सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

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The Romantic
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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

Unread post by The Romantic » 06 Nov 2014 22:01

मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक

भाग -9

मामीजी का जादू


उधर विश्वनाथजी ने महसूस किया कि मामीजी की चूत बुरी तरह से गीली है इसका मतलब वो बुरी तरह से चुदासी हैं सो उन्होंने मारे उत्तेजना के मामी जी की पावरोटी जैसी चूत के मोटे मोटे होठों को अपनी बायें हाथ की उंगली और अंगूठे की मदद से फ़ैलाकर उसके मुहाने पर अपने घोड़े जैसे लण्ड का हथौड़े जैसा सुपाड़ा रखा । अब तो मामीजी के दिमाग ने भी सोचने समझने इन्कार कर दिया उनके होठों से सिसकारी निकली-

“इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सी आह ।”

विश्वनाथजी ने धक्का मारा और उनका सुपाड़ा पक से मामीजी की चूत में घुस गया।

मामीजी के होठों से निकला-

“उईफ़ आह !”

तभी बैठक का दरवाजा भड़ाक से खुला और रामू ने अन्दर आते हुए कहा-

माफ़ी मालिक लोग, बड़े मालिक जाग गये हैं और मैं अभी उन्हें सन्डास भेज के आया हूँ ।”

हम सब ठगे से रह गये। रामू की आँखो के सामने रमेश के हाथ में मेरी, महेश के हाथ में भाभी की चूचियाँ, सबसे बढ़कर मामीजी की चूत में विश्वनाथजी के घोड़े जैसे लण्ड का हथौड़े जैसा सुपाड़ा । रामू ने नजरे झुका लीं और जल्दी से बाहर निकल गया अब हमें होश आया विश्वनाथजी ने जल्दी से अपने लण्ड का सुपाड़ा मामीजी की चूत से बाहर खीचा जो बोतल से कार्क के निकलने जैसी पक की आवाज के साथ बाहर आ गया। विश्वनाथजी अपनी धोती ठीक करते हुए बैठक की बाहर की तरफ़ भागे इस बीच मैं और भाभी भी जल्दी से अपने आपको छुड़ाकर अपने कपड़े और हुलिया दुरुस्त करते हुए बैठक की बाहर की तरफ़ भागे क्योंकि वैसे भी हमारे साथ ज्यादा कुछ होने नहीं पाया था सो हुलिया दुरुस्त करने में ज्यादा वख्त नहीं लगा। हमने बाहर देखा कि विश्वनाथजी रामू को फ़ुसफ़ुसाकर पर सख्ती से कुछ समझा रहे हैं उन्होंने रामूको एक सौ रुपये का नोट दिया और रामू खुशी खुशी ऊपर चन्दू मामाजी को नहाने धोने में मदद करने उनके कमरे की तरफ़ चला गया। विश्वनाथजी ने हमसे धीरे से कहा कि तुमलोग घबराना नहीं मैंने रामू का मुँह बन्द कर दिया है।

मैं और भाभी आश्वस्त हो किचन में जा कर जल्दी जल्दी चाय नाश्ता बनाने लगे। मामीजी बैठक से जल्दी से निकलकर एकबार फ़िर बाथरूम में घुस गईं और नये सिरे से अपने आपको दुरुस्तकर और कपड़े बदल कर बाहर निकली। फ़िर किचन में आकर हमारा हाथ बटाने लगीं जब चन्दू मामाजी फ़ारिग हो नहाधोकर नीचे आये तबतक विश्वनाथजी रमेश महेश भी नहाधोकर चुस्त दुरुस्त बैठक में आ बैठे थे और रात की कहानी का कोई सबूत कहीं नहीं नजर आ रहा था । सबकुछ सामान्य था। ऐसा मालूम होता था मानो रात को कुछ हुआ ही नहीं था। विश्वनाथजी-

“आइये भाई साहब खूब सोये हमलोग कब से आप के उठने की राह देख रहे थे लगता है क्या कल दारू कुछ ज्यादा हो गई।”

चन्दू मामाजी-

“ अरे नहीं दारू वारू नही दरअसल ये मेलेठेले से मै बहुत थक जाता हूँ ।”

रमेश (ने मक्ख़्न लगाया)-

“वही मैं कहूँ देखने से ये तो नहीं लगता कि भाई साहब जैसे मजबूत आदमी का दारू वारू कुछ बिगाड़ सकती है ।”

महेश ने मेरी तरफ़ देखते हुए जोड़ा-

“ठीक कहा और जहाँ तक मेले का सवाल है हमलोग किसलिए हैं हम बच्चों को मेला दिखा लायेंगे ।”

(मैं समझ गई कि साला किसी तरकीब से हमें फ़िर से चोदने की भूमिका बना रहा है।)

विश्वनाथजी-

“हाँ भाई साहब कल रात की पार्टी के लिए मेरे परिवार की गैर मौजूदगी में आपके बच्चों ने जो मदद की उसके लिए उनकी जितनी भी तारीफ़ की जाय थोड़ी है ।”

रमेश ने सबकी नजर बच्चा कर भाभी की तरफ़ आँख मारते हुए जोड़ा)-

“ हाँ भाई साहब आपका परिवार सब काम में बहुतही होशियार हैं। कभी हमारे यहाँ आइये हमे भी खातिर करने का मौका दीजिये।” हमारी तो आपकी तरफ़ आवा जाही लगी ही रहती है अबकी बार आयेंगे तो जरूर मिलेंगे। दारू वारू का तो जुगाड़ होगा या नहीं?

चन्दू मामाजी-

“ अरे कैसी बातें करते हैं दारू वारू की कौन कमी है आप आइये तो सही ।”

(मैं समझ गई कि ये साले हमारे घर आकर भी और फ़िर अपने घर बुला के भी हमें चोदने का सिलसिला कायम करने की तरकीब लड़ा रहे हैं अब ये आसानी से हमारी चूतों का पीछा नहीं छोड़ने वाले।)

हमलोगों ने चाय नाश्ता लगा दिया. चाय नाश्ते के दौरान विश्वनाथजी भी बीच बीच में मामीजी को घूर कर देख रहे थे शायद सुबह अपने सुपाड़े से उनकी चूत का स्वाद चख लेने के बाद रात में चूक जाने की कोफ़्त से तड़प रहे थे। तभी हमारी मामीज़ी ने चन्दू मामाजी से कहा कि उनके पीहर के यहाँ से बुलावा आया है और वो दो दिन के लिए वहाँ जाना चाहती हैं. इस पर चन्दू मामाजी बोले-

“ भाई मैं तो इस मेले ठेले से काफ़ी थका हुआ हूँ और वहाँ जाने की मेरी कोई इच्छा नही है । विश्वनाथजी तो जैसे मौका ही तलाश कर रहे थे मामीज़ी के साथ जाने का, [या फिर मामी को चोदने का क्योंकि कल चोद नही पाए थे और आज सुबह उनकी शान्दार चूत मे सुपाड़ा डालने के बाद तो वो और भी उनकी चूत के लिए बेकरार हो रहे थे] तुरंत ही बोले-

“कोई बात नही भाई साहब, मैं हूँ ना, मैं ले जाऊँगा भौजी को उनके मायके और दो दिन बिठा कर हम वहाँ से वापिस यहाँ पर आ जाएँगे ।“विश्वनाथजी की यह बेताबी देख कर भाभी और मैं मुँह दबा कर हंस रहे थे. जानते थे कि विश्वनाथजी मौका पाते ही मामीज़ी की चुदाई ज़रूर करेंगे. और सच पूच्छो तो अब उनसे अपनी चूत मे सुपाड़ा डलवाने के बाद मामीजी भी ज़रूर उनसे चुदवाना चाह रही होंगी इसलिए एक बार भी ना-नुकूर किए बिना तुरंत ही मान गयी.


ये देख मैं भाभी से बोली

“ भाभी विश्वनाथजी मामीजी को न चोद पाने से परेशान हैं ऐसे देख रहे थे कि मानो अभी मामीजी को चोद देंगे। चलो उनका तो जुगाड़ हो गया अब मजे से दो दिन मामीजी की चूत खूब बजायेंगे। ये बाकी दोनों भी ऐसे देख रहे हैं कि मानो मौका लगे तो अभी फिर से हम सब को चोद देंगे ।”

भाभी-

“मुझे भी ऐसा ही लग रहा है बता अब क्या किया? जाए। ”.

मैं बोली-

“किया क्या जाए, चुप रहो मौका दो, चुदवाओ और मज़ा लो'

भाभी-

“तुझे तो हर वक़्त सिवाए चुदाई के और कुछ सूझता ही नही है ।”

मैं बोली- अच्च्छा शरीफजादी, बन तो ऐसी रही ही जैसे कभी लण्ड देखा ही नहीं, चुदवाना तो दूर की बात है, चार दिनों से लोंडो का पीछा ही नही छोड़ रही और यहाँ अपनी शराफ़त की माँ चुदा रही है.'

भाभी-

अब बस भी कर मेरी माँ , मैंने ग़लती की जो तेरे सामने मुँह खोला. चुप कर नही तो कोई सुन लेगा. और इस तरह हमारी नोंक-झोंक ख़तम हुई.


अब हमारी मामी और विश्वनाथजी के जाने के बाद हमारे लिए रास्ता एक दम साफ़ था. शाम के वक़्त हम तीनो याने मैं, मेरी भाभी और रामू मेला देखने घूमने निकले. तो वहाँ रमेश और महेश मिल गये जैसे हमारा इन्तजार ही कर रहे हों। बोले – “हमने तो आपके यहाँ खूब दावत खाई चलें आज हमारे यहाँ की कमसे कम चाय ही पी लें ।”

मैंने भाभी की तरफ़ देखा और आँखों से ही पूछा कि चुदवाने का मन है क्या? भाभी ने भी आँखों ही आँखों में हामी भर दी बस हम उनके साथ चल दिये। रमेश ने रामू को एक चिट लिख कर दी और कहा-

“ इसे ले जाकर मेरे घर मेरी पत्नी को देना और चाय नाश्ता तैयार करने में उसकी मदद करना तबतक हम मेला देख के आते हैं ।”

रामू चला गया तो रमेश बोला-

“चलिये जबतक चाय बनती है आपको महेश का नया घर दिखा दें।”

हम समझ गये कि ये रामू को भगाने का तरीका था। हमारी चुदाई महेश के घर में होगी क्योंके उसकी अभी शादी नही हुई है। महेश के घर पहुँचते पहुँचते उनकी और हमारी चुदास इतनी बढ़ गयी थी कि जैसे ही महेश ने घर का ताला खोलकर हमें अन्दर बुलाकर दरवाजा अन्दर से बन्द किया कि रमेश भाभीजी से और महेश मुझसे लिपट गया दरवाजे से बैठ्क तक आते आते हम दोनो ननद भाभी को पूरी तरह नंगा कर दिया था और खुद भी नंगे हो गये थे फ़िर दोनो ने बारी बारी से हमें एक एक राउण्ड चोदा फ़िर बोले-

“चलो अब रमेश के यहाँ चाय पीते हैं।”

दो राउण्ड चुदकर हमारी चूतें काफ़ी सन्तुष्ट थी ।अलग घर बनवा लेने के बावजूद रमेश और महेश दोनों भाई साथ ही रहते थे क्योंकि महेश की अभी शादी नही हुई थी रास्ते में मैने महेश से पूछा,

“तू शादी क्यों नही कर लेता ? कब करेगा ?”

महेश-

“कोई मुझे पसन्द ही नहीं करती ।”

मैं बोली-

“क्यों तुझमें क्या कमी है?”

महेश- “तू करेगी ।”

मैं बोली-

“मैं तो कर लूँ पर मेरी जैसी चालू चुदक्कड़ से तू करेगा शादी?”

महेश- “हमारे परिवारों में तेरी जैसी चालू चुदक्कड़ ही निभा पायेंगीं ।”

मैं बोली- क्या मतलब?”

जवाब रमेश ने दिया –“मतलब तो मेरे घर पहुँचने के बाद मेरी बीबी से मिलकर ही समझ आयेगा।”

रमेश के घर पहुँचकर हमने दरवाजा खटखटाया और रामू ने होंठ पोछ्ते हुए दरवाजा खोला । हम अन्दर गये नाइटी पहने रमेश की बीबी किचन से होंठ पोछ्ते हुए निकली और बोली-

“आइये आइये।”

हम सबने देखा कि रमेश की बीबी गुदाज बदन कि मझोले कद की बड़े बड़े स्तनों और भारी चूतड़ों वाली गेहुँए रंग की औरत थी । मुझे लगा कि उसके बड़े बड़े स्तनों के स्थान की नाइटी मसली हुई है, जैसे अभी अभी कोई मसल के गया हो उसके बड़े बड़े स्तनों के निपल खड़े थे और उस स्थान की नाइटी गीली थी जैसे कोई नाइटी के ऊपर और अन्दर से अभी तक चूसता रहा हो। घर मे रामू के अलावा तो कोई मर्द या बच्चा था नहीं। तभी रामू को चाय लाने को को किचन में भेज वो हमारे पास बैठ गयी और बोली-

भाई आप लोगों कि बड़ी तारीफ़ कर रहे थे हमारे पति(रमेश) और देवर(महेश)। जिस दिन आप के यहाँ से दोनो आये खाने की मेज पर आपकी बातें करते करते इतने उत्तेजित हो गये कि खाने की मेज पर ही मुझे नंगा कर के चोदने लगे उस रात दोनो भाइयों ने मिलकर मेरी चूत का चार बार बाजा बजाया क्योंकि महेश की अभी शादी हुई नहीं है सो महेश से भी मुझे ही चुदवाना पड़ता है। वैसे आज आपको एक और काम की बात बताऊँ ये रामू भी गजब का चुदक्कड़ है मेरे पति(रमेश) ने जब इससे चाय के लिए कहलवाया तो चिट में लिखा था कि लौंडा तगड़ा लगता जबतक हम लोग आते हैं चाहो तो इस लौंडे को स्वाद बदलने के लिए आजमा के देखो। मैंने आपलोगों के आने से पहले आजमाने के लिए चुदवाया लौंडे मे बड़ी जान है। साले ने अभी रसोई में चूमाचाटी करके दुबारा मूड बना दिया था अगर आपलोग न आ गयी होती तो दूसरा राउन्ड भी हो गया होता। कभी आजमाइयेगा।”

अब मुझे होठ पोछते हुए आने, स्तनों के आस पास मसली हुई और निपल के स्थान पर गीली नाइटी सारा माजरा समझ मे आगया। फ़िर हम सब चाय पी कर घर वापस आगये।

उस रात और अगली रात हम दोनों ने रामू से चुदवाया । साले का लण्ड तो ज्यादा बड़ा नहीं है पर चोदता जबरदस्त है और जितनी बार चाहो।

तीसरे दिन विश्वनाथजी हमारी मामीजी को उनके मायके से वापस ले के आये। हमारी मामीजी बड़ी खुश थी। पूछने पर उन्होंने विश्वनाथजी की तारीफ़ करते हुए बताया कि विश्वनाथजी हमारी मामीजी को उनके मायके बड़ी सहूलियत से ट्रेन के फ़र्स्ट क्लास कूपे में ले गये थे और वैसे ही वापस भी ले के आये । चूकि हमारे बीच एक दूसरे का कोई भेद छुपा नहीं था सो कुरे दने पर मामी जी ने ये किस्सा बताया । हुआ योंकि हमारी मामी और विश्वनाथजी ट्रेन के फ़र्स्ट क्लास कूपे में चढे़ और टीटी के टिकेट चेक करके जाने के बाद विश्वनाथजी ने कूपे का दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया और मामी के बगल में बैठ गये।

“भौजी! उस दिन की घटना के बाद दिल काबूमें नहीं है ।” कहकर विश्वनाथजी ने उनके गुदाज बदन को अपने कसरती बदन से लिपटा लिया। मामीजी भी तो बुरी तरह से चुदासी हो ही रहीं थी और चुदने ही आयीं थीं, सो वो भी लिपट गयी । विश्वनाथजी आगे से ब्लाउज में हाथ डाल कर उनकी चूचियों सहलाने लगे, जैसे ही उनके बड़े मर्दाने हाँथ में मामीजी की हलव्वी छाती आई, मामीजी साँसें तेज होने लगीं। विश्वनाथजी के कसरती बदन में दबा मामीजी का गुदाज बदन और उनके बड़े मर्दाने हाथ में मामीजी की हलव्वी छातियाँ, अब मामीजी और विश्वनाथजी दोनो की साँसे तेज चलने लगी थी, विश्वनाथजी के बदन की गर्मी से गरम होती मामीजी ने भी धीरे से विश्वनाथजी की धोती ने हाथ डाल उनका हलव्वी लण्ड थाम लिया और सहलाने लगीं । दोनो की नजरें मिलीं और मिलते ही विश्वनाथजी उखड़ी साँसों के साथ बोले-

“भौजी, आज तो मैं उसदिन का बचा काम पूरा करके ही रहूँगा ।”

विश्वनाथजी का लण्ड पकड़कर मरोड़ते हुए मामीजी फ़िर मुस्कुराकर माहौल को सहज करते हुए पूछा-

“मतलब बचा हुआ ये विश्वनाथ लाला ?”

मामीजी को मुस्कुराते देख विश्वनाथजी ने उनके बदन को और अपने जिस्म के साथ कसते और चूचियाँ सहलाते हुए कहा,-

“हाँ।”

फ़िर उन्हें बर्थ पर लिटा उनकी साड़ी पेटीकोट पलटकर उनकी पावरोटी सी चूत मुट्ठी में दबोच ली और आगे बोले-

“ आपकी इसमें? ”

और विश्वनाथजी ने अपने होठ मामीजी के होठों पर रख दिये।

विश्वनाथजी ने महसूस किया कि मामीजी की चूत बुरी तरह से गीली है इसका मतलब वो बुरी तरह से चुदासी हैं सो उन्होंने मारे उत्तेजना के मामी जी की पावरोटी जैसी चूत के मोटे मोटे होठों को अपनी बायें हाथ की उंगली और अंगूठे की मदद से फ़ैलाकर उसके मुहाने पर अपने घोड़े जैसे लण्ड का हथौड़े जैसा सुपाड़ा रखा । मामीजी के होठों से सिसकारी निकली-

“इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सी आह ।”

विश्वनाथजी ने धक्का मारा और उनका सुपाड़ा पक से मामीजी की चूत में घुस गया।

मामीजी के होठों से निकला-

“उईफ़ आह लाला ! डाल दो पूरा राजा ।”

विश्वनाथजी ने ज़ोर का धक्का मारा. उसका आधे से ज़्यादा लण्ड मामीजी चूत में घुस गया. मामीजी जैसी पुरानी चुदक्कड़ भी सीस्या उठी जबकि एक ही दिन पहले दो दो हलव्वी लण्डों (रमेश और महेश) से जम के अपनी चूत चुदवा चुकी थी उनका हलव्वी लण्ड मामीजी के भोसड़े में भी बड़ा कसा-कसा जा रहा था. विश्वनाथजी ने एक और ठाप मारा तो पूरा लण्ड अन्दर चला गया. मामीजी के होठों से निकला-

“उइस्स्स्स्स्स्स्स्स आह !

मामीजी ने अपनी दोनो सईगमर्मरी जाँघें विश्वनाथजी ने कन्धों पर रख लीं विश्वनाथजी उनकी मोटी मोटी केले के तने जैसी चिकनी गोरी गुलाबी जांघों पिण्डलियों को दोनों हाथों में दबोचने जोरजोर से सहलाने लगे । बीच बीच में मारे उत्तेजना के उनकी गोरी गोरी गुलाबी पिण्डलियों पर दॉत गड़ा देते थे । इससे उनकी चोदने की स्पीड धीमी हो जाति थी।


क्रमश:…………………

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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

Unread post by The Romantic » 06 Nov 2014 22:03

मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक

भाग -10



मामीजी का जादू


मामीजी बोलीं-

चोदो राजा फ़ाड़ दो आज मेरी चुदक्कड़ चूत ।

बस विश्वनाथजी मामीजी की हलव्वी चूचियाँ थामकर बारी बारी से निपल चूसते हुए धकापेल चोदने लगे । चूत भीगी होने के कारण लण्ड पकापक अंदर बाहर जाने लगा, और मामीजी को मज़ा आने लगा. वे चूतड़ उचका उचका के अपनी कमर के धक्के उसके लण्ड पर मारते हुए चुदवाने लगी उनकी दोनों टांगें विश्वनाथजी के कन्धों पर होने के कारण उनकी गद्देदार फूली हुयी चूत मोटी मोटी गोरी गुलाबी चिकनी जांघें भारी गद्देदार चूतड़ विश्वनाथजी के लण्ड के आस पास टकराकर डनलप के गुदगुदे गद्दे का मजा दे रहे थे और उनसे फटफट की आवाज आ रही थी। विश्वनाथजी ने दोनों हाथों से मामीजी के उछलते बड़े बड़े गोरे गुलाबी उरोजों को थामकर एकसाथ दोनों काले काले निपल होंठों में दबा लिये और उनकी नंगी नर्म चिकनी गोरी गुलाबी संगमरमरी मांसल बाहों को हाथों में दबोच कर निपल चूसने लगे ।

मामीजी के मुँह से आवाजे आ रही थीं उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्हआाााहहहहह

बेहद उत्तेजित होने के कारण करीब दस मिनट तक रगड़ते हुए चुदाई करने के बाद मामीजी चूत में जड़ तक विश्वनाथजी का लण्ड धँसवाकर उसे लण्ड पर बुरी तरह रगड़ते हुए झड़ने लगी। विश्वनाथजी भी मामीजी की आग हो रही चूत की गर्मी झेल नहीं पाये और उनके बड़े बड़े गुलाबी चूतड़ों को दोनो हाथों में दबोचकर अपने लण्ड पर दबाते हुए चूत की जड़ तक लण्ड धॉंसकर झड़ गये। झड़ने के बाद विश्वनाथजी ने मामी जी की टाँगें कन्धे से उतार दीं और बगल में लेट गये मामी जी उठीं और साड़ी उतार कर पेटीकोट ब्लाउज पर नाइटी डाल बाथरूम चली गयीं। जब मामीजी लौटीं तो देखा विश्वनाथजी कपड़े उतार के सिर्फ़ लुंगी पहने आँखें बन्द किये लेटे हैं मामीजी ने पेटीकोट ब्लाउज नाइटी सब उतार के टांग दिया और बिलकुल नंगी हो विश्वनाथजी के बगल में लेट गयीं और धीरे से उनकी लुंगी खोलकर उनसे लिपट गयी अबदोनों बिलकुल नंगधड़ंग एक ही बर्थ पर लिपटे पड़े थे विश्वनाथजी ने हड़बड़ा के आँखें खोल दीं बिलकुल नंगी मामी जी को बाहों मे देख उनके गुदाज मांसल बदन को अपनी भुजाओं मे कस उनकी स्तनों को अपने बालों भरे सीने मे पीसने लगे। मामी जी ने अपनी जांघों के बीच उनका हलव्वी लन्ड दबा कर मसलने लगीं ।


उस ट्रेन सफ़र में विश्वनाथजी ने तीन बार मामी जी की चूत का बाजा बजाया। मायके पहुँचकर मामीजी अपने पिताजी से मिली और उनके बगल वाले कमरे में यह कह कर ठहरीं कि अधिक से अधिक समय पिताजी के साथ ही बिताना चाहती हैं उसकमरे के बगल में बाथरूम अटैच था और बाथरूम के दूसरी तरफ़ दूसरा कमरा अटैच था जिसमें विश्वनाथजी ठहराये गये थे। दिन का अधिकतर समय मामी जी पिताजी के साथ ही बिता्ती थी। और रात को अपने कमरे में जाने के बाद अन्दर से बन्द कर बाथरूम से दूसरी तरफ़ विश्वनाथजी के कमरे में जा उनके बिस्तर में जा घुसतीं और रात भर जम के चुदवाती। दो दिन बाद वापसी के ट्रेन सफ़र में, ट्रेन के फ़र्स्ट क्लास कूपे में फ़िर से विश्वनाथजी ने तीन बार मामी जी की चूत का बाजा बजाया।

अभी हालात कुछ इस प्रकार हैं कि विश्वनाथजी और रमेश महेश ने रामू को पैसे वैसे देकर पूरी तरह पटा रखा है जब भी भैय्या गाँव से बाहर हों तो उन्हें खबर करने का काम रामू का है विश्वनाथजी रमेश या महेश मे से जिसका भी मौका लग पाये( कभी कभी तीनों ही) इस गाँव मे काम के बहाने से मामाजी के यहाँ आ कर टिक जाते हैं उस समय यदि भैय्या गाँव से बाहर हो तो भाभी के कमरे में चुदाई का जमघट लगता है और यदि मामा जी भी गाँव से बाहर हो तब तो सारे घर में चुदाई का भूचाल ही आ जाता है रामू को अपना मुँह बन्द रखने के पुरस्कार में पैसे के अतिरिक्त भाभीजी और मामीजी की चूतें बाकी के दिनों में दिन के वख्त जब भय्या और मामाजी काम पर गये हों उपलब्ध रहती हैं। मै भी अब अक्सर मामा मामी से मिलने उनके गाँव जाती हूँ यदि मौके पर विश्वनाथजी रमेश या महेश हुए तो मैं भी चुदवाकर उनके लण्डों का खूब मजा लेती हूँ नहीं तो अपना रामू का लण्ड तो रहता ही है।

जिन दिनों भय्या और मामाजी घर पर होते हैं और अगर उन दिनों मैं भी पहुँच जाती हूँ तो रामू की खूब ऐश रहती है। मैं जान बूझकर मेहमानो वाले कमरे में सोती हूँ जिसमें बाथरूम अटैच है बाथरूम के दूसरी तरफ़ रामू का कमरा अटैच है । रात में जब भय्या भाभी और मामाजी मामीजी अपने अपने कमरों में होते हैं मैं चुपके से बाथरूम के रास्ते रामू के कमरे में घुस जाती हूँ वो अपने बिस्तर में मेरा इन्तजार कर रहा होता है

क्योंकि जब मैं बिस्तर में घुस उससे चिपटती हुँ तो वो भी चादर के नीचे पूरी तरह नंगा होता है और उसका फ़ौलादी लण्ड पहले से ही टन्नाया होता है फ़िर मैं मनमाने ढ़ंग से खुल के चुदवाती और पूरी रात उसके जवान नंगे बदन से चिपट के सोती हूँ। अगर कही भैया बाहर गये हों तब तो रामू एक तरफ़ मुझे और दूसरी तरफ़ भाभी जी को लिटा के दोनो की एक एक चूची थाम के सोता है।

उन दिनों मामी जी देर तक सोती हैं इसका भी एक कारण है जो पहले मुझे नहीं मालूम था वो ये कि सुबह जब भय्या और मामाजी काम पर चले जाते थे तो मामीजी ऊपर से आवाज देती-

“रामू जरा यहाँ आ।”

मामीजी की आवाज ऊपर से सुनते ही किचन में भाभीजी की मदद करता रामू तुरन्त भागता हुआ ऊपर चला जाता। ये रोज का किस्सा था । मुझे कुछ शक हुआ तो आज मैं पीछे पीछे गयी और मैंने छिपके देखा-

रामू ऊपर उनके कमरे में पहुँच के बोला-

“जी मालकिन।”

पट लेटी मामीजी बिस्तर में लेटे लेटे ही बोली-

“आगया बेटा चल जरा दबा दे बदन में बड़ा दर्द है।”

रामू उनकी संगमरमरी टांगों को दोनो तरफ़ फ़ैलाकर उनके बीच बैठ मालिश करने और दबाने लगा । रामू के अभ्यस्त हाथों की मालिश से धीरे धीरे मामीजी का पेटीकोट ऊपर सरकने लगा धीरे धीरे रामू के हाथों के कमाल ने मामीजी का पेटीकोट पूरी तरह ऊपर सरकाकर उनके संगमरमरी चूतड़ तक नंगे कर दिये। रामू उनके दोनो पैरों के बीच आगे बढ़ आया था । अब रामू के हाथ मामीजी की कमर और चूतड़ों की मालिश कर रहे थे । मैने देखा कि लुंगी मे रामू का लण्ड तंबू बना रहा है और उनके चूतड़ों से टकरा रहा है। तभी मामीजी बोली –

“पूरे बदन की मालिश कर जरा जोर से दबा बेटा पूरा बदन बदन दुख रहा है।”

“जी मालकिन।”

रामू ने लुंगी उतार फ़ेकी उसका लण्ड बुरी तरह फ़नफ़ना रहा था रामू ने ऊपर कुछ नहीं पहना था अत: वो पूरी तरह नंगधड़ंग था । मामी के चूतड़ो पे बैठ के वो उनका ब्लाउज उनके कन्धों से खीचने लगा ब्लाउज उतर गया इसका मतलब मामीजी ने बटन पहले ही से खोल रखे थे। साफ़ नजर आ रहा था कि ये इन दोनो का रोज का धन्धा है। अब नंगधड़ंग रामू उनके ऊपर लेट गया और बगलों से हाथ डाल के वो मामीजी की चूचियाँ दबाते हुए उनके चूतड़ों पे लण्ड रगड़ रहा था । मैं चुपके से जा के भाभी को भी बुला लाई। थोड़ी देर बाद रामू मामी जी के ऊपर से उठा और मामी जी चित्त हो कर लेट गई और बोली- “शाबाश बेटा बस अब सामने से भी दबा दे ।”

“जी मालकिन।”

रामू फ़िर उनकी टाँगों के बीच आया और अपना हथौड़े सा सुपाड़ा उनकी फ़ूली हुई चूत के मुहाने पर लगाकर ठाप मारा और पूरा लण्ड ठोककर मामीजी के ऊपर लेट कर उनकी बड़ी बड़ी चूचियाँ दबाते हुए धकापेल चोदने लगा। घमासान चुदाई के बाद जब झड़े तो मामीजी बोली-

तूने मुझे सब गन्दा कर दिया चल अब नहला के साफ़ कर।”

“ठीक है मालकिन।”

और दोनो नंगधड़ंग बाथरूम मे चले गये वहाँ रामू ने मामीजी को मामीजी ने रामू को साबुन लगाया इस सब मे रामू का लण्ड फ़िर खड़ा हो गया और रामू मामी जी को झुका के साबुन लगे लण्ड से चोदने लगा मामीजी बोलीं –

“ये क्या कर रहा है।”

रामू ने जवाब दिया-

“चूत के अन्दर साबुन लगा के साफ़कर रहा हूँ मालकिन।”

अब हम भी बाहर निकल आये भाभीजी साड़ी पेटिकोट उठा के बोली –

“मेरी भी गन्दी है साबुन लगा के साफ़कर दे न ।”

फ़िर क्या था उसी बाथ रूम मे रामू ने हम सबकी चूत मे अपने लण्ड से साबुन लगा लगा के चोदते हुए साफ़ की। उस दिन के बाद से रामू हमसे इतना खुल गया है कि कि यदि घर में भय्या और मामा जी न हो तो मन करने पर सारे कमरों के बिस्तरों के अलावा बरान्डा, बाथरूम, रसोई, खाने कि मेज पर, कहीं खड़े तो कहीं बैठकर कही झुका के जहाँ जैसे बन पड़े मुआ मन करने पर कही भी पकड़ के चूत का बाजा बजाने की कोशिश का इजहार करता है क्यों कि उसे पता है कि हम बुरा नही मानेंगे । हम तीनों भी रामू से इतना खुल गये हैं कि घर में भय्या और मामा जी न होने का पूरा फ़ायदा उठाते हुए उसकी इच्छा मान ही लेते हैं वो भी हम तीनों का इशारा समझता है ।

इस उत्तेजक कहानी के कहने सुनने के बीच तरुन और बेला ने बुरी तरह से चुदासे हो एक दूसरे के कपड़े नोच डाले थे। तभी तरुन ने बेला को वही सोफ़े पे पटका तो बेला ने अपनी संगमरमरी टांगे उठा दी। तरुन ने उसकी मांसल जांघें थाम अपना हलव्वी लण्ड एक ही झटके मे उसकी पावरोटी सी बुरी तरह पनिया रही रसीली चूत में ठाँस दिया और धकापेल चोदते हुए बोला –“ तो क्या इरादा है अगर महेश से शादी करो तो बताओ तेरे बापू (बल्लू चाचा) से बात करूँ?”

बेला (चूतड़ उछालकर चुदाते हुए)–“हाय राजा नेकी और पूँछ पूँछ?

तरुन –“पर पहले मुझे टीना भाभी की दिलवा।”

बेला –“जब तू कहे।

क्रमश:…………………


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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ

Unread post by kamdevbaba » 07 Nov 2014 21:01

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती ना मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी ना मिला

घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी ना मिला

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड आया था
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी ना मिला

बहुत अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी ना मिला

खुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने

बस एक शख्स को मांगा मुझे वही ना मिला

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