अंजाना रास्ता compleet

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rajaarkey
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Re: अंजाना रास्ता

Unread post by rajaarkey » 13 Oct 2014 15:00

अंजाना रास्ता --2

गतान्क से आगे................

बाकी दिन और कुछ खांस नही हुआ…बस ये था कि उस दिन दीदी और मेरे बीच कुछ

ज़्यादा बाते नही हुई..धीरे धीरे दिन बिताने लगे और एक हफ़्ता और गुजर

गया.. इस बीच मे राज के साथ एक दो बार साइबर केफे भी गया था..अब मुझे

सेक्स के बारे मे काफ़ी नालेज हो गई थी…अंजलि दीदी भी अब फिर से मेरे साथ

नॉर्मल हो गयी थी..

एक दिन की बात है फ्राइडे का दिन था मैं रूम मे कंप्यूटर गेम खिल रहा था

उन दिनो स्कूल और कॉलेज की छुट्टियाँ चल रही थी. दीदी रूम मे आई और मुझे

बोली के मैं उनके साथ बॅंक चलू क्योंकि उनको एक ड्राफ्ट बनवाना है…अंजलि

दीदी उस दिन हरा सूट और ब्लॅक पाज़ामी पहने हुए थी.. दीदी के रेशमी बाल

एक लंबे हाइ पोनी टेल मे बँधे थे .

“ ज़ल्दी कर अनुज बॅंक बंद होने वाला होगा…और मुझे आज ड्राफ्ट ज़रूर

बनवाना है” दीदी अपने संडले पहनते हुए बोली..वो झुकी हुई थी..और उनके

झुकने से मुझे उनके सूट के अंदर क़ैद वो गोरे गोरे उभार नज़र आ रहे

थे..मेरा दिल फिर से डोल गया था. बॅंक घर से ज़्यादा दूर नही था सो हम चल

दिए. मैने चलते चलते वोही महसूस क्या जो मे हर बार महसूस करता था ज़ॅब

दीदी मेरे साथ होती थी. लगभाग हर उम्र का आदमी दीदी को घूर रहा था….उनकी

आखो मे हवस और वासना की आग सॉफ साफ देखी जा सकती थी. पर दीदी उनलोगो पर

ध्यान दिए बगैर अपन रास्ते जा रही थी. मुझे अपने उप्पर बड़ा फकर महसूस हो

रहा था कि मे इतनी खोबसूरत लड़की के साथ हू हालाकी वो मेरी बड़ी चचेरी

बहन थी. खैर हम 10 मिनट मे बॅंक पहुच गये बॅंक मे बहुत भीड़ थी..हालाकी

ड्राफ्ट बनवाने वाली लाइन मे ज़्यादा लोग नही थे वो लाइन सबसे कोने मे

थी…दीदी ने मेरा हाथ पकड़ा और हम उस लाइन की तरफ़ बढ़ चले.

“अनुज तू यहा बैठ..और ये पेपर पकड़..मैं लाइन मे लगती हू” दीदी बॅग से

कुछ पेपर निकालते हुए बोली.

मैं साइड मे रखी बेंच पर बैठ गया और दीदी कुछ पेपर और पैसे लेकर लाइन मे

लग गयी..भीड़ होने की वजेह से औरत और आदमी एक ही लाइन मे थे. मैं खाली

बैठा बैठा बॅंक का इनफ्राज़्टरूट देखने लगा.और जैसा हर सरकारी बॅंक होता

है वो भी वैसे ही था ...जिस लाइन मे दीदी लगी थी वो लाइन सबसे लास्ट मे

थी और उसके थोड़ा पीछे एक खाली रूम सा था जिसमे कुछ टूटा फर्निचर पड़ा

हुआ था..उस जागह काफ़ी अंधेरा भी था. शायद टूटा फर्निचर छुपाने के लिए

जान भूज कर वाहा से बल्ब और ट्यूब लाइट हटा दिए गये थे..इसलिए वाहा इतना

अंधेरा था..खैर ये तो हर सरकारी बॅंक की कहानी थी.. दीदी जिस तरफ़ लाइन

मे खड़ी थी वाहा थोड़ा अंधेरा था. मुझे लगा कही दीदी डर ना जाय क्योंकि

उन्हे अंधेरे से बहुत डर लगता था…तभी दीदी मुझे अपनी तरफ़ देखते हुए

थोड़ा मुस्कुराइ और ऐसा जताने लगी की..मानो कहना चाहती हो कि ये हम कहा

फँस गये. गर्मी भी काफ़ी थी..तभी एक आदमी और उस लाइन मे लग गया..वो देखने

मे बिहारी टाइप लग रहा था..उमर होगी कोई 35 साल के आस पास. उसने पुरानी

सी शर्ट और पॅंट पहने हुए था और वो शायद मूह मे गुटका भी चबा रहा था..एक

तो उसका रंग काला था उप्पर से वो लाइन के अंधेरे वाले हिस्से मे लगा हुआ

था..उसको देख कर मुझे थोड़ी हँसी भी आरहि थी.

“कितनी भीड़ है बेहन चोद “. वो अंधेरी साइड मे गुटका थुक्ता हुआ बोला.

तभी उसका फोन बजा.फोन उठाते ही उसने फोन पर भी गंदी गंदी गाली देने शुरू

कर दी..जैसे..तेरी बेहन की चूत ,,मा की लोड्‍े,,तेरी बहन चोद

दूँगा..वागरह वागारह..दीदी भी ये सब सुन रही थी शायद पर क्या कर सकती थी

वो..मुझे भी गुस्सा आ रहा था.. कुछ मिनिट्स के बाद मैने कुछ ऐसा देखा

जिससे मेरे दिल की धड़कन तेज होगयी अब वो बिहारी दीदी से चिपक कर खड़ा

था. उसकी और दीदी की हाइट लगभग सेम थी जिससे उसका अगला हिस्सा ठीक दीदी

की पाजामी के उप्पर से उनके उभरे हुए चूतर पर लगा हुआ था. वो लगातार दीदी

को पीछे से घूर भी रहा था..दीदी के सूट का पेछला हिस्सा थोड़ा ज़्यादा

खुला हुआ था जिससे उनकी गोरी पीठ नज़र आ रही थी . तभी वो थोड़ा पीछे हुआ

और मैने देखा कि उसके पेंट मे टॅंट बना हुआ है .फिर उसने अपना राइट हॅंड

नीचे किया और अपने पॅंट को थोड़ा अड़जस्ट क्या..अब उसका वो टेंट काफ़ी

विशाल लग रहा था..मेरा दिल जोरो से धड़क ने लगा. मेरे लंड मे हरकत शुरू

होने लगी ये सोच कर ही कि अब ये गंदा आदमी मेरी खूबसूरत दीदी के साथ क्या

करेगा. हालाकी वो और दीदी अंधेरे वाले हिस्से मे थे फिर भी उस आदमी ने

इधर उधर देखा और.फिर अपने आपको धीरे से दीदी से चिपका लिया उसका वो टेंट

अंजलि दीदी के पाजामे मे उनके उभरे हुए चुतड़ों के बीच कही खोगया था. और

जैसे ही उसने ये किया दीदी थोड़ा आगे की तरफ़ खिसकी..दीदी का चेहरा

अंधेरे मे भी मुझे लाल नज़र आ रहा था. तनाव उनके चेहरे पर सॉफ देखा जा

सकता था..ये सारी बाते बता रही थी कि दीदी जो उनके साथ हो रहा था उससे अब

वाकिफ्फ हो चुकी थी. दीदी की तरफ़ से कोई ओब्जेक्सन ना होने की वजह से

उसके होसले बढ़ने लगे थे वो दीदी से और ज़्यादा चिपक गया . जैसा कि मैने

बताया था कि अंजलि दीदी ने अपने रेशमी बालो की हाइ पोनी टेल बाँधी हुई

थी.उस आदमी का गंदा चेहरा अब दीदी के सिर के पीछले हिस्से के इतना पास था

कि उसकी नाक दीदी की बालो मे लगी हुई थी और शायद वो उनके बालो से आती

खुसबू सुंग रहा था..दीदी की पोनी टेल तो मानो उनके और उस बिहारी के बदन

से रगड़ खा रही थी. मेरी बेहद खूबसूरत जवान बड़ी बहन के बदन से उस लोवर

क्लास आदमी को इस तरह से चिपका देखा मेरा लंड मेरे ना चाहने पर भी खड़ा

होने लगा था.

rajaarkey
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Re: अंजाना रास्ता

Unread post by rajaarkey » 13 Oct 2014 15:00

मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी उस आदमी ने अपना नीचला हिस्सा धीरे धीरे

हिलाना सुरू कर दिया और उसका लंड पेंट के उप्पर से ही अंजलि दीदी के उभरे

हुए चूतरो पर आगे पीछे होने लगा..ये सारी हरकत करते हुए वो आदमी लगातार

दीदी के खूबसूरत चेहरे के बदलते भाव को देख रहा था. अंधेरे कोने मे होने

की वजह से कोई उसकी ये हरकत नही देख पा रहा था और इसका वो आदमी अब पूरा

फ़ायदा उठा रहा था..वैसे भी इतनी सुंदर जवान लड़की उसकी किस्मत मे कहा

होती. दीदी डर के मारे या ना जाने क्यू उस आदमी को रोक नही पा रही थी..पर

तभी अचानक दीदी को शायद याद आया कि मैं भी उधर ही बैठा हू तब उन्होने

थोड़ा सा मूड कर मेरी साइड की तरफ़ देखा कि कही मैं से सब तो नही देख रहा

हू ..मैने फॉरन अपना ध्यान न्यूज़ पेपर पर लगा लिया जो के मेरे हाथो मे

था. दीदी को शायद यकीन हो गया था कि मैं उनकी साथ जो हो रहा है उसको नही

देख रहा हू. वो आदमी अब पिछले 10 मिनट से दीदी को खड़े खड़े ही कपड़ो के

उप्पर से उनकी चूतादो पर अपने खड़ा लंड को अंदर बाहर कर रहा था. तभी मुझे

लगा की उस आदमी ने दीदी की कानो मे कुछ धीरे से कहा पर दीदी ने कोई जवाब

नही दिया…मेरा दिल अपनी बड़ी बहन का सेडक्षन देख इतनी जोरो से धड़क रहा

था कि मानो अभी मेरा सीना फाड़ कर बाहर आ जाएगा..तभी मुझे एक हल्की से

कराह सुनाई दी…और मुझे ये समझने मे देर ना लगी कि वो मादक आवाज़ अंजलि

दीदी के मूह से आई थी..दीदी की आँखे 5 सेक के लिए बिल्कुल बंद हो गई थी

और उनके दाँतअपने रसीले होटो को काट रहे थे..मुझे से समझ नही आया कि ये

क्या हुआ..उस आदमी का हाथ तो अब भी साइड मे था..पर भगवान ने इंसान को दो

हाथ दिए है....तभी मुझे दीवार के साइड से दीदी की चुननी हिलती हुई नज़र

आई…क्या वो आदमी…..नही ये नही हो….सकता…क्यो नही हो सकता….क्या उस आदमी

का लेफ्ट हॅंड दीवार की साइड से दीदी के लेफ्ट बूब्स पर है..अब उस आदमी

की आँखो मे हवस साफ नज़र आ रही थी..वो दीदी की लेफ्ट चूची को उनके हरे

सूट के उप्पर से हवस के नशे मे शायद बड़े जोरो से दबा रहा था ..तभी उसने

दोबारा दीदी की कान मे कुछ कहा ..और दीदी ने झिझाक ते हुए अपनी टाँगो को

थोड़ा खोल लिया …अब वो आदमी थोड़ा ज़ोर से दीदी के उभरे हुए कोमल चुतड़ों

को ठोकने लगा..हवस का ऐसा नज़ारा देख मे खुद पागल सा हो गया था ..अब मैं

ज़्यादा से ज़्यादा देखना चाहता था कि वो आदमी अब और क्या करेगा..दीदी की

बढ़ती सासो से उनके वो पके आम की साइज़ के उभार सूट मे जोरो से उप्पर

नीचे हो रहे थे ..पर शायद मेरी किस्मात खराब थी क्योंकि तभी मेरे पास एक

बूढ़ा आदमी आया और बोला कि बेटा मेरे लिए एक स्टंप पेपर ला दोगे बाहर

से..उस बुढ्ढे आदमी को उधर देख वो बिहारी फटाफट दीदी से अलग हुआ..शायद

उसको भी गुस्सा आया था…और क्यू ना आए ऐसा गोलडेन चान्स कोन छोड़ना चाहता

था..मैने देखा दीदी और वो बिहारी मेरी तरफ़ देख रहे है..मुझे गुस्सा तो

बहुत आया बुढ्ढे आदमी पर क्या करता मैं ये सोच कर मैं उठा और बाहर जाने

लगा.वो बुढ्ढा अब मेरी जगह पर बैठ गया था..बाहर जाते जाते मैने तिरछी

नज़र से देखा कि वो बिहारी फिर दीदी को कुछ बोल रहा है और इस बार दीदी भी

उसकी तरफ़ देख रही थी उनका गोरा चहरा शरम और डर से लाल हो रहा था…मैं

ज़ल्दी से बाहर गया और स्टंप पेपर लेने के लिए दुकान ढूँढने लगा…मेरे मन

मे अब ये चल रहा था कि अब वो आदमी दीदी के साथ क्या क्या कर रहा

होगा..क्या वो रुक गया होगा..क्या दीदी ने उसको मना कर दिया होगा…ये सब

दीदी की मर्ज़ी से नही हुआ है…शायद ..मेरी दीदी के भोले पन का उसने

फ़ायदा उठया है..मेरी दीदी ऐसी नही है.….ये सब बाते मेरे दिमाग़ मे चल

रही थी..करीब 20 मिनट घूमने के बाद मुझे स्टंप पेपर मिला..और मैं बॅंक मे

वापस गया ..वो बूढ़ा मुझे गेट मे एंट्री करते ही मीलगया ..मैने उसको

स्टंप पेपर दिया..अब मैं उम्मीद कर रहा था अब ताक दीदी ने ड्राफ्ट बनवा

लिया होगा ..और वो आदमी भी जा चुका होगा ...और मैं फटाफट ड्राफ्ट की लाइन

के तरफ़ बढ़ा..पर वाहा पहुच कर मेरा सिर चकरा गया …ड्राफ्ट की लाइन अब

ख़तम हो चुकी थी ..काउंटर पर लिखा था क्लोस्ड ..बॅंक मे भी भीड़ कम होने

लगी थी..मैं परेशान हो गया

..मैने सोचा की दीदी शायद बाहर मेरा वेट कर रही होंगी ..सो मैं बाहर जाने

ही लगा था कि..मैने देखा जिस तरफ अंधेरा था और वाहा जो खाली रूम था जिसमे

टूटा फर्निचर पड़ा था..वाहा से वोही बिहारी अपनी पॅंट की ज़िपार बंद करता

हुआ निकला..और बाहर चला गया..मुझे ये बड़ा आजीब लगा पर फिर मैने सोचा

शायद टाय्लेट गया होगा क्योंकि टाय्लेट भी उधर ही था…फिर मे बाहर जाने के

लिए मुड़ा ही था की मैने देखा अंजलि दीदी अपने बालो को सही करते हुए उसी

रूम से बाहर आ रही है जहा से कुछ मिनिट पहले वो आदमी निकला था..मेरा दिल

की धाड़कन एक दम बढ़ गयी …दीदी उस कमरे मे उस गंदे आदमी के साथ अकेले

थी…जो आदमी खुले आम किसी लड़की के साथ इतनी छेड़ खानी कर सकता है ..वही

आदमी अकेले मे एक खोबसुर्रत जवान लड़की के साथ क्या क्या करेगा…इन सब

ख्यालो ने मेरे लंड मे खून का दौर बढ़ा दिया...दीदी ने मेरी तरफ़ नही

देखा था….मैं दीदी की तरफ़ बढ़ा “

“दीदी आप कहा थी..मैं आपको ढूंड रहा था..”मैं बोला

दीदी थोड़ा घबरा गयी पर फिर शायद अपनी घबराहट को छुपाटी हुई वो थोड़ा

मुस्कुराइ और बोली. “ तू कब आया था …और स्टंप पेपर दे दिए तूने उन अंकल

को”

“जी..और आपने ड्राफ्ट बनवा लिया क्या” मैने उनके पसीने से भरे चेहरे को

देखते हुए बोला.उनका सूट भी कई जगह से पसीने से तर बतर था. जिसका सॉफ सॉफ

मतलब ये था कि दीदी उस रूम मे काफ़ी टाइम से थी.

“नही यार…क्लर्क ने कहा है कि ड्राफ्ट बनवाने के लिए इस बॅंक मे अकाउंट

होना ज़रूरी है”

rajaarkey
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Re: अंजाना रास्ता

Unread post by rajaarkey » 13 Oct 2014 15:01

दीदी मेरे सामने खड़ी थी मैने देखा कि उनके सूट पर बहुत झुर्रियाँ पड़ी

हुई है खास कर उनके उभारो के आस पास.मुझे ये अच्छी से याद था कि जब हम

बॅंक आने वाले थे तो दीदी ने प्रेस किया हुआ सूट पहना था. तो फिर क्या ये

काम उस आदमी के हाथो का है…..मुझे अब थोड़ी थोड़ी जलन भी हो रही थी कि

दीदी मुझसे झूठ क्यो बोल रही है.. और अचानक ही मैने उनसे पूछा लिया “ आप

वाहा अंधेरे मे….” “

“अरे वाहा मैं वॉश रूम गयी थी..” दीदी मुस्कुराती हुई मेरी बात को वही

काटती हुई बोली.

ये सब बात सोचते सोचते मे काफ़ी गर्म हो गया था और मेरा लंड अकाड़ने लगा

था अब मुझे वाकयी पेशाब जाना था नही तो मेरा खड़ा होता लंड अंजलि दीदी

देख सकती थी..और अगर मैं उस जगह जाता हू तो मुझे ये भी पता चला जाएगा कि

वाहा टाय्लेट है भी कि नही क्योंकि अंधेरे मे तो कुछ नज़र नही आ रह था उस

जगह. फिर मैने दीदी क वेट करने के ले बोला और फटाफट उस अंधेरे कोने की

तरफ़ चला गया..जैसे कि मैने सोचा था कोने मे टाय्लेट था मुझे ये जान कर

खुशी हुई कि दीदी सही बोल रही है..मैने वाहा पेशाब किया और बाहर आने लगा

पर पता नही मुझे उस अंधेरे कमरे मे जाने की इक्षा हुई..मैने फिर दीदी की

तरफ़ देखा तो वो अभी भी अपना सूट ठीक कर रही थी…मेरे दिमाग़ मे फिर से

शाक पैदा हुआ और मैं उस रूम मे घुस गया ..उंधर अंधेरा तो था पर इतना भी

नही ..क्योंकि उप्पर रोशन दान से रोशनी आ रही थी ..मैं इधर उधर देखने लगा

..रूम मे सीलन होने की वजह से थोड़ी बदबू भी थी..हालाकी रूम के काफ़ी

हिस्से मे टूटा फर्नीचर पड़ा हुआ था फिर मैं एक कोना खाली था मैं उस तरफ

गया. रूम के फर्श पर काफ़ी धूल जमी हुई थी.. तभी मेरी नज़र रूम की ज़मीन

पर पड़े कदमो पर गयी..लगता था मानो कोई थोड़ी देर पहले ही रूम से गया है

और वो अकेला नही था क्योंकि दो जोड़ी पैरो के निशान थे ..पर मुझे एक बात

समझ नही आई कि वो उस कोने की तरफ़ क्यो गये है ..खैर मैं उनके पीछे आगे

बढ़ा ..तो मैने देखा के उसकोने मे पैरो के निशान गायब थे और फर्श पर पड़ी

मिट्टी काफ़ी हिली हुए लग रही थी मानो जैसे किसी के बीच काफ़ी खिछा तानी

हुई हो..तो क्या ये निशान उस आदमी और दीदी के है..मैं ये सोच ही रहा था

की दीदी की आवाज़ आई और मैं जल्दी से बाहर आ गया.

क्रमशः.......................

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