3रायपुर के रेलवे स्टेशन पर निक्की पिच्छले 20 मिनिट से खड़ी थी. उसका गुस्से से बुरा हाल था. दीवान जी ने ड्राइवर को निक्की को लेने भेजा था पर उसका कोई पता नही था. निक्की गुस्से से भरी प्लॅटफॉर्म पर चहल कदमी कर रही थी.
इस वक़्त निक्की पिंक कलर की फ्रॉक पहने हुए थी. उसकी आँखों में धूप का चस्मा चढ़ा हुआ था और सर पर सन हॅट्स था. फ्रॉक इतनी छोटी थी कि आधी जंघे नुमाया हो रही थी. प्लॅटफॉर्म पर आते जाते लोग ललचाई नज़रों से उसकी खूबसूरत जाँघो और उभरी हुई छाती को घूरते जा रहे थे. अचानक ही किसी बाइक के आक्सेलेटर की तेज आवाज़ उसके कानो से टकराई. आवाज़ इतनी तेज थी कि निक्की का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुँच गया. निक्की की दृष्टि घूमी. सामने ही एक खूबसूरत नौजवान अपनी बाइक पर बैठा बाइक के कान मरोड़ने में व्यस्त था. वो जब तक आक्स्लेटर लेता बाइक स्टार्ट रहती आक्स्लेटर छोड़ते ही बाइक भूय भूय करके बंद हो जाती. वो फिर से किक मारता...आक्स्लेटर लेता और बाइक स्टार्ट करने में लग जाता. वह पसीने से तर बतर हो चुका था. निक्क 5 मिनिट तक उसकी भानी भानी सुनती रही. अंत में उसका सब्र जवाब दे गया. वा गुस्से से उसकी ओर देखकर बोली - "आए मिसटर, अपनी इस खटारा को बंद करो या कहीं दूर ले जाकर स्टार्ट करो. इसकी बेसुरी आवाज़ से मेरे कान के पर्दे फट रहे हैं."
वह युवक बाइक ना स्टार्ट होने से वैसे ही परेशान था उसपर ऐसी झिड़की, उसकी बाइक का ऐसा अपमान...वह सह ना सका. गुस्से में पलटा पर जैसे ही उसकी नज़र निक्की पर पड़ी वह चौंक पड़ा. अपने सामने एक खूबसूरत हसीना को देखकर उसका गुस्सा क्षण भर के लिए गायब हुआ. फिर बोला - "आप मेरी बाइक को खटारा कह रही हैं? आपको अंदाज़ा नही है मैं इस बाइक पर बैठ कितनी रेस जीत चुका हूँ."
"रेस...? और वो भी इस बाइक से? ये चलती भी है, मुझे तो इसके स्टार्ट होने पर भी संदेह हो रहा है." वह व्यंग से मुस्कुराइ.
युवक को तेज गुस्सा आया पर मन मसोस कर रह गया. उसने बाइक को अज़ीब नज़रों से घूरा फिर एक ज़ोर दार किक मारा. इस बार भी बाइक स्टार्ट नही हुई. वह बार बार प्रयास करता रहा और आक्स्लेटर की आवाज़ से निक्की को परेशान करता रहा. कुच्छ ही देर में निक्की का ड्राइवर जीप लेकर पहुँचा. ड्राइवर जीप से उतर कर निक्की के पास आया.
"इतनी देर क्यों हुई आने में?" निक्की ड्राइवर को देखते ही बरसी.
"ग़लती हो गयी छोटी मालकिन...वो क्या है कि.....असल....में..." ड्राइवर हकलाया.
"शट अप." निक्की गुस्से में चीखी.
ड्राइवर सहम गया. उसकी नज़रें ज़मीन चाटने लगी.
"सामान उठाने के लिए कोई दूसरा आएगा? " निक्की उसे खड़ा देख फिर से भड़की. ड्राइवर तेज़ी से हरकत में आया और सामान उठाकर जीप में रखने लगा.
निक्की की नज़रें उस बाइक वाले युवक की ओर घूमी. वो इधर ही देख रहा था. उसे अपनी ओर देखते पाकर निक्की एक बार फिर व्यंग से मुस्कुराइ और अपनी जीप की ओर बढ़ गयी. अचानक ही वो हुआ जिसकी कल्पना निक्की ने नही की थी. उसकी बाइक स्टार्ट हो गयी. निक्की ने उस युवक को देखा. अब मुस्कुराने की बारी उस युवक की थी. वह बाइक पर बैठा और निक्की को देखते हुए एक अदा से सर को झटका दिया और सीटी बजाता हुआ बाइक को भगाता चला गया. निक्की जल-भुन कर रह गयी.
ड्राइवर सामान रख चुका था. निक्की लपक कर स्टियरिंग वाली सीट पर आई. चाभी को घुमाया गियर बदली और फुल स्पीड से जीप को छोड़ दिया.
"छोटी मालकिन....!" ड्राइवर चीखते हुए जीप के पिछे दौड़ा.
निक्की तेज़ी से पहाड़ी रास्तों पर जीप भगाती चली जा रही थी. कुच्छ ही दूर आगे उसे वही बाइक वाला युवक दिखाई दिया. उसने जीप की रफ़्तार बढ़ाई और कुच्छ ही पल में उसके बराबर पहुँच गयी. फिर उसकी ओर देखती हुई बोली - "हेलो मिस्टर ख़तरा"
युवक ने निक्की की ओर देखा, अभी वह कुच्छ कहने की सोच ही रहा था कि निक्की एक झटके में फ़र्राटे की गति से जीप को ले भागी. युवक गुस्से में निक्की को देखता ही रह गया. उसकी आँखें सुलग उठी उसने आक्स्लेटर पर हाथ जमाया और बाइक को फुल स्पीड पर छोड़ दिया. अभी वह कुच्छ ही दूर चला था कि सड़क पर कुच्छ लड़किया पार करती दिखाई दी. उसने जल्दी से ब्रेक मारा. उसकी रफ़्तार बहुत अधिक थी , बाइक फिसला और सीधे एक पत्थेर से जा टकराया. युवक उच्छल कर दूर जा गिरा. बाइक से बँधा उसका सूटकेस खुल गया और सारे कपड़े सड़क पर इधर उधर बिखर गये. वह लंगड़ाता हुआ उठा. तभी उसके कानो से किसी लड़की के हँसने की आवाज़ टकराई. उसने पलट कर देखा. एक ग्रामीण बाला सलवार कुर्ता पहने खिलखिलाकर हंस रही थी. उसके पिछे उसकी सहेलियाँ भी खड़ी खड़ी मुस्कुरा रही थी. उन सभी लड़कियों के हाथ में पुस्तकें थी जिस से युवक को समझते देर नही लगी कि ये लड़कियाँ पास के गाओं की रहने वाली हैं और इस वक़्त कॉलेज से लौट रही हैं.
"ये देखो, काठ का उल्लू" आगे वाली लड़की हँसते हुए सहेलियों से बोली.
युवक की नज़र उसपर ठहर गयी. वो बला की खूबसूरत थी. गर्मी की वजह से उसके चेहरे पर पसीना छलक आया था. पसीने से तर उसका गोरा मुखड़ा सुर्य की रोशनी में ऐसे चमक रहा था जैसे पूर्णिमा की रात में चाँद. उसका दुपट्टा उसके गले से लिपटकर पिछे पीठ की ओर झूल रहा था. सामने उसकी भरी हुई चूचियाँ किसी पर्वत शिखर की तरह तनी हुई उसे घूरा रही थी. पेट समतल था, कमर पतली थी लेकिन कूल्हे चौड़े और भारी गोलाकार लिए हुए थे. उसका नशीला गठिला बदन कपड़ों में छुपाये नही छुप रहा था. युवक कुच्छ पल के लिए उसकी सुंदरता में खो सा गया. वह ये भी भूल गया कि इस लड़की ने कुच्छ देर पहले उसे काठ का उल्ला कहा था. उसे ये भी ध्यान नही था कि उसकी बाइक सड़क पर गिरी पड़ी है और उसके कपड़े हवाओं के ज़ोर से सड़क पर इधर उधर घिसट रहे थे.
लेकिन लड़कियों को उसकी दशा का अनुमान था. उसकी हालत पर एक बार फिर लड़कियाँ खिलखिला कर हंस पड़ी. उसकी चेतना लौटी. उसने अपनी भौंहे चढ़ाई और उस लड़की को घूरा जिसने उसे काठ का उल्लू कहा था. "क्या कहा तुमने? ज़रा फिर से कहना."
"काठ का उल्लू." वह लड़की पुनः बोली और फिर हंस पड़ी.
"मैं तुम्हे काठ का उल्लू नज़र आता हूँ" युवक ने बिफर्कर बोला.
"और नही तो क्या....अपनी सूरत देखो पक्के काठ के उल्लू लगते हो." उसके साथ उसकी सहेलियाँ भी खिलखिलाकर हँसने लगी.
युवक अपमान से भर उठा, उसने कुच्छ कहने के लिए मूह खोला पर होठ चबाकर रह गया. उसे अपनी दशा का ज्ञान हुआ, वह उन लड़कियों से उलझकर अपनी और फ़ज़ीहत नही करवाना चाह रहा था. वह मुड़ा और अपने कपड़े समेटने लगा. लड़कियाँ हँसती हुई आगे बढ़ गयी.
*****
निक्की जैसे ही हवेली पहुँची ठाकुर साहब को बाहर ही इंतेज़ार करते पाया. उनके साथ में दीवान जी भी थे. वह जीप से उतरी तो दीवान जी लपक कर निक्की तक पहुँचे "आओ बेटा. मालिक कब से तुम्हारा इंतेज़ार कर रहे हैं."
निक्की ने ठाकुर साहब को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और फिर ठाकुर साहब से जाकर लिपट गयी. ठाकुर साहब ने उसे अपनी छाती से चिपका लिया. बरसों से सुलगते उनके दिल को आज ठंडक मिली थी. बेटी को छाती से लगाकर वे इस वक़्त अपने सारे दुखों को भुला बैठे थे. वह निक्की का माथा चूमते हुए बोले - "निक्की, तुम्हारा सफ़र कैसा रहा? कोई तकलीफ़ तो नही हुई यहाँ तक आने में?"
"ओह्ह पापा, मैं क्या बच्ची हूँ जो कोई भी मुझे तकलीफ़ दे देगा?" निक्की नथुने फुलाकर बोली.
उसकी बात से ठाकुर साहब और दीवान जी की ठहाके छूट पड़े.
"निक्की बेटा, तुम्हारे साथ ड्राइवर नही आया वो कहाँ रह गया?" दीवान जी निक्की को अकेला देखकर बोले.
"मैं उसे वही छोड़ आई. उसने मुझे पूरे 20 मिनिट वेट कराया. अब उसे कुच्छ तो पनिशमेंट मिलना चाहिए कि नही?" निक्की की बात से दीवान जी खिलखिलाकर हंस पड़े वहीं ठाकुर साहब बेटी की शरारत पर झेंप से गये.
कॉन्टिन्यू................................................
काँच की हवेली "kaanch ki haveli"
Re: काँच की हवेली "kaanch ki haveli"
Update 3
Raipur ke railway station par nikki pichhle 20 minute se khadi thi. Uska gusse se bura haal tha. deewan ji ne driver ko nikki ko lene bheja tha par uska koi pata nahi tha. Nikki Gusse se bhari platform par chalkadmi kar rahi thi.
Is waqt nikki pink color ki frock pehne hue thi. Uski aankhon mein dhoop ka chasma chadha hua tha aur sar par sun hats tha. frock itni chhoti thi ki aadhi janghe numaya ho rahi thi. Platform par aate jate log lalchayi najron se uske khubsurat jangho aur ubhre hue chhati ko ghurte ja rahe the. Achanak hi kisi bike ki acceleretor ki tej awaaz uske kaano se takrai. Awaaz itni tej thi ki nikki ka gussa saatwe aasman par pahunch gaya. nikki ki drishti ghumi. saamne hi ek khubsurat naujawan apni bike par baitha bike ke kaan marodne mein vyast tha. Wo jab tak acceletor leta bike start rahti acceletor chhodte hi bike bhuy bhuy karke band ho jati. Wo phir se kick marta...acceletor leta aur bike start karne mein lag jata. Wah pasine se tar batar ho chuka tha. Nikk 5 minute tak uski bhany bhany sunti rahi. ant mein uska sabr jawab de gaya. Wah gusse se uski aur dekhkar boli - "aye mister, apni is khatara ko band karo ya kahin door le jaakar start karo. Iski besuri awaaz se mere kaan ke parde fat rahe hain."
Wah yuvak bike na start hone se waise hi pareshan tha uspar aisi jhidki, uski bike ka aisa apmaan...wah sah na saka. gusse mein palta par jaise hi uski nazar nikki par padi wah chaunk pada. Apne saamne ek khubsurat hasina ko dekhkar uska gussa khsan bhar ke liye gaayab hua. Phir bola - "aap meri bike ko khatara keh rahi hain? Aapko andaza nahi hai main is bike par baith kitni race jeet chuka hoon."
"race...? Aur wo bhi is bike se? ye chalti bhi hai, mujhe to iske strat hone par bhi sandeh ho raha hai." wah vyang se muskurayi.
Yuvak ko tej gussa aaya par man masos kar rah gaya. Usne bike ko azeeb najron se ghura phir ek jor dar kick mara. Is baar bhi bike start nahi hui. Wah baar baar prayas karta raha aur acceletor ki awaaz se nikki ko pareshan karta raha. kuchh hi der mein nikki ka driver jeep lekar pahuncha. Driver jeep se utar kar nikki ke paas aaya.
"itni der kyon hui aane mein?" nikki driver ko dekhte hi barsi.
"galti ho gayi chhoti malkin...wo kya hai ki.....asal....mein..." driver haklaya.
"shut up." nikki gusse mein chikhi.
Driver saham gaya. uski najrein zameen chatne lagi.
"saaman uthane ke liye koi dusra aayega? " nikki use khada dekh phir se bhadki. Driver teji se harkat mein aaya aur saaman uthakar jeep mein rakhne laga.
Nikki ki najrein us bike wale yuvak ki aur ghumi. wo idhar hi dekh raha tha. use apni aur dekhte pakar nikki ne ek baar phir vyang se muskurayi aur apni jeep ki aur badh gayi. achanak hi wo hua jiski kalpana nikki ne na ki thi. Uski bike start ho gayi. nikki ne us yuvak ko dekha. Abki muskurane ki baari us yuvak ki thi. wah bike par baitha aur nikki ko dekhte hue ek ada se sar ko jhatka diya aur seeti bajata hua bike ko bhagata chala gaya. Nikki jal-bhun kar rah gayi.
Driver saaman rakh chuka tha. Nikki lapak kar steering wali seat par aayi. Chabhi ko ghumaya gear badli aur full speed se jeep ko chhod diya.
"chhoti maalkin....!" driver cheekhte hue jeep ke pichhe dauda.
Nikki teji se pahadi raaston par jeep bhagati chali ja rahi thi. Kuchh hi door aage use wahi bike wala yuvak dikhayi diya. Usne jeep ki raftaar badhayi aur kuchh hi pal mein uske Barabar pahunch gayi. Phir uski aur dekhti hui boli - "hello mr khatara"
Yuvak ne nikki ki aur dekha, abhi wah kuchh kehne ki soch hi raha tha ki nikki ne ek jhatke mein farrate ki gati se jeep ko le bhagi. Yuvak gusse mein nikki ko dekhta hi rah gaya. Uski aankhen sulag uthi usne acceletor par hath jamaya aur bike ko full speed par chhod diya. Abhi wah kuchh hi door chala tha ki sadak par kuchh ladkiya paar karti dikhayi di. usne jaldi se break maara. Uski raftaar bahut adhik thi , bike fisla aur seedhe ek patther se ja takraya. Yuvak uchhal kar door ja gira. Bike se bandha uska suitcase khul gaya aur saare kapde sadak par idhar udhar bikhar gaye. Wah langdata hua utha. Tabhi uske kaano se kisi ladki ke hasne ki awaaz takrayi. Usne palat kar dekha. Ek gramin baala salwar kurta pehne khilkhilakar hans rahi thi. Uske pichhe uski saheliyan bhi khadi khadi muskura rahi thi. Un sabhi ladkiyon ke hath mein pustaken thi jis se Yuvak ko samajhte der nahi lagi ki ye ladkiyan paas ke gaon ki rahne wali hain aur is waqt collage se laut rahi hain.
"ye dekho, kaath ka ullu" aage wali ladki haste hue saheliyon se boli.
Yuvak ki nazar uspar thehar gayi. Wo bala ki khubsurat thi. garmi ki wajah se uske chehre par pasina chhalak aaya tha. pasine se tar uska gora mukhda surya ki roshni mein aise chamak raha tha jaise purnima ki raat mein chaand. uska dupatta uske gale se lipatkar pichhe pith ki aur jhul raha tha. Saamne uski bhari hui chhatiyan kisi parwat shikhar ki tarah tane hue use ghur rahe the. Pet samtal tha, kamar patli thi lekin kulhe chaudi aur bhari golakar liye hue thi. Uska nashila gathila badan kapdon mein chhupaye nahi chhup raha tha. Yuvak kuchh pal ke liye uski sundarta mein kho sa gaya. Wah ye bhi bhul gaya ki is ladki ne kuchh der pehle use kaath ka ulla kaha tha. Use ye bhi dhyan nahi tha ki uski bike sadak par giri padi hai aur uske kapde hawaon ki jor se sadak par idhar udhar ghisat rahe hain.
Lekin ladkiyon ko uski dasha ka anumaan tha. Uski haalat par ek baar phir ladkiyan khilkhila kar hans padi. Uski chetna lauti. Usne apni bhaunhe chadhayi aur us ladki ko ghura jisne use kaath ka ullu kaha tha. "kya kaha tumne? Jara phir se kehna."
"kaath ka ullu." wah ladki punah boli aur phir hans padi.
"main tumhe kaath ka ullu nazar aata hoon" yuvak ne bifarkar bola.
"aur nahi to kya....apni surat dekho pakke kaath ke ullu lagte ho." uske sath uski saheliyan bhi khilkhilakar hasne lagi.
Yuvak apmaan se bhar utha, usne kuchh kehne ke liye muh khola par hoth chabakar rah gaya. use apni dasha ka gyan hua, wah un ladkiyon se ulajhkar apni aur fazihat nahi karwana chah raha tha. Wah muda aur apne kapde sametne laga. Ladkiyan hansti hui aage badh gay.
*****
Nikki jaise hi haweli pahunchi thakur sahab ko bahar hi intezar karte paya. Unke sath mein deewan ji bhi the. Wah jeep se utri to deewan ji lapak kar nikki tak pahunche "aao beta. Malik kab se tumhara intezar kar rahe hain."
Nikki ne thakur sahab ko hath jodkar pranam kiya aur phir thakur sahab se jakar lipat gayi. Thakur sahab use apni chhati se chipka liye. Barson se sulagte unke dil ko aaj thandak mili thi. Beti ko chhati se lagakar wey is waqt apne sare dukhon ko bhula baithe the. Wah nikki ka matha chumte hue bole - "nikki, tumhara safar kaisa raha? Koi taklif to nahi hui yahan tak aane mein?"
"ohh papa, main kya bachi hoon jo koi bhi mujhe taklif de dega?" nikki nathune fulakar boli.
Uski baat se thakur sahab aur deewan ji ki thahake chhut pade.
"nikki beta, tumhare sath driver nahi aaya wo kahan rah gaya?" deewan ji nikki ko akela dekhkar bole.
"main use wahi chhod aayi. Usne mujhe pure 20 minute wait karaya. Ab use kuchh to punishment milna chahiye ki nahi?" nikki ki baat se deewan ji khilkhilakar hans pade wahin thakur sahab beti ki shararat par jhenp se gaye.
Raipur ke railway station par nikki pichhle 20 minute se khadi thi. Uska gusse se bura haal tha. deewan ji ne driver ko nikki ko lene bheja tha par uska koi pata nahi tha. Nikki Gusse se bhari platform par chalkadmi kar rahi thi.
Is waqt nikki pink color ki frock pehne hue thi. Uski aankhon mein dhoop ka chasma chadha hua tha aur sar par sun hats tha. frock itni chhoti thi ki aadhi janghe numaya ho rahi thi. Platform par aate jate log lalchayi najron se uske khubsurat jangho aur ubhre hue chhati ko ghurte ja rahe the. Achanak hi kisi bike ki acceleretor ki tej awaaz uske kaano se takrai. Awaaz itni tej thi ki nikki ka gussa saatwe aasman par pahunch gaya. nikki ki drishti ghumi. saamne hi ek khubsurat naujawan apni bike par baitha bike ke kaan marodne mein vyast tha. Wo jab tak acceletor leta bike start rahti acceletor chhodte hi bike bhuy bhuy karke band ho jati. Wo phir se kick marta...acceletor leta aur bike start karne mein lag jata. Wah pasine se tar batar ho chuka tha. Nikk 5 minute tak uski bhany bhany sunti rahi. ant mein uska sabr jawab de gaya. Wah gusse se uski aur dekhkar boli - "aye mister, apni is khatara ko band karo ya kahin door le jaakar start karo. Iski besuri awaaz se mere kaan ke parde fat rahe hain."
Wah yuvak bike na start hone se waise hi pareshan tha uspar aisi jhidki, uski bike ka aisa apmaan...wah sah na saka. gusse mein palta par jaise hi uski nazar nikki par padi wah chaunk pada. Apne saamne ek khubsurat hasina ko dekhkar uska gussa khsan bhar ke liye gaayab hua. Phir bola - "aap meri bike ko khatara keh rahi hain? Aapko andaza nahi hai main is bike par baith kitni race jeet chuka hoon."
"race...? Aur wo bhi is bike se? ye chalti bhi hai, mujhe to iske strat hone par bhi sandeh ho raha hai." wah vyang se muskurayi.
Yuvak ko tej gussa aaya par man masos kar rah gaya. Usne bike ko azeeb najron se ghura phir ek jor dar kick mara. Is baar bhi bike start nahi hui. Wah baar baar prayas karta raha aur acceletor ki awaaz se nikki ko pareshan karta raha. kuchh hi der mein nikki ka driver jeep lekar pahuncha. Driver jeep se utar kar nikki ke paas aaya.
"itni der kyon hui aane mein?" nikki driver ko dekhte hi barsi.
"galti ho gayi chhoti malkin...wo kya hai ki.....asal....mein..." driver haklaya.
"shut up." nikki gusse mein chikhi.
Driver saham gaya. uski najrein zameen chatne lagi.
"saaman uthane ke liye koi dusra aayega? " nikki use khada dekh phir se bhadki. Driver teji se harkat mein aaya aur saaman uthakar jeep mein rakhne laga.
Nikki ki najrein us bike wale yuvak ki aur ghumi. wo idhar hi dekh raha tha. use apni aur dekhte pakar nikki ne ek baar phir vyang se muskurayi aur apni jeep ki aur badh gayi. achanak hi wo hua jiski kalpana nikki ne na ki thi. Uski bike start ho gayi. nikki ne us yuvak ko dekha. Abki muskurane ki baari us yuvak ki thi. wah bike par baitha aur nikki ko dekhte hue ek ada se sar ko jhatka diya aur seeti bajata hua bike ko bhagata chala gaya. Nikki jal-bhun kar rah gayi.
Driver saaman rakh chuka tha. Nikki lapak kar steering wali seat par aayi. Chabhi ko ghumaya gear badli aur full speed se jeep ko chhod diya.
"chhoti maalkin....!" driver cheekhte hue jeep ke pichhe dauda.
Nikki teji se pahadi raaston par jeep bhagati chali ja rahi thi. Kuchh hi door aage use wahi bike wala yuvak dikhayi diya. Usne jeep ki raftaar badhayi aur kuchh hi pal mein uske Barabar pahunch gayi. Phir uski aur dekhti hui boli - "hello mr khatara"
Yuvak ne nikki ki aur dekha, abhi wah kuchh kehne ki soch hi raha tha ki nikki ne ek jhatke mein farrate ki gati se jeep ko le bhagi. Yuvak gusse mein nikki ko dekhta hi rah gaya. Uski aankhen sulag uthi usne acceletor par hath jamaya aur bike ko full speed par chhod diya. Abhi wah kuchh hi door chala tha ki sadak par kuchh ladkiya paar karti dikhayi di. usne jaldi se break maara. Uski raftaar bahut adhik thi , bike fisla aur seedhe ek patther se ja takraya. Yuvak uchhal kar door ja gira. Bike se bandha uska suitcase khul gaya aur saare kapde sadak par idhar udhar bikhar gaye. Wah langdata hua utha. Tabhi uske kaano se kisi ladki ke hasne ki awaaz takrayi. Usne palat kar dekha. Ek gramin baala salwar kurta pehne khilkhilakar hans rahi thi. Uske pichhe uski saheliyan bhi khadi khadi muskura rahi thi. Un sabhi ladkiyon ke hath mein pustaken thi jis se Yuvak ko samajhte der nahi lagi ki ye ladkiyan paas ke gaon ki rahne wali hain aur is waqt collage se laut rahi hain.
"ye dekho, kaath ka ullu" aage wali ladki haste hue saheliyon se boli.
Yuvak ki nazar uspar thehar gayi. Wo bala ki khubsurat thi. garmi ki wajah se uske chehre par pasina chhalak aaya tha. pasine se tar uska gora mukhda surya ki roshni mein aise chamak raha tha jaise purnima ki raat mein chaand. uska dupatta uske gale se lipatkar pichhe pith ki aur jhul raha tha. Saamne uski bhari hui chhatiyan kisi parwat shikhar ki tarah tane hue use ghur rahe the. Pet samtal tha, kamar patli thi lekin kulhe chaudi aur bhari golakar liye hue thi. Uska nashila gathila badan kapdon mein chhupaye nahi chhup raha tha. Yuvak kuchh pal ke liye uski sundarta mein kho sa gaya. Wah ye bhi bhul gaya ki is ladki ne kuchh der pehle use kaath ka ulla kaha tha. Use ye bhi dhyan nahi tha ki uski bike sadak par giri padi hai aur uske kapde hawaon ki jor se sadak par idhar udhar ghisat rahe hain.
Lekin ladkiyon ko uski dasha ka anumaan tha. Uski haalat par ek baar phir ladkiyan khilkhila kar hans padi. Uski chetna lauti. Usne apni bhaunhe chadhayi aur us ladki ko ghura jisne use kaath ka ullu kaha tha. "kya kaha tumne? Jara phir se kehna."
"kaath ka ullu." wah ladki punah boli aur phir hans padi.
"main tumhe kaath ka ullu nazar aata hoon" yuvak ne bifarkar bola.
"aur nahi to kya....apni surat dekho pakke kaath ke ullu lagte ho." uske sath uski saheliyan bhi khilkhilakar hasne lagi.
Yuvak apmaan se bhar utha, usne kuchh kehne ke liye muh khola par hoth chabakar rah gaya. use apni dasha ka gyan hua, wah un ladkiyon se ulajhkar apni aur fazihat nahi karwana chah raha tha. Wah muda aur apne kapde sametne laga. Ladkiyan hansti hui aage badh gay.
*****
Nikki jaise hi haweli pahunchi thakur sahab ko bahar hi intezar karte paya. Unke sath mein deewan ji bhi the. Wah jeep se utri to deewan ji lapak kar nikki tak pahunche "aao beta. Malik kab se tumhara intezar kar rahe hain."
Nikki ne thakur sahab ko hath jodkar pranam kiya aur phir thakur sahab se jakar lipat gayi. Thakur sahab use apni chhati se chipka liye. Barson se sulagte unke dil ko aaj thandak mili thi. Beti ko chhati se lagakar wey is waqt apne sare dukhon ko bhula baithe the. Wah nikki ka matha chumte hue bole - "nikki, tumhara safar kaisa raha? Koi taklif to nahi hui yahan tak aane mein?"
"ohh papa, main kya bachi hoon jo koi bhi mujhe taklif de dega?" nikki nathune fulakar boli.
Uski baat se thakur sahab aur deewan ji ki thahake chhut pade.
"nikki beta, tumhare sath driver nahi aaya wo kahan rah gaya?" deewan ji nikki ko akela dekhkar bole.
"main use wahi chhod aayi. Usne mujhe pure 20 minute wait karaya. Ab use kuchh to punishment milna chahiye ki nahi?" nikki ki baat se deewan ji khilkhilakar hans pade wahin thakur sahab beti ki shararat par jhenp se gaye.
Re: काँच की हवेली "kaanch ki haveli"
4
ठाकुर साहब निक्की को लेकर हवेली के अंदर दाखिल हुए. घर के सभी नौकर उसे देखने के लिए उसके आदेश पालन के लिए उसके दाएँ बाएँ आकर खड़े हो गये.
ठाकुर साहब निक्की के साथ हॉल में बैठे. दीवान जी भी पास ही बैठ गये.
"तुम्हे आज अपने पास पाकर हमे बहुत खुशी हो रही है बेटी." ठाकुर साहब भावुकता में बोले.
"मुझे भी आपसे मिलने की बड़ी इच्छा होती थी पापा. अब मैं आपको छोड़ कर कहीं नही जाउन्गि." निक्की उनके कंधे पर सर रखते हुए बोली.
"हां बेटी, अब तुम्हे कहीं जाने की ज़रूरत नही है. अब तुम हमेशा हमारे साथ रहोगी."
ठाकुर साहब की बात अभी पूरी ही हुई थी कि हवेली के दरवाज़े से किसी अजनबी का प्रवेश हुआ. उसके हाथ में एक सूटकेस था. बाल बिखरे हुए थे और चेहरे पर लंबे सफ़र की थकान झलक रही थी.
निक्की की नज़र जैसे ही उस युवक पर पड़ी वह चौंक उठी. ये वही युवक था जिससे वो रेलवे स्टेशन पर उलझी थी. दीवान जी उसे देखते ही उठ खड़े हुए. युवक ने भीतर आते ही हाथ जोड़कर नमस्ते किया.
"आइए आइए डॉक्टर बाबू. आप ही का इंतेज़ार हो रहा था." दीवान जी उस युवक से हाथ मिलाते हुए बोले. फिर ठाकुर साहब की तरफ पलटे - "मालिक, ये रवि बाबू है. मैने इन्ही के बारे में आपको बताया था. बहुत शफ़ा है इनके हाथो में."
ठाकुर साहब ने जैसे ही जाना की ये डॉक्टर हैं अपने स्थान से उठ खड़े हुए. फिर उससे हाथ मिलते हुए बोले - "आपको कोई तकलीफ़ तो नही हुई यहाँ पहुँचने में?"
"कुच्छ खास नही ठाकुर साहब....." वह निक्की पर सरसरी निगाह डालता हुआ बोला.
"आप थक गये होंगे. जाकर पहले आराम कीजिए. हम शाम में मिलेंगे." ठाकुर साहब रवि से बोले.
"जी शुक्रिया...!" रवि बोला.
"आइए मैं आपको आपके रूम तक लिए चलता हूँ." दीवान जी रवि से बोले.
रवि ठाकुर साहब को फिर से नमस्ते कहकर दीवान जी के साथ अपने रूम की ओर बढ़ गया. उसका कमरा उपर के फ्लोर पर था. सीढ़िया चढ़ते ही लेफ्ट की ओर एक गॅलरी थी. उस ओर चार कमरे बने हुए थे. रवि के ठहरने के लिए पहला वाला रूम दिया गया था.
रवि दीवान जी के साथ अपने रूम में दाखिल हुआ. रूम की सजावट और काँच की नक्काशी देखकर रवि दंग रह गया. यूँ तो उसने जब से हवेली के भीतर कदम रखा था खुद को स्वर्ग्लोक में पहुँचा महसूस कर रहा था. हवेली की सुंदरता ने उसका मन मोह लिया था.
"आपको कभी भी किसी चीज़ की ज़रूरत हो बेझिझक कह दीजिएगा." अचानक दीवान जी की बातों से वह चौंका. उसने सहमति में सर हिलाया. दीवान जी कुच्छ और औपचारिक बाते करने के बाद वहाँ से निकले.
*****
हॉल में अभी भी निक्की अपने पिता ठाकुर जगत सिंग के साथ बैठी बाते कर रही थी. नौकर दाएँ बाएँ खड़े चाव से निक्की की बाते सुन रहे थे. निक्की की बातों से ठाकुर साहब के होठों से बार बार ठहाके छूट रहे थे.
"बस....बस....बस निक्की बेटा, बाकी के किस्से बाद में सुनाना. अभी जाकर आराम करो. तुम लंबे सफ़र से आई हो थक गयी होगी." ठाकुर साहब निक्की से बोले.
"ओके पापा, लेकिन किसी को बस्ती में भेजकर कंचन को बुलावा भेज दीजिए. उससे मिलने की बहुत इच्छा हो रही है." निक्की बोली और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी. उसका कमरा सीढ़िया चढ़कर दाईं ओर की गॅलरी में था. वह रूम में पहुँची. निक्की वास्तव में बहुत थकान महसूस कर रही थी उसने एक बाथ लेना ज़रूरी समझा. निक्की बाथरूम में घुस गयी. उसने अपने कपड़े उतारे और खुद को शावर के नीचे छोड़ दिया. शवर से गिरता ठंडा पानी जब उसके बदन से टकराया तो उसकी सारी थकान दूर हो गयी. वो काफ़ी देर तक खुद को रगड़ रगड़ कर शवर का आनंद लेती रही. फिर वह बाहर निकली और कपड़े पहन कर कंचन का इंतेज़ार करने लगी. कंचन उसकी बचपन की सहेली थी. निक्की का कंचन के सिवा कोई दोस्त नही थी. वैसे तो निक्की बचपन से ही बहुत घमंडी और ज़िद्दी थी. पर झोपडे में रहने वाली कंचन उसे जान से प्यारी थी. दोनो के स्वाभाव में ज़मीन आसमान का अंतर था. लेकिन दोनो में एक चीज़ की समानता थी. दोनो ही मा की ममता से वंचित थी शायद यही इनकी गहरी दोस्ती का राज़ था. कंचन को हवेली में किसी भी क्षण आने जाने की आज़ादी थी. कोई उसे टोक ले तो निक्की प्युरे हवेली को सर पर उठा लेती थी. ठाकुर साहब भी भूले से कभी कंचन का दिल नही दुखाते थे. इतने बरस कंचन से दूर रहने के बाद भी निक्की उसे भूली नही थी. निक्की शहर से कंचन के लिए ढेरो कपड़े लाई थी, निक्की उन कपड़ों के पॅकेट को निकाल कर कंचन का इंतेज़ार करने लगी.
*****
रवि पिच्छले 30 मिनिट से अपने रूम में बैठा उस नौकर की प्रतीक्षा कर रहा था जिसे उसने अपने कपड़े इस्त्री करने के लिए दिए थे. सड़क के हादसे में उसके कपड़ों की इस्त्री खराब हो गयी थी. अभी तक वो उन्ही कपड़ों में था जो हवेली में घुसते वक़्त पहन रखा था. वो कुर्सी पर बैठा उल्लुओ की तरह दरवाज़े की तरफ टकटकी लगाए घुरे जा रहा था.
*****
"ठक्क....ठक्क...!" अचानक दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी. निक्की उठी और दरवाज़े तक पहुँची. दरवाज़ा खुलते ही सामने एक खूबसूरत सी लड़की सलवार कमीज़ पहने खड़ी खड़ी मुस्कुरा रही थी. उसे देखते ही हिक्की के आँखों में चमक उभरी. वो कंचन थी. निक्की ने उसका हाथ पकड़ा और रूम के भीतर खींच लिया. फिर कस्के उससे लिपट गयी. दोनो का आलिंगन इतना गहरा था कि दोनो की चुचियाँ आपस में दब गयी. निक्की इस वक़्त ब्लू जीन्स और ग्रीन टीशर्ट में थी. कंचन ने उसे देखा तो देखती ही रह गयी. - "निक्की तुम कितनी बदल गयी हो. इन कपड़ों में तो तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो."
"मेरी जान...तू चिंता क्यों करती है. मैं तुम्हारे लिए भी ऐसे ही कयि ड्रेसस लाई हूँ. उन कपड़ों को पहनते ही तुम भी मेरी तरह हॉट लगने लगोगी." निक्की उसे पलंग पर बिठाती हुई बोली.
"मैं और ऐसे कपड़े? ना बाबा ना....! मैं ऐसे कपड़े नही पहन सकती." कंचन घबराकर बोली - "इन कपड़ों को पहन कर तो मैं पूरे गाओं में बदनाम हो जाउन्गि. और हो सके तो तू भी जब तक यहाँ है ऐसे कपड़े पहनना छोड़ दे."
"कोई कुच्छ नही बोलेगा, तू पहनकर तो देख. और तू मेरी चिंता छोड़...मैं तो अब हमेशा यहीं रहूंगी और ऐसे ही कपड़े पहनुँगी." निक्की चहकति हुई बोली.
"ना तो तू सदा यहाँ रह पाएगी और ना ही हमेशा ऐसे कपड़े पहन सकेगी." कंचन मुस्कुरा कर बोली - "मेरी बन्नो आख़िर तू एक लड़की है, एक दिन तुम्हे व्याह करके अपने साजन के घर जाना ही होगा. और तब तुम्हे उसके पसंद के कपड़े पहनने पड़ेंगे."
कंचन की बात सुनकर अचानक ही निक्की के आगे रवि का चेहरा घूम गया. वह बोली - "तुम्हे पता है आज रास्ते में आते समय एक दिलचस्प हादसा हो गया.?"
"हादसा? कैसा हादसा?" कंचन के मूह से घबराहट भरे स्वर निकले.
"स्टेशन पर एक बेवकूफ़ मिल गया. उसके पास एक ख़टरा बाइक थी. उसने मुझे पूरे 20 मिनिट अपनी ख़टरा बाइक की आवाज़ से परेशान किया." वह मुस्कुराइ.
"फिर...?" कंचन उत्सुकता से बोली.
"फिर क्या...! मैने भी उसे उसकी औकात बता दी. और अब वो बेवकूफ़ हमारे घर का मेहमान बना बैठा है. पापा कहते हैं वो डॉक्टर है. लेकिन मुझे तो वो पहले दर्जे का अनाड़ी लगता है." निक्की मूह टेढ़ा करके बोली.
"अभी कहाँ है?." कंचन ने पूछा.
"होगा अपने कमरे में. चलो उसे मज़ा चखाते हैं. वो अपने आप को बड़ा होशियार समझता है." निक्की उसका हाथ पकड़ कर खींचती हुई बोली.
"नही....नही...निक्की, ठाकुर चाचा बुरा मान जाएँगे." कंचन अपना हाथ छुड़ाती हुई बोली. लेकिन निक्की उसे खींचती हुई दरवाज़े से बाहर ले आई.
गॅलरी में आते ही उन्हे मंगलू घर का नौकर सीढ़ियाँ चढ़ता दिखाई दिया. उसके हाथ में रवि के वो कपड़े थे जो उसने इस्त्री करने को दिए थे. वह सीढ़ियाँ चढ़कर बाईं और मूड गया. उसके कदम रवि के कमरे की तरफ थे.
"आए सुनो...!" निक्की ने उसे पुकारा.
नौकर रुका और पलटकर निक्की के करीब आया. "जी छोटी मालकिन?"
"ये कपड़े किसके हैं?"
"डॉक्टर बाबू के....उन्होने इस्त्री करने को दिया था. अब उन्हे देने जा रहा हूँ." नौकर तोते की तरह एक ही साँस में सब बोल गया.
"इन कपड़ों को लेकर अंदर आ." निक्की ने उसे उंगली से इशारा किया.
नौकर ने ना समझने वाले अंदाज़ में निक्की को देखा फिर अनमने भाव से अंदर दाखिल हुआ.
"नाम क्या है तुम्हारा?" निक्की ने नौकर से पुछा.
"मंगलू...!" नौकर ने अपने दाँत दिखाए.
"मूह बंद कर...." निक्की ने डांता -"ये कपड़े यहाँ रख और जाकर इस्त्री ले आ."
"लेकिन इस्त्री तो हो चुकी है छोटी मालकिन?" नौकर ने अपना सर खुज़ाया.
"मैं जानती हूँ. तुम्हे एक बार फिर से इस्त्री करनी होगी. हमारे स्टाइल में." निक्की के होंठो में रहस्यमई मुस्कुराहट नाच उठी - "तुम जाकर इस्त्री ले आओ. और अबकी कोई सवाल पुछा ना तो पापा से बोलकर तुम्हारी छुट्टी करवा दूँगी. समझे?"
"जी...छोटी मालिकन." नौकर सहमा - "सब समझ गया. मैं अभी इस्त्री लाता हूँ." वा बोला और तेज़ी से रूम के बाहर निकल गया.
"तू करना क्या चाहती है?" कंचन हैरान होकर बोली.
"बस तू देखती जा." निक्की के होंठो में मुस्कुराहट थी और आँखों में शरारत के भाव, निक्की अपनी योजना कंचन को बताने लगी. उसकी बातें सुनकर कंचन की आँखो में आश्चर्य फैल गया.
तभी मंगलू दरवाज़े से अंदर आता दिखाई दिया. उसने इस्त्री निक्की के सामने रखी. निक्की ने उसे एलेकट्रिक्क पॉइंट से जोड़ा. कुच्छ देर में इस्त्री भट्टी की तरह गरम हो गयी. उसने एक कपड़ा उठाया उसे खोला और फिर जलती हुई इस्त्री उसके उपर रख दी. नौकर ने कपड़ों की ऐसी दुर्गति देखी तो चीखा. "छोटी मालकिन, मैं आपके पावं पड़ता हूँ. मेरी नौकरी पर रहम कीजिए. इन कपड़ों को देखकर तो डॉक्टर बाबू मालिक से मेरी शिकायत कर देंगे. और फिर मेरी....?"
"तू चुप बैठ." निक्की ने आँखें दिखाई. और एक एक करके सभी कपड़ों को गरम इस्त्री से जलाती चली गयी. फिर उसी तरह तह करके रखने लगी. सारे कपड़े वापस तह करने के बाद मंगलू से बोली - "अब इसे ले जाओ और उस घोनचू के कमरे में रख आओ."
"हरगिज़ नही." मंगलू चीखा. -"आप चाहें तो मुझे फाँसी पर लटका दीजिए. या मेरा सर कटवा दीजिए. मैं ये कपड़े लेकर रवि बाबू के कमरे में नही जाउन्गा." वा बोला और पलक झपकते ही रूम से गायब हो गया.
निक्की उसे आवाज़ देती रह गयी. मंगलू के जाने के बाद निक्की ने कंचन की तरफ देखा और मुस्कुराइ. उसकी मुस्कुराहट में शरारत थी.
"तू मेरी ओर इस तरह से क्यों देख रही है?" कंचन सहमति हुई बोली.
"वो इसलिए मेरी प्यारी सहेली की अब ये कपड़े उस अकड़ू के कमरे में तुम लेकर जाओगी."
"क.....क्या???" कंचन घबराई - " नही....नही निक्की, मैं ये काम नही करूँगी. किसी भी कीमत पर नही. तुम्हे उससे बदला लेना है तुम लो. मैं इस काम में तुम्हारी कोई मदद नही करूँगी."
कॉन्टिन्यू .................................
ठाकुर साहब निक्की को लेकर हवेली के अंदर दाखिल हुए. घर के सभी नौकर उसे देखने के लिए उसके आदेश पालन के लिए उसके दाएँ बाएँ आकर खड़े हो गये.
ठाकुर साहब निक्की के साथ हॉल में बैठे. दीवान जी भी पास ही बैठ गये.
"तुम्हे आज अपने पास पाकर हमे बहुत खुशी हो रही है बेटी." ठाकुर साहब भावुकता में बोले.
"मुझे भी आपसे मिलने की बड़ी इच्छा होती थी पापा. अब मैं आपको छोड़ कर कहीं नही जाउन्गि." निक्की उनके कंधे पर सर रखते हुए बोली.
"हां बेटी, अब तुम्हे कहीं जाने की ज़रूरत नही है. अब तुम हमेशा हमारे साथ रहोगी."
ठाकुर साहब की बात अभी पूरी ही हुई थी कि हवेली के दरवाज़े से किसी अजनबी का प्रवेश हुआ. उसके हाथ में एक सूटकेस था. बाल बिखरे हुए थे और चेहरे पर लंबे सफ़र की थकान झलक रही थी.
निक्की की नज़र जैसे ही उस युवक पर पड़ी वह चौंक उठी. ये वही युवक था जिससे वो रेलवे स्टेशन पर उलझी थी. दीवान जी उसे देखते ही उठ खड़े हुए. युवक ने भीतर आते ही हाथ जोड़कर नमस्ते किया.
"आइए आइए डॉक्टर बाबू. आप ही का इंतेज़ार हो रहा था." दीवान जी उस युवक से हाथ मिलाते हुए बोले. फिर ठाकुर साहब की तरफ पलटे - "मालिक, ये रवि बाबू है. मैने इन्ही के बारे में आपको बताया था. बहुत शफ़ा है इनके हाथो में."
ठाकुर साहब ने जैसे ही जाना की ये डॉक्टर हैं अपने स्थान से उठ खड़े हुए. फिर उससे हाथ मिलते हुए बोले - "आपको कोई तकलीफ़ तो नही हुई यहाँ पहुँचने में?"
"कुच्छ खास नही ठाकुर साहब....." वह निक्की पर सरसरी निगाह डालता हुआ बोला.
"आप थक गये होंगे. जाकर पहले आराम कीजिए. हम शाम में मिलेंगे." ठाकुर साहब रवि से बोले.
"जी शुक्रिया...!" रवि बोला.
"आइए मैं आपको आपके रूम तक लिए चलता हूँ." दीवान जी रवि से बोले.
रवि ठाकुर साहब को फिर से नमस्ते कहकर दीवान जी के साथ अपने रूम की ओर बढ़ गया. उसका कमरा उपर के फ्लोर पर था. सीढ़िया चढ़ते ही लेफ्ट की ओर एक गॅलरी थी. उस ओर चार कमरे बने हुए थे. रवि के ठहरने के लिए पहला वाला रूम दिया गया था.
रवि दीवान जी के साथ अपने रूम में दाखिल हुआ. रूम की सजावट और काँच की नक्काशी देखकर रवि दंग रह गया. यूँ तो उसने जब से हवेली के भीतर कदम रखा था खुद को स्वर्ग्लोक में पहुँचा महसूस कर रहा था. हवेली की सुंदरता ने उसका मन मोह लिया था.
"आपको कभी भी किसी चीज़ की ज़रूरत हो बेझिझक कह दीजिएगा." अचानक दीवान जी की बातों से वह चौंका. उसने सहमति में सर हिलाया. दीवान जी कुच्छ और औपचारिक बाते करने के बाद वहाँ से निकले.
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हॉल में अभी भी निक्की अपने पिता ठाकुर जगत सिंग के साथ बैठी बाते कर रही थी. नौकर दाएँ बाएँ खड़े चाव से निक्की की बाते सुन रहे थे. निक्की की बातों से ठाकुर साहब के होठों से बार बार ठहाके छूट रहे थे.
"बस....बस....बस निक्की बेटा, बाकी के किस्से बाद में सुनाना. अभी जाकर आराम करो. तुम लंबे सफ़र से आई हो थक गयी होगी." ठाकुर साहब निक्की से बोले.
"ओके पापा, लेकिन किसी को बस्ती में भेजकर कंचन को बुलावा भेज दीजिए. उससे मिलने की बहुत इच्छा हो रही है." निक्की बोली और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी. उसका कमरा सीढ़िया चढ़कर दाईं ओर की गॅलरी में था. वह रूम में पहुँची. निक्की वास्तव में बहुत थकान महसूस कर रही थी उसने एक बाथ लेना ज़रूरी समझा. निक्की बाथरूम में घुस गयी. उसने अपने कपड़े उतारे और खुद को शावर के नीचे छोड़ दिया. शवर से गिरता ठंडा पानी जब उसके बदन से टकराया तो उसकी सारी थकान दूर हो गयी. वो काफ़ी देर तक खुद को रगड़ रगड़ कर शवर का आनंद लेती रही. फिर वह बाहर निकली और कपड़े पहन कर कंचन का इंतेज़ार करने लगी. कंचन उसकी बचपन की सहेली थी. निक्की का कंचन के सिवा कोई दोस्त नही थी. वैसे तो निक्की बचपन से ही बहुत घमंडी और ज़िद्दी थी. पर झोपडे में रहने वाली कंचन उसे जान से प्यारी थी. दोनो के स्वाभाव में ज़मीन आसमान का अंतर था. लेकिन दोनो में एक चीज़ की समानता थी. दोनो ही मा की ममता से वंचित थी शायद यही इनकी गहरी दोस्ती का राज़ था. कंचन को हवेली में किसी भी क्षण आने जाने की आज़ादी थी. कोई उसे टोक ले तो निक्की प्युरे हवेली को सर पर उठा लेती थी. ठाकुर साहब भी भूले से कभी कंचन का दिल नही दुखाते थे. इतने बरस कंचन से दूर रहने के बाद भी निक्की उसे भूली नही थी. निक्की शहर से कंचन के लिए ढेरो कपड़े लाई थी, निक्की उन कपड़ों के पॅकेट को निकाल कर कंचन का इंतेज़ार करने लगी.
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रवि पिच्छले 30 मिनिट से अपने रूम में बैठा उस नौकर की प्रतीक्षा कर रहा था जिसे उसने अपने कपड़े इस्त्री करने के लिए दिए थे. सड़क के हादसे में उसके कपड़ों की इस्त्री खराब हो गयी थी. अभी तक वो उन्ही कपड़ों में था जो हवेली में घुसते वक़्त पहन रखा था. वो कुर्सी पर बैठा उल्लुओ की तरह दरवाज़े की तरफ टकटकी लगाए घुरे जा रहा था.
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"ठक्क....ठक्क...!" अचानक दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी. निक्की उठी और दरवाज़े तक पहुँची. दरवाज़ा खुलते ही सामने एक खूबसूरत सी लड़की सलवार कमीज़ पहने खड़ी खड़ी मुस्कुरा रही थी. उसे देखते ही हिक्की के आँखों में चमक उभरी. वो कंचन थी. निक्की ने उसका हाथ पकड़ा और रूम के भीतर खींच लिया. फिर कस्के उससे लिपट गयी. दोनो का आलिंगन इतना गहरा था कि दोनो की चुचियाँ आपस में दब गयी. निक्की इस वक़्त ब्लू जीन्स और ग्रीन टीशर्ट में थी. कंचन ने उसे देखा तो देखती ही रह गयी. - "निक्की तुम कितनी बदल गयी हो. इन कपड़ों में तो तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो."
"मेरी जान...तू चिंता क्यों करती है. मैं तुम्हारे लिए भी ऐसे ही कयि ड्रेसस लाई हूँ. उन कपड़ों को पहनते ही तुम भी मेरी तरह हॉट लगने लगोगी." निक्की उसे पलंग पर बिठाती हुई बोली.
"मैं और ऐसे कपड़े? ना बाबा ना....! मैं ऐसे कपड़े नही पहन सकती." कंचन घबराकर बोली - "इन कपड़ों को पहन कर तो मैं पूरे गाओं में बदनाम हो जाउन्गि. और हो सके तो तू भी जब तक यहाँ है ऐसे कपड़े पहनना छोड़ दे."
"कोई कुच्छ नही बोलेगा, तू पहनकर तो देख. और तू मेरी चिंता छोड़...मैं तो अब हमेशा यहीं रहूंगी और ऐसे ही कपड़े पहनुँगी." निक्की चहकति हुई बोली.
"ना तो तू सदा यहाँ रह पाएगी और ना ही हमेशा ऐसे कपड़े पहन सकेगी." कंचन मुस्कुरा कर बोली - "मेरी बन्नो आख़िर तू एक लड़की है, एक दिन तुम्हे व्याह करके अपने साजन के घर जाना ही होगा. और तब तुम्हे उसके पसंद के कपड़े पहनने पड़ेंगे."
कंचन की बात सुनकर अचानक ही निक्की के आगे रवि का चेहरा घूम गया. वह बोली - "तुम्हे पता है आज रास्ते में आते समय एक दिलचस्प हादसा हो गया.?"
"हादसा? कैसा हादसा?" कंचन के मूह से घबराहट भरे स्वर निकले.
"स्टेशन पर एक बेवकूफ़ मिल गया. उसके पास एक ख़टरा बाइक थी. उसने मुझे पूरे 20 मिनिट अपनी ख़टरा बाइक की आवाज़ से परेशान किया." वह मुस्कुराइ.
"फिर...?" कंचन उत्सुकता से बोली.
"फिर क्या...! मैने भी उसे उसकी औकात बता दी. और अब वो बेवकूफ़ हमारे घर का मेहमान बना बैठा है. पापा कहते हैं वो डॉक्टर है. लेकिन मुझे तो वो पहले दर्जे का अनाड़ी लगता है." निक्की मूह टेढ़ा करके बोली.
"अभी कहाँ है?." कंचन ने पूछा.
"होगा अपने कमरे में. चलो उसे मज़ा चखाते हैं. वो अपने आप को बड़ा होशियार समझता है." निक्की उसका हाथ पकड़ कर खींचती हुई बोली.
"नही....नही...निक्की, ठाकुर चाचा बुरा मान जाएँगे." कंचन अपना हाथ छुड़ाती हुई बोली. लेकिन निक्की उसे खींचती हुई दरवाज़े से बाहर ले आई.
गॅलरी में आते ही उन्हे मंगलू घर का नौकर सीढ़ियाँ चढ़ता दिखाई दिया. उसके हाथ में रवि के वो कपड़े थे जो उसने इस्त्री करने को दिए थे. वह सीढ़ियाँ चढ़कर बाईं और मूड गया. उसके कदम रवि के कमरे की तरफ थे.
"आए सुनो...!" निक्की ने उसे पुकारा.
नौकर रुका और पलटकर निक्की के करीब आया. "जी छोटी मालकिन?"
"ये कपड़े किसके हैं?"
"डॉक्टर बाबू के....उन्होने इस्त्री करने को दिया था. अब उन्हे देने जा रहा हूँ." नौकर तोते की तरह एक ही साँस में सब बोल गया.
"इन कपड़ों को लेकर अंदर आ." निक्की ने उसे उंगली से इशारा किया.
नौकर ने ना समझने वाले अंदाज़ में निक्की को देखा फिर अनमने भाव से अंदर दाखिल हुआ.
"नाम क्या है तुम्हारा?" निक्की ने नौकर से पुछा.
"मंगलू...!" नौकर ने अपने दाँत दिखाए.
"मूह बंद कर...." निक्की ने डांता -"ये कपड़े यहाँ रख और जाकर इस्त्री ले आ."
"लेकिन इस्त्री तो हो चुकी है छोटी मालकिन?" नौकर ने अपना सर खुज़ाया.
"मैं जानती हूँ. तुम्हे एक बार फिर से इस्त्री करनी होगी. हमारे स्टाइल में." निक्की के होंठो में रहस्यमई मुस्कुराहट नाच उठी - "तुम जाकर इस्त्री ले आओ. और अबकी कोई सवाल पुछा ना तो पापा से बोलकर तुम्हारी छुट्टी करवा दूँगी. समझे?"
"जी...छोटी मालिकन." नौकर सहमा - "सब समझ गया. मैं अभी इस्त्री लाता हूँ." वा बोला और तेज़ी से रूम के बाहर निकल गया.
"तू करना क्या चाहती है?" कंचन हैरान होकर बोली.
"बस तू देखती जा." निक्की के होंठो में मुस्कुराहट थी और आँखों में शरारत के भाव, निक्की अपनी योजना कंचन को बताने लगी. उसकी बातें सुनकर कंचन की आँखो में आश्चर्य फैल गया.
तभी मंगलू दरवाज़े से अंदर आता दिखाई दिया. उसने इस्त्री निक्की के सामने रखी. निक्की ने उसे एलेकट्रिक्क पॉइंट से जोड़ा. कुच्छ देर में इस्त्री भट्टी की तरह गरम हो गयी. उसने एक कपड़ा उठाया उसे खोला और फिर जलती हुई इस्त्री उसके उपर रख दी. नौकर ने कपड़ों की ऐसी दुर्गति देखी तो चीखा. "छोटी मालकिन, मैं आपके पावं पड़ता हूँ. मेरी नौकरी पर रहम कीजिए. इन कपड़ों को देखकर तो डॉक्टर बाबू मालिक से मेरी शिकायत कर देंगे. और फिर मेरी....?"
"तू चुप बैठ." निक्की ने आँखें दिखाई. और एक एक करके सभी कपड़ों को गरम इस्त्री से जलाती चली गयी. फिर उसी तरह तह करके रखने लगी. सारे कपड़े वापस तह करने के बाद मंगलू से बोली - "अब इसे ले जाओ और उस घोनचू के कमरे में रख आओ."
"हरगिज़ नही." मंगलू चीखा. -"आप चाहें तो मुझे फाँसी पर लटका दीजिए. या मेरा सर कटवा दीजिए. मैं ये कपड़े लेकर रवि बाबू के कमरे में नही जाउन्गा." वा बोला और पलक झपकते ही रूम से गायब हो गया.
निक्की उसे आवाज़ देती रह गयी. मंगलू के जाने के बाद निक्की ने कंचन की तरफ देखा और मुस्कुराइ. उसकी मुस्कुराहट में शरारत थी.
"तू मेरी ओर इस तरह से क्यों देख रही है?" कंचन सहमति हुई बोली.
"वो इसलिए मेरी प्यारी सहेली की अब ये कपड़े उस अकड़ू के कमरे में तुम लेकर जाओगी."
"क.....क्या???" कंचन घबराई - " नही....नही निक्की, मैं ये काम नही करूँगी. किसी भी कीमत पर नही. तुम्हे उससे बदला लेना है तुम लो. मैं इस काम में तुम्हारी कोई मदद नही करूँगी."
कॉन्टिन्यू .................................