मेरा हाथ जब जांघों के बीच पहुँचा तो माँ फिर से थोड़ी सिमट सी गयी और जांघों में मेरे हाथ को पकड़ लिया कि और आगे ना जाऊ मैंने अपनी जीभ उसके होंठों पर लगा कर उसका मुँह खोला और जीभ अंदर डाल दी अम्मा मेरे मुँह में ही थोड़ी सिसकी और फिर मेरी जीभ को चूसने लगी अपनी जांघें भी उसने अलग कर के मेरे हाथ को खुला छोड़ दिया
मेरा रास्ता अब खुला था मुझे कुछ देर तक तो यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मेरी माँ, मेरे सपनों की रानी, वह औरत जिसने मुझे और मेरे भाई बहनों को अपनी कोख से जन्मा था, वह आज मुझसे, अपने बेटे को अपने साथ रति क्रीडा करने की अनुमति दे रही है
माँ के पेटीकोट के उपर से ही मैंने उसके फूले गुप्ताँग को रगडना शुरू कर दिया अम्मा अब कामवासना से कराह उठी उसकी योनि का गीलापन अब पेटीकोट को भी भिगो रहा था मैंने हाथ निकाल कर उसकी साड़ी पकडकर उतार दी और फिर खड़ा होकर अपने कपड़े उतारने लगा कपड़ों से छूटते ही मेरा बुरी तरह से तन्नाया हुआ लोहे के डंडे जैसा शिश्न उछल कर खड़ा हो गया
मैं फिर पलंग पर लेट कर अम्मा की कमर से लिपट गया और उसके पेटीकोट के उपर से ही उसके पेट के निचले भाग में अपना मुँहा दबा दिया अब उसके गुप्ताँग और मेरे मुँह के बीच सिर्फ़ वह पेटीकोट था जिसमें से माँ की योनि के रस की भीनी भीनी मादक खुशबू मेरी नाक में जा रही थी अपना सिर उसके पेट में घुसाकर रगडते हुए मैं उस सुगंध का आनंद उठाने लगा और पेटीकोट के उपर से ही उसके गुप्ताँग को चूमने लगा
मेरे होंठों को पेटीकोट के कपड़े में से माँ के गुप्ताँग पर उगे घने बालों का भी अनुभव हो रहा था उस मादक रस का स्वाद लेने को मचलते हुए मेरे मन की सांत्वना के लिए मैंने उस कपड़े को ही चूसना और चाटना शुरू कर दिया
आख़िर उतावला होकर मैंने अम्मा के पेटीकोट की नाडी खोली और उसे खींच कर उतारने लगा माँ एक बार फिर कुछ हिचकिचाई "ओ मेरे प्यारे बेटे, शायद हमें यह नहीं करना चाहिए, रुक जा मेरे लाल मैं तेरी माँ हूँ, प्रेमिका या पत्नी नहीं हूँ"
मैंने उसका पेट चूमते हुए कहा "अम्मा, मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ, तुम मेरे लिए संसार की सबसे सुंदर औरत हो माँ और बेटे के बीच काम संबंध अनुचित है यह मैं जानता हूँ पर दो लोग अगर एक दूसरे को बहुत चाहते हों तो उनमें रति क्रीडा में क्या हर्ज है?"
तृप्त होने के बाद वह कुछ संभली और मुझे उठाकर अपने उपर लिटा लिया मेरे सीने में मुँह छूपाकर वह शरमाती हुई बोली "राज बेटे, निहाल हो गयी आज मैं, कितने दिनों के बाद पहली बार इस मस्ती से मैं झडी हूँ"
"अम्मा, तुमसे सुंदर और सेक्सी कोई नहीं है इस संसार में कितने दिनों से मेरा यह सपना था तुमसे मैथुन करने का जो आज पूरा हो रहा है" माँ मुझे चूमते हुए बोली "सच में मैं इतनी सुंदर हूँ बेटे कि अपने ही बेटे को रिझा लिया?" मैं उसके स्तन दबाता हुआ बोला "हाँ माँ, तुम इन सब अभिनेत्रियों से भी सुंदर हो"
माँ ने मेरी इस बात पर सुख से विभोर होते हुए मुझे अपने उपर खींच कर मेरे मुँह पर अपने होंठ रख दिए और मेरे मुँह में जीभ डाल कर उसे घुमाने लगी; साथ ही साथ उसने मेरा लंड हाथ में पकड़ लिया और अपनी योनि पर उसे रगडने लगी उसकी चुनमूनियाँ बिलकुल गीली थी वह अब कामवासना से सिसक उठी और मेरी आँखों में आँखें डाल कर मुझ से मूक याचना करने लगी मैंने माँ के कानों में कहा "अम्मा, मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ, अब तुझे चोदना चाहता हूँ"
अम्मा ने अपनी टाँगें पसार दीं यह उसकी मूक सहमति थी साथ ही उसने मेरा लंड हाथ में लेकर सुपाडा खुद ही अपनी चुनमूनियाँ के मुँह पर जमा दिया उसका मुँह चूसते हुए और उसकी काली मदभरी आँखों में झाँकते हुए मैंने लंड पेलना शुरू किया मेरा लंड काफ़ी मोटा और तगडा हो गया था इसलिए धीरे धीरे अंदर गया उसकी चुनमूनियाँ किसी गुलाब के फूल की पंखुड़ियों जैसी चौडी होकर मेरा लंड अंदर लेने लगी
अम्मा अब इतनी कामातूर हो गई थी कि उससे यह धीमी गति का शिश्न प्रवेश सहन नहीं हुआ और मचल कर सहसा उसने अपने नितंब उछाल कर एक धक्का दिया और मेरा लंड जड तक उसकी चुनमूनियाँ में समा गया माँ की चुनमूनियाँ बड़ी टाइट थी मुझे अचरज हुआ कि तीन बच्चों के बाद भी मेरी जननी की योनि इतनी संकरी कैसे है उसकी योनि की शक्तिशाली पेशियों ने मेरे शिश्न को घूँसे जैसा पकड़ रखा था मैंने लंड आधा बाहर निकाला और फिर पूरा अंदर पेल दिया गीली तपी उस चुनमूनियाँ में लंड ऐसा मस्त सरक रहा था जैसे उसमें मक्खन लगा हो
इसके बाद मैं पूरे ज़ोर से माँ को चोदने में लग गया मैं इतना उत्तेजित था कि जितना कभी जिंदगी में नहीं हुआ मेरे तन कर खड़े लंड में बहुत सुखद अनुभूति हो रही थी और मैं उसका मज़ा लेता हुआ अम्मा को ऐसे हचक हचक कर चोद रहा था कि हर धक्के से उसका शरीर हिल जाता माँ की चुनमूनियाँ के रस में सराबोर मेरा शिश्न बहुत आसानी से अंदर बाहर हो रहा था
हम दोनों मदहोश होकर ऐसे चोद रहे थे जैसे हमें इसी काम एक लिए बनाया गया हो माँ ने मेरी पीठ को अपनी बाँहों में कस रखा था और मेरे हर धक्के पर वह नीचे से अपने नितंब उछाल कर धक्का लगा रही थी हर बार जब मैं अपना शिश्न अम्मा की योनि में घुसाता तो वह उसके गर्भाशय के मुँह पर पहुँच जाता, उस मुलायम अंदर के मुँह का स्पर्श मुझे अपने सुपाडे पर सॉफ महसूस होता अम्मा अब ज़ोर ज़ोर से साँसें लेते हुए झडने के करीब थी जानवरों की तरह हमने पंद्रह मिनट जोरदार संभोग किया फिर एकाएक माँ का शरीर जकड गया और वह काँपने लगी
माँ के इस तीव्र स्खलन के कारण उसकी योनि मेरे लंड को अब पकड़ने छोड़ने लगी और उसी समय मैं भी कसमसा कर झड गया इतना वीर्य मेरे लंड ने उसकी चुनमूनियाँ में उगला कि वह बाहर निकल कर बहने लगा काफ़ी देर हम एक दूसरे को चूमते हुए उस स्वर्गिक आनंद को भोगते हुए वैसे ही लिपटे पड़े रहे
माँ के मीठे चुंबनो से और मेरी छाती पर दबे उसके कोमल उरोजो और उनके बीच के कड़े निपलो की चुभन से अब भी योनि में घुसा हुआ मेरा शिश्न फिर धीरे धीरे खड़ा हो गया जल्द ही हमारा संभोग फिर शुरू हो गया इस बार हमने मज़े ले लेकर बहुत देर कामक्रीडा की माँ को मैंने बहुत प्यार से हौले हौले उसके चुंबन लेते हुए करीब आधे घंटे तक चोदा हम दोनों एक साथ स्खलित हुए अम्मा की आँखों में एक पूर्ण तृप्ति के भाव थे मुझे प्यार करती हुई वह बोली "राज, तेरा बहुत बड़ा है बेटे, बिलकुल मुझे पूरा भर दिया तूने"
मैं बहुत खुश था और गर्व महसूस कर रहा था कि पहले ही मैथुन में मैंने अम्मा को वह सुख दिया जो आज तक कोई उसे नहीं दे पाया था मैं भरे स्वर में बोला "यह इसलिए माँ कि मैं तुझपर मरता हूँ और बहुत प्यार करता हूँ" माँ सिहर कर बोली "इतना आनंद मुझे कभी नहीं आया मैं तो भूल ही गई थी कि स्खलन किसे कहते हैं" मैं माँ से लिपटा रहा और हम प्यार से एक दूसरे के बदन सहलाते हुए चूमते रहे "राज, मेरे राजा, मेरे लाल, अब मैं जाती हूँ हमें सावधान रहना चाहिए, किसी को शक ना हो जाए"
उठ कर उसने अपना बदन पोंच्छा और कपड़े पहनने लगी मैंने उससे धीमे स्वर में पूछा "अम्मा, मैं तुम्हारा पेटीकोट रख लूँ? अपनी पहली रात की निशानी?" वह मुस्करा कर बोली "रख ले राजा, पर छुपा कर रखना" उसने साड़ी पहनी और मुझे एक आखरी चुंबन देकर बाहर चली गई
मैं जल्द ही सो गया, सोते समय मैंने अपनी माँ का पेटीकोट अपने तकिये पर रखा था उसमें से आ रही माँ के बदन और उसके रस की खुशबू सूँघते हुए कब मेरी आँख लग गयी, पता ही नहीं चला
क्रमशः…………………
माँ का प्यार
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Re: माँ का प्यार
माँ का प्यार-3
गतान्क से आगे ……………………
अगले दिन नाश्ते पर जब सब इकट्ठा हुए तो माँ चुप थी, मुझसे बिलकुल नहीं बोली मुझे लगा कि लो, हो गई नाराज़, कल शायद मुझसे ज़्यादती हो गई जब मैं काम पर जा रहा था तो अम्मा मेरे कमरे में आई "बात करना है तुझसे" गंभीर स्वर में वह बोली
"क्या बात है अम्मा? क्या हुआ? मैंने कुछ ग़लती की?" मैंने डरते हुए पूछा "नहीं बेटे" वह बोली "पर कल रात जो हुआ, वह अब कभी नहीं होना चाहिए" मैंने कुछ कहने के लिए मुँहा खोला तो उसने मुझे चुप कर दिया
"कल की रात मेरे लिए बहुत मतवाली थी राज और हमेशा याद रहेगी पर यह मत भूलो कि मैं शादी शुदा हूँ और तेरी माँ हूँ यह संबंध ग़लत है" मैंने तुरंत इसका विरोध किया "अम्मा, रूको" उसकी ओर बढकर उसे बाँहों में भरते हुए मैं बोला "तुम्हे मालूम है कि मैं तुम्हे कितना प्यार करता हूँ और यह भी जानता हूँ कि तुम भी मुझे इतना ही चाहती हो इस प्यार को ऐसी आसानी से नहीं समाप्त किया जा सकता"
मैंने उसका चुंबन लेने की कोशिश की तो उसने अपना सिर हिलाकर नहीं कहते हुए मेरी बाँहों से अपने आप को छुडा लिया मैंने पीछे से आवाज़ दी "तू कुछ भी कह माँ, मैं तो तुझे छोड़ने वाला नहीं हूँ और ऐसे ही प्यार करता रहूँगा" रोती हुई माँ कमरे से चली गई
इसके बाद हमारा संबंध टूट सा गया मुझे सॉफ दिखता था कि वह बहुत दुखी है फिर भी उसने मेरी बात नहीं सुनी और मुझे टालती रही मैंने भी उसके पीछे लगाना छोड़ दिया क्योंकि इससे उसे और दुख होता था
माँ अब मेरे लिए एक लड़की की तलाश करने लगी कि मेरी शादी कर दी जाए उसने सब संबंधियों से पूछताछ शुरू कर दी दिन भर अब वह बैठ कर आए हुए रिश्तों की कुंडलियाँ मुझसे मिलाया करती थी ज़बरदस्ती उसने मुझे कुछ लड़कियों से मिलवाया भी मैं बहुत दुखी था कि मेरी माँ ही मेरे उस प्यार को हमेशा के लिए खतम करने के लिए मुझपर शादी की ज़बरदस्ती कर रही है
आख़िर मैंने हार मान ली और एक लड़की पसंद कर ली वह कुछ कुछ माँ जैसी ही दिखती थी पर जब शादी की तारीख पक्की करने का समय आया तो माँ में अचानक एक परिवर्तन आया वह बात बात में झल्लाती और मुझ पर बरस पड़ती उसकी यह चिडचिडाहट बढ़ती ही गई मुझे लगा कि जैसे वह मेरी होने वाली पत्नी से बहुत जल रही है
आख़िर एक दिन अकेले में उसने मुझसे कहा "राज, बहुत दिन से पिक्चर नहीं देखी, चल इस रविवार को चलते हैं" मुझे खुशी भी हुई और अचरज भी हुआ "हाँ माँ, जैसा तुम कहो" मैंने कहा मैं इतना उत्तेजित था कि बाकी दिन काटना मेरे लिए कठिन हो गया यही सोचता रहा कि मालूम नहीं अम्मा के मन में क्या है शायद उसने सिर्फ़ मेरा दिल बहलाने को यह कहा हो
गतान्क से आगे ……………………
अगले दिन नाश्ते पर जब सब इकट्ठा हुए तो माँ चुप थी, मुझसे बिलकुल नहीं बोली मुझे लगा कि लो, हो गई नाराज़, कल शायद मुझसे ज़्यादती हो गई जब मैं काम पर जा रहा था तो अम्मा मेरे कमरे में आई "बात करना है तुझसे" गंभीर स्वर में वह बोली
"क्या बात है अम्मा? क्या हुआ? मैंने कुछ ग़लती की?" मैंने डरते हुए पूछा "नहीं बेटे" वह बोली "पर कल रात जो हुआ, वह अब कभी नहीं होना चाहिए" मैंने कुछ कहने के लिए मुँहा खोला तो उसने मुझे चुप कर दिया
"कल की रात मेरे लिए बहुत मतवाली थी राज और हमेशा याद रहेगी पर यह मत भूलो कि मैं शादी शुदा हूँ और तेरी माँ हूँ यह संबंध ग़लत है" मैंने तुरंत इसका विरोध किया "अम्मा, रूको" उसकी ओर बढकर उसे बाँहों में भरते हुए मैं बोला "तुम्हे मालूम है कि मैं तुम्हे कितना प्यार करता हूँ और यह भी जानता हूँ कि तुम भी मुझे इतना ही चाहती हो इस प्यार को ऐसी आसानी से नहीं समाप्त किया जा सकता"
मैंने उसका चुंबन लेने की कोशिश की तो उसने अपना सिर हिलाकर नहीं कहते हुए मेरी बाँहों से अपने आप को छुडा लिया मैंने पीछे से आवाज़ दी "तू कुछ भी कह माँ, मैं तो तुझे छोड़ने वाला नहीं हूँ और ऐसे ही प्यार करता रहूँगा" रोती हुई माँ कमरे से चली गई
इसके बाद हमारा संबंध टूट सा गया मुझे सॉफ दिखता था कि वह बहुत दुखी है फिर भी उसने मेरी बात नहीं सुनी और मुझे टालती रही मैंने भी उसके पीछे लगाना छोड़ दिया क्योंकि इससे उसे और दुख होता था
माँ अब मेरे लिए एक लड़की की तलाश करने लगी कि मेरी शादी कर दी जाए उसने सब संबंधियों से पूछताछ शुरू कर दी दिन भर अब वह बैठ कर आए हुए रिश्तों की कुंडलियाँ मुझसे मिलाया करती थी ज़बरदस्ती उसने मुझे कुछ लड़कियों से मिलवाया भी मैं बहुत दुखी था कि मेरी माँ ही मेरे उस प्यार को हमेशा के लिए खतम करने के लिए मुझपर शादी की ज़बरदस्ती कर रही है
आख़िर मैंने हार मान ली और एक लड़की पसंद कर ली वह कुछ कुछ माँ जैसी ही दिखती थी पर जब शादी की तारीख पक्की करने का समय आया तो माँ में अचानक एक परिवर्तन आया वह बात बात में झल्लाती और मुझ पर बरस पड़ती उसकी यह चिडचिडाहट बढ़ती ही गई मुझे लगा कि जैसे वह मेरी होने वाली पत्नी से बहुत जल रही है
आख़िर एक दिन अकेले में उसने मुझसे कहा "राज, बहुत दिन से पिक्चर नहीं देखी, चल इस रविवार को चलते हैं" मुझे खुशी भी हुई और अचरज भी हुआ "हाँ माँ, जैसा तुम कहो" मैंने कहा मैं इतना उत्तेजित था कि बाकी दिन काटना मेरे लिए कठिन हो गया यही सोचता रहा कि मालूम नहीं अम्मा के मन में क्या है शायद उसने सिर्फ़ मेरा दिल बहलाने को यह कहा हो
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Re: माँ का प्यार
रविवार को माँ ने फिर ठीक वही शिफान की सेक्सी साड़ी पहनी खूब बनठन कर वह तैयार हुई थी मैं भी उसका वह मादक रूप देखता रहा गया कोई कह नहीं सकता था कि मेरे पास बैठ कर पिक्चर देखती वह मेरी माँ है पिक्चर के बाद हम उसी बगीचे में अपने प्रिय स्थान पर गये
मैंने माँ को बाँहों में खींच लिया मेरी खुशी का पारावार ना रहा जब उसने कोई विरोध नहीं किया और चुपचाप मेरे आलिंगन में समा गई मैंने उसके चुंबन पर चुंबन लेना शुरू कर दिए मेरे हाथ उसके पूरे बदन को सहला और दबा रहे थे माँ भी उत्तेजित थी और इस चूमाचाटी में पूरा सहयोग दे रही थी
आख़िर हम घर लौटे आधी रात हो जाने से सन्नाटा था माँ बोली "तू अपने कमरे में जा, मैं देख कर आती हूँ कि तेरे बापू सो गये या नहीं" मैंने अपने पूरे कपड़े निकाले और बिस्तर में लेट कर उसका इंतजार करने लगा दस मिनट बाद माँ अंदर आई और दरवाजा अंदर से बंद करके दौड कर मेरी बाँहों में आ समाई
एक दूसरे के चुंबन लेते हुए हम बिस्तर में लेट गये मैंने जल्दी अम्मा के कपड़े निकाले और उसके नग्न मोहक शरीर को प्यार करने लगा मैंने उसके अंग अंग को चूमा, एक इंच भी जगहा कहीं नहीं छोडी उसके मांसल चिकने नितंब पकडकर मैं उसके गुप्ताँग पर टूट पड़ा और मन भर कर उसमें से रसते अमृत को पिया
दो बार माँ को स्खलित करा के उसके रस का माँ भर कर पान करके आख़िर मैंने उसे नीचे लिटाया और उसपर चढ बैठा अम्मा ने खुद ही अपनी टाँगें फैला कर मेरा लोहे जैसा कड़ा शिश्न अपनी योनि के भगोष्ठो में जमा लिया मैंने बस ज़रा सा पेला और उस चिकनी कोमल चुनमूनियाँ में मेरा लंड पूरा समा गया माँ को बाँहों में भर कर अब मैं चोदने लगा
अम्मा मेरे हर वार पर आनंद से सिसकती हम एक दूसरे को पकड़ कर पलंग पर लोट पोट होते हुए मैथुन करते रहे कभी वह नीचे होती, कभी मैं इस बार हमने संयमा रख कर खूब जमकर बहुत देर कामक्रीडा की आख़िर जब मैं और वह एक साथ झडे तो उस स्खलन की मीठी तीव्रता इतनी थी कि माँ रो पडी "ओहा राज बेटे, मर गयी" वह बोली "तूने तो मुझे जीते जागते स्वर्ग पहुँचा दिया मेरे लाल"
मैंने उसे कस कर पकडते हुए पूछा "अम्मा, मेरी शादी के बारे में क्या तुमने इरादा बदल दिया है?" "हाँ बेटा" वह मेरे गालों को चूमते हुए बोली "तुझे नहीं पता, यह महीना कैसे गुज़रा मेरे लिए जैसे तेरी शादी की बात पक्की करने का दिन पास आता गया, मैं तो पागल सी हो गयी आख़िर मुझसे नहीं रहा गया, मैं इतनी जलती थी तेरी होने वाली पत्नी से मुझे अहसास हो गया कि मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ, सिर्फ़ बेटे की तरह नहीं, एक नारी की तरह जो अपने प्रेमी की दीवानी है"
मैने भी उसके बालों का चुंबन लेते हुए कहा "हाँ माँ, मैं भी तुझे अपनी माँ जैसे नहीं, एक अभिसारिका के रूप में प्यार करता हूँ, मैं तुझसे अलग नहीं रह सकता" माँ बोली "मैं जानती हूँ राज, तेरी बाँहों में नंगी होकर ही मैंने जाना कि प्यार क्या है अब मैं सॉफ तुझे कहती हूँ, मैं तेरी पत्नी बनकर जीना चाहती हूँ, बोल, मुझसे शादी करेगा?"
मैं आनंद के कारण कुछ देर बोल भी नहीं पाया फिर उसे बाँहों में भींचते हुए बोला "अम्मा, तूने तो मुझे संसार का सबसे खुश आदमी बना दिया, तू सिर्फ़ मेरी है, और किसीकी नहीं, तुम्हारा यहा मादक खूबसूरत शरीर मेरा है, मैं चाहता हूँ कि तुम नंगी होकर हमेशा मेरे आगोश में रहो और मैं तुम्हें भोगता रहूं"
"ओह मेरे बेटे, मैं भी यही चाहती हन, पर तुमसे शादी करके मैं और कहीं जा कर रहना चाहती हूँ जहाँ हमें कोई ना पहचानता हो तू बाहर दूर कहीं नौकरी ढूँढ ले या बिज़ीनेस कर ले मैं तेरी पत्नी बनकर तेरे साथ चलूंगी यहाँ हमें बहुत सावधान रहना पड़ेगा राज पूरा आनंद हम नहीं उठा पाएँगे"
माँ की बात सच थी मैं उसे बोला "हाँ अम्मा, तू सच कहती है, मैं कल से ही प्रयत्न शुरू कर देता हूँ"
हम फिर से संभोग के लिए उतावले हो गये थे माँ मेरी गोद में थी और मैंने उसके खूबसूरत निपल, जो कड़े होकर काले अंगूर जैसे हो गये थे, उन्हें मुंह में लेकर चूसने लगा अम्मा ने मुझे नीचे बिस्तर पर लिटा दिया और खुद मेरे उपर चढ कर मेरा लंड अपनी चुनमूनियाँ के मुँह पर रख कर नीचे होते हुए उसे पूरा अंदर ले लिया फिर वह झुककर मुझे चूमते हुए उछल उछल कर मुझे चोदने लगी मैं भी उसके नितंब पकड़े हुए था उसकी जीभ मेरी जीभ से खेलने लगी और सहसा वह मेरे मुँह में ही एक दबी चीख के साथ स्खलित हो गयी
मैंने माँ को बाँहों में खींच लिया मेरी खुशी का पारावार ना रहा जब उसने कोई विरोध नहीं किया और चुपचाप मेरे आलिंगन में समा गई मैंने उसके चुंबन पर चुंबन लेना शुरू कर दिए मेरे हाथ उसके पूरे बदन को सहला और दबा रहे थे माँ भी उत्तेजित थी और इस चूमाचाटी में पूरा सहयोग दे रही थी
आख़िर हम घर लौटे आधी रात हो जाने से सन्नाटा था माँ बोली "तू अपने कमरे में जा, मैं देख कर आती हूँ कि तेरे बापू सो गये या नहीं" मैंने अपने पूरे कपड़े निकाले और बिस्तर में लेट कर उसका इंतजार करने लगा दस मिनट बाद माँ अंदर आई और दरवाजा अंदर से बंद करके दौड कर मेरी बाँहों में आ समाई
एक दूसरे के चुंबन लेते हुए हम बिस्तर में लेट गये मैंने जल्दी अम्मा के कपड़े निकाले और उसके नग्न मोहक शरीर को प्यार करने लगा मैंने उसके अंग अंग को चूमा, एक इंच भी जगहा कहीं नहीं छोडी उसके मांसल चिकने नितंब पकडकर मैं उसके गुप्ताँग पर टूट पड़ा और मन भर कर उसमें से रसते अमृत को पिया
दो बार माँ को स्खलित करा के उसके रस का माँ भर कर पान करके आख़िर मैंने उसे नीचे लिटाया और उसपर चढ बैठा अम्मा ने खुद ही अपनी टाँगें फैला कर मेरा लोहे जैसा कड़ा शिश्न अपनी योनि के भगोष्ठो में जमा लिया मैंने बस ज़रा सा पेला और उस चिकनी कोमल चुनमूनियाँ में मेरा लंड पूरा समा गया माँ को बाँहों में भर कर अब मैं चोदने लगा
अम्मा मेरे हर वार पर आनंद से सिसकती हम एक दूसरे को पकड़ कर पलंग पर लोट पोट होते हुए मैथुन करते रहे कभी वह नीचे होती, कभी मैं इस बार हमने संयमा रख कर खूब जमकर बहुत देर कामक्रीडा की आख़िर जब मैं और वह एक साथ झडे तो उस स्खलन की मीठी तीव्रता इतनी थी कि माँ रो पडी "ओहा राज बेटे, मर गयी" वह बोली "तूने तो मुझे जीते जागते स्वर्ग पहुँचा दिया मेरे लाल"
मैंने उसे कस कर पकडते हुए पूछा "अम्मा, मेरी शादी के बारे में क्या तुमने इरादा बदल दिया है?" "हाँ बेटा" वह मेरे गालों को चूमते हुए बोली "तुझे नहीं पता, यह महीना कैसे गुज़रा मेरे लिए जैसे तेरी शादी की बात पक्की करने का दिन पास आता गया, मैं तो पागल सी हो गयी आख़िर मुझसे नहीं रहा गया, मैं इतनी जलती थी तेरी होने वाली पत्नी से मुझे अहसास हो गया कि मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ, सिर्फ़ बेटे की तरह नहीं, एक नारी की तरह जो अपने प्रेमी की दीवानी है"
मैने भी उसके बालों का चुंबन लेते हुए कहा "हाँ माँ, मैं भी तुझे अपनी माँ जैसे नहीं, एक अभिसारिका के रूप में प्यार करता हूँ, मैं तुझसे अलग नहीं रह सकता" माँ बोली "मैं जानती हूँ राज, तेरी बाँहों में नंगी होकर ही मैंने जाना कि प्यार क्या है अब मैं सॉफ तुझे कहती हूँ, मैं तेरी पत्नी बनकर जीना चाहती हूँ, बोल, मुझसे शादी करेगा?"
मैं आनंद के कारण कुछ देर बोल भी नहीं पाया फिर उसे बाँहों में भींचते हुए बोला "अम्मा, तूने तो मुझे संसार का सबसे खुश आदमी बना दिया, तू सिर्फ़ मेरी है, और किसीकी नहीं, तुम्हारा यहा मादक खूबसूरत शरीर मेरा है, मैं चाहता हूँ कि तुम नंगी होकर हमेशा मेरे आगोश में रहो और मैं तुम्हें भोगता रहूं"
"ओह मेरे बेटे, मैं भी यही चाहती हन, पर तुमसे शादी करके मैं और कहीं जा कर रहना चाहती हूँ जहाँ हमें कोई ना पहचानता हो तू बाहर दूर कहीं नौकरी ढूँढ ले या बिज़ीनेस कर ले मैं तेरी पत्नी बनकर तेरे साथ चलूंगी यहाँ हमें बहुत सावधान रहना पड़ेगा राज पूरा आनंद हम नहीं उठा पाएँगे"
माँ की बात सच थी मैं उसे बोला "हाँ अम्मा, तू सच कहती है, मैं कल से ही प्रयत्न शुरू कर देता हूँ"
हम फिर से संभोग के लिए उतावले हो गये थे माँ मेरी गोद में थी और मैंने उसके खूबसूरत निपल, जो कड़े होकर काले अंगूर जैसे हो गये थे, उन्हें मुंह में लेकर चूसने लगा अम्मा ने मुझे नीचे बिस्तर पर लिटा दिया और खुद मेरे उपर चढ कर मेरा लंड अपनी चुनमूनियाँ के मुँह पर रख कर नीचे होते हुए उसे पूरा अंदर ले लिया फिर वह झुककर मुझे चूमते हुए उछल उछल कर मुझे चोदने लगी मैं भी उसके नितंब पकड़े हुए था उसकी जीभ मेरी जीभ से खेलने लगी और सहसा वह मेरे मुँह में ही एक दबी चीख के साथ स्खलित हो गयी