गर्ल'स स्कूल compleet
Re: गर्ल'स स्कूल
अचानक पिच्चे से 2 सीट आगे एक लड़की ने अपने साथ वाली को इशारा किया," आ देख... वो सर के दोस्त का हाथ..! प्यारी मेडम के कमीज़ के अंदर... उसने उपर उठकर देखा तो पिछे की सभी लड़कियाँ उधर देखने लगी.. उनकी बात अचानक बंद हो गयी. निशा का ध्यान भी टफ के हाथ पर गया... वो प्यारी मेडम के कमीज़ के और शायद उसकी सलवार के भी अंदर जा चुका था... प्यारी आँखें बंद किए बैठी थी... मज़े ले रही थी... उसको अहसास नही था की आधी बस उसी की और देख रही है...
अब सरिता का भी ध्यान पीछे गया... उसने देखा सभी की नज़र उसकी मम्मी की टाँगों के पास है... कुच्छ ना कुच्छ गड़बड़ ज़रूर है, सरिता ने सोचा.... उसकी मम्मी पर भी उसको 'पूरा भरोसा' था. इसका मतलब सर का दोस्त चालू है... उसने भी झपकी आने की आक्टिंग करते हुए अपना सिर टफ के कंधे पर टीका दिया और अपना दायां हाथ अपनी चूचियों के उपर से ले जाते हुए टफ के कंधे पर रख दिया... टफ का ध्यान असलियत में तभी पहली बार सरिता पर गया," नींद आ रही है क्या?"
सरिता संभाल कर बैठ गयी. लेकिन टफ ने अपना हाथ प्यारी की सलवार में से निकाला और सरिता के सिर को पकड़ कर वापस अपने कंधे पर टीका लिया... अब उसको नया माल मिल गया था... प्यारी ने तिर्छि नज़र से पीछे देखा... टफ ने करारा जवाब दिया," ठंड हो गयी है... अब ख़टमल कहाँ होंगे!" बस चलती जा रही थी...
राज को निशा का उसके घुटनो से जाँघ घिसना जान बुझ कर किया हुआ काम लग रहा था... उसने निशा के चेहरे की ओए देखा... वा आँखें बंद किए हुए थी... राज का बाया हाथ मुस्कान की जांघों को सहला रहा था.. हौले हौले...
अंजलि प्यारी के साथ बैठकर बहुत विचलित हो गयी थी. वो किसी भी तरह से राज के पास जाना चाह रही थी... पर कोई चारा नही था... उसने अपनी आँखें बंद की और सोने की तैयारी करने लगी...
कविता के शाल ओढाते ही कंडक्टर और राकेश दोनो की हिम्मत बढ़ गयी थी... राकेश तो अपना हाथ कविता की चूत के उपर रगड़ रहा था... और कंडक्टर अपना बाया हाथ दायें हाथ के नीचे से निकाल कर कविता की बाई चूची को मसल रहा था.. उसके हाथ की हलचल शाल के उपर से ही सॉफ दिखाई दे रही थी... पर ड्राइवर और राकेश के अलावा किसी का ध्यान उधर नही था... कविता की आँखें दो अलग अलग लड़कों से जाम कर मज़े लूट रही थी... पर चुपके चुपके!
टफ ने सरिता का ध्यान अपनी तरफ खींचते हुए कहा," क्या नाम है?"
सरिता ने धीरे से कान में कहा," धीरे बोलो! मम्मी सुन लेगी!"
टफ ने आसचर्या से कहा," तो तुम अंजलि की बेटी हो... गौरी!"
सरिता ने फिर से उससे रक़िएसट की," प्लीज़ धीरे बोलो! मैं सरिता हूँ; प्यारी की बेटी!"
"क्या?" टफ ने पहली बार उसके चेहरे पर गौर किया... ," अरे हां! तुम्हारी तो शकल भी मिलती है... फिर तो करम भी मिलते होंगे!" टफ ने अब की बार ढहीरे ही कहा!
कविता समझ तो गयी थी की ये आदमी कौँसे करमो की बात कर रहा है.. आख़िर उसकी मा को तो सारा गाँव जनता था.. पर उसने ना शामझ बनते हुए कहा," क्या मतलब?"
टफ ने उसकी छाती पर हाथ रखकर कहा... ," कुच्छ नही... तुम्हारी भी बड़ी तारीफ सुनी है.. शमशेर भाई से.... अब तो मज़ा आ जाएगा... कच्छ देर बाद सब समझ आ जाएगा...!
राज को मुस्कान से पॉज़िटिव रेस्पॉन्स मिल रहा था... वा राज के उसकी जाँघ पर फिसल रहे हाथ से लाल होती जा रही थी... राज ने उसको उलझे हुए शब्दों में इशारा किया," टूर पर पुर मज़े लेना साली साहिबा! ऐसे मौके बार बार नही आते... यहाँ से भी बगैर सीखे चली गयी तो मैं शमशेर को क्या मुँह दिखावँगा... ये तीन दिन तुम्हारी जिंदगी के सबसे हसीन दिन शाबिट हो सकते हैं... जी भर कर मज़े लो... और जी भर कर मज़े दो! समझी..."
बस में हल्के म्यूज़िक की वजह से धीरे बोली गयी बात तीसरे कान तक नही पहुँचती थी.......... बस जिंद शहर के पटियाला चौंक से गुज़री..............
मुस्कान को राज की हर बात समझ में आ रही थी... पर इश्स तरह इशारा करने से पहले उसकी हिम्मत नही हो रही थी.... उसने राज के अपनी गरम जांघों पर लगातार मस्ती कर रहे हाथ को अपने हाथ के नीचे दबा लिया... हूल्का सा... राज के लिए इतना सिग्नल बहुत था.. मुस्कान का...
सरिता तो अपनी मा से दो चार कदम आगे ही थी... टफ के अपनी चूची के उपर रखे हाथ को वहीं दबोच लिया और अपना दूसरा हाथ टफ की पॅंट में तैयार बैठहे उसके लंड पर फेरने लगी...
गौरी सो चुकी थी पर निशा की तो नींद उड़ी हुई थी... वो राज के साथ बैठना चाहती थी... वो पीच्चे घूमकर मुस्कान से बोली," मुस्कान! तू आगे आ जा ना; आगे थोड़ी सी ठंड लग रही है... तेरे पास तो कुम्बल भी है... मैं लाना भूल गयी."पर राज को भला मुस्कान उस्स पल कैसे छोड़ती... उसको तो ये तीन दिन अपनी जिंदगी के सबसे हॅसीन दिन बनाए थे... उसने कंबल ही निशा की और कर दिया," लो दीदी... कुम्बल ओढ़ लो!" अब निशा क्या कहती...?
उधर कविता के साथ तो बुरी बन रही थी... एक तो उसकी चूचियों से बिना बच्चे ही दूध निकालने की कोशिश कर रहा था; दूसरा उसकी सलवार के भी अंदर हाथ ले जाकर उसकी चूत का जूस निकालने पर आमादा था... कविता; उपर चूची नीचे
चूत... के साथ हो रही मस्तियों से मस्त हो चुकी थी... ड्राइवर का ध्यान लगातार उस्स पर जा रहा था... अपनी बारी की प्रतीक्षा में.... राकेश रह रह कर गौरी के चेहरे की और देख लेता... और उसका जोश दुगना हो जाता.....
लगभग सारी बस सो चुकी थी... या सोने का नाटक कर रही थी... जाग रहे थे तो सिर्फ़ ये बंदे; ड्राइवर, कंडक्टर, राकेश, कविया; टफ, प्यारी, सरिता; मुस्कान, राज, निशा और नेहा....... और शायद दिव्या भी... वो बार बार आँखें खोल कर बस में आगे चल रहा तमाशा देख रही थी... उसका हाथ अपनी नन्ही सी चूत पर रखा हुआ था........
बस कैथल पहुँच गयी थी.... बाइ पास जा रही थी.... अंबाला की और... करीब 10:15 का टाइम हो चुका था.
ठंड इतनी भी ज़्यादा नही हुई थी जैसा जागने वाले मुसाफिरों के कंबल खोल लेने से दिख रहा था... सबसे पहले टफ ने कंबल निकाला और अपने साथ ही सरिता को भी उसमें लपेट लिया... सरिता ने आगे पिच्छे देखा और टफ को इशारा किया...," ज़्यादा जल्दी है क्या?"
टफ ने अपनी पॅंट की जीप खोलकर अपना चूत का भूखा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया," खुद ही चेक कर लो!"
सरिता ऐसे ही लंड की दीवानी थी; उसने अपनी मुट्ही में टफ का लंड पकड़ा और उसको ऊपर से नीचे तक माप कर देखा," ये तो मेरी पसलियां निकल देगा!" सरिता ने धीरे से टफ के कान में कहा."
सरिता ने अपने आप को सिर तक धक लिया था... उसके होन्ट टफ के कान के पास थे..
टफ ने देर नही की.. सरिता के घुटनो को मोड़ कर अगली सीट से लगवा दिया... और घुटनो को दूर दूर करके उसकी चूत का कमसिन दरवाजा खोल दिया... क्या हुआ खेली खाई थी तो?.... थी तो 17 की ही ना!... कमसिन तो कहना ही पड़ेगा!
टफ ने अपने बायें हाथ को सरिता की जाँघ के नीचे से निकाल कर सलवार के उपर से ही चूत की मालिश करने लगा....
लगभग यही काम राकेश अभी तक कविता की चूत के साथ कर रहा था... सरिता से सब सहन नही हो रहा था... वह उठी और बस के पीछे रखे अपने बॅग में से कंबल निकालने चली गयी... पिच्चे जाते ही कविता के मॅन में आइडिया आया... वा कंबल औध कर पिच्छली लुंबी सीट पर ही बैठ गयी... अकेली! उसके आगे वाली लड़कियाँ सो चुकी थी. वा राकेश के वहाँ आने का इंतज़ार करने लगी... उसको यकीन था... उसकी चूत की मोटी मोटी फांकों को मसल मसल कर फड़कट्ी हुई, लाल
करके शांत भी राकेश ही करेगा... कंडक्टर ने तो बस उसको सुलगया था... आग तो राकेश ने ही भड़काई थी.....
कंडक्टर और राकेश के हाथों से जैसे एकद्ूम किसी ने अमृत का प्याला छ्चीन लिया हो.. कविता के पीछे बैठने का मतलब वो यही समझे थे की वो तंग आकर गयी है... वो ये समझ ही नही पाए की वहाँ वो पूरा काम करवाने के चक्कर में गयी है...... बेचारे राकेश और कंडक्टर एक दूसरे को ही देख देख कर मुश्कूराते रहे....
टफ वाला आइडिया राज को बहुत पसंद आया... उसने अपना कंबल निकाला और उसको औध लिया... फिर उसने मुस्कान की और देखा... मुस्कान आँखों ही आँखों में उसको अपने कंबल में बुला लेने का आग्रह सा कर रही थी. राज ने धीरे से बोला," मुस्कान! कंबल में आना है क्या?
वो शर्मा गयी. उसने कंबल के नीचे से हाथ ले जाकर राज का हाथ पकड़ लिया. राज इशारा समझ गया. उसने कंबल उतार कर मुस्कान को दे दिया और बोला," इसको औध कर बस की दीवार से कमर लगा लो!"
मुस्कान उसकी बात का मतलब समझी नही पर उसने वैसा ही किया जैसा राजने उसको कहा था," सर! आप नही औधेंगे?"
राज ने कोई जवाब नही दिया.. उसने मुश्कान की और खिसक कर उसकी टाँगें उठाई और कंबल समेत अपनी जांघों के उपर से सीट के दूसरी तरफ रख दिया.. कंबल टाँगों पर होने की वजह से वो ढाकी हुई थी. अब राज की जांघें मुस्कान की चूत की गर्मी महसूस कर रही थी... उनके बीच में सिर्फ़ उनके कपड़ा थे... और कुच्छ नही... राज का हाथ अब मुस्कान की चूत को सहला रहा थे कपड़ों के उपर से ही..... अब से पहले मुस्कान के साथ ऐसा कभी नही हुया था... उसको इतने मज़े आ रहे थे की अपनी आँखों को खुला रख पाना और चेहरे से मस्ती को च्छुपाना... दोनो ही मुश्किल थे...
निशा की जांघें राज के घुटनों से दूर होते ही मचल उठी... उसने राज की और देखा... राज और मुस्कान एक दूसरे से चिपक कर बैठहे थे... निशा का ध्यान राज के पैरों की डाई तरफ मुस्कान के पंजों पर पड़ा..," ये बैठने का कौनसा तरीका है..." निशा समझ गयी... की दोनों के बीच ग़मे शुरू हो चुका है..... फिर उसकी नज़र नेहा पर पड़ी... वो मुश्कान के काँप रहे होंटो को देखकर मुश्कुरा रही थी... निशा और नेहा की नज़र मिली... वो दोनों अपनी सीट से उठी और इश्स सीक्रेट को शेर करने के लिए सबसे पिछे वाली सीट पर चली गयी.... कविता के पास....!
निशा ने जाते ही कविता पर जुमला फैंका," यहाँ क्यूँ आ गयी? आगे मज़ा नही आया क्या?.... राकेश के साथ....
कविता को पता नही था की राकेश से अपनी चूत मसळवते समय निशा उसको देख चुकी थी... वो हल्का सा हँसी और बोली... नही मुझे तो नही आया मज़ा... तुझे लेना हो तो जाकर ले ले!
नेहा का मज़ा लेने का पूरा मॅन था," निशा दीदी! मैं जाउ क्या आगे राकेश के पास.... वो कुच्छ करेगा क्या?
निशा ने नेहा पर कॉमेंट किया," रहने दे अभी तू बच्ची है..." फिर कविता को कहने लगी... आगे देख क्या तमाशा चल रहा है... मुस्कान और सुनील सर के बीच..."
कविता बोली," और वो सर का दोस्त भी कम नही है... थोड़ी देर पहले प्यारी मेडम पर लाइन मार रहा था... आशिक मिज़ाज लगता है.." उसने ये बात च्छूपा ली की वो तो उसकी चूत में से भी सीधी उंगली से गीयी निकल चुका है... और नेहा भी तो... शमशेर के साथ.... नेहा और कविता की नज़रें मिली... दोनो ही एक दूसरे के मॅन की बात समझ कर हँसने लगी....
निशा उनकी बात का मतलब ना समझ पाई," क्या बात है. तुम हंस क्यूँ रही हो?"
कविता ने रहस्यमयी अंदाज में कहा," कुच्छ नही... पर नेहा अब बच्ची नही है!"
नेहा ने कविता को घहूरा," दीदी! तुम मेरी बात बताॉगी, तो मैं आपकी भी बता दूँगी... देख लो!"
कविता उसकी बात सुनकर चुप हो गयी.. पर निशा के दिमाग़ में खुजली होने लगी.," आए मुझे भी बता दो ना प्लीज़... मैं किसी को नही बाताओंगी.... प्लीज़... बता दो ना..."
कविता और नेहा ने एक दूसरे की और देखा... वो निशा पर भरोसा कर सकती थी... पर निशा की किसी ऐसी बात का उनको पता नही था... कविता बोली... ठीक है.. बता देंगे... पर एक शर्त है..........
मुस्कान की हालत खराब हो गयी थी.. अपनी कुवारि और मर्द के अहसास से आज तक बेख़बर चूत रह रह कर आ भर रही थी.. जैसे जैसे राज अपने हाथ से उसकी हल्के बलों वाली चूत को प्यार से सहला रहा था, मुस्कान उस्स पर से अपना नियंत्रण खोती जा रही थी.. उसको लग रहा था जैसे उसकी चूत खुल सी गयी हो... चूत के अंदर से रह रह कर निकलने वेल रस की खुश्बू और उसकी सलवार के गीलेपान को सुनील भी महसूस कर रहा था... उसने मुस्कान की सलवार के नाडे पर हाथ डाला... मुस्कान अंजाने डर से सिहर गयी... उसने पिछे देखा... अदिति सो चुकी थी...
मुस्कान ने सर का हाथ पकड़ लिया," नही सर... प्लीज़... कोई देख लेगा... मैं मार जवँगी...
राज उसकी चूत को अपनी आँखों के सामने लेनी के लिए तड़प रहा था. छूने से ही राज को अहसास हो गया था की चूत अभी मार्केट में नही आई है... पर बस में तो उसका 'रिब्बन' काट ही नही सकता था... राज ने धीरे से मुस्कान को कहा," कुच्छ करूँगा नही... बस देखने दो... मुस्कान ने सामने टफ की और देखा....
टफ सरिता का मुँह अपनी जांघों पर झुका चुका था... कंबल के नीचे हो रही हलचल को देखकर भी मुस्कान ये समझ नही पा रही थी की टफ की गोद में हो रही ये हुलचल कैसी है... उसने राज को उधर देखने का इशारा किया... राज ने अपनी गर्दन टफ की और घुमाई तो टफ उसकी और देखकर मुस्कुराने लगा," भाई साहब! अपने अपने समान का ख्याल रखो... आ.. काट क्यूँ रही है?... मेरे माल पर नज़र मत गाड़ो... फिर मुस्कान का प्यारा चेहरा देखकर बोला....," ... या एक्सचेंज करने का इरादा है भाई...."
सरिता बड़ी मस्ती से टफ के लंड को अपने गले की गहराइयों से रु-बारू करा रही थी... अगर ये बस ना होती तो टफ कब का उसकी चूत का भी नाप ले चुका होता... सब कुच्छ खुले आम होते हुए भी... कुच्छ परदा तो ज़रूरी था ना... जैसे आज कल की लड़कियाँ अपनी चूचियों को ढकने के नाम पर एक पतला सा पारदर्शी कपड़ा उन्न पर रख लेती हैं... ऐरफ़ ये दिखाने को की उन्होने तो च्छूपा रखी हैं.. पर दर असल वो तो उनको और दिखता ही है...
सरिता ने लंड की बढ़ रही अकारण के साथ ही उसको गले के अंदर उपर नीचे करने में तेज़ी ला दी... रह रह कर वो टफ के लंड को हूल्का सा काट लेती.. जिससे टफ सिसक पड़ता... बस टफ तो यही सोच रहा था की एक बार ये बस मनाली पहुँच जाए... साली को बतावँगा.. प्यार में दर्द कहते किसको हैं... उसने सरिता की चूची को अपने हाथ में दबाया हुआ था... वो भी उसकी चूचियों को नानी याद करा रहा था... पर सरिता को तो प्यार में वाहसीपान जैसे बहुत पसंद था.. अचानक ही टफ ने सरिता का सिर ज़ोर से अपने लंड के उपर दबा लिया.. लंड से रस की जोरदार पिचकारी निकल कर गले से सीधे सरिता के पेट में पहुच गयी... ना तो सरिता को उसके र्स का स्वाद ही पता चला, और ना ही उसके अरमान शांत हुए... उसकी चूत अब दहक रही थी.. वो किसी भी तरीके से अब इश्स लंड को चूत में डलवाना चाहती थी... पर टफ तो उस्स पल के लिए तो शांत हो ही चुका था... अपना सारा पानी निकालने के बाद उसने सरिता को अपने मुँह से लंड निकालने दिया... पर सरिता ने मुँह बाहर निकलते ही अपने हाथ में पकड़ लिया और टफ को कहा," इसको अभी खड़ा करो और
मेरे अंदर डाल दो... नीचे!
बस ने अंबाला सिटी से जी.टी. रोड पर कर चंडीगढ़ हाइवे पर चलना शुरू किया... करीब 11:30 बजे...
अब सच में ही ठंड लगने लगी थी... सब के सब कंबलों में डुबक गये....
राज सिर्फ़ उसकी चूत को एक बार देखना भर चाहता था... उसके दोबारा कहने पर मुस्कान ने अपना नाडा खोल कर सलवार चूतदों से नीचे खिसका दी... साथ में अपनी पनटी भी... अब उसकी नगी चूत सुनील के हाथों में थी... राज ने मुस्कान की रस से सराबोर हो चुकी चूत को उपर से नीचे तक सहला कर देखा... एक दूं ताज़ा माल था... हल्के हल्क बॉल हाथ नीचे से उपर ले जाते हुए जैसे खुश होकर लहरा रहे थे... पहली बार इश्स तरह उस्स बंजर चूत पर रस की बरसात हुई थी.. वे चिकने होकर रेशम की तरह मालूम हो रहे थे...
राज से रहा ना गया.. उसने कंबल उपर से हटा दिया... क्या शानदार चूत थी... जैसी एक कुँवारी चूत होनी चाहिए... उससे भी बढ़कर... राज ने अपनी उंगली च्छेद पर रखी और अंदर घुसने की कोशिश की.. चिकनी होने पर भी अंदर उंगली जाते ही मुस्कान दर्द के मारे उच्छल पड़ी... और उच्छलने से उसके चूतड़ राज की जांघों पर टिक गये.. उसने नीचे उतरने की कोशिश की पर राज ने उसको वहीं पकड़ कर कंबल वापस चूत पर ढक दिया... टफ सरिता की चूत में उंगली करके उसके अहसान का बदला चुका रहा था... पर उसका धन राज की गोद में बैठी मुस्कान पर ही था... पर ये दोनो जोड़े निसचिंत थे... कम से कम एक दूसरे से...
राज थोड़ा सा और सीट की एक तरफ सरक गया... अब मुस्कान बिल्कुल उसकी जांघों के बीच में राज के लंड पर चूतड़ टिकाए बैठी थी... राज ने पूरी उंगली उसकी चूत में धीरे धीरे करके उतार दी थी... सीट की उचाई ज़्यादा होने की वजह से अब भी बिना कोशिश किए कोई किसी को आगे पीच्चे नही देख पा रहा था....
मुस्कान ने राज को कस कर पकड़ लिया.. उंगली घुसने से मुस्कान को इतना मज़ा आया की वो अपने आप ही धीरे धीरे आगे पीच्चे होकर उंगली को चूत के अंदर की दीवारों से घिसने लगी... वो ज़्यादा टाइम ना टिकी... मुस्कान का रस बाहर आने का अंदाज़ा लगाकर राज ने वापस उसको सीट पर बिठा दिया... मुस्कान ने राज की उंगली को ज़ोर से पकड़ा और अपनी चूत के अंधार ढ़हाकेल कर पकड़ लिया... और अकड़ कर अपनी टाँगे सीधी कर ली... सीट गीली हो गयी...... मुस्कान ने उचक कर नेहा को बताना चाहा की उसने प्रॅक्टिकल करके देख लिया... पर नेहा तो पीछे कविता और निशा के साथ बैठी थी......... मुस्कान राज से लिपट गयी...और सर को थॅंक्स बोला.. राज ने उसके होंटो को अपने होंटो में दबा लिया.... कंबल में धक कर.....
शर्त की बात सुनकर पहले तो निशा हिचकी पर फिर बोली ,"बोलो क्या शर्त है..?"
नेहा कविता के दिमाग़ को पढ़ नही पाई," नही दीदी... प्लीज़ मत बताओ; किसी को पता चल गया तो?
कविता ने उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए कहा," निशा! अगर तुम कोई अपना राज बता दो तो हम भी तुम्हे एक ऐसी बात बता सकती हैं, जिसको सुनकर तुम उच्छल पड़ोगी... हम तुझे टूर पर मज़े दिलवा सकती हैं... "
निशा को अपने भाई के साथ 2 दिन पहले मनाई गयी सुहग्रात याद आ गयी.. पर इश्स बात को तो वा किसी के साथ भी शेर नही कर सकती थी...," मेरी कोई बात नही है... हन में दिव्या और सरिता की एक बात बता सकती हूँ...?"
कविता चौकी...," दिव्या की बात? वो तो छ्होटी सी तो है...!... और सरिता की बात कौन नही जानता...!"
निशा ने और भी मज़े लेते हुए कहा," देख लो! मेरे पास इतनी छ्होटी लड़की की बात है... और वो भी एक ऐसे आदमी के साथ जो तुम सोच भी नही सकती.... !"
ठीक है बताओ, पर इसके बाद हम एक आर काम करवाएँगे अपनी बात बताने से पहले..!"
अब निशा को उनकी सुन-ने से ज़्यादा अपनी बात बताने पर ध्यान था..," मैने स्कूल में शमशेर को सरिता और दिव्या के साथ करते देखा था..."
"क्य्ाआ?" दोनो के मुँह से एकसाथ निकला... शमशेर के साथ ही तो वो अपनी बात बताने की सोच रही थी...!
"दिव्या के साथ भी?" कविता ने पूचछा.
निशा ने सच ही बता दिया..," नही! पर वो भी नंगी खड़ी थी सर के साथ..."
अब कविता और नेहा के पास बताने को इससे ज़्यादा कुच्छ नही था की शमशेर ने ही एक दोस्त के साथ मिलकर उनको खूब चोदा था... और वो दोस्त इसी बस में जा रहा था... उनके साथ... और इसका मतलब टूर में मौज करने का हथियार उनके साथ ही जा रहा था...
"अब बताओ भी!" निशा ने कविता को टोका.
"हम तुम्हारी कोई बात जाने बिना तुम्हे नही बता सकते... अब जैसे तूने सरिता की बात बता दी ऐसे ही हमारी भी किसी को बता सकती हो... पर हम तुम्हे बता सकते हैं... अगर तुम एक काम कर सको तो!" कविता ने कहा..
"क्या काम!" निशा ने सोचते हुए पूचछा...
"अगर तुम अपनी सलवार और पनटी को निकाल कर अपनी ये हमको दिख सको तो....." कविता ने सौदा निशा के सामने रखा....
"तुम पागल हो क्या? ये कैसे हो सकता है... और तुम्हे देखकर मिलेगा क्या... ?"
"मैं सिर्फ़ ये देखूँगी की तुम अभी तक कुँवारी हो या नही..." कविता ने निशा से कहा..
"तुम्हे कैसे पता लगेगा" निशा अचरज से बोली...
"वो तुम मुझ पर छ्चोड़ दो.. और तुम्हे भी सीखा दूँगी कैसे देखते हैं... कुँवारापन...!" कविता बोली...
Re: गर्ल'स स्कूल
निशा को विस्वास नही हो रहा था की कोई चूत देखकर ये बता भी सकता है की चूत चुड चुकी है या नही....," ठीक है... मैं तैयार हूँ... पहले तुमको बात बतानी पड़ेगी..."
"ऐसा नही होगा; तुम बाद में मुकर सकती हो" नेहा ने अंदेशा प्रकट किया..
"ये तो मैं भी कह सकती हूँ की तुम भी बाद में मुकर सकती हो..." निशा ने जवाब दिया.
कविता बताने को राज़ी हो गयी," सुनो! वो शमशेर सर हैं ना... उन्होने हमको भी चोद दिया..."
"च्चीी ! कैसी भासा बोल रही हो...? और क्या सच में..? दोनो को?" निशा को अचरज हुआ की एक आदमी किस किस को चोदेगा..."
"नही... शमशेर ने सिर्फ़ नेहा को चोदा था... मेरे सामने ही..." कविता ने बताया..
"तुम वहाँ का कर रही थी..?" निशा को अब भी विस्वास नही हो रहा था...
"मुझे कोई और चोद रहा था"
"कौन?"
" ये जो सामने सरिता के साथ कुच्छ कुच्छ कर रहा है अभी... ये शमशेर सर का भी दोस्त है...
निशा की आँखें फटी रह गयी.. उसने कभी भी नही सोचा था की सेक्स का ये खेल ऐसे भी हो सकता है... 2 लड़के... 2 लड़की..," तुम्हे शर्म नही आई साथ साथ"
कविता ने सपस्ट किया," वो सूब तो यूँही हो गया था... हम कुछ कर ही नही सके... पर मैं चाहती हूँ की कम से कम एक बार और वैसे ही काई लड़कियाँ और काई लड़के होने चाहियें... टूर पर... सच में इतना मज़ा आता है..."
नेहा ने भी अपना सिर खुश होकर हिलाया..," अब आप दीदी की बात पूरी करो.. आपकी सलवार उतार कर दिकजाओ; आप कुँवारी हैं या नही...
बस ने पंचकुला से आगे पहाड़ी रास्तों पर बढ़ना शुरू किया था... ठंड बढ़ने लगी............ करीब 12:00 बाज गये थे... आधी रात के......
टफ अब सरिता की आग बुझाने की कोशिश कर रहा था... उसी तरीके से; जिस-से तहोड़ी देर पहले मुस्कान शांत हुई थी... उंगली से.. अब मुस्कान राज के लंड की गर्मी को अपनी जीभ से चट चट कर शांत कर रही थी... कंबल के अंदर...
निशा ने अपना वाडा निभाया... उसने झिझकते हुए अपन सलवार उतार दी... कविता उसकी पनटी को देखते ही बोली," कहाँ से ली.. बड़ी सुंदर है" ... वही लड़कियों वाली बात...
निशा को दर सता रहा था की कहीं कविता को सच में ही कुँवारी और चूड़ी हुई चूत में फ़र्क करना ना आता हो! अगर उसने उसकी चूत के चुड़े होने की बात कह दी तो वो किसका नाम लेगी...अपने सगे भाई का तो ले नही सकती...
कविता ने निशा की चूत पर से पनटी की दीवार को साइड में किया... निशा की चूत एक दूं उसके रंग की तरह से ही गोरी सी थी... कविता ने निशा के चेहरे की और देखा और उसकी चूत के च्छेद पर उंगली टीका दी... निशा एकद्ूम से उत्तेजित हो गयी... 2 दिन पहले उसके भाई का लंड वहीं रखा था.. उसकी चूत के मुँह पर... और उसकी चूत उसके भाई के लंड को ही निगल गयी थी... पूरा..!
कविता ने एकद्ूम से उंगली उसकी चूत में थॉंस दी... सर्ररर से उंगली पूरी अंदर चली गयी.....
बस का ड्राइवर बेकाबू हो रहा था... कितने सपने संजोए तहे उससने आधी दूर मज़े लेने के... कितनी मस्त मोटी मोटी चूचिया थी.. उस्स लड़की की... कंडक्टर सला अकेले ही मज़े ले गया... अब क्या करूँ... ये सोचते सोचते उसके मॅन में एक आइडिया आया...
उसने अचानक ही रेस ओर क्लच एक साथ दबा कर गाड़ी रोक दी... जो जाग रहे थे अचानक ही सब चौंके... जल्दबाज़ी में अपने आपको ठीक किया. टफ ने पूचछा..., "क्या हुआ भाई...?"
"शायद कलुतचप्लते उडद गयी साहब!" चढ़ाई को झेल नही पाई.. पुरानी हो चुकी तही....
टफ ने रहट की साँस ली, बाकियों ने भी.... अब अपना अपना काम करने... और करवाने के लिए सुबह का इंतज़ार नही करना पड़ेगा.. एक बार तो टफ के मॅन में आई की स्टार्ट करके देखे... पर उसको लगा जो हुआ तहीएक ही हुआ है...
राज और टफ ने बाहर निकल कर देखा... चारों और अंधेरा था... एक तरफ पहाड़ी थी तो दूसरी तरफ घाटी....," अब क्या करें?" राज ने टफ की राई लेनी चाही....
सबसे पहले तो एक एक बार चोदुन्गा दोनों मा बेटी को... उसके बेगैर तो मेरा दिमाग़ काम करेगा ही नही....
राज के पास तो तीन तीन विकल्प तहे; अंजलि, गौरी, और मुस्कान...
पर ऊए उसकी सोच वो... टूर की सब लड़कियाँ प्रॅक्टिकल करना चाहती थी.....
बस के रुकते ही धीरे धीरे करके सभी उठ गये. सभी ने इधर उधर देखा... अंजलि ने राज से मुखातिब होकर अपनी आँखें मलते हुए कहा," क्या हुआ?? बस क्यूँ रोक दी...?"
"बस खराब हो गयी है.. मेडम... अब ये सुबह ही चलेगी....! अभी तो मिस्त्री मिलेगा नही....." ड्राइवर ने आगे आ चुकी कविता को घूरते हुए कहा... तकरीबन सभी लड़कियाँ जो पहली बार मनाली के टूर पर आई थी... उदास हो गयी... वो जल्दी से जल्दी मनाली जाना चाहती थी... पर कूम से कूम एक लड़की ऐसी थी... जो इश्स मौके का फयडा उतहाना चाहती तही...'कविता!' उसने कातिल निगाहों से राकेश को देखा... पर राकेश का ध्यान अब निशा को कुच्छ कहकर खिलखिला रही गौरी पर था... राज और टफ आस पास का जयजा लेने नीचे उतरे... उनके साथ ही अंजलि और प्यारी मेडम भी उतर गयी... कविता ने राकेश को कोहनी मारी और नीचे उतार गयी... राकेश इशारा समझ गया... वो भी नीचे उतार गया... धीरे धीरे सभी लड़कियाँ और ड्राइवर कंडक्टर भी बस से उतार गये... और दूर तारों की तरह टिमटिमा रहे छोटी छोटी बस्तियों के बल्बस को देखने लगे... कहीं दूर गाँव में दीवाली सी दिख रही थी... जगह जगह टोलियों में लड़कियों समेत कंबल औधे सभी बाहर ही बैठह गये... अब ये तय हो गया था की बस सुबह ठीक होकर ही चलेगी.... गौरी बार बार राकेश की और देख रही थी... अब तक उसको दीवानो की तरह घूर रहे राकेश का ध्यान अब उस्स पर ना था... थोड़ी देर पहले तक राकेश को अपनी और देखते पाकर निशा के कान में उसको जाने क्या क्या कह कर हँसने वाली गौरी अब विचलित हो गयी... लड़कियों की यही तो आदत होती है.... जो उसको देखे वो लफंगा... और जो ना देखे वो मानो नही होता बंदा(मर्द).... अब गौरी लगातार उसकी और देख रही थी... पर राकेश का ध्यान तो कुच्छ लेने देने को तैयार बैठी कविता पर था... गौरी ने देखा; राकेश ने कविता को हाथ से कुच्छ इशारा किया और नीचे की और चल पड़ा... धीरे धीरे... सब से चूपते हुए... गौरी की नज़र कविता पर पड़ी... उसके मान में कुच्छ ना कुच्छ ज़रूर चल रहा था... अपनी टोली में बैठकर भी वा किसी की बातों पर ध्यान नही दे रही थी.... वा बार बार पिच्चे मुड़कर अंधेरे में गायब हो चुके राकेश को देखने की कोशिश कर रही तही..... आख़िरकार वो आराम से उठी और सहेलियों से बोली...," मैं तो बस में जा रही हूँ सोने..."
गौरी साथ ही उठ गयी," चलो मैं भी चलती हूँ!"
"तो तूही चली जा..." कविता गुस्से से बोली थी...
गौरी को विस्वास हो गया की ज़रूर कविता राकेश के पिछे जाएगी... ," अरे मैं तो मज़ाक कर रही थी..!"
कविता को अब उठते हुए शरम आ रही थी... पर चूत की ठनक ने उसको थोड़ी सी बेशर्मी दिखाने को वीवाज़ कर दिया... वो अंगड़ाई सी लेकर उठी और रोड के दूसरी तरफ... बस के दरवाजे की और चली गयी.... गौरी का ध्यान उसी पर था.... सड़क पर काफ़ी अंधेरा था... पर क्यूंकी गौरी ने बस के पीछे अपनी आँखें गाड़ा रखी थी... उसको कंबल औधे एक साया सड़क पर जाता दिखाई दिया.... गौरी को यकीन था वो कविता ही थी...
गौरी भी धीरे से उठी और वहाँ से सरक कर बस में जा चढ़ि.... कविता वहाँ नही थी..... उसको पूरा यकीन हो गया था की कविता और राकेश अब ज़रूर ग़मे खेलेंगे.... गौरी राज और अंजलि का लाइव मॅच तो देख ना सकी थी... पर लाइव मॅच देखने का चान्स उसका यही पूरा हो सकता था... उसने दोनो को रंगे हाथो पकड़ कर अपनी हसरत पूरी करने की योजना बनाई... और उधर ही चल दी.... जिधर उसको वो साया जाता दिखाई दिया था.....
उधर उनसे दूसरी दिशा में ड्राइवर थोड़ी ही दूरी पर कविता का मुँह बंद करके उसको घसीट-ता सा ले जा रहा था... वैसे तो कविता को उससे चुदाई करवाने में भी कोई समस्या नही तही.... पर एक तो अंजान जगह उस्स पर आदमी भी अंजान... वो डरी हुई थी....
जिधर गौरी साया देखकर गयी थी... उससे बिल्कुल दूसरी दिशा में काफ़ी दूर ले जाकर ड्राइवर ने उसके मुँह से हाथ हटा लिया... लेकिन वो उसको एक हाथ से मजबूती से पकड़े हुए था...
कविता कसमसाई...," छोड़ दो मुझे... यहाँ क्यूँ ले आए हो?" पर उसकी आवाज़ में विरोध उतना भी ना था जितना एक कुँवारी लड़की को अपने हो सकने वाले बलात्कार से पहले होता है...
ड्राइवर ने लगभग गिड़गिदा कर कहा," हा य! मेरी रानी! एक बार बस दबा कर देख लेने दो... मैं तुम्हे जाने दूँगा.."
"नही.. मुझे अभी छोड़ो...!" मुझे जाने दो"... ड्राइवर को गिड़गिदते देख कविता में थोड़ी सी हिम्मत आ गयी और नखरे दिखाने लगी... वैसे उसके लिए तो राकेश और ड्राइवर में कोई फ़र्क नही था... आख़िर लौदा तो दोनो के ही पास था.....
ड्राइवर को कविता की इजाज़त नही चाहिए थी... वो तो बस इतना चाहता था की पूरा काम वो आसानी से करवा ले... वरना बस में उसकी शराफ़त वो देख ही चुका था... कैसे दो दो के मज़े एक साथ ले रही थी...
"तेरी चूची कितनी मोटी मोटी हैं... गांद भी मस्त है... फिर चूत भी... कसम से तू मुझे एक बार हाथ लगा लेने दे... जैसे 'शिव' से डबवा रही थी.... हाए क्या चीज़ है तू! " ड्राइवर रह रह कर उसको यहक़्न वहाँ से दबा रहा था... उसका एक हाथ अपने लंड को थोड़ा इंतज़ार करने की तस्सली दे रहा था.... पर कविता थी की उसके नखरे बढ़ते ही जा रहे थे," मैं तुमको हाथ लगाने भी देती... पर तुम मुझे ऐसे क्यूँ... आ... उठा कर लाए... मैं कुच्छ नही करने दूँगी"
उसका वोरोध सरासर दिखावा था... ड्राइवर तो कर ही रहा था... सब कुच्छ... पर बाहर से... उसने कविता का एक चूतड़ अपने हाथ में पकड़ रखा तहा और चूतदों के बीच की खाई को उंगलियों से कुरेड रहा था.... मानो उसकी गांद को जगा रहा हो....," करने दे ना चोरी.. बड़ी मस्त है तू..."
"नही... मैं कुछ नही करने दूँगी" कविता ने गुस्सा दिखाते हुए कहा... जैसे ड्राइवर अभी तक उससे हाथ ही मिला रहा हो...
ड्राइवर उसको धीरे धीरे सरकता सरकाता सड़क के एक मोड़ पर नीचे की और जा रहे छ्होटे से रास्ते की और ले गया... शायद वो रास्ता नीचे गाँव में जाता था... मनाली के रोड से दूर.....
"देख तो ले एक बार! ड्राइवर ने पॅंट में से अपना लंबा, मोटा एर काला सा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया... लंड बिल्कुल तैयार था... उसकी चूत की सुरंग को और खोल देने के लिए...
"नही, मुझे कुच्छ नही देखना! " कविता ने मुँह फेर लिया.. पर ऐसे शानदार लंड को अपने हाथ से अलग ना कर पाई... ऐसा लंड रोज़ रोज़ कहाँ मिलता है... पर उपर से वो यही दिखा रही थी की उसको कुच्छ भी नही करना है.... कुच्छ भी......
ड्राइवर के लंड को सहलाते सहलाते कविता इतनी गरम हो गयी थी की उसने अपने दूसरे हाथ को भी वहीं पहुँचा दिया... पर नखरे तो देखो लड़की के," तुम बहुत गंदे हो.... तुम्हे शरम नही आती क्या...?"
ड्राइवर बातों का खिलाड़ी नही था.... ना ही उससे कविता की बात का जवाब देने में इंटेरेस्ट था... वो तो बस एक ही रट लगाए हुए था... ," एक बार दे देगी तो तेरा क्या घिस जाएगा?"
कविता ने फिर वही राग अलापा," नही मुझे कुच्छ देना वेना नही है..." उसका ध्यान अब भी ड्राइवर के लंड की धिराक रही टोपी पर था....
ड्राइवर ने अपना हाथ सलवार के अंदर से पीछे उसकी गांद की दरारों में घुसा दिया तहा... वो एक हाथ से ही दोनो चूतदों को अलग अलग करने की कोशिश कर रहा था.. पर मोटी कसी हुई गांद फिर भी बार बार चिपकी जा रही थी... ड्राइवर क एक उंगली गांद के प्रवेश द्वार तक पहुँच ही गयी... उसने उंगली गांद के च्छेद में ही घुसा दी... कविता को रात के तारे दिखाई देने बंद हो गये तहे.... क्यूंकी उसकी आँखें मारे आनंद के बंद हो गयी थी... वो आगे होकर ड्राइवर की छति से चिपक गयी और उसके होंटो पर अपने नरम होंटो से चूमने लगी...
ड्राइवर तो सीधे ही सिक्सर लगाने वाला आदमी था... ये होन्ट वोंट उसकी समझ के बाहर थे... उसने झट से कविता का पहले ही उतारा कंबल ज़मीन पर बिच्छा दिया और उसको ज़बरदस्ती उसस्पर लिटने की कोशिश करने लगा...
"रुक जाओ ना! ईडियट... चूत मरने का मज़ा भी लेना नही आता...." कविता अब सीधे क्षकशकश मूड में आ गयी थी...
ड्राइवर उसकी बात सुनकर ठिठक कर खड़ा हो गया.. जैसे सच में ही वो नादान हो... जैसे कविता ही उसको ज़बरदस्ती वहाँ उठा लाई हो....
वो चुप चाप कविता की और देखने लगा; जैसे पूच्छ रहा हो... फिर कैसे मारनी है... चूत!
कविता ने ड्राइवर को सीधा खड़ा हो जाने को कहा.... वो बच्चे की तरह अपनी नूनी पकड़ कर खड़ा हो गया... कविता कंबल पर घुटनो के बाल बैठी और इसका सूपड़ा अपना पूरा मुँह खोल कर अंदर फिट कर लिया... ड्राइवर मारे आनद के मार गया... उसने तो आज तक अपनी बाहू की टाँग उतहकर ढ़हाक्के मार मार कर यूँही पागल किया था... हन अँग्रेज़ी फ़िल्मो में उसने देखा ज़रूर था ये सब... पर उनको तो वा कमेरे की सफाई मानता था... इतना आनंद तो उसको कभी चूत में भी नही आया... जो ये छ्होटी सी लड़की उसको दे रही थी.. वो तो उसका चेला बन गया.. अपने आप वो हिला भी नही... अब जो कर रही तही.. वो कविता ही कर रही थी...
कविता उसके गरम लंड के सुपादे पर अपनी जीभ घिमाने लगी... ड्राइवर मारे आनंद के उच्छल रहा था...."इसस्स्सस्स.... चूऊऊऊओस लीई! कसाआअँ से चहोरि.. तेरे जैसेईईइ लड़की... अया गुदगुदी हो रही है...
कविता ने अपने दोनो हाथों से ड्राइवर के चूतड़ पकड़ रखे थे और... लंड को पकड़ने की ज़रूरत ही नही ठीक... वो तो कविता के होंटो ने जाकड़ रखा तहा.. बुरी तरह...
कविता ने लंड को और ज़्यादा दबोचने की कोशिश करी... पर लंड का सूपड़ा इतना मोटा था की उसके गले से आगे ही ना बढ़ा... वो सूपदे को ही आगे पीच्चे होन्ट करके चोदने लगिइइई...... ऐसा करते हुए वो ड्राइवर के चेहरे के पल पल बदल रहे भाव देखकर और ज़्यादा उत्तेजित हो रही थी.......
Re: गर्ल'स स्कूल
गर्ल्स स्कूल--14
ड्राइवर को उस्स छ्छोकरी ने सूपड़ा चूस चूस कर इतना पागल कर दिया की वो आखरी दम पर भी अपना लंड बाहर निकलना भूल गया... 5 मिनिट के करीब ही वो थ्रा गया... उसके लंड का रस झटके मार मार कर छ्होरी के मुँह में ही निकल गया... आनंद के मारे उसने अपनी आइडियान उपर उठा ली... पर कविता उसके सूपदे से मुँह हटाने को तैयार ही ना थी.. वा साथ साथ उपर उठती चली गयी... और रस की एक एक बूँद को अपने मुँह में भर लिया... लंड अपने आप ही शर्मा कर बाहर निकल आया... ड्राइवर की हालत देखकर कविता अपनी जीभ से होंटो को चट-ती हुई मुस्कुरा रही थी..," बहुत गरम था... मज़ा आ गया!"
"मेरा सारा प्लान चौपट कर दिया छ्होरी... अपनी चूत को बचा लिया.. मेरे लंड से!" चल जल्दी चल.. बस के पास!" ड्राइवर अपनी चैन बंद करने लगा...
कविता तो पुर रंग में थी," ऐसे नही जाने दूँगी अब... मेरा रस कौन पिएगा!" कहती हुई कविता अपनी सलवार उतारने लगी... और फिर पनटी उतार कर अपनी कमसिन; पर खेली खाई चूत का दीदार ड्राइवर को कराया..
ड्राइवर उसकी 18 साल की चिकनी मोटी फांको वाली चूत को देखता ही रह गया... सच में उसने ऐसी चूत आज तक नही देखी थी... उसने तो आज तक या तो रंडियों की मारी थी या फिर अपनी काली भद्दी सी बहू की... बिना कुच्छ कहे ही वा कंबल पर बैठ गया और कविता की चूत पर हाथ फेरने लगा..," हाई.. कितनी गोरी चिटी है छ्होरी तेरी चूत...
कविता ने एक स्पेशलिस्ट की तरह अपने चूतड़ कंबल पर रखे और अपनी टाँगें फैला दी... ऐसा करते ही चूत की फांकों ने दूर होकर उसका सुर लाल रंग ड्राइवर को दिखाया... वा भौचक्का होकर उसको देखने लगा..
ड्राइवर ने तुरंत अपनी पॅंट उतार दी.. लंड का ओरिज्णल काम करने के लिए....
पर कविता पूरी तरह मस्त थी.. उसने ड्राइवर के चेहरे को पकड़ा और अपनी चूत के दाने से उसके होन्ट लगा कर मचल उठी," इसको मुँह मीं पकड़ कर चूसो!"
ड्राइवर ने जैसे उसकी अग्या का पालन किया.. उसने जीब निकल कर चूत की फांको में रस टपकाना शुरू कर दिया... कविता ने सिर ज़ोर से चूत पर दबा लिया और तेज तेज साँसे लेने लगी... ड्राइवर को ठंड में भी पसीने आने लगे...," अपना लौदा मेरी चूत पर रखो... अंदर मत करना" कविता ने आदेश दिया... और उसका गुलाम हो चुके ड्राइवर ने ऐसा ही किया... वो उसके उपर आ गया... और घुटनो और कोहानियों के बाल ज़मीन पर सेट हो गया.. लंड उसकी चूत के उपर झूल रहा था.. अभी वो पूरी तरह आकड़ा नही था...
कविता ने अपना हाथ नीचे ले जाकर उसके लंड को पकड़ा और अपनी चूत पर घिसने लगी... बाहर ही... दाने पर... वा सिसक रही थी.. बक रही थी.. और ड्राइवर का लौदा खड़ा होते होते उसकी चूत की फांको के बीच फँस गया.. अब वा ज़्यादा हिल नही रहा था... कविता के चूतड़ उपर उठते चले गये.. लंड अब कम हिल रहा था और कविता की चूत ही उपर नेचे होकर अपने आप से लौदे को गुइसा रही थी..
ड्राइवर अब फिर कगार पर आ गया था झड़ने के... उसने लौदा कविता के हाथ से छ्चीन लिया," अब की बार ऐसे नही... अब अंदर करने दो चूत के...
कविता भी अब मस्त हो चुकी थी... उसने अपनी टाँग हवा में उठा दी... और उनको पिछे ले गयी," लो फँसा दो जल्दी.." वा तड़प सी गयी थी.. लंड को उतारने को...
ड्राइवर ने कविता की टाँगों को पकड़ कर थोड़ा और पिछे किया... अपना लंड चूत के उपर रखा और उस्स पर बैठ गया... कविता की एकद्ूम साँस बंद हो गयी.. उसका गला सूख गया... आँखें बाहर आने को हुई... और वा मिमियने लगी.. ," बाहर निकाल जल्दी.. मार गयी.. माआअ.. " पर ड्राइवर ने अपने गुरु से बग़ावत कर दी... उसका मुँह दबोचा और उसके अंदर समाता चला गया... पूरा लंड चूत में उतार कर उसने कविता की चूत को देखा.. वा ऐसे ही खुल गयी थी जैसे उसकी बहू की चूत सुहग्रात वाले दिन खुल गयी थी... वा भी ऐसे ही चीखी थी.. और अगले दिन कभी ना आने की धमकी देकर गयी थी... पर चूत तो चूत होती है... उसके बाद जब उसकी बाहू वापस आई तो कभी जाने का नाम ही ना लिया...
ड्राइवर ने लंड पूरा चूत में फँसाए फँसाए ही कविता को बैठा लिया अपन जाँघो पर.. आर उसका कमीज़ उतार दिया... ब्रा से ढाकी उसकी चूचियाँ इतनी मस्त लग रही थी की ड्राइवर ने तुरंत उसकी ब्रा को उपर उठा कर उसकी चूचियों को ब्रा के नीचे से निकाल लिया और उनको चूसने लगा.. धीरे धीरे!
कविता की चूत ने जैसे तैसे ड्राइवर का लंड अपने अंदर रख लिया... ड्राइवर उसको अपनी जांघविं उपर नीचे करके हिला रहा था और थोड़ा थोड़ा लंड चूत के अंदर बाहर होने लगा....
धीरे धीरे मज़ा बढ़ने लगा... कविता ने उसके गले में बाहें डाली और पिछे लुढ़क गयी... लगभग पहले वाली पोज़िशन आ गयी... ड्राइवर अपने घुटनो पर बैठ गया और लंड को थोड़ा और ज़्यादा अंदर बाहर करने लगा.. अब कविता को भी जन्नत में होने का अहसास हो रहा था... उसको लगा दर्द में तो इश्स मज़े से भी ज़्यादा मज़ा आया था... सोचते सोचते ही उसकी चूत का ढेर सारा रस बाहर निकलने लगा.. झटके अब झटके नही लग रहे थे... लंड इतनी सफाई से अंदर बाहर हो रहा था की जैसे वो धक्के लगा ही ना रहा हो.. अचानक कविता का बचा खुचा रस भी बौच्हर की तरह से निकल कर लंड के साथ ही बाहर टपकने लगा... कविता को अब दर्द का अहसास होने लगा... अब इश्स दर्द में मज़ा नही था... पर ड्राइवर का काम अब बहुत देर तक चलना था.... कविता ने कहा "अब इसस्में नही... में उल्टी होती हूँ.. तुम पीछे कर लो"
ड्राइवर का तो मज़े से बुरा हाल हो गया... गांद में जाने का ऑफर मिलते ही लंड और शख्त हो गया... वहाँ और शख़्ती की ज़रूरत जो थी..
उसने झट अपना लंड बाहर निकाला और कविता को कुतिया बना दिया.. उसकी कमर को बीच से नीचे दबा कर जितना गांद को खोला जा सकता था.. खोला... लंड को गांद के च्छेद पर टीकाया और बोला.. "डाल दूं?"
"हां!" और हां कहते ही कविता ने अपने दातों को बुरी तरह भींच लिया... उसको पता था अब क्या होना है...
ड्राइवर के ज़ोर लगाते ही चिकना होने की वजह से वो फिसल कर चूत में ही घुस गया.. कविता चिल्ला उठी.. "यहाँ क्यूँ कर दिया कामीने...!"
ड्राइवर ने लंड निकल कर सॉरी बोला... उसने कविता की चूत से अपनी उंगली को घुसा कर रस लगाया और उंगल गांद में घुसा दी... इससे मोटे की तो वो आदि थी," इससे कुच्छ नही होगा... लंड घिसा अपना..."
"चिकनी तो कर लूँ छ्होरी.. तेरी गाड" उसने रस को अच्छि तरह से उसकी गांद में लगाया और फिर से अपना लौदा ट्राइ किया.. एक हाथ से पकड़ा और उस्स पर ज़ोर डाला.. सूपड़ा आधा अंदर गया.. और कविया दर्द और मज़े के मारे मार सी गयी," फँसा दे... फँसा दे... जल्दी फँसा दे... फटने दे चिंता मत कर...
ड्राइवर को भला क्या चिंता होनी थी.. उसने एक धक्का और ज़ोर से मारा और लंड का गोल घेरा उसकी गाड में फँस गया...
कविता की टाँगें जैसे बीच में से काट जायेंगी... पर उसमें गजब की हिम्मत थी... उसने अपने मुँह में कंबल त्हूस लिया... पर टांगे नही हिलने दी मैदान से...
कुच्छ देर बाद गांद ने भी हिम्मत हार कर खुद को खोल ही दिया लंड के लिए... अब लंड बाहर कम आता और हर बार अंदर ज़्यादा जाता... ऐसे ही इंच इंच सरकता सरकता लंड पूरा अंदर बाहर होने लगा.... कविता को ड्राइवर से ज़्यादा और ड्राइवर को कविता से ज़्यादा मज़े लेने की पड़ी थी.. दोनो आगे पीछे होते रहे.... ड्राइवर ने दोनो और से उसकी चूचियों को पकड़ रखा था और झटकों के साथ साथ उनको भी खींच रहा था.....
ऐसा चलता गया .... चलता गया... और फिर रुकने लगा.... ड्राइवर ने उसकी गांद को रस से भर दिया और तब तक धक्के लगाता रहा जब तक उसके लंड ने और धक्के लगाने से इनकार करके मूड कर अपने आपको गांद से बाहर ना कर लिया...
कविता ने तुरंत पलट कर उसके लंड को अपने होंटो से चुम्मि दे कर थॅंक्स बोला... इतने मज़े देने के लिए... पर लंड सो चुका था.....
बस के पास सभी अपनी अपनी बातों में लीन थे... सभी मनाली जाकर करने वाले मौज मस्ती की प्लॅनिंग कर रहे थे.... किसी को किसी की फिकर ना थी... जो जिसके पास बैठा था... उसके सिवा किसी का ख्याल ना था... जब ड्राइवर कविता का मुँह बंद करके उसको एक तरफ ले जा रहा था... लगभग उसी वक़्त... अकेले खड़े बातें कर रहे टफ और राज के पास मुस्कान आई....," सर! मुझे आपसे कुच्छ बात करनी है...!"
"बोलो!" राज ने घूमते हुए कहा.
मुस्कान टफ के सामने शर्मा रही थी... हालाँकि बस में उसने सरिता के साथ मस्ती करते टफ को देख लिया था.... और वो खुद भी जानती थी की राज की जांघों पर बैठ मज़े लेते टफ ने भी उसको देखा था... पर वो फिर भी शर्मा रही थी....," सर.... मुझे अकेले में बात करनी है.. आपसे!" वो नज़रें झुकायं बात कर रही थी... राज के हाथो मिली मस्ती की लाली अब भी उसके गालों पर कायम थी... का हुआ जो अंधेरे की वजह से किसी ने नही देखा... राज टफ को ' एक मिनिट कहकर उसी और चल पड़ा जिस तरफ कविया और ड्राइवर गये हुए थे...," मज़ा आया मुस्कान!"
मुस्कान कुच्छ ना बोली... बस नज़रें झुकाए साथ चलती रही... वो चाहती थी की सर खुद ही उसकी कसक जान लें... और उसको प्रॅक्टिकल पूरा करा दें... जिसको सर ने अधूरा छ्चोड़ कर उसकी हालत पतली कर दी थी...
थोड़ा आगे जाने पर सुनील ने उसके कंधे पर हाथ रख लिया और चलता रहा," बोलो ना! शर्मा क्यूँ रही हो?"
"कुच्छ नही सर....वो!" मुस्कान कुच्छ बोल नही पा रही थी... उन्होने ध्यान नही दिया... बस में उनके पिच्चे बैठही अदिति और दिव्या उनके पीछे पीछे जासूसों की तरह चल रही थी... उनको पता था.... ज़रूर यहाँ प्रॅक्टिकल पूरा हो सकता है.... क्या पता उनका भी एक एक पीरियड हो जाए...
राज ने उसके कंधे पर रखे हाथ से उसकी चूची को दबा दिया... ज़्यादा बड़ी नही थी... पर खड़ी खड़ी ज़रूर थी.... मुस्कान हल्की सी सिसकारी लेकर राज की छति से लिपट गयी..," सर कर दो!... प्लीज़... मैं मर जाउन्गि!" उसने अपने हाथ सुनील की पीठ पर चिपका लिए और अपनी छति राज की पसलियों में गाड़ दी.... राज को उसकी चूचियों की गर्मी का अहसास होते ही विस्वास हो गया... अब ये चुदे बिना नही मानेगी... मुझसे नही तो किसी और से..!
राज ने उसका चेहरा उपर उठाया और उसके सुलगते होंटो को थ्होडी शांतवना दी... अपने होंटो से...," आइ लव यू सर!" मुस्कान का हाल बहाल हो रहा था....
राज को लगा अभी वो ज़्यादा दूर नही आए हैं... वो रोड पर चलता गया... और उस्स रास्ते को पार कर गया.. जिस रास्ते पर उस्स समय ड्राइवर ने कविता की गांद में अपनी हथेली फँसा रखी थी....
अदिति और दिव्या भी उनके पीछे चलती गयी... उनको भी बड़ी लगान थी... प्रॅक्टिकल करने की.....
रोड पर चलते चलते राज को नीचे ढलान की और जाता एक सांकरा सा रास्ता दिखाई दिया... करीब 2 फीट चौड़ा... शायद किसी गाँव के लिए शॉर्टकट था. राज ने मुस्कान को अपनी छति से चिपकाया और नीचे उतरने लगा..
वो करीब 20 फीट ही गये होंगे की उन्हे एक चीख सुनाई दी.. दोनो चौंक कर पलते... अदिति के जूते मैं से एक काँटा उसके पैर में चुभ गया था... इसीलिए उसकी चीख निकल गयी... राज तेज़ी से चढ़ कर उसके पास गया," अदिति तुम? और ये दिव्या?"
अदिति और दिव्या का सिर शर्म से झुक गया... शर्मा तो राज भी गया था.. पर उसको पता था... ये तो होना ही था... अदिति बस में उनके पीच्चे ही बैठी थी...," जासूसी कर रही हो!?"
अदिति ने सिर झुकाए ही जवाब दिया," नही सर, हम तो सिर्फ़ देखने आए थे!"
राज थोड़ा संभाल कर बोला," देखने ही आए थे या कुच्छ करने भी?"
अदिति कुच्छ ना बोली... उसने राज की कलाई अपने कोमल हाथो में पकड़ ली... राज समझ गया... वो भी प्रॅक्टिकल करना चाहती थी," और ये छिप्कलि?" उसने दिव्या की और देखा... उसको क्या पता था ये छिप्कलि राकेश का साँप निगल चुकी है एक बार... अपनी चूत में!,"सर मुझे भी करना है... दिव्या की चूत बुरी तरह खुजा रही थी... उसको प्यार का खेल सीखा कर राकेश गौरी के पिछे पड़ गया... और वा इतने दिन से यूँही तड़प रही थी...
"ये कोई बच्चों का खेल नही है? जाओ! राज ने दिव्या को कहा... पर उसको डर भी था की अगर दिव्या को वापस भेज दिया तो ये राज उगल भी सकती है.... उसने दिव्या को मुँह लटका कर सुबक्ते देखा तो राज ने दोनो का हाथ पकड़ा और मुस्कान के पास ले आया....
मुस्कान अदिति से जलती थी... अदिति वही लड़की थी जिसको राज ने पहले ही दिन उठा कर पूचछा था," तुम्हे किससे प्यार है?" उसकी चूचियाँ क्लास में सबसे मस्त थी.. ज़्यादा बड़ी नही थी पर सीधी खड़ी थी... बिना ब्रा के... और उसकी प्यारी सी हँसी का राज दीवाना था... जब वा हँसती थी तो उसके गाल पर दाई और एक डिंपल बन जाता था...
मुस्कान ने मुँह बना कर कहा," मैं जाऊं सर!"
"नीचे चलो! आराम से... आज तुम सभी को एक नया प्रॅक्टिकल कराता हूँ.... ऐसा प्रॅक्टिकल तो आज तक खुद मैने भी नही किया है.....
कुच्छ और नीचे जाने पर रास्ते की सिद में ही राज को एक छ्होटी सी क्यारी दिखाई दी.. जिसको समतल करके शायद कुच्छ सब्जी वग़ैरह उगाने के लिए तैयार किया गया था... राज तीनों को वहीं ले गया... ठंड काफ़ी थी चारों को शर्दि लग रही थी...राज ने अपना कंबल उतारा और ज़मीन पर बिच्छा दिया...." सब अपने अपने कपड़े निकाल लो... और कंबल ओढ़ लोराज ने तीनो से कहा... मुस्कान को छ्चोड़ कर दिव्या और अदिति ने तुरंत ऐसा ही किया... मुस्कान नाराज़ हो गयी थी... उसको अपना हिस्सा बाटना पड़ रहा था... राज ने मुस्कान को अपनी बाहों में भर लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा... गरम तो वा पहले ही थी... जब राज ने उन्न दोनो नंगी लड़कियों को छ्चोड़कर उसको बाहों में भरा तो उसकी नाराज़गी जाती रही... उसने कंबल उतार फैंका और राज से चिपक कर उसकी जाँघ से अपनी जांघों के बीच च्छूपी कोमल चूत को रगड़ने लगी... अब वा अपने से राज को दूर नही करना चाहती थी... वह अदिति को जलाने के लिए कुच्छ बढ़ चढ़ कर ही अपना प्यार लूटा रही थी राज पर... मुस्कान को देखकर उनकी भी हिम्मत बढ़ गयी... नंगी अदिति ने राज को पीछे से पकड़ लिया और अपनी छति उसकी पीठ से सेटाकर शर्ट के उपर से ही राज को दांतो से काटने लगी... मुस्कान ने अपना हाथ अदिति की चूची पर ले जाकर उसके दाने को जोए से दबा दिया... अदिति सिसक उठी...
दिव्या के लिए राज का कोई हिस्सा नही बचा था.. वा अदिति के पिछे आकर उसके चूतदों पर हाथ फिरने लगी... जब उसका हाथ अदिति की गांद की दरार में से होकर गुजरा तो वो उच्छल पड़ी... उसको यहाँ किसी ने पहली बार हाथ लगाया था... दिव्या तो खेल का पहला भाग खेल रही थी.. और पहले भाग में लड़की हो या लड़का... उसको कोई फ़र्क़ नही पड़ता था...
मुस्कान अलग होकर अपने कपड़े उतारने लगी... वो अदिति से पिछे नही रहना चाहती थी... अब कहीं भी शर्मीलेपान के लिए कोई जगह नही थी..
मुस्कान के अलग हट-ते ही अदिति घूम कर आगे आ गयी... राज उसकी सबसे प्यारी चूचियों से खेलने लगा... राज ने उसकी छतियोन के मोतियों को चूसना शुरू कर दिया... अदिति पागल हो उठी.. दिव्या अदिति के पीछे आ गयी और नीचे बैठकर उसकी टाँगों के बीच उसकी चूत से होन्ट सटा दिए...
अदिति आनंद से दोहरी होती जा रही थी... पल पल उसको जन्नत का अहसास करा रहा था... सबकुच्छ भूल कर वा बदहवासी में बोल रही थी., हाईए... मेरा सबकुच्छ चूस लिया.... अया... मेराअ... सभह... कूच निकााल लिया.... सिएर्र्ररर ज्जिि मार गििईई" दिव्या ने उसको मचलता देख दुगने जोश से उसकी फांको में अपनी जीभ से खेलना शुरू कर दिया....
ड्राइवर को उस्स छ्छोकरी ने सूपड़ा चूस चूस कर इतना पागल कर दिया की वो आखरी दम पर भी अपना लंड बाहर निकलना भूल गया... 5 मिनिट के करीब ही वो थ्रा गया... उसके लंड का रस झटके मार मार कर छ्होरी के मुँह में ही निकल गया... आनंद के मारे उसने अपनी आइडियान उपर उठा ली... पर कविता उसके सूपदे से मुँह हटाने को तैयार ही ना थी.. वा साथ साथ उपर उठती चली गयी... और रस की एक एक बूँद को अपने मुँह में भर लिया... लंड अपने आप ही शर्मा कर बाहर निकल आया... ड्राइवर की हालत देखकर कविता अपनी जीभ से होंटो को चट-ती हुई मुस्कुरा रही थी..," बहुत गरम था... मज़ा आ गया!"
"मेरा सारा प्लान चौपट कर दिया छ्होरी... अपनी चूत को बचा लिया.. मेरे लंड से!" चल जल्दी चल.. बस के पास!" ड्राइवर अपनी चैन बंद करने लगा...
कविता तो पुर रंग में थी," ऐसे नही जाने दूँगी अब... मेरा रस कौन पिएगा!" कहती हुई कविता अपनी सलवार उतारने लगी... और फिर पनटी उतार कर अपनी कमसिन; पर खेली खाई चूत का दीदार ड्राइवर को कराया..
ड्राइवर उसकी 18 साल की चिकनी मोटी फांको वाली चूत को देखता ही रह गया... सच में उसने ऐसी चूत आज तक नही देखी थी... उसने तो आज तक या तो रंडियों की मारी थी या फिर अपनी काली भद्दी सी बहू की... बिना कुच्छ कहे ही वा कंबल पर बैठ गया और कविता की चूत पर हाथ फेरने लगा..," हाई.. कितनी गोरी चिटी है छ्होरी तेरी चूत...
कविता ने एक स्पेशलिस्ट की तरह अपने चूतड़ कंबल पर रखे और अपनी टाँगें फैला दी... ऐसा करते ही चूत की फांकों ने दूर होकर उसका सुर लाल रंग ड्राइवर को दिखाया... वा भौचक्का होकर उसको देखने लगा..
ड्राइवर ने तुरंत अपनी पॅंट उतार दी.. लंड का ओरिज्णल काम करने के लिए....
पर कविता पूरी तरह मस्त थी.. उसने ड्राइवर के चेहरे को पकड़ा और अपनी चूत के दाने से उसके होन्ट लगा कर मचल उठी," इसको मुँह मीं पकड़ कर चूसो!"
ड्राइवर ने जैसे उसकी अग्या का पालन किया.. उसने जीब निकल कर चूत की फांको में रस टपकाना शुरू कर दिया... कविता ने सिर ज़ोर से चूत पर दबा लिया और तेज तेज साँसे लेने लगी... ड्राइवर को ठंड में भी पसीने आने लगे...," अपना लौदा मेरी चूत पर रखो... अंदर मत करना" कविता ने आदेश दिया... और उसका गुलाम हो चुके ड्राइवर ने ऐसा ही किया... वो उसके उपर आ गया... और घुटनो और कोहानियों के बाल ज़मीन पर सेट हो गया.. लंड उसकी चूत के उपर झूल रहा था.. अभी वो पूरी तरह आकड़ा नही था...
कविता ने अपना हाथ नीचे ले जाकर उसके लंड को पकड़ा और अपनी चूत पर घिसने लगी... बाहर ही... दाने पर... वा सिसक रही थी.. बक रही थी.. और ड्राइवर का लौदा खड़ा होते होते उसकी चूत की फांको के बीच फँस गया.. अब वा ज़्यादा हिल नही रहा था... कविता के चूतड़ उपर उठते चले गये.. लंड अब कम हिल रहा था और कविता की चूत ही उपर नेचे होकर अपने आप से लौदे को गुइसा रही थी..
ड्राइवर अब फिर कगार पर आ गया था झड़ने के... उसने लौदा कविता के हाथ से छ्चीन लिया," अब की बार ऐसे नही... अब अंदर करने दो चूत के...
कविता भी अब मस्त हो चुकी थी... उसने अपनी टाँग हवा में उठा दी... और उनको पिछे ले गयी," लो फँसा दो जल्दी.." वा तड़प सी गयी थी.. लंड को उतारने को...
ड्राइवर ने कविता की टाँगों को पकड़ कर थोड़ा और पिछे किया... अपना लंड चूत के उपर रखा और उस्स पर बैठ गया... कविता की एकद्ूम साँस बंद हो गयी.. उसका गला सूख गया... आँखें बाहर आने को हुई... और वा मिमियने लगी.. ," बाहर निकाल जल्दी.. मार गयी.. माआअ.. " पर ड्राइवर ने अपने गुरु से बग़ावत कर दी... उसका मुँह दबोचा और उसके अंदर समाता चला गया... पूरा लंड चूत में उतार कर उसने कविता की चूत को देखा.. वा ऐसे ही खुल गयी थी जैसे उसकी बहू की चूत सुहग्रात वाले दिन खुल गयी थी... वा भी ऐसे ही चीखी थी.. और अगले दिन कभी ना आने की धमकी देकर गयी थी... पर चूत तो चूत होती है... उसके बाद जब उसकी बाहू वापस आई तो कभी जाने का नाम ही ना लिया...
ड्राइवर ने लंड पूरा चूत में फँसाए फँसाए ही कविता को बैठा लिया अपन जाँघो पर.. आर उसका कमीज़ उतार दिया... ब्रा से ढाकी उसकी चूचियाँ इतनी मस्त लग रही थी की ड्राइवर ने तुरंत उसकी ब्रा को उपर उठा कर उसकी चूचियों को ब्रा के नीचे से निकाल लिया और उनको चूसने लगा.. धीरे धीरे!
कविता की चूत ने जैसे तैसे ड्राइवर का लंड अपने अंदर रख लिया... ड्राइवर उसको अपनी जांघविं उपर नीचे करके हिला रहा था और थोड़ा थोड़ा लंड चूत के अंदर बाहर होने लगा....
धीरे धीरे मज़ा बढ़ने लगा... कविता ने उसके गले में बाहें डाली और पिछे लुढ़क गयी... लगभग पहले वाली पोज़िशन आ गयी... ड्राइवर अपने घुटनो पर बैठ गया और लंड को थोड़ा और ज़्यादा अंदर बाहर करने लगा.. अब कविता को भी जन्नत में होने का अहसास हो रहा था... उसको लगा दर्द में तो इश्स मज़े से भी ज़्यादा मज़ा आया था... सोचते सोचते ही उसकी चूत का ढेर सारा रस बाहर निकलने लगा.. झटके अब झटके नही लग रहे थे... लंड इतनी सफाई से अंदर बाहर हो रहा था की जैसे वो धक्के लगा ही ना रहा हो.. अचानक कविता का बचा खुचा रस भी बौच्हर की तरह से निकल कर लंड के साथ ही बाहर टपकने लगा... कविता को अब दर्द का अहसास होने लगा... अब इश्स दर्द में मज़ा नही था... पर ड्राइवर का काम अब बहुत देर तक चलना था.... कविता ने कहा "अब इसस्में नही... में उल्टी होती हूँ.. तुम पीछे कर लो"
ड्राइवर का तो मज़े से बुरा हाल हो गया... गांद में जाने का ऑफर मिलते ही लंड और शख्त हो गया... वहाँ और शख़्ती की ज़रूरत जो थी..
उसने झट अपना लंड बाहर निकाला और कविता को कुतिया बना दिया.. उसकी कमर को बीच से नीचे दबा कर जितना गांद को खोला जा सकता था.. खोला... लंड को गांद के च्छेद पर टीकाया और बोला.. "डाल दूं?"
"हां!" और हां कहते ही कविता ने अपने दातों को बुरी तरह भींच लिया... उसको पता था अब क्या होना है...
ड्राइवर के ज़ोर लगाते ही चिकना होने की वजह से वो फिसल कर चूत में ही घुस गया.. कविता चिल्ला उठी.. "यहाँ क्यूँ कर दिया कामीने...!"
ड्राइवर ने लंड निकल कर सॉरी बोला... उसने कविता की चूत से अपनी उंगली को घुसा कर रस लगाया और उंगल गांद में घुसा दी... इससे मोटे की तो वो आदि थी," इससे कुच्छ नही होगा... लंड घिसा अपना..."
"चिकनी तो कर लूँ छ्होरी.. तेरी गाड" उसने रस को अच्छि तरह से उसकी गांद में लगाया और फिर से अपना लौदा ट्राइ किया.. एक हाथ से पकड़ा और उस्स पर ज़ोर डाला.. सूपड़ा आधा अंदर गया.. और कविया दर्द और मज़े के मारे मार सी गयी," फँसा दे... फँसा दे... जल्दी फँसा दे... फटने दे चिंता मत कर...
ड्राइवर को भला क्या चिंता होनी थी.. उसने एक धक्का और ज़ोर से मारा और लंड का गोल घेरा उसकी गाड में फँस गया...
कविता की टाँगें जैसे बीच में से काट जायेंगी... पर उसमें गजब की हिम्मत थी... उसने अपने मुँह में कंबल त्हूस लिया... पर टांगे नही हिलने दी मैदान से...
कुच्छ देर बाद गांद ने भी हिम्मत हार कर खुद को खोल ही दिया लंड के लिए... अब लंड बाहर कम आता और हर बार अंदर ज़्यादा जाता... ऐसे ही इंच इंच सरकता सरकता लंड पूरा अंदर बाहर होने लगा.... कविता को ड्राइवर से ज़्यादा और ड्राइवर को कविता से ज़्यादा मज़े लेने की पड़ी थी.. दोनो आगे पीछे होते रहे.... ड्राइवर ने दोनो और से उसकी चूचियों को पकड़ रखा था और झटकों के साथ साथ उनको भी खींच रहा था.....
ऐसा चलता गया .... चलता गया... और फिर रुकने लगा.... ड्राइवर ने उसकी गांद को रस से भर दिया और तब तक धक्के लगाता रहा जब तक उसके लंड ने और धक्के लगाने से इनकार करके मूड कर अपने आपको गांद से बाहर ना कर लिया...
कविता ने तुरंत पलट कर उसके लंड को अपने होंटो से चुम्मि दे कर थॅंक्स बोला... इतने मज़े देने के लिए... पर लंड सो चुका था.....
बस के पास सभी अपनी अपनी बातों में लीन थे... सभी मनाली जाकर करने वाले मौज मस्ती की प्लॅनिंग कर रहे थे.... किसी को किसी की फिकर ना थी... जो जिसके पास बैठा था... उसके सिवा किसी का ख्याल ना था... जब ड्राइवर कविता का मुँह बंद करके उसको एक तरफ ले जा रहा था... लगभग उसी वक़्त... अकेले खड़े बातें कर रहे टफ और राज के पास मुस्कान आई....," सर! मुझे आपसे कुच्छ बात करनी है...!"
"बोलो!" राज ने घूमते हुए कहा.
मुस्कान टफ के सामने शर्मा रही थी... हालाँकि बस में उसने सरिता के साथ मस्ती करते टफ को देख लिया था.... और वो खुद भी जानती थी की राज की जांघों पर बैठ मज़े लेते टफ ने भी उसको देखा था... पर वो फिर भी शर्मा रही थी....," सर.... मुझे अकेले में बात करनी है.. आपसे!" वो नज़रें झुकायं बात कर रही थी... राज के हाथो मिली मस्ती की लाली अब भी उसके गालों पर कायम थी... का हुआ जो अंधेरे की वजह से किसी ने नही देखा... राज टफ को ' एक मिनिट कहकर उसी और चल पड़ा जिस तरफ कविया और ड्राइवर गये हुए थे...," मज़ा आया मुस्कान!"
मुस्कान कुच्छ ना बोली... बस नज़रें झुकाए साथ चलती रही... वो चाहती थी की सर खुद ही उसकी कसक जान लें... और उसको प्रॅक्टिकल पूरा करा दें... जिसको सर ने अधूरा छ्चोड़ कर उसकी हालत पतली कर दी थी...
थोड़ा आगे जाने पर सुनील ने उसके कंधे पर हाथ रख लिया और चलता रहा," बोलो ना! शर्मा क्यूँ रही हो?"
"कुच्छ नही सर....वो!" मुस्कान कुच्छ बोल नही पा रही थी... उन्होने ध्यान नही दिया... बस में उनके पिच्चे बैठही अदिति और दिव्या उनके पीछे पीछे जासूसों की तरह चल रही थी... उनको पता था.... ज़रूर यहाँ प्रॅक्टिकल पूरा हो सकता है.... क्या पता उनका भी एक एक पीरियड हो जाए...
राज ने उसके कंधे पर रखे हाथ से उसकी चूची को दबा दिया... ज़्यादा बड़ी नही थी... पर खड़ी खड़ी ज़रूर थी.... मुस्कान हल्की सी सिसकारी लेकर राज की छति से लिपट गयी..," सर कर दो!... प्लीज़... मैं मर जाउन्गि!" उसने अपने हाथ सुनील की पीठ पर चिपका लिए और अपनी छति राज की पसलियों में गाड़ दी.... राज को उसकी चूचियों की गर्मी का अहसास होते ही विस्वास हो गया... अब ये चुदे बिना नही मानेगी... मुझसे नही तो किसी और से..!
राज ने उसका चेहरा उपर उठाया और उसके सुलगते होंटो को थ्होडी शांतवना दी... अपने होंटो से...," आइ लव यू सर!" मुस्कान का हाल बहाल हो रहा था....
राज को लगा अभी वो ज़्यादा दूर नही आए हैं... वो रोड पर चलता गया... और उस्स रास्ते को पार कर गया.. जिस रास्ते पर उस्स समय ड्राइवर ने कविता की गांद में अपनी हथेली फँसा रखी थी....
अदिति और दिव्या भी उनके पीछे चलती गयी... उनको भी बड़ी लगान थी... प्रॅक्टिकल करने की.....
रोड पर चलते चलते राज को नीचे ढलान की और जाता एक सांकरा सा रास्ता दिखाई दिया... करीब 2 फीट चौड़ा... शायद किसी गाँव के लिए शॉर्टकट था. राज ने मुस्कान को अपनी छति से चिपकाया और नीचे उतरने लगा..
वो करीब 20 फीट ही गये होंगे की उन्हे एक चीख सुनाई दी.. दोनो चौंक कर पलते... अदिति के जूते मैं से एक काँटा उसके पैर में चुभ गया था... इसीलिए उसकी चीख निकल गयी... राज तेज़ी से चढ़ कर उसके पास गया," अदिति तुम? और ये दिव्या?"
अदिति और दिव्या का सिर शर्म से झुक गया... शर्मा तो राज भी गया था.. पर उसको पता था... ये तो होना ही था... अदिति बस में उनके पीच्चे ही बैठी थी...," जासूसी कर रही हो!?"
अदिति ने सिर झुकाए ही जवाब दिया," नही सर, हम तो सिर्फ़ देखने आए थे!"
राज थोड़ा संभाल कर बोला," देखने ही आए थे या कुच्छ करने भी?"
अदिति कुच्छ ना बोली... उसने राज की कलाई अपने कोमल हाथो में पकड़ ली... राज समझ गया... वो भी प्रॅक्टिकल करना चाहती थी," और ये छिप्कलि?" उसने दिव्या की और देखा... उसको क्या पता था ये छिप्कलि राकेश का साँप निगल चुकी है एक बार... अपनी चूत में!,"सर मुझे भी करना है... दिव्या की चूत बुरी तरह खुजा रही थी... उसको प्यार का खेल सीखा कर राकेश गौरी के पिछे पड़ गया... और वा इतने दिन से यूँही तड़प रही थी...
"ये कोई बच्चों का खेल नही है? जाओ! राज ने दिव्या को कहा... पर उसको डर भी था की अगर दिव्या को वापस भेज दिया तो ये राज उगल भी सकती है.... उसने दिव्या को मुँह लटका कर सुबक्ते देखा तो राज ने दोनो का हाथ पकड़ा और मुस्कान के पास ले आया....
मुस्कान अदिति से जलती थी... अदिति वही लड़की थी जिसको राज ने पहले ही दिन उठा कर पूचछा था," तुम्हे किससे प्यार है?" उसकी चूचियाँ क्लास में सबसे मस्त थी.. ज़्यादा बड़ी नही थी पर सीधी खड़ी थी... बिना ब्रा के... और उसकी प्यारी सी हँसी का राज दीवाना था... जब वा हँसती थी तो उसके गाल पर दाई और एक डिंपल बन जाता था...
मुस्कान ने मुँह बना कर कहा," मैं जाऊं सर!"
"नीचे चलो! आराम से... आज तुम सभी को एक नया प्रॅक्टिकल कराता हूँ.... ऐसा प्रॅक्टिकल तो आज तक खुद मैने भी नही किया है.....
कुच्छ और नीचे जाने पर रास्ते की सिद में ही राज को एक छ्होटी सी क्यारी दिखाई दी.. जिसको समतल करके शायद कुच्छ सब्जी वग़ैरह उगाने के लिए तैयार किया गया था... राज तीनों को वहीं ले गया... ठंड काफ़ी थी चारों को शर्दि लग रही थी...राज ने अपना कंबल उतारा और ज़मीन पर बिच्छा दिया...." सब अपने अपने कपड़े निकाल लो... और कंबल ओढ़ लोराज ने तीनो से कहा... मुस्कान को छ्चोड़ कर दिव्या और अदिति ने तुरंत ऐसा ही किया... मुस्कान नाराज़ हो गयी थी... उसको अपना हिस्सा बाटना पड़ रहा था... राज ने मुस्कान को अपनी बाहों में भर लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा... गरम तो वा पहले ही थी... जब राज ने उन्न दोनो नंगी लड़कियों को छ्चोड़कर उसको बाहों में भरा तो उसकी नाराज़गी जाती रही... उसने कंबल उतार फैंका और राज से चिपक कर उसकी जाँघ से अपनी जांघों के बीच च्छूपी कोमल चूत को रगड़ने लगी... अब वा अपने से राज को दूर नही करना चाहती थी... वह अदिति को जलाने के लिए कुच्छ बढ़ चढ़ कर ही अपना प्यार लूटा रही थी राज पर... मुस्कान को देखकर उनकी भी हिम्मत बढ़ गयी... नंगी अदिति ने राज को पीछे से पकड़ लिया और अपनी छति उसकी पीठ से सेटाकर शर्ट के उपर से ही राज को दांतो से काटने लगी... मुस्कान ने अपना हाथ अदिति की चूची पर ले जाकर उसके दाने को जोए से दबा दिया... अदिति सिसक उठी...
दिव्या के लिए राज का कोई हिस्सा नही बचा था.. वा अदिति के पिछे आकर उसके चूतदों पर हाथ फिरने लगी... जब उसका हाथ अदिति की गांद की दरार में से होकर गुजरा तो वो उच्छल पड़ी... उसको यहाँ किसी ने पहली बार हाथ लगाया था... दिव्या तो खेल का पहला भाग खेल रही थी.. और पहले भाग में लड़की हो या लड़का... उसको कोई फ़र्क़ नही पड़ता था...
मुस्कान अलग होकर अपने कपड़े उतारने लगी... वो अदिति से पिछे नही रहना चाहती थी... अब कहीं भी शर्मीलेपान के लिए कोई जगह नही थी..
मुस्कान के अलग हट-ते ही अदिति घूम कर आगे आ गयी... राज उसकी सबसे प्यारी चूचियों से खेलने लगा... राज ने उसकी छतियोन के मोतियों को चूसना शुरू कर दिया... अदिति पागल हो उठी.. दिव्या अदिति के पीछे आ गयी और नीचे बैठकर उसकी टाँगों के बीच उसकी चूत से होन्ट सटा दिए...
अदिति आनंद से दोहरी होती जा रही थी... पल पल उसको जन्नत का अहसास करा रहा था... सबकुच्छ भूल कर वा बदहवासी में बोल रही थी., हाईए... मेरा सबकुच्छ चूस लिया.... अया... मेराअ... सभह... कूच निकााल लिया.... सिएर्र्ररर ज्जिि मार गििईई" दिव्या ने उसको मचलता देख दुगने जोश से उसकी फांको में अपनी जीभ से खेलना शुरू कर दिया....