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गतान्क से आगे…………………………………….
उसका सीना धौंकनी के तरह मेरे सीने से लगा उपर नीचे हो रहा था ....मैं बिल्कुल बेख़बर सा खोया था अपनी मा की बाहों में ... वो मुझे चूम रही थी ..गालों पर .. माथे पर .. बालों पर हाथ फिरा रही थी ..मैं उसके प्यार में सराबोर था , डूबा था .... उसका असर नीचे हुआ ..मेरी जांघों के बीच ...फिर से अकड़ गया मेरा लंड ..माँ के पेट से टकरा रहा था ...मा को मेरी हालत समझ में आ गयी ..वो फ़ौरन अलग हो गयी..उसकी सांस ज़ोर ज़ोर से चल रही थी ..मैं भी हाँफ रहा था ... मेरी आँखों में मा के लिए तड़प , भूख और एक अजीब सा नशा था ..
मा की आँखों में भी वोई सब था ..पर साथ में थोड़ी शर्म और झिझक भी थी ...
शायद उसकी जिंदगी में पहली बार किसी मर्द ने उसे इतना प्यार और सहारा देते हुए अपनी बाहों में लिया था ... पर बेचारी खुल कर उसे अपना नहीं सकती थी ...उसकी खोती किस्मत वो मर्द उसका बेटा था ...
पर उसे ये नहीं मालूम था के उसका बेटा असल मर्द था और वो एक असल औरत ....और उसके बेटे ने मन बना लिया था उसे अपनी औरत बनाने का ..हां अपनी पूरी की पूरी औरत ..
उस समय मेरी आँखों में वो हवस , नशा और तड़प गायब थी ..और उसकी जगह प्यार , वादा और मर मिटने की ख्वाहिश की झलक थी ...
मा ने मेरी तरफ देखा ..मेरी आँखों में उसे वो सब कुछ दिखा .... उसने सर झुका लिया ...मानो उसने अपनी मंज़ूरी दे दी .....
मैं खुशी से झूम उठा ...मैं आगे बढ़ा ..मा वही खड़ी थी ....सर झुकाए ...
तब तक बिंदु और सिंधु नाले से आ गयी ...
मा ने उन्हें देखते ही झट अपना चेहरा ठीक किया , और उनकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा और कहा
" बिंदु ...देख बेटा ..मैं तो जा रही हूँ काम पर ... तुम दोनो चाइ पी लेना जग्गू को भी चाइ पिला देना और काम पर जाना ...ठीक है ना..??"
और झोपड़ी के कोने में बने चूल्हे की ओर चल पड़ी चाइ बनाने .
" हां आई ..तू फिकर मत कर ..सब हो जाएगा ..तू जा ... "
थोड़ी ही देर बाद मा ने चाइ बना ली और अपनी सारी ठीक करती हुई जल्दी जल्दी चाइ पी और बाहर निकल गयी ...
मैने मग उठाया ... दोनो बहनो की ओर देखा ... उनके होंठों पर फिर से बड़ी शरारती मुस्कान थी ..शायद उन्होने मा की झुकी झुकी आँखें और शर्म से भरे चेहरे को ताड़ लिया था ...
ग़रीबी इंसान को काफ़ी समझदार बना देती है....
और मैं भी मुस्कुराता हुआ नाले की तरफ निकल गया ....
कुछ देर बाद जब मैं वापस आया .. दोनो बहेनें उस झोपड़ी की एक ही टूटी फूटी खाट पर , जिस पे कि मेरा बाप सोता था ..बैठी थीं ..कुछ खुसुर पुसर बातें कर रही थी और मेरी तरफ देख मुस्कुराए जा रही थी ...और अपनी टाँगें खाट से लटकाए हिलाए जा रही थी ...
मैं उनके पैरों के बीच फर्श पर ही बैठ गया ... और अपना एक हाथ बिंदु के घुटने पर रखा और दूसरा सिंधु के घुटने पर .हल्के से दबाया ..उनका पैरों का हिलना बंद हो गया ..पर हँसी और भी बढ़ गयी ..खास कर सिंधु का ..जो शायद घर में सब से छोटी होने के चलते सब से चुलबुली थी ..
" ह्म्म्म्म..क्या बात है ...इतनी हँसी ..?? मैं क्या कोई जोकर हूँ..इतना हँसे जा रही है मेरे को देख के..?"
और फिर और जोरों से अपने हाथ उनके घुटनों पर दबाए ...
जवाब सिंधु ने ही दिया " लो अब हँसी पर भी कोई रोक है भाई..? ऊऊउउ भाई अपना हाथ तो हटाओ ना गुदगुदी होती है .." और फिर उनकी हँसी ने और ज़ोर पकड़ लीआ ...
अब मैने अपना हाथ घुटने से उपर ले जाते हुए उनकी जाँघ पर रखा और फिर दबाया ...उफ़फ्फ़ क्या महसूस था..जैसे किसी पाव भाजी वाला पॉ(ब्रेड) मेरी मुट्ठी में हो ..
" तू बता पहले क्या बात है .फिर हाथ हटाउंगा .." मैने कहा
इस बात पर दोनो की हँसी तो रुकी ..पर दोनो एक दूसरे को देख मंद मंद मुस्कुरा रही थी अभी भी
पर मेरा हाथ अभी भी वहीं के वहीं था ...
" चल जल्दी बोल ..वरना मेरा हाथ अभी और भी आगे और उपर जाएगा ...." मैने सीरीयस होते हुए कहा
बिंदु ने मौके की नज़ाकत समझते हुए कहा .." अछा बाबा बताती हूँ ..पर तू हाथ हटा ना भाई ...ऐसे भी कोई भाई अपनी बहनो को दबाता है क्क्या..??"
बिंदु की इस बात पर मैं थोड़ा झेंप गया ....
" अछा ले हटा दिया अब बोल.."
"अरे बाबा चाइ पीनी है के नहीं ..पहले चाइ तो पी लो भाई, फिर बातें करेंगे ...मैं चाइ लाती हूँ ..." और सिंधु बोलते हुए उठी और चाइ लाने झोपड़ी के कोने की ओर चल दी .
मैं उठा और सिंधु के जगह बिंदु से सॅट कर बैठ गया ... और बिंदु के चेहरे को अपनी ओर खिचा और पूछा " बोल ना रे ..क्या बात है...?"
" अरे कुछ नहीं भाई ... कल से जाने क्यूँ तुम हमें बहुत अच्छे लग रहे हो...रात को तू ने आई को कितने अच्छे से संभाला और हम दोनो को भी कितने प्यार से सुलाया ..हम दोनो येई सब बातें कर रहे थे ..... "
तब तक सिंधु भी आ गयी थाली पर तीन ग्लास चाइ लिए ..
" हां भाई दीदी ठीक ही तो बोल रही है ...पहले तुम कितने चुप रहते थे ..."
मैने चाइ का ग्लास लिया , एक घूँट लिया और कहा
" हां रे ...बात तो सही है...लगता है बापू के जाने से घर का माहौल काफ़ी खुला खुला हो गया है ...पहले साला कितना टेन्षन रहता था ...जब देखो गाली गलौज़ और लड़ाई झगड़ा ... "
चुदासी चौकडी compleet
Re: चुदासी चौकडी
सिंधु मेरे बगल बैठ गयी ..मैं दोनो के बीच था ..
" पर तुम दोनो को हँसी क्यूँ आई मुझे देख..ये तो बता ..??" मैने फिर से पूछा ..
बिंदु थोड़ा शर्मा गयी ..उसके गाल लाल हो गये ..उस ने सिंधु को देखा
" अरे तू ही बता दे ना रे सिंधु ..लगता है भाई आज मानेगा नहीं ..."
सिंधु ने भी चाइ की एक घूँट अंदर ली . मुझे बड़ी शरारती आँखों से देखा और कहा
" भाई ...आज सुबेह सुबेह तुम्हारे को क्या हुआ था ...??"
" क्या हुआ था...? कुछ भी तो नहीं ..." मैने बौखलाते हुए कहा
" पर तेरे टाँगों के बीच कुछ लंबा सा उभरा उभरा क्या था ...?"
" ह्म्म्म्मम..तो ये बात है ....अरे बाबा जब तुम दोनो की तरह प्यारी और खूबसूरत लड़कियाँ मेरे दोनो ओर लेटी हों ....तो अगर मेरी टाँगों के बीच हरकत ना हो..ये तो तुम दोनो के लिए डूब मरने वाली बात हुई ना .." ऐसा बोलते हुए मैने सिंधु को उसे कंधे से जकड़ते हुए अपने पास खिच लिया ..
मेरा जवाब सुन कर बिंदु के गाल तो लाल हो गये ..पर सिंधु पर फिर से हँसी का दौर चढ़ बैठा ...
मैं समझ गया दोनो बहेनें क्या चाहती थीं ...ग़रीबी के कुछ फ़ायदे भी होते हैं ...
इतने दिनों से हम सब एक ही कमरे में सोते हैं...मेरा बाप मेरी मा की चुदाई भी किसी कोने में वहीं करता था ...बिंदु और सिंधु इन सब बातों को देखते ..परखते ही जवान हो गयी थीं ...उनमें भी उबाल आना शुरू हो गया था ...और अब ये उबाल बाहर आने की कोशिश में था ...
मैं भी आख़िर गबरू जवान था ...तीन तीन हसीन औरतों के बीच ...मेरी भी जवानी फॅट पड़ने की कगार पर पहून्च चूकी थी ...और आज सुबेह मा के साथ वाली बात ने आग में घी का काम कर दिया था और अब बिंदु और सिंधु की बातों से आग से लपट निकल्ने शुरू हो गये थे ..
मैने सिंधु और बिंदु दोनो को अपने सीने से लगा लिया ...उनके माथे और गालों को चूमता हुआ कहा
" वो तुम दोनो के लिए मेरे प्यार का इज़हार था मेरी बहनों ....." मैने भर्राये गले से कहा .
अब सिंधु भी सीरीयस हो गयी थी और अपना चेहरा मेरे सीने से लगाए चुप चाप बैठी थी .
दोनो बहने मेरे से लगे चुपचाप अपने भाई के चौड़े सीने में अपने आप को बहुत महफूज़ समझ रही थी ...बहुत सुकून था उनके चेहरे पर ..आज तक उन्हें अपने बाप से ऐसा प्यार और सुकून नहीं मिला ..मर्द का साया और मर्दानगी उनसे अब तक दूर थी ...वो सब उन्हें मुझ से मिल रहा था ...
हम तीनों चुप थे और एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे का साथ और प्यार में खोए ..
बिंदु ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा ..
" हां भाई हम समझते हैं ....तुम बहुत प्यार करते हो हम तीनों से ..है ना..??" बिंदु ने कहा ...
मैने बिंदु को अपने और करीब खिच लिया उसे अपनी छाती से लगाया ..सिंधु भी और चिपक गयी ..." हां मेरी बहनो..मेरे लिए तुम दोनो बहेनें और मेरी मा के सिवा और कोई नहीं ..तुम सब मेरी जान हो ..मेरी जान .... मैं तुम सब के लिए अपनी जान दे सकता हूँ ..."
सिंधु ने झट अपने हाथ मेरे मुँह पर रखा और कहा
" भाई ..जान देनेवाली बात फिर मत करना ..." और अब तक मेरी टाँगों के बीच फिर से कड़क उभार आ गयी थी ...सिंधु ने उसे अपने हाथों से जाकड़ लिया " अगर देना है तो हमें तुम्हारा ये लंबा हथियार दे दो और हमारी जान ले लो ... हैं ना दीदी ...देखो ना कैसा हिल रहा है हमारे प्यार में .."
उस ने मेरे लंड को थामते हुए बिंदु को दिखाया ..
बिंदु ने भी उसे थाम लिया पर थोड़ा हिचकिचाते हुए ..थोड़ा शरमाते हुए ...सिंधु की पकड़ में सख्ती थी और बिंदु की पकड़ में थोड़ी हिचकिचाहट और नर्मी ...
और मैं आँखें बंद किए अपनी दोनो बहनो के अनोखे अंदाज़ के मज़े में खोया था ..कांप रहा था..
तभी बिंदु ने एक झटके में अपना हाथ हटा लिया ..और पीछे हट गयी ....जैसे किसी गहरी नींद से अचानक जाग गयी हो..
" अरे बेशरम सिंधु..कुछ तो शरम कर ..ये तेरा अपना भाई है ..रे ..सगा भाई .."
" हां ..हां अभी तक तो तू भी मज़े से थामी थी ..क्यूँ..? मज़ा नहीं आया..और अब भाई की दुहाई दे रही है..चल नाटक बंद कर ..मैं जानती हूँ तेरे को....तू मुझ से भी ज़्यादा चाहती है ....पर बोलती नहीं ...मैं जानती हूँ...." और उस ने मेरे लंड को उपर नीचे करना शुरू कर दिया और कहती भी जाती " अरे ऐसा भाई और ऐसा हथियार किस्मत वालों को ही नसीब होता है .... देख ना रे बिंदु कितना फुंफ़कार रहा है ...चल आ जा ...आज काम की छूट्टी करते हैं ...."
बिंदु ने बड़े प्यार से एक चपत लगाई सिंधु के गाल पर " साली बड़ी बड़ी बातें करती है ..कहाँ से सीखी रे.....जा तू भी क्या नाम लेगी ....तू मज़े ले मैं जाती हूँ काम पर ....पर कल की बारी मेरी रहेगी ...और हां भाई ....ज़रा संभाल के हम दोनो अभी भी बिल्कुल अछूते हैं ..तुम्हारे लिए ही संभाल के रखा है हम दोनो ने जाने कब से.."
और बिंदु ने मुझे भी एक चूम्मी दी मेरे गाल पर ..अपने कपड़े ठीक किए और बाहर निकल गयी .
मैं तो दोनो बहनो की बातें सुन सुन एक बार तो भौंचक्का रह गया ..इन्हें मेरी कोई परवाह ही नहीं थी ..बस आपस में ही बकर बकर बातें किए किए सब कुछ फ़ैसला कर लिया.... जवानी भी क्या चीज़ है भाइयो...और उस से भी बड़ी जवानी की भूख ... इस भूख की आग में सब कुछ जल कर खाक हो जाता है..रिश्तों के बंधन तार तार हो जाते हैं ...बस सिर्फ़ एक ही रिश्ता रह जाता है ..लंड और चूत का....और जब उसमें प्यार के भी रंग आ जाए तो मज़ा और भी बढ़ जाता है..फिर ये सिर्फ़ लंड और चूत नहीं बल्कि दो आत्माओं का मिलन हो जाता है.....लंड और चूत अपने अपने रास्ते दोनो के दिलो-दीमाग तक पहून्च जाते हैं ....
कुछ ऐसा ही हुआ था हम सब के साथ..इतने दिनों हम प्यार , रिश्ता और आपसी लगाव से दूर बहुत ही दूर थे..पर इन दो तीन दिनों में अपने बेरहम बाप और एक औरत के जालिम मर्द की मौत ने हम सब को एक दूसरे के बहुत करीब ला दिया था....प्यार और साथ का बाँध , जो इतने दिनों तक रुका था ..अब ऐसा फूटा के रुकने का कोई नाम ही नहीं था ....और हम एक दूसरे से सब कुछ हासिल करने को जी जान से मचाल उठे थे ...तड़प रहे थे हम सब ....
इसी तड़प में सिंधु और बिंदु ने हमें भी शामिल कर लिया था ....अपना सब कुछ लूटाने को तैय्यार ...अपने भाई पर अपना प्यार और जवानी लूटने को मचल उठी थी दोनो ...
सिंधु खाट से उठी और फ़ौरन दरवाज़ा बंद कर दिया ..मैं अभी भी खाट पर बैठा था ..अपने टाँगें खाट से नीचे लटकाए ....सिंधु मेरे टाँगों को अपनी दोनो टाँगों के बीच करते हुए खड़ी हो गयी ...और सीधा मेरी आँखों में देखती रही ....चुप चाप....चेहरे पे कोई भाव नहीं ..एक दम सीरीयस ...जैसे उस ने अपने मन में कुछ सोच लिया हो और अब उसे पूरा करना ही है ..चाहे कुछ भी हो....
" ऐसे क्या देख रही है सिंधु ...? " मैने बात शुरू की..
" पर तुम दोनो को हँसी क्यूँ आई मुझे देख..ये तो बता ..??" मैने फिर से पूछा ..
बिंदु थोड़ा शर्मा गयी ..उसके गाल लाल हो गये ..उस ने सिंधु को देखा
" अरे तू ही बता दे ना रे सिंधु ..लगता है भाई आज मानेगा नहीं ..."
सिंधु ने भी चाइ की एक घूँट अंदर ली . मुझे बड़ी शरारती आँखों से देखा और कहा
" भाई ...आज सुबेह सुबेह तुम्हारे को क्या हुआ था ...??"
" क्या हुआ था...? कुछ भी तो नहीं ..." मैने बौखलाते हुए कहा
" पर तेरे टाँगों के बीच कुछ लंबा सा उभरा उभरा क्या था ...?"
" ह्म्म्म्मम..तो ये बात है ....अरे बाबा जब तुम दोनो की तरह प्यारी और खूबसूरत लड़कियाँ मेरे दोनो ओर लेटी हों ....तो अगर मेरी टाँगों के बीच हरकत ना हो..ये तो तुम दोनो के लिए डूब मरने वाली बात हुई ना .." ऐसा बोलते हुए मैने सिंधु को उसे कंधे से जकड़ते हुए अपने पास खिच लिया ..
मेरा जवाब सुन कर बिंदु के गाल तो लाल हो गये ..पर सिंधु पर फिर से हँसी का दौर चढ़ बैठा ...
मैं समझ गया दोनो बहेनें क्या चाहती थीं ...ग़रीबी के कुछ फ़ायदे भी होते हैं ...
इतने दिनों से हम सब एक ही कमरे में सोते हैं...मेरा बाप मेरी मा की चुदाई भी किसी कोने में वहीं करता था ...बिंदु और सिंधु इन सब बातों को देखते ..परखते ही जवान हो गयी थीं ...उनमें भी उबाल आना शुरू हो गया था ...और अब ये उबाल बाहर आने की कोशिश में था ...
मैं भी आख़िर गबरू जवान था ...तीन तीन हसीन औरतों के बीच ...मेरी भी जवानी फॅट पड़ने की कगार पर पहून्च चूकी थी ...और आज सुबेह मा के साथ वाली बात ने आग में घी का काम कर दिया था और अब बिंदु और सिंधु की बातों से आग से लपट निकल्ने शुरू हो गये थे ..
मैने सिंधु और बिंदु दोनो को अपने सीने से लगा लिया ...उनके माथे और गालों को चूमता हुआ कहा
" वो तुम दोनो के लिए मेरे प्यार का इज़हार था मेरी बहनों ....." मैने भर्राये गले से कहा .
अब सिंधु भी सीरीयस हो गयी थी और अपना चेहरा मेरे सीने से लगाए चुप चाप बैठी थी .
दोनो बहने मेरे से लगे चुपचाप अपने भाई के चौड़े सीने में अपने आप को बहुत महफूज़ समझ रही थी ...बहुत सुकून था उनके चेहरे पर ..आज तक उन्हें अपने बाप से ऐसा प्यार और सुकून नहीं मिला ..मर्द का साया और मर्दानगी उनसे अब तक दूर थी ...वो सब उन्हें मुझ से मिल रहा था ...
हम तीनों चुप थे और एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे का साथ और प्यार में खोए ..
बिंदु ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा ..
" हां भाई हम समझते हैं ....तुम बहुत प्यार करते हो हम तीनों से ..है ना..??" बिंदु ने कहा ...
मैने बिंदु को अपने और करीब खिच लिया उसे अपनी छाती से लगाया ..सिंधु भी और चिपक गयी ..." हां मेरी बहनो..मेरे लिए तुम दोनो बहेनें और मेरी मा के सिवा और कोई नहीं ..तुम सब मेरी जान हो ..मेरी जान .... मैं तुम सब के लिए अपनी जान दे सकता हूँ ..."
सिंधु ने झट अपने हाथ मेरे मुँह पर रखा और कहा
" भाई ..जान देनेवाली बात फिर मत करना ..." और अब तक मेरी टाँगों के बीच फिर से कड़क उभार आ गयी थी ...सिंधु ने उसे अपने हाथों से जाकड़ लिया " अगर देना है तो हमें तुम्हारा ये लंबा हथियार दे दो और हमारी जान ले लो ... हैं ना दीदी ...देखो ना कैसा हिल रहा है हमारे प्यार में .."
उस ने मेरे लंड को थामते हुए बिंदु को दिखाया ..
बिंदु ने भी उसे थाम लिया पर थोड़ा हिचकिचाते हुए ..थोड़ा शरमाते हुए ...सिंधु की पकड़ में सख्ती थी और बिंदु की पकड़ में थोड़ी हिचकिचाहट और नर्मी ...
और मैं आँखें बंद किए अपनी दोनो बहनो के अनोखे अंदाज़ के मज़े में खोया था ..कांप रहा था..
तभी बिंदु ने एक झटके में अपना हाथ हटा लिया ..और पीछे हट गयी ....जैसे किसी गहरी नींद से अचानक जाग गयी हो..
" अरे बेशरम सिंधु..कुछ तो शरम कर ..ये तेरा अपना भाई है ..रे ..सगा भाई .."
" हां ..हां अभी तक तो तू भी मज़े से थामी थी ..क्यूँ..? मज़ा नहीं आया..और अब भाई की दुहाई दे रही है..चल नाटक बंद कर ..मैं जानती हूँ तेरे को....तू मुझ से भी ज़्यादा चाहती है ....पर बोलती नहीं ...मैं जानती हूँ...." और उस ने मेरे लंड को उपर नीचे करना शुरू कर दिया और कहती भी जाती " अरे ऐसा भाई और ऐसा हथियार किस्मत वालों को ही नसीब होता है .... देख ना रे बिंदु कितना फुंफ़कार रहा है ...चल आ जा ...आज काम की छूट्टी करते हैं ...."
बिंदु ने बड़े प्यार से एक चपत लगाई सिंधु के गाल पर " साली बड़ी बड़ी बातें करती है ..कहाँ से सीखी रे.....जा तू भी क्या नाम लेगी ....तू मज़े ले मैं जाती हूँ काम पर ....पर कल की बारी मेरी रहेगी ...और हां भाई ....ज़रा संभाल के हम दोनो अभी भी बिल्कुल अछूते हैं ..तुम्हारे लिए ही संभाल के रखा है हम दोनो ने जाने कब से.."
और बिंदु ने मुझे भी एक चूम्मी दी मेरे गाल पर ..अपने कपड़े ठीक किए और बाहर निकल गयी .
मैं तो दोनो बहनो की बातें सुन सुन एक बार तो भौंचक्का रह गया ..इन्हें मेरी कोई परवाह ही नहीं थी ..बस आपस में ही बकर बकर बातें किए किए सब कुछ फ़ैसला कर लिया.... जवानी भी क्या चीज़ है भाइयो...और उस से भी बड़ी जवानी की भूख ... इस भूख की आग में सब कुछ जल कर खाक हो जाता है..रिश्तों के बंधन तार तार हो जाते हैं ...बस सिर्फ़ एक ही रिश्ता रह जाता है ..लंड और चूत का....और जब उसमें प्यार के भी रंग आ जाए तो मज़ा और भी बढ़ जाता है..फिर ये सिर्फ़ लंड और चूत नहीं बल्कि दो आत्माओं का मिलन हो जाता है.....लंड और चूत अपने अपने रास्ते दोनो के दिलो-दीमाग तक पहून्च जाते हैं ....
कुछ ऐसा ही हुआ था हम सब के साथ..इतने दिनों हम प्यार , रिश्ता और आपसी लगाव से दूर बहुत ही दूर थे..पर इन दो तीन दिनों में अपने बेरहम बाप और एक औरत के जालिम मर्द की मौत ने हम सब को एक दूसरे के बहुत करीब ला दिया था....प्यार और साथ का बाँध , जो इतने दिनों तक रुका था ..अब ऐसा फूटा के रुकने का कोई नाम ही नहीं था ....और हम एक दूसरे से सब कुछ हासिल करने को जी जान से मचाल उठे थे ...तड़प रहे थे हम सब ....
इसी तड़प में सिंधु और बिंदु ने हमें भी शामिल कर लिया था ....अपना सब कुछ लूटाने को तैय्यार ...अपने भाई पर अपना प्यार और जवानी लूटने को मचल उठी थी दोनो ...
सिंधु खाट से उठी और फ़ौरन दरवाज़ा बंद कर दिया ..मैं अभी भी खाट पर बैठा था ..अपने टाँगें खाट से नीचे लटकाए ....सिंधु मेरे टाँगों को अपनी दोनो टाँगों के बीच करते हुए खड़ी हो गयी ...और सीधा मेरी आँखों में देखती रही ....चुप चाप....चेहरे पे कोई भाव नहीं ..एक दम सीरीयस ...जैसे उस ने अपने मन में कुछ सोच लिया हो और अब उसे पूरा करना ही है ..चाहे कुछ भी हो....
" ऐसे क्या देख रही है सिंधु ...? " मैने बात शुरू की..
Re: चुदासी चौकडी
सिंधु ने मेरी ओर अपना चेहरा झुकाया , मेरी गोद में आ गयी और मुझ से लिपट गयी ....मेरा चेहरा अपने हाथों में लिया उसे उठाया और मेरे दोनो गालों को बारी बारी से चूमते हुए कहा ..
" भाई ..आज पहली बार इतने इतमीनान से तुझे देख रही हूँ... तुम कितने अच्छे हो भाई ..कितने प्यारे हो ...देखने दो ना अच्छे से .... " और फिर अपनी आँखें मेरी आँखों में डाल दी
मेरा लंड फिर से कड़क था और उसकी जांघों के बीच सलामी दे रहा था .....
मैने भी उसके चेहरे को अपने हाथ से थामा , उसके गाल चूमे , जोरों से ,
और कहा " सिर्फ़ देखती रहेगी ..? कुछ करेगी नहीं ..???"
अब तक मेरा लौडा काफ़ी कड़क हो चूका था और उसकी चूत को उसके सलवार के उपर से ही चूम रहा था ....सिंधु इस नये और बिल्कुल नायाब तज़ुर्बे से एक अजीब ही नशे में आ गयी थी ..
उस ने मेरे गले में बाहें डालते हुए मेरे से और भी चिपक गयी ..मेरे कंधों पे अपना सर रख दिया ... फूसफूसाती हुई भर्राइ आवाज़ में कहा:
" भाई ..मैं क्या करूँ ..? तू ही कर ना ....."
मैं उसकी ऐसी भोली बातों से पागल हो उठा ..उसके कंधों को थामता हुआ उसके चेहरे को अपने चेहरे के सामने कर लिया ..उसकी आँखों में देखा ..उसकी आँखें बंद थी ..मानो उसे हमारे कुछ करने का बड़ी बेसब्री से इंतेज़ार हो ..
मैने उसका चेहरा अपने और करीब खिचा ....दोनो की सांस अब टकरा रही थी ....उसके होंठ कांप रहे थे..मुझ से रहा नहीं गया ..मैने उसके सीने को अपने सीने से बूरी तरह चिपका लिया उसकी चुचियाँ मेरे सीने में दबी थी ..उसके काँपते होंठों पर मैने अपने होंठ रख दिए ....और चूसना चालू कर दिया ...उफफफफफफफफफफ्फ़ ..मेरा भी ये पहला तज़ुर्बा था ..कितना मुलायम था उसका होंठ ....कितना गर्म था ... अया
सिंधु मुझ से और भी लिपट गयी ..और उसने भी मेरे होंठ चूसने शुरू कर दिए ....हम पागल हो गये थे .....किसी ने कुछ बताया नहीं था ..पहले कभी कुछ किया ना था ..पर सब कुछ अपने आप हो रहा था ..हम बेतहाशा एक दूसरे को चूमे जा रहे थे .मुँह अपने आप खुल गया था दोनो का ..दोनो के मुँह एक दूसरे को खा जाने को ..एक दूसरे के मुँह में अंदर जाने को तड़प रहे थे...उफफफ्फ़ क्या पागलपन था ... उसका थूक मेरे मुँह में जा रहा था मेरा थूक उसके मुँह में ....
उसके खुले मुँह से मुझे उसकी जीभ दिखी..पतली सी जीभ ..गुलाबी जीभ ..मैने अपने होंठों से उसकी जीभ पकड़ ली ..उफफफ्फ़ कितना गर्म था ...कितना गीला ..मैं उसकी जीभ चूसने लगा ..सिंधु तड़प उठी ....उसकी चूत का गीलापन मेरे लंड पर महसूस हो रहा था ...
हम दोनो हाँफ रहे थे .....लंबी लंबी साँसें ले रहे थे ..कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करें ...मैने फिर से उसे अपने सीने से लगाया ..उसकी चुचियाँ धँसी थी मेरे सीने से ..मुलायम पर कड़क भी ..कसी कसी ..बिना ब्रा के .....मैने उसके कुर्ते के बटन खोले और दोनो हाथों से खिचता हुआ उसकी कमर तक उतार दिया ....
और मैने भी साथ ही साथ अपना टॉप भी उतार दिया ....सिंधु मेरी गोद में ही दोनो टाँगें मेरे कमर से जकड़े खाट पर कर दिया था ..मेरी टाँगें खाट से नीचे लटक रही थी ...
मेरा नंगा सीना , उसकी नंगी चूचियों से बिल्कुल चिपका था ...हम एक दूसरे को जितना हो सकता था..जितना मुमकिन था ..एक दूसरे से चिपकाए थे ..एक दूसरे में अंदर तक घूस जाने को बेचैन थे ......
मैने अपनी हथेलिया दोनो के सीने के बीच घूसेड़ते हुए उसकी मस्त चुचियाँ सहलाने लगा ....उसकी घूंडिया उंगलियों से दबा रहा था ....
"आआआअह भाई ..धीरे दबाओ ना ...दर्द करता है...." उसने मेरे हथेलियों को अपने हाथ से पकड़ते हुए कहा ...मैने दबाना थोड़ा हल्का कर दिया और उस ने अपने हाथों को मेरे सर से लगते हुए अपने चेहरे से लगाया और फिर से मेरे होंठ चूमने और चूसने लगी ....
हम दोनो चिपकी थी ...एक दूसरे को चूम रहे थे ..चूस रहे थे चाट रहे थे ..एक दम पागल थे ...
मेरा लंड पॅंट फाड़ कर बाहर आने को तड़प रहा था ..उसकी चूत से लगातार पानी रीस रहा था ...वो मेरे लंड पर अपनी चूत घीस रही थी .....और इस कोशिश में थी उसे अपनी फुद्दि में समा ले ......
यह प्यार भी क्या चीज़ है किसी को सीखना नहीं पड़ता ..बस अपने आप होता जाता है ....
मैं तड़प रहा था अंदर डालने को वो बेताब दी अंदर लेने को..... और इस कोशिश में एक दूसरे को चूस रहे थे ..चाट रहे थे और लिपटे जा रहे थे ...
मैने धीरे से उसकी कान में कहा
" सिंधु तेरा सलवार उतार दूं .??."
उस ने बेहोशी सी आवाज़ में कहा
" भाई मत पूछो....कुछ भी कर दो....कुछ भी कर लो भाई ....आआआआआः ...."
और उस ने अपनी चूतड़ उपर कर ली ..मैने उसका नाडा खोला और सलवार नीचे सरका दिया ..वो मेरे गर्दन में हाथ डाले मेरे उपर लटक गयी उसके पैर हवा में थे , मैं उसे अपने दोनो हाथों से उसकी कमर को लपेटे उठाए रखा , और उस ने अपने पैर को झटका दिया ...सलवार नीचे फर्श पर गीरा....
वो पूरी नंगी मेरे सीने से चिपकी थी .अपने पैरों को मेरे कमर के चारों ओर लपेटे ..एक बच्चे के समान मेरी गोद में ....
बेतहाशा चूमे जा रही थी ..मैं उसे गोद में लिए लिए ही उठ गया और उसे नीचे बिस्तर पर बड़ी हिफ़ाज़त से लिटा दिया ...
अपना पॅंट भी एक झटके में उतार दिया ..मेरा लौडा फुंफ़कार्ता हुआ बाहर आया ....
क्रमशः…………………………………………..
" भाई ..आज पहली बार इतने इतमीनान से तुझे देख रही हूँ... तुम कितने अच्छे हो भाई ..कितने प्यारे हो ...देखने दो ना अच्छे से .... " और फिर अपनी आँखें मेरी आँखों में डाल दी
मेरा लंड फिर से कड़क था और उसकी जांघों के बीच सलामी दे रहा था .....
मैने भी उसके चेहरे को अपने हाथ से थामा , उसके गाल चूमे , जोरों से ,
और कहा " सिर्फ़ देखती रहेगी ..? कुछ करेगी नहीं ..???"
अब तक मेरा लौडा काफ़ी कड़क हो चूका था और उसकी चूत को उसके सलवार के उपर से ही चूम रहा था ....सिंधु इस नये और बिल्कुल नायाब तज़ुर्बे से एक अजीब ही नशे में आ गयी थी ..
उस ने मेरे गले में बाहें डालते हुए मेरे से और भी चिपक गयी ..मेरे कंधों पे अपना सर रख दिया ... फूसफूसाती हुई भर्राइ आवाज़ में कहा:
" भाई ..मैं क्या करूँ ..? तू ही कर ना ....."
मैं उसकी ऐसी भोली बातों से पागल हो उठा ..उसके कंधों को थामता हुआ उसके चेहरे को अपने चेहरे के सामने कर लिया ..उसकी आँखों में देखा ..उसकी आँखें बंद थी ..मानो उसे हमारे कुछ करने का बड़ी बेसब्री से इंतेज़ार हो ..
मैने उसका चेहरा अपने और करीब खिचा ....दोनो की सांस अब टकरा रही थी ....उसके होंठ कांप रहे थे..मुझ से रहा नहीं गया ..मैने उसके सीने को अपने सीने से बूरी तरह चिपका लिया उसकी चुचियाँ मेरे सीने में दबी थी ..उसके काँपते होंठों पर मैने अपने होंठ रख दिए ....और चूसना चालू कर दिया ...उफफफफफफफफफफ्फ़ ..मेरा भी ये पहला तज़ुर्बा था ..कितना मुलायम था उसका होंठ ....कितना गर्म था ... अया
सिंधु मुझ से और भी लिपट गयी ..और उसने भी मेरे होंठ चूसने शुरू कर दिए ....हम पागल हो गये थे .....किसी ने कुछ बताया नहीं था ..पहले कभी कुछ किया ना था ..पर सब कुछ अपने आप हो रहा था ..हम बेतहाशा एक दूसरे को चूमे जा रहे थे .मुँह अपने आप खुल गया था दोनो का ..दोनो के मुँह एक दूसरे को खा जाने को ..एक दूसरे के मुँह में अंदर जाने को तड़प रहे थे...उफफफ्फ़ क्या पागलपन था ... उसका थूक मेरे मुँह में जा रहा था मेरा थूक उसके मुँह में ....
उसके खुले मुँह से मुझे उसकी जीभ दिखी..पतली सी जीभ ..गुलाबी जीभ ..मैने अपने होंठों से उसकी जीभ पकड़ ली ..उफफफ्फ़ कितना गर्म था ...कितना गीला ..मैं उसकी जीभ चूसने लगा ..सिंधु तड़प उठी ....उसकी चूत का गीलापन मेरे लंड पर महसूस हो रहा था ...
हम दोनो हाँफ रहे थे .....लंबी लंबी साँसें ले रहे थे ..कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करें ...मैने फिर से उसे अपने सीने से लगाया ..उसकी चुचियाँ धँसी थी मेरे सीने से ..मुलायम पर कड़क भी ..कसी कसी ..बिना ब्रा के .....मैने उसके कुर्ते के बटन खोले और दोनो हाथों से खिचता हुआ उसकी कमर तक उतार दिया ....
और मैने भी साथ ही साथ अपना टॉप भी उतार दिया ....सिंधु मेरी गोद में ही दोनो टाँगें मेरे कमर से जकड़े खाट पर कर दिया था ..मेरी टाँगें खाट से नीचे लटक रही थी ...
मेरा नंगा सीना , उसकी नंगी चूचियों से बिल्कुल चिपका था ...हम एक दूसरे को जितना हो सकता था..जितना मुमकिन था ..एक दूसरे से चिपकाए थे ..एक दूसरे में अंदर तक घूस जाने को बेचैन थे ......
मैने अपनी हथेलिया दोनो के सीने के बीच घूसेड़ते हुए उसकी मस्त चुचियाँ सहलाने लगा ....उसकी घूंडिया उंगलियों से दबा रहा था ....
"आआआअह भाई ..धीरे दबाओ ना ...दर्द करता है...." उसने मेरे हथेलियों को अपने हाथ से पकड़ते हुए कहा ...मैने दबाना थोड़ा हल्का कर दिया और उस ने अपने हाथों को मेरे सर से लगते हुए अपने चेहरे से लगाया और फिर से मेरे होंठ चूमने और चूसने लगी ....
हम दोनो चिपकी थी ...एक दूसरे को चूम रहे थे ..चूस रहे थे चाट रहे थे ..एक दम पागल थे ...
मेरा लंड पॅंट फाड़ कर बाहर आने को तड़प रहा था ..उसकी चूत से लगातार पानी रीस रहा था ...वो मेरे लंड पर अपनी चूत घीस रही थी .....और इस कोशिश में थी उसे अपनी फुद्दि में समा ले ......
यह प्यार भी क्या चीज़ है किसी को सीखना नहीं पड़ता ..बस अपने आप होता जाता है ....
मैं तड़प रहा था अंदर डालने को वो बेताब दी अंदर लेने को..... और इस कोशिश में एक दूसरे को चूस रहे थे ..चाट रहे थे और लिपटे जा रहे थे ...
मैने धीरे से उसकी कान में कहा
" सिंधु तेरा सलवार उतार दूं .??."
उस ने बेहोशी सी आवाज़ में कहा
" भाई मत पूछो....कुछ भी कर दो....कुछ भी कर लो भाई ....आआआआआः ...."
और उस ने अपनी चूतड़ उपर कर ली ..मैने उसका नाडा खोला और सलवार नीचे सरका दिया ..वो मेरे गर्दन में हाथ डाले मेरे उपर लटक गयी उसके पैर हवा में थे , मैं उसे अपने दोनो हाथों से उसकी कमर को लपेटे उठाए रखा , और उस ने अपने पैर को झटका दिया ...सलवार नीचे फर्श पर गीरा....
वो पूरी नंगी मेरे सीने से चिपकी थी .अपने पैरों को मेरे कमर के चारों ओर लपेटे ..एक बच्चे के समान मेरी गोद में ....
बेतहाशा चूमे जा रही थी ..मैं उसे गोद में लिए लिए ही उठ गया और उसे नीचे बिस्तर पर बड़ी हिफ़ाज़त से लिटा दिया ...
अपना पॅंट भी एक झटके में उतार दिया ..मेरा लौडा फुंफ़कार्ता हुआ बाहर आया ....
क्रमशः…………………………………………..