मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -6
बेला देखने गई मेला
उसने अपना हलव्वी लण्ड मेरी पावरोटी सी चूत के मुहाने पर रखा फिर उसने मेरे चूतड़ों को थोड़ा सा उठा कर अपने लण्ड को मेरी बेकरार चूत में कुछ इस तरह से चांपा आधे से ज़्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस गया था. मैं तड़प उठी, चीख उठी और चिल्ला उठी “उई माँ , हायईईईईई मैं मरीईई अहहााआ”
तभी उसने इतनी ज़ोर से ठाप मारा कि उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस गया.
“उईईईई माँ अरे जालिम कुछ तो मेरी चूत का ख्याल कर”
मैं दर्द से कराह रही थी। वो मेरे नंगे बदन पर लेट गया और मेरी एक चूची को मुँह मैं लेकर चूसने लगा. धीरे धीरे मजा बढ़ने पर मैं अपने चूतड़ों को ऊपर उछालने लगी, तभी वो मेरी चूचियों को छोड़ दोनो हाथ ज़मीन पर टेक कर लण्ड को चूत से टोपा तक खींच कर इतनी ज़ोर से ठाप मारा कि पूरा लण्ड जड़ तक हमारी चूत में समा गया
ओफफ्फ़ उफफफफफफ्फ़
और मुझे बाहों में भर कर वो ज़ोर-ज़ोर से ठप लगा रहा था. धीरे धीरे मेरी चूत का स्प्रिंग ढीला हो मेरा मज़ा बढ़ने लगा और मैं भी अपने चूतड़ उच्छाल-उच्छाल कर गपागप लण्ड अंदर करवाने लगी. और कह रहीथी
'और ज़ोर से रज़्ज़ा और ज़ोर से पूरा पेलो, और डालो अपना लण्ड' वो आदमी मेरी चूत पर घमासान धक्के मारे जा रहा था. वो जब उठ कर मेरी चूत से अपना लण्ड ठांसता था तो मैं अपने चूतड़ उचका कर उसके लण्ड को पूरी तरह से अपनी चूत मैं लेने की कोशिश करती.और जब उसका लण्ड मेरी चूत की जड़ से टकराता तो मुझे लगता मानो मैं स्वर्ग मैं उड़ रही हूँ. अब वो आदमी ज़मीन से दोनो हाथ उठा कर मेरी दोनो चूचियों को पकड़ कर हमे घपघाप पेल रहा था. यह मेरे बर्दाश्त के बाहर था और मैंने खुद ही अपना मुँह उठा कर उसके मुँह के करीब किया तो वो मेरे मुँह से अपना मुँह भिड़ा कर अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर अंदर बाहर करने लगा.इधर जीभ अंदर बाहर हो रही थी और नीचे चूत में लण्ड अंदर बाहर हो रहा था . इस दोहरे मज़े के कारण में तुरंत ही स्खलित हो गयी और लगभग उसी समय उसके लण्ड ने इतनी फोर्स से वीर्यपात किया की मैं उसकी छाती से चिपक उठी. उसने भी पूर्ण ताक़त के साथ मुझे अपनी सीने से चिपका लिया जिससे मेरी बड़े बड़े बेलों जैसी छातियाँ उसके सीने से दब गईं।
तूफान शांत हो गया. उसने मेरी कमर से हाथ खींच कर बंधन ढीला किया और मुझे कुछ राहत मिली, लेकिन मैं मदहोशी मे पड़ी रही. वो उठ बैठा और अपने साथी के पास गया और बोला ' यार ऐसा ग़ज़ब का माल है प्यारे मज़ा आ जाएगा. ऐसा माल बड़ी मुश्किल से मिलता है.
मैने मुड़ कर भाभी की तरफ देखा. आगे वाला आदमी भाभी के ऊपर चढ़ा हुआ था और उनकी चूचियाँ भोंपू की तरह दबा दबाकर उनपर मुँह मारते हुए उनकी फ़ूली हुई पावरोटी सी चूत में अपना फ़ौलादी लण्ड ठोंक रहा था । भाभी भी किलकारी भरते हुए बोल रही थी
“हाय राजा ज़रा ज़ोर से चोद और ज़ोर से दबा चूचियाँ ज़रा कस कर दबा आ~ह उईईईई मैं बस झड़ने ही वाली हूँ।”
भाभी अपने चूतड़ों को धड़ाधड़ ऊपर नीचे पटक रही थी.
“अम्म्म्ह~ह मैं गयी राजा”
कह कर उन्होने दोनो जाँघें फैला दीं। तभी वो आदमी भी भाभी की चूचियाँ पकड़ कर गाल चूसते हुए बोला
' आ~ह उईईईई अम्म्म्ह~ह ”
और उसने भी अपना पानी छोड़ दिया.कुछ देर बाद वो भी उठा और अपने कपड़े पहन कर साइड मैं लेट गया. भाभी उस आदमी के हटने के बाद भी आँखे बंद किए लेटी थी और मैने देखा कि भाभी की चूत से वीर्य और रज बह कर चूतड़ों तक आ पहुँच रहा था.
चुदाई का दौर पूरा होने के बाद हमने अपने कपड़े पहने और वो लोग हमें अपनी कार में वापस मेले के मेन गाउंड तक ले आए. उन्होने रास्ते मे फिर से हमे धमकाया कि यदि हमने उनकी इस हरकत के बारे मे किसी से कुछ मत कहना इस पर हमने भी उनसे वादा किया कि हम किसी को कुछ नही बताएँगे । जब हम लोग मेले के ग्राउंड पर पहुँचे तो सुना कि वहाँ पर हमारा नाम अनाउन्स कराया जा रहा था और हमारे चन्दू मामा-मामी मंडप मे हमारा इंतजार कर रहे थे. वो चारों आदमी हमे लेकर मंडप तक पहुँचे. हमारे चन्दू मामा हमे देख कर बिफर पड़े कि कहाँ थे तुम लोग अब तक , हम 2 घंटे से तुम्हे खोज़ रहे थे. इस पर हमारे कुछ बोलने से पहले ही उन दोनों मे से एक ने कहा आप लोग बेकार ही नाराज़ हो रहें है, यह दोनो तो आप लोगों को ही खोज रही थी और आपके ना मिलने पर एक जगह बैठी रो रही थी, तभी इन्होने हमे अपना नाम बताया तो मैने इन्हे बताया कि तुम्हारे नाम का अनाउन्स्मेंट हो रहा है और तुमहरे चन्दू मामा मामी मंडप मे खड़े है. और इन्हे लेकर यहाँ आया हूँ । तब हमारे चन्दू मामा बहुत खुश हुए ऐसे शरीफ {?} लोगों पर और उन्होने उन अजन्बियो का शुक्रिया अदा किया. इस पर उन दोनो ने हमे अपनी गाड़ी पर हमारे घर तक छोड़ने की पेशकश की जो हमारे चन्दू मामा-मामी ने तुरंत ही कबूल कर ली. हम लोग कार में बैठे और घर को चल दिए. जैसे ही हम घर पहुँचे कि विश्वनाथजी बाहर आए हमसे मिलने के लिए. संयोग की बात यह थी कि यह लोग विश्वनाथजी की पहचान वाले थे. इसलिए जैसे ही उन्होने विश्वनाथजी को देखा तो तुरंत ही घबरा कर पूछा ' अरे विश्वनाथजी आप, यह क्या आपकी फॅमिली है तो विश्वनाथजी ने कहा अरे नही भाई फॅमिली तो नही पर हमारे परम मित्र के ही गाँव के दोस्त और उनका परिवार है यह ।” फिर विश्वनाथजी ने उन लोगों को चाय पीने के लिए बुलाया और वो सब लोग हमारे साथ ही अंदर आ गये. वो चारों बैठ गये और विश्वनाथजी चाय बनाने के लिए किचन की तरफ़ पहुँचे तभी मेरे चन्दू मामाजी ने कहा
“बहू ज़रा मेहमानों के लिए चाय बना दे ।”
और मेरी भाभी उठ कर किचन मे चाय बनाने के लिए गयी. भाभी ने सबके लिए चाय चढ़ा दी और चाय बनाने के बाद वो उन्हे चाय देने गयी, तब तक मेरे चन्दू मामा और मामी ऊपर के कमरे में चले गये थे और नीचे के उस कमरे में उस वक़्त वो दोनो और विश्वनाथजी ही थे. कमरे में वो थी लोग बात कर रहे थे जिन्हे मैं दरवाज़े के पीछे खड़ी सुन रही थी. मैने देखा कि जब भाभी ने उन लोगों को चाय थमायी तो एक ने धीरे से विश्वनाथजी की नज़र बच्चा कर भाभी की एक चूची दबा दी. भाभी के मुँह से दबी दबी सी सिसकी निकली और वो खाली ट्रे लेकर वापस आ गयी । वो लोग चाय की चुस्की लगा रहे थे और बातें कर रहे थे.
विश्वनाथजी- आज तो आप लोग बहुत दिनों के बाद मिले हैं, क्यों भाई कहाँ चले गये थे आप लोग? क्यों भाई रमेश तुम्हारे क्या हाल चाल है.
रमेश- हाल चाल तो ठीक है, पर आप तो हम लोगों से मिलने ही नही आए, शायद आप सोचते होगे कि हमसे मिलने आएँगे तो आपका खर्चा होगा.
विश्वनाथजी- अरे खर्चे की क्या बात है.अर्रे यार कोई माल हो तो दिलाओ , खर्चे की परवाह मत करो, वैसे भी फॅमिली बाहर गयी है और बहुत दिन हो गये है किसी माल को मिले.अर्रे महेश तुम बोलो ना कब ला रहे हो कोई नया माल?
महेश - इस मामले मे तो रमेश से ही बात करो माल तो यही साला रखता है.
रमेश – क्यों झूठ बोलता है साले मेरे पास इस समय माल कहाँ? इस वक़्त तो माल इसी के पास है.
महेश _ माल तो था यार पर कल साली अपने मैके चली गयी है. पर अगर तुम खर्च करो तो कुछ सोचें.
विश्वनाथजी- खर्चे की हमने कहाँ मनाई की है. चाहे जितना खर्चा हो जाए, लेकिन कुछ मजा नहीं आ रहा यार कुछ जुगाड़ बनवओ. मैं वहीं खड़े-खड़े सब सुन रही थी मेरे पीछे भाभी भी आकर खड़ी हो गयी और वो भी उन लोगों की बातें सुन ने लगी.
रमेश- अकेले-अकेले कैसे तुम्हारे यहाँ तो सब लोग है.
विश्वनाथजी- अर्रे नही भाई यह हमारे बच्चे थोड़ी ही है, हमारे बच्चे तो गाँव गये है, यह लोग हमारे गाँव से ही मेला देखने आए है.
महेश- फिर क्या बात है. बगल मे हसीना और नगर ढिंढोरा. अगर तुम हमारी दावत करो तो इनमे से किसी को भी तुमसे चुदवा देंगे.
विश्वनाथजी- कैसे?
महेश- यार यह कैसे मत पूछो, बस पहले दावत करो।
विश्वनाथजी- लेकिन यार कहीं बात उल्टी ना पड़ जाएँ , गाँव का मामला है, बहुत फ़ज़ईता हो जाएगा.
सुरेश- यार तुम इसकी क्यों फ़िक्र करते हो मैं उड़ती चिड़िया के पर गिन सकता हूँ ये सब तैयार पके फ़ल हैं और चिल्ला चिल्ला के कह रहे हैं कि खाने वाला चाहिये सिर्फ़ खाने वाले को खाना आना चाहिये। सब कुछ हमारे ऊपर छोड़ दो ।”
रमेश- यार एक बात है, बहूँ की जो सास {यानिकि मामीजी} है उस पर भी बड़ा जोबन है. यार मैं तो उसे किसी भी तरह चोदुन्गा.
विश्वनाथजी- अर्रे यार तुम लोग अपनी बात कर रहे या मेरे लिए बात कर रहे हो
महेश- तुम कल रात को दावत रखना और फिर जिसको चोदना चाहोगे उसी को चुदवा देंगे, चाहे सास चाहे बहूँ या फिर उसकी ननद ।
विश्वनाथजी- ठीक है फिर तुम चारों कल शाम को आ जाना.
मैने सोचा कि अब हमारी चूतों की खैर नही पीछे मुड़कर देखा तो भाभी खड़े-खड़े अपनी चूत खुज़ला रही है.
मैने कहा –क्यों भाभी चूत चुदवाने को खुज़ला रही हो.
भाभी- हाँ ननद रानी अब तुझसे क्या छुपाना, जबसे कार वाले महेश ने रगड़ के चोदा है मेरी चूत की चुदास जाग गई है. मन करता रहता है कि बस कोई मुझे पटक के चोद दे.
मैने कहा –“ पहले कहती तो किसी को रोक लेती जो तुम्हे पूरी रात चोदता रहता. खैर कोई बात नही कल शाम तक रूको चुदते चुदते तुम्हारी चूत का भोसड़ा न बन जाए तो कहना. उन तीनों के इरादे है हमे चोदने के और वो साला रमेश तो मामीज़ी को भी चोदना चाहता है.अब देखेंगे मामी को किस तरह से चोदते हैं ये लोग ।”
अगाली सुबह जब मैं सो कर उठी तो देखा कि सभी लोग सोए हुए थे सिर्फ़ भाभी ही उठी हुई थी और विश्वनाथजी का लण्ड जो की नींद में भी तना हुआ था और भाभी गौर से उनके लण्ड को ही देख रही थी. उनका लण्ड धोती के अंदर तन कर खड़ा था, करीब 10’’ लंबा और 3’’ मोटा, एकदम लोहे के राड की तरह. भाभी ने इधर-उधर देख कर अपने हाथ से उनकी धोती को लण्ड पर से हटा दिया और उनके नंगे लण्ड को देख कर अपने होंटो पर जीभ फिराने लगी. में भी बेशर्मो की तरह जाकर भाभी के पास खड़ी हो गयी और धीरे से कहा
"उइई माँ ".
भाभी मुझे देख कर शर्मा गयी और घूम कर चली गयी. में भी भाभी के पीछे चली और उनसे कहा
“देखा कैसे बेहोश सो रहे हैं ।”
भाभी- चुप रह ।”
मैं – क्यों भाभी, ज़्यादा अच्छा लग रहा है ।”
भाभी- चुप भी कर ना ।”
मैं - इसमे चुप रहने की कौन सी बात है जाओ और देखो और पकड़ कर चूत में भी ले लो उनका खड़ा लण्ड, बड़ा मज़ा आएगा.
भाभी- कुछ तो शर्म कर यूँ ही बके जा रही है ।”
मैं - तुम्हारी मर्ज़ी, वैसे ऊपर से धोती तो तुम ही ने हटाई थी।”
भाभी- अब चुप भी हो जा, कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा.
फिर हम लोग रोज़ की तरह काम में लग गये. करीब दस बज़े विश्वनाथजी कुछ सामान लेकर आए और हमारे चन्दू मामा के हाथ में थमा कर कहा कहा –
“आज हमारे वही तीनों दोस्त आएँगे और उनकी दावत करनी है यार इसीलिए यह सामान लाया हूँ भैया, मुझे तो आता नही है कुछ बनाना इसीलिए तुम्ही लोगों को बनाना पड़ेगा.और हां यार तुम पीते तो हो ना ?”
चन्दू मामा- नही में तो नही पीता यार ।”
विश्वनाथजी- अर्रे यार कभी-कभी तो लेते होगे ।”
चन्दू मामा-हाँ कभी-कभार की तो कोई बात नही ।”
विश्वनाथजी- फिर ठीक है हमारे साथ तो लेना ही होगा ।”
चन्दू मामा- ठीक है देखा जाएगा ।”
हम लोगों ने सामान वग़ैरह बना कर तैय्यार कर लिया. शाम के करीब छ: सात बज़े के बीच वो लोग आ गये। मैं तो इस फिराक में लग गयी कि यह लोग क्या बातें करते है ।”
चन्दू मामा मामी और भाभी ऊपर के कमरे में बैठे थे. मैं उन तीनों की आवाज़ सुन कर नीचे उतर आई. वो तीनों लोग बाहर की तरफ बने कमरे मे बैठे थे. मैं बराबर वाले कमरे की किवाड़ों के सहारे खड़ी हो गयी और उनकी बातें सुनने लगी.
विश्वनाथजी- दावत तो तुम लोगों की करा रहा हूँ अब आगे क्या प्रोग्राम है?
पहला- यार ये तुम्हारा दोस्त दारू-वारू पीएगा कि नही?
विश्वनाथजी- वो तो मना कर रहा था पर मैने उसे पीने के लिए मना लिया है ।”
दूसरा- फिर क्या बात है समझो काम बन गया. तुम लोग ऐसा करना कि पहले सब लोग साथ बैठ कर पीएँगे फिर उसके ग्लास में कुछ ज़्यादा डाल देंगे. जब वो नशे में आ जाएगा तब किसी तरह पटा कर उसकी बीवी को भी पीला देंगे और फिर नशे में लेकर उन सालियों को पटक-पटक कर चोदेन्गे,
प्लान के मुताबिक उन्होने हमारे चन्दू मामा को आवाज़ लगाई. हमारे चन्दू मामा नीचे उतर आए और बोले रमा-रमा भैया ।”
चन्दू मामा भी उसी पंचायत में बैठ गये अब उन लोगों की गुपशुप होने लगी. थोड़ी देर बाद आवाज़ आई कि बहूँ ग्लास और पानी देना.
जब भाभी पानी और ग्लास लेकर वहाँ गयी तो मैने देखा की विश्वनाथजी की आँखे भाभी की चूचियों पर ही लगी हुई थी. उन्होने सभी ग्लास में दारू और पानी डाला पर मैने देखा कि चन्दू मामाजी के ग्लास में पानी कम और दारू ज़्यादा थी. उन्होने पानी और मँगाया तो भाभी ने लोटा मुझे देते हुए पानी लाने को कहा. जब में पानी लेने किचन में गयी तो महेश तुरंत ही मेरे पीछे-पीछे किचन मे आया और मेरी दोनो बड़ी बड़ी चूचियों को कस कर दबाते हुए बोला-
“कार में तुझे रमेश से चुदते देखने के बाद से ही मैं बेकरार हूँ अगर देर हो जाने का खतरा ना होता तो वहीं पटक के चोदता बेलारानी, अब ज़रा जल्दी पानी ला ताकि ये खानापीना निबटे और मेरे लण्ड से तेरी चूत की मुलाकात हो ।” मेरी सिसकारी निकल गयी
विश्वनाथजी ने चन्दू मामाजी से पूछा वो तुम्हारा नौकर कहाँ गया.
चन्दू मामा-वो नौकर को यहाँ उसके गाँव वाले मिल गये थे सो उन्ही के साथ गया है सुबह तक वापस आ जाएगा.
फिर जब तक हम लोगों ने खाना लगाया तब तक उन्होने दो बॉटल खाली कर दी थी. मैने देखा कि चन्दू मामा कुछ ज़्यादा नशे में है, मैं समझ गयी कि उन्होने जान बुझ कर चन्दू मामा को ज़्यादा शराब पिलाई है. हम लोग खाना लगा ही चुके थे. मामीजी सब्ज़ी लेकर वहाँ गयी मे भी पीछे-पीछे नमकीन लेकर पहुँची तो देख की रमेश ने मामीजी का हाथ थाम कर उन्हे दारू का ग्लास पकड़ना चाहा. मामीजी ने दारू पीने से मना कर दिया. मैं यह देख कर दरवाज़े पर ही रुक गयी. जब मामीजी ने दारू पीने से मना किया तो रमेश चन्दू मामाजी से बोला- अरे यार तुम्हारी घरवाली तो हमारी बे-इज़्ज़ती कर रही है कहो ना भौजी से ।”
चन्दू मामा ने मामी से कहा –रज्जो पी ले ना क्यों लड़के की इन्सल्ट करा रही हो.
मामीज़ी ज़ी- मैं नही पीती
रमेश- भय्या यह तो नही पी रही है, अगर आप कहें तो में पीला दूँ ।”
चन्दू मामा (हँसते हुए)- ठीक है अगर नही पी रही है तो पकड़ कर पिला दे ।”
चन्दू मामाजी का इतना कहना था कि रमेश ने वहीं मामीज़ी की बगल में हाथ डाल कर दूसरे हाथ से दारू भरे ग्लास को मामीजी के मुँह से लगा दिया और मामीजी को ज़बरदस्ती दारू पीनी पड़ी. मैने देखा कि उसका जो हाथ बगल में था उसी से वो मामीजी की चूचियाँ भी दबा रहा था और जब वो इतनी बेफिक्री से मामीजी की बड़ी बड़ी चूचियाँ दबा रहा था तो बाकी सभी की नज़रें [चन्दू मामाजी को छोड़कर] उसके हाथ से दबती हुई मामीज़ी बड़ी बड़ी चूचियों पर ही थी. यहाँ तक की उनमे से एक ने तौ गंदे इशारे करते हुए वहीं पर अपना लण्ड पैंट के ऊपर से ही मसलना शुरू कर दिया था. मामीजी के मुँह में ग्लास खाली करके मामीजी को छोड़ दिया. फिर जब मामीजी किचन मे आई तो मैने जान बुझ कर मेरे हाथ मे जो सामान था वो मामीजी को पकड़ा दिया.
मामीजी ने वो सामान टेबल पर लगा दिया. फिर रमेश ने मामीजी के मना करने पर भी दूसरा ग्लास मामीजी को पीला दिया. मामीजी मना करती ही रह गयी पर रमेश दारू पीला कर ही माना.और इस बार भी वोही कहानी दोहराई गयी यानी कि एक हाथ दारू पीला रहा था और दूसरा हाथ चूचियाँ दबा रहा था और सब लोग इस नज़ारे को देख कर गरम हो रहे थे. चन्दू मामाजी की शायद किसी को परवाह ही नही थी क्योंकि वो तो वैसे भी एक दम नशे मे टुन्न हो चुके थे। नशे और नींद से उनकी आँखें हुई जा रही थीं। यह देख महेश ने चन्दू मामाजी का ग्लास भरते हुए कहा- लगता है भाईसाहब को नींद आ रही है, भाईसाहब अगर आप सोना चाहें तो औपचारिकता छोड़कर अपने कमरे में आराम करें हम लोग सब आपके भाईबन्द हैं कोई भी बुरा नहीं मानेगा। हम समझ सकते हैं कि हमारे इस हो हल्ले में आप ठीक से सो नहीं पायेंगे। सबने महेश की हाँ मे हाँ मिलायी और महेश ने एक और ग्लास उन्हें पिलाकर(ताकि वो बिलकुल ही बेहोश हो के सोयें) ऊपर उनके कमरे मे लेजाकर लिटा दिया । चन्दू मामाजी लेटते ही सो गये। महेश ने आवाज देकर ये पक्का भी कर लिया कि वे सचमुच ही सो रहे हैं।
क्रमश:…………………
सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -7
दावत के रंग
महेश ने नीचे आकर सबको इशारे से बता भी दिया चन्दू मामाजी सो रहे हैं और लाइन क्लियर है। अब ग्लास रख कर रमेश ने, मामीजी जो बरफ़ लेके आयीं थी, के चूतड़ों पर हाथ फिराया और दूसरे हाथ से उनकी चूत को पकड़ कर दबा दिया. मामीजी सिसकी लेकर रह गयी. मामीजी को सिसकारी लेते देख कर मेरी भी चूत में सुरसुरी होने लगी. हम लोग ऊपर चले गये. फिर नीचे से पानी की आवाज़ आई. मामीजी पानी लेकर नीचे गयी .तब तक रमेश किचन में आ पहुँचा था. मामीजी जो पानी देकर लौटी तो रमेश ने मामीजी का हाथ पकड़ कर पास के दूसरे कमरे में ले जाने लगा. मामीजी ने कहा,-
“अरे~ए ये क्या करता है”
रमेश,-
“चल न भौजी उस कमरे चल कर कुछ मौज मज़ा करते हैं. मामीजी खुद नशे में थी और रमेश की पकड़धकड़ से चुदासी भी हो रही थी सो कमज़ोर सी ना-ना करते हुए रमेश के साथ खिचती चली गईं वो उन्हें पास के उस कमरे में ले गया. मेरी नज़र तो उन दोनो पर ही थी इसलिए जैसे ही वो कमरे में घुसे मैं तुरंत दौड़ते हुए उनके पीछे जाकर उस कमरे के बाहर छुप कर देखने लगी कि आगे क्या होता है.
रमेश ने मामीजी को पकड़ कर पलंग पर डाल दिया और उनके एक हाथ उनके ब्लाउज में घुसेड़ते हुए, दूसरा हाथ पेटिकोट में डाल कर उनकी चूत सहलाने लगा.
मामीजी (नशे और उत्तेजना से भरी आवाज में)- आह यह क्या कर रहा है लड़के छोड़ मुझे, क्यों आग लगाता है इस उम्र में ।”
रमेश- अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है भौजी मुझे तो तुम तुम्हारी बहूँ से ज्यादा जोरदार लगती हो। मैंने तो जब से तुम्हें देखा था तभी से तुम्हारे साथ मजा करने की फ़िराक में था ये सारा दावत का नाटक इसीलिए तो रचाया है भौजी रानी ।
मामीजी मन ही मन गद गद हो मुस्कुराईं फ़िर मक्कारी से भोलेपन का नाटक करते हुए बोलीं-
“पर तू करना क्या चाहता है ?”
मामी जी की शरारात भरी मुस्कुराहट और बाते सुनकर उन्हें रजामन्द जान रमेश ने राहत की साँस ली और उन्हें छोड़ के अपने कपड़े उतारते हुए खुद भी नाटकीय अन्दाज से बोला-
" वाह भौजी, अभी तुम्हें यही नही मालूम कि में क्या करना चाहता हूँ। अरे तुझे बिस्तर पे पटक के अपना एक हाथ तेरे ब्लाउज में घुसड़ और दूसरे से पेटिकोट में तेरी पावरोटी सी गुदगुदी चूत सहला रहा था ऐसे कोई पूजा तो करने से रहा। खैर अगर अब भी नहीं समझी और मेरे मुँह से साफ़ साफ़ ही सुनना है तो सुन तेरी चूत चोदना चाहता हूँ। क्या ख्याल है ?”
मामीजी(नाटक करते हुए)-
“ओहो अब समझी। तो ये बात है ।”
मामीजी की शोखी से उत्तेजित रमेश ने मामीजी साड़ी खीच ली चुटपुटिया वाले ब्लाउज को भी आसानी से नोच के उतार डाला। रमेश की उतावली देख मामीजी हँसते हुए उठ कर बैठ गईं। बैठ्ने से उनकी तरबूज के मानिन्द छातियाँ ब्रा में से फ़टी पड़ रही थीं। ये नजारा देख रमेश उनकी तरफ़ झपटा और ब्रा के ऊपर से ही उन्हें दबोचने लगा । मामीजी ने उतावले रमेश की मदद के ख्याल से हँसते हुए ब्रा का हुक खुद ही खोल दिया। ये देखते ही रमेश ने ब्रा उनके जिस्म से नोच के फ़ेंक दी। मामीजी की गोरी सफ़ेद हलव्वी छातियाँ आजाद होकर परिन्दों की तरह फ़ड़फ़ड़ायी। रमेश ने उनकी फ़ड़फ़ड़ाहट अपने हाथों में दबोच ली और उनपे मुँह मारने निपल चूसने लगा। अब मामीजी के मुँह से उनकी हँसी कि जगह उत्तेजना भरी सिसकारियाँ फ़ूटने लगीं ।
“स्स्स्स्स्स्स्सी उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्ह आहहहहह
उम्म्म्मम्म्म्म्म्फ्फहहहहहहहहहहह उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्मह ”
रमेश द्वारा उनकी तरबूज के मानिन्द छातियों को दोनो हाथों और मुँह से वहशियों की तरह प्यार करने से बेहद उत्तेजित हो मामीजी ने सिसकारियाँ भरते हुए अपने पेटीकोट का नारा पकड़ के खींचा और अपने घड़े जैसे भारी चूतड़ों से पेटीकोट खुद ही नीचे सरका कर जमीन पर पैरों की मदद से ठेल दिया । फ़िर रमेश का लोहे के राड जैसा लम्बा हलव्वी लण्ड अपने हाथों में थाम अपनी चुदास से बुरी तरह से पनिया रही रसीली चूत के मोटे मोटे दहकते होठों के बीच रखा। लण्ड के सुपाड़े पर चूत की गर्मी मह्सूस कर रमेश ने झुक कर देखा मामीजी की मोटी मोटी जांघों केबीचे में उभरी उनकी चूत, उसके आस पास का हिस्सा और काफ़ी मजबूत और कसाव लिए हुए था। उनकी गोरी चूत काफ़ी बड़ी पावरोटी की तरह फ़ूलकर उभरी हुयी चुदाई की मार से मजबूत हुई खाई खेली खड़ी खड़ी पुत्तियों वाला भोसड़ा थी । ये देख रमेश का लण्ड और ज्यादा फ़नफ़नाने लगा। उसने सोचा कि अगर इसे ही भोसड़ा कहते है तो चूत से भोसड़ा ज्यादा बढ़िया होता है। उसने अपने फ़नफ़नाते लण्ड का ऐसा ज़ोर का ठाप मारा की उसका आधा लण्ड मामीजी की चूत में घुस गया.
ऐसा लगा जैसे मामीजी को अपने कसे हुए तगड़े भोसड़े के कसाव पर बड़ा नाज था क्योंकि वो नशे में बड़बडाईं –आह एक ही बार में आधा अन्दर, शाबाश लड़के!
ये सुन रमेश ने दूसरा ठाप भी मारा कि उसका पूरा लण्ड अंदर घुस गया.
मामीजी ने सिसकी ली
उईईईईईईइइम्म्म्मममा
अब रमेश एंजिन के पिस्टन की तरह मामीजी के मजबूत भोसड़े से टक्कर ले उसके चीथड़े उड़ाने लगा.
आह तेरी तो बहुत टाइट है भौजी आज इसे ढीली कर के ही छोड़ूँगा
मामीजी नशे में बड़बडाईं –
“हाँ! कर दे ढीली जालिम तू अब तक कहाँ था अरे क्या कर रहा है ढीली कर पर चूत के चीथड़े तो न उड़ा हाय थोड़ा धीरे से, चूत ही न रहेगी तो चोदेगा क्या ।”
इतने में मैने विश्वनाथजी को ऊपर की तरफ जाते देखा.
मैं भी उनके पीछे ऊपर गयी और बाहर से देखा की भाभी जो कि अपना पेटिकोट उठा कर अपनी चूत में उंगली कर रही तो उसका हाथ पकड़ कर विश्वनाथजी ने कहा 'है मेरी जान हम काहे के लिए हैं, क्यों अपनी उंगली से काम चला रही, क्या हमारे लण्ड को मौका नही दोगी. अपनी चोरी पकड़े जाने पर भाभी की नज़रें झुक गयी थी और वो चुपचाप खड़ी रह गयी. विश्वनाथजी ने भाभी को अपने सीने से लगा कर उनके होंटो को चूसना शुरू कर दिया. भाभी भी अब उनके वश में हो चुकी थी.वो उनकी बड़े बड़े बेलों सी ठोस चूचियों को दबाते हुए बोले-
“इतने दिनों से तेरे इन बेलों की उछलकूद ने मेरे इसको बहुत परेशान किया है ।”
कहकर उन्होंने अपनी धोती हटा कर अपना लण्ड भाभी के हाथों में पकड़ा दिया भाभी उनके लण्ड को, जो की बाँस की तरह खड़ा हो चुका था, सहलाने लगी. अब भाभी भी खुल कर बोली-
“मैं क्या करती आप मुझे घूरते तो रहते थे पर कभी कुछ बोले ही नही ।”
उन्होने भाभी की चूचियाँ छोड़ी और उनके सारे कपड़े उतार दिए, और भाभी को वहीं पर लेटा दिया और उनके चूतड़ के नीचे तकिया लगा कर अपना लण्ड उनकी चूत के मुहाने पर रख कर एक जोरदार धक्का मारा. पर कुछ विश्वनाथजी का लण्ड बहुत बड़ा था और कुछ भाभी की चूत टाइट थी इसलिए उनका लण्ड अंदर जाने के बज़ाय वहीं अटक कर रह गया । इस पर विश्वनाथजी बोले लगता है कि आदमी के लण्ड चुदी ही नहीं तेरी चूत तभी तो तेरी इतनी टाइट है कि लगता है जैसे बिन चुदी बुर मे लण्ड डाल है "
भाभी मन ही मन मुस्कुराई पर कुछ नही बोली, क्या कहती कि चुदने को तो कल ही तुम्हारे उसे दोस्त रमेश के धाकड़ लण्ड से मैं जम के चुद चुकी हूँ पर तेरा कुछ ज्यादा ही बड़ा है और कुछ फ़ूल भी ज्यादा रहा है। विश्वनाथजी ने इधर उधर देखा और वहीं कोने में रखी घी की कटोरी देख कर खुश हो गये और बोले "लगता है साली बहू ने चुदने की पूरी तय्यारी कर रखी थी इसीलिए यहाँ पर घी की कटोरी भी रखी हुई है जिस से की चुदने मे कोई तकलीफ़ ना हो" इतना कह कर उन्होने तुरंत ही पास रखी घी की कटोरी से कुछ घी निकाला और अपने लण्ड पर घी लगा कर तुरंत फिर से लण्ड को चूत पर रख कर धक्का मारा. इस बार लण्ड तो अंदर घुस गया पर भाभी के मुँह से जोरो की चीख निकल पड़ी ' आआहह मरगई, जालिम तेरा लण्ड है या बाँस का खुट्टा' इसके बाद विश्वनाथजी फॉर्म में आ गये और और ताबड़तोड़ धक्के मारने लगे. भाभी ' उईईइमाँ लगती है थोड़ा धीमे करो ना करती ही रह गयी और वो धक्के पे धक्के मारे जा रहे थे. रूम में हचपच हचपच की ऐसी आवाज़ आ रही थी मानो 110 किमी की रफ़्तार से गाड़ी चल रही हो. कुछ देर के बाद भाभी को भी मज़ा आने लगा और वो कहने लगी ' हाय राजा मर गयी, ,हाय राजा और ज़ोर से मारो मेरी चूत, हाय बड़ा मज़ा आ रहा है, आअहहााआ बस ऐसे ही करते रहो आहहााअ औक्ककककककचह और ज़ोर से पेलो मेरे विश्वनाथ राजा , फाड़ दो मेरी चूत को आअहहााआ, अरे क्या मेरी चूचियों से कोई दुश्मनी है , इन्हे उखाड़ लेने का इरादा है क्या, है ज़रा प्यार से दबाओ विश्वनाथ राजा मेरी चूचियों को.
मैने देखा की विश्वनाथजी मेरी भाभी की चून्चियो को बड़ी ही बेदर्दी से किसी हॉर्न की तरह दबाते हुए घचाघच पेले जा रहे थे. तब पीछे से महेश ने आकर मेरे बगलों में हाथ डाल कर मेरी बड़ी बड़ी चूचियाँ दबाते हुए बोला,
“अरी छिनाल तुम यहाँ इनकी चुदाई देख कर मज़े ले रही और में अपना लण्ड हाथ में लिए तुम्हे सारे घर में ढूँढता फ़िर रहा हूँ । इधर मेरी भी चूत भाभी और मामीजी की चुदाई देख कर पनिया रही थी. मुझे महेश बगल वाले कमरे में उठा ले गया और मेरे सारे कपड़े खींच कर मुझे एकदम नंगा कर दिया, और खुद भी नंगा हो गया. फिर मुझे बिस्तर पर डाल कर मेरे गदराये संगमरमरी जिस्म पर टूट पड़ा मेरी दोनों चूचियाँ थाम दबाने सहलाने मुँह मारने लगा, और कभी मेरे निपल को मुँह मे लेकर चूसने लगता । कभी मेरे बड़े बड़े संगमरमरी चूतड़ों पर हाथ फ़िराता कभी मुँह मारता । कभी मेरी मोटी मोटी केले के तने जैसी जाँघों को दबोचकर उनपर मुँह मारता। इन सबसे मेरी चूत की पूतिया [पुत्तियाँ] फड़फड़ने लगी. उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने खड़े लण्ड पर रखा और में उसके लण्ड को सहलाने लगी. मैं जैसे-जैसे उसके लण्ड को सहला रही थी वैसे वैसे वो एक आयरन रोड की तरह कड़क होता जा रहा था. मुझसे अपनी चुदास बर्दाश्त नही हो रही थी और मैं उसके लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत से रगड़ रही थी कि किसी तरह से ये जालिम मुझे चोदे, और वो था कि मेरे जिस्म से खेलने में ही लगा था । अब मैं शरम चोद कर बोल पड़ी-
“हाय राजा अब बर्दाश्त नही हो रहा है, जल्दी से कर ना।”
मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी. अचानक उसने मेरी चुदास से बुरी तरह पानी फ़ेकती चूत अपने हाथ मे दबोच ली। बर्दाश्त की इन्तेहा हो गयी मैं खुद ही उसका हाथ अपनी चूत से हटा कर, उसके ऊपर चढ़ गयी उसके लण्ड का सुपाड़ा अपनी चूत के मुहाने से लगा कर मैंने अपनी बुरी तरह पानी फ़ेकती चूत में पूरा लण्ड आसानी से धीरे धीरे धंसा लिया फिर अपनी चूत के घस्से उसके लण्ड पर देने लगी. उसके दोनो हाथ मेरी बड़ी बड़ी चूचियों को कस कर दबा रहे थे और साथ में निपल भी छेड़ रहे थे.अब में उसके ऊपर थी और वो मेरे नीचे. वो नीचे उचक-उचक कर मेरी बुर में अपने लण्ड का धक्का दे रहा था और में ऊपर से दबा-दबा कर उसका लण्ड सटक रही थी. कभी कभी तो मेरी चूचियों को पकड़ कर इतनी ज़ोर से खींचता कि मेरा मुँह उसके मुँह तक पहुँच जाता और वो मेरे होंठों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगता. मैं जन्नत में नाच रही थी और मेरी चूत की चुदास बढ़ती ही जा रही थी. मैं दबा दबा कर चुद रही थी और बोल रही थी, -
“बड़ा मज़ा आ रहा है मेरे चोदु राजा और जोरो से चोद मेरी चूत, भर दे अपना माल मेरी चूत में , आआआअह्ह्ह्ह्ह्हाआआ, बस इसी तरह से लगे रहो, हाआआईईईइ कितना अच्छा चोद रहे हो,
अचानक महेश ने मुझे अपने ऊपर से हटा दिया । उसका लण्ड पक से चूत से निकल गया। मैंने चौक के पूछा-
“क्या हुआ?”
महेश – “तेरे गद्देदार चूतड़ो का तो मजा लिया ही नही रानी अब तेरे चूतड़ों की तरफ़ से चूत में पेलुँगा. और उसने मुझे नीचे गिरा कर चौपाया बना और मेरे ऊपर चढ़ कर मेरी चूतड़ों को पकड़ कर ऊँचा उठाने लगा उसकी मनसा जान मैंने चूतड़ उचका अपनी चूत से उसके लण्ड के सुपाड़े की मुलाकात करवा दी। लण्ड का सुपाड़ा चूत के मुहाने पर आते ही उसने ज़ोर से लण्ड उचकाया चूत रस में भीगे होने के कारण उसके लण्ड का सुपाड़ा फट से मेरी चूतड़ में घुस गया। अब उसने अपना लण्ड अंदर-बाहर करना शुरू किया. वो बहुत धीरे-धीरे धक्का मार रह था, और कुछ ही मिनूटों में जब निशाना सध गया तो धीरे-धीरे उसकी स्पीड बढ़ती ही जा रही थी, और अब वो मेरे गद्देदार चूतड़ो पर थपाथप करते हुए किसी पिस्टन की तरह पीछे से मेरी चूत में अपना लण्ड पेल रहा था. मुझे तो चूत मे लण्ड चाहिये चाहे जिधर से मिले और अब में फ़िर बड़बड़ाने लगी, है आज़ाज़ा आ रहा है,
और ज़ोर से मारो, और मारो और बना दो मेरी चूत का भुर्ता, और दबओ मेरे चूतड़ , और ज़ोर दिखाओ अपने लण्ड का और फाड़ ओ मेरी चूत, अब दिखाओ अपने लण्ड की ताक़त. बस थोडा सा और, मैं बस झड़ने ही वाली हूँ और थोड़ा धक्का मारो शाबाश.................... अह्हाआआ लो मैं गयी, निकला...
और फ़िर मेरी चूत खूब झड़ी ।
उसी समय महेश भी बड़बड़ाया –
“हाय जानी अब गया, अब और नही रुक सकता, ले चूत रानी, ले मेरे लण्ड का पानी अपनी चूत में ले. कहते हुए उसके लण्ड ने मेरी चूत में अपने वीर्य की पिचकारी छोड़ दी । वो चूचियाँ दबाए मेरी कमर से इस तरह चिपक गया था मानो मीलों दौड़ कर आया हो. थोड़ी देर बाद उसका मुरझाया हुआ लण्ड मेरी चूत में से निकल गया और वो मेरी चूचियाँ दबाते हुए उठ खड़ा हुआ, और मुझे सीधा करके अपने सीने से सटा कर मेरे होंठों की पप्पी लेने लगा.
क्रमश:…………………
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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -8
दावत के रंग
इतनी देर में देखा की दूसरे रूम से हमारी प्यारी भाभी की चूत, की चुदाई समाप्त कर विश्वनाथजी नंगे ही हमारे रूम में घुसे और मुझे महेश से चिपका देखकर बोले ' अबे किसी और का नंबर आएगा आ नही, या सारा समय तू ही इस नंद रानी को चोदता रहेगा.
महेश - नही यार विश्वनाथ भाई मैं चोद चुका, तू इसे संभाल, ये बड़ी मजेदार चीज है। अगर आज ही बाकी चूतों का स्वाद न लेना होता तो मैं इसी से चिपका रहता।
विश्वनाथजी- अच्छा ये बात है देखता हूँ कितनी मजेदार चीज है इसकी भाभी को तो अभी मैं चोदकर आ रहा हूँ वो भी बड़ी मस्त चीज है जा उसका भी मजा लेले ।
महेश – मै मानता हूँ सच में इसकी भाभी बड़ी मस्त चीज है पर उसे तो मैं मेले मे चोद चुका हूँ अब में चला इसकी मामीजी के पास।
यह कह कर महेश ने मुझ नंगधड़ंग को विश्वनाथजी की तरफ धकेला और बाहर चला गया.
विश्वनाथजी ने तुरंत मेर नंगा बदन अपनी बाहों में धर दबोचा लिया और मेरे गाल चूमने लगे। मुझे बेहद शरम आ रही थी क्योंकि कल तक तो हम सब उनके मेहमान थे और हमारी भाभीजी को चोदकर हम सब उनके साथ अपने से बड़े जैसा व्यवहार करते थे और आज उन्होंने न सिर्फ़ मुझे एक मर्द के साथ नंगा देखा बल्कि बल्कि अब वो मुझे अपनी बाहों में दबोचकर मेरा एक गाल मुँह में भर कर चूस रहे थे तभी वो मेरी दोनो चूचियों को कस कर भोंपु की तरह दबाने लगे. जिससे मुझे दर्द होने लगा और मैं सीस्या उठी तभी उन्होंने मुझे खींच कर पलंग पर लिटा दिया और वहीं ज़मीन पर पड़ा हुआ मेरी पेटिकोट उठा कर मेरी चूत पोंछ्ते हुए विश्वनाथजी बोले-
“कहो बेला मज़ा आ रहा है न ।”
और मेरे जिस्म पर छा गये। कभी मेरे गालो को चूसते, कभी मेरी चूचियाँ जोरो से दबा देते । जैसे-जैसे वो मेरे बड़ी बड़ी चूचियों की पंपिंग कर रहे था, वैसे ही उसका लण्ड खड़ा हो रहा था मानो कोई उसमें हवा भर रहा हो.
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रखा और मुझे लण्ड सहलाने का इशारा किया. मैंने शर्माकर अपना हाथ उसके लण्ड से हटा लिया तो उन्होंने पूछा-
“अच्छा नही लगा रहा है क्या?”
मैं इनकार करते हुए बोली –
“ नहीं ये बात नही है पर हमको शर्म आ रही है ।”
विश्वनाथजी ताज्जुब और झुँझलाहट से बोले –
“अभी तू महेश के साथ थी तब तो तुझे शर्म नहीं आ रही थी अब अचानक ये शर्म कहाँ से आ गयी?”
मैं- दरअसल आप अबतक हमसे बड़े बुजुर्ग जैसा व्यवहार करते आये थे जो कि इस माहौल मे भी बीच बीच मे याद आ जाता है।
विश्वनाथजी हँसकर बोले-
ओहो तो ये बात है अरे वो तो हमारे दिखाने के दांत थे बेला हम तो बड़े फ़्री तबियत के आदमी हैं अगाली बार तुमको तब बुलायेंगे जब मेरी पत्नी भी यहाँ हो तब देखना ये दोनो रमेश और महेश अपनी बीबियों के साथ आयेंगे और मैं इनके सामने इनकी बीबियों को और ये मेरी बीबी को चोदेंगे। चूत और लण्ड तो होते ही मजे लेने के लिए हैं आखिर तुम भी तो इसीलिए दो दिनों से अलग अलग लण्डों से चुदकर अपनी चूत को उन लण्डों का मजा दे रही हो, तो शर्म छोड़ लण्ड सहलाओ और इस लण्ड का भी मजा लो ।”
अब मेरी झिझक एकदम दूर हो चुकी थी । मैं मजे से उनका लण्ड सहलाने लगी. जैसे-जैसे लण्ड सहला रही थी मुझे आभास होने लगा कि विश्वनाथजी का लण्ड महेश के लण्ड से करीब आधा इंच मोटा और 2 इंच लंबा है. मैने सोचा जो होगा देखा जाएगा. उनका लण्ड एक लोहे के रोड की तरह कड़ा हो गया था.
अब विश्वनाथजी ने पास पड़ा तकिया उठा कर मेरे चूतड़ों के नीचे लगाया और फिर कटोरी से ढेर सारा घी मेरी चूत के मुहाने पर लगा कर अपना लण्ड मेरी चूत के मुँह पर रख कर ज़ोर का धक्का मारा. उसका आधे से ज़्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस गया. में सीस्या उठी. जबकि में कुछ ही देर पहले महेश से चूत चुदवा चुकी थी फिर भी मेरी चूत बिलबिला उठी.उसका लण्ड मेरी बुर में बड़ा कसा-कसा जा रहा था. फिर दुबारा ठप मारा तो पूरा लण्ड मेरी चूत में समा गया.
मैं जोरो से चिल्ला उठी 'उईईईईईई माँ, ............. दर्द हो रहा
है, प्लीज़ थोड़ा धीरे डालो , मेरी फटी जा रही है
विश्वनाथजी - अरे नहीं फटी जा रही है और न ही फ़टेगी, पहली बार मेरे लण्ड से चुदवाते समय शुरु में सब औरतों को ऐसा ही लगता है अभी मैं धीरे धीरे करुँगा, दो मिनट में नसिर्फ़ दर्द चला जायेगा बल्कि तुम्हें इतना मजा आयेगा कि और जोर से चुदवाने के लिए हल्ला मचाओगी ।”
अब वो मेरे गुदाज कन्धे पकड़ कर बारी बारी से मेरे निपल चूसते हुए धीरे-धीरे अपना लण्ड मेरी चूत के अंदर बाहर करने लगा । धीरे-धीरे मेरी बुर भी पानी छोड़ने लगी. बुर भीगी होने के कारण लण्ड बुर में करीब अंदर बाहर जाने लगा, और मुझे भी मज़ा आने लगा. और मैं चूतड़ उचकाने लगी क्योंकि वो कुछ रुक-रुक कर मुझे चोद रहा था । जब मुझसे रहा नही गया तो में खुद ही ऊपर से अपनी कमर के धक्के उसके लण्ड पर मारने लगी और बोली-
“हाय राजा इतना धीरे क्यों चोद रहे हो मेरी चूत, ज़रा जल्दी-जल्दी करो ना ।”
ये सुन विश्वनाथजी ने मुझे पलटी देकर अपने ऊपर कर लिया और कहा-
अब तू ऊपर से अपनी चूत से मेरा लण्ड चोद ।”
जब मैं ऊपर से उनके लण्ड पर बैठते हुए घस्सा मारती तो वो नीचे से ऊपर कमर उचका कर अपने लण्ड को मेरी चूत में ठाँसता था और मेरी दोनो चूचियाँ पकड़ कर नीचे की ओर खींचता था जिस से लण्ड और ज्यादा चूत के अंदर तक जा रहा था और मुझे बेइन्तहा मजा आ रहा था मैं ऊपर से खूब जोर का घिस्सा मार रही थी. इसी तरह से मेरी चूँचियाँ दबवाते खिचवाते उनका लण्ड चोदते हुए धीरे धीरे हमारी चुदाई की स्पीड बढ़ने लगी और मेरी चूँचियाँ दबाने खींचने के साथ-साथ वो उनपर मुँह भी मारता जाता था और कभी मेरे निपल अपने दाँतों से काट ख़ाता था तो कभी मेरे गालों पर चुम्मा भर लेता था.पर जब वो मेरे होंठों को चूसता तो में उत्तेजना से बेहाल हो जाती थी ।
मैं मज़े में बड़बड़ा रही थी – हाय रआज़ा बहुत मज़ा आ रहा है, और ज़ोर से चोदो चोद कर फ़ाड़ दो और बना दो मेरी चूत का भोसड़ा..............
अब उत्तेजना तो बहुत बढ़ गई थी पर शायद विश्वनाथजी ने महसूस किया कि मैं थकने लगी हूँ तो अचानक वे मुझे लिए लिए ही उठ खड़े हुए और मुझे बिस्तर पर पटक कर एक ही झटके में अपना विशालकाय लण्ड मेरी चूत में ठांस दिया और मेरी धुंआदार चुदाई करते हुए मेरी चूत की धज्जियां उड़ाने लगे। मैंने भी अपनी तरफ से नीचे से और ज़ोर ज़ोर चूतड़ उचका कर उनके लण्ड के धक्के अपनी चूत में लेने लगी । जब उसका लण्ड पूरा मेरी चूत के अंदर होता था तो में चूत को और कस लेती थी, जब लण्ड बाहर आता था तो चूत को ढीला चोद देती थी । अचानक हमारे मुँह से निकला उम्म्म्म्म्ह आआआह्ह्ह
और मेरी चूत झड़ने लगी और उसके कुछ ही धक्कों के बाद विश्वनाथजी के लण्ड ने भी धार चोद दी और वो मारे आनन्द के मेरे गुदाज जिस्म से चिपट गये ।
चुदाई प्रोग्राम रात भर इसी तरह चलता रहा और ना जाने मैं, भाभी और मामीजी कितनी बार चुदीं होंगी, पर एक अजीब बात हुई हुआ यों कि महेश को शायद मामीजी का गोरा गुदाज बदन कुछ ज्यादा ही पसन्द आया था क्योंकि वह उनके गुलाबी गुदाज बदन से देर तक खेलता रहा(जैसा कि मामीजी ने बाद में बताया) और उसने चुदाई देर से शुरु की सो जब विश्वनाथजी मुझे चोद के हटे और लगभग तभी रमेश भाभी को चोद के हटा था उस समय महेश और मामीजी धुंआदार चुदाई के बीच में थे। भाभीजी और विश्वनाथजी तो वैसे भी एक दूसरे को पसन्द करते थे सो वख़्त बरबाद न करते हुए विश्वनाथजी भाभीजी पर पिल पड़े फ़िर तुक कुछ ऐसी बनी कि विश्वनाथजी मेरे और भाभीजी बीच ही बटे रह गये और मामीजी तक पहुँच ही नहीं पाये और नशे में होने के कारण, उन्होंने ये कमी महसूस भी नहीं की। उस रात अंत में थक हारकर हम सभी यूँ ही नंगे ही सो गये.
सुबह मेरी आँख खुली तो देखा कि में नंगी ही पड़ी हुई हूँ. मैं जल्दी से उठी और कपड़े पहन कर बाहर किचन की तरफ गयी तो देखा कि भाभी भी नंगी ही पड़ी हुई हैं. मुझे मस्ती सूझी और में करीब ही पड़ा बेलन उठा कर उस पर थोडा सा आयिल लगा कर उनकी चूत में घोंप दिया. बेलन का उनकी चूत में घुसना था कि वो आआआअहह् करते हुए उठ बैठी, और बोली
' यह क्या कर रही हो'.
मैं बोली
' मैं क्या कर रही हूँ, तुम चूत खोले पड़ी थी में सोची तुम चुदासी रह गईं हो, पर चोदने वाले तो कब के चले गये, इसलिये तुम्हारी चूत में बेलन लगा दिया.
भाभी-
' तुझे तो बस चुदाई ही सूझती रहती है'.
मैंने उनकी चूत से बेलन खींच कर कहा –
' चलो जल्दी उठो, वरना चन्दू मामा मामी आ जाएँगे तो क्या कहेंगे. रात तो खूब मज़ा लिया, कुछ मुझे भी तो बताओ क्या किया?
भाभी- तूने भी तो वही किया या तू भजन कर रही थी । बाद में बात करेंगे कि किसने किससे क्या किया' कह कर कपड़े पहन ने लगी तो में मामीजी को उठाने चली गयी.
मामी भी मस्त चूत खोले पड़ी थी । मैंने उनकी चूचियों पर हाथ रख कर उन्हे हिलाया और उठाया और कहा
' मामी यह तुम कैसे पड़ी हो कोई देखेगा तो क्या सोचेगा.'
वो जल्दी से उठी और कपड़े पहन ने लगी, फिर मेरे साथ ही बाहर निकल गयी. हम तीनों लोग उठ कर जल्दी जल्दी दैनिक क्रियाओं नहाधोकर फारिग हुए ताकि रात का कोई निशान हमारे जिस्मों या कपड़ों पे ना दिखे
मैं बैठक में गयी तो देखा कि विश्वनाथजी भी बैठक में रमेश और महेश के पास ही पड़े हुए थे. विश्वनाथजी का लण्ड धोती के अन्दर खड़ा था जिससे धोती तम्बू जैसी दिख रही थी । शयद कोई चुदाई का सपना देख रहे होंगे । मुझे शरारात सूझी मैंने विश्वनाथजी कि धोती उनके लण्ड पर से हटा दी और बाहर आकर मामीजी से बोली-
“मैं और भाभी नाश्ता बनाते हैं । ये अच्छा है कि चन्दू मामाजी तो दारू की वजह से आज देर से उठेंगे आप जल्दी विश्वनाथजी और मेहमानों को जगा दें जिससे चन्दू मामाजी के उठने से पहले वो लोग भी दैनिक क्रियाओं नहाधोकर फारिग हो अपने आप को दुरुस्त कर लें जिससे चन्दू मामाजी को कोई शक न हो ।”
मामीजी समझ गयी कि मेरा इशारा हम तीनों की लाली, बिन्दी आदि के विश्वनाथजी या रमेश, महेश के जिस्मों या कपड़ों पर मिलने की तरफ़ है। वो बैठक में उन्हें जगाने गयी । मैं ौर भाभी भी तुरंत दौड़ते हुए उनके पीछे गये और उस कमरे के बाहर छुप कर देखने लगे कि देखें विश्वनाथजी को उस हाल में देख मामी जी उन्हें कैसे जगाती हैं । विश्वनाथजी चारौ खाने चित्त लण्ड खड़ा किये सो रहे थे उन्हें इस हाल में देख मामीजी जगाने में झिझकीं । सो उन्हें न जगा कर रमेश, महेश को जगाने लगीं । रमेश और महेश ने आँखें खोली तो नहाई धोई पूरे श्रंगार में मामीजी को अपने ऊपर झुकी देख आवाक रह गये । झुकी होने के कारण मामीजी की दोनों गुलाबी गोरी चूचियाँ ब्लाउज में से झाँक रहीं थीं । रमेश और महेश ने उठते उठते ऊपर से ही ब्लाउज में हाथ डाल चूचियाँ थाम लीं और उन्हें अपनी गोद मे खीचते हुए बोले –
“आओ भौजी यहां बैठो, लगता है भाईसाहब सो रहे हैं क्यों न एक राउन्ड सबेरे सबेरे हो जाय, दिन अच्छा बीतेगा। क्या ख्याल है?”
मामीजी ने नही नहीं करते हुए पीछे हटने की कोशिश की और सन्तुलन न संभाल सकने के कारण उनकी गोदमें गिर पड़ीं और रमेश और महेश के हाथ ब्लाउज में घुसे होने के कारण खिंचकर ब्लाउज की साड़ी चुटपुटिया खुल गयीं । महेश ने ब्रा का हुक खोल दिया और रमेश ने ब्रा ऊपर हटा दी । मामीजी की दोनों बड़ी बड़ी चूचियाँ थिरक कर आजाद हो गयीं । अब नजारा ये था कि रमेश और महेश ने मामीजी को गोद में बैठा रखा था, उनके ब्लाउज के दोनो पल्ले के पट खुले हुए थे और उन खुले पटों में से झांकती हलव्वी चूचियाँ में से एक रमेश और एक महेश ने थाम रखी थी और निपल चूसते हुए वे दोनों उनकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर को चढ़ाने की कोशिश कर रहे थे मामीजी की गोरी गुलाबी मांसल पिन्डलियाँ और केले के तनों जैसी जाँघें आधी नंगी हो चुकीं थी। सकपकई मामीजी उन्हें समझाने की कोशिश कर रहीं थी,-
“अरे अरे ये क्या कर रहे हो अगर तुम्हारे भाईसाहब जाग के नीचे आ गये तो साड़ी मस्ती धरी रह जायेगी और सब चौपट हो जायेगा ।”
इस उठ पटक और आवाजों को सुनकर विश्वनाथजी जाग गये और ये नजारा देखके बोले,-
“अरे अरे ! ये क्या बेहूँदापन है लड़कों, भौजी ने रात जरा सी छूट क्या दे दी तुम लोग पजामे से ही बाहर हुए जा रहे हो। अरे ! दिन का वख्त है कुछ तो लिहाज करो । छोड़ो इन्हें ! भौजी आप इधर आ जाइये ।”
विश्वनाथजी की आवाज सुनकर रमेश और महेश के हाथ जैसे ही जरा सा ढीले पड़े मामीजी भाग कर विश्वनाथजी के पास जा बैठीं ताकि अपने कपड़े ठीक कर सकें। विश्वनाथजी ने उन्हें अपने कसरती बदन से सटा लिया और उनकी साड़ी की सिलवटों पर हाथ से झाड़ते हुए ऐसा दिखाया कि जैसे उनके कपड़े ठीक करने में मदद करना चाहते हों। मामीजी को, अपने गुदाज बदन पर, विश्वनाथजी के कसरती बदन का अहसास और आत्मीयता के बोलों ने काफ़ी राहत दी । मामीजी ने अपने कपड़े ठीक करने के लिए, विश्वनाथजी से सटे सटे ही अपनी पीछे से खुली ब्रा के सिरे पकड़ने के लिए हाथ पीछे ले गयीं।
“हद कर दी लड़कों ने, देखो तो क्या हाल कर दिया बिचारी भौजी का ।” ऐसे बड़बड़ाते हुए विश्वनाथजी ने आगे से ब्रा में उनकी चूचियों डालने का उपक्रम किया, पर जैसे ही उनके बड़े मर्दाने हाँथ में मामीजी की हलव्वी छाती आई, मामीजी ने चौंककर विश्वनाथजी की तरफ़ देखा। विश्वनाथजी के कसरती बदन में दबा मामीजी का गुदाज बदन और उनके बड़े मर्दाने हाथ में मामीजी की हलव्वी छाती, अब मामीजी और विश्वनाथजी दोनो की साँसे तेज चलने लगी थी, दोनो की नजरें मिलते ही विश्वनाथजी उखड़ी साँसों के साथ बोले-
“लड़कों का भी ज्यादा दोष नहीं है भौजी, आप हैं ही इतनी जबर्दस्त कि किसी का भी ईमान डोल जाय ।”
अब विश्वनाथजी के बदन की गर्मी से गरम होती मामीजी भी उनका लगभग सारा नाटक समझ गयीं और मुस्कुरा कर बोली-
“हटो भी विश्वनाथ लाला क्यों मस्खरी करते हो। लड़के देख रहे हैं ।”
मामीजी को मुस्कुराते देख विश्वनाथजी ने उनके बदन को और अपने जिस्म के साथ कसते और चूचियाँ सहलाते हुए कहा,-
“आप फ़िक्र न करें मैं इन्हें समझा लूँगा ।”
विश्वनाथजी का लण्ड पकड़कर मरोड़ते हुए मामीजी फ़िर मुस्कुराई-
“ तुमसे बचूँगी तब तो लड़कों से बचाओगे।”
मामीज़ी के जिस्म के जादू ने विश्वनाथजी के दिमाग की सोचने समझने की रही सही ताकत भी हर ली, उन्होंने अपने होठ मामीजी के होठों पर रख दिये और उन्हें वही लिटा दिया। उनकी साड़ी पेटीकोट पलटकर उनकी पावरोटी सी चूत मुट्ठी में दबोच ली ।
ये देखकर पहले से ही गरमाये रमेश, महेश और ज्यादा गरम हो के अपने लण्ड सहलाने लगे। तभी उनकी नजर हमदोनों( मैं और भाभी) पर पड़ी उन्होने दौड़ के हमे पकड़ के बैठक के अन्दर खींच के दरवाजा भिड़ा दिया और वहीं खड़े खड़े हमारी चूचियाँ दबाने लगे।
क्रमश:…………………
भाग -8
दावत के रंग
इतनी देर में देखा की दूसरे रूम से हमारी प्यारी भाभी की चूत, की चुदाई समाप्त कर विश्वनाथजी नंगे ही हमारे रूम में घुसे और मुझे महेश से चिपका देखकर बोले ' अबे किसी और का नंबर आएगा आ नही, या सारा समय तू ही इस नंद रानी को चोदता रहेगा.
महेश - नही यार विश्वनाथ भाई मैं चोद चुका, तू इसे संभाल, ये बड़ी मजेदार चीज है। अगर आज ही बाकी चूतों का स्वाद न लेना होता तो मैं इसी से चिपका रहता।
विश्वनाथजी- अच्छा ये बात है देखता हूँ कितनी मजेदार चीज है इसकी भाभी को तो अभी मैं चोदकर आ रहा हूँ वो भी बड़ी मस्त चीज है जा उसका भी मजा लेले ।
महेश – मै मानता हूँ सच में इसकी भाभी बड़ी मस्त चीज है पर उसे तो मैं मेले मे चोद चुका हूँ अब में चला इसकी मामीजी के पास।
यह कह कर महेश ने मुझ नंगधड़ंग को विश्वनाथजी की तरफ धकेला और बाहर चला गया.
विश्वनाथजी ने तुरंत मेर नंगा बदन अपनी बाहों में धर दबोचा लिया और मेरे गाल चूमने लगे। मुझे बेहद शरम आ रही थी क्योंकि कल तक तो हम सब उनके मेहमान थे और हमारी भाभीजी को चोदकर हम सब उनके साथ अपने से बड़े जैसा व्यवहार करते थे और आज उन्होंने न सिर्फ़ मुझे एक मर्द के साथ नंगा देखा बल्कि बल्कि अब वो मुझे अपनी बाहों में दबोचकर मेरा एक गाल मुँह में भर कर चूस रहे थे तभी वो मेरी दोनो चूचियों को कस कर भोंपु की तरह दबाने लगे. जिससे मुझे दर्द होने लगा और मैं सीस्या उठी तभी उन्होंने मुझे खींच कर पलंग पर लिटा दिया और वहीं ज़मीन पर पड़ा हुआ मेरी पेटिकोट उठा कर मेरी चूत पोंछ्ते हुए विश्वनाथजी बोले-
“कहो बेला मज़ा आ रहा है न ।”
और मेरे जिस्म पर छा गये। कभी मेरे गालो को चूसते, कभी मेरी चूचियाँ जोरो से दबा देते । जैसे-जैसे वो मेरे बड़ी बड़ी चूचियों की पंपिंग कर रहे था, वैसे ही उसका लण्ड खड़ा हो रहा था मानो कोई उसमें हवा भर रहा हो.
उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रखा और मुझे लण्ड सहलाने का इशारा किया. मैंने शर्माकर अपना हाथ उसके लण्ड से हटा लिया तो उन्होंने पूछा-
“अच्छा नही लगा रहा है क्या?”
मैं इनकार करते हुए बोली –
“ नहीं ये बात नही है पर हमको शर्म आ रही है ।”
विश्वनाथजी ताज्जुब और झुँझलाहट से बोले –
“अभी तू महेश के साथ थी तब तो तुझे शर्म नहीं आ रही थी अब अचानक ये शर्म कहाँ से आ गयी?”
मैं- दरअसल आप अबतक हमसे बड़े बुजुर्ग जैसा व्यवहार करते आये थे जो कि इस माहौल मे भी बीच बीच मे याद आ जाता है।
विश्वनाथजी हँसकर बोले-
ओहो तो ये बात है अरे वो तो हमारे दिखाने के दांत थे बेला हम तो बड़े फ़्री तबियत के आदमी हैं अगाली बार तुमको तब बुलायेंगे जब मेरी पत्नी भी यहाँ हो तब देखना ये दोनो रमेश और महेश अपनी बीबियों के साथ आयेंगे और मैं इनके सामने इनकी बीबियों को और ये मेरी बीबी को चोदेंगे। चूत और लण्ड तो होते ही मजे लेने के लिए हैं आखिर तुम भी तो इसीलिए दो दिनों से अलग अलग लण्डों से चुदकर अपनी चूत को उन लण्डों का मजा दे रही हो, तो शर्म छोड़ लण्ड सहलाओ और इस लण्ड का भी मजा लो ।”
अब मेरी झिझक एकदम दूर हो चुकी थी । मैं मजे से उनका लण्ड सहलाने लगी. जैसे-जैसे लण्ड सहला रही थी मुझे आभास होने लगा कि विश्वनाथजी का लण्ड महेश के लण्ड से करीब आधा इंच मोटा और 2 इंच लंबा है. मैने सोचा जो होगा देखा जाएगा. उनका लण्ड एक लोहे के रोड की तरह कड़ा हो गया था.
अब विश्वनाथजी ने पास पड़ा तकिया उठा कर मेरे चूतड़ों के नीचे लगाया और फिर कटोरी से ढेर सारा घी मेरी चूत के मुहाने पर लगा कर अपना लण्ड मेरी चूत के मुँह पर रख कर ज़ोर का धक्का मारा. उसका आधे से ज़्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस गया. में सीस्या उठी. जबकि में कुछ ही देर पहले महेश से चूत चुदवा चुकी थी फिर भी मेरी चूत बिलबिला उठी.उसका लण्ड मेरी बुर में बड़ा कसा-कसा जा रहा था. फिर दुबारा ठप मारा तो पूरा लण्ड मेरी चूत में समा गया.
मैं जोरो से चिल्ला उठी 'उईईईईईई माँ, ............. दर्द हो रहा
है, प्लीज़ थोड़ा धीरे डालो , मेरी फटी जा रही है
विश्वनाथजी - अरे नहीं फटी जा रही है और न ही फ़टेगी, पहली बार मेरे लण्ड से चुदवाते समय शुरु में सब औरतों को ऐसा ही लगता है अभी मैं धीरे धीरे करुँगा, दो मिनट में नसिर्फ़ दर्द चला जायेगा बल्कि तुम्हें इतना मजा आयेगा कि और जोर से चुदवाने के लिए हल्ला मचाओगी ।”
अब वो मेरे गुदाज कन्धे पकड़ कर बारी बारी से मेरे निपल चूसते हुए धीरे-धीरे अपना लण्ड मेरी चूत के अंदर बाहर करने लगा । धीरे-धीरे मेरी बुर भी पानी छोड़ने लगी. बुर भीगी होने के कारण लण्ड बुर में करीब अंदर बाहर जाने लगा, और मुझे भी मज़ा आने लगा. और मैं चूतड़ उचकाने लगी क्योंकि वो कुछ रुक-रुक कर मुझे चोद रहा था । जब मुझसे रहा नही गया तो में खुद ही ऊपर से अपनी कमर के धक्के उसके लण्ड पर मारने लगी और बोली-
“हाय राजा इतना धीरे क्यों चोद रहे हो मेरी चूत, ज़रा जल्दी-जल्दी करो ना ।”
ये सुन विश्वनाथजी ने मुझे पलटी देकर अपने ऊपर कर लिया और कहा-
अब तू ऊपर से अपनी चूत से मेरा लण्ड चोद ।”
जब मैं ऊपर से उनके लण्ड पर बैठते हुए घस्सा मारती तो वो नीचे से ऊपर कमर उचका कर अपने लण्ड को मेरी चूत में ठाँसता था और मेरी दोनो चूचियाँ पकड़ कर नीचे की ओर खींचता था जिस से लण्ड और ज्यादा चूत के अंदर तक जा रहा था और मुझे बेइन्तहा मजा आ रहा था मैं ऊपर से खूब जोर का घिस्सा मार रही थी. इसी तरह से मेरी चूँचियाँ दबवाते खिचवाते उनका लण्ड चोदते हुए धीरे धीरे हमारी चुदाई की स्पीड बढ़ने लगी और मेरी चूँचियाँ दबाने खींचने के साथ-साथ वो उनपर मुँह भी मारता जाता था और कभी मेरे निपल अपने दाँतों से काट ख़ाता था तो कभी मेरे गालों पर चुम्मा भर लेता था.पर जब वो मेरे होंठों को चूसता तो में उत्तेजना से बेहाल हो जाती थी ।
मैं मज़े में बड़बड़ा रही थी – हाय रआज़ा बहुत मज़ा आ रहा है, और ज़ोर से चोदो चोद कर फ़ाड़ दो और बना दो मेरी चूत का भोसड़ा..............
अब उत्तेजना तो बहुत बढ़ गई थी पर शायद विश्वनाथजी ने महसूस किया कि मैं थकने लगी हूँ तो अचानक वे मुझे लिए लिए ही उठ खड़े हुए और मुझे बिस्तर पर पटक कर एक ही झटके में अपना विशालकाय लण्ड मेरी चूत में ठांस दिया और मेरी धुंआदार चुदाई करते हुए मेरी चूत की धज्जियां उड़ाने लगे। मैंने भी अपनी तरफ से नीचे से और ज़ोर ज़ोर चूतड़ उचका कर उनके लण्ड के धक्के अपनी चूत में लेने लगी । जब उसका लण्ड पूरा मेरी चूत के अंदर होता था तो में चूत को और कस लेती थी, जब लण्ड बाहर आता था तो चूत को ढीला चोद देती थी । अचानक हमारे मुँह से निकला उम्म्म्म्म्ह आआआह्ह्ह
और मेरी चूत झड़ने लगी और उसके कुछ ही धक्कों के बाद विश्वनाथजी के लण्ड ने भी धार चोद दी और वो मारे आनन्द के मेरे गुदाज जिस्म से चिपट गये ।
चुदाई प्रोग्राम रात भर इसी तरह चलता रहा और ना जाने मैं, भाभी और मामीजी कितनी बार चुदीं होंगी, पर एक अजीब बात हुई हुआ यों कि महेश को शायद मामीजी का गोरा गुदाज बदन कुछ ज्यादा ही पसन्द आया था क्योंकि वह उनके गुलाबी गुदाज बदन से देर तक खेलता रहा(जैसा कि मामीजी ने बाद में बताया) और उसने चुदाई देर से शुरु की सो जब विश्वनाथजी मुझे चोद के हटे और लगभग तभी रमेश भाभी को चोद के हटा था उस समय महेश और मामीजी धुंआदार चुदाई के बीच में थे। भाभीजी और विश्वनाथजी तो वैसे भी एक दूसरे को पसन्द करते थे सो वख़्त बरबाद न करते हुए विश्वनाथजी भाभीजी पर पिल पड़े फ़िर तुक कुछ ऐसी बनी कि विश्वनाथजी मेरे और भाभीजी बीच ही बटे रह गये और मामीजी तक पहुँच ही नहीं पाये और नशे में होने के कारण, उन्होंने ये कमी महसूस भी नहीं की। उस रात अंत में थक हारकर हम सभी यूँ ही नंगे ही सो गये.
सुबह मेरी आँख खुली तो देखा कि में नंगी ही पड़ी हुई हूँ. मैं जल्दी से उठी और कपड़े पहन कर बाहर किचन की तरफ गयी तो देखा कि भाभी भी नंगी ही पड़ी हुई हैं. मुझे मस्ती सूझी और में करीब ही पड़ा बेलन उठा कर उस पर थोडा सा आयिल लगा कर उनकी चूत में घोंप दिया. बेलन का उनकी चूत में घुसना था कि वो आआआअहह् करते हुए उठ बैठी, और बोली
' यह क्या कर रही हो'.
मैं बोली
' मैं क्या कर रही हूँ, तुम चूत खोले पड़ी थी में सोची तुम चुदासी रह गईं हो, पर चोदने वाले तो कब के चले गये, इसलिये तुम्हारी चूत में बेलन लगा दिया.
भाभी-
' तुझे तो बस चुदाई ही सूझती रहती है'.
मैंने उनकी चूत से बेलन खींच कर कहा –
' चलो जल्दी उठो, वरना चन्दू मामा मामी आ जाएँगे तो क्या कहेंगे. रात तो खूब मज़ा लिया, कुछ मुझे भी तो बताओ क्या किया?
भाभी- तूने भी तो वही किया या तू भजन कर रही थी । बाद में बात करेंगे कि किसने किससे क्या किया' कह कर कपड़े पहन ने लगी तो में मामीजी को उठाने चली गयी.
मामी भी मस्त चूत खोले पड़ी थी । मैंने उनकी चूचियों पर हाथ रख कर उन्हे हिलाया और उठाया और कहा
' मामी यह तुम कैसे पड़ी हो कोई देखेगा तो क्या सोचेगा.'
वो जल्दी से उठी और कपड़े पहन ने लगी, फिर मेरे साथ ही बाहर निकल गयी. हम तीनों लोग उठ कर जल्दी जल्दी दैनिक क्रियाओं नहाधोकर फारिग हुए ताकि रात का कोई निशान हमारे जिस्मों या कपड़ों पे ना दिखे
मैं बैठक में गयी तो देखा कि विश्वनाथजी भी बैठक में रमेश और महेश के पास ही पड़े हुए थे. विश्वनाथजी का लण्ड धोती के अन्दर खड़ा था जिससे धोती तम्बू जैसी दिख रही थी । शयद कोई चुदाई का सपना देख रहे होंगे । मुझे शरारात सूझी मैंने विश्वनाथजी कि धोती उनके लण्ड पर से हटा दी और बाहर आकर मामीजी से बोली-
“मैं और भाभी नाश्ता बनाते हैं । ये अच्छा है कि चन्दू मामाजी तो दारू की वजह से आज देर से उठेंगे आप जल्दी विश्वनाथजी और मेहमानों को जगा दें जिससे चन्दू मामाजी के उठने से पहले वो लोग भी दैनिक क्रियाओं नहाधोकर फारिग हो अपने आप को दुरुस्त कर लें जिससे चन्दू मामाजी को कोई शक न हो ।”
मामीजी समझ गयी कि मेरा इशारा हम तीनों की लाली, बिन्दी आदि के विश्वनाथजी या रमेश, महेश के जिस्मों या कपड़ों पर मिलने की तरफ़ है। वो बैठक में उन्हें जगाने गयी । मैं ौर भाभी भी तुरंत दौड़ते हुए उनके पीछे गये और उस कमरे के बाहर छुप कर देखने लगे कि देखें विश्वनाथजी को उस हाल में देख मामी जी उन्हें कैसे जगाती हैं । विश्वनाथजी चारौ खाने चित्त लण्ड खड़ा किये सो रहे थे उन्हें इस हाल में देख मामीजी जगाने में झिझकीं । सो उन्हें न जगा कर रमेश, महेश को जगाने लगीं । रमेश और महेश ने आँखें खोली तो नहाई धोई पूरे श्रंगार में मामीजी को अपने ऊपर झुकी देख आवाक रह गये । झुकी होने के कारण मामीजी की दोनों गुलाबी गोरी चूचियाँ ब्लाउज में से झाँक रहीं थीं । रमेश और महेश ने उठते उठते ऊपर से ही ब्लाउज में हाथ डाल चूचियाँ थाम लीं और उन्हें अपनी गोद मे खीचते हुए बोले –
“आओ भौजी यहां बैठो, लगता है भाईसाहब सो रहे हैं क्यों न एक राउन्ड सबेरे सबेरे हो जाय, दिन अच्छा बीतेगा। क्या ख्याल है?”
मामीजी ने नही नहीं करते हुए पीछे हटने की कोशिश की और सन्तुलन न संभाल सकने के कारण उनकी गोदमें गिर पड़ीं और रमेश और महेश के हाथ ब्लाउज में घुसे होने के कारण खिंचकर ब्लाउज की साड़ी चुटपुटिया खुल गयीं । महेश ने ब्रा का हुक खोल दिया और रमेश ने ब्रा ऊपर हटा दी । मामीजी की दोनों बड़ी बड़ी चूचियाँ थिरक कर आजाद हो गयीं । अब नजारा ये था कि रमेश और महेश ने मामीजी को गोद में बैठा रखा था, उनके ब्लाउज के दोनो पल्ले के पट खुले हुए थे और उन खुले पटों में से झांकती हलव्वी चूचियाँ में से एक रमेश और एक महेश ने थाम रखी थी और निपल चूसते हुए वे दोनों उनकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर को चढ़ाने की कोशिश कर रहे थे मामीजी की गोरी गुलाबी मांसल पिन्डलियाँ और केले के तनों जैसी जाँघें आधी नंगी हो चुकीं थी। सकपकई मामीजी उन्हें समझाने की कोशिश कर रहीं थी,-
“अरे अरे ये क्या कर रहे हो अगर तुम्हारे भाईसाहब जाग के नीचे आ गये तो साड़ी मस्ती धरी रह जायेगी और सब चौपट हो जायेगा ।”
इस उठ पटक और आवाजों को सुनकर विश्वनाथजी जाग गये और ये नजारा देखके बोले,-
“अरे अरे ! ये क्या बेहूँदापन है लड़कों, भौजी ने रात जरा सी छूट क्या दे दी तुम लोग पजामे से ही बाहर हुए जा रहे हो। अरे ! दिन का वख्त है कुछ तो लिहाज करो । छोड़ो इन्हें ! भौजी आप इधर आ जाइये ।”
विश्वनाथजी की आवाज सुनकर रमेश और महेश के हाथ जैसे ही जरा सा ढीले पड़े मामीजी भाग कर विश्वनाथजी के पास जा बैठीं ताकि अपने कपड़े ठीक कर सकें। विश्वनाथजी ने उन्हें अपने कसरती बदन से सटा लिया और उनकी साड़ी की सिलवटों पर हाथ से झाड़ते हुए ऐसा दिखाया कि जैसे उनके कपड़े ठीक करने में मदद करना चाहते हों। मामीजी को, अपने गुदाज बदन पर, विश्वनाथजी के कसरती बदन का अहसास और आत्मीयता के बोलों ने काफ़ी राहत दी । मामीजी ने अपने कपड़े ठीक करने के लिए, विश्वनाथजी से सटे सटे ही अपनी पीछे से खुली ब्रा के सिरे पकड़ने के लिए हाथ पीछे ले गयीं।
“हद कर दी लड़कों ने, देखो तो क्या हाल कर दिया बिचारी भौजी का ।” ऐसे बड़बड़ाते हुए विश्वनाथजी ने आगे से ब्रा में उनकी चूचियों डालने का उपक्रम किया, पर जैसे ही उनके बड़े मर्दाने हाँथ में मामीजी की हलव्वी छाती आई, मामीजी ने चौंककर विश्वनाथजी की तरफ़ देखा। विश्वनाथजी के कसरती बदन में दबा मामीजी का गुदाज बदन और उनके बड़े मर्दाने हाथ में मामीजी की हलव्वी छाती, अब मामीजी और विश्वनाथजी दोनो की साँसे तेज चलने लगी थी, दोनो की नजरें मिलते ही विश्वनाथजी उखड़ी साँसों के साथ बोले-
“लड़कों का भी ज्यादा दोष नहीं है भौजी, आप हैं ही इतनी जबर्दस्त कि किसी का भी ईमान डोल जाय ।”
अब विश्वनाथजी के बदन की गर्मी से गरम होती मामीजी भी उनका लगभग सारा नाटक समझ गयीं और मुस्कुरा कर बोली-
“हटो भी विश्वनाथ लाला क्यों मस्खरी करते हो। लड़के देख रहे हैं ।”
मामीजी को मुस्कुराते देख विश्वनाथजी ने उनके बदन को और अपने जिस्म के साथ कसते और चूचियाँ सहलाते हुए कहा,-
“आप फ़िक्र न करें मैं इन्हें समझा लूँगा ।”
विश्वनाथजी का लण्ड पकड़कर मरोड़ते हुए मामीजी फ़िर मुस्कुराई-
“ तुमसे बचूँगी तब तो लड़कों से बचाओगे।”
मामीज़ी के जिस्म के जादू ने विश्वनाथजी के दिमाग की सोचने समझने की रही सही ताकत भी हर ली, उन्होंने अपने होठ मामीजी के होठों पर रख दिये और उन्हें वही लिटा दिया। उनकी साड़ी पेटीकोट पलटकर उनकी पावरोटी सी चूत मुट्ठी में दबोच ली ।
ये देखकर पहले से ही गरमाये रमेश, महेश और ज्यादा गरम हो के अपने लण्ड सहलाने लगे। तभी उनकी नजर हमदोनों( मैं और भाभी) पर पड़ी उन्होने दौड़ के हमे पकड़ के बैठक के अन्दर खींच के दरवाजा भिड़ा दिया और वहीं खड़े खड़े हमारी चूचियाँ दबाने लगे।
क्रमश:…………………