गर्ल'स स्कूल compleet
Re: गर्ल'स स्कूल
शमशेर ने अपनी पॅंट उतार फंकी और अपना 8.5 इंचस लंबा और करीब 4 इंचस मोटा
लंड उसके मुँह में देने लगा. पर अंजलि तो किसी जल्दबाज़ी में थी.
बोली,"प्ल्स घुसा दो ना मेरी चूत में प्ल्स. शमशेर ने भी सोचा अब तो केयी
सालों का साथ है ओरल बाद में देख लेंगे.
उसने अंजलि की टाँगों को अपने कंधे पर रखा और अपने लंड का सूपड़ा अंजलि
की चूत पर रखकर दबाव डाला. पर वो तो बिल्कुल टाइट थी. शमशेर ने उसकी योनि
रस के साथ ही अपना थूक लगाया और दोबारा ट्राइ किया. अंजलि चिहुनक उठी.
सूपड़ा योनि के अंदर थे और अंजलि की हालत आ बैल मुझे मार वाली हो रही थी.
उसने अपने को पीच्चे हटाने की कोशिश की लेकिन उसका सिर खिड़की से लगा था.
अंजलि बोली,"प्ल्स जान एक बार निकाल लो. फिर कभी करेंगे. पर शमशेर ने अभी
नही तो कभी नही वाले अंदाज में एक धक्का लगाया और आधा लंड उसकी चूत में
घुस गया. अंजलि की चीख को सुनके अपने होटो से दबा दिया. कुच्छ देर इसी
हालत में रहने के बाद जब अंजलि पर मस्ती सवार हुई तो पूच्छो मत. उसने
बेहयाई की सारी हदें पर कर दी. वा सिसकारी लेते हुए बड़बड़ा रही थी. "ही
रे, मेरी चूत...मज़ा दे दिया... कब से तेरे लंड... की .. प .. प्यासी थी.
चोद दे जान मुझे... आ. आ कभी मत निकलना इसको ... मेरी चू...त आ उधर शमशेर
का भी यही हाल था. उसकी तो जैसे भगवान ने सुन ली. जन्नत सी मिल गयी थी
उसको.. उच्छल उच्छल कर वो उसकी चूत में लंड पेले जा रहा था की अचानक
अंजलि ने ज़ोर से अपनी टांगे भींच ली. उसका सारा बदन अकड़ सा गया था.
उसने उपर उठकर शमशेर को ज़ोर स पकड़ लिया. उसकी चूत पानी छ्चोड़ती ही जा
रही थी. उससे शमशेर का काम आसान हो गया. अब वो और तेज़ी से ढ़हाक्के लगा
रहा था. पर अब अंजलि गिरगिरने लगी. प्ल्स अब निकल लो. सहन नही होता.
थोड़ी देर के लिए शमशेर रुक गया और अंजलि की होटो और चूंचियों को चूसने
लगा. वो एक बार फिर अपने चूतड़ उच्छलने लगी. इश्स बार उसने अंजलि को
उल्टा लिटा लिया. अंजलि की गांद सीट के किनारे थी और उसकी मनमोहक चूत
बड़ी प्यारी लग रही थी. अंजलि के घुटने ज़मीन पर तहे और मुँह खिड़की की
और. इश्स पोज़ में जब शमशेर ने अपना लंड अंजलि की चूत में डाला तो एक अलग
ही आनंद प्राप्त हुआ. अब अंजलि को हिलने का अवसर नही मिल रहा था. पर मुँह
से मादक सिसकारियाँ निकल रही थी. हर पल उसे जन्नत तक लेकर जा रहा था.
इश्स बार करीब 20 मिनिट बाद वो दोनों एक साथ झाडे और शमशेर उसके उपर ढेर
हो गया. कुच्छ देर बाद वो दोनों उठे लेकिन अंजलि उससे नज़रें नही मिला पा
रही थी. प्यार का खुमार जो उतार गया था. उसने जल्दी से अपने कपड़े पहने
और एक सीट पर जाकर बाहर की और देखने लगी. शमशेर को पता था की क्या करना
है. वा उसके पास गया, और ुआके पास बैठकर बोला... आइ लव यू अंजलि. अंजलि
ने उसकी छति में मुँह च्चिपा दिया और सुबकने लगी. ये नही पता.. पासचताप
के आँसू थे या मंज़िल पाने की खुशी के....
एक दूसरे की बाहों में लेते लेते कब सुबह हो गयी पता ही नही चला. सुबह के
5 बाज चुके थे. अभी वो भिवानी से 20 मिनिट की दूरी पर थे. जबकि अंजलि को
आगे लोहरू तक भी जाना था. जाना तो शमशेर को भी वही था पर अंजलि को नही
पता था की उनकी मंज़िल एक ही है. वो तो ये सोचकर मायूस थी की उनका अब
कुच्छ पल का ही साथ बाकी है. रात को जिसने उसको पहली बार औरत होने का
अहसास कराया था और जिसकी च्चती पर उसने आँसू बहाए तहे उससे बात करते हुए
भी वो कतरा रही थी.
अंत में शमशेर ने ही चुप्पी तोड़ी,"चलें"
अंजलि: जी... आप कहाँ तक चलेंगे?
शमशेर: तुम्हारे साथ... और कहाँ?
अंजलि: नही!...म..मेरा मतलब है ये पासिबल नही है.
शमशेर: भला क्यूँ?
अंजलि: वो एक गाँव है और सबको पता है की मैं कुँवारी हूँ. वहाँ लोग इश्स
बात को हल्के से नही लेंगे की मेरे साथ कोई मर्द आया था. फिर वहाँ मेरी
इज़्ज़त है.
शमशेर ने चुटकी ली," हां, आपकी इज़्ज़त तो मैं रात अच्च्ची तरह देख चुका हूँ.
अंजलि बुरी तरह झेंप गयी. काटो तो खून नही. तभी बस आने पर वो उसमें बैठ
गये. अंजलि ने फिर उसको टोका,"बता दीजिए ना की आप क्या करते हैं, कहाँ
रहते हैं कोई कॉंटॅक्ट नंबर.
शमशेर ने फिर चुटकी ली,"अब तो आपके दिल मैं रहता हूँ आपसे प्यार करता
हूँ, और आपका कॉंटॅक्ट नंबर. ही मेरा कॉंटॅक्ट नंबर. है.
अंजलि: मतलब आप बताना नही चाहते. ये तो बता दीजिए की जा कहाँ रहे हैं?
तभी भिवानी बस स्टॉप पर पहु च कर बस रुक गयी. अंजलि और शमशेर बस से उतर
गये. अंजलि ने हसरत भारी निगाह से शमशेर को आखरी बार देखा और लोहरू की बस
में बैठ गयी. उसकी आँखो में तब भी आँसू थे.
कुच्छ देर बाद ही वा चाउंक गयी जब शमशेर आकर उसकी साथ वाली सीट पर बैठ गया.
अंजलि को भी अब अपनी ग़लती का अहसास हो रहा था. ये आदमी जिसको उसने स्वयं
को सौप दिया, ना तो अपने बारे में कुच्छ बता रहा है ना ही उसका पीचछा
छ्चोड़ रहा है. उसकी साथ आने वाली हरकत तो उसको बचकनी लगी. कहीं ये उसको
ब्लॅकमेल करने की कोशिश तो नही करेगा. वा सिहर गयी. वा उठी और दूसरी सीट
पर जाकर बैठ गयी.
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शमशेर उसका डर समझ रहा था. वा अचानक ही बस से उतार गया और बिना मुड़े
उसकी आँखों से गायब हो गया.
अंजलि ने राहत की साँस ली. पर उसको दुख भी था की उस्स मर्द से दोबारा नही
मिल पाएगी. सोचते सोचते लोहरू आ गया और वो अनमने मंन से स्कूल में दाखिल
हो गयी.
ऑफीस मैं बैठहे बैठे वो शमशेर के बारे मैं ही सोच रही थी, जब दरवाजे पर
अचानक शमशेर प्रकट हुआ,"मे ई कम इन मॅ'म?"
अंजलि अवाक रह गयी, मुश्किल से उसने अपने आप पर कंट्रोल किया और बाकी
स्टाफ लॅडीस को बाहर भेजा.
अंजलि(धीरे से) आप क्या लेने आए हो यहाँ. प्ल्स मुझे माफ़ कर दीजिए और
यहाँ से चले जाइए.
शमशेर: रिलॅक्स मॅ'म! आइ'एम हियर फॉर माइ ड्यूटी. आइ हॅव टू जाय्न हियर
अस साइन्स टीचर. प्लीज़ लेट मे जाय्न आंड ऑब्लाइज.
अंजलि अपनी कुर्सी से उच्छल पड़ी,"वॉट?" ख़ुसी और आसचर्या का मिला जुला
रूप उसके "वॉट" में था. पहले तो उसको यकीन ही नही हुआ पर औतॉरिटी लेटर को
देखकर सारा माजरा उसकी समझ में आ गया. पर अपनी ख़ुसी को दबाते हुए उसने
पेओन को बुलाकर रिजिस्टर निकलवाया और शमशेर को जाय्न करा लिया.
फिर अपनी झेंप च्चिपते हुए बोली, मिस्टर. शमशेर आप 10 क्लास के इंचार्ज
है पर पीरियड्स आपको 6थ से 10थ तक सभी लेने होंगे. हमारे यहाँ पर मथ्स का
टीचर नही है अगर आप 8थ और 10थ की एक्सट्रा क्लास ले सकें तो मेहरबानी
होगी.
शमशेर: थॅंक्स मॅ'म पर एक प्राब्लम है?
अंजलि: जी बोलिए!
शमशेर: जी मैं कुँवारा हूँ....मतलब मैं यहाँ अकेला ही रहूँगा. अगर गाँव
में कहीं रहने का इंतज़ाम हो जाए तो...
अंजलि उसको बीच में ही टोकते हुए बोली. मैं पीयान को बोल देती हूँ. देखते
हैं हम क्या कर सकते हैं.
शमशेर (आँख मरते हुए) थॅंक्स मॅ'म!
अंजलि उसकी इश्स हरकत पर मुस्कुराए बिना नही रह सकी.
शमशेर ने रिजिस्टर उठाए और 10थ क्लास की और चल दिया...
शमशेर क्लास तक पहुँचा ही था की एक लड़की दौड़ती हुई आई और बोली, गुड
मॉर्निंग सर. लड़की 10थ क्लास की लगती थी. शमशेर ने उसको गौर से उपर से
नीचे तक देखा. क्या कोरा माल था हाए! भारी भारी अमरूद जैसी गोल गोल
चुचियाँ, गोल मस्त गंद, रसीले गुलाबी आनच्छुए होंट, लगता था मानो भगवान
से फ़ुर्सत से बनाया है. और बोल भी उतना ही मधुर," सर, आपको बड़ी मॅ'म
बुला रही हैं.
शमशेर," चलो बेटा"
"सिर, क्या आप हमें भी पढ़ाएँगे?"
"कौनसी क्लास में हो बेटा? क्या नाम है?"
"सर मेरा नाम वाणी है और मैं 8वी में हूँ"
"क्या... 8वी में!" मैं तपाक ही गया था जैसे उस्स पर! 8वी का ये हाल है
तो उपर क्या होगा." हां बेटा, तुम्हे मैं साइन्स पढ़ौँगा"
कहकर मैं ऑफीस की तरफ चल पड़ा. वाणी मुझे मूड मूड कर देखती जा रही थी.
ऑफीस में गया तो अंजलि अकेली बैठी थी. मैने जाते ही जुमला फंका,"यस, बड़ी मॅ'म"
अंजलि सीरीयस थी," सॉरी शमशेर...आइ मीन शमशेर जी. मैं भिवानी आपको ग़लत
समझ बैठी थी. पर आपने मुझे बताया क्यूँ नही."
शमशेर: बता देता तो तुम्हे अपना थोड़े ही बना पता.
अंजलि के सामने रात की बात घूम गयी. अब उसको ये भी अहसास हो गया की शमशेर
ने रात को चुदाई में पहल क्यूँ नही की. फिर मीठी आवाज़ में बोली," शमशेर
जी, हम स्कूल में ऐसे ही रहेंगे. मैने आपके रहने खाने का मॅनेज करने को
बोला है. हो सका तो मेरे घर के आसपास ही कोशिश करूँगी.
शमशेर: अपने घर में क्यूँ नही?
अंजलि: अरे मैं भी तो किराए पर ही रहती हूँ. हालाँकि वहाँ नीचे 2 कमरे
खाली हैं. पर गाँव का माहौल देखते हुए ऐसा करना ठीक नही है. लोग तरह तरह
की बातें करेंगे.
शमशेर: बड़ी मॅ'म, प्यार किया तो डरना क्या?
अंजलि: ष्ह..ह! प्लीज़.... खैर मैने आपको कुच्छ ज़रूरी बातों पर डिसकस के
लिए बुलाया है.
शमशेर: जी बोलिए!
अंजलि: आपने देखा भी होगा यहाँ पर कोई भी मेल टीचर या स्टूडेंट नही है.
शमशेर: क्या मैं नही हूँ?
अंजलि: अरे आप अभी आए हो. सुनिए ना!
शमशेर: जी सुनाए!
अंजलि: लड़कियाँ लड़कों के बगैर काफ़ी उद्दंड हो जाती हैं. ज़रा भी ढिलाई
बरतने पर वो अश्लीलता की हदों को पार कर जाती हैं. इसीलिए उनको डिसिप्लिन
में रखने के लिए सखटायी बहुत ज़रूरी है. मैने गाँव वालों को विस्वास में
ले रखा है. आप उन्हे जो भी सज़ा देनी पड़े पर डिसिप्लिन नही टूटना चाहिए.
वैसे भी यहाँ लड़कियाँ उमर में काफ़ी बड़ी हैं. 10+2 में तो एक लड़की
मुझसे 5 साल छ्होटी है बस.
शमशेर मॅन ही मॅन उच्छल रहा था. पर अपनी ख़ुसी च्छुपाकर बोला, ओक बड़ी
मॅ'म ! मैं संभाल लूँगा!
अंजलि: प्लीज़ आप ऐसे ना बोलिए!
शमशेर: ओक अंजू! सॉरी मॅ'म!
अंजलि मुस्कुरा दी!
"आप एक बार स्कूल का राउंड लगा लीजिए!"
"ओक"
कहकर शमशेर राउंड लगाने के लिए निकल गया. अंजलि भी उसके साथ थी. एक क्लास
में उसने देखा, 2 लड़कियाँ मुर्गा सॉरी मुर्गी बनी हुई थी. गॅंड उपर उठाए
दोनो ने शमशेर को देखा तो शर्मा कर नीचे हो गयी. नीचे होते ही मेडम ने
गॅंड पर ऐसी बेंट जमाई किबेचारी दोहरी हो गयी. एक की जाँघो से सलवार फटी
पड़ी थी. शमशेर के जी में आया जैसे वो अपना लंड उस्स फटी सलवार में से ही
लड़की की गन्ड में घुसा दे. सोचते ही उसका लंड पॅंट के अंदर ही फुफ्करने
लगा.
उसने अंजलि से पूचछा," मॅ'म, किस बात की सज़ा मिल रही है इन्हे?"
अंदर से मॅ'म ने आकर बताया," अजी, दोनु आपस मे लेडन लग री थी भैरोइ. सारा
दिन कोए काम नही करना, गॅंड मटकंडी हांडे जा से"
उसकी बात सुनकर शमशेर हक्का बक्का रह गया.उसने अंजलि की और देखा लेकिन वो
आगे बढ़ गयी.
आगे चल कर उसने बताया ये इसी गाँव की है. सरपंच की बहू है. बहुत बदला पर
ये नही सुधरी. बाकी टीचर्स अच्च्ची हैं."
स्कूल का राउंड लगाकर शमशेर वापस ऑफीस में आ गया. लंच हो चुका था और चाय
बनकर आ गयी थी. अंजलि ने सभी टीचर्स से शमशेर का परिचय करवाया पर उसको तो
लड़कियों से मिलने की जल्दी थी. जल्दी जल्दी चाय पीकर स्कूल देखने के
बहाने बाहर चला आया...
Re: गर्ल'स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --2
घूमता फिरता वा 10थ क्लास में पहुँच गया. लंच होने की वजह से वहाँ सिर्फ़
2 लड़कियाँ बैठी थी और कुच्छ याद कर रही थी एक तो बहुत ही सुंदर थी. जैसे
यौवन ने अभी दस्तक दी ही हो. चेहरे पर लाली, गोलचेहरा और... ज़्यादा क्या
कहें कुल मिलकर सेक्स किपरतिमा थी. शमशेर को देखते ही नमस्ते करना तो दूर
उल्टा सवाल करने लगी," हां, क्या काम है?" शमशेर ने मुस्कुराते हुए
पूचछा, क्या नाम है तुम्हारा?" वह तुनक गयी, "क्यूँ सगाई लेवेगा के?"
तेरे जैसे शहरा के बहुत हीरो देख रखे हैं. आगया लाइन मारन" जाउ के मेडम
के पास" शमशेर को इश्स तीखे जवाब की आशा ना थी. फिर भी वो मुस्कुराते हुए
ही बोला," हां जाओ, चलो मैं भी चलता हूं." ये सुनते ही वो गुस्से से लाल
हो गयी और प्रिन्सिपल के पास जाने के लिए निकली ही थी कि सामनेसे वाणी और
उसकी दोस्त सामने से आ गयी. दूसरी लड़की ने कहा," गुड मॉर्निंग
सर.""सस्स...सर? कौन सर?" वाणी ने जवाब दिया,"अरे दीदी ये हमारे नये सर
हैं, हमें साइन्स पढ़ाएँगे." इतना सुनते ही उस्स लड़की का रंग सफेद पड़
गया. उसकी शमशेर की और मुँह करने की हिम्मत ही ना हुई और वो खड़ी खड़ी
काँपने लगी. वो रो रही थी. शमशेर ने पूचछा," क्या नाम है तुम्हारा?" वो
बोली," सस्स..सॉरी स..सर." शमशेर ने मज़ाक में कहा," सॉरी सर... बड़ा
अच्च्छा नाम है. तभी बेल हुई और शमशेर हंसते हुए वहाँ से चला गया.
दिशा को समझ नही आ रहा तहा वो क्या करे. अंजाने में ही सही उसने सर के
साथ बहुत बुरा सलूक किया था. वैसे वो बहुत इंटेलिजेंट लड़की थी, पर ज़रा
सी तुनक मिज़ाज थी. गाँव के सारे लड़के उसके दीवाने थे. पर उसने कभी अपनी
नाक पर मखी तक नही बैठने दी. गलियों से गुज़रते हुए लड़के उस्स पर फ़िकरे
कसते थे. उसका जवानी से लबरेज एक एक अंग इसके लिए ज़िम्मेदार था. उसका
रंग एकदम गोरा था. छातिया इतनी कसी हुई थी की उनको थामने के लिए ब्लाउस
की ज़रूरत ही ना पड़े. लड़के उस्स पर फ़िकरे कसते थे की जिस दिन इसने
अपना नंगा जिस्म किसी को दिखा दिया वो तो हार्ड अटेक से ही मर जाएगा. जब
वा चलती थी तो उसके अंग अंग की गति अलग अलग दिखाई पड़ती थी. गॅंड को उसके
कमीज़ से इतना प्यार था की जब भी वो उठती थी उसकी गॅंड कमीज़ को अपनी
दरार में खींच लेती. आए हाए... लड़के भी क्या ग़लत कहते थे, बस ऐसा लगता
था की जैसे उसके बाद तो दुनिया ही ख़तम हो जाएगी. पिच्छले हफ्ते ही उसने
18 पुर किए था.
लड़कों से तंग दिशा ने अपना गुस्सा बेचारे सिर पर निकल दिया. इसी बात को
सोच सोच कर वो मारी जा रही थी. अब क्या होगा? क्या सिर उसको माफ़ कर
देंगे?
तभी नेहा ने उसको टोका," अरे क्या हो गया. तूने जान बुझ कर थोड़े ही किया
है ऐसा! सर भी तो इश्स बात को समझते होंगे! चल छ्चोड़, अब तू इतनी फिकर
ना कर!"
दिशा ने बुरा सा मुँह बना कर कहा," ठीक है!"
नेहा: तू एक बात बता, अपने सिर बिल्कुल फिल्मों के हीरो की तरह दिखाई
देते हैं ना. क्या सलमान जैसी बॉडी है उनकी. मुझे तो बहुत बुरा लगा जब
तूने उसको उल्टा पुल्टा बोला. हाए; मेरा तो दिल किया उसको देखते ही की
मैं दुनिया की शर्म छ्चोड़ कर उससे लिपट जाउ. सच्ची दिशा.
दिशा: चल बेशर्म. सर के बारे में भी....
नेहा: अरे मुझे थोड़े ही पता था की वो सर हैं... ये तो मैने तब सोचा था
जब वो क्लास में आए थे.
दिशा: देख मेरे पास बैठकर... य..ये लड़को की बातें मत किया कर. दुनिया के
सारे मर्द एक जैसे घटिया होते हैं.
नेहा: सर से पूच्छ के देखूं?
दिशा: नेहा! तुझे पता है मैं सर की बात नही कर रही.
नेहा: तो तू मानती है ना सर बहुत प्यारे हैं.
दिशा: तू भी ना बस. और उसने अपनी कॉपी नेहा के सिर पर दे मारी.
दिशा का ध्यान बार बार सर की और जा रहा था. कैसे वो उसको माफ़ करंगे. या
शायद ना भी करें. तभी क्लास में हिस्टरी वाली मेडम आ गयी, सरपंच की
बाहू...उसका नाम प्यारी था...
प्यारी: हां रे छ्होरियो; कॉपिया निकल लो कल के काम वाली...
एक एक करके लड़कियाँ अपनी कॉपी लेकर उसके पास जाती रही. उससे सबको डर
लगता था. इसीलिए कोई भी कभी उसका काम अधूरा नही छ्चोड़ती थी. कभी ग़लती
से रह जाए तो उसकी खैर नही. और आज दिव्या की खैर नही थी. वो कॉपी घर भूल
आई थी.
प्यारी घुरते हुए) हां! तेरी कापी कहाँ है रंडी.
दिव्या: जी... सॉरी मॅ'म घर पर रह गयी.
प्यारी: चल पीच्चे, और मुर्गी बन जा.
दिव्या की कुच्छ बोलने की हिम्मत ही ना हुई. वो पीच्चे जाकर मुर्गी बन गयी
प्यारी दूसरी लड़कियों की कॉपीस चेक करने लगी. जब दिव्या से और ना सहा
गया तो हिम्मत करके बोली: मॅ'म मैं अभी ले आती हूँ भागकर!
प्यारी: (घूरते हुए) अच्च्छा अब ले आएगी तू भाग कर. ठहर अभी आती हूँ तेरे पास.
ये सुनते ही दिव्या काँप गयी!प्यारी देवी उसके पास गयी, उसको खड़ा किया
और उसकी चूची के निप्पल को उमेट दिया. दिव्या दर्द से कराह उठी. " साली,
वेश्या, जान बुझ कर कॉपी छ्चोड़ कर आती है, ताकि बाद में अकेली जाए, और
अपने यार से मिलकर आ सके. हां. बता.. कौन मदारचोड़ तेरी चो.. कहते कहते
अचानक उसको रुकना पड़ा. पीयान ने मेडम से अंदर आने की पर्मिशन माँगी और
बोली," बड़ी मॅ'म ने कहा है जिस किसी के घर में कमरा रहने के लिए किराए
पर खाली हो. वो जाकर बड़ी मॅ'म से मिल ले. नये सर के लिए चाहिए है.
प्यारी देवी: अरे, हमारी हवेली के होते हुए मास्टर जी को किराए पर रहने
की कोई ज़रूरत ना से. जाकर कह दे उनसे, मैं छ्हॉकरों को बुला कर समान
रखवा देती हूं. रुक मैं आती ही हूँ.
प्यारी देवी 40 के आसपास की महिला थी. एक दम घटिया नेचर की महिला. उस्स
पर ये की उसका पति गाँव का सरपंच था. ऐसा नही था की गाँव में किसी को
उसके लड़कियों के साथ अश्लील हरकतों का पता नही था. गाँव में अपने
कॅरक्टर को लेकर वो पहले ही बदनाम थी. पर इकलौते बड़े ज़मींदार होने के
नाते किसी की उनसे कुच्छ कहने की हिम्मत ही नही होती तही. उसकी लड़की भी
उसके ही पदचिन्हों पर चल रही थी. सरिता; वो नोवी में थी. पर लड़कों से
चुद्व चुद्व कर औरत हो चुकी थी.
मेडम के जाने के बाद नेहा ने दिशा से कहा," अरे यार, तुम्हारे मामा का भी
तो सारा मकान खाली है. तुम क्यूँ नही कह देती वहाँ रहने को.
दिशा: हां...पर!
नेहा: पर क्या, क्या इतने अच्च्चे सर इतने घटिया लोगों के यहाँ रुकेंगे.
देख मॅ'म पूरी चालू है. अगर हमने अभी उनको नही बोला तो वो इश्स चुड़ैल के
जाल में फँस जाएँगे.
दिशा: तुझे भी इन्न बातों के सिवा कुच्छ नही आता. पर मामा से भी तो
पूच्छना पड़ेगा.
नेहा: अरे, उनको मैं माना लूँगी, चल सर को ढूँढते हैं. चल जल्दी चल. तेरी
माफी भी हो जाएगी.
दिशा चल तो पड़ी पर उसको यकीन नही हो रहा था की सर उसको माफ़ कर देंगे.
फिर क्या पता मामा मना ही ना कर दें. मना करने पर जो बे-इज़्ज़ती होगी सो
अलग. पर नेहा उसको लगभग खींचती सी 8वी क्लास में ले गयी, जहाँ शमशेर पढ़ा
रहा तहा.
उनको देखकर शमशेर कुर्सी से उठा और मुस्कुराता हुआ बाहर आया,". हां तो
क्या नाम है आपका." शमशेर उसको छ्चोड़ने के मूड में नही था.
दिशा ने लाख कोशिश की पर उसके होंट लराजकर रह गये. गर्दन झुकाए हुए वा
कयामत ढा रही थी.
नेहा: सर, ये कहना चाहती है आप इनके घर में रह लीजिए. यह सुनते ही वाणी
भी बाहर आ गयी," हां सर, आप हमारे घर में रह लीजिए"
शमशेर ने सोचते हुए कहा," अब तुम्हारा क्या कनेक्षन है?
वाणी: सर, मैं दिशा दीदी के मामा की लड़की हूँ.
शमशेर: तो?
वाणी चुप हो गयी. इश्स पर नेहा एक्सप्लेन करने के लिए आगे आई," सर,
आक्च्युयली दिशा यहाँ अपने मामा के यहाँ रहती है. वाणी अपने मम्मी पापा
की इकलौती संतान है, और बचपन से ही उन्होने दिशा को खुद ही पाला है.
इसीलिए....
शमशेर: बस बस... मैं भी सोच रहा था एक ही नेज़ल लगती है दोनों की. ओक
गॅल्स, मैं च्छुतटी के बाद तुम्हारे घर चलूँगा.
दिशा: पर... स.. सर!
शमशेर: पर क्या
दिशा: वो मामा से पूच्छना पड़ेगा!
वाणी बीच में ही कूद पड़ी," नही सर, आप आज ही चलिए. मैं पापा को अपने आप
बोल दूँगी."
शमशेर वाणी के गालों पर हाथ फेरता हुआ बोला, नही बेटा! पहले मम्मी पापा
से पूच्छ लो. अगर वो खुश हैं तो में तेरे पास ही रहूँगा, प्रोमिसे.
वाणी: ओक, थॅंक यू सर.
इसके बाद च्छुतटी का टाइम होने वाला था, सो शमशेर सीधा ऑफीस ही चला गया.
वहाँ अंजलि बैठी कुच्छ सोच रही थी
"मे आइ केम इन मॅ'म", शमशेर ने उसके विचारों को भंग किया.
अंजलि: आओ शमशेर जी
शमशेर: किस बात की टेन्षन है अंजलि, शमशेर ने धीरे से कहा.
अंजलि: प्यारी मेडम आई थी, कह रही थी तुम्हे उनकी हवेली मैं रहना पड़ेगा.
पर मैं नही चाहती. वो निहायत ही वाहयात औरत है.
शमशेर: तो माना कर देते हैं. प्राब्लम क्या है?
अंजलि: प्राब्लम ये है की और कोई अरेंज्मेंट अभी हुआ नही है.
शमशेर: तो मैं तुम्हारे साथ रहूँगा ना जान.
अंजलि: मैने तुम्हे बताया तो था ये नही हो सकता. मैं वैसे भी अकेली रहती
हूँ. कोई फॅमिली साथ होती तो भी अलग बात थी.
शमशेर: वैसे तुम रहती कहाँ हो.
अंजलि: यही उस्स सामने वाले मकान में. अंजलि ने खिड़की से इसरा करते हुए
कहा. मकान स्कूल के पास ही गाँव से बाहर ही था.
शमशेर: कोई बात नही! मकान तो शायद कल तक मिल जाएगा. आज मैं भिवानी अपने
दोस्त के पास चला जाता हूँ.
अंजलि: कौनसा मकान?
शमशेर: कुच्छ सोचने की आक्टिंग करते हुए) वो कोई दिशा के मामा का घर है.
बच्चे कह रहे थे, कल घर से पूच्छ के आएँगे. हालाँकि वो उनके बदन की एक एक
हड्डी तक का आइडिया लगा चुका था.
अंजलि: अरे हां. वो बहुत अच्च्छा रहेगा. बहुत ही अच्च्चे लोग हैं. उनका
मकान भी काफ़ी बड़ा है. फिर वो 4 ही तो जान हैं घर में. मुझे भी अपने साथ
रखने की काफ़ी ज़िद की थी उन्होने. मुझे यकीन है वो ज़रूर मान जाएँगे.
शमशेर: कितना अच्च्छा होता, अगर हम...
घूमता फिरता वा 10थ क्लास में पहुँच गया. लंच होने की वजह से वहाँ सिर्फ़
2 लड़कियाँ बैठी थी और कुच्छ याद कर रही थी एक तो बहुत ही सुंदर थी. जैसे
यौवन ने अभी दस्तक दी ही हो. चेहरे पर लाली, गोलचेहरा और... ज़्यादा क्या
कहें कुल मिलकर सेक्स किपरतिमा थी. शमशेर को देखते ही नमस्ते करना तो दूर
उल्टा सवाल करने लगी," हां, क्या काम है?" शमशेर ने मुस्कुराते हुए
पूचछा, क्या नाम है तुम्हारा?" वह तुनक गयी, "क्यूँ सगाई लेवेगा के?"
तेरे जैसे शहरा के बहुत हीरो देख रखे हैं. आगया लाइन मारन" जाउ के मेडम
के पास" शमशेर को इश्स तीखे जवाब की आशा ना थी. फिर भी वो मुस्कुराते हुए
ही बोला," हां जाओ, चलो मैं भी चलता हूं." ये सुनते ही वो गुस्से से लाल
हो गयी और प्रिन्सिपल के पास जाने के लिए निकली ही थी कि सामनेसे वाणी और
उसकी दोस्त सामने से आ गयी. दूसरी लड़की ने कहा," गुड मॉर्निंग
सर.""सस्स...सर? कौन सर?" वाणी ने जवाब दिया,"अरे दीदी ये हमारे नये सर
हैं, हमें साइन्स पढ़ाएँगे." इतना सुनते ही उस्स लड़की का रंग सफेद पड़
गया. उसकी शमशेर की और मुँह करने की हिम्मत ही ना हुई और वो खड़ी खड़ी
काँपने लगी. वो रो रही थी. शमशेर ने पूचछा," क्या नाम है तुम्हारा?" वो
बोली," सस्स..सॉरी स..सर." शमशेर ने मज़ाक में कहा," सॉरी सर... बड़ा
अच्च्छा नाम है. तभी बेल हुई और शमशेर हंसते हुए वहाँ से चला गया.
दिशा को समझ नही आ रहा तहा वो क्या करे. अंजाने में ही सही उसने सर के
साथ बहुत बुरा सलूक किया था. वैसे वो बहुत इंटेलिजेंट लड़की थी, पर ज़रा
सी तुनक मिज़ाज थी. गाँव के सारे लड़के उसके दीवाने थे. पर उसने कभी अपनी
नाक पर मखी तक नही बैठने दी. गलियों से गुज़रते हुए लड़के उस्स पर फ़िकरे
कसते थे. उसका जवानी से लबरेज एक एक अंग इसके लिए ज़िम्मेदार था. उसका
रंग एकदम गोरा था. छातिया इतनी कसी हुई थी की उनको थामने के लिए ब्लाउस
की ज़रूरत ही ना पड़े. लड़के उस्स पर फ़िकरे कसते थे की जिस दिन इसने
अपना नंगा जिस्म किसी को दिखा दिया वो तो हार्ड अटेक से ही मर जाएगा. जब
वा चलती थी तो उसके अंग अंग की गति अलग अलग दिखाई पड़ती थी. गॅंड को उसके
कमीज़ से इतना प्यार था की जब भी वो उठती थी उसकी गॅंड कमीज़ को अपनी
दरार में खींच लेती. आए हाए... लड़के भी क्या ग़लत कहते थे, बस ऐसा लगता
था की जैसे उसके बाद तो दुनिया ही ख़तम हो जाएगी. पिच्छले हफ्ते ही उसने
18 पुर किए था.
लड़कों से तंग दिशा ने अपना गुस्सा बेचारे सिर पर निकल दिया. इसी बात को
सोच सोच कर वो मारी जा रही थी. अब क्या होगा? क्या सिर उसको माफ़ कर
देंगे?
तभी नेहा ने उसको टोका," अरे क्या हो गया. तूने जान बुझ कर थोड़े ही किया
है ऐसा! सर भी तो इश्स बात को समझते होंगे! चल छ्चोड़, अब तू इतनी फिकर
ना कर!"
दिशा ने बुरा सा मुँह बना कर कहा," ठीक है!"
नेहा: तू एक बात बता, अपने सिर बिल्कुल फिल्मों के हीरो की तरह दिखाई
देते हैं ना. क्या सलमान जैसी बॉडी है उनकी. मुझे तो बहुत बुरा लगा जब
तूने उसको उल्टा पुल्टा बोला. हाए; मेरा तो दिल किया उसको देखते ही की
मैं दुनिया की शर्म छ्चोड़ कर उससे लिपट जाउ. सच्ची दिशा.
दिशा: चल बेशर्म. सर के बारे में भी....
नेहा: अरे मुझे थोड़े ही पता था की वो सर हैं... ये तो मैने तब सोचा था
जब वो क्लास में आए थे.
दिशा: देख मेरे पास बैठकर... य..ये लड़को की बातें मत किया कर. दुनिया के
सारे मर्द एक जैसे घटिया होते हैं.
नेहा: सर से पूच्छ के देखूं?
दिशा: नेहा! तुझे पता है मैं सर की बात नही कर रही.
नेहा: तो तू मानती है ना सर बहुत प्यारे हैं.
दिशा: तू भी ना बस. और उसने अपनी कॉपी नेहा के सिर पर दे मारी.
दिशा का ध्यान बार बार सर की और जा रहा था. कैसे वो उसको माफ़ करंगे. या
शायद ना भी करें. तभी क्लास में हिस्टरी वाली मेडम आ गयी, सरपंच की
बाहू...उसका नाम प्यारी था...
प्यारी: हां रे छ्होरियो; कॉपिया निकल लो कल के काम वाली...
एक एक करके लड़कियाँ अपनी कॉपी लेकर उसके पास जाती रही. उससे सबको डर
लगता था. इसीलिए कोई भी कभी उसका काम अधूरा नही छ्चोड़ती थी. कभी ग़लती
से रह जाए तो उसकी खैर नही. और आज दिव्या की खैर नही थी. वो कॉपी घर भूल
आई थी.
प्यारी घुरते हुए) हां! तेरी कापी कहाँ है रंडी.
दिव्या: जी... सॉरी मॅ'म घर पर रह गयी.
प्यारी: चल पीच्चे, और मुर्गी बन जा.
दिव्या की कुच्छ बोलने की हिम्मत ही ना हुई. वो पीच्चे जाकर मुर्गी बन गयी
प्यारी दूसरी लड़कियों की कॉपीस चेक करने लगी. जब दिव्या से और ना सहा
गया तो हिम्मत करके बोली: मॅ'म मैं अभी ले आती हूँ भागकर!
प्यारी: (घूरते हुए) अच्च्छा अब ले आएगी तू भाग कर. ठहर अभी आती हूँ तेरे पास.
ये सुनते ही दिव्या काँप गयी!प्यारी देवी उसके पास गयी, उसको खड़ा किया
और उसकी चूची के निप्पल को उमेट दिया. दिव्या दर्द से कराह उठी. " साली,
वेश्या, जान बुझ कर कॉपी छ्चोड़ कर आती है, ताकि बाद में अकेली जाए, और
अपने यार से मिलकर आ सके. हां. बता.. कौन मदारचोड़ तेरी चो.. कहते कहते
अचानक उसको रुकना पड़ा. पीयान ने मेडम से अंदर आने की पर्मिशन माँगी और
बोली," बड़ी मॅ'म ने कहा है जिस किसी के घर में कमरा रहने के लिए किराए
पर खाली हो. वो जाकर बड़ी मॅ'म से मिल ले. नये सर के लिए चाहिए है.
प्यारी देवी: अरे, हमारी हवेली के होते हुए मास्टर जी को किराए पर रहने
की कोई ज़रूरत ना से. जाकर कह दे उनसे, मैं छ्हॉकरों को बुला कर समान
रखवा देती हूं. रुक मैं आती ही हूँ.
प्यारी देवी 40 के आसपास की महिला थी. एक दम घटिया नेचर की महिला. उस्स
पर ये की उसका पति गाँव का सरपंच था. ऐसा नही था की गाँव में किसी को
उसके लड़कियों के साथ अश्लील हरकतों का पता नही था. गाँव में अपने
कॅरक्टर को लेकर वो पहले ही बदनाम थी. पर इकलौते बड़े ज़मींदार होने के
नाते किसी की उनसे कुच्छ कहने की हिम्मत ही नही होती तही. उसकी लड़की भी
उसके ही पदचिन्हों पर चल रही थी. सरिता; वो नोवी में थी. पर लड़कों से
चुद्व चुद्व कर औरत हो चुकी थी.
मेडम के जाने के बाद नेहा ने दिशा से कहा," अरे यार, तुम्हारे मामा का भी
तो सारा मकान खाली है. तुम क्यूँ नही कह देती वहाँ रहने को.
दिशा: हां...पर!
नेहा: पर क्या, क्या इतने अच्च्चे सर इतने घटिया लोगों के यहाँ रुकेंगे.
देख मॅ'म पूरी चालू है. अगर हमने अभी उनको नही बोला तो वो इश्स चुड़ैल के
जाल में फँस जाएँगे.
दिशा: तुझे भी इन्न बातों के सिवा कुच्छ नही आता. पर मामा से भी तो
पूच्छना पड़ेगा.
नेहा: अरे, उनको मैं माना लूँगी, चल सर को ढूँढते हैं. चल जल्दी चल. तेरी
माफी भी हो जाएगी.
दिशा चल तो पड़ी पर उसको यकीन नही हो रहा था की सर उसको माफ़ कर देंगे.
फिर क्या पता मामा मना ही ना कर दें. मना करने पर जो बे-इज़्ज़ती होगी सो
अलग. पर नेहा उसको लगभग खींचती सी 8वी क्लास में ले गयी, जहाँ शमशेर पढ़ा
रहा तहा.
उनको देखकर शमशेर कुर्सी से उठा और मुस्कुराता हुआ बाहर आया,". हां तो
क्या नाम है आपका." शमशेर उसको छ्चोड़ने के मूड में नही था.
दिशा ने लाख कोशिश की पर उसके होंट लराजकर रह गये. गर्दन झुकाए हुए वा
कयामत ढा रही थी.
नेहा: सर, ये कहना चाहती है आप इनके घर में रह लीजिए. यह सुनते ही वाणी
भी बाहर आ गयी," हां सर, आप हमारे घर में रह लीजिए"
शमशेर ने सोचते हुए कहा," अब तुम्हारा क्या कनेक्षन है?
वाणी: सर, मैं दिशा दीदी के मामा की लड़की हूँ.
शमशेर: तो?
वाणी चुप हो गयी. इश्स पर नेहा एक्सप्लेन करने के लिए आगे आई," सर,
आक्च्युयली दिशा यहाँ अपने मामा के यहाँ रहती है. वाणी अपने मम्मी पापा
की इकलौती संतान है, और बचपन से ही उन्होने दिशा को खुद ही पाला है.
इसीलिए....
शमशेर: बस बस... मैं भी सोच रहा था एक ही नेज़ल लगती है दोनों की. ओक
गॅल्स, मैं च्छुतटी के बाद तुम्हारे घर चलूँगा.
दिशा: पर... स.. सर!
शमशेर: पर क्या
दिशा: वो मामा से पूच्छना पड़ेगा!
वाणी बीच में ही कूद पड़ी," नही सर, आप आज ही चलिए. मैं पापा को अपने आप
बोल दूँगी."
शमशेर वाणी के गालों पर हाथ फेरता हुआ बोला, नही बेटा! पहले मम्मी पापा
से पूच्छ लो. अगर वो खुश हैं तो में तेरे पास ही रहूँगा, प्रोमिसे.
वाणी: ओक, थॅंक यू सर.
इसके बाद च्छुतटी का टाइम होने वाला था, सो शमशेर सीधा ऑफीस ही चला गया.
वहाँ अंजलि बैठी कुच्छ सोच रही थी
"मे आइ केम इन मॅ'म", शमशेर ने उसके विचारों को भंग किया.
अंजलि: आओ शमशेर जी
शमशेर: किस बात की टेन्षन है अंजलि, शमशेर ने धीरे से कहा.
अंजलि: प्यारी मेडम आई थी, कह रही थी तुम्हे उनकी हवेली मैं रहना पड़ेगा.
पर मैं नही चाहती. वो निहायत ही वाहयात औरत है.
शमशेर: तो माना कर देते हैं. प्राब्लम क्या है?
अंजलि: प्राब्लम ये है की और कोई अरेंज्मेंट अभी हुआ नही है.
शमशेर: तो मैं तुम्हारे साथ रहूँगा ना जान.
अंजलि: मैने तुम्हे बताया तो था ये नही हो सकता. मैं वैसे भी अकेली रहती
हूँ. कोई फॅमिली साथ होती तो भी अलग बात थी.
शमशेर: वैसे तुम रहती कहाँ हो.
अंजलि: यही उस्स सामने वाले मकान में. अंजलि ने खिड़की से इसरा करते हुए
कहा. मकान स्कूल के पास ही गाँव से बाहर ही था.
शमशेर: कोई बात नही! मकान तो शायद कल तक मिल जाएगा. आज मैं भिवानी अपने
दोस्त के पास चला जाता हूँ.
अंजलि: कौनसा मकान?
शमशेर: कुच्छ सोचने की आक्टिंग करते हुए) वो कोई दिशा के मामा का घर है.
बच्चे कह रहे थे, कल घर से पूच्छ के आएँगे. हालाँकि वो उनके बदन की एक एक
हड्डी तक का आइडिया लगा चुका था.
अंजलि: अरे हां. वो बहुत अच्च्छा रहेगा. बहुत ही अच्च्चे लोग हैं. उनका
मकान भी काफ़ी बड़ा है. फिर वो 4 ही तो जान हैं घर में. मुझे भी अपने साथ
रखने की काफ़ी ज़िद की थी उन्होने. मुझे यकीन है वो ज़रूर मान जाएँगे.
शमशेर: कितना अच्च्छा होता, अगर हम...