"तूने चंदर से कह दिया था ना के तू रात में हवेली में ही सोया करेगी?" रूपाली ने ड्रॉयिंग रूम में ही बैठी टीवी देख रही बिंदिया से पुचछा
"हां मैने उसे कह दिया था के मैं आपके कमरे में सोया करूँगी क्यूंकी आपको रात को डर सा लगता है" बिंदिया ने टीवी बंद करते हुए कहा
"ठीक है. तेज आ गया है. मैं अपने कमरे में जा रही हूँ. आयेज का काम तेरा है" कहते हुए रूपाली अपने कमरे की और बढ़ गयी.
अपने कमरे में आकर रूपाली बिस्तर पर निढाल गिर पड़ी. उसकी कुच्छ समझ नही आ रहा था के क्या सोचे और क्या करे. सोचते सोचते उसे 2 घंटे से ज़्यादा गुज़र गये.पिच्छले कुच्छ दीनो में उसकी पूरी ज़िंदगी बदल चुकी थी. एक सीधी सादी घरेलू औरत से वो कुच्छ और ही बन चुकी थी. भगवान का नाम सुबह शाम जपने वाली औरत का अपने ही ससुर से नाजायज़ संबंध बन गया था और वो अपने ससुर से प्यार भी करने लगी थी. उसका वो ससुर जिसकी असलियत खुद उसके लिए सवाल बनकर खड़ी हो गयी थी. एक तरफ उसके पति की मौत का सवाल था और दूसरी तरफ वो इनस्पेक्टर जो उसपर ही शक कर रहा था. कहाँ वो कल तक ठाकुर खानदान की बहू थी और कहाँ वो आज पूरी जायदाद की मालकिन हो गयी थी. कहाँ उसने पिच्छले 10 साल से अपनी ज़िंदगी से समझौता कर रखा था और कहाँ अब वो खुद ही जाने कितने सवालों के जवाब ढूँढने निकल पड़ी थी. हद तो ये थी के कहाँ वो कल तक एक शर्मीली सी औरत थी और कहाँ अब वो मर्द तो मर्द औरतों के साथ भी बिस्तर पर जाने को तैय्यार थी.
ये ख्याल आते ही उसका ध्यान पायल की तरफ गया जो आज उसके कमरे में नही आई थी. बल्कि आज तो पूरा दिन पायल उसे नज़र नही आई थी. रूपाली ने उठकर बीच का दरवाज़ा खोला और पायल के कमरे में आई. पायल अपने उसी बेख़बर अंदाज़ में सोई पड़ी थी. ना खुद का होश और ना अपने कपड़ो का. रूपाली उसे देखकर मुस्कुराइ और वापिस अपने कमरे में आ गयी.
खिड़की पर खड़े खड़े उसकी नज़र सामने कॉंपाउंड में बिंदिया और चंदर के कमरो की तरफ गयी. दोनो के कमरो की लाइट्स ऑफ थी यानी के आज रात काम नही चल रहा था. तभी रूपाली को ध्यान आया के उसने आज रात बिंदिया को तेज को इशारा कर देने को कहा था. ये ख्याल आते ही वो फ़ौरन अपने कमरे से निकली और तेज के कमरे की तरफ आई. कमरे अंदर से बंद था. रूपाली ने दरवाज़े पर कान लगाकर ध्यान से सुनने की कोशिश की. गहरी रात थी और हर तरफ सन्नाटा था इसलिए उसे कमरे के अंदर से आती बिंदिया की आवाज़ सुनने में कोई परेशानी नही हुई. आवाज़ सुनकर ही उसने अंदाज़ा लगा लिया के अंदर बिंदिया चुद रही है. रूपाली फिर मुस्कुरा उठी. उसने तो सिर्फ़ बिंदिया को इशारा करने को कहा था पर वो तो पहली ही रात तेज के बिस्तर में पहुँच गयी थी. रूपाली को लगा जैसे उसने कोई बहुत बड़ी जीत हासिल कर ली हो. उसे यकीन था के अगर हर रात बिंदिया तेज का बिस्तर गरम करे तो यूँ रातों को तेज का हवेली से बाहर रहना कम हो जाएगा.
वो फिर वापिस अपने कमरे में पहुँची. आधी रात होने को आई थी और नींद उसकी आँखों से कोसो दूर थी. ये बात उसे खाए जा रही थी के उसके अपने भाई का चक्कर कामिनी के साथ था और उसे इस बात का कोई अंदाज़ा नही था. या फिर चक्कर था ही नही. ये भी तो हो सकता है के उन दोनो को शायरी का शौक रहा हो और इंदर ने बस यूँ ही शायरी लिख कर कामिनी को दी हो. रूपाली ने अपनी अलमारी खोलकर फिर से कामिनी की डाइयरी निकली. डाइयरी उसने कपड़ो के बीच च्छुपाकर रखी थी इसलिए. डाइयरी निकालते ही कुच्छ कपड़े अलमारी से निकलकर बाहर गिर पड़े. रूपाली कपड़े उठाकर वापिस अलमारी में रखने लगी. उन्ही कपड़ो में एक वो ब्रा भी था जो उसे अपने सबसे छ्होटे देवर कुलदीप के कमरे से मिला था. जो ना तो उसका था, ना कामिनी का और ना ही उसकी सास सरिता देवी का. रूपाली ने एक नज़र ब्रा पर डाली और अलमारी में रखने ही लगी थी के अचानक उसे कुच्छ ध्यान आया. उसने जल्दी से डाइयरी अलमारी में वापिस रखी, अलमारी बंद करी और ब्रा हाथ में लिए हुए अपने कमरे से बाहर आई.
सीढ़ियाँ उतरती वो सीधा बेसमेंट में पहुँची. वो अपने साथ कमरे से टॉर्च उठा लाई थी इसलिए लाइट्स ऑन करने के बाजार टॉर्च ऑन कर ली. वो नही चाहती थी के अगर तेज या कोई और बाहर आए तो इस वक़्त उसे बेसमेंट में पाए और सबसे ज़्यादा वो अभी किसी से बॉक्स के बारे बात नही करना चाहती थी. टॉर्च की रोशनी उसने नीचे ज़मीन पर डाली. कपड़े अभी भी ज़मीन पर यूँ ही पड़े थे जैसे वो शाम को छ्चोड़कर गयी थी. रूपाली ने नीचे बैठकर कपड़े इधर उधर करने शुरू किए. कामिनी के साथ जिस दूसरी औरत के कपड़े बॉक्स में थे उसने उन कपड़ो में से उस औरत का ब्रा निकाला और टॉर्च की रोशनी में उस ब्रा से मिलाया जो उसे कुलदीप के कमरे से मिला था. एक नज़र डालते ही वो सॉफ समझ गयी के दोनो ब्रा एक ही औरत के थे. रंग के सिवा दोनो ब्रा बिल्कुल एक जैसे थे. साइज़ के साथ साथ ब्रा का पॅटर्न भी बिल्कुल एक जैसा था. सॉफ ज़ाहिर था के या तो ये दोनो किसी एक ही औरत के हैं या दो ऐसी औरतों के हैं जिनका कपड़े का अंदाज़ बिल्कुल एक दूसरे की तरह था.
रूपाली अभी अपनी ही सोच में थी के उसे एक हल्की सी आहट आई. कोई बस्मेंट का दरवाज़ा खोल रहा था. उसने फ़ौरन अपनी टॉर्च ऑफ की और हाथ में वो सरिया उठा लिया जिससे उसने बॉक्स का ताला तोड़ा था.
सेक्सी हवेली का सच compleet
Re: सेक्सी हवेली का सच
सेक्शी हवेली का सच --19
रूपाली साँस रोके चुप खड़ी हो गयी. बेसमेंट में घुप अंधेरा हो गया था. हल्की सी रोशनी बेसमेंट के दरवाज़े से आ रही थी. उसी रोशनी में एक परच्छाई धीरे धीरे सीढ़ियाँ उतरने लगी. रूपाली की कुच्छ समझ नही आ रहा था के ये कौन हो सकता था. उसने पहले भी एक बार किसी को हवेली के कॉंपाउंड में देखा था रात को पर तब उसे लगा था के ये उसका भ्रम है. क्या ये वही शक्श है? उसकी समझ नही आ रहा था के चुप रहे या शोर मचाए?
वो परच्छाई धीरे धीरे बड़ी होती चली गयी और एक साया सीढ़ियाँ उतारकर बेसमेंट के अंदर आ गया. हल्की सी रोशनी में रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के वो आदमी बेसमेंट में चारो तरफ देख रहा है. फिर उस शक्श ने धीरे से एक आवाज़ की
"आएययी"
और रूपाली समझ गयी के वो चंदर था. गूंगे की आवाज़ में साफ ये सवाल था के जैसे वो किसी से पुच्छ रहा हो के " हो क्या?"
रूपाली हैरत में पड़ गयी. वो इतनी रात को यहाँ क्या कर रहा था और उसे कैसे पता के रूपाली यहाँ है. रूपाली ने धीरे से सरिया नीचे गिरा दिया और कोने से निकलकर आगे को बढ़ी.
सरिया गिरने की आवाज़ से चंदर ने भी उस तरफ देखा जहाँ रूपाली खड़ी थी. उस कोने में बिल्कुल अंधेरा पर रूपाली का साया फिर भी नज़र आ रहा था. रूपाली आगे बढ़ी ही थी के चंदर भी फ़ौरन उसकी तरफ बढ़ा और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती उसने रूपाली को दोनो बाहों से पकड़ लिया. गिरफ़्त बहुत सख़्त थी. रूपाली कुच्छ कहना चाहती ही थी के चंदर ने उसे पलटके घुमा दिया और सामने रखी एक पुरानी टेबल पर ज़बरदस्ती झुका दिया.
टेबल पर कुच्छ रखा हुआ जो आंधरे में ना रूपाली को नज़र आया और ना ही चंदर को. जैसे ही रूपाली झुकी वो चीज़ सीधे उसके माथे पर लगी और उसकी आँखों के आगे तारे नाच गये. उसे लगा जैसे उसकी सर में बॉम्ब फॅट रहे हो और उसकी हाथ पावं ढीले पड़ गये. वो टेबल पर गिर सी पड़ी. वो अब भी होश में थी पर लग रहा था जैसे जिस्म से जान निकल चुकी हो. रूपाली ने आधी बेहोशी में उठकर सीधी खड़ी होने की कोशिश की पर चंदर का हाथ उसकी कमर पर था. उसे कोई अंदाज़ा नही था के इस छ्होटे से लड़के में इतनी ताक़त है. उसने दूसरे हाथ से रूपाली की नाइटी उपेर करनी शुरू कर दी और तब रूपाली को समझ आया के वो क्या करने जा रहा था. उसने फिर उठने को कोशिश की पर चंदर ने उसे काफ़ी ज़ोर से पकड़ रखा था. एक ही पल में रूपाली की नाइटी उठकर उसकी कमर तक आ गयी और कमर के नीचे वो बिल्कुल नंगी हो गयी. नाइटी के नीचे उसने पॅंटी नही पहेन रखी थी इसलिए चंदर का हाथ सीधा उसकी नंगी गान्ड पर पड़ा.
रूपाली की आँखें भारी हो रही थी. सर पर लगी चोट की वजह से उसका सर घूमता हुआ महसूस हो रहा था और वो चाहकर भी इतनी हिम्मत नही जोड़ पा रही थी के उठकर खड़ी हो जाए ये कुच्छ बोले. उसे चंदर का हाथ अपनी चूत पर महसूस हुआ और फिर कोई चीज़ उसकी चूत में घुसने लगी. रूपाली जानती थी के ये चंदर का लंड है और वो उसे चोदने की कोशिश कर रहा है पर वो टेबल पर वैसे ही पड़ी रही. आँखें और भी भारी हो रही थी.
"चंदर" रूपाली के मुँह से बस इतना ही निकला और पिछे से चंदर के धक्के शुरू हो गये. वो रूपाली की गान्ड पकड़े धक्के मारे जा रहा था और रूपाली आधी बेहोशी में चुप चाप चुदवा रही थी. पर इस हालत में भी उसे अपने जिस्म में फिर से वही वासना महसूस होने लगी जो वो पिच्छले कुच्छ दिन से महसूस कर रही थी. चंदर किसी जंगली जानवर की तरह धक्के मार रहा था. उसके हाथ रूपाली की गान्ड सहला रहे थे और उसके मुँह से आ आ की आवाज़ निकल रही थी.
धीरे धीरे सर पर लगी अचानक चोट का असर कम हुआ और रूपाली को अपने जिस्म में फिर से ताक़त आती महसूस हुई. उसका दिमाग़ कह रहा था के उठकर चंदर को रोके और एक थप्पड़ उसके मुँह पर लगा दे पर दिल कुच्छ और ही कह रहा था. वो पिच्छली रातों में चुदी नही थी और उसका जिस्म टूट रहा था. पिच्चे से चूत पर पड़ते चंदर के धक्के जैसे उसके जिस्म में लहरें उठा रहे थे और रूपाली ना चाहते हुए भी वैसे ही झुकी रही. उसकी दोनो छातिया नीचे टेबल पर रगड़ रही थी और उसके जिस्म में वासना पूरे ज़ोर पर पहुँच चुकी थी. वो यूँ ही झुकी रही और चंदर उसे पिछे से चोद्ता रहा.
थोड़ी देर बाद चंदर के धक्के एक्दुम तेज़ हो गये और रूपाली समझ गयी के वो झड़ने वाला है. वो अब तक खुद भी 2 बार झाड़ चुकी और तीसरी बार झड़ने को तैय्यार थी. चंदर ने किसी पागल सांड़ की तरह धक्के मारने शुरू कर दिए. उसका पूरा लंड रूपाली की चूत से निकलता और फिर पूरा अंदर समा जाता. बेसमेंट में ठप ठप की आवाज़ें गूँज रही थी.
"आआआहह " की आवाज़ के साथ चंदर ने एक ज़ोर से धक्का मारा और रूपाली की चूत से तीसरी बार पानी बह निकला. ठीक उसी पल चंदर ने अपना लंड बाहर निकाला और झुकी हुई रूपाली की गान्ड पर अपना पानी गिरने लगा. रूपाली की आँखें बंद हो चली थी. उसे सिर्फ़ नीचे अपनी चूत से बहता पानी और उपेर गान्ड पर गिर रहा चंदर का पानी महसूस हो रहा था. उसे लगा जैसे कई दिन के बीमार को दवाई मिल गयी हो. उसका पूरा जिस्म ढीला पड़ चुका था.
जब वासना का ज़ोर थमा और रूपाली का जिस्म शांत पड़ा तो वो टेबल से उठकर सीधी हुई और अपनी नाइटी को ठीक किया. बेसमेंट में नज़र घुमाई तो वहाँ कोई नही था. तभी उसे सीढ़ियाँ चढ़ता चंदर नज़र आया. वो उसे छोड़कर उसी खामोशी से चला गया जैसे आया था
रूपाली वापिस अपने कमरे में पहुँची. सर पर लगी चोट के कारण अब भी उसके सर में दर्द हो रहा था. अभी अभी बस्मेंट में जो हुआ था उसके बारे में कुच्छ सोचने की हिम्मत उसमें नही थी. कमरे में पहुँचकर वो सीधा बिस्तर पर गिरी और धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गयी.
सुबह आँख खुली तो सर अब भी भारी था. उसने उठकर शीशे में अपने आपको देखा तो सर पर जहाँ चोट लगी थी वहाँ एक नीला निशान पड़ गया था. अच्छी बात ये थी के निशान उसके माथे पर उपर की और पड़ा था. अगर रूपाली अपने बाल हल्के से आगे को कर लेती तो किसी को वो निशान नज़र ना आता. रूपाली ने ऐसा ही किया. बाल हल्के से आगे किए और अपने कमरे से उतरकर नीचे आई.
बिंदिया उसे बड़े कमरे में ही मिली.
"कैसा रहा?" उसने बिंदिया से पुचछा
"मुश्किल नही था. हल्का सा इशारा किया मैने और वही हुआ जो आपने चाहा था" बिंदिया मुस्कुराते हुए बोली
"बाद में बताना मुझे" रूपाली ने कहा "एक चाय लाकर दे और तेज कहाँ है?"
"वो तो सुबह सुबह ही कहीं निकल गये" बिंदिया ने कहा और किचन की तरफ चाय लेने निकल पड़ी.
रूपाली अभी सोच ही रही थी के क्या करे के तभी फोन की घंटी बजी. उसने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से ख़ान की आवाज़ आई.
"आपको पोलीस स्टेशन आना होगा मॅ'म" ख़ान कह रहा था "मैं जानता हूँ के आपके घर की औरतें पोलीस स्टेशन्स में नही जाया करती पर और कोई चारा नही है मेरे पास. कुच्छ ज़रूरी काम है"
"ठीक है" रूपाली उससे बहेस करने के मूड में बिल्कुल नही थी. उसने ख़ान से कहा के वो अभी पोलीस स्टेशन आ रही है और फोन रख दिया. वैसे भी उसके पास करने को कुच्छ ख़ास नही था.
तकरीबन 2 घंटे बाद रूपाली पोलीस स्टेशन में दाखिल हुई.
"कहिए" उसने ख़ान के सामने रखी हुई चेर पर बैठते हुए पुचछा
ख़ान उसे देखकर अपने उसे पोलिसेया अंदाज़ में मुस्कुराया
"कैसी हैं आप?" उसने ऐसे पुचछा जैसे रूपाली पर बहुत बड़ा एहसान कर रहा हो
"ज़िंदा हू" रूपाली ने लंबी साँस लेते हुए कहा "काम क्या है ये कहिए"
"वो क्या है मॅ'म के आपकी हवेली से अगर कुच्छ मिले तो उसकी ज़िम्मेदारी भी तो आपकी ही हुई ना इसलिए याद किया था मैने" ख़ान ने कहा
"मतलब? ज़िम्मेदारी?" रूपाली को उसकी बात समझ नही आई
"आपकी हवेली से मिली लाश के बारे में बात कर रहा हूँ. लावारिस पड़ी है बाहर आंब्युलेन्स में. कोई नही है जलाने या दफ़नाने वाला तो मैने सोचा के लावारिस समझके आग देने से पहले मैं आपसे पुच्छ लूँ" ख़ान ने सामने रखे पेपरवेट को घूमते हुए कहा
"मुझसे पुच्छना क्यूँ ज़रूरी समझा?" रूपाली को गुस्सा आ रहा था के इस बात पर ख़ान ने उसे इतनी दूर बुलाया है
"अब आपकी हवेली से मिली है तो ये भी तो हो सकता है के आपके किसी रिश्तेदार की हो इसलिए" ख़ान ने कहा
रूपाली गुस्से में उठ खड़ी हुई
"आपको लाश के साथ जो करना है करिए और आइन्दा ऐसी फ़िज़ूल बात के लिए हमें तकलीफ़ ना दीजिएगा"
"लाश कहाँ बची मॅ'म. कुच्छ हड्डियाँ हैं बस" रूपाली जाने के लिए मूडी ही थी के ख़ान फिर बोला "मुझे जो करना है वो तो मैं कर ही लूँगा पर उसके लिए इस पेपर पर आपके साइन चाहिए क्यूंकी लाश आपकी प्रॉपर्टी से बरामद हुई है"
ख़ान ने एक पेपर रूपाली की और सरकाया. रूपाली ने पेन उठाकर ख़ान की बताई हुई जगह पर साइन कर दिए
"बैठिए" ख़ान ने उसे फिर बैठने को कहा "आपने कुच्छ पुच्छना भी है"
"क्या पुच्छना है?"रूपाली ने खड़े खड़े ही पुचछा
"बैठ तो जाइए" ख़ान ने ज़ोर देकर कहा तो रूपाली बैठ गयी
"कुच्छ रिपोर्ट्स वगेरह कराई थी मैने. डीयेने वगेरह मॅच कराया. आपको जानकार खुशी होगी के लाश कामिनी की नही है" ख़ान ने कहा
रूपाली को दिल ही दिल में एक आराम सा मिला. उसे ये डर अंदर अंदर ही खा रहा था के कहीं हवेली में मिली लाश कामिनी की तो नही.
"दो बातें" उसने ख़ान से कहा "पहली तो ये के मुझे पता है के वो कामिनी की नही है. और दूसरी ये के आपको ये क्यूँ लगा के वो लाश कामिनी की हो सकती है?
"अब कोई लापता हो जाए तो सारे पहलू सोचने पड़ते हैं ना" ख़ान भी अब काफ़ी सीरीयस अंदाज़ में बोल रहा था
"मेरी ननद लापता नही है" रूपाली ने बड़े आराम से कहा
"अच्छा तो कहाँ है वो?" ख़ान ने कहा "विदेश नही गयी ये मैं जानता हूँ"
रूपाली ने कोई जवाब नही दिया. कुच्छ देर तक ना वो बोली और ना ख़ान
"अच्छा खेर ये बात छ्चोड़िए. जब आपके पति का खून हुआ था उस वक़्त आप कहाँ थी?" ख़ान ने थोड़ी देर बाद दूसरा सवाल किया
"क्या मतलब?" रूपाली ने हैरत से पुचछा "हवेली में और कहाँ"
"इस बात का कोई गवाह है आपके पास?" ख़ान ने फिर पुचछा
"ठाकुर साहब" रूपाली ने कहना शुरू ही किया था के ख़ान बीच में बोल पड़ा
"जो की ज़िंदा हैं या मर गये समझ नही आता. जबसे आक्सिडेंट हुआ है वो तो होश में ही नही आए" ख़ान ने ताना सा मारते हुए पुचछा
"मेरी सास" रूपाली ने अपनी सास का नाम लिया
"जो मर चुकी हैं" ख़ान ने फिर ताना सा मारा
"मेरी ननद" रूपाली ने तीसरा नाम लिया
"कामिनी जो कहाँ है ना आपको पता ना मुझे" ख़ान ने ये बात भी काट दी
"घर के नौकर" रूपाली के पास ये आखरी नाम था
"बात कर ली मैने उनसे भी. उनमें से किसी ने भी आपकी उस वक़्त हवेली में नही देखा था" ख़ान के पास जैसे इस बात का भी जवाब था
"क्यूंकी उस वक़्त मैं अपने कमरे में थी. मैं उन दीनो ज़्यादा वक़्त अपने कमरे के पूजा घर में ही बिताया करती थी" रूपाली जैसे लगभग चीख पड़ी
उसकी ये बात सुनकर ख़ान हस्ने लगा. जैसे रूपाली ने कोई जोक सुनाया हो
तभी पोलीस स्टेशन का दरवाज़ा ज़ोर से खुला और थाने में बैठे 3 कॉन्स्टेबल्स और एक हवलदार उठकर खड़े हो गये, जैसे किसी बहुत बड़े आदमी के आने पर नौकर उसकी इज़्ज़त में उठ खड़े होते हैं. रूपाली ने पलटकर देखा. दरवाज़े पर तेज खड़ा था. उसका चेहरा गुस्से में लाल हो रहा था.
"आप बाहर जाइए भाभी" उसने रूपाली से कहा
"एक मिनिट" रूपाली जाने ही लगी थी के ख़ान बोल पड़ा "मुझे इनसे कुच्छ और सवाल पुच्छने हैं"
उसकी ये बात सुनकर तेज उसकी तरफ ऐसे बढ़ा जैसे शेर अपने शिकार पर लपकता है. ख़ान भी उसकी इस अचानक हरकत से एक कदम पिछे को हो गया
"तुझे जो बात करनी है मुझसे कर" तेज उसके बिल्कुल सामने आ खड़ा हुआ "साले 2 कौड़ी के पोलिसेवाले, तेरी हिम्मत कैसी हुई हमारे घर की औरत को पोलीस स्टेशन बुलाने की"
"यहाँ किससे क्या पूछना है और किसे बुलाना है ये फ़ैसला मैं करूँगा" ख़ान भी अब संभाल चुका था और उसकी आवाज़ भी ऊँची हो गयी थी "ये मेरा इलाक़ा है"
"अपने चारों तरफ देख ख़ान" तेज ने खड़े हुए कॉन्स्टेबल्स की तरफ इशारा किया "मेरे कदम रखते ही ये सारे उठ खड़े हुए. ये रुतबा है हमारा. और जब तक मैं ना कह दूँ ये बैठेंगे नही. अब सोच के इलाक़ा किसका है"
रूपाली ने तेज को बहुत दिन बाद इस रूप में देखा था. आज उसे 10 साल पुराना वो तेज नज़र आ रहा था जिसके सामने बोलने की हिम्मत खुद उसने पिता ठाकुर शौर्या सिंग भी नही करते थे
"बैठ जाओ" ख़ान खड़े हुए कॉन्स्टेबल्स और हवलदार पर चिल्लाया पर कोई नही बैठा. उसने दूसरी बार और फिर तीसरी बार हुकुम दिया पर सब ऐसे ही खड़े रहे.
तेज हस पड़ा
"चलिए भाभी जी" उसने रूपाली से कहा
रूपाली दरवाज़े से बाहर निकली. तेज उसके पिछे ही था.
"मैं जानता हूँ" पीछे खड़ा ख़ान फिर गुस्से में बोला "ये पोलिसेवाले जिन्हें तुमने हवेली का कुत्ता बना रखा था इनके दम पर ही तुमने अपने भाई के खून को ढका है ना? मैं जानता हूँ सालों के ये काम तुम्हारा ही है और तुम्हारी गर्दन दबाके रहूँगा मैं"
तब तक रूपाली और तेज पोलीस स्टेशन से बाहर आ चुके थे. ख़ान की ये बात सुन तेज एक बार फिर अंदर जाने को मुड़ा. वो जानती थी के इस बार वो अंदर गया तो ख़ान पर हाथ उठाएगा इसलिए उसने फ़ौरन तेज का हाथ पकड़कर रोका और उसे गर्दन हिलाकर मना किया. उसके मना करने पर तेज भी रुक गया और दोनो सामने खड़ी रूपाली की कार की तरफ बढ़े.
"आप आगे चलिए" रूपाली के कार में बैठने पर तेज ने कहा "मैं अपनी कार में पिछे आ रहा हूँ"
रूपाली साँस रोके चुप खड़ी हो गयी. बेसमेंट में घुप अंधेरा हो गया था. हल्की सी रोशनी बेसमेंट के दरवाज़े से आ रही थी. उसी रोशनी में एक परच्छाई धीरे धीरे सीढ़ियाँ उतरने लगी. रूपाली की कुच्छ समझ नही आ रहा था के ये कौन हो सकता था. उसने पहले भी एक बार किसी को हवेली के कॉंपाउंड में देखा था रात को पर तब उसे लगा था के ये उसका भ्रम है. क्या ये वही शक्श है? उसकी समझ नही आ रहा था के चुप रहे या शोर मचाए?
वो परच्छाई धीरे धीरे बड़ी होती चली गयी और एक साया सीढ़ियाँ उतारकर बेसमेंट के अंदर आ गया. हल्की सी रोशनी में रूपाली ने अंदाज़ा लगाया के वो आदमी बेसमेंट में चारो तरफ देख रहा है. फिर उस शक्श ने धीरे से एक आवाज़ की
"आएययी"
और रूपाली समझ गयी के वो चंदर था. गूंगे की आवाज़ में साफ ये सवाल था के जैसे वो किसी से पुच्छ रहा हो के " हो क्या?"
रूपाली हैरत में पड़ गयी. वो इतनी रात को यहाँ क्या कर रहा था और उसे कैसे पता के रूपाली यहाँ है. रूपाली ने धीरे से सरिया नीचे गिरा दिया और कोने से निकलकर आगे को बढ़ी.
सरिया गिरने की आवाज़ से चंदर ने भी उस तरफ देखा जहाँ रूपाली खड़ी थी. उस कोने में बिल्कुल अंधेरा पर रूपाली का साया फिर भी नज़र आ रहा था. रूपाली आगे बढ़ी ही थी के चंदर भी फ़ौरन उसकी तरफ बढ़ा और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती उसने रूपाली को दोनो बाहों से पकड़ लिया. गिरफ़्त बहुत सख़्त थी. रूपाली कुच्छ कहना चाहती ही थी के चंदर ने उसे पलटके घुमा दिया और सामने रखी एक पुरानी टेबल पर ज़बरदस्ती झुका दिया.
टेबल पर कुच्छ रखा हुआ जो आंधरे में ना रूपाली को नज़र आया और ना ही चंदर को. जैसे ही रूपाली झुकी वो चीज़ सीधे उसके माथे पर लगी और उसकी आँखों के आगे तारे नाच गये. उसे लगा जैसे उसकी सर में बॉम्ब फॅट रहे हो और उसकी हाथ पावं ढीले पड़ गये. वो टेबल पर गिर सी पड़ी. वो अब भी होश में थी पर लग रहा था जैसे जिस्म से जान निकल चुकी हो. रूपाली ने आधी बेहोशी में उठकर सीधी खड़ी होने की कोशिश की पर चंदर का हाथ उसकी कमर पर था. उसे कोई अंदाज़ा नही था के इस छ्होटे से लड़के में इतनी ताक़त है. उसने दूसरे हाथ से रूपाली की नाइटी उपेर करनी शुरू कर दी और तब रूपाली को समझ आया के वो क्या करने जा रहा था. उसने फिर उठने को कोशिश की पर चंदर ने उसे काफ़ी ज़ोर से पकड़ रखा था. एक ही पल में रूपाली की नाइटी उठकर उसकी कमर तक आ गयी और कमर के नीचे वो बिल्कुल नंगी हो गयी. नाइटी के नीचे उसने पॅंटी नही पहेन रखी थी इसलिए चंदर का हाथ सीधा उसकी नंगी गान्ड पर पड़ा.
रूपाली की आँखें भारी हो रही थी. सर पर लगी चोट की वजह से उसका सर घूमता हुआ महसूस हो रहा था और वो चाहकर भी इतनी हिम्मत नही जोड़ पा रही थी के उठकर खड़ी हो जाए ये कुच्छ बोले. उसे चंदर का हाथ अपनी चूत पर महसूस हुआ और फिर कोई चीज़ उसकी चूत में घुसने लगी. रूपाली जानती थी के ये चंदर का लंड है और वो उसे चोदने की कोशिश कर रहा है पर वो टेबल पर वैसे ही पड़ी रही. आँखें और भी भारी हो रही थी.
"चंदर" रूपाली के मुँह से बस इतना ही निकला और पिछे से चंदर के धक्के शुरू हो गये. वो रूपाली की गान्ड पकड़े धक्के मारे जा रहा था और रूपाली आधी बेहोशी में चुप चाप चुदवा रही थी. पर इस हालत में भी उसे अपने जिस्म में फिर से वही वासना महसूस होने लगी जो वो पिच्छले कुच्छ दिन से महसूस कर रही थी. चंदर किसी जंगली जानवर की तरह धक्के मार रहा था. उसके हाथ रूपाली की गान्ड सहला रहे थे और उसके मुँह से आ आ की आवाज़ निकल रही थी.
धीरे धीरे सर पर लगी अचानक चोट का असर कम हुआ और रूपाली को अपने जिस्म में फिर से ताक़त आती महसूस हुई. उसका दिमाग़ कह रहा था के उठकर चंदर को रोके और एक थप्पड़ उसके मुँह पर लगा दे पर दिल कुच्छ और ही कह रहा था. वो पिच्छली रातों में चुदी नही थी और उसका जिस्म टूट रहा था. पिच्चे से चूत पर पड़ते चंदर के धक्के जैसे उसके जिस्म में लहरें उठा रहे थे और रूपाली ना चाहते हुए भी वैसे ही झुकी रही. उसकी दोनो छातिया नीचे टेबल पर रगड़ रही थी और उसके जिस्म में वासना पूरे ज़ोर पर पहुँच चुकी थी. वो यूँ ही झुकी रही और चंदर उसे पिछे से चोद्ता रहा.
थोड़ी देर बाद चंदर के धक्के एक्दुम तेज़ हो गये और रूपाली समझ गयी के वो झड़ने वाला है. वो अब तक खुद भी 2 बार झाड़ चुकी और तीसरी बार झड़ने को तैय्यार थी. चंदर ने किसी पागल सांड़ की तरह धक्के मारने शुरू कर दिए. उसका पूरा लंड रूपाली की चूत से निकलता और फिर पूरा अंदर समा जाता. बेसमेंट में ठप ठप की आवाज़ें गूँज रही थी.
"आआआहह " की आवाज़ के साथ चंदर ने एक ज़ोर से धक्का मारा और रूपाली की चूत से तीसरी बार पानी बह निकला. ठीक उसी पल चंदर ने अपना लंड बाहर निकाला और झुकी हुई रूपाली की गान्ड पर अपना पानी गिरने लगा. रूपाली की आँखें बंद हो चली थी. उसे सिर्फ़ नीचे अपनी चूत से बहता पानी और उपेर गान्ड पर गिर रहा चंदर का पानी महसूस हो रहा था. उसे लगा जैसे कई दिन के बीमार को दवाई मिल गयी हो. उसका पूरा जिस्म ढीला पड़ चुका था.
जब वासना का ज़ोर थमा और रूपाली का जिस्म शांत पड़ा तो वो टेबल से उठकर सीधी हुई और अपनी नाइटी को ठीक किया. बेसमेंट में नज़र घुमाई तो वहाँ कोई नही था. तभी उसे सीढ़ियाँ चढ़ता चंदर नज़र आया. वो उसे छोड़कर उसी खामोशी से चला गया जैसे आया था
रूपाली वापिस अपने कमरे में पहुँची. सर पर लगी चोट के कारण अब भी उसके सर में दर्द हो रहा था. अभी अभी बस्मेंट में जो हुआ था उसके बारे में कुच्छ सोचने की हिम्मत उसमें नही थी. कमरे में पहुँचकर वो सीधा बिस्तर पर गिरी और धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गयी.
सुबह आँख खुली तो सर अब भी भारी था. उसने उठकर शीशे में अपने आपको देखा तो सर पर जहाँ चोट लगी थी वहाँ एक नीला निशान पड़ गया था. अच्छी बात ये थी के निशान उसके माथे पर उपर की और पड़ा था. अगर रूपाली अपने बाल हल्के से आगे को कर लेती तो किसी को वो निशान नज़र ना आता. रूपाली ने ऐसा ही किया. बाल हल्के से आगे किए और अपने कमरे से उतरकर नीचे आई.
बिंदिया उसे बड़े कमरे में ही मिली.
"कैसा रहा?" उसने बिंदिया से पुचछा
"मुश्किल नही था. हल्का सा इशारा किया मैने और वही हुआ जो आपने चाहा था" बिंदिया मुस्कुराते हुए बोली
"बाद में बताना मुझे" रूपाली ने कहा "एक चाय लाकर दे और तेज कहाँ है?"
"वो तो सुबह सुबह ही कहीं निकल गये" बिंदिया ने कहा और किचन की तरफ चाय लेने निकल पड़ी.
रूपाली अभी सोच ही रही थी के क्या करे के तभी फोन की घंटी बजी. उसने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से ख़ान की आवाज़ आई.
"आपको पोलीस स्टेशन आना होगा मॅ'म" ख़ान कह रहा था "मैं जानता हूँ के आपके घर की औरतें पोलीस स्टेशन्स में नही जाया करती पर और कोई चारा नही है मेरे पास. कुच्छ ज़रूरी काम है"
"ठीक है" रूपाली उससे बहेस करने के मूड में बिल्कुल नही थी. उसने ख़ान से कहा के वो अभी पोलीस स्टेशन आ रही है और फोन रख दिया. वैसे भी उसके पास करने को कुच्छ ख़ास नही था.
तकरीबन 2 घंटे बाद रूपाली पोलीस स्टेशन में दाखिल हुई.
"कहिए" उसने ख़ान के सामने रखी हुई चेर पर बैठते हुए पुचछा
ख़ान उसे देखकर अपने उसे पोलिसेया अंदाज़ में मुस्कुराया
"कैसी हैं आप?" उसने ऐसे पुचछा जैसे रूपाली पर बहुत बड़ा एहसान कर रहा हो
"ज़िंदा हू" रूपाली ने लंबी साँस लेते हुए कहा "काम क्या है ये कहिए"
"वो क्या है मॅ'म के आपकी हवेली से अगर कुच्छ मिले तो उसकी ज़िम्मेदारी भी तो आपकी ही हुई ना इसलिए याद किया था मैने" ख़ान ने कहा
"मतलब? ज़िम्मेदारी?" रूपाली को उसकी बात समझ नही आई
"आपकी हवेली से मिली लाश के बारे में बात कर रहा हूँ. लावारिस पड़ी है बाहर आंब्युलेन्स में. कोई नही है जलाने या दफ़नाने वाला तो मैने सोचा के लावारिस समझके आग देने से पहले मैं आपसे पुच्छ लूँ" ख़ान ने सामने रखे पेपरवेट को घूमते हुए कहा
"मुझसे पुच्छना क्यूँ ज़रूरी समझा?" रूपाली को गुस्सा आ रहा था के इस बात पर ख़ान ने उसे इतनी दूर बुलाया है
"अब आपकी हवेली से मिली है तो ये भी तो हो सकता है के आपके किसी रिश्तेदार की हो इसलिए" ख़ान ने कहा
रूपाली गुस्से में उठ खड़ी हुई
"आपको लाश के साथ जो करना है करिए और आइन्दा ऐसी फ़िज़ूल बात के लिए हमें तकलीफ़ ना दीजिएगा"
"लाश कहाँ बची मॅ'म. कुच्छ हड्डियाँ हैं बस" रूपाली जाने के लिए मूडी ही थी के ख़ान फिर बोला "मुझे जो करना है वो तो मैं कर ही लूँगा पर उसके लिए इस पेपर पर आपके साइन चाहिए क्यूंकी लाश आपकी प्रॉपर्टी से बरामद हुई है"
ख़ान ने एक पेपर रूपाली की और सरकाया. रूपाली ने पेन उठाकर ख़ान की बताई हुई जगह पर साइन कर दिए
"बैठिए" ख़ान ने उसे फिर बैठने को कहा "आपने कुच्छ पुच्छना भी है"
"क्या पुच्छना है?"रूपाली ने खड़े खड़े ही पुचछा
"बैठ तो जाइए" ख़ान ने ज़ोर देकर कहा तो रूपाली बैठ गयी
"कुच्छ रिपोर्ट्स वगेरह कराई थी मैने. डीयेने वगेरह मॅच कराया. आपको जानकार खुशी होगी के लाश कामिनी की नही है" ख़ान ने कहा
रूपाली को दिल ही दिल में एक आराम सा मिला. उसे ये डर अंदर अंदर ही खा रहा था के कहीं हवेली में मिली लाश कामिनी की तो नही.
"दो बातें" उसने ख़ान से कहा "पहली तो ये के मुझे पता है के वो कामिनी की नही है. और दूसरी ये के आपको ये क्यूँ लगा के वो लाश कामिनी की हो सकती है?
"अब कोई लापता हो जाए तो सारे पहलू सोचने पड़ते हैं ना" ख़ान भी अब काफ़ी सीरीयस अंदाज़ में बोल रहा था
"मेरी ननद लापता नही है" रूपाली ने बड़े आराम से कहा
"अच्छा तो कहाँ है वो?" ख़ान ने कहा "विदेश नही गयी ये मैं जानता हूँ"
रूपाली ने कोई जवाब नही दिया. कुच्छ देर तक ना वो बोली और ना ख़ान
"अच्छा खेर ये बात छ्चोड़िए. जब आपके पति का खून हुआ था उस वक़्त आप कहाँ थी?" ख़ान ने थोड़ी देर बाद दूसरा सवाल किया
"क्या मतलब?" रूपाली ने हैरत से पुचछा "हवेली में और कहाँ"
"इस बात का कोई गवाह है आपके पास?" ख़ान ने फिर पुचछा
"ठाकुर साहब" रूपाली ने कहना शुरू ही किया था के ख़ान बीच में बोल पड़ा
"जो की ज़िंदा हैं या मर गये समझ नही आता. जबसे आक्सिडेंट हुआ है वो तो होश में ही नही आए" ख़ान ने ताना सा मारते हुए पुचछा
"मेरी सास" रूपाली ने अपनी सास का नाम लिया
"जो मर चुकी हैं" ख़ान ने फिर ताना सा मारा
"मेरी ननद" रूपाली ने तीसरा नाम लिया
"कामिनी जो कहाँ है ना आपको पता ना मुझे" ख़ान ने ये बात भी काट दी
"घर के नौकर" रूपाली के पास ये आखरी नाम था
"बात कर ली मैने उनसे भी. उनमें से किसी ने भी आपकी उस वक़्त हवेली में नही देखा था" ख़ान के पास जैसे इस बात का भी जवाब था
"क्यूंकी उस वक़्त मैं अपने कमरे में थी. मैं उन दीनो ज़्यादा वक़्त अपने कमरे के पूजा घर में ही बिताया करती थी" रूपाली जैसे लगभग चीख पड़ी
उसकी ये बात सुनकर ख़ान हस्ने लगा. जैसे रूपाली ने कोई जोक सुनाया हो
तभी पोलीस स्टेशन का दरवाज़ा ज़ोर से खुला और थाने में बैठे 3 कॉन्स्टेबल्स और एक हवलदार उठकर खड़े हो गये, जैसे किसी बहुत बड़े आदमी के आने पर नौकर उसकी इज़्ज़त में उठ खड़े होते हैं. रूपाली ने पलटकर देखा. दरवाज़े पर तेज खड़ा था. उसका चेहरा गुस्से में लाल हो रहा था.
"आप बाहर जाइए भाभी" उसने रूपाली से कहा
"एक मिनिट" रूपाली जाने ही लगी थी के ख़ान बोल पड़ा "मुझे इनसे कुच्छ और सवाल पुच्छने हैं"
उसकी ये बात सुनकर तेज उसकी तरफ ऐसे बढ़ा जैसे शेर अपने शिकार पर लपकता है. ख़ान भी उसकी इस अचानक हरकत से एक कदम पिछे को हो गया
"तुझे जो बात करनी है मुझसे कर" तेज उसके बिल्कुल सामने आ खड़ा हुआ "साले 2 कौड़ी के पोलिसेवाले, तेरी हिम्मत कैसी हुई हमारे घर की औरत को पोलीस स्टेशन बुलाने की"
"यहाँ किससे क्या पूछना है और किसे बुलाना है ये फ़ैसला मैं करूँगा" ख़ान भी अब संभाल चुका था और उसकी आवाज़ भी ऊँची हो गयी थी "ये मेरा इलाक़ा है"
"अपने चारों तरफ देख ख़ान" तेज ने खड़े हुए कॉन्स्टेबल्स की तरफ इशारा किया "मेरे कदम रखते ही ये सारे उठ खड़े हुए. ये रुतबा है हमारा. और जब तक मैं ना कह दूँ ये बैठेंगे नही. अब सोच के इलाक़ा किसका है"
रूपाली ने तेज को बहुत दिन बाद इस रूप में देखा था. आज उसे 10 साल पुराना वो तेज नज़र आ रहा था जिसके सामने बोलने की हिम्मत खुद उसने पिता ठाकुर शौर्या सिंग भी नही करते थे
"बैठ जाओ" ख़ान खड़े हुए कॉन्स्टेबल्स और हवलदार पर चिल्लाया पर कोई नही बैठा. उसने दूसरी बार और फिर तीसरी बार हुकुम दिया पर सब ऐसे ही खड़े रहे.
तेज हस पड़ा
"चलिए भाभी जी" उसने रूपाली से कहा
रूपाली दरवाज़े से बाहर निकली. तेज उसके पिछे ही था.
"मैं जानता हूँ" पीछे खड़ा ख़ान फिर गुस्से में बोला "ये पोलिसेवाले जिन्हें तुमने हवेली का कुत्ता बना रखा था इनके दम पर ही तुमने अपने भाई के खून को ढका है ना? मैं जानता हूँ सालों के ये काम तुम्हारा ही है और तुम्हारी गर्दन दबाके रहूँगा मैं"
तब तक रूपाली और तेज पोलीस स्टेशन से बाहर आ चुके थे. ख़ान की ये बात सुन तेज एक बार फिर अंदर जाने को मुड़ा. वो जानती थी के इस बार वो अंदर गया तो ख़ान पर हाथ उठाएगा इसलिए उसने फ़ौरन तेज का हाथ पकड़कर रोका और उसे गर्दन हिलाकर मना किया. उसके मना करने पर तेज भी रुक गया और दोनो सामने खड़ी रूपाली की कार की तरफ बढ़े.
"आप आगे चलिए" रूपाली के कार में बैठने पर तेज ने कहा "मैं अपनी कार में पिछे आ रहा हूँ"
Re: सेक्सी हवेली का सच
सेक्सी हवेली का सच --20
हेलो दोस्तो अब आयेज की कहानी आपके लिए .......
रूपाली और तेज दोनो ही हवेली पहुँचे.
"आपको क्या ज़रूरत थी यूँ पोलीस स्टेशन जाने की?" तेज ने रूपाली से हवेली में घुसते ही पुचछा
रूपाली ने कोई जवाब नही दिया
"वो पोलीस वाला अपने आपको बहुत बड़ा शेर समझता है" तेज अब भी गुस्से में जल रहा था "1 दिन में हेकड़ी निकाल दूँगा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई के इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी करे"
बोलकर तेज अपने कमरे की और बढ़ा ही था के रूपाली की आवाज़ सुनकर रुक गया
"कौन सी शान की बात कर रहे हो ठाकुर तएजवीर सिंग"
तेज रूपाली की तरफ पलटा
"इस हवेली में अब उल्लू भी नही बोलते. लोग इस तरफ आने से भी कतराते हैं. वो तो फिर गैर हैं छ्चोड़ो, यहाँ तो अपने भी हवेली में कदम नही रखते. किस शान की बात कर रहे हैं आप?" रूपाली ने पुचछा तो इस बार तेज के पास कोई जवाब नही था.
"ज़रा बाहर निकालकर नज़र डालिए तएजवीर जी. इस हवेली पर अब मनहूसियत बरसती है. बाहर से देखने से ऐसा लगता है जैसे यहाँ बरसो से कोई नही रहा. इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी तो गुज़रते वक़्त ने कर दी है वो पोलीस वाला क्या करेगा." रूपाली बोलती रही और तेज चुप खड़ा उसकी तरफ देखता रहा
"हमारी ज़मीन हमारा ही अपना कोई हमारी नज़र के सामने से चुरा ले गया. जो रह गयी वो बंजर पड़ी हैं. बची हुई जो दौलत है वो ख़तम हो रही है. इस हवेली के मलिक हॉस्पिटल में पड़े हैं. आपके भाई को बीच सड़क किसी ने गोली मार दी थी. आपने नाम पर लोग हस्ते हैं. और आप हवेली की शान की बात कर रहे हैं?" रूपाली ने जैसे अपने दिल में जमा सारा ज़हेर तेज पर उगल दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली.
"और हां" जाते जाते वो फिर पलटी "जब घर के आदमियों का कहीं आता पता ना हो तो घर की औरतों को ही पोलीस स्टेशन जाना पड़ता है"
रूपाली ने एक आखरी ताना सा मारा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. अपने पिछे उसे तेज गुस्से में पेर पटकता हुआ हवेली के बाहर जाता हुआ दिखाई दिया.
कमरे में पहुँच कर रूपाली के आँसू निकल पड़े. उसने जो कुच्छ तेज से कहा था वो गुस्से में था पर इन बातों ने उसके खुद के ज़ख़्म हरे कर दिए थे. कुच्छ देर तक यूँ ही आँसू बहाने के बाद उसने सामने रखा फोन उठाया और देवधर का नंबर मिलाया
"हां रूपाली जी कहिए" दूसरी तरफ से देवधर की आवाज़ आई
रूपाली को वो ज़माना याद आ गया जब देवधर जैसे उसे छ्होटी ठकुराइन के नाम से बुलाते थे. आज उसकी इतनी औकात हो गयी थी के उसे नाम से बुला रहा था. वो एक ठंडी आह भरकर रह गयी. दिल में जानती थी के ये ग़लती देवधर की नही बल्कि ठाकुर खानदान की ही है. जब अपने ही सिक्के खोटे हों तो कोई क्या करे.
"मैने आपसे कहा था ने के आने से एक दिन पहले फोन करूँगी." रूपाली ने जवाब दिया
"तो आप कल आ रही हैं?" देवधर उसकी बात का मतलब समझ गया
"हां" रूपाली ने जवाब दिया "कल सुबह यहाँ से निकलेंगे तो दोपहर तक आपके पास पहुँच जाएँगे."
"जैसा आप ठीक समझें" देवधर ने कहा "वैसे आप एक बार बता देती के किस बारे में बात करी है तो मैं पेपर्स वगेरह तैय्यार रखता"
"ये आकर ही बताती हूँ" कहकर रूपाली ने फोन काट दिया. अपनी हालत ठीक की और फिर नीचे आई.
पायल बड़े कमरे में बैठी टीवी देख रही थी.
"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने पुचछा
"जी वो नहाने गयी हैं" पायल ने टीवी की आवाज़ धीरे करते हुए कहा
"और चंदर?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने कंधे हिला दिए
"पता नही"
रूपाली हवेली से निकलकर बिंदिया के कमरे की तरफ बढ़ी. वो कमरे की नज़दीक पहुँची ही थी के बिंदिया के कमरे का दरवाजा खुला और वो माथे से पसीना साफ करती हुई बाहर निकली. पीछे चंदर था. रूपाली फ़ौरन समझ गयी के वो क्या करके आ रहे हैं पर कुच्छ नही बोली.
"अगर तू नहा ली हो तो मेरे कमरे में आ. कुच्छ बात करनी है" रूपाली ने कहा तो बिंदिया ने हां में सर हिला दिया.
रूपाली चंदर की तरफ मूडी
"और तुझे मैने कहा था सफाई के लिए. उस तरफ देख" रूपाली ने हवेली के कॉंपाउंड में उस तरफ इशारा किया जहाँ अब भी कुच्छ झाड़ियाँ थी. उसके चेहरे पर अब भी हल्के गुस्से के भाव थे. चंदर ने फ़ौरन इशारे से कहा के वो अभी सफाई शुरू कर देगा.
रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. कल रात के बाद उसने अब पहली बार चंदर को देखा था. जिस अंदाज़ से चंदर ने उसकी तरफ देखा था उससे रूपाली सोचने पर मजबूर हो गयी थी. उसमें ऐसा कोई अंदाज़ नही था जैसा की उसे चोदने के बाद होना चाहिए था. चंदर ने अब भी उसे उसी इज़्ज़त से देखा था जैसे पहले देखा था और अब भी वैसे ही उसका हुकुम माना था जैसे पहले मानता था.
थोड़ी देर बाद बिंदिया और रूपाली दोनो रूपाली के कमरे में बैठे थे और रूपाली गुस्से से बिंदिया को घूर रही थी.
"अपनी रंग रलियान ज़रा कम कर. दिन में इस वक़्त? वो भी तब जब तेरी बेटी यहीं बैठी थी? अगर तेज देख लेते तो काट देते तुझे और उस चंदर को भी"
माफ़ कर दीजिए मालकिन" बिंदिया ने सर झुकाए कहा "अब नही होगा"
रूपाली वहीं उसके सामने बिस्तर पर बैठ गयी
"कल रात का बता. क्या लगता है तुझे? खुश था चंदर तेरे साथ बिस्तर पर?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा तो वो मुस्कुरा उठी
"खुश? मालकिन कल पूरी रात सोने नही दिया मुझे" बिंदिया बोली
"तूने मनाया कैसे तेज को?" रूपाली ने पुचछा
"ज़रूरत ही कहाँ पड़ी मनाने की. वो तो पहले ही तैय्यार बैठे थे" बिंदिया ने जब देखा के रूपाली का गुस्सा थोड़ा कम हो रहा है तो वो भी खुलकर बात करने लगी
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"मतलब ये के रात अपने कमरे में जाने से पहले उन्होने मुझसे कहा के एक कप चाय उनके कमरे में ले आओं. मैं उसी वक़्त इस समझ गयी की मुझे कुच्छ करने की ज़रूरत नही और मुझे कमरे में चाय के बहाने क्यूँ बुलाया जा रहा है. मैने चाय बनाई और लेकर उनके पास जाने से पहले पायल के कमरे में पहुँची. वहाँ जाकर में अपनी चोली उतारी और पायल की पहेन ली"
"पायल की चोली? वो क्यूँ?" रूपाली ने हैरत से पुचछा
"क्यूंकी पायल की छातिया मुझसे काफ़ी बड़ी हैं. कभी कभी तो मुझे खुद को हैरानी होती है. ज़रा सी उमर में ही उसकी छातिया मुझसे दुगुनी हो गयी हैं" बिंदिया ने कहा
"तू अपनी ही बेटी की छातिया क्यूँ देखती है?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा
"माँ हून मालकिन" बिंदिया ने कहा "जवान बेटी घर में हो तो सब देखना पड़ता है. और वैसे भी उस ज़रा सी बच्ची के जिस्म पर सबसे पहले उसकी बड़ी बड़ी छातिया ही दिखाई देती हैं"
रूपाली का दिल किया के उसको बताए के जिसे वो ज़रा सी बच्ची कह रही है उसके जिस्म में माँ से भी ज़्यादा आग है और एक लंड ले भी चुकी है.
"अच्छा वो छ्चोड़" रूपाली बोली "तूने पायल की चोली क्यूँ पहनी?"
"मालकिन उसकी चोली मुझे ढीली आती है क्यूंकी मेरी छातिया इतनी नही" बिंदिया ने अपनी चुचियों की तरफ देखते हुए कहा. रूपाली ने भी अपनी नज़र उधर ही डाली
"उसकी छातिया बड़ी होने की वजह से अगर मैं उसकी चोली पहेन लूँ तो सामने से इतनी ढीली हो जाती है के हल्का सा झुकते ही सारा नज़ारा सामने आ जाता है" बिंदिया ने समझाते हुए कहा
"ओह अब समझी. फिर?"
"फिर मैं चाय लेकर उनके कमरे में पहुँची और कप बिल्कुल उनके सामने रखा. कप रखते हुए मैं झुकी और बस. मेरी चूचियाँ आपके देवर के सामने थी" बिंदिया बोली
"तेज ने देखी?" रूपाली अब बेझिझक सवाल पुच्छ रही थी.
"देखी? हाथ बढ़ाकर सीधा एक चूची पकड़ ली." बिंदिया हस्ते हुए बोली
रूपाली दिल ही दिल में तेज की हिम्मत की दाद दिए बिना ना रह सकी
"पकड़ ली? तूने क्या कहा?" उसने बिंदिया से पुचछा
"मैं क्या कहती. मैं तो पहली ही तैय्यार थी. चूची पकड़कर छ्होटे ठाकुर ने हल्का सा दबाव डाला और कहा के मेरी चूचियाँ काफ़ी सख़्त हैं. इस उम्र में ज़रा भी ढीली नही हैं. अब बारी थी मेरी तरफ से इशारे की."
रूपाली चुप चाप बैठी सुन रही थी
"मैं मुस्कुराइ और कहा के छ्होटे ठाकुर चोली के उपेर से हाथ लगाके कहाँ पता चलता है के चूचियाँ सख़्त हैं या उमर के साथ ढीली पड़ गयी हैं" बिंदिया ने बात जारी रखी "इतना इशारा काफ़ी था. वो उठे और चोली मेरे जिस्म से ऐसे अलग की जैसे फाड़ रहे हों. जब मैं उपेर से नंगी हो गयी तो उन्होने मेरी चूचियों पर हाथ फेरा और कहा के मैं सही था. तुम्हारी चूचियाँ सही में काफ़ी सख़्त हैं और हाथ से दबाने लगा. तब तक मैं खुद भी गरम हो चुकी थी. मैं उनके बाल सहलाने लगी. वो कभी मेरी चूचियो को दबाते तो कभी मेरे निपल्स को सहलाते. थोड़ी देर तक यही खेल चलता रहा. जब मुझसे और बर्दाश्त ना हुआ तो मैने उनका सर आगे को खींचा और उनका मुँह अपनी छाती पर दबा दिया. मेरा एक निपल सीधा उनके मुँह में गया और वो ऐसे चूसने लगे जैसे आज के बाद कोई औरत नंगी देखने को नही मिलेगी."
"तुझे मज़ा आया?"रूपाली ने पुचछा
"मेरे निपल्स मेरे शरीर का सबसे कमज़ोर हिस्सा हैं मालकिन. मुझे सबसे ज़्यादा मज़ा निपल्स चुसवाने में आता है " बिंदिया ने फिर एक बार अपनी चूचियों पर नज़र डाली "पर मेरी किस्मत के ना तो मेरा मर्द ये बात समझ सका और ना ही चंदर. दोनो ही मेरी चूचियों पर कुच्छ ख़ास ध्यान नही देते थे इसलिए जब छ्होटे ठाकुर ने तसल्ली के साथ मेरे निपल्स को रगड़ा तो मैं वही पिघल गयी. मैने खुद अपना ल़हेंगा खोलकर नीचे गिरा दिया और उनके सामने नंगी हो गयी. उनके हाथ मेरे पुर जिस्म पर फिरने लगे और जाकर मेरी गांद पर रुक गये. उन्होने मेरी आँखों में देखते हुए निपल मुँह से निकाला और बोले के उन्हें सबसे ज़्यादा मेरी गांद पसंद है और ये कहते हुए गांद को हल्के से दबा दिया."
"फिर?"रूपाली इतना ही कह सकी
"मैं समझ गयी के आज मेरी चूत के साथ साथ गांद का भी नंबर लगेगा. मैं मुस्कुराइ और बोली के ठाकुर साहब मैं तो पूरी आपकी हूँ पर पहले आपको तैय्यार तो कर दूँ. ये कहते हुए मैं उनके सामने बैठ गयी और उनका पाजामा नीचे सरका कर उनका लंड बाहर निकाला" बिंदिया ने कहा
कैसा था, ये बात रूपाली के मुँह से निकलते निकलते रह गयी. उसे फ़ौरन ये एहसास हुआ के वो अपने देवर के बारे में बात कर रही है और बिंदिया से इस तरह का कोई सवाल ग़लत साबित हो सकता है. दूसरा उसे खुद ये हैरत हुई के वो तेज के लंड के बारे में जानना चाहती है. उसने बात फ़ौरन अपने दिमाग़ से झटकी.
"थोड़ी ही देर बाद मैं नंगी उनके सामने बैठी थी और लंड मेरे मुँह में था" बिंदया ने कहा तो रूपाली मन मसोस कर रह गयी. वो उम्मीद कर रही थी के बिंदिया खुद ये कहेगी के उसे तेज का लंड कैसा लगा
"मेरा इरादा तो ये था के बिस्तर पर मैं जो जानती हूँ वो करूँ ताकि छ्होटे ठाकुर को खुश कर सकूँ पर ऐसा हो ना सका. थोड़ी देर बाद उन्होने लंड मेरे मुँह से निकाला और मुझे बिस्तर पर आने को कहा. मैं मुस्कुराते हुए बिस्तर पर आई और उनके सामने लेटकर अपनी टांगे फेला दी. पर उनका इरादा कुच्छ और ही था. उन्होने मेरी टांगे फिर बंद की और मुझे घूमकर उल्टा कर दिया" बिंदिया ने कहा
"मतलब तेरी......" रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी
"हां" बिंदिया समझ गयी के वो क्या कहना चाह रही थी "मैं समझ गयी के पहला नंबर मेरी गांद का लगने वाला है और ऐसा ही हुआ. तेज ने अपने पुर लंड पर तेल लगा लिया और थोड़ा मेरी गांद पर. उनकी इस हरकत से मैं समझ गयी के वो पहले ही किसी औरत की गांद मार चुके हैं"
"फिर?" खुद रूपाली भी अब गरम हो रही थी
"फिर वो आकर मेरे उपेर आकर बैठ गये और दोनो हाथों से मेरी गांद को फेला दिया. और फिर लंड मेरी गांद पर दबाया और बिना रुके धीरे धीरे पूरा लंड अंदर घुसा दिया. मैं दर्द से कराह उठी" बिंदिया ने कहा
"दर्द? पर तू तो पहले भी ये कर चुकी है" रूपाली ने हैरान होते पुचछा
"तो क्या हुआ मालकिन" बिंदिया ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा "कोई चूत थोड़े ही है के पहली बार में ही दर्द हो. गांद में लंड घुसेगा तो दर्द तो होगा ही. चाहे पहली बार हो या बार बार."
"अच्छा फिर ?" रूपाली ने उसे आयेज बताने को कहा
"छ्होटे ठाकुर भी बिस्तर पर खिलाड़ी थे. गांद में लंड जाते ही समझ गये की मैं आगे से क्या पिछे से भी कुँवारी नही हूँ. धीरे से मेरे कान में बोले के अच्छा तो यहाँ भी कोई हमसे पहले आके जा चुका है. मैं कहा के ठाकुर साहब ये कोई सड़क नही है जहाँ से लोग आए जाएँ तो सड़क खराब हो जाए. यहाँ तो कितने भी आकर चले जाएँ कोई फरक नही पड़ता. जगह वैसे की वैसी ही रहती है, थोड़ी देर बाद वो मेरे उपेर लेते थे और लंड मेरे अंदर बाहर हो रहा था. मुझे भी मज़ा आ रहा था इसलिए मैं भी पूरा साथ दे रही थी पर उल्टी लेटी होने की वजह से मैं ज़्यादा कुच्छ कर नही पा रही थी और ये बात ठाकुर भी समझ गये. थोड़ी देर ऐसे ही गांद मारने के बाद उन्होने मुझे उपेर आकर लंड गांद में लेने को कहा. फिर वो सीधा लेट गये और मैं उनके उपेर बैठ गयी. लंड एक बार फिर गांद में घुस गया. फिर मैं कभी आराम से हिलती तो कभी तेज़ी से उपेर नीचे होती. कभी अपनी चूचियाँ खुद दबाती तो कभी उनके मुँह में घुसा देती. बस ये मानिए के मैने तब तक हार नही मानी जब तक के मैं खुद भी झाड़ गयी और ठाकुर का पानी अपनी गांद में ना निकाल लिया. उपेर बैठकर सब मुझे करना था इसलिए मैं ख्याल रखा के कोई कमी नई रहने दूं और ठाकुर को खुश कर दूं" बिंदिया मुस्कुराते हुए ऐसे बोली जैसे कोई जुंग जीत कर आई हो
"शाबाश" रूपाली ने कहा "मतलब पूरी रात चूत और गांद ली गयी तेरी?"
"कहाँ मालकिन" बिंदिया ने कहा "ठाकुर ने चूत की तरफ तो ध्यान ही नही दिया. पूरी रात बस मेरी गांद में ही मारते रहे. कभी लिटाके मारी, तो कभी उपेर बैठके. कभी खड़ी करके मारी तो कभी झुकाके."
"पूरी रात?" रूपाली ने फिर हैरानी से कहा. "तूने कहा नही आगे से करने को?"
"मैं तो बस चूत में लंड लेने का सोचती ही रही पर कहा नही क्यूंकी मैं ठाकुर को जो वो चाहें बस वो करने देना चाहती थी." बिंदिया बोली
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"चंदर भी रात की ज़िद कर रहा था और मेरा भी चूत में लंड लेने का दिल हो रहा था इसलिए मैं उसे आने से पहले इशारा कर आई थी के रात को हवेली के पिछे जो तहखाना है वहाँ आ जाए" बिंदिया ने कहा तो रूपाली चौंक पड़ी
"क्या? बेसमेंट में? क्यूँ?"
"मालकिन अब ठाकुर के पास से उठकर अपने कमरे की तरफ जाती तो उन्हें शक हो सकता था क्यूंकी उनके कमरे की खिड़की से मेरा कमरा सॉफ नज़र आता है. ये मैने पहले ही देख लिया था इसलिए मैने चंदर को कह दिया था के अब से हर रात मुझे वहीं मिला करे क्यूंकी मैं रात को पायल के कमरे में सोया करूँगी और बाहर नही आ सकूँगी"
हेलो दोस्तो अब आयेज की कहानी आपके लिए .......
रूपाली और तेज दोनो ही हवेली पहुँचे.
"आपको क्या ज़रूरत थी यूँ पोलीस स्टेशन जाने की?" तेज ने रूपाली से हवेली में घुसते ही पुचछा
रूपाली ने कोई जवाब नही दिया
"वो पोलीस वाला अपने आपको बहुत बड़ा शेर समझता है" तेज अब भी गुस्से में जल रहा था "1 दिन में हेकड़ी निकाल दूँगा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई के इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी करे"
बोलकर तेज अपने कमरे की और बढ़ा ही था के रूपाली की आवाज़ सुनकर रुक गया
"कौन सी शान की बात कर रहे हो ठाकुर तएजवीर सिंग"
तेज रूपाली की तरफ पलटा
"इस हवेली में अब उल्लू भी नही बोलते. लोग इस तरफ आने से भी कतराते हैं. वो तो फिर गैर हैं छ्चोड़ो, यहाँ तो अपने भी हवेली में कदम नही रखते. किस शान की बात कर रहे हैं आप?" रूपाली ने पुचछा तो इस बार तेज के पास कोई जवाब नही था.
"ज़रा बाहर निकालकर नज़र डालिए तएजवीर जी. इस हवेली पर अब मनहूसियत बरसती है. बाहर से देखने से ऐसा लगता है जैसे यहाँ बरसो से कोई नही रहा. इस हवेली की शान में गुस्ताख़ी तो गुज़रते वक़्त ने कर दी है वो पोलीस वाला क्या करेगा." रूपाली बोलती रही और तेज चुप खड़ा उसकी तरफ देखता रहा
"हमारी ज़मीन हमारा ही अपना कोई हमारी नज़र के सामने से चुरा ले गया. जो रह गयी वो बंजर पड़ी हैं. बची हुई जो दौलत है वो ख़तम हो रही है. इस हवेली के मलिक हॉस्पिटल में पड़े हैं. आपके भाई को बीच सड़क किसी ने गोली मार दी थी. आपने नाम पर लोग हस्ते हैं. और आप हवेली की शान की बात कर रहे हैं?" रूपाली ने जैसे अपने दिल में जमा सारा ज़हेर तेज पर उगल दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली.
"और हां" जाते जाते वो फिर पलटी "जब घर के आदमियों का कहीं आता पता ना हो तो घर की औरतों को ही पोलीस स्टेशन जाना पड़ता है"
रूपाली ने एक आखरी ताना सा मारा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. अपने पिछे उसे तेज गुस्से में पेर पटकता हुआ हवेली के बाहर जाता हुआ दिखाई दिया.
कमरे में पहुँच कर रूपाली के आँसू निकल पड़े. उसने जो कुच्छ तेज से कहा था वो गुस्से में था पर इन बातों ने उसके खुद के ज़ख़्म हरे कर दिए थे. कुच्छ देर तक यूँ ही आँसू बहाने के बाद उसने सामने रखा फोन उठाया और देवधर का नंबर मिलाया
"हां रूपाली जी कहिए" दूसरी तरफ से देवधर की आवाज़ आई
रूपाली को वो ज़माना याद आ गया जब देवधर जैसे उसे छ्होटी ठकुराइन के नाम से बुलाते थे. आज उसकी इतनी औकात हो गयी थी के उसे नाम से बुला रहा था. वो एक ठंडी आह भरकर रह गयी. दिल में जानती थी के ये ग़लती देवधर की नही बल्कि ठाकुर खानदान की ही है. जब अपने ही सिक्के खोटे हों तो कोई क्या करे.
"मैने आपसे कहा था ने के आने से एक दिन पहले फोन करूँगी." रूपाली ने जवाब दिया
"तो आप कल आ रही हैं?" देवधर उसकी बात का मतलब समझ गया
"हां" रूपाली ने जवाब दिया "कल सुबह यहाँ से निकलेंगे तो दोपहर तक आपके पास पहुँच जाएँगे."
"जैसा आप ठीक समझें" देवधर ने कहा "वैसे आप एक बार बता देती के किस बारे में बात करी है तो मैं पेपर्स वगेरह तैय्यार रखता"
"ये आकर ही बताती हूँ" कहकर रूपाली ने फोन काट दिया. अपनी हालत ठीक की और फिर नीचे आई.
पायल बड़े कमरे में बैठी टीवी देख रही थी.
"तेरी माँ कहाँ है?" रूपाली ने पुचछा
"जी वो नहाने गयी हैं" पायल ने टीवी की आवाज़ धीरे करते हुए कहा
"और चंदर?" रूपाली ने पुचछा तो पायल ने कंधे हिला दिए
"पता नही"
रूपाली हवेली से निकलकर बिंदिया के कमरे की तरफ बढ़ी. वो कमरे की नज़दीक पहुँची ही थी के बिंदिया के कमरे का दरवाजा खुला और वो माथे से पसीना साफ करती हुई बाहर निकली. पीछे चंदर था. रूपाली फ़ौरन समझ गयी के वो क्या करके आ रहे हैं पर कुच्छ नही बोली.
"अगर तू नहा ली हो तो मेरे कमरे में आ. कुच्छ बात करनी है" रूपाली ने कहा तो बिंदिया ने हां में सर हिला दिया.
रूपाली चंदर की तरफ मूडी
"और तुझे मैने कहा था सफाई के लिए. उस तरफ देख" रूपाली ने हवेली के कॉंपाउंड में उस तरफ इशारा किया जहाँ अब भी कुच्छ झाड़ियाँ थी. उसके चेहरे पर अब भी हल्के गुस्से के भाव थे. चंदर ने फ़ौरन इशारे से कहा के वो अभी सफाई शुरू कर देगा.
रूपाली अपने कमरे की तरफ बढ़ चली. कल रात के बाद उसने अब पहली बार चंदर को देखा था. जिस अंदाज़ से चंदर ने उसकी तरफ देखा था उससे रूपाली सोचने पर मजबूर हो गयी थी. उसमें ऐसा कोई अंदाज़ नही था जैसा की उसे चोदने के बाद होना चाहिए था. चंदर ने अब भी उसे उसी इज़्ज़त से देखा था जैसे पहले देखा था और अब भी वैसे ही उसका हुकुम माना था जैसे पहले मानता था.
थोड़ी देर बाद बिंदिया और रूपाली दोनो रूपाली के कमरे में बैठे थे और रूपाली गुस्से से बिंदिया को घूर रही थी.
"अपनी रंग रलियान ज़रा कम कर. दिन में इस वक़्त? वो भी तब जब तेरी बेटी यहीं बैठी थी? अगर तेज देख लेते तो काट देते तुझे और उस चंदर को भी"
माफ़ कर दीजिए मालकिन" बिंदिया ने सर झुकाए कहा "अब नही होगा"
रूपाली वहीं उसके सामने बिस्तर पर बैठ गयी
"कल रात का बता. क्या लगता है तुझे? खुश था चंदर तेरे साथ बिस्तर पर?" रूपाली ने बिंदिया से पुचछा तो वो मुस्कुरा उठी
"खुश? मालकिन कल पूरी रात सोने नही दिया मुझे" बिंदिया बोली
"तूने मनाया कैसे तेज को?" रूपाली ने पुचछा
"ज़रूरत ही कहाँ पड़ी मनाने की. वो तो पहले ही तैय्यार बैठे थे" बिंदिया ने जब देखा के रूपाली का गुस्सा थोड़ा कम हो रहा है तो वो भी खुलकर बात करने लगी
"मतलब?" रूपाली ने पुचछा
"मतलब ये के रात अपने कमरे में जाने से पहले उन्होने मुझसे कहा के एक कप चाय उनके कमरे में ले आओं. मैं उसी वक़्त इस समझ गयी की मुझे कुच्छ करने की ज़रूरत नही और मुझे कमरे में चाय के बहाने क्यूँ बुलाया जा रहा है. मैने चाय बनाई और लेकर उनके पास जाने से पहले पायल के कमरे में पहुँची. वहाँ जाकर में अपनी चोली उतारी और पायल की पहेन ली"
"पायल की चोली? वो क्यूँ?" रूपाली ने हैरत से पुचछा
"क्यूंकी पायल की छातिया मुझसे काफ़ी बड़ी हैं. कभी कभी तो मुझे खुद को हैरानी होती है. ज़रा सी उमर में ही उसकी छातिया मुझसे दुगुनी हो गयी हैं" बिंदिया ने कहा
"तू अपनी ही बेटी की छातिया क्यूँ देखती है?" रूपाली ने मुस्कुराते हुए पुचछा
"माँ हून मालकिन" बिंदिया ने कहा "जवान बेटी घर में हो तो सब देखना पड़ता है. और वैसे भी उस ज़रा सी बच्ची के जिस्म पर सबसे पहले उसकी बड़ी बड़ी छातिया ही दिखाई देती हैं"
रूपाली का दिल किया के उसको बताए के जिसे वो ज़रा सी बच्ची कह रही है उसके जिस्म में माँ से भी ज़्यादा आग है और एक लंड ले भी चुकी है.
"अच्छा वो छ्चोड़" रूपाली बोली "तूने पायल की चोली क्यूँ पहनी?"
"मालकिन उसकी चोली मुझे ढीली आती है क्यूंकी मेरी छातिया इतनी नही" बिंदिया ने अपनी चुचियों की तरफ देखते हुए कहा. रूपाली ने भी अपनी नज़र उधर ही डाली
"उसकी छातिया बड़ी होने की वजह से अगर मैं उसकी चोली पहेन लूँ तो सामने से इतनी ढीली हो जाती है के हल्का सा झुकते ही सारा नज़ारा सामने आ जाता है" बिंदिया ने समझाते हुए कहा
"ओह अब समझी. फिर?"
"फिर मैं चाय लेकर उनके कमरे में पहुँची और कप बिल्कुल उनके सामने रखा. कप रखते हुए मैं झुकी और बस. मेरी चूचियाँ आपके देवर के सामने थी" बिंदिया बोली
"तेज ने देखी?" रूपाली अब बेझिझक सवाल पुच्छ रही थी.
"देखी? हाथ बढ़ाकर सीधा एक चूची पकड़ ली." बिंदिया हस्ते हुए बोली
रूपाली दिल ही दिल में तेज की हिम्मत की दाद दिए बिना ना रह सकी
"पकड़ ली? तूने क्या कहा?" उसने बिंदिया से पुचछा
"मैं क्या कहती. मैं तो पहली ही तैय्यार थी. चूची पकड़कर छ्होटे ठाकुर ने हल्का सा दबाव डाला और कहा के मेरी चूचियाँ काफ़ी सख़्त हैं. इस उम्र में ज़रा भी ढीली नही हैं. अब बारी थी मेरी तरफ से इशारे की."
रूपाली चुप चाप बैठी सुन रही थी
"मैं मुस्कुराइ और कहा के छ्होटे ठाकुर चोली के उपेर से हाथ लगाके कहाँ पता चलता है के चूचियाँ सख़्त हैं या उमर के साथ ढीली पड़ गयी हैं" बिंदिया ने बात जारी रखी "इतना इशारा काफ़ी था. वो उठे और चोली मेरे जिस्म से ऐसे अलग की जैसे फाड़ रहे हों. जब मैं उपेर से नंगी हो गयी तो उन्होने मेरी चूचियों पर हाथ फेरा और कहा के मैं सही था. तुम्हारी चूचियाँ सही में काफ़ी सख़्त हैं और हाथ से दबाने लगा. तब तक मैं खुद भी गरम हो चुकी थी. मैं उनके बाल सहलाने लगी. वो कभी मेरी चूचियो को दबाते तो कभी मेरे निपल्स को सहलाते. थोड़ी देर तक यही खेल चलता रहा. जब मुझसे और बर्दाश्त ना हुआ तो मैने उनका सर आगे को खींचा और उनका मुँह अपनी छाती पर दबा दिया. मेरा एक निपल सीधा उनके मुँह में गया और वो ऐसे चूसने लगे जैसे आज के बाद कोई औरत नंगी देखने को नही मिलेगी."
"तुझे मज़ा आया?"रूपाली ने पुचछा
"मेरे निपल्स मेरे शरीर का सबसे कमज़ोर हिस्सा हैं मालकिन. मुझे सबसे ज़्यादा मज़ा निपल्स चुसवाने में आता है " बिंदिया ने फिर एक बार अपनी चूचियों पर नज़र डाली "पर मेरी किस्मत के ना तो मेरा मर्द ये बात समझ सका और ना ही चंदर. दोनो ही मेरी चूचियों पर कुच्छ ख़ास ध्यान नही देते थे इसलिए जब छ्होटे ठाकुर ने तसल्ली के साथ मेरे निपल्स को रगड़ा तो मैं वही पिघल गयी. मैने खुद अपना ल़हेंगा खोलकर नीचे गिरा दिया और उनके सामने नंगी हो गयी. उनके हाथ मेरे पुर जिस्म पर फिरने लगे और जाकर मेरी गांद पर रुक गये. उन्होने मेरी आँखों में देखते हुए निपल मुँह से निकाला और बोले के उन्हें सबसे ज़्यादा मेरी गांद पसंद है और ये कहते हुए गांद को हल्के से दबा दिया."
"फिर?"रूपाली इतना ही कह सकी
"मैं समझ गयी के आज मेरी चूत के साथ साथ गांद का भी नंबर लगेगा. मैं मुस्कुराइ और बोली के ठाकुर साहब मैं तो पूरी आपकी हूँ पर पहले आपको तैय्यार तो कर दूँ. ये कहते हुए मैं उनके सामने बैठ गयी और उनका पाजामा नीचे सरका कर उनका लंड बाहर निकाला" बिंदिया ने कहा
कैसा था, ये बात रूपाली के मुँह से निकलते निकलते रह गयी. उसे फ़ौरन ये एहसास हुआ के वो अपने देवर के बारे में बात कर रही है और बिंदिया से इस तरह का कोई सवाल ग़लत साबित हो सकता है. दूसरा उसे खुद ये हैरत हुई के वो तेज के लंड के बारे में जानना चाहती है. उसने बात फ़ौरन अपने दिमाग़ से झटकी.
"थोड़ी ही देर बाद मैं नंगी उनके सामने बैठी थी और लंड मेरे मुँह में था" बिंदया ने कहा तो रूपाली मन मसोस कर रह गयी. वो उम्मीद कर रही थी के बिंदिया खुद ये कहेगी के उसे तेज का लंड कैसा लगा
"मेरा इरादा तो ये था के बिस्तर पर मैं जो जानती हूँ वो करूँ ताकि छ्होटे ठाकुर को खुश कर सकूँ पर ऐसा हो ना सका. थोड़ी देर बाद उन्होने लंड मेरे मुँह से निकाला और मुझे बिस्तर पर आने को कहा. मैं मुस्कुराते हुए बिस्तर पर आई और उनके सामने लेटकर अपनी टांगे फेला दी. पर उनका इरादा कुच्छ और ही था. उन्होने मेरी टांगे फिर बंद की और मुझे घूमकर उल्टा कर दिया" बिंदिया ने कहा
"मतलब तेरी......" रूपाली ने बात अधूरी छ्चोड़ दी
"हां" बिंदिया समझ गयी के वो क्या कहना चाह रही थी "मैं समझ गयी के पहला नंबर मेरी गांद का लगने वाला है और ऐसा ही हुआ. तेज ने अपने पुर लंड पर तेल लगा लिया और थोड़ा मेरी गांद पर. उनकी इस हरकत से मैं समझ गयी के वो पहले ही किसी औरत की गांद मार चुके हैं"
"फिर?" खुद रूपाली भी अब गरम हो रही थी
"फिर वो आकर मेरे उपेर आकर बैठ गये और दोनो हाथों से मेरी गांद को फेला दिया. और फिर लंड मेरी गांद पर दबाया और बिना रुके धीरे धीरे पूरा लंड अंदर घुसा दिया. मैं दर्द से कराह उठी" बिंदिया ने कहा
"दर्द? पर तू तो पहले भी ये कर चुकी है" रूपाली ने हैरान होते पुचछा
"तो क्या हुआ मालकिन" बिंदिया ने भी उसी अंदाज़ में पुचछा "कोई चूत थोड़े ही है के पहली बार में ही दर्द हो. गांद में लंड घुसेगा तो दर्द तो होगा ही. चाहे पहली बार हो या बार बार."
"अच्छा फिर ?" रूपाली ने उसे आयेज बताने को कहा
"छ्होटे ठाकुर भी बिस्तर पर खिलाड़ी थे. गांद में लंड जाते ही समझ गये की मैं आगे से क्या पिछे से भी कुँवारी नही हूँ. धीरे से मेरे कान में बोले के अच्छा तो यहाँ भी कोई हमसे पहले आके जा चुका है. मैं कहा के ठाकुर साहब ये कोई सड़क नही है जहाँ से लोग आए जाएँ तो सड़क खराब हो जाए. यहाँ तो कितने भी आकर चले जाएँ कोई फरक नही पड़ता. जगह वैसे की वैसी ही रहती है, थोड़ी देर बाद वो मेरे उपेर लेते थे और लंड मेरे अंदर बाहर हो रहा था. मुझे भी मज़ा आ रहा था इसलिए मैं भी पूरा साथ दे रही थी पर उल्टी लेटी होने की वजह से मैं ज़्यादा कुच्छ कर नही पा रही थी और ये बात ठाकुर भी समझ गये. थोड़ी देर ऐसे ही गांद मारने के बाद उन्होने मुझे उपेर आकर लंड गांद में लेने को कहा. फिर वो सीधा लेट गये और मैं उनके उपेर बैठ गयी. लंड एक बार फिर गांद में घुस गया. फिर मैं कभी आराम से हिलती तो कभी तेज़ी से उपेर नीचे होती. कभी अपनी चूचियाँ खुद दबाती तो कभी उनके मुँह में घुसा देती. बस ये मानिए के मैने तब तक हार नही मानी जब तक के मैं खुद भी झाड़ गयी और ठाकुर का पानी अपनी गांद में ना निकाल लिया. उपेर बैठकर सब मुझे करना था इसलिए मैं ख्याल रखा के कोई कमी नई रहने दूं और ठाकुर को खुश कर दूं" बिंदिया मुस्कुराते हुए ऐसे बोली जैसे कोई जुंग जीत कर आई हो
"शाबाश" रूपाली ने कहा "मतलब पूरी रात चूत और गांद ली गयी तेरी?"
"कहाँ मालकिन" बिंदिया ने कहा "ठाकुर ने चूत की तरफ तो ध्यान ही नही दिया. पूरी रात बस मेरी गांद में ही मारते रहे. कभी लिटाके मारी, तो कभी उपेर बैठके. कभी खड़ी करके मारी तो कभी झुकाके."
"पूरी रात?" रूपाली ने फिर हैरानी से कहा. "तूने कहा नही आगे से करने को?"
"मैं तो बस चूत में लंड लेने का सोचती ही रही पर कहा नही क्यूंकी मैं ठाकुर को जो वो चाहें बस वो करने देना चाहती थी." बिंदिया बोली
"फिर?" रूपाली ने पुचछा
"चंदर भी रात की ज़िद कर रहा था और मेरा भी चूत में लंड लेने का दिल हो रहा था इसलिए मैं उसे आने से पहले इशारा कर आई थी के रात को हवेली के पिछे जो तहखाना है वहाँ आ जाए" बिंदिया ने कहा तो रूपाली चौंक पड़ी
"क्या? बेसमेंट में? क्यूँ?"
"मालकिन अब ठाकुर के पास से उठकर अपने कमरे की तरफ जाती तो उन्हें शक हो सकता था क्यूंकी उनके कमरे की खिड़की से मेरा कमरा सॉफ नज़र आता है. ये मैने पहले ही देख लिया था इसलिए मैने चंदर को कह दिया था के अब से हर रात मुझे वहीं मिला करे क्यूंकी मैं रात को पायल के कमरे में सोया करूँगी और बाहर नही आ सकूँगी"