एक अनोखा बंधन

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The Romantic
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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:19

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अब आगे....

भौजी: मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ!!!

ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए...मैंने अपना सर पकड़ लिया|

भौजी: तुम्हारे जाने के बाद वही मेरे जीने का सहारा होगा| उस बच्चे में मैं तुम्हारा प्यार ढूंढ़ लुंगी और उसे वही प्यार दूंगी जो मैं तुम्हें देना चाहती थी| तुम्हारी कमी अब सिर्फ वही पूरी कर सकता है!!!

मैं: आप ये क्या कह रहे हो? चन्दर भैया क्या कहेंगे? उन्होंने तो इतने सालों से आपको हाथ भी नहीं लगाया ... घर के सब लोग बातें करेंगे| एक तरफ तो आपको अपनी और मेरी इज्जत की चिंता है और दूसरी तरफ आप ऐसी बात कर रही हो| अगर भैया ने आप से पूछा की ये बच्चा किसका है तो आप क्या कहोगे? इसीलिए मैं आपको भगा के ले जाना चाहता था, अब भी देर नहीं हुई है.. सोच लो!!!

भौजी: मैं तुम्हारे साथ भाग के चाचा-चाची को दुःख नहीं देना चाहती, इसमें उनकी क्या गलती है? चाहे कुछ भी हो मुझे ये बच्चा चाहिए मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ| नहीं तो मेरे पास सिवाए जान देने के और कोई रास्ता नहीं है|

मैं: आप को हो क्या गया है? अच्छा आप बताओ की आप भैया से क्या कहोगी की ये किसका बच्चा है?

भौजी: वो सब मैं संभाल लुंगी और मैं तुम्हें ये यकीन दिलाती हूँ की तुम्हारे ऊपर कोई लांछन नहीं लगने दूंगी|

मैं: लांछन?? वो मेरा भी नच्छा है.. तो लांछन किस बात का? और आप कैसे ये सब संभाल लगी? घर में सब जानते हैं की मैं और आप कितने नजदीक हैं, यहाँ तक की डॉक्टर को भी शक है हमारे रिश्ते पे! घर वालों की नजर में हम अच्छे दोस्त हैं पर जब उन्हें पता चलेगा की आप गर्भवती हो तो सबसे पहले मेरा ही नाम आएगा| जो गलत भी नहीं है!!! कहीं आप चन्दर भैया के साथ सम....

भौजी: छी-छी मानु तुम्हें अपनी पत्नी के बारे में ऐसा सोचते हुए भी शर्म नहीं आई| भले ही मेरी शादी उनसे हुई हो पर मैंने तुम्हें अपना पति माना है| सिर्फ तुम ही हो जिसे मैंने अपन तन-मन सौंपा है| मेरी आत्मा पे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा अधिकार है और तुम ऐसा सोचते हो?

मैं: I'M SORRY !!! मैं आपको कभी भी किसी चीज के लिए मना नहीं कर सकता| पर जब तक आपके पीठ के जख्म नहीं भर जाते तब तक कुछ नहीं|

भौजी: नहीं मानु, आज रात .. मैं अब और इन्तेजार नहीं कर सकती|

मैं: अगर आप बुरा ना मनो तो मैं एक बात पूछूं?

भौजी: हाँ पूछो|

मैं: प्लीज मुझे गलत मत समझना पर आप कहीं लड़के की चाहत तो नहीं रखते?

भौजी: मतलब?

मैं: मतलब की आपको सिर्फ लड़का ही चाहिए?

भौजी: नहीं मानु ऐसा नहीं है| लड़का हो या लड़की मेरे लिए जर्रुरी ये है की मैं उस बच्चे में तुम्हारा अक्स चाहती हूँ|

मैं: देखो आप तो सीधा लेट भी नहीं पाते तो उस समय आपको बहुत पीड़ा होगी और मैं इस हालत में आपको प्यार नहीं कर सकता| आपको तड़पता देख के मैं टूट जाऊँगा, बस केवल दो दिन और फिर आपके जख्म भर जायेंगे और मैं आपकी साड़ी इच्छा पूरी कर दूँगा|

भौजी: ठीक है पर तुम ये सिर्फ मेरी इच्छा पूरी करने के लिए कर रहे हो या दिल से?

मैं: मैं आपको खुश देखना चाहता हूँ!!! अब चलो मुस्कुराओ...

भौजी मुस्कुरा दीं.. पर मुझे अब चिंता होने लगी थी| क्या होगा अगर ये बात सामने आ गई की भौजी की कोख में पल रहा बच्चा मेरा है| घरवाले अपनी इज्जत बचाने के लिए उस बच्चे को पैदा होने से पहले ही मार देंगे!!! पर मेरे पास इस समय कोई और चारा नहीं था, अगर मैं भौजी की बात नहीं मानता तो वो मेरी जुदाई का दुःख नहीं बर्दाश्त कर पातीं और खुद-ख़ुशी कर लेतीं और तब नेहा का क्या होता?

अब तो मैं जैसे हंसना ही भूल गया था... भौजी को भी मेरे अंदर आये इस बदलाव की भनक थी| मैं उनके आस-पास तो होता पर कुछ ना कुछ सोचता रहता| अचानक मेरे दिमाग ने काम करना क्यों बंद कर दिया था? दो दीं कैसे बीते पता ही नहीं चला, अब मेरे जिस्मानी घाव काफी हद तक भर चुके थे| उनपे एक पपड़ी बन चुकी थी, दर्द नहीं था| उधर भौजी के घाव बिलकुल भर चुके थे| दोपहर का समय था, घर के सभी लोग खेत में थे और आज तो माँ-पिताजी भी खेत में हाथ बंटा रहे थे मैं भी खेत में था परन्तु अकेले टहल रहा था| घर पे केवल भौजी अकेली थी उन्होंने मुझे बुलाने के लिए नेहा को भेजा था| नेहा मेरे पास भागती हुई आई और मेरा हाथ पकड़ के मुझे अपनी ओर खींचा और मेरे कान में खुस-फुसाई:
"चाचू मम्मी की तबियत ठीक नहीं है| उन्होंने आपको जल्दी बुलाया है|"

ये सुनते ही मैं भागता हुआ घर पहुँचा... आँगन, रसोई, बड़े घर में भी कोई नहीं था| मैं उनके घर घर में दाखिल हुआ और उनके कमरे में झाँका तो वहां भी कोई नहीं था तभी भौजी ने मुझे पीछे से आके जकड़ लिया| उनकी गर्म सांसें मेरी पीठ पे पड़ीं तो मैं सिंहर उठा|

मैं: आप की तो तबियत ख़राब थी ना?

भौजी: वो तो तुम्हें यहाँ बुलाने का बहाना था|

मैं: अब तक तो नेहा ने सबको बता दिया होगा, और सभी यहीं आते होंगे|

भौजी: मैंने उसे कहा था की मुझे तुमसे कुछ बात करनी है और तुम्हें बुलाने के लिए झूठ बोलने के लिए मैंने ही कहा था| वो ये बात किसी को नहीं कहेगी और मजे से चिप्स खा रही होगी|

मैं: आप बड़े शैतान हो!!! पर प्लीज आगे से नेहा को इस सब में मत डाला करो| मुझे अच्छा नहीं लगता, वो बिचारी अबोध बच्ची क्या जाने|

भौजी: ठीक है मैं उसे इस सब से पर रखूंगी पर पहले बताओ की आखिर ऐसी क्या बात है जो पिछले दो दिन से तुम कुछ अलग लग रहे हो? मेरे पास हो के भी मुझसे दूर हो? कौन सी बात है जो तुम्हें खाय जा रही हो?

मैं: नहीं तो .... कुछ भी तो नहीं|

भौजी: झूठ मत बोलो, अगर तुम्हारा मन नहीं है तो मत बताओ| पर मैं जानती हूँ की तुम क्यों परेशान हो? तुम मेरी उस बात से परेशान हो|

मैं: नहीं.... आपकी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है|वैसे क्या बात है आज तो बहुत सजे-सँवरे हो? ओह!!! याद आया ... तो इसलिए आपने मुझे बुलाया था|

मैंने भौजी को अपनी बाँहों में जकड लिया और उनके माथे को चूमा| भौजी ने आज लाल रंग की साडी पहनी थी| बालों का गोल जुड़ा, होठों पे लाली, माँग में सिन्दूर और पाँव में पायल| नाखूनों पे नेल पोलिश ... हाय आज तो सच में मेरा क़त्ल होने वाला था| मैंने जब भौजी को अपने आलिंगन से आजद किया तो वो गोल घूम के मुझे अपनी सुंदरता का दीदार कराने लगी| उनके शरीर से भीनी-भीनी इत्र की खुशबु आ रही थी जो मुझे उनकी और आकर्षित कर रही थी|मैं बहार की ओर जाने लगा...

भौजी: कहाँ जा रहे हो? मुझसे कोई गलती हो गई?

मैं: दरवाजा तो बंद कर दूँ|

भौजी अपने दाँतों टेल ऊँगली दबा के हंस दी| मैंने जल्दी से दरवाजा बंद किया और उनके पास आ गया|मैं बिना रुके उनके मुख को चूमता रहा, कभी माथे पे, कभी आँखों पे, कभी गाल पे कभी उनकी नाक पे और अंत में उनके होंठों को!!! वो नहीं चाहती थीं की मैं रुकूँ ... मैंने उनके ब्लाउज के बटन खोलने चाहे परन्तु खोल नहीं पाया.. उन्होंने स्वयं अपने ब्लाउज के बटन खोले| आग दोनों ओर लग चुकी थी... दोनों के जिस्म देहक रहे थे| जैसे ही भौजी के स्तन ब्लाउज की कैद से आजाद हुए मैंने उन्हें कास के गले लगा लिया| हालाँकि मैंने टी-शर्ट पहनी हुई थी पर फिर भी उनके निप्पल मुझे अपनी छाती पे महसूस हो रहे थे| इससे पहले की हम आगे बढ़ते दरवाजे पे दस्तक हुई| भौजी कस्मा के मुझसे लिपटी रहीं परन्तु बहार से दस्तक चालु थी| मैंने भौजी को अपने से अलग किया ओर उन्हें होश में लाने की कोशिश की| उन्हें झिंझोड़ा तब जाके वो होश में आईं| उनके मुख पे गुस्से के भाव थे... ऐसे भाव जो मैंने कभी नहीं देखे| अगर उनके हाथ में पिस्तौल होती तो आज दस्तक देने वाले का मारना तय था| भौजी ने ब्लाउज के बटन बंद किये ओर मुझे इशारे से रुकने को कहा और वो चिल्लाती हुई दरवाजा खोलने गईं| मुझे दर था की अगर किसी ने मुझे यहाँ देख लिया तो आफत हो जाएगी इसलिए मैं आँगन की ओर भागा, चारपाई खींच के खड़ी की और उसपे चढ़ गया. लपक के मैंने दिवार फांदी और बहार कूद गया| कूदते समय थोड़ा पाँव ऊँचा-नीचे होने के कारन मोच आ गई|

मैं लंगड़ाते हुए किसी तरह घूम के मुख्य द्वार पे आया, देखा वहां कोई नहीं था| जब मैं भौजी के घर में दाखिल हुआ तो देखा भौजी माधुरी पे बड़े जोर से चिल्ला रहीं है|

भौजी: क्या चाहिए तुझे? जब देखो मानु...मानु उसके पीछे क्यों पड़ी है?... क्या चाहिए तुझे उससे? वो तुझे पसंद नहीं करता क्यों उसके आगे-पीछे घूमती रहती है| वो वैसा लड़का नहीं है जैसा तू सोच रही| उससे दूर रह वार्ना मैं तेरे माँ-पिताजी से तेरी शिकायत कर दूँगी|

माधुरी: मैं तो....

भौजी: तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ घुस आने की? बड़ी मुश्किल से आँख लगी थी और तूने मेरी नींद उड़ा दी|

आज तो भौजी का गुस्सा चरम पर था... मैंने सच में उन्हें इतना गुस्से में कभी नहीं देखा था| मैं लंगड़ाते हुए अंदर गया...

मैं: क्या हो रहा है?

मुझे लंगड़ाते हुए देख के दोनों एक आवाज में बोलीं:

"तुम्हें क्या हुआ?"

कोरस में दोनों की आवाज सुन के मैं हैरान हो गया...

मैं: कुछ नहीं पाँव-ऊँचा नीचे पद गया इसलिए मोच आ गई|

भौजी: हाय राम! इधर आओ देखूं तो|

माधुरी भी देखने के लिए नजदीक आई...

भौजी: तू क्या देख रही है| निकल यहाँ से और खबरदार जो "इनके" आस-पास भी भटकी| "ये" तुझे कुछ नहीं कहते तो तू सर पे चढ़ी जा रही है|

माधुरी बेचारी रोती-बिलखती बहार चली गई|

भौजी: मानु, मैं तेल लगा देती हूँ| तुम मेरी वजह से खुद को कितनी मुसीबत में डालते हो|

मैं: क्यों आपने उस "बेचारी" की क्लास लगा दी| वैसे मैंने आपको आज से पहले कभी भी इतना गुस्से में नहीं देखा|

भौजी: गुस्से वाली बात ही है, जब देखो तुम्हारे पास आने की कोशिश करती है| मैंने इसे अपना पति छीनने नहीं दे सकती| सोचो मुझे कैसा लगता होगा जब ये तुम से हंस-हंस के बातें करती है? मेरे दिल पे तो लाखों छुरियाँ चल जाती है| और आज कितने दिनों बाद तुम मुझे प्यार कर रहे थे और ये बीच में आ गई|मैं: देखो आप अपना गुस्सा शांत करो वार्ना इस आग में मैं जल जाऊँगा|

भौजी थोड़ा शांत हुईं.. उन्होंने मेरी एड़ी पर तेल की मालिश की और पट्टी बांद दी और मैं बहार आ गया और आँगन में चारपाई पे बैठ गया|| हमारे घर का एक नियम है जिसे रसोइये को हर हालत में मानना पड़ता है| वो नियम ये है की, रसोइया नह-धो के भोजन बनाने बैठता है| और एक बार वो रसोई में घुस गया तो वो बहुजन बना के सब को खिलाने के बाद ही बहार निकलता है| इस दौरान अगर उसे बाथरूम जाना पड़ा तो वो बिना नहाये-धोये रसोई में नहीं घुस सकता| ये नियम इतना कड़ा है की इसे हर हालत में इसका पालन जर्रुरी है, वरना घर के बड़े उस भोजन को हाथ तक नहीं लगाते|

अब मेरे और भौजी के बीच में जो शुरू हुआ था वो हालाँकि बीच में ही रह गया था परन्तु उनकी आत्मा अशुद्ध थी! अब रसोई में घुसने के लिए उन्हें नहाना आवश्यक था| तभी भौजी की घर के अंदर से आवाज आई:

"मानु... जरा सुनो तो?"

मैं: हाँ बोलो?

अंदर का दृश्य देख के मैं दंग रह गया| भौजी को आज मैं पहली बार सिर्फ ब्रा और पैंटी में देख रहा था| उनके होंठों की लाली और माँग का सिन्दूर उनकी सुंदरता पे चार चाँद लगा रहा था| मैंने भाग के दरवाजा बंद किया|

मैं: हाय!!!! आज तो आप गजब ढा रहे हो| अब अगर मेरा ईमान डोल गया तो इसमें क्या कसूर!!!

भौजी: अब ये औपचारिकता छोडो! अपनी "पत्नी" के पास आने के लिए तुम्हें बहाने की जर्रूरत नहीं|

मैं उनकी तरफ बढ़ा और उनके होठों पे अपने होंठ रख दिए| उनकी लिपस्टिक का मधुर स्वाद मुझे अपने मुँह में आने लगा था|मैं उनके होठों को बारी-बारी चूस रहा था, कभी-कभी भौजी अपनी जीभ मेरे मुख में प्रवेश करा देती और मेरी जीभ के साथ खेलती| मैं धीरे-धीरे भौजी को चारपाई तक ले गया और उन्हें लेटा दिया| सफ़ेद ब्रा और पैंटी में भौजी आज कयामत लग रही थी| उन्हें ऐसा देखने की मैंने कल्पना भी नहीं की थी|मैं उनके ऊपर आ गया और फिर उन्हें बेतहाशा चूमने लगा| भौजी मेरे हर एक चुम्बन का जवाब देने लगी थी| साफ़ था की वासना हम दोनों पे सवार थी.... मैंने अपने हाथ उनकी ब्रा का हुक खोलने के लिए उनकी पीठ के नीचे ले गया| तो भौजी ने अपनी पीठ उठा की सहयोग दिया| उनकी ब्रा का हुक खोल के मैंने उनकी ब्रा खींच के निकाली और सिराहने रख दी|मैं जानता था की मेरे पास FOREPLAY के लिए समय नहीं है, इसलिए मैं सीधा नीचे की ओर बढ़ा और भौजी की पैंटी निकाल दी| उनके योनि के पटल बंद थे और मुझे भीनी-भीनी सी मढोह करने वाली महक आने लगी थी| मैंने झुक के जैसे ही भौजी की योनि को अपनी जीभ की नोक से छुआ तो भौजी तड़प उठी| मैंने अपनी एक ऊँगली भौजी की योनि के अंदर डाली तो पता चल की उनकी योनि अंदर से गीली है| मैंने अपना पाजामा नीचे किया और लंड निकाल के तैयार हो गया| मैं उनके ऊपर पुनः झुक गया और अपनी लंड को उनकी योनि के ऊपर रख धीरे से उसे अंदर प्रवेश करा दिया|

अपने दोनों हाथों से मैंने भौजी के दोनों हाथ पकड़ लिए, इधर भौजी ने अपनी टांगों से मेरी कमर को लॉक कर लिया था| मैंने शुरुआत धीरे-धीरे की, घर्षण काम होने के कारन मुझे अपनी गति बढ़ानी पड़ी| समय बीतता जा रहा था और अगर इस समय हमें कोई डिस्टर्ब करता तो आज खून-खराबा तय था| मेरे हर धक्के के साथ भौजी के स्तन ऊपर नीचे हो रहे थे और भौजी के मुख के भावों ओ देख के लग रहा था की किसी भी समय वो स्खलित हो जाएँगी| उनके होठों की लाली फ़ैल चुकी थी और मुझे उन्हें इस तरह देख के बहुत आनंद आ रहा था| करीब बीस मिनट तक मैं बिना रुके लय बद्ध तरीके से धक्के देता रहा| मेरा पूरा शरीर पसीने से तरबातर हो चूका था.... चेहरे पे पसीना बह के भौजी के मुख पे गिरने लगा था| तब भौजी ने अपनी ब्रा से मेरे मुँह पोछा| अंदर से भौजी की योनि पनिया गई थी….. शायद इस बार भौजी ज्यादा ही उत्साहित थी.... पिछली बार जब हमने सम्भोग किया था तब उनकी योनि ने मेरे लंड को जकड रखा था| परन्तु इस बार तो लंड आसानी से फिसल रहा था.... अब समय आ चूका था जब मैं चरम पे पहुँचने वाला था| भौजी को ना जाने क्या हुआ उन्होंने अपने हाथ छुड़ाए और मेरे सर को अपने मुख पे झुकाया और मेरे होठों को चूसने लगीं| मैंने निर्णय कर लिया था की आज तो मैं भौजी की इच्छा पूरी कर के रहूँगा|

मैंने उनकी इस प्रतिक्रिया का कोई जवाब नहीं दिया और नीचे से अपना पूरा जोर लगता रहा| आखिर मैं स्खलित होने वाला था... आखिर के चार धक्के कुछ इस प्रकार थे की जैसे ही मैं अपने लंड को अंदर की ओर धकेलता उसमें से रस की धार निकल के भौजी की योनि में गिरती, फिर जैसे ही मैं उसे बहार खींचता वो चुप हो जाता| फिर दूसरे धक्के में जब मैं उसे अंदर धकेलता तो फिर उसमें से रस की लम्बी धार निकलती औरइसी प्रकार आखरी के चार धक्कों में मैंने उनकी योनि को अपने रस से भर दिया और हाँफते हुए उनके ऊपर गिर गया|


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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:20

26

अब आगे....

मैं: ARE YOU HAPPY NOW ?

भौजी: मतलब???

मैं: मतलब आप खुश तो हो ना?

मैं: हाँ... बहुत खुश!!!

ये कहते हुए उन्होंने मेरे होठों को चूम लिया, और मैंने भी उनके चुम्बन का जवाब उनके होंठों को आखरी बार चूस के दिया| मैं उठ के खड़ा हुआ और स्नान घर की ओर जाने लगा, ताकि अपने हाथ-मुँह ओर लंड धो सकूँ| भौजी ने मुझे पीछे से पुकारा:

"मानु, इधर आना ..."
मैं उनके पास आया तो उन्होंने मेरे लटके हुए लंड को हाथ से पकड़ा और हिलाते हुए अपने मुँह में भर लिया|

"स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ....."

उन्होंने अपनी जीभ से मेरे लंड को चूसना और रगड़ना शुरू कर दिया| मानो वो हमारे रास को पोंछ के साफ़ कर यहीं हो| जब उन्होंने मेरे लंड को अच्छे से चूस लिया तब मैंने उनसे कहा: "आप बड़े शरारती हो?"

भौजी कुछ नहीं बोलीं और बस मुस्कुराके लेटी रहीं| मैं हाथ-मुँह धो के उनके पास आया:

मैं: अब आप जल्दी से नहा लो... घर के सब लोग अभी खेत से लौटते होंगे|

भौजी: ठीक है, तुम बहार ही बैठना|

मैं बहार चारपाई पर बैठ गया और कुछ सोचने लगा... तभ भौजी नहा के बहार आईं, उनके बाल भीगे हुए थे और चमक रहे थे| उनके बदन से खुशबूदार गुलाबी LUX साबुन की महक आ रही थी| बालों से शैम्पू की महक.... "ह्म्म्म्म्म"

भौजी सीधा मेरे पास आके बैठ गईं... और मेरा हाथ पकड़ लिया| तभी नेहा भागती हुई आई, भौजी छिटक के उठ खड़ी हुई| ये देख के मेरी हंसी छूट गई... "हा हा हा हा हा " भौजी भी हंस पड़ी और रसोई की ओर चल दीं| नेहा मेरी गोद में आके बैठ गई... तभी बाकी के घर वाले भी एक-एक कर आने लगे| सभी हैंडपंप पे हाथ-मुँह धोने लगे ओर चाय के लिए बैठ गए| माँ ने मेरे पाँव में पट्टी बंधी देखि:

माँ: हाय राम! अब क्या मार लिया तूने?

मैं: कुछ नहीं.. वो पैर ऊँचा-नीचा पद गया तो थोड़ी मोच आ गई|

माँ: बेटा देख के चला कर, ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा?

मैं: नहीं..

इतने में भौजी चाय ले के आ गईं|

भौजी: चाची मैंने तेल से मालिश करके पट्टी बांध दी थी| कल सुबह तक ठीक हो "जायेंगे"|

माँ: अच्छा किया बहु, एक तू ही है जो इसका इतना ध्यान रखती है वरना शहर में तो ये खुद ही कुछ न कुछ कर लेता था, मुझे बताता भी नहीं था|

माँ चाय का कप लिए खड़ी थी की तभी वहाँ बड़की अम्मा भी आ गईं और वो भी मेरे पाँव में पट्टी देख के हैरान थी| भौजी ने आगे बढ़ कर खुद उन्हें सारी बात बताई|

बड़की अम्मा: मानु की अम्मा, देख रही हो देवर-भाभी का प्यार? चोट मानु को लगती है तो दर्द बहु को होता है| बीमार बहु होती है तो दवा-दारु मानु करता है| बिलकुल ऐसा ही इसके पिताजी थे जब वो छोटे थे| हमेशा किसी न किसी काम में मेरी मदद करते रहते थे... जब भी चोट लगती तो भागे-भागे मेरे पास आते थे|

माँ कुछ नहीं बोलीं और मुस्कुरा दीं... भौजी भी मंद-मंद मुस्कुरा रहीं थी| अँधेरा हो रहा था... और एक मुसीबत अभी बाकी थी|गाँव का ठाकुर (माधुरी का बाप) बड़ी तेजी से चलता हुआ आया और मेरे पिताजी के पास आके बैठ गया और पिताजी से बोला:

ठाकुर: बाबूजी, आज मैं आपके पास एक शिकायत लेके आया हूँ|

पिताजी: शिकायत? क्यों क्या हुआ?

ठाकुर: आपके घर की बहु ने मेरी बेटी को बहुत बुरी तरह झाड़ा है!

पिताजी: बड़ी बहु ने?

ठाकुर: हाँ और जानते हैं क्यों?

पिताजी: क्यों?

ठाकुर: क्यों की वो आपके लड़के से मिलने आती है| ऐसा कौन सा पाप कर दिया उसने? सिर्फ बात ही तो करती है ना?

पिताजी ने भौजी को आवाज लगाईं, और भौजी के साथ मैं भी आया| माँ और बड़की अम्मा तो पहले ही वहाँ खड़े थे|

पिताजी: बहु क्या ये सच है, तुमने ठाकुर साहब की बेटी को डाँटा?

ठाकुर: बाबूजी, डाँटा नहीं झाड़ा !!! और ऐसा झाड़ा की रो-रो कर उसका बुरा हाल है|

भौजी: जी...

मैं: मेरे कहने पे!

भौजी और सभी लोग मेरी तरफ देखने लगी...

मैं: जी मैंने ही भौजी से कहा था की माधुरी बार-बार मुझसे बात करने की कोशिश करती है| जबकि मेरी उसमें कोई दिलचस्पी ही नहीं.... मैं उससे जितना दूर भागता हूँ वो उतना ही मेरे पास आने की कोशिश करती है| यहाँ तक की उसने तो मुझसे शादी के बारे में भी पूछा था| उस दीं जब हम वाराणसी के लिए निकल रहे थे तो शाम को मुझसे कह रही थी की "अब आप दुबारा कब आओगे?" और जब मैंने कहा की एक साल बाद तो कहने लगी "हाय राम!!! इतने देर लगाओगे?" अब आप ही बताइये पिताजी मैं और क्या करता? इसलिए मैंने भौजी से शिकायत की कि आप उसे समझा दो| पर आज दोपहर में जब मैं आप सबके साथ खेत पे था तब माधुरी घर आई और दरवाजा पीटने लगी.. बड़ी मुश्किल से भौजी कि आँख लगी थी उन्होंने गुस्से में उसे सुना दिया|

ठाकुर: मैं अपनी बेटी को अच्छी तरह से जानता हूँ, वो ऐसी बिलकुल भी नहीं है जैसा तुम कह रहे हो?

मैं: आप उसे यहाँ बुला क्यों नहीं लेते? दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा|

पिताजी ने अजय भैया को माधुरी को बुलाने को भेजा... और इधर घरवाले सब मेरी तरफ हो गए थे| सब का मानना था कि मैं झूठ नहीं बोलूंगा| कुछ ही देर में माधुरी भी आ गई और गर्दन झुकाये खड़ी हो गई| पिताजी अब मुखिया कि तरह बात सुलझाने लग गए|

पिताजी: बेटा मानु का कहना है कि तुम जबरदस्ती उसे बातें करने कि कोशिश करती हो| और तुमने उससे शादी के लिए भी पूछा था?

माधुरी: जी.. पूछा था|

पिताजी: क्यों?

माधुरी: क्योंकि मैं "उनसे" प्यार करती हूँ!!!

ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए!!! भौजी का मुँह खुला का खुला रह गया|

मैं: ARE YOU MAD !!! दिमाग ख़राब तो नहीं हो गया?

ठाकुर: ये तू क्या कह रही है बेटी?

पिताजी: मानु, तू शांत हो जा!!! बेटी ये कब से चल रहा है?

माधुरी: जी जब मैं पहली बार "इनसे" मिली थी| मैं इन्ही से शादी करना चाहती हूँ|

पिताजी: ये नहीं हो सकता बेटी, लड़का अभी पढ़ रहा है और...

माधुरी: मैं इन्तेजार करने के लिए तैयार हूँ!!!

मैं: YOU'RE OUT OF YOUR MIND !!! मैं तुम से प्यार नहीं करता, तो शादी कैसे ??? ठाकुर साहब आप अपनी बेटी को समझाओ या इसे डॉक्टर के पास ले जाओ|

भौजी कि आँखें भर आईं थी और वो मुँह फेर के चली गईं|

पिताजी: मैंने कहा ना तू चुप रह!!! मैं बात कर रहा हूँ ना???

माँ: तू जा यहाँ से... यहाँ सब बड़े बात कर रहे हैं|

मैं: पिताजी, आपको जो भी फैसला लेना है लो पर मैं इससे शादी नहीं करने वाला|

अजय भैया मुझे अपने साथ खींच के ले गए और दूर चारपाई पे बैठा दिया|मेरा दिमाग गरम हो गया था... आस पास नजर दौड़ाई पर भौजी कहीं नजर नहीं आई| मैं खुद तो उन्हें ढूंढने नहीं जा सकता था इसलिए मैंने नेहा को ढूंढने के लिए भेजा|नेहा भी जब नहीं लौटी तो मुझे खुद ही उन्हें ढूंढने जाना पड़ा... मेरे मन में बुरे-बुरे विचार आने लगे थे| कहीं भौजी ने कुछ गलत कदम न उठा लिया है... यही सोचता हुआ मैं उनके घर कि ओर चल दिया|

भौजी नेहा से लिपटी हुई रो रही थी... मैंने भौजी के कंधे पे हाथ रखा और उन्हें अपनी ओर घुमाया| भौजी मेरे सीने से लग के रोने लगी...

मैं: आप क्यों रो रहे हो? मैं उस से शादी थोड़े ही करने वाला हूँ| मैंने सबके सामने साफ़-साफ़ कह दिया कि मैं उससे शादी नहीं करूँगा| कभी नहीं करूँगा!!!

भौजी: ये सब मेरी वजह से हुआ...

मैं: किसने कहा आपसे, इसमें आपकी कोई गलती नहीं|

भौजी: पर चाचा नहीं मानेंगे ... वो तुम्हारी उसके साथ तय कर देंगे| मुझे इस बात कि चिंता है कि वो लड़की तुम्हारे लिए सही नहीं है|

मैं: पिताजी ऐसा कुछ नहीं करेंगे, और शादी तय कर भी दी तो करनी तो मुझे है| और जब मैं ही नहीं मानूंगा तो शादी कैसी? आप बस चुप हो जाओ, देखो किसी ने आपको मुझसे ऐसे लिपटे देख लिया तो क्या सोचेगा? मैं बहार जा रहा हूँ आप भी मुँह धो लो और बहार आ जाओ!!!

ये कहके मैं बहार आ गया और नेहा को साथ ले आया| मेरी नजर अब भी दूर हो रही बैठक पे थी... मन में सवाल उठ रहे थे कि पता नहीं क्या होगा? अगर पिताजी ने वाकई में मेरी शादी तय कर दी तो?
भौजी भी कुछ देर बाद बहार आ गईं और पास ही खड़ी हो गई .. उनका ध्यान भी बैठक कि ओर था| कुछ समय बाद बैठक खत्म हुई ओर ठाकुर, माधुरी और उसकी माँ अपने घर कि ओर चल दिए| मन में उत्सुकता बढ़ रही थी कि पता नहीं सब ने क्या फैसला किया है? मैं उठा और जहाँ बैठक हो रही थी वहाँ जाके हाथ मोड़के खड़ा हो गया| भौजी भी मेरे साथ वहीँ खड़ी हो गई|


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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 16 Dec 2014 14:21

27

अब आगे....

बड़के दादा: बैठो मुन्ना
(मैं चुप-चाप बैठ गया, मेरे तेवर देख के कोई भी कह सकता था कि अगर उन्होंने मेरी शादी कि बात कि तो मैं बगावत कर दूँगा|)

पिताजी: देखो बेटा, बात थोड़ी सी गंभीर है| लड़की मानने को तैयार नहीं है... वो जिद्द पे अड़ी है कि वो शादी तुम से ही करेगी| इसलिए हमने उनसे थोड़ा समय माँगा है ...

मैं: समय किस लिए? आपको जवाब तो मालुम है|
(मेरे तेवर गर्म हो चुके थे .. तभी भौजी ने मेरे कंधे पे हाथ रख के मुझे शांत होने का इशारा किया|)

पिताजी: देखो बेटा हम कल शादी नहीं कर रहे... हमने केवल सोचने के लिए समय माँगा है|

मैं: पिताजी आप मेरा जवाब जानते हो, मैं उससे शादी कभी नहीं करूँगा!!! आप मेरे एक सवाल का जवाब दो, कल को शादी के बाद भी वो इसी तरह कि जिद्द करेगी तो मैं क्या करूँगा? हर बार उसकी जिद्द के आगे झुकता रहूँ? आप लोगों का क्या? मैं और आप तो काम धंधे में लगे रहेंगे और वो घर में माँ को तंग करेगी?
ऐसी जिद्दी लड़की तो मुझे आपसे भी अलग कर देगी और तब बात तलाक पे आएगी? क्या ये ठीक है? आप यही चाहते हो? मैं ये नहीं कह रहा कि लड़की मेरी पसंद कि हो, परन्तु वो काम से काम आप लोगों को तो खुश रख सके| माँ-बाप अपने बच्चों को इतने प्यार से पालते हैं और जब वही बचे बड़े हो के गलत फैसले लें या उनके माँ-बाप उनके लिए गलत फैसले लें तो सब कुछ तबाह हो जाता है|

मेरे दिमाग में जितने भी बहाने आये मैंने सब पिताजी के सामने रख दिए|अब मैं उनका जवाब सुनने को बेचैन था|

पिताजी: बेटा तू इतना जल्दी बड़ा हो गया? हमारे बारे में इतना सोचता है? हमें और क्या चाहिए?

बड़के दादा: भैया तुमने बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं अपने लड़के को| मुझे तुम पे गर्व है!!! तुम चिंता मत करो मुन्ना, कल हम जाके ठाकुर साहब को समझा देंगे| अगर फिर भी नहीं माना तो पंचायत इक्कट्ठा कर लेंगे|बहु चलो खाना बनाओ अब सब कुछ ठीक हो गया है, चिंता कि कोई बात नहीं है|

मैं उठ के खड़ा हुआ तो बड़की अम्मा ने मेरा माथा चूमा और माँ ने भी थोड़ा दुलार किया| अगर किसी का मुँह देखने लायक था तो वो था अजय भैया और चन्दर भैया का| दोनों के दोनों हैरान थे और मुझे शाबाशी दे रहे थे|मैं मन ही मन सोच रहा था कि बेटा तू राजनीति में जा ..अच्छा भविष्य है तेरा| क्या स्पीच दी है.. सबके सब खुश होगये!!! मैं मन ही मन अपने आपको शाबाशी देने लगा| भोजन का समय था, सभी पुरुष सदस्य एक कतार में बैठे थे और मेरा नंबर आखरी था| भौजी एक-एक कर के सब को भोजन परोस रही थी| नेहा खाना खा चुकी थी और आँगन में खेल रही थी, सब लोग अब भी शाम को हुई घटना के बारे में बात कर रहे थे| भौजी अभी खामोश थीं... मैं भी चुप-चाप अपना भोजन कर रहा था| तभी नेहा भागते-भागते गिर गई और रोने लगी.. मैंने सोचा कि शायद चन्दर भैया उसे उठाने जायंगे पर उन्होंने तो बैठ-बैठे ही भौजी को हुक्म दे दिया; "जरा देखो, नेहा गिर गई है|" मुझे बड़ा गुस्सा आया उनपर, इसलिए मं खुद भागता हुआ गया और नेहा को गोद में उठाया|

चन्दर भैया: अरे मानु भइया, पहले भोजन तो कर लो; तुम्हारी भाभी देख लेगी उसे|

मैं: अभी आता हूँ| अव्व ले ले मेरे बेटा.. चोट लग गई आपको?

मैं नेहा को हैंडपंप के पास ले गया, अपने हाथ धोये फिर उसके हाथ-पाँव धोये| अपने रुमाल से उसके चोट वाली जगह को धीरे-धीरे पोंछा, इतने में भौजी भी वहाँ भागती हुई आ गईं;

भौजी: लाओ मानु मैं देखती हूँ मेरी लाड़ली को क्या होगया?

मैं: नहीं आप अभी इसे छू नहीं सकते... आपने बाकियों को भोजन परोसना है| मैं नेहा को दवाई लगा के अभी लाता हूँ|

मैं नेहा को पुचकारते हुए अपने साथ बड़े घर लेग्या और उसके चोट ओ डेटोल से साफ़ किया फिर दवाई लगाई| ज्यादा गंभीर चोट नहीं थी पर बच्चे तो आखिर बच्चे होते है ना| करीब पंद्रह मिनट बाद वापस आया तो देखा सब खाना खा के उठ चुके थे| मैंने नेहा को गोद से उतरा और अपनी चारपाई पे बैठा दिया|
:आप यहीं बैठो.. मैं खाना खा के आता हूँ, फिर आपको क नै कहानी सुनाउंगा|"

मैंने भौजी से पूछा कि मेरी थाली कहाँ है तो उन्होंने उसमें और भोजन परोस के दे दिया| मैं उनकी ओर हैरानी से देखने लगा; तभी वो बोलीं "सभी बर्तन जूठे हैं इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ ही खाऊँगी|"
मैंने एक रोटी खाई और उठने लगा तो भौजी ने मेरा हाथ पकड़ के बैठा दिया ओर कहा; "एक रोटी मेरी ओर से|" मैंने ना में सर हिलाया तो वो बनावटी गुस्से में बोलीं; "ठीक है तो फिर मैं भी नहीं खाऊँगी|" अब मैंने जबरदस्ती एक और रोटी खा ली और हाथ-मुँह धो के नेहा के पास आ गया| नेहा मेरा इन्तेजार करते हुए अब भी जाग रही थी... नेहा को अपनी गोद में लिए मैं टहलने लगा और कहानी सुनाता रहा और उसकी पीठ सहलाता रहा ताकि वो सो जाए| इधर सभी अपने-अपने बिस्तर में घुस चुके थे... मैं जब टहलते हुए पिताजी के पास पहुंचा तो उन्होंने मुझे अपने पास बैठने को कहा; तभी भौजी वहाँ बड़के दादा के लिए लोटे में पानी ले के आ गईं ताकि अगर उन्हें रात में प्यास लगे तो पानी पी सकें|

पिताजी: क्या हुआ चक्कर क्यों काट रहा है?

मैं: अपनी लाड़ली को कहनी सुना रहा हूँ|
(मेरे मुँह से "मेरी लाड़ली" सुनते ही भौजी के मुख पे छत्तीस इंच कि मुस्कराहट फ़ैल गई|)

भौजी मुझे छेड़ते हुए बोलीं:

भौजी: कभी हमें भी कहानी सुना दिया करो... जब देखो "अपनी लाड़ली" को गोद में लिए घूमते रहते हो|

मैं: सुना देता पर नेहा तो आधी कहनी सुनते ही सो जाती है, पर आपको सुलाने के लिए काम से काम तीन कहनियाँ लगेंगी| तीन कहनी सुनते-सुनते आधी रात हो जाएगी और आप तो सो जाओगे अपने बिस्तर पे, और मुझे आँखें मलते हुए अपने बिस्तर पे आके सोना होगा|

मेरी बात सुनके सब हँस पड़े| खेर मैं करीब आधे घंटे तक नेहा को अपनी गॉड में लिए घूमता रहा और कहनी सुनाता रहा| जब मुझे लगा की नेहा सो गई है तब मैं उसे लेके भौजी की घर की ओर चल दिया| हंसेः कि तरह, आँगन में दो चारपाइयाँ लगीं थी.. एक पे भौजी लेटी थी और दूसरी नेहा के लिए खाली थी| मैंने नेहा को चारपाई पे लेटाया;

भौजी: सो गई नेहा?

मैं: हाँ बड़ी मुश्किल से!

भौजी: आओ मेरे पास बैठो|
(मैं भौजी के पास बैठ गया|)

मैं: (गहरी सांस लेते हुए|) बताओ क्या हुक्म है मेरे लिए?

भौजी: तुम जब मेरे पास होते हो तो मुझे नींद बहुत अच्छी आती है|

मैं: आप तो सो जाते हो पर मुझे आधी रात को अपने बिस्तर पे जाना पड़ता है|

भौजी: अच्छा जी! खेर मैं "आपको" एक बात बताना चाहती थी, कल मेरा व्रत है|

मैं: व्रत, किस लिए?

भौजी: कल XXXXXX का व्रत है जो हर पत्नी अपने पति की खुशाली के लिए व्रत रखती है| तो मैं भी ये व्रत आपके लिए रखूंगी|

मैं: ठीक है.... तो इसका मतलब कल मैं आपको नहीं छू सकता!

भौजी: सिर्फ शाम तक.. शाम को पूजा के बाद मैं आपके पास आऊँगी|

मैं: ठीक है, अब मैं चलता हूँ|

भौजी: मेरे पास बैठने के लिए तो तुम्हारे पास टाइम ही नहीं है?

मैं: दरवाजा खुला है, घर के सभी लोग अभी जगे हैं... अब किसी ने मुझे आपके साथ देख लिया तो???

भौजी: ठीक है जाओ!!! सोने!!! मैं अकेले यहाँ जागती रहूंगी!!!

मैं बिना कुछ कहे उठ के अपने बिस्तर पे आके लेट गया| अभी दस मिनट ही हुए होंगे की भौजी नेहा को गोद में ले के आइन और मेरे पास लिटाते हुए बोलीं: "लो सम्भालो अपनी लाड़ली को!" मैं कुछ कहता इससे पहले ही वो चलीं गई... मैं करवट लेके लेट गया और नेहा की छाती थपथपाने लगा| कुछ ही देर में नेहा भी मुझसे लिपट के सो गई|


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