राबिया का बेहेनचोद भाई

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The Romantic
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Re: राबिया का बेहेनचोद भाई

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 16:15

राबिया का बेहेनचोद भाई--4

रह चलते कुत्ते को कुतिया को चोदते हुए देखने की कोशिश करते....दीवार और पेड़ की ऊट में खड़े मर्दो को पेशाब करते हुए देखने की कोशिश करते......अगर किसी का लंड दिख जाता फिर चूत साला सहला कर याद करते.....वगिरह वगैरह....पर वो सब अब बंद हो चुका था....मैने भी इस तरह बाते करना अब छोड़ दिया....निकाह के बाद जैसा नसीब में होगा वो मिलेगा........सेक्सी बातो से तो और आग भड़क जाती है....रात में उंगली डाल डाल कर अब कुछ होता जाता नही....



फिर एक दिन मैं फर्रू के घर गई.....फर्रू अपनी अम्मी और अपने बड़े भाई के साथ रहती थी....उसका भाई एंटी करप्षन यूनिट में किसी उची जगह पर था.....फर्रू ने बताया की उसका भाई उस से उमर में करीब सात साल बड़ा था....वैसे फर्रू भी मेरे से दो साल बड़ी थी मेरे भाई की उमर की थी....मैं ड्रॉयिंग रूम में बैठी थी तभी एक लड़का दाखिल हुआ.....मुझे देख एक पल के लिए चौंका....फिर अंदर चला गया....थोड़ी देर बाद फर्रू के खिलखिलती हुई हसी सुनाई दी....ही भाई छ्चोड़ो बाहर मेरी दोस्त है....बेचारी बोर हो रही होगी.....



ही अल्लाह बड़ी खूबसूरत पायल है....कब खरीदी आपने....उई छ्चोड़िए ना....ठीक है....कसम से....हा...पहन कर....ठीक है भाई....फिर एक दम खामोशी च्छा गई....थोड़ी देर बाद फर्रू आई तो उसके बॉल थोड़े से बिखरे हुए लग रहे थे....आँखो में अजीब सी चमक थी.....होंठो पर हल्की मुस्कुराहट तैर रही थी.....मैने सोचा क्या माजरा है....कितने मज़े से बाते कर रहे थे दोनो भाई बहन...जैसे की....मैने फर्रू से पुछा .....क्यों मुस्कुरा रही हो....वो जो लड़का अंदर गया क्या तेरा भाई था....फर्रू ने अपने चेहरे को उपर उठा कर जवाब दिया....हा....भाई जान थे....वो आज जल्दी ऑफीस से आ गये...



उसके गाल गुलाबी से सुर्ख लाल हो चुके थे....वो थोड़ा घबराई सी लग रही थी....मैने कहा....तो इसमे इतना घबराने की कौन सी बात है....अरे नही यार वो बहुत गुस्से वाले है....मैने कहा...अर्रे अभी तो तू उनसे हंस हंस कर बाते कर रही थी....बाहर तक आवाज़ आ रही थी.....शायद तेरे लिए कोई गिफ्ट लाए है.....मेरे ऐसा बोलने से फर्रू सकपका गई.....बात को इधर उधर घुमाने लगी....फिर मैं भी उठ कर चली गई ....ये सब बाते यही पर ख़तम हो गई....इसी तरह मैं एक दो दफ़ा और फर्रू के घर गई....

एक दफ़ा मैं सुबह के करीब आठ बजे उसके घर गई....उस रोज भाई को कही जाना था.... भाई ने फर्रू के घर तक छोड़ दिया.....दरवाजा थोड़ा सा लगा हुआ था....मैने धक्का दे कर हल्के से खोला और अंदर दाखिल हो गई..... मैने सोचा आवाज़ डू मगर....मुझे आई....उईईइ.....इश्स की आवाज़ सुनाई दी....जैसे अम्मी अपनी चूंची मसळवते या चुदवाते वक़्त आवाज़ निकलती थी....मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा....ये क्या चक्कर है....जासूस राबिया ने ड्रॉयिंग रूम का परदा हल्का सा हटाया.....अंदर झाँका....है अल्लाह मेरे होश फाख्ता हो गये.....फर्रू का भाई पीछे से उसको अपनी आगोश में दबोचे खड़ा था...दोनो की पीठ दरवाजे की तरफ थी.... पुच पुच की आवाज़ के साथ स...इसस्स...की आवाज़...उसके भाई के दोनो हाथ उसकी छाती के नज़दीक....मेरे तो पैर काँपने लगे....दिल धड़ धड़ कर बजने लगा....वाहा खड़ा होना मेरे लिए मुस्किल हो गया....अपने आप को संभालती जल्दी से बाहर आ गई....कुछ देर तक वही खड़े रह कर अपने जज़्बातो को संभाला फिर...कॉल बेल दबा दिया....



थोड़ी देर के बाद फर्रू बाहर आई....अपने बालो को संभालते हुए....होंठो का रंग थोड़ा उड़ा हुआ लग रहा था....पर चेहरे का रंग सुर्ख लाल हो रखा था....अपनी छाती पर दुपट्टा संभालते हुए अपने बैग को कंधे पर लटकाए....थोड़ी घबराई सी बोली.....ज़यादा देर तो नही हुई....मैने उसको उपर से नीचे देखते हुए कहा.....नही यार....उसकी समीज़ की इस्त्री उसके छाती के पास खराब हो चुकी थी....सलवते पर चुकी थी.....जाहिर था की उसके भाई जान ने वाहा हाथ लगा कर मसला है....अल्लाह क्या क्या तमाशे दिखा रहा था मुझे....मेरी प्यारी सहेली फर्रू जिसको मैं सीधा समझती थी अपने सगे बड़े भाई से अपनी चूंची मसलवा रही थी.....मेरे पैर अभी भी काँप रहे थे....साली अपने भाई से फंसी है....तभी कहती है बाय्फ्रेंड की ज़रूरत नही....



जब घर में ही लंड का मज़ा मिल रहा है तो फिर बाहर....ही कसम से मैने खवाब में भी नही सोचा था....रंडी....शराफ़त का कितना जबरदस्त ढोंग करती थी.....हम दोनो कॉलेज के लिए पैदल ही चल दिया, वाहा से जयदा दूर नही था....पर मेरा दिल जितनी देर तक कॉलेज में रही धाड़ धाड़ कर बजता रहा.....



दो बजे दिन में वापस घर आई फ्रेश होकर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेती तो.....आज सुबह हुआ वाक़या मेरे दिलो दिमाग़ में फिर से चक्कर लगाने लगा.....ही मेरी फर्रू जान अपनी बुर फड़वा चुकी है.....साली कितनी चालक है.....सब कुछ निकाह के बाद....साली ने फड़वा या भी किस से अपने सगे भाईजान से.....बाहर किसी को पता ही नही की शरिफजादी कितनी बड़ी हरामजादी और चुदक्कड़ है.....भाई का लंड बुर में लेकर सिर पर दुपट्टा डाल कर घूमती है......जैसे नीचे के छेद में कौन हलचल मचा रहा है पता ही नही......कुछ भी हो मेरे जासूसी मिज़ाज को भी थोड़ा करार आ गया था....मैं हमेशा सोचती थी की क्या साली की चूत नही खुजलाती.....उंगली करती होगी या नही.....हमेशा मेरी बातो को ताल देती थी....इधर उधर कर देती.....जैसे कितनी पाकदामन है.....जैसे इन सब चीज़ो की उसे कोई मतलब ही नही.....खैर मज़े है साली के ....चूत की खुजली आराम से मिट रही है......भाई गिफ्ट ला कर भी दे रहा है.....मज़े कर रही है......फर्रू ने अपने भाई से कैसे अपनी फड़वाई ये राज भी किसी ना किसी तरह उगलवा लूँगी....फिलहाल तो मुझे अपनी फ़िक्र करनी चाहिए.....तब्बसुम के किस्से के बाद से तो लड़को के बारे में सोचना बंद ही हो गया था....मगर फ़रज़ाना ने नई राह दिखला दी थी.


आख़िर थी तो अपनी रंडी अम्मी की बेटी....उसका कीड़ा तो मेरे अंदर भी था.....फिर फर्रू ने आज एक ऐसी राह दिखला दी थी जिसकी मुझे शिद्दत से तलाश थी.....अपनी कुँवारी अनचुदी गुलाबी रानी का सील तोड़ने के लिए एक ऐसे बंदे की तलाश थी जो प्यार से मज़ा दे.....मेरी इज़्ज़त का ख्याल रखे.....और मुसीबतो से भी बचाए...इस सब के लिए मेरी निगाहो में आज तक कोई मर्द नही था.....पर सुबह के सबक ने मेरी निगाह को अपने भाई की तरफ मोड़ दिया......हू भी तो एक जवान मर्द है....तंदुरुस्त है.....अल्लाह ने उसे भी लंड से नवाज़ा है......उसका लंड भी तो किसी ना किसी चूत को चोदने के लिए ही तो है....पता नही मेरी निगहों पर अब तक परदा क्यों कर परा था.....भाई था तो क्या हुआ..... जिसकी चूत में वो अपना लंड पेलेगा वो भी तो किसी ना किसी की बहन ही होगी....किसी और की बहन को चोदेगा.....तो फिर अपनी बहन की चूत क्यों नहीं.....
कहानी की सुरुआत शुरू से ही करती हूँ. मैं रुखसाना हूँ, मेरी उमर अभी 22 साल की है. प्यार से मुझे सब राबिया कहते है. मेरी शादी हो चुकी है और मेरे हज़्बेंड एक प्राइवेट फर्म में मॅनेजर हैं. माएके में मेरी अम्मी और अब्बा हैं. शहर में हमारे खानदान की बहुत ही अच्छी इज़्ज़त है. इज़्ज़तदार घराना होने के कारण पर्दे की पाबंदी है...लेकिन पर्दे के पीछे...




चूत पर कहा लिखा होता है की बहन की चूत है....और मैने आज तक कभी नही सुना की लंड पर लिखा होता है की भाई का लंड है......चूत चूत है, लंड, लंड.....चूत होती है लंड से चुदवाने के लिए.....चूत वाली कौन है और लंड वाला कौन इस से चूत और लंड को क्या लेना-देना.....इस तरह अपने दिल को समझाते हुए.... मैने सोच लिया की अब वक़्त बर्बाद करने से कोई फायदा नही...... भाई को ही अपनी मस्त जवानी सौंप जवानी का मज़ा लूटा जाए......आख़िर जिसकी निगाह के सामने जवान हुई उसका हक़ क्यों ना हो इस जवानी पर.....फिर ये कोई ग़लत रह या गुनाह भी नही होगा.....मैं तो अपनी अम्मी और सहेली के दिखाए रास्ते पर ही चलूंगी....वो दोनो तो ना जाने कब्से अपने अपने भाइयों का लंड अपनी बुर में पेल्वा रही है.....ये सब उपरवाले की मर्ज़ी है जो उसने मुझे ऐसा मंज़र दिखला कर रह दिखाई है......अब इस से पीछे हटना ठीक नही.....ये सब सोच कर मैने फ़ैसला कर लिया की किसी भी तरह भाई को फसा लेना है......घर का काम करते हुए मेरा दिमाग़ तेज़ी से काम कर रहा था......मैं सोच रही थी की भाई को कैसे कर फसाया जाए.....कही वो बिदक तो नही जाएगा....कही उल्टा तो नही सोच लेगा की मैं कैसी रंडी हूँ....मुझे समझदारी के साथ धीरे धीरे कदम बढ़ाना होगा..... अपना सागा भाई होने की वजह से उसको फसाने का खेल ख़तरनाक हो सकता था....वो अम्मी को बतला सकता था.....पर एक बार भाई अगर फस जाता तो फिर ऐश ही ऐश थी....... मैं ने भाई पर ही डोरे डालने का पक्का इरादा कर लिया.....पर शुरुआत कैसे करू यही मेरी समझ में नही आ रहा था.....वैसे भी आज तक ना तो किसी लड़के को फसाया है ना खुद किसी के साथ फंसी थी....



अब सीधे सीधे जा कर बोल तो नही सकती थी की भाई मुझे चोदो ....मेरी जवानी का रस चूस लो.....मेरी चूत में अपना लंड पेल दो....मैं इसी उलझन में डूबी सोचती रही की जिस राह पर चलने की मैने ठनी है....उस राह पर कदम बढ़ने के सही तरीका क्या है.....


शाम में भाई ने मुझे सोच में डूबा देखा तो बोला....क्या सोच रही है राबिया....कॉलेज में कुछ हुआ है क्या....मैने कहा नही भाई.....कुछ नही....फिर क्या हुआ....उदास है....अम्मी की याद आ रही है क्या.....मैने कहा नही भाई बस ऐसे ही फिर उठ कर किचन में चली गई....अब कैसे बताऊँ की मैं नही मेरी चूत उदास है......साले को कुछ समझ में भी तो नही आता....इतना तो समझना चाहिए की बेहन जवान हो गई है उसको लंड चाहिए....


पूछ रहा है क्यों उदास हो.....अर्रे गमगीन ना रहूँ तो और क्या करू....सारी जहाँ की लड़कियाँ चुद रही है....यहाँ मेरी चूत की खुजली मिटाने वाला कोई नही....किसी दिन सलवार खोल के चूत दिखा दूँगी.....



सुबह कॉलेज में शबनम मिली तो बड़ी खुश दिख रही थी....मैने उसके चूतड़ पर चिकोटी कटी....और जानी बहुत चहक रही हो.... माजरा क्या है....ये नये पायल...अंगूठी....नई ड्रेस.....बदले बदले से नज़र आ रहे है सरकार.....शबनम एकदम से शर्मा गई.... गाल गुलाबी हो गये फिर हँसते हुए बोली..... कुछ भी नही बस ऐसे ही काफ़ी दिनों से ये ड्रेस नही पहनी थी इसलिए....चल साली किसको बना रही है....कुछ तो बात है....कल कॉलेज क्यों नही आई थी.....फिर उसने थोड़ा शरमाते थोड़ा जीझकते हुए बताया.....अर्रे यार मेरी सगाई हो गई है....मैं एकदम से चोंक गई....कब....किसके के साथ....कैसे....एकसाथ कई सवाल मैने दाग दिए....शबनम मेरा हाथ पकड़ घसीट ती हुई बोली....कितने सवाल करती है....सब कुछ एक बार में ही जान लेगी क्या....

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Re: राबिया का बेहेनचोद भाई

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 16:16

राबिया का बेहेनचोद भाई--5



. फिर हम दोनो कॉलेज की कैंटीन के पीछे जहाँ एक दम सन्नाटा होता है वाहा चले गये....पत्थर पर बैठने के बाद उसने कहा...हा पूछ क्या पूछ ना है....पहले तो ये बता कब हुई तेरी सगाई.....कल.....ही....तूने बताया भी नही पहले....किसके साथ...पहले से चक्कर था तेरा....शबनम झल्ला उठी....धत ! बकवास किए जा रही है....तुझे पता है मेरा किसी के साथ कोई चक्कर नही.....फिर इतनी जल्दी कैसे....जल्दी तो नही है....बस तुझे पता नही था इसलिए....अच्छा चल अब तो बता दे कौन है वो खुशकिस्मत जो मेरी शब्बो रानी के रानों के बीच की सहेली का रस चखेगा....शबनम का चेहरा लाल हो गया.....धत ! साली हर समय यही सोचती है क्या.....



ज़रा भी लिहाज़ नही है तेरे से दो साल बड़ी हूँ मैं...मैने शबनम की जाँघो पर हाथ मारते हुए कहा....तो फिर बता ना मेरी शाब्बो बाजी कौन है वो....शबनम हंस दी फिर मस्कुराते हुए शरमाते हुए बोली....खालिद नाम है उनका....खालिद अच्छा यही के है या....यही के है....मेरी खाला के लड़के....मतलब तेरे खलजाद भाई....हा....अर्रे वा तब तो पहले से देख रखा होगा तूने....हा हमारे घर से जयदा दूर नही है उनका घर.....हम जब छोटे थे साथ में खेलते भी थे.....जब बड़े हो गये तो थोड़ी दूरी आ गई...मतलब.... शबनम बोली अर्रे कामिनी मतलब क्या समझोउ....जब लड़का-लड़की जवानी की दहलीज़ पर कदम रख देते है तो फिर दूरी तो आ ही जाती है, है ना.....



मैने और छेड़ने के इरादे से पुछा ....ही मतलब बचपन का प्यार है....धत !...क्या बोलती है...अरे मैने क्या बोला....तूने ही तो कहा...बचपन में साथ खेलते थे और जब तेरी चूची बड़ी हो गई तो दूरी आ गई....इसका तो यही मतलब निकला की बचपन से अम्मी अब्बा वाला खेल चल रहा था.....धत ! साली ....मुझे खुद नही पता था की खालिद भाई...है खालिद मुझे चाहते है....मैं बीच में बोल पड़ी ....पर तू उन्हे चाहती थी....अरी नही रे....मैं उन्हे खालिद भाई कह कर बुलाती थी....जब भी कभी घर आते थे तो घर का महॉल बरा खुशनूमा हो जाता था....हम साथ में वीडियो गेम्स खेलते और हसी मज़ाक करते थे...मैं बीच में बोल पड़ी ....ही बस तुम दोनो साथ में....अरे नही रे मेरी बाकी दोनो बहनें भी...हम चारों जाने ....खालिद भाई....ओह तौबा तौबा....



खालिद के कोई भाई या बहन नही है ना.... उनका मान हमारे यहाँ बहल जाता था....ही! ये मान बहलाते बहलाते लगता है कुछ ज़यादा ही बहल गये तेरे खालिद भाई......चुप्प कर साली अब वो मेरे खाविंद है.....मैने कमर में चिकोटी काट कर कहा.....ही रब्बा....अभी से इतनी वफ़ादारी.... तू बाज आएगी या फिर तेरा कुछ और इलाज़ करना परेगा...ही! इलाज़ क्या करोगी....बस मिठाई खिला दो....खाली हाथ आ गई...बड़ी बाजी बनती हो इतना तो शरम लिहाज़ रखो की अपनी सगाई पर मुँह मीठा करा दो....भले ही अपने मियाँ से नही मिलवाना...शबनम मुस्कुराने लगी....बोली क्लास छोड़ चल मेरे साथ...मैने पुछा क्यों कर भला....अर्रे चल ना बस....घर चलते है वही तेरा मुँह भी मीठा करा दूँगी....घर पर अभी कोई नही होगा फिर आराम से बाते करेंगे....मैं भी उस से उसके खालिद भाई के बारे में खोद खोद कर पूछ ना चाह रही थी..... इसलिए थोड़ा सोचने के बाद हामी भर दी......

टॅक्सी पकड़ घर पहुचे....घर पर केवल उसकी अम्मी थी.....ड्रॉयिंग रूम में बैठ कर टीवी देख रही थी....उनको सलाम करने के बाद कुछ देर वही बैठी उनसे बाते करती रही फिर वो उठ कर पड़ोस में चली गई......शबनब ने टीवी ऑफ किया और कहा.... चल मेरे कमरे में वही बैठ कर बाते करेंगे.....अम्मी तो अब दो घंटे से पहले नही आने वाली.....कमरे में पहुच...दरवाजा बंद कर.... हम दोनो बिस्तर पर बैठ गये....मैं पेट के बाल हाथो के नीचे एक तकिया डाल कर लेट गई....शबनम दीवान की पुष्ट से पीठ टीका कर बैठी थी.... एसी की ठंडी हवा में....हम दोनो कुछ देर तक तो यू ही उसके घर के बारे में बाते करते रहे....फिर थोड़ा आगे सरक, शबनम का हाथ थाम पुछा ...... ही शाब्बो बाजी ये तो बता......भाई बहन से मियाँ बीबी बन ने का ख्याल कब और क्यों कर आया....



मेरे इतना बोलते ही शबनम ने मेरी पीठ पर कस कर थप्पड़ जमा दिया और हँसते हुए बोली....तू मानेगी नही....जा मैं नही बताती....साली हर बात का उल्टा मतलब निकल देती है....हाए !!! शाब्बो मेरी जान प्लीज़ बता ना....आख़िर तुम दोनो का प्यार कैसे परवान चढ़ा....हाए !!! मुझे भी तो एक्सपीरियेन्स.....बड़ी आई एक्सपीरियेन्स वाली....इसमे क्या बात है जो तेरे फाएेदे की....मैं शबनम की तुड़ी पकड़ बोली हाए !!! प्लीज़ बता ना....नही...मैं मिठाई लाती हूँ....मैं इतराती हुई बोली नही खानी मुझे.....पहले बता....हाए !!! रब्बा क्या बताऊँ तुझे....जो बताना था बता तो दिया....नही मुझे विस्तार से बता.....तुझे कब पता चला कहलीद भाई तेरी जाँघो के दरमियाँ आने चाहते है....अफ....कामिनी है तू....साली एक नंबुर की....ले दे कर वही बात....कहते हुए मेरी पीठ पर एक चपत लगाई...और ये क्या बार बार खालिद भाई...निगोरी....



मैं हँसते हुए बोली चल नही बोलूँगी.....पर कुछ तो बता....मैं थोड़ा मासूम सा मुँह बनाते हुए कहा....शबनम मेरे मासूम से चेहरे को देखती हुई मुस्कुरा दी....कुतिया साली....क्या बताऊँ ....किसने शुरुआत की...मैने पुछा ....मुझे नही पता...खाला आई थी उन्होने अम्मी से बात की....कब आई थी....करीब एक महीने पहले.....ओह...पर फिर भी पहले कुछ तो हुआ होगा....नही ऐसा तो कुछ नही था....हा कई बार खालिद भाई ओह ओह...वो कई बार बात करते करते एकदम से खामोश हो जाते....और मेरे चेहरे की तरफ देखते रहते..... बड़ा अटपटा सा लगता की ऐसा क्यों करते है....फिर राहिला ने एक दिन बताया की आपा खालिद भाई आपको अपने चस्मे के पीछे से बहुत देखते है....मैने उसको बहुत डांटा मगर....फिर मैने भी नोटीस किया मैं जब इधर उधर देख रही होती तो वो लगातार मुझे घूरते रहते....

जैसे ही मुझ से नज़रे मिलती....वो सकपका जाते.....फिर मुझे लगने लगा था की डाल में ज़रूर कुछ काला है.... शबनम की जाँघ को दबाते हुए मैं बोली....ही पूरी डाल ही काली निकली.....वो भी हँसने लगी...फिर मैने पुछा ....अच्छा ये तो बता की उन्होने कभी और कोई हरकत नही की तेरे साथ....और कोई हरकत से तेरा मतलब अगर वैसी हरकतों से है....तो नही....वैसा कुछ नही हुआ हमारे बीच....हा जब से मुझे इस बात का अहसास हुआ तो मैं उनके सामने जाने में थोड़ा हिचकिचाने लगी....फिर कभी मौका भी नही मिला...हर वाक़ूत कोई ना कोई तो होता ही था....ही कभी कुछ नही किया....क्या यार कम से कम लिपटा छिपटि, का खेल तो हो ही सकता थे तुम दोनो मे, मैं होती तो एक आध बार मसलवा लेती....चुप साली....मैं तेरे जैसी लंड की भूखी नही हू.....कौन कितना भूखा है ये तो निकाह होने दो फिर पता चलेगा....दो महीने में पेट फुलाए घुमोगी.....चल निगोरी....ही शाब्बो मैने तो सोचा एक आध बार उन्होने अब तक तेरी कबूतारीओयोन को दबा दिया होगा....



अल्लाह कसम बता ना....एक बार भी नही....अब तक शबनम भी धीरे धीरे खुलने लगी थी....उसके चेहरे पर हल्की शर्म की लाली दौर गई.... मुस्कुराती हुई बोली....पहले तो कभी नही पर कल....ही! मुझे शर्म आ रही है....कहते हुए उसने अपनी हथेली से अपना चेहरा धक लिया....ही! कल क्या...बता ना....प्लीज़...वो फिर शरमाई...ही! नही...ही! बता ना प्लीज़....फिर मुस्कुराते हुए धीरे से सिर को नीचे झुकती बोली.....ही कल जब माँगनी हो गई....फिर सब ने हमे पाच सात मिनिट के लिए अकेला कमरे में छोड़ दिया....ही! फिर क्या…??



तब खालिद मेरे पास आए....और धत !!....कैसे बोलू....ही बता ना क्यों तडपा रही है....ही फिर उन्होने मेरे गालो को हल्के से चूमा....ही मैं तो घबरा कर सिमट गई....मगर उन्होने मेरे दोनो हाथो को पकड़ लिया और हम सोफे पर बैठ गये फिर....फिर क्या मेरी जान....फिर उन्होने मुझे बताया की वो बचपन से मुझे चाहते है...और दिलो-जान से प्यार करते है....वो हमेशा मुझे ही अपने ख्वाबो में देखते थे....उन्हे बस इसी बात का इंतेज़ार था की कब उनकी नौकरी लग जाए....उन्होने ने मुझ से पुछा की मैं राज़ी हूँ या नही....मैं क्या बोलती सगाई हो चुकी थी.....मैने चुपचाप सिर हिला दिया....वो खिसक कर मेरे पास आ गये और मेरी थोड़ी को उपर उठा मेरे चेहरे को देखते हुए हल्के से मेरे होंठो पर अपनी एक उंगली फिराई....

मेरा पूरा बदन काँप उठा....फिर आगे बढ़ कर उन्होने हल्के से अपने तपते होंठों को मेरे होंठों पर रख दिया....ओह मैं बतला नही सकती....सहेली मेरा पूरा बदन कपने लगा....मेरे पैर थरथरा उठे....दिल धड़ धड़ कर बाज रहा था....तभी उन्होने मेरे होंठों को अपने होंठों में कस कर पकड़ लिया और अपना एक हाथ उठा कर हल्के से मेरी चूची पर रख दिया....और और सहलाने लगे....उफ़फ्फ़! मैं बयान नही कर सकती राबिया उस लम्हे को....मेरे बदन का रॉयन रॉयन सुलग उठा था.....लग रहा था जैसे मैं पिघल कर उनकी बाहों में पानी की तरह बह जौंगी....उनकी हथेली की पकड़ मजबूत होती जा रही थी....वो अब बेशखता मेरी चूचियों को मसल रहे थे....ये मेरा पहला मौका था....किसी लड़के के हाथ चूचियों को मसलवाने का....मेरी जाँघो के बीच सुरसुरी होने लगी थी....
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उफफफफ्फ़....!!! क्या बताऊँ मैं....ऐसा लग रहा था जैसे मेरे चारो तरफ की ज़मीन घूम रही है.....कहते कहते शबनम की साँसे उखाड़ सी गई...उसकी आँख एकदम लाल हो चुकी थी...उसने मेरा कंधा पकड़ कर एक बार भीच कर फिर छोड़ दिया....मैं बेताबी से इंतेज़ार कर रही थी की वो और आगे कुछ बोलेगी मगर वो चुप हो गई....अपनी आँखो को उसने बंद कर लिया था....लग रहा जैसे कही खो गई है....मैने हल्के से उसका कंधा पकड़ हिलाते हुए कहा....शाब्बो.....धीरे से उसने अपनी आँखे खोली और हल्के से मुस्कुराते हुए बोली....जानती है फिर क्या हुआ...क्या मैं बोली....सुनेगी तो तू बहुत हासेगी...मैने खालिद को थोड़ा पीछे धकेलते हुए उनके होंठों के चंगुल से अपने होंठों को आज़ाद करते हुए कहा...ही खालिद भाई छ्चोड़िए.....ही ये क्या कर रहे है....ही खालिद भाई ये ठीक नही...तू समझ सकती है खालिद की क्या हालत हुई होगी....वो एकदम से घबरा गये....



झट से मुझे छोड़ कर उठ खड़े हुए और फिर कमरे से बाहर निकल गये.....हम दोनो हँसने लगे....मेरा तो बुरा हाल हो रहा था हँसते हँसते ....फिर भी मैने पुछा ...ही बुरा तो नही मान गये तेरे मियाँ......नही यार मैं अपना पसीना पोच्च कर बाहर निकल गई....घर में बहुत सारे लोग थे गुप-सॅप करने लगी....मौका देख कर मैने खालिद को सॉरी बोल दिया....तो वो मुस्कुरा कर बोले....आदत तो धीरे धीरे ही जाएगी बेगम साहिबा....और मेरी कमर पर चिकोटी काट ली.....मैं फिर भाग गई इस से पहले की वो कोई और हरकत करे....ही शाब्बो डार्लिंग तूने मौका गावा दिया....मज़ा तो आया होगा तुझे....थोड़ी देर और चुप रहती तो शायद चूत में उंगली भी कर देता....या उसका लंड देख लेती....कॉलेज की तरह खुले गंदे लफ़जो का इस्तेमाल करते हुए मैने कहा....शबनम भी शरमाई नही....हँसते हुए बोली...साली पहली बार किसी लड़के ने हाथ लगाया था...

मैने ये एक्सपेक्ट नही किया था.....मुझे होश कहा था....जो मान में आया बोल दिया....अब अफ़सोस तो होता है....लगता है थोड़ी देर और मसलवा लेती....उंगली तो मैने बहुत डलवाई है....


ये सुनकर मुझे बरा ताज्जुब हुआ....ही खुद से तो मैं भी डाल लेती हूँ....मगर तूने किस से डलवा ली....जब तेरा कोई बाय्फ्रेंड नही.....ही मेरी लालपरी...तुझे नही पता......ही रब्बा....मुझे कैसे पता ....तू कैसे करती थी...डार्लिंग ये खेल ज़रा अलहाड़े किस्म का है....पर होता कैसे है ये खेल......दिखौ....कहते हुए उसने हाथ बढ़ा कर मेरी एक चूंची को समीज़ के उपर से पकड़ लिया....ही रब्बा...मैने घबरा कर उसका हाथ झटका....वो हँसने लगी और पूरे ज़ोर से हमला बोल दिया....मुझे पीछे धकेल बेड पर गिरा, मेरी पेट पर बैठ.....दोनो हाथो से मेरी दोनो चूचियों को अपनी हथेली में भर मसल दिया......आईईइ....क्या करती है मुई....उफफफ्फ़....छोड़ ....



पर उसने अनसुना कर दिया....अपना चेहरा झुकते हुए मेरे होंठों को अपने होंठों में भर मेरी चूचियों को और कस कस कर मसलने लगी.....मैं उसे पीछे धकेल तो रही थी मगर पूरी ताक़त से नही....वो लगातार मसले जा रही थी.....मैं भी इस अंजाने खेल का मज़ा लेना चाहती थी.....देखना था की शाब्बो क्या करती है.....कहा तक आगे ......कुछ लम्हो के बाद ऐसा लगा जैसे जाँघो के बीच सुरसुरी हो रही है......मुझे एक अजीब सा मज़ा आने लगा......मैने उसको धखेलना बंद कर दिया...... मेरे हाथ उसके सिर के बालो में घूमने लगे.....तभी उसने मेरे होंठों को छोड़ दिया....हम दोनो हाँफ रहे थे....वो अभी भी हल्के हल्के मेरी छातियों को सहला रही थी.....मुस्कुराते हुए अपनी आँखो को नचाया जैसे पूछ रही हो क्यों कैसा लगा....मेरे चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गयी......उसकी समझ में आ गया......



मेरी आँखे मेरे मज़े को बयान कर रही थी......नीचे झुक मेरे होंठों को चूमते, मेरी कानो में सरगोशी करते बोली......ऐसे होता है ये खेल......मेरे लिए ये सब अंजना सा था....शाब्बो का ये एकदम नया अंदाज था......कुछ पल तक हम ऐसे हे गहरी साँसे लेते रहे.....मेरे चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट और शर्म की लाली फैली हुई थी..... मैने पुछा .....आगे .....शबनम ने फिर से मेरी दोनो चूंची यों को दबोच लिया और बोली.....ही साली तूने आज मेरी आग भड़का दी.....अब पूरा खेल खेलेंगे......कहते हुए वो ज़ोर ज़ोर से मेरे होंठों और गालो को चूमने चाटने लगी....मुझे फिर से मज़ा आने लगा....और मैं भी उकसा साथ देने लगी......हम दोनो आपस में एक दूसरे से लिपट गये....

The Romantic
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Re: राबिया का बेहेनचोद भाई

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 16:17

राबिया का बेहेनचोद भाई--6

. एक दूसरे के होंठों को चूस्ते हुए पूरे दीवान पर लुढ़क रहे थे....तेज चलती सांसो की आवाज़ कमरे में गूज़्ने लगी....दोनो के दिल की धरकन रेल गाड़ी की तरह दौड़ रही थी.....शाब्बो मेरी गालो को ज़ोर से काट ते हुए चीखी....ही साली काट लूँगी....बहुत बक बक करती है....देखे तेरी चूत में कितनी खुजली.....कहते हुए वो अपनी कमर को नाचते हुए मेरी कमर से चिपका रगड़ रही थी....हम दोनो ने कपड़े पहन रखे थे तब भी उसकी चूत की रागड़ाई का अहसास मुझे अपनी चूत पर महसूस हो रहा था.....मैं भी उसको नोचने लगी....उसके होंठों को अपनी दाँत से काट ते हुए हाथो को उसके चूटरो पर ले गई....चूटरो के गुदज माँस को अपनी हथेली में भर कर मसालती...



दोनो चूटरो को बीच उसकी गाँड की दरार में उपर से नीचे तक अपनी हथेली चला रही थी....हंदोनो बेकाबू हो चुके थे.....तभी शाब्बो उठ कर बैठ गयी और अपने साथ मुझे भी उठा लिया....मेरी समीज़ का निचला सिरा पकड़ उपर की तरफ खिचते हुए निकल फेका....मैने भी उसको नही रोका....फिर मेरी ब्रा खोल दी.....बिस्तर पर पटक मेरी दोनो नंगी चूंची यों को अपने नरम मुलायम हाथो में पकड़ सरगोशी करती बोली.....मशाल्लाह.....क्या चूची है....ही गड्रई नाज़ुक चूंची .....ये गुलाबी रंग....ये नुकीले निपल....इसस्स.....साली आग लगाने वाली जवानी है तेरी तो....कहते हुए अपने सिर को नीचे झुखाते हुए मेरी एक चूंची के उपर अपनी जीभ चलाने लगी....और दूसरी चूंची के निपल को अपनी चुटकियों में पकड़ ज़ोर से मसल दिया.....


दर्द से मैं कराह उठी....ही रे नाखरीली....मेरे हाथ से मसलवाने.....में इतना दर्द....कोई लौंडा मसलेगा तब....ही तेरी ये लंगड़ा आम सरीखी चूचियाँ.......अल्लाह कसम.......बस चबा जाने लायक है.....फिर वो मेरी एक चूंची को अपने होंठों को बीच दबोच चूसने लगी....पुर बदन में सनसनी दौर गयी....मानो किसी सुलगती चिंगारी ने च्छू लिया हो......चूत से रस निकलना शुरू हो गया....ही साली सच में चबा जाएगी क्या.....उफफफफ्फ़.....मेरे मौला.....जालिम.....मगर उसने अपना काम जारी रखा....मेरी चूंची यों को चूस्टे-चूस्टे.....अपने एक हाथ को मेरी सलवार के नाडे पर ले गई...

मेरी धरकने और तेज़ हो गयी......ही रब्बा लगता है नंगा करेगी.....मेरे नडे को खींच सलवार खोल दिया.....चूंची चूस्टे हुए वो लेट सी गई....एक हाथ से मेरी सलवार को नीचे की तरफ खींचते हुए पूरा उतार दिया......चूची अब भी उसके मुँह में थी.....मैं तड़प रही थी.....मेरी जवानी में आग लग चुकी थी.......मेरे हाथ पैर काँप रहे थे....सुलगते जिस्म ने बेबस कर दिया.....
खुच देर तक इसी तरह चूस्टे रहने के बाद....उसने होठों को अलग किया......मेरी साँसें रुकती हुई लग रही थी......थोड़ी रहट महसूस हुई....उउफफफफ्फ़... .शाब्बो ये कौन सा खेल है....मैं मार जौंगी....मैं बेकाबू होती बोली.....पूरा जिस्म सुलग रहा है.....क्यों बेताब होती है...मेरी गुलबदन....तेरे सुलगते जिस्म की आग को अभी ठंडा किए देती हू.....कहते हुए शाब्बो ने मेरी पनटी की एलास्टिक में अपने अंगूठे को लगा एक झटके में सरसरते हुए मेरे पैरों से नीचे खींच उतार दिया.....उ अम्मी....ये क्या कर रही साली......मैं घबरा कर उठ कर बैठ गई.....पूरा नंगा कर दिया.....मुझे आगे कुछ कहने का मौका दिए बिना......शबनम ने फिर से मेरे कंधो को पकड़ मुझे दबोच लिया.....


मेरे होंठों को अपने होंठों के आगोश में ले लिया.....बदन की आग फिर से सुलग उठी.....होंठों और गालो को चूस्टे हुए धीरे धीरे नीचे की चूचियों को चूमने के बाद मेरे पेट पर अपनी जीभ फिरते हुए नीचे बढ़ती चली गई....गुदगुदी और सनसनी की वजह से मैं अपने बदन को सिकोर रही थी......जाँघो को भीच रही थी....तभी उसने अपने दोनो हाथो से मेरी जाँघो को फैला दिया.....ये पहला मौका था किसी ने मेरी जाँघो को ऐसे खोल कर फैला दिया था.......आदतन मैने अपनी हथेली से चूत ढकने की कोशिश की......शाब्बो ने हथेली को एक तरफ झटक दिया.....मैने गर्दन उठा कर देकने की कोशिश की....शबनम मेरी खुली जाँघो के बीच बैठ चुकी थी....अफ ये क्या कर रही है कामिनी....ही ज़रा भी शरम नही.....




शबनम मेरी आँखो में झँकते हुए बोली....इश्स खेल का यही तो मज़ा है....शरम की अम्मी चुद जाती है.....ही रंडी बहुत ज़बान चलती थी.....अब चूत दिखाने में.....इसस्स......देखु मेरी बन्नो की नीचे वाली सहेली कैसी है....ही रब्बा.....क्या लूंदखोर माल है.....सीईइ सलवार के अंदर ऐसा नशीला माल छुपा कर रखा है.....साली तेरी चूंची यों का अंदाज़ा तो मुझे पहले से था......जानमारू है.... सब के लंड में आग लगती होगी.....मगर ये.....तेरी जाँघो के बीच.......ऐसी गुलाब की काली चुप्पी होगी.....ही बन्नो मस्त हास्सें चूत है....फूली कचौरी है.....झाँत नही सॉफ करती.....ओह हो....रंडी ने डिज़ाइन बना रखा....है....किसको दिखती है......ही रे क्या गुदज झानतु चूत है....कहते हुए उसने सिर झुका कर मेरी चूत को चूम लिया...

उईईइ!! क्या करती है.....वैसे तो अब्बा अम्मी की चुदाई देख देख कर मुझे मालूम था की चूत की चटाई होती है....मगर जब शाब्बो ने पहली बार.....मैं थोड़ा चौंक गई थी.....उसके होंठों के च्छुने भर से पूरे बदन में कपकपि हो गई.....तभी उसने गर्दन उठा कर मुझे देखा और पुछा .....मज़ा आया.....मैं धीरे से बोली....ही बुर मैं बहुत जोरो से खुजली हो रही है.....वो मेरे चूत की फांको पर उपर से नीचे तक धीरे-धीरे उंगली चला रही थी......मेरी चूत पासीज रही थी.....चूत के पानी को अपनी उंगली के कोने पर लगा मुझे दिखती बोली.....ही चुदसी कुट्टी जैसी गरम हो गई है.....मैं उसके इस अंदाज से तारप उठी.....उफ़फ्फ़.... कुछ इंतेज़ां कर....वो बोली...ही गोरी गोरी चिकनी चूत वाली क्या मस्त माल है.....ही मदारचोड़ी.....


अल्लाह ने मेरे को लंड से नवाजा होता तो मैं तो अभी तेरी बुर मई पेल कर सारी खुजली मिटा देती.....उफ़फ्फ़.....जालिम....ही मेरी चूत भी पानी छोड़ रही है....तभी मुझे ख्याल आया की मैं तो रंडी की तरह से पूरी नंगी हूँ और ये शालि अभी तक पूरे कपड़ो में....मैं झट से उठ कर बैठ गई....शबनम के सिर को बालो से पकड़ उसकी आँखो में झँकति बोली....ही कुट्टी अपनी पानी छोड़ ती चूत दिखा ना....साली...ही मैं भी तो देखु खालिद भाई की बीबी की बुर कैसी है....कहते हुए उसकी समीज़ को उपर खीचने लगी वो भी तैय्यर थी....अपने हाथो अपनी समीज़ खोल पीछे हाथ ले जा छत से ब्रा उतार दिया....गोरी गोरी शानदार चूंची याँ आज़ाद कबूतरो की तरह चोंच उठाए नुमाया हो गई.....मैने दोनो को हाथो में ले कस कर दबा दिया....मैं बदला लेना चाहती थी.....झट से एक चूंची को अपने होंठों में दबोच दूसरी के निपल को चुटकी में पकड़ मसल दिया....



उ.....अम्मी.....सीईइ....कुतिया बदला ले रही.....पर मुझे मज़ा आ रहा था...मैं ज़ोर ज़ोर से चूंची चूस्टे हुए दूसरी चूंची को मसल रही थी.....शाब्बो गरम तो पहले से ही थी.....सीईईईईई....



ह....उईईइ....सिसकारियाँ उसके मुँह से फूटने लगी.....तभी मैने अपना हाथ उसके जाँघो के बीच डाल दिया....उसकी चूत को सलवार के उपर से अपनी मुट्ही में दबोच कर मसलने रगड़ने लगी....उईईई....नही.....उफ़फ्फ़....रुक सलवार उतार देती हू....मुझे भी उसकी पानी छ्होर्थी चूत देखनी थी......मैं रुक गई.....शाब्बो ने एक झटके में सलवार का नारा खोला और उसके साथ ही अपनी पनटी को भी नीचे खीचते हुए उतार फेका....अब हम दोनो पूरे नंगे हो चुके थे....कोई सोच भी नही सकता दो पाक दामन सारीफ़ खानदान की लड़कियाँ नंगे बदन.....सेक्स की पयासी एक दूसरे को बंद कमरे के अंदर नोच रही होगी.....

सलवार खोलने के बाद शाब्बो ने मुझे पीछे की तरफ धकेल दीवान की पुष्ट से टीका दिया....मेरी दोनो टाँगे फैला उनके बीच बैठ गई और अपनी टॅंगो को फैला मेरी कमर के इर्द-गिर्द कर दिया.....उसकी चूत भी सॉफ दिखने लगी.... एकदम चिकनी चूत ....बिना झांतो वाली.....चूत के होंठों पर सफेद पानी सा लगा दिख रहा था.....उसकी चूत पर हाथ लगा....फाँक पर उपर से नीचे हाथ चलती बोली....ही पूरा जंगल सॉफ कर रखा है....खालिद भाई के लिए.....हा चूत मारनी....उनके लिए ही सॉफ कर रखा है....तूने क्यों डिज़ाइन बना रखा है.....




हन जानू देखा था किसी को.....चूत के उपर हल्का झाँत छोड़ दिया.....मैं उसको कैसे बताती की ये डिज़ाइन अपनी अम्मी से सीखा है....हा तू सही कहती है...मैने एक बार चोदा - चोदी की फिल्म देखी थी.....ही जैसी तब्बसुम की थी....नही रे वो म्मीस थी....अंग्रेज़ो वाली....गोरो की चोदा - चोदी वाली फिल्म देखी थी....उसमे सारी अँग्रेजने ऐसे ही चूत के उपर झाँत का डिज़ाइन बनाए थी.....ही सच में....तू भी बना ले....तेरे खालिद भाई को अच्छी लगेगी....कुट्टी...झांट तो उगा लूँगी...मगर तू खालिद भाई...उईईइ टोबा....कहना बंद करेगी या नही.....ही पहले कहती थी तो नही अब शरम आ रही है....खुद ही सगाई के रोज बोल के आई है....वो और बात थी....कहते हुए उसने मेरी चूंची के निपल को ज़ोर से दबाते हुए अपनी एक उंगली मेरी चूत में पेल दी....

हम दोनो बात करते हुए एक दूसरे की चूत चूंची सहला रहे थे....मैं इस व्क़ुत उसकी चिकनी छुपरि चूत के फांको पर अपनी उंगली चला रही थी...अचानक उसके निपल दबाने और बुर में उंगली पेलने से मेरी चीख निकल गई....मैने भी उसकी चूत में दो उंगलियाँ घुसेड़ दी....पर शायद उसको इसकी आदत थी....मज़े से मेरी दो उंगलियाँ निगल गई....सात सात करती चूत में उंगली डालती मेरी चूंची से खेल रही थी....मैं कच कच उसकी बुर में उंगली पेल रही थी....तभी उसने कहा....ही बन्नो तेरी चूत तो मज़े का पानी फेक रही है...सीईईई....चल लेट जा जानेमन....तेरी रसीली बुर का रस....कहते हू उसने मुझे पीछे धकेला....अपनी चूत से मेरी उंगली निकली और थोड़ा पीछे खिषाक़ मेरी चूत के उपर झुकती चली गई...




मैं समझ गई की अब मेरी चूत चतेगी....दोनो जाँघो को फैला मैं उसको होंठों का बेसब्री से इंतेज़ार करने लगी.....ज़ुबान निकल चूत के उपरी सिरे पर फिरते हुए.....लाल नुकीले तीट से जैसे ही उसकी ज़ुबान टकराई....मेरी साँसे रुक गई....बदन ऐत गया....लगा जैसे पूरे बदन का खून चूत की तरफ दौड़ लगा रहा है.....सुरसुरी की लहर ने बदन में कप कपि पैदा कर दी....मैं आँखे बंद किए इस अंजाने मज़े का रस चख रही थी....तभी उसने तीट पर से अपनी ज़ुबान को हटा....एक कुतिया की तरह से मेरी चूत को लापर लापर चाटना शुरू कर दिया....वो बोलती भी जा रही थी....ही क्या रबड़ी जैसी चूत है....सीईईईईईई....चूत मारनी कितना पानी छोड़ रही है....लॅप लॅप करते हुए चाट रही थी....मेरी तो बोलती बंद थी....

ज़ुबान काम नही कर रही था....मज़े के सातवे आसमान पर उड़ते हुए मेरे मुँह से सिर्फ़ गुगनाने और सिसकारी के सिवा कोई और आवाज़ नही निकल रही थी....उसने मेरी चूत के दोनो फांको को चुटकी में पकड़ फैला दिया....मैने गर्दन उठा कर देखा....मेरी बुर की गुलाबी छेद उसके सामने थी....जीभ नुकीला कर चप से उसने जब चूत में घुसा अंदर बाहर किया तो....मैं मदहोश हो उसके सिर के बालो को पकड़ अपनी बुर पर दबा चिल्ला उठी....चू... चुस्स्स्स्सस्स हीईीईईईईईईई कभी सीईईईईईईईईईईईईईईईईई.... हाए !!!....कुतिया ....ये क्या कर रही है.......उईईईई....मेरी जान लेगी....पहले क्यों नही....अब जब तेरी शादी होने वाली है......उईईई.....सीईईईई.....चूस्स्स्स्सस्स....चा... आअट ... हाए !!! मेरी बुर में जीभ.....ओह अम्मी.... हाए !!!ईिइ....मेरी रंडी सहेली......बहुत मज़ा.....उफफफ्फ़ चाट........मेरी तो निकल....मैं गाइिईईईईईई.....



मेरी सिसकयारी और कराहों को बिना तब्बाज़ो दिए वो लगातार चाट रही थी....चूत में कच कच जीभ पेल रही थी.....मैं भी नीचे से कमर उचका कर उसकी ज़ुबान अपनी चूत में ले रही थी...तभी उसने चूत की दरार में से जीभ निकाल लिया और मेरी तरफ देखती हुई बोली......है ना जन्नत का मज़ा.....अपनी सिसकियों के बीच मैने हा में गर्दन हिला दिया....मेरी अधखुली आँखो में झांकती उसने अपनी दो उंगलियाँ अपने मुँह के अंदर डाली और अपने थूक से भिगो कर बाहर निकाल लिया....इस से पहले की मैं कुछ समझ पाती....अपने एक हाथ से मेरी चूत की फांको को फैला ....अपनी थूक से भीगी दोनो उंगलिया मेरी बुर के गुलाबी छेद पर लगा.....कच से पेल दिया....उईईईई.......मर गई.....मेरी चीख निकल गई....अपने हाथ से मैं ज़यादा से ज़यादा एक उंगली डालती थी.....शब्बो ने बिना आगाह किए दो उंगलियाँ मेरी चूत की संकरी गली में घुसेड़ दी थी....



उस पर मेरे चीखने का कोई असर नही था....उल्टा मेरी आँखो में झांकती अढ़लेटी हुई...अपने दाँत पर दाँत बैठाए पूरे ताक़त के साथ कच कच कर मेरी चूत में उंगली पेले जा रही थी.... ऊऊउउउईई....आअहह... ..सस्स्सिईईई... .शब्बू... वो लगातार...सटा सट चूत में उंगली पेल रही थी....दर्द कुछ ही लम्हो का था.....मेरी चूत जो पहले ही रस से सारॉबार थी....और ज़यादा रस फेकने लगी....चूत से पानी का दरिया फूट पड़ा.....मैं गाँड उठा उठा कर चूत में उंगली ले रही थी....कमर नचा रही थी....मेरी जांघें काप रही थी....उईईईई तेरे हाथों में जादू है....शब्बो और ज़ोर से हाए !!!....मेरी चूत मारनी सहेली.....मेरी निकल जाएगी....उईईई...!!!!!!!! रब्बा....!!!!


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