गतान्क से आगे.....................
अचानक उन्होने अपने होंटो को मेरे पॅंटी के ऊपेर से हटा लिया…मेरे पॅंटी मेरी चूत के पानी से एक दम गीली हो चुकी थी…..उसने मेरे तरफ देखते हुए, अपने हाथों से मेरे चुतड़ों को पॅंटी के ऊपेर से कस के मसल दिया…मेरा बदन एक दम एन्थ गया…फिर वो एक दम से खड़ा हुआ…और मेरे हाथ को अपने फन्फनाते लंड पर रख दिया… मेरी साँसें इतनी तेज़ी से चल रही थी..कि मे बता नही सकती…उनके मोटा लंड किसी लोहे के रोड के तरह दहक रहा था…मेरे हाथ अपने आप उसके 7 इंच के लंड पर कसते चले गये…मेरे सारी अभी भी मेरे कमर पर अटकी हुई थी…उसने मुझे अपने बाहों मे भर कर अपने से चिपका लिया… और मेरे चुतडो को दोनो हाथों से पकड़ कर मसलने लगे…मेरी साँसे तेज़ी से चल रही थी…और उन्होने ने अचानक मेरे होंटो पर अपने होंटो को रख दिए….मे एक दम से मचल उठी…..और छटपटाने लगी….पर उनके हाथ लगातार मेरे चुत्डो को सहला रहे थी…जिसे मेरे विरोध करने के शक्ति लगभग ख़तम हो चुकी थी…उन्होने मेरे होंटो को 2 मिनट तक चूसा… ये मेरा पहला चुंबन था…फिर उन्हें ने अपने होंटो को हटाया और पीछे हट गये…
विजय: मे आज दोपहर 12 बजे तुम्हारा इंतजार करूँगा … तुम्हारी जेठानी आज अपने मयके जा रही है और बच्चे स्कूल मे होंगे…मे तुम्हारा इंतजार करूँगा
मे बिना कुछ बोले अपने रूम मे चली गये….थोड़ी देर बाद बाहर आकर मे फिर से घर के पीछे चली गयी… विजय जा चुका था…मेने दूध ढाया और वापिस आकर नाश्ते के तैयारी करने लगी…नेहा को तैयार करके मेने स्कूल बेज दिया…मेरा दिल कही नही लग रहा था…जेठ जी ने मेरी ऊट की आग को इतना बढ़ा दिया था… के बार-2 मेरा ध्यान सुबह हुए घटनाओ पर जा रहा था…जैसे -2 12 बजे का टाइम नज़दीक आ रहा था मेरे दिल के धड़कन बढ़ती जा रही थी…
जैसे -2 12 बजे का टाइम नज़दीक आ रहा था मेरे दिल के धड़कन बढ़ती जा रही थी…मुझे आज भी ठीक से याद है…मेने घड़ी देखी 12 बजने मे 15 मिनट बाकी थी…तभी मेरी सास मेरी कमरे मे आई…
सास: बहू सुन हम खेतों मे जा रहे हैं दरवाजा बंद कर लो…मे उठ कर बाहर आ गयी और सास ससुर के जाने के बाद मेने डोर बंद कर दिया…और फिर से अपने रूम मे आ गयी…जेठ जी का और हमारा घर साथ – 2 मे था पहले तो पूरा आँगन इकट्ठा था…पर जब मेरी शादी हुई उसके बाद जेठ जी ने घर का बटवारा करवा दिया था…और घर के अंगान के बीचों बीच एक दीवार बनवा दी थी….दीवार 7 फुट की थी…मुझे इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नही था…कि अगर मे नही गयी तो , वो दीवार फंद कर आ जाएगें…मे अपने कमरे मे सहमी सी बैठी थी…और अपने आप कोष रही थी…काश मे अपने सास ससुर के साथ खेतों मे चली जाती…तभी मेरा ध्यान किसी आहट से टूटा…मे जल्दी से उठ कर बाहर आई तो देखा विजय वहाँ पर खड़ा था…उसने सिर्फ़ बाणयान और धोती पहन रखी थी…मेरा दिल डर के मारे जोरों से धड़कने लगा…मे अपने कमरे के तरफ वापिस भागी और डोर को बंद करने लगी…पर विजय ने तेज़ी से डोर को पकड़ लिया…और पीछे धकेल दिया….मे गिरते-2 बची….उसने अंदर आते ही डोर बंद कर दिया…और मेरी तरफ बढ़ने लगा…मेरी तो जैसे जान निकली जा रही थी…मेरे समझ मे नही आ रहा था…कि आख़िर मे करूँ तो किया करूँ….विजय ने आगे बढ़ते हुए अपनी बानयन निकाल कर चारपाई पर फेंक दी…और फिर मेरी तरफ देखते हुए आगे बढ़ने लगा…मे उसको अपनी तरफ बढ़ता देख पीछे हटने लगी…और आख़िर मे पीछे जगह ख़तम हो गयी…मे चारपाई के एक तरफ खड़ी थी…. मेरी पीठ दीवार से सॅट गयी…उसने मेरी तरफ बेहूदा मुस्कान से देखते हुए अपनी लूँगी को निकाल कर नीचे फेंक दिया…उसका 7 इंच का तना हुआ लंड मेरे आँखों के सामने था…जो हवा मे झटके खा रहा था…मेने अपनी नज़रें घुमा ली…मेरी कुछ बोलने की हिम्मत भी नही हो रही थी…वो मेरे बिकुल पास आ गया….मे उसकी साँसों को अपने फेस और होंटो पर महसूस कर रही थी…जैसे ही उसने मेरा हाथ पकड़ा मेने उसका हाथ झटक दिया
मे: देखो भाई साहब मे आप की इज़्ज़त करती हूँ…अगर आप अपनी इज़्ज़त चाहते है…तो यहाँ से चले जाओ…नही तो मे दीदी(जेठानी) को बता दूँगी
विजय: बता देना जान जिसे बताना है बता देना…पहले एक बार मेरे इस लंड की प्यास अपनी चूत के रस से बुझा दो…फिर चाहे तो जान ले लेना…
और विजय ने मेरे हाथ को पकड़ कर अपने लंड के ऊपेर रख लिया…और मेरे हाथ को अपने हाथ से थाम कर आगे पीछे करने लगा…मेरे हाथ लंड पर पड़ते ही मुझे एक बार फिर करेंट सा लगा….हाथ पैर कंम्पने लगे…साँसें एक दम से तेज हो गयी…
विजय: आह अहह तुम्हारे हाथ कितने मुलायम हैं, मज़ा आ गया….
फिर जेठ जी ने अपना हाथ मेरे हाथ से हटा लिया…और अपना एक हाथ मेरी कमर मे डाल कर अपनी तरफ खींच के, अपनी छाती से सटा लिया…और दूसरे हाथ को मेरे गाल्लों पर रख कर अपने उंगुठे से मेरे होंटो को धीरे से मसलने लगे….मेरे बदन मे मस्ती के लहर दौड़ गयी…ना चाहते हुए भी मुझे मस्ती से चढ़ने लगी…मुझे इस बात का ध्यान भी नही रहा के मेरा हाथ अभी उनके लंड को सहला रहा है…मेरा हाथ उतेजना के मारे उनके लंड के आगे पीछे हो रहा था….
विजय: हां ऐसे ही हिलाती रहो….अहह तुम्हारे हाथों मे तो सच मे जादू है….ओह्ह्ह्ह हां ऐसे ही मूठ मारती रहो….
जैसे ही ये शब्द मेरे कानो मे पढ़े…मुझे एक दम से होश आया….और मेने अपना हाथ लंड से हटा लिया…और शर्मा कर सर को झुका लिया…उन्होने मेरे फेस को दोनो हाथों मे लेकर ऊपेर उठया….
विजय: रचना तुम बहुत खूबसूरत हो, मेने जब तुम्हें पहली बार देखा था…मे तब से तुम्हारा दीवाना हो गया…
मेरे पति ने ना तो आज तक मेरे तारीफ कभी की थी…और ना ही मेरे बदन के किसी हिस्से को प्यार किया था…मे जेठ जी के बातों मे आकर जज्बातों मे बहने लगी…जेठ जी ने मेरे सारी के पल्लू को पकड़ नीचे कर दिया…और मेरी चुचियो को हाथों से मसलना चालू कर दिया…मे कसमसा रही थी…पर मे अपना काबू अपने ऊपेर से खोती जा रही थी….उन्होने ने अचानक मुझे चारपाई पर धकेल दिया….और मेरे सारी और पेटिकॉट को एक झटके मे ऊपेर उठा दिया…इससे पहले के मे संभाल पाती…उन्होने ने मेरी पॅंटी को दोनो हाथों से पकड़ कर खींच दिया…और मेरे टाँगों से निकाल कर नीचे फेंक दिया…मे एक दम से सकपका गयी…और अपनी सारी को नीचे करने लगी…पर जेठ जे ने मेरे दोनो हाथों को पकड़ कर सारी से हटा दिया…और अपना मुँह खोल कर मेरी चूत पर लगा दिया….मेरे बदन मे मस्ती के लहर दौड़ गयी….आँखें बंद हो गयी….मुझ से बर्दाश्त नही हुआ…और मेरी कमर अपने आप उचकने लगी..
मे: नही भाई सहह नही नहियीई ईीई आप क्या कर रहीईई हूओ अहह अहह सीईईईईई उंह नहिी ओह ओह नहियीई
मेरी कमर ऐसे झटके खा रही थी…के देखने वाले को लगे के मे अपनी चूत खुद अपने जेठ के मुँह पर रगड़ रही हूँ…..उन्होने मेरे टाँगों को पकड़ कर मोड़ कर ऊपेर उठा दिया….जिससे मेरी चूत का छेद और ऊपेर की ओर हो गया…वो अपनी जीभ को मेरी चूत के छेद के अंदर घुस्सा कर चाट रहे थे…मे एक दम मस्त हो चुकी थी…मेरी चूत से पानी आने लगा…मे अपने हाथों को अपने जेठ जी के सर पर रख कर…उन्हें पीछे धेकालने की नाकाम कॉसिश कर रही थी…पर अब मे विरोध करने के हालत मे भी नही थी…उन्होने अपने दोनो हाथों को ऊपेर करके मेरे चुचियो को दोबच लिया….और ज़ोर ज़ोर से मसलने लगे….मे मस्ती के मारे छटपटा रही थी…मेरी चूत के छेद से पानी निकल कर मेरे गांद के छेद तक आ गया था…उन्होने ने धीरे-2 मेरे ब्लाउस के हुक्स खोलने चालू कर दिए….मे अपने हाथों से उनके हाथों को रोकने के कॉसिश की…पर सब बेकार था…मे बहुत गरम हो चुकी थी…एक एक कर के मेरे ब्लाउस के सारी हुक्स खुल गये…और मेरी 36 सी की चुचिया उछल कर बाहर आ गयी… मेने नीचे ब्रा नही पहनी हुई थी…उन्होने ने मेरी चुचियो के निपल्स को अपने हाथों की उंगलयों के बीच मे लेकर मसलना चालू कर दिया….मेरी चुचियो के काले निपल एक दम तन गये…अब मेरे बर्दास्त से बाहर हो रहा था….मे झड़ने के बिकुल करीब थी…मेरी सिसकारियाँ मेरी मस्ती को बयान कर रही थी….अचानक उन्होने ने मेरी चूत से अपना मुँह हटा लिया….और ऊपेर आ गये…और मेरे आँखों मे देखते हुए अपने लंड के सुपाडे को, मेरी चूत के छेद पर टिका दिया….जैसे ही उनके लंड का गरम सुपाड़ा मेरी चूत के छेद पर लगा मेरा पूरा बदन झटका खा गया….और बदन मे करेंट सा दौड़ गया
विजय: कैसा लगा जानेमन मज्जा आया के नही….
मजबूरी--हालत की मारी औरत की कहानीcompleet
Re: मजबूरी--हालत की मारी औरत की कहानी
मे कुछ नही बोली और वैसे ही आँखें बंद किए लेटी रही….उन्होने ने मेरी एक चुचि के निपल को मुँह मे ले लिया और चोसने लगे….मे मस्ती मे आह ओह ओह कर रही थी….मुझे आज भी याद है, मे उस वक़्त इतनी गरम हो चुकी थी… कि मेरी चूत की फाँकें कभी उनके लंड के सुपाडे पर कस्ति तो कभी फैलती…अब वो मेरी चुचियो को चूसने के साथ मसल भी रहे थी….मे वासना के लहरो मे डूबी जा रही थी….चूत मे सरसराहट होने लगी…और मेरी कमर खुद ब खुद ऊपेर की तरफ उचक गयी, और लंड का सुपाड़ा मेरी चूत के छेद मे चला गया…मेरे मुँह से आहह निकल गयी….होंटो पर कामुक मुस्कान आ गयी….दहाकति हुई चूत मे लंड के गरम सुपाडे ने आग मे घी का काम किया….और मे और मचल उठी….और मस्ती मे आकर अपनी बाहों को उनके गले मे डाल कर कस लिया….मेरे हालत देख उन्होने मेरे होंटो को अपने होंटो मे ले लिया और चूसने लगे…अपने चूत के पानी का स्वाद मेरे मुँह मे घुलने लगा…वो धीरे-2 मेरे दोनो होंटो को चूस रहे थे…और अपने दोनो हाथों से मेरी चुचियो को मसल रहे थे….मेने अपने हाथों से उनकी पीठ को सहलाना चालू कर दिया….और उन्होने ने भी मस्ती मे आकर अपनी पूरी ताक़त लगा कर जोरदार धक्का मारा….लंड मेरी चूत की दीवारों को फैलाता हुआ अंदर घुसने लगा…लंड के मोटे सुपाडे का घर्सन चूत के डाइयावोवर्न को फैलाता हुआ अंदर घुस्स गया, और सीधा मेरी बचेदानी से जा टकराया….मेरी तो जैसे जान ही निकल गयी…दर्द के साथ-2 मस्ती की लहर ने मेरे बदन को जिंज़ोर कर रख दिया…मेरी चूत की फाँकें कुलबुलाने लगी…
विजय: आहह रचना तुम्हारी चूत तो सच मे बहुत टाइट है…..मज्जा आ गया….देख तेरी चूत कैसे मेरे लंड को अपनी दीवारों से भीच रही है…..
मे जेठ जी की बातों को सुन कर शरम से मरी जा रही थी….पर मेने सच मे महसूस किया कि, मेरी चूत की दीवारें जेठ जी के लंड पर अंदर ही अंदर कस और फेल रही हैं….जैसे मेरी बरसों के पयासी चूत अपनी प्यास बुझाने के लिए, लंड को निचोड़ कर सारा रस पी लेना चाहती हो….
एका एक जेठ जी ने मेरी टाँगों को अपने कंधों पर रख लिया…और अपना लंड मेरी चूत मे पेलने लगे….लंड का सुपाड़ा मेरी चूत की दीवारो पर रगड़ ख़ाता हुआ अंदर बाहर होने लगा….और लंड का सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी के मुँह पर जाकर चोट करने लगा…मे एक दम गरम हो चुकी थी…और मस्ती के सागर मे गोत्ते खा रही थी…
विजय का लंड मेरी चूत के पानी से एक दम सन गया था…और लंड फतच-2 की आवाज़ के साथ अंदर बाहर हो रहा था…..मे अब अपने आप मे नही थी…मे अपने दाँतों मे होंटो को भींचे जेठ जी के लंड से चुदवा के मस्त हो चुकी थी…मे अपनी आँखें बंद किए, अपने जेठ जी के लंड को अपनी चूत मे महसूस करके झड़ने के करीब पहुँच रही थी…..जेठ जी के जांघे जब मेरी गान्ड से टकराती, तो ठप-2 के आवाज़ पूरे कमरे मे गूँज जाती, फतच-2 और ठप-2 के आवाज़ सुन कर मेरी चूत मे और ज़्यादा खुजली होने लगी…और मे अपने आप रोक ना सकी….मेने अपनी गांद को ऊपेर की तरफ उछालना चालू कर दिया…मेरी गांद चारपाई के बिस्तर से 3-4 इंच ऊपेर की तरफ उछल रही थी…और लंड तेज़ी से अंदर बाहर होने लगा…
मेरी उतेजना देख जेठ जी और भी जोश मे आ गये…और पूरी ताक़त के साथ मेरी चूत को अपने लंड से चोदने लगे… मे झड़ने के बहुत करीब थी….और जेठ जी का लंड भी पानी छोड़ने वाला था….
विजय: अह्ह्ह्ह रचना मेरा लंड पानी छोड़ने वाला है….अहह अहह
मे: आह सीईईईईई उंह उंह
और मेरा पूरा बदन अकड़ने लगा….मे आज पहली बार किसी लंड से झाड़ रही थी….मे इतनी मस्त हो गयी थी, के मे पागलों के तराहा अपनी गांद को ऊपेर उछालने लगी…और मेरी चूत ने बरसों का जमा हुआ पानी को उगलना चालू कर दिया…जेठ जी भी मेरी कामुकता के आगे पस्त हो गये…और अपने लंड से वीर्ये की बोछर करने लगे…मे चारपाई पर एक दम शांत लेट गयी…मे इस चरम सुख को सही से ले लेना चाहती थी…मे करीब 10 मिनट तक ऐसे ही लेटी रही….जेठ जी मेरे ऊपेर से उठ गये थे…मेने अपनी आँखों को खोला जिसमे वासना का नशा भरा हुआ था…जेठ जी ने अपनी बनियान और लूँगी पहन ली थी…
विजय: रचना आज तुम्हारी टाइट चूत चोद कर मज्जा आ गया…..आज रात के 11 बजे मे घर के पीछे, भैंसॉं के बड्डे मे तुम्हारा इंतजार करूँगा….
विजय: आहह रचना तुम्हारी चूत तो सच मे बहुत टाइट है…..मज्जा आ गया….देख तेरी चूत कैसे मेरे लंड को अपनी दीवारों से भीच रही है…..
मे जेठ जी की बातों को सुन कर शरम से मरी जा रही थी….पर मेने सच मे महसूस किया कि, मेरी चूत की दीवारें जेठ जी के लंड पर अंदर ही अंदर कस और फेल रही हैं….जैसे मेरी बरसों के पयासी चूत अपनी प्यास बुझाने के लिए, लंड को निचोड़ कर सारा रस पी लेना चाहती हो….
एका एक जेठ जी ने मेरी टाँगों को अपने कंधों पर रख लिया…और अपना लंड मेरी चूत मे पेलने लगे….लंड का सुपाड़ा मेरी चूत की दीवारो पर रगड़ ख़ाता हुआ अंदर बाहर होने लगा….और लंड का सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी के मुँह पर जाकर चोट करने लगा…मे एक दम गरम हो चुकी थी…और मस्ती के सागर मे गोत्ते खा रही थी…
विजय का लंड मेरी चूत के पानी से एक दम सन गया था…और लंड फतच-2 की आवाज़ के साथ अंदर बाहर हो रहा था…..मे अब अपने आप मे नही थी…मे अपने दाँतों मे होंटो को भींचे जेठ जी के लंड से चुदवा के मस्त हो चुकी थी…मे अपनी आँखें बंद किए, अपने जेठ जी के लंड को अपनी चूत मे महसूस करके झड़ने के करीब पहुँच रही थी…..जेठ जी के जांघे जब मेरी गान्ड से टकराती, तो ठप-2 के आवाज़ पूरे कमरे मे गूँज जाती, फतच-2 और ठप-2 के आवाज़ सुन कर मेरी चूत मे और ज़्यादा खुजली होने लगी…और मे अपने आप रोक ना सकी….मेने अपनी गांद को ऊपेर की तरफ उछालना चालू कर दिया…मेरी गांद चारपाई के बिस्तर से 3-4 इंच ऊपेर की तरफ उछल रही थी…और लंड तेज़ी से अंदर बाहर होने लगा…
मेरी उतेजना देख जेठ जी और भी जोश मे आ गये…और पूरी ताक़त के साथ मेरी चूत को अपने लंड से चोदने लगे… मे झड़ने के बहुत करीब थी….और जेठ जी का लंड भी पानी छोड़ने वाला था….
विजय: अह्ह्ह्ह रचना मेरा लंड पानी छोड़ने वाला है….अहह अहह
मे: आह सीईईईईई उंह उंह
और मेरा पूरा बदन अकड़ने लगा….मे आज पहली बार किसी लंड से झाड़ रही थी….मे इतनी मस्त हो गयी थी, के मे पागलों के तराहा अपनी गांद को ऊपेर उछालने लगी…और मेरी चूत ने बरसों का जमा हुआ पानी को उगलना चालू कर दिया…जेठ जी भी मेरी कामुकता के आगे पस्त हो गये…और अपने लंड से वीर्ये की बोछर करने लगे…मे चारपाई पर एक दम शांत लेट गयी…मे इस चरम सुख को सही से ले लेना चाहती थी…मे करीब 10 मिनट तक ऐसे ही लेटी रही….जेठ जी मेरे ऊपेर से उठ गये थे…मेने अपनी आँखों को खोला जिसमे वासना का नशा भरा हुआ था…जेठ जी ने अपनी बनियान और लूँगी पहन ली थी…
विजय: रचना आज तुम्हारी टाइट चूत चोद कर मज्जा आ गया…..आज रात के 11 बजे मे घर के पीछे, भैंसॉं के बड्डे मे तुम्हारा इंतजार करूँगा….
Re: मजबूरी--हालत की मारी औरत की कहानी
और जेठ जी बाहर चले गये, मे उन्हें रूम मे चारपाई पर लेटे हुए, दीवार को फन्दते हुए देख रही थी, मेरा पेटिकॉट अभी भी मेरी कमर पर चढ़ा हुआ था…मेरी चूत से पानी निकल कर मेरी गांद के छेद और जाँघो तक फेल गया था…
जेठ जी के जाने के बाद मे मे धीरे से चारपाई पर खड़ी हुई और, बाथरूम मे चली गयी…मेरा ब्लाउस भी खुला हुआ था…और चुचिया चलने से इधर उधर हिल रही थी…मेने बाथरूम मे जाकर अपनी चूत और गांद को पानी से सॉफ किया…फिर गीले कपड़े से अपनी जाँघो को सॉफ किया….और अपने कपड़े ठीक किए…चुदाई के बाद मे अपनी जिंदगी मे एक नया पन महसूस कर रही थी…. मे वापिस आकर किचन मे चली गयी…और दोपहर के खाना बनाने लगी…क्योंकि नेहा भी स्कूल से वापिस आने वाली थी…मे खाना तैयार करके अपने रूम मे चारपाई पर आकर लेट गयी….मेरी आँखों के सामने कुछ देर पहली हुई ज़बरदस्त चुदाई का सीन घूमने लगा…
मे ना चाहते हुए भी, फिर से गरम होने लगी,और अपनी चूत को पेटिकॉट के ऊपेर से सहलाने लगी….पर जैसे जैसे मे अपनी चूत को सहला रही थी…मेरी चूत मे और ज़्यादा आग भड़कने लगी थी…मुझसे बर्दास्त नही हो रहा था…मेरा दिल कर रहा था कि मे अभी विजय के पास चली जाउ…और उसके लंड को अपनी चूत मे लेकर उछल-2 कर चुदवाउ….
मुझे अपनी चूत को सहलाते हुए 5 मिनट बीत गये थे…मेरी चूत फिर से गीली हो चुकी थी…पर तभी अचानक गेट पर दस्तक हुई…मे हड़बड़ा गयी…और तेज़ी से उठ कर बाहर गयी….मेने गेट खोला, तो सामने नेहा खड़ी थी…वो स्कूल से वापिस आ गयी थी…वो जल्दी से अंदर आई
नेहा: मा बहुत गरमी है, जल्दी से पानी दो, बहुत प्यास लगी है….
और नेहा तेज़ी से रूम मे चली गयी…मेरी नज़र उसके चहरे से हट नही रही थी….अब नेहा भी जवान होने लगी थी…धूप के कारण उसके गाल एक दम लाल हो कर दहक रहे थे….मे किचन मे गयी, और एक ग्लास पानी लेकर नेहा के पास गयी…और उसे पानी दिया…मे उसकी तरफ देखने लगी…
नेहा के गाल कश्मीरी सेब के तराहा एक दम लाल और गोरे थे….उसकी चुचियो मे उभार आने लगा था….नेहा बिकुल सिल्म थी…उसकी कमर ऐसी थी मानो जैसे कोई नाग बल खा रहा हो…वो बिकुल दीदी पर गयी थी….
क्रमशः.................
जेठ जी के जाने के बाद मे मे धीरे से चारपाई पर खड़ी हुई और, बाथरूम मे चली गयी…मेरा ब्लाउस भी खुला हुआ था…और चुचिया चलने से इधर उधर हिल रही थी…मेने बाथरूम मे जाकर अपनी चूत और गांद को पानी से सॉफ किया…फिर गीले कपड़े से अपनी जाँघो को सॉफ किया….और अपने कपड़े ठीक किए…चुदाई के बाद मे अपनी जिंदगी मे एक नया पन महसूस कर रही थी…. मे वापिस आकर किचन मे चली गयी…और दोपहर के खाना बनाने लगी…क्योंकि नेहा भी स्कूल से वापिस आने वाली थी…मे खाना तैयार करके अपने रूम मे चारपाई पर आकर लेट गयी….मेरी आँखों के सामने कुछ देर पहली हुई ज़बरदस्त चुदाई का सीन घूमने लगा…
मे ना चाहते हुए भी, फिर से गरम होने लगी,और अपनी चूत को पेटिकॉट के ऊपेर से सहलाने लगी….पर जैसे जैसे मे अपनी चूत को सहला रही थी…मेरी चूत मे और ज़्यादा आग भड़कने लगी थी…मुझसे बर्दास्त नही हो रहा था…मेरा दिल कर रहा था कि मे अभी विजय के पास चली जाउ…और उसके लंड को अपनी चूत मे लेकर उछल-2 कर चुदवाउ….
मुझे अपनी चूत को सहलाते हुए 5 मिनट बीत गये थे…मेरी चूत फिर से गीली हो चुकी थी…पर तभी अचानक गेट पर दस्तक हुई…मे हड़बड़ा गयी…और तेज़ी से उठ कर बाहर गयी….मेने गेट खोला, तो सामने नेहा खड़ी थी…वो स्कूल से वापिस आ गयी थी…वो जल्दी से अंदर आई
नेहा: मा बहुत गरमी है, जल्दी से पानी दो, बहुत प्यास लगी है….
और नेहा तेज़ी से रूम मे चली गयी…मेरी नज़र उसके चहरे से हट नही रही थी….अब नेहा भी जवान होने लगी थी…धूप के कारण उसके गाल एक दम लाल हो कर दहक रहे थे….मे किचन मे गयी, और एक ग्लास पानी लेकर नेहा के पास गयी…और उसे पानी दिया…मे उसकी तरफ देखने लगी…
नेहा के गाल कश्मीरी सेब के तराहा एक दम लाल और गोरे थे….उसकी चुचियो मे उभार आने लगा था….नेहा बिकुल सिल्म थी…उसकी कमर ऐसी थी मानो जैसे कोई नाग बल खा रहा हो…वो बिकुल दीदी पर गयी थी….
क्रमशः.................