पोलीस की गाड़ी ट्रॅफिक मे रास्ता निकालते हुए साइरन बजाते हुए तेज़ी से दौड़ रही थी और उस गाड़ी के पीछे और चार पाँच गाड़ियों का झुंड जा रहा था. साइरन के आवाज़ की वजह से ट्रॅफिक अपने आप हटकर उन गाड़ियों को रास्ता दे रही थी. उस आवाज़ के वजह से और इतना बड़ा पोलीस की गाड़ियों का झुंड देख कर आसपास के वातावरण मे एक अलग ही उत्सुकता और डर फैल गया था. ट्रॅफिक से रास्ता निकालते हुए और रास्ते से तेडे मेडे मोड़ लेते हुए आख़िर वो गाड़ियाँ अंकित के घर के आस पास आकर रुक गयी. गाड़ियों से पोलीस की एक बड़ी टीम तेज़ी से लेकिन एक अनुशाशन के साथ बाहर निकल गयी.
"चलो जल्दी... पूरे एरिया को घेर लो...क्विक... क़ातिल किसी भी हाल मे अपने हाथ से निकलना नही चाहिए..." राज ने अपने टीम को आदेश दिया.
पोलीस का वह समूह एक एक करते हुए बराबर अनुशाशन मे पूरी एरिया मे फैल गया और उन्होने पूरे एरिया को चारो तरफ से घेर लिया. इतने बड़े पोलीस के समुहके जूतों की आवाज़ से पूरे एरिया मे वातावरण तनाव पूर्ण हुआ था. अडोस पड़ोस के लोग कोई खिड़की से तो कोई पर्दे के पीछे से झाँककर बाहर क्या चल रहा है यह डर से देख रहे थे.
दो तीन पोलीस वालो को लेकर राज एक घर के पास गया. जिस आदमीने पहले अंकित की कहानी बयान की थी वह सकते की स्थिति मे वहीं खड़ा था.
"ज़रा बताइए तो कौन कौन से घर से अंकित के घर की सारी हरकते दिखती है और सुनाई देती है..." राज ने उस आदमीसे पूछा.
उस आदमीने राज को दो-तीन मकान की तरफ उंगली से इशारा करते हुए कहा,
"वे दो... और मेरा एक तीसरा..."
"हमे यह एरिया पूरी तरह से सील करना पड़ेगा..." राज अपने टीम को उन मकान की तरफ ले जाते हुए बोला.
राज ने उन तीन घरों के आलवा और दो-चार मकान अपने कार्यक्षेत्र मे लिए. एक के बाद एक ऐसे वह हर घर की तरफ अपने दो-तीन लागों को ले जाता और घर अगर बंद हो तो उसे नॉक करता था. कुछ लोग जब दरवाज़ा खोलकर बाहर आते थे तो उनके चेहरे पर आस्चर्य और डर के भाव दिखाई देते थे. बीच - बीच मे राज अपने साथियो को वाइयरलेस पर दक्ष रहने के लिए कहता था. ऐसे एक एक घर की तलाशी लेते हुए वे आख़िर एक मकान के पास पहुँच गये. दरवाज़ा नॉक किया. काफ़ी देर तक रुकने के बाद अंदर से कोई प्रतिक्रिया दिख नही रही थी. राज के साथ मे जो थे वे सब लोग अलर्ट हो गये. अपनी अपनी गन लेकर तैय्यार हो गये. फिर से उसने दरवाज़ा नॉक किया, इसबार ज़रा ज़ोर से.. फिर भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही आई...
लेकिन अब राज का सब्र जवाब दे गया,
"दरवाज़ा तोडो..." उसने आदेश दिया.
पवन जो ऐसे कारनामों मे तरबेज़ था, हमेश दरवाज़ा तोड़ने मे आगे रहता था, उसने और और दो चार लोगों ने मिलकर धक्के दे-देकर दरवाज़ा तोड़ दिया. दरवाज़ा टूटने के बाद खबरदारी के तौर पर पहले सब लोग पीछे हट गये अब फिर धीरे धीरे सतर्कता के साथ अंदर जाने लगे.
लगभग सारा घर ढूँढ लिया. लेकिन घर मे कोई होने के कोई आसार नही दिख रहे थे. किचन, हॉल खाली पड़े थे. आख़िर उन्होने बेडरूम की तरह उनका रुख़ किया. बेडरूम का दरवाज़ा पूरी तरह खुला पड़ा था. उन्होने अंदर झाँककर देखा. अंदर कोई नही था, सिर्फ़ एक टेबल एक कोने मे पड़ा हुआ था.
जैसे ही राज और उसके साथ एक दो पोलीस बेडरूम मे गये वे आश्चर्य के साथ आँखें फाड़ कर देखते ही रह गये. उनका मुँह खुला का खुला ही रह गया. बेडरूम मे एक कोने मे रखे उस टेबल पर माँस के टुकड़े और खून फैला हुआ था. सब लोग एक दूसरे की तरफ आश्चर्य और डर से देखने लगे. सब के दिमाग़ मे एक साथ ना जाने कितने सवाल उमड़ पड़े थे. लेकिन किसी की एकदुसरे को भी पूछने की हिम्मत नही बन पा रही थी. राज ने बेडरूम की खिड़की की तरफ देखा. खिड़की पूरी तरह खुली थी..
"यहाँ कौन रहता है...? मालूम करो..."राज ने आदेश दिया.
उनमे से एक पोलीस बाहर गया और थोड़ी देर बाद जानकारी इकट्ठा कर वापस आ गया.
"सर मैने इस मकान मालिक से अभी अभी संपर्क किया था.. वह थोड़ी ही देर मे यहाँ पहुचेगा.. लेकिन लोगों की जानकारी के हिसाब से यहा कोई रमेश नाम का आदमी किराए से रहता है..."वह पोलीस बोला.
"वह आए बराबर उसे पहले मुझ से मिलने के लिए कह दो... फ़ौरेंसिक लोगों को बुलाओ.. और इस अपार्टमेंट मे जब तक सारे सबूत इकट्ठा किए नही जाते तब तक और कोई भी ना आ पाए इसका ख़याल रखो..." राज ने निर्देश दिए..
थोड़ी देर मे बाहर जमा हुई लोगों की भीड़ मे मकान मालिक आगया और मकान मालिक आया... मकान मालिक आया ऐसी खुसुर फुसुर शुरू हो गयी.
"कौन है मकान मालिक...?" राज ने उस भीड़की तरफ जाते हुए पूछा.
एक अधेड़ उम्र आदमी सामने आकर डरते हुए दबे हुए स्वर मे बोला, "में हूँ..."
"तो आपके पास इस आपके किरायेदार का अतापता वाईगेरह सारी जानकारी होगी ही...?" राज ने उससे पूछा...
"हाँ है..." मकान मालिक एक कागज का टुकड़ा राज को थमाते हुए बोला.
राज ने वह काग़ज़ का टुकड़ा लिया. उसपर राजेश का अड्रेस, फोन जैसी सारी जानकारी मकान मालिक ने लिख कर दी थी.
"लेकिन यह सब देखते हुए यह जानकारी जाली और झुटि होगी ऐसा लगता है..." मकान मालिक डरते हुए बोला...
"मतलब...? आपने उसकी सारी जानकारी जाँच कर नही देखी थी...?" राज ने पूछा.
"नही... मतलब.. वह में करने ही वाला था..." मकान मालिक फिर से डरते हुए बोला...
इंस्पेक्टर राज ने अपने बज रहे मोबाइल का डिसप्ले देखा. फोन उसके ही पार्ट्नर का था. एक बटन दबाकर उसने वह अटेंड किया,
"यस..."
"सर हमे मीनू का दोस्त शरद का पता चल चुका है..." उधर से उसके पार्ट्नर का आवाज़ आई.
"गुड वेरी गुड..." राज खुशी होकर बोला.
राज के पार्ट्नर ने उसे एक अड्रेस दिया और तुरंत उधर आने के लिए कहा.
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.... शरद बेड पर पड़ा हुआ था और ज़ोर ज़ोर से खांस रहा था. उसकी दाढ़ी बढ़ चुकी थी और सर के बढ़े हुए बाल भी बिखरे हुए दिख रहे थे. ना जाने कितने दिनो से वह बेड पर इसी हाल मे पड़ा हुआ था. उसका घर से बाहर आना जाना भी बंद हो चुका था.
जब उसकी प्रिय मीनू का बलात्कार और कत्ल हो गया था तब वह इतना निराश और हटबल हो चुका था कि उसे आगे क्या करे कुछ सूझ नही रहा था. उन गुनहगारों को सज़ा हो ऐसा उसे तहे दिल से लग रहा था. लेकिन कैसे वह कुछ समझ नही पा रहा था. ऐसे मायूस और हटबल अवस्था मे वह शहर मे रात के अंधेरे मे पागलों की तरफ सिर्फ़ घूमता रहता तो कभी शाम को बीच पर जाकर डूबते सूरज को लगातार निहारती रहता. शायद उसे अपनी खुद की जिंदगी भी कुछ उस डूबते सूरज की तरह लगती हो. दिन रात पागलों की तरह इधर उधर भटकना और फिर थकने के बाद बार मे जाकर मदिरा मे डूब जाना. ऐसे उसकी दिनचर्या रहती थी. लेकिन ऐसा कितने दिन तक चलनेवाला था. आगे आगे तो उसका घूमना फिरना भी कम होकर पीना बढ़ गया. इतना बढ़ गया कि अब उसकी तबीयत खराब होकर वह ना जाने कितने दिन से बेड पर पड़ा हुआ था. बिस्तर पर पड़ी अवस्था मे भी उसका पीना जारी था. थोड़ी भी नशा उतर जाता तो उसे वह भयानक बलात्कार और कत्ल का द्रिश्य याद आता था और वह फिर से पीने लगता था.
अचानक उसे फिर से खाँसी का दौर पड़ गया. वह उठने का प्रयास करने लगा. लेकिन वह इतना क्षीण और कमजोर हो गया था कि वह उठ भी नही पा रहा था. कैसे तो दीवार का सहारा लेकर वह बेड से उठ खड़ा हुआ. लेकिन अपना संतुलन खोकर नीचे ज़मीन पर गिर गया. उसका खांस ना लगातार शुरू था. खाँसते खाँसते उसे एक बड़ा दौरा पड़ गया और उसके मुँह से खून आने लगा. उसने मुँह को हाथ लगाकर देखा. खून दिखते ही वह घबरा गया.
उठकर डॉक्टर के पास जाना चाहिए....
लेकिन वह उठ भी नही पा रहा था....
चिल्लाकर लोगों को जमा करना चाहिए...
लेकिन उसमे उतनी चिल्लाने की भी शक्ति बाकी नही थी...
क्या किया शरद...?
आख़िर उसने एक निर्णय मन ही मन पक्का किया और वह उसके हाथ मे लगे खून से फर्शपर कुछ लिखने लगा...
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क्रमशः……………………
Thriller -इंतकाम की आग compleet
Re: Thriller -इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--14
गतान्क से आगे………………………
एक आदमी फोन पर बोल रहा था, "हेलो पोलीस स्टेशन...?"
उधर से जवाब आने के लिए वह बीच मे रुक गया.
"साहब... हमारे पड़ोस मे कोई एक आदमी रहता है... मतलब रहता था.. उसे हमने लगभग 7-8 दिन से देखा नही... उसका दरवाज़ा भी अंदर से बंद है.. हमने उसका दरवाज़ा नॉक करके भी देखा... लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही है... उसके घर से लगातार किसी चीज़ के सड़ने की दुर्गंध आ रही है.. मुझे लगता है आप लोगों मे से कोई यहाँ आकर देखे तो अच्छा होगा..."
फिर से वह उधर के जवाब के लिए रुका और "थॅंक यू... " कहकर उसने फोन नीचे रख दिया.
पोलीस की एक टीम इंस्पेक्टर निंस के नेत्रुत्व मे उस आदमी ने फोनेपर दिए पते पर बहुत जल्दी पहुँच गये. वह आदमी उनकी राह ही देख रहा था. वे वहाँ पहुँचते ही वह आदमी उनको एक फ्लॅट के बंद दरवाजे के सामने ले गया. वहाँ पहुँचते ही एक किसी सड़ी हुए चीज़ की दुर्गंध उनके नाक मे घुस गयी. उन्होने तुरंत रुमाल निकालकर अपनी अपनी नाक को ढँक लिया. उन्होने उस दुर्गंध के स्रोत को प्कड़ने की कोशिश की तो वह दुर्गंध उस घर से ही आ रही थी. उन्होने दरवाज़ा धकेल कर देखा. दरवाज़ा शायद अंदर से बंद था. उन्होने दरवाज़े को नॉक कर देखा. अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही थी. जिस आदमी ने फोन पर पोलीस को इत्तला किया था वह बार बार वही हक़ीकत उन्हे सुना रहा था. आख़िर पोलीस ने दरवाज़ा तोड़ दिया. दरवाज़ा तोड़ने के बाद तो वह सड़ी हुई दुर्गंध और ही तीव्रता से आने लगी. मुँह पर और नाक पर कस कर रुमाल लगाकर वे धीरे धीरे अंदर जाने लगे.
पोलीस की टीम जब बेडरूम मे पहुँच गयी तब उन्हे सड़ने की प्रक्रिया शुरू हुए शरद का मृत शरीर ज़मीन पर पड़ा हुआ मिला. नाक को रुमाल से कसकर ढँकते हुए वे उस डेड बॉडी के पास गये. वहाँ ज़मीन पर मरने के पहले उसके खून से कुछ लिखा हुआ दिखाई दे रहा था. उनमे से एक पोलीस ने वह नज़दीक जाकर पढ़ा,
"मीनू... मुझे माफ़ कर देना.. में तुम्हे बचा नही पाया... लेकिन चिंता मत करो... उन बदमाशों का... एक एक करके बदला लिए बिना मुझे शांति नही मिलेगी.."
राज और उसका पार्ट्नर जिस पोलीस अधिकारी ने शरद की मौत का केस हॅंडल किया था उस अधिकारी, इंस्पेक्टर निंस के सामने बैठे थे.
इंस्पेक्टर निंस शरद के बारे मे जानकारी देने लगा, "मदिरा के ज़्यादा सेवन की वजह से उसे ब्रोकईटिज़ होकर वह मर गया..."
"लेकिन आपको उसकी पहचान कैसे मिली...?" राज ने पूछा.
"जिस कमरे मे उसका मृत शरीर मिला उस कमरे कुछ उसके कागजात भी मिले... उससे हमे उसकी पहचान हो गयी... और उसका एक फोटो इंस्पेक्टर धरम ने जैसे सारे पोलीस थानोपर भेजा था वैसा हमारे पास भी भेजा था..."
निंस ने अपने ड्रॉयर से शरद का फोटो निकाल कर राज के सामने रखा.
"इस फोटो की वजह से और इंस्पेक्टर धरम ने भेजी जानकारी के वजह से हमे उसका अड्रेस और घर वाईगेरह मिलने मे मदद हो गयी..." निंस ने कहा.
"आपने उसके घर के लोगो से संपर्क किया था क्या...?" राज ने पूछा...
"हाँ... उनके घर के लोगो को भी यहाँ बुलाया था... उन्होने भी बॉडी अपने कब्ज़े मे लेने से पहले शरद की पहचान कर ली थी और पोस्टमोर्टिम मे भी उसकी पहचान शरद ऐसी ही तय की गयी है..." निंस ने कहा.
"वह कब मरा होगा... मतलब शव मिलने से कितने दिन पहले..." राज ने पूछा.
"पोस्टमोर्टिम के अनुसार मार्च महीने के शुरुआत के दो तीन दिन मे उसकी मौत हुई होगी..." वह अधिकारी बोला...
"अर्ली...मार्च... मतलब पहला खून होने के बहुत पहले..." राज ने सोचकर कहा.
"इसका मतलब हम जैसे समझ रहे थे वैसे वह क़ातिल नही है..."राज ने आगे कहा.
"हाँ वैसा लग तो रहा है..." निंस ने कहा.
काफ़ी समय शांति से गुजर गया.
मतलब मुझे जो शक था वह सच होने जा रहा है...
राज को मीनू का दोस्त शरद का अता पता मिलने की खबर उसके पार्ट्नर से फोनेपर मिलते ही वह बहुत खुश हो गया था...
उसे लगा था चलो एक बार की बला तो टली... जो केस सॉल्व हो गया... और क़ातिल थोड़ी ही देर मे उनके कब्ज़े मे आनेवाला है...
लेकिन यहाँ आकर देखता हूँ तो केस ने और एक अलग ही मोड़ लिया था...
शरद के मरने का समय देखा जाय तो उसका इन खुनो से संभंध होने की कोई गुंजाइश नही थी...
"शरद अगर क़ातिल नही है.. तो फिर क़ातिल कौन होगा...?"राज ने जैसे ही खुद से ही सवाल किया.
कमरे की तीनो लोग सिर्फ़ एक दूसरे की तरफ देखने लगे.... क्योंकि उस सवाल का जवाब उन तीनो के पास नही था.
इतने मे निंस ने उसके ड्रॉयर से और एक तस्वीर निकाल कर राज के सामने रख दी.
राज ने वह तस्वीर उठाई और वह उस तस्वीर की तरफ एकटक देखने लगा. उस तस्वीर मे शरद ज़मीन पर पड़ा हुआ दिख रहा था और उसके सामने फर्शपर खून से बड़े अक्षरों मे लिखा हुआ था,
"मीनू मुझे माफ़ करना... में तुम्हे बचा नही सका... लेकिन चिंता मत करो में एक एक को चुनकर मारकर बदला लूँगा..."
राज को एक अंदाज़ा हो गया था कि यह तस्वीर दिखा कर निंस उसे क्या कहना चाहता है...
"में सुन सुनकर थक गया हूँ कि इस क़त्ल मे किसी आदमी का हाथ ना होकर किसी रूहानी ताक़त का हाथ हो सकता है.. यह तस्वीर दिखा कर कहीं तुम्हे भी तो यही कहना नही है...?" राज ने निंस को पूछा.
निंस ने राज और उसके पार्ट्नर के चेहरे की तरफ देखा.
"नही मुझे ऐसा कुछ कहना नही है... सिर्फ़ घट रही घटनाए और शरद का फर्शपर लिखा हुआ मेसेज दोनो कैसे एकदम मिलते जुलते है... इसी ओर मुझे तुम्हारा ध्यान खींचना है..."निंस ने शब्दो को तोल्मोल्कर इस्तेमाल करते हुए कहा.
जैल मे चारो और अंधेरा फैला हुआ था. अंकित एक कोठरी मे गुम्सुम सा किसी सोच मे डूबा हुआ एक कोने मे बैठा हुआ था. अचानक वह उठ खड़ा हुआ और अपने पहने हुए कपड़े पागलों की तरह फाड़ने लगा. कपड़े फाड़ने के बाद उसने कोठरी मे इधर उधर पड़े फटे कपड़ेके टुकड़े जमा किए. उस टुकड़ोंका वह फिर से एक गुड्डा बनाने लगा. गुड्डा तैय्यार होने के बाद उसके चेहरे पर एक रहस्य भरी, डरावनी हँसी फैल गयी.
“मिस्टर. शिकेन्दर… अब तुम्हारी बारी है… समझे..” वह पागलो की तरह उस गुड्डे से बोलने लगा.
वहाँ ड्यूटी पर तैनात पोलीस वाला काफ़ी समय से अंकित की हर्कतो पर बराबर नज़र रखे हुए था. जैसे ही उसने अंकित की बातचीत सुनी वह तेज़ी से उठकर फोन के पास गया – अपने वरिष्ट अधिकारी को इत्तला करने के लिए..
शिकेन्दर अपने घर मे, हॉल मे पीते हुए बैठा था. साथ ही वह चेहरे पर काफ़ी सारी चिंताए लेकर एक के बाद एक लगातार सिगरेट पिए जा रहा था. थोड़ी देर से वह उठ खड़ा हुआ और सोचते हुए कमरे मे धीरे धीरे चहल कदमी करने लगा. उसकी चाल से वह काफ़ी थका हुआ मालूम पड़ रहा था, या फिर मदिरा के चढ़े हुए नशे से वह वैसा लग रहा होगा. थोड़ी देर चहलकदमी करने के बाद वह फिर से कुरसीपर बैठ गया और अपनीही सोच मे डूब गया. अचानक उसे घर मे किसी की उपस्थितिका एहसास हुआ. कोई किचन मे बर्तनोसे छेड़खानी कर रहा हो ऐसा लग रहा था.
किचन मे इस वक्त कौन होगा…?
सब दरवाज़े खिड़कियाँ तो बंद है…
क्या यह भी कोई आभास है…?
गतान्क से आगे………………………
एक आदमी फोन पर बोल रहा था, "हेलो पोलीस स्टेशन...?"
उधर से जवाब आने के लिए वह बीच मे रुक गया.
"साहब... हमारे पड़ोस मे कोई एक आदमी रहता है... मतलब रहता था.. उसे हमने लगभग 7-8 दिन से देखा नही... उसका दरवाज़ा भी अंदर से बंद है.. हमने उसका दरवाज़ा नॉक करके भी देखा... लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही है... उसके घर से लगातार किसी चीज़ के सड़ने की दुर्गंध आ रही है.. मुझे लगता है आप लोगों मे से कोई यहाँ आकर देखे तो अच्छा होगा..."
फिर से वह उधर के जवाब के लिए रुका और "थॅंक यू... " कहकर उसने फोन नीचे रख दिया.
पोलीस की एक टीम इंस्पेक्टर निंस के नेत्रुत्व मे उस आदमी ने फोनेपर दिए पते पर बहुत जल्दी पहुँच गये. वह आदमी उनकी राह ही देख रहा था. वे वहाँ पहुँचते ही वह आदमी उनको एक फ्लॅट के बंद दरवाजे के सामने ले गया. वहाँ पहुँचते ही एक किसी सड़ी हुए चीज़ की दुर्गंध उनके नाक मे घुस गयी. उन्होने तुरंत रुमाल निकालकर अपनी अपनी नाक को ढँक लिया. उन्होने उस दुर्गंध के स्रोत को प्कड़ने की कोशिश की तो वह दुर्गंध उस घर से ही आ रही थी. उन्होने दरवाज़ा धकेल कर देखा. दरवाज़ा शायद अंदर से बंद था. उन्होने दरवाज़े को नॉक कर देखा. अंदर से कोई प्रतिक्रिया नही थी. जिस आदमी ने फोन पर पोलीस को इत्तला किया था वह बार बार वही हक़ीकत उन्हे सुना रहा था. आख़िर पोलीस ने दरवाज़ा तोड़ दिया. दरवाज़ा तोड़ने के बाद तो वह सड़ी हुई दुर्गंध और ही तीव्रता से आने लगी. मुँह पर और नाक पर कस कर रुमाल लगाकर वे धीरे धीरे अंदर जाने लगे.
पोलीस की टीम जब बेडरूम मे पहुँच गयी तब उन्हे सड़ने की प्रक्रिया शुरू हुए शरद का मृत शरीर ज़मीन पर पड़ा हुआ मिला. नाक को रुमाल से कसकर ढँकते हुए वे उस डेड बॉडी के पास गये. वहाँ ज़मीन पर मरने के पहले उसके खून से कुछ लिखा हुआ दिखाई दे रहा था. उनमे से एक पोलीस ने वह नज़दीक जाकर पढ़ा,
"मीनू... मुझे माफ़ कर देना.. में तुम्हे बचा नही पाया... लेकिन चिंता मत करो... उन बदमाशों का... एक एक करके बदला लिए बिना मुझे शांति नही मिलेगी.."
राज और उसका पार्ट्नर जिस पोलीस अधिकारी ने शरद की मौत का केस हॅंडल किया था उस अधिकारी, इंस्पेक्टर निंस के सामने बैठे थे.
इंस्पेक्टर निंस शरद के बारे मे जानकारी देने लगा, "मदिरा के ज़्यादा सेवन की वजह से उसे ब्रोकईटिज़ होकर वह मर गया..."
"लेकिन आपको उसकी पहचान कैसे मिली...?" राज ने पूछा.
"जिस कमरे मे उसका मृत शरीर मिला उस कमरे कुछ उसके कागजात भी मिले... उससे हमे उसकी पहचान हो गयी... और उसका एक फोटो इंस्पेक्टर धरम ने जैसे सारे पोलीस थानोपर भेजा था वैसा हमारे पास भी भेजा था..."
निंस ने अपने ड्रॉयर से शरद का फोटो निकाल कर राज के सामने रखा.
"इस फोटो की वजह से और इंस्पेक्टर धरम ने भेजी जानकारी के वजह से हमे उसका अड्रेस और घर वाईगेरह मिलने मे मदद हो गयी..." निंस ने कहा.
"आपने उसके घर के लोगो से संपर्क किया था क्या...?" राज ने पूछा...
"हाँ... उनके घर के लोगो को भी यहाँ बुलाया था... उन्होने भी बॉडी अपने कब्ज़े मे लेने से पहले शरद की पहचान कर ली थी और पोस्टमोर्टिम मे भी उसकी पहचान शरद ऐसी ही तय की गयी है..." निंस ने कहा.
"वह कब मरा होगा... मतलब शव मिलने से कितने दिन पहले..." राज ने पूछा.
"पोस्टमोर्टिम के अनुसार मार्च महीने के शुरुआत के दो तीन दिन मे उसकी मौत हुई होगी..." वह अधिकारी बोला...
"अर्ली...मार्च... मतलब पहला खून होने के बहुत पहले..." राज ने सोचकर कहा.
"इसका मतलब हम जैसे समझ रहे थे वैसे वह क़ातिल नही है..."राज ने आगे कहा.
"हाँ वैसा लग तो रहा है..." निंस ने कहा.
काफ़ी समय शांति से गुजर गया.
मतलब मुझे जो शक था वह सच होने जा रहा है...
राज को मीनू का दोस्त शरद का अता पता मिलने की खबर उसके पार्ट्नर से फोनेपर मिलते ही वह बहुत खुश हो गया था...
उसे लगा था चलो एक बार की बला तो टली... जो केस सॉल्व हो गया... और क़ातिल थोड़ी ही देर मे उनके कब्ज़े मे आनेवाला है...
लेकिन यहाँ आकर देखता हूँ तो केस ने और एक अलग ही मोड़ लिया था...
शरद के मरने का समय देखा जाय तो उसका इन खुनो से संभंध होने की कोई गुंजाइश नही थी...
"शरद अगर क़ातिल नही है.. तो फिर क़ातिल कौन होगा...?"राज ने जैसे ही खुद से ही सवाल किया.
कमरे की तीनो लोग सिर्फ़ एक दूसरे की तरफ देखने लगे.... क्योंकि उस सवाल का जवाब उन तीनो के पास नही था.
इतने मे निंस ने उसके ड्रॉयर से और एक तस्वीर निकाल कर राज के सामने रख दी.
राज ने वह तस्वीर उठाई और वह उस तस्वीर की तरफ एकटक देखने लगा. उस तस्वीर मे शरद ज़मीन पर पड़ा हुआ दिख रहा था और उसके सामने फर्शपर खून से बड़े अक्षरों मे लिखा हुआ था,
"मीनू मुझे माफ़ करना... में तुम्हे बचा नही सका... लेकिन चिंता मत करो में एक एक को चुनकर मारकर बदला लूँगा..."
राज को एक अंदाज़ा हो गया था कि यह तस्वीर दिखा कर निंस उसे क्या कहना चाहता है...
"में सुन सुनकर थक गया हूँ कि इस क़त्ल मे किसी आदमी का हाथ ना होकर किसी रूहानी ताक़त का हाथ हो सकता है.. यह तस्वीर दिखा कर कहीं तुम्हे भी तो यही कहना नही है...?" राज ने निंस को पूछा.
निंस ने राज और उसके पार्ट्नर के चेहरे की तरफ देखा.
"नही मुझे ऐसा कुछ कहना नही है... सिर्फ़ घट रही घटनाए और शरद का फर्शपर लिखा हुआ मेसेज दोनो कैसे एकदम मिलते जुलते है... इसी ओर मुझे तुम्हारा ध्यान खींचना है..."निंस ने शब्दो को तोल्मोल्कर इस्तेमाल करते हुए कहा.
जैल मे चारो और अंधेरा फैला हुआ था. अंकित एक कोठरी मे गुम्सुम सा किसी सोच मे डूबा हुआ एक कोने मे बैठा हुआ था. अचानक वह उठ खड़ा हुआ और अपने पहने हुए कपड़े पागलों की तरह फाड़ने लगा. कपड़े फाड़ने के बाद उसने कोठरी मे इधर उधर पड़े फटे कपड़ेके टुकड़े जमा किए. उस टुकड़ोंका वह फिर से एक गुड्डा बनाने लगा. गुड्डा तैय्यार होने के बाद उसके चेहरे पर एक रहस्य भरी, डरावनी हँसी फैल गयी.
“मिस्टर. शिकेन्दर… अब तुम्हारी बारी है… समझे..” वह पागलो की तरह उस गुड्डे से बोलने लगा.
वहाँ ड्यूटी पर तैनात पोलीस वाला काफ़ी समय से अंकित की हर्कतो पर बराबर नज़र रखे हुए था. जैसे ही उसने अंकित की बातचीत सुनी वह तेज़ी से उठकर फोन के पास गया – अपने वरिष्ट अधिकारी को इत्तला करने के लिए..
शिकेन्दर अपने घर मे, हॉल मे पीते हुए बैठा था. साथ ही वह चेहरे पर काफ़ी सारी चिंताए लेकर एक के बाद एक लगातार सिगरेट पिए जा रहा था. थोड़ी देर से वह उठ खड़ा हुआ और सोचते हुए कमरे मे धीरे धीरे चहल कदमी करने लगा. उसकी चाल से वह काफ़ी थका हुआ मालूम पड़ रहा था, या फिर मदिरा के चढ़े हुए नशे से वह वैसा लग रहा होगा. थोड़ी देर चहलकदमी करने के बाद वह फिर से कुरसीपर बैठ गया और अपनीही सोच मे डूब गया. अचानक उसे घर मे किसी की उपस्थितिका एहसास हुआ. कोई किचन मे बर्तनोसे छेड़खानी कर रहा हो ऐसा लग रहा था.
किचन मे इस वक्त कौन होगा…?
सब दरवाज़े खिड़कियाँ तो बंद है…
क्या यह भी कोई आभास है…?
Re: Thriller -इंतकाम की आग
अचानक एक बड़ा बर्तन फर्शपर गिरने की आवाज़ आई. शिकेन्दर एकदम उठकर खड़ा हो गया.
क्या हुआ होगा…?
उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.
में फालतू ही घबरा रहा हूँ… कोई बिल्ली वाईगेरह होगी…
उसने खुद को समझाने की खोषिश की और धीरे धीरे चलते हुए, कोई आहट आती है क्या यह सुनते हुए, वह किचन मे जाने लगा.
किचन से अब आवाज़े आना बंद हुआ था. कुछ आहट भी नही थी. वह किचन के दरवाजे के पास गया और धीरे से किचन का दरवाज़ा तिरछा करते हुए उसने अंदर झाँककर देखा.
किचन मे तो कोई नही दिख रहा है.
वह किचन मे घुस गया. अंदर जाने के बाद उसने इधर उधर नज़र दौड़ा कर देखा, पूरे किचन का एक राउंड लगाया..
कहीं…? कुछ तो नही…
या मुझे सिर्फ़ आभास हो रहे है…
लेकिन ज़मीन पर एक खाली बर्तन पड़ा हुआ था.
वह भ्रम की स्थिति मे किचन से वापस जाने के लिए मुडाही था कि उसे अब हॉल से कुछ टूटने की आवाज़ आ गयी. शिकेन्दर चौंक गया और दौड़ते हुए हॉल मे चला गया.
हॉल मे उसे उसका व्हिस्की का ग्लास नीचे ज़मीन पर गिरकर टूटा हुआ मिला. व्हिस्की नीचे गिर कर इधर उधर फैली हुई थी. उसने आसपास नज़र दौड़ाई. कोई नही था.
शिकेन्दर का नशा पूरी तरह उतर चुका था.
साला कोई तो नही…
यह क्या हो रहा है मुझे…?
ग्लास नीचे कैसे गिर गया…
वह सोचते हुए फिर से कुरसीपर बैठ गया… अब उसने पूरी की पूरी बॉटल ही मुँह को लगाई थी.
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राज सुबह सुबह हॉल मे बैठकर चाय पीते हुए टीवी देख रहा था. एक एक घूँट धीरे धीरे पीते हुए मानो वह चाय का आनंद ले रहा हो. देखने के लिए तो वह टीवी की तरफ देख रहा था लेकिन उसके दिमाग़ मे कुछ अलग ही विचारों का तूफान मचा हुआ था. शायद वह उस क़ातिल के केस के बारे मे ही सोच रहा होगा. जैसे जैसे उसके विचार दौड़ रहे थे वैसे वैसे वह रिमोट के बटन बदल कर तेज़ी से चॅनेल्स बदल रहा था. आख़िर वह कार्टून चॅनेल पर आकर रुका. थोड़ी देर कार्टून चॅनेल देखकर शायद उसने खुदको लगर टेन्षन्स, चिंता इससे हटाकर फिर से ताज़ा किया हो. फिर से उसने चॅनेल बदला और अब वह डिस्कवरी चॅनेल देखने लगा. शायद डिस्कवरी पर चल रहे प्रोग्राम मे उसे इंटेरेस्ट आने लगा था. उसने रिमोट अपने हाथ से बगल मे रख दिया और वह प्रोग्राम बड़े ध्यान देकर देखने लगा.
डिस्कवरी चॅनेल पर चल रहे प्रोग्राम मे एक चूहा दिखाया जाने लगा. उस चूहे के गले मे एक छोटा पत्ता दिख रहा था. और सिर पर एकदम छोटे छोटे वाइर्स लगाए दिख रहे थे. फिर टीवी आंकर बोलने लगा –
“जब कोई जीवजंतु कोई क्रिया करता है उसे वह क्रिया करनेके लिए उसके दिमाग़ को एक सिग्नल जाता है. अगर हम एकदम वैसाही सिग्नल उसके दिमाग़ को बाहर से देने मे कामयाब हो गये तो हम उस जीवजंतु को अपने कब्ज़े मे कर सकते है और उसे बाहर से सब सिग्नल्स देकर उससे हमे जो चाहिए वह क्रिया करवा के ले सकते है..”
फिर टीवी पर एक कंप्यूटर दिखने लगा, कंप्यूटर के सामने एक साइंटिस्ट बैठा हुआ था.
राज टीवी पर चल रहा प्रोग्राम एकदम ध्यान लगाकर देखने लगा.
वह कंप्यूटर के सामने बैठा साइंटिस्ट बोलने लगा –
“इस कंप्यूटर के द्वारा हम अलग अलग सिग्नल्स इस चिपपर, जो कि इस चूहे के गले मे लगे पट्टे मे बँधी हुई है, उसपर ट्रॅनस्मिट कर सकते है, इस चिप के द्वारा यह सिंगल चूहे के दिमाग़ तक पहुचेंगे, और फिर जो जो सिग्नल्स हम उसे इस कंप्यूटर के द्वारा देंगे उसके हिसाब से वह चूहा अलग अलग कार्य करने लगेगा…”
फिर टीवी पर वह चूहा एकदम नज़दीक से दिखाया गया. एक छोटी से चिप उसके गले मे पट्टा बाँध कर उसमे लगाई गयी थी.
राज टीवी पर चल रहा प्रोग्राम देख रहा था. उसके चेहरे पर आस्चर्य के भाव दिख रहे थे.
टीवी पर वह साइंटिस्ट आगे बोलने लगा –
“इस प्रकार हम अलग अलग तरह के आदेश इस सिग्नल ट्रॅन्समिशन के द्वारा उस चूहे को दे सकते है. अब फिलहाल हम कुछ दो चार आदेश ही उसे देने मे कामयाब हुए है…”
फिर कंप्यूटर के मॉनीटौर पर चल रहे सॉफ्टवेर मे उस साइंटिस्ट ने माउस की सहायता से ‘राइट’ बटन दबाया और क्या आस्चर्य वह चूहा राइट की तरफ मुड़कर दौड़ने लगा.
कंप्यूटर पर उस साइंटिस्ट ने ‘स्टॉप’ यह बटन दबाया और वह चूहा एकदम दौड़ते हुए रुक गया.
फिर उसने ‘लेफ्ट’ बटन दबाया और वह चूहा बाई तरफ मुड़कर दौड़ने लगा.
आगे उसने ‘जंप’ यह बटन दबाया और उस चूहे ने दौड़ते हुए छलाँग लगाई.
फिर से ‘स्टॉप’ बटन दबाया और वह चूहा एक खाने के जिंनस के सामने पहुँच गया था वही रुक गया.
साइंटिस्ट ने ‘ईट’ बटन दबाया और वह चूहा उसके सामने रखा हुआ खाने का जिंनस खाने लगा.
फिर से उसने ‘स्टॉप’ बटन दबाया और उस चूहेने खाना बंद किया.
अब साइंटिस्ट ने ‘अटॅक’ बटन दबाया और वह चूहा उसके सामने रखे हुए खाने के जिंनस ना खाते हुए उसके तोड़ तोड़कर टुकड़े करने लगा.
यह सब देखते हुए अचानक राज के दिमाग़ मे एक विचार कौंध गया.
उसे एक एक घटना याद आने लगी…
… दो पोलीस मेंबर की टीम अशोक के घर की सर्क्यूट टीवी पर जब निगरानी कर रहे थे तब एक बिल्ली ने सर्क्यूट ट्रॅनस्मिट यूनिट पर छलाँग लगाई थी और उसकी वजह से अशोक के बेडरूम की सब हरकते टीवी पर दिखना बंद हुआ था. और जब तक वो दोनो बेडरूम मे पहुँचते नही तब तक क़त्ल हो चुक्का था.
राज अपनी सोच मे डूबा हुआ टीवी के सामने से उठ गया. उसे अगला प्रसंग याद आने लगा….
… जब राज और उसकी टीम इन्वेस्टिगेशन के लिए अशोक के बेडरूम मे गये थे और इन्वेस्टिगेशन करते वक्त सामने बेड के नीचे झुक कर देखा था. तब उसे बेड के नीचे दो चमकती हुई आँखें दिखाई दी थी.
जब वह आँखो ने धीरे धीरे उसकी तरफ आकर अचानक हमला किया जैसे उसपर झपट पड़ी थी, उसने झट से वहाँ से हटकर अपना बचाव किया था और बाद मे देखा तो गले मे काला पट्टा पहनी हुई काली बिल्ली बेड के नीचे से बाहर आकर दरवाजे से बेडरूम के बाहर दौड़कर जाते हुए दिखाई दी थी.
अब राज के दिमाग़ मे एक एक गुत्थी एकदम सॉफ सुलझ रही थी.
अब मुझे समय गँवाना नही चाहिए…
मुझे जो कुछ भी करना है जल्दी करना चाहिए…
सोचते हुए राज अगली कार्यवाही के लिए तेज़ी से घर के बाहर निकल पड़ा.
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क्रमशः……………………
क्या हुआ होगा…?
उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.
में फालतू ही घबरा रहा हूँ… कोई बिल्ली वाईगेरह होगी…
उसने खुद को समझाने की खोषिश की और धीरे धीरे चलते हुए, कोई आहट आती है क्या यह सुनते हुए, वह किचन मे जाने लगा.
किचन से अब आवाज़े आना बंद हुआ था. कुछ आहट भी नही थी. वह किचन के दरवाजे के पास गया और धीरे से किचन का दरवाज़ा तिरछा करते हुए उसने अंदर झाँककर देखा.
किचन मे तो कोई नही दिख रहा है.
वह किचन मे घुस गया. अंदर जाने के बाद उसने इधर उधर नज़र दौड़ा कर देखा, पूरे किचन का एक राउंड लगाया..
कहीं…? कुछ तो नही…
या मुझे सिर्फ़ आभास हो रहे है…
लेकिन ज़मीन पर एक खाली बर्तन पड़ा हुआ था.
वह भ्रम की स्थिति मे किचन से वापस जाने के लिए मुडाही था कि उसे अब हॉल से कुछ टूटने की आवाज़ आ गयी. शिकेन्दर चौंक गया और दौड़ते हुए हॉल मे चला गया.
हॉल मे उसे उसका व्हिस्की का ग्लास नीचे ज़मीन पर गिरकर टूटा हुआ मिला. व्हिस्की नीचे गिर कर इधर उधर फैली हुई थी. उसने आसपास नज़र दौड़ाई. कोई नही था.
शिकेन्दर का नशा पूरी तरह उतर चुका था.
साला कोई तो नही…
यह क्या हो रहा है मुझे…?
ग्लास नीचे कैसे गिर गया…
वह सोचते हुए फिर से कुरसीपर बैठ गया… अब उसने पूरी की पूरी बॉटल ही मुँह को लगाई थी.
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राज सुबह सुबह हॉल मे बैठकर चाय पीते हुए टीवी देख रहा था. एक एक घूँट धीरे धीरे पीते हुए मानो वह चाय का आनंद ले रहा हो. देखने के लिए तो वह टीवी की तरफ देख रहा था लेकिन उसके दिमाग़ मे कुछ अलग ही विचारों का तूफान मचा हुआ था. शायद वह उस क़ातिल के केस के बारे मे ही सोच रहा होगा. जैसे जैसे उसके विचार दौड़ रहे थे वैसे वैसे वह रिमोट के बटन बदल कर तेज़ी से चॅनेल्स बदल रहा था. आख़िर वह कार्टून चॅनेल पर आकर रुका. थोड़ी देर कार्टून चॅनेल देखकर शायद उसने खुदको लगर टेन्षन्स, चिंता इससे हटाकर फिर से ताज़ा किया हो. फिर से उसने चॅनेल बदला और अब वह डिस्कवरी चॅनेल देखने लगा. शायद डिस्कवरी पर चल रहे प्रोग्राम मे उसे इंटेरेस्ट आने लगा था. उसने रिमोट अपने हाथ से बगल मे रख दिया और वह प्रोग्राम बड़े ध्यान देकर देखने लगा.
डिस्कवरी चॅनेल पर चल रहे प्रोग्राम मे एक चूहा दिखाया जाने लगा. उस चूहे के गले मे एक छोटा पत्ता दिख रहा था. और सिर पर एकदम छोटे छोटे वाइर्स लगाए दिख रहे थे. फिर टीवी आंकर बोलने लगा –
“जब कोई जीवजंतु कोई क्रिया करता है उसे वह क्रिया करनेके लिए उसके दिमाग़ को एक सिग्नल जाता है. अगर हम एकदम वैसाही सिग्नल उसके दिमाग़ को बाहर से देने मे कामयाब हो गये तो हम उस जीवजंतु को अपने कब्ज़े मे कर सकते है और उसे बाहर से सब सिग्नल्स देकर उससे हमे जो चाहिए वह क्रिया करवा के ले सकते है..”
फिर टीवी पर एक कंप्यूटर दिखने लगा, कंप्यूटर के सामने एक साइंटिस्ट बैठा हुआ था.
राज टीवी पर चल रहा प्रोग्राम एकदम ध्यान लगाकर देखने लगा.
वह कंप्यूटर के सामने बैठा साइंटिस्ट बोलने लगा –
“इस कंप्यूटर के द्वारा हम अलग अलग सिग्नल्स इस चिपपर, जो कि इस चूहे के गले मे लगे पट्टे मे बँधी हुई है, उसपर ट्रॅनस्मिट कर सकते है, इस चिप के द्वारा यह सिंगल चूहे के दिमाग़ तक पहुचेंगे, और फिर जो जो सिग्नल्स हम उसे इस कंप्यूटर के द्वारा देंगे उसके हिसाब से वह चूहा अलग अलग कार्य करने लगेगा…”
फिर टीवी पर वह चूहा एकदम नज़दीक से दिखाया गया. एक छोटी से चिप उसके गले मे पट्टा बाँध कर उसमे लगाई गयी थी.
राज टीवी पर चल रहा प्रोग्राम देख रहा था. उसके चेहरे पर आस्चर्य के भाव दिख रहे थे.
टीवी पर वह साइंटिस्ट आगे बोलने लगा –
“इस प्रकार हम अलग अलग तरह के आदेश इस सिग्नल ट्रॅन्समिशन के द्वारा उस चूहे को दे सकते है. अब फिलहाल हम कुछ दो चार आदेश ही उसे देने मे कामयाब हुए है…”
फिर कंप्यूटर के मॉनीटौर पर चल रहे सॉफ्टवेर मे उस साइंटिस्ट ने माउस की सहायता से ‘राइट’ बटन दबाया और क्या आस्चर्य वह चूहा राइट की तरफ मुड़कर दौड़ने लगा.
कंप्यूटर पर उस साइंटिस्ट ने ‘स्टॉप’ यह बटन दबाया और वह चूहा एकदम दौड़ते हुए रुक गया.
फिर उसने ‘लेफ्ट’ बटन दबाया और वह चूहा बाई तरफ मुड़कर दौड़ने लगा.
आगे उसने ‘जंप’ यह बटन दबाया और उस चूहे ने दौड़ते हुए छलाँग लगाई.
फिर से ‘स्टॉप’ बटन दबाया और वह चूहा एक खाने के जिंनस के सामने पहुँच गया था वही रुक गया.
साइंटिस्ट ने ‘ईट’ बटन दबाया और वह चूहा उसके सामने रखा हुआ खाने का जिंनस खाने लगा.
फिर से उसने ‘स्टॉप’ बटन दबाया और उस चूहेने खाना बंद किया.
अब साइंटिस्ट ने ‘अटॅक’ बटन दबाया और वह चूहा उसके सामने रखे हुए खाने के जिंनस ना खाते हुए उसके तोड़ तोड़कर टुकड़े करने लगा.
यह सब देखते हुए अचानक राज के दिमाग़ मे एक विचार कौंध गया.
उसे एक एक घटना याद आने लगी…
… दो पोलीस मेंबर की टीम अशोक के घर की सर्क्यूट टीवी पर जब निगरानी कर रहे थे तब एक बिल्ली ने सर्क्यूट ट्रॅनस्मिट यूनिट पर छलाँग लगाई थी और उसकी वजह से अशोक के बेडरूम की सब हरकते टीवी पर दिखना बंद हुआ था. और जब तक वो दोनो बेडरूम मे पहुँचते नही तब तक क़त्ल हो चुक्का था.
राज अपनी सोच मे डूबा हुआ टीवी के सामने से उठ गया. उसे अगला प्रसंग याद आने लगा….
… जब राज और उसकी टीम इन्वेस्टिगेशन के लिए अशोक के बेडरूम मे गये थे और इन्वेस्टिगेशन करते वक्त सामने बेड के नीचे झुक कर देखा था. तब उसे बेड के नीचे दो चमकती हुई आँखें दिखाई दी थी.
जब वह आँखो ने धीरे धीरे उसकी तरफ आकर अचानक हमला किया जैसे उसपर झपट पड़ी थी, उसने झट से वहाँ से हटकर अपना बचाव किया था और बाद मे देखा तो गले मे काला पट्टा पहनी हुई काली बिल्ली बेड के नीचे से बाहर आकर दरवाजे से बेडरूम के बाहर दौड़कर जाते हुए दिखाई दी थी.
अब राज के दिमाग़ मे एक एक गुत्थी एकदम सॉफ सुलझ रही थी.
अब मुझे समय गँवाना नही चाहिए…
मुझे जो कुछ भी करना है जल्दी करना चाहिए…
सोचते हुए राज अगली कार्यवाही के लिए तेज़ी से घर के बाहर निकल पड़ा.
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क्रमशः……………………