अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:34

अधूरा प्यार--2 एक होरर लव स्टोरी

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....

रात करीब 2 बजकर 17 मिनिट...... रोहन दरवाजे पर पैरों की आहट सुनकर चौंक गया.. उसकी उम्मीद को पूरी तरह पंख लगे भी ना थे की कमरे में रोशनी च्छा गयी.. हल्की सी नाराज़गी जताती हुई नीरू उसकी आँखों में आँखें डाले उसको घूर रही थी.. हौले हौले चलती हुई वो उसके पैरों के पास आकर उसके पलंग पर बैठ गयी..

"ये कौन है?" नीरू ने झुकते हुए धीरे से नितिन की और इशारा करते हुए पूचछा..

"मेरा दोस्त है.. मेरे भाई जैसा है.. क्यूँ?" रोहन ने भी उसी के अंदाज में जवाब दिया..

"इसको क्यूँ लेकर आए..? मैने अकेले आने को बोला था ना..?" नाराज़गी अब भी नीरू की नाक पर बैठी थी..

"कमाल करती हो? ऐसी ख़तरनाक जगह पर अकेले.. जान लेने का इरादा था क्या?" रोहन ने लेटे लेटे ही जवाब दिया...

"जान तो मैं तुम्हारी लूँगी ही.. एक बार समय आने दो" कहकर नीरू कातिल अदा से मुस्कुराने लगी.. उसकी इसी अदा का तो रोहन दीवाना था," चलो ठीक है.. तुम्हारी ये बात मान लेती हूँ.. इसको लेकर आ जाओ.. पर इसको दूर ही खड़ा कर देना.. मुझे तुमसे ज़रूरी बातें करनी हैं.. जाने कब से तुम्हारे लिए तड़प रही हूँ.. तुम्हे तो अहसास भी नही होगा, मेरी मोहब्बत का.."

"तुम्हारी यही बात मेरी समझ में नही आ रही.. कहती हो मुझसे प्यार करती हो.. पर आज तक कभी छूने की इजाज़त नही दी.. मैं भी तुम्हारे लिए पागल हो चला हूँ.. प्लीज़ एक बार.. एक बार मुझे तुम्हे छू कर महसूस कर लेने दो.. कितनी प्यारी हो तुम.. तुम्हारे लिए मैं यहाँ तक भी आ गया.. एक बार मेरे आगोश में आ जाओ ना.. प्लीज़!" रोहन उसके शरीर से उत्सर्जित हो रही यौवन बयार को अपने अंदर तक महसूस करने को तड़प उठा...

"मैं भी तो उतनी ही तड़प रही हूँ देव! तुम्हे क्या पता, मेरा एक एक पल कैसे बीत'ता है.. उस पल के लिए जब मैं और तुम 'हम' होंगे.. ये फ़ासले कितना तड़पते हैं, मुझसे ज़्यादा कौन समझेगा.. बस इंतज़ार करो... " नीरू की आँखों से उसके लिए बे-इंतहा ज़ज्बात झलक रहे थे...

"कितनी बार बताउ कि मैं रोहन हूँ.. अगर तुम किसी देव के धोखे में मेरे पिछे पड़ी हो तो माफी चाहता हूँ.. पर फिर भी यही कहूँगा कि अब मैं तुम्हारे बिना रह नही पाउन्गा.. तुम्हारे प्यार में जाने.... तुमने मुझे पागल सा कर दिया है.."

"दुनिया के लिए तुम चाहे कुच्छ भी हो.. पर मेरे लिए तो मेरे देव ही हो.. मुझे तुम्हारा यही नाम अच्च्छा लगता है.. मैं तो यही कहूँगी.." आँखों में गहरी प्यास और मादक अहसास लिए नीरू उसकी और टकटकी लगाकर देखती रही...

"तुम मुझे पूरी तरह पागल बना कर ही छ्चोड़ॉगी.. मुझ रोहन को तुम देव कहती हो और अपना नाम नीरू बता रही हो जबकि तुम्हारे पिताजी तुम्हे श्रुति कहते हैं.. मैं क्या समझू और क्या नही.." रोहन नाम के चक्कर से अभी तक भी निकल नही पाया था..

"वहाँ आओगे तो सब समझ आ जाएगा.. अब यहाँ मैं तुम्हे क्या बताउ?" नीरू ने बेबस नज़रों से उसको देखते हुए कहा..

"अजीब लड़की हो.. यहाँ मेरे सामने बैठी हो.. उस वक़्त नज़र उठा कर भी तुमने नही देखा.. और अब ये छ्होटी सी बात बताने के लिए मुझे वहाँ बुला रही हो.. इतनी ख़तरनाक और डरावनी जगह मैने आज तक नही देखी.. पता है.. ?" रोहन के चेहरे पर उस अजीबोगरीब जगह की डरावनी यादों की टीस छा गयी..

"क्या? तुम वहाँ गये थे? पर मैने तुम्हे 12 बजे के बाद आने को कहा था ना.. रुके क्यूँ नही वहाँ पर..." नीरू अधीर होते हुए बोली...

" कैसे रुकते..हम वहाँ गये तो हमें वहाँ एक बच्चा मिला.. इतना खौफनाक मंज़र था कि मेरी तो जान ही निकल गयी होती.. और तुम्हे पता भी है.. वहाँ भूत रहते हैं.. तुम्हारे पिताजी ने ही बताया था.." रोहन ने स्पष्ट किया...

"असमय गुजर चुके लोगों को भूत कहकर उनका मज़ाक ना बनाओ देव.. तुम्हे हम... उनकी पीडाओं का अहसास नही है.. हर पल किस वेदना और दर्द की भत्ति में तपते रहना पड़ता है.. ये तुम्हे क्या मालूम.. तुम तो आज़ाद हो.. कहीं भी आ जा सकते हो.. पर वो हर तरह से एक दायरे में बँधे हैं.. हरपल उसी दर्दनाक मंज़र को आँखों में लिए तड़प्ते रहते हैं.. जिस घड़ी जिंदगी ने बड़ी क्रूरता से उनके सिर से अपना हाथ हटा लिया.. वो हर पल इसी इंतज़ार में रहते हैं कि कब कोई रहनुमा आएगा और उनको वहाँ से, उस जहन्नुम से मुक्ति दिलाएगा.. आ जाओ ना देव.. सिर्फ़ एक बार आ जाओ.. मैं हर पल तुम्हारा इंतजार करती हूँ.. एक बार वहाँ आ जाओ मेरी जान.. मुझे जहन्नुम से निकल कर जन्नत में ले चलो.." नीरू बोलते बोलते भावुक होकर गिदगिडाने सी लगी..

"ऐसे क्यूँ कर रही हो.. मुझसे तुम्हारी ये बेचैनी देखी नही जाती.. पर ऐसा क्या है जो यहाँ नही बता सकती.. वहीं जाना क्यूँ ज़रूरी है नीरू..?"

"वहाँ जाना ज़रूरी नही है देव.. पर मुझे डर है.. मैने यहाँ बता दिया तो तुम वहाँ शायद कभी नही आओगे.." मायूस नीरू की आँखों से आँसू छलक उठे..

"इसका मतलब तुम्हे मेरे प्यार पर भरोसा नही है.. इसका मतलब कुच्छ ऐसा ज़रूर है जो तुम मुझसे छिपा रही हो.. जब तुम मुझ पर विश्वास नही करती तो मैं तुम पर क्यूँ करूँ..?" रोहन बात जान'ने को लालायित लग रहा था..

"तुम्हारे अंदर के देव पर मुझे पूरा विस्वास है.. पर बाहर के रोहन पर नही.. वक़्त जाने कितनी करवटें बदलता है.. इस दरमियाँ जाने तुम कितनी बार बदले होगे.. मैं इसीलिए डर रही हूँ.." नीरू अपना हाथ बढ़कर उसके चेहरे को छूने को हुई पर कुच्छ याद आते ही तुरंत वापस खीच लिया...

"देखो नीरू या श्रुति, तुम जो भी हो.. तुमने अपने प्यार में तो मुझे पागल कर ही दिया है.. अब असलियत में पागल होना नही चाहता.. पहेलियाँ मत बुझाओ.. पर इतना जान लो कि जब तक तुम मुझे सब कुच्छ सच सच नही बताती, मैं वहाँ वापस नही जाउन्गा.. हरगिज़ नही.." रोहन ने दो टुक जवाब दिया..

"ऐसा क्यूँ कह रहे हो देव.. क्या मैं यूँही तड़पति रहूंगी..? तुम मेरी बात समझते क्यूँ नही हो.. आ जाओ ना प्लीज़..." नीरू की हालत दयनीय हो चली थी..

"मैं तो सब समझ रहा हूँ.. अगर समझता नही तो यहाँ तक आता ही क्यूँ.. अच्च्छा चलो.. मैं वादा करता हूँ कि अगर तुम अभी सब कुच्छ बता दोगे तो तुम जहाँ कहोगी, वहाँ आने के लिए तैयार हूँ.."

कुच्छ देर सोचते रहने के बाद नीरू बोली," ये रोहन का वादा है या फिर देव का.."

रोहन झल्ला उठा..," क्या है यार.. देव.. रोहन.. दोनो का वादा रहा.. देव का भी.. और रोहन का भी.. अब तो बता दो..."

"सोच लो.. देव के वादे सूली पर जाकर भी नही टूट'ते.." नीरू को कुच्छ उम्मीद सी बँधी..

"हुम्म.. सोच लिया... वादा रहा.. देव का!" रोहन ने कहते हुए अपना हाथ बढ़ाया पर नीरू की तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना मिली....

नीरू ने लंबी साँस छ्चोड़ते हुए छत की और देखा.. और अचानक ही बोलना शुरू कर दिया..," वो बच्चा.. जिसकी तुम बात कर रहे हो.. मेरा छ्होटा भाई है..

"क्याआ?" रोहन नीरू की इस बात को पचा नही पाया और नींद में ही अंदर तक काँप गया.. हड़बड़ा कर लगभग चीखते हुए वह उठ बैठा.. चीख के साथ ही नितिन एक पल में ही उठ कर पलंग से खड़ा हो गया..," क्या हुआ?"

"ये.. ये लाइट क्यूँ बंद कर दी.. नीरू कहाँ गयी.." रोहन का सिर चकरा रहा था.. बंद आँखों में जहाँ उसको उजाला ही उजाला दिख रहा था.. आँखें खोलते ही.. अंधेरे के सिवा उसको कुच्छ नज़र ना आया.. वहाँ तो पहले से ही अंधेरा था.. उजाला तो सपने में नीरू साथ लेकर आई थी...

"नीरू, यहाँ? साले तू पागल हो गया है क्या? सपना देख रहा था या?" नितिन ने रोहन को कंधे से पकड़ कर हिला दिया...

रोहन ने जैसे तैसे खुद को संभाला," हां भाई.. सपना ही था.. सॉरी.. सो जा.."

"अब थोड़ी बहुत रात बची है.. उसमें तो चैन से सो लेने दे तू.. क्या हो गया है तुझे.. बता ना.. तू खुलकर क्यूँ नही बताता..?" नितिन ने उसके कंधे पर हाथ रख कर प्यार से पूचछा...

"कुच्छ नही यार, सो जा.. सुबह बात करेंगे..!" कहते हुए रोहन मुँह ढक कर लेट गया..

"देख.. कोई बात मन में नही रखनी चाहिए.. गाँठ बन जाती है.. और फिर मुझसे छिपा कर तुझे मिलेगा क्या? बाकी तेरी मर्ज़ी है.. सुबह का इंतजार करूँगा.." नितिन ने कहा और दूसरी और करवट लेकर सो गया...

रोहन की समझ में कुच्छ नही आ रहा था.. पिच्छले करीब 2 महीने से उसकी रातों की नींद और दिन का चैन हराम था.. कारण नीरू ही थी.. हर रात को वो उसके सपनो में आती और दिन भर वो उसके सपनो में खोया रहता.. जिंदगी अचानक कितनी बदल गयी थी उसकी.. हमेशा मस्त कलंदर की तरह जीने वाला रोहन शुरू शुरू में तो इन्न सपनो का आनंद लेता और रात को उसके पास आकर उसको पुकार रही इस हसीना के बारे में दिन भर सोच कर आनंदित होता रहता.. नितिन की बात सच ही थी.. नीरू के जितनी प्यारी लड़की उसने भी आज तक नही देखी थी.. पर जल्द ही ये आनंद बेचैनी में और फिर वो बेचैनी एक अंजाने से लगाव में बदल गयी.. आख़िर यही लड़की रोज उसके सपनो में क्यूँ आती है.. क्या रिश्ता है इस लड़की का उसके साथ.. लड़की का सिर्फ़ सपने में आना भर ही होता तो बात अलग थी.. पर वो तो उसको दोनो के प्यार की दुहाई देती थी.. अपने पास बुलाती थी.. सपने में उसकी आवाज़ यूँ लगती थी जैसे किसी गहरी खाई से बोल रही हो.. रुक रुक कर कही गयी उसकी बातें प्रतिध्वनित होकर बार बार उसके कानों में गूँजती रहती थी.. रात भर.. दिन भर...

अपने मस्त अंदाज का मलिक रोहन दोस्तों में उसके हँसी मज़ाक और लड़कियों को भाव ना देने के कारण हमेशा छाया रहता था.. पर अचानक ही वो गुम्सुम सा रहने लगा.. पूच्छने की कोशिश बहुतों ने की.. पर बताता भी तो क्या बताता रोहन.. अंत में जब उसकी बेचैनी और अपने आपको नीरू कहने वाली लड़की के प्रति उसका लगाव चरम को पार कर गया तो उसने एक बार उसके पास जाने की ठान ली.. पर नीरू की एक शर्त ने उसको नितिन का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया.. एक तो सिर्फ़ रात को ही मिल पाने की बेबसी और दूसरा उसके पास आने के लिए बताए गये रास्ते की जियोग्रफी..

नितिन उसके सबसे नज़दीकी दोस्तों में से एक था.. वो अग्यात जगह पर जाने, घूमने फिरने और बीहड़ और दूर दराज के इलाक़ों में जाकर वहाँ के लोगों की दिन चर्या जान'ने का शौकीन था.. इनफॅक्ट, अड्वेंचर उसकी लाइफ का एक हिस्सा था...

रोहन ने नितिन को एक कहानी बनाकर सुनाई.. उसको यकीन था अगर सपने वाली बात उसको बताएगा तो साथ देना तो दूर.. उल्टा दोस्तों मैं उसकी किरकिरी करने में भी कसर नही छ्चोड़ेगा.. उसने नितिन को बताया कि बहुत पहले एक लड़की से वो मिला था और अब उसको पता चला है कि वो लड़की उस'से बे-इंतहा प्यार करती है.. और उसको मिलने के लिए बुला रही है.. पहले पहल तो नितिन ने उसको इन्न खाम-खाँ के चक्करों से दूर रहने की हिदायत देकर सॉफ मना कर दिया.. पर जब उसको काई दीनो तक लगातार रोहन का चेहरा उतरा हुआ दिखाई दिया तो एक दिन उसने खुद ही रोहन को टोक दिया," कहाँ है वो लड़की.. चल मिला लाता हूँ.."

"यार.. उनका घर गाँव से दूर है.. काफ़ी आगे चलकर.. " रोहन इस बात को खा गया कि लड़की ने उसको बताया था कि उसको काफ़ी दूर पैदल चलना पड़ेगा....

"अच्च्छा.. फट'ती है तेरी.. इसीलिए मुझको बोला.. है ना.. नही तो तू मुझे बताता भी नही कि तू मजनू बन गया है आजकल..." नितिन ने मज़ाक किया...

"कुच्छ भी समझ ले यार.. पर मुझे उस'से एक बार मिलकर आना है...!"

"हूंम्म.. चल फिर कल ही चलते हैं..!" नितिन तैयार हो गया उसके साथ जाने को...

और वो कल 'आज रात' ही थी...

---------------------------------------

पर जो कुच्छ भी आज रात को उन्होने देखा.. उसने उसकी व्याकुलता कम करने की बजाय और बढ़ा दी.. खास तौर से तब, जब उसने सपनो में रोज आने वाली लड़की को साक्षात अपनी नज़रों के सामने देखा.. श्रुति के रूप में.. उस वक़्त तक तो टीले से वापस आते हुए वह यही सोच रहा था कि ये सब महज उसके दिमाग़ के फीतूर के अलावा कुच्छ नही था.. पर अब; अब तो वो कतयि ऐसा नही सोच सकता था.. उसके सपनो की रानी यथार्थ बनकर उस'से रूबरू हो चुकी थी.. भले ही उसका अंदाज बेरूख़ा रहा हो.. भले ही उसका नाम श्रुति रहा हो.. कुच्छ ना कुच्छ तो बात ज़रूर है.. वरना इसी गाँव की लड़की उसके सपने में क्यूँ आती...

पर अब.. आज रात के सपने को वो कैसे ले.. कहीं 'नीरू' सच में कोई भूत तो नही.. उसने टीले पर मिलने वाले बच्चे को 'अपना भाई बताया.. चक्कर क्या है.. और फिर भूत तो डराते हैं.. प्यार थोड़े ही करते हैं.. फिर भूत भी माने तो कैसे माने.. लड़की तो उसके सामने थी ही.. रोहन को लग रहा था जैसे वो भी उस लड़की के प्यार में बुरी तरह जकड़ा जा चुका हो.. वो फिर से उसको अपने सपने में लाना चाहता था.. अपने अनगिनत सवालों के जवाब लेने के लिए.. उस'से उसका संबंध क्या है.. ये जान'ने के लिए... इसी उधेड़बुन में वो कब खो गया और कब खुद को नीरू बताने वाली श्रुति फिर उसके सपने में आ गयी उसको पता ही नही चला...

"क्या हो गया था.. तुम चले क्यूँ गये थे, बीच में ही.." नीरू वहीं बैठी थी.. उसके पैरों के पास..

"मैं कहाँ गया था.. चली तो तुम गयी थी.. मेरे सपने से.." रोहन नींद में बड़बड़ाया...

"हां.. मगर सपना तो तुम्हारा ही था ना.. तुमने वो तोड़ दिया.. मुझे जाना पड़ा..!"

"तुम सपने में ही क्यूँ आती हो..? उठकर आ जाओ ना.. बराबर वाले कमरे में ही तो हो..." रोहन ने जवाब दिया...

नीरू ने यहीं पर उसको सब कुच्छ बताने का इरादा कर लिया था.. उसके देव ने वादा जो किया था.. इस जनम में उसका साथ देने का... " समझने की कोशिश करो देव.. मैं वो नही हूँ.. जो तुम समझ रहे हो.. वो तो श्रुति ही है जिसे तुम अपने सामने बैठी देख रहे हो.... मैं देव की प्रियदर्शिनी हूँ.. और इस जनम की तुम्हारी नीरू.."

रोहन किसी तरह अपने आप पर काबू पाए रहा.. उसको सब कुच्छ जान लेना था.. आज ही,"मतलब हमारा पिच्छले जनम का कोई संबंध है?"

"पिच्छले जनम का नही.. पिच्छले कयि जन्मो का.. प्रियादरिशिनी के हर जनम में मैने तुम्हारा इंतजार किया.. पर मैं तुम्हे इसी जनम में ढूँढ सकी.." नीरू ने जवाब दिया..

"पर तुम मुझे पहले भी तो ढूँढ सकती थी.. मतलब पिच्छले जन्मों में.." रोहन ने तर्क दिया...

"हां.. और मैने बहुत ढूँढा भी.. पर मेरी एक सीमा है... हम एक दायरे से बाहर नही निकल सकते.. 2 महीने पहले तुम इस गाँव के पास से गुज़रे.. और मैने तुम्हे पहचान लिया.. तब से मैं इस बात का इंतजार कर रही हूँ कि तुम कब आओगे मेरे पास.. मतलब नीरू के पास.. कब हमारा मिलन होगा.. इसी वजह से मैने इस घर में रहने वाली लड़की का रूप चुराया.. ताकि तुम्हे इसके आकर्षण में बाँध कर अपने पास ला सकूँ... क्यूंकी इस'से सुंदर कोई और लड़की मुझे आसपास दिखाई नही दी.." नीरू लगातार बोल रही थी कि रोहन ने उसको टोक दिया..

"पर अगर तुम आत्मा हो तो हम कैसे मिल सकते हैं.. बताओ.."

"नही मैं आत्मा नही हूँ.. मैं भी जनम ले चुकी हूँ.. कयि बार.. इस बार भी.. नीरू के रूप में.. सिर्फ़ उसका दिल उस लॉकेट में अटक कर वहीं महल में ही रह गया था जो देव ने प्रियदर्शनि को दिया था.. यानी तुमने मुझे.. प्यार की पहली और आख़िरी निशानी के रूप में.."

"ये लॉकेट का क्या चक्कर है?" रोहन ने उसको फिर टोका..

"वो एक लंबी कहानी है.. हमारे प्यार की.. हमारे मिलने की और मिलन पूरा होने से पहले ही हमारी जुदाई की.. कभी फ़ुर्सत में बताउन्गि.." नीरू अब उसका जवाब सुन'ने को उतावली थी...

रोहन को कुच्छ कुच्छ पल्ले पड़ रहा था.. पर बहुत कुच्छ नही," और अब असली नीरू को कौन ढूंढेगा? कहाँ कहाँ भटकू मैं.. और क्यूँ भटकू?"

"तुम्हे भटकने की ज़रूरत नही है.. हर जनम में वो मेरे संपर्क में रही है.. आख़िर मैं भी उसका हिस्सा हूँ.. अमृतसर से 50 किलोमीटर दूर बतला कस्बे में रहती है वो.. गवरमेंट. कॉलेज के आसपास घर है उसका...मुझे इस बात पर गर्व है कि हर जनम में वो अंजाने में ही सही पर कुँवारी ही रही.. तुम्हारे अलावा मैने किसी के बारे में सोचा तक नही देव.. तुम्हारे अलावा मुझे कोई छू भी नही पाया.." नीरू का गला भर आया..

"ओह.. और मैं..?" रोहन को उसकी अजीब मगर मीठी सी कहानी में मज़ा आने लगा था...

"तुम्हारा मुझे नही पता.. और इस जनम की तो तुम खुद ही जान'ते होगे..." नीरू ने उसको प्यार से देखते हुए कहा...

"तो क्या वो मुझे देखते ही पहचान लेगी..?" रोहन के मन में सवालों की झड़ी लगी हुई थी....

"बस यही एक समस्या है.. उसके लिए तुम्हे उसको वहीं लाना होगा.. महल में.." नीरू के चेहरे पर उदासी छा गयी..

"अब ये महल का क्या चक्कर है?" सवालों में से ही इतने सवाल निकल रहे थे कि पुराने सवाल रोहन भूलता जा रहा था...

"जहाँ तुम गये थे.. वहाँ एक पीपल का पेड़ है.. उसके नीचे ही हमारा महल है.. तुम्हे नीरू को वहीं लेकर आना होगा.."

"एक मिनिट.. एक मिनिट.. जो लड़की मुझे जानती नही, पहचानती नही.. उसको मैं कैसे ला सकता हूँ.. और वो भी ऐसी जगह पर जहाँ के बच्चे भी इतने ख़तरनाक हैं.." रोहन का सिर चकरा गया..

"इसका जवाब मेरे पास नही है.. पर अगर तुम उसके दिल में प्यार जगाओगे तो वो आ सकती है.. तुम्हारे साथ.. तुम्हे उसका प्यार भी जीतना होगा और भरोसा भी... ये काम तुम्हे अपने तरीके से करना होगा...."

" मुझे नही पता कि लड़कियों का दिल कैसे जीत'ते हैं.. इस मामले में एकदम अनाड़ी हूँ... तुम ही कुच्छ बताओ!" रोहन की समझ में कुच्छ नही आ रहा था..

"तुम जब देव थे, तब भी ऐसे ही थे.. शर्मीले और झेंपू.. पर तुम्हे कुच्छ ना कुच्छ तो करना ही होगा..." नीरू अपने देव की यादों में खोकर मुस्कुराने लगी....

" सॉरी नीरू.. ये सब मैं नही कर सकता.. किसी अंजान लड़की से मैने आज तक बात भी नही की है.. और तुम उसको यहाँ लाने को कह रही हो.. ये नही हो सकता.. और फिर उसको भी रात को ही लाना होगा.. है ना?"

"हाँ देव.. ये मेरी मजबूरी है.."

"शिट.. नेवेर पासिबल.. ऐसा कभी नही हो सकता.. और फिर तुम ही बताओ.. मैं तुम्हारी बातों पर क्यूँ विस्वास करूँ.. और विस्वास कर भी लूँ तो मैं इतनी बड़ी टेन्षन मोल क्यूँ लूँ..? ये जान'ने के बाद की तुम कोई भटकती हुई आत्मा हो; मेरे दिल में तुम्हारे लिए सहानुभूति के अलावा कुच्छ नही है.. पर फिर भी मैं माफी चाहता हूँ.. मेरी जिंदगी से निकल जाओ.. तुमने मेरी हँसती खेलती जिंदगी बर्बाद कर दी है.. मैं पागल सा हो गया हून.. तुम्हारी बात को सच मान भी लूँ तो मुझे अब कुच्छ याद नही है.. फिर मैं तो किसी भी लड़की से प्यार कर सकता हूँ.. शादी कर सकता हूँ.. सच बोलूं तो मैं सुबह श्रुति के पापा से अपने रिश्ते के बारे में बात करना चाहता हूँ.. मैने अपनी जिंदगी में इसी लड़की के सपने देखे हैं, जिसका चोला पहने अभी तुम मेरे सामने बैठी हो.. मुझे इस'से प्यार हो गया है.. तो क्यूँ ना मैं नीरू के आगे पिछे बेवजह चक्कर लगाने की बजाय श्रुति पर ही डोरे डाल लूँ..? प्लीज़.. मेरा पिच्छा छ्चोड़ दो.. आज के बाद मेरी जिंदगी में मत आना.. मैं तंग आ गया हूँ तुम्हारी बातें सुनकर... मैं और कुच्छ जान'ना नही चाहता.." रोहन ने सीधे और निर्दयी शब्दों में अपनी बात कह दी...

नीरू का चेहरा सफेद पड़ गया.. रोहन को इस बार पाकर भी खो देने के भय और गुस्से के वो काँपने सी लगी," देव.. तुम्हारे वादे का क्या होगा..?" नीरू के मुँह से कहते ही सिसकी सी निकली...

"भाड़ में गया वादा.. आइ डोंट केर.. मुझे मरना नही है अभी.. जीना है.. अपने लिए.. घर वालों के लिए..!"

नीरू खड़ी हो गयी," ठीक है देव.. मैं जा रही हूँ.. आइन्दा कभी नही आउन्गि.. मैने तो ये सोचकर तुम्हे कभी खुद को हाथ भी नही लगाने दिया कि मेरे द्वारा धारण की गयी देह किसी और की है.. उसको हाथ लगवाकर मैं तुम्हे दूषित करके खुद को पाप का भागी नही बनाना चाहती थी.. अगर तुम्हे यही पसंद है तो लो, नोच डालो अभी इसको, कर लो अपनी हवस पूरी..." कहते हुए नीरू ने गुस्से से अपना गले से पकड़ कर अपना कमीज़ खींच कर तार तार कर डाला.. श्रुति बनी नीरू अर्धनग्न अवस्था में नज़रें झुकाए सिसकियाँ ले रही थी..

रोहन की आँखें शर्म से झुक गयी.. उसको यूँ नज़रें झुकाए देख नीरू ने खड़े खड़े ही बोलना शुरू कर दिया," काश तुम्हे अहसास करवा सकती कि तुम क्या थे, काश तुम्हे देव और प्रियदर्शिनी की मोहब्बत से रूबरू करवा पाती.. तुम्हे देव के वादे की कीमत का अहसास होता तो तुम कभी ऐसा ना कहते, जान पर खेल जाते अपनी नीरू को अपने गले से लगाकर उसको कम से कम इस जनम में पूर्ण नारी बनाने के लिए.. बेशक उसके पास प्रियदर्शिनी का दिल नही.. फिर भी उसने देव को किया वादा हर जनम में निभाया है.. बेशक वो तुम्हारा इंतजार नही करती.. पर किसी का भी इंतजार नही करती वो.. इस जनम में भी ऐसे ही जाएगी.. और मेरा क्या है? काश मुझे तुम्हारे दिए गये लॉकेट से भी उतनी ही मोहब्बत ना होती जितनी कि तुमसे है.. तो मेरी आत्मा मेरे दिल को भी साथ लेकर निकल जाती.. यूँ ना तड़प्ता रहना पड़ता मुझे.. जनम जनम तुम्हारे आने के इंतज़ार में... " नीरू ने भरभराते गले से कहा और चुपचाप सिसकियाँ लेती उसके सपने से गायब हो गयी.....

raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:35

अधूरा प्यार--3 एक होरर लव स्टोरी

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा दोस्तो इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....

अगली सुबह बुड्ढे ने आकर रोहन और नितिन को उठाया.. रोहन के सिर में दर्द था.. रात के सपने की बातें उसके दिमाग़ में अब हथोदे की तरह बज रही थी..

"क्या बात है? ठीक तो है ना?" नितिन ने उसको इस तरह सिर पकड़ कर बैठे देखा तो पूच्छ लिया..

"नही भाई.. सब ठीक है.. बस ऐसे ही सिर में दर्द हो रहा है.." रोहन ने नितिन की और देखते हुए कहा..

"तो अब चलें या तेरी नीरू से मिलने की तमन्ना है.." बुड्ढे के वापस जाते ही नितिन ने रोहन कोछेड़ा...

"उसका नाम भी मत ले यार मेरे सामने.." रोहन फट पड़ा...

"अरे मैं तुझे फोन करके टीले पर बुलाने वाली लड़की की बात नही कर रहा.. मैं इसकी बात कर रहा हूँ; श्रुति की.. मिली तो यही थी ना तुमसे.. काफ़ी पहले.. तू कह रहा था..." नितिन ने उसको खंगालना शुरू किया...

"अभी कुच्छ मत बोल यार.. प्लीज़.. मेरे सिर में दर्द है.." रोहन अब भी अपना सिर पकड़े बैठा था...

"चल छ्चोड़.. तू टेन्षन क्यूँ लेता है.. अभी निकलते ही हैं बस यहाँ से.." रोहन ने उस वक़्त बात को टाल दिया..

"मैं फ्रेश होकर आता हूँ यार.. टाय्लेट किधर है.. कुच्छ आइडिया है..?" रोहन खड़ा होते हुए बोला...

"बाहर निकल कर दाई तरफ सीधा चला जा.."

"थॅंक्स.." कहकर जैसे ही रोहन बाहर निकलने को हुआ, उनके लिए चाय बनाकर ला रही श्रुति उस'से टकराते टकराते बची..,"ओह सॉरी..!" रोहन ठिठक कर खड़ा हो गया..

श्रुति उसके सामने सिर झुका कर खड़ी हो गयी.. क्या गजब की मिठास थी उसके चेहरे पर.. सुंदरता का प्रतीक कहें तो कोई अतिशयोक्ति ना होगी.. मारे लज्जा के उसने अभी तक अपनी आँखें उठाई ही ना थी उपेर.. एक बार भी उनसे आँखें चार नही की... काफ़ी देर तक जब रोहन उसको ठगा सा खड़ा देखता रहा तो उसको बोलना ही पड़ा," जी.. चाय.."

"श.. अंदर रख दो.. मैं आता हूँ अभी.. थॅंक्स!" कहकर रोहन उसको रास्ता देकर आगे निकल गया..

श्रुति चाय लेकर अंदर गयी और टेबल नितिन की और सरका कर चाय उस पर रख दी.. मुड़कर जैसे ही वा बाहर जाने के लिए पलटी.. नितिन ने उसको टोक दिया," क्या नाम है तुम्हारा?"

श्रुति के कदम वहीं ठिठक गये... शर्मीली थी पर पागल नही थी.. उसके बापू ने कितनी ही बार उसका नाम लिया उनके सामने.. वो समझ गयी.. लाइन मारने की फिराक में है... वह दो पल रुकी और फिर से आगे बढ़ने लगी..

"नीरू.. ये भी तुम्हारा ही नाम है ना..!" नितिन ने उसके बढ़ते कदमों पर फिर से विराम लगा दिया..

"जी.. जी नही.." श्रुति ने जवाब दिया..

"रोहन तुम्हारे लिए ही यहाँ आया है.. कोई तुम्हारा नाम लेकर उसको यहाँ बुला रही थी.. तुम मिले हो ना पहले.. वो ... तुम दोनो प्यार भी तो करते हो.." नितिन को जितना पता था.. उतना बोल दिया...

श्रुति को नितिन की बातें समझ में नही आई थी.. वह पलट कर कुच्छ बोलना चाहती थी.. पर उसकी हिम्मत ना हुई.. बिना पलटे, बिना रुके वा बाहर निकल गयी...

"अजीब लड़की है.." नितिन बड़बड़ाया... और न्यूसपेपर उठाकर पढ़ने लगा... श्रुति ने नितिन की आख़िर में कही गयी बातों को सुन लिया...

कुच्छ देर बाद रोहन वापस आया तो बुड्ढ़ा वहीं बैठा था... रोहन आते ही ठंडी हो चुकी चाय उठाने लगा तो बुड्ढे ने उसको रोक दिया," रहने दो बेटा.. ठंडी हो गयी होगी.. श्रुति कह रही थी वो और बनाकर ला रही है..

"ओह अंकल जी.. क्या ज़रूरत थी परेशान होने की..." रोहन ने अपनी बात ख़तम भी नही की थी श्रुति वहाँ हाजिर हो गयी.. ट्रे में एक कप चाय लेकर..

नितिन ने आँखों ही आँखों में रोहन की और इशारा किया.. मानो कह रहा हो.. "क्या बात है.. तुम पर तो बड़ी मेहरबान है.."

इस बार श्रुति सीधी आकर रोहन के सामने खड़ी हो गयी और ट्रे उसकी और बढ़ा दी... रोहन ने चेहरा उठाकर उसकी नज़रों में झाँका.. इस बार आसचर्यजनक रूप से वो उसकी ही और देख रही थी.. आँखों में आँखें डाले.. रोहन उसकी आँखों में देखते ही सम्मोहित सा हो गया.. अपनी आँखों में ही जहाँ भर की खुशियाँ समेटे वा उसकी और टकटकी लगाए खड़ी रही.. जब काफ़ी देर तक रोहन ने ट्रे नही पकड़ी तो श्रुति को बोलना ही पड़ा," चाय लीजिए...!"

"श हां.. थॅंक्स!" रोहन झेंप सा गया.. श्रुति के बापू वहाँ नही बैठे होते तो नितिन कोई ना कोई कॉमेंट ज़रूर करता.. उनके आँखे चार करने के अंदाज पर..

"अच्च्छा अंकल जी.. हम अभी निकलेंगे... बता सकते हैं कि पंक्चर लगाने वाला कहाँ मिल सकता है...?"

"क्या जल्दी है बेटा.. खाना वाना खाकर निकल जाते.." बुड्ढे ने अतिथिधर्म के नाते बात कही..

"नही अंकल जी.. पहले ही आप.. वैसे भी हम लेट हो रहे हैं.. पंक्चर भी लगवाना है.. जाने कहाँ मिलेगा... हमें आगया दीजिए अब.."

"ठीक है बेटा.. जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.. पंक्चर की एक दुकान अगले गाँव में है.." बुड्ढे ने बताया ही था कि बाहर से श्रुति की आवाज़ आई," बापू.. एक बार आना!"

" एक मिनिट.." बुड्ढ़ा कहकर बाहर निकल गया... रोहन के कप रखते ही वो दोनो भी यूँही बाहर निकल कर गाड़ी के पास आ गये..

"नितिनन्न.. ये कैसे हुआ? तूने ढंग से देखा था ना रात को..." रोहन उच्छल पड़ा..

"क्या हुआ?"

"हवा तो देख टाइयर्स की..." रोहन जैसेचिल्ला सा रहा था...

"ओह माइ गॉड.. कमाल है.. हां मैने मोबाइल की लाइट जला कर देखा था.. तब तो किसी टाइयर में हवा नही थी.. हद हो गयी यार.. यहाँ भी?"

"क्या हुआ बेटा..?" रोहन की चीख सी सुनकर बुड्ढ़ा लगभग भागता हुआ बाहर आया..

"अंकल जी.. ये.. हवा.. रात को तो बिल्कुल गायब थी.. अब कहाँ से आ गयी...? रोहन ने टाइयर्स की और इशारा करते हुए कहा...

बुड्ढे के चेहरे पर शिकन तक नही आई," हम ऐसे चमत्कारों के आदि हो चुके हैं बेटा.. आज रात ही... श्रुति सुबह उठी तो उसका कमीज़ गले से फटा हुआ था.. नीचे तक.. बुरा मत मान'ना.. पर अगर कमरे की कुण्डी बंद ना होती तो मैं तुम लोगों के बारे में भी जाने क्या क्या सोचता... पर यहाँ कुच्छ भी हो सकता है.. "

नितिन ने आसचर्या से एक बार फिर रोहन की और देखा.. वो रात को सपने में आई नीरू के बारे में सोच रहा था.. सुन्न सा खड़ा खड़ा...

"चल ठीक है अंकल जी.. अब हम निकलें..." नितिन सब कुच्छ भूल कर जाने की तैयारी करने लगा...

"शहर की और ही जाओगे ना बेटा.." बुड्ढे ने विनम्रता से सवाल किया...

"हां.. शहर से होकर ही गुजरेंगे... क्यूँ?" नितिन ने जवाब देते हुए सवाल किया..

"नही.. कुच्छ खास बात तो नही थी.. पर वो.. श्रुति को भी शहर ही जाना है.. कॉलेज में.. अगर तुम ज़्यादा लेट ना हो रहे होते तो वो भी साथ ही चली जाती.. बस के इंतजार में बहुत टाइम खराब हो जाता है.. वो कह रही थी..." बुड्ढे ने कहा..

नितिन मन ही मन उच्छल पड़ा... खुशी से.. पर खुशी को मन में दबाकर रखते हुए बोला," ये भी कोई कहने की बात है.. वैसे हमें कोई जल्दी भी नही है.. अब तो पंक्चर भी नही लगवाना.. जितनी देर कहें हम रुकने को तैयार हैं.. "

"अच्च्छा बेटा!.. वैसे तो उसका कॉलेज अभी 2-3 घंटे बाद है.. पर मैं उसको कह देता हूँ.. वह जल्दी से तैयार हो जाएगी..." बुड्ढ़ा खुश होते हुए बोला..

"नही अंकल जी.. कोई जल्दी नही है.. हम तब तक एक काम कर आते हैं.. घंटे भर में आ जाएँगे.. तब तक वो भी तैयार हो लेंगी..." नितिन का मन सातवें आसमान पर था...

"ठीक है बेटा.. जैसी तुम्हारी इच्च्छा.. मैं श्रुति को बोल देता हूँ...." बुड्ढ़ा बड़ा ही खुश लग रहा था....

"हम बस घंटे भर में आते हैं अंकल जी..." नितिन कहते हुए गाड़ी में बैठ गया.. रोहन भी उसके साथ जा बैठा.. पर उसकी समझ में नही आ रहा था की ये नितिन आख़िर जा कहाँ रहा है... नितिन ने बुड्ढे के अंदर जाते ही गाड़ी स्टार्ट करके घुमा दी," क्यूँ बे.. अब तो खुश हो जा.. तेरे मन की हो गयी.. जी भर कर बात कर लेना.. मुझसे तो बात की नही ढंग से.." कहकर नितिन ने बत्तीसी निकाल दी..

"पर अभी तुम वापस कहाँ जा रहे हो?" रोहन ने पूचछा...

"पुराने टीले पर.. देखें तो सही आख़िर क्या ड्रामा है वहाँ.." नितिन ने गाड़ी की स्पीड तेज कर दी..

"तू.. पागल हो गया है क्या..? मुझे नही जाना वहाँ..." रोहन लगभग उच्छलते हुए बोला...

"तुझे लगता है.. कोई दम है बुड्ढे की बातों में.. मुझे तो बहुत बड़ा नाटक लग रहा है.. और मुझे लगता है कि बुद्धा भी इस नाटक में शामिल है.. देखा.. उसको गाड़ी में अपने आप हवा भरी जाने पर भी आस्चर्य नही हुआ.. उल्टा कहानी बनाने लगा.. बेटी का कमीज़ फट गया रात को.. हुन्ह.. और अब देख.. कैसे अपनी बेटी को हम जवान मुस्टांडों के साथ भेज रहा है.. भला इतना भी नादान है क्या कोई आज की दुनिया में... मुझे लगता है कि श्रुति ही नीरू बनकर तुझे फोने करती होगी.. कुच्छ ना कुच्छ चक्कर तो ज़रूर है प्यारे.. कहीं ये तेरी करोड़ों की संपत्ति हथियाने की तो नही सोच रहे.. तेरा उल्लू बनाकर..." नितिन बोलता ही जाता अगर रोहन उसको बीच में ही ना टोकता..

" चुप हो जा यार.. ऐसा कुच्छ नही है.. ये सब महज इत्तिफ़ाक़ है.. तू गाड़ी वापस मोड़ ले..." रोहन झल्लाया...

"गाड़ी तो अब खूनी तालाब पर ही जाकर रुकेगी बेटा.. मुझे वो पीपल का पेड़ देख कर आना है.. और उस बच्चे को भी ढूँढना है.. तुझे उतरना है तो उतर जा.. रोकू क्या?"

रोहन कुच्छ नही बोला.. कुच्छ सोचता हुआ गाड़ी के बाहर देखने लगा....

"लेट नही हो जाएँगे क्या? अब पैदल चलना पड़ेगा..." रोहन ने आगे रास्ते पर गहरा गड्ढा सा देखते हुए कहा..

"यहाँ से गाड़ी को रास्ते से नीचे उतार कर ट्राइ करता हूँ.. उसके बाद ज़्यादा दिक्कत नही आएगी... शायद निकल जाए... चलो यहाँ से तो पार हुए... चल तू बता अब.. क्या चक्कर है तेरा श्रुति के साथ.. अब तो मुझे लग रहा है कि आज तू कुँवारा नही रहेगा..तुझे क्या लगता है?" वो गाड़ी समेत धीरे धीरे चलते हुए बढ़ते जा रहे थे..

"कुच्छ नही लगता भाई.. मेरी समझ में तो कुच्छ नही आ रहा.. अब मैं तुझे कैसे बताउ?" रोहन ने उसकी और देखते हुए कहा...

"क्यूँ? मुझे नही बताएगा तो किसको बताएगा.. साले, दोस्त हूँ मैं तेरा... भाई हूँ..." नितिन ने उसपर बताने के लिए ज़ोर डाला..," अगर आज तूने सब कुच्छ नही बताया तो समझ ले.. फिर तेरा मेरा मामला यहीं ख़तम है..."

"तो ये तालाब है वो.. इसमें तो अच्च्छा ख़ासा सॉफ सुथरा पानी है... रात को लाल कैसे हो जाता होगा.." नितिन तालाब को देखते ही रोहन से कुच्छ भी पूच्छना भूल गाड़ी रोक कर वहीं उतर गया.. रोहन भी साथ ही नीचे आ गया..," चल ना यार.. वापस चलते हैं.."

"अबे क्यूँ फट रही है.. ताउ की बात मान भी लें तो दिन में तो यहाँ कुच्छ नही होता.. चल आजा.." कहकर नितिन एक रास्ता देख दाई और बढ़ चला..

"वो बात नही है यार.. पर मेरा मन नही है.. आगे चलने का.. मूड ऑफ है.." रोहन उसके पिछे पिछे चलता रहा...

"कमाल है यार.. अब तो कीचड़ नही है.. लगता है हम दूसरे रास्ते से आए हैं आज.."

रोहन कुच्छ नही बोला.. उसके दिमाग़ में नीरू की बातें कौंध रही थी.. अगर सपने में कुच्छ सच्चाई है तो वो उसको देख रही होगी ज़रूर.. कम से कम उसको पता तो चल ही गया होगा की मैं आया हूँ.. सोच कर ही रोहन चौकन्ना हो गया...

चलते हुए वो तालाब के पार जाकर उसी जगह खड़े हो गये जहाँ कल रात वो उस बच्चे से मिले थे... सूनापन वहाँ अब भी वातावरण में मौजूद था पर वो सूनापन अब भयावह नही था.. इसके उलट अजीब सी शांति वहाँ पसरी हुई थी.. इंसानो से रहित, हल्की हल्की बह रही हवा माहौल को और भी चित्ताकर्षक बना रही थी... ऐसा लगता था की यहाँ पहले कोई गाँव बस्ता होगा.. पर अब वहाँ कुच्छ नही था.. सिवाय पुरानी ईंटों की गलियों, टूटी फूटी आधी गिरी हुई दीवारों और एकाध आवारा जानवरों के...

"कहाँ मिल सकता है वो बच्चा.. साले ने रात को खूब उल्लू बनाया.. सच में डर गया था मैं.." नितिन एक जगह जाकर खड़ा हो गया...

"मैं भी.." रोहन के मुँह से निकला...

"मुझे लगता है वो किसी घूमंतू जाती का रहा होगा.. ये लोग ऐसी ही जगहों पर जाकर रहते हैं..." नितिन बच्चे के बारे में आइडिया लगाने लगा...

"तुझे वो आदिवासी लगता है.. कितना प्यारा था दिखने में.. क्या पता वो भी कोई आत्मा ही हो " रोहन धीरे धीरे उसको लाइन पर लाना चाहता था.. ताकि जब वो उसकी कहानी सुने तो हँसे नही...

"अब तू भी शुरू हो गया ताउ की तरह... और मुझे जेनेटिक्स मत सीखा.. आदिवासी क्या खूबसूरत नही हो सकते.. क्या पता किसी देसी आदमी का टांका फिट बैठ गया हो किसी आदिवासी औरत के साथ.. होता है यार... पर अब कहाँ गये वो..?" नितिन चारों और घूम घूम कर कुच्छ तलाश कर रहा था...

"कौन?" रोहन ने पूचछा..

"आदिवासी यार.. और कौन मिलेगा यहाँ.. अर्रे देख.. वही पीपल का पेड़.. जिसके बारे में ताउ बात कर रहा था.. आ.." नितिन उसकी और बढ़ चला...

"रहने भी दे अब.. चल वापस चल.. लेट हो रहे हैं..." रोहन वहीं खड़ा खड़ा बोला.. मन ही मन नीरू की याद और उसकी बताई गयी वो जगह रोहन को अजीब सा अहसास दे रही थी.. उसका मन नही कर रहा था.. एक पल भी वहाँ खड़ा रहने को..

"अबे आ ना.. 2 मिनिट में कुच्छ नही होता.. " नितिन ने वापस आकर रोहन का हाथ पकड़ कर अपने साथ खींच लिया..," वैसे भी देरी किस बात की.. उसको आज कॉलेज थोड़े ही जाना है.. तेरे साथ चौन्च भिड़ाएगी आज तो.. प्यार भरी बतियां करेगी.. सच में बहुत प्यारी है.. अगर इनकी तरफ से कोई साजिस ना हुई तो तू बेशक इस'से शादी कर लेना.. और नही तो होली पर तो.." कहकर नितिन खिलखिला कर हंस पड़ा...

"मुझे नही जाना यार आगे.. तुझे जाना है तो जा.." रोहन अपना हाथ छुड़ा कर वहीं खड़ा हो गया... नीरू की बातें उसके दिमाग़ में अब हथोदे की तरह बजने लगी थी.. उसका सिर भारी सा होने लगा...," मैं यहीं रुक जाता हूँ.."

"साले डरपोक.. मुझे नही पता था तेरी भी... चल तू यहीं रुक.. मैं अभी आया देखूं तो सही कैसा पेड़ है और कितने वॉट का बल्ब टंगा है उस पर.. जो सारी रात उस पर रोशनी रहती है..." कहते हुए नितिन उसको वहीं छ्चोड़कर आगे बढ़ गया...

रोहन अब अकेला रह गया था.. पर जाने क्यूँ उसको हवा की साय साय में से छन छन कर आ रही कुच्छ अजीब सी हुलचल सुनाई दे रही थी.. वो सच में ही मान'ने लगा था की कुच्छ ना कुच्छ तो ज़रूर गड़बड़ है उसकी लाइफ में...नीरू की रात को कही गयी बातें रह रह कर उसके दिमाग़ में गूँज रही थी.. बेशक रोहन को वहाँ डर नही लग रहा था.. पर दिमाग़ में लगातार अजीबोगरीब तरीके से रात की यादों का भंवर उसके दिलो दिमाग़ को शिथिल सा कर रहा था...

अचानक रोहन को अहसास हुआ कि उसको पिछे से किसी ने छ्छू लिया है.. घबराकर उसने पिछे पलट कर देखा.. पर वहाँ कुच्छ नही था.. कुच्छ भी नही..," शिट.. ये मुझे क्या हो गया है...?" मन ही मन रोहन बड़बड़ाया.. और वापस मूड कर नितिन को देखने लगा.. नितिन पेड़ के पास ही खड़ा था...

तभी छ्होटी सी दीवार पर रखा पत्थर वहाँ से लुढ़क कर नीचे गिर गया.. इत्तिफाक से रोहन उधर ही देख रहा था.. अपने आप ही रोहन की धड़कने बढ़ गयी.. धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए उसने दीवार के दूसरी तरफ झाँका.. पर वहाँ कुच्छ नही था...


raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:36

सब कुच्छ अजीब था.. पर रोहन को अब वो सब अजीब नही बुल्की एक इशारा लग रहा था.. नीरू की तरफ से, उसके वहाँ पर होने का...

"तुम यहीं हो क्या?" रोहन ने धीरे से कहा... पर उसको कोई जवाब नही मिला...

"नीरू... नीरू.. अगर यहाँ हो तो जवाब दो..." रोहन ने फिर पुकार कर देखा.. पर कोई होता तो जवाब मिलता ना...

तभी उसको नितिन अपनी और आता दिखाई दिया.. रोहन चुप हो गया और उसकी ही और देखने लगा...

"मुझे विस्वास नही था तुम यहाँ आओगे.." नितिन आकर उसके पास खड़ा हो गया..

"हाँ.. मैं आना नही चाहता था.. पर तू ही ले आया ज़बरदस्ती.. चल अब.." रोहन ने घूमते हुए जवाब दिया और चलने लगा...

"यानी तुम मेरे लिए यहाँ नही आए..!" नितिन वहीं खड़ा हो गया..

"अब चल यार.. तेरे लिए ही तो आया हूँ.. वरना तू मुँह फूला लेता.. और मुझे अगली बार काम पड़ता तो नखरे दिखाता.. चल अब.." रोहन वापस आकर उसके पास खड़ा हो गया...

"पर.. क्या तुमने सोचा नही की मेरा क्या होगा..." नितिन अपनी जगह से हिला नही.. वहीं खड़ा खड़ा बोलता रहा...

"क्या अनाप शनाप बक रहा है.. अब चल भी..." रोहन झल्ला उठा.. उसको वहाँ से निकलने की जल्दी थी...

"पर तुम समझने की कोशिश क्यूँ नही करते.. देव.." नितिन के मुँह से 'देव' निकलते ही रोहन उच्छल पड़ा..

"व्हत.. क्या बोला तू..?"

"मेरा क्या होगा देव.. तुम्हारे वादे का क्या होगा.. बोलो"

"श माइ गॉड.. नीरू.." रोहन के आस्चर्य का ठिकाना ना था..

"हाँ देव.. मैं अब भी तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ.. प्लीज़.. नीरू को ले आओ यहाँ.. मुझे मुक्ति दे दो.. फिर जो मन में आए करना.. मैं कब से तुम्हारे इंतजार में तड़प रही थी.. कम से कम...... मुझे .....यहाँ .....से .....निकाल तो दो...." कहते ही नितिन धदाम से पीठ के बल गिर पड़ा," देव.. मुझे वापस ले चलो.. पीपल के पास.."

"नितिन.. क्या हो गया तुम्हे..?" रोहन ने घुटनो के बल बैठ कर उसका सिर अपने हाथों में उठा लिया.. सब कुच्छ पलट'ता दिखाई दिया उसको.. धरती घूमती सी दिखाई देने लगी..

"मुझे.. वापस ले चलो देव.. धूप में मुझे... इन्फेक्षन होता है.. उसका जहर तुम्हारे दोस्त की रगों.... में फैलना शुरू... हो गया है... मुझे जल्दी से.. वहीं ले चलो.. मैं वापस.... चली जाउन्गि..." नितिन अटक अटक कर बोल रहा था.. उसकी साँस फूलती जा रही थी..

रोहन की समझ में और कुच्छ ना आया.. उसने बड़ी मुश्किल से नितिन को उठाकर कंधे पर डाला और पीपल की तरफ दौड़ पड़ा...

"हाँ.. यहीं लिटा दो.. पेड़ के साथ.."

रोहन ने वैसा ही किया...

"मुझे मुक्ति दिलाना देव.. इसको ले जाओ यहाँ से.." कहते हुए नितिन की आँखें बंद हो गयी और रोहन ने वैसा ही किया जैसी उसको इन्स्ट्रक्षन मिली थी.. वह पहले की तरह नितिन को कंधे पर उठा कर तेज़ी से चलने लगा...

"अबे.. मुझे यूँ क्यूँ उठा रखा है उल्लू की डूम..उतार नीचे..." नितिन के बोलते ही रोहन की जान में जान आई और उसने नितिन को कंधे से उतार कर खड़ा कर दिया...

नितिन की साँसे तेज़ी से चल रही थी.. मानो बहुत लंबी रेस लगाकर आया हो..," क्या था ये.. कहाँ उठा ले जा रहा था मुझे.. ?"

"तुझे मालूम भी है तू कहाँ है..?" रोहन ने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया और आगे बढ़ने लगा...

"बता तो क्या हुआ..?" नितिन अब सामान्य होने लगा था..

"चल बाहर चल कर बताता हूँ..." रोहन ने कहा और कुच्छ समय के बाद ही वो गाड़ी के पास थे..

"तुझमें भूत आ गये थे...." रोहन ने उसकी और देखते हुए कहा...

"हा हा हा हा हा... तुझे पता नही.. मैं अब भी भूत ही हूँ...भयंकर भूत..." नितिन ने गुर्रकार कहा और फिर बोला..," चुप बे साले.. मुझे ये मज़ाक एक दम घटिया लगते हैं.. चल गाड़ी में बैठ.." कहकर नितिन ड्राइविंग सीट पर आ गया..

"तुझे विस्वास नही होता ना.. तुझे पता भी है मैं तुझे कहाँ से लाया हूँ.." रोहन उसके साथ वाली सीट पर बैठता हुआ बोला...

"हाँ.. पता है.. मैं पेड़ के साथ लेटा हुआ था जब तुमने मुझे उठाया..." नितिन ने गाड़ी स्टार्ट करके जवाब दिया..

"क्यूँ... क्यूँ लेटा था तू वहाँ.." रोहन ने फिर सवाल किया..

नितिन एक पल के लिए चुप हो गया.. फिर रोहन के चेहरे पर नज़रें थाम कर बोला," पता नही.. कमाल है यार.. विस्वास नही होता.. क्या पता नींद आ गयी हो.. छाव देखकर......."

" हुम्म.. हो सकता है..." रोहन ने बात को बढ़ाना नही चाहा.. उसको नितिन के नेचर का पता था.. अगर वो अभी नितिन को वो बातें बता देता जो अभी थोड़ी देर पहले हुई तो नितिन को वापस वहीं जा कर छनबीन शुरू कर देनी थी..," अब तो सीधे चल रहे हैं ना.. श्रुति के घर?"

"आए हाए.. क्या बात है मेरी जान..? तू तो बड़ा उतावला हो रहा है.. चिंता ना कर.. आज सारा दिन वो तेरे साथ ही रहेगी.. बस हल्का सा इशारा कर देना उसको..." नितिन शरारती सुर में बोलते हुए मुस्कुराने लगा...

"तुझे वो कैसी लगती है...?" रोहन ने नितिन से पूचछा...

"क्या मतलब?"

"बस ऐसे ही.. बता ना.. कैसी लगती है...?" रोहन ने फिर ज़ोर दिया...

"स्वीट है, सुंदर है, शर्मीली है.. कुल मिलकर मेरी भाभी बन'ने के लायक है.. पर अगर टीले पर बुला कर डराने की साज़िश में उसका या उसके बाप का कुच्छ हाथ मिला तो मैं उनको छ्चोड़ूँगा नही.. पहले बता रहा हूँ.. मुझे धोखेबाज़ी से सख़्त नफ़रत है..." नितिन ने सामने आ गये गड्ढे को देख कर गाड़ी नीचे उतार दी...

"मैं क्या पूच्छ रहा हूँ.. और तू क्या जवाब दे रहा है..?" रोहन ने कहा..

"अबे दे तो दिया जवाब.. झकास है एकद्ूम... ले लेना आज... बाहों में.. हा हा हा.." नितिन ने मसखरा किया...

"और अगर... मुझे किसी और से प्यार हो तो.....?" रोहन ने उसके चेहरे की और देखते हुए कहा...

"साले.. अपने साथ मेरी भी दुर्गति क्यूँ करवा रहा है.. कितनी 'बसंती' हैं तेरे पास.. कल इसके लिए फट रही थी और आज.. अब मुझे मत बताना वो नयी लड़की कौन है.. समझा..!" नितिन ने झल्ला कर बनावटी गुस्से से उसकी और देखा...

"म्‍मैई तो मज़ाक कर रहा हूँ यार...!" रोहन ने हिचकिचाते हुए बात कही और बाहर देखने लगा.. गाँव करीब आ गया था..

"मज़ाक कर रहा हूँ.." नितिन ने अजीब सा मुँह बनाकर उसकी नकल उतारी.. और घर के सामने गाड़ी रोक कर हॉर्न दिया... बुड्ढ़ा लगभग भागता हुआ बाहर आया..

"वो.. तैयार हो गयी क्या अंकल जी..?" नितिन ने गाड़ी का शीशा नीचे करते हुए पूचछा...

"हां.. बेटा.. वो तो तैयार है.. तुम खाना खा लो एक बार.. श्रुति ने बना रखा है.. तुम दोनो के लिए..."

रोहन कुच्छ बोलने ही वाला था कि नितिन ने पहले ही बोल दिया," ठीक है अंकल जी.. एक बार और सही..." कहकर दोनो गाड़ी से उतर कर अंदर आ गये...

अंदर जाते हुए, खाना खाते हुए और फिर बाहर आते हुए.. नितिन अपनी बारीक नज़र से घर के कोने कोने का मुआयना कर रहा था.. शायद उनके साथ पिच्छली रात हुई घटना से संबंधित किसी भी सुराग की तलाश में.. पर कुच्छ होता तो मिलता.. आख़िरकार चारों घर से बाहर निकल आए.. श्रुति के लिए रोहन ने पिच्छली खिड़की खोल दी और वो चुपचाप गाड़ी में जा बैठी," अच्च्छा बापू.. मैं चार बजे तक आऊँगी..!"

"ठीक है बेटी.." और फिर नितिन से मुखातिब होते हुए बोला," अच्च्छा बेटा.. आराम से जाना.. और इसको बस-स्टॅंड उतार देना.. वहाँ से चली जाएगी.. अपने आप.."

"क्यूँ चिंता करते हो अंकल जी.. हम कॉलेज ही छ्चोड़ जाएँगे.. अच्च्छा.. नमस्ते.."

"भगवान तुम्हारा भला करे बेटा..." बुड्ढे के ऐसा कहते ही नितिन ने गाड़ी को रफ़्तार दे दी.....

वहाँ से रवाना होने के बाद जब रोहन और श्रुति में से कोई कुच्छ नही बोला तो मजबूरन नितिन को ही अपना मुँह खोलना पड़ा," जा रोहन.. पीछे बैठ जा.."

"म्‍मैई.. कक्यूँ?" रोहन हकला सा गया...

नितिन ने बॅक व्यू मिरर को सेट करके श्रुति के चेहरे पर नज़र डाली.. लगता था उस पर उसकी बात का कोई असर नही हुआ.. या शायद उसका ध्यान उंनपर था ही नही.. अपनी लंबी काली ज़ुल्फोन को बार बार कानो के पिछे ले जाने की कोशिश सी करती हुई वह बाहर निहार रही थी... उसका चेहरा एकद्ूम शांत था.. ठहरे हुए जल की तरह, ना तो मुस्कान ही उसके चेहरे पर थी और ना ही कोई शिकन..

"अबे तू नही तो क्या मैं जाउन्गा.. सेट्टिंग तेरी है या मेरी..?" इस बार नितिन ने जान बूझकर तेज बोला था, श्रुति ने उसकी बात सुनकर तुरंत प्रतिक्रिया दी.. पर बोल कर नही.. अचानक उसने नज़रें घूमकर नितिन को देखा और अपनी गर्दन झुका ली..

" भाई तू गाड़ी चलता रह ना.. कहीं नही जाना मुझे..!" रोहन ने खिसियकर जवाब दिया.. उसका मॅन ही नही था श्रुति से बात करने का... होता भी तो अंजान लड़की से क्या बात करता.. अब तो सब सॉफ हो ही चुका था... कम से कम रोहन के दिमाग़ में...

"अजीब किस्म का प्राणी निकला तू.. 2 दिन से मुझे गधे की तरह हांक रहा है और अब कहता है कि... देख ले.. अगर तुझे कोई प्राब्लम नही है तो मैं शुरू हो जाउ?" नितिन अपनी बात का मतलब आँखों ही आँखों में रोहन को समझाता हुआ बोला...

उनको इस तरह की बातें करते देख श्रुति के कान खड़े हो गये थे.. उसका चेहरा कुच्छ फीका सा पड़ गया था.. जब उस'से रहा ना गया तो वो उनकी ही और देखकर ध्यान से बातें सुन'ने लगी....

"तू चलता रह ना भाई.. बता तो रहा हूँ.. ऐसा कुच्छ नही है.. वो मेरी ग़लतफहमी थी.. तू जो समझ रहा है, यहाँ वो मामला नही है..." रोहन ने उसको चुप करने का प्रयास किया...

"ठीक है फिर.. तेरा मामला नही है तो मैं फिर कर लेता हूँ मामला.. अब बीच में मत बोलना.." शहर को नज़दीक आते देख नितिन ने अचानक नहर के साथ साथ बने कच्चे रास्ते पर गाड़ी मोड़ दी...

श्रुति सिहर गयी और कुंपकपति हुई आवाज़ में बोली," ये.. ये कहाँ लेकर.... जा रहे हैं आप.. गाड़ी रोकिए....!"

"चिंता मत करो नीरू जी.. ये रास्ता सीधा शॉर्टकट वहीं जाता है.. जहाँ आप जाना चाहती थी.. हा हा हा" कहकर नितिन ने सिटी बजानी शुरू कर दी..

श्रुति बदहवासी में गाड़ी की खिड़की पीटने लगी..," मुझे उतार दो.. मैं चली जाउन्गि.. अपने आप!"

रोहन को नितिन के व्यवहार पर ताज्जुब हो रहा था.. इतनी बचकनी हरकत नितिन भी कर सकता है.. रोहन को कतयि उम्मीद नही थी," क्या कर रहा है यार.. ये वो लड़की नही है.. समझा कर.. इसका कोई कुसूर नही..."

नितिन ने रोहन को देखते हुए अपनी दाई आँख मारी.. मजबूरन रोहन को चुप हो जाना पड़ा.. जाने क्या करना चाहता था नितिन...

"ययएए.. आप लोग कहाँ लेकर जा रहे हैं.. गाड़ी रोकिए प्लीज़.." श्रुति गिड-गिडाने लगी..

नितिन ने उसकी बात पर कोई ध्यान नही दिया.. गाड़ी उसी गति से आगे दौड़ती रही..

"हमने सुना है किसी ने तुम्हारा कमीज़ फाड़ दिया रात को.. कौन आशिक था भला.."

श्रुति को उसकी बातों से ज़्यादा अपनी जान की फिकर हो रही थी..," मुझे नही पता.. आप गाड़ी रोक दीजिए प्लीज़.."

"बताइए तो सही.. फिर मैं आपको वापस छ्चोड़ आउन्गा.. वादा रहा.. वैसे किसी का भी कुसूर नही है.. आप हैं ही इतनी गरम की आपके साथ ज़बरदस्ती करने का मौका मिले तो कोई फाँसी की भी परवाह नही करेगा.. क्यूँ रोहन?"

"रोहन ने मुँह पिचका लिया.. उसको श्रुति पर बड़ी दया आ रही थी..

"रोक दीजिए प्लीज़.. गाड़ी वापस ले चलिए.. मैं.. आपके हाथ जोड़ती हूँ.." सच में ही हाथ जोड़ कर श्रुति रोने लगी थी...

"देखिए मिस.. मुझ पर आँसू असर नही करते.. लड़कियों का तो शिकारी हूँ मैं.. 5-4 रेप केसिज भी हैं मुझ पर.. इसीलिए सलामती इसी में है कि आप वो बोलना शुरू कर दें जो मैं पूच्छ रहा हूँ.. वरना.. मुझे अपने जज्बातों पर काबू करने की आदत नही है.. और आपके मामले में तो मैं रियायत देने के मूड में कतयि नही हूँ.. " नितिन ने फिल्मी लहजे में बात कही...

श्रुति का गला सूख गया था उसकी बातें सुनकर.. धीरे धीरे अपनी सिसकियों पर काबू पाती हुई सी बोली," क्या...?"

"क्या ये सच है कि रात को किसी ने आपकी कमीज़ फड़कर उपर से नंगी कर दिया था...?" नितिन ने पूछ्ताछ शुरू की..

श्रुति का सिर शरम के मारे झुक गया.. पर उसने अपनी गर्दन हां में हिला ही दी...

नितिन ने हालाँकि उसका हिलता हुआ सिर देख लिया था.. पर फिर भी वो बोला," बोलो!"

"हां.." बड़ी मुश्किल से श्रुति के गले से आवाज़ निकली...

"किसने?" नितिन का अगला सवाल था...

"पता नही.." श्रुति ने सिर झुकाए हुए ही जवाब दिया...

"मतलब कोई आपको नंगी कर गया और आपको पता भी ना चला.. आपको लगता है मुझे विस्वास हो जाएगा.."

"वो हमारे गाँव में अक्सर कुच्छ भी अजीब हो जाता है.. इसीलिए हमें आदत हो गयी है.." श्रुति ने संयम से जवाब देने में ही भलाई समझी...

"आदत? यूँ.. नंगी होने की.."

श्रुति ने इस बात का कोई जवाब नही दिया...

"फिर तो मैं भी ट्राइ कर सकता हूँ.. नही?" नितिन ने बेबाकी से कहा...

श्रुति सुबकने लगी.. उसके पास बोलने के लिए कुच्छ नही बचा था..

"चलिए छ्चोड़िए.. ये बता दो कि मेरे शेर से आप कब मिली थी.." नितिन ने अपना लहज़ा अपेक्षाकृत नरम करते हुए पूचछा...

"जी..?" श्रुति कुच्छ समझी नही..

"इस'से.. रोहन से आपकी मुलाक़ात कब हुई थी..?" नितिन ने रोहन की कमर पर हाथ मारते हुए पूचछा...

"मेरी..? मैने तो इनको अब से पहले कभी देखा भी नही...." सहज सवालों का जवाब देते हुए श्रुति का सुबकना कम हो गया था.. पर अंजाने डर से वो अब भी काँप रही थी...

"अच्च्छा? तुम्हे पता नही ये आपका कितना बड़ा दीवाना है.. तुम्हारे पास जाने के लिए ये मुझे रात को वो.. पुराने टीले पर ले गया.. इतना पागल हो चुका है ये.. और आप कहती हैं इस'से आप कभी मिली ही नही... ये कैसे हो सकता है?" नितिन ने चलते चलते ही कहा...

श्रुति ने हैरानी से रोहन के चेहरे की और गौर से देखा.. पर 100-100 कोस तक भी उसके पहले देखे होने का अहसास अपने दिल में जगा नही पाई," मेरा विस्वास कीजिए.. मैने इनको पहले कभी देखा नही है... मैं तो इस शहर के अलावा कभी कहीं गयी ही नही..."

"मैं कह तो रहा हूँ यार की ये वो लड़की नही है.. मुझे ग़लत फ़हमी हो गयी थी... वो कोई और है...!" रोहन से अब चुप बैठा नही गया...

"तू चुप हो जा बस.. आज के बाद तेरी शकल भी नही देखनी मुझे.. अब कौन्से टीले पर ले जाने की सोच रहा है मुझे.. तेरा तो दिमाग़ खराब हो ही गया है.. मुझे भी पागल करके छ्चोड़ेगा तू.... लीजिए मिस.. श्रुति.. आपका कॉलेज आ गया.. यही होगा ना...?"

सुनते ही श्रुति की भय के मारे सिकुड़ी हुई आँखों में चमक सी आ गयी.. अपना चेहरा उठाकर उसने चौंक कर बाहर की तरफ देखा..." हाँ.. आप.. श.. पर आपको कैसे पता मेरे कॉलेज का..." खिड़की खोलने की कोशिश करती हुई वो बोली.. पर खिड़की खुली नही..

"इस शहर में यही एक कॉलेज है.. मेरे ख़याल से... खैर.. माफ़ करना.. मैं कुच्छ जान'ना चाहता था.. इसीलिए मुझे आपको डराने के लिए घटिया बातें कहनी पड़ी... पिच्छली खिड़की का लॉक खोलना रोहन..

श्रुति कुच्छ ना बोली.. उसका मन अब उच्छल रहा था.. बचने की कम ही उम्मीद थी उसको.. गाड़ी खोलते ही वह तेज़ी से बाहर निकली और बिना बोले रोड पार करने लगी...

"ये सब क्या बकवास थी नितिन... ? चल अब..." रोहन की आँखें कॉलेज के गेट की तरफ बढ़ रही श्रुति का पीछा करती रही...

"अबे रुक तो सही.." नितिन भी बड़े गौर से श्रुति को देखे जा रहा था...

गेट पर पहुँच कर श्रुति तिठकि और पीछे मुड़कर देखा.. गाड़ी की और.. नितिन मुस्कुराने लगा और उसकी और अपना हाथ हिला दिया.. श्रुति अपनी नज़रें झुकाती हुई मूडी और सीधी आगे बढ़ गयी...

"ये क्या था भाई.. तू ऐसा भी है क्या? क्या कर रहा था तू...?" रोहन ने श्रुति के नज़रों से औझल होते हुए पूचछा...

"एक तीर से दो शिकार.." कहकर नितिन रोहन की और मुस्कुराया और गाड़ी चला दी....

"क्या मतलब?" रोहन उसकी बात समझ नही पाया....

"तू अब मेरी बातों का मतलब पूच्छना छ्चोड़ और अपने इस वाहयात नाटक का मंचन शुरू कर.. पहले तू मुझे ज़िद करके वहाँ ले गया जहाँ आदमी तो क्या आदमी की जात भी नही रहती.. फिर वापस आते हुए तुझे वो लड़की मिल भी गयी.. अब इस लड़की ने इनकार कर दिया तो तू कह रहा है कि वो ये नही कोई और है.. मतलब क्या है तेरी बातों का.. एडा समझा है क्या?" नितिन उसकी और गुर्राता हुआ सा बोला..

"नही भाई.. मैं तुझसे झूठ क्यूँ बोलूँगा.. हमेशा मैने तुझे बड़े भाई की तरह माना है.. पर सच में, मेरी खुद समझ में नही आ रहा क़ि ये सब आख़िर हो क्या रहा है.. मेरे सिर में हमेशा चक्कर सा रहता है.. ये बातें सोचकर.. तू ही बता मैं करूँ तो क्या करूँ.." रोहन ने सीट से सिर टीका अपनी आँखें बंद कर ली...

"हुम्म.. पर अब ये तू किस आधार पर कह रहा है कि 'वो' लड़की कोई और है.. फिर से फोन आया था क्या...?" नितिन ने उस'से पूचछा...

"उम्म्म.. हां..!" रोहन ने यूँही कह दिया...

"लात मार ना यार बात को.. ये लड़की कितनी मस्त है.. कहे तो इसको पटवा दूं.. चलेगी ना...?" नितिन ने सारी बात छ्चोड़ कर श्रुति की बात उठा दी...

"कैसे?" रोहन आँखें बंद किए हुए ही बोला...

"वो तू मुझ पर छ्चोड़ दे.. सिर्फ़ ये बता, उसके बाद तो तू ठीक हो जाएगा ना.. मतलब तेरे दिमाग़ का फितूर..." नितिन ने गाड़ी रोक कर उसके कंधे पर हाथ रख दिया...

रोहन कुच्छ देर चुप बैठा रहा, फिर बोला," नही यार.. मुझे उस'से मिलना है एक बार.. उसके बाद तू जो कहेगा मैं कर लूँगा..."

"उस लड़की को देखा है तूने?" नितिन ने सवाल किया...

"नही.." रोहन ने फिर अपनी आँखें बंद कर ली...

"यही बात... इसी बात पर इतना गुस्सा आता है कि.. क्यूँ अपनी अच्छि ख़ासी जिंदगी को गधे पर लादना चाहता है.. तूने उसको देखा तक नही है.. फिर क्यूँ उसके पीछे पागल हुआ जा रहा है.. मैं शर्त लगाकर कह सकता हूँ कि वो लड़की शर्तिया इस'से सुंदर नही हो सकती.. देखा है कभी नज़र भर कर इसको.. कितनी ठंडक मिलती है कलेजे को.." नितिन ने कहते हुए दिल पर हाथ रख लिया..

"तुझे ठंडक मिलती है तो तू ही ले आ ना भाई..!" रोहन उसकी बातों से तंग आ गया.. उसका दिमाग़ तो अब वहीं घूम रहा था.. बतला!

"और तू क्या समझता है.. आज भी मैं इसीलिए चुप रहा कि ये तेरी है.. वरना मैं तो टिकेट काट कर रहूँगा.. कम से कम एक बार..." नितिन ने विस्वास के साथ कहा..

"हुन्ह.. बड़ा चुप रहा तू आज.. बातों ही बातों में बलात्कार कर डाला बेचारी का.. और कह रहा है.. मैं चुप था.. अपने साथ मेरी भी ढीली करवा दी...तुझे लगता है की ये लड़की अब तेरी तरफ देखना भी पसंद करेगी...?" रोहन ने व्यंग्य किया..

"तूने मुझे क्या अपनी तरह लल्लू समझ रखा है.. एक एक दिन में दो दो लड़कियाँ पटाई हैं मैने.. और फिर ये तो बेचारी बहुत नादान है.. इसका तो घंटे भर का भी काम नही.. लड़कियों की साइकॉलजी, जियोग्रफी, केमिस्ट्री.. सब जानता हूँ मैं.." नितिन ने सीना फुलाते हुए कहा...


Post Reply