानव आया था!" मम्मी ने मुँह चढ़ा कर मज़ाक मज़ाक में उसकी नकल उतारी," तू तो जैसे घर वालों के अलावा किसी को जानती ही नही.. सामने से बोल नही सकती थी क्या?"

"मैं क्यूँ बोलूं..? मुझे अच्च्छा नही लगता ऐसे किसी को राह चलते में टोकना.. बताओ ना.. आपने उस लेटर की बात की या नही..... और मुझे क्यूँ बुलाया है?" नीरू ने जवाब देते हुए पूचछा....

"हां.. कह रहा था कि अब मैं सब संभाल लूँगा... और कुच्छ हो ना हो.. हमें बहुत अच्च्छा दूल्हा मिल गया; अपनी गुड़िया रानी के लिए.." मम्मी ने नीरू का चेहरा अपने हाथों में लेकर गालों को चूमते हुए कहा...

नीरू बात सुनते ही बिदक गयी," ये क्या कह रही हैं मम्मी.. मैने कह दिया ना मुझे नही करनी शादी वादी.. आप बार बार ये जिकर ना किया करें.. मेरा दम घुटने लगता है...."

"अरी.. सुन तो ले एक बार की रिश्ता किसका आया है... अपने 'मानव' का.. कितना सुंदर और छैल छबिला है.. और थानेदार है.. तू मौज करेगी उसके साथ!" मम्मी ने समझाते हुए कहा...

"थानेदार होगा, अपने घर में.. मुझे नही करनी किसी से शादी... देख लेना, आगे बात बढ़ाई तो!" गुस्से से भरी नीरी ने अपनी किताब उठाई और पैर पटकती हुई वापस चली गयी.. कॉलेज में....!

"ये लड़की भी ना!" मम्मी ने बड़बड़ाते हुए अपने माथे पर हाथ मारा ही था की फोन की घंटी बज उठी..,"मम्मी ने लपकते हुए झट से फोन उठा लिया...,"हां जी!"

"सच में आज का दिन तो बहुत ही शुभ है... वो भी बहुत खुश हुए बात सुनकर.. झट से तैयार हो गये..!" पापा की आवाज़ थी...

"आच्छाआअ!" मम्मी जी चहकति हुई बोली और फिर अचानक नीरू की बात याद आते ही मायूस हो गयी," पर शीनू का क्या करें? ये तो उल्टी ही रामायण पढ़ रही है..."

"क्यूँ क्या हुआ? पापा ने आशंकित होकर पूचछा...

"कह रही है, इसको नही करनी शादी वादी.. मुझसे लड़ाई करके वापस गयी है..." मम्मी का चेहरा उतर गया....

"ओह्हो.. तुमने तो मुझे डरा ही दिया था.. ऐसा तो होता ही है.. लड़की है आख़िर! और क्या शादी की बात सुनकर नाचने लग जाएगी..! लड़कियाँ तो ऐसे करती ही हैं.. तुम उसकी चिंता मत करो.. वो तो इस शनिवार को ही देखने आने की बात कह रहे हैं...." पापा ने बात को आगे बढ़ाया...

"हाई राम! पर शनिवार में तो तीन ही दिन बचे हैं...." मम्मी सोच कर बोली...

"तो हमें क्या करना है.. उनकी देखी भाली तो है ही.. बस आ जाएँगे और 'अपनाकर' चले जाएँगे... तुम किसी बात की चिंता मत करो! मैं रखता हूँ अब.." कहकर पापा ने फोन काट दिया...

मम्मी जी फूली नही समा रही थी.....

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"एक्सक्यूस मी, मिस नीरू!"

नीरू कॉलेज के अंदर कदम रखने ही वाली थी कि अपना नाम सुनकर चौंक कर पलटी..

"मैं अमन हूँ.. रोहन का दोस्त!" अमन ने मुस्कुराते हुए कहा...

पहले से ही गुस्से में भरी हुई नीरू की थयोरियाँ चढ़ गयी,"तो?"

एक बारगी नीरू के तेवर को देख अमन भी सहम सा गया.. इस बात को जानते हुए कि नीरू ने उस रात रोहन और रवि को ऐसे ही निकल जाने दिया था, उस'से काफ़ी विनम्रता की उम्मीद थी.. कुच्छ देर रुक कर संभालते हुए बोला," तो.... मुझे आपसे कुच्छ बात करनी थी.. इसी बारे में.. आप चाहे तो अपनी सहेलियों को साथ ले सकती हैं...."

"नही... मुझे किसी से कोई बात नही करनी..." कहकर वो पलटी ही थी कि ऋतु और शिल्पा ने उसका हाथ पकड़ लिया," सुन तो लो शीनू! सुन'ने में क्या हर्ज़ है..?" ऋतु ने कहा....,"मुझे रोहन की बातें सच्ची लगती हैं...."

"अब तुम भी?" नीरू ने ऋतु को घूरा....

"मुझ पर विस्वास नही है क्या?" ऋतु ने उसका हाथ दबाकर कहा...

"यार.. इसमें विस्वास की क्या बात है? बस, मुझे कोई बात नही करनी..." नीरू अपने फ़ैसले पर अडिग थी...

"देख! मैं तुझे रोहन की बातों में सच्चाई के बहुत से सबूत दे सकती हूँ.. पर तू एक बार हमारे साथ चल.. बस!" ऋतु ने ज़ोर देकर कहा...

"साथ चलूं? ... पर कहाँ?" नीरू ने नरम पड़ते हुए कहा...

"चल आजा... " ऋतु ने कहा और लगभग ज़बरदस्ती सी करते हुए उसको अमन की गाड़ी में बैठा लिया.. साथ ही शिल्पा भी बैठ गयी......

अमन के घर पर सब लोग साथ साथ बैठे थे.. शिल्पा और शेखर एक दूसरे के साथ बैठे थे.. अमन और रोहन एक दूसरे के साथ.. उनके सामने ऋतु के साथ बैठी हुई नीरू खुद को अजीब सी स्थिति में पा रही थी... अगर ऋतु उसके साथ ना होती तो एक पल भी उसका वहाँ ठहरना नामुमकिन था... उसने ऋतु का हाथ कसकर पकड़ा हुआ था..

अचानक दारू की बॉटले छिपाने गया रवि जैसे ही उनके सामने आया.. उसके सिर पर गोला बना देख ऋतु की हँसी छ्छूट गयी.. नीरू ने भी जैसे ही अपना चेहरा उपर उठाया, अपना मुँह दबाकर हँसने से खुद को रोक ना पाई...

"प्रणाम भाभी जी!" रवि ने पहली बार नीरू के चेहरे पर सितारों की चमक जैसी मुस्कुराहट देखी थी.. मौके का फायडा उठाते हुए उसने नीरू को भाभी कह ही दिया....

नीरू ने उसकी बात को अनसुना कर दिया और ऋतु से बोली," हां.. अब बताओ.. क्या बात करनी थी.. जल्दी बोलो.. मुझे जाना है...

रोहन ने बोलने के लिए जैसे ही मुँह खोला.. सब चुप होकर उसकी बात सुन'ने लगे.. अपने सपनो से शुरुआत करके आज तक की सारी कहानी रोहन ने विस्तार से बयान कर दी.. सिर्फ़ उसमें से श्रुति के साथ हुए उस दर्दनाक हादसे को वह खा गया.. इस दौरान श्रुति को याद करते हुए उसकी आँखें भर आई.. और एकाएक सब भावुक हो गये.. जिनको श्रुति के बारे में पता था.. वो श्रुति को याद करके.. और जिन्हे नही पता था.. वो ये समझ कर कि रोहन नीरू को कहानी सुनाते हुए बहक गया है....

"आई बात समझ में....?" ऋतु ने रोहन की बात ख़तम होते ही नीरू से पूचछा...

नीरू का दिमाग़ कहानी सुन'ते हुए सुन्न सा होकर अपना नाम बदले जाने वाली कहानी से तड़ातम्मया बिठा रहा था.. पर प्रत्यक्ष में उसने सिर्फ़ इतनी ही प्रतिक्रिया दी," चलें!"

"अब ये क्या बात हुई...? कुच्छ बोलो तो सही.. आख़िर सब तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहे हैं..." ऋतु ने गुस्से में भरकर कहा....

नीरू कुच्छ बोलने की सोच ही रही थी कि अगले ही पल मानो उसको बिजली का सा झटका लगा..

"उम्मीद करता हूँ कि मैने आप सब को डिस्टर्ब नही किया होगा..." बिना इजाज़त अंदर आने के बाद एक एक चेहरे को घूर्ने के बाद मानव की आँखें नीरू पर आकर टिक गयी....," ओह्हो! इतनी शराफ़त और नज़ाकत भरी शरारत... आइ'एम इंप्रेस्ड!" मानव के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तेर गयी.....

"आइए ना इनस्पेक्टर साहब. बैठिए... हम उस दिन इन्ही 'नीरू' की बात कर रहे थे.." अमन इनस्पेक्टर के स्वागत में खड़ा हो गया....

नीरू कुच्छ बोल सकने की हालत में नही थी.. वह उठकर बाहर जाने ही लगी थी की मानव ने उसको टोक दिया,"अरे नही नही... ये तो बहुत ही अच्च्छा हुआ कि आप यहीं मिल गयी.. रोहन को हथकड़ी लगाने से पहले मुझे आपके बयानों की भी ज़रूरत पड़ेगी... हा हा हा!"

मानव की बात सुनकर सभी चौंक कर उसकी और देखने लगे..

"ये क्या कह रहे हैं आप..? रोहन को हथकड़ी?" अमन ने आसचर्यचकित होते हुए पूचछा....

"चिंता ना करें.. मैं सब कुच्छ सपस्ट करके ही इसको यहाँ से ले जाउन्गा..." मानव कुर्सी पर बैठ गया...

रोहन कभी मानव को और कभी नीरू को अजीब सी निगाहों से देखने लगा.....

"तो रोहन जी; आप रात को शीनू के घर में घुसपैठ करते हैं?" सबके चेहरों को अपनी और ताकता छ्चोड़ कर अपनी इनटेरगेशन शुरू कर दी....

सवाल सुनते ही रवि ने अपने सिर के गोले को हाथ से ढक लिया... मानो सबूत छिपाने की कोशिश कर रहा हो...

रोहन ने मायूस होकर शिकायती नज़रों से नीरू की और देखा.. उसको यही अंदाज़ा हुआ कि नीरू ने उसके घर में घुसने की रिपोर्ट करवा दी है... सिर झुका कर वह कबूल करने को बोलने ही वाला था कि चौंक कर उसने नीरू की और देखा...

"नही! ये हमारे घर में कभी नही आया...!" नीरू के जवाब ने सबको हैरत में डाल दिया...

मानव नीरू के बोलने से झल्ला उठा.. उसको नीरू की आवाज़ से ही पता चल गया था कि वो रोहन को बचाने के लिए ऐसा बोल रही है...

"आर यू शुवर मिस.. शीनू उर्फ नीरू जी!" चेहरा नीचे किए हुए ही नज़रें उपर उठा कर मानव ने नीरू की और घूरा....

"हां.. ये कभी हमारे घर नही आया...!" नीरू ने नज़रें झुकाए हुए ही जवाब दिया.. बात सुनकर रवि भी उच्छल पड़ा,"हां हां.. हम भला रात को क्या करने जाएँगे.. हैं ना रोहन!"

रोहन ने नज़रें उपर करके उसके 'गोले' को देखा और उसकी हँसी छ्छूट गयी.. अब रोहन काफ़ी रिलॅक्स महसूस कर रहा था.. जब मियाँ बीवी राज़ी, तो क्या करेगा काज़ी!

"वाह वाह! रोहन को बचाने की आपकी कोशिश काबिल-ए-तारीफ़ है नीरू जी! पर अफ़सोस! इसको हथकड़ी लगाने के लिए जो वजह मेरे पास है.. उसमें आप भी इसकी कोई मदद नही कर सकती.... इसके इस जुर्म के लिए तो मैं इसको समझा कर ही छ्चोड़ने वाला था.... आख़िर तुम्हे भी इसके साथ कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते... और मेरी तरह कोई भी इज़्ज़तदार मर्द ये नही चाहेगा कि उसकी होने वाली धरमपत्नी इस तरह की छ्होटी छ्होटी बातों के लिए कोर्ट के झमेले में पड़े.."

मानव ने अपनी आख़िरी बात को चबा चबा कर कहा और नीरू के घर मिला खत उसके सामने टेबल पर रख दिया...," अब ये मत कहना कि ये खत भी आपको नही मिला.. आंटी जी ने मुझे दिया है.."

नीरू ने अपनी नज़रें झुका ली.. कुच्छ देर मौन रहने के बाद बोली,"हां.."

मानव कुटिलता के साथ मुस्कुराया,"वेरी गुड!... पढ़ना ज़रा इसको!" कहकर मानव ने खत रोहन को पकड़ा दिया....

रोहन रवि शेखर और अमन आस्चर्य से खत को पढ़ने के बाद एक दूसरे की आँखों में देखने लगे.. किसी की समझ में नही आ रहा था कि ये 'लेटर' वाला क्या फंडा है.. सब एक दूसरे से इशारों ही इशारों में सवाल सा कर रहे थे....

"पढ़ लिया?" मानव ने आराम से पिछे सिर टिकते हुए पूचछा....

"जी हां.. पर इस'से हमारा कोई लेना देना नही...!" रोहन ने ज़ोर देकर कहा....

"मान लिया! चलो अब इसको पढ़ो ज़रा...." मानव ने एक और लेटर रोहन के सामने टेबल पर फैला दिया...

"ययए.. ये तो श्रुति का है...." रोहन ने हाथ में पकड़े श्रुति के स्यूयिसाइड नोट की पहली लाइन पढ़ते ही कहा....

मानव मुस्कुराया," ना! ये श्रुति ने नही लिखा... पहले में मान चुका था कि श्रुति ने आत्महत्या की है... और ये स्यूयिसाइड नोट अपने हाथों से लिखा है... पर अब नही मानूँगा... श्रुति की हत्या हुई है...!"

"क्क्या मतलब..." सभी उच्छल कर खड़े हो गये.. बेचारी नीरू को तो अब तक ये भी पता नही था कि श्रुति अब इस दुनिया में नही है.... सब हैरत से मानव की ओर देख रहे थे....

"दोनो लेटर्स एक साथ रख कर देखो... सॉफ पता चल रहा है कि दोनो एक ही आदमी ने लिखें हैं..." मानव के चेहरे पर सफलता की चमक उभर आई थी....

सबने अपने अपने हाथों में लेटर लेकर देखे.... मानव की बात शत प्रतिशत सच थी.... पर किसी की कुच्छ समझ में नही आ रहा था....

"इसका क्या मतलब है?" अमन ने हड़बड़ा कर पूचछा....

"इसका मतलब ये है कि स्यूयिसाइड नोट श्रुति ने नही लिखा... किसी और ने लिखा है.. और जिसने भी लिखा है.. उसी ने श्रुति का कत्ल किया है...!" मानव तीर छ्चोड़ कर चुप हो गया.... उसको कहीं से किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नही मिली तो मजबूरन उसको खुद ही सारी बात समझानी पड़ी....

"देखो! श्रुति मर चुकी है.. इसीलिए नीरू के घर मिला लेटर श्रुति के हाथ का लिखा नही हो सकता... अब क्यूंकी दोनो खातों में राइटिंग हूबहू एक जैसी है.. इसका मतलब ये हुया कि श्रुति का स्यूयिसाइड नोट भी उसी व्यक्ति ने लिखा है जिसने ये दूसरा खत लिखा...

सॉफ बात है कि उसी व्यक्ति ने ही श्रुति की हत्या भी की है... अब अगर उस दिन के घटनाक्रम पर नज़र डालें तो रोहन ने खुद कहा है कि लास्ट में वो कुण्डी लगाकर श्रुति को अंदर छ्चोड़ आया था.. उसके बाद नितिन ने स्वीकार किया है कि जब वो श्रुति के पास अंदर गया तो श्रुति लाश बन चुकी थी... अगर नितिन बाहर होता तो मैं एक पल को मान भी लेता कि हो सकता है हत्या नितिन ने की हो.. पर उसकी जमानत तो कल होगी.. फिर वो कैसे नीरू के घर लेटर भेज सकता है... नही ना?"

इसका मतलब कहानी शीशे की तरह बिल्कुल सॉफ हो गयी.... नितिन ने श्रुति को जबरन रोहन के पास भेजा और रोहन ने श्रुति की मजबूरी का फायडा उठाते हुए उसके साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की.. पर जब वो नही मानी तो ज़बरदस्ती के चक्कर में ही इसने उसका गला घोंट दिया... और उसको पंखे से लटका कर बाहर से कुण्डी बंद करके आ गया... समझे! नितिन पर सिर्फ़ ब्लॅकमेलिंग का आरोप रहेगा.. बाकी सारा काम तो जनाब ने अपने हाथों से ही किया है...." मानव ने एक लंबी साँस छ्चोड़ कर अपनी कहानी को विराम दिया....

"आप बेवजह रोहन पर शक कर रहे हैं इनस्पेक्टर... ये सपने में भी ऐसा नही कर सकता....!" अमन ने ज़ोर देकर कहा....

"तो किस पर करूँ प्रोफ़्फेसर साहब!" मानव हंसा," क्या आप पर करूँ? या बाकी लोगों पर... उस रात कोई और मौजूद था ही नही.. अगर आप में से कोई क़ुबूल कर रहा है कि ये कत्ल और दोनो खत आप में से किसी ने किए हैं तो ठीक है.. मैं विचार कर लेता हूँ... वरना सारे सबूत तो रोहन की तरफ ही इशारा कर रहे हैं..." मानव ने कहा...

"हम जायें!" नीरू के चेहरे पर कड़वाहट सॉफ झलक रही थी......

"जी क्यूँ नही..? वैसे अब भी कोई मुग़ालता बचा हो तो आप भी सवाल कर सकती हैं..." मानव ने तीखी नज़रों से नीरू की और देखते हुए कहा...

नीरू, ऋतु और शिल्पा बिना कुच्छ कहे बाहर निकल गयी....

"हम भी चलते हैं लव गुरु.. तुमसे टिप्स लेने फिर कभी आउन्गा.." मानव ने सलाम ठोंकने के अंदाज में अपना हाथ अमन की और उठाया और रोहन का हाथ पकड़ कर खड़ा हो गया....," रोहन को मैं कल सुबह कोर्ट में पेश कर दूँगा.. पर मुझे नही लगता कि 4-5 महीने से पहले इसकी बैल अप्लिकेशन लगाने का कोई फायडा होगा..."

रात को करीब 12 बजे जाकर मानव को बिस्तेर नसीब हुआ.. सारे दिन की भगा दौड़ी से उसको थकान महसूस हो रही थी... रोहन से उसने श्रुति वाले केस से ज़्यादा नीरू के बारे में पूचछा था... ये जानकार उसको सुकून मिला था कि अभी तक रोहन उसके दिल में जगह बनाने में नाकामयाब रहा है... उसको खुद अहसास हो रहा था कि रोहन का नाम नीरू के साथ जुड़ा होने की वजह से वह केस में कुच्छ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट ले रहा है.. दोपहर को नीरू के सामने ही सारा खुलासा करने के पिछे भी उसका यही मकसद था...

पर मानवीयता और शायद आत्मीयता सी दिखाते हुए उसने रोहन को अपने साथ ही खाना खिलाया और स्टाफ के ही आदमी के बिस्तेर पर सो जाने को कह दिया... ताकि वह अपने ही मंन के द्वारा धिक्करे जाने से बच सके... वह खुद भी थाने में बने अपने रिटाइरिंग रूम में ही लेट गया...

अचानक दरवाजे पर हुई दस्तक से उसकी नींद टूट गयी,"कौन है?"

पर उसके सवाल का किसी ने भी जवाब नही दिया और वह करवट बदल कर फिर सोने की कोशिश करने लगा...

थोड़ी ही देर बाद दरवाजा लगातार 2 बार जल्दी जल्दी खटखटाया गया.. वह झल्ला कर उठ बैठा और पॅंट पहन कर उठ खड़ा हुआ...

"क्या बात है?" दरवाजा खोल कर मानव ने पास ही खड़े संतरी से पूचछा...

"कुच्छ नही जनाब! क्या हो गया...?" संतरी भाग कर दरवाजे के पास आया...

"दरवाजा क्यूँ खटखटा रहे हो?" मानव ने हुल्के से गुस्से से कहा...

"नही तो जनाब! मैं तो आधे घंटे से यहीं खड़ा हूँ.. दरवाजा तो किसी ने नही खटखटाया...."

मानव ने अजीब सी नज़रों से उसको घूरा और बाहर गेट की तरफ टहलने चला गया.. वापस लौट'ते हुए वा रोहन के कमरे में घुस गया.. रोहन जाग ही रहा था...

"कोई दिक्कत तो नही है भाई?" मानव ने पूचछा...

"आपके रहते दिक्कत क्या हो सकती है?" रोहन ने व्यंग्य सा किया.. मानव ने कुच्छ बोलना उचित नही समझा और बाहर निकल कर अपने कमरे में जाकर लाइट ऑफ की और फिर लेट गया...

मुश्किल से उसको लेटे हुए 5 मिनिट भी नही हुए होंगे की अचानक कमरे की लाइट जल गयी...

हड़बड़ते हुए चौंक कर मानव एक दम उच्छल कर बैठ गया," कौन है?"

पर एक बार फिर किसी से कोई जवाब नही मिला...

मानव के दिल की धड़कने बढ़ने लगी.. वह बिस्तेर से उठा और धीरे धीरे चलते हुए अलमारियों के पिछे बने स्विच बोर्ड की और बढ़ा... वहाँ पर किसी चूहें तक का भी नामोनिशान ना पाकर उसका दिल उसकी बल्लियों पर आ जमा," क्या मुसीबत है?" वह बड़बड़ाया और लाइट बंद कर दी... फिर जाने क्या सोच कर वह पलटा और लाइट फिर से ऑन कर दी....

वापस बिस्तेर की तरफ आते ही मानो उसको बिजली का कोई तेज झटका लगा हो.. हैरत और भय के मारे उसकी आँखें बाहर को निकल आई... धीरे धीरे चलकर उसने बिस्तेर पर पड़े कागज के टुकड़े को उठाया.. लाल रंग से कागज पर सिर्फ़ इतना ही लिखा हुआ था, डेड नेवेर लाइ!

आसमन्झ्स में वहीं जमकर खड़े हो चुके मानव को सपस्ट अहसास हो रहा था कि कमरे में कोई है... पर कौन है; ये उसकी समझ से परे था.. इतना तो तय था ही कि जो कोई भी था.. तीनो राइटिंग एक ही आदमी की थी...

हैरानी से पागल हुए जा रहे मानव ने बिस्तेर के नीचे देखा, दोबारा अलमारियों के पिछे देखा.. पर कहीं आदमी होने का चिन्हा तक उसको नज़र नही आया...

"कौन है भाई? ये आँख मिचौली सी कैसी खेल रहे हो... सामने आकर बात करो ना.." मानव एक जगह खड़ा खड़ा ही चारों तरफ घूम घूम कर देख रहा था...

"अगर तुम रोहन या नितिन को बचाने के इरादे से आए हो तो सामने आ जाओ! मैं भी सच जान'ना चाहता हूँ... सामने आ जाओ यार!" मानव इस तरह बात कर रहा था जैसे किसी से फोन पर बात कर रहा हो.. बोलते हुए उसकी आँखें सामने दीवार पर ठहरी हुई थी.... उसकी बातों और चेहरे से लग रहा था की उसको 'भूतों' के कॉन्सेप्ट पर यकीन हो चला है...

अगले ही पल उसने बड़ी मुश्किल से खुद को बेहोश होने से रोका... उसकी टेबल पर रखा पेन पहले सरका और फिर हवा में उठ गया.. अगले ही पल पेन टेबल पर इस तरह जाकर खड़ा हो गया मानो किसी ने पेन हाथ में लेकर टेबल पर हाथ रख दिया हो....

आअस्चर्य में मानव पलकें झपकना तक भूल गया.. वह दो कदम पिछे हटा और अपने हाथ अलमारी से चिपका लिया... उसकी आँखें हैरत से फटी जा रही थी.. गला सूख चुका था.... पर बोलती बिल्कुल बंद थी.. अब तो उसके साँस भी गिने जा सकते थे... और दिल की धड़कने भी सुनी जा सकती थी....

कुच्छ पल पेन हवा में ही लहराता रहा.. फिर अचानक उसकी सी.डी. (केस डाइयरी) के पन्ने पलटने लगे... आख़िरकार जब पन्ने पलटने बंद हो गये तो पेन डाइयरी के पन्ने से सटकार खड़ा हो गया... और इस तरह लहराने लगा जैसे पन्ने पर कुच्छ लिखा जा रहा हो....

मानव साँस रोके डाइयरी पर पेन का नृत्या देखता रहा.. आज से पहले उसने कभी सोचा भी नही था कि ऐसा भी कभी देखने को मिल सकता है.. हालाँकि अभी तक उसको किसी तरह की हानि नही हुई थी.. पर फिर भी वह पछ्ता रहा था कि रिवॉल्वर उसने टेबल के ड्रॉयर में ही क्यूँ छ्चोड़ दी.. अगर पेन उठ सकता है तो रिवॉल्वेर भी तो..

अचानक डाइयरी पेन को अपने पन्नों में ही समेटे बंद हो गयी.. कुच्छ ही देर बाद चितकनी नीचे हुई और दरवाजा अपने आप खुल गया...

मानव अभी तक सम्मोहित सा दरवाजे की और देख रहा था कि संतरी भगा भगा आया,"जी जनाब! आपने बुलाया..!"

अब तो मानव संतरी को भी शक की निगाहों से ही घूर रहा था.. ,न..नही तो!"

"ज्जई.. वो आपने दरवाजा खोला, इसीलिए मुझे लगा..." संतरी सिर झुका कर बाहर निकलने लगा....

"अरे सुनो!" मानव ने आवाज़ लगाई...

संतरी झट से सेवा में पुन्ह: हाज़िर हो गया.....

"वो... रोहन को यहीं भेज दो.. मेरे पास!"

क्रमशः .........................


raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:53

अधूरा प्यार--17 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ...............................

"जी! आपने बुलाया?" रोहन अंदर आकर विनम्रता से बोला.....

"हां याअर.. मरता क्या ना करता! आओ..." केस डाइयरी अब मानव के हाथ में थी...

"आओ.. बैठ जाओ आराम से.. यहीं सो जाना.. कल सुबह उठकर घर चले जाना!" मानव ने बिस्तेर पर बैठते हुए कहा.. कुच्छ देर पहले हुए पारलौकिक अनुभव का असर उसकी आँखों में अब भी सॉफ दिखाई दे रहा था...

रोहन ने आस्चर्य से मानव की और देखा,"इस रहमत की वजह जान सकता हूँ क्या?"

"लो.. ये पढ़ो!" कहकर मानव ने 'वो' पन्ना खोल कर डाइयरी रोहन के हाथों में दे दी....

"ये क्या है?" रोहन ने बिना डाइयरी में देखे ही पूचछा...

"अरे यार.. पढ़ो तो सही.. बाद में सब बताता हूँ...." मानव ने मुस्कुराने की कोशिश की.. पर मुस्कुराहट सिर्फ़ उसकी कोशिश में ही रही.. चेहरे पर आ नही पाई...

रोहन ने डाइयरी को सामने रखा और पढ़ने लगा....

" आपकी दुनिया के इस पार की दुनिया अजीब होती है इनस्पेक्टर साहब! हम जिंदा नही होते; पर कयि बार मरते भी नही. आप मुझको महसूस करके बेचैन हो गये हो; पर सच कहूँ तो हम आत्मायें धरती के जिंदा इंसानो से डरती हैं. लालच, हवस, साज़िश, विस्वश्घात; क्या क्या नही होता यहाँ... हुमारी दुनिया आप लोगों से लाख दर्जे बेहतर है...

हम में से ज़्यादातर आपकी दुनिया से दूर ही चैन से रहना चाहते हैं.. मैं भी शायद वापस लौट कर आने की कभी सोचती भी नही.. पर 'अधूरा प्यार' हम में से कुच्छ को मरने के बाद भी अपने प्रियतम से बाँधे रखता है... और हम आपकी और हमारी दुनिया के बीच आधार में ही लटक कर रह जाते हैं....

ये प्यार चीज़ ही ऐसी है इनस्पेक्टर साहब.. ये पानी की तरह तरल भी है और बर्फ से ज़्यादा ठोस भी... ये नाज़ुक भी है और सर्वशक्तिशाली भी.. ताकतवर इतना कि भगवान भी इसके आगे घुटने टेक देता है.. प्यार के कच्चे धागे से बँधे लोगों को मरने के बाद भी भगवान पूरी तरह अपने में समाहित नही कर पाता.. हम जहाँ रहना चाहते हैं; वहीं रहते हैं... और अक्सर अपने प्रियतम के साथ साथ..

नीरू को लिखा वो खत मैने ही लिखा था, ठीक वैसे ही जैसे अभी आपके सामने लिख रही हूँ.. आपको डराना मेरा मकसद नही था.. पर आपको अपनी मौजूदगी का सबूत देना ज़रूरी था.. माफ़ करना!

ज़रूरत पड़ी तो अपने 'अधूरे प्यार' की खातिर फिर आउन्गि!"

रोहन अचरज से काफ़ी देर तक डाइयरी में ही देखता रहा, फिर सिर उठा कर बोला,"ये किसने लिखा?"

"श्रुति आई थी !" मानव ने लंबी साँस लेते हुए जवाब दिया...

................................................

"अभी तक तेरा मूड ऑफ है? अब भूल भी जा!" ऋतु ने अगले दिन भी नीरू को इसी तरह मुँह लटकाए देखा तो उसको समझाने लगी," मेरी ही ग़लती है.. मैं ही तुझे वहाँ ले गयी..."

"अरे वो बात नही है यार... मुझे क्या फ़र्क पड़ता है.. किए की सज़ा तो मिलेगी ही..." नीरू ने मुँह लटकाए हुए कहा...

"तो फिर क्या बात है? चेहरे पर 12 क्यूँ बजे हुए हैं तेरे.." ऋतु ने पूचछा...

"घर वाले मेरी शादी करना चाहते हैं.. परसों आ रहे है मुझे देखने के लिए..." नीरू ने नाराज़गी के अंदाज में अपने होन्ट बाहर निकाल लिए...

"अर्रे वाह.. कॉंग्र्रर्रर..." ऋतु अचरज और गुस्से से उसकी और देख रही नीरू को देखते ही बीच में ही पलटी मार गयी,"...ओह्ह्ह..सॉरी.. ये तो बहुत बुरा हुआ! सच में यार... अब तू क्या करेगी?" ऋतु ने अपने चेहरे पर बनावटी दुख के भाव लाते हुए कहा....

"मेरी तो कुच्छ समझ में नही आ रहा... पापा ने तो सॉफ कह दिया है.. इस बार मेरी नही चलेगी...." नीरू ने बिगड़ते हुए कहा....

"क्यूँ इस बार क्या हो गया? पहले भी तो मान जाते थे वो...!" ऋतु बात को कुरेदते हुए बोली....

"कह रहे हैं कि ये रिश्ता हमें किस्मत से मिला है.. इसको किसी भी हालत में वो हाथ से नही जाने देने वाले.....!" नीरू ने कहा...

"अच्च्छा! ऐसा किसका रिश्ता आया है?" ऋतु ने उत्सुकता से पूचछा...

" वो.. इनस्पेक्टर नही है जो कल वहाँ आया था.. मानव! " नीरू ने मुँह बनाकर कहा....

"ऊऊ..वॉववव..."ऋतु ने इतना ही कहा था की नीरू ने उसको मारने के लिए अपनी किताब उठा ली....

"मेरा ये मतलब नही था यार.. पर घरवालों की बात से भी मैं सहमत हूँ.. क्या कमी है आख़िर उसमें...?" ऋतु कहे बिना ना रह सकी....

"तो तू करले ना शादी... इतना ही पसंद है तो.... मुझे शादी नही करनी तो नही करनी... बस!" नीरू के एक एक शब्द से उसका गुस्सा झलक रहा था....

"हाए.... काश मेरे लिए ऐसा रिश्ता आया होता.. मैं तो फट से हाँ कर देती.." ऋतु ने बत्तीसी निकाल कर कहा और फिर संजीदा हो गयी,"पर तू टालेगी कैसे... परसों आकर वो तुझे 'अपना' लेंगे... फिर इनकार करने पर तो दोनो ही घरों की इन्सल्ट होगी... ऐसा मत करना प्लीज़.. तुझे शादी नही करनी तो पहले ही मना कर देना..."

"वही तो मैं सोच रही हूँ यार... कैसे टलू.. कुच्छ समझ में नही आ रहा....

"एक बात और हो सकती है?" ऋतु ने कुच्छ सोचते हुए कहा...

"वो क्या?" नीरू ने उसको गौर से देखते हुए पूचछा....

" मानव ने हमें कल रोहन के पास देखा था... क्या पता वो खुद ही इस रिश्ते से मना कर दे...?" ऋतु ने दिमाग़ लड़ाते हुए कहा....

"नही... उसको कोई फ़र्क नही पड़ा शायद... कल शाम को फिर आया था घर पर... ये बताने की अब कोई परेशान नही करेगा... मम्मी से बड़ा हंस हंस कर बातें कर रहा था... मेरे तो दिल में आ रहा था कि 'मोगरा' उठा कर उसके सिर में मार दूं.. ना रहेगा बाँस.. और ना बजेगी बंसूरी..." नीरू ने अपना दुखड़ा रोया...

"हे हे हे... आज कल तुझे सिर फोड़ने में बड़ा मज़ा आने लगा है... कल उसका सिर देखा था? मुझे तो बड़ा मज़ा आया.. हे हे हे...." ऋतु ने हंसते हुए कहा...

"तू मेरी बात को सीरीयस क्यूँ नही ले रही....!" नीरू ने गुस्से से कहा...

"ले तो रही हूँ यार... तू ही बता, क्या कर सकते हैं...?" ऋतु ने सीरीयस होकर पूचछा...

"भाग जाउ घर से?" नीरू ने इतनी आसानी से कह दिया मानो ये बच्चों का खेल हो....

"पागल हो गयी है क्या? ये क्या कह रही है तू.. 'भागने' का मतलब पता है तुझे?" ऋतु ने उसकी और घूरते हुए कहा...

"हां.. पता है.. मैं बदनाम हो जाउन्गि... कोई मुझसे शादी नही करेगा.. हमेशा के लिए प्राब्लम सॉल्व्ड..." नीरू ने विस्वास के साथ कहा.....

"कैसी बातें कर रही है यार... अंकल आंटी पर क्या गुज़रेगी.. सोचा भी है...? वो कैसे रहेंगे....? ज़रा सोच! इतनी भी अकल नही है क्या?" ऋतु झल्ला उठी....

"ओह्हो.. मज़ाक कर रही हूँ यार... पर ये भी सच है.. शादी तो मुझे किसी भी सूरत में नही करनी है....परसों तक घर वाले नही माने तो मैं 2-4 हफ्ते के लिए कहीं खिसक जाउन्गि...!" नीरू ने कुच्छ सोचते हुए कहा....

ऋतु इस बात पर कुच्छ कहती.. इस'से पहले ही शिल्पा लगभग दौड़ती हुई उनकी और आई...," कॉनग्रेट्स!!!"

ऋतु और नीरू ने चौंक कर उसको देखा....,"तुम्हे कैसे पता लगा?" ऋतु ने अचरज से पूचछा....

"अरे, मुझे तो सब पता लग गया है.. तुम्हे ही नही पता!" शिल्पा ने उनके पास बैठते हुए खुशी से कहा....

"क्या?" दोनो एक साथ बोल पड़ी....

"रोहन वापस आ गया है... वो बिल्कुल निर्दोष था.. कल रात ही 'उस' इनस्पेक्टर को सारी बात पता चल गयी...." शिल्पा ने बताया...

ऋतु का मन कर रहा था कि शिल्पा को बता दे की नीरू के लिए उसका रिश्ता आया है.. पर नीरू के वहाँ रहते उसकी हिम्मत नही हुई...

"अच्च्छा... पर कैसे?" ऋतु ने पूचछा...

"सारी बात आकर बताउन्गि... अभी मुझे कहीं जाना है.. मेरी प्रॉक्सी लगवा दोगे ना प्लीज़...!" शिल्पा ने मिन्नत सी करी...

"जा जा.. ऐश कर.. आजकल तू गायब बहुत रहने लगी है.. बाद में पूच्हूँगी कि आख़िर राज क्या है...!" ऋतु ने हंसते हुए कहा....

क्रमशः............................


raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:54

अधूरा प्यार--18 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ...............................

"आज तो बड़ी सी पार्टी होनी चाहिए... क्यूँ?" अमन रोहन और रवि के साथ आज सारा दिन घर पर ही रहा.. शेखर घंटा भर पहले ही यहाँ से निकल कर गया था...

रोहन को छ्चोड़ कर दोनो के चेहरे खिले हुए थे.. हालाँकि सबको विस्वास था कि रोहन बे-कसूर है और जल्द ही वापस आ जाएगा... पर सुबह उनके थाने में जाने से पहले ही रोहन को वापस आया देख तीनो की खुशी का ठिकाना ही नही रहा था... तभी सुबह से ही सभी के चेहरे पर उल्लास सॉफ नज़र आ रहा था....

"काहे की पार्टी यार... बेवजह नीरू के सामने ज़िल्लत का सामना करना पड़ा.. पता नही क्या समझ रही होगी वो? मैं तो श्रुति वाला हादसा उसको बताना ही नही चाह रहा था.. बिना बात किरकिरी हो गयी..." रोहन ने कहा....

"अरे, कुच्छ नही होता.. शेखर ने शिल्पा को फोन करके सब कुच्छ बता दिया था....अब तक तो नीरू को पता लग भी गया होगा की तू बेक़ुसूर है.. पर यार ये तो कमाल ही हो गया.. श्रुति की आत्मा खुद चल कर तुझे बचाने गयी.. इट'स अम्ज़िंग यार!" अमन ने रोहन को निसचिंत करने की कोशिश की...

"अरे बचाना ही नही.. वो तो रोहन और नीरू को मिलवाना भी चाहती है... उसके घर पर भी तो लेटर मिला है.. कमाल हो रहा है यार..." रवि ने उनको बीच में टोका....

"हूंम्म... मुझे तो शाहरुख की उस फिल्म का डाइलॉग याद आ रहा है.. वो क्या है.. ' इतनी शिद्दत से मैने तुम्हे पाने की कोशिश की है, कि जर्रे जर्रे ने हमें मिलाने की साज़िश की है!' सच में यार.. तुमको मिलने के लिए तो जैसे पूरी कयनात ने अपनी ताक़त झोंक दी है... तुम्हे मिलने से अब कोई नही रोक सकता.. बेफ़िकर रहो.." अमन गहरी साँस लेते हुए रोहन की और देख मुस्कुराने लगा...

बात सुनकर रोहन का दिल खुश हो गया और वो भी मुस्कुराने लगा....

"अबे तू क्यूँ इतना खुश हो रहा है... कोशिश तूने नही, टीले पर तुम्हारे इंतजार में तड़प रही भाभी जी के दिल ने की है.. हम'में से किसी ने थोड़ी बहुत की है तो मैने.. ये देखो मेरा सिर.. मुझे तो लगता है, भाभी जी ने पर्मनेंट निशानी दे दी मुझे.. कम ही नही होता.." रवि ने कहा और तीनो हँसने लगे....

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" ऋतु!" शाम को नीरू ने सीरीयस होकर ऋतु से बात करनी शुरू की.. अगले दिन शाम को दोनो नीरू के घर पर ही थी....

"हुम्म.. बोल!" ऋतु ने कहा...

"अब क्या करूँ यार? मेरा तो दिमाग़ खराब हो रहा है सोच सोच कर.." नीरू ने अपना सिर पकड़ रखा था...

"देख... मैं तो यही कहूँगी की घर वालों की मान लेने में ही भलाई है.. क्या फायडा बेकार में उलझ कर.. जब कुच्छ हो ही नही सकता...!.... और फिर शादी करने में बुराई ही क्या है? मेरी ये समझ में नही आ रहा की तू शादी से इनकार क्यूँ कर रही है.. कोई और पसंद कर रखा है क्या?" ऋतु ने सीरीयस होते हुए कहा...

"तू बकवास क्यूँ कर रही है.. कुच्छ आइडिया है तो बता..!" नीरू ने गुस्से से कहा..," वो कल आ रहे हैं.. और तुझे मज़ाक सूझ रहा है..."

"मज़ाक नही कर रही यार... ठीक ही तो कह रही हूँ.. आख़िर बुराई क्या है शादी करने में.. वो तो सभी करते हैं...!" ऋतु ने ज़ोर देकर कहा...

"मुझे नही पता.. पर मुझे पक्का पता है कि शादी करते ही मैं मर जाउन्गि.." नीरू ने उदास होकर कहा....

"अच्च्छा! आज तक तो कोई मरा नही... तुझे ऐसा क्यूँ लगता है.." ऋतु लगातार जिरह कर रही थी...

"मेरा दिल कह रहा है, इसीलिए.. और मुझे पता है ये झूठ नही है.. मरना ही है तो क्यूँ ना शादी से पहले ही मर जाउ?" नीरू ने हताशा के भाव चेहरे पर लाते हुए कहा,"अपने घर में तो मरूँगी...."

"देख.. अब बकवास तू कर रही है... प्लीज़.. ऐसा मत बोल.. कुच्छ नही होगा.. अंकल आंटी तुम्हारा बुरा थोड़े ही चाहते हैं..." मरने की बात पर ऋतु को गुस्सा आ गया...

"ठीक है तो जा! तू भी उन्ही का ही पक्ष ले ले.. मुझे जो करना होगा मैं कर लूँगी..!" नीरू ने कहा और लॅटेकार तकिये के नीचे अपना चेहरा दबा लिया...

ऋतु ने नीरू के पास सरक कर उस'से तकिया छ्चीन लिया," अच्च्छा बोल.. क्या करना है.. मैं तेरे ही साथ हूँ पागल!" ऋतु उसके बालों में हाथ फेरने लगी....

ऋतु की बात सुनकर नीरू खुश होकर बैठ गयी....."देख.. मैं कल से ही मम्मी पापा के पिछे पड़ी हूँ... पर उनके कान पर जू तक नही रैंग रही.. अब तो बस एक ही इलाज है..." कहकर नीरू चुप हो गयी...

"वो क्या?" ऋतु ने संशय से पूचछा....

" गरिमा के पास होस्टल में चली जाउ 2-4 दिन के लिए.. उसको कुच्छ पता भी नही है इस शादी के चक्कर के बारे में.. मैं जाकर मम्मी को फोन भी कर दूँगी कि शादी ना करने का वादा करो तो मैं आ जाउन्गि.... फिर 'ये' आराम से मेरी शादी करने की अपनी ज़िद भी छ्चोड़ देंगे..." नीरू ने कहा....

"तूने अपनी तो सोच ली... उनकी जो बे-इज़्ज़ती होगी वो?" ऋतु ने उसको घूरते हुए कहा....

"तो मैं और क्या कर सकती हूँ यार.. मैने मम्मी से उनका नंबर. लेने की भी कोशिश की.. पर वो मानी ही नही... बता मैं क्या करूँ..." नीरू ने मायूस होकर कहा....

"हूंम्म.. देख, मैं तो सॉफ बता रही हूँ.. मुझे तो तेरा ऐसा करना अच्च्छा नही लगता... कल जो होता है होने दे.. बाद में सोच लेंगे....!" ऋतु ने समझाने की कोशिश की...

"अरे, तुझे पता नही है... वो कल मँगनी के लिए आ रहे हैं.. खाली देख कर जाने की बात होती तो मैं मान लेती.. पर घर वालों का जल्दी शादी करने का प्रोग्राम बन गया है... उन्ही के कहने पर... अब तू खुद ही सोच.. अब ज़्यादा बे-इज़्ज़ती होगी या बाद में...?" नीरू ने ज़ोर देकर पूचछा...

"देख, मैं कुच्छ नही कहती... तुझे जो करना है कर ले!" ऋतु गुम्सुम सी बैठकर कुच्छ सोचने लगी...

"देख! तू मेरा प्लान लीक तो नही करेगी ना?" नीरू ने उसको घूरते हुए पूचछा...

"कुच्छ नही करती मैं.. जो करना है कर ले.. मैं जा रही हूँ.." ऋतु खड़ी होते हुए बोली.. उसके चेहरे पर उदासी और बे'बसी सॉफ झलक रही थी.....

ऋतु को पूरी रात नींद नही आई.. सारी रात करवटें बदलते हुए वह नीरू के इस कदम के होने वाले असर के बारे में ही सोचती रही... केयी बार उसके मंन में आया की फोन करके आंटी जी को सब कुच्छ बता दे.. पर इसके लिए ज़रूरी हिम्मत वह जुटा नही सकी...

सुबह मम्मी उसको उठाने आई तो आते ही बोली," क्या बात है बेटी? तबीयत तो ठीक है?" मम्मी ने माथे पर हाथ लगा कर देखा.. वो तेज बुखार से तप रही थी.. उसकी आँखें लाल थी और चेहरा बोझिल सा लग रहा था....

"ओह्हो.. तुझे भी आज ही बीमार होना था... आज तो नीरू को देखने आने वाले हैं ना? चल चाय के साथ कुच्छ खा ले.. और गोली ले लेना... ठीक हो जाएगी..." मम्मी ने उसको पुच्कार्ते हुए कहा...

ऋतु फफक सी पड़ी... उसने अपना सिर घुटनो में दबा लिया और सिसकने लगी... अब तक तो सारे मोहल्ले को ही पता लग चुका होगा कि आज नीरू की मँगनी है.. अब क्या होगा....

अचानक उसको इस तरह से व्यवहार करते देख मम्मी जी विचलित सी हो गयी," क्या हुआ बेटा! ऐसा क्यूँ कर रही है तू..? कुच्छ बात है क्या?" मम्मी बुरा सा मुँह बनाकर उसके साथ बैठ गयी और उसका चेहरा अपनी छाती से लगा लिया...

"कुच्छ नही मम्मी!" और ऋतु और ज़्यादा तेज़ रोने लगी.....

"आए.. मेरी लाडली! ऐसा क्यूँ कर रही है? कोई बात है तो बता ना.. तू भी मुझसे कुच्छ छुपाती है कभी?" मम्मी अधीर होकर उसको दुलार करने लगी...

"ममियैयीई... वो... नीरू!" ऋतु लगातार मोटे मोटे आँसू गिराती हुई सिसक रही थी.....

"क्या हुआ? फिर से लड़ाई हो गयी क्या..? ले तू चाय ले.." मम्मी ने टेबल से ठंडी हो रही चाय उसको उठाकर दी.....

"वो शादी नही करना चाहती मम्मी... इससलिए घर से जा रही है..." अपने दिल का गुबार निकलते ही ऋतु फुट फुट कर रोने लगी.....

"हाए राम! ये क्या कह रही है तू? घर वाले समझाते क्यूँ नही... अब क्या होगा?" मम्मी के हाथ से चाय का कप छ्छूट'ते छ्छूट'ते बचा...

"उनको नही पता मम्मी... वो बिना बताए जाएगी....." ऋतु ने कहा...

"हे भगवाअन... मैं अभी उनके घर जाती हूँ.. ऐसे कैसे चली जाएगी...?" मम्मी ने एक पल भी गँवाए बिना अपनी चप्पल पहनी और तेज़ी से बाहर निकल गयी...

"उनको ये मत बताना मम्मी.. कि मैने बताया है.. वो बोलेगी नही कभी मुझसे.." ऋतु ने जब तक बात कही.. मम्मी जी बाहर निकल चुकी थी.. पता नही सुना या नही सुना....

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ऋतु की मम्मी ने नीरू के घर की बेल बजाई.. बाहर उसकी मम्मी ही निकल कर आई," आओ बेहन.. हम तो आज बड़ी लेट उठे..." नीरू की मम्मी जी ने मुस्कुरकर उसका स्वागत किया...

"नीरू कहाँ है?" ऋतु की मम्मी ने सीधा यही सवाल किया....

"सो रही है उपर.. क्यूँ?"

"ज़रा बुलाना.. मुझे कुच्छ काम है.. चलो रहने दो.. मैं उपर ही चली जाती हूँ..." ऋतु की मम्मी उनको बात बताए बिना ही नीरू को समझाना चाहती थी....

"अरे क्यूँ परेशान होती हो... आओ चाय पी लो तब तक.. मैं बुलाकर लाती हूँ..." कहते हुए नीरू की मम्मी उपर चली गयी.....

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दिन निकलने से पहले ही नीरू घर से बाहर निकल चुकी थी.. जाने क्या बात थी, पर उसका शादी ना करने का दृढ़ निस्चय निसचीत तौर पर नियती द्वारा निर्धारित ही लगता था.. बाहर निकलने से पहले उसके मन में इतनी घबराहट नही थी, जितना वो घर से बाहर कदम रखने के बाद महसूस कर रही थी. ये तो शुक्र था कि उसके सामने एक मंज़िल थी.. अमृतसर का गर्ल'स होस्टल ! वरना क्या हाल होता उसका... कभी घर वालों का ख़याल और कभी उनकी इज़्ज़त का.. उसका मॅन कहीं ना कहीं उसको ऐसा करने से रोक रहा था... पर उसके कदम आगे ही आगे बढ़ते चले गये..

बस-स्टॅंड पर जाकर उसने अनमने मंन से अमृतसर की एक टिकेट खरीदी और बस में बैठ गयी......

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"हे भगवान! ये क्या हो गया...? क्या जवाब देंगे हम उनको... इस'से अच्च्छा तो हम उसकी मान ही लेते...." सारी बात का पता लगते ही मम्मी पापा दोनों के पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी.... ऋतु के पापा भी वहीं आ चुके थे... सबके माथे पर चिंता की लकीरें थी....

"मैं गाड़ी लेकर देख कर आता हूँ... " विचलित से पापा ने कहा और बाहर निकल गये....

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"अंकल जी! कितनी देर में चलेगी बस?" नीरू ने बस में चढ़े कंडक्टर से पूचछा...

"5-7 मिनिट और लगने हैं बेटी बस.. एक बार मिस्त्री क्लच ठीक कर दें.. फिर तो यहाँ से सीधी 5वें गियर में चलनी है...... हे हे" कंडक्टर ने कहा और आगे चला गया.....

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