उसने कहा- कुछ देर रुको न.. तुम्हारी बुर का गर्म अहसास बहुत अच्छा लगा रहा है, तुम्हारी बुर बहुत गर्म और कोमल है।
मैंने उसे यूँ ही कुछ देर लेटा रहने दिया फिर उसे उठाया और अपनी बुर साफ़ की और कपड़े ठीक करके सो गई।
अगले दिन सुबह हेमा काफी उदास सी लग रही थी, मैंने उससे पूछा भी कि क्या हुआ पर उसने कुछ नहीं बताया।
शाम को बहुत जोर दिया तो उसने कहा- मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई।
मैंने उससे पूछा- क्या गलती हुई?
तो वो रोते हुए बोली- मैंने अपनी सीमाएं लांघ दीं और रात को कृपा के साथ सम्भोग कर लिया जो मुझे नहीं करना चाहिए था, मैं बहक गई थी।
मैंने उसे धीरज देते हुए कहा- इसमें गलती क्या है तुम दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हो और शादी नहीं कर सकते, पर जरूरी नहीं कि शादी किया तो ही पति-पत्नी बन के रहो। तुम दिल से अगर उसे चाहती हो तो वो बिना किसी नियम-कानून के तुम्हारा पति है और अगर तुमने उसके साथ सम्भोग कर लिया तो कोई बड़ी बात नहीं है।
मेरी बात सुन कर उसे बहुत राहत मिली और वो पहले से ज्यादा खुश दिखने लगी। मुझे भी बहुत अच्छा लगा कि इतने सालों के बाद वो खुश थी।
पर उसके मन में एक और बात थी जो उसे परेशान कर रही थी और वो ये बात कि उसने इतना जोखिम उठा कर उसके साथ सम्भोग किया पर संतुष्टि नहीं हुई।
हम दोनों जानते थे कि कृपा ने कभी पहले सम्भोग नहीं किया होगा, तभी ऐसा हुआ है। पर हेमा को सिर्फ इस बात की चिंता थी कि ऐसा मौका फिर दुबारा मिलेगा या नहीं..!
रात होते-होते मैंने उससे पूछा- क्या आज भी तुम दोनों सम्भोग करोगे क्या?
उसने जवाब दिया- पता नहीं, और फ़ायदा भी नहीं है करके!
मैंने उससे पूछा- क्यों?
उसने तब बता दिया- फ़ायदा क्या.. वो तो करके सो जाता है.. मैं तड़पती रह जाती हूँ..!
मैंने तब उसे पूछा- अच्छा.. ऐसा क्यों?
तब उसने खुल कर कह दिया- वो जल्दी झड़ जाता है!
मैंने तब उसे कहा- नया है.. समय दो, कुछ दिन में तुम्हें थका देगा!
और मैं जोर से हँसने लगी।
मेरी बातें सुन कर उसने भी मुझे छेड़ते हुए कहा- पुराने प्यार के बगल में तो तू भी थी क्या तुम थक गई थी क्या?
मैं डर गई कि कहीं उसने मेरे और सुरेश के बीच में जो हुआ वो देख तो नहीं लिया था। सो घबरा कर बोली- पागल है क्या तू?
पर कुछ ही देर में मुझे अहसास हो गया कि वो अँधेरे में तीर चला रही थी, पर मैं बच गई।
रात को फिर हम छत पर उसी तरह सोने चले गए।
हेमा ने मुझे चुपके से कान में कहा- तू सो जा..जल्दी।
तब मैंने उससे पूछा- क्यों?
तो उसने मुझे इशारे से कहा- हम दोनों सम्भोग करना चाहते हैं।
तब मैंने उसे बता दिया कि मैंने कल रात उनको सब कुछ करते देख लिया था और आज भी देखूंगी!
पर वो मुझे जिद्द करने लगी कि नहीं, तो मैं चुपचाप सोने का नाटक करने लगी।
इधर सुरेश भी मेरे लिए तैयार था, वो भी मुझे चुपके-चुपके मेरे जिस्म को छूता और सहलाता, पर मैं मना कर देती, क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि हेमा और कृपा को कुछ पता चले। क्योंकि मैं पहले से शादीशुदा थी।
काफी रात हो चुकी थी, पर हेमा और कृपा अब भी चुपचाप थे। मैं सोच रही थी कि आखिर क्या हुआ इनको.. क्योंकि मैं खुद उनके सोने का इंतजार कर रही थी।
काफी देर बाद मैं पेशाब करने उठी मेरे पीछे हेमा भी चली आई और कहा- तुम सोई क्यों नहीं अब तक?
मैंने उससे कहा- नींद नहीं आ रही क्या करूँ, तुम जो मर्ज़ी चाहे करो मैं किसी को बताउंगी नहीं..!
तब उसने कहा- इतनी बेशर्म समझा है मुझे तूने?
मैंने उससे तब कहा- कल रात शर्म नहीं आई करने में… मेरे बगल में.. आज आ रही है..!
तब उसने मुझसे विनती करनी शुरू कर दी। मैंने भी उसे कहा- नीद आ गई तो ठीक है वरना मैं कुछ नहीं कर सकती। इस पर वो मुँह बनाती हुई चली गई और लेट गई। मैं भी वापस आकर लेट गई और सोने की कोशिश करने लगी। यह सोच कर कि हेमा इतने दिनों के बाद खुश है, क्यों बेचारी को परेशान करूँ।
पर पता नहीं मुझे नींद नहीं आ रही थी। जब भी नींद आने को होती तो कृपा के हेमा के ऊपर हरकत से तो कभी सुरेश की हरकत से उठ जाती।
तभी हेमा मेरी तरफ मुड़ी और मेरे कान में फुसफुसा कर बोली- सोती क्यों नहीं.. तुझे भी कुछ करना है क्या?
मैंने उससे कहा- पागल है क्या, अब नींद नहीं आ रही तो मैं क्या करूँ, मैं तेरी बैचैनी समझ सकती हूँ।
तब उसने कहा- मुझे पता है तू भी सुरेश के साथ कुछ करने के लिए बेताब है।
मैंने उसे कहा- तेरा दिमाग खराब है, अगर तुझे करना है कर, वरना मेरे सोने का इंतज़ार कर।
तब उसने कहा- मुझे पता है कल रात तूने भी सुरेश के साथ क्या किया, कृपा ने मुझे बता दिया सब।
मैं उसकी बात सुन कर हैरान हो गई कि आखिर उसे कैसे पता चला..!
मैंने तुरत पलट कर सुरेश की तरफ देखा तो उसने खुद ही कह दिया कि उसने आज सुबह कृपा को बता दिया था।
मुझे बहुत गुस्सा आया और चुपचाप सोने चली गई।
पर कुछ देर में सुरेश ने मेरे बदन को सहलाना शुरू कर दिया, पर मैं उसे बार-बार खुद से दूर कर देती।
तब उसने कहा- देखो हम सब अच्छे दोस्त हैं और एक-दूसरे के बारे में सब पता है। फिर किस बात का डर है.. हम जो भी करेंगे वो हमारे बीच ही रहेगा।
उसके काफी समझाने के बाद पता नहीं मेरा भी मन बदल गया और फिर उसके साथ चूमने-चूसने में व्यस्त हो गई और भूल गई कि बगल में हेमा और कृपा भी हैं।
उधर हेमा और कृपा भी अपने में मग्न हो गए। मुझे सुरेश ने आज इतना गर्म कर दिया कि मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब नंगी हो गई।
रात के अँधेरे में कुछ पता तो नहीं चल रहा था पर नंगे होने की वजह से गर्मी में बड़ी राहत थी।
हम दोनों इधर अपनी चुदाई में मग्न थे उधर हेमा और कृपा अपनी तान छेड़ रहे थे।
जब हम दोनों झड़ कर अलग हुए, तो मैंने देखा कि हेमा और कृपा हम दोनों को देख रहे हैं।
मुझे बड़ी शर्म सी आई, पर तभी सुरेश ने कहा- तुम दोनों का बहुत जल्दी हो गया क्या बात है?
इस पर हेमा भी थोड़ी शरमा गई।
मैंने गौर किया तो देखा कि हेमा भी पूरी तरह नंगी है और मेरी तरह खुद को अपनी साड़ी से छुपा रही है।
वैसे मैं और हेमा तो चुप थीं पर कृपा और सुरेश आपस में बातें कर रहे थे।
सुरेश ने मुझे चुपके से कहा- हेमा संतुष्ट नहीं है, मैं हेमा को चोदना चाहता हूँ।
मुझे गुस्सा लगा कि यह क्या बोल रहा है, पर मैं इससे पहले कुछ कह पाती उसने हेमा से खुद ही पूछ लिया और ताज्जुब तो तब हुआ जब हेमा ने ‘हाँ’ कर दी।
पर मैं जानती थी कि हेमा क्यों तैयार हो गई, सो उसकी खुशी के लिए चुपचाप रही।
कृपा भी मान जाएगा ऐसा सोचा नहीं था, पर मुझे इससे कोई लेना-देना नहीं था, क्योंकि लोगों को अपनी जिंदगी जीने का अधिकार होता है।
हेमा मेरी जगह पर आ गई और सुरेश से चिपक गई और फिर उनका खेल शुरू हो गया। उन दोनों ने बड़े प्यार से एक-दूसरे को चूमना शुरू कर दिया और अंगों से खेलने लगे।
हेमा ने सुरेश का लिंग बहुत देर तक हाथ से हिला कर खड़ा किया इस बीच सुरेश उसके स्तनों और चूतड़ों को दबाया और चूसता रहा।
फिर हेमा को अपने ऊपर चढ़ा लिया और उसे कहा- हेमा.. लण्ड को बुर में घुसा लो।
हेमा ने हाथ नीचे ले जाकर उसके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि में घुसा लिया फिर धक्के लगाने शुरू कर दिए।
इधर मैं और कृपा उनको देखे जा रहे थे और हम दोनों अभी भी नंगे थे। कृपा हेमा और सुरेश की चुदाई देखने के लिए मेरे करीब आ गया जिससे उसका बदन मेरे बदन से छुए जा रहा था। मेरा पीठ कृपा की तरफ थी और वो मेरे पीछे मुझसे सटा हुआ था।
मैंने महसूस किया कि कृपा का लिंग मेरे चूतड़ों से रगड़ खा रहा है और धीरे-धीरे खड़ा होने लगा। उसका लिंग काफी मोटा था और मुझे भी हेमा और सुरेश की चुदाई देख कर फिर से सम्भोग की इच्छा होने लगी थी।
मैंने कृपा से कहा- ये क्या कर रहे हो?
उ
सने कहा- मुझे फिर से चोदने का मन हो रहा है।
मैंने तब कहा- मन कर रहा है तो क्या हुआ, हेमा को तुमने किसी और के साथ व्यस्त कर दिया अब इंतज़ार करो।
तब उसने कहा- वो व्यस्त है पर तुम तो नहीं हो..!
मैंने कहा- क्या बकवास कर रहे हो, तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो?
उसने कहा- प्लीज.. इसमें कैसी शर्म.. हम सब एक ही हैं, मजे लेने में क्या जाता है, हम हमेशा थोड़े साथ रहेंगे।
मैंने कुछ देर सोचा फिर दिमाग में आया कि कृपा कुछ गलत नहीं कह रहा और फिर मेरे मन में उसके लिंग का ख़याल भी आया।
सो मैंने उसको ‘हाँ’ कह दी और उसका लिंग पकड़ लिया।
सच में उसका लिंग काफी मोटा था, लम्बा ज्यादा नहीं था। पर मोटाई इतनी कि मेरी जैसी दो बच्चों की माँ को भी रुला दे।
उसने मेरी योनि को हाथ से सहलाना शुरू कर दिया। फिर कुछ देर मैंने भी उसके लिंग को हाथ से हिलाया और उसे अपने ऊपर आने को कहा।
उधर हेमा सुरेश के लिंग पर बैठ मस्ती में सिसकारी भरती हुई मजे से सवारी किए जा रही थी।
कृपा अब मेरे ऊपर आ चुका था मैंने अपनी दोनों टाँगें फैला कर उसे बीच में लिया और वो मेरे ऊपर अपना पूरा वजन देकर लेट गया।
उसने मेरे स्तनों को चूसना शुरू कर दिया और मैंने उसके लिंग को पकड़ के अपनी योनि में रगड़ने लगी।
थोड़ी देर रगड़ने के बाद मैंने उसे अपनी योनि के छेद पर टिका कर कहा- धकेलो।
उसने जैसे ही धकेला मैं दर्द से कराह उठी, मेरी आवाज सुनकर हेमा और सुरेश रुक गए और हेमा ने कहा- क्या हुआ, बहुत मोटा है न..!
मैंने खीसे दिखाते हुए हेमा को कहा- तू चुपचाप चुदा, मुझे कुछ नहीं हुआ।
मैंने कृपा को पकड़ कर अपनी और खींचा और अपनी टाँगें उसके जाँघों के ऊपर रख दिया और कहा- चोदो..!
कृपा ने धक्के देने शुरू कर दिए, कुछ देर के बाद मुझे सहज लगने लगा और मैं और भी उत्तेजित होने लगी। उधर सुरेश ने हेमा को नीचे लिटा दिया और अब उसके ऊपर आकर उसे चोदने लगा।
कृपा ने भी अब धक्के दे कर मेरी योनि को चोदना शुरू कर दिया, मुझे शुरू में ऐसा लग रहा था जैसे मेरी योनि फ़ैल गई हो, क्योंकि जब जब वो धक्के देता मेरी योनि में दोनों तरफ खिंचाव सा लगता और दर्द होता, पर कुछ देर के बाद उसका लिंग मेरी योनि में आराम से घुसने लगा।
थोड़ी देर में हेमा की आवाजें निकालने लगी और वो सुरेश से विनती करने लगी- बस.. सुरेश हो गया, बस करो.. छोड़ दो..!’
सुरेश सब कुछ अनसुना करते हुए हेमा को बुरी तरह से धक्के देकर चोद रहा था। हेमा झड़ चुकी थी, पर सुरेश ने उसे ऐसे पकड़ रखा था कि हेमा कहीं जा नहीं सकती थी और उसे जोरों से धक्के देते हुए चोदे जा रहा था।
‘बस.. हेमा.. थोड़ी देर और बस.. मेरा निकलने वाला है..!’
हेमा बार-बार कह रही थी- प्लीज.. सुरेश छोड़ दो न.. दर्द हो रहा है… मार डालोगे क्या… क्या करते हो.. कितना जोर से चोद रहे हो..!’
इधर कृपा मुझे चोद रहा था और मुझे भी अब मजा आने लगा था, पर मेरी उत्तेजना अभी आधे रास्ते पर ही थी कि कृपा झटके देते हुए मेरे ऊपर गिर गया।
उसने अपना लावा मेरी योनि में उगल दिया और शांत हो गया।
मैं अब भी प्यासी थी, पर हेमा और सुरेश अब भी चुदाई किए जा रहे थे और हेमा विनती पे विनती किए जा रही थी।
सो मैंने सुरेश से कहा- छोड़ दो सुरेश वो मना कर रही है तो..!
सुरेश ने कहा- बस थोड़ी देर और..!
मैंने तब सुरेश से कहा- ठीक है मेरे ऊपर आ जाओ।
उसने कहा- नहीं.. बस हो गया..!
तब तक तो हेमा फिर से गर्म हो गई, उसका विरोध धीरे-धीरे कम हो गया और उसने अपनी टांगों से सुरेश को जकड़ लिया।
मैं समझ गई कि हेमा अब फिर से झड़ने को है तभी दोनों ने इस तरह एक-दूसरे को पकड़ लिया है जैसे एक-दूसरे में समा जायेंगे। दोनों के होंठ आपस में चिपक गए उनका पूरा बदन शांत था बस कमर हिल रही थीं और जोरदार झटकों के साथ दोनों एक-दूसरे से चिपक कर शांत हो गए, दोनों एक साथ झड़ चुके थे।
कुछ देर बाद सुरेश उठा और हेमा से बोला- मजा आया हेमा?
हेमा ने कहा- हाँ.. बहुत..!
फिर वो दोनों अलग हो गए और हेमा कृपा के बगल में आकर सो गई पर मेरी अग्नि अभी भी भड़क रही थी। सो मैंने सुरेश को कहा- और करना है?
सुरेश ने कहा- कुछ देर के बाद करेंगे।
और फिर हमने फिर से सम्भोग किया। मुझे अपने ऊपर चढ़ा कर मुझे वो चोदता रहा और जब वो झड़ने को हुआ तो मुझे नीचे लिटा कर चोदा। उसके झटके समय के साथ काफी दमदार होते चले जाते थे, जो मुझे दर्द के साथ एक सुख भी देते थे।
सारिका कंवल की जवानी के किस्से
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से
बात दरअसल तब की थी जब हम दोनों खूब मस्ती किया करते थे, उन दिनों तो ऐसा लगने लगा था जैसे अमर ही मेरे पति हैं।
अमर के साथ एक दिन में 11 बार सम्भोग करने के बाद मैं इतनी डर गई थी कि करीब एक महीने में मैंने सिर्फ पति के साथ 3 बार सम्भोग किया।
अमर से तो मैं दूर भागने लगी थी, वो मेरे साथ सहवास करना चाहते तो थे, पर मैं कोई न कोई बहाना बना लेती थी, पर ये सब ज्यादा दिन नहीं चल सका।
मेरी भी अतृप्त प्यास बढ़ने लगी थी जो पति के जल्दी झड़ जाने से अधूरी रह जाती थी।
इस बीच मैंने अमर के साथ फिर से सम्भोग करना शुरू कर दिया, पर उन्हें एक दिन में कभी भी 3 बार से ज्यादा नहीं करने देती थी।
हम अब ज्यादा नहीं मिलते थे बस कभी-कभार छत पर बातें करते या फिर जब सम्भोग करना हो तभी मिलते थे, बाकी समय हम फोन पर ही बातें करते थे। रात को जब पति रात्रि के समय काम पर जाते तो हम करीब 3-4 बजे तक बातें करते रहते।
एक दिन हम यूँ ही अपने पहले सम्भोग के बारे में बातें कर रहे थे, बातों-बातों में प्रथम प्रणय-रात्रि यानि सुहागरात की बात छिड़ गई।
उन्होंने मुझे उनकी इच्छा सुहागरात के समय की बताई कि उन्हें कैसे करना पसंद था, पर वो हो नहीं सका।
वैसे जैसे उन्होंने बताया था वैसा मेरे साथ भी कभी नहीं हुआ था।
तभी उन्होंने कहा- मैं फिर से तुम्हारे साथ सुहागरात जैसा समय बिताना चाहता हूँ।
मैंने भी बातों की भावनाओं में बह कर ‘हाँ’ कह दी।
शुक्रवार का दिन था अमर ने मुझसे कहा- अगर तुम आज रात मेरे कमरे में आ जाओ तो मैं तुम्हें एक तोहफा दूँगा।
मैंने कहा- मैं बच्चों को ऐसे छोड़ कर नहीं आ सकती।
तब उन्होंने कहा- बड़े बेटे को सुला कर छोटे वाले को साथ लेकर आ जाओ।
मैंने उनसे कहा- आप मेरे कमरे में आ जाओ।
पर उन्होंने कहा कि जो वो मुझे देना चाहते हैं वो मेरे कमरे में नहीं हो सकता इसलिए उसके कमरे में जाना होगा।
मैंने बहुत सोचा-विचारा और फिर जाने का फैसला कर लिया। पति रात को खाना खाकर काम पर चले गए और बड़े बेटे को मैंने सुला दिया।
फिर करीब साढ़े दस बजे रात को उनके कमरे में गई, कमरे में जाते ही उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया, फिर मेरे पास आए और कहा- दूसरे कमरे में तुम्हारे लिए कुछ है।
मेरा बच्चा अभी भी सोया नहीं था सो अमर ने उसे गोद में ले लिया और कहा- तुम जाओ, मैं इसे सुला दूँगा।
मैंने बच्चे को उनके हाथ में देकर कमरे के अन्दर चली गई, अन्दर एक दुल्हन का जोड़ा रखा था और बहुत सारे गहने भी थे, मैं समझ गई कि अमर सुहागरात वाली बात को लेकर ये सब कर रहे हैं।
वे कपड़े दिखने में काफी महंगे थे, पर मैंने सोचा कि मेरे लिए इतने सारे गहने वो कहाँ से लाए, पर गौर से देखा तो वो नकली थे, उन पर सोने का पानी चढ़ा हुआ था। सो मुझे थोड़ी राहत हुई कि उन्होंने ज्यादा पैसे बर्बाद नहीं किए।
बगल में श्रृंगार का ढेर सारा सामान रखा था और ख़ास बात यह थी कि सारे कपड़े लाल रंग के थे, लाल साड़ी, लाल ब्लाउज, लाल पेटीकोट, लाल ब्रा, लाल पैंटी और लाल चुनरी।
मैंने पहले कपड़े बदले, फिर श्रृंगार किया, लिपस्टिक लगाई, गालों पर पाउडर और लाली, मांग में सिंदूर, पूरे बदन में परफ्यूम छिड़का।
फिर मैंने जेवर पहने, हाथों में कंगन और चूड़ियाँ, मेरे पूरे बाजू में भर गईं, कानों में झुमके, नाक-कान, माथा, कमर और पैर मेरे सारे अंग गहनों से भर गए थे।
इतने गहने तो मैंने अपनी शादी में भी नहीं पहने थे।
मैंने खुद को आईने में देखा मैं सच में बहुत सुन्दर दिख रही थी, पर मेरे मन में हँसी भी आ रही थी कि एक गतयौवना दुल्हन आज सुहागरात के लिए तैयार है।
मैं बाहर आई तो अमर मुझे देखते ही रह गए, काफी देर मुझे निहारने के बाद उन्होंने मुझसे कहा- तुम दूसरे कमरे में जाओ, वहाँ तुम्हारे लिए दूसरा तोहफा रखा है।
मेरा बच्चा सो गया था, सो मैंने उसे गोद में लिया और उसे उसी कमरे में सुलाने को चली गई।
तब तक अमर ने कहा- अब मैं तैयार होने जा रहा हूँ।
मैं जैसे ही कमरे के अन्दर गई और बत्ती जलाई, मेरा मन ख़ुशी से झूम उठा, कमरा पूरी तरह से सजाया हुआ था और बिस्तर की सजावट का तो कुछ कहना ही नहीं था।
पूरे कमरे में अगरबत्ती की खुश्बू आ रही थी और बिस्तर फूलों से सजाया हुआ था जो सच में किसी भी औरत का दिल जीत ले।
हर एक लड़की चाहती है कि उसकी सुहागरात यादगार हो और उसकी सुहारात की सेज फूलों से सजी हो। मेरी भी यही ख्वाहिश थी, पर वो सब नहीं हो सका था।
ये सब देख कर आज मैं बहुत खुश थी और मैंने दिल ही दिल में अमर को धन्यवाद दिया।
सुहाग की सेज ज्यादा बड़ी नहीं थी, केवल एक आदमी के सोने लायक थी, पर मुझे वो अच्छा लगा क्योंकि ऐसे छोटे पलंग पर एक औरत और मर्द चिपक कर आराम से सो सकते हैं।
दूसरे तरफ एक और बिस्तर था जिस पर मैंने अपने बच्चे को सुला दिया और फिर वापस सेज पर आकर बैठ गई।
बिस्तर को अमर ने गद्देदार बनाया था और दो तकिये भी थे और गुलाब के फूल बिखेरे हुए थे, बिस्तर पर भी खुश्बू का छिड़काव किया था।
बगल में एक मेज थी जिस पर पानी का मग और गिलास था, साथ ही एक छोटे सी प्लेट में चॉकलेट और सुपारी के टुकड़े भी थे।
मैं सब कुछ देख कर बहुत खुश थी और मैंने भी तय कर लिया कि जब अमर ने मेरे लिए इतना कुछ किया है तो आज मैं भी अमर को खुश करने में कोई कमी नहीं रहने दूँगी।
मैं बिस्तर पर घूँघट डाल कर एक नई-नवेली दुल्हन की तरह बैठ गई और अमर का इंतज़ार करने लगी।
थोड़ी देर बाद अमर अन्दर आए और मुझसे आते ही कहा- देखो मुझे… कैसा लग रहा हूँ?
मैंने उनसे कहा- दुल्हन तो घूँघट में है, और यह घूंघट तो दूल्हे को ही उठाना होगा।
मेरी बात सुनकर वो हँसने लगे और फिर मेरे पास आकर मेज पर दूध का गिलास रख दिया फिर मेरे बगल में बैठ गए और मेरा घूँघट उठा दिया।
हम दोनों ने एक-दूसरे को मुस्कुराते हुए देखा।
फिर अमर ने मुझसे कहा- तुम आज बहुत सुन्दर दिख रही हो, एकदम किसी नई-नवेली दुल्हन की तरह।
मैंने उनसे कहा- हाँ.. एक बुड्ढी दुल्हन…
तब उन्होंने कहा- दिल जवान रहता है हमेशा… मुझे तो तुम आज एक 20 साल की कुंवारी दुल्हन लग रही हो, जिसकी मैं आज सील तोडूंगा ।
मैंने उनसे कहा- क्या सील? वो क्या होता है?
तब उन्होंने कहा- सील मतलब योनि की झिल्ली, जिसको नथ उतारना भी कहते हैं।
मैंने तब हँसते हुए कहा- मैं दो बच्चों की माँ हूँ… अब मेरी झिल्ली तो कब की टूट चुकी है।
अमर ने कहा- मुझे पता है, पर मैं बस ऐसे ही कल्पना कर रहा हूँ और वैसे भी ये हमारी असली सुहागरात थोड़े है, बस मस्ती के लिए नाटक ही तो कर रहे हैं।
तब मैंने शरारत करते हुए कहा- अच्छा तब ठीक है, मुझे लगा कि सचमुच की सुहागरात है और हम सच में सम्भोग करेंगे।
तब वो मुझे घूरते हुए बोले- क्या मतलब? सुहागरात का नाटक है, पर सम्भोग तो सच में ही करेंगे न।
मैं उनको और छेड़ते हुए बोली- नहीं जब सुहागरात नाटक है तो सम्भोग का भी नाटक ही करेंगे।
मेरी बात सुनते ही उन्होंने मुझे बिस्तर पर पटक दिया और मेरे ऊपर चढ़ गए और बोले- सच का सम्भोग करेंगे और वैसे भी अब तुम चाहो भी तो नहीं जा सकती… मेरी बाँहें इतनी मजबूत है कि आज मैं जबरदस्ती भी कर सकता हूँ।
मैंने कहा- मेरे साथ जबरदस्ती करोगे… किस हक से?
उन्होंने कहा- आज की रात तुम मेरी दुल्हन हो… मतलब तुम मेरी बीवी हो इसलिए मेरा हक है कि मैं जो चाहूँ, कर सकता हूँ और अब ज्यादा नाटक करोगी तो तुम्हारा बलात्कार भी कर सकता हूँ।
मैंने कहा- अपनी बीवी का कोई बलात्कार करता है क्या?
उन्होंने कहा- क्या करें.. अगर बीवी साथ नहीं देती तो मज़बूरी में करना पड़ेगा।
फिर हम हँसते हुए एक-दूसरे के होंठों को चूमने लगे।
थोड़ी देर बाद अमर ने मुझसे कहा- चलो अब बताओ कि मैं कैसा दिख रहा हूँ
और वो बिस्तर से उठ कर खड़े हो गए।
मैंने देखा कि वो एक धोती और कोट पहने हुए हैं, जो ज्यादातर पुराने जमाने में लोग पहनते थे और वो अच्छे भी दिख रहे थे।
उन्होंने बताया- मैंने धोती नई खरीदी है पर कोट शादी के समय का है।
मैंने उन्हें देख कर फिर से चिढ़ाते हुए कहा- काफी जंच रहे हैं.. मेरे बूढ़े दुल्हे राजा…!
और मैं हँसने लगी।
तब उन्होंने मुझे फिर से बिस्तर पर पटक दिया और कहा- वो तो थोड़ी देर में पता चल जाएगा कि मैं बूढ़ा हूँ या जवान… जब तुम्हारी सिसकारियाँ निकलेगीं।
हमने एक-दूसरे को चूमना शुरू कर दिया, फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने दूध का गिलास लिया और मुझे दिया और बोले- पियो।
मैंने उनसे पहले पीने को कहा उन्होंने एक घूँट पिया फिर गिलास मुझे दिया। मैंने भी एक घूँट पिया, फिर वो पीने लगे इस तरह दूध खत्म हो गया।
दूध खत्म करने के बाद उन्होंने मुझे फिर से चूमना शुरू किया और कहा- अब तुम्हारा दूध पीने की बारी है।
और मेरे स्तनों को दबाने लगे, जिससे मेरा दूध निकल गया और ब्लाउज भीग गया।
अमर के साथ एक दिन में 11 बार सम्भोग करने के बाद मैं इतनी डर गई थी कि करीब एक महीने में मैंने सिर्फ पति के साथ 3 बार सम्भोग किया।
अमर से तो मैं दूर भागने लगी थी, वो मेरे साथ सहवास करना चाहते तो थे, पर मैं कोई न कोई बहाना बना लेती थी, पर ये सब ज्यादा दिन नहीं चल सका।
मेरी भी अतृप्त प्यास बढ़ने लगी थी जो पति के जल्दी झड़ जाने से अधूरी रह जाती थी।
इस बीच मैंने अमर के साथ फिर से सम्भोग करना शुरू कर दिया, पर उन्हें एक दिन में कभी भी 3 बार से ज्यादा नहीं करने देती थी।
हम अब ज्यादा नहीं मिलते थे बस कभी-कभार छत पर बातें करते या फिर जब सम्भोग करना हो तभी मिलते थे, बाकी समय हम फोन पर ही बातें करते थे। रात को जब पति रात्रि के समय काम पर जाते तो हम करीब 3-4 बजे तक बातें करते रहते।
एक दिन हम यूँ ही अपने पहले सम्भोग के बारे में बातें कर रहे थे, बातों-बातों में प्रथम प्रणय-रात्रि यानि सुहागरात की बात छिड़ गई।
उन्होंने मुझे उनकी इच्छा सुहागरात के समय की बताई कि उन्हें कैसे करना पसंद था, पर वो हो नहीं सका।
वैसे जैसे उन्होंने बताया था वैसा मेरे साथ भी कभी नहीं हुआ था।
तभी उन्होंने कहा- मैं फिर से तुम्हारे साथ सुहागरात जैसा समय बिताना चाहता हूँ।
मैंने भी बातों की भावनाओं में बह कर ‘हाँ’ कह दी।
शुक्रवार का दिन था अमर ने मुझसे कहा- अगर तुम आज रात मेरे कमरे में आ जाओ तो मैं तुम्हें एक तोहफा दूँगा।
मैंने कहा- मैं बच्चों को ऐसे छोड़ कर नहीं आ सकती।
तब उन्होंने कहा- बड़े बेटे को सुला कर छोटे वाले को साथ लेकर आ जाओ।
मैंने उनसे कहा- आप मेरे कमरे में आ जाओ।
पर उन्होंने कहा कि जो वो मुझे देना चाहते हैं वो मेरे कमरे में नहीं हो सकता इसलिए उसके कमरे में जाना होगा।
मैंने बहुत सोचा-विचारा और फिर जाने का फैसला कर लिया। पति रात को खाना खाकर काम पर चले गए और बड़े बेटे को मैंने सुला दिया।
फिर करीब साढ़े दस बजे रात को उनके कमरे में गई, कमरे में जाते ही उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया, फिर मेरे पास आए और कहा- दूसरे कमरे में तुम्हारे लिए कुछ है।
मेरा बच्चा अभी भी सोया नहीं था सो अमर ने उसे गोद में ले लिया और कहा- तुम जाओ, मैं इसे सुला दूँगा।
मैंने बच्चे को उनके हाथ में देकर कमरे के अन्दर चली गई, अन्दर एक दुल्हन का जोड़ा रखा था और बहुत सारे गहने भी थे, मैं समझ गई कि अमर सुहागरात वाली बात को लेकर ये सब कर रहे हैं।
वे कपड़े दिखने में काफी महंगे थे, पर मैंने सोचा कि मेरे लिए इतने सारे गहने वो कहाँ से लाए, पर गौर से देखा तो वो नकली थे, उन पर सोने का पानी चढ़ा हुआ था। सो मुझे थोड़ी राहत हुई कि उन्होंने ज्यादा पैसे बर्बाद नहीं किए।
बगल में श्रृंगार का ढेर सारा सामान रखा था और ख़ास बात यह थी कि सारे कपड़े लाल रंग के थे, लाल साड़ी, लाल ब्लाउज, लाल पेटीकोट, लाल ब्रा, लाल पैंटी और लाल चुनरी।
मैंने पहले कपड़े बदले, फिर श्रृंगार किया, लिपस्टिक लगाई, गालों पर पाउडर और लाली, मांग में सिंदूर, पूरे बदन में परफ्यूम छिड़का।
फिर मैंने जेवर पहने, हाथों में कंगन और चूड़ियाँ, मेरे पूरे बाजू में भर गईं, कानों में झुमके, नाक-कान, माथा, कमर और पैर मेरे सारे अंग गहनों से भर गए थे।
इतने गहने तो मैंने अपनी शादी में भी नहीं पहने थे।
मैंने खुद को आईने में देखा मैं सच में बहुत सुन्दर दिख रही थी, पर मेरे मन में हँसी भी आ रही थी कि एक गतयौवना दुल्हन आज सुहागरात के लिए तैयार है।
मैं बाहर आई तो अमर मुझे देखते ही रह गए, काफी देर मुझे निहारने के बाद उन्होंने मुझसे कहा- तुम दूसरे कमरे में जाओ, वहाँ तुम्हारे लिए दूसरा तोहफा रखा है।
मेरा बच्चा सो गया था, सो मैंने उसे गोद में लिया और उसे उसी कमरे में सुलाने को चली गई।
तब तक अमर ने कहा- अब मैं तैयार होने जा रहा हूँ।
मैं जैसे ही कमरे के अन्दर गई और बत्ती जलाई, मेरा मन ख़ुशी से झूम उठा, कमरा पूरी तरह से सजाया हुआ था और बिस्तर की सजावट का तो कुछ कहना ही नहीं था।
पूरे कमरे में अगरबत्ती की खुश्बू आ रही थी और बिस्तर फूलों से सजाया हुआ था जो सच में किसी भी औरत का दिल जीत ले।
हर एक लड़की चाहती है कि उसकी सुहागरात यादगार हो और उसकी सुहारात की सेज फूलों से सजी हो। मेरी भी यही ख्वाहिश थी, पर वो सब नहीं हो सका था।
ये सब देख कर आज मैं बहुत खुश थी और मैंने दिल ही दिल में अमर को धन्यवाद दिया।
सुहाग की सेज ज्यादा बड़ी नहीं थी, केवल एक आदमी के सोने लायक थी, पर मुझे वो अच्छा लगा क्योंकि ऐसे छोटे पलंग पर एक औरत और मर्द चिपक कर आराम से सो सकते हैं।
दूसरे तरफ एक और बिस्तर था जिस पर मैंने अपने बच्चे को सुला दिया और फिर वापस सेज पर आकर बैठ गई।
बिस्तर को अमर ने गद्देदार बनाया था और दो तकिये भी थे और गुलाब के फूल बिखेरे हुए थे, बिस्तर पर भी खुश्बू का छिड़काव किया था।
बगल में एक मेज थी जिस पर पानी का मग और गिलास था, साथ ही एक छोटे सी प्लेट में चॉकलेट और सुपारी के टुकड़े भी थे।
मैं सब कुछ देख कर बहुत खुश थी और मैंने भी तय कर लिया कि जब अमर ने मेरे लिए इतना कुछ किया है तो आज मैं भी अमर को खुश करने में कोई कमी नहीं रहने दूँगी।
मैं बिस्तर पर घूँघट डाल कर एक नई-नवेली दुल्हन की तरह बैठ गई और अमर का इंतज़ार करने लगी।
थोड़ी देर बाद अमर अन्दर आए और मुझसे आते ही कहा- देखो मुझे… कैसा लग रहा हूँ?
मैंने उनसे कहा- दुल्हन तो घूँघट में है, और यह घूंघट तो दूल्हे को ही उठाना होगा।
मेरी बात सुनकर वो हँसने लगे और फिर मेरे पास आकर मेज पर दूध का गिलास रख दिया फिर मेरे बगल में बैठ गए और मेरा घूँघट उठा दिया।
हम दोनों ने एक-दूसरे को मुस्कुराते हुए देखा।
फिर अमर ने मुझसे कहा- तुम आज बहुत सुन्दर दिख रही हो, एकदम किसी नई-नवेली दुल्हन की तरह।
मैंने उनसे कहा- हाँ.. एक बुड्ढी दुल्हन…
तब उन्होंने कहा- दिल जवान रहता है हमेशा… मुझे तो तुम आज एक 20 साल की कुंवारी दुल्हन लग रही हो, जिसकी मैं आज सील तोडूंगा ।
मैंने उनसे कहा- क्या सील? वो क्या होता है?
तब उन्होंने कहा- सील मतलब योनि की झिल्ली, जिसको नथ उतारना भी कहते हैं।
मैंने तब हँसते हुए कहा- मैं दो बच्चों की माँ हूँ… अब मेरी झिल्ली तो कब की टूट चुकी है।
अमर ने कहा- मुझे पता है, पर मैं बस ऐसे ही कल्पना कर रहा हूँ और वैसे भी ये हमारी असली सुहागरात थोड़े है, बस मस्ती के लिए नाटक ही तो कर रहे हैं।
तब मैंने शरारत करते हुए कहा- अच्छा तब ठीक है, मुझे लगा कि सचमुच की सुहागरात है और हम सच में सम्भोग करेंगे।
तब वो मुझे घूरते हुए बोले- क्या मतलब? सुहागरात का नाटक है, पर सम्भोग तो सच में ही करेंगे न।
मैं उनको और छेड़ते हुए बोली- नहीं जब सुहागरात नाटक है तो सम्भोग का भी नाटक ही करेंगे।
मेरी बात सुनते ही उन्होंने मुझे बिस्तर पर पटक दिया और मेरे ऊपर चढ़ गए और बोले- सच का सम्भोग करेंगे और वैसे भी अब तुम चाहो भी तो नहीं जा सकती… मेरी बाँहें इतनी मजबूत है कि आज मैं जबरदस्ती भी कर सकता हूँ।
मैंने कहा- मेरे साथ जबरदस्ती करोगे… किस हक से?
उन्होंने कहा- आज की रात तुम मेरी दुल्हन हो… मतलब तुम मेरी बीवी हो इसलिए मेरा हक है कि मैं जो चाहूँ, कर सकता हूँ और अब ज्यादा नाटक करोगी तो तुम्हारा बलात्कार भी कर सकता हूँ।
मैंने कहा- अपनी बीवी का कोई बलात्कार करता है क्या?
उन्होंने कहा- क्या करें.. अगर बीवी साथ नहीं देती तो मज़बूरी में करना पड़ेगा।
फिर हम हँसते हुए एक-दूसरे के होंठों को चूमने लगे।
थोड़ी देर बाद अमर ने मुझसे कहा- चलो अब बताओ कि मैं कैसा दिख रहा हूँ
और वो बिस्तर से उठ कर खड़े हो गए।
मैंने देखा कि वो एक धोती और कोट पहने हुए हैं, जो ज्यादातर पुराने जमाने में लोग पहनते थे और वो अच्छे भी दिख रहे थे।
उन्होंने बताया- मैंने धोती नई खरीदी है पर कोट शादी के समय का है।
मैंने उन्हें देख कर फिर से चिढ़ाते हुए कहा- काफी जंच रहे हैं.. मेरे बूढ़े दुल्हे राजा…!
और मैं हँसने लगी।
तब उन्होंने मुझे फिर से बिस्तर पर पटक दिया और कहा- वो तो थोड़ी देर में पता चल जाएगा कि मैं बूढ़ा हूँ या जवान… जब तुम्हारी सिसकारियाँ निकलेगीं।
हमने एक-दूसरे को चूमना शुरू कर दिया, फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने दूध का गिलास लिया और मुझे दिया और बोले- पियो।
मैंने उनसे पहले पीने को कहा उन्होंने एक घूँट पिया फिर गिलास मुझे दिया। मैंने भी एक घूँट पिया, फिर वो पीने लगे इस तरह दूध खत्म हो गया।
दूध खत्म करने के बाद उन्होंने मुझे फिर से चूमना शुरू किया और कहा- अब तुम्हारा दूध पीने की बारी है।
और मेरे स्तनों को दबाने लगे, जिससे मेरा दूध निकल गया और ब्लाउज भीग गया।
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Re: सारिका कंवल की जवानी के किस्से
हमने एक-दूसरे को चूमना शुरू कर दिया फिर थोड़ी देर बाद उन्होंने दूध का गिलास लिया और मुझे दिया और बोले- पियो।
मैंने उनसे पहले पीने को कहा उन्होंने एक घूँट पिया फिर गिलास मुझे दिया। मैंने भी एक घूँट पिया, फिर वो पीने लगे इस तरह दूध खत्म हो गया।
दूध खत्म करने के बाद उन्होंने मुझे फिर से चूमना शुरू किया और कहा- अब तुम्हारा दूध पीने की बारी है और मेरे स्तनों को दबाने लगे, जिससे मेरा दूध निकल गया और ब्लाउज भीग गया।
उन्होंने मेरी साड़ी निकाल दी थी और इधर-उधर की उठा-पटक की वजह से उनकी धोती भी खुल गई थी, वो सिर्फ अंडरवियर और कोट में रह गए थे।
कुछ देर के मस्ती के बाद उन्होंने चॉकलेट निकाली और अपने मुँह में भर कर मेरे मुँह के सामने रख मुझे खाने का इशारा किया।
मैंने भी चॉकलेट को मुँह से काटते हुए उनके होंठों को चूमा और चॉकलेट खा ली।
चॉकलेट खत्म होने के बाद उन्होंने मुझे सुपारी दी और कहा- मुँह में रख लो।
मैंने पूछा- क्यों?
तो वो बोले- सुपारी मुँह में रख लेने से ज्यादा देर सम्भोग किया जा सकता है और जब गीली हो जाएगी तो वो उसे अपने मुँह में भर लेंगे।
अमर बिस्तर पर लेट गए और मुझे अपने बगल में अपनी बांहों में समेट लिया और मेरे बदन को सहलाने और बातें करने लगे।
कुछ देर बाद उन्होंने मुझसे कहा कि सुपारी को मैं उनके मुँह में डाल दूँ।
मैंने उनसे इशारा किया कि मैं थूक कर आती हूँ क्योंकि मेरा मुँह सुपारी की वजह से लार से भर गया था।
उन्होंने कहा- सुपारी का रस थूकना नहीं चाहिए बल्कि निगल जाना चाहिए, तुम मेरे मुँह में रस के साथ सुपारी को डाल दो।
मुझे थोड़ा अजीब लगा, पर सोचा चलो जब सब किया तो यह भी कर लेती हूँ, मैंने उनके मुँह से मुँह लगाया और सारा रस सुपारी के साथ उनके मुँह में डाल दिया।
उन्होंने सारा रस पी लिया और कहा- इस तरह हम लोग काफी देर तक झड़ेंगे नहीं।
मैंने कहा- और कितनी देर तक नहीं झड़ना चाहते आप? एक बार मेरे ऊपर चढ़ते हो तो मेरी हालत जब तक खराब न हो जाए तब तक तो रुकते नहीं हो, आज क्या मुझे मार डालने का इरादा है?
उन्होंने हँसते हुए कहा- अरे मेरी जान आज सुहागरात है न, देर तक मजा लेना है।
उन्होंने मुँह से सुपारी निकाल दी और दूसरी भर ली और कुछ देर बाद मुझसे कहा कि अब मैं उनका रस पी जाऊँ।
मैंने मना किया पर उनके जोर डालने पे मैं भी पी गई।
अब मैंने सुपारी को मुँह से निकाल दी और फिर एक-दूसरे के होंठों को चूमने लगे। थोड़ी देर में हम एक-दूसरे के होंठों को चूसने लगे, फिर जीभ को बारी-बारी से चूसते चले गए।
इसी बीच हम चूमते हुए एक-दूसरे के कपड़े उतारने लगे और कुछ ही पलों में अमर ने मुझे पूरी तरह से नंगा कर दिया मेरे बदन पर अब सिर्फ गहने थे।
मैं उन्हें उतारना चाहती थी, पर अमर ने कहा- गहनों को रहने दो ताकि और भी मजा आए।
मैं सर से पाँव तक गहनों में थी और शायद ये बात अमर को और भी अधिक उत्तेजित कर रही थी।
अमर भी पूरी तरह से नंगे हो चुके थे और उनका लिंग खड़ा हो कर सुहागरात मनाने को उतावला हो रहा था।
मैंने उनके उतावलेपन को समझा और अपने हाथ से लिंग को प्यार करने लगी।
और अमर ने भी मेरे स्तनों को दोनों हाथों में लेकर पहले तो खूब दबाया और फिर बारी-बारी से चूसने लगे और दूध पीने लगे।
मुझे नंगे बदन पर गहने चुभ रहे थे, पर अमर उन्हें निकालने नहीं दे रहे थे, उन्होंने मेरे बालों को खोल दिया था।
जी भर कर दूध पीने के बाद वो मेरे नाभि से खेलने लगे और फिर जीभ नाभि में घुसा कर उसे चूसने लगे।
धीरे-धीरे वो नीचे बढ़ने लगे, मैं बहुत उत्तेजित हो रही थी, अब तो मेरी ऐसी हालत हो गई थी और मेरी योनि गर्म और गीली हो चुकी थी कि अमर कुछ भी करें चाहे ऊँगली डालें या जुबान या लिंग डालें।
मैं मस्ती में अपने पूरे बदन को ऐंठने लगी और टाँगों को फैला दिया।
अमर को मेरा इशारा समझ आ गया था, उन्होंने पहले तो मेरी योनि के बालों को सहलाया फिर हाथ से योनि को छूकर कुछ देर तक सहलाया।
अब मुझे सीधा लिटा कर वे मेरी टाँगों की तरफ चले गए और मेरी जाँघों से लेकर पाँव तक चूमा और फिर जाँघों के बीच झुक कर मेरी योनि को करीब 15-20 बार चूमा और फिर चूसने लगे।
अमर ने बड़े प्यार से मेरी योनि को चूसा फिर दो ऊँगलियाँ डाल कर अन्दर-बाहर करने लगे।
थोड़ी देर बाद उन्होंने मेरी योनि को फैला दिया और दोनों तरफ की पंखुड़ियों को सहलाते हुए कहा- ये किसी फूल की पत्ती की तरह फ़ैल गई हैं, काश इसकी झिल्ली तोड़ने का सुख मुझे मिला होता।
मैंने उससे पूछा- क्या आप सब मर्द बस इसी के लिए मरते हो कि औरत की झिल्ली तोड़ो.. आपको पता है, इसमें एक औरत को कितनी तकलीफ होती है, पर आप लोग तो बस मजे लेना जानते हो।
उसने तब मुझसे कहा- अरे यार, एक औरत को पहला प्यार देना किसी भी मर्द के लिए स्वर्ग के सुख जैसा होता है और दर्द होता भी है तो क्या मजा नहीं आता और ये दर्द तो प्यार का पहला एहसास होता है।
मैंने भी सोचा कि अमर गलत तो नहीं कह रहा है क्योंकि यह एक मीठा दर्द ही तो है जो उसे एहसास दिलाता है कि कोई उसे कितना प्यार करता है और मैं उसके सर पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराने लगी।
उसने भी मुझे मुस्कुराते हुए देखा और मेरी योनि को फिर से चूमा और मुझे उल्टा लिटा दिया, फिर मेरे कूल्हों को प्यार करने लगे।
उसने जी भर कर मेरे कूल्हों, कमर, पीठ और जाँघों को प्यार किया और फिर मुझे सीधा करके मेरे सामने अपना लिंग रख दिया।
मैं भी बड़े प्यार से उनके लिंग को चूमा, सुपाड़े को खोल कर बार-बार चूमा फिर जुबान फिरा कर उसे चाटा और अंत में मुँह में भर कर काफी देर चूसा।
मेरे चूसने से अमर अब बेकाबू से हो गए थे और मैं तो पहले से काफी गर्म थी, सो मुझे सीधा लिटा दिया और मेरे ऊपर चढ़ गए।
मैंने भी अपनी टाँगें फैला कर उनको बीच में ले लिया और अपनी तरफ खींच कर उनको कसके पकड़ लिया।
अमर ने झुक कर फिर से मेरे चूचुकों को बारी-बारी से चूसा और मेरे होंठों को चूम कर मुस्कुराते हुए कहा- अब मैं तुम्हारी नथ उतारूँगा।
मैं समझ रही थी कि वो बस स्त्री और पुरुष के पहले सम्भोग की कल्पना कर रहे हैं और मुझे भी ये अंदाज बहुत अच्छा लग रहा था।
सो मैं भी उनके साथ हो गई और कहा- दर्द होगा न, धीरे-धीरे करना वरना खून आ जाएगा और हँसने लगी।
अमर भी मुस्कुराते हुए बोले- डरो मत जान… आराम से करूँगा, तुम्हें जरा भी तकलीफ़ नहीं होगी, बस आवाज मत निकालना।
हम दोनों को इस तरह से खेलने में बहुत मजा आ रहा था। अमर ने अपनी कमर हिला-हिला कर अपना लिंग मेरी योनि के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया।
तब मैंने फिर कहा- कुछ चिकनाई के लिए लगा लीजिए.. दर्द कम होगा।
उन्होंने कहा- अरे रुको.. मैं कुछ और भी लाया हूँ और वो उठ कर अलमारी खोल कर एक चीज़ लेकर आए।
वो कोई जैली थी, अमर ने उसे मेरी योनि के अन्दर तक भर दिया और फिर से मेरे ऊपर चढ़ गए।
मुझसे अब बर्दास्त नहीं हो रहा था, मैंने उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि में घुसा लिया, पर सिर्फ सुपाड़ा ही अभी अन्दर गया था सो मैंने टाँगों से उन्हें जकड़ लिया और अपनी ओर खींचा।
तभी अमर को और मस्ती सूझी और उसने कहा- इतनी भी जल्दी क्या है, आराम से लो.. वरना तुम्हारी बुर फट जाएगी।
मैंने उससे कहा- ये कैसी भाषा बोल रहे हो आप?
अमर ने कहा- हम पति-पत्नी हैं और शर्म कैसी?
अमर ने मुझे भी वैसे ही बात करने को कहा और मुझसे जबरदस्ती कहलवाया- अपने लण्ड से मेरी बुर चोदो।
अमर से ऐसा कहने के बाद तुरंत ही अपना लिंग एक धक्के में घुसा दिया, जो मेरे बच्चेदानी में लगा और मैं चिहुंक उठी।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैं कराह उठी और मेरे मुँह से निकल गया- ओ माँ मर गई… आराम से… मार डालोगे क्या?
तब अमर ने कहा- सील टूट गई क्या?
और हँसने लगे।
मैं शांत होती, इससे पहले फिर से अमर ने जोर से एक धक्का दिया और मैं फिर से कराह उठी तो अमर ने कहा- अब बोलो.. कैसा लगा मुझे बूढ़ा कह रही थी।
मैंने उनसे फिर भी कहा- हाँ… बूढ़े तो हो ही आप।
मेरी बात सुनते ही वो जोर-जोर से धक्के देने लगे और मैं ‘नहीं-नहीं’ करने लगी, मुझसे जब बर्दास्त नहीं हुआ तो मैंने उसने माफ़ी माँगना शुरू कर दिया और वो धीरे-धीरे सम्भोग करने लगे। योनि में जो जैल डाला था, उसके वजह से बहुत आनन्द आ रहा था और लिंग बड़े प्यार से मेरी योनि को रगड़ दे रहा था।
अब हम दोनों अपने होंठों को आपस में चिपका कर चूमने और चूसने लगे और नीचे हमारी कमर हिल रही थीं। मैं अपनी योनि उनको दे रही थी और वो अपना लिंग मेरी योनि को दे रहे थे।
मेरा बदन अब तपने लगा था और पसीना निकलना शुरू हो गया था, उधर अमर भी हाँफने लगे थे और माथे से पसीना चूने लगा था।
करीब आधे घंटे तक अमर मेरे ऊपर थे और हम दोनों अभी भी सम्भोग में लीन थे, पर दोनों की हरकतों से साफ़ था कि हम दोनों अभी झड़ने वाले नहीं हैं।
अमर ने मुझे अपने ऊपर चढ़ा लिया क्योंकि वो थक चुके थे, मैंने अब धक्कों की जिम्मेदारी ले ली थी। अमर मेरे कूल्हों से खेलने में मग्न हो गए और मैं कभी उनके मुँह में अपने स्तनों को देती तो कभी चूमती हुई धक्के लगाने लगती।
करीब 5-7 मिनट के बाद मेरा बदन अकड़ने लगा और मैं अमर को कसके पकड़ कर जोरों से धक्के देने लगी। ऐसा जैसे मैं उनके लिंग को पूरा अपने अन्दर लेना चाहती होऊँ।
मेरी योनि की मांसपेशियाँ सिकुड़ने लगीं और मैं जोर के झटकों के साथ झड़ गई, मैं धीरे-धीरे शांत हो गई और मेरा बदन भी ढीला हो गया।
अमर ने अब मुझे फिर से सीधा लिटा दिया और टाँगें खोल कर अपने लिंग को अन्दर घुसाने लगा।
मैंने उससे कहा- दो मिनट रुको।
पर वो कहाँ मानने वाला था।
उसने फिर से सम्भोग करना शुरू कर दिया और तब मैं फिर से गर्म हो गई। इस बार भी मैं तुरंत झड़ गई और मेरे कुछ देर बाद अमर भी झड़ गए।
एक बात तो इस रात से साफ हुई कि मर्द को जितना देर झड़ने में लगता है, वो झड़ने के समय उतनी ही ताकत लगा कर धक्के देता है।
अमर भी झड़ने के समय मुझे पूरी ताकत लगा कर पकड़ रखा थे और धक्के इतनी जोर देता कि मुझे लगता कि कहीं मेरी योनि सच में न फट जाए।
अमर जब थोड़े नरम हुए तो कहा- तो सुहागरात कैसी लगी?
मैंने उनसे कहा- बहुत अच्छा लगा, ये सुहागरात मैं कभी नहीं भूलूँगी, आपने मेरी सील दुबारा तोड़ दी।
यह कह कर मैं हँसने लगी।
अमर ने कहा- हाँ.. वो मेरा हक था, तोड़ना जरुरी था, क्योंकि अब तुम मेरे बच्चों को जन्म दोगी।
हम इसी तरह की बातें करते और हँसते हुए आराम करने लगे।
मैं थोड़ी देर आराम करने के बाद उठ कर पेशाब करने चली गई, पर बाथरूम में मैंने आईने में खुद को देखा तो सोचने लगी कि यदि कोई मर्द मुझे इस तरह से देख ले तो वो पागल हो जाएगा।
मैं ऊपर से नीचे तक गहनों में थी एक भी कपड़ा नहीं था और ऐसी लग रही थी जैसे काम की देवी हूँ।
मैं अन्दर से बहुत खुश थी कि मुझे अमर जैसा साथी मिला जो मेरी सुन्दरता को और भी निखारने में मेरी मदद कर रहा था।
वापस आकर हमने फिर से खेलना शुरू कर दिया। उस रात तो सम्भोग कम और खेल ज्यादा ही लग रहा था, पूरी रात बस हम खेलते रहे पर सम्भोग ने भी हमें बहुत थका दिया था।
मैं बहुत खुश थी क्योंकि जो मेरी अधूरी सी इच्छा थी वो पूरी हो गई और रात भर हम सोये नहीं। मैंने बहुत दिनों के बाद लगातार 5 बार सम्भोग किया और सुबह पति के आने से पहले चली गई।
हालांकि पूरे दिन मेरे बदन में दर्द और थकान रही और न सोने की वजह से सर में भी दर्द था, पर मैं संतुष्ट थी और खुश भी थी।
अमर सही कहते थे कि मर्द औरतों को दर्द भले देते हैं पर ये दर्द एक मीठा दर्द होता है, चाहे झिल्ली फटने का हो या फिर माँ बनाने का दर्द हो।
मैंने उनसे पहले पीने को कहा उन्होंने एक घूँट पिया फिर गिलास मुझे दिया। मैंने भी एक घूँट पिया, फिर वो पीने लगे इस तरह दूध खत्म हो गया।
दूध खत्म करने के बाद उन्होंने मुझे फिर से चूमना शुरू किया और कहा- अब तुम्हारा दूध पीने की बारी है और मेरे स्तनों को दबाने लगे, जिससे मेरा दूध निकल गया और ब्लाउज भीग गया।
उन्होंने मेरी साड़ी निकाल दी थी और इधर-उधर की उठा-पटक की वजह से उनकी धोती भी खुल गई थी, वो सिर्फ अंडरवियर और कोट में रह गए थे।
कुछ देर के मस्ती के बाद उन्होंने चॉकलेट निकाली और अपने मुँह में भर कर मेरे मुँह के सामने रख मुझे खाने का इशारा किया।
मैंने भी चॉकलेट को मुँह से काटते हुए उनके होंठों को चूमा और चॉकलेट खा ली।
चॉकलेट खत्म होने के बाद उन्होंने मुझे सुपारी दी और कहा- मुँह में रख लो।
मैंने पूछा- क्यों?
तो वो बोले- सुपारी मुँह में रख लेने से ज्यादा देर सम्भोग किया जा सकता है और जब गीली हो जाएगी तो वो उसे अपने मुँह में भर लेंगे।
अमर बिस्तर पर लेट गए और मुझे अपने बगल में अपनी बांहों में समेट लिया और मेरे बदन को सहलाने और बातें करने लगे।
कुछ देर बाद उन्होंने मुझसे कहा कि सुपारी को मैं उनके मुँह में डाल दूँ।
मैंने उनसे इशारा किया कि मैं थूक कर आती हूँ क्योंकि मेरा मुँह सुपारी की वजह से लार से भर गया था।
उन्होंने कहा- सुपारी का रस थूकना नहीं चाहिए बल्कि निगल जाना चाहिए, तुम मेरे मुँह में रस के साथ सुपारी को डाल दो।
मुझे थोड़ा अजीब लगा, पर सोचा चलो जब सब किया तो यह भी कर लेती हूँ, मैंने उनके मुँह से मुँह लगाया और सारा रस सुपारी के साथ उनके मुँह में डाल दिया।
उन्होंने सारा रस पी लिया और कहा- इस तरह हम लोग काफी देर तक झड़ेंगे नहीं।
मैंने कहा- और कितनी देर तक नहीं झड़ना चाहते आप? एक बार मेरे ऊपर चढ़ते हो तो मेरी हालत जब तक खराब न हो जाए तब तक तो रुकते नहीं हो, आज क्या मुझे मार डालने का इरादा है?
उन्होंने हँसते हुए कहा- अरे मेरी जान आज सुहागरात है न, देर तक मजा लेना है।
उन्होंने मुँह से सुपारी निकाल दी और दूसरी भर ली और कुछ देर बाद मुझसे कहा कि अब मैं उनका रस पी जाऊँ।
मैंने मना किया पर उनके जोर डालने पे मैं भी पी गई।
अब मैंने सुपारी को मुँह से निकाल दी और फिर एक-दूसरे के होंठों को चूमने लगे। थोड़ी देर में हम एक-दूसरे के होंठों को चूसने लगे, फिर जीभ को बारी-बारी से चूसते चले गए।
इसी बीच हम चूमते हुए एक-दूसरे के कपड़े उतारने लगे और कुछ ही पलों में अमर ने मुझे पूरी तरह से नंगा कर दिया मेरे बदन पर अब सिर्फ गहने थे।
मैं उन्हें उतारना चाहती थी, पर अमर ने कहा- गहनों को रहने दो ताकि और भी मजा आए।
मैं सर से पाँव तक गहनों में थी और शायद ये बात अमर को और भी अधिक उत्तेजित कर रही थी।
अमर भी पूरी तरह से नंगे हो चुके थे और उनका लिंग खड़ा हो कर सुहागरात मनाने को उतावला हो रहा था।
मैंने उनके उतावलेपन को समझा और अपने हाथ से लिंग को प्यार करने लगी।
और अमर ने भी मेरे स्तनों को दोनों हाथों में लेकर पहले तो खूब दबाया और फिर बारी-बारी से चूसने लगे और दूध पीने लगे।
मुझे नंगे बदन पर गहने चुभ रहे थे, पर अमर उन्हें निकालने नहीं दे रहे थे, उन्होंने मेरे बालों को खोल दिया था।
जी भर कर दूध पीने के बाद वो मेरे नाभि से खेलने लगे और फिर जीभ नाभि में घुसा कर उसे चूसने लगे।
धीरे-धीरे वो नीचे बढ़ने लगे, मैं बहुत उत्तेजित हो रही थी, अब तो मेरी ऐसी हालत हो गई थी और मेरी योनि गर्म और गीली हो चुकी थी कि अमर कुछ भी करें चाहे ऊँगली डालें या जुबान या लिंग डालें।
मैं मस्ती में अपने पूरे बदन को ऐंठने लगी और टाँगों को फैला दिया।
अमर को मेरा इशारा समझ आ गया था, उन्होंने पहले तो मेरी योनि के बालों को सहलाया फिर हाथ से योनि को छूकर कुछ देर तक सहलाया।
अब मुझे सीधा लिटा कर वे मेरी टाँगों की तरफ चले गए और मेरी जाँघों से लेकर पाँव तक चूमा और फिर जाँघों के बीच झुक कर मेरी योनि को करीब 15-20 बार चूमा और फिर चूसने लगे।
अमर ने बड़े प्यार से मेरी योनि को चूसा फिर दो ऊँगलियाँ डाल कर अन्दर-बाहर करने लगे।
थोड़ी देर बाद उन्होंने मेरी योनि को फैला दिया और दोनों तरफ की पंखुड़ियों को सहलाते हुए कहा- ये किसी फूल की पत्ती की तरह फ़ैल गई हैं, काश इसकी झिल्ली तोड़ने का सुख मुझे मिला होता।
मैंने उससे पूछा- क्या आप सब मर्द बस इसी के लिए मरते हो कि औरत की झिल्ली तोड़ो.. आपको पता है, इसमें एक औरत को कितनी तकलीफ होती है, पर आप लोग तो बस मजे लेना जानते हो।
उसने तब मुझसे कहा- अरे यार, एक औरत को पहला प्यार देना किसी भी मर्द के लिए स्वर्ग के सुख जैसा होता है और दर्द होता भी है तो क्या मजा नहीं आता और ये दर्द तो प्यार का पहला एहसास होता है।
मैंने भी सोचा कि अमर गलत तो नहीं कह रहा है क्योंकि यह एक मीठा दर्द ही तो है जो उसे एहसास दिलाता है कि कोई उसे कितना प्यार करता है और मैं उसके सर पर हाथ फेरते हुए मुस्कुराने लगी।
उसने भी मुझे मुस्कुराते हुए देखा और मेरी योनि को फिर से चूमा और मुझे उल्टा लिटा दिया, फिर मेरे कूल्हों को प्यार करने लगे।
उसने जी भर कर मेरे कूल्हों, कमर, पीठ और जाँघों को प्यार किया और फिर मुझे सीधा करके मेरे सामने अपना लिंग रख दिया।
मैं भी बड़े प्यार से उनके लिंग को चूमा, सुपाड़े को खोल कर बार-बार चूमा फिर जुबान फिरा कर उसे चाटा और अंत में मुँह में भर कर काफी देर चूसा।
मेरे चूसने से अमर अब बेकाबू से हो गए थे और मैं तो पहले से काफी गर्म थी, सो मुझे सीधा लिटा दिया और मेरे ऊपर चढ़ गए।
मैंने भी अपनी टाँगें फैला कर उनको बीच में ले लिया और अपनी तरफ खींच कर उनको कसके पकड़ लिया।
अमर ने झुक कर फिर से मेरे चूचुकों को बारी-बारी से चूसा और मेरे होंठों को चूम कर मुस्कुराते हुए कहा- अब मैं तुम्हारी नथ उतारूँगा।
मैं समझ रही थी कि वो बस स्त्री और पुरुष के पहले सम्भोग की कल्पना कर रहे हैं और मुझे भी ये अंदाज बहुत अच्छा लग रहा था।
सो मैं भी उनके साथ हो गई और कहा- दर्द होगा न, धीरे-धीरे करना वरना खून आ जाएगा और हँसने लगी।
अमर भी मुस्कुराते हुए बोले- डरो मत जान… आराम से करूँगा, तुम्हें जरा भी तकलीफ़ नहीं होगी, बस आवाज मत निकालना।
हम दोनों को इस तरह से खेलने में बहुत मजा आ रहा था। अमर ने अपनी कमर हिला-हिला कर अपना लिंग मेरी योनि के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया।
तब मैंने फिर कहा- कुछ चिकनाई के लिए लगा लीजिए.. दर्द कम होगा।
उन्होंने कहा- अरे रुको.. मैं कुछ और भी लाया हूँ और वो उठ कर अलमारी खोल कर एक चीज़ लेकर आए।
वो कोई जैली थी, अमर ने उसे मेरी योनि के अन्दर तक भर दिया और फिर से मेरे ऊपर चढ़ गए।
मुझसे अब बर्दास्त नहीं हो रहा था, मैंने उनके लिंग को पकड़ कर अपनी योनि में घुसा लिया, पर सिर्फ सुपाड़ा ही अभी अन्दर गया था सो मैंने टाँगों से उन्हें जकड़ लिया और अपनी ओर खींचा।
तभी अमर को और मस्ती सूझी और उसने कहा- इतनी भी जल्दी क्या है, आराम से लो.. वरना तुम्हारी बुर फट जाएगी।
मैंने उससे कहा- ये कैसी भाषा बोल रहे हो आप?
अमर ने कहा- हम पति-पत्नी हैं और शर्म कैसी?
अमर ने मुझे भी वैसे ही बात करने को कहा और मुझसे जबरदस्ती कहलवाया- अपने लण्ड से मेरी बुर चोदो।
अमर से ऐसा कहने के बाद तुरंत ही अपना लिंग एक धक्के में घुसा दिया, जो मेरे बच्चेदानी में लगा और मैं चिहुंक उठी।
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मैं कराह उठी और मेरे मुँह से निकल गया- ओ माँ मर गई… आराम से… मार डालोगे क्या?
तब अमर ने कहा- सील टूट गई क्या?
और हँसने लगे।
मैं शांत होती, इससे पहले फिर से अमर ने जोर से एक धक्का दिया और मैं फिर से कराह उठी तो अमर ने कहा- अब बोलो.. कैसा लगा मुझे बूढ़ा कह रही थी।
मैंने उनसे फिर भी कहा- हाँ… बूढ़े तो हो ही आप।
मेरी बात सुनते ही वो जोर-जोर से धक्के देने लगे और मैं ‘नहीं-नहीं’ करने लगी, मुझसे जब बर्दास्त नहीं हुआ तो मैंने उसने माफ़ी माँगना शुरू कर दिया और वो धीरे-धीरे सम्भोग करने लगे। योनि में जो जैल डाला था, उसके वजह से बहुत आनन्द आ रहा था और लिंग बड़े प्यार से मेरी योनि को रगड़ दे रहा था।
अब हम दोनों अपने होंठों को आपस में चिपका कर चूमने और चूसने लगे और नीचे हमारी कमर हिल रही थीं। मैं अपनी योनि उनको दे रही थी और वो अपना लिंग मेरी योनि को दे रहे थे।
मेरा बदन अब तपने लगा था और पसीना निकलना शुरू हो गया था, उधर अमर भी हाँफने लगे थे और माथे से पसीना चूने लगा था।
करीब आधे घंटे तक अमर मेरे ऊपर थे और हम दोनों अभी भी सम्भोग में लीन थे, पर दोनों की हरकतों से साफ़ था कि हम दोनों अभी झड़ने वाले नहीं हैं।
अमर ने मुझे अपने ऊपर चढ़ा लिया क्योंकि वो थक चुके थे, मैंने अब धक्कों की जिम्मेदारी ले ली थी। अमर मेरे कूल्हों से खेलने में मग्न हो गए और मैं कभी उनके मुँह में अपने स्तनों को देती तो कभी चूमती हुई धक्के लगाने लगती।
करीब 5-7 मिनट के बाद मेरा बदन अकड़ने लगा और मैं अमर को कसके पकड़ कर जोरों से धक्के देने लगी। ऐसा जैसे मैं उनके लिंग को पूरा अपने अन्दर लेना चाहती होऊँ।
मेरी योनि की मांसपेशियाँ सिकुड़ने लगीं और मैं जोर के झटकों के साथ झड़ गई, मैं धीरे-धीरे शांत हो गई और मेरा बदन भी ढीला हो गया।
अमर ने अब मुझे फिर से सीधा लिटा दिया और टाँगें खोल कर अपने लिंग को अन्दर घुसाने लगा।
मैंने उससे कहा- दो मिनट रुको।
पर वो कहाँ मानने वाला था।
उसने फिर से सम्भोग करना शुरू कर दिया और तब मैं फिर से गर्म हो गई। इस बार भी मैं तुरंत झड़ गई और मेरे कुछ देर बाद अमर भी झड़ गए।
एक बात तो इस रात से साफ हुई कि मर्द को जितना देर झड़ने में लगता है, वो झड़ने के समय उतनी ही ताकत लगा कर धक्के देता है।
अमर भी झड़ने के समय मुझे पूरी ताकत लगा कर पकड़ रखा थे और धक्के इतनी जोर देता कि मुझे लगता कि कहीं मेरी योनि सच में न फट जाए।
अमर जब थोड़े नरम हुए तो कहा- तो सुहागरात कैसी लगी?
मैंने उनसे कहा- बहुत अच्छा लगा, ये सुहागरात मैं कभी नहीं भूलूँगी, आपने मेरी सील दुबारा तोड़ दी।
यह कह कर मैं हँसने लगी।
अमर ने कहा- हाँ.. वो मेरा हक था, तोड़ना जरुरी था, क्योंकि अब तुम मेरे बच्चों को जन्म दोगी।
हम इसी तरह की बातें करते और हँसते हुए आराम करने लगे।
मैं थोड़ी देर आराम करने के बाद उठ कर पेशाब करने चली गई, पर बाथरूम में मैंने आईने में खुद को देखा तो सोचने लगी कि यदि कोई मर्द मुझे इस तरह से देख ले तो वो पागल हो जाएगा।
मैं ऊपर से नीचे तक गहनों में थी एक भी कपड़ा नहीं था और ऐसी लग रही थी जैसे काम की देवी हूँ।
मैं अन्दर से बहुत खुश थी कि मुझे अमर जैसा साथी मिला जो मेरी सुन्दरता को और भी निखारने में मेरी मदद कर रहा था।
वापस आकर हमने फिर से खेलना शुरू कर दिया। उस रात तो सम्भोग कम और खेल ज्यादा ही लग रहा था, पूरी रात बस हम खेलते रहे पर सम्भोग ने भी हमें बहुत थका दिया था।
मैं बहुत खुश थी क्योंकि जो मेरी अधूरी सी इच्छा थी वो पूरी हो गई और रात भर हम सोये नहीं। मैंने बहुत दिनों के बाद लगातार 5 बार सम्भोग किया और सुबह पति के आने से पहले चली गई।
हालांकि पूरे दिन मेरे बदन में दर्द और थकान रही और न सोने की वजह से सर में भी दर्द था, पर मैं संतुष्ट थी और खुश भी थी।
अमर सही कहते थे कि मर्द औरतों को दर्द भले देते हैं पर ये दर्द एक मीठा दर्द होता है, चाहे झिल्ली फटने का हो या फिर माँ बनाने का दर्द हो।