लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

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The Romantic
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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 02 Nov 2014 19:14



हे लिंग महादेव ! अगर मुझे इन छोटे छोटे चीकुओं को चूसने या मसलने का एक मौका मिल जाए तो मैं तो सब कुछ छोड़छाड़ कर इनका अमृतपान ही करता रहूँ। एक बार तो मेरे मन में आया कि उसे कह दूँ कि मेरे पास आकर रोज़ इनकी मालिश करवा लिया करो या चुसवा लिया करो, देखना एक महीने में ही इनका आकार 32 तो जरूर हो जायेगा पर मैं जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। अभी उसने ना तो अपनी कोई तस्वीर ही मुझे भेजी थी और ना ही अपना फोन नंबर ही दिया था। हाँ उसने अपनी तनाकृति के बारे में जरूर बता दिया था। उसने बताया कि उसका क़द 5 फुट 2 इंच है और वज़न 48 किलो, छाती 28, कमर 23 और नितम्ब 32 के हैं।
हे भगवान् ! कहीं यह "दो नंबर का बदमाश" वाली निशा तो नहीं ?
कुछ दिनों बाद उसने अपना सेल नंबर भी मुझे दे दिया। अब हम दोनों देर रात गए तक खूब बातें किया करते। ऐसा नहीं था कि हम केवल उसके वक्ष की समस्या पर ही बातें किया करते थे, हम तो दुनिया-जहान के सारे विषयों पर बात करते थे। उसके प्रश्न तो हातिमताई के सवालों जैसे होते थे। जैसे टेस्ट ट्यूब बेबी, सरोगेट मदर, सुरक्षित काल, वीर्यपान, नसबंदी आदि आदि।
कई बार तो वो बहुत ही बेतुके सवाल पूछती थी, जैसे :
-चूत को चोदना कहते हैं तो गांड को मारना क्यों कहते हैं?
-आदमियों की भी माहवारी आती है क्या?
-बच्चे पेट से कैसे निकलते हैं?
-क्या सभी पति अपनी पत्नियों की गांड भी मारते हैं?
-क्या सच में गांड मरवाने वाली औरतों के नितम्ब भारी हो जाते हैं?
-क्या पहली रात में खून ना आये तो पति को पता चल जाता है कि लड़की कुंवारी नहीं है?क्या वीर्य पीने या चुम्बन लेने से भी गर्भ रह जाता है?
-प्रथम सम्भोग में जब झिल्ली फटती है तो कोई आवाज भी आती है?
-अब मैं उसे क्या समझाता कि चूत, गांड और दूध के फटने की आवाज़ नहीं आती।
उसने फिर बिना शर्माए बताया कि उसकी छाती का उठान 13-14 साल की उम्र में थोड़ा सा हुआ था। उसके जननांगों पर बाल तो 17 वें साल में जाकर आये थे। अब भी बहुत थोड़े से ही हैं और माहवारी (पीरियड्स) शुरू हुए एक साल हुआ है जो अनियमत है और कभी कभी तो दो ढाई महीने के बाद आता है। उन तीन दिनों में तो उसे पेडू और कमर में बहुत दर्द रहता है। जब मैंने उसकी पिक्की के भूगोल के बारे में पूछा तो वो इतना जोर से शर्माई थी कि मुझे उस रात उसके नाम की मुट्ठ लगानी पड़ी थी।
आप सोच रहे होंगे, यार, मुट्ठ मारने के क्या जरुरत पड़ गई?
मधु (मेरी पत्नी मधुर) आजकल लालबाई के लपेटे में है या नखरे करती है?
ओह...
माफ़ करना, मैं बताना ही भूल गया। इन दिनों मैं प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) पर अहमदाबाद आया हुआ था। 4 हफ्ते रुकना था। मधु तो इन दिनों जयपुर में अपने भैया और भाभी के पास छुट्टियाँ मना रही है।
अरे… मैं भी क्या फजूल बातें ले बैठा। मैं पलक की बात कर रहा था जिसने मेरी नींद और चैन दोनों उड़ा दिए थे। मैं इन दिनों बस उसी की याद में दिन रात खोया रहने लगा था।
उसे सेक्स के बार में ज्यादा कुछ पता नहीं था। बस सुहाना (उसकी सहेली) के कहने पर उसने मेरी एक दो कहानियाँ पढ़ी थी और वो यही सोचती रहती थी कि सभी को बड़े बड़े उरोज और नितम्ब पसंद होते हैं और सभी अपनी प्रेमिकाओं और पत्नियों की गांड भी मारते हैं। मैं तो उसकी इस मासूमियत पर मर ही मिटा।
मैंने जानता था यह लेट प्युबर्टी (देरी से यौवनारंभ) और हारमोंस की गड़बड़ी का मामला था। मेरा दावा है अगर वो 2-4 महीने तसल्ली से चुद जाए और वीर्यपान कर ले तो खिलकर कलि से फूल बन जायेगी। आप तो जानते ही होंगे कि छोटे छोटे उरोजों वाली कन्याएं ही तो आगे चलकर रति (सुन्दर कामुक स्त्री) बनती हैं।
उसने बूब्स की सर्जरी के बारे में भी पूछा था पर उसके साइड इफेक्ट जानकार वो थोड़ा निराश हो गई। मैंने उसे वक्ष-आकार बढ़ाने के सम्बन्ध में कुछ घरेलू नुस्खे (टिप्स) भी बताये थे, जैसे नहाने से पहले उरोजों पर रोज़ नारियल या जैतून (ऑलिव आयल) के तेल की मालिश, पौष्टिक आहार, विशेष व्यायाम और गर्म ठण्डे जल की थेरेपी (वाटर थेरेपी) आदि। उसे यह सब बड़ा झंझट वाला काम लगता था। वह तो कोई ऐसी दवाई चाहती थी जिसे खाने या लगाने से रातों रात उसके स्तन बढ़ जाएँ।
एक दिन मैंने उसे मज़ाक में कह दिया कि अगर तुम कुछ दिनों तक इनको किसी से चुसवा लो तो ये जल्दी बढ़ जायेंगे,
तो वो तुनक गई और नाराज़ होकर बोली,"हटो आगाह... खतोड़ा… हवे हु तमाई साथे क्यारे पण वात नहीं करू" (हटो परे.. झूठे कहीं के .. अब मैं कभी आपसे बात नहीं करूँगी)
मैं तो उसकी मासूमियत पर जैसे निस्सार ही हो गया था। वही मिक्की और सिमरन वाली मासूमियत और चुलबुलापन। बात बात पर रूठ जाना और फिर खिलखिला कर हंसने की कातिलाना अदा तो मुझे उस ऊपर कुर्बान ही हो जाने को मजबूर कर देता।
"देखो अगर तुम इस तरह गुस्सा करोगी तो रात को तुम्हारे सपनों में देवदूत आएगा और तुम्हें डराएगा !"
"कौन देवदूत?"
"देवदूत यानी फरिश्ता !"
"पण ए मने केम डरावशे?" (पर वो मुझे क्यों डराएगा?)
"तुम परी हो ना !"
"तो?"
"उसे मुस्कुराती हुई खूबसूरत परियाँ बहुत अच्छी लगती हैं और जब कोई परी गुस्सा होती है तो उसे बहुत बुरा लगता है !"
"हटो आघा ....कोई देवदूत नथी होतो" (हटो परे … कोई देव दूत नहीं होता) वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
"पलक तुम बहुत खूबसूरत हो ना इसलिए देवदूत तुम्हारे सपनों में जरूर आएगा और तुम्हें आशीर्वाद भी देगा !"
"तमे केवी रीते खबर के हु खूबसूरत (सुंदर) छु ??? तमे मने क्या जोई छे ?" (आपको कैसे पता मैं खूबसूरत हूँ? आपने मुझे अभी कहाँ देखा है?)
"ओह.. मैंने पराविज्ञान से जान लिया है !" मैंने हँसते हुए कहा।
"अच्छा जी ....?" इस बार उसने ‘हटो परे झूठे कहीं के’ नहीं बोला था।
उसकी मासूमियत देख कर तो मेरे होंठों से बस यही निकलता :
वो कहते हैं हमसे कि अभी उम्र नहीं है प्यार की
नादाँ है वो क्या जाने कब कलि खिले बहार की

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 02 Nov 2014 19:14


नादाँ है वो क्या जाने कब कलि खिले बहार की
अब तो वो निसंकोच होकर सारी बातें करने लगी थी। मैंने उसे समझाया कि यह सब हारमोंस की गड़बड़ के कारण होता है। हमारा जैसा खानपान, विचार या सोच होगी उसी तरह हमारे दिमाग का कंप्यूटर हारमोंस छोड़ने का आदेश देता रहता है। अगर तुम मेरे साथ रोज़ कामोत्तेजक (सेक्सी) बातें करती रहो तो हो सकता है तुम्हारे भी हारमोंस बदलने लगें और तुम्हारे वक्ष व नितम्बों का आकार बढ़ कर 36 हो जाए। जब मैंने उसे बताया कि अगर चूचियों को रोज़ मसला जाए तो भी इनका आकार बढ़ सकता है तो वो ख़ुशी के मारे झूम ही उठी।
मैंने उसे कहा- तुम मुझे अपनी छाती की एक फोटो भेज दो तो मैं उन्हें ठीक से देख कर उचित सलाह दे सकता हूँ ताकि कोई साइड ईफेक्ट ना हों।
पर इतना जल्दी वो कहाँ मानने वाली थी, कहने लगी- आप तो उम्र में मेरे से बहुत बड़े हो, मैं ऐसा कैसे कर सकती हूँ? मुझे बहुत शर्म आती है ऐसी बातों से।
"पलक, तुम शायद सोचती होगी कि मैं तुम जैसी खूबसूरत लड़कियों के पीछे किसी यौन विकृत व्यक्ति की तरह घूमता फिरता रहता हूँ या किसी भी तरह उनका कोई नाजायज़ फायदा उठाने की कोशिश में रहता हूँ?"
"मैंने ऐसा कभी (कब) बोला ? नहीं सर, मैं आपके बारे में ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोच सकती। आप तो सभी की मदद करने वाले इंसान हैं। मैंने आपसे दोस्ती बहुत सोच समझ कर की है ना कि किसी मजबूरी के कारण !"
"पलक, यह सच है कि मुझे युवा होती लड़कियाँ बहुत अच्छी लगती हैं मैं उनमें अपनी सिमरन और मिक्की को देखता हूँ पर इसका यह मतलब कतई नहीं है कि मैं किसी भी तरह उनका यौन शोषण करने पर आमादा रहता हूँ।"
मैंने उसे समझाया कि अगर वो वास्तव में ही अपने वक्ष और नितम्बों को बढ़ाना चाहती है तो उसे यह शर्म छोड़नी ही पड़ेगी तो वह मान गई। मैंने उसे यह भी समझाया कि डाक्टर और गुरु से शर्म नहीं करने चाहिए। अब तुम अगर सच में मेरी अच्छी शिष्य बनाना चाहती हो और मेरे ऊपर विश्वास करती हो तो अपने वक्ष की फोटो भेज दो नहीं तो तुम जानो तुम्हारा काम जाने।
थोड़ी ना-नुकर के बाद वो मान गई और उसने मोबाइल से अपने वक्ष की दो तीन तस्वीरें उतार कर मुझे भेज दी। पर साथ में यह भी कहा कि मैं इन तस्वीरों को किसी दूसरे का ना दिखाऊँ।
हे भगवान ! गुलाबी रंग के दो चीकू जैसे उरोज और उनका एरोला कोई एक रूपए के सिक्के जितना बड़ा गहरे लाल रंग का था। बीच में चने के दाने से भी छोटी गुलाबी रंग की घुन्डियाँ !
या खुदा ! अगर इनको रसगुल्लों की तरह पूरा मुँह में लेकर चूस लिया जाए तो बंदा जीते जी जन्नत में पहुँच जाए।
कभी कभी तो मुझे लगता जैसे मेरी मिक्की फिर से पलक के रूप में दुबारा आ गई है। मैं तो पहरों आँखें बंद किये यही सोचता रहता कि अभी पलक आएगी और मेरी गोद में बैठ जाएगी जैसे कई बार मिक्की अपने दोनों पैरों को चौड़ा करके बैठ जाया करती थी। फिर मैं हौले-हौले उसके चीकुओं को मसलता रहूँगा और उसके कमसिन बदन की खुशबू से रोमांचित होता रहूँगा। कई बार तो मुझे लगता कि मेरा पप्पू तो पैंट में ही अपना सिर धुनते हुए ही शहीद हो जाएगा।
मैंने एक दिन फिर से उसे बातों बातों में कह दिया- पलक, अगर तुम कहो तो मैं इन्हें चूस कर बड़ा कर देता हूँ।
मेरा अंदाज़ा था कि वो शरमा जायेगी और सिमरन की तरह तुनकते हुए मुझे कहेगी 'छट… घेलो दीकरो !'
पर उसने उसी मासूमियत से जवाब दिया,"पण तमे तो भरतपुर माँ छो तो अहमदाबाद केवी रीते आवशो?" (पर आप तो भरतपुर में हो, आप अहमदाबाद में कैसे आयेंगे?)
सच कहूँ तो मुझे अपनी कमअक्ली (मंदबुद्धि) पर आज बहुत तरस आया। मैंने उससे दुनिया जहान की बातें तो कर ली थी पर उसके शहर का नाम और पता तो पूछना ही भूल गया था।
हे लिंग महादेव ! तू जो भी करता है सब अच्छे के लिए ही करता है। मेरा अहमदाबाद में डेपुटेशन पर आना भी लगता है तेरी ही रहमत (कृपा) से ही हुआ लगता है। मैं तो उस बेचारे अजीत भोंसले (हमारा चीफ) को बेकार ही गालियाँ निकाल रहा था कि मुझे कहाँ भेज दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था। मुझे तो लगा मेरा दिल हलक के रास्ते बाहर ही आ जाएगा। मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि यह अहमदाबाद का चीकू मेरी झोली में इस प्रकार टपक पड़ेगा।
"अरे मेरी परी ! तुम कहोगी तो मैं भरतपुर तो क्या बैकुंठ भी छोड़कर तुम्हारे पास आ जाऊँगा !"
"सच्चु ? खाओ मारा सम्म ?" (सच्ची ? खाओ मेरी कसम ?)
"हाँ हाँ मेरी पलक ! मैं सच कहता हूँ !"
"तमे पाक्कू आवशो ने मारा माते ? म.. मारो अर्थ छे के पेली जल थेरेपी सारी रीति देवशो ने ? (आप पक्का आओगे ना मेरे लिए? म. मेरा मतलब है वो जल थेरेपी वगैरह ठीक से समझा दोगे ना?)
"हाँ.. हाँ.. जरूर ! वो सब मैं तुम्हें प्रेक्टिकल करके सब कुछ अच्छी तरह से समझा दूँगा, तुम चिंता मत करो।"
"ओह.. सर, तमे केटला सारा छो.. आभार तमारो" (ओह... सर, आप कितने अच्छे हैं थैंक्यू)
"पलक..."
"हुं..."
"पर तुम्हें एक वचन देना होगा !"
" केवू वचन ?" (कैसा वचन ?)
"बस तुम शर्माना छोड़ देना और जैसा मैं समझाऊं वैसे करती रहना !"
"ऐ बधू तो ठीक छे पण तमे केवू आवशो ? अने आवया पेला मने कही देजो.. भूली नहीं जाता ? कई गाड़ी थी, केवू, केटला वगे आवशो ?" (वो सब ठीक है पर आप कब आओगे? आने से पहले मुझे बता देना.. भूल मत जाना? कौन सी गाड़ी से, कब, कितने बजे आओगे)
मेरे मन में आया कह दूँ ‘मेरी छप्पनछुरी मैं तो तुम्हारे लिए दुनिया भर से रिश्ता छोड़ कर अभी दौड़ा चला आऊँ’ पर मैंने कहा,"मैं अहमदाबाद आने का कार्यक्रम बना कर जल्दी ही तुम्हें बता दूँगा।"
आज मेरा दिल बार बार बांके बिहारी सक्सेना को याद कर रहा था। रात के दो बजे हैं और वो उल्लू की दुम इस समय जरूर यह गाना सुन रहा होगा :

अगर तुम मिल जाओ, ज़माना छोड़ देंगे हम
तुम्हें पाकर ज़माने भर से रिश्ता तोड़ लेंगे हम ….

कहानी जारी रहेगी !

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Re: लेखक-प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ

Unread post by The Romantic » 02 Nov 2014 19:15


"पलक..."
"हुं..."
"पर तुम्हें एक वचन देना होगा !"
" केवू वचन ?" (कैसा वचन ?)
"बस तुम शर्माना छोड़ देना और जैसा मैं समझाऊँ, वैसे करती रहना !"
"ऐ बधू तो ठीक छे पण तमे केवू आवशो ? अने आवया पेला मने कही देजो.. भूली नहीं जाता ? कई गाड़ी थी, केवू, केटला वगे आवशो ?" (वो सब ठीक है पर आप कब आओगे? आने से पहले मुझे बता देना.. भूल मत जाना? कौन सी गाड़ी से, कब, कितने बजे आओगे)
मेरे मन में आया कह दूँ ‘मेरी छप्पनछुरी मैं तो तुम्हारे लिए दुनिया भर से रिश्ता छोड़ कर अभी दौड़ा चला आऊँ’ पर मैंने कहा,"मैं अहमदाबाद आने का कार्यक्रम बना कर जल्दी ही तुम्हें बता दूँगा।"
आज मेरा दिल बार बार बांके बिहारी सक्सेना को याद कर रहा था। रात के दो बजे हैं और वो उल्लू की दुम इस समय जरूर यह गाना सुन रहा होगा :
अगर तुम मिल जाओ, ज़माना छोड़ देंगे हम
तुम्हें पाकर ज़माने भर से रिश्ता तोड़ लेंगे हम ….
उसने अपनी और सुहाना की एक फोटो मुझे भेजी थी। हे भगवान् ! उसे देख कर मुझे तो लगा मेरी तो हृदय गति ही रुक जायेगी। हालांकि सुहाना के मुकाबले उसके नितम्ब और उरोज छोटे थे पर उसकी पतली पतली पलकों के नीचे मोटी मोटी कजरारी आँख़ें अगर बिल्लौरी होती तो मैं इसके सिमरन होने का धोखा ही खा जाता।
उसकी आँखें तो लगता था कि अभी बोल पड़ेंगी कि आओ प्रेम मेरी घनी पलकों को चूम लो। सर पर घुंघराले बालों को देख कर तो मैं यही अंदाज़ा लगाता रहा कि उसकी पिक्की पर भी ऐसे ही घुंघराले रेशमी बाल होंगे। गुलाबी रंग का चीरा तो मुश्किल से ढाई इंच का होगा और उसकी गुलाब की पत्तियों जैसी कलिकायें तो आपस में इस तरह चिपकी होंगी जैसे कभी सु सु करते समय भी नहीं खुलती होंगी।
आह...... आप मेरी हालत समझ सकते हैं कि मैं उसकी पिक्की के दर्शनों के लिए कितना बेताब हो गया था। मैंने रात को बातों बातों में उससे पूछा था,"पलक तुम्हारी मुनिया कैसी है?"
"मुनिया… बोले तो ?" उसने बड़ी मासूमियत से पूछा।
"ओह.. दरअसल मैं तुम्हारी पिक्की की बात कर रहा था !"
"हटो.... तमे पागल तो नथी थाई गया ने ?" (तुम पागल तो नहीं हुए ?)
"प्लीज बताओ ना ?"
"नहीं मने शर्म आवे छे ?" (नहीं मुझे शर्म आती है ?)
"पर इसमें शर्म वाली क्या बात है ?"
"तमे तो पराविज्ञान ना वार माँ जानो छो ने ?" (आप तो पराविज्ञान भी जानते हो ना ?)
"तो ?"
"तमे ऐना थी जाननी लो ने केवी छे ?" (आप उसी से जान लो ना कि कैसी है?)
"पलक, तुम बहुत शरारती हो गई हो !" मैं थोड़ा संजीदा (गंभीर) हो गया था।
"पण मने तो मारा बूब्स ज मोटा करावा छे पिक्की तो ठीक छे ऐना वार मा जानी ने तमारे शु करवु छे ?" (पर मुझे तो अपने चूचे ही बड़े करवाने हैं, पिक्की तो ठीक ही है उसके बारे में जानकर आपको क्या करना है?)
हे भगवान् ! तुमने इन खूबसूरत कन्याओं को इतना मासूम क्यों बनाया है?
इनको 27 किलो का दिल तो दे दिया पर दिमाग क्यों खाली रखा है। अब मैं उसे कैसे समझाता कि मैं क्या जानना और करना चाहता हूँ।
हे लिंग महादेव, तू तो मेरे ऊपर सदा ही मेहरबान रहा है। यार बस अंतिम बार अपनी रहमत फिर से मेरे ऊपर बरसा दे तो मेरा अहमदाबाद आना ही नहीं, यह जीवन भी सफल हो जाए।
फिर उसने अपनी पिक्की का भूगोल ठीक वैसा ही बताया था जैसा मैंने उसकी फोटो देखकर अंदाज़ा लगाया था। उसने बताया कि उसकी पिक्की का रक्तिम चीरा 2.5 इंच का है और फांकों का रंग गुलाबी सा है। उसके ऊपर छोटे छोटी रेशमी और घुंघराले बाल और मदनमणि (भगान्कुर) तो बहुत ही छोटी सी है जो पिक्की की कलिकाओं को चौड़ा करने के बाद भी साफ़ नहीं दिखती पर कभी कभी वो सु सु करते या नहाते समय जब उस पर अंगुली फिराती है तो उसे बहुत गुदगुदी सी होती है और उसके सारे शरीर में मीठी सिहरन सी दौड़ने लगती है। एक अनूठे रोमांच में उसकी आँखें अपने आप बंद होने लगती हैं। उस समय चने के दाने जैसा उभरा हुआ सा भाग उसे अपनी अंगुली पर महसूस होता है। उसने बताया तो नहीं पर मेरा अंदाज़ा है कि उसने अपनी पिक्की में कभी अंगुली नहीं की होगी।
एक मजेदार बात बताता हूँ। उसने मुझे एक बार बताया था कि उसके दादाजी उसे पिक्की के नाम से बुलाया करते थे। जब वह छोटी थी तो वो उनकी गोद में दोनों पैर चौड़े करके बैठ जाया करती थी। मैंने उसे जब बताया कि हमारे यहाँ तो पिक्की कमसिन लड़कियों के नाज़ुक अंग को कहते हैं तो वो हंसने लगी थी। जब कभी मैं उसे मजाक में पिक्की के नाम से बुलाता तो वो भी मुझे पप्पू (चिकना लौंडा) के नाम से ही बुलाया करती थी। फिर तो मेरा मन उसकी पिक्की के साथ इक्की दुक्की खेलने को करने लगता।
उसने एक बार पूछा था कि क्या सच में मधु दीदी की जांघ पर तिल है ? और फिर मेरे पप्पू की लम्बाई भी पूछी थी। आप सभी तो जानते ही हैं वह पूरा 7 इंच का है पर मुझे अंदेशा था कि कहीं मेरे पप्पू की लम्बाई जानकर वो डर ना जाए और उसको पाने का खूबसूरत मौक़ा मैं गंवा बैठूं, मैंने कहा,"यही कोई 6 इंच के आस पास होगा !"
"पर आपने कहानियों में तो 7 इंच का बताया था?"
"ओह... हाँ पर वो तो बस कहानी ही थी ना !"
"ओह.. अच्छाजी.. फिर तो ठीक है !"
मैं तो उसके इस जुमले को सुनकर दो दिनों तक इसका अर्थ ही सोचता रहा कि उसने 'फिर तो ठीक है' क्यों कहा होगा।
"सर… एक बात पूछूं?"
"हम्म. ?"
"आपने जो कहानियाँ लिखी हैं वो सब सच हैं क्या?"
मेरे लिए अब सोचने वाली बात थी। मैं ना तो हाँ कह सकता था और ना ही ना। मैंने गोल मोल जवाब दे दिया,"देखो पलक, कहानियाँ तो केवल मनोरंजन के लिए होती हैं। इनमें कुछ बातें कल्पना से भी लिखी जाती हैं और कुछ सत्य भी होता है। पर तुम यह तो जान ही गई होगी कि मैं सिमरन से कितना प्रेम करता था !"
"हाँ सर.. तभी तो मैंने भी आपसे दोस्ती की है !"
"ओह.. आभार तुम्हारा (धन्यवाद) मेरी पलक !" मैंने 'मेरी पलक' जानबूझ कर कहा था।
अगले 3-4 दिन ना तो उसका कोई मेल आया ना ही उसने फोन पर संपर्क हो पाया। मैं तो उससे मिलने को इतना उतावला हो गया था कि बस अभी उड़ कर उसके पास पहुँच जाऊँ।
फिर जब उसका फोन आया तो मैंने उलाहना देते हुए पूछा,"तुमने पिछले 3-4 दिनों में ना कोई मेल किया और ना ही फ़ोन पर बात की?"
"वो... वो.. मेरी तबियत ठीक नहीं थी !"
"क्यों? क्या हो गया था ?"
"कुछ नहीं.. ऐसे ही.. बस..!"
मुझे लगा पलक कुछ छुपा रही है। मैंने जब जोर देकर पूछा तो उसने बताया कि परसों उसकी बुआ आई थी। उसने और दादी ने पापा से मेरी शिकायत कर दी कि मैं सारे दिन फ़ोन पर ही चिपकी रहती हूँ तो पापा ने मुझे मारा और फिर कमरे में बंद कर दिया।
हे भगवान् ! कोई बाप इतना निर्दयी कैसे हो सकता है। पलक तो परी की तरह इतनी मासूम है कोई उसके साथ ऐसा कैसे कर सकता है।
"मैं तो बस अब और जीना ही नहीं चाहती !"
"अरे नहीं... मेरी परी... भला तुम्हें मरने की क्या जरुरत?"
"किसी को मेरी जरुरत नहीं है मुझे कोई नहीं चाहता। इससे अच्छा तो मैं मर ही जाऊं !"
"ओह.. मेरी शहजादी, मेरी परी, तुम बहुत मासूम और प्यारी हो। अपने बच्चे सभी को बहुत प्यारे लगते हैं। हो सकता है तुम्हारे पापा उस दिन बहुत गुस्से में रहे हों?"
"नहीं किसी को मेरे मरने पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला !"
"परी क्या तुम्हें नहीं पता मैं तुम्हें कितना प्रे.. म.. मेरा मतलब है कितना चाहता हूँ?"
"तुम भी मुझे भूल जाओगे... कोई और नई पलक या सिमरन मिल जायेगी ! तुम मेरे लिए भला क्यों रोवोगे?"
पलक ने तो मुझे निरूत्तर ही कर दिया था। मैं तो किमकर्त्तव्य विमूढ़ बना उसे देखता ही रह गया।
मुझे चुप और उदास देख कर वो बोली,"ओह. तमे आ बधी वातो ने मुको.. तमे अहमदाबाद आवशो ?" (ओह. आप इन बातों को छोड़ो.. आप अहमदाबाद कब आयेंगे ?)
"मैं कल अहमदाबाद पहुँच रहा हूँ !"
"साची ? तमे खोटू तो नथी बोलता ने ? पक्का आवशो ने ?"(सच्ची ? आप झूठ तो नहीं बोल रहे हो ना ? पक्का आओगे ना ?)
"हाँ पक्का !"
"खाओ मारा सम" (खाओ मेरी कसम ?)
"ओह.. बाबा, पक्का आउंगा मेरा विश्वास करो !"

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