भूत बंगला पार्ट--3
गतान्क से आगे.......................
मुझे उसकी बात पर जैसे यकीन ही नही हो रहा था. कुच्छ देर तक मैं खामोशी से खाना ख़ाता रहा. समझ नही आ रहा था के क्या कहूँ. कल रात ही तो मैं मनचंदा को अच्छा भला छ्चोड़के आया था.
"कब हुआ ये?" मैने खाना खाते हुए पुचछा
"कल रात किसी वक़्त. एग्ज़ॅक्ट टाइम तो पोस्ट-मॉर्टेम के बाद ही पता चलेगा." मिश्रा ने मेरी तरफ बड़ी गौर से देखते हुए कहा
"ऐसे क्या देख रहा है?" मैने पुचछा
"तू कल था ना उसके साथ. मनचंदा के? रात को?" उसने कहा तो मैं चौंक पड़ा.
"तुझे कैसे पता?" मैं पुचछा
"सामने ही पोलीस चोवकी है. पोलिसेवाले ने बताया के कल रात उसने तुम दोनो को एक साथ बंगलो के अंदर जाते देखा था" मिश्रा बोला.
"तुझे क्या लगता है?" मैने मुस्कुराते हुए कहा "मैने मारा है उसको?"
मिश्रा खाना खा चुका था. वो हाथ धोने के लिए उठ खड़ा हुआ
"चान्सस कम ही हैं. तेरे पास उसको मारने की कोई वजह नही थी और घर से कुच्छ भी गायब नही है तो नही, मुझे नही लगता के तूने उसको मारा है" वो हाथ धोते हुए बोला
हम दोनो पोलीस स्टेशन में बैठे खाना खा रहे थे. जब मैने भी ख़तम कर लिया तो मैं भी हाथ धोने के लिए उठ गया. एक कॉन्स्टेबल आकर टेबल से प्लेट्स उठाने लगा
"शुक्रिया" मैने मिश्रा से कहा "के आपने मुझे सस्पेक्ट्स की लिस्ट से निकाल दिया"
"वो छ्चोड़" मिश्रा वापिस अपनी सीट पर आकर बैठते हुए बोला "तुझे कुच्छ अजीब लगा था कल रात को जब तू मनचंदा से मिला था?"
"मुझे तो वो आदमी और उससे जुड़ी हर चीज़ अजीब लगती थी. पर हां कुच्छ ऐसा था जो बहुत ज़्यादा अजीब था" मैने कहा और कल रात की मनचंदा के साथ अपनी मुलाक़ात उसको बताने लगा.
"अजीब बात ये थी यार के मुझे पूरा यकीन है के मैने खिड़की पर 2 लोगों को खड़े देखा था पर जब मैं उसके साथ अंदर गया तो वहाँ कोई नही था" मैने अपनी बात ख़तम करते हुए कहा
"हो सकता है वो लोग छुप गये हों" मिश्रा बोला तो मैं इनकार में सर हिलने लगा
"मनचंदा जाने क्यूँ मुझे इस बात का यकीन दिलाना चाहता था के घर में कोई नही है इसलिए उसने मुझे घर का एक एक कोना दिखाया था. यकीन मान मिश्रा घर में कोई नही था. जिसे मैने खिड़की पर देखा था वो लोग जैसे हवा में गायब हो गये थे." मैने कहा
"तूने कहा के तू दरवाज़ा खटखटने के बाद जब किसी ने नही खोला तो पोलीस चोवकी की तरफ गया था. हो सकता है उस दौरान वो निकलकर भाग गये हों" उसने अपना शक जताया
"नही. मैं बंगलो से मुश्किल से 5 कदम की दूरी पर गया था और जहाँ मैं और मनचंदा खड़े बात कर रहे थे वहाँ से हमें बंगलो का दरवाज़ा सॉफ नज़र आ रहा था. बल्कि हम दोनो तो ख़ास तौर से बंगलो की तरफ ही देख रहे थे. अगर कोई बाहर निकलता तो हमें ज़रूर पता चलता." मैने कहा
"अजीब कहानी है यार." मिश्रा बोला "इस छ्होटे से शहर में जितना मश-हूर वो बंगलो है उतना ही ये केस भी होगा. भूत बंगलो में अजीब हालत में मर्डर हुआ, ये हेडलाइन होगी का न्यूसपेपर की. मीडीया वाले मरे जा रहे हैं मुझसे बात करने के लिए. कहानी ही अजीब है"
"पूरी बात बता" मैने सिगेरेत्टे जलाते हुए कहा
"सुबह घर की नौकरानी ने दरवाज़ा खोला और अंदर मनचंदा को मरा हुआ पाया. वो उसी वक़्त चिल्लती हुई बाहर निकली और चोवकी से पोलिसेवाले को बुलाके लाई जिसने फिर मुझे फोन किया. जब मैं वहाँ पहुँचा तो घर का सिर्फ़ वो दरवाज़ा खुला था जो नौकरानी ने खोला था. उसके अलावा घर पूरी तरह से अंदर से बंद था और नौकरानी के खोलने से पहले वो दरवाज़ा भी अंदर से ही बंद था. तो मतलब ये है के मनचंदा का खून उस घर में हुआ जो अंदर से पूरी तरह से बंद था" मिश्रा बोला
"कम ओन मिश्रा. घर के मेन डोर की और भी चाबियाँ हो सकती हैं यार या फिर हो सकता हो किसी ने बिना चाबी के लॉक खोला हो" मैने कहा
"नही" मिश्रा ने फिर इनकार में गर्दन हिलाई " घर के अंदर लॉक के सिवा एक चैन लॉक भी है. वो नौकरानी काफ़ी वक़्त से उस घर में काम कर रही है इसलिए जानती है के चैन लॉक के हुक दरवाज़े के पास किस तरफ है इसलिए वो अपने साथ हमेशा एक लकड़ी लेके जाती है. दरवाज़े का लॉक खोलने के बाद हल्का सा गॅप बन जाता है जिसमें से वो लड़की अंदर घुसकर चैन लॉक को हुक से निकाल देती थी. मैं खुद वो चैन लॉक देखा. ये मुमकिन है के उसे बाहर से किसी चीज़ की मदद से हुक से निकाला जा सके पर ऐसा बिल्कुल भी मुमकिन नही है के बाहर खड़े होके वो चैन वापिस हुक में फसाई जा सके" मिश्रा बोला
"और सुबह वो चैन अपने हुक में थी. याकि के चैन लॉक लगा हुआ था" मैने कहा तो मिश्रा ने हां में सर हिलाया
"तो इसलिए उसका खून घर में उस वक़्त हुआ जब वो घर में बिल्कुल अकेला था." मिश्रा बोला "और फिर सामने चोवकी पर जो पोलिसेवला था उसने मुझे बताया के बंगलो में तेरे निकालने के बाद ना तो कोई अंदर गया और ना ही कोई बाहर आया"
"स्यूयिसाइड?" मैने फिर शक जताया
"नही. जिस अंदाज़ में उसपर सामने से वार किया गया था, ऐसा हो ही नही सकता के उसने खुद अपने दिल में कुच्छ घुसा लिया हो. और फिर हमें वो हत्यार भी नही मिला जिससे उसका खून हुआ था. तो ऐसा नही हो सकता के उसने स्यूयिसाइड की हो और मरने से पहले हत्यार च्छूपा दिया हो" मिश्रा बोला
"रिश्तेदारों को खबर की तूने?" मैने पुचछा
"ये दूसरी मुसीबत है" मिश्रा बोला "सला पता ही नही के वो कौन था कहाँ से आया था. मैने बंगलो के मलिक से बात की पर उसको भी नही पता. उसने तो मनचंदा को बिना सवाल किए ही बंगलो किराए पर दे दिया था क्यूंकी उस घर में वैसे भी कोई रहने को तैय्यर नही था."
"तो अब क्या इरादा है?" मैने मिश्रा से पुचछा
"ये केस बहुत बड़ा बनेगा यार क्यूंकी वो साला बंगलो बहुत बदनाम है. मीडीया वाले इस केस को खूब मिर्च मसाला लगाके पेश करेंगे. अब मुसीबत ये है के पहले ये पता करो के मरने वाला था कौन, फिर ये पता करो के किसने मारा और क्यूँ मारा" मिश्रा गुस्से में बोला
मिश्रा के पास से मैं जब वापिस आया तो शाम हो चुकी थी. मैं ऑफीस पहुँचा तो प्रिया वहाँ से जा चुकी थी. मैं ऑफीस से कुच्छ फाइल्स उठाई और उन्हें लेकर वापिस घर आया. घर पहुँचा तो रुक्मणी जैसे मुझे मनचंदा के खून के बारे में बताने को मरी जा रही थी. मैं उसका एग्ज़ाइट्मेंट खराब नही करना चाहता था इसलिए मैने उसकी पूरी बात ऐसे सुनी जैसे मुझे पता ही नही के मनचंदा का खून हो चुका था.
मुझे अपनी ज़रूरत का कुच्छ समान खरीदना था इसलिए शाम को तकरीबन 8 बजे मैं घर से मार्केट के लिए निकला. जाते हुए मैं बंगलो 13 के सामने से निकलत तो दिल में एक अंजना सा ख़ौफ्फ उतर गया. पहली बार उस घर को देखकर मैं तेज़ कदमों से उसके सामने से निकल गया. सिर्फ़ एक यही ख्याल मेरे दिमाग़ में आ रहा था के कल तक इस घर में एक ज़िंदा आदमी रहता था और जो आज नही है. क्या सच में ये घर मनहूस है? समान खरीदते हुए भी पूरा वक़्त यही ख्याल मेरे दिमाग़ में चलता रहा के उसको किसने मारा और क्यूँ मारा?
रात को करीब 10 बजे मैं घर लौटा. रुक्मणी मुझे कहीं दिखाई नही दी. अपने कमरे में समान रखकर मैं किचन में पहुँचा. मुझे बहुत ज़ोर से भूख लगी थी और मैं जल्द से जल्द कुच्छ खाना चाहता था. किचन में पहुँचा तो वहाँ रुक्मणी खड़ी हुई कुच्छ फ्राइ कर रही थी.
उसे पिछे से देखते ही जैसे मेरी भूख फ़ौरन ख़तम हो गयी. रुक्मणी के जिस्म का जो हिस्सा मुझे सबसे ज़्यादा पसंद था वो उसकी गांद थी. लगता था जैसे बनानेवाले ने उसको बनाते हुए सबसे ज़्यादा ध्यान उसके जिस्म के इसी हिस्से पर दिया था और बड़ी फ़ुर्सत में बनाया था. उसकी गांद जिस अंदाज़ में उठी हुई थी और चलते हुए जैसे हिलती थी उसे देखकर अच्छे अच्छे का दिल मुँह में आ जाए. वो उस वक़्त वही नाइटी पहने खड़ी थी जो उसने कल रात पहेन रखी थी. वो ढीली सी नाइटी उसके घुटनो तक आती थी और जिस तरह से उसकी गांद उस नाइटी में दिखाई देती थी, वो देखकर ही मैं दीवाना हो जाता था. इस उमर में भी उसका जिस्म बिल्कुल कसा हुआ था. कई बार मैने बिस्तर पर उसकी गांद मारने की भी कोशिश की थी पर उसने करने नही दिया. एक बार जब मैने लंड घुसाने की कोशिश की तो वो दर्द से चिल्ला उठी थी और उसके बाद उसने मुझे कभी कोशिश करने नही दी.
उसको किचन में पिछे से देखकर मेरा लंड फिर से ज़ोर मारने लगा. मैं धीरे से चलता हुआ उसके करीब पहुँचा और पिछे से दोनो हाथ उसकी बगल से लाकर उसकी दोनो चूचियो पर रख दिए और लंड उसकी गांद से सटा दिया.
"ओह रुक्मणी" मैने उसके कान में बोला " खाना बाद में. फिलहाल थोड़ा सा झुक जाओ ताकि मैं पहले तुम्हें खा सकूँ"
मेरे यूँ करीब आते ही वो ऐसे चोन्कि जैसे 1000 वॉट का करेंट लगा हो और मुझसे फ़ौरन अलग हुई. उसकी इस अचानक हरकत से मैं लड़खदाया और गिरते गिरते बचा. वो मुझसे थोड़ी दूर हो पलटी और उसको देखकर मेरी आधी साँस उपेर और आधी नीचे रह गयी. जो औरत मेरे सामने खड़ी थी वो रुक्मणी नही कोई और थी.
वो आँखें खोले हैरत से मेरी तरफ देख रही थी और मैं उसकी तरफ. हम दोनो में से कोई कुच्छ नही बोला. उसका चेहरा रुक्मणी से बहुत मिलता था और कद काठी भी बिल्लुल रुक्मणी जैसी ही थी. तभी किचन के बाहर कदमों की आहट से हम दोनो संभाल गये. रुक्मणी किचन में आई और मुझे वहाँ देखकर मुस्कुराइ.
"आ गये" उसने कहा और फिर सामने खड़ी औरत की और देखा "देवयानी ये इशान है. मैने बताया था ना. और इशान ये मेरी बहेन देवयानी है. अभी 1 घंटा पहले ही आई है."
मुझे ध्यान आया के कई बार रुक्मणी ने मुझे अपनी छ्होटी बहेन के बारे में बताया था जो लंडन में रहती थी और रुक्मणी से 2 साल छ्होटी थी. वो किसी कॉलेज में प्रोफेसर थी और कभी शादी नही की थी. तभी ये कम्बख़्त रुक्मणी से इतनी मिलती है, बहेन जो है, मैने दिल ही दिल में सोचा और उसको देखकर मुस्कुराया. वो भी जवाब में मुस्कुराइ तो मेरी जान में जान आई के ये रुक्मणी से कुच्छ नही कहेगी. "मैं सोच रही थी के तुम्हें बताऊंगी के देवयानी आने वाली है पर भूल गयी." रुक्मणी ने कहा . मैने हां में सर हिलाया और फ़ौरन किचन से बाहर निकल गया.
उस रात मैं बिस्तर पर अकेला ही था. देवयानी के आने से रूमानी आज रात अपने कमरे में ही सो रही थी ताकि अपनी बहेन से बात कर सके. बिस्तर पर लेते हुए मैं जाने कब तक बस करवट ही बदलता रहा. नींद आँखों से कोसो दूर थी. बस एक ही ख्याल दिमाग़ में चल रहा था के मनचंदा को किसने मारा. और जो बात मुझे सबसे ज़्यादा परेशान कर रही थी के घर में कोई होते हुई भी मुझे कल रात अंदर कोई क्यूँ नही मिला? ऐसा कैसे हो सकता है के 2 लोग खड़े खड़े हवा में गायब हो गये. और बंद घर में मनचंदा का खून हुआ कैसे?
Bhoot bangla-भूत बंगला
Re: Bhoot bangla-भूत बंगला
रात को मैं बड़ी देर तक जागता रहा जिसका नतीजा ये निकला के मैं सुबह देर से उठा. भागता दौड़ता तैय्यार हुआ और ऑफीस जाने के बजाय सीधा कोर्ट पहुँचा जहाँ 11 बजे मुझे एक केस के सिलसिले में जाना था.
हियरिंग के बाद मैं ऑफीस पहुँचा. प्रिया सुबह से मुझे फोन मिलाने की कोशिश कर रही थी पर कोर्ट में होने की वजह से मैं फोन उठा नही सका.
ऑफीस पहुँचा तो वो मुझे देखते ही उच्छल पड़ी.
"कहाँ हो कल से इशान?" वो मुझे सर या बॉस कहने के बजाय मेरे नाम से ही बुलाती थी
"अरे यार सुबह बहुत देर से उठा था इसलिए ऑफीस आने के बजाय सीधा कोर्ट ही चला गया था" मैं बॅग नीचे रखता हुआ बोला
"एक फोन ही कर देते. मैं सुबह से परेशान थी के तुम हियरिंग के लिए पहुँचे के नही" उसने कहा तो मैं सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गया
"और कल कहाँ गायब हो गये थे?" उसने कल के बारे में सवाल किया
"दोपहर को ऑफीस आया तो तू नही थी. तभी वो इनस्पेक्टर मिश्रा आ गया और मुझे उसके साथ जाना पड़ा. शाम को वापिस आया तो तू घर जा चुकी थी" मैं हमेशा की तरह उसको अपने पूरे दिन के बारे में बताता हुआ बोला. हमेशा ऐसा ही होता था. वो मेरी ऑफीस के साथ साथ पर्सनेल लाइफ की सेक्रेटरी भी थी.
"हां वो मैं कल थोड़ा जल्दी चली गयी थी" वो मुस्कुराते हुए बोली "तुम नही आए तो मैने सोचा के मैं अकेले ही कुच्छ कपड़े ले आउ"
"कपड़े?" मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा
"हां वो तुमने ही कहा था ना. लड़कियों के जैसे कपड़े" उसने याद दिलाते हुए कहा
"अच्छा हां. तो कुच्छ पसंद आया?"
"हां लाई हूँ ना. तुम्हें दिखाऊँगी सोचकर कल घर ही नही ले गयी. यहीं छ्चोड़ गयी थी" कहते हुए उसने टेबल के पिछे से एक बॅग निकाला और उसमें से कुच्छ कपड़े निकालकर मुझे दिखाने लगी. 2 लड़कियों के टॉप्स और 2 जीन्स थी. रंग ऐसे थे के अगर वो उनको पेहेन्के निकलती तो गली कर हर कुत्ता उसके पीछे पड़ जाता. पर मैं उसका दिल नही तोड़ना चाहता था इसलिए कुच्छ नही कहा.
"कैसे हैं?" उसने खुश होते हुए कहा
"अच्छे हैं" मैने जवाब दिया. सच तो ये था के वो कपड़े अगर कोई फ्री में भी दे तो मेरे हिसाब से इनकार कर देना चाहिए था
"मुँह उधर करो" उसने मुझसे कहा और आगे बढ़कर ऑफीस का गेट अंदर से लॉक कर दिया
"मतलब? क्यूँ?" मुझे उसकी बात कुच्छ समझ नही आई
"अरे पेहेन्के दिखाती हूँ ना. अब यहाँ कोई सेपरेट रूम या चेंजिंग रूम तो है नही. तो तुम मुँह उधर करो मैं चेंज कर लेती हूँ" उसने खिड़की बंद करते हुए कहा
"तू पागल हो गयी है?" मुझे यकीन नही हुआ के वो पागल लड़की क्या करने जा रही थी "यहाँ चेंज करेगी? बाद में पेहेन्के दिखा देना अभी रहने दे"
"नही. अगर ठीक नही लगे तो आज शाम को वापिस कर दूँगी. आज के बाद वो वापिस नही लेगा" उसने एक टॉप निकालते हुए कहा
"तो वॉशरूम में जाके चेंज कर आ" मैने उसे लॅडीस रूम में जाने को कहा. बिल्डिंग के उस फ्लोर पर एक कामन टाय्लेट था.
"पागल हो? वहाँ कितना गंदा रहता है. अब तुम उधर मुँह करो जल्दी" कहते हुए उसने अपनी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए. मेरे पास कोई चारा नही बचा सिवाय इसके के मैं दूसरी तरफ देखूं.
थोड़ी देर तक कपड़े उतारने और पहेन्ने की आवाज़ आती रही.
"अब देखो" उसने मुझसे कहा और मैं पलटा. उस एक पल में मैं 2 चीज़ें एक साथ महसूस की. एक तो मेरा ज़ोर से हस्ने का दिल किया और दूसरा मैं हैरत से प्रिया की तरफ देखने लगा.
वो हल्के सावले रंग की थी और उसपर वो भड़कता हुआ लाल रंग का टाइट टॉप लाई थी जो उसपर बहुत ज़्यादा अजीब लग रहा था. ये देखकर मेरा हस्ने का दिल किया. पर जिस दूसरी बात ने मेरा ध्यान अपनी तरफ किया वो था प्रिया का जिस्म. वो हमेशा लड़को के स्टाइल की ढीली सी शर्ट और एक ढीली सी पेंट पहने रखती थी और उसपर से लड़को के जैसा ही अंदाज़. मैने कभी उसको एक लड़की के रूप में ना तो देखा था और ना ही सोचा था पर आज वो मेरे सामने एक टाइट टॉप और उतनी ही टाइट जीन्स में खड़ी थी. आज मैने पहली बार नोटीस किया के वो आक्चुयल में एक लड़की है और बहुत खूब है. उसकी चूचिया उस टाइट टॉप में हद से ज़्यादा बड़ी लग रही थी. लग रहा था टॉप फाड़के बाहर आ जाएँगी. मेरी नज़र अपने आप ही उसकी चूचियो पर चली गयी. एक नज़र पड़ते ही मैं समझ गया के उसने अंदर ब्रा नही पहेन रखा था. उसके दोनो निपल्स कपड़े के उपेर सॉफ तौर पर उभर आए थे. दिल ही दिल में मैं ये सोचे बिना नही रह सका के उसकी चूचिया इतनी बड़ी थी और आज तक मैने कभी ये नोटीस नही किया
"कैसी लग रही हूँ?" उसने इठलाते हुए पुचछा तो मेरा ध्यान उसकी चूचियो से हटा. और अगले ही पल उसने जो हरकत की उससे मेरा दिल जैसे मेरे मुँह में आ गया. वो मुझे दिखाने के लिए घूमी और अपनी पीठ मेरी तरफ की. लड़कियों के जिस्म का एक हिस्सा मेरी कमज़ोरी है, उनकी गांद और प्रिया की गांद तो ऐसी थी जैसी मैने कभी देखी ही नही थी. उसने रुक्मणी और देवयानी को भी पिछे छ्चोड़ दिया था. वो हमेशा एक ढीली सी पेंट पहने रहती थी इसलिए आज से पहले कभी मुझे ये बात नज़र ही नही आई थी.
"बहुत अच्छी लग रही हो" वो फिर से मेरी तरफ पलटी तो मैने कहा.
"दूसरा पेहेन्के दिखाती हूँ" उसने कहा और दूसरी जीन्स उठाई
मैं हमेशा उसको एक सॉफ नज़र से देखता था और उसके लिए मेरे दिल में कोई बुरा विचार नही था. पर आज उसको यूँ देख कर एक पल के लिए मेरी नीयत बिगड़ गयी थी और मुझे दिल ही दिल में इस बात का अफ़सोस हुआ. मैने फ़ौरन उसको रोका
"अभी नही. शाम को. अभी वो मिश्रा आने वाला है" मैने बहाना बनाते हुए कहा.
"मिश्रा?" उसने मेरा झूठ मान लिया.
"हाआँ. तुम दोबारा पहले वाले कपड़े पहेन लो" मैने कहा और फिर से दूसरी तरफ पलट गया ताकि वो चेंज कर सके. पलटने से पहले मैने एक आखरी नज़र उसके कपड़ो पर डाली. मुझे वहाँ कोई ब्रा नज़र नही आया. प्रिया ने ब्रा पहेन भी नही रखा था. इसका मतलब सॉफ था के वो ब्रा पेहेन्ति ही नही थी जिसपर मुझे बहुत हैरत हुई. इतनी बढ़ी चूचिया और ब्रा नही पेहेन्ति?
नाम लिया और शैतान हाज़िर. ये कहवात मैने कई बार सुनी थी पर उस दिन सच होते भी देखी. मैने प्रिया से मिश्रा के बारे में झूठ कहा था पर वो सच में 15 मिनट बाद ही आ गया.
"क्या कर रहा है?" उसने ऑफीस में आते हुए पुचछा
"कुच्छ ख़ास नही" मैने कहा
"मेरे साथ चल रहा है? तेरी कॉलोनी ही जा रहे हैं. वो बंगलो नो 13 जाना है इन्वेस्टिगेशन के लिए तो मैने सोचा के तुझे साथ लेता चलूं. पहले सोच रहा था के फोन करूँ पर फिर चला ही आया" मिश्रा बिना मुझे बोलने का मौका दिए बोलता ही चला गया
मैने प्रिया की तरफ देखा. वो गुस्से से मुझे घूर रही थी. मेरा झूठ पकड़ा गया था. वो समझ गयी थी के मैने उसे झूठ कहा था के मिश्रा आ रहा है.
मैं मिश्रा के साथ हो लिया और थोड़ी ही देर बाद हम दोनो फिर से बंगलो नो 13 के अंदर आ खड़े हुए. आखरी बार जब मैं इस घर में आया था तो ये घर था पर अब एक पोलीस इन्वेस्टिगेशन सीन. मिश्रा ने मुझे इशारे से कमरे का वो कोना दिखाया जहाँ मनचंदा की लाश मिली थी. देखकर ही मेरे जिस्म में एक अजीब सी ख़ौफ्फ की लेहायर दौड़ गयी.
अगले 2 घंटे तक मैं, मिश्रा और 2 कॉन्स्टेबल्स बंगलो की तलाशी लेते रहे इस उम्मीद में के हमें कुच्छ ऐसा मिल जाए जो इस बात की तरफ इशारा करे के मनचंदा कौन था पर हमें कामयाभी हासिल नही हुई. कोई लेटर, टेलिग्रॅम तो दूर की बात, हमें पूरे घर में कहीं कुच्छ ऐसा नही मिला जो मनचंदा ने लिखा हो. उसके ड्रॉयर में एक डाइयरी थी जो खाली थी. उसके पर्स से भी हमें किसी तरह का कोई पेपर नही मिला. मोबाइल वो रखता नही था इसलिए वहाँ से किसी का कोई फोन नंबर मिलने का ऑप्षन तो कभी था ही नही. उसके किसी कपड़े पर भी ऐसा कोई निशान नही था जिसे देखके ये अंदाज़ा लगाया जा सके के वो कपड़े कहाँ से खरीदे गये थे. वो आदमी तो जैसे खुद एक भूत था.
ये बंगलो एक लंबे अरसे से खाली पड़ा था. मकान मलिक कहीं और रहता था और कोई भूत बंगलो को किराए पर लेने को तैय्यार नही था. इसलिए जब मनचंदा ने घर किराए पर माँगा तो मकान मलिक ने बिना कुच्छ पुच्छे फ़ौरन हाँ कर दी. हमने उससे बात की तो पता चला के उसके पास भी मनचंदा के नाम की सिवा कोई और जानकारी नही थी. मनचंदा ने जब बंगलो लिया था तो 2 महीने का किराया अड्वान्स में दिया था और उसके बाद हर महीने किराया कॅश में ही दिया. कभी किसी किस्म का कोई चेक़ मनचंदा ने नही दिया था.
कमरे में रखा सारा फर्निचर नया था. उसपर लगे स्टिकर्स से हमने दुकान का नंबर हासिल किया और फोन मिलाया. पता चला के मनचंदा ने खुद सारा फर्निचर खरीदा था और कॅश में पे किया था. तो वहाँ भी कोई स्चेक या क्रेडिट कार्ड की उम्मीद ख़तम हो गयी. पूरे घर में 2 घंटे भटकने के बाद ना तो हमें मनचंदा के बारे में कुच्छ पता चला और ना ही घर में आने का मैं दरवाज़े के साइवा कोई और रास्ता मिला. तक हार कर हम दोनो वहीं पड़े एक सोफे पर बैठ गये.
"कौन था ये आदमी यार" मिश्रा बोला "नाक का दम बन गया साला. आज का पेपर देखा तूने. हर तरफ यही छपा हुआ है के भूत बंगलो में खून हुआ है"
मैने हाँ में सर हिलाया
"समझ नही आ रहा के क्या करूँ" मिश्रा बोला "कहाँ से पता लगाऊं के ये कम्बख़्त कौन था और यहाँ क्या करने आया था. मर्डर वेपन तक नही मिला है अब तक. मैने पिच्छले एक साल की रिपोर्ट्स देख डाली पर किसी मनचंदा के गायब होने की कोई रिपोर्ट नही है"
"और ना ही ये समझ आया के खून जिसने किया था वो घर से निकला कैसे" मैने आगे से एक बात और जोड़ दी.
"हां" मिश्रा ने हाँ में सर हिलाया "वो खूनी भी और वो 2 लोग भी जिन्हे तूने घर में देखा था"
"क्या लगता है?" मैने मिश्रा की और देखा "बदले के लिए मारा है किसी ने उसको?"
"लगता तो यही है. घर से कुच्छ भी गायब नही है इसलिए चोरी तो मान ही नही सकते. और जिस हिसाब से तू कह रहा था के खुद मनचंदा ने ये कहा था के कुच्छ लोग उसको नुकसान पहकूंचना चाहते हैं तो उससे तो यही लगता है के किसी ने पुरानी दुश्मनी के चलते मारा है. पर उस दुश्मनी का पता करने के लिए पहले ये तो पता लगा के ये आदमी था कौन"
"एक काम हो सकता है" मैने कहा
"क्या?" मिश्रा ने फुरण मेरी तरफ देखा
"पेपर्स में छप्वा दे उसके बारे में" मैने कहा तो मिश्रा ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगा
"मैं छप्वा दूँ? अबे आज के पेपर्स भरे पड़े हैं इस खून के बारे में" उसने मेरा मज़ाक उड़ाते हुए कहा
"हां पर सिर्फ़ खून हुआ है ये लिखा है पेपर्स में. तू ये छप्वा दे के पोलीस नही जानती के मरने वाला कौन है और अगर कोई इस आदमी को पहचानता है तो सामने आए" मैने कहा
"बात तो तेरी ठीक लग रही है पर यार जाने कितने लोग मरते हैं रोज़ारा हमारे देश में. किसी कोई कैसे पता चलेगा के ये आदमी उनका ही रिश्तेदार था?" वो बोला
"2 बातें. उसके चेहरे पर एक अजीब सा निशान था जैसे किसी ने चाकू मारा हो और दूसरा उसके हाथ की छ्होटी अंगुली आधी गायब थी. ये बात छप्वा दे. कोई ना कोई तो आ ही जाएगा अगर इसका कोई रिश्तेदार था तो" मैने कहा तो मिश्रा मुस्कुराने लगा
हियरिंग के बाद मैं ऑफीस पहुँचा. प्रिया सुबह से मुझे फोन मिलाने की कोशिश कर रही थी पर कोर्ट में होने की वजह से मैं फोन उठा नही सका.
ऑफीस पहुँचा तो वो मुझे देखते ही उच्छल पड़ी.
"कहाँ हो कल से इशान?" वो मुझे सर या बॉस कहने के बजाय मेरे नाम से ही बुलाती थी
"अरे यार सुबह बहुत देर से उठा था इसलिए ऑफीस आने के बजाय सीधा कोर्ट ही चला गया था" मैं बॅग नीचे रखता हुआ बोला
"एक फोन ही कर देते. मैं सुबह से परेशान थी के तुम हियरिंग के लिए पहुँचे के नही" उसने कहा तो मैं सिर्फ़ मुस्कुरा कर रह गया
"और कल कहाँ गायब हो गये थे?" उसने कल के बारे में सवाल किया
"दोपहर को ऑफीस आया तो तू नही थी. तभी वो इनस्पेक्टर मिश्रा आ गया और मुझे उसके साथ जाना पड़ा. शाम को वापिस आया तो तू घर जा चुकी थी" मैं हमेशा की तरह उसको अपने पूरे दिन के बारे में बताता हुआ बोला. हमेशा ऐसा ही होता था. वो मेरी ऑफीस के साथ साथ पर्सनेल लाइफ की सेक्रेटरी भी थी.
"हां वो मैं कल थोड़ा जल्दी चली गयी थी" वो मुस्कुराते हुए बोली "तुम नही आए तो मैने सोचा के मैं अकेले ही कुच्छ कपड़े ले आउ"
"कपड़े?" मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा
"हां वो तुमने ही कहा था ना. लड़कियों के जैसे कपड़े" उसने याद दिलाते हुए कहा
"अच्छा हां. तो कुच्छ पसंद आया?"
"हां लाई हूँ ना. तुम्हें दिखाऊँगी सोचकर कल घर ही नही ले गयी. यहीं छ्चोड़ गयी थी" कहते हुए उसने टेबल के पिछे से एक बॅग निकाला और उसमें से कुच्छ कपड़े निकालकर मुझे दिखाने लगी. 2 लड़कियों के टॉप्स और 2 जीन्स थी. रंग ऐसे थे के अगर वो उनको पेहेन्के निकलती तो गली कर हर कुत्ता उसके पीछे पड़ जाता. पर मैं उसका दिल नही तोड़ना चाहता था इसलिए कुच्छ नही कहा.
"कैसे हैं?" उसने खुश होते हुए कहा
"अच्छे हैं" मैने जवाब दिया. सच तो ये था के वो कपड़े अगर कोई फ्री में भी दे तो मेरे हिसाब से इनकार कर देना चाहिए था
"मुँह उधर करो" उसने मुझसे कहा और आगे बढ़कर ऑफीस का गेट अंदर से लॉक कर दिया
"मतलब? क्यूँ?" मुझे उसकी बात कुच्छ समझ नही आई
"अरे पेहेन्के दिखाती हूँ ना. अब यहाँ कोई सेपरेट रूम या चेंजिंग रूम तो है नही. तो तुम मुँह उधर करो मैं चेंज कर लेती हूँ" उसने खिड़की बंद करते हुए कहा
"तू पागल हो गयी है?" मुझे यकीन नही हुआ के वो पागल लड़की क्या करने जा रही थी "यहाँ चेंज करेगी? बाद में पेहेन्के दिखा देना अभी रहने दे"
"नही. अगर ठीक नही लगे तो आज शाम को वापिस कर दूँगी. आज के बाद वो वापिस नही लेगा" उसने एक टॉप निकालते हुए कहा
"तो वॉशरूम में जाके चेंज कर आ" मैने उसे लॅडीस रूम में जाने को कहा. बिल्डिंग के उस फ्लोर पर एक कामन टाय्लेट था.
"पागल हो? वहाँ कितना गंदा रहता है. अब तुम उधर मुँह करो जल्दी" कहते हुए उसने अपनी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए. मेरे पास कोई चारा नही बचा सिवाय इसके के मैं दूसरी तरफ देखूं.
थोड़ी देर तक कपड़े उतारने और पहेन्ने की आवाज़ आती रही.
"अब देखो" उसने मुझसे कहा और मैं पलटा. उस एक पल में मैं 2 चीज़ें एक साथ महसूस की. एक तो मेरा ज़ोर से हस्ने का दिल किया और दूसरा मैं हैरत से प्रिया की तरफ देखने लगा.
वो हल्के सावले रंग की थी और उसपर वो भड़कता हुआ लाल रंग का टाइट टॉप लाई थी जो उसपर बहुत ज़्यादा अजीब लग रहा था. ये देखकर मेरा हस्ने का दिल किया. पर जिस दूसरी बात ने मेरा ध्यान अपनी तरफ किया वो था प्रिया का जिस्म. वो हमेशा लड़को के स्टाइल की ढीली सी शर्ट और एक ढीली सी पेंट पहने रखती थी और उसपर से लड़को के जैसा ही अंदाज़. मैने कभी उसको एक लड़की के रूप में ना तो देखा था और ना ही सोचा था पर आज वो मेरे सामने एक टाइट टॉप और उतनी ही टाइट जीन्स में खड़ी थी. आज मैने पहली बार नोटीस किया के वो आक्चुयल में एक लड़की है और बहुत खूब है. उसकी चूचिया उस टाइट टॉप में हद से ज़्यादा बड़ी लग रही थी. लग रहा था टॉप फाड़के बाहर आ जाएँगी. मेरी नज़र अपने आप ही उसकी चूचियो पर चली गयी. एक नज़र पड़ते ही मैं समझ गया के उसने अंदर ब्रा नही पहेन रखा था. उसके दोनो निपल्स कपड़े के उपेर सॉफ तौर पर उभर आए थे. दिल ही दिल में मैं ये सोचे बिना नही रह सका के उसकी चूचिया इतनी बड़ी थी और आज तक मैने कभी ये नोटीस नही किया
"कैसी लग रही हूँ?" उसने इठलाते हुए पुचछा तो मेरा ध्यान उसकी चूचियो से हटा. और अगले ही पल उसने जो हरकत की उससे मेरा दिल जैसे मेरे मुँह में आ गया. वो मुझे दिखाने के लिए घूमी और अपनी पीठ मेरी तरफ की. लड़कियों के जिस्म का एक हिस्सा मेरी कमज़ोरी है, उनकी गांद और प्रिया की गांद तो ऐसी थी जैसी मैने कभी देखी ही नही थी. उसने रुक्मणी और देवयानी को भी पिछे छ्चोड़ दिया था. वो हमेशा एक ढीली सी पेंट पहने रहती थी इसलिए आज से पहले कभी मुझे ये बात नज़र ही नही आई थी.
"बहुत अच्छी लग रही हो" वो फिर से मेरी तरफ पलटी तो मैने कहा.
"दूसरा पेहेन्के दिखाती हूँ" उसने कहा और दूसरी जीन्स उठाई
मैं हमेशा उसको एक सॉफ नज़र से देखता था और उसके लिए मेरे दिल में कोई बुरा विचार नही था. पर आज उसको यूँ देख कर एक पल के लिए मेरी नीयत बिगड़ गयी थी और मुझे दिल ही दिल में इस बात का अफ़सोस हुआ. मैने फ़ौरन उसको रोका
"अभी नही. शाम को. अभी वो मिश्रा आने वाला है" मैने बहाना बनाते हुए कहा.
"मिश्रा?" उसने मेरा झूठ मान लिया.
"हाआँ. तुम दोबारा पहले वाले कपड़े पहेन लो" मैने कहा और फिर से दूसरी तरफ पलट गया ताकि वो चेंज कर सके. पलटने से पहले मैने एक आखरी नज़र उसके कपड़ो पर डाली. मुझे वहाँ कोई ब्रा नज़र नही आया. प्रिया ने ब्रा पहेन भी नही रखा था. इसका मतलब सॉफ था के वो ब्रा पेहेन्ति ही नही थी जिसपर मुझे बहुत हैरत हुई. इतनी बढ़ी चूचिया और ब्रा नही पेहेन्ति?
नाम लिया और शैतान हाज़िर. ये कहवात मैने कई बार सुनी थी पर उस दिन सच होते भी देखी. मैने प्रिया से मिश्रा के बारे में झूठ कहा था पर वो सच में 15 मिनट बाद ही आ गया.
"क्या कर रहा है?" उसने ऑफीस में आते हुए पुचछा
"कुच्छ ख़ास नही" मैने कहा
"मेरे साथ चल रहा है? तेरी कॉलोनी ही जा रहे हैं. वो बंगलो नो 13 जाना है इन्वेस्टिगेशन के लिए तो मैने सोचा के तुझे साथ लेता चलूं. पहले सोच रहा था के फोन करूँ पर फिर चला ही आया" मिश्रा बिना मुझे बोलने का मौका दिए बोलता ही चला गया
मैने प्रिया की तरफ देखा. वो गुस्से से मुझे घूर रही थी. मेरा झूठ पकड़ा गया था. वो समझ गयी थी के मैने उसे झूठ कहा था के मिश्रा आ रहा है.
मैं मिश्रा के साथ हो लिया और थोड़ी ही देर बाद हम दोनो फिर से बंगलो नो 13 के अंदर आ खड़े हुए. आखरी बार जब मैं इस घर में आया था तो ये घर था पर अब एक पोलीस इन्वेस्टिगेशन सीन. मिश्रा ने मुझे इशारे से कमरे का वो कोना दिखाया जहाँ मनचंदा की लाश मिली थी. देखकर ही मेरे जिस्म में एक अजीब सी ख़ौफ्फ की लेहायर दौड़ गयी.
अगले 2 घंटे तक मैं, मिश्रा और 2 कॉन्स्टेबल्स बंगलो की तलाशी लेते रहे इस उम्मीद में के हमें कुच्छ ऐसा मिल जाए जो इस बात की तरफ इशारा करे के मनचंदा कौन था पर हमें कामयाभी हासिल नही हुई. कोई लेटर, टेलिग्रॅम तो दूर की बात, हमें पूरे घर में कहीं कुच्छ ऐसा नही मिला जो मनचंदा ने लिखा हो. उसके ड्रॉयर में एक डाइयरी थी जो खाली थी. उसके पर्स से भी हमें किसी तरह का कोई पेपर नही मिला. मोबाइल वो रखता नही था इसलिए वहाँ से किसी का कोई फोन नंबर मिलने का ऑप्षन तो कभी था ही नही. उसके किसी कपड़े पर भी ऐसा कोई निशान नही था जिसे देखके ये अंदाज़ा लगाया जा सके के वो कपड़े कहाँ से खरीदे गये थे. वो आदमी तो जैसे खुद एक भूत था.
ये बंगलो एक लंबे अरसे से खाली पड़ा था. मकान मलिक कहीं और रहता था और कोई भूत बंगलो को किराए पर लेने को तैय्यार नही था. इसलिए जब मनचंदा ने घर किराए पर माँगा तो मकान मलिक ने बिना कुच्छ पुच्छे फ़ौरन हाँ कर दी. हमने उससे बात की तो पता चला के उसके पास भी मनचंदा के नाम की सिवा कोई और जानकारी नही थी. मनचंदा ने जब बंगलो लिया था तो 2 महीने का किराया अड्वान्स में दिया था और उसके बाद हर महीने किराया कॅश में ही दिया. कभी किसी किस्म का कोई चेक़ मनचंदा ने नही दिया था.
कमरे में रखा सारा फर्निचर नया था. उसपर लगे स्टिकर्स से हमने दुकान का नंबर हासिल किया और फोन मिलाया. पता चला के मनचंदा ने खुद सारा फर्निचर खरीदा था और कॅश में पे किया था. तो वहाँ भी कोई स्चेक या क्रेडिट कार्ड की उम्मीद ख़तम हो गयी. पूरे घर में 2 घंटे भटकने के बाद ना तो हमें मनचंदा के बारे में कुच्छ पता चला और ना ही घर में आने का मैं दरवाज़े के साइवा कोई और रास्ता मिला. तक हार कर हम दोनो वहीं पड़े एक सोफे पर बैठ गये.
"कौन था ये आदमी यार" मिश्रा बोला "नाक का दम बन गया साला. आज का पेपर देखा तूने. हर तरफ यही छपा हुआ है के भूत बंगलो में खून हुआ है"
मैने हाँ में सर हिलाया
"समझ नही आ रहा के क्या करूँ" मिश्रा बोला "कहाँ से पता लगाऊं के ये कम्बख़्त कौन था और यहाँ क्या करने आया था. मर्डर वेपन तक नही मिला है अब तक. मैने पिच्छले एक साल की रिपोर्ट्स देख डाली पर किसी मनचंदा के गायब होने की कोई रिपोर्ट नही है"
"और ना ही ये समझ आया के खून जिसने किया था वो घर से निकला कैसे" मैने आगे से एक बात और जोड़ दी.
"हां" मिश्रा ने हाँ में सर हिलाया "वो खूनी भी और वो 2 लोग भी जिन्हे तूने घर में देखा था"
"क्या लगता है?" मैने मिश्रा की और देखा "बदले के लिए मारा है किसी ने उसको?"
"लगता तो यही है. घर से कुच्छ भी गायब नही है इसलिए चोरी तो मान ही नही सकते. और जिस हिसाब से तू कह रहा था के खुद मनचंदा ने ये कहा था के कुच्छ लोग उसको नुकसान पहकूंचना चाहते हैं तो उससे तो यही लगता है के किसी ने पुरानी दुश्मनी के चलते मारा है. पर उस दुश्मनी का पता करने के लिए पहले ये तो पता लगा के ये आदमी था कौन"
"एक काम हो सकता है" मैने कहा
"क्या?" मिश्रा ने फुरण मेरी तरफ देखा
"पेपर्स में छप्वा दे उसके बारे में" मैने कहा तो मिश्रा ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगा
"मैं छप्वा दूँ? अबे आज के पेपर्स भरे पड़े हैं इस खून के बारे में" उसने मेरा मज़ाक उड़ाते हुए कहा
"हां पर सिर्फ़ खून हुआ है ये लिखा है पेपर्स में. तू ये छप्वा दे के पोलीस नही जानती के मरने वाला कौन है और अगर कोई इस आदमी को पहचानता है तो सामने आए" मैने कहा
"बात तो तेरी ठीक लग रही है पर यार जाने कितने लोग मरते हैं रोज़ारा हमारे देश में. किसी कोई कैसे पता चलेगा के ये आदमी उनका ही रिश्तेदार था?" वो बोला
"2 बातें. उसके चेहरे पर एक अजीब सा निशान था जैसे किसी ने चाकू मारा हो और दूसरा उसके हाथ की छ्होटी अंगुली आधी गायब थी. ये बात छप्वा दे. कोई ना कोई तो आ ही जाएगा अगर इसका कोई रिश्तेदार था तो" मैने कहा तो मिश्रा मुस्कुराने लगा
Re: Bhoot bangla-भूत बंगला
"दिमाग़ है तेरे पास. कल छप्वा देता हूँ ", वो उठते हुए बोला "तू अभी घर जाएगा या ऑफीस छ्चोड़ूं तुझे"
"ऑफीस छ्चोड़ दे" मैने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा "कुच्छ काम निपटाना है"
हम दोनो बंगलो से बाहर निकले और पोलीस जीप में मेरे ऑफीस की और चले. रास्ते में मेरे दिमाग़ में एक बात आई.
"यार मिश्रा एक बात बता. जो आदमी इतना छुप कर रह रहा हो जैसे के ये मनचंदा रह रहा था तो क्या वो अपने असली नाम से रहेगा? तुझे लगता है के मनचंदा उसका असली नाम था?"
मेरी बात सुनकर मिश्रा हाँ में सर हिलाने लगा
"ठीक कह रहा है तू. और इसी लिए शायद मुझे पोलीस रिपोर्ट्स में किसी मनचंदा के गायब होने की कोई रिपोर्ट नही मिली क्यूंकी शायद मनचंदा उसका असली नाम था ही नही." मिश्रा ने सोचते हुए जवाब दिया
वहाँ से मैं ऑफीस पहुँचा तो सबसे पहले प्रिया से सामना हुआ.
"झूठ क्यूँ बोला था?" उसने मुझे देखते ही सवाल दाग दिया
"क्या झूठ?" मैने अंजान बनते हुए कहा
"यही के वो आपका दोस्त मिश्रा आ रहा है" मेरे बैठते ही वो मेरे सामने आ खड़ी हुई
मैं जवाब नही दिया तो उसने फिर अपना सवाल दोहराया
"अरे पगली तू समझती क्यूँ नही. वजह थी मेरे पास झूठ बोलने की" मैने अपनी फाइल्स में देखने का बहाना करते हुए कहा
"वही वजह पुच्छना चाहती हूँ" वो अपनी बात पर आडी रही. मैने जवाब नही दिया
"ठीक है" उसने मेरे सामने पड़ा हुआ पेपर उठाया और जेब से पेन निकाला "अगर आपको मुझपर भरोसा नही और लगता है के आपको मुझसे झूठ बोलने की भी ज़रूरत है तो फिर मेरे यहाँ होने का कोई मतलब ही नही. मैं रिज़ाइन कर रही हूँ"
"हे भगवान" मैने अपना सर पकड़ लिया "तू इतनी ज़िद्दी क्यूँ है?"
"झूठ क्यूँ बोला?" उसने तो जैसे मेरा सवाल सुना ही नही
"अरे यार तू एक लड़की है और मैं एक लड़का. यूँ तू मेरे सामने कपड़े बदल रही थी तो मुझे थोड़ा अजीब सा लगा इसलिए मैने तुझे मना कर दिया. बस इतनी सी बात थी" मैने फाइनली जवाब दिया
"सामने कहाँ बदल रही थी. आपने तो दूसरी तरफ मुँह किया हुआ था" उसने नादानी से बोला
"एक ही बात है" मैं फिर फाइल्स की तरफ देखने लगा
"एक बात नही है" वो मेरे सामने बैठते हुए बोली "और आप मुझे कबसे एक लड़की समझने लगे. आप तो मुझे हमेशा कहते थे के मैं एक लड़के की तरह आपकी दोस्त हूँ और आपके बाकी दोस्तों में और मुझ में कोई फरक नही"
मुझे अब थोड़ा गुस्सा आने लगा था पर मैने जवाब नही दिया
"बताओ" वो अब भी अपनी ज़िद पर आडी हुई थी
"फरक है" मैने सामने रखी फाइल्स बंद करते हुए बोला और गुस्से से उसकी तरफ देखा "तू नही समझती पर फरक है"
"क्या फरक है?" उसने भी वैसे ही गुस्से से बोला
"प्रिया फराक ये है के मेरे उन बाकी दोस्तों के सीने पर 2 उभरी हुई छातिया नही हैं. जब वो कोई टाइट शर्ट पेहेन्ते हैं तो उनके निपल्स कपड़े के उपेर से नज़र नही आने लगते"
ये कहते ही मैने अपनी ज़ुबान काट ली. मैं जानता था के गुस्से में मैं थोड़ा ज़्यादा बोल गया था. प्रिया मेरी तरफ एकटूक देखे जा रही थी. मुझे लग रहा था के वो अब गुस्से में ऑफीस से निकल जाएगी और फिर कभी नही आएगी.
"सॉरी" मुझसे और कुच्छ कहते ना बना
पर जो हुआ वो मेरी उम्मीद के बिल्कुल उल्टा था. वो ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी.
"इतनी सी बात?" वो हस्ते हुए बोली
"ये इतनी सी बात नही है" मैने झेन्पते हुए कहा
"इतनी सी ही बात है. अरे यार दुनिया की हर लड़की के सीने पर ब्रेस्ट्स होते हैं. मेरे हैं तो कौन सी बड़ी बात है?" वो मेरे साथ बिल्कुल ऐसे बात कर रही थी जैसे 2 लड़के आपस में करते हैं.
उसके हस्ने से मैं थोड़ा नॉर्मल हुआ और मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखने लगा
"और अब मेरे ब्रेस्ट्स पर निपल्स हैं तो वो तो दिखेंगे ही. बाकी लड़कियों के भी दिखते होंगे शायद. मैने कभी ध्यान से देखा नही" वो अब भी हस रही थी
"नही दिखते" मैं भी अब नॉर्मल हो चुका था "क्यूंकी वो अंदर कुच्छ पेहेन्ति हैं"
"क्या?" उसने फ़ौरन पुचछा
"ब्रा और क्या" जब मैने देखा के वो बिल्कुल ही नॉर्मल होकर इस बारे में बात कर रही है तो मैं भी खुल गया
"ओह. अरे यार मैने कई बार कोशिश की पर मेरा दम सा घुटने लगता है ब्रा पहनकर. लगता है जैसे सीने पर किसी ने रस्सी बाँध दी हो इसलिए नही पहना" वो मुस्कुरा कर बोली
मैं भी जवाब में मुस्कुरा दिया. वो मेरे साथ ऐसे बात कर रही थी जैसे वो किसी लड़की से बात कर रही हो. उस वक़्त मुझे उसके चेहरे पर एक भोलापन सॉफ नज़र आ रहा था और दिखाई दे रहा था के वो मुझपर कितना विश्वास करती है
"एक मिनिट" अचानक वो बोली "आपको कैसे पता के मैने अंदर ब्रा नही पहेन रखी थी?"
मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नही था
प्रिया ने मुझे ज़ोर देकर कपड़ो के बारे में फिर से पुचछा तो मैने उसको बता दिया के वो कपड़े अजीब हैं और उसपर अच्छे नही लगेंगे. शाम को वो कपड़े वापिस देने गयी तो मुझे भी ज़बरदस्ती साथ ले लिया. ऑफीस बंद करके हम निकले और थोड़ी ही देर बाद एक ऐसी दुकान पर खड़े थे जहाँ लड़कियों के कपड़े और ज़रूरत की दूसरी चीज़ें मिलती थी. दुकान पर एक औरत खड़ी हुई थी.
"कल मैने ये कपड़े यहाँ से लिए थे" प्रिया दुकान पर खड़ी औरत से बोली "तब कोई और था यहाँ"
"मेरे हज़्बेंड थे" दुकान पर खड़ी हुई औरत बोली "कहिए"
"जी मैं ये कपड़े बदलने आई थी. कोई दूसरे मिल सकते हैं? फिटिंग सही नही आई" उसने अपने पर्स से बिल निकालकर उस औरत को दिखाया
"ज़रूर" उस औरत ने कहा "आप देख लीजिए कौन से लेने हैं"
आधे घंटे तक मैं प्रिया के साथ बैठा लड़कियों के कपड़े देखता रहा. ये पहली बार था के मैं एक लड़की के साथ शॉपिंग करने आया था और वो भी लड़कियों की चीज़ें. थोड़ी ही देर में मैं समझ गया के सब ये क्यूँ कहते हैं के लड़कियों के साथ शॉपिंग के लिए कभी नही जाना चाहिए. आधे घंटे माथा फोड़ने के बाद उसने मुश्किल से 3 ड्रेसस पसंद की. एक सलवार सूट, 2 टॉप्स, 1 जीन्स और एक फुल लेंग्थ स्कर्ट जिनके लिए मैने भी हाँ की थी.
"मैं ट्राइ कर सकती हूँ?" उसने दुकान पर खड़ी औरत से पुचछा "कल ट्राइ नही किए थे इसलिए शायद फिटिंग सही नही आई"
"हां क्यूँ नही" उस औरत ने कहा "वो पिछे उस दरवाज़े के पिछे स्टोर रूम है. आप वहाँ जाके ट्राइ कर सकती हैं पर देखने के लिए शीशा नही है"
"कोई बात नही. ये देखके बता देंगे" प्रिया ने मेरी तरफ इशारा किया. हम तीनो मुस्कुराने लगे.
वो कपड़े उठाकर स्टोर रूम की तरफ बढ़ गयी. मैं दुकान से निकल कर पास ही एक पॅनवाडी के पास पहुँचा और सिगेरेत्टे जलाकर वापिस दुकान में आया. दुकान में कोई नही था. तभी वो औरत भी चेंजिंग रूम से बाहर निकली
"आपकी वाइफ आपको अंदर बुला रही हैं" उसने मुझसे कहा तो मुझे जैसा झटका लगा
"मेरी वाइफ?" मैने हैरत से पुचछा
"हाँ वो अंदर कपड़े पहेनकर आपको दिखाना चाहती हैं. आप चले जाइए" उसने स्टोर रूम की तरफ इशारा किया तो मैं समझ गया के वो प्रिया की बात कर रही है. मैं स्टोर रूम में दाखिल हुआ. अंदर प्रिया एक सलवार सूट पहने खड़ी ही.
"मैं तेरा हज़्बेंड कब्से हो गया?" मैने अंदर घुसते ही पुचछा
"अरे यार और क्या कहती उसको. थोड़ा अजीब लगता ना के मैं उसे ये कहती के यहाँ मैं आपके सामने कपड़े ट्राइ कर रही हूँ इसलिए मैने कह दिया के आप मेरे हज़्बेंड हो"
उसका जवाब सुनकर मैं मुस्कुराए बिना नही रह सका. तभी स्टोर रूम के दरवाज़े पर नॉक हुआ. मैने दरवाज़ा खोला तो वो औरत वहाँ खड़ी थी.
"आप लोग अभी हैं ना थोड़ी देर?" उसने मुझसे पुचछा तो मैं हां में सर होला दिया
"मुझे ज़रा हमारी दूसरी दुकान तक जाना है. 15 मिनट में आ जाऊंगी. तब तक आप लोग कपड़े देख लीजिए." उसने कहा तो हम दोनो ने हां में सर हिला दिया और वो चली गयी और मैने स्टोर रूम का दरवाज़ा बंद कर दिया. दुकान का दरवाज़ा वो जाते हुए बाहर से बंद कर गयी जिससे हम लोग उसके पिछे कपड़े लेकर भाग ना सकें.
मैं प्रिया की तरफ पलटा और एक नज़र उसको देखा तो मुँह से सीटी निकल गयी. वो सच में उस सूट में काफ़ी खूबसूरत लग रही थी.
"अरे यार तू तो एकदम लड़की बन गयी" मैने कहा "अच्छी लग रही है"
"थॅंक यू" उसने जवाब दिया" ये ले लूं? फिटिंग भी ठीक है"
"हाँ ले ले" मैने कहा
उसके बाद मैं स्टोर रूम के बाहर चला गया ताकि वो दूसरे कपड़े पहेन सके. उसने आवाज़ दी तो मैं अंदर गया. अब वो एक टॉप और जीन्स पहने खड़ी थी. इन कपड़ो में मेरे सामने फिर से वही लड़की खड़ी थी जिसको मैने सुबह देखा था. बड़ी बड़ी चूचियाँ टॉप फाड़कर बाहर आने को तैय्यार थी.
"ये कैसा है?" उसने मुझसे पुचछा
मैं एक बार फिर उसकी चूचियो की तरफ देखने लगा जिनपर उसके निपल्स फिर से उभर आए थे. उसने जब देखा के मैं कहाँ देख रहा हूँ तो अपने हाथ आगे अपनी छातियो के सामने कर लिए
"इनके सिवा बताओ के कैसी लग रही हूँ"
"अच्छी लग रही है" मैने हस्ते हुए जवाब दिया
उसने वैसे ही मुझे दूसरा टॉप और स्कर्ट पहेनकर दिखाया. उसे यूँ देख कर मैं ये सोचे बिना ना रह सका के अगर वो सच में लड़कियों की तरह रहे तो काफ़ी खूबसूरत है. अपना वो बेढंगा सा लड़को वाला अंदाज़ छ्चोड़ दे तो शायद उसकी गली का हर लड़का उसी के घर के चक्कर काटे.
मैं बाहर खड़ा सोच ही रहा था के स्टोर रूम से प्रिया की आवाज़ आई. वो मुझे अंदर बुला रही थी. मैं दरवाज़ा खोलकर अंदर जैसे ही गया तो मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी.
वो अंदर सिर्फ़ स्कर्ट पहने मेरी तरफ अपनी पीठ किए खड़ी थी. स्कर्ट के उपेर उसने कुच्छ नही पहेन रखा था. सिर्फ़ एक ब्रा था जिसके हुक्स बंद नही थे और दोनो स्ट्रॅप्स पिछे उसकी कमर पर लटक रहे थे.
क्रमशः............................
"ऑफीस छ्चोड़ दे" मैने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा "कुच्छ काम निपटाना है"
हम दोनो बंगलो से बाहर निकले और पोलीस जीप में मेरे ऑफीस की और चले. रास्ते में मेरे दिमाग़ में एक बात आई.
"यार मिश्रा एक बात बता. जो आदमी इतना छुप कर रह रहा हो जैसे के ये मनचंदा रह रहा था तो क्या वो अपने असली नाम से रहेगा? तुझे लगता है के मनचंदा उसका असली नाम था?"
मेरी बात सुनकर मिश्रा हाँ में सर हिलाने लगा
"ठीक कह रहा है तू. और इसी लिए शायद मुझे पोलीस रिपोर्ट्स में किसी मनचंदा के गायब होने की कोई रिपोर्ट नही मिली क्यूंकी शायद मनचंदा उसका असली नाम था ही नही." मिश्रा ने सोचते हुए जवाब दिया
वहाँ से मैं ऑफीस पहुँचा तो सबसे पहले प्रिया से सामना हुआ.
"झूठ क्यूँ बोला था?" उसने मुझे देखते ही सवाल दाग दिया
"क्या झूठ?" मैने अंजान बनते हुए कहा
"यही के वो आपका दोस्त मिश्रा आ रहा है" मेरे बैठते ही वो मेरे सामने आ खड़ी हुई
मैं जवाब नही दिया तो उसने फिर अपना सवाल दोहराया
"अरे पगली तू समझती क्यूँ नही. वजह थी मेरे पास झूठ बोलने की" मैने अपनी फाइल्स में देखने का बहाना करते हुए कहा
"वही वजह पुच्छना चाहती हूँ" वो अपनी बात पर आडी रही. मैने जवाब नही दिया
"ठीक है" उसने मेरे सामने पड़ा हुआ पेपर उठाया और जेब से पेन निकाला "अगर आपको मुझपर भरोसा नही और लगता है के आपको मुझसे झूठ बोलने की भी ज़रूरत है तो फिर मेरे यहाँ होने का कोई मतलब ही नही. मैं रिज़ाइन कर रही हूँ"
"हे भगवान" मैने अपना सर पकड़ लिया "तू इतनी ज़िद्दी क्यूँ है?"
"झूठ क्यूँ बोला?" उसने तो जैसे मेरा सवाल सुना ही नही
"अरे यार तू एक लड़की है और मैं एक लड़का. यूँ तू मेरे सामने कपड़े बदल रही थी तो मुझे थोड़ा अजीब सा लगा इसलिए मैने तुझे मना कर दिया. बस इतनी सी बात थी" मैने फाइनली जवाब दिया
"सामने कहाँ बदल रही थी. आपने तो दूसरी तरफ मुँह किया हुआ था" उसने नादानी से बोला
"एक ही बात है" मैं फिर फाइल्स की तरफ देखने लगा
"एक बात नही है" वो मेरे सामने बैठते हुए बोली "और आप मुझे कबसे एक लड़की समझने लगे. आप तो मुझे हमेशा कहते थे के मैं एक लड़के की तरह आपकी दोस्त हूँ और आपके बाकी दोस्तों में और मुझ में कोई फरक नही"
मुझे अब थोड़ा गुस्सा आने लगा था पर मैने जवाब नही दिया
"बताओ" वो अब भी अपनी ज़िद पर आडी हुई थी
"फरक है" मैने सामने रखी फाइल्स बंद करते हुए बोला और गुस्से से उसकी तरफ देखा "तू नही समझती पर फरक है"
"क्या फरक है?" उसने भी वैसे ही गुस्से से बोला
"प्रिया फराक ये है के मेरे उन बाकी दोस्तों के सीने पर 2 उभरी हुई छातिया नही हैं. जब वो कोई टाइट शर्ट पेहेन्ते हैं तो उनके निपल्स कपड़े के उपेर से नज़र नही आने लगते"
ये कहते ही मैने अपनी ज़ुबान काट ली. मैं जानता था के गुस्से में मैं थोड़ा ज़्यादा बोल गया था. प्रिया मेरी तरफ एकटूक देखे जा रही थी. मुझे लग रहा था के वो अब गुस्से में ऑफीस से निकल जाएगी और फिर कभी नही आएगी.
"सॉरी" मुझसे और कुच्छ कहते ना बना
पर जो हुआ वो मेरी उम्मीद के बिल्कुल उल्टा था. वो ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी.
"इतनी सी बात?" वो हस्ते हुए बोली
"ये इतनी सी बात नही है" मैने झेन्पते हुए कहा
"इतनी सी ही बात है. अरे यार दुनिया की हर लड़की के सीने पर ब्रेस्ट्स होते हैं. मेरे हैं तो कौन सी बड़ी बात है?" वो मेरे साथ बिल्कुल ऐसे बात कर रही थी जैसे 2 लड़के आपस में करते हैं.
उसके हस्ने से मैं थोड़ा नॉर्मल हुआ और मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखने लगा
"और अब मेरे ब्रेस्ट्स पर निपल्स हैं तो वो तो दिखेंगे ही. बाकी लड़कियों के भी दिखते होंगे शायद. मैने कभी ध्यान से देखा नही" वो अब भी हस रही थी
"नही दिखते" मैं भी अब नॉर्मल हो चुका था "क्यूंकी वो अंदर कुच्छ पेहेन्ति हैं"
"क्या?" उसने फ़ौरन पुचछा
"ब्रा और क्या" जब मैने देखा के वो बिल्कुल ही नॉर्मल होकर इस बारे में बात कर रही है तो मैं भी खुल गया
"ओह. अरे यार मैने कई बार कोशिश की पर मेरा दम सा घुटने लगता है ब्रा पहनकर. लगता है जैसे सीने पर किसी ने रस्सी बाँध दी हो इसलिए नही पहना" वो मुस्कुरा कर बोली
मैं भी जवाब में मुस्कुरा दिया. वो मेरे साथ ऐसे बात कर रही थी जैसे वो किसी लड़की से बात कर रही हो. उस वक़्त मुझे उसके चेहरे पर एक भोलापन सॉफ नज़र आ रहा था और दिखाई दे रहा था के वो मुझपर कितना विश्वास करती है
"एक मिनिट" अचानक वो बोली "आपको कैसे पता के मैने अंदर ब्रा नही पहेन रखी थी?"
मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नही था
प्रिया ने मुझे ज़ोर देकर कपड़ो के बारे में फिर से पुचछा तो मैने उसको बता दिया के वो कपड़े अजीब हैं और उसपर अच्छे नही लगेंगे. शाम को वो कपड़े वापिस देने गयी तो मुझे भी ज़बरदस्ती साथ ले लिया. ऑफीस बंद करके हम निकले और थोड़ी ही देर बाद एक ऐसी दुकान पर खड़े थे जहाँ लड़कियों के कपड़े और ज़रूरत की दूसरी चीज़ें मिलती थी. दुकान पर एक औरत खड़ी हुई थी.
"कल मैने ये कपड़े यहाँ से लिए थे" प्रिया दुकान पर खड़ी औरत से बोली "तब कोई और था यहाँ"
"मेरे हज़्बेंड थे" दुकान पर खड़ी हुई औरत बोली "कहिए"
"जी मैं ये कपड़े बदलने आई थी. कोई दूसरे मिल सकते हैं? फिटिंग सही नही आई" उसने अपने पर्स से बिल निकालकर उस औरत को दिखाया
"ज़रूर" उस औरत ने कहा "आप देख लीजिए कौन से लेने हैं"
आधे घंटे तक मैं प्रिया के साथ बैठा लड़कियों के कपड़े देखता रहा. ये पहली बार था के मैं एक लड़की के साथ शॉपिंग करने आया था और वो भी लड़कियों की चीज़ें. थोड़ी ही देर में मैं समझ गया के सब ये क्यूँ कहते हैं के लड़कियों के साथ शॉपिंग के लिए कभी नही जाना चाहिए. आधे घंटे माथा फोड़ने के बाद उसने मुश्किल से 3 ड्रेसस पसंद की. एक सलवार सूट, 2 टॉप्स, 1 जीन्स और एक फुल लेंग्थ स्कर्ट जिनके लिए मैने भी हाँ की थी.
"मैं ट्राइ कर सकती हूँ?" उसने दुकान पर खड़ी औरत से पुचछा "कल ट्राइ नही किए थे इसलिए शायद फिटिंग सही नही आई"
"हां क्यूँ नही" उस औरत ने कहा "वो पिछे उस दरवाज़े के पिछे स्टोर रूम है. आप वहाँ जाके ट्राइ कर सकती हैं पर देखने के लिए शीशा नही है"
"कोई बात नही. ये देखके बता देंगे" प्रिया ने मेरी तरफ इशारा किया. हम तीनो मुस्कुराने लगे.
वो कपड़े उठाकर स्टोर रूम की तरफ बढ़ गयी. मैं दुकान से निकल कर पास ही एक पॅनवाडी के पास पहुँचा और सिगेरेत्टे जलाकर वापिस दुकान में आया. दुकान में कोई नही था. तभी वो औरत भी चेंजिंग रूम से बाहर निकली
"आपकी वाइफ आपको अंदर बुला रही हैं" उसने मुझसे कहा तो मुझे जैसा झटका लगा
"मेरी वाइफ?" मैने हैरत से पुचछा
"हाँ वो अंदर कपड़े पहेनकर आपको दिखाना चाहती हैं. आप चले जाइए" उसने स्टोर रूम की तरफ इशारा किया तो मैं समझ गया के वो प्रिया की बात कर रही है. मैं स्टोर रूम में दाखिल हुआ. अंदर प्रिया एक सलवार सूट पहने खड़ी ही.
"मैं तेरा हज़्बेंड कब्से हो गया?" मैने अंदर घुसते ही पुचछा
"अरे यार और क्या कहती उसको. थोड़ा अजीब लगता ना के मैं उसे ये कहती के यहाँ मैं आपके सामने कपड़े ट्राइ कर रही हूँ इसलिए मैने कह दिया के आप मेरे हज़्बेंड हो"
उसका जवाब सुनकर मैं मुस्कुराए बिना नही रह सका. तभी स्टोर रूम के दरवाज़े पर नॉक हुआ. मैने दरवाज़ा खोला तो वो औरत वहाँ खड़ी थी.
"आप लोग अभी हैं ना थोड़ी देर?" उसने मुझसे पुचछा तो मैं हां में सर होला दिया
"मुझे ज़रा हमारी दूसरी दुकान तक जाना है. 15 मिनट में आ जाऊंगी. तब तक आप लोग कपड़े देख लीजिए." उसने कहा तो हम दोनो ने हां में सर हिला दिया और वो चली गयी और मैने स्टोर रूम का दरवाज़ा बंद कर दिया. दुकान का दरवाज़ा वो जाते हुए बाहर से बंद कर गयी जिससे हम लोग उसके पिछे कपड़े लेकर भाग ना सकें.
मैं प्रिया की तरफ पलटा और एक नज़र उसको देखा तो मुँह से सीटी निकल गयी. वो सच में उस सूट में काफ़ी खूबसूरत लग रही थी.
"अरे यार तू तो एकदम लड़की बन गयी" मैने कहा "अच्छी लग रही है"
"थॅंक यू" उसने जवाब दिया" ये ले लूं? फिटिंग भी ठीक है"
"हाँ ले ले" मैने कहा
उसके बाद मैं स्टोर रूम के बाहर चला गया ताकि वो दूसरे कपड़े पहेन सके. उसने आवाज़ दी तो मैं अंदर गया. अब वो एक टॉप और जीन्स पहने खड़ी थी. इन कपड़ो में मेरे सामने फिर से वही लड़की खड़ी थी जिसको मैने सुबह देखा था. बड़ी बड़ी चूचियाँ टॉप फाड़कर बाहर आने को तैय्यार थी.
"ये कैसा है?" उसने मुझसे पुचछा
मैं एक बार फिर उसकी चूचियो की तरफ देखने लगा जिनपर उसके निपल्स फिर से उभर आए थे. उसने जब देखा के मैं कहाँ देख रहा हूँ तो अपने हाथ आगे अपनी छातियो के सामने कर लिए
"इनके सिवा बताओ के कैसी लग रही हूँ"
"अच्छी लग रही है" मैने हस्ते हुए जवाब दिया
उसने वैसे ही मुझे दूसरा टॉप और स्कर्ट पहेनकर दिखाया. उसे यूँ देख कर मैं ये सोचे बिना ना रह सका के अगर वो सच में लड़कियों की तरह रहे तो काफ़ी खूबसूरत है. अपना वो बेढंगा सा लड़को वाला अंदाज़ छ्चोड़ दे तो शायद उसकी गली का हर लड़का उसी के घर के चक्कर काटे.
मैं बाहर खड़ा सोच ही रहा था के स्टोर रूम से प्रिया की आवाज़ आई. वो मुझे अंदर बुला रही थी. मैं दरवाज़ा खोलकर अंदर जैसे ही गया तो मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी.
वो अंदर सिर्फ़ स्कर्ट पहने मेरी तरफ अपनी पीठ किए खड़ी थी. स्कर्ट के उपेर उसने कुच्छ नही पहेन रखा था. सिर्फ़ एक ब्रा था जिसके हुक्स बंद नही थे और दोनो स्ट्रॅप्स पिछे उसकी कमर पर लटक रहे थे.
क्रमशः............................