सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
अशोक की मुश्किल
भाग 9
मिलन की रात…
गतांक से आगे…
करीब रात के दो बजे पहले अशोक फ़िर महुआ की नींद खुली दोनों ने मुस्कुरा के एक दूसरे की तरफ़ देखा।
महुआ –“कहो कैसी रही। क्या ख्याल है मेरे बारे में?”
अशोक –“भई वाह तुमने तो आज कमाल कर दिया।”
महुआ –“कमाल तो चाचा के मलहम का है।”
अशोक –“भई इस कमाल के बाद तो मेरे ख्याल से इनका नाम चन्दू वैद्य के बजाय चोदू वैद्य होना चाहिये।
इस बात पर महुआ को हँसी आ गई, अशोक भी हँसने लगा। तभी चाची के कमरे से हँसने की आवाज आई।
अशोक –“लगता है ये लोग भी जाग रहे हैं चलो वहीं चलते हैं।
महुआ कपड़े पहनने लगी तो अशोक बोला –“कपड़े पहनने का झंझट क्यों करना जब्कि तेरा सब सामान चाचा ने और मेरा सब सामान चाची ने देखा और बरता है।”
सो दोनों यूँ ही एक एक चादर लपेट के चाची के कमरे में पहुँचे। चन्दू चाचा पलंग पर नंगधड़ग बैठे थे और चम्पा चाची उनकी गोद में नंग़ी बैठी उनका लण्ड सहला रही थी चाचा उनकी एक चूची का निपल चुभला रहे थे और दुसरी चूची सहला रहे थे। इन्हें देख चाची चन्दू चाचा की गोद से उठते हुए बोलीं –“आओ अशोक बेटा अभी तेरी ही बात हो रही थी।“
चन्दू चाचा – “आ महुआ बेटी मेरे पास बैठ।” कहकर चाचा ने उसे गोद में बैठा लिया।
अशोक –“मेरे बारे में क्या बात हो रही थी चाची?”
चाची (खींच के अशोक को अपनी गोद में बैठाते हुए)–“अरे मैंने इन्हें बताया कि मेरे अशोक का लण्ड दुनियाँ का शायद सबसे लंबा और तगड़ा लण्ड नाइसिल के डिब्बे के साइज का है। इसीपर ये हँस रहे थे कि धत पगली कही ऐसा लण्ड भी होता है। अब तू इन्हें दिखा ही दे।”
कहकर चाची ने अशोक की चादर खींच के उतार दी। इस कमरे में घुसते समय का सीन देख अशोक का लण्ड खड़ा होने लगा ही था फ़िर चम्पा चाची के गुदाज बदन से और भी टन्ना गया। चम्पा चाची ने अशोक का फ़नफ़नाता लण्ड हाथ में थाम के चन्दू चाचा को दिखाया –“ये देख चन्दू।”
चन्दू चाचा – “भई वाह चम्पा तू ठीक ही कहती थी, तो महुआ बेटी तूने आज ये अशोक का पूरा लण्ड बर्दास्त कर लिया या आज भी कसर रह गई।”
इस बीच महुआ अपने बदन से चादर उतार के एक तरफ़ रख चुकी थी, चन्दू चाचा के गले में बाहें डालते हुए बोली –“नही चाचा मैने पूरा धँसवा के जम के चुदवाया आपका इलाज सफ़ल रहा।”
चन्दू चाचा(उसके गाल पर चुम्मा लेते हुए) –“शाबाश बेटी!”
चाची (अशोक का लण्ड सहलाते हुए) –“अब तो तेरे इस चोदू लण्ड को मेरी भतीजी से कोई शिकायत नहीं।”
अशोक ने मुस्कुरा के चाची के फ़ूले टमाटर से गाल को होठों में दबा जोर का चुम्मा लिया और बायाँ हाथ उनके बाँये कन्धे के अन्दर से डाल उनका बाँया स्तन थाम दाहिने हाथ से उनकी चूत सहलाते हुए बोला- “जिसे एक की जगह दो शान्दार चूतें मिलें वो क्यों नाराज होगा।”
चाची (मुस्कुराकर अशोक का लण्ड अपनी चूत पर रगड़ते हुए) –“हाय इस बुढ़ापे में मैंने ये अपने आप को किस जंजाल में फ़ँसा लिया। चन्दू मैं तेरी बहुत शुक्रगुजार हूँ जो जो तू ने मेरी भतीजी का इलाज किया। जब भी इस गाँव के पास से निकलना सेवा का मौका जरूर देना। पता नहीं तेरे बाद मेरे गाँव की लड़कियों का कौन उद्धार करेगा ।”
चन्दू (महुआ के गुदाज चूतड़ों की नाली में लण्ड फ़ँसा के रगड़ते हुए)-“ मेरा बेटा नन्दू सर्जन डाक्टर है, उसे मैंने ये हुनर भी सिखाया है उसने पास के गाँव में दवाखाना खोला है वो न सिर्फ़ आस पास के गाँवों की लड़कियों की चूते सुधारता है बल्कि जवान औरतों की बच्चा होने के बाद या शौकीन चुदक्कड़ औरतों, बुढ़ियों की ढीली पड़ गई चूतें भी आपरेशन और मेरे मलहम की मदद से सुधार कर फ़िर से सोलह साल की बना देता है।”
ये सुन सबके मुँह से निकला वाह कमाल है तभी चन्दू चाचा मुस्कुराये और अशोक को आँख के इशारे से शुरू करने इशारा किया अशोक भी मुस्कुराया और अचानक चन्दू चाचा और अशोक ने चम्पा चाची और महुआ को बिस्तर पर पटक दिया और लण्ड ठाँस कर दनादन चुदाई शुरू कर दी, दोनों औरतें मारे आनन्द के किलकारियाँ भर रही थी। उस रात चन्दू चाचा और अशोक ने चूतें बदल बदल के धुँआदार चुदाई की।
अगले दिन अशोक और महुआ लखनऊ लौट गये चन्दू चाचा, चम्पा चाची के बचपन के बिछ्ड़े यार थे सो उस जुदाई के एवज में एक हफ़्ते तक रुक जी भरकर उनकी चूत को अपना लण्ड छकाते रहे।
अब सब की जिन्दगी मजे से कट रही है जिन दिनों महुआ महीने से होती है वो चम्पा चाची को लखनऊ बुला लेती है और उन दिनों चम्पा चाची अशोक के लण्ड की सेवा अपनी चूत से करती हैं महुआ के फ़ारिग होने के बाद भी अशोक दो एक दिन उन्हें रोके रखता है और एक ही बिस्तरे पर दो दो शान्दार गुदाज बदनों से एक साथ खेल, एक साथ मजा लेता है और चूतें बदल बदल कर चोदता है। इसके अलावा अशोक जब भी काम के सिलसिले में चम्पा चाची के गाँव जाता है और वादे के अनुसार चाची की चूत को अपने लण्ड के लिए तैयार पाता है । चम्पा चाची भी काफ़ी बेतकल्लुफ़ हो गई हैं चु्दवाने की इच्छा होने पर मूड के हिसाब से अशोक को या चन्दू चाचा को बुलवा भी लेती हैं या उनके पास चली भी जाती हैं।
तो पाठकों! जैसे अशोक और चम्पा चाची के दिन फ़िरे वैसे सबके फ़िरें।
समाप्त
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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
फ्रेंड्स पेश है सलीम जावेद मस्ताना की तीसरी कहानी आपके लिए
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -1
चचा-भतीजा
तरुन 17 साल का छोकरा था उसका लण्ड हरदम खड़ा रहता था कुदरत ने उसके लण्ड में बड़ी ताकत भर दी है साला बड़ी मुश्किल से शांत होता था। पड़ोस में एक बल्लू नाम का जवान रहता था उन्हें तरुन और पूरे मुहल्ले के लड़के चाचा कहते थे, तरुन और बल्लू दोनो बड़े गहरे दोस्त थे। कई चालू लड़कियाँ भी उनकी दोस्त थीं जिन्हें दोनो साथ साथ चोदते थे।
उन्हीं में एक मोना नाम की लड़की थी। स्कूल बस में आते जाते; लड़कों के कंधों की रगड़ खा खा कर मोना को पता ही नही चला की कब कुल्हों और छातियो पर चर्बी चढ़ गयी.. जवानी चढ़ते ही मोना के नितंब बीच से एक फाँक निकाले हुए गोल तरबूज की तरह उभर गये. मोना की छाती पर भगवान के दिए दो अनमोल 'फल' भी अब 'अमरूदों' से बढ़कर मोटे मोटे 'बेलों' जैसे हो गये थे । मोना के गोरे चिट्टे बदन पर उस छोटी सी खास जगह को छोड़कर कहीं बालों का नामो-निशान तक नही था.. हलके हलके रोयें मोना की बगल में भी थे. इसके अलावा गर्दन से लेकर पैरों तक वो एकदम चिकनी थी. लड़कों को ललचाई नज़रों से अपनी छाती पर झूल रहे ' बेलों ' को घूरते देख मोना की जांघों के बीच छिपी बैठी हल्के हल्के बालों वाली, मगर चिकनाहट से भरी तितली के पंख फड़फड़ाने लगते और बेलों पर गुलाबी रंगत के 'अनार दाने' तन कर खड़े हो जाते.
दरअसल उसे अपने उन्मुक्त उरोजों को किसी मर्यादा में बाँध कर रखना कभी नही सुहाया और ना ही उनको चुन्नी से पर्दे में रखना. मौका मिलते ही ब्रा को जानबूझ कर बाथरूम की खूँटी पर ही टाँग जाती और मनचले लड़कों को अपने इर्द गिर्द मंडराते देख मज़े लेती.. अक्सर जान बूझ अपने हाथ ऊपर उठा अंगड़ाई सी लेती और बेल तन कर झूलने से लगते, उस वक़्त मोना के सामने खड़े लड़कों की हालत खराब हो जाती... कुछ तो अपने होंटो पर ऐसे जीभ फेरने लगते मानो मौका मिलते ही मुँह मार देंगे.
उसे पूरी उम्मीद थी तरुन पढ़ाने ज़रूर आयेगा । इसीलिए रगड़ रगड़ कर नहाते हुए मोना ने खेत की मिट्टी अपने बदन से उतारी और नयी नवेली कच्छी पहन ली जो उसकी मम्मी 2-4 दिन पहले ही बाजार से लाई थी," पता नही मोना! तेरी उमर में तो मैं कच्छी पहनती भी नही थी. तेरी इतनी जल्दी कैसे खराब हो जाती है" उसकी मम्मी ने लाकर देते हुए कहा था. मोना ने स्कूल वाली स्कर्ट डाली और बिना ब्रा के शर्ट पहन कर बाथरूम से बाहर आ गयी.
“निकम्मी! ये हिलते हैं तो तुझे शर्म नही आती?" उसकी मम्मी की इस बात को मोना ने नज़रअंदाज किया और अपना बैग उठा सीढ़ियों से नीचे उतरती चली गयी.
लड़के ने घर में घुस कर आवाज़ दी. उसे पता था कि घर में कोई नही है. फिर भी वो कुछ ना बोली. दर-असल पढ़ने का मन था ही नही, इसीलिए सोने का बहाना किए पड़ी रही. मोना के पास आते ही वो फिर बोला
"मोना!"
उसने 2-3 बार आवाज़ दी. पर उसे नही उठना था सो नही उठी. हाए ऱाम! वो तो अगले ही पल लड़कों वाली औकात पर आ गया. सीधा नितंबों पर हाथ लगाकर हिलाया,"मोना.. उठो ना! पढ़ना नही है क्या?"
बेशर्मी से वो चारपाई पर उसके सामने पसर गयी और एक टाँग सीधी किए हुए दूसरी घुटने से मोड़ अपनी छाती से लगा ली. सीधी टाँग वाली चिकनी जाँघ तो उसे ऊपर से ही दिखाई दे रही थी.. उसको क्या क्या दिख रहा होगा, आप खुद ही सोच लो.
"ठीक से बैठ जा! अब पढ़ना शुरू करेंगे.. " हरामी ने मोना की जन्नत की ओर देखा तक नही। एक डेढ़ घंटे में जाने कितने ही सवाल निकाल दिए उसने, मोना की समझ में तो खाक भी नही आया.. कभी उसके चेहरे पर मुस्कुराहट को कभी उसकी पॅंट के मर्दाने उभार को देखती रही।
पढ़ते हुए उसका ध्यान एक दो बार मोना की चूचियो की और हुआ तो उसे लगा कि वो 'उभारों' का दीवाना है. मोना ने झट से उसकी सुनते सुनते अपनी शर्ट का बीच वाला एक बटन खोल दिया.
मोना की गदराई हुई चूचियाँ, जो शर्ट में घुटन महसूस कर रही थी; रास्ता मिलते ही सरक कर साँस लेने के लिए बाहर झाँकने लगी.. दोनो में बाहर निकलने की मची होड़ का फायदा उनके बीच की गहरी घाटी को हो रहा था, और वह बिल्कुल सामने थी.
तरुण ने जैसे ही इस बार उससे पूछने के लिए मोना की और देखा तो उसका चेहरा एकदम लाल हो गया.. हड़बड़ाते हुए उसने कहा," बस! आज इतना ही..
वो थक जाने का अभिनय कर के लेट गई। वो एक बार बाहर की तरफ़ गया मोना समझी कमबखत सारी मेहनत को मिट्टी में मिला के जा रहा है । पर वो बाहर नज़र मार कर वापस आ ग़या और मोना के नितंबों से थोड़ा नीचे उससे सटकर चारपाई पर ही बैठ गया.
वो मुँह नीचे किताब पर देख रही थी पर उसे यकीन था कि वो चोरी चोरी मोना के बदन की मांसल बनावट का ही लुत्फ़ उठा रहा होगा!
"मोना!"
इस बार थोड़ी तेज बोलते हुए उसने मोना के घुटनों तक के लहँगे से नीचे मोना की नंगी गुदाज पिंडलियों पर हाथ रखकर उसे हिलाया और सरकते हुए अपना हाथ मोना के घुटनो तक ले गया. अब उसका हाथ नीचे और लहंगा ऊपर था.
उससे अब सहन करना मुश्किल हो रहा था. पर शिकार हाथ से निकलने का डर था. चुप्पी साधे उसको जल्द से जल्द अपने पिंजरे में लाने के लिए दूसरी टाँग घुटनो से मोड़ और अपने पेट से चिपका ली. इसके साथ ही स्कर्ट ऊपर सरकता गया और मोना की एक जाँघ काफ़ी ऊपर तक नंगी हो गयी. मोना ने देखा नही, पर मोना की कच्छी तक आ रही बाहर की ठंडी हवा से उसे लग रहा था कि उसको मोना की कच्छी का रंग दिखने लगा है.
"मोना" इस बार उसकी आवाज़ में कंपकपाहट सी थी.. वो शायद! एक बार खड़ा हुआ और फिर बैठ गया.. शायद स्कर्ट उसके नीचे फँसा हुआ होगा. वापस बैठते ही उसने स्कर्ट को ऊपर पलट कर मोना की कमर पर डाल दिया..
उसका क्या हाल हुआ होगा ये तो पता नही. पर मोना की बुर में बुलबुले से उठने शुरू हो चुके थे. जब सहन करने की हद पार हो गयी तो अपना हाथ मूडी हुई टाँग के नीचे से ले जाकर अपनी कच्छी में उंगलियाँ डाल 'वहाँ' खुजली करने करने के बहाने उसको कुरेदने लगी. मोना का ये हाल था तो उसका क्या हो रहा होगा? सुलग गया होगा ना?
मोना ने हाथ वापस खींचा तो अहसास हुआ जैसे मोना की बुर की एक फाँक कच्छी से बाहर ही रह गयी है.
वो तो मोना की उम्मीद से भी ज़्यादा शातिर निकला. अपना हाथ स्कर्ट के नीचे सरकते हुए मोना के चूतड़ों पर ले गया....
कच्छी के ऊपर थिरकती हुई उसकी उंगलियों ने तो मोना की जान ही निकल दी. कसे हुए मोना के चिकने चूतड़ों पर धीरे धीरे मंडराता हुआ उसका हाथ कभी 'इसको' कभी उसको दबा कर देखता रहा. मोना की चूचियाँ चारपाई में दबकर छॅट्पटेने लगी थी. मोना ने बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू पाया हुआ था..
अचानक उसने मोना के स्कर्ट को वापस ऊपर उठाया और धीरे से अपनी एक उंगली कच्छी में डाल दी.. धीरे धीरे उंगली सरकती हुई पहले नितंबों की दरार में घूमी और फिर नीचे आने लगी.. मोना ने दम साध रखा था.. पर जैसे ही उंगली मोना की 'फूल्कुन्वरि' की फांकों के बीच आई; वो उच्छल पड़ी.. और उसी पल उसका हाथ वहाँ से हटा और चारपाई का बोझ कम हो गया..
मोना की छोटी सी मछ्ली तड़प उठी. उसे फ़िर लगा, मौका हाथ से गया.. पर इतनी आसानी से वो भी हार मान'ने वालों में से नही हूँ... सीधी हो मोना ने अपनी जांघें घुटनों से पूरी तरह मोड़ कर एक दूसरी से विपरीत दिशा में फैला दी. अब स्कर्ट मोना के घुटनो से ऊपर था और उसे विश्वास था कि मोना की भीगी हुई कच्छी के अंदर बैठी 'छम्मक छल्लो' ठीक उसके सामने होगी.
थोड़ी देर और यूँही बड़बड़ाते हुए मैं चुप हो कर पढ़ने का नाटक करने लगी. अचानक उसे कमरे की चिट्कनी बंद होने की आवाज़ आई. अगले ही पल वह वापस चारपाई पर ही आकर बैठ गया.. धीरे धीरे फिर से रेंगता हुआ उसका हाथ वहीं पहुँच गया. मोना की चूत के ऊपर से उसने कच्छी को सरककर एक तरफ कर दिया. मोना ने हल्की सी आँखें खोलकर देखा. उसने चस्मा नही पहना हुआ था. शायद उतार कर एक तरफ रख दिया होगा. वह आँखें फ़ाड़ मोना की फड़कती हुई बुर को ही देख रहा था. उसके चेहरे पर उत्तेजना के भाव अलग ही नज़र आ रहे थे..
अचानक उसने अपना चेहरा उठाया तो मोना ने अपनी आँखें पूरी तरह बंद कर ली. उसके बाद तो उसने उसे हवा में ही उड़ा दिया. चूत की दोनो फांकों पर उसे उसके दोनो हाथ महसूस हुए. बहुत ही करीब उसने अपने अंगूठे और उंगलियों से पकड़ कर मोटी मोटी फांकों को एक दूसरी से अलग कर दिया. जाने क्या ढूँढ रहा था वह अंदर. पर जो कुछ भी कर रहा था, उससे सहन नही हुआ और मोना ने काँपते हुए जांघें भींच कर अपना पानी छोड़ दिया.. पर आश्चर्यजनक ढंग से इस बार उसने अपने हाथ नही हटाए...
किसी कपड़े से (शायद मोना के स्कर्ट से ही) उसने चूत को साफ़ किया और फिर से मोना की चूत को चौड़ा कर लिया. पर अब झाड़ जाने की वजह से उसे नॉर्मल रहने में कोई खास दिक्कत नही हो रही थी. हाँ, मज़ा अब भी आ रहा था और मैं पूरा मज़ा लेना चाहती थी.
अगले ही पल उसे गरम साँसें चूत में घुसती हुई महसूस हुई और पागल सी होकर मोना ने वहाँ से अपने आपको उठा लिया.. मोना ने अपनी आँखें खोल कर देखा. उसका चेहरा मोना की चूत पर झुका हुआ था.. मैं अंदाज़ा लगा ही रही थी कि उसे पता चल गया कि वो क्या करना चाहता है. अचानक वो मोना की चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा.. मोना के सारे बदन में झुरझुरी सी उठ गयी..इस आनंद को सहन ना कर पाने के कारण मोना की सिसकी निकल गयी और मैं अपने नितंबों को उठा उठा कर पटक'ने लगी...पर अब वो डर नही रहा था... मोना की जांघों को उसने कसकर एक जगह दबोच लिया और मोना की चूत के अंदर जीभ डाल दी..
"अयाया!" बहुत देर से दबाए रखा था इस सिसकी को.. अब दबी ना रह सकी.. मज़ा इतना आ रहा था की क्या बताउ... सहन ना कर पाने के कारण मोना ने अपना हाथ वहाँ ले जाकर उसको वहाँ से हटाने की कोशिश की तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया," कुछ नही होता मोना.. बस दो मिनिट और!" कहकर उसने मोना की जांघों को मोना के चेहरे की तरफ धकेल कर वहीं दबोच लिया और फिर से जीभ के साथ मोना की चूत की गहराई मापने लगा...
फिर क्या था.. उसने चेहरा ऊपर करके मुस्कुराते हुए मोना की और देखा.. उसका उतावलापन देख तो मोना की हँसी छूट गयी.. इस हँसी ने उसकी झिझक और भी खोल दी.. झट से उसे पकड़ कर नीचे उतारा और घुटने ज़मीन पर टिका उसे कमर से ऊपर चारपाई पर लिटा दिया..," ये क्या कर रहे हो?"
"टाइम नही है अभी बताने का.. बाद में सब बता दूँगा.. कितनी रसीली है तू हाए.. अपने चूतड़ थोड़ा ऊपर कर ले.."
"पर कैसे करूँ?..
दर असल मोना के तो घुटने ज़मीन पर टिके हुए थे
"तू भी ना.. !" उसको गुस्सा सा आया और मोना की एक टाँग चारपाई के ऊपर चढ़ा दी.. नीचे तकिया रखा और उसे अपना पेट वहाँ टिका लेने को बोला.. मोना ने वैसा ही किया..
"अब उठाओ अपने चूतड़ ऊपर.. जल्दी करो.." बोलते हुए उसने अपना मूसल जैसा लण्ड पॅंट में से निकाल लिया..
मोना अपने नितंबों को ऊपर उठाते हुए अपनी चूत को उसके सामने परोसा ।
तभी दरवाजे पे दस्तक हुई और उसने नज़रें चुराकर एक बार और मोना की गोरी चूचियो को देखा और खड़ा हो गया....
उसकी मम्मी अन्दर आई और उसे साथ ले गईं।
मोना कमरे से बाहर आयी । मम्मी के कमरे के पास से निकलते हुए उसने अन्दर से आती आवाज सुनी-
"तुमने दरवाजे पर दस्तक दे कर सब गड़बड़ की है इसे अब तुम ही निबटाओ। 15 मिनिट से ज़्यादा नही लगाऊँगा..... मान भी जा चाची अब....
मोना ने झाँका भ्रम टूट गया.. नीचे अंधेरा था.. पर बाहर स्ट्रीट लाइट होने के कारण धुँधला धुँधला दिखाई दे रहा था...
"पापा तो इतने लंबे हैं ही नही..!" मोना ने मॅन ही मॅन सोचा...
वो उसकी मम्मी को दीवार से चिपकाए उस'से सटकार खड़ा था.. उसकी मम्मी अपना मौन विरोध अपने हाथों से उसको पिछे धकेलने की कोशिश करके जाता रही थी...
"देख चाची.. उस दिन भी तूने उसे ऐसे ही टरका दिया था.. मैं आज बड़ी उम्मीद के साथ आया हूँ... आज तो तुझे देनी ही पड़ेगी..!" वो बोला.....
"तुम पागल हो गये हो क्या तरुन? ये भी कोई टाइम है...तेरा चाचा जान से मार देगा..... तुम जल्दी से 'वो' काम बोलो जिसके लिए तुम्हे इस वक़्त आना ज़रूरी था.. और जाओ यहाँ से...!" उसकी मम्मी फुसफुसाई...
"काम बोलने का नही.. करने का है चाची.. इस्शह.." सिसकी सी लेकर वो वापस उसकी मम्मी से चिपक गया...
"नही.. जाओ यहाँ से... अपने साथ उसे भी मरवाओगे..." उसकी मम्मी की खुस्फुसाहट भी उनकी सुरीली आवाज़ के कारण साफ़ समझ में आ रही थी....
"वो लुडरू मेरा क्या बिगाड़ लेगा... तुम तो वैसे भी मरोगी अगर आज मेरा काम नही करवाया तो... मैं कल चाचाको बता दूँगा की मैने तुम्हे बाजरे वाले खेत में अनिल के साथ पकड़ा था...." तरुन हँसने लगा....
"मैं... मैं मना तो नही कर रही तरुन... कर लूँगी.. पर यहाँ कैसे करूँ... तेरी दादी लेटी हुई है... उठ गयी तो?" उसकी मम्मी ने घिघियाते हुए विरोध करना छोड़ दिया....
"क्या बात कर रही हो चाची? इस बुधिया को तो दिन में भी दिखाई सुनाई नही देता कुछ.. अब अंधेरे में इसको क्या पता लगेगा..."
तरुन सच कर रहा था....
"पर छोटी भी तो यहीं है... मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ..." मोना की मम्मी गिड़गिडाई...
" आज तो वो ये सुपाड़ा ले के बड़ी हो गई होती अगर तुम गड़बड़ न करतीं..... किसी को नही बताएगी... अब देर मत करो.. जितनी देर करोगी.. तुम्हारा ही नुकसान होगा... मेरा तो खड़े खड़े ही निकलने वाला है... अगर एक बार निकल गया तो आधे पौने घंटे से पहले नही छूटेगा.. पहले बता रहा हूँ..."
"तुम परसों खेत में आ जाना.. तेरे चाचा को शहर जाना है... मैं अकेली ही जाउन्गी..
समझने की कोशिश करो तरुन..मैं कहीं भागी तो नही जा रही....."उसकी मम्मी ने फिर उसको समझाने की कोशिश की....
क्रमश:…………………
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -1
चचा-भतीजा
तरुन 17 साल का छोकरा था उसका लण्ड हरदम खड़ा रहता था कुदरत ने उसके लण्ड में बड़ी ताकत भर दी है साला बड़ी मुश्किल से शांत होता था। पड़ोस में एक बल्लू नाम का जवान रहता था उन्हें तरुन और पूरे मुहल्ले के लड़के चाचा कहते थे, तरुन और बल्लू दोनो बड़े गहरे दोस्त थे। कई चालू लड़कियाँ भी उनकी दोस्त थीं जिन्हें दोनो साथ साथ चोदते थे।
उन्हीं में एक मोना नाम की लड़की थी। स्कूल बस में आते जाते; लड़कों के कंधों की रगड़ खा खा कर मोना को पता ही नही चला की कब कुल्हों और छातियो पर चर्बी चढ़ गयी.. जवानी चढ़ते ही मोना के नितंब बीच से एक फाँक निकाले हुए गोल तरबूज की तरह उभर गये. मोना की छाती पर भगवान के दिए दो अनमोल 'फल' भी अब 'अमरूदों' से बढ़कर मोटे मोटे 'बेलों' जैसे हो गये थे । मोना के गोरे चिट्टे बदन पर उस छोटी सी खास जगह को छोड़कर कहीं बालों का नामो-निशान तक नही था.. हलके हलके रोयें मोना की बगल में भी थे. इसके अलावा गर्दन से लेकर पैरों तक वो एकदम चिकनी थी. लड़कों को ललचाई नज़रों से अपनी छाती पर झूल रहे ' बेलों ' को घूरते देख मोना की जांघों के बीच छिपी बैठी हल्के हल्के बालों वाली, मगर चिकनाहट से भरी तितली के पंख फड़फड़ाने लगते और बेलों पर गुलाबी रंगत के 'अनार दाने' तन कर खड़े हो जाते.
दरअसल उसे अपने उन्मुक्त उरोजों को किसी मर्यादा में बाँध कर रखना कभी नही सुहाया और ना ही उनको चुन्नी से पर्दे में रखना. मौका मिलते ही ब्रा को जानबूझ कर बाथरूम की खूँटी पर ही टाँग जाती और मनचले लड़कों को अपने इर्द गिर्द मंडराते देख मज़े लेती.. अक्सर जान बूझ अपने हाथ ऊपर उठा अंगड़ाई सी लेती और बेल तन कर झूलने से लगते, उस वक़्त मोना के सामने खड़े लड़कों की हालत खराब हो जाती... कुछ तो अपने होंटो पर ऐसे जीभ फेरने लगते मानो मौका मिलते ही मुँह मार देंगे.
उसे पूरी उम्मीद थी तरुन पढ़ाने ज़रूर आयेगा । इसीलिए रगड़ रगड़ कर नहाते हुए मोना ने खेत की मिट्टी अपने बदन से उतारी और नयी नवेली कच्छी पहन ली जो उसकी मम्मी 2-4 दिन पहले ही बाजार से लाई थी," पता नही मोना! तेरी उमर में तो मैं कच्छी पहनती भी नही थी. तेरी इतनी जल्दी कैसे खराब हो जाती है" उसकी मम्मी ने लाकर देते हुए कहा था. मोना ने स्कूल वाली स्कर्ट डाली और बिना ब्रा के शर्ट पहन कर बाथरूम से बाहर आ गयी.
“निकम्मी! ये हिलते हैं तो तुझे शर्म नही आती?" उसकी मम्मी की इस बात को मोना ने नज़रअंदाज किया और अपना बैग उठा सीढ़ियों से नीचे उतरती चली गयी.
लड़के ने घर में घुस कर आवाज़ दी. उसे पता था कि घर में कोई नही है. फिर भी वो कुछ ना बोली. दर-असल पढ़ने का मन था ही नही, इसीलिए सोने का बहाना किए पड़ी रही. मोना के पास आते ही वो फिर बोला
"मोना!"
उसने 2-3 बार आवाज़ दी. पर उसे नही उठना था सो नही उठी. हाए ऱाम! वो तो अगले ही पल लड़कों वाली औकात पर आ गया. सीधा नितंबों पर हाथ लगाकर हिलाया,"मोना.. उठो ना! पढ़ना नही है क्या?"
बेशर्मी से वो चारपाई पर उसके सामने पसर गयी और एक टाँग सीधी किए हुए दूसरी घुटने से मोड़ अपनी छाती से लगा ली. सीधी टाँग वाली चिकनी जाँघ तो उसे ऊपर से ही दिखाई दे रही थी.. उसको क्या क्या दिख रहा होगा, आप खुद ही सोच लो.
"ठीक से बैठ जा! अब पढ़ना शुरू करेंगे.. " हरामी ने मोना की जन्नत की ओर देखा तक नही। एक डेढ़ घंटे में जाने कितने ही सवाल निकाल दिए उसने, मोना की समझ में तो खाक भी नही आया.. कभी उसके चेहरे पर मुस्कुराहट को कभी उसकी पॅंट के मर्दाने उभार को देखती रही।
पढ़ते हुए उसका ध्यान एक दो बार मोना की चूचियो की और हुआ तो उसे लगा कि वो 'उभारों' का दीवाना है. मोना ने झट से उसकी सुनते सुनते अपनी शर्ट का बीच वाला एक बटन खोल दिया.
मोना की गदराई हुई चूचियाँ, जो शर्ट में घुटन महसूस कर रही थी; रास्ता मिलते ही सरक कर साँस लेने के लिए बाहर झाँकने लगी.. दोनो में बाहर निकलने की मची होड़ का फायदा उनके बीच की गहरी घाटी को हो रहा था, और वह बिल्कुल सामने थी.
तरुण ने जैसे ही इस बार उससे पूछने के लिए मोना की और देखा तो उसका चेहरा एकदम लाल हो गया.. हड़बड़ाते हुए उसने कहा," बस! आज इतना ही..
वो थक जाने का अभिनय कर के लेट गई। वो एक बार बाहर की तरफ़ गया मोना समझी कमबखत सारी मेहनत को मिट्टी में मिला के जा रहा है । पर वो बाहर नज़र मार कर वापस आ ग़या और मोना के नितंबों से थोड़ा नीचे उससे सटकर चारपाई पर ही बैठ गया.
वो मुँह नीचे किताब पर देख रही थी पर उसे यकीन था कि वो चोरी चोरी मोना के बदन की मांसल बनावट का ही लुत्फ़ उठा रहा होगा!
"मोना!"
इस बार थोड़ी तेज बोलते हुए उसने मोना के घुटनों तक के लहँगे से नीचे मोना की नंगी गुदाज पिंडलियों पर हाथ रखकर उसे हिलाया और सरकते हुए अपना हाथ मोना के घुटनो तक ले गया. अब उसका हाथ नीचे और लहंगा ऊपर था.
उससे अब सहन करना मुश्किल हो रहा था. पर शिकार हाथ से निकलने का डर था. चुप्पी साधे उसको जल्द से जल्द अपने पिंजरे में लाने के लिए दूसरी टाँग घुटनो से मोड़ और अपने पेट से चिपका ली. इसके साथ ही स्कर्ट ऊपर सरकता गया और मोना की एक जाँघ काफ़ी ऊपर तक नंगी हो गयी. मोना ने देखा नही, पर मोना की कच्छी तक आ रही बाहर की ठंडी हवा से उसे लग रहा था कि उसको मोना की कच्छी का रंग दिखने लगा है.
"मोना" इस बार उसकी आवाज़ में कंपकपाहट सी थी.. वो शायद! एक बार खड़ा हुआ और फिर बैठ गया.. शायद स्कर्ट उसके नीचे फँसा हुआ होगा. वापस बैठते ही उसने स्कर्ट को ऊपर पलट कर मोना की कमर पर डाल दिया..
उसका क्या हाल हुआ होगा ये तो पता नही. पर मोना की बुर में बुलबुले से उठने शुरू हो चुके थे. जब सहन करने की हद पार हो गयी तो अपना हाथ मूडी हुई टाँग के नीचे से ले जाकर अपनी कच्छी में उंगलियाँ डाल 'वहाँ' खुजली करने करने के बहाने उसको कुरेदने लगी. मोना का ये हाल था तो उसका क्या हो रहा होगा? सुलग गया होगा ना?
मोना ने हाथ वापस खींचा तो अहसास हुआ जैसे मोना की बुर की एक फाँक कच्छी से बाहर ही रह गयी है.
वो तो मोना की उम्मीद से भी ज़्यादा शातिर निकला. अपना हाथ स्कर्ट के नीचे सरकते हुए मोना के चूतड़ों पर ले गया....
कच्छी के ऊपर थिरकती हुई उसकी उंगलियों ने तो मोना की जान ही निकल दी. कसे हुए मोना के चिकने चूतड़ों पर धीरे धीरे मंडराता हुआ उसका हाथ कभी 'इसको' कभी उसको दबा कर देखता रहा. मोना की चूचियाँ चारपाई में दबकर छॅट्पटेने लगी थी. मोना ने बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू पाया हुआ था..
अचानक उसने मोना के स्कर्ट को वापस ऊपर उठाया और धीरे से अपनी एक उंगली कच्छी में डाल दी.. धीरे धीरे उंगली सरकती हुई पहले नितंबों की दरार में घूमी और फिर नीचे आने लगी.. मोना ने दम साध रखा था.. पर जैसे ही उंगली मोना की 'फूल्कुन्वरि' की फांकों के बीच आई; वो उच्छल पड़ी.. और उसी पल उसका हाथ वहाँ से हटा और चारपाई का बोझ कम हो गया..
मोना की छोटी सी मछ्ली तड़प उठी. उसे फ़िर लगा, मौका हाथ से गया.. पर इतनी आसानी से वो भी हार मान'ने वालों में से नही हूँ... सीधी हो मोना ने अपनी जांघें घुटनों से पूरी तरह मोड़ कर एक दूसरी से विपरीत दिशा में फैला दी. अब स्कर्ट मोना के घुटनो से ऊपर था और उसे विश्वास था कि मोना की भीगी हुई कच्छी के अंदर बैठी 'छम्मक छल्लो' ठीक उसके सामने होगी.
थोड़ी देर और यूँही बड़बड़ाते हुए मैं चुप हो कर पढ़ने का नाटक करने लगी. अचानक उसे कमरे की चिट्कनी बंद होने की आवाज़ आई. अगले ही पल वह वापस चारपाई पर ही आकर बैठ गया.. धीरे धीरे फिर से रेंगता हुआ उसका हाथ वहीं पहुँच गया. मोना की चूत के ऊपर से उसने कच्छी को सरककर एक तरफ कर दिया. मोना ने हल्की सी आँखें खोलकर देखा. उसने चस्मा नही पहना हुआ था. शायद उतार कर एक तरफ रख दिया होगा. वह आँखें फ़ाड़ मोना की फड़कती हुई बुर को ही देख रहा था. उसके चेहरे पर उत्तेजना के भाव अलग ही नज़र आ रहे थे..
अचानक उसने अपना चेहरा उठाया तो मोना ने अपनी आँखें पूरी तरह बंद कर ली. उसके बाद तो उसने उसे हवा में ही उड़ा दिया. चूत की दोनो फांकों पर उसे उसके दोनो हाथ महसूस हुए. बहुत ही करीब उसने अपने अंगूठे और उंगलियों से पकड़ कर मोटी मोटी फांकों को एक दूसरी से अलग कर दिया. जाने क्या ढूँढ रहा था वह अंदर. पर जो कुछ भी कर रहा था, उससे सहन नही हुआ और मोना ने काँपते हुए जांघें भींच कर अपना पानी छोड़ दिया.. पर आश्चर्यजनक ढंग से इस बार उसने अपने हाथ नही हटाए...
किसी कपड़े से (शायद मोना के स्कर्ट से ही) उसने चूत को साफ़ किया और फिर से मोना की चूत को चौड़ा कर लिया. पर अब झाड़ जाने की वजह से उसे नॉर्मल रहने में कोई खास दिक्कत नही हो रही थी. हाँ, मज़ा अब भी आ रहा था और मैं पूरा मज़ा लेना चाहती थी.
अगले ही पल उसे गरम साँसें चूत में घुसती हुई महसूस हुई और पागल सी होकर मोना ने वहाँ से अपने आपको उठा लिया.. मोना ने अपनी आँखें खोल कर देखा. उसका चेहरा मोना की चूत पर झुका हुआ था.. मैं अंदाज़ा लगा ही रही थी कि उसे पता चल गया कि वो क्या करना चाहता है. अचानक वो मोना की चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा.. मोना के सारे बदन में झुरझुरी सी उठ गयी..इस आनंद को सहन ना कर पाने के कारण मोना की सिसकी निकल गयी और मैं अपने नितंबों को उठा उठा कर पटक'ने लगी...पर अब वो डर नही रहा था... मोना की जांघों को उसने कसकर एक जगह दबोच लिया और मोना की चूत के अंदर जीभ डाल दी..
"अयाया!" बहुत देर से दबाए रखा था इस सिसकी को.. अब दबी ना रह सकी.. मज़ा इतना आ रहा था की क्या बताउ... सहन ना कर पाने के कारण मोना ने अपना हाथ वहाँ ले जाकर उसको वहाँ से हटाने की कोशिश की तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया," कुछ नही होता मोना.. बस दो मिनिट और!" कहकर उसने मोना की जांघों को मोना के चेहरे की तरफ धकेल कर वहीं दबोच लिया और फिर से जीभ के साथ मोना की चूत की गहराई मापने लगा...
फिर क्या था.. उसने चेहरा ऊपर करके मुस्कुराते हुए मोना की और देखा.. उसका उतावलापन देख तो मोना की हँसी छूट गयी.. इस हँसी ने उसकी झिझक और भी खोल दी.. झट से उसे पकड़ कर नीचे उतारा और घुटने ज़मीन पर टिका उसे कमर से ऊपर चारपाई पर लिटा दिया..," ये क्या कर रहे हो?"
"टाइम नही है अभी बताने का.. बाद में सब बता दूँगा.. कितनी रसीली है तू हाए.. अपने चूतड़ थोड़ा ऊपर कर ले.."
"पर कैसे करूँ?..
दर असल मोना के तो घुटने ज़मीन पर टिके हुए थे
"तू भी ना.. !" उसको गुस्सा सा आया और मोना की एक टाँग चारपाई के ऊपर चढ़ा दी.. नीचे तकिया रखा और उसे अपना पेट वहाँ टिका लेने को बोला.. मोना ने वैसा ही किया..
"अब उठाओ अपने चूतड़ ऊपर.. जल्दी करो.." बोलते हुए उसने अपना मूसल जैसा लण्ड पॅंट में से निकाल लिया..
मोना अपने नितंबों को ऊपर उठाते हुए अपनी चूत को उसके सामने परोसा ।
तभी दरवाजे पे दस्तक हुई और उसने नज़रें चुराकर एक बार और मोना की गोरी चूचियो को देखा और खड़ा हो गया....
उसकी मम्मी अन्दर आई और उसे साथ ले गईं।
मोना कमरे से बाहर आयी । मम्मी के कमरे के पास से निकलते हुए उसने अन्दर से आती आवाज सुनी-
"तुमने दरवाजे पर दस्तक दे कर सब गड़बड़ की है इसे अब तुम ही निबटाओ। 15 मिनिट से ज़्यादा नही लगाऊँगा..... मान भी जा चाची अब....
मोना ने झाँका भ्रम टूट गया.. नीचे अंधेरा था.. पर बाहर स्ट्रीट लाइट होने के कारण धुँधला धुँधला दिखाई दे रहा था...
"पापा तो इतने लंबे हैं ही नही..!" मोना ने मॅन ही मॅन सोचा...
वो उसकी मम्मी को दीवार से चिपकाए उस'से सटकार खड़ा था.. उसकी मम्मी अपना मौन विरोध अपने हाथों से उसको पिछे धकेलने की कोशिश करके जाता रही थी...
"देख चाची.. उस दिन भी तूने उसे ऐसे ही टरका दिया था.. मैं आज बड़ी उम्मीद के साथ आया हूँ... आज तो तुझे देनी ही पड़ेगी..!" वो बोला.....
"तुम पागल हो गये हो क्या तरुन? ये भी कोई टाइम है...तेरा चाचा जान से मार देगा..... तुम जल्दी से 'वो' काम बोलो जिसके लिए तुम्हे इस वक़्त आना ज़रूरी था.. और जाओ यहाँ से...!" उसकी मम्मी फुसफुसाई...
"काम बोलने का नही.. करने का है चाची.. इस्शह.." सिसकी सी लेकर वो वापस उसकी मम्मी से चिपक गया...
"नही.. जाओ यहाँ से... अपने साथ उसे भी मरवाओगे..." उसकी मम्मी की खुस्फुसाहट भी उनकी सुरीली आवाज़ के कारण साफ़ समझ में आ रही थी....
"वो लुडरू मेरा क्या बिगाड़ लेगा... तुम तो वैसे भी मरोगी अगर आज मेरा काम नही करवाया तो... मैं कल चाचाको बता दूँगा की मैने तुम्हे बाजरे वाले खेत में अनिल के साथ पकड़ा था...." तरुन हँसने लगा....
"मैं... मैं मना तो नही कर रही तरुन... कर लूँगी.. पर यहाँ कैसे करूँ... तेरी दादी लेटी हुई है... उठ गयी तो?" उसकी मम्मी ने घिघियाते हुए विरोध करना छोड़ दिया....
"क्या बात कर रही हो चाची? इस बुधिया को तो दिन में भी दिखाई सुनाई नही देता कुछ.. अब अंधेरे में इसको क्या पता लगेगा..."
तरुन सच कर रहा था....
"पर छोटी भी तो यहीं है... मैं तेरे हाथ जोड़ती हूँ..." मोना की मम्मी गिड़गिडाई...
" आज तो वो ये सुपाड़ा ले के बड़ी हो गई होती अगर तुम गड़बड़ न करतीं..... किसी को नही बताएगी... अब देर मत करो.. जितनी देर करोगी.. तुम्हारा ही नुकसान होगा... मेरा तो खड़े खड़े ही निकलने वाला है... अगर एक बार निकल गया तो आधे पौने घंटे से पहले नही छूटेगा.. पहले बता रहा हूँ..."
"तुम परसों खेत में आ जाना.. तेरे चाचा को शहर जाना है... मैं अकेली ही जाउन्गी..
समझने की कोशिश करो तरुन..मैं कहीं भागी तो नही जा रही....."उसकी मम्मी ने फिर उसको समझाने की कोशिश की....
क्रमश:…………………
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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -2
चचा भतीजा
" तुम्हे मैं ही मिला हूँ क्या? चूतिया बनाने के लिए... बल्लू बता रहा था कि उसने तुम्हारी उसके बाद भी 2 बार मारी है... और मुझे हर बार टरका देती हो... परसों की परसों देखेंगे.... अब तो मोना के लिए तो एक एक पल काटना मुश्किल हो रहा है.. तुम्हे नही पता चाची.. तुम्हारे भारी चूतड़ देख देख कर ही जवान हुआ हूँ.. हमेशा से सपना देखता था कि किसी दिन तुम्हारी चिकनी जांघों को सहलाते हुए तुम्हारी रसीली चूत चाटने का मौका मिले.. और तुम्हारे मोटे मोटे चूतड़ों की कसावट को मसलता हुआ तुम्हारी चूत में उंगली डाल कर देखूं.. सच कहता हूँ, आज अगर तुमने मुझे अपनी मारने से रोका तो या तो मैं नही रहूँगा... या तुम नही रहोगी.. लो पकड़ो इस्सको..."
उनकी हरकतें इतनी साफ़ दिखाई नही दे रही थी... पर ये ज़रूर साफ़ दिख रहा था कि दोनो आपस में गुत्थम गुत्था हैं... मैं आँखें फ़ाडे ज़्यादा से ज़्यादा देखने की कोशिश करती रही....
"ये तो बहुत बड़ा है... मैंने तो आज तक किसी का ऐसा नही देखा...." उसकी मम्मी ने कहा....
"बड़ा है चाची तभी तो तुम्हे ज़्यादा मज़ा आएगा... चिंता ना करो.. मैं इस तरह करूँगा कि तुम्हे सारी उमर याद रहेगा... वैसे चाचा का कितना है?" तरुन ने खुश होकर कहा.. वह पलट कर खुद दीवार से लग गया था और मोना की मम्मी की कमर उसकी तरफ कर दी थी........
"धीरे बोलो......" उसकी मम्मी उसके आगे घुटनो के बल बैठ गयी... और कुछ देर बाद बोली," उनका तो पूरा खड़ा होने पर भी इस'से आधा रहता है.. सच बताउ? उनका आज तक मेरी चूत के अंदर नही झड़ा..." मोना की मम्मी भी उसकी तरह गंदी गंदी बातें करने लगी.. वो हैरान थी.. पर उसे मज़ा आ रहा था..
"वाह चाची... फिर ये गोरी चिकनी दो फूल्झड़ियाँ और वो लट्तू कहाँ से पैदा कर दिया.." तरुन ने पूछा... पर मोना की समझ में कुछ नही आया था....
"सब तुम जैसों की दया है... मेरी मजबूरी थी...मैं क्या यूँही बेवफा हो गयी...?"
कहने के बाद उसकी मम्मी ने कुछ ऐसा किया की तरुन उच्छल पड़ा....
"आआआअहह... ये क्या कर रही हो चाची... मारने का इरादा है क्या?" तरुन हल्का सा तेज बोला.....
"क्या करूँ ?इतना बड़ा देख शरारात करने को मन किया । मरोड़ दूँ थोड़ा सा!" उसके साथ ही उसकी मम्मी भद्दे से तरीके से हँसी.....
उसे आधी अधूरी बातें समझ आ रही थी... पर उनमें भी मज़ा इतना आ रहा था कि मोना ने अपना हाथ अपनी जांघों के बीच दबा लिया.... और अपनी जांघों को एक दूसरी से रगड़ने लगी... उस वक़्त उसे नही पता था कि उसे ये क्या हो रहा है.......
अचानक घर के आगे से एक ट्रॅक्टर गुजरा... उसकी रोशनी कुछ पल के लिए घर में फैल गयी.. उसकी मम्मी डर कर एक दम अलग हट गयी.. पर मोना ने जो कुछ देखा, रोम रोम रोमांचित हो गया...
तरुन का लण्ड गधे के की तरह भारी भरकम, भयानक और काला कलूटा था...वो साँप की तरह सामने की और अपना फन सा फैलाए सीधा खड़ा था... "क्या हुआ? हट क्यूँ गयी चाची.. कितना मज़ा आ रहा है.. तरुन ने उसकी मम्मी को पकड़ कर अपनी और खींच लिया....
"कुछ नही.. एक मिनिट.... लाइट ऑन कर लूँ । बिना देखे उतना मज़ा नही आ रहा... " उसकी मम्मी ने खड़े होकर कहा...
"कोई दिक्कत नही है... तुम अपनी देख लो चाची...!" तरुन ने कहा....
"एक मिनिट...!" कहकर मोना की मम्मी घुटनो के बल बैठ तरुन का भयानक लण्ड अपने हाथ में पकड़ कर अपनी चूत से रगड़ने लगी।
तरुन खड़ा खड़ा सिसकारियाँ भरते हुए पपीते जैसी बड़ी बड़ी चूचियाँ पकड़कर दबाते और मुँह मारते हुए तरह तरह की आवाजें निकाल रहा था.. और मोना की मम्मी बार बार नीचे देख कर मुस्कुरा रही थी... तरुन की आँखें पूरी तरह बंद थी...
"ओहूँऊ... इष्ह... मेरा निकल जाएगा...!" तरुन की टाँगें काँप उठी... पर उसकी मम्मी बार बार ऊपर नीचे नीचे ऊपर अपनी चूत से रगड़ती रही.. तरुन का पूरा लण्ड उसकी मम्मी के रस से गीला होकर चमकने लगा था..
"तुम्हारे पास कितना टाइम है?" उसकी मम्मी ने लण्ड को हाथ से सहलाते हुए पूछछा....
"मेरे पास तो पूरी रात है चाची... क्या इरादा है?" तरुन ने साँस भर कर कहा...
"तो निकल जाने दो..." उसकी मम्मी ने कहा और लण्ड के सुपाड़े को अपनी चूत से रगड़ अपने हाथ को लण्ड पर...तेज़ी से आगे पीछे करने लगी...
अचानक तरुन ने अपने घुटनो को थोड़ा सा मोड़ा तरुन का लण्ड गाढ़े वीर्य की पिचकारियाँ सी छोड़ रहा था.. ..
"कमाल का लण्ड है तुम्हारा... उसे पहले पता होता तो मैं कभी तुम्हे ना तड़पाती..."
मोना की मम्मी ने सिर्फ़ इतना ही कहा और तरुन की शर्ट से लण्ड को साफ़ करने लगी.....
"अब मेरी बारी है... कपड़े निकाल दो..." तरुन ने मोना की मम्मी को खड़ा करके उनके नितंब अपने हाथों में पकड़ लिए....
"तुम पागल हो क्या? परसों को में सारे निकाल दूँगी... आज सिर्फ़ लहंगा नीचे करके 'चोद' ले..." उसकी मम्मी ने नाड़ा ढीला करते हुए कहा...
"मन तो कर रहा है चाची कि तुम्हे अभी नंगी करके खा जाऊँ! पर अपना वादा याद रखना... परसों खेत वाला..." तरुन ने कहा और उसकी मम्मी को झुकाने लगा.. पर उसकी मम्मी तो जानती थी... हल्का सा इशारा मिलते ही उसकी मम्मी ने उल्टी होकर झुकते हुए अपनी कोहानिया फर्श पर टिका ली और घुटनो के बल होकर जांघों को खोलते हुए अपने नितंबों को ऊपर उठा लिया...
तरुन मोना की मम्मी का दीवाना यूँ ही नही था.. ना ही उसने मोना की मम्मी की झूठी तारीफ़ की थी... आज भी मोना की मम्मी जब चलती हैं तो देखने वाले देखते रह जाते हैं.. चलते हुए मोना की मम्मी के भारी नितंब ऐसे थिरकते हैं मानो नितंब नही कोई तबला हो जो हल्की सी ठप से ही पूरा काँपने लगता है... कटोरे के आकर के दोनो बड़े बड़े नितंबों का उठान और उनके बीच की दरार; सब कातिलाना थे...मोना की मम्मी के कसे हुए शरीर की दूधिया रंगत और उस पर उनकी कातिल आदयें; कौन ना मर मिटे!
खैर, मोना की मम्मी के कोहनियों और घुटनो के बल झुकते ही तरुन उनके पीछे बैठ गया... अगले ही पल उसने मोना की मम्मी के नितंबों पर थपकी मार कर लहंगा और पॅंटी को नीचे खींच दिया. इसके साथ ही तरुन के मुँह से लार टपक गयी वो बड़े बड़े चूतड़ों पर मुँह मारते हुए,बोला-
" क्या मस्त गोरे गुदगुदे कसे हुए चूतड़ हैं चाची..!"
कहते हुए वो अपने दोनो हाथ मोना की मम्मी के नितंबों पर चिपका कर उन्हे सहलाने और मुँह मारने लगा...
मोना की मम्मी उससे 90 डिग्री पर झुकी हुई थी, इसीलिए उसे उनके ऊँचे उठे हुए एक नितंब के अलावा कुछ दिखाई नही दे रहा था.. पर मैं टकटकी लगाए तमाशा देखती रही.....
"हाए चाची! तेरी चूत कितनी रसीली है अभी तक... इसको तो बड़े प्यार से ठोकना पड़ेगा... पहले थोड़ी चूस लूँ..." उसने कहा और मोना की मम्मी के नितंबों के बीच अपना चेहरा डाल दिया.... मोना की मम्मी सिसकते हुए अपने नितंबों को इधर उधर हटाने की कोशिश करने लगी...
"आअय्यीश्ह्ह्ह...अब और मत तडपा तरुन..आआअहह.... चूत तैयार है.. अब ठोक भी दे न अंदर!"
"ऐसे कैसे ठोक दूँ अंदर चाची...? अभी तो पूरी रात पड़ी है...." तरुन ने चेहरा उठाकर कहा और फिर से जीभ निकाल कर चेहरा मोना की मम्मी की जांघों में डाल दिया...
"समझा कर तरुन... आआहह...फर्श चुभ रहा है... थोड़ी जल्दी कर..!" मोना की मम्मी ने अपना चेहरा बिल्कुल फर्श से सटा लिया.. उनके 'दूध' फर्श पर ठीक गये....," अच्च्छा.. एक मिनिट... खड़ी होने दे...!"
मोना की मम्मी के कहते ही तरुन ने अच्छे बच्चे की तरह उन्हें छोड़ दिया... और मोना की मम्मी ने खड़े होकर मोना की तरफ मुँह कर लिया...
जैसे ही तरुन ने मोना की मम्मी का लहंगा ऊपर उठाया.. उनकी पूरी जांघें और उनके बीच छोटे छोटे गहरे काले बालों वाली मोटी चूत की फाँकें मोना के सामने आ गयी... तरुन घुटने टेक कर मोना की मम्मी के सामने मोना की तरफ पीठ करके बैठ गया और उनकी चूत मोना की नज़रों से छिप गयी... अगले ही पल मोना की मम्मी आँखें बंद करके सिसकने लगी... उनके मुँह से अजीब सी आवाज़ें आ रही थी...
वो हैरत से सब कुछ देख रही थी...
"बस-बस... मुझसे खड़ा नही रहा जा रहा तरुन... दीवार का सहारा लेने दो..",
मोना की मम्मी ने कहा और साइड में होकर दीवार से पीठ सटा कर खड़ी हो गयी... उन्होने अपने एक पैर से लहंगा बिल्कुल निकाल दिया । तरुन के सामने बैठते ही अपनी नंगी टाँग उठाकर तरुन के कंधे पर रख दी..
अब तरुन का चेहरा और मोना की मम्मी की चूत आमने सामने दिखाई दे रहे थे..
तरुन ने अपनी जीभ बाहर निकाली और मोना की मम्मी की चूत में घुसेड़ दी.. मोना की मम्मी पहले की तरह ही सिसकने लगी... मोना की मम्मी ने तरुन का सिर कसकर पकड़ रखा था और वो अपनी जीभ को कभी अंदर बाहर और कभी ऊपर नीचे कर रहा था...
अंजाने में ही मोना के हाथ अपनी कच्छी में चले गये.. मोना ने देखा; उसकी चूत भी चिपचिपी सी हो रही है..
तभी तरुन के कंधे से पैर हटाने के चक्कर में मोना की मम्मी लड़खड़ा कर गिरने ही वाली थीं कि अचानक पीछे से कोई आया और मोना की मम्मी को अपनी बाहों में भरकर झटके से उठाया और बेड पर ले जाकार पटक दिया.. मोना की तो कुछ समझ में ही नही आया..
मोना की मम्मी ने चिल्लाने की कोशिश की तो उनके ऊपर सवार हो गया और मुँह दबाकर बोला,
" मैं हूँ भाभी.. पता है कितने दिन इंतजार किया हैं खेत में..." फिर तरुन की और देखकर बोला,"क्या यार? तू भी अकेला चला आया उसे नहीं बुलाया.."
उसने अपना चेहरा तरुन की और घुमाया, तब मोना ने उन्हे पहचाना.. वो बल्लू चाचा थे... घर के पास ही उनका घर था.. पेशे से डॉक्टर(बलदेव)...मोना की मम्मी की ही उमर के होंगे... अब तो मोना के बर्दास्त की हद पार हो गई और वो दौड़कर बिस्तर पर चाचा को धक्का देकर उनके ऊपर चढ़ के अपनी मम्मी से कहने लगी,-
" मम्मी ! मेरे पास से तो तरुन को खींच लाईं। अब तुम ये क्या कर रही हो दो दो के साथ। तुम्हारी को दो दो मुझे एक भी नहीं?"
अचानक उसे देख कर वो सकपका गये,
" तू यहीं है छोटी तू.. तू जाग रही है?"
मैं बोली,-
" मैं छोटी नहीं हूँ।”
मोना की मम्मी शर्मिंदा सी होकर बैठ गयी,
" ये सब क्या है? जा यहाँ से.. अभी तू छोटी है और तरुन की और घूरने लगी...
मोना बोली,-
" नहीं मम्मी ! मैं छोटी नहीं हूँ । पूछो तरुन भैया से ।”
तरुन खिसिया कर हँसने लगा...
“हाँ चाची! ये ठीक कहती है आज मैंने सुपाड़ा डाला ही दिया होता अगर तुम न आ गयीं होतीं।”
“चाची! मेरी मानो तो एतिहात के तौर पर इसे मुझसे नही, क्योंकि मेरा ज्यादा बड़ा है और मै थोड़ा अनाड़ी भी हूं.. इसको बल्लू चाचा से चुदवा दें उनका मुझसे छोटा भी है.. और वे माहिर खिलाड़ी भी हैं । ”
तरुन ने कहा और सरक कर मोना की मम्मी के पास बैठ गया.... मोना की मम्मी अब दोनो के बीच बैठी थी...
बल्लू चहक कर-
"ठीक है आ जा बेटी.. अपने बल्लू चाचा की गोद में बैठ.. "
मोना की मम्मी ने हालात की गंभीरता को समझते हुए मोना की तरफ़ देखकर हाँ मैं सिर हिलाया और वो खुशी खुशी अपने दोनो कटोरे के आकर के दूधिया रंग के बड़े बड़े चूतड़ों को बल्लू चाचा की गोद में रख कर बैठ गयी....
वो लोग भी इंतजार करने के मूड में नहीं लग रहे थे.. बल्लू ने मोना की दोनों बगलों से हाथ डालकर मोना की चूचियों को दबोच लिया.. मोना ने गोद में बैठकर अपने बड़े बड़े चूतड़ों के बीच की नाली में उनका लण्ड फ़ँसा रखा था। उनका गरम सुपाड़ा मोना की कच्छी के ऊपर से प्यासी कुवाँरी बुर से टकरा कर उसे गर्मा रहा था । धीरे धीरे उसका हाथ रेंगता हुआ मोना की बुर पर पहुँच गया. उन्होंने मोना की बुर के ऊपर से कच्छी को सरकाकर एक तरफ कर दिया. चूत की दोनो फांकों पर उसे उनका हाथ महसूस हुआ. मोना ने उसने सिसकारी भरी...
उन्होंने अपने अंगूठे और उंगलियों से पकड़ कर मोटी मोटी फांकों को एक दूसरी से अलग की और पुत्तियाँ टटोलने लगे मोना की बुर बुरी तरह से गीली हो रही थी ।
इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स चाचा !!!
उसने काँपते हुए जांघें भींच लीं.
"नीचे से दरवाजा बंद है ना?" तरुन ने चाचा से पूछा और मोना की मम्मी की टाँगों के बीच बैठ गया...
"सब कुछ बंद है यार.. आजा.. अब इनकी खोल.."
चाचा ने मोना की कमीज़ के बटन खोल डाले और मोना के दोनो गुलाबी बेल उछ्लकर बाहर निकल आये.... चाचा मोना की दोनो चूचियों को दबा रहे थे और घुण्डियों को मसल मसल के चूस रहे थे और फ़िर मोना के निचले होंट को मुँह में लेकर चूसने लगे...
तरुन ने मोना की मम्मी का ब्लाउज खींच कर उनकी ब्रा से ऊपर कर उतार दिया और लहंगे का नारा खींचने लगा....कुछ ही देर बाद उन दोनों ने मोना और मोना की मम्मी को पूरी तरह नंगा कर दिया.. मोना की मम्मी नंगी होकर और भी मारू लग रही थी.. उनकी चिकनी चिकनी लंबी मोटी मोटी मांसल जांघें.. उनकी छोटे छोटे काले बालों में छिपी चूत.. उनका कसा हुआ पेट और सीने पर थिरक रही बड़ी बड़ी चूचियाँ सब कुछ बड़ा प्यारा था...
तरुन मोना की मम्मी की मोटी मोटी जांघों के बीच झुक गया और उनकी जांघों को ऊपर हवा में उठा दिया.. फिर एक बार मोना की तरफ मुड़कर मुस्कुराया और मोना की मम्मी की चूत को लपर लपर चाटने लगा....
मोना की मम्मी बुरी तरह सीसीया उठी और अपने नितंबों को उठा उठा कर पटकने लगी..
करीब 4-5 मिनिट तक ऐसे ही चलता रहा... तभी अचानक चाचा ने अपने अंगूठे और उंगलियों से मोना की बुर की मोटी मोटी फांकों को पकड़ कर एक दूसरी से अलग कर बोला मोना के होठों को अपने होठों से आजाद कर बोले, " बेटा तेरी बुर बुरी तरह से गीली हो रही है लगता है बुर की सील टूट के चूत बनने को बिलकुल तैयार है शुरू करें बेटा..?"
तरुन ने जैसे ही चेहरा ऊपर उठाया, उसे मोना की मम्मी की चूत दिखाई दी.. तरुन के थूक से वो अंदर तक सनी पड़ी थी.. और चूत के बीच की पत्तियाँ अलग अलग होकर फांकों से चिपकी हुई थी.. मोना की जांघों के बीच भी खलबली सी मची हुई थी...
"पर थोड़ी देर और रुक जा यार!.. चाची की चूत बहुत मीठी है..."
तरुन ने कहा और अपनी पैंट निकाल दी.. तरुन का कच्छा सीधा ऊपर उठा हुआ था ।
तरुन वापस झुक गया और मोना की मम्मी की चूत को फिर से चाटने लगा... उसका भारी भरकम लण्ड अपने आप ही उसके कच्छे से बाहर निकल आया और मोना की आँखों के सामने रह रह कर झटके मार रहा था...
चाचा ने मोना की और देखा तो मोना ने शर्मा कर अपनी नज़रें झुका ली.... अब चाचा ने उसे धीरे से लिटा दिया और मोना की पावरोटी सी बुर से कच्छी उतार दी फ़िर ढेर साड़ी क्रीम अपने लण्ड के सुपाड़े पर और मोना की बुर पर थोप दी। अपने अंगूठे और उंगलियों से मोना की बुर की मोटी मोटी फांकों को पकड़ कर एक दूसरी से अलग कर अपने लण्ड का सुपाड़ा मोना की पावरोटी सी बुर पर रखा। मोना के मुँह से सिसकारी निकल गई।
“इ्स्स्स्स्सइम्म्म्म”
अब चाचा थोड़ी आगे झुके और मोना के बायें बेल पर लगे गुलाबी रंगत के 'अनार दाने' के (निप्पल) को मुँह में दबा कर चूसते हुए धक्का मारा... पक की आवाज के साथ सुपाड़ा अन्दर चला गया।
“आअअअअअअ~आह”
क्रमश:…………………