घरेलू चुदाई समारोह compleet

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007
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Re: घरेलू चुदाई समारोह

Unread post by 007 » 28 Oct 2014 21:45



“कचोट लो उन्हें प्यारे। और एक अँगुली और डालो मेरी चूत में…” मनीषा ने विनती की। उसने सुनील का लण्ड हाथ में लिया और उसे सहलाना शुरू कर दिया। वह सुबह से चुदवाने को बेचैन थी और उसका पूरा जिश्म वासना की आग में झुलस रहा था। उसने सुनील की मुठ मारनी शुरू कर दी। फिर बोली- “पहले मुझे ज़रा नाश्ता तो कराओ…” कहते हुए उसने लेटते हुए सुनील का लण्ड अपने मुँह में ले लिया। मनीषा ने पूरे जोर-शोर से अपनी भूख मिटानी शुरू कर दी। वो तो उसे कभी न छोड़ती अगर सुनील जल्दी में न होता। उसने बेमन से सुनील का लण्ड अपने मुँह से निकाला।

“अब तुम मुझे चोदो राजा… वही पुराने तरीके से, तेज़ और गहरे… पेल दो ये मूसल मेरी चूत में…” मनीषा ने सुनील के लण्ड को अपनी चूत के मुँह पर रखकर कांपते हुए स्वर में सुनील से मिन्नत की।

“अरे मादरचोद…” जैसे ही वह हलब्बी लौड़ा अंदर गया मनीषा के मुँह से चीख निकली। सुनील ने एक ही धक्के में अपना पूरा लण्ड अंदर जो पेल दिया था।

“दे दो मुझे ये पूरा लंड़ पर जल्दी झड़ना नहीं। मुझे कई बार झाड़े बिना मत झड़ना। मुझे कई बार झड़ना है। कई बार…”

सुनील के लिये ये कोई आसान काम नहीं था। वो जितनी ताकत और तेज़ी से मनीषा को चोद रहा था उसमें अपने आपको काबू में रखना मुश्किल था। उसने अपना ध्यान दूसरी ओर करने की कोशिश की जिससे वह जल्दी न झड़े। उसने गोल्फ, अपनी नौकरी और अपने दोस्तों के बारे में सोचने की कोशिश की।

जब पहला झटका आया तो मनीषा फिर चीखी- “वाह रे मेरे ठोंकू… चोद मुझे… मैं जली जा रही हूँ। मेरी चूत में आग लगी हुई है। झड़ना नहीं, मेरा इंतज़ार करना, सुनील…”

सुनील खुद आश्चयर्चकित था कि इस घनघोर चुदाई के बावज़ूद वो अभी तक टिका हुआ था। उसका हौसला बढ़ा और उसने पूरी चेष्टा की कि मनीषा झड़-झड़ कर बेहाल हो जाए।

“तुम नीचे आओ…” मनीषा बोली।

“पर हमारे पास ज्यादा समय नहीं है…”

पर मनीषा नहीं मानी और सुनील को पीठ के बल लिटाकर उसके लण्ड को अपनी बुर में ठुंसकर कलाबाजियां खाने लगी। बोली- “मैं फिर से झड़ रही हूँ…” पर वह रुकी नहीं। दो ही मिनट में वो फिर बोली- “फिर से झड़ी, वाह क्या ज़िंदगी है…”

सुनील मनीषा के पुट्ठे पकड़कर उसे अपने लण्ड पर कलाबाजी खाने में मदद कर रहा था। वो उस चुदासी औरत की उछलती छातियों को देखने में इतना मस्त था कि उसे अपनी संतुष्टि का ख्याल ही नहीं आया। मनीषा के जिश्म ने एक झटका लिया और वो सुनील के ऊपर ढह गई। उसने सुनील का एक दीर्घ चुम्बन लिया और वह बिस्तर पर कुतिया वाले आसन में आ गई। उसका लाल चेहरा तकिया में छुप गया।

मनीषा- “एक बार मुझे इस आसन में और चोदो फिर मैं तुम्हें छोड़ दूंगी…”

सुनील ले अपने सामने फैली हुई गाण्ड को देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया। उसने अपने हाथों से अपने भारी लण्ड को सम्भाला और मनीषा के पीछे जाकर अपना लण्ड उसकी गीली चूत में जड़ तक समा दिया। इस बार उसने इस बात का ध्यान नहीं दिया कि मनीषा झड़ेगी या नहीं। आखिर यह उसका भी आज का अंतिम पराक्रम था।

007
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Re: घरेलू चुदाई समारोह

Unread post by 007 » 28 Oct 2014 21:45


“इतना गहरे तो पहले तुम कभी नहीं गये, सुनील…” मनीषा बोली- “चोदो इस चूत को और तुम भी झड़ो और मुझे भी तारे दिखा दो…”

सुनील को हमेशा इस बात से और उन्माद आता था, जब उससे चुदा रही औरत इस तरह की अश्लील भाषा का प्रयोग करती थी। उसने अपनी रफ्तार तेज़ कर दी। उसके लण्ड से निकली वीर्य की धार मनीषा की धार के साथ ही छूटी। दोनों जैसे स्वर्ग में थे।

मनीषा- “हे मेरे रब्बा… इतना आनंद… यही स्वर्ग है… और तुम फरिश्ते हो, सुनील…”

सुनील ने अपना सिकुड़ा हुआ लण्ड एक पाप की अवाज़ के साथ बाहर निकाला। उसने घड़ी देखी तो जल्दी से कपड़े पहनने लगा। उसका ग्राहक आने ही वाला था।

सुनील- “मैं चलता हूँ…” उसने जल्दी से विदा माँगी।

मनीषा- “तुम बड़े रूखे इन्सान हो…”

सुनील- “मैं तुम्हें बाद में मिलूंगाा अभी मुझे वाकई जल्दी है…”

मनीषा भी उठकर नहाने चली गई। हालांकि उनकी चुदाई तेज़ और तीखी रही थी पर उसे याद नहीं पड़ता था कि वह इतनी बार कभी झड़ी हो। उसने दो जबरदस्त पैग बनाकर पिये और एक लम्बा स्नान लिया। फिर वोह बाहर जाने के लिए तैयार हुई और हमेशा की तरह भड़कीले कपड़े पहने। अभी उसने अपने ऊँची एंड़ी के सैंडल पहने ही थे कि इतने में ही उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई। यह सोचकर कि शायद सुनील का गोल्फ का साथी नहीं आया, उसने तत्काल ही दरवाज़ा खोला। पर उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि सजल आया था।

सजल बोला- “मनीषा आंटी, मैं अपने पापा को ढूढ़ रहा था, कुछ देर पहले मैंने उन्हें यहीं देखा था। मैंने सोचा शायद वो अभी यहीं हैं…”

“हाँ वो यहाँ थे तो सही… मेरी वाशिंग मशीन को ठीक कर रहे थे। पर वो कुछ मिनट पहले ही निकले हैं। किसी के साथ गोल्फ खेलने जाना था उन्हें… क्या तुमने उन्हें नहीं देखा…”

“फिर तो मैं उन्हें बाद में ही देख पाऊँगा। माफ करना आंटी मैनें आपको बेवजह परेशान किया… धन्यवाद…”

जब सजल वापस जाने के लिये मुड़ा तो मनीषा के दिमाग में एक शैतानी ख्याल आया। वो बोली- “रुको, सजल… तुम अंदर आकर क्यों नहीं मेरे साथ एक पेप्सी लेते…” कहकर उसने सजल को उसकी बांह से पकड़कर अंदर खींचा। उसके मन में आया कि कोमल से इससे अच्छा बदला क्या होगा कि उसका पति और बेटा दोनों उसकी गिरफ्त में हों…

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Re: घरेलू चुदाई समारोह

Unread post by 007 » 28 Oct 2014 21:46



सजल ने अपनी पडोसन की मधुरिम काया पर एक भरपूर नज़र दौड़ाते हुए पूछा- “क्या आप सही कह रही हैं…”

“और नहीं तो क्या… आओ अंदर…” मनीषा ने सजल को अंदर खींच लिया और दरवाज़ा बंद कर दिया। फिर बोलि “तुम काफी बड़े हो गये हो, सजल… देखो तो क्या मसल निकल आई हैं। अब तुम वह छोटे बच्चे नहीं रहे जो मेरे घर के सामने साइकल चलाया करते थे…”

सजल के चेहरे पर लाली छा गई- “हाँ अब मैं छोटा बच्चा नहीं रहा आंटी…”

मनीषा ने खिलखिलाते हुए फ्रिज़ से दो पेप्सी निकाली और एक ग्लास में डालकर सजल को दी और अपने लिए दूसरे ग्लास में लेकर उसमें थोड़ी व्हिस्की मिला ली, बोली- “एक दो साल में तुम अपने पापा के जितने हो जाओगे… तुम उनके जैसे आकर्षक तो हो ही गए हो…”

सजल फिर से शर्मा गया। उसकी आंखें मनीषा के जिश्म पर से अब हट नहीं रही थीं। अपनी मम्मी को चोदने के बाद उसे बड़ी उम्र की औरत की सुंदरता का अहसास हो गया था। और उसकी ये आंटी सुंदरता में उसकी मम्मी से कहीं भी उन्नीस नहीं थी।

मनीषा- “आओ सोफे पर आराम से बैठते हैं। तुम्हें कहीं जाना तो नहीं है न…”

जब सजल उसके पास आकर बैठ गया तो मनीषा ने उसे वहीं अपने पति के मनचाहे कमरे में चोदने का निश्चय कर लिया।

“तो मुझे बताओ, आजकल तुम क्या कर रहे हो…” मनीषा ने अपने व्हिस्की मिले पेप्सी का घूँट लेते हुए पूछा।

“कुछ ज्यादा नहीं…” सजल ने कंधे उचकाकर कहा। उसका लण्ड खड़ा हो रहा था और वह उसे छिपाने का रास्ता ढूढ़ रहा था- “वही कालेज की कहानी…”

“तुम अगले साल कहाँ पढ़ने जा रहे हो…” मनीषा ने बात बढ़ाने के लिये पूछा।

“अगले साल से तो मैं यही रहकर पढ़ूँगा। मम्मी को मेरा वह कालेज पसंद नहीं है…”

“मुझे खुशी है कि तुम अपने घर में रहोगे। इससे हमें एक दूसरे को बेहतर जानने का मौका मिलेगा…” मनीषा ने अपने हाथ से सजल की जांघ को सहलाते हुए कहा।

मनीषा इस नौजवान को जल्द से जल्द राह पर लाने का तरीका सोच रही थी। उसे इसका कोई अभ्यास नहीं था। उसे तो चट-पटाओ, बिस्तर पर जाओ, चोदो और निकल जाओ का तरीका ही आता था। उसने कुछ देर और ऐसी ही बेमानी बातों का सिलसिला ज़ारी रखा। पर कुछ ही देर में उसका धैर्य जवाब दे गया, और उसने अपनी चाल चलने का फैसला किया। उसने बातें करते-करते सजल के होठों का एक लम्बा चुम्बन ले डाला। उसकी जीभ सजल के मुँह में घुस गई। जब सजल ने कोई प्रतिरोध नहीं किया तो मनीषा ने अपनी बाहें उसके गिर्द करीं और उसे लेकर वह सोफे पर ढह गई।

“तुम बड़े सजीले लड़के हो, सजल…” उसने अपने जिश्म को सजल के जिश्म से रगड़ते हुए कहा- “मेरे पुट्ठों को पकड़ो और दबाओ…”

सजल को अपनी मम्मी की चुदाई करने से यह तो पता चल गया था कि इस उम्र की औरतें क्या चाहती हैं। उसने फ़ौरन मनीषा की इच्छा पूरी की।

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