जुली को मिल गई मूली compleet

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: जुली को मिल गई मूली

Unread post by raj.. » 14 Oct 2014 07:26

हम ने अपने हाथ का ड्रिंक ख़तम किया और एक नये ड्रिंक का ऑर्डर दिया. उस की कोहनी मेरी तनी हुई, कड़क चुचियों को टच कर रही थी और मैं रोमांचित हो रही थी. मैने भी अपना हाथ टेबल के नीचे किया और उस के लंड को उस की पॅंट के उपर से ही हाथ लगाया. जैसी कि मुझे उम्मीद थी, उस का लंड पूरी तरह खड़ा हुआ, कड़क था. रेस्टोरेंट की रोशनी काफ़ी धीमी थी और धीरे धीरे संगीत बाज रहा था. वातावरण बिल्कुल रोमॅंटिक था. इस रोमॅंटिक वातावर्ण और हमारी सेक्सी बातों के वजह से हम दोनो ही चुदाई के लिए मचलने लगे. पर हम जानते थे कि यहाँ चुदाई करना पासिबल नही है, पर जितना हम कर सकते थे वो हम ने करने की ठान ली. वो मेरी जाँघो पर हाथ फिराने लगा और उसका गरमा गरम खड़ा हुआ कड़क लंड मेरी पकड़ मे था. हम दोनो का एक एक हाथ टेबल के नीचे था और हम दोनो ने अपने अपने दूसरे हाथ मे ड्रिंक्स पकड़े हुए थे. मैने इधर उधर देखा. किसी का भी ध्यान हमारी तरफ नही था और उस समय वहाँ ज़्यादा भीड़ भी नही थी. अधिकतर लोग अपनी फॅमिली के साथ थे और अपने आप मे ही मस्त थे. हमारी तरह दो तीन जवान जोड़े हॉल के अलग अलग कोने मे बैठे हुए थे.

मतलब सॉफ था कि हम किसी की भी नज़र मे आए बिना, टेबल पर बैठे बैठे अपना काम कर सकते थे, पूरा नही तो बहुत कुछ. टेबल का कपड़ा टॅबेल के टॉप से काफ़ी नीचे तक लटका हुआ था इस लिए किसी बात का डर नही था.

मैने उस के पॅंट की ज़िप खोल दी. वो थोड़ा सा चौंका और धीरे से बोला " क्या कर रही हो जूली"

मैं - कुछ नही, बस अपने हथियार को चेक कर रही हूँ.

रमेश - कोई देख लेगा.

मैं - चिंता मत करो. कोई नही देख सकेगा. मैं पूरा ध्यान रखूँगी.

उस ने भी इधर उधर देखा और चेक किया तो वो भी इस के लिए मान गया. मैने उस के खड़े लंड को उसकी पॅंट से, उसकी चड्डी के रास्ते से बाहर निकाल लिया. अब उसका नंगा, गरम और मज़बूत कड़क लंड मेरी हथेली मे था, टेबल के नीचे, एक रेस्टोरेंट मे, कई लोगों के बीच मे मैने उस का लंड पकड़ा हुआ था. मैं एक अड्वेंचर पसंद लड़की हूँ और मुझे हमेशा मज़ा आता है ऐसी हरकत करने मे, खास कर के किसी पब्लिक प्लेस पर, कई लोगों के बीच, बिना किसी को पता चले मैं अपना काम कर जाती हूँ. मैने अपनी लाइफ मे ऐसा कई बार किया है और किसी को भी कभी पता नही चला. और जब भी मौका मिलेगा, ऐसा ही करूँगी. उस ने अपना टेबल नॅपकिन रेडी रखा था ताकि किसी ज़रूरत के समय वो अपना नंगा लंड ढक सके.

उस ने भी अपना हाथ बढ़ा कर मेरी स्कर्ट थोड़ी उपर करदी थी. मैने भी अपनी गंद उठा कर उस की हेल्प की. अब उस की उंगलियाँ मेरी चड्डी के उपर थी और मैं जानती थी कि उस के लिए मेरी चड्डी मे हाथ डाल कर मेरी चूत तक पहुँचना मुश्किल था. वो अपना हाथ मेरी थोड़ी सी गीली हो चुकी चड्डी पर फिरा रहा था. मैने अपने पैर थोड़े से चौड़े कर्लिये ताकि वो अपनी उंगलियाँ मेरी चूत पर चड्डी के उपर से आराम से फिरा सके. एक दो बार उस ने अपनी उंगली मेरी चड्डी की साइड से अंदर डालने की कोशिस की पर बैठे होने के कारण मेरी चड्डी टाइट हो गई थी और जिस तरह हम पास पास बैठे थे, उस की उंगलियों का मेरी चड्डी के अंदर मेरी चूत तक पहुँचना मुश्किल था. अब ये बात वो भी समझ चुका था और वो मेरी चूत के मूह पर मेरी चड्डी के उपर से ही हाथ फिरा रहा था. हम दोनो का एक एक हाथ टेबल के नीचे अपना अपना काम कर रहा था और अपने दूसरे हाथ से ड्रिंक पीते हुए हम आपस मे धीरे धीरे बातें कर रहे थे.

मैं बोली - कैसा लग रहा है डियर !

रमेश - जूली ! तुम बहुत शानदार लड़की हो. तुम ये अच्छी तरह जानती हो कि किस मौके का किस तरह फ़ायदा उठाया जा सकता है. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. तुम को कैसा लग रहा है ? मैं तुम्हारे प्यार के दरवाजे पर डाइरेक्ट हाथ नही लगा पा रहा हूँ.

मैं - कोई बात नही. मुझे तुम्हारे हाथ का अपनी चड्डी के उपर से पूरा पूरा मज़ा आ रहा है. क्या इस तरह कभी तुम ने अंजू के साथ किया है?

रमेश - नही यार. हम बाहर नही मिल सकते. जब भी मौका मिलता है, मैं उस के बेडरूम मे जाता हूँ और हम जल्दी जल्दी चुदाई कर लेते है क्यों कि हमेशा टाइम बहुत कम होता है हमारे के पास.

मैं - अंजू की चूत मेरी चूत के मुक़ाबले ज़्यादा कसी हुई होगी ना ? क्यों कि तुम अकेले हो जो उस की चुदाई करते हो और वो भी महीने मे 4/5 बार.

रमेश - नही. मुझे तुम्हारी और उसकी चूत मे कोई ज़्यादा फरक नही लगता है. हां, एक फ़र्क है, तुम हमेशा अपनी चूत के बाल साफ रखती हो और अंजू उन को ट्रिम करके रखती है. पर ये सब तुम क्यों पूछ रही हो?

मैं - ऐसे ही. कोई विशेष कारण नही है. क्या तुम को उस को चोद कर मज़ा आता है ?

रमेश ने मेरी तरफ देखा और बोला - " जूली ! मैं तुम से प्यार करता हूँ और मुझे तुम्हारे साथ मज़ा आता है. हम जल्दी ही शादी करने वाले है और हम को अपने शादी के पहले के संबंधो को पीछे छ्चोड़ कर भुला देना है."

मैं - इस मॅटर मे इतना सीरीयस होने की ज़रूरत नही है. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही हूँ. वो कैसी दिखती है ?

रमेश - खूबसूरत. पर तुम से ज़्यादा नही.

मैं - हां. ये मैं जानती हूँ. खूबसूरत तो वो ज़रूर होगी. क्यों कि किसी ऐसी वैसी लड़की को तो तुम्हारा लंड लेने का चान्स तो मिलने से रहा.

हम दोनो ही धीरे से मुश्कराए.

raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: जुली को मिल गई मूली

Unread post by raj.. » 14 Oct 2014 07:27

मैं उसका तना हुआ मोटा लंड उसकी पॅंट और चड्डी से बाहर निकाल कर पकड़ी हुई थी और उस के लंड के मूह पर अपने हाथ का अंगूठा फिरा रही थी. उस के लंड का मूह गीला हो चुका था जिसकी वजह से मेरा अंगूठा बड़े आराम से घूम रहा था. वो अपने हाथ की बीच की उंगली मेरी चड्डी पर से मेरी चूत के बीच मे बड़े शानदार तरीके से घुमा रहा था और मेरी चूत जो थी कि अपना रस निकालते ही जा रही थी.

मैने फिर पूछा - क्या अंजू मेरे बारे मे जानती है ?

रमेश - हां. वो तुम्हारे बारे मे जानती है. मैने बताया है उसको.

मैं - क्या तुम हम दोनो को मिलाना पसंद करोगे ?

रमेश - क्यों नही. अगली बार जब तुम मेरे घर आओगी तो मैं तुम को उस से मिलने उस के घर ले चलूँगा.

मैं बोली - ठीक है.

अचानक वेटर हमारी टेबल पर आया और पूछने लगा कि हमे कुछ और तो नही चाहिए. हम ने अपने अपने टेबल के नीचे हाथों को जहाँ थे, वहीं रोक लिया और उन को हिलाना बंद कर्दिया. कोई हलचल नही की. लेकिन हम ने अपने अपने हाथ निशाने पर से नही हटाए थे. मैं अभी भी उस का खड़ा हुआ लंड पकड़े हुए थी और उस की उंगली मेरी चड्डी के उपर से मेरी चूत के बीच मे थी. हम ने खाने का ऑर्डर दिया और वेटर वापस चला गया.

हम एक दूसरे के चुदाई के हथियारो से खेल रहे थे और हम को बड़ा मज़ा आ रहा था. वो मेरी चूत के बीच मे, मेरी चड्डी के उपर से ही, मेरी चूत के दाने पर, अपनी उंगली कुछ इस तरह घुमा रहा था कि मैं अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ने लगी. मैं तो झरने के बहुत करीब थी. मैं अपने पैर बंद कर रही थी - खोल रही थी और वो अपनी उंगली का कमाल दिखा रहा था. मैं झरने के इतने पास आ गई थी कि मैने उस के लंड को हिलाना बंद कर दिया, उस पर हाथ फिराना बंद कर दिया. सिर्फ़ उस के तने हुए लंड को टाइट पकड़ कर बैठी थी. मैं एक रेस्टोरेंट मे, जहाँ और भी कई लोग थे, इतने लोगों के बीच मे बैठ कर झरने जा रही थी. अचानक ही मैं झर गई, बहुत ज़ोर से झरी थी मैं. पर मैने अपनी आवाज़ और बदन को काबू मे रखा ताकि किसी को पता ना चले. उस ने अपनी उंगली घुमानी बंद करदी थी और उंगली को मेरी चूत पर दबा कर रखा था. मैने अपने पैर टाइट कर लिए थे और उसके हाथ को अपनी चूत पर दबा लिया था.

मैं भी उस को अपने हाथ का मज़ा देना चाहती थी, इस लिए मैने फिर से धीरे धीरे उस के लंड पर मूठ मारना चालू कर दिया था. मैं अपना हाथ कुछ इस तरह हिला रही थी कि टेबल के उपर मेरा हाथ हिलता हुआ किसी की नही दिख रहा था, पर टेबल के नीचे मैं उस के लंड पर ज़ोर ज़ोर से मूठ मार रही थी. मेरे हाथ की कोहनी पूरी तरह टेबल के नीचे थी और मेरी हथेली मे था उस का लंबा, मोटा और गरमा गरम लंड. मैं उस के लंड को टाइट पकड़ कर उपर नीचे---- आगे पीछे कर रही थी. मुझे पता था कि उस का पानी निकालने मे बहुत वक़्त लगता है, इस लिए मैं अपना काम पूरा दिल लगा कर कर रही थी. काफ़ी समय बाद मैने फील किया कि वो अपने लंड से पानी बरसाने के लिए तय्यार हो रहा है तो मैं और ज़ोर ज़ोर से मूठ मारने लगी. उस ने अपना हाथ मेरे मूठ मारते हुए हाथ पर रख कर मुझे मूठ ना मारने का इशारा किया.

raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: जुली को मिल गई मूली

Unread post by raj.. » 14 Oct 2014 07:28

मैं बोली - क्या हुआ. बंद क्यों कर दिया.

रमेश - मैं पहुँचने वाला हूँ और मैं अपना पानी टेबल के नीचे नही निकालना चाहता. पानी फैलेगा तो पता चल जाएगा कि हम ने क्या किया है. मैं बाथरूम जाता हूँ और हल्का हो कर आता हूँ.

मैं हंस कर बोली - क्या मैं भी आऊ तुम्हारे साथ तुम को हल्का होने मे मदद करने के लिए.

वो भी हंस कर बोला - पागल ! जेंट्स बाथरूम मे जा रहा हूँ. तुम चिंता मत करो. मेरा हाथ बराबर काम करेगा.

मैने उस के लंड पर से हाथ हटा लिया और मैने देखा कि उस को अपना खड़ा हुआ लंड अपनी पॅंट मे वापस डालने मे काफ़ी परेशानी हुई थी. क्यों कि एक तो उस का लंड खड़ा था और दूसरे वो काफ़ी लंबा था. जैसे तैसे उस ने अपने लंड को अपनी पॅंट मे घुसाया और बाथरूम की तरफ चला गया. मैने भी टेबल से टिश्यू पेपर उठाया और उस से अपनी गीली चूत सॉफ करने के बाद अपनी स्कर्ट फिर से अड्जस्ट कर ली थी और उस के आने का वेट करने लगी. जब तक वो वापस आया, खाना टेबल पर लग चुका था. मैने उस के चेहरे पर संतुष्टि के भाव देखे. मतलब ये कि उसने भी अपने लंड का पानी मूठ मार कर बाथरूम मे निकाल दिया था.

अपने हाथो का कमाल दिखाने के बाद हम खाना खा रहे थे. मैं घर पर जल्दी ही पहुँचना चाहती थी क्यों कि मेरे चाचा देर रात की बस से मुंबई जाने वाले थे और मैं चाहती थी की वो मुझे चोद कर जाए.

अचानक मेरे मन मे सामूहिक संभोग का ख़याल आया और मैं बोली - रमेश ! क्या हम दोनो अंजू को अपने खेल मे शामिल नही कर सकते ?

रमेश - तुम्हारा मतलब है ग्रूप सेक्स ? सामूहिक संभोग ? हम तीनो ?

मैं - हां. बहुत मज़ा आएगा. एक लड़का और दो लड़कियाँ.

रमेश - पता नही अंजू इस के लिए राज़ी होगी या नही.

मैं - तुम उस से बात तो कर के तो देखो. मेरे ख़याल से वो मान जाएगी. तुम क्या कहते हो ? तुम तो राज़ी हो?

रमेश - मैं तो जो तुम कहती हो वो करने को तय्यार हूँ लेकिन सच मे, मैने इस के बारे मे कभी भी नही सोचा था.

मैं - मैने भी कहाँ सोचा था. ये तो अभी अभी अचानक ही ख़याल आ गया. हम तीनो के लिए ये पहली बार होगा और मुझे पूरा विश्वास है कि बहुत मज़ा आएगा.

रमेश - ठीक है. मैं अंजू से बात करता हूँ और तुम को बताता हूँ.

हम ने अपना खाना ख़तम किया और रमेश ने रास्ते मे मुझे मेरे घर पर ड्रॉप करते हुए अपने घर चला गया.

मेरे पापा और मा नीचे रूम मे बैठे हुए टी.वी. देख रहे थे और मेरे चाचा के नीचे आने का इंतेज़ार कर रहे थे जो कि मुंबई जा रहे थे. मैने पापा और मा को गुड नाइट किया और उपर अपने बेडरूम की तरफ बढ़ी. जब मैं अपने बेडरूम के दरवाजे पर थी तो मैने चाचा को उन के अपने बेडरूम से बाहर निकलते हुए देखा. वो पूरी तरह तय्यार थे और उन के हाथ मे एक सूट केस था. उस समय रात के 10 बजे थे और उन की बस का टाइम 11.30 था. हम दोनो एक दूसरे को देख कर मुश्कराए और फिर वो मेरे पीछे पीछे मेरे बेडरूम मे आ गये. अंदर आ कर चाचा ने दरवाजा अंदर से बंद किया तो मैं समझ गई कि एक फटाफट चुदाई का वक़्त आ गया है. वो मुंबई जाने के पहले मुझको चोद्ना चाहते थे. सच लिखूं तो मैं भी चाचा से चुद्वाना चाहती थी. रमेश के साथ हाथों का खेल खेलने के बाद मुझे भी एक चुदाई की ज़रूरत थी. हम ने पहले भी कई बार फटाफट चुदाई की है जब समय कम हो या आस पास कोई हो तो हम फटाफट चुदाई कर डालते है. इस तरह की तेज चुदाई मे ज़्यादातर हम कपड़े पहने हुए ही सब काम कर लेते है, कभी किचन मे, कभी सीढ़ियों मे, कभी छत पर, और कभी कभी तो ऑफीस मे भी. हम ये सब इतना तेज़ी से, इतनी जल्दी से करतें है कि किसी को अंदाज़ा भी नही होता कि हम क्या कर चुके है.

चाचा ने मुझे कस कर पकड़ा और किस किया. जब वो मुझको किस कर रहे थे, उन का खड़ा हुआ लंड मेरी चूत को ख़त ख़टाता हुआ सलाम कर रहा था. मेरी चूत तो पहले से ही गीली थी और उन के चुंबन से, लंड से और भी गीली हो गयी थी. हम ने जल्दी से चुंबन पूरा किया और उन्होने मेरी गीली चड्डी उतार दी और अपना तना हुआ, मोटा और लंबा लंड ज़िप खोल कर अपनी पॅंट से बाहर निकाल लिया था. अपनी जेब से चाचा ने एक कॉंडम निकाला और उस को अपने लॅंड पर चढ़ा लिया. चाचा ने मुझे पलंग के सहारे घोड़ी बनाया और और मेरी स्कर्ट उठा कर मेरी गंद को नंगी कर दिया. मैं जानती थी कि चाचा को मेरी रसीली चूत का नज़ारा पीछे से हो रहा था. मैने अपने पैर थोड़े चौड़े किए और पीछे से चुदाई की पर्फेक्ट पोज़िशन बनाई. चाचा ने भी समय नही गवाया. उन्होने अपने लंड को मेरी चूत पर पीछे से टीकाया और तुरंत ही धक्के मारते हुए मुझे चोद्ने लगे. चाचा जल्दी से चुदाई ख़तम करना चाहते थे क्यों कि समय कम था, इस लिए वो तेज़ी से अपना लंड मेरी चूत मे अंदर बाहर करते हुए मुझे चोद रहे थे. चाचा ने अपने पुर कपड़े पहने हुए थे और मैं भी अपनी चड्डी के अलावा अपने पूरे कपड़ों मे थी. मेरी गंद को पकड़ कर चाचा पीछे से जोरदार धक्कों के साथ जल्दी जल्दी अपना लंड मेरी चूत मे घुसा रहे थे, बाहर निकाल रहे थे और मुझे चोद रहे थे, चोद रहे थे और मैं चुद्वा रही थी. जल्दी ही मैं अपनी मंज़िल के पास पहुँच गयी, लेकिन चाचा जो थे मुझे पागलों की तरह चोद्ते जा रहे थे. मेरे मूह से आवाज़ें निकालने लगी " आअहह ..... हाँ....... हाँ... चाचा.......... चोदो......... हां............. ऊऊहह आहह"

Post Reply