एक बार ऊपर आ जाईए न भैया compleet

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The Romantic
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Re: एक बार ऊपर आ जाईए न भैया

Unread post by The Romantic » 07 Nov 2014 09:09

एक बार ऊपर आ जाईए न भैया--3

९:३० बज रहा था और रीमा जी सो चुकी थी। स्वीटी जागी हुई थी, और उसको लग रहा था कि आज भी उसे चुदना होगा सो वो इसी चक्कर में थी कि वो चुद जाए फ़िर सोएगी। वो अब सोने के पहले पेशाब करने के लिए गई, और जब लौटी तो बोली कि चार कम्पार्ट्मेन्ट बाद जा कर देखिए....हमसे भी आगे के लोग है इस ट्रेन में। मैं और गुड्डी उस तरफ़ चल दिए। वहाँ एक जोड़ा अपनी काम-वासना शान्त करने में लगा हुआ था। नीचे के एक बर्थ पर दोनों कमर से नीचे पूरी तरह से नंगे थे। करीब २४-२५ साल की लड़की के मुँह में शायद उसकी पैन्टी हीं घुसा दी गई थी कि उसके मुँह से ज्यादा आवाज न हो। गूँ-गूँ की आवाज निकल रही थी चूत में लगने वाले हर धक्के के साथ। सिर्फ़ एक ब्लाऊज था बदन पर। काली दक्षिण भारतीय लड़की थी वो। उसको एक करीब ३० साल का मर्द जो पूरी तरह से नंगा था चोद रहा था। आस-पास में सब सोए थे, या पता नहीं कहीं सोने का नाटक करके उनकी चुदाई देख हीं रहे हों। उस काली लड़की की खुली और चुद रही चूत के भीतर का भाग गजब का लाल दिख रहा था। हमारे देखते देखते उस मर्द ने उसकी चूत के भीतर हीं पानी छोड़ दी और जब उसने अपना लन्ड बाहर खींचा तो सफ़ेद मलाई चूत से बाहर बह निकला। आब उन दोनों ने हमें देखा और झेंप गए। लड़की ने जल्दी से साड़ी उठा कर अपना बदन ढ़का और सर नीचे करके बैठ गई। उस लड़के ने बताया कि वो उसकी बीवी है....। गुड्डी ने तुरन्त कहा, "शुभकामनाएँ...अगर यह बीवी न होती तो ज्यादा शुभकामना देती..."। पता नहीं वो क्या समझा, पर हम दोनों वहाँ से हँसते हुए अपने जगह पर चले आए।

स्वीटी पूछी,"देखे...कैसे बेशर्म थे, नीचे की सीट पर यह सब कर रहे थे?" गुड्डी बोली, "ये कौन सी बेशर्मी थी, यह तो कुछ नहीं था....आज मुझे देखना, पूरी रात बिल्कुल नंगी हो कर चुदाऊँगी और पूरा आवाज निकाल-निकाल कर। सब जान लें कि अच्छे से चुद रही हूँ।" स्वीटी बोली, "चलो देखते हैं तुमको भी.... वो लोग तो नीचे हीं बिना किसी से लजाए शुरु हो गये थे, और इसके बाद तुम कौन सा तीर मार लोगी..."। उसने भी स्वीटी का चैलेंज स्वीकार किया और फ़िर वहीं खड़े खड़े अपना नाईटी खोल दिया। अभी हमारे कंपार्टमेंट की बत्ती पूरी तरह से जली हुई थी। उसके मम्मी-पापा वहीं बर्थ पर सोए थे और यह बेशर्म उन दोनों के बीच में अधनंगी खड़ी हो गई। गुलाबी ब्रा और हल्के पीले रंग की पैन्टी में। ५’ २" लम्बी गुड्डी का सफ़ेद बुस्शाक बदन पूरी रोशनी में दमक उठा था। एक संपन्न घर की माड़वाड़ी लड़की थी। पिछली रात को तो कपड़े उतारे नहीं थे मैंने दोनों में से किसी लड़की के सो, अब पहली बार बिना नाईटी के गुड्डी का बदन दमक रहा था। उसने फ़िर अपने बाल की क्लीप खोली और अपने कंधे तक लम्बे बाल अपने चेहरे के दोनों तरफ़ ठीक से फ़ैला लिए। उसकी काँख में भी बाल थे जैसे उसकी बूर पे थे, करीब १५-२० दिन पहले के साफ़ किए गए। बालों को ठीक करते हुए वो अपने गोरी-गोरी काँखों के गढ़्ढ़े में निकले हुए काले घने हल्के से घुंघराले बालों का खूब जम कर दीदार कराई। मुझे डर था कि कहीं उसके माँ-बाप में से कोई जाग न जाए। पर वो आज खुद को बेशर्म साबित करने में लगी हुई थी।

वहीं खड़े खड़े उसने मुझे निमंत्रण दिया, "आ जाओ अब यहीं मैं टेबुल पकड़ कर झुकती हूँ तुम पहले पीछे से चोदो मुझे, यहीं नीचे... स्वीटी को भी पता चले कि उस औरत से ज्यादा गंदी मैं हूँ।" मैं घबड़ा गया और बोली, "हट... कहीं ये लोग जाग गए तो...तुम तो उनकी बेटी हो, मुझे वो कहीं का नहीं छोड़ेगे. यहाँ ऊपर कम से कम कुछ पर्दा तो होगा।" स्वीटी आराम से सब तमाशा देख रही थी। गुड्डी ने मेरे न का पक्का ईरादा महसूस किया तो हथियार डाले और बोली, "ठीक है, फ़िर पर रात भर में कम-से-कम तीन बार मुझे चुदना है, बहन को आज की रात छोड़ो...उसको तो कभी भी चोद लोगे।" फ़िर उसने अपनी ब्रा-पैन्टी नीचे खड़े-खड़े हीं खोली और अपनी माँ के बर्थ पर डालते हुए कहा, "कैसे हरामी हो कि तुम्हें एक जवान लड़की को तब चोदने का मौका मिल रहा है जब उस लड़की की एक तरह उसकी माँ लेटी है और एक तरफ़ उसके पापा...फ़िर भी तुम उसे वहाँ नहीं चोदोगे... अपने बेड पर हीं चोदोगे, बेवकूफ़...।" मैंने अब कह दिया, "सब के अलग-अलग संस्कार होते हैं..."। वो अब ऊपर मेरे बर्थ पे चढ़ते हुए बोली, "हाँ बे बहनचोद...तुम्हारा संस्कार मुझे पता है...एक मिनट में बह्न की चूत में अपना लण्ड घुसा कर उसमें से अपना बच्चा पैदा कर दोगे।" मुझे बहुत शर्म आई ऐसे उसकी बात सुन कर और स्वीटी तो शर्म से लाल हो गई पर अब हम दोनों के लिए यह बात सौ फ़ीसदी सच थी सो हम दोनों उस बात पर नजर नीची करने के अलावे और क्या कर सकते थे?

मैंने बत्ती बन्द कर दी तो उसने नाईट बल्ब जला लिया और बोली, "कल तो जैसे-तैसे हुआ...आज मुझे बिल्कुल एक दुल्हन जिसे सुहागरात को चुदती है वैसे प्यार से चोदो, पूरी तरह से गरम करके, फ़िर मुझे चोद कर ठण्डा करो" और इसी के साथ वो मेरे ऊपर चढ़ गई और मेरे होठ चुसने लगी। मेरे पास अब कोई ऊपाय नहीं था सो मैं भी शुरु हो गया। कुछ समय की चुम्मा-चाटी के बाद मैंने उसको नीचे लिटा लिया और उसकी झाँटों भरी बूर पर अपने होठ लगा दिया, और इस बार वो जिस तरह से वो उईई माँ बोली, मैं डर गया। आवाज कम से कम २० फ़ीट गई होगी दोनों तरह...लगभग पूरी बौगी ने सुना होगा (अगर जो कोई जगा हुआ हो तो)। मैंने अपना मुँह हटा लिया, तो उसको समझ में आया, वो बोली "अच्छा अब चाटो, मैं हल्ला नहीं करुँगी..." सच में इसके बाद वो हल्के-हल्के सिसकी भरने लगी और मैं अब आराम से उसके बूर को चाटता हुआ मजे लेने लगा। मेरे दिमाग में था कि यह सब स्वीटी देख रही है...अब अगली बार उसकी बूर भी पहले चाटुँगा फ़िर चोदुँगा। क्या वो मुझसे अपना बूर चटवाएगी, या शर्म से ना कह देगी? क्या मैं उसके साथ जबरद्स्ती करके उसकी बूर चाट पाऊँगा? फ़िर ख्याल आया - अरे वो तो मुझसे पहले ही किसी और से सेक्स करती रही है, ऐसी जवान और सेक्सी लड़की को कोई वैसी हड़बड़ी में तो चोदा नहीं होगा जैसी कल रात मैंने चोदी... और क्या पता कहीं मेरी बहन लण्ड भी चूसती हो, अब तो बिना उसके मुँह से सुने कुछ जानना मुश्किल है। गुड्डी अब कसमसाने लगी थी। वो कभी जाँघ भींचती तो कभी कमर ऊठाती। मुझे पता चल गया कि अब यह लैण्डिया चुदास से भर गई है सो मैं उठा और उसकी जाँघो को खोलते हुए उसके टाँगों के बीच में घुटने के बल बैठा।

वो समझ गई कि अब उसकी चुदाई होने वाली है सो वो भी अब शान्त हो कर आने वाले पल का इंतजार करने लगी। मैंने उसके बूर की फ़ाँकों को खोल कर उस पर अपना लण्ड भिरा दिया और फ़िर उसकी काँख के नीचे से अपने दोनों हाथ निकाल कर उसके कँधों को पकड़ लिया फ़िर अपने मांसल जाँघों से उसकी खुली हुई आमंत्रण देती जाँघो को दबा कर एक तरह से ऐसे स्थिर कर दिया कि अब अगर वो कुँवारी होती और उसकी सील तोड़ी जा रही होती तब भी उसके हिलन सकने की संभवना कम हीं थी। अपनी चुदाई में देर होता देख वो बोली, "ओह, ऐसे सेट करके भी इतना देर..." मैंने अब उसको कहा, "तुम्हीं बोली थी ना कि ऐसे चुदना है जैसे सुहागरात को दुल्हन चुदती है...सो मैंने अब तुमको वैसे हीं जकड़ लिया है जिस तरीके से ज्यादातर दुल्हन की सील टुटती है सुहागरात में। अब अगर एक झटके में भी लड़की की सील टुटेगी तब भी आँख से चाहे जितना आँसू बहे पर वो बिना अपनी सील टुटवाए निकल नहीं सकेगी मर्द की गिरफ़्त से।" इसके बाद मैंने उसकी बूर में लण्ड पेल दिया....फ़ीच्च... की आवाज हुई और पूरा का पूरा लण्ड जड़ तक भीतर। गुड्डी भी इस लण्ड से प्रहार से हल्के से मस्त तरीके से आआअह्ह्ह्ह्ह्ह.... की और फ़िर अपने आँख बन्द कर लिए।

मेरे लिए यह इशारा थ कि अब मैं अपनी चोदन-कला का प्रदर्शन करूँ, सो भी अब शुरु हो गया। मैंने अपनी बहन की तरफ़ देखा, जो आराम से अब रोशनी में मुझे एक जवान लड़की को चोदते हुए देख कर मुस्कुरा रही थी। उसने मुझे एक थम्स-अप दिया और आँख मारी। मैंने अब उसकी चिन्ता छोड़ दी और नीचे पड़ी गुड्डी की चुदाई करने लगा....गच्च गच्च फ़च्च फ़च्च... गच्च गच्च फ़च्च फ़च्च... की आवाज उसकी चुद रही बूर से निकल कर माहौल को हसीन बना रही थी, और मैं उसके भूल गया कि जिस बर्थ पर उसको चोद रहा हूँ उसके नीचे उसका सगा बाप सोया हुआ है और सामने की बर्थ पर उसकी माँ सोई है। बल्कि उसकी मम्मी का चेहरा तो हमारी बर्थ की तरफ़ हीं था और उसकी बेटी भी इस सब से बेफ़िक्र हो कर मस्त हो कर एक अजनबी से ट्रेन में ठीक-ठाक रोशनी में आह आह... ओह ओह.. करके चुदा रही थी। करीब ५० धक्के अपनी बूर में लगवाने के बाद गुड्डी बोली, "अब तुम लेटो और मैं तुम्हारी सवारी करती हूँ।" फ़िर मुझे नीचे लिटा कर गुड्डी मेरे ऊपर चढ़ गई और ऊपर से उछल-उछल कर मुझे चोदने लगी। इसी तरह मेरे लण्ड से अपनी बूर को रगड़ते हुए उसका बदन काँपा तो मैं समझ गया कि अब यह खलास हो रही है, तभी मैं भी झड़ गया, बिना उसको बताए...उसकी बूर में मेरे लण्ड ने भरपूर थुक निकाला, सफ़ेद-सफ़ेद....लसलसा...चिप-चिपा सा मेरा वीर्य उसकी बूर को भर दिया। उसे इसका आभास हो गया था, वो मुस्कुराते हुए मेरे ऊपर से हटी और नंगी ही नीचे उतर गई।

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Re: एक बार ऊपर आ जाईए न भैया

Unread post by The Romantic » 07 Nov 2014 09:10

नीचे की बर्थ पर एक तरफ़ उसकी माँ सोई थी और दूसरी तरफ़ उसका बाप और वो बेशर्म अपनी बूर में मेरा सफ़ेदा लिए बीच में खड़ी थी. उसकी झाँटों पर मेरा सफ़ेदा लिसड़ा हुआ साफ़ दिख रहा था और उसकी बूर से पानी उसकी भीतरी जाँघों पर बह रहा था।

उसने आराम से अपनी मम्मी के रुमाल से अपनी बूर पोछी और मुझे नीचे आने का इशारा किया। मेरा दिल धक से किया, क्या फ़िर इसको नीचे चुदाने का भूत सवार हो गया। मेरे ना में सिर हिलाने पर उसने गुस्से से मुझे जोर से डाँटते हुए कहा, "नीचे और नहीं तो मैं जोर-जोर से चिल्लाने लगुँगी" और उसने एक बार पुकारा भी "मम्मी,,,मम्मी..."। मेरा तो अब उसका यह ड्रामा देख फ़टने लगा। मैं तोलिया लपेट झट से नीचे आया। स्वीटी यह सब देख कर हँस पड़ी। गुड्डी वहीं नीचे खिड़्की पकड़ कर झुक गई और अपना एक हाथ अपने जाँघों के बीच से निकाल कर अपने बूर की फ़ाँक खोल दी। किसी बछिया की बूर जैसी दिख रही थी उसके बूर की अधखुली फ़ाँक। मेरे पास अब कोई चारा नहीं था। मेरा लन्ड एक बार हीं झड़ा था और उसमें अभी भी पूरा कसाव था। मैंने एक नजर उसके खर्राटे लेते बाप के चहरे पर डाली और फ़िर बिना कुछ सोचें उसकी बूर में लन्ड घुसा दिया। एक मीठी आआअह्ह्ह्ह्ह के साथ गुड्डी अपने बूर में मेरे लन्ड को महसूस करके शान्त हो गई। मैं अब हल्के-हल्के उसको चोदने लगा था, कि आवाज कम से कम हो। गुड्डी भी शान्त हो कर चुद रही थी, हाँ बीच-बीच में वो अपने माँ-बाप की तरफ़ भी देख लेती थी। जल्दी हीं मेरा खून गर्म हो गया और मैंने सही वाले धक्के लगाने शुरु कर दिए। आअह्ह्ह्ह्ह आआह्ह्ह्ह ओह ओह से शमां बंधने लगा था। जल्द हीं मैं उसकी बूर में फ़िर से झड़ गया। वैसे भी किसी लड़की को ऐसे कुतिया के तरह चोदने में मैं जल्दी स्खलित हो जाता हूँ, मुझे ऐसा लगता है। वो यह समझ गई पर मुझे नहीं रुकने को कहा और फ़िर १५-२० सेकेण्ड बाद वो भी शान्त हो गई। हमदोंनो अलग हुए। गुड्डी ने फ़िर से अपनी मम्मी के रुमाल में अपना बूर पोछा और फ़िर उस लिसड़े हुए रुमाल को अपनी मम्मी के पास रख दिया। इसके बाद वो वैसे हीं नंग-धड़ंग टायलेट की तरफ़ बढ़ गई। मुझे भी पेशाब लग गया था, तो मैं भी हिम्मत करके उसके पीछे चल दिया। वैसे भी उस तरफ़ हीं वो जवान जोड़ा था जिसकी चुदाई हमने देखी थी।

मैंने देखा कि वो दोनों अभी भी जगे हुए हैं और मोबाईल पर कोई फ़िल्म देख रहे थे शायद। हम दोनों को ऐसे नंगे देख कर दोनों मुस्कुराए, तो मैं भी मुस्कुराया। टायलेट में पहले गुड्डी हीं गई, पर उसने दरवाजा बन्द नहीं किया और आज पहली बार मैंने एक जवान लड़की को पेशाब करते देखा। छॊटी बच्चियों को मैं अक्सर देखता था जब भी मौका मिला। बिना नजर हटाए मुझे बूर की उस फ़ाँक से निकलती पेशाब की धार को देखते हुए अपने लन्ड में हमेशा से कसाव्व महसूस होता था। आज मेरे सामने एक जवान लड़की जिसकी बूर पर झाँट भी थे, मेरे सामने बैठ कर मूत रही थी, मेरे से नजर मिलाए। मेरा लन्ड तो जैसे अब फ़ट जाता, कि तभी वो उठी और अपने बूर पर हाथ फ़िराया। उसकी हथेली पर उसके पेशाब के बूँद लग गए थे और उसने अपनी हथेली मेरी तरफ़ बढ़ाया। मैंने भी बिना कुछ सोंचे, उसकी पेशाब की बूँद को उसकी हथेली पर से चाट लिया। उसने मेरे होठ चूम लिए और फ़िर एक तरफ़ हट गई। उसके दिखाते हुए मैंने भी पेशाब किया और फ़िर जब मैं लन्ड हिला कर पेशाब की आखिरी कुछ बूँद निकाल रहा था गुड्डी झुकी और मेरे लन्ड को चाट ली। मेरा लन्ड अब कुछ ढ़ीला हो गया था और गुड्डी के पीछे-पीछे मैं भी अब वापस अपनी बर्थ की तरफ़ चल पड़ा। जाते हुए जब हमने फ़िर से उस दक्षिण-भारतीय जोड़े को देखा तो हम दंग रह गए। मेरे और गुड्डी को ऐसे डब्बे में घुमते देख उनको भी शायद जोश आ गया था और अब उस मर्द के लन्ड को चूस कर उसके साथ की लड़की कड़ा कर रही थी। गुड्डी ने एक बार उनको देखा फ़िर मुझे देखा और फ़िर वो नंगे हीं उस जोड़े की तरफ़ बढ़ गई। उसको पास आता देख वो लड़की सकपकाई और लन्ड को अपने मुँह से बाहर करके एक तरफ़ हट गई।

गुड्डी वहीं सीट के पास अपने घुटनों पर बैठी और उस अनजाने मर्द के काले-कलुटे लन्ड अपने मुँह में ले कर चुसने लगी। मेरी अब फ़िर से फ़तणे लगी थी, ये रंडी साली अब क्या करने लगी। मैं अब वहाँ से जल्दी से जल्दी भागना चाहता था। पर गुड्डी ने उस लड़की को मेरी तरफ़ इशारा कर दिया और मुझसे बोली, "अपना लन्ड भी इस लड़की से चुसवाओ और कड़ा करो, फ़िर एक आखिरी बार मुझे चोद देना"। मेरे पास कोई चारा था नहीं सो मैं भी अब उनकी तरफ़ बढ़ा और वो लड़की सब समझ कर मेरे लन्ड को अपने मुँह में ले ली। यह लड़की अभी तक ब्लाऊज पहने हुए थी, और साया भी ठीक से बदन पर था। दो मिनट के बाद हीं गुड्डी वहीँ नीचे पीठ के बल लेट गई और मुझे अपने ऊपर आने का इशारा किया। उस मर्द ने भी अपनी वाली लड़की के सर पर चपत लगा कर अपनी तरफ़ बुलाया और फ़िर उसके साया के डोरी को खींच कर खोल दिया। अब बर्थ पर वो लड़की और नीचे गुड्डी दोनों साथ-साथ चुद रहीं थीं। भाषा में फ़र्क के बाद भी दोनों चुद रहीं उत्तर और दक्षिण भारतीय लड़कियों में मुँह से एक हीं किस्म की सिसकी निकल रही थी। आह्ह्ह आअह्ह्ह की दो आवाजों ने सामने की बर्थ पर सोए एक अंकल जी की नींद खोल दी। उस बुढ़े ने जब देखा कि जो जवान जोड़ा चुदाई में मस्त है तो तमिल मिले अंग्रेजी में बड़बड़ाया, "३-४ दिन सब्र नहीं होता है, इतनी गर्मी अब के जवानों को चढ़ती है कि बिना जगह समय देखे शुरु हो जाते हैं", फ़िर उठ कर पेशाब करने चला गया।


हम सब को अब इस सब बात से कोई फ़र्क तो पड़ना नहीं था। हमारा चुदाई का कार्यक्रम चलता रहा। उसके वापस आने तक हम दोनों मर्द अपनी-अपनी लड़की की बूर में खलास हो गए। पहले उस जोड़े का खेल खत्म हुआ और जब तक वो सब अपना कपड़ा ठीक करते मैं भी गुड्डी मी बूर में झड़ गया था, आज तीसरी बार झड़ने के बाद अब मेरे में दम नहीं बचा था अभी। मैं गुड्डी के ऊअप्र से हटा तो वो भी उठी और फ़िर उस लड़की का मुँह चूम कर बाए बोली और फ़िर अपने चूत में मेरे माल को भर कर फ़िर अपने सीट पर आई और फ़िर मम्मी वाले रुमाल में हीं अपना बूर पोछी। उस रुमाल का बूरा हाल था। फ़िर वहीं नीचे ही अपने कपड़े पहने, अपने मम्मी-पापा के बीच में खड़ा हो कर। रात के २:३० बज चूके थे। सो मैंने कहा कि अब कुछ समय सो लिया जाए। ट्रेन थोड़ा लेट है तो हम लोग को कुछ आराम का मौका मिल जाएगा। फ़िर मैं अपनी बहन स्वीटी के साथ लिपट कर सो गया और वो सामने के बर्थ पर करवट बदल कर लेट गई। ट्रेन पहले हीं लेट थी अब शायद रात में और लेट हो गई और करीब ६ बजे जब मैं जागा तो देखा कि गुड्डी के मम्मी-पापा उठे हुए हैं और अपना कपड़ा वगैरह भी ठीक कर चुके हैं। मैं भी ऊठा तो प्रीतम जी बोले, "अभी करीब दो घन्टे और लगेगा। आप आराम से तैयार हो लीजिए।" मैं टायलेट से हो कर आया तो स्वीटी आराम से जगह मिलने पर पसर कर सो गई थी और स्वीटी की नंगी गोरी जाँघ पर प्रीतम जी की नजर जमी हुई थी और उनकी बीबी टायलेट के बाहर के आईने में अपना बाल ठीक कर रही थी कंघी ले कर। मुझे यह देख कर मजा आया। मैंने स्वीटी की उसी नंगी जाँघ को प्रीतम जी के देखते-देखते पकड़ा को जोर से हिलाया, "स्वीटी, उठो अब देर हो जाएगा।"

स्वीटी भी हड़बड़ा कर उठी और और मैंने इशारा किया कि वो साईड वाले रास्ते की तर्ह बनी सीढ़ी के बजाए दोनों सीट के बीच में मेरे सहारे उतर जाए। मैंने अपने बाँह को ऐसे फ़ैला दिया जैसे मैं उसको सहारा दे रहा होऊँ। उसने भी आराम से अपने पैर पहले नीचे लटकाए। प्रीतम जी सामने की सीट पर बैठे थे और सब दे ख रहे थे। स्वीटी के ऐसे पैर लटकाने से उसकी नाईटी पूरा उपर उठ गई और अब उसकी दोनों जाँघ खुब उपर तक प्रीतम जी को दिख रही थी। मैंनें स्वीटी को इशारा किया और वो धप्प से मेरे गोदी में कुद गई। उसकी चुतड़ को मैंने अपने बाहों में जकड़ लिया था और धीरे से उसको नीचे उतार दिया। मेरे बदन से उसकी नाईटी दबी और उसके पूरे सपाट पेट तक का भी दर्शन प्रीतम जी को हो गए। स्वीटी तो पहले ही दिन बिना ब्रा-पैन्टी सोई थी तो आज की रात क्यों अपने अंडर्गार्मेन्ट्स पहनती। मैंने देखा कि प्रीतम जी की गोल-गोल आँख मेरी बहन की मक्खन जैसी नंगी बूर से चिपक गई थी एक क्षण के लिए, तो मैंने मुस्कुराते हुए कहा, "स्वीटी, अब जल्दी से आओ और अपना कपड़ा सब ठीक से पहनो अब दिन हो गया है और मैंने प्रीतम जी से नजर मिलाया।" बेचारा शर्म से झेंप गया। स्वीती भी अब अपने बालों को संभालते हुए टायलेट चली गई और मैं प्रीतम जी से बोला, "देख रहे हैं, इतने बड़ी हो गई है और बचपना नहीं गया है इसका, पता नहीं यहाँ अकेले कैसे रहेगी।" प्रीतम जी हीं झेंपते हुए बोले, "हाँ सो तो है, गुड्डी भी ऐसी ही है... नहा लेगी और सिर्फ़ पैन्ट पहन कर ऐसे ही खुले बदन घुमने लगेगी कि अपने घर में क्या शर्म..., अब बताईए जरा इस सब को... खैर सब सीख जाएगी अब जब अकेले रहना होगा।" हमारी बात-चीत से गुड्डी भी उठ गई और वो भी देखी कि अब रोशनी हो गया है तो नीचे आ गई। आधे घन्टे में हम सब उतरने को तैयार हो गए और करीब ७ बजे ट्रेन स्टेशन पर आ गई। हम सब साथ हीं स्टेशन के पास के एक होटल में रूम लिए, दोनों परिवार ने एक-एक रूम बुक किया। प्रीतम जी का वापसी का टिकट दो दिन बाद का था और मेरा तीन दिन बाद का। खैर करीब दो घन्टे बाद ९.३० बजे हम सब कौलेज के लिए निकल गए।

उस दिन हम सब खुब बीजी रहे, दोनों बच्चियों का नाम लिखवाया गया फ़िर करीब ४ बजे उन दोनों को एक हीं होस्टल रुम दिलवा कर हम सब चैन में आए। इसके बाद हमने साथ हीं एक जगह खाना खाया और फ़िर शाम में एक मौल में घुमे, और करीब ९ बजे थक कर चूर होटल में आए। सब थके हुए थे सो अपने-अपने कमरे में सो रहे। हालाँकि मैं स्वीटी के साथ हीं बिस्तर पर था बन्द कमरे में पर थकान ऐसी थी कि उसको छूने तक का मन नहीं था। वही हाल उसका था सो आराम से सोए। रात १० बजे से करीब ६ बजे सुबह तक एक लगातार सोने के बाद मेरी नींद खुली, देखा स्वीटी बाथरूम से निकल कर आ रही हैं। मुझे जागे हुए देखा तो वो सीधे मेरे बदन पर हीं गिरी और मुझसे लिपट गई। मुझे भी पेशाब लग रही थी तो मैंने उसको एक तरफ़ हटाया और बोला, "रूको, पेशाब करके आने दो..."। मुझे बाथरूम में ही लगा कि स्वीटी ने कमरे की बत्ती जला दी है। मैं जब लौटा तो देखा कि मेरी १८ साल की जवान बहन स्वीटी पूरी तरह से नंगी हो कर अपने पैर और हाथ दोनों को फ़ैला कर बिस्तर पर सेक्सी अंदाज में बिछी हुई है। अब कुछ न समझना था और ना हीं सोचना। सब समझ में आ रहा था सो मैं भी अपने गंजी और पैन्ट को खोल कर पूरी तरह से नंगा हो कर बिस्तर की ओर बढ़ा। मेरी बहन अब अपने केहुनी के सहारे थोड़ा उठ कर मेरे नंगे बदन को निहार रही थी। ५’१० का मेरा साँवला बदन दो ट्युब-लाईट की रोशनी में दमक रहा था। मैं बोला, "क्या देख रही हो ऐसे, बेशर्म की तरह..." स्वीटी बोली, "बहुत हैंडसम हैं भैया आप, भाभी की तो चाँदी हो जाएगी"। मैं भी उसको अपने बाहों में समेटते हुए बोला, "भाभी जब आएगी तब देखा जाएगा, अभी तो तुम्हारी चाँदी हो गई है... बेशर्म कहीं की।" स्वीटी ने मेरे छाती में अपना मुँह घुसाते हुए कहा, "सब आपके कारण हीं हुआ है... आपके लिए तो बचपन से हम रंडी बनने के लिए बेचैन थे, अब रहा नहीं जा रहा था। सो ट्रेन में साथ सटने का मौका मिला तो हम भी रिस्क उठा लिए।"


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Re: एक बार ऊपर आ जाईए न भैया

Unread post by The Romantic » 07 Nov 2014 09:11

एक बार ऊपर आ जाईए न भैया--4

मैंने उसकी नन्हीं-नन्हीं चूचियों को मसलते हुए कहा, "मेरे लिए.... पहले से अपना बूर का सील तुड़वा ली और बात बना रही है.... अच्छा बताओ न अब मेरी गुड़िया, किसके साथ करवाई थी पहले, कौन सील तोड़ा तुम्हारा?" अब स्वीटी मेरे से नजर मिला कर बोली, "कोई नहीं भैया, अपने से ४ बार कोशिश करके खीरा से अपना सील तोड़ी थी, एक सप्ताह पहले। जब पक्का हो गया कि अब घर से बाहर होस्टल में जाने को मिल जाएगा तब अपने से सील तोड़ी काहे कि मेरी दोस्त सब बोली कि अगर कहीं बाहर मौका मिला सेक्स का और ऐसे-वैसे जगह पर चुदाना पर गया या फ़िर परेशानी ज्यादा हुई तब क्या होगा... घर पर तो जो दर्द होगा घर के आराम में सब सह लोगी सो सील तोड़ लो। इसीलिए, रोशनी के घर पर पिछले मंगल को गई थी तो उसी के रूम में खीरा घुसवा ली उसी से। अपने से ३ बार घुसाने का कोशिश की पर दर्द से हिम्मत नहीं हुआ। फ़िर रोशनी हीं खीरा मेरे हाथ से छीन कर हमको लिटा कर घुसा दी। दिन में उसका घर खाली रहता है सो कोई परेशानी नहीं हुई। इसके बाद वही गर्म पानी ला कर सेंक दी। फ़िर करीब दो घन्टे आराम करने के बाद सब ठीक होने के बाद मोमबत्ती से रोशनी हमको १२-१५ मिनट चोदी तब जा कर हमको समझ में सब आ गया और हिम्मत भी कि अब सब ठीक रहेगा।" मेरा लन्ड तो यह सब सुन कर हीं झड़ गया। मेरे उस मुर्झाए लन्ड को देख वो अचम्भित थी तो मैंने उसको चुसने को बोला। वो झुकी और चुसने लगी मैं भी उसको अपने तरह घुमा लिया और हम दोनो ६९ में लग गए। स्वीटी मेरा लन्ड चूस रही थी और मैं उसका बूर जिसमें से अभी भी पेशाब का गन्ध आ रहा था और जवान लड़की की बूर कैसी भी हो लन्ड को लहरा देती है।

२ मिनट में लन्ड टनटना गया तो मैंने उसको बिस्तर पर सीधा बिछा कर उसके उपर चढ़ गया और लगा उसकी कसी बूर की चूदाई करने। वो अब मजे से कराह रही थी... यहाँ कोई डर-भय था नहीं, कोई न देखने वाला न सुनने वाला सो आज वो बहुत जोश में थी और पूरा सहयोग कर रहे थी। मैं भी अपनी सगी बहन की चुदाई खुब मन से मजे ले लेकर करने में मशगुल था। वो अचानक जोर से काँपी और निढ़ाल सी शान्त हो गई। मैं समझ गया कि उसको मजा आ चुका है। मेरे पूछने पर वो बोली, "हाँ भैया अब हो गया अब छोड़ दीजिए हमको...प्लीज।" उसकी आवाज मस्ती से काँप रही थी। मैंने भी उसको पकड़ कर अब तेज और जोर के धक्के लगाए, वो अब नीचे छटपटाने लगी थी। मैं बिना रिआयत किए उसकी चुदाई किए जा रहा था। बेचारी रो पड़ी कि मेरा भी पानी छुटने को हुआ तो मैंने अपना लन्ड बाहर खींचा और उसकी बूर से निकलते-निकलते झड़ गया। गनीमत थी कि मेरा वीर्य उसकी बूर के बाहर होने के बाद निकला वर्ना मामला सेकेण्ड भर का भी नहीं था। वो घबड़ा गई थी, और रो दी थी, फ़िर मैंने उसको समझाया कि परेशानी की कोई बात नहीं है। एक बूँद भी भीतर नहीं निकला है, तब कहीं जा कर वो शान्त हुई... आखिर वो मेरी बहन थी और मैं उसका भाई...। मैंने उसके पेट पर से सब कुछ साफ़ किया। वो अब शान्त हो गई थी, मैंने उसको प्यार से होठों पर चूमा, वो अब भी थोड़ा सीरियस थी उसको लग रहा था कि मैंने अपना माल का कुछ हिस्सा उसकी बूर की भीतर गिरा दिया है, हालाँकि ऐसा हुआ नहीं था। अब जब वो शान्त थी तो मैं यही सब उसको समझाने में लगा हुआ था। मैंने उसको अब कहा, "देखो स्वीटी, तुम मेरी बहन हो इस लिए यह सब तो किसी हाल में मेरे से होगा ही नहीं कि तुम्हारे बदन के भीतर मेरा निकल जाए... अब बेफ़िक्र हो जाओ और खुश हो जाओ, नहीं तो हम तुमको जोर से गुदगुदी कर देंगे", कहते हुए मैंने उसके बगलों में अपनी ऊँगली चलाई।

वो भी यह देख कर थोड़ा हँसी... और माहौल हल्का हुआ तो मुझे लगा कि अब एक बार और उसको चोदें। मैंने मजाक करते हुए कहा, "लड़की हँसी... तो फ़ँसी, जानती हो ना, और तुम अब हँस रही हो... समझ लो, मेरे से फ़ँस जाओगी।" वो भी मेरी बात सुन कर मुस्कुराई, तो मैंने उसके चेहरे को अपने हाथों के बीच ले कर अपने होठ उसके होठों पर रख दिए। अब वो भी मेरे चुम्मा का जवाब देने लगी थी, मैंने अपने जीभ को उसके मुँह के भीतर घुसा दिया और बोला, "अब एक बार गाँड़ मराओगी मेरी जान...?" वो तुरन्त बिदकी..."नहींहींईईई... हरगीज नहीं, जो कर रहें है आपके साथ उससे संतोष नहीं है क्या आपको?" मैंने बात संभाली, "नहीं मेरी रानी, तुम तो हमको खरीद ली इतना प्यार दे करके", और अब मैं उसके चूचियों को चुसने चाटने लगा था। उसका गुलाबी निप्पल एकदम से कड़ा हो कर उभर गया था। वो बोली, "बस आज भर हीं इसके बाद यह सब बन्द हो जाएगा, फ़िर कभी आप इसका जिक नहीं कीजिएगा... नहीं तो फ़िर हमको बहुत शर्म आएगा। अब से फ़िर वही पहले वाला भैया और स्वीटी बन जाना है। अभी बहुत मुश्किल पढ़ाई करना है आगे। इसलिए आज-भर यह सब कर लीजिए जितना मन हो, फ़िर मत कहिएगा कि हम आपको ठीक से प्यार नहीं दिए", और उसने मेरा मुँह हल्के से चूम लिया। मैंने देखा कि अब एक बार फ़िर उस पर पढ़ाई का भूत चढ़ने लगा था, सो एक तरह से अच्छा ही था। मैंने भी कहा, "ठीक ही है, अभी मेरे पास है न २४ घन्टा... फ़िर ठीक है" और मैंने उसको बिस्तर पर सीधा लिटा दिया, वो समझ गई। मैं अब उसकी बूर पर अपना होठ चिपका कर चूसने लगा था। उसकी साँस तेज होने लगी थी।
मैं अब उसके बूर के भीतर जहाँ तक जीभ घुसा सकता था घुसा कर खुब मन से अपनी छॊटी बहन की बूर का स्वाद लेने में मगन था। वो इइइइस्स्स्स इइइइस्स्स्स कर रही थी, अपने सर को कभी दाएँ तो कभी बाएँ घुमा रही थी। मुझे पता चल रहा था कि उस पर चुदास चढ़ गया है।

मैंने अपनी बहन से कहा, "पलट कर झुको न मेरी जान, पीछे से चोदेंगे अब तुमको...बहुत मजा आएगा।" उसको कुछ ठीक से समझ में नहीं आया, वो पीछे मतलब समझी कि मैं उसकी गाँड़ मारने की बात कर रहा हूँ। वो तुरन्त बिदकी, "नहींईईई... पीछे नही, प्लीज भैया।" मैंने उसको समझाया, "धत्त पगली..., पीछे से तुम्हारा बूर हीं चोदेंगे। कभी देखी नहीं हो क्या सड़क पर कैसे कुत्ता सब कुतिया को चोदता है बरसात के अंत में.., वैसे ही पीछे से तुमको चोदेंगे।" वो अब सब समझी और बोली, "ओह, मतलब अब आप अपनी बहन को कुतिया बना दीजिएगा... हम तो पहले से आपके लिए रंडी बने हुए हैं।" मैंने उसको ठीक से पलट कर पलंग के सिरहाने पर हाथ टिका कर बिस्तर पर हीं झुका दिया, और फ़िर उसके पीछे आ कर उसके बूर की फ़ाँक जो अब थोड़ा पास-पास हो कर सटी हुई लगने लगी थी उसको खोल कर सूँघा और फ़िर चातने लगा। उसको उम्मीद थी कि मेरा लन्ड घुसेगा, पर मेरी जीभ महसूस करके बोली, "भैया अब चोद लीजिए जल्दी से पेशाब, पैखाना दोनों लग रहा है... सुबह हो गया है।" मुझे भी लगा कि हाँ यार अब सब जल्दी निपटा लेना चाहिए, सवा सात होने को आया था। मैं अब ठीक से उसके पीछे घुटने के बल बैठा और फ़िर अपना लन्ड के सामने वाले हिस्से पर अपना थूक लगाया और फ़िर उसकी बूर की फ़ाँक पर भीरा कर बोला, "जय हो..., मेरी कुत्तिया, मजे कर अब..." और धीरे से लन्ड को भीतर ठेलने लगा। इस तरह से बूर थोड़ा कस गया था, वो अपना घुटना भी पास-पास रखी थी बोली, "ऊओह भैया, बहुत रगड़ा रहा है चमड़ा ऐसे ठीक नहीं हो रहा है", और वो उठना चाही। मैंने उसका इरादा भाँप लिया और उसको अपने हाथ से जकड़ दिया कि वो चूट ना सके और एक हीं धक्के में उसकी बूर में पूरा ७" ठोक दिया भीतर। हल्के से वो चीखी.... पर जब तक वो कुछ समझे, उसकी चुदाई शुरु हो गई। मैंने उसको सामने के आईने में देखने को कहा जो बिस्तर के सिरहाने में लगा हुआ था। जब देखी तो दिखा उसका नंगा बदन, और उस पर पीछे से चिपका मेरा नंगा बदन..., उसकी पहली प्रतिक्रिया हुई, "छी: कितना गंदा लग रहा है... हटिए, हम अब यह नहीं करेंगे।" मैंने कहा, "अब कहाँ से रानी.... अब तो आराम से चूदो। लड़की को ऐसे निहूरा कर पीछे से चोदने का जो मजा है उसके लिए लड़का लोग कुछ भी करेगा।"

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