“मदन पहली बार हम ये सब बाते कर रहे है, जींदगी ने हमे अब तक मिलने का मोका क्यों नही दिया”
“हो सकता है कि हमने अब तक कोशिस ही ना की हो, आज तुम मंदिर के बाहर ना मिलती तो शायद आज भी ना मिल पाते”
“मदन चाहे कुछ हो जाए मेरा साथ मत छोड़ना, मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ”
“अरे पगली कहीं की…. ये प्यार क्या साथ छोड़ने के लिए किया है मैने. मैं तो हर हाल में इस प्यार को मंज़िल तक ले जाना चाहता हूँ”
“एक बात पूचु मदन”
“हाँ पूछो ना”
“प्यार कितना अजीब होता हैं ना, हम इन चार सालो में बहुत कम मिले हैं फिर भी दिल में प्यार हर पल बढ़ता ही गया है, ऐसा क्यों है ?”
“वही तो मैं भी कह रहा था, देखो एक तरह से आज हमारी पहली मुलाकात है लेकिन ऐसा लगता है कि हम हर पल साथ रहते हैं, पता है ऐसा क्यों है ?”
“नही तो, तुम बताओ ना”
“हर पल हम एक दूसरे को जो सोचते रहते हैं”
“तुम्हे कैसे पता कि मैं तुम्हे सोचती रहती हूँ ?”
“बस अंदाज़ा लगाया क्योंकि में तो हर पल तुम्हारे ख़यालो में डूबा रहता हूँ”
“बिना एक दूसरे से मिले भी हम एक दूसरे में खोए रहते हैं कितना प्यारा अहसास है ना ये मदन”
“बिल्कुल वर्षा जींदगी में इस से प्यारा अहसास हमें नहीं मिल सकता”
“मदन एक बात बताओ क्या तुम्हे मेरे अलावा कोई और लड़की पसंद आ सकती है”
“सवाल ही पैदा नही होता वर्षा, तुम्हारे अलावा में किसी को नज़र उठा कर देखता भी नही हूँ”
“ऐसा है क्या ?”
“बिल्कुल वर्षा, जो प्यार तुमने मुझे दिया है वो प्यार मुझे कहीं नही मिल सकता. तुम्हारा दिल कितना बड़ा है. इतने बड़े घर की बेटी होते हुवे भी तुमने मुझ ग़रीब से प्यार किया, वो भी सब जात पात भुला कर”
“जात पात का मतलब मुझे नही पता मदन मुझे बस इतना पता है कि मुझे बस तुमसे प्यार है”
मदन भावुक हो कर वर्षा को अपनी बाहों में भर लेता है और मदहोश हो कर वर्षा की कमर पर हाथ फिराने लगता है. कब मद-होशी में उसके हाथ फिसलते हुवे वर्षा के नितंबो तक पहुँच जाते हैं उसे पता ही नही चलता
जैसे ही वर्षा को अपने नितंबो पर मदन के हाथ महसूस होते हैं वो मदन को दूर झटक देती है और मदन की बाहों से आज़ाद हो कर मदन से मूह फेर कर खड़ी हो जाती है
“क्या हुवा वर्षा, मुझ से कोई भूल हुई क्या ?”
“तुम्हारे प्यार में वासना उतर आई है मदन, मुझे वाहा क्यों छुवा तुमने ? …..मुझे डर लग रहा है”
मदन वर्षा के सामने आ कर उसके कदमो में बैठ जाता है और वर्षा के कदमो को चूम कर कहता है, “ ये वासना नही मेरा प्यार है वर्षा. मैं तो बस तुम्हे अपने करीब महसूस करने की कॉसिश कर रहा था, अगर तुम्हे बुरा लगा है तो मुझे माफ़ कर दो”
प्यार हो तो ऐसा compleet
Re: प्यार हो तो ऐसा
वर्षा मदन को कोई जवाब नही देती और फूट फूट कर रोने लगती है
“क्या हुवा वर्षा क्या मुझ से इतना बड़ा गुनाह हो गया कि तुम इस तरह से रो रही हो, क्या मेरा तुम पर इतना भी हक़ नही कि तुम्हे अपने करीब महसूस कर सकूँ ?”
“मैं सब कुछ भूल चुकी थी लेकिन तुमने फिर से सब कुछ याद दिला दिया”
“क्या याद दिला दिया वर्षा ?, मैं समझा नही”
“मदन मैं आज तुम्हे अपनी जींदगी का वो दर्द बताना चाहती हूँ जो मैने आज तक किसी को नही बताया, क्या तुम सुन पाओगे?”
“मेरा दिल बैठा जा रहा है वर्षा, जल्दी बताओ की बात क्या है वरना मैं अभी यही मर जाउन्गा”
“ऐसा मत कहो, मैं बता तो रहीं हूँ” ---- वर्षा ने अपनी आँखो के आंशु पोंछते हुवे कहा
“अछा चलो बैठ जाओ, बैठ कर आराम से बताओ, यहा हरी-हरी मखमली घास है, इस पर हम आराम से बैठ सकते हैं”
दौनो आमने सामने बैठ जाते हैं
“जब तुमने मुझे वहाँ छुवा तो मेरे ज़ख़्म हरे हो गये” ---- वर्षा ने दबी हुई आवाज़ में कहा
“कैसे ज़ख़्म वर्षा, मैं समझा नही”
वर्षा किन्ही गहरे ख़यालो में खो जाती है
“क्या हुवा वर्षा बताओ ना क्या बात है, मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ, तुम मुझे सब कुछ बता सकती हो”
“जीवन चाचा ने कयि बार मुझे वहाँ छुवा है मदन” --- वर्षा ने कहा और कह कर घुटनो में सर छुपा कर रोने लगी
एक पल को मदन हैरान रह जाता है, फिर खुद को संभाल कर कहता है, “मैं समझ गया वर्षा बस चुप हो जाओ”
“मदन करीब 2 साल तक मैने अपने ही घर में ये सब सहा है” --- वर्षा रोते हुवे कहती है
“कब की बात है ये वर्षा ?”
“कोई 6 साल पहले की बात है”
“अब तो ऐसा कुछ नही है ना”
“नही अब उसकी इतनी हिम्मत नही है कि मेरी तरफ नज़र उठा कर भी देख सके, लेकिन जींदगी के वो 2 साल मैने कैसे बिताए हैं ये मैं ही जानती हूँ”
“मैं समझ सकता हूँ वर्षा”
चाचा अक्सर मुझे अजीब सी नज़रो से घूरता था पर मैने कभी इस बात पर ध्यान नही दिया था. अपने सगे चाचा पर कोई कैसे शक कर सकता है
लेकिन धीरे धीरे बात घूर्ने से आगे बढ़ने लगी. एक दिन मैं अपनी बाल्कनी में खड़ी खेतो को देख रही थी. अचानक पीछे से आकर चाचा ने मेरे कंधे पर कुछ इस तरह से हाथ रखा की मैं काँप गयी. लेकिन जब मैने चाचा की तरफ देखा तो वो बोला, “बेटी क्या बात है ? यहा अकेली क्या कर रही हो ?”
इस तरह वो किसी ना किसी बहाने मुझे छूता रहा
लेकिन एक दिन उसने हद कर दी. मैं अपने घर के पीछे के गार्डेन में घूम रही थी, चाचा भी वाहा आ गया और मेरे साथ टहलने लगा. चलते चलते वो इधर उधर की बाते कर रहा था. अचानक मुझे अपने वाहा पीछे कुछ महसूस हुवा. मैने तुरंत पीछे मूड कर देखा तो कुछ नही दिखा. मैने चाचा की तरफ देखा तो वो मुस्कुरा दिया.
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो ऐसा क्यों कर रहा है, और सच पूछो तो उस वक्त इतनी समझ भी नही थी, इश्लीए मैने चाचा की हरकत को अन-देखा कर दिया
कुछ दिन शांति से बीत गये
“क्या हुवा वर्षा क्या मुझ से इतना बड़ा गुनाह हो गया कि तुम इस तरह से रो रही हो, क्या मेरा तुम पर इतना भी हक़ नही कि तुम्हे अपने करीब महसूस कर सकूँ ?”
“मैं सब कुछ भूल चुकी थी लेकिन तुमने फिर से सब कुछ याद दिला दिया”
“क्या याद दिला दिया वर्षा ?, मैं समझा नही”
“मदन मैं आज तुम्हे अपनी जींदगी का वो दर्द बताना चाहती हूँ जो मैने आज तक किसी को नही बताया, क्या तुम सुन पाओगे?”
“मेरा दिल बैठा जा रहा है वर्षा, जल्दी बताओ की बात क्या है वरना मैं अभी यही मर जाउन्गा”
“ऐसा मत कहो, मैं बता तो रहीं हूँ” ---- वर्षा ने अपनी आँखो के आंशु पोंछते हुवे कहा
“अछा चलो बैठ जाओ, बैठ कर आराम से बताओ, यहा हरी-हरी मखमली घास है, इस पर हम आराम से बैठ सकते हैं”
दौनो आमने सामने बैठ जाते हैं
“जब तुमने मुझे वहाँ छुवा तो मेरे ज़ख़्म हरे हो गये” ---- वर्षा ने दबी हुई आवाज़ में कहा
“कैसे ज़ख़्म वर्षा, मैं समझा नही”
वर्षा किन्ही गहरे ख़यालो में खो जाती है
“क्या हुवा वर्षा बताओ ना क्या बात है, मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ, तुम मुझे सब कुछ बता सकती हो”
“जीवन चाचा ने कयि बार मुझे वहाँ छुवा है मदन” --- वर्षा ने कहा और कह कर घुटनो में सर छुपा कर रोने लगी
एक पल को मदन हैरान रह जाता है, फिर खुद को संभाल कर कहता है, “मैं समझ गया वर्षा बस चुप हो जाओ”
“मदन करीब 2 साल तक मैने अपने ही घर में ये सब सहा है” --- वर्षा रोते हुवे कहती है
“कब की बात है ये वर्षा ?”
“कोई 6 साल पहले की बात है”
“अब तो ऐसा कुछ नही है ना”
“नही अब उसकी इतनी हिम्मत नही है कि मेरी तरफ नज़र उठा कर भी देख सके, लेकिन जींदगी के वो 2 साल मैने कैसे बिताए हैं ये मैं ही जानती हूँ”
“मैं समझ सकता हूँ वर्षा”
चाचा अक्सर मुझे अजीब सी नज़रो से घूरता था पर मैने कभी इस बात पर ध्यान नही दिया था. अपने सगे चाचा पर कोई कैसे शक कर सकता है
लेकिन धीरे धीरे बात घूर्ने से आगे बढ़ने लगी. एक दिन मैं अपनी बाल्कनी में खड़ी खेतो को देख रही थी. अचानक पीछे से आकर चाचा ने मेरे कंधे पर कुछ इस तरह से हाथ रखा की मैं काँप गयी. लेकिन जब मैने चाचा की तरफ देखा तो वो बोला, “बेटी क्या बात है ? यहा अकेली क्या कर रही हो ?”
इस तरह वो किसी ना किसी बहाने मुझे छूता रहा
लेकिन एक दिन उसने हद कर दी. मैं अपने घर के पीछे के गार्डेन में घूम रही थी, चाचा भी वाहा आ गया और मेरे साथ टहलने लगा. चलते चलते वो इधर उधर की बाते कर रहा था. अचानक मुझे अपने वाहा पीछे कुछ महसूस हुवा. मैने तुरंत पीछे मूड कर देखा तो कुछ नही दिखा. मैने चाचा की तरफ देखा तो वो मुस्कुरा दिया.
मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो ऐसा क्यों कर रहा है, और सच पूछो तो उस वक्त इतनी समझ भी नही थी, इश्लीए मैने चाचा की हरकत को अन-देखा कर दिया
कुछ दिन शांति से बीत गये
Re: प्यार हो तो ऐसा
फिर एक दिन की बात है, शाम का वक्त था, मैं अपने घर की छत पर खड़ी थी.
मैं किन्ही ख़यालो में खोई थी, अचानक मुझे अपने पीछे वाहा कुछ महसूस हुवा
मैं चोंक कर मूड गयी
“क्या हुवा वर्षा बेटी” चाचा ने गंदी सी हँसी हंसते हुवे पूछा
“कुछ नही चाचा जी बस यू ही आपको देख कर चोंक गयी” --- मैने कहा
मैं और क्या कहती, पर मुझे तब पूरा यकीन हो गया था कि चाचा जान बुझ कर मेरे साथ छेड़कानी कर रहा है
होली वाले दिन तो चाचा ने हद ही कर दी
मैं होली की मस्ती में डूबी हुई थी. कुछ ना कुछ तरकीब लगा कर सभी को रंग रही थी
मैने अपने कमरे में ख़ास हरे रंग का गुलाल रखा था, वो लेने के लिए में अपने कमरे में घुसी ही थी कि पीछे पीछे चाचा भी आ गया
उसने मेरे वाहा हाथ रख कर कहा, “अब जवान हो गयी हो वर्षा बेटी, थोड़ी मौज मस्ती किया करो, ये क्या बच्चो के खेल खेलती हो…. आओ असली होली मनाते हैं”
चाचा ने पी रखी थी तभी उसकी इतनी हिम्मत हो गयी थी.
मुझे उस वक्त इतना गुस्सा आया कि मैने एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया
मैं भूल गयी थी कि वो मेरा चाचा है
“अछा किया वर्षा, जब वो भूल गया कि तुम उसकी भतीजी हो तो तुम क्यों भला उसे चाचा समझोगी”
लेकिन फिर भी उसकी बेसरमी नही रुकी मदन, वो बाद में भी मोका देख कर मुझे छेड़ने से बाज़ नही आया.
“क्या तुमने घर में किसी को ये बात नही बताई”
“किसे बताती मदन, पिता जी जीवन चाचा पर आँख मीच कर विश्वास करते हैं और तुम्हे तो पता ही है, मेरी मा को गुज़रे 8 साल हो चुके हैं”
“फिर बाद में ये सब कैसे रुका वर्षा”
एक दिन मैं शाम के वक्त छत पर खड़ी थी, चाचा वाहा आ गया और मेरे बाजू में खड़ा हो गया
मैं जाने लगी तो वो बोला, “वर्षा बेटी तुम मुझ से दूर क्यों भागती हो, मैं तो तुम्हे तुम्हारी जवानी का मज़ा देना चाहता हूँ, आओ तुम्हे कुछ सीखा दूं वरना ये जवानी बीत जाएगी और तुम हाथ मालती रह जाओगी”
“ठीक है चाचा जी मैं तैयार हूँ”
“अरे वाह !! क्या सच !!” --- चाचा ने कहा
“हाँ चाचा जी चलिए पिता जी से ये नयी शिक्षा शुरू करने से पहले आशीर्वाद ले आती हूँ”
ये सुन कर चाचा थर थर काँपने लगा
उस दिन मैने ठान लिया था कि चाहे पिता जी कुछ भी समझे में उन्हे चाचा की करतूतो के बारे में बता दूँगी
जैसे ही मैं वाहा से चली चाचा मेरे कदमो में गिर गया और बोला, “बेटी माफ़ कर दो आगे से मैं तुम्हे परेशान नही करूँगा पर रुद्रा को कुछ मत बताओ, वो मुझे जान से मार देगा”
मुझे यकीन नही था कि वो इतने आराम से सीधे रास्ते पर आ जाएगा. उस दिन के बाद उसने मुझे कभी परेशान नही किया
“वर्षा मैने सपने में भी नही सोचा था कि तुमने इतना कुछ सहा होगा” --- मदन ने दर्द भरी आवाज़ में कहा
“मदन औरत बाहर घूमते भेड़ियों से तो फिर भी निपट ले लेकिन घर के भेड़ियों का क्या ?… जो अपने होकर भी पराए बन जाते हैं और सब रिस्ते नाते भुला कर अपनी बहन बेटियों को बस एक शरीर समझ कर उन पर टूट पड़ते हैं” -----वर्षा ने रोते हुवे भावुक हो कर कहा
“बस वर्षा चुप हो जाओ, मुझे लग रहा है कि मैं भी एक भेड़िया हूँ…. ना मैं तुम्हे वाहा छूटा ना तुम्हे ये सब याद आता, पर मेरा यकीन करो वर्षा मैं बस तुम्हे प्यार कर रहा था और कुछ नही”
“पता नही क्यों मदन मुझे अछा नही लगा, मुझे यकीन है कि अब तुम समझ सकते हो”
“मैं समझ रहा हूँ वर्षा, छ्चोड़ो ये बाते देखो कितनी प्यारी चाँदनी रात है”
“पर इस चाँदनी रात ने आज घर से निकलना मुस्किल कर दिया था मदन, बड़ी मुस्किल से डरते डरते आई हूँ मैं”
“मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ वर्षा तुम्हारी ये दर्दनाक कहानी सुन कर दुख हुवा पर तुम पर और ज़्यादा प्यार आ रहा है क्योंकि तुमने इतना कड़वा सच मुझे बताया है जो शायद ही कोई लड़की अपने प्रेमी या पति को बताएगी”
मैं किन्ही ख़यालो में खोई थी, अचानक मुझे अपने पीछे वाहा कुछ महसूस हुवा
मैं चोंक कर मूड गयी
“क्या हुवा वर्षा बेटी” चाचा ने गंदी सी हँसी हंसते हुवे पूछा
“कुछ नही चाचा जी बस यू ही आपको देख कर चोंक गयी” --- मैने कहा
मैं और क्या कहती, पर मुझे तब पूरा यकीन हो गया था कि चाचा जान बुझ कर मेरे साथ छेड़कानी कर रहा है
होली वाले दिन तो चाचा ने हद ही कर दी
मैं होली की मस्ती में डूबी हुई थी. कुछ ना कुछ तरकीब लगा कर सभी को रंग रही थी
मैने अपने कमरे में ख़ास हरे रंग का गुलाल रखा था, वो लेने के लिए में अपने कमरे में घुसी ही थी कि पीछे पीछे चाचा भी आ गया
उसने मेरे वाहा हाथ रख कर कहा, “अब जवान हो गयी हो वर्षा बेटी, थोड़ी मौज मस्ती किया करो, ये क्या बच्चो के खेल खेलती हो…. आओ असली होली मनाते हैं”
चाचा ने पी रखी थी तभी उसकी इतनी हिम्मत हो गयी थी.
मुझे उस वक्त इतना गुस्सा आया कि मैने एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया
मैं भूल गयी थी कि वो मेरा चाचा है
“अछा किया वर्षा, जब वो भूल गया कि तुम उसकी भतीजी हो तो तुम क्यों भला उसे चाचा समझोगी”
लेकिन फिर भी उसकी बेसरमी नही रुकी मदन, वो बाद में भी मोका देख कर मुझे छेड़ने से बाज़ नही आया.
“क्या तुमने घर में किसी को ये बात नही बताई”
“किसे बताती मदन, पिता जी जीवन चाचा पर आँख मीच कर विश्वास करते हैं और तुम्हे तो पता ही है, मेरी मा को गुज़रे 8 साल हो चुके हैं”
“फिर बाद में ये सब कैसे रुका वर्षा”
एक दिन मैं शाम के वक्त छत पर खड़ी थी, चाचा वाहा आ गया और मेरे बाजू में खड़ा हो गया
मैं जाने लगी तो वो बोला, “वर्षा बेटी तुम मुझ से दूर क्यों भागती हो, मैं तो तुम्हे तुम्हारी जवानी का मज़ा देना चाहता हूँ, आओ तुम्हे कुछ सीखा दूं वरना ये जवानी बीत जाएगी और तुम हाथ मालती रह जाओगी”
“ठीक है चाचा जी मैं तैयार हूँ”
“अरे वाह !! क्या सच !!” --- चाचा ने कहा
“हाँ चाचा जी चलिए पिता जी से ये नयी शिक्षा शुरू करने से पहले आशीर्वाद ले आती हूँ”
ये सुन कर चाचा थर थर काँपने लगा
उस दिन मैने ठान लिया था कि चाहे पिता जी कुछ भी समझे में उन्हे चाचा की करतूतो के बारे में बता दूँगी
जैसे ही मैं वाहा से चली चाचा मेरे कदमो में गिर गया और बोला, “बेटी माफ़ कर दो आगे से मैं तुम्हे परेशान नही करूँगा पर रुद्रा को कुछ मत बताओ, वो मुझे जान से मार देगा”
मुझे यकीन नही था कि वो इतने आराम से सीधे रास्ते पर आ जाएगा. उस दिन के बाद उसने मुझे कभी परेशान नही किया
“वर्षा मैने सपने में भी नही सोचा था कि तुमने इतना कुछ सहा होगा” --- मदन ने दर्द भरी आवाज़ में कहा
“मदन औरत बाहर घूमते भेड़ियों से तो फिर भी निपट ले लेकिन घर के भेड़ियों का क्या ?… जो अपने होकर भी पराए बन जाते हैं और सब रिस्ते नाते भुला कर अपनी बहन बेटियों को बस एक शरीर समझ कर उन पर टूट पड़ते हैं” -----वर्षा ने रोते हुवे भावुक हो कर कहा
“बस वर्षा चुप हो जाओ, मुझे लग रहा है कि मैं भी एक भेड़िया हूँ…. ना मैं तुम्हे वाहा छूटा ना तुम्हे ये सब याद आता, पर मेरा यकीन करो वर्षा मैं बस तुम्हे प्यार कर रहा था और कुछ नही”
“पता नही क्यों मदन मुझे अछा नही लगा, मुझे यकीन है कि अब तुम समझ सकते हो”
“मैं समझ रहा हूँ वर्षा, छ्चोड़ो ये बाते देखो कितनी प्यारी चाँदनी रात है”
“पर इस चाँदनी रात ने आज घर से निकलना मुस्किल कर दिया था मदन, बड़ी मुस्किल से डरते डरते आई हूँ मैं”
“मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ वर्षा तुम्हारी ये दर्दनाक कहानी सुन कर दुख हुवा पर तुम पर और ज़्यादा प्यार आ रहा है क्योंकि तुमने इतना कड़वा सच मुझे बताया है जो शायद ही कोई लड़की अपने प्रेमी या पति को बताएगी”