गाँव का राजा पार्ट -8 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
"ओके मामी…..पहले थोडा आराम करूँगा ज़रा" बोलता हुआ राजू अपने कमरे में और उर्मिला देवी बाथरूम में घुस गई. थोडी देर खाट पाट की आवाज़ आने के बाद फिर शांति छा गई.राजू यू ही बेड पर पड़ा सोचता रहा कि सच में मामी कितनी मस्त औरत है और कितनी मस्ती से मज़ा देती है. उनको जैसे सब कुच्छ पता है कि किस बात से मज़ा आएगा और कैसे आएगा. रात में कितना गंदा बोल रही थी….मुँह में मूत दूँगी….ये सोच कर ही लंड खड़ा हो जाता है मगर ऐसा कुच्छ नही हुआ चुदवाने के बाद भी वो पेशाब करने कहाँ गई, हो सकता है बाद में गई हो मगर चुदवाते से समय ऐसे बोल रही थी जैसे……शायद ये सब मेरे और अपने मज़े को बढ़ाने के लिए किया होगा. सोचते सोचते थोड़ी देर में राजू को झपकी आ गई. एक घंटे बाद जब उठा तो मामी जा चुकी थी वो भी तैय्यार हो कर टुशन पढ़ने चला गया. दिन इसी तरह गुजर गया. शाम में घर आने पर दोनो एक दूसरे को देख इतने खुश लग रहे थे जैसे कितने दीनो बाद मिले हो. फिर तो खाना पीना हुआ और उस दिन रात में दो बार ऐसी भयंकर चुदाई हुई कि दोनो के कस बल ढीले पद गये. दोनो जब भी झरने को होते चुदाई बंद कर देते. रुक जाते और फिर दुबारा दुगुने जोश से जुट जाते. राजू भी खुल गया. खूब गंदी गंदी बाते की. मामी को रंडी…..चूत्मरनि…….बेहन की लॉडी कहता और वो खूब खुस हो कर उसे गांडमरा…हरामी…….रंडी की औलाद कहती. उर्मिला देवी के शरीर का हर एक भाग थूक से भीग जाता और चूतरों चुचियों और जाँघो पर तो राजू ने दाँत के निशान पड़ जाते. उसी तरह से राजू के कमसिन गाल, पीठ और छाती पर भी उर्मिला देवी के दांतो और नाख़ून का निशान बनते थे.
घर में तो कोई था नही खुल्लम खुल्ला जहा मर्ज़ी वही चुदाई शुरू कर देते थे दोनो. मामी को गोद में बैठा कर टीवी देखता था. किचन में उर्मिला देवी बिना शलवार के केवल लंबा वाला समीज़ पहन कर खाना बनाती और राजू से समीज़ उठा कर दोनो जाँघो के बीच बैठा चूत चत्वाती. चूत में केला डाल कर उसको धीरे धीरे करके खिलाती. अपनी बेटी की फ्रॉक पहन कर डाइनिंग टेबल के उपर एक पैर घुटनो के पास से मोड़ कर बैठ जाती और राजू को सामने बिठा कर अपनी नंगी चूत दिखाती और दोनो नाश्ता करते. राजू कभी उंगली तो कभी चम्मच घुसा देता मगर उनको तो इस सब में मज़ा आता था. राजू का लंड खड़ा कर उस पर अपना दुपट्टा कस कर बाँध देती थी. उसको लगता जैसे लंड फट जाएगा मगर गांद चटवाती रहती थी और चोदने नही देती. दोनो जब चुदाई करते करते थक जाते तो एक ही बेड पर नंग धड़ंग सो जाते.
शायद चौथे दिन सुबह के समय राजू अभी उठा नही था. तभी उसे मामी की आवाज़ सुनाई दी "राजू बेटा…..राजू…".
राजू उठा देखा तो आवाज़ बाथरूम से आ रही थी. बाथरूम का दरवाजा खुला था, अंदर घुस गया. देखा मामी कमोड पर बैठी हुई थी. उस समय उर्मिला देवी ने मॅक्सी जैसा गाउन डाल रख था. मॅक्सी को कमर से उपर उठा कर कमोड पर बैठी हुई थी. सामने चूत की झांते और जंघे दिख रही थी. राजू मामी को ऐसे देख कर मुस्कुरा दिया और हस्ते हुए बोला "क्या मामी क्यों बुलाया"
"इधर तो आ पास में….." उर्मिला देवी ने इशारे से बुलाया.
"क्या काम है……..पॉटी करते हुए" राजू कमोड के पास गया और फ्लश चला कर झुक कर खड़ा हो गया. उसका लंड इतने में खड़ा हो चुका था.
उर्मिला देवी ने मुस्कुराते हुए अपने निचले होंठो को दांतो से दबाया और बोली "एक काम करेगा".
"हा बोलो क्या करना है……"
"ज़रा मेरी गांद धो दे ना…." कह कर उर्मिला देवी मुस्कुराने लगी. खुद उसका चेहरा इस समय शर्म से लाल हो चुका था मगर इतना मज़ा आ रहा था कि चूत के होंठ फड़कने लगे थे.
राजू का लंड इतना सुनते ही लहरा गया. उसने तो सोचा भी नही था की मामी ऐसा करने को बोल सकती है. कुच्छ पल तो यू ही खड़ा फिर धीरे से हस्ते हुए बोला "क्या मामी कैईसीई बाते कर रही हो". इस पर उर्मिला देवी तमक कर बोली "तुझे कोई प्राब्लम है क्या..?"
"नही, पर आपके हाथ में कोई प्राब्लम है क्या…?"
"ना, मेरे हाथ को कुच्छ नही हुआ बस अपनी गांद नही धोना चाहती…?. राजू समझ गया कि मामी का ये नया नाटक है सुबह सुबह चुदना चाहती होगी. यही बाथरूम में साली को पटक कर गांद मारूँगा सारा गांद धुल्वाना भूल जाएगी. उर्मिला देवी अभी भी कमोड पर बैठी हुई थी. अपना हाथ टाय्लेट पेपर की तरफ बढ़ाती हुई बोली "ठीक है रहने दे…
…गांद चाटेगा मगर धोएगा नही……आना अब छुना भी नही………"
"अर्रे मामी रूको…मैं सोच रहा था सुबह सुबह……लाओ मैं धो देता हू" और टाय्लेट पेपर लेकर नीचे झुक कर चूतर को अपने हाथो से पकड़ थोड़ा सा फैलाया जब गांद का छेद ठीक से दिख गया तो उसको पोछ कर अच्छी तरह से सॉफ किया फिर पानी लेकर गांद धोने लगा (इंडियन्स को अभी भी टाय्लेट पेपर से पूरी संतुष्टि नही मिलती). गांद के सिकुदे हुए छेद को खूब मज़े लेकर बीच वाली अंगुली से रगर-रगर कर धोते हुए बोला "मामी ऐसे गांद धुल्वा कर लंड खड़ा करोगी तो……". उर्मिला देवी कमोड पर से हस्ते हुए उठते हुए बोली "तो क्या……मज़ा नही आया….". बेसिन पर अपने हाथ धोता हुआ राजू बोला "मज़ा तो अब आएगाआ…". और मामी को कमर से पकड़ कर मुँह की तरफ से दीवार से सटा एक झटके से उसकी मॅक्सी उपर कर दी और अपनी शॉर्ट नीचे सरका फनफनता हुआ लंड निकाल कर गीली गांद पर लगा एक झटका मारा. उर्मिला देवी "आ उईईई क्या कर रहा है कंजरे…..छोड़" बोलती रही मगर राजू ने बेरहमी से तीन चार धक्को में पूरा लंड पेल दिया और हाथ आगे ले जा कर चूत के भग्नाशे को चुटकी में पकड़ मसल्ते हुए कचा कच धक्के लगाना शुरू कर दिया. पूरा बाथरूम मस्ती भरे सिसकारियों में डूब गया दोनो थोड़ी देर में ही झार गये. जब गांद से लंड निकल गया तो उर्मिला देवी ने पलट कर राजू को बाहों में भर लिया.
गाँव का राजा
Re: गाँव का राजा
कुच्छ दीनो में राजू एक्सपर्ट चोदु बन गया था. जब मामा और ममेरी बहन घर आ गये तो दोनो दिन में मौका खोज लेते और छुट्टी वाले दिन कार लेकर सहर से थोरी दूरी पर बने फार्म हाउस पर काम करवाने के बहाने निकल जाते. जब भी जाते काजल को भी बोलते चलो मगर वो तो सहर की पार्केटी लड़की थी मना कर देती. फिर दोनो फार्म हाउस में मस्ती करते. इसी तरह से राजू के दिन सुख से कट ते गये. और भी बहुत सारी घटनाए हुई बीच में मगर उन सबको बाद में बताउन्गा. तो ये थी मुन्ना बाबू के ट्रैनिंग की कहानी. मुन्ना को उसकी मामी ने पूरा बिगाड़ दिया.
खैर हमे क्या हम वापस गाओं लौट ते है. देखते है वाहा क्या गुल खिल रहे है. तो दोस्तो कैसी लगी मामी भानजे की मस्ती
अपनी मा और आया को देखने के दो तीन दिन बाद तक मुन्ना बाबू को कोई होश नही था. इधर उधर पगलाए घूमते रहते थे. हर समय दिमाग़ में वही चलता रहता. घर में भी वो शीला देवी से नज़रे चुराने लगे थे. जब शीला देवी इधर उधर देख रही होती तो उसको निहारते. हालाँकि कई बार दिमाग़ में आता कि अपनी मा को देखना बड़ी कंज़रफी की बात है मगर जिसकी ट्रैनिंग ही मामी से हुई उस लड़के के दिमाग़ में ज़यादा देर ये बात टिकने वाली नही थी. मन बार-बार शीला देवी के नशीले बदन को देखने के लिए ललचाता. उसको इस बात पर ताज्जुब होता कि इतने दीनो में उसकी नज़र शीला देवी पर कैसे नही पड़ी. तीन चार दिन बाद कुच्छ नॉर्मल होने पर मुन्ना ने सोचा कि हर औरत उसकी मामी जैसी तो हो नही सकती. फिर ये उसकी मा है और वो भी ऐसी कि ज़रा सा उन्च नीच होने पर चमड़ी उधेड़ के रख दे. इसलिए ज़यादा हाथ पैर चलाने की जगह अपने लंड के लिए गाओं में जुगाड़ खोजना ज़यादा ज़रूरी है. किस्मत में होगा तो मिल जाएगा.
मुन्ना ने गाओं की भौजी लाजवंती को तो चोद ही दिया था और उसकी ननद बसंती के मुममे दबाए थे मगर चोद नही पाया था. सीलबंद माल थी. आजतक किसी अनचुदी को नही चोदा था इसलिए मन में आरजू पैदा हो गई कि बसंती की लेते. बसंती, मुन्ना बाबू को देखते ही बिदक कर भाग जाती थी. हाथ ही नही आ रही थी. उसकी शादी हो चुकी थी मगर गौना नही हुआ था. मुन्ना बाबू के शैतानी दिमाग़ ने बताया कि बसंती की चूत का रास्ता लाजवंती के भोसड़े से होकर गुज़रता है. तो फिर उन्होने लाजवंती को पटाने की ठानी. एक दिन सुबह में जब लाजवंती लोटा हाथ में लिए लौट रही थी तभी उसको गन्ने के खेत के पास पकड़ा.
"क्या भौजी उस दिन के बाद से तो दिखना ही बंद हो गया तुम्हारा…" लाजवंती पहले तो थोड़ा चौंकी फिर जब देखा की आस पास कोई नही है तब मुस्कुराती हुई बोली "आप तो खुद ही गायब हो गये छ्होटे मलिक वादा कर के….."
"आरे नही रे, दो दिन से तो तुझे खोज रहा हू और हम चौधरी लोग जो वादा करते है निभाते भी है मुझे सब याद है"
"तो फिर लाओ मेरा इनाम……."
"ऐसे कैसे दे दे भौजी…इतनी हड़बड़ी भी ना दिखाओ…."
"अच्छा अभी मैं तेज़ी दिखा रही हू…..और उस दिन खेत में लेते समय तो बड़ी जल्दी में थे आप छ्होटे मलिक…आप सब मरद लोग एक जैसे ही हो"
मुन्ना ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर खींचा और कोने में ले खूब कस के गाल काट लिया. लाजवंती चीखी तो उसका मुँह दबाते हुए बोला "क्या करती हो भौजी चीखो मत सब मिलेगा….तेरी पायल मैं ले आया हू और बसंती के लिए लहनगा भी". मुन्ना ने चारा फेंका. लाजवंती चौंक गई "हाई मलिक बसंती के लिए क्यों….."
"उसको बोला था कि लहनगा दिलवा दूँगा सो ले आया." कह कर लाजवंती को एक हाथ से कमर के पास से पकड़ उसकी एक चुचि को बाए हाथ से दबाया. लाजवंती थोड़ा कसमसाती हुई मुन्ना की हाथ की पकड़ को ढीला करती हुई बोली "उस से कब बोला था आपने"
"आरे जलती क्यों है….उसी दिन खेत में बोला था जब तेरी चूत मारी थी" और अपना हाथ चुचि पर से हटा कर चूत पर रखा और हल्के से दबाया.
"अच्छा अब समझी तभी आप उस दिन वाहा खड़ा कर के खड़े थे और मुझे देख कर वो भाग गई और आपने मेरे उपर हाथ साफ कर लिया".
"एक दम ठीक समझी रानी…" और उसकी चूत को मुठ्ठी में भर कस कर दबाया. लाजवंती चिहुन्क गई. मुन्ना का हाथ हटा ती बोली "छोड़ो मलिक वो तो एकद्ूम कच्ची कली है". अचानक सुबह सुबह उसके रोकने का मतलब लाजवंती को तुरंत समझ में आ गया.
"अर्रे कहा की कच्ची कली मेरे उमर की तो है…"
"हा पर अनचुदी है…एकद्ूम सीलबॅंड….दो महीने बाद उसका गौना है"
"धात तेरे की बस दो महीने की मेहमान है तो फिर तो जल्दी कर भौजी कैसे भी जल्दी से दिलवा दे……." कह कर उसके होंठो पर चुम्मा लिया.
"उउउ हह छोड़ो कोई देख लेगा…पायल तो दिया नही और अब मेरी कोरी ननद भी माँग रहे हो….बड़े चालू हो छ्होटे मलिक"
लाजवंती को पूरा अपनी तरफ घुमा कर चिपका लिया और खड़ा लंड साड़ी के उपर से चूत पर रगड़ते हुए उसकी गांद की दरार में उंगली चला मुन्ना बोला "आरे कहा ना दोनो चीज़ ले आया हू…दोनो ननद भौजाई एक दिन आ जाना फिर…"
"लगता है छ्होटे मलिक का दिल बसंती पर पूरा आ गया है"
"हा रे तेरे बसंती की जवानी है ही ऐसी…..बड़ी मस्त लगती है…"
"हा मलिक गाओं के सारे लौडे उसके दीवाने है…."
"गाओं के छोरे मा चुड़ाएँ…..तू बस मेरे बारे में सोच…." कह कर उसके होंठो पर चुम्मि ले फिर से चुचि को दबा दिया.
"सीए मलिक क्या बताए वो मुखिया का बेटा तो ऐसा दीवाना हो गया है कि….उस दिन तालाब के पास आकर पैर छुने लगा और सोने की चैन दिखा रहा था, कह रहा था कि भौजी एक बार बसंती की…..पर मैने तो भगा दिया साले को दोनो बाप बेटे कामीने है"
मुन्ना समझ गया की साली रंडी अपनी औकात पर आ गई है. पॅंट की जेब में हाथ डाल पायल निकली और लाजवंती के सामने लहरा कर बोला "ले बहुत पायल-पायल कर रही है ना तो पकड़ इसको….और बता बसंती को कब ले कर आ रही है….."
"हाई मलिक पायल लेकर आए थे….और देखो तब से मुझे तडपा रहे थे…" और पायल को हाथ में ले उलट पुलट कर देखने लगी. मुन्ना ने सोचा जब पेशगी दे ही दी है तो थोड़ा सा काम भी ले लिया जाए और उसका एक हाथ पकड़ खेत में थोड़ा और अंदर खींच लिया. लाजवंती अभी भी पायल में ही खोई हुई थी. मुन्ना ने उसके हाथ से पायल ले ली और बोला "ला पहना दू…" लाजवंती ने चारो तरफ देखा तो पाया की वो खेत के और अंदर आ गई है. किसी के देखने की संभावना नही तो चुप चाप अपनी साड़ी को एक हाथ से पकड़ घुटनो तक उठा एक पैर आगे बढ़ा दिया. मुन्ना ने बड़े प्यार से उसको एक-एक करके पायल पहनाई फिर उसको खींच कर घास पर गिरा दिया और उसकी साड़ी को उठाने लगा. लाजवंती ने कोई विरोध नही किया. दोनो पैरों के बीच आ जब मुन्ना लंड डालने वाला था तभी लाजवंती ने अपने हाथ से लंड पकड़ लिया और बोली "लाओ मैं डालती हू…" और लंड को अपनी चूत के होंठो पर रगड़ती हुई बोली "वैसे छ्होटे मलिक एक बात बोलू….."
"हा बोल…..छेद पर लगा दे टाइम नही है……."
"सोने का चैन बहुत महनगा आता है क्या….." मुन्ना समझ गया कि साली को पायल मिल गयी है बिना गोल्ड की चैन लिए इसकी आत्मा को शांति नही मिलेगी और मुझे बसंती. लंड को उसके हाथ से झटक कर चूत के मुहाने पर लगा कच से पेलता हुआ बोला "महनगा आए चाहे सस्ता तुझे क्या…आम खाने से मतलब रख गुठली मत गिन"
इतना सुनते ही जैसे लाजवंती एकदम गनगॅना गई दोनो बहो का हार मुन्ना के गले में डालती बोली "हाई मलिक…मैं कहा….मैं तो सोच रही थी कही आपका ज़्यादा खर्चा ना हो जाए…..सम्भहाल के मलिक ज़रा धीरे-धीरे आपका बड़ा मोटा है".
"मोटा है तभी तो तेरी जैसी छिनाल की चूत में भी टाइट जाता है…" ज़ोर ज़ोर से धकके लगाता हुआ मुन्ना बोला.
"हाई मालिक चोदो अब ठीक है…..मालिक अपने लंड के जैसा मोटा चैन लेना…..जैसे आपका मोटा लंड खा कर चूत को मज़ा आ जाता है वैसे ही चैन पहन कर……"
"ठीक है भौजी तू चिंता मत कर….सोने से लाद दूँगा….". फिर थोड़ी देर तक धुआँधार चुदाई चलती रही. मुन्ना ने अपना माल झाड़ा और लंड निकल कर उसकी साड़ी से पोछ कर पॅंट पहन लिया. लाजवंती उठ ती हुई बोली "मालिक जगह का उपाय करना होगा. बसंती अनचुड़ी है. पहली बार लेगी वो भी आपका हलब्बी लंड तो बीदकेगी और चिल्लाएगी. ऐसे खेत में जल्दी का काम नही है. आराम से लेनी होगी बसंती की"
मुन्ना कुच्छ सोचता हुआ बोला "ये मेरा जो आम का बगीचा है वो कैसा रहेगा" मुन्ना के बाबूजी ने दो कमरा और बाथरूम बना रखा था वाहा पर सब जानते थे.
"हाई मलिक वाहा पर कैसे…..वाहा तो बाबूजी.." मुन्ना बात समझ गया और बोला तू चिंता मत कर मैं देख लूँगा.
लाजवंती ने हा में सिर हिलाते हुए कहा "हा मलिक ठीक रहेगा…ज़्यादा दूर भी नही फिर रात में किसी बहाने से मैं बसंती को खिसका के लेती आउन्गि"
"चल फिर ठीक है, जैसे ही बसंती मान जाए मुझे बता देना" फिर दोनो अपने अपने रास्ते चल पड़े.
खैर हमे क्या हम वापस गाओं लौट ते है. देखते है वाहा क्या गुल खिल रहे है. तो दोस्तो कैसी लगी मामी भानजे की मस्ती
अपनी मा और आया को देखने के दो तीन दिन बाद तक मुन्ना बाबू को कोई होश नही था. इधर उधर पगलाए घूमते रहते थे. हर समय दिमाग़ में वही चलता रहता. घर में भी वो शीला देवी से नज़रे चुराने लगे थे. जब शीला देवी इधर उधर देख रही होती तो उसको निहारते. हालाँकि कई बार दिमाग़ में आता कि अपनी मा को देखना बड़ी कंज़रफी की बात है मगर जिसकी ट्रैनिंग ही मामी से हुई उस लड़के के दिमाग़ में ज़यादा देर ये बात टिकने वाली नही थी. मन बार-बार शीला देवी के नशीले बदन को देखने के लिए ललचाता. उसको इस बात पर ताज्जुब होता कि इतने दीनो में उसकी नज़र शीला देवी पर कैसे नही पड़ी. तीन चार दिन बाद कुच्छ नॉर्मल होने पर मुन्ना ने सोचा कि हर औरत उसकी मामी जैसी तो हो नही सकती. फिर ये उसकी मा है और वो भी ऐसी कि ज़रा सा उन्च नीच होने पर चमड़ी उधेड़ के रख दे. इसलिए ज़यादा हाथ पैर चलाने की जगह अपने लंड के लिए गाओं में जुगाड़ खोजना ज़यादा ज़रूरी है. किस्मत में होगा तो मिल जाएगा.
मुन्ना ने गाओं की भौजी लाजवंती को तो चोद ही दिया था और उसकी ननद बसंती के मुममे दबाए थे मगर चोद नही पाया था. सीलबंद माल थी. आजतक किसी अनचुदी को नही चोदा था इसलिए मन में आरजू पैदा हो गई कि बसंती की लेते. बसंती, मुन्ना बाबू को देखते ही बिदक कर भाग जाती थी. हाथ ही नही आ रही थी. उसकी शादी हो चुकी थी मगर गौना नही हुआ था. मुन्ना बाबू के शैतानी दिमाग़ ने बताया कि बसंती की चूत का रास्ता लाजवंती के भोसड़े से होकर गुज़रता है. तो फिर उन्होने लाजवंती को पटाने की ठानी. एक दिन सुबह में जब लाजवंती लोटा हाथ में लिए लौट रही थी तभी उसको गन्ने के खेत के पास पकड़ा.
"क्या भौजी उस दिन के बाद से तो दिखना ही बंद हो गया तुम्हारा…" लाजवंती पहले तो थोड़ा चौंकी फिर जब देखा की आस पास कोई नही है तब मुस्कुराती हुई बोली "आप तो खुद ही गायब हो गये छ्होटे मलिक वादा कर के….."
"आरे नही रे, दो दिन से तो तुझे खोज रहा हू और हम चौधरी लोग जो वादा करते है निभाते भी है मुझे सब याद है"
"तो फिर लाओ मेरा इनाम……."
"ऐसे कैसे दे दे भौजी…इतनी हड़बड़ी भी ना दिखाओ…."
"अच्छा अभी मैं तेज़ी दिखा रही हू…..और उस दिन खेत में लेते समय तो बड़ी जल्दी में थे आप छ्होटे मलिक…आप सब मरद लोग एक जैसे ही हो"
मुन्ना ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर खींचा और कोने में ले खूब कस के गाल काट लिया. लाजवंती चीखी तो उसका मुँह दबाते हुए बोला "क्या करती हो भौजी चीखो मत सब मिलेगा….तेरी पायल मैं ले आया हू और बसंती के लिए लहनगा भी". मुन्ना ने चारा फेंका. लाजवंती चौंक गई "हाई मलिक बसंती के लिए क्यों….."
"उसको बोला था कि लहनगा दिलवा दूँगा सो ले आया." कह कर लाजवंती को एक हाथ से कमर के पास से पकड़ उसकी एक चुचि को बाए हाथ से दबाया. लाजवंती थोड़ा कसमसाती हुई मुन्ना की हाथ की पकड़ को ढीला करती हुई बोली "उस से कब बोला था आपने"
"आरे जलती क्यों है….उसी दिन खेत में बोला था जब तेरी चूत मारी थी" और अपना हाथ चुचि पर से हटा कर चूत पर रखा और हल्के से दबाया.
"अच्छा अब समझी तभी आप उस दिन वाहा खड़ा कर के खड़े थे और मुझे देख कर वो भाग गई और आपने मेरे उपर हाथ साफ कर लिया".
"एक दम ठीक समझी रानी…" और उसकी चूत को मुठ्ठी में भर कस कर दबाया. लाजवंती चिहुन्क गई. मुन्ना का हाथ हटा ती बोली "छोड़ो मलिक वो तो एकद्ूम कच्ची कली है". अचानक सुबह सुबह उसके रोकने का मतलब लाजवंती को तुरंत समझ में आ गया.
"अर्रे कहा की कच्ची कली मेरे उमर की तो है…"
"हा पर अनचुदी है…एकद्ूम सीलबॅंड….दो महीने बाद उसका गौना है"
"धात तेरे की बस दो महीने की मेहमान है तो फिर तो जल्दी कर भौजी कैसे भी जल्दी से दिलवा दे……." कह कर उसके होंठो पर चुम्मा लिया.
"उउउ हह छोड़ो कोई देख लेगा…पायल तो दिया नही और अब मेरी कोरी ननद भी माँग रहे हो….बड़े चालू हो छ्होटे मलिक"
लाजवंती को पूरा अपनी तरफ घुमा कर चिपका लिया और खड़ा लंड साड़ी के उपर से चूत पर रगड़ते हुए उसकी गांद की दरार में उंगली चला मुन्ना बोला "आरे कहा ना दोनो चीज़ ले आया हू…दोनो ननद भौजाई एक दिन आ जाना फिर…"
"लगता है छ्होटे मलिक का दिल बसंती पर पूरा आ गया है"
"हा रे तेरे बसंती की जवानी है ही ऐसी…..बड़ी मस्त लगती है…"
"हा मलिक गाओं के सारे लौडे उसके दीवाने है…."
"गाओं के छोरे मा चुड़ाएँ…..तू बस मेरे बारे में सोच…." कह कर उसके होंठो पर चुम्मि ले फिर से चुचि को दबा दिया.
"सीए मलिक क्या बताए वो मुखिया का बेटा तो ऐसा दीवाना हो गया है कि….उस दिन तालाब के पास आकर पैर छुने लगा और सोने की चैन दिखा रहा था, कह रहा था कि भौजी एक बार बसंती की…..पर मैने तो भगा दिया साले को दोनो बाप बेटे कामीने है"
मुन्ना समझ गया की साली रंडी अपनी औकात पर आ गई है. पॅंट की जेब में हाथ डाल पायल निकली और लाजवंती के सामने लहरा कर बोला "ले बहुत पायल-पायल कर रही है ना तो पकड़ इसको….और बता बसंती को कब ले कर आ रही है….."
"हाई मलिक पायल लेकर आए थे….और देखो तब से मुझे तडपा रहे थे…" और पायल को हाथ में ले उलट पुलट कर देखने लगी. मुन्ना ने सोचा जब पेशगी दे ही दी है तो थोड़ा सा काम भी ले लिया जाए और उसका एक हाथ पकड़ खेत में थोड़ा और अंदर खींच लिया. लाजवंती अभी भी पायल में ही खोई हुई थी. मुन्ना ने उसके हाथ से पायल ले ली और बोला "ला पहना दू…" लाजवंती ने चारो तरफ देखा तो पाया की वो खेत के और अंदर आ गई है. किसी के देखने की संभावना नही तो चुप चाप अपनी साड़ी को एक हाथ से पकड़ घुटनो तक उठा एक पैर आगे बढ़ा दिया. मुन्ना ने बड़े प्यार से उसको एक-एक करके पायल पहनाई फिर उसको खींच कर घास पर गिरा दिया और उसकी साड़ी को उठाने लगा. लाजवंती ने कोई विरोध नही किया. दोनो पैरों के बीच आ जब मुन्ना लंड डालने वाला था तभी लाजवंती ने अपने हाथ से लंड पकड़ लिया और बोली "लाओ मैं डालती हू…" और लंड को अपनी चूत के होंठो पर रगड़ती हुई बोली "वैसे छ्होटे मलिक एक बात बोलू….."
"हा बोल…..छेद पर लगा दे टाइम नही है……."
"सोने का चैन बहुत महनगा आता है क्या….." मुन्ना समझ गया कि साली को पायल मिल गयी है बिना गोल्ड की चैन लिए इसकी आत्मा को शांति नही मिलेगी और मुझे बसंती. लंड को उसके हाथ से झटक कर चूत के मुहाने पर लगा कच से पेलता हुआ बोला "महनगा आए चाहे सस्ता तुझे क्या…आम खाने से मतलब रख गुठली मत गिन"
इतना सुनते ही जैसे लाजवंती एकदम गनगॅना गई दोनो बहो का हार मुन्ना के गले में डालती बोली "हाई मलिक…मैं कहा….मैं तो सोच रही थी कही आपका ज़्यादा खर्चा ना हो जाए…..सम्भहाल के मलिक ज़रा धीरे-धीरे आपका बड़ा मोटा है".
"मोटा है तभी तो तेरी जैसी छिनाल की चूत में भी टाइट जाता है…" ज़ोर ज़ोर से धकके लगाता हुआ मुन्ना बोला.
"हाई मालिक चोदो अब ठीक है…..मालिक अपने लंड के जैसा मोटा चैन लेना…..जैसे आपका मोटा लंड खा कर चूत को मज़ा आ जाता है वैसे ही चैन पहन कर……"
"ठीक है भौजी तू चिंता मत कर….सोने से लाद दूँगा….". फिर थोड़ी देर तक धुआँधार चुदाई चलती रही. मुन्ना ने अपना माल झाड़ा और लंड निकल कर उसकी साड़ी से पोछ कर पॅंट पहन लिया. लाजवंती उठ ती हुई बोली "मालिक जगह का उपाय करना होगा. बसंती अनचुड़ी है. पहली बार लेगी वो भी आपका हलब्बी लंड तो बीदकेगी और चिल्लाएगी. ऐसे खेत में जल्दी का काम नही है. आराम से लेनी होगी बसंती की"
मुन्ना कुच्छ सोचता हुआ बोला "ये मेरा जो आम का बगीचा है वो कैसा रहेगा" मुन्ना के बाबूजी ने दो कमरा और बाथरूम बना रखा था वाहा पर सब जानते थे.
"हाई मलिक वाहा पर कैसे…..वाहा तो बाबूजी.." मुन्ना बात समझ गया और बोला तू चिंता मत कर मैं देख लूँगा.
लाजवंती ने हा में सिर हिलाते हुए कहा "हा मलिक ठीक रहेगा…ज़्यादा दूर भी नही फिर रात में किसी बहाने से मैं बसंती को खिसका के लेती आउन्गि"
"चल फिर ठीक है, जैसे ही बसंती मान जाए मुझे बता देना" फिर दोनो अपने अपने रास्ते चल पड़े.
Re: गाँव का राजा
गाँव का राजा पार्ट -9 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
आम के बगीचे में जो मकान या खलिहान जो भी कहे बना था वो वास्तव में चौधरी जब जवान था तब उसकी ऐषगाह थी. वाहा वो रंडिया ले जा कर नाचवाता और मौज मस्ती करता था. जब से दारू के नशे में डूबा तब से उसने वाहा जाना लगभग छोड़ ही दिया था. बाहर से देखने पर तो खलिहान जैसा गाओं में होता है वैसा ही दिखता था मगर अंदर चौधरी ने उसे बड़ा खूबसूरत और आलीशान बना रखा था. दो कमरे जो की काफ़ी बड़े और एक कमरे में बहुत बड़ा बेड था. सुख सुविधा के सारे समान वाहा थे. वाहा पर एक मॅनेजर जो की चौकीदार का काम भी करता था रहता था. ये मॅनेजर मुन्ना के लिए बहुत बड़ी प्राब्लम था. क्यों कि लाजवंती और बसंती दरअसल उसी की बहू और बेटी थी. लाजवंती उसके बेटे की पत्नी थी जो की शहर में रहता था. मुन्ना बाबू घर पहुच कर कुच्छ देर तक सोचते रहे कैसे अपने रास्ते के इस पत्थर को हटाया जाए. खोपड़ी तो शैतानी थी ही. तरक़ीब सूझ गई. उठ कर सीधा आम के बगीचे की ओर चल दिए. मे महीने का पहला हफ़्ता चल रहा था. बगीचे में एक जगह खाट डाल कर मॅनेजर बैठा हुआ दो लड़कियों की टोकरियो में अधपके और कच्चे आम गिन गिन कर रख रहा था. मुन्ना बाबू एक दम से उसके सामने जा कर खड़े हो गये. मॅनेजर हड़बड़ा गया और जल्दी से उठ कर खड़ा हुआ.
"क्या हो रहा है……ये अधपके आम क्यों बेच रहे हो…" मॅनेजर की तो घिघी बँध गई समझ में नही आ रहा था क्या बोले.
"ऐसे ही हर रोज दो टोकरी बेच देते हो क्या …." थोड़ा और धमकाया.
"छ्होटे मलिक….नही छ्होटे मलिक…….वो तो ये बेचारी ऐसे ही…..बड़ी ग़रीब बच्चियाँ है आचार बनाने के लिए माँग रही……" दोनो लड़कियाँ तब तक भाग चुकी थी.
"खूब आचार बना रहे हो…….चलो अभी मा से बोलता हू फिर पता चलेगा….".
मॅनेजर झुक कर पैर पकड़ने लगा. मुन्ना ने उसका हाथ झटक दिया और तेज़ी से घर आ गया. घर आ कर चौधरैयन को सारी बात नमक मिर्च लगा कर बता दी. चुधरैयन ने तुरंत मॅनेजर को बुलवा भेजा खूब झाड़ लगाई और बगीचे से उसकी ड्यूटी हटा दी और चौधरी को बोला कि दीनू को ब्गीचे में भेज दे रखवाली के लिए. अब जितने भी बगीचे थे सब जगह थोड़ी बहुत चोरी तो सारे मॅनेजर करते थे. चौधरी की इतनी ज़मीन ज़ायदाद थी कि उसका ठीक ठीक हिसाब किसी को नही पता था. आम के बगीचे में तो कोई झाँकने भी नही जाता जब फल पक जाते तभी चौधरैयन एक बार चक्कर लगाती थी. मॅनेजर की किस्मत फूटी थी मुन्ना बाबू के चक्कर में फस गया. फिर मुन्ना ने चौधरी से बगीचे वाले मकान की चाभी ले ली. दीनू को बोल दिया मत जाना, गया तो टांग तोड़ दूँगा…तू भी चोर है. दीनू डर के मारे गया ही नही और ना ही किसी से इसकी शिकायत की. जब सब सो जाते तो रात में चाभी ले मुन्ना बाबू खिसक जाते. दो रातो तक लाजवंती की जवानी का रस चूसा आख़िर पायल की कीमत वसूलनी थी. तीसरे दिन लाजवंती ने बता दिया की रात में ले कर आउन्गी. मुन्ना बाबू पूरी तैय्यारि से बगीचे वाले मकान पर पहुच गये. करीब आधे घंटे के बाद ही दरवाजे पर खाट खाट हुई.
मुन्ना ने दरवाजा खोला सामने लाजवंती खड़ी थी. मुन्ना ने धीरे से पोच्छा "भौजी बसंती". लाजवंती ने अंदर घुसते हुए आँखो से अपने पिछे इशारा किया. दरवाजे के पास बसंती सिर झुकाए खड़ी थी. मुन्ना के दिल को करार आ गया. बसंती को इशारे से अंदर बुलाया. बसंती धीरे-धीरे सर्माती सकुचाती अंदर आ गई. मुन्ना ने दरवाजा बंद कर दिया और अंदर वाले कमरे की ओर बढ़ चला. लाजवंती, बसंती का हाथ खींचती हुई पिछे-पिछे चल पड़ी. अंदर पहुच कर मुन्ना ने अंगड़ाई ली. उसने लूँगी पहन रखी थी. लाजवंती को हाथो से पकड़ अपनी ओर खींच लिया और उसके होंठो पर चुम्मा ले बोला "के बात है भौजी आज तो कयामत लग रही हो….."
"हाई छ्होटे मलिक आप तो ऐसे ही…..बसंती को ले आई…." बसंती बेड के पास चुप चाप खड़ी थी.
"हा वो तो देख ही रहा हू…."
"हा मलिक लाजवंती अपना किया वादा नही भूलती……लोग भूल जाते है……" मुन्ना ने पास में पड़े कुर्ते में हाथ डाल कर एक डिब्बा निकाला और लाजवंती के हाथो में थमा दिया. फिर उसकी कमर के पास से पकड़ अपने से चिपका उसके चूतरो को कस कर दबाता हुआ बोला "आते ही अपनी औकात पर आ गई……खोल के देख….." लाजवंती ने खोल के देखा तो उसकी आँखो में चमक आ गई.
"हाई मलिक मैं आपके बारे में कहा बोल रही थी…..मुझे क्या पता नही की चौधरी ख़ानदान के लोग… कितने पक्के होते है….हाई मार दिया …हड्डिया तर्तर गई…"
लाजवंती की गांद की दरार में साडी के उपर से उंगली चलाते हुए उसके गाल पर दाँत गाढ उसकी एक चुचि पकड़ी और कस कर चिपकाया. लाजवंती "आ मालिक आआआअ उईईईई" करने लगी. बसंती एक ओर खड़ी होकर उन दोनो को देख रही थी. मुन्ना ने लाजवंती को बिस्तर पर पटक दिया. बिस्तर इतना बड़ा था की चार आदमी एक साथ सो सके. दोनो एक दूसरे से गुत्थम गुथा हो कर बिस्तर पर लुढ़कने लगे. होंठो को चूस्ते हुए कभी गाल काट ता कभी गर्दन पर चुम्मि लेता. चुचि को पूरी ताक़त से मसल देता था. चूतर दबोच कर गांद में साड़ी के उपर से ऐसे उंगली कर रहा था जैसे पूरी साड़ी घुसा देगा. लाजवंती के मुँह से "आ हा आह….उईईईईईईईईई मालिक निकल रहा था.." तभी फुसफुसाते हुए बोली "मेरे पर ही सारा ज़ोर निकलोगे क्या…..बसंती तो….." मुन्ना भी फुसफुसाते हुए बोला "अरी खड़ी रहने दे तुझे एक बार चोद देता हू….फिर खुद गरम हो जाएगी…." मुन्ना की चालाकी समझ वो भी चुप हो गई. फिर मुन्ना ने जल्दी से लाजवंती को पूरा नंगा कर दिया. अपनी ननद के सामने पूरा नंगा होने पर शर्मा कर बोली "हाई मालिक कुच्छ तो छोड़ दो….." मुन्ना अपनी लूँगी खोलते हुए बोला "आज तो पूरा नंगा करके….साडी उठाने से काम नही चलेगा भौजी"
आम के बगीचे में जो मकान या खलिहान जो भी कहे बना था वो वास्तव में चौधरी जब जवान था तब उसकी ऐषगाह थी. वाहा वो रंडिया ले जा कर नाचवाता और मौज मस्ती करता था. जब से दारू के नशे में डूबा तब से उसने वाहा जाना लगभग छोड़ ही दिया था. बाहर से देखने पर तो खलिहान जैसा गाओं में होता है वैसा ही दिखता था मगर अंदर चौधरी ने उसे बड़ा खूबसूरत और आलीशान बना रखा था. दो कमरे जो की काफ़ी बड़े और एक कमरे में बहुत बड़ा बेड था. सुख सुविधा के सारे समान वाहा थे. वाहा पर एक मॅनेजर जो की चौकीदार का काम भी करता था रहता था. ये मॅनेजर मुन्ना के लिए बहुत बड़ी प्राब्लम था. क्यों कि लाजवंती और बसंती दरअसल उसी की बहू और बेटी थी. लाजवंती उसके बेटे की पत्नी थी जो की शहर में रहता था. मुन्ना बाबू घर पहुच कर कुच्छ देर तक सोचते रहे कैसे अपने रास्ते के इस पत्थर को हटाया जाए. खोपड़ी तो शैतानी थी ही. तरक़ीब सूझ गई. उठ कर सीधा आम के बगीचे की ओर चल दिए. मे महीने का पहला हफ़्ता चल रहा था. बगीचे में एक जगह खाट डाल कर मॅनेजर बैठा हुआ दो लड़कियों की टोकरियो में अधपके और कच्चे आम गिन गिन कर रख रहा था. मुन्ना बाबू एक दम से उसके सामने जा कर खड़े हो गये. मॅनेजर हड़बड़ा गया और जल्दी से उठ कर खड़ा हुआ.
"क्या हो रहा है……ये अधपके आम क्यों बेच रहे हो…" मॅनेजर की तो घिघी बँध गई समझ में नही आ रहा था क्या बोले.
"ऐसे ही हर रोज दो टोकरी बेच देते हो क्या …." थोड़ा और धमकाया.
"छ्होटे मलिक….नही छ्होटे मलिक…….वो तो ये बेचारी ऐसे ही…..बड़ी ग़रीब बच्चियाँ है आचार बनाने के लिए माँग रही……" दोनो लड़कियाँ तब तक भाग चुकी थी.
"खूब आचार बना रहे हो…….चलो अभी मा से बोलता हू फिर पता चलेगा….".
मॅनेजर झुक कर पैर पकड़ने लगा. मुन्ना ने उसका हाथ झटक दिया और तेज़ी से घर आ गया. घर आ कर चौधरैयन को सारी बात नमक मिर्च लगा कर बता दी. चुधरैयन ने तुरंत मॅनेजर को बुलवा भेजा खूब झाड़ लगाई और बगीचे से उसकी ड्यूटी हटा दी और चौधरी को बोला कि दीनू को ब्गीचे में भेज दे रखवाली के लिए. अब जितने भी बगीचे थे सब जगह थोड़ी बहुत चोरी तो सारे मॅनेजर करते थे. चौधरी की इतनी ज़मीन ज़ायदाद थी कि उसका ठीक ठीक हिसाब किसी को नही पता था. आम के बगीचे में तो कोई झाँकने भी नही जाता जब फल पक जाते तभी चौधरैयन एक बार चक्कर लगाती थी. मॅनेजर की किस्मत फूटी थी मुन्ना बाबू के चक्कर में फस गया. फिर मुन्ना ने चौधरी से बगीचे वाले मकान की चाभी ले ली. दीनू को बोल दिया मत जाना, गया तो टांग तोड़ दूँगा…तू भी चोर है. दीनू डर के मारे गया ही नही और ना ही किसी से इसकी शिकायत की. जब सब सो जाते तो रात में चाभी ले मुन्ना बाबू खिसक जाते. दो रातो तक लाजवंती की जवानी का रस चूसा आख़िर पायल की कीमत वसूलनी थी. तीसरे दिन लाजवंती ने बता दिया की रात में ले कर आउन्गी. मुन्ना बाबू पूरी तैय्यारि से बगीचे वाले मकान पर पहुच गये. करीब आधे घंटे के बाद ही दरवाजे पर खाट खाट हुई.
मुन्ना ने दरवाजा खोला सामने लाजवंती खड़ी थी. मुन्ना ने धीरे से पोच्छा "भौजी बसंती". लाजवंती ने अंदर घुसते हुए आँखो से अपने पिछे इशारा किया. दरवाजे के पास बसंती सिर झुकाए खड़ी थी. मुन्ना के दिल को करार आ गया. बसंती को इशारे से अंदर बुलाया. बसंती धीरे-धीरे सर्माती सकुचाती अंदर आ गई. मुन्ना ने दरवाजा बंद कर दिया और अंदर वाले कमरे की ओर बढ़ चला. लाजवंती, बसंती का हाथ खींचती हुई पिछे-पिछे चल पड़ी. अंदर पहुच कर मुन्ना ने अंगड़ाई ली. उसने लूँगी पहन रखी थी. लाजवंती को हाथो से पकड़ अपनी ओर खींच लिया और उसके होंठो पर चुम्मा ले बोला "के बात है भौजी आज तो कयामत लग रही हो….."
"हाई छ्होटे मलिक आप तो ऐसे ही…..बसंती को ले आई…." बसंती बेड के पास चुप चाप खड़ी थी.
"हा वो तो देख ही रहा हू…."
"हा मलिक लाजवंती अपना किया वादा नही भूलती……लोग भूल जाते है……" मुन्ना ने पास में पड़े कुर्ते में हाथ डाल कर एक डिब्बा निकाला और लाजवंती के हाथो में थमा दिया. फिर उसकी कमर के पास से पकड़ अपने से चिपका उसके चूतरो को कस कर दबाता हुआ बोला "आते ही अपनी औकात पर आ गई……खोल के देख….." लाजवंती ने खोल के देखा तो उसकी आँखो में चमक आ गई.
"हाई मलिक मैं आपके बारे में कहा बोल रही थी…..मुझे क्या पता नही की चौधरी ख़ानदान के लोग… कितने पक्के होते है….हाई मार दिया …हड्डिया तर्तर गई…"
लाजवंती की गांद की दरार में साडी के उपर से उंगली चलाते हुए उसके गाल पर दाँत गाढ उसकी एक चुचि पकड़ी और कस कर चिपकाया. लाजवंती "आ मालिक आआआअ उईईईई" करने लगी. बसंती एक ओर खड़ी होकर उन दोनो को देख रही थी. मुन्ना ने लाजवंती को बिस्तर पर पटक दिया. बिस्तर इतना बड़ा था की चार आदमी एक साथ सो सके. दोनो एक दूसरे से गुत्थम गुथा हो कर बिस्तर पर लुढ़कने लगे. होंठो को चूस्ते हुए कभी गाल काट ता कभी गर्दन पर चुम्मि लेता. चुचि को पूरी ताक़त से मसल देता था. चूतर दबोच कर गांद में साड़ी के उपर से ऐसे उंगली कर रहा था जैसे पूरी साड़ी घुसा देगा. लाजवंती के मुँह से "आ हा आह….उईईईईईईईईई मालिक निकल रहा था.." तभी फुसफुसाते हुए बोली "मेरे पर ही सारा ज़ोर निकलोगे क्या…..बसंती तो….." मुन्ना भी फुसफुसाते हुए बोला "अरी खड़ी रहने दे तुझे एक बार चोद देता हू….फिर खुद गरम हो जाएगी…." मुन्ना की चालाकी समझ वो भी चुप हो गई. फिर मुन्ना ने जल्दी से लाजवंती को पूरा नंगा कर दिया. अपनी ननद के सामने पूरा नंगा होने पर शर्मा कर बोली "हाई मालिक कुच्छ तो छोड़ दो….." मुन्ना अपनी लूँगी खोलते हुए बोला "आज तो पूरा नंगा करके….साडी उठाने से काम नही चलेगा भौजी"