हिंदी सेक्स कहानियाँ - गर्ल्स स्कूल (girls school sex story)

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Fuck_Me
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Re: हिंदी सेक्स कहानियाँ - गर्ल्स स्कूल (girls school sex st

Unread post by Fuck_Me » 15 Aug 2015 09:11

वाणी: मैने सर जी, और वो शमशेर के गले से लिपट गयी
दिशा सोच रही थी की काश, कम से कम एक बार वो भी ऐसे ही सर से लिपट सके
शमशेर ने प्यार भारी पप्पी वाणी के गालों पर दी और बोला "जाओ वाणी!" और मेरे लिए तुम ही चाय लेकर आना
शमशेर का मूड तननाया हुआ था वह अंजलि के पहलू में जाने का रात तक का वेट नही कर सकता था उसने कपड़े बदले और अंजलि के पास पहुँच गया
उधर दिशा वाणी को नीचे ले गयी. वाणी ने कहा "दीदी उपर कितनी ठंड थी इतनी मीठी नींद आई की बस पुछो ही मत मैं तो रात को वहीं सोऊ गी""तू पागल है क्या?" "देख मामा मामी को बिल्कुल पता नही चलना चाहिए की तू उपर सो गयी थी वरना वो हमें कभी उपर नही जाने देंगे" दिशा ने उसको समझाते हुए कहा
"क्यूँ दीदी?" वाणी ने अचरज से पूछा
"देख मैं तुझे डीटेल में तो बता नही सकती लेकिन इतना समझ ले की बड़ी होने पर लड़की को अपना ख्याल रखना चाहिए लड़कों के साथ अकेले नही रहना चाहिए" दिशा ने कहा
वाणी: पर तुम तो हमेशा कहती हो की अभी मैं छोटी हूँ तो मैं बड़ी कैसे हुई
दिशा: हां वैसे तो तुम छोटी हो पर... दिशा को समझ नही आ रहा था वो वाणी को कैसे बताए की वो किस लिहाज से बड़ी हो गयी है." बस तू इतना समझ ले की मैं हम दोनों के भले के लिए कह रही हूँ"
वाणी के मॅन में अपराध बोध आ गया," तो दीदी मैने कुछ कर दिया" वो रॉनी सूरत बनाकर बोली
दिशा: नही वाणी, तूने कुछ ग़लत नही किया बस इतना समझ ले घर वालों को बाहर के लड़कों के साथ हमारा रहना बुरा लगेगा
वाणी: लेकिन दीदी! सर कौन सा बाहर के हैं, वो तो अपने हैं ना!
दिशा ने वाणी को अपनी छाति से चिपका लिया शमशेर का चेहरा उसके सामने घूम गया," हां छुटकी, सर तो अपने ही हैं." उसकी आँखों से आँसू टपक पड़े
शमशेर के आने के बाद दिशा में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ आ गया था लड़के रूपी मक्खियों को अपनी नाक पर ना बैठने देने वाली दिशा आज शमशेर की दासी हो चली थी उसके भी मॅन में था की वो शमशेर को वाणी की तरह ही सिने से चिपका ले दिनों-दिन उसका खुमार बढ़ता ही जा रहा था उसको अब भी ये महसूस होता था कि सर उससे नाराज़ हैं और उसको गुस्सैल लड़की समझते हैं इसीलिए तो मुझसे इस तरह बात नही करते जैसे औरों से करते हैं उसको क्या मालूम था शमशेर भी उसी की माला जप रहा है आजकल
निर्मला के आने के बाद जब वाणी सर को चाय देने गयी तो सर वहाँ नही मिले वाणी का भी सर के बगैर दिल नही लगता था पर जिस बात को उसको मम्मी पापा से छुपाना था, वही बात उसके मॅन में बैठ गयी वो जान-ना चाहती थी की ऐसा क्यूँ है कि बाहर के लड़कों के पास नही जाना चाहिए पर किसी ने उसको नही बताया ये तो मानव का स्वाभाव है की जिस बात से उसको रोका जाए, वही करने में उसको आनंद मिलता है
रात को करीब 7:00 बजे शमशेर वापस आया अंजलि की तो वो खुजली मिटा कर आया था पर उसकी भूख बढ़ती ही जा रही थी रोटियों की भूख मिठाई खाने से कम नही होती वो तो अब दिशा का भूखा था थोड़ी देर नीचे मामा मामी के साथ बैठकर वो उपर चला गया वाणी भी साथ ही चली गयी उसके मम्मी पापा को अब किसी बात की चिंता नही थी शमशेर की तरफ से तो वो दिशा का लिए भी निश्चिंत थे दिशा शायद इसीलिए घबराती थी क्यूंकी उसके मॅन में चोर था...प्यार का चोर.....शमशेर!
नीचे से जब वाणी को खाने के लिए आवाज़ आई तो शमशेर ने कहा जा वाणी मेरी रोटी उपर ही भेज देना और तू जाकर पढ़ाई कर ले
वाणी: नही! आज में पढ़ूंगी नही; कल सनडे है, खूब सोऊगी!
शमसेर: ठीक है सो जाना; पहले मेरा खाना तो दे जा
वाणी: ओके सर!
वाणी ने नीचे जाकर कहा,"सर खाना उपर मॅंगा रहे हैं! उनकी तबीयत खराब है"
निर्मला: वाणी तू खाना खा ले! जा बेटी दिशा! तू सर को खाना दे आ
दिशा: ठीक है मामी जी, और वो खाना लेकर उपर चली गयी
"सर, मे आइ कम इन?"

शमशेर कपड़े बदलने की तैयारी में था उसके शरीर पर पॅंट के अलावा कुछ नही था दिशा की आवाज़ सुनकर उसने कहा," आ जाओ! अपना ही घर है"
दिशा अंदर घुसी तो थोड़ी सकुचा गयी, शमशेर को ऐसे देखकर, उसका कसरती बदन उसको लुभा रहा था
वह खाना रखकर जाने लगी तो शमशेर ने उसको कलाई के पास से पकड़ लिया. "आ..आ!" वा जड़ हो गयी, उसके अंदर तूफान जैसी हलचल थी, पर बाहर जैसे पत्थर उसको हल्का सा इशारा मिलते ही वा शमशेर की बाहों में क़ैद हो जाती, हमेशा के लिए! सिर्फ़ हूल्का सा झटका अगर उसको शमशेर दे देता तो पर हाय री दोनों की किस्मत; शमशेर ने वो झटका ही नही दिया
दिशा घूम गयी और नीचे देखने लगी
" क्या नाम है तुम्हारा?" शमशेर ने उसी अंदाज से पूछा जैसे उसने पहले दिन स्कूल में पूछा था
दिशा कुछ ना बोली; कुछ ना बोल सकी
शमशेर ने उसकी गालों पर हाथ लगाकर उसका चेहरा उपर उठा दिया, दिशा की आँखें बंद हो गयी," तुमने आज तक मुझे अपना नाम नही बताया है जो मैं पहले दिन से पूछ रहा हूँ"
दिशा ने कप-कपाते अधरों से कहा," ज.जी... दिशा"
शमशेर ने उसको छोड़ दिया," दिशा को उसका सब कुछ टूट-ता सा लगा वो जाने लगि तो शमशेर ने उसको टोका," सुनो दिशा"
वो पलट गयी, एक बार और जी भर कर देख लेना चाहती थी; बाकी रात यही चेहरा तो याद रखना था," जी सर"
" मैं तुमसे नाराज़ नही हूँ! तुम बहुत...अच्च्ची हो!" शमशेर सुंदर कहना चाहता था पर निकल ही नही पाया
दिशा सुनकर नीचे भाग गयी
दिशा जब नीचे गयी तो वहाँ एक अलग ही कोहराम मचा हुआ था, वाणी रो रही थी!
दिशा ने जाते ही पूछा," क्या हुआ छोटी" जब वह उसके लाड लड़ाती थी, तो छुटकी ही बुलाती थी
निर्मला: हुआ क्या है. बेवजह की ज़िद लगा रही है; कह रही है सर के पास जाकर सोएगी
दिशा सुन्न रह गयी दिन में उसको कितना समझाया था अकल की दुश्मन! घर वाले अब शायद शमशेर को यहाँ रहने ही दें
" तू पागल है क्या वाणी यहाँ मेरे पास सोना चल उठ जा!
वाणी और ज़ोर से रोने लगी सर के बिना तो अब वो रहना ही नही चाहती थी शमशेर कभी भी किसी चीज़ को मेरा या हमारा नही बोलता था हर चीज़ में वह सबको शामिल करता था हर चीज़ को अपना कहता था शमशेर के उसी 'अपनेपन' को वाणी ने मेरा मॅन लिया था
दिशा को लगा सब ख़तम हो जाएगा मुश्किल से आज सर खुश हुए थे अगर आज घर वालों ने कुछ कह दिया तो फिर कभी बात ही नही करेंगे
निर्मला: अरे सोच बेटी! किराया देते हैं वो, फिर उन्हे काम भी बहुत रहता है क्या सोचेंगे कहेंगे इस्सको और साथ बाँध दिया परेशान हो जाएँगे आख़िर उनकी भी तो अपनी जिंदगी है हर पल तुझे कैसे सहन करेंगे वहाँ और फिर 2 दिन पहले क्या हमारे पास ए.सी. था तब भी तो सोती थी नीचे ही मान जा बेटा, नही तो वो नाराज़ होकेर चले जाएँगे"
दिशा को लगा; मामला उतना गंभीर नही है यहाँ तो सर के परेशान होने की बात चल रही है
" अच्छा तू सर से पूछ ले, वो मान जाए तो चली जाना, बस!" दिशा को विश्वास था वो तो मान ही जाएँगे कह कर वो मामा मामी की और देखने लगी की क्या रिएक्शन होता है वाणी झट से उठ खड़ी हुई," मैं पूछ कर आती हूँ"
दयाचंद : ठहर वाणी!
वाणी और दिशा दोनो ने मायूस होकर पापा की और देखा
दयाचंद: हम बात करके आते हैं; अगर हमें लगा की सर को तुम्हे साथ रखने में कोई दिक्कत नही है तो हम तुम दोनो को उपर भेज देंगे अब तो खुश हो ना!
"दोनो को" दिशा को लगा वो सपना देख रही है! उसको सच में विस्वास नही हो रहा था, कि उसके रूढ़िवादी मामा उसको तो दूर; वाणी को भी उपर भेज सकते हैं
वाणी खुश हो गयी वो पापा की उंगली पकड़कर तैयार हो गयी
"नही अभी तुम नही मैं और तुम्हारी मम्मी जाएँगे"
और वो दोनो उपर चले गये शमशेर के पास उनके जाते ही दिशा वाणी को घूर्ने लगी, फिर उसको पकड़कर अपनी छाति से लगा लिया उसी कि हिम्मत से यह सब संभव हो सका था उसने वाणी के गालों को चुंबनों से भर दिया वाणी अपना बॅग तैयार करने लगी जैसे अब उसको कभी वापस आना ही ना हो," दीदी, एक ड्रेस भी ले लूँ"
दिशा ने उसको एक प्यार भारी चपत लगाई फिर दोनो हँसने लगी
उपर जाकर दयाचंद ने दरवाजा खट-खटाया शमशेर लॅपटॉप पर काम कर रहा था उसने दरवाजा खोला, आइए अंकल जी
अंदर जाते ही दोनों को यकीन हो गया की वाणी उपर रहने की ज़िद क्यूँ कर रही है बिल्कुल ठंडा माहौल था कमरे में बैठने के बाद दयाचंद ने बोलना शुरू किया; उसको समझ नही आ रहा था बात कहाँ से शुरू करे," बेटा कोई तकलीफ़ तो नही है ना!"
"जी नही तकलीफ़ कैसी, मैं तो यहाँ अपने घर की तरह से रह रहा हूँ!"
दयाचंद: फिर भी बेटा.... वो वाणी है ना, बहुत ही शरारती है! परेशन तो कर देती होगी आपको
शमशेर: अरे नही अंकल जी! वो तो गुड़िया जैसी है; उसने ही तो मेरा दिल लगाया है यहाँ पर शमशेर ने हद से ज़्यादा मीठा होते हुए कहा उसकी अब तक ये समझ नही आ रहा था की माजरा क्या था
निर्मला: वो भी ना मस्टेरज़ी, आपसे बहुत घुलमिल गयी है नीचे भी आप ही की बात करती रहती है
शमशेर: आंटिजी, वो तो है ही ऐसी, कितनी प्यारी है गुड़िया जैसी
दयाचंद: (थूक निगलते हुए) बात ऐसी है बेटा; वो वाणी ज़िद किए बैठी है की मैं तो सर जी के साथ रहूंगी खाना भी नही खाया; रो रही है जबसे नीचे गयी है (ए.सी. वाली बात को बताने में उन्हे शरम आ रही थी)
शमशेर की समझ में नही आया इस बात पर कैसे रिएक्ट करे! वो कुछ नही बोला
दयाचंद: मुझे तो बहुत गुस्सा आया था बेटा, बच्चों की इतनी ज़िद ठीक नही पर इसकी मम्मी कहती है एक दो दिन...... अगर आपको कोई दिक्कत ना हो तो यहाँ... इस दूसरे कमरे में दोनों बच्चियाँ रह लेंगी. ....अगर आपको ऐतराज ना हो तो... 1-2 दिन में अपने आप दिल भर जाएगा; अपनी मम्मी के बिना भी तो नही रहती ना... देख लो... उसको समझा कर देख लो... मास्टर जी!
"ओ..ओह अंकल जी (शमशेर के मॅन में लड्डूओं की बरसात हो रही थी 'दोनो' सुन-ने के बाद और कुछ उसको सुनाई ही नही दिया... क्या किस्मत दी है भगवान ने!) भला मुझे क्या दिक्कत हो सकती है उस बेचारी से! आपका ही घर है.... वैसे भी वो कमरा तो में यूज़ करता ही नही... प...पढ़ा... मेरा मतलब है पढ़ाई में भी कोई दिक्कत होगी तो पढ़ा दूँगा वैसे भी में तो खाली ही रहता हूँ... बाकी आपकी मर्ज़ी!... मैं तो उस कमरे में जाता ही नही"
शमशेर ने इतना लंबा भाशन दिया ताकि इनको विश्वास हो जाए उसको कोई प्राब्लम नही है
निर्मला: तो मास्टर जी उनकी चारपाई लगवान दे उपर?
शमशेर: जी मुझे तो कोई दिक्कत है नही... आपकी मर्ज़ी... शमशेर ख़ुशी में हकला रहा था
निर्मला: तो ठीक है बेटा, हम उन्हे उपर भेज देते हैं कोई दिक्कत हो तभी बता देना तभी ले जाएँगे हम दोनों को!
शमशेर: जी अच्छा!
बाहर निकल कर दयाचंद बोला," बड़ा भोला है बेचारा इतना पैसा होने पर भी किसी बात का घमंड नही; भगवान ऐसी औलाद सबको दे!"
कुछ देर बाद दोनो अपनी-अपनी चारपाई लेकर उपर आ गयी और दूसरे कमरे में डाल लिया दिशा तो किताब लेकर पढ़ने बैठ गयी पर वाणी दौड़ी आई और सर से लिपट गयी दिशा ने एक बार उनकी और देखा पर शमशेर को अपनी और देखता पाकर शर्मकार नीचे चेहरा कर लिया वाणी की आँखें रोने की वजह से और भी मोटी-मोटी हो गयी थी शमशेर ने उसके गाल पर प्यार से किस किया तो बदले में वाणी ने भी एक चुम्मा सर के गाल पर दे डाला
सच में वाणी तो एक प्यारी गुड़िया ही थी
शमशेर पालती मारे बैठा था; वाणी उसकी गोद में आकर बैठ गयी और उसकी गालों के नीचे अपना सिर फँसा लिया उसने अब भी स्कर्ट पहन रखा था
वाणी की गाँड़ शमशेर की गोद में होने की वजह से ना चाहते हुए भी शमशेर गरम होता जा रहा था उसने लाख कोशिश की अपना ध्यान बताने की पर उसकी दुनिया की सबसे हसीन कन्या जब उसके सामने हो और उसकी 17 साल की अनछुई बहन उसके लंड पर अपने मस्त चूतदों को टिकाए बैठी हो तो उस जैसे गरम खून वाले का कंट्रोल कहाँ तक टिकता स्कर्ट और एक पतली सी कच्छी उसके शेर की टक्कर कहाँ तक सहन करते वैसे भी वाणी उसके लंड के ठीक बीच में बैठी थी उसको अपने चूतड़ो में कुछ चुभता सा महसूस हुआ, पर वो उसको समझ नही पाई उसने सोचा वो सर की टाँग पर बैठी है नासमझ थी तो क्या हुआ फिर भी थी तो वह लड़की ही, उसको बेचेनी सी होने लगी ऐसी बेचैनी जिसमें उसको मज़ा आ रहा था धीरे-धीरे उसकी चूत में गर्मी बढ़ने लगी अजीब सा खुमार छा गया था उस पर धीरे-धीरे उसने बोलना बंद कर दिया बस हां हूँ में ही जवाब देने लगी शमशेर की 'टाँग' पर अपनी चूत की रगड़ से उसको अजीब सा आनंद मिल रहा था वो आराम-आराम से आगे पीछे होने लगी, उसको पता नही था ऐसा क्यूँ हो रहा है शमशेर उसकी हालत को ताड़ गया था उसने अपनी दोनों बाहें आगे ले जाकर वाणी को कसकर पकड़ लिया; बातें करते-करते, शमशेर की कलाई का दबाव उसकी छातियो पर बढ़ गया, इसमें उसका आनंद और बढ़ गया हिलने की वजह से अब शमशेर का लंड उसकी चूत के दाने पर दबाव बढ़ा रहा था, जिससे वाणी की आँखें बंद हो गयी और उसका आगे पीछे हिलना और तेज़ हो गया अचानक वो काँपने लगी उसने सर के हाथों को कासकर पकड़ लिया और अपनी चुचकों पर दबाव बढ़ाने लगी करीब 10-15 सेकेंड के बाद उसको हल्की सी हिचकी आई और वो निढाल हो गयी जब उसका होश संभला तो उसको लगा जैसे उसका पेशाब निकल आया हो वो बिना कुछ कहे बाथरूम में भाग गयी पहली बार उसने यौवन सुख के साम्राज्य में परवेश किया था इतना सब हो जाने के बाद भी दिशा को अहसास भी नही हुआ की उसकी छोटी बेहन ने उससे पहले ही किसी पुरुष की सहायता से स्ख्लन का चरम आनंद प्राप्त कर लिया है, बेशक यह संभोग नही था

बाथरूम में जाकर वाणी ने देखा उसकी कच्छी भीग गयी है उसने निकाल कर देखा, यह पेशाब तो नही था, इतना गाढहा पेशाब हो ही नही सकता वो काँपने क्यूँ लगी थी? उसको इतना मज़ा कैसे आया और उसने सर के हाथ को अपनी छति पर क्यूँ दबाया? वह विचलित सी हो गयी थी उसको शरम आ रही थी पूछे तो किस-से पूछे! बताए तो किसको बताए उसने झुक कर अपनी चूत की फांकों को दूर करके देखा वो अंदर से अजीबो-गरीब तरीके से लाल हो चुकी थी एक पल के लिए तो जब उसका स्ख्लन हुआ तो उसको लगा की शायद वह मर रही है पर अब उसके मॅन में थोड़ी शांति थी लेकिन उस आनंद को जो अंजाने में सर की गोद में उसको मिला; भूल नही पा रही थी
उसकी कच्छी तो गीली हो गई थी अब वो पहनेगी क्या नीचे तो जा नही सकती, कहीं मा उसको वहीं ना रख ले दिशा को बताती तो क्या बताती आख़िर में उसने कच्छी को धोकर टाँग दिया और ऐसे ही स्कर्ट को टाँगो से चिपकाए बाहर आकर अपनी खाट पर बैठ गयी नीचे मामा मामी को चोद रहा था बहुत दिनों बाद उसको प्यार करने लायक अकेला पन मिला था मामी निढाल सी अपनी टांगे चौड़ाए पड़ी थी और मामा उसकी खुली चूत में अपना 'जैसा भी था' लंड पेले जा रहा था पर वो चुदाई मामी को फॉरमॅलिटी भर लग रही थी जैसे बस करवाना ही है उसको मामा के 4 इंची लंड से कोई खास लगाव नही था अब मामा की उमर भी तो हो गयी थी ना ऐसा नही है की वो दूसरो की और देखती थी अपनी सेक्स की पूर्ति के लिए बस वा 'जो मिला' से ही संतुष्त थी.
अपनी टांगे फाडे-फाडे ही वो कहने लगी," सुनो जी, दिशा के लिए शमशेर जैसा रिश्ता मिल जाए तो....' हमारी बेटी लाखों में एक है... और शमशेर भी तो....! मामा उसके उपर निढाल होकर गिर पड़ा," कैसी बात करती हो निर्मला! वो कहाँ और हम कहाँ! कहने से पहले कुछ सोच तो लिया करो." उसने अपना लंड मामी की चूत से निकल लिया और बोला," अब वो बात नही रही निर्मला! बुढ़ापा दस्तक देने लगा है" वो हाँफ रहा था
उपर वाणी का बुरा हाल था जो कुछ भी थोड़ी देर पहले हुआ वो तो जैसे स्वर्ग में जाकर आने जैसा था उसको चुपचाप देखकर दिशा ने धीरे से पूछा," क्या हुआ वाणी!?"
वाणी ने भी उसी टोने में जवाब दिया," कुछ नही दीदी?"
दिशा: नींद आ रही है क्या?
वाणी: नही तो... दीदी!
दिशा: फिर सर के पास से उठ क्यूँ गयी?
वाणी: ऐसे ही दीदी! क्यूँ?
दिशा: कुछ नही, ऐसे ही! वो सर की कुंभकारण वाली बात तू सच कह रही थी ना!
वाणी: हां दीदी! बेशक तुम उठा के देख लेना, बिना बोले; नही उठेंगे
दिशा: तू झूट बोल रही है!
वाणी पिछली बात और अपने नंगेपन को भूल गयी! वो उठकर सर के पास भागी चली गयी," सर, आपकी नींद कुम्भकरण जैसी है ना!
शमशेर: क्यूँ वाणी?
वाणी: मैने दीदी को बताया था; वो कह रही हैं मैं झूठ बोल रही हूँ!
शमशेर हँसने लगा," नही, अपनी दीदी को बता दो हम झूठ नही बोलते!"
वाणी ने जीभ निकल कर दिशा को चिडा दिया!
दिशा गुस्सा थी की उसने सर को क्यूँ बताया की वो उनके बारे में पूछ रही थी उसने ख़ीज में अपनी चप्पल उठाई और वाणी की और आराम से फंकी चप्पल वहाँ तक पहुँची ही नही वा शर्मिंदा होकर लेट गयी और आँखें बंद कर ली
"सर आप क्या कर रहे हो?"
शमशेर नेट पर चेटिंग कर रहा था," कुछ नही वाणी!"
"मैं यहीं सो जाउ क्या!"वा पिछली बात भूल गयी थी
शमशेर को पता था दिशा सुन रही होगी," फिर तुम्हारी दीदी को डर नही लगेगा क्या?"
वाणी: दीदी! तुम भी यहीं आ जाओ ना; हमारे पास! तीनों मज़े से सोएंगे!
दिशा सर के पास सोने की बात सुनकर शरम से लाल हो गयी और करवट बदल कर मुँह छिपा लिया
शमशेर उठा और बाथरूम में घुस गया वाणी की जवानी ने उसका बुरा हाल कर दिया था बहुत दिनों बाद उसको लगा, मूठ मारे बगैर नींद नही आएगी उसने अपनी पॅंट निकाल दी उसको टाँगने लगा तो उसको हॅंगर पर वाणी की कच्छी टंगी दिखाई दी
उसने उसको उतार कर देखा; उसमें से योनि रस की स्मेल आ रही थी. " कितनी प्यारी खुश्बू है; एकदम मदहोश कर देने वाली! उसने अपने लंड को आज़ाद किया, उसकी एक-एक नस चमक रही थी आँखें बंद करके वा अपने हाथ से लंड पर घेरा बनाकर आगे पिछे करने लगा

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A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.

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Re: हिंदी सेक्स कहानियाँ - गर्ल्स स्कूल (girls school sex st

Unread post by Fuck_Me » 15 Aug 2015 09:11

उधर दिशा सिर के बाथरूम में जाते ही वाणी के पास दौड़ी हुई आई और वाणी का प्यार से गला पकड़ लिया," सर की चमची, सर को सारी बातें बतानी ज़रूरी हैं क्या!"
वाणी: दीदी! आप सर से इतनी जलती क्यूँ हैं
वाणी, दिशा की शरम को उसका जलना मान रही थी; कितनी नादान थी वो!
दिशा: चल वही सोएंगे, मुझे तुमसे बात करनी है!
वाणी: नही दीदी; सुबह बता देना और उसने पलटी मार कर आँखें बंद कर ली
दिशा उठकर चली गयी और अपनी खाट पर जाकर लेट गयी "काश! सर मुझे ज़बरदस्ती अपने बेड पर ले जाते वाणी कितनी खुशकिस्मत है." सोचते-सोचते उसने आँखें बंद कर ली उसके दिमाग़ में कुछ चल रहा था
शमशेर आया और वाणी के पास ही लेट गया उसको पता था वो नीचे से नंगी है! पर शमशेर ने अपनी सोच को हटाकर दिशा पर लगा लिया अब दिशा ही उसका टारगेट थी उसके बारे में सोचते-सोचते उसको ना जाने कब नींद आ गयी....
रात के करीब 2 बजे का टाइम था शमशेर मीठी नींद में दिशा के सपनों में खोया हुआ था अचानक उसको अहसास हुआ, कोई साया उसके पास खड़ा है, कहीं ये दिशा ही तो नही उसने ध्यान से देखा; अरे हां, वही तो है उसने आँखे बंद कर ली शमशेर के दिल की धड़कन तेज हो गयी क्या दिशा भी उससे...! सहसा उसको अपनी छति पर एक कोमल हाथ लहराता हुआ महसूस हुआ दिशा ने उसको धीरे से पुकारा," सस्स...इर्ररर!"
शमशेर ने कोई जवाब नही दिया वो जानता था कि दिशा चेक करना चाहती है; कहीं सर उठ तो नही जाएँगे! शमशेर क्यों उठता भला
दिशा शमशेर की छाति पर हाथ फेरने लगी शमशेर के दिल में आया की उठकर उसकी जवानी को दबोच ले, पर उसको लगा, पहले देखना चाहिए दिशा किस हद तक जाती है
फिर दिशा ने उसको ज़ोर से हिलाया पर शमशेर सोता रहा दिशा एक पल के लिए रुकी, फिर उसकी कमीज़ के बटन खोलने लगी, धीरे धीरे."अफ...!"
शमशेर की छाति नंगी हो गयी दिशा उसकी छाति के बालों को प्यार से सहलाने लगी फिर वह झुकी और शमशेर के गालों पर अपने लरजते होंट रख दिए
शमशेर को मज़ा आने लगा था बड़ी मुश्किल से वो खुद की सांसो पर काबू पा रहा था दिशा झुकी और शमशेर के मर्दने होंटो को अपने लबों में क़ैद कर लिया शमशेर तो जैसे आसमान में उड़ रहा था वो मज़े लेता रहा दिशा उसके कानों को चबाने लगी शमशेर को उसकी तनी हुई चुचियाँ अपनी छाति में चुभाती महसूस हुई इतनी सख़्त....आ...आ!
अचानक दिशा सर की चादर में घुस गयी और उससे लिपट गयी चादर में घुसने के बाद उसने अपनी कमीज़ उतार दी
शमशेर आँखें फाडे उसकी चुचियों को देखने लगा चुचियाँ मानो भगवान ने मॉडल के रूप में ढली हों वैसी जैसे मानो 'राफियेल' ने अपनी तुलिका से उनको मान चाहा रूप दिया हो, उनमें मनचाही मस्ती भरी हो! कैसे सीना ताने अपनी उचाई और गोलाई पर घमंड कर रही हों जैसे शमशेर का लंड बेकाबू होता जा रहा था
दिशा ने सर के हाथ को अपने हाथ में लिया और उसको अपनी छति पर दबा दिया
आ! शमशेर की लाख कोशिश के बावजूद खुदकी सिसकी निकल पड़ी दिशा सर के हाथ से अपनी चूची दबाने लगी; जैसे उसका रस निकलना चाह रही हो
दिशा सर के उपर आ गयी दोनों की छातिया आमने-सामने थी ऐसा लगा अभी महासंग्राम होगा!
दिशा ने शमशेर के होंटो को अपनी जीभ से ज़बरदस्ती खोल दिया और जीभ उसके मुँह में घुसा दी शमशेर को उसकी सिसकियाँ साफ सुनाई दे रही थी
दिशा सर के उपर से उतरी और अपना हाथ नीचे ले गयी, वहाँ जहाँ जाँघ रूपी दो पुन्जो का मिलन होता है, और औरत का मकसद; एक पोल खड़ा होता है
दिशा ने शमशेर की पॅंट का बटन खोला और उसकी जीप नीचे कर दी
शमशेर से रहा ना गया, उसने अपना अंडरवेर खुद ही नीचे खिसका दिया, मगर ऐसे की दिशा को आभास ना हो
शमशेर के शेर ने करवट बदली और स्प्रिंग की तरह उछल कर दिशा के हाथ से जा टकराया! दिशा उसपर हाथ फेर कर उसकी सखताई और मोटाई का अंदाज़ा लगाने लगी उसकी साँसे उखाड़ गयी थी, बाल बिखर गये थे
दिशा अपना मुँह शमशेर के लंड के पास ले गयी और उसकी जड़ों पर जीभ फिराई क्या मस्त स्टाइल था शमशेर को पता था. असली सकिंग वहीं से शुरू होती है...
शमशेर के लंड से जीभ सटाए उपर की और खींच लाई, अपनी जीभ को, और सुपाड़े पर प्यार से चुम्मि देकर उसको इज़्ज़त बखसी!
ऐसा लग रहा था अब दिशा को किसी बात का डर नही है, ना सर का ना जमाने का; जैसे वो जान गयी हो कि सर भी तो यही चाहते हैं
आशचर्यजनक रूप से पहली बार ही उसने अपने होंटो को पूरा खोल कर लंड के सुपारे को क़ैद कर लिया वह उस पर जीभ फिराने लगी; मुँह में सुपारे को लिए-लिए ही शमशेर सोच रहा था अब तक तो दिशा को पता चल जाना चाहिए की वो जाग रहा है तभी दिशा ने शमशेर का पूरा लंड अपने गले की गहराइयों तक उतार लिया शमशेर कुत्ते की तरह सिसक रहा था पर उसकी हिम्मत ही ना हुई उठने की वह निढाल पड़ा रहा; जैसे बेहोश हो
पहली बार में ही कोई लड़की 8 इंच लंबे लंड को अपने मुँह में पूरा कैसे उतार सकती है; ज़रूर खेली खाई है साली, शमशेर सोच रहा था वह उठना चाहता था पर उठ ही ना पाया, वो बेबस था
दिशा तेज़ी से लंड को अपने मुँह में अंदर बाहर करने लगी, बिल्कुल खेली खाई लड़की की तरह शमशेर हैरान था उसका अब छुटने ही वाला था की अचानक दिशा ने लंड को अपने मुँह से निकाल दिया और उसके उपर जा चढ़ि, आज वो किसी के वश में नही थी
दिशा बेकाबू हो चुकी थी उसने अपनी सलवार का नाडा खोल दिया और सलवार को उतारकर नीचे डल दिया वह इतनी जल्दबाज़ी में थी की शमशेर के रोड जैसे सख्त हो चुके उसके लंड को पैन्टी के उपर से ही रगड़ने लगी शमशेर का स्टॅमिना उसको जवाब दे रहा था दिशा ने कुछ देर बाद अपनी चूत के उपर से पैन्टी को हटाकर उस रोड के लिए जगह बनाई और लंड को अपने योनिद्वार से सटा कर उस पर बैठ गयी 'फ़चक' की आवाज़ के साथ पूरा का पूरा लंड उसकी चिकनी चूत में समा गया दिशा शमशेर की छाति पर धम्म से गिर पड़ी और पागलों की तरह उसके कंधों को, गालों को अपने दातों से काटने लगी वह उपर से धक्के लगा रही थी और शमशेर नीचे से. 2-3 मिनिट में ही शमशेर दिशा से हार गया उसके लंड से तेज पिचकारी निकल पड़ी दिशा फिर भी उस पर कूदती रही अब शमशेर से सहन नही हो रहा था वा बड़बड़ाने लगा," प्लीज़्ज़ दिशा मुझे छोड़ दो, मैं और सहन नही कर सकता मुझे माफ़ कर दो प्लीज़्ज़ज्ज्ज.
वाणी चौंक कर उठ बैठी," सर जी! उठिए...." और शमशेर चौंक कर उठ बैठा वो पसीने से तर बतर था ए.सी. की ठंडक भी उसके सपने की गर्मी को दबाने में नाकाम रही थी उसकी साँसे अब भी तेज चल रही थी उसने देखा," दिशा वाणी के साथ ही बेड पर बैठी है पूरे कपड़े पहने..... उतनी ही शांत जितनी वो उसको छोड़ कर सोया था....वह हल्का हल्का मुस्कुरा रही थी शमशेर शर्मिंदा हो गया!
"सर, कोई बुरा सपना आया था क्या?", वाणी ने मासूमियत से पुछा, वो और दिशा शमशेर को ध्यान से देख रही थी शमशेर ने वाणी की जाँघ पर थपकी लगाई,"हां वाणी! बहुत बुरा सपना आया था" शमशेर संभाल चुका था दिशा शमशेर के लिए पानी ले आई," लीजिए सर! पानी पीने से बुरे सपने नही आते!" वाणी शमशेर के और नज़दीक आ गयी," क्या सपना आया था सर!?" शमशेर ने कहानी बनाते हुए कहा," एक राक्षस का सपना था! आजकल वो मुझे बहुत डरा रहा है." "पर सर! आप तो दीदी का नाम ले रहे थे!" शमशेर परेशान हो गया, कहीं सारा सपना उसने लाइव टेलि-कास्ट ना कर दिया हो!,"क्या कह रहा था मैं" वाणी: आप कह रहे तहे, दिशा मुझे माफ़ कर दो; मैं और सहन नही कर सकता दिशा मुझे छोड़ दो; वग़ैरा वग़ैरा...." शमशेर: तो राक्षश इसके रूप में आया होगा चलो सो जाओ. अभी रात बाकी है.
" वाणी: सर, पहले सपना सुनाए ना!
शमशेर: देखो वाणी अच्छे बच्चे ज़िद नही करते सो जाओ! कहकर वा बाथरूम में गया और अपना अंडरवियर चेंज करके आया उसके आने के बाद वाणी ने उसकी जॅफी भरी और अपनी टाँग शमशेर के पेट पर रखकर सो गयी मामला ख़तम जान कर दिशा भी सोने चली गयी करीब एक घंटा बीट जाने के बाद भी शमशेर की आँखों में नींद नही थी सच में ही बुरा सपना था ये, जिस रूप में दिशा उसके सपने में आई थी, अगर वो सच्चाई होती तो उसको वाकई बुरा लगता सपने में तो दिशा ने बेशर्मी की हद ही तोड़ दी थी खैर दिशा के लिए उसका खुमार बढ़ता ही जा रहा था वैसे लड़कियों की उसकी कमज़ोरी को छोड़ दें तो वा निहायत ही सुलझा हुआ और दिल का सॉफ आदमी था बढ़ती ठंड के कारण वाणी उससे और ज़्यादा चिपकती जा रही थी शमशेर के मॅन में खुरापात घर करने लगी, वह जानता था की वाणी अंजाने में ही सही; उसके हाथों सेक्स का मज़ा ले चुकी है वह पलटा और अपना मुँह वाणी की तरफ कर लिया
वाणी गहरी नींद में थी वाणी की छाति उसके हाथ से सटी हुई थी उसने वाणी पर अपने शरीर का हल्का सा दबाव डालकर उसको सीधा कर दिया शमशेर ने वाणी की छाति के उपर हाथ रख दिया उसकी चुचियाँ उसके सांसो के साथ ताल मिला कर उपर नीचे हो रही थी उसके होंट और गाल कितने प्यारे थे! और एक दम पवित्र, शमशेर ने वाणी के होंटो को छुआ. मक्खन जैसे मुलायम थे.... शमशेर ने आहिस्ता-आहिस्ता उसके टॉप में हाथ डाल कर उसके पेट पर रख लिया इतना चिकना और सेक्सी पेट आज तक शमशेर ने नही छुआ था. शमशेर ने हाथ थोड़ा और उपर किया और उसकी अनछुई गोलाइयों की जड़ तक पहुँच गया उसने उसी पोज़िशन में हाथ इधर उधर हिलाया; कोई हरकत नही हुई, वह हाथ को उसकी बाई चूची पर इस तरह से रख दिया जिससे वो पूरी तरह ढक गयी उसने उन्हे महसूस किया, एक बड़े अमरूद के आकर में उनका अहसास असीम सुखदायी था शमशेर का जी चाहा उन मस्तियों को अभी अपने हाथों से निचोड़ कर उनका सारा रस निकाल ले और पीकर अमर हो जाए पर वाणी के जागने का डर था उसने वाणी के निप्पल को छुआ, छोटे से अनार के दाने जितना था हाए; काश! वो नंगी होती और वो उन्हे देख पाता इस ख़याल से ही उसको ध्यान आया की वाणी तो नीचे से नंगी है.....

उसने नीचे की और देखा, वाणी का स्कर्ट उसके घुटनों तक था शमशेर ने उसको उपर उठा दिया पर नीचे से दबा होने की वजह से वो उसकी जांघों तक ही आ पाया शमशेर ने वाणी को वापस अपनी तरफ पलट लिया वाणी ने नींद में ही उसके गले में हाथ डाल लिया वाणी की होंट उसकी गालों को छू रहे थे. शमशेर ने दिशा के कमरे की और देखा, वहाँ से दिशा के पैर और उसकी गंड़ तक का हिस्सा ही दिख रहे थे निसचिंत होकर शमशेर ने वाणी के स्कर्ट को पिछे से भी उठा दिया वाणी की चिकनी सफेद जाँघ और गोल कसे हुए चूतड़ देख कर शमशेर धन्य हो गया उसके चूतड़ो के बीच की दरार इतनी सफाई से तराशि गयी थी की उसमें कमी ढूढना भगवान को गाली देने के समान था शमशेर कुछ पल के लिए तो सबकुछ भूल सा गया एक-टक उसके चूतड़ो की बनावट और रंगत को देखता रहा फिर उसने उनपर हाथ रख दिया; एकदम ठंडे और लाजवाब! वह धीरे-धीरे उनपर हाथ फिराने लगा शमशेर ने उसके चूतड़ो की दरार में उंगली फिराई; कही कोई रुकावट नही, शमशेर का लंड अब तक अपना फन उठा चुका था; डसने के लिए. उसने वाणी के चेहरे की और देखा, वो अपनी ही मस्ती में सो रही थी शमशेर ने उसको फिर से पहले वाले तरीके से सीधा लिटा दिया उसकी टाँगें फैली हुई थी; स्कर्ट जांघों तक थी, मोक्षद्वार से थोड़ा नीचे तक, स्कर्ट उपर करते वक़्त शमशेर के हाथ काँप रहे थे आज से पहले ऐसा शानदार अनुभव उसका कभी नही रहा...... शायद किसी का भी ना रहा हो...... स्कर्ट उपर करते ही शमशेर के लंड को जैसे 440 वॉल्ट का झटका लगा शमशेर का दिमाग़ ठनॅक गया, ऐसी लाजवाब चूत... नही! उसको चूत कहना ग़लत होगा. वो तो एक बंद कमाल की पंखुड़ीयान थी; नही नही! वो तो एक बंद सीप थी, जिसका मोती उसके अंदर ही सोया हुआ है शमशेर का दिल उसकी छाति से बाहर आने ही वाला था क्या वो मोती मेरे लिए है! शमशेर ने सिर्फ़ उसका जिस्म देखने भर की सोची थी, लेकिन देखने के बाद वा उस्स मोती को पाने के लिए तड़प उठा उस सीप की बनावट इस तरह की थी की, सर शेक्स्पियर को भी शायद शब्द ना मिले नही मैं एक्सप्लेन नही कर सकता उस अमूल्य खजाने को तो सिर्फ़ महसूस ही किया जा सकता है; और वो...शमशेर कर ही रहा था शमशेर ने उसकी जांघों के बीच भंवर को देखते ही उसको चोदने की ठान ली.... और वो भी आज ही....आज नही; अभी. उसने वाणी की सीप पर हाथ रख दिया पूरा! जैसे उस खजाने को दुनिया से छुपाना चाहता हो उसको खुद की किस्मत और इस किस्मत से मिलने वाली अमानत पर यकीन नही हो रहा था उसने बड़े प्यार से, बड़ी नाज़ूक्ता से वाणी की सीप की दरार में उंगली चलाई, वाणी कसमसा उठी! अचेतन मॅन भी उस खास स्थान के लिए चौकस था; कही कोई लूट ना ले! शमशेर ने अपना हाथ तुरंत हटा लिया वाणी के चेहरे की और देखा, वह तो सोई हुई थी फिर से उसकी नज़र अपनी किस्मत पर टिक गयी शमशेर ने अपने शरीर से वाणी को इस कदर ढक लिया की उस पर बोझ भी ना पड़े और अगर वो जाग भी जाए तो उसको लगे सर का हाथ नींद में ही चला गया होगा इस तरह तैयार होकर उसने फिर कोशिश की....वाणी का मोती ढूँढने की, उसकी दरार में उंगली चलाते हुए उसको वो स्थान मिल गया जहाँ उसको अपना खूटा गाढ़ना था ये तो बिल्कुल टाइट था, इसमें तो पेन्सिल भी शायद ना आ सके! शमशेर को पता था आने पर तो इसमें से बच्चा भी निकल जाता है... पर वो उसको दर्द नही दे सकता था बदहवास हो चुके शमशेर ने अपनी छोटी उंगली का दबाव उसके छेद पर हल्का सा बढ़ाया; पर उस हल्के से दबाव ने ही वाणी को सचेत सा कर दिया वाणी का हाथ एकदम उसी स्थान पर आकर रुका और वो वहाँ खुजलाने लगी फिर अचानक वो पलटी और शमशेर के साथ चिपक गयी शमशेर समझ गया 'असंभव है' ऐसे तो बिल्कुल कुछ नही हो सकता मायूस होकर उसने वाणी का स्कर्ट नीचे कर दिया और उसके साथ उपर से नीचे तक चिपक कर सो गया.....
अगली सुबह करीब 6 बजे दिव्या, वाणी की क्लासमेट उसके घर आई दिशा घर में सफाई कर रही थी उसके मामा मामी सूरज निकलने से पहले ही खेत चले गये थे. "दीदी! वाणी कहा है?", दिव्या ने दिशा से पूछा.
दिशा: उपर सो रही है, सनडे को वो कहाँ जल्दी उठति है! दिव्या उपर चली गयी. उपर जाते ही वो सर को कसरत करते देख शरमा गयी," ससर्र! गुड मॉर्निंग, सर!" "गुड मॉर्निंग दिव्या!", शमशेर ने मुस्कुरा कर कहा पसीने की बूंदे उसके ताकतवर जिस्म पर सोने जैसी लग रही थी!
दिव्या: सर! वाणी कहा है?
शमशेर: वो रही! कमरे की और इशारा करते हुए उसने कहा दिव्या ने वाणी को उठाया," वाणी! चल; मेरे घर पर! मैं अकेली हूँ घर वाले शहर गये हैं. हम वहीं खेलेंगे! वाणी ने जैसे ही शमशेर को पसीना बहाते देखा, वो दिव्या की बात को उनसुना कर बाहर भाग आई," सर आप पहलवानी करते हैं?" शमशेर: नही तो!
वाणी: फिर...! ये सब तो पहलवान करते हैं ना! शमशेर हँसने लगा, बिना कुछ कहे ही वो उठा और अंदर चला गया

दिव्या: आ वाणी; चल ना मेरे घर वाणी ने भोलेपन से कहा," नआईईई, मुझे तो अभी स्कूल का काम भी करना है मैं दोपहर बाद आ जवँगी; ओके!" दिव्या उससे दोपहर बाद आने का प्रोमिसे लेकर चली गयी....... दिव्या, वाणी की बेस्ट फ्रेंड; उसी की उमर की थी उसका बदन भी गदराया हुआ था चेहरे से गाँव का अल्हाड़पन भोलापन साफ झलकता था उसका घर सरपंच की हवेली से सटा हुआ था....छत से छत मिलती थी. सरपंच का बिगड़ा हुआ बेटा; छत से दिव्या को अकेला देखकर कूद आया! जाहिर है उसकी नियत ठीक नही थी...! "राकेश तुम छत से कूदकर क्यूँ आए हो!", दिव्या उसकी आँखों में छिपि वासना को नही समझ पाई राकेश करीब 21 साल का नौजवान लड़का था. एक तो उसका खून ही खराब था; दूसरे उसके बाप की गाँव में तूती बोलती थी; फिर बिगड़ता कैसे नही," दिव्या में तुझे एक खेल सिखाने आया हूं. खेलेगी!" "नही, मुझे अभी पढ़ना है; शाम को वाणी आएगी तो मैं उसके साथ खेलूँगी, तब आ जाना" राकेश: सोच ले इतना मस्त खेल है की हमेशा याद रखेगी. इस खेल को सिर्फ़ दो ही खेल सकते हैं फिर मत कहना की सिखाया नही मैने सरिता को भी सीखा दिया है दिव्या: ठीक है 5 मिनिट में सीखा दो! राकेश ने झट से अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया!
दिव्या: तुम ये दरवाजा क्यूँ बंद कर रहे हो!
राकेश: क्यूंकी ये खेल अंधेरे में खेला जाता है,पागल!
दिव्या: अच्छा! .....वो खेल सीखने के लिए उत्सुक हो उठी
राकेश: अब तुम आँखे बंद कर लो, देखो आँखे नही खोलना
दिव्या: ठीक है!... और उसने आँखें बंद कर ली. राकेश ने उसके गालों की पप्पी ले ली... दिव्या ने आँखें खोल दी,"छ्हीईइ! बेशर्म, ये कोई खेल है?"
राकेश: अरे खेल तो अब शुरू होगा, बस तुम आँखें नही खॉलॉगी! दिव्या ने अनमने मंन से आँखें बंद कर ली. राकेश ने पिछे से जाकर उसकी दोनों अधपकी चुचियाँ पकड़ ली.. दिव्या: हटो राकेश, ये तो गंदी बात है. तुम यहाँ हाथ मत लगाओ!..... उसके दिल में एक लहर सी उठी थी राकेश उसकी छातियोन को मसलता रहा दिव्या ने छुड़ाने की कोशिश की पर उसका विरोध लगातार कम होता गया
उसकी आँखें बंद सी होने लगी उसके सारे शरीर में हलचल शुरू हो गयी; जांघों के बीच भी गुद-गुदी सी हो रही थी उसको वश में आता देख राकेश आगे आ गया उसके होंट चूसने लगा और उसके कमीज़ में अपना हाथ घुसा दिया अब उसकी चुचियों और राकेश के हाथों के बीच कोई परदा ना था दिव्या पर जवानी का नशा हावी होता जा रही था वो आँखें बंद किए किए ही खाट पर बैठ गयी उसके मुँह से अजीब से आँहें निकल रही थी राकेश ने उसको हाथ का हल्का सा इशारा दिया और वो चारपाई पर पसर गयी उसको नही पता था उसकी सहेलिया जिसे गंदी बात कहती है उसमें दुनिया भर का मज़ा है "राकेशह!" "क्या?" राकेश उसका कमीज़ उठाहकर उसकी चुचियों को बता रहा था की ये सिर्फ़ दूध पिलाने के लिए नही बल्कि चूसने के काम भी आती हैं
दिव्या: बहुत मज़ा आ रहा है राकेश! आहह....ये तो बहुत अच्छा खेल है राकेश ने उसका अधमरा सा करके छोड़ दिया वह उससे अलग हो गया! " और करो ना प्लीज, थोड़ी देर और" मानो दिव्या उससे भीख माँग रही थी!
राकेश: नही ये खेल तो यहीं तक है. अब इसका दूसरा हिस्सा शुरू होगा.... वह अपने पॅंट में छिपे लंड को मसल रहा था
दिव्या: नही, मुझे यही खेलना है! इसमें मज़ा आता है
राकेश: अरे वो खेलकर तो तुम इसको भूल ही जाओगी राकेश समझ गया था की अब दिल्ली दूर नही है
दिव्या: अच्च्छा! तो खेलो फिर....... राकेश जानता था; दिव्या अन्छुई कली है, खेल के अगले भाग में उसको दर्द भी होगा आँसू भी निकलेंगे...और वो चिल्लाएगी भी," दिव्या, अगला खेल बड़ा मजेदार है पर वो थोड़ा सा मुश्किल है" "कैसे?" वो और मज़ा लेने को व्याकुल थी वो समझ नही पा रही थी की जो मज़ा अभी तक के खेल में उसको आया था, उससे ज़्यादा मज़ा... कितना होता होगा!
राकेश: अब मैं तुम्हे एक कुर्सी से बाँध दूँगा तुम्हारा मुँह भी कपड़े से बाँध दूँगा! फिर शुरू होगा आगे खेल!
दिव्या: नही तुम चीटिंग करोगे, मुझे कुर्सी से बाँध कर भाग जाओगे.....हालाँकि वो ऐसा करने को तैयार थी
राकेश: मैं पागल हूँ क्या, मुझे ऐसा करना होता तो मैं पहले यही खेल खेलने को कहता टाइम बर्बाद क्यूँ करता.... दिव्या: हूंम्म! ओके...! राकेश ने दीवार के साथ एक कुर्सी सटाई और उस पर दिव्या को इस तरह बैठा दिया जिससे उसके चूतड़ कुर्सी से थोड़ा बाहर निकले थे उसके पैरो को उसने कुर्सी के हत्थो के उपर से ले जाकर बाहर की और बाँध दिए इस पोज़िशन में वो तंग हो गयी
दिव्या: पैरो को आगे ही एक साथ करके नही बाँध सकते क्या?

राकेश: नही, ये खेल का रूल है! दिव्या अपनी गॅंड को हिलाकर अड्जस्ट करने की कॉसिश करती हुई बोली," अच्छा ठीक है! अब जल्दी सिख़ाओ, मुझे दर्द हो रहा है राकेश मंन ही मंन मुस्कुराया, सोचा ये इसी को दर्द कह रही है तो आगे क्या होगा. उसने दिव्या के मुँह पर कपड़ा बाँध दिया अब वो बोल नही सकती थी; ज़्यादा हिल नही सकती थी... अब राकेश ने देर नही की. वो दिव्या की सलवार खोलने लगा दिव्या ने कुछ बोलने की कोशिश करी, उसको शर्म आ रही थी.... राकेश ने दिव्या की सलवार का नाडा खोलकर उसके पीछे हाथ लेजाकर सलवार को नीचे से आगे की और खींच लिया, उसके अंडरवियर समेत... और सलवार को उपर घुटनों तक उठा दिया पैर बँधे होने की वजह से वो पूरी नही निकल सका दिव्या कसमसा रही थी; राकेश के सामने उसकी नंगी चूत थी.... पर वो तो हिल भी ना सकती थी, बोल भी ना सकती थी, उसने ज़्यादा कोशिश भी नही की, उसने शर्म से आँखे बंद कर ली राकेश नीचे बैठा और उसकी गांड़ को जितना आगे कर सकता था कर दिया उसने अपने होंट उसकी सलवार के नीचे से ले जाकर चूत से सटा दिए दिव्या सकपका गयी उसकी आँखें मारे उत्तेजना के बंद हो गयी असीम आनंद का अनुभव हो रहा था उसने सोचा; राकेश सही कह रहा था इसमें तो और भी मज़ा है, लेकिन पैर बाँधने की क्या ज़रूरत थी! अब राकेश जैसे उसकी चूत को चूस नही खा रहा था, कभी उपर, कभी नीचे, कभी ये फाँक, कभी वो फाँक; कभी दाना तो कभी छेद. दिव्या बुरी तरह छट-पटा रही थी हाए, इतना मज़ा दे दिया उसकी चुचियों में कस-मसाहट सी हो रही थी. इनको क्यूँ खाली छोड़ रखा है, उसका दिल किया वो राकेश को अपने उपर खींच ले; पर उसके तो हाथ भी बँधे हुए थे अब दिव्या की टाँगों का दर्द जाता रहा! अचानक उसको मिलने वाला मज़ा बंद हो गया था उसने आँखे खोली, राकेश अपनी पॅंट उतार रहा था राकेश ने अपनी पॅंट और अंडरवेर उतार कर ज़मीन पर फेंक दी, दिव्या की आँखें फटी की फटी रह गयी इसका इतना लंबा कैसे है! अब ये इसका क्या करेगा.. जल्द ही उसको इसका जवाब मिल गया राकेश अब ज़्यादा टाइम लगाने के मूड में नही था उसने कुर्सी के हत्थे पर अपना एक हाथ रखा और दूसरे से अपने 6 इंची को उसकी गीली हो चुकी चूत से सटा दिया दिव्या डर गयी! ये तो शादी के बाद वाला खेल है, उसकी दीदी ने बताया था; जब पहली बार उसके पति ने इसमें घुसाया था तो उसकी जान ही निकल गयी वह जितना हिल सकती थी, उतना हिल कर अपना विरोध जताने लगी. "बट इन वान्ट"
राकेश ने अपने लंड का दबाव उसकी चूत पर दबाया पर वो खुलने का नाम ही नही ले रही थी दिव्या की चीख उसके मुँह में ही दबकर रह जाती थी राकेश भी नादान नही था वो किचन से मक्खन उठा लाया अपनी उंगली से दिव्या की चूत में ही मुट्ठी भर मक्खन ठुस दिया, दिशा की चूत से सीटी जैसी आवाज़ आने लगी, ये सिग्नल था की अब की बार काम हो जाएगा राकेश ने अपने लंड पर भी मक्खन चुपडा और टारगेट को देखने लगा उसने दिव्या की चीखों की परवाह ना करते हुए अपने औज़ार का सारा दम उसकी चूत के मुहाने पर लगा दिया!....सॅटटॅक और सूपड़ा अंदर. उसने दिव्या की जांघों को अपने हाथों से दबा कर एक बार और हुंकार भारी, दिव्या बेहोश सी हो गयी उसने इतने गंदे लड़के की बात पर विस्वास करके अपनी मौत बुला ली दर्द को कम तो होना ही था सो हुआ, दिव्या को धीरे-धीरे मज़ा आना ही था सो आने लगा अब उसकी आँखों से पानी सूख गया और उनमें आनंद की चमक आ गयी वह अपने आपे में नही रही, कहना चाहती थी मुझे खोल दो और खुल कर खेलो ये खेल पर वो तो बोल ही नही सकती थी, वो तो खेल ही नही सकती थी.... वो तो बस एक खिलौना थी; राकेश के हाथों का.... राकेश उसको चोद्ता ही चला गया.... उसने ये भी परवाह ना की दिव्या की मछ्लि घायल है; खून फाँक रही है.... मक्खन में लिपटा हुआ.... अचानक राकेश का काम होने को आ गया और उसने ज़ोर की दहाड़ लगाई.... वह शिकार में कामयाब जो हो गया था, लंड निकाल कर उसकी गोद में गिर पड़ा.... दिव्या का तो पता ही नही कितनी बार उसकी योनि ने रस उगला..... खून में लिपटा हुआ.... खैर राकेश ने दिव्या को खोल दिया दिव्या खून देखकर एक बार तो डरी, फिर उसको दीदी की बात याद आ गयी....पहली बार तो आता ही है. जब दोनो नॉर्मल हो गये तो राकेश ने कहा," मज़ा आया मेरी जान"
दिव्या: हां पर तुमने चीटिंग की,.... मुझे आइन्दा कभी बांधना मत!
दिशा सर के लिए दूध लेकर गयी शमशेर बस नाहकार ही निकला था दिशा उसको बहुत कुछ कहना चाहती थी पर पता नही क्यूँ, उसके सामने जाते ही जैसे उसके होंट सील जाते थे; वह शमशेर के जिस्म पर नही बल्कि उसकी पर्सनॅलिटी पर मरती थी रात की बात को याद करके वह बार-बार खुश हो जाती थी, उसको पता था की सर के सपने में वो आई थी..... पर वो ये नही समझ पा रही थी की सर बार-बार उसका नाम लेकर माफी क्यूँ माँग रहे थे.... जो भी था सर का सपना तो डरावना ही था.... वरना वो पसीने में क्यूँ भीगे होते! उसने दूध का मग टेबल पर रख दिया और झाड़ू लेकर वहाँ सफाई करने लगी
शमशेर: रहने दो, मैं कर लूँगा! दिशा: आ..आप कैसे करेंगे सर!... वो बड़ी हिम्मत करके बोल पाई
शमशेर: करनी ही पड़ेगी... और कौन करेगा?
दिशा: मैं कर तो रही हूँ!
शमशेर: तुम कब तक करोगी? दिशा के दिल में आया कहदे सारी उमर; पर लबों ने साथ नही दिया," सर! आप शादी क्यूँ नही करते?
शमशेर: कोई मिलती ही नही..... शमशेर आगे कहने वाला था....'तुम्हारे जैसी' पर उन्न खास शब्दों को वो दूध के साथ पी गया!
दिशा: आपको कैसी लड़की चाहिए.... ? अब की बार उसने 'सर' नही लगाया. शमशेर को सीधे बोलते हुए उसको बड़ा आनंद आया तभी शमशेर का सेल बज गया; अंजलि का फोन था 'हेलो' उधर से आवाज़ आई,"शमशेर!" "हां!" "तुम मेरे पास अभी आ जाओ", बहुत खास बात करनी है" शमशेर ने दिशा की और देखा,"क्या खास बात है भला? "तुम आओ तो सही; आ रहे हो ना" "हां" कहकर उसने फोन काट दिया उसने जल्दी से कपड़े बदले और नीचे उतर गया नीचे जैसे वाणी उसका ही इंतज़ार कर रही थी," सर, आपने मुझे प्रोमिसे किया था की मुझे गाड़ी चलाना सिखाएँगे, आज सनडे है; चलें..." शमशेर: आज नही वाणी, फिर कभी...! वाणी: प्लीज़ सर, चलिए ना
शमशेर: वाणी, अभी मुझे काम है, शाम को देखते हैं! ओक; बाइ वाणी मायूस होकर सर को जाते देखती रही......
अंजली उसका ही इंतज़ार कर रही थी शमशेर के अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया उसने अजीब सा सवाल किया," शमशेर, तुम्हे में कैसी लगती हूँ?" शमशेर ने उसको खींच कर अपने से सटा लिया और उसके होंटो को चूम कर बोला,"सेक्सी!"
अंजली: मैं मज़ाक नही कर रही; आइ'एम क्वाइट सीरीयस बोलो ना! शमशेर रात से ही प्यासा था, उसने अंजलि को बाहों में उठा लिया और बेड पर ले जाकर पटक दिया अंजलि कातिल निगाहों से उसको देखने लगी शमशेर भी कुछ सोचकर ही आया था," मेरा तुम्हारे साथ नहाने की बड़ी इच्छा है चलें! वो तो शमशेर की दीवानी थी; कैसे मना करती," एक शर्त है?" "बोलो!" "तुम मुझे नहलाओगे!" उसकी शर्त में शमशेर का भी भला था "चलो! यहीं से शुरुआत कर देता हूँ" कहकर शमशेर अंजलि के शरीर को एक-एक कपड़ा उतार कर अनावृत करने लगा अंजलि गरम हो गयी थी नंगी होते ही उसने शमशेर को बेड पर नीचे गिरा लिया और तुरंत ही उसको भी नंगा कर दिया वो उसके उपर जैसे गिर पड़ी और उसके होंटो पर अपनी मोहर लगाने लगी शमशेर को रह=रह कर दिशा याद आ रही थी जैसे अगर उसको पता चलेगा तो वह बहुत नाराज़ होगी "क्या बात है? मूड नही है क्या," अंजलि ने उसके होंटो को आज़ाद करते हुए कहा शमशेर संभाल गया और पलट कर उसके उपर आ गया, उसने उसकी छाति को दबा दिया....क्या दिशा को भी वो ऐसे छू पाएगा अंजलि की सिसकी नकल गयी उसने शमशेर का सिर अपनी चुचियों पर दबा दिया शमशेर उस पल बाकी सब कुछ भूल गया शमशेर उस पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा, और जिस्म को नोचने लगा, वो सच में ही बहुत सेक्सी थी शमशेर उठा और अपना लंड उसको चखने के लिए पेश किया अंजलि भी इस कुलफी को खाने की शौकीन हो चुकी थी उसने झट से मुँह खोलकर अपनी चूत के यार को अपने गरम होंटो में क़ैद कर लिया कमरे का टेम्परेचर बढ़ता जा रहा था रह-रह कर अंजलि के मुँह से जब उसका लंड बाहर लिकलता तो 'पंप' की आवाज़ होती कुछ ही दिनों में ही वो ओरल सेक्स में परफेक्ट हो चुकी थी अंजलि ने चूस-चूस कर शमशेर के लंड को एकदम चिकना कर दिया था; अपनी कसी चूत के लिए तैयार! शमशेर ने अंजलि को पलट दिया और उसके 40" की गांड़ को मसालने लगा। उसने अंजलि को बीच से उपर किया और एक तकिये को वहाँ सेट कर दिया अंजलि की गांड उपर उठ गयी.....उसकी दरार और खुल सी गयी


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A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.

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Re: हिंदी सेक्स कहानियाँ - गर्ल्स स्कूल (girls school sex st

Unread post by Fuck_Me » 15 Aug 2015 09:12

अंजलि को जल्द ही समझ आ गया की आज शमशेर का इरादा ख़तरनाक है; वो गांड़ के टाइट छेद पर अपना थूक लगा रहा था.... "प्लीज़ यहाँ नही!" अंजलि को डर लग रहा था... फिर कभी कर लेना...!" अभी नही तो कभी नही वाले अंदाज में शमशेर ने अपनी उंगली उसकी गांड़ में फँसा दी, ऐसा तो वो पहले भी उसको चोद्ते हुए कर चुका था! पर आज तो उसका इरादा असली औजार वहाँ उसे करने का लग रहा था अंजलि को उंगली अंदर बाहर लेने में परेशानी हो रही थी उसने अपनी गांड़ को और चौड़ा दिया ताकि कुछ राहत मिल सके कुछ देर ऐसे ही करने के बाद शमशेर ने ड्रेसिंग टेबल के ड्रॉयर से कोल्ड क्रीम निकाल ली," इससे आसान हो जाएगा" जैसे ही कोल्ड क्रीम लगी हुई उसकी उंगली अंजलि की गांड़ की दरारों से गुज़री, अंजलि को चिकनाई और थंडक का अहसास हुआ, ये अपेक्षाकृत अधिक सुखदायी था करीब 2 मिनिट तक शमशेर उंगली से ही उसके 'दूसरे छेद' में ड्रिलिंग करता रहा, अब अंजलि को मज़ा आने लगा था उसने अपनी गांड़ को थोड़ा और उँचा उठा लिया और रास्ते और आसान होते गये; फिर थोड़ा और....फिर थोडा और..... थोड़ी देर बाद वह कुतिया बन गयी.....! इश्स पोज़िशन में उसकी गांड़ की आँख सीधे छत को देख रही थी, उंगली निकालने पर भी वह थोड़ी देर खुली रहती थी शमशेर ने ड्रिलर का साइज़ बढ़ा दिया; अब अंगूठा अपने काम पर लगा था शमशेर झुका और अंजलि की चूत का दाना अपने होंटो में दबा लिया, वह तो 'हाइयी मर गयी' कह बैठी मरी तो वो नही थी लेकिन शमशेर को पता था वो मरने ही वाली है शमशेर घुटने मोड़ कर उसकी गांड़ पर झुक गया, टारगेट सेट किया और 'फिर!'..... अंजलि चिहुनक पड़ी, पहले ही वार में निशाना सटीक बैठा था..... लंड आधा इधर.... आधा उधर.... अंजलि मुँह के बाल गिर पड़ी, लंड अब भी फँसा हुआ था.... करीब 3 इंच "बुसस्स्सस्स.... प्लीज़.... रुक... जाओ! और नही" अंजलि का ये कहना यूँही नही था... उसकी गांड़ फैल कर 4 इंच खुल चुकी थी...... 4 इंच! शमशेर ने संयम से काम लिया; उसकी छातिया दबाने लगा..... कमर पर किस करने लगा.... वग़ैरा वग़ैरा! अंजलि कुछ शांत हुई, पर वो बार बार कह रही थी," हिलना मत....हिलना मत!" शमशेर ने उसको धीरे से उपर उठाया.... धीरे.... धीरे और उसको वापस चार पैरों वाली बना दिया......कुतिया! शमशेर ने अपना लंड थोड़ा सा बाहर खींचा.... उसकी गांड़ के अन्द्रुनि हिस्से को थोड़ी राहत बक्शी और फिर जुलम ढा दिया... पूरा जुलम उसकी गांड़ में ही ढा दिया अंजलि को काटो तो खून नही.... बदहवास शी होकर कुछ-कुछ बोलने लगी, शायद बताना ज़रूरी नही! शमशेर ने काम चालू कर दिया.... कमरे का वातावरण अजीबो-गरीब हो गया था अंजलि कभी कुछ बोलती.... कभी कुछ कभी शमशेर को कुत्ता कहती.... कभी कमीना कहती.... और फिर उसी को कहती.....आइ लव यू जान.... जैसे मज़ा देने वाला कोई और हो और सज़ा देने वाला कोई और. आख़िरकार अंजलि ने राहत की साँस ली.... उसका दर्द लगभग बंद हो गया.... अब तो लंड उसकी गांड़ में सटाक से जा रहा था और फटाक से आ रहा था.... फिर तो दोनों जैसे दूध में नहा रहे हो.... सारा वातावरण असभ्या हो गया था.... लगता ही नही था वो पढ़े लिखे हैं.... आज तो उन्होने मज़े लेने की हद तक मज़ा लिया..... मज़े देने की हद तक मज़ा दिया.... और आख़िर आते-आते दोनों टूट चुके थे.......
अंजलि ने नंगी ही शमशेर के साथ स्नान किया शमशेर ने अंजलि को खूब रगड़ा और अंजलि ने शमशेर को... फिर दोनों अपना शरीर ढक कर बाहर सोफे पर बैठ गये "डू यू लव मी जान?" अंजलि ने बैठते ही सवाल दागा " तुम्हे कोई शक है?" "नही तो!" अंजलि ने उसकी गोद में सिर रख लिया," क्या तुम मुझसे शादी करोगे?" "नही!" शमशेर का जवाब बहुत कड़वा था "क्यूँ?" अंजलि उठ कर बैठ गयी!
शमशेर: क्या मैने कभी ऐसा कोई वादा किया है?
अंजलि: ना!
शमशेर: तो ऐसा सवाल क्यूँ किया? अंजलि मायूस हो गयी " मैने तो इसीलिए पूचछा था..... चाचा का फोने आया था; मेरे लिए एक रिश्ता आया है" "कंग्रॅजुलेशन्स!" क्या करता है" शमशेर को जैसे कोई फ़र्क नही पड़ा
अंजलि: कुछ खास नही, उमर करीब 40 साल है एक बच्ची है पहली बीवी से! और मुझे इतना ही पता है की वो पैसे वाला है... बस! शमशेर ने उसको बाहों में भर कर माथे पर चूम लिया..... उसे लगा शायद ये आखरी बार है.... राकेश के जाने के बाद, दिव्या बहुत बेचैन हो गयी... वो वोडेफोन की एड आती है ना टी.वी. पर; अब सबको बताओ सिर्फ़ 60 पैसे में; की मोटी की तरह ही उसका हाल था, सबको तो वो बता नही सकती, पर वाणी; वो तो उसकी बेस्ट फ्रेंड थी दिव्या ने वाणी को ये खेल सिखाने की सोची और बिना देर किए उसके घर पहुँच गयी "वाणी", घर जाकर उसने आवाज़ लगाई "हां दिव्या, आ जाओ! मैं यही हूँ!" दिव्या की आवाज़ में हमेशा रहने वाली मिठास थी दिव्या: अब चलें हमारे घर! वाणी: सॉरी दिव्या! सर के आने के बाद मुझे गाड़ी सीखने जाना है! मैं नही चल सकती
दिव्या: अच्छा एक बार बाहर आना! वाणी उसके साथ बाहर आ गयी," बोल!"
दिव्या: तू चल ना प्लीज़. मुझे तुझे एक खेल सिखाना है वाणी उत्सुक हो गयी खेलने में उसको बहुत मज़ा आता था!," कैसा खेल!" दिव्या: नही, यहाँ नही बता सकती, अकेले में ही बता सकती हूँ!
वाणी: तो चल उपर! उपर बता देना!
दिव्या: उपर तो सर रहते हैं, वो आ गये तो?
वाणी: नही, वो तो 5 बजे की कहकर गये हैं, अभी तो 2 ही बजे हैं! चल जल्दी चल! दोनों भागती हुई उपर चली गयी उपर जाकर उन्होने दरवाजा बंद कर लिया, एक खिड़की खुली थी
दिव्या: ये भी बंद कर दे!
वाणी: अरे इसकी कोई ज़रूरत नही है, कोई आएगा तो सीढ़ियों से ही दिख जाएगा; फिर ऐसा भी क्या खेल है जो तू इतना डर रही है
दिव्या: देख बुरा मत मानना, ये छुप कर खेलने का ही खेल है, पर मज़ा बहुत आता है

वाणी: ऐसा कौनसा खेल है?
दिव्या: शादी के बाद वाला खेल! वाणी को पता ही नही था की शादी के बाद कोई खेल भी खेला जाता है उसको किसी ने बताया ही नही आज तक! वो उत्सुक हो उठी, ऐसा खेल खेलने के लिए," चल जल्दी सीखा ना"
दिव्या: देख वैसे तो ये खेल लड़के के साथ खेला जाता है पर..... वाणी ने बीच में ही टोक दिया," तो सर को आने दो!" दिव्या उसकी बात पर हँसी," धात! ऐसा फिर मत कहना.... पर में तुझ खेल सीखा सकती हूँ...."
वाणी: तो सीखा ना, इतनी बातें क्यूँ कर रही है........ वाणी ने आँखें बंद कर ली; दिव्या ने राकेश की तरह से ही वाणी के पीछे जाकर उसकी मदभरी छातियों को हल्के से दबा दिया वाणी उछल पड़ी," ये क्या कर रही है तू" हां, मज़ा तो उसको आया था; ये मज़ा तो वो ले चुकी थी सर के हाथो से!
दिव्या: तू बस अब टोक मत, यही तो खेल है! वाणी हँसने लगी, उसके बदन में गुदगुदी सी होने लगी,"ठीक है" और उसने फिर आँखें बंद कर ली दिव्या ने इस बार उसके टॉप में हाथ डाल दिया और उसको खेल का पहला भाग सिखाने लगी. वाणी मारे गुदगुदी के मरी जा रही थी. वह रह रह कर उच्छल पड़ती! उसको बहुत मज़ा आ रहा था; उसका चेहरा धीरे धीरे लाल होने लगा! अब दिव्या उसको छ्चोड़ कर बोली," अब तू इधर मुँह कर ले; तू मुझसे खेल और में तुझसे खेलूँगी." अब लेज़्बियेनिज़्म अपने चरम पर था दोनों एक दूसरे की चुचियों को मसल रही थी एक दूसरे के लबों से लब टकरा रही थी; दोनों ही मस्त हो चुकी थी, बीच-बीच में दोनों सीढ़हियों की और भी देख लेती वाणी: तू तो कह रही थी की ये खेल लड़के के साथ खेला जाता है; इसमें लड़के की क्या ज़रूरत है.... वो साथ साथ 'खेल' भी रही थी
दिव्या: पहला भाग तो चल जाता है, पर दूसरा भाग लड़के के बिना नही हो सकता
वाणी: वो कैसे?
दिव्या: चल बताती हूँ; बेड पर लेट जा...... और वाणी लेट गयी..! दिव्या ने वाणी का स्कर्ट उपर उठा दिया और उसकी कच्छि को नीचे कर दिया.... वाणी को अजीब सा लग रहा था पर वो ये खेल पूरा खेलना चाहती थी.... दिव्या वाणी की चूत देखकर जल सी गयी; उसकी क्यूँ नही है ऐसी......वैसी तो शायद दुनिया में किसी की नही थी दिव्या ने वाणी की चूत पर अपने होंट सटा दिए... वाणी भभक उठी.... उसको कल रात की याद ताज़ा हो गयी जब वो....... सर की 'टाँग' पर बैठी थी... वाणी की आँखों में मस्ती भरती जा रही थी.... उसने मस्त अंदाज में पूछा....," तूने कहाँ सीखा री ये खेल!" "सरपंच के लड़के से!" "राकेश से" वाणी बहकति जा रही थी" "हां वो आज 4 बजे फिर आएगा.... तुझे भी खेलना है क्या पूरा खेल? चलना मेरे साथ.....3:30 बजे चलेंगे.... घर पर कोई नही है... रात को आएँगे! हां मुझे भी खेलना है पूरा खेल मैं भी चालूंगी तेरे साथ.......
अपनी मस्ती में सिर से पैर तक डूबी नवयौवनाओं को शमशेर के सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ भी सुनाई नही दी शमशेर ने खिड़की से उनके प्रेमलाप को सुना; वो वापस जाने ही वाला था की जाने क्या सोचकर उसने दरवाजा खोल दिया ..........? शमशेर को देखते ही दोनों का चेहरा फक्क रह गया वाणी तो इतनी डर गयी की अपने को ढ़हकना ही भूल गयी........ यूँ ही पड़ी रही! शमशेर उन दोनों को बिना किसी भाव के देख रहा था वाणी को अहसास हुआ की जैसे उनकी दुनिया ही ख़तम हो गयी.... करीब एक मिनिट बीत जाने पर दिव्या को वाणी के नंगेपन का अहसास हुआ और उसने वाणी की स्कर्ट नीचे ख्हींच दी वाणी को पता चल चुका था वह जो भी कर रही थी, बहुत ग़लत था दिव्या तो सिर्फ़ पकड़े जाने के डर से काँप रही थी, वो भी उनके सर के द्वारा!.... पर वाणी का तो जैसे उस एक पल में ही सब ख़तम हो गया..... उसके सर..... उसके अपने सर ने उनको ग़लत बात करते देख लिया.. वो अब भी एकटक सर को ऐसे ही देखे जा रही थी.... जैसे पत्थर बन गयी हो! शमशेर ने दिव्या की और देखा और कहा जाओ!.... पर वह हिली तक नही! शमशेर ने फिर कहा," दिव्या, अपने घर जाओ" उसने अपना सिर नीचे झुकाया और जल्दी-जल्दी वहाँ से निकल गयी. अब शमशेर ने वाणी की और देखा..... ऐसे तो कभी सर देखते ही ना थे उसको..... वो तो उनकी अपनी थी..... उनकी अपनी वाणी! "वाणी" नीचे जाओ! वाणी उठी और अपने भगवान से लिपट गयी...... उसकी आँखों में माफी माँगने का भाव नही था.... ना ही उसको पकड़े जाने की वजह से मिल सकने वाली सज़ा का डर..... उसको तो बस शमशेर के दिल से दूर हो जाने का डर था..... उसने 'अपने' सर को कसकर पकड़ लिया! शमशेर ने वाणी की बाहों के घेरे से खुद को आज़ाद कर कहा " वाणी, नीचे जाओ!" वाणी इस तरह रो रही थी जैसे उसका बच्चा मर गया हो... वा पीछे देखती देखती.... रोती बिलखती नीचे चली गयी! नीचे जाते ही दिशा ने उसको इस तरह रोते देखा तो भाग कर बाहर आई,"क्या हुआ छुटकी!" वाणी कुछ ना बोली.... बस रोती रही...... एकटक उपर देखती रही दिशा ने उसको कसकर अपने सीने से भीच लिया और उपर देखने लगी....... दिशा वाणी को अंदर ले गयी...." बता ना छुटकी क्या हुआ?" वाणी ने और ज़ोर से सुबकना शुरू कर दिया दिशा ने उसके गालों पर बह रही मोतियों की धारा को अपनी चुननी से सॉफ किया, पर वो बरसात रुकने का नाम ही नही ले रही थी....," बता ना वाणी; ऐसा क्या हुआ जो तू मुझे भी नही बता सकती मैं तो तेरी दीदी हूँ ना!" दिशा के मंन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे.... जिस तरह से वाणी रो रही थी, उसके शक़ को और हवा मिल रही थी.... छुटकी सर से कुछ ज़्यादा ही चिपक के रहती थी कहीं सर ने उसकी मासूमियत का फ़ायदा तो नही उठा लिया.... ," छुटकी, मुझे सिर्फ़ ये बता दे की कोई 'ग़लत बात है क्या, जो तू मुझे बताने से हिचक रही है!" वाणी ने सुबक्ते हुए ही अपना सिर हां में हिला दिया
दिशा का पारा गरम हो गया, जिसस आदमी को वो 'अपने के रूप में.......," क्या सर ने...." वाणी ने दिशा की बात को पूरा ही नही होने दिया.... सर का नाम सुनते ही उसने दिशा के मुँह पर अपने कोमल हाथ रख दिए और चीत्कार कर उठी. वह अपनी दीदी से बुरी तरह लिपट गयी अब दिशा....'सब कुछ समझ चुकी थी!.... उसके चेहरे पर नफ़रत और कड़वाहट तैरने लगी.... अब उसे 'सर; सर नही बल्कि एक सुंदर रूप धारण किए हुए कोई बाहरूपिया शैतान लग रहा था...... वह अपने दिल में हज़ारों.... लाखों.... गालियाँ और बददुआयं भर कर उपर चली गयी.... वाणी का भी उसके साथ ही जाने का मॅन था.... पर अब उसके सर 'अपने नही रहे!' दिशा ने उपर जाकर धक्के के साथ दरवाजा खोल दिया.... शमशेर आराम से तकिये पर सिर टिकाए कुछ सोच रहा था.... हमेशा की तरह एक दम शांत... एक दम निसचिंत! "कामीने!" दिशा ने सिर को उसकी औकात बताई शमशेर ने उसकी और देखा, पर कोई प्रतिक्रिया नही दी, वह ऐसे ही शांत बैठा रहा. उसकी यही अदा तो सबको उसका दीवाना बना देती थी... पर आज दिशा उसकी इश्स 'अदा' पर बिलख पड़ी," हराम जादे, मैं तुझे......" दिशा उसके पास गयी और उससे कॉलर से पकड़ लिया..... उसके मुँह से और कुछ ना निकला... "क्या हुआ?" शमशेर ने शांत लहजे में ही उत्तर दिया.... उसका कंट्रोल जबरदस्त था... उसके चेहरे पर दिशा को पछ्तावे या शर्मिंदगी का कोई चिन्ह दिखाई नही दिया.... "निकल जा यहाँ से! मेरे मामा मामी के आने से पहले... नही तो तुझे.... तुझे जान से मार दूँगी..." दिशा ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर ज़मीन पर थूका और पैर पटकते हुए नीचे चली गयी..... वह चाँदी जैसी दिख रही थी. शमशेर ने अपना लॅपटॉप खोला और काम में लग गया.... नीचे जाकर दिशा ने अब तक रो रही वाणी को अपने दहक रहे सिने से लगाया," बस कर छुटकी, उस हराम जादे को मैने.....! वाणी उसको अवाक देखती रह गयी. उसके आँसू जैसे एक्दम सूख गये.... वा सोच रही थी दीदी किस 'हराम जादे' को गाली दे रही है,"क्या हुआ दीदी?" दिशा की आँखों में जैसे खून था," मैने उसको घर छोड़कर भाग जाने को कह दिया है!" "मगर...."वाणी हैरान थी, ये क्या कह रही हैं दीदी 'अपने सर ' के बारे में," उन्होने क्या कर दिया दीदी?" अब की बार निशब्द होने की बारी दिशा की थी...." वो तुझे.... सर ने तेरे साथ कुछ नही किया.....?" "नही दीदी.... उन्होने तो मेरे को धमकाया भी नही....." सारा गेम ही उलट गया.... अब दिशा सुबक रही थी और वाणी उससे पूछ रही थी,"क्या हुआ दीदी? तुमने सर को क्या कह दिया?" दिशा के पास वाणी को बताने लायक कुछ नही था ये उसने क्या कर दिया! जिसकी तस्वीर वो अपने दिल के आईने में देख रही थी... उसी के दिल में उसने हज़ारों काँटे चुबा दिये; अपमान के..... ज़िल्लत के.... और नफ़रत के! "मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ होता है?", दिशा के मन में विचारों का तूफान सा उसको अंदर तक झकझोर रहा था...! पहले उसने स्कूल में सर की बेइज़्ज़ती की.... और जब....अब मुश्किल से उसको लगने लगा था कि सर उस बात को भूल चुके हैं तो....," ये मैने क्या कर दिया वाणी!" "दीदी, बताओ ना क्या हो गया!?" वाणी अब उसके आँसू पोछ रही थी....! दिशा की आँखें लाल हो चुकी थी.... लाल तो पहले से ही थी मारे गुस्से के! अब तो बस उनका भाव बदल गया था... अब उन्न मोटी-मोटी आँखों में पाश्चाताप था..... ग्लानि थी.... और शमशेर के दिल से लग कर आँसू लुटाने की प्यास थी.... एक तड़प थी उसकी छाति से चिपक कर देखने की और एक भूख़ भी थी...... वो औरत की तरह सोच रही थी; लड़की की तरह नही.... दिशा ने वाणी का हाथ पकड़ा और उसको उपर ले गयी.... खिड़की से उन्होने देखा शमशेर आँखें बंद किए दीवार से सटा बैठा था.....बिल्कुल शांत......बिल्कुल निशचिंत..... उसके चेहरे पर झलक रहे तेज़ का सामना करने की दोनों में से किसी में हिम्मत नही थी..... दोनों ने एक दूसरे को देखा..... और उल्टे पाँव लौट गयी..... नीचे.... अब दोनों रो रही थी.... एक दूसरे से चिपक कर.... अब कोई किसी से वजह नही पूछ रहा था... हां आँसू ज़रूर पोंछ रही थी.... एक दूसरे के!.... सुबक्ते हुए ही वाणी ने दिशा से कहा," दीदी! अब सर हमसे कभी बात नही करेंगे ना!" "तू चुप कर छुटकी; आजा, सोजा!", दिशा ने वाणी को अपने साथ खाट पर लिटा लिया, वाणी ने अपनी टाँग दिशा के पेट पर रख दी और आँखें बंद कर ली ना जाने कब वो सर के ख्यालों में खोई खोई सो गयी.... दिशा सीधी लेटी हुई शुन्य में घूरे जा रही थी वो दिशा से पूछना चाहती थी की असल में हुआ क्या था! पर वो वाणी को अभी और दुखी नही करना चाहती थी.... थोडी देर बाद ही उसके मामा मामी आ गये," आ! दिशा बेटी आज तो सारा बदन टूट रहा है! इतना काम था खेत में....ला जल्दी से खाना लगा दे खाकर लेट जायें, ... ये वाणी अभी से कैसे सो गयी...." "मामा, इसकी तबीयत थोडी खराब है... मैने गोली देकर सुला दिया है...." "आज उपर नही गयी ये!, उतर गया ए.सी. का भूत" " नही....वो सर ने ही बोल दिया की बुखार में ए.सी. ठीक नही रहेगा"... आज इसको नीचे ही सुला दो!" "और तुम?" मामा ने उसकी मॅन को परखने की कोशिश की!" जैसे उसको पता हो; इनका कोई चक्कर है... "म्*म्म...मैं भी नीचे ही सोऊगी... और क्या में अकेली जाउन्गि"..... मॅन में वो सोच रही थी.... काश में अकेली जा सकती! "हूंम्म... तुम समझदार हो बेटी"..मामा ने कहा "खाना खा लिया इसने!" मामी ने दिशा से पूछा,

दिशा: हां मामी, और मैने भी खा लिया.... दिशा झूठ बोल रही थी... उसको पता था उसकी तरह वो भी खाना नही खा पाएगी... "और सर तो 8:00 बजे खाते हैं"... तू उन्हे खाना दे आना... हम तो अब सो रहे हैं" मामा ने उठते हुए कहा... दिशा सोचने लगी "मैं उपर कैसे जाउ?"....... करीब 8:00 बजे; दिशा सोच-सोच कर परेशान थी की अब उसको 'सर' के सामने जाना पड़ेगा... उसने टूटे हुए पैरों से सीढ़िया चढ़ि... शमशेर ने उसको खाना लेकर आते खिड़की से देख लिया था शायद! जैसे ही वा दरवाजे के सामने जाकर रुकी; अंदर से सर की आवाज़ आई," आ जाओ दिशा!" दिशा की पहली समस्या तो हल हुई....वो सोच रही थी वो अंदर कैसे जाएगी? वो अंदर चली गयी... सिर झुकाए! उसने टेबल पर खाना रखा और जाने लगी...."दिशा!" वह कठपुतली की तरह रुकी और पलट गयी....उसकी नज़रे झुकी हुई थी...शर्म के मारे!
शमशेर: उपर देखो! मेरी तरफ.... दिशा ने जैसे ही उपर देखा.... उसकी आँखें दबदबा गयी... वो छलक उठी थी.... एक आँसू उसके गालों से होता हुआ उसके होंटो पर जाकर टिक गया; जैसे कहना चाहता हो,"मैं प्यार का आँसू हूँ, मुझे चखकर देखो......वो आँसू शमशेर के लिए थे.... शमशेर के चखने के लिए... दिशा ने शमशेर को देखा, वो अब भी मुस्कुरा रहा था...," इधर आओ, मेरे पास!" दिशा उसके करीब चली गयी... आज वो जो भी कहता वो कर देती....जो भी माँगता....वो दे देती! शमशेर ने उसकी कलाई पकड़ ली.....और तब शमशेर को कुछ कहने की ज़रूरत नही पड़ी.......वो घुटने मोड़ कर .... उसकी गोद में जा गिरी.... "सॉरी!" दिशा ने आगे 'सर' नही कहा. उसकी आँखों में अब भी नमी थी... वो निश्चय कर चुकी थी.... अब शमशेर के प्रति अपनी भावना नही छिपयेगि....चाहे उसका यार उसको जान से मार डाले... उसने शमशेर की आँखो में आँखें डालकर दोहराया....."सॉरी!"... उसके लब थिरक रहे थे....प्यार में... शमशेर को भी पता नही क्यूँ पहली बार किसी के उससे प्यार के बारे में इतनी देर से पता चला... शायद पहले प्यार'...'प्यार' नही सिर्फ़ वासना थी... " लगता है तुम्हे मुझसे प्यार हो गया है?" "यस, आइ लव यू!" दिशा ने एलान कर दिया.... इस बार उसके होंट नही कांपे, सच्चाई पर जो अडिग थे! शमशेर ने अपने होंटो से उसके होंटो पर ठहरे 'उस्स' आँसू को चखा.... वो सच में ही प्यार का आँसू था दिशा ने अपने आपको शमशेर के अंदर समाहित कर लिया.... उसको अब कोई डर नही था... कुछ देर वो निशब्द एक दूसरे में समाए रहे....फिर शमशेर ने कहा," कल रात को यहीं आ जाना.... सोने के लिए....मेरे साथ" दिशा को उससे अलग होते हुए अजीब सा लग रहा था... एक दिन का इंतज़ार मानो सालों का इंतज़ार था... पर उसका दिल उछल रहा था... सीढ़ियों से उतरते हुए... उसकी छातियो के साथ..... अगले दिन जब वाणी उठी..... उसको सच में ही बुखार था... वो स्कूल नही गयी... दिशा भी नही! सोमवार को शमशेर लॅबोवरेटरी में बैठा था थिसेस से पहले उसके 2 पीरियड 'प्रॅक्टिकल सेशन' थे, 10थ क्लास के लिए शमशेर ने उनकी क्लास नही ली... क्यूंकी इस टाइम पर उसने दिव्या को अपने पास बुलाया था... लॅब में उसने 10थ वाले बच्चों को उनकी क्लास में ही काम दे दिया था; याद करने के लिए. 4थ पीरियड की बेल लगने के 5 मिनिट बाद दिव्या उसके पास पहुँच गयी शमशेर वहीं बैठा था, अलमारियों के पीछे, चेअर् पर दिव्या की जान सूख्ती जा रही थी," ससररर...आपने मुझे 4थ पीरियड में बुलाया था!" दिव्या सहमी हुई थी! "हां बुलाया था!" शमशेर सीरीयस होने की एकदम सही आक्टिंग कर रहा था.. जबकि उसके मॅन में दिव्या को प्यार का वही खेल; अच्छे तरीके से सीखने की इच्च्छा थी.. जो वो कल वाणी को सीखा रही थी "ज्ज्जिई; क्या काम है ससररर!"
शमशेर: वो कल क्या चल रहा था... मेरे कमरे में
दिव्या: क्क्याअ. ..सर!
शमशेर: वाणी के साथ!
दिव्या: आइ आम सॉरी सर; मैं आइन्दा कभी ऐसा नही करूँगी..
शमशेर: क्यूँ दिव्या कुछ ना बोली.. शमशेर ने कड़क आवाज़ में कहा," तुम्हे सुनाई नही दिया!"
दिव्या: ज़ीज़ी..क्योंकि...क्योंकि ज़ी वो.....ग़लत काम है वो डर के मारे काँप रही थी
शमशेर: क्या ग़लत काम है! दिव्या फिर कुछ ना बोली
शमशेर: देखो अगर अब की बार तुमने मेरे एक भी सवाल का जवाब खुल कर नही दिया तो मैं तुम्हारे मा बाप को बुल्वाउन्गा.. और तुम्हे स्कूल से निकलवा दूँगा; समझी!
दिव्या: जी सर! उसने तुरंत जवाब दिया
शमशेर: तो बोलो!
दिव्या: क्या सर?
शमशेर: कौनसा काम ग़लत है?
दिव्या: सर वो जो हम कर रहे थे! उसके जवाब अब जल्दी मिल जाते थे
शमशेर: क्या कर रहे थे तुम?
दिव्या: सर... वो खेल रहे थे...
शमशेर: अच्छा, खेल रहे थे! दिव्या ने नज़रें नीची कर रखी थी
शमशेर: किसने सिखाया तुम्हे ये खेल?
दिव्या: सर... वो सरिता के भाईई ने; वो जो सरपंच का बेटा है...
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A woman is like a tea bag - you can't tell how strong she is until you put her in hot water.

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