नौकरी हो तो ऐसी

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The Romantic
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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 24 Dec 2014 12:59

नौकरी हो तो ऐसी--12

गतान्क से आगे......
अभी कॉंट्रॅक्टर बाबू कुछ ज़्यादा ही गरम हुए लग रहे थे, उनकी साँस तेज़ चल रही थी…इधर जिस शिष्या के हाथ मे उनका लिंग था वो भी गरम हो गयी थी और ज़ोर ज़ोर्से उनका लिंग हिलाने लगी…. कॉंट्रॅक्टर बाबू चरम सीमा पर पहुच गये और उनके लंड ने उस शिष्या की पीठ पे और उसके हाथ पे अपना कामरस उगलना शुरू कर दिया…..उस शिष्या का हाथ कामरस से पूरा भर गया…और ये देख के बाजुवलि शिष्याए हल्के हल्के मुस्कुराने लगी और उसके तरफ देखने लगी…उसने अपना मुँह नीचे कर दिया और हल्के से अपना रुमाल निकाल के अपनी पीठ और हाथ सॉफ करने लगी…. इधर असीम आनंद की प्राप्ति कर कॉंट्रॅक्टर बाबू बहुत खुश हो गये… और उनका काला लंड मुरझा गया…. फिर उन्होने अपने पॅंट का नाडा खोला और उसे अंदर लेके शांति से सुला दिया…….



मंदिर मे पूजा चल रही थी. कॉंट्रॅक्टर बाबू का वीर्य दान अभी अभी हुआ था तो वो ज़रा शांति से बैठे थे.सेठानी अपने बगल मे बैठे सेठ जी से चुप चुप के कुछ बात किए जा रही थी और हस रही थी. वकील बाबू की बेटी भी बैठी दिख रही थी, पर गाड़ी मे रावसाब और वकील बाबू के काले लंड ने उसकी बुर की मा चोद दी थी, इसलिए वो थोडिसी टेढ़ी मेधी, पाव उपर नीचे किए जा रही थी... बल्कि उसे नींद भी बहुत आ रही थी... ये देख कर सेठानी ने मुझे उसे मंदिर के बाजू मे बने बड़े बंग्लॉ के एक रूम मे ले जाने का इशारा किया, मैं उठा और उसे ले जाने लगा तभी एक और पुरुष शिष्य भी उठ गया और हम उसे लेके तलवाले मंज़िल पे एक बड़े से कमरे मे लेके गये और उसे वहाँ पे सुला दिया हम वापस आके अपनी जगह पे बैठ गये और पूजा चल रही थी, आधे लोग सोने को आए थे आधे जाग रहे थे, कोई मन्त्र बोल रहा था कोई सुन रहा था कोई नही सुन रहा था. रावसाब वकील बाबू और कॉंट्रॅक्टर बाबू सामने बैठी महिला शिष्या की पीठ को घुरे जा रहे थे और मौका मिलते ही आगे खिसक के उनकी गांद से अपने घुटनो को मिला रहे थे, शिष्या आगे सरकने लगती तो सेठ जी सामने से पीछे देखते तो वो फिर पीछे हो जाती, ये देख के तीनो हसते और, जोरोसे उनकी गांद पर अपना घुटना घिसते....रावसाब अभी भी एक हाथ से अपने घोड़े को सहला रहे थे, वो बड़े लंबे रेस के घोड़े लग रहे थे. एक बात तो थी सेठ जी के परिवार की सभी महिलाओ की चुचिया बहुत बड़ी बड़ी थी..सबकी सारिया थोडिसी खिसकी हुई थी तो बाजू से बड़ी बड़ी चुचिया देखने को मिल रही थी मैं सोच रह था कि इस नौकरी मे मुझे महीने का पगार भी मिलनेवाला है और इन सब और बातो का मज़ा ये तो दुगना लॉटरी है. किसीकि लटकती हुई चुचिया तो किसीकि मजबूत और छाती से तंगी चिपकी हुई ताजे आम के तरह नोकदार आकार बनाती चुचिया देख के मेरे लंड की हालत और बेकार हुई जा रही थी. अभी पूजा लगभग ख़तम होने को थी बस आधा पौना घंटा और बाकी थी. तभी एक पंडित उधर से उठे और बंगले की तरफ चल दिए, उनकी जगह दूसरे पंडित ने ले ली, उनके पीछे सेठानी भी चल दी, मुझे ये बात थोडिसी रहास्यमय लगी पर मैं बैठा रहा जैसे कि मैं पहले बंगले मे जा चुका था इसलिए मैं चाहू तो अभी भी जाके ये लोग कहाँ गये ये आसानी से पता लगा सकता था थोड़ी देर मे मैं मूत के आता हू कहके उधर से उठा और बंगले की तरफ चल दिया...बाहर सब अंधेरा था बंगले के बाजू मे बस रोशनी थी वो भी बहुत धीमी थी... बंगले के चारो और बड़ा सा कंपॅन लगा हुआ था और चारो और से बहुत सारी जगह छूटी हुई थी जो आगे जाके बड़े बड़े खेतो को मिलती थी. मैं बंगले के पीछे गया और आगे थोड़ा सा खेतो मे चलता गया, उधर मैने अपने लंड को धार मारने के लिए बाहर निकाला और राहत की साँस लेते हुए मूत क्रिया पूर्ण की वापसे आते समय मैं बंगले के पीछे से दिख रही बड़ी बड़ी खिड़कियो को देखते जा रहा था, मैं पहचान पा रहा था कि अनुमान से देखा जाए तो जिस खिड़की मे लाइट जल रही है वो वोही है जिसमे हमने वकील बाबू के बेटी को सुलाया था...मेरा दिमाग़ तेज़ चलने लगा और मैने समझ लिया कि दाल मे कुछ तो काला है क्यू कि जब हम उसे सुला के निकले थे तो हम ने लाइट बंद कर दी थी………

The Romantic
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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 24 Dec 2014 13:00

. मैं आगे चलते गया और बंगले के पास पहुचा, काँच की खिड़की जिसपे अंदर से परदा लगा हुआ था, खिड़की की उँचाई ज़्यादा नही थी पर आजूबाजू बहुत सारी झाड़ियाँ थी इसलिए खिड़की तक पहुच पाना थोड़ा मुश्किल लग रहा था तब भी मैं वहाँ पहुचने की कोशिश करने लगा जैसे ही मैं नज़दीक जाने लगा मुझे कुछ आवाज़े सुनाई देने लगी और जैसे कि मैने पहले वकील बाबू के बेटी की आवाज़ सुनी थी ये आवाज़ उससे जानी पहचानी लग रही थी... थोड़ी ही देर मे झाड़ियो के बीच मेसे मैं उस खिड़की के पास पहुचने मे कामयाब हो गया जैसे ही मैं उधर पहुचा मुझे सेठानी की जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी और ऐसा लग रहा था कि जो पंडित पूजा से निकला था वो भी यहाँ मौजूद है...मैने अभी धीरे से जिस बाजू से परदा थोड़ा उपर उठा रखा था उस बाजू से अंदर देखा. अंदर तो आश्चर्या चकित करने वाला द्रिश्य दिखाई दिया, मैं तो देख के दंग रह गया, सेठानी पूरी नंगी बैठी थी, वकील बाबू की लड़की के कपड़े पंडितजी एक हाथ से निकल रहे थे वकील बाबू की बेटी की चुचिया एक दम गोलाकार, अपने यौवन मे आने के लिए और चूसने के लिए तरस रही थी, उन चुचियो को देख के ऐसा लग रहा था जैसे मैं इस पंडित का खून करके उनको अभी पीने के लिए चला जाउ…. जबसे मैं गाव मे आया था ये मैं तीसरी चुदाई देख रहा था और मेरे लंड को अभी किसिका हाथ भी नही लगा था… पंडितजी शरीर से बहुत ही मजबूत और मोटे और निंगोरे थे, उन्होने नीचे धोती पहनी थी और उपर कुछ भी नही… पेट पे सफेद गन्ध की रेखाए….सर पे थोडेसे बाल, दूध दही खाने से बने मदमस्त ताकतवर बाजू और छाती… कोई भी उनकी इस देह पे फिदा हो जाता…. पंडित धीरे धीरे वकील बाबू की लड़की के कपड़े उतार रहा था, अभी उसे पूरा नंगा किया और उसे खड़ा होने को बोला, वो नीचे मुँह करके खड़ी हो गयी, फिर पंडित ने अपनी धोती उपर खीची और अपना क़ाला-पुष्तिला लंड बाहर निकाल के लड़की का एक हाथ पकड़ के, उसमे दे दिया…. लंड इतना मोटा था कि जैसे कोई कुल्हड़ हो, उसका सूपड़ा और भी मोटा था… पंडितजी का लंड रावसाब के लंड को ज़रूर टक्कर दे रहा था.. वकील बाबू के लड़कीनेजैसे ही लंड हाथ मे लिया वैसे ही उसे कुछ चिपचिपा सा द्रव हाथ मे लगा उसके कारण उसने लंड छोड़ दिया…. ये देख के सेठानी बोली “अरे डरो नही कुछ नही होता वो तो तीर्थाप्रसाद है …पंडितजी ये तीर्थाप्रसाद बस कुछ भक्तो ही देते है ..तुम भी लेलो…… ऐसा करो यहा मेरी गोद मे बैठ जाओ… और मुँह मे तीर्थ प्रसाद लो….” सेठानी नीचे बैठ गयी और वकील बाबू की लड़की उनकी गोद मे बैठ गयी, पंडितजी ने धोती उपर एक हाथ से पकड़ के, एक हाथ मे लंड पकड़ के वकील बाबू की लड़की के मुँह मे घुसाया, वैसेही उसने मुँह पीछे किया और लंड बाहर निकाल दिया. सेठानी बोली “भगवान का प्रसाद है ..ऐसे नही करते अभी फिरसे ऐसा मत करना…पहले थोड़ा नमकीन लगेगा पर बाद मे मस्त लगेगा….. ” और फिर पंडितजी ने लड़की के मुँह मे अपना लंड घुसा दिया और इस बार पंडितजी ने चालाकी से उसका सर पकड़ कर लंड की तरफ दबा दिया, और उधर सेठानी ने गोद मे बैठे बैठे लड़की की नौजवान बुर मे उंगली डालना शुरू की……



मुँह मे गधे लंड के वजह से वकील बाबू की लड़की की साँसे रुक सी गयी थी. पंडितजी मुँह मे लंड घुसाए जा रहे थे. उधर नीचे सेठानी उंगलियो का न्रत्य करके उसकी बुर को नचा रही थी. पंडितजी ने लंड अभी थोड़ा बाहर निकाला और सेठानी के मुँह मे भर दिया, सेठानी ने लड़की को गोद से उठा के पलंग पे बिठाया, पंडितजी की धोती के कारण मुझे सेठानी के मुँह के अंदर जा रहा लंड नही दिख रहा था , सेठानी के मुँह मे पंडित लंड घुसा रहे थे और मुँह अपनी ओर खिच रहे थे. सेठानी के मुँह से चिपचिपा पानी निकल रहा था, पंडितजी ने अभी लंड फिरसे बाहर निकाला और मेरे तरफ मुँह करके पलंग पे बैठी लड़की के मुँह मे घुसाया और बाहर निकाला, सेठानी को बुला के लंड पे थूकने को बोला… सेठानी लंड पे थूकने लगी, और थूक से लंड को पूरा गीला कर दिया, पलंग पे सब थूक गिरने लगी… अब पंडितजी ने फिरसे लंड लड़की के मुँह मे घुसाया… वो नही नही बोलने लगी पर सेठानी ने “कुछ नही होता बेटा ये अच्छा है …तुम्हे अच्छा लगेगा” कहके उसका मुँह खुलवाके घुसवा ही दिया लंड मुँह मे…. फिर पंडितजी ने लड़की के मुँह के अंदर ज़ोर्से धक्के मारना शुरू किया… उससे लड़की की साँसे फिरसे फूलने लगी और वो थोड़ा थोड़ा प्रतिकार करने लगी पर पंडित लंड अंदर घुसाए ही जा रहे थे…. अब सेठानीने पंडितजी की टाँगो बीच से आके पंडितजी की काली मोटी तंगी हुई गोतिया मुँह मे ले ली और उनको लॉलिपोप की तरह चूसने लगी, चुसते चुसते मुँह से थूक बाहर निकल के फिरसे गटकने लगी… पंडितजी इस क्रिया से बहुत ही ज़्यादा गरम हो गये होते भी क्यू नही उनके सामने एक ऐसी मदहोश लड़की थी जिसका बदन कूट कूट के यौवन से भरा था और एक ऐसी देवी थी जिसने काम क्रीड़ा के सभी प्रकारो की बक्शी प्राप्त की थी… सेठानी के मुँह से टपकती लार सीधे जाके वकील बाबू की लड़की के पेट और घुटनो पे गिर रही थी…. सेठानी ने अभी तक एक ही काली गोटी मुँह मे ली थी पर ये क्या अब मैने देखा तो सेठानी ने पाड़ितजी की दोनो गोतिया मुँह मे भर ली और ज़ोर ज़ोर्से उनका रस चूसने लगी…

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Re: नौकरी हो तो ऐसी

Unread post by The Romantic » 24 Dec 2014 13:00

सेठानी के लाल लाल गुलाब के जैसे होठ और वो गोरा चेहरा…. और मुँह मे काली गोतिया वाह क्या नज़ारा था मैं देख के मदहोश हो रहा था… तभी पंडितजी ने लड़की की बुर मे उंगली डाली, वो पलंग पे सोई अवस्था मे थी… उंगली जैसे ही अंदर गयी तो पंडितजी बोले “अरे ये क्या इसकी बुर मे तो किसीने अभी वीर्यादान किया है…” इस बात को सुनके सेठानी दंग रह गयी क्यू कि वो समझती थी कि वकील की लड़की अभी कली है पर ये तो फूल निकली, सेठानी ने पंडित जी से कहा “ये बाद मे देखते है … पहले आप अपनी क्रिया शुरू करो वक़्त बहुत कम हैं…” ये सुनके पंडितजी ने फिरसे उसकी बुर मे उंगली डाली और निकलते ही उनकी उंगलिमे सफेद गाढ़ा बहुत सारा रस चिपक के आया ये देखकर पंडितजी और मदमस्त हो गये और लड़की की बुर मे फिरसे उंगली डाल के रस बाहर निकालने लगे… उसकी बुर का मंज़ला पूरा हिस्सा सफेद सफेद द्रव उगल रहा था…. पंडितजिने उंगली सेठानी को चाटने को दी, सेठानीने भी मस्त मज़े से उसे चूसने लगी और आँखे बंद कर करके रस का मज़ा लेने लगी… उसे कहाँ पता था कि जिस रस को चाट रही थी निगल रही थी वो उसके बेटो का ही था…. पंडितजी से अभी रहा नही जा रहा था.. पंडितजी का काला लंड अभी बहुत ज़्यादा फूल गया था पर लड़की अर्ध निद्रा मे थी इसलिए उसे इस चीज़ का ठीक से पता नही चल रहा था… पंडितजी ने सेठानी के मुँह मे अपने होठ डाले और सेठानी के मुख रस को लड़की की चूत मे गिराया… उस वक्त से लड़की की चूत और चमकने लगी…. अब पंडितजी ने लड़की को अपनी तरफ खिचा और अपना लाल काला सूपड़ा उसकी बुर के पास लेके गये… उसकी बुर के गहरे हल्के मखमल्ली बालो को देख के उस लड़की को अभी के अभी चोदने का मन कर रहा था… उन बालो के बीच मे वो कोमल लाल लाल सूजी हुई बुर को देख के मॅन रोमांचित हो रहा था … पंडितजी ने थोड़ा झुक के लड़की की बुर पे निशाना लगाया सेठानी ने घुटनो के बीच से आके लड़की की चूत के दो होठ थोडेसे अलग करके उसपे थोडिसी थूक थोप दी अब पंडितजी ने सूपदे को छेद पे रखा और थोड़ा पीछे होके आगे की ओर एक छोटसा धक्का मारा उनका सूपड़ा ज़्यादा चिकनाई की वजह से उपर सटाक गया लगता था उन्होने फिरसे निशाना लगाया और इस बार हल्केसे अपने बल्ब के आकर के सूपदे के मुँह को लड़की योनि मे प्रवेश करवाया.. लड़की थोडिसी कराह उठी… वैसे ही सेठानी घुटने के बीच से निकल के लड़की मुँह के पास आई और उसे पलंग पे सोई अवस्था मे ही रखने की कोशिस करने लगी… पंडितजी ने अब थोड़ी साँस लेके फिरसे सूपड़ा थोड़ा अंदर डाला लड़की उठने की कोशिश करने लगी पर सेठानी के उपर से थोड़ा दबाव बनाते ही वो नीचे सो गयी.. पंडितजी ने अब थोड़ा पीछे होके अपना सूपड़ा बाहर निकाल के दोनो हाथोसे बुर के होंठो को पकड़े रखते हुए निशाना लगाके सूपड़ा बुर के अंदर घुसा दिया … लगभग पूरा सूपड़ा अंदर जा चुका था बस गाँठ बंधनी बाकी थी… सेठानी ने लकड़ी के मुँह पे हाथ डाला हुआ था नहितो उस चीख से लगभग सबको पता चल जाता कि अंदर क्या होरहा है …. अब पांडिजीने लंड को अंदर दबाव देते हुए थोड़ा दबाया, और सूपड़ा पूरा अंदर चला गया…लड़की हाथ पाव उपर नीचे करने लगी पर पंडितजी ने अपने काम साध लिया था लड़की अभी उनके गिरफ़्त से बाहर नही निकल सकती थी.. पंडितजी ने अभी अपने आप को गति दी और लंड को और अंदर डाला… लड़की पीठ उपर करके विरोध करने लगी पर पंडितजी और सेठानी सुननेवालो मे से नही थे ..पंडितजी ने अब धक्के मारना शुरू किया आधे से ज़्यादा लार टपकाते हुए उस कोमल लालसुजी हुई बुर मे घुस गया था…. और आधा बाद के धक्के ने घुसा दिया लड़की ज़ोर्से उठने की कोशिश कर रही थी सेठानी ने बाजू मे पड़ी तकिया उठा कर उसके मुँह पे दबा दी और पंडितजी जोरोसे धक्का मारने लगे…. सेठानी ने थोड़ेही पल मे तकिया निकला लड़की थोडिसी ठीक हो गयी थी पंडित के धक्के चला रहे थे… सेठानी इस पल का कूट कूट के मज़ा ले रही थी और अपनी पोती को चुदवा रही थी…. थोदीही देर मे मैने देखा पांडिजी हफ़फ़ रहे है उन्होने गति को और बढ़ाया लड़की सिकुड़ने लगी… और धाप्प.. धाप्प्प…. पांडिजीने लड़की की चूत के अंदर अपना वीर्य दान कर दिया… वो उस कोमल लड़की की काया पे ढेर हो गये और उसके कोमल होंठो को चूमने लगे…. थोड़ी देर के बाद सेठानी ने पांडिजी का लंड बुर से बाहर निकाला वैसेही काम रस भी बाहर निकल आया उसे सेठानी ने कमाल से चूसा और पूरा पी लिया और काम रस से भरे पंडितजीके लंड को मुँह मे लेके चुस्के सॉफ करने लगी……….

क्रमशः……………………..

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