शादी सुहागरात और हनीमून--13
गतान्क से आगे…………………………………..
बस क्या था. रीमा, रंभा और उसकी बाकी सहेलियो ने उनकी बेल्ट तो उतार ही दी थी, छेड़छाड़ मे ना सिर्फ़ पॅंट के उपर के बटन खोल दिए थे बल्कि जिप भी थोड़ी खोल दी थी. बस भाभी ने पूरी ताक़त से अंजलि का हाथ पकड़ा और 'उनके' पॅंट मे कस के घुसेड दिया और ऐसा लग रह था कि जबरन 'पकड़वा' भी दिया और उनकी पॅंट मे 'टेंट' तन गया.(बाद मे पता चला कि उस बेचारी का तो हाथ भी ठीक से अंदर नही गया था, हां भाभी ने ज़रूर वो भी ब्रीफ़ के उपर से और जो टेंट' ताने था, वो भाभी ने अपने अंगूठे से उनके पॅंट को 'उठा' दिया था.) भाभी ने मुझे भी छेड़ते हुए कहा,
"देख तेरी ननद कैसे खुल के सबके सामने अपने भैया का खुन्टा पकड़ के रगड़ मसल रही है. "मेने घूँघट से ही मुस्काराकार ऐसे सर हिलाया, जैसे मेरी ओर से पूरा 'ग्रीन सिग्नल' हो.
लेकिन इतने से भी संतोष नही था. मेरी मामी और गाव की एक भाभी बोली,
"अर्रे भैया, वो तो तुम्हारा पकड़ के सहला रही है तो ज़रा तुम भी तो कम से कम फैला के दिखाओ तो चिकनी है या घास फूस है. "बस अब क्या था मेरी दो तीन भाभियो ने मिल के, 'उनका' हाथ पकड़ा और (उनका हाथ तो बस दिखाने को था वो तो मेरी सारी भाभियो की पूरी ताक़त थी जो उसकी दोनो जाँघो को फैलाने मे लगी थी), उसका फ्रॉक उठा के जांघे फैला दी उसने झट से फिर टांगे सिकोड ली. और जो दिखा हम सब दंग रह गये) सिवाय उसके भैया के क्यो कि वो तो उनकी गोद मे ही थी.). उसकी 'वो' पैंटी विहीन थी. हां लेकिन ये ज़रूर पता चल गया कि 'घास फूस', भूरी, घूंघराली सी, थी.
(पता ये चला कि, बसंती और मेरे कज़िन्स संजय और सोनू का हाथ था. जब बसंती अंजलि को ले के कुहबार की ओर आ रही थी तो रास्ते मे एक बहुत सांकरा गलियारा पड़ता था, जैसे ही वो लोग उधर मुड़े, लाइट चली गयी. बसंती ने झट से उसके दोनो हाथ सहारा देने के लिए पकड़ लिए. तब तक पीछे से किसी ने उसे पकड़ लिया और सबसे पहले अपने हाथ से उसका मूह कस के बंद कर दिया.
दूसरे हाथ से फ्रॉक के उपर से ही उसके उभार पकड़ लिए और मसलने शुरू कर दिया. तब तक दूसरे ने, एक हाथ से उसकी कमर पकड़ी और दूसरा हाथ उसकी जाँघो के बीच डाल कर पैंटी के उपर से उसकी 'बुलबुल' को दबोच लिया. जल्द ही उसकी फ्रॉक के अंदर उसकी ब्रा भी खुल गई थी. कस के उसके जोबन का मसलन रगड़न चालू हो गया और नीचे उंगलियों भी. 7-8 मिनिट्स तक अंधेरे का फ़ायदा उठा के खूब खुल के चुचियो का मज़ा लिया और मन भर के उंगली अलग की, यहा तक कि उसकी पैंटी भी उतार दी. और जैसे ही बिजली आई,
उसके साथ वो गायब हो गये. बसंती ने बताया कि अंजलि थोड़ी नाराज़ परेशान थी, लेकिन उसने उसे समझाया कि आख़िर चोदा तो है नही खाली उंगली की है,
फिर इतने लड़के शादी के घर मे रहते है. पता नही कौन था.फिर जिन्होने ये हरकत की वो तो किसी से कहेंगे नही, बसंती किसी से बोलेगी नही तो वो अगर ना बोले तो किसी को कहाँ पता चलेगा. बस वो इसको छेड़ छाड़ मान ले. और बसंती ने भी उसका फ़ायदा उठाया. चेक करने के नाम पे जब तक वो समझे उसने "उसकी उसका"ना सिर्फ़ दर्शन कर लिया, बल्कि जाँचने के लिए ना सिर्फ़ उंगली अंदर भी कर दी बल्कि जम के मज़े ले ले के उगलिया भी. उसके शब्दो मे, 'बीबी जी, उसकी बुर एकदम मचमच कर रही थी. जब उंगली मेने अंदर डाली तो पूरा अंदर तक पनिया गयी थी, बुर उसकी.
इसका मतलब साफ था कि तुम्हारी ननद रानी गुस्सा होने का बहाना कर रही थी और बुर मे उंगली का उसको भी खूब मज़ा आया. इसीलिए जब वो कुहबार मे घुसी तो थोड़ा घबड़ाई लग रही थी.) अब मुझे लगा कि वो ज़रूर गुस्सा हो जाएगी और कही 'वो' भी..लेकिन मम्मी और भाभी ने बात संभाल ली.
मम्मी ने अंजलि को खींच के अपनी गोद मे बिठा लिया और सबको डांटा कि तुम सब लोग मिल के मेरी इस सीधी बिटिया को तंग करती हो. फिर समझा के बोला,
(जिसका इशारा, 'इनकी' ओर ज़्यादा था.), "अर्रे कुहबार की बात कुहबार मे ख़तम हो जाती है. इसका मतलब है कि कुहबार मे, कोई शर्म लिहाज नही होती. कुछ जगहो, कामो और रिश्तो मे शर्म लिहाज हट जाती है. हर जगह तो बेचारी लड़किया चुप मूह दबा के बैठी रहती है पर ये सब मौके होते है मन की भडास और अंदर की सब बात जाहिर करने की. और तुम ये समझ लो कि जितना इसका हक तुम्हारे उपर है ना, (मेरी ओर इशारा कर के) उतना ही हक जितना तुम्हारी ये सब सालिया, सलहजे बैठी है ना, उतना ही उन सबका है तुम पर.
(बीच मे किसी ने टोका, और सास का. तो वो मुस्करा के बोली, और क्या मैं कौन सी मैंभी तो अभी जवान हू) और तुम्हारा भी उन सब पे बराबर का हक है.
कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और compleet
Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून
इसलिए ससुराल की किसी बात का बुरा मत मानना ( बीच मे किसी ने बोला, अर्रे इन्हे तो बुढ़िया ही, अच्छी लगती है). वो मम्मी की बात सुन के मुस्करा रहे थे कि तभी तक भाभी ने पास मे जा के उन के कान मे कुछ कहा और उनका चेहरा एकदम खुशी से चमक उठा. और हंस के उन्होने भाभी से कान मे कुछ कहा.
उधर मम्मी ने अंजलि को खूब अच्छा सूट भी विदाई के तौर पे दिया.
आख़िरी रस्म थी, गुड दही खिलाने की. बसंती ने मेरा हाथ पकड़ के दही गुड खिलवाया, साथ ही साथ अच्छी तरह उनके गाल पे लपेट दिया. और बोली, अपनी बेहन को बोलो की चाट के साफ कर दे.
जब उन्होने अपने हाथ से मुझे दही गुड खिलाया, तो मेने कस के काटने मे कोई कसर नही छोड़ी.
थोड़ी देर मे विदाई होनी थी. बारात पहले ही जा चुकी थी. मेने सुना अंजलि किसी से कह रही थी कि वो हम लोगो के साथ ही गाड़ी मे जाएगी. मेने भाभी से बताया और कहा, "प्लीज़ हमारी गाड़ी मे कोई और ना बैठे. "तो वो हंस के बोली,
तुम चिंता मत करो और उन्होने अपने देवरो, संजय और सोनू को काम पे लगा दिया.
विदाई के समय पूरा माहौल बदल गया था. मेने लाख सोचा था कि ज़रा भी पर मम्मी से मिलते समय मेरी आँखे भर आई .किसी तरह मैं आँसू रोक पाई, लेकिन भाभी से गले मिलते समय, सार बाँध टूट गये. भाभी से मेरे ना जाने कितने तरह के रिश्ते और शादी तय होने से अब तक तो हम दोनो के आँखो से आँसू बिन बोले, झर रहे थे और हम दोनो एक दूसरे को कस के बाहों मे भिच के, मना भी कर रहे थे ना रोने के लिए. और ये देख के मम्मी की भी आँखे जो अब तक किसी तरह उन्होने रोका था, गंगा जमुना हो गयी. 'उनके ' चेहरे' पे कुछ 'विशेष' भाव देख के भाभी की आँखो ने प्रश्न वाचक ढंग से उन्हे देखा, वो बोले,
"अगर रोने से गले मिलने का मौका मिले तो मैं भी रोना चाहूँगा. "पल भर मे माहौल बदल गया और मैं भी मुस्कान रोक नही पाई. भाभी ने हंस कर कहा एकदम. जैसे ही वो आगे बढ़ी, उन्होने भाभी को कस के गले लगा लिया, और भाभी ने भी वो मौका क्यो छोड़ती. और फिर भाभी ने हम दोनो को कार मे बैठा दिया. मेने देखा कि आगे एक और कार मे, अगली सीट पे अंजलि बैठी और वो दरवाजे खोलने की कोशिश कर रही थी पर कार के दरवाजे सारे बाहर से बंद थे. भाभी ने बताया कि संजय, सोनू और मोनू भी हम लोगो के साथ छोड़ने जाएँगे. अंजलि ने कहा है कि वो उन्ही लोगो के साथ जाएगी. मैं मन ही मन मुस्करा उठी. तब तक संजय मेरे पास पानी का गिलास ले आया. मैं जैसे ही पीने लगी, उसने धीरे से कहा, बस थोडा सा पीना. मेने कनेखियो से देखा कि कुछ समझा के उसने वो ग्लास रीमा के हवाले कर दिया. रीमा ने मुस्करा कर वो ग्लास 'उन्हे' दिया. साली कुछ दे और वो माना कर दें.उन्होने पूरा ग्लास गटक लिया.
कार जैसे ही हमारे शहर से बाहर निकली, उन्होने मुझसे कहा क़ि तुम चप्पल उतार दो और अपने हाथ से घूँघट थोड़ा सरका के मेरा सर अपने कंधे पे कर लिया. हलके से मेरे कान मे उन्होने मुझे समझाया कि मैं रिलेक्स कर लू, अभी ढाई तीन घंटे का रास्ता है, और वहाँ पहुँच के फिर सारी रस्मे रीत चालू हो जाएँगे. कुछ रात भर के जागने की थकान, कुछ उन के साथ की गरमी और कुछ उनके कंधे का सहारा, मैं थोड़ी देर मे ही पूरी तरह नीद मे तो नही तंद्रा मे खो गयी. एक आध बार मेरी झपकी खुली, तो मेने देखा कि उनका हाथ मेरे कंधे पे है. और एकाध बारचोर चोरी से जाए हेरा फेरी से ने जाए मैने महसूस किया कि उनकी अंगुली का हल्का सा दबाव दिया मेरी चोली पे जान बुझ के मेने आँखे नही खोली लेकिन मेरे सारी देह मे एक सिहरन सी दौड़ गई. उन्होने मुझे हल्के से खोदा, तो मेरी आँख खुल गई. वो बोले, बस हम लोग 10 मिनेट मे पहुँचने वाले है तुम पानी पी लो और फ्रेश हो जाओ. उन्होने ड्राइवर को चाय लाने के भेज दिया था. इतना लंबा सफ़र और पता भी नही चला और नीद इतनी अच्छी थी कि रात भर जागने की सारी थकान उतर गयी.
थोड़ी ही देर मे मैं अपने ससुराल पहुँच गयी. अंजलि और मेरे भाई हम लोगो से थोड़ी ही देर पहले पहुँचे थे. और मैं ये देख के चकित थी कि अंजलि की उन से इतनी तगड़ी दोस्ती हो गयी. मुझे तो लग रहा था वो नाराज़ होगी कि मेरी कार से चालाकी से उन लोगो ने उसे अलग कर दिया पर वो तो एकदम चिपकी हुई थी, खास कर संजय से. मेरी सास और बुजुर्ग औरतो ने पहले परचन किया, लेकिन घर मे घुसने से पहले मेरी ननदो उनकी सहेलियो ने रास्ता रोक रखा था.
उधर मम्मी ने अंजलि को खूब अच्छा सूट भी विदाई के तौर पे दिया.
आख़िरी रस्म थी, गुड दही खिलाने की. बसंती ने मेरा हाथ पकड़ के दही गुड खिलवाया, साथ ही साथ अच्छी तरह उनके गाल पे लपेट दिया. और बोली, अपनी बेहन को बोलो की चाट के साफ कर दे.
जब उन्होने अपने हाथ से मुझे दही गुड खिलाया, तो मेने कस के काटने मे कोई कसर नही छोड़ी.
थोड़ी देर मे विदाई होनी थी. बारात पहले ही जा चुकी थी. मेने सुना अंजलि किसी से कह रही थी कि वो हम लोगो के साथ ही गाड़ी मे जाएगी. मेने भाभी से बताया और कहा, "प्लीज़ हमारी गाड़ी मे कोई और ना बैठे. "तो वो हंस के बोली,
तुम चिंता मत करो और उन्होने अपने देवरो, संजय और सोनू को काम पे लगा दिया.
विदाई के समय पूरा माहौल बदल गया था. मेने लाख सोचा था कि ज़रा भी पर मम्मी से मिलते समय मेरी आँखे भर आई .किसी तरह मैं आँसू रोक पाई, लेकिन भाभी से गले मिलते समय, सार बाँध टूट गये. भाभी से मेरे ना जाने कितने तरह के रिश्ते और शादी तय होने से अब तक तो हम दोनो के आँखो से आँसू बिन बोले, झर रहे थे और हम दोनो एक दूसरे को कस के बाहों मे भिच के, मना भी कर रहे थे ना रोने के लिए. और ये देख के मम्मी की भी आँखे जो अब तक किसी तरह उन्होने रोका था, गंगा जमुना हो गयी. 'उनके ' चेहरे' पे कुछ 'विशेष' भाव देख के भाभी की आँखो ने प्रश्न वाचक ढंग से उन्हे देखा, वो बोले,
"अगर रोने से गले मिलने का मौका मिले तो मैं भी रोना चाहूँगा. "पल भर मे माहौल बदल गया और मैं भी मुस्कान रोक नही पाई. भाभी ने हंस कर कहा एकदम. जैसे ही वो आगे बढ़ी, उन्होने भाभी को कस के गले लगा लिया, और भाभी ने भी वो मौका क्यो छोड़ती. और फिर भाभी ने हम दोनो को कार मे बैठा दिया. मेने देखा कि आगे एक और कार मे, अगली सीट पे अंजलि बैठी और वो दरवाजे खोलने की कोशिश कर रही थी पर कार के दरवाजे सारे बाहर से बंद थे. भाभी ने बताया कि संजय, सोनू और मोनू भी हम लोगो के साथ छोड़ने जाएँगे. अंजलि ने कहा है कि वो उन्ही लोगो के साथ जाएगी. मैं मन ही मन मुस्करा उठी. तब तक संजय मेरे पास पानी का गिलास ले आया. मैं जैसे ही पीने लगी, उसने धीरे से कहा, बस थोडा सा पीना. मेने कनेखियो से देखा कि कुछ समझा के उसने वो ग्लास रीमा के हवाले कर दिया. रीमा ने मुस्करा कर वो ग्लास 'उन्हे' दिया. साली कुछ दे और वो माना कर दें.उन्होने पूरा ग्लास गटक लिया.
कार जैसे ही हमारे शहर से बाहर निकली, उन्होने मुझसे कहा क़ि तुम चप्पल उतार दो और अपने हाथ से घूँघट थोड़ा सरका के मेरा सर अपने कंधे पे कर लिया. हलके से मेरे कान मे उन्होने मुझे समझाया कि मैं रिलेक्स कर लू, अभी ढाई तीन घंटे का रास्ता है, और वहाँ पहुँच के फिर सारी रस्मे रीत चालू हो जाएँगे. कुछ रात भर के जागने की थकान, कुछ उन के साथ की गरमी और कुछ उनके कंधे का सहारा, मैं थोड़ी देर मे ही पूरी तरह नीद मे तो नही तंद्रा मे खो गयी. एक आध बार मेरी झपकी खुली, तो मेने देखा कि उनका हाथ मेरे कंधे पे है. और एकाध बारचोर चोरी से जाए हेरा फेरी से ने जाए मैने महसूस किया कि उनकी अंगुली का हल्का सा दबाव दिया मेरी चोली पे जान बुझ के मेने आँखे नही खोली लेकिन मेरे सारी देह मे एक सिहरन सी दौड़ गई. उन्होने मुझे हल्के से खोदा, तो मेरी आँख खुल गई. वो बोले, बस हम लोग 10 मिनेट मे पहुँचने वाले है तुम पानी पी लो और फ्रेश हो जाओ. उन्होने ड्राइवर को चाय लाने के भेज दिया था. इतना लंबा सफ़र और पता भी नही चला और नीद इतनी अच्छी थी कि रात भर जागने की सारी थकान उतर गयी.
थोड़ी ही देर मे मैं अपने ससुराल पहुँच गयी. अंजलि और मेरे भाई हम लोगो से थोड़ी ही देर पहले पहुँचे थे. और मैं ये देख के चकित थी कि अंजलि की उन से इतनी तगड़ी दोस्ती हो गयी. मुझे तो लग रहा था वो नाराज़ होगी कि मेरी कार से चालाकी से उन लोगो ने उसे अलग कर दिया पर वो तो एकदम चिपकी हुई थी, खास कर संजय से. मेरी सास और बुजुर्ग औरतो ने पहले परचन किया, लेकिन घर मे घुसने से पहले मेरी ननदो उनकी सहेलियो ने रास्ता रोक रखा था.
Re: कामुक-कहानियाँ शादी सुहागरात और हनीमून
'उन्होने' 500 रुपये दिए तो मेरी मांझली ननद बोल पड़ी,
"वाह भैया सालियो को तो पूरे 1000 और हम लोगो को सिर्फ़ 500"उनकी भाभी, नीरा भाभी मेरी जेठानी एकदम मेरी भाभी की तरह पूरा मेरा साथ दे रही थी. वो बोली,
"अर्रे सालिया तो सालिया होती है, तुम सब इनके साथ वो काम कर सकती हो जो सालिया कर सकती है, "लेकिन ननद टस से मस नही हुई. आख़िर मेरी जेठानी बोली, अच्छा चलो मैं तुम लोगो को 500 रुपये देती हू, लेकिन ये वादा रहा कि ये अड्वान्स पेमेंट है, तुम सबको मैं अपने देवर की साली बना के मानूँगी. "अंजलि ने आगे बढ़ के रुपये ले लिए.
और उस के बाद ढेर सारी रस्मे, गाने लेकिन मेरी जेठानी ने एक के बाद एक सारी रस्मे जल्द ही करवा दी. वहाँ भी जुए का खेल था दूध से भरी परात से कंगन निकालने का. पहली बार तो मैं अपने नखुनो की सहायता से जीत गई,
लेकिन दूसरी बार उन्होने बाजी मार ली. पर जब तक वो अपनी मुट्ठी से कंगन निकाल के दिखाते, मेरी जेठानी बोली कि देवर जी अगर तुमने दुल्हन से जीतने की कोशिश की ना तो बस समझ रखना, मैं कंगन नही खुलवाउंगी.. बस सारी रात टोपते रहना. बस बेचारे वो. उन्होने सीधे मेरी मुट्ठी मे.
उसके बाद कंगन खोलने की रसम थी और उनकी भाभियो ने उन्हे खूब चिड़ाया (उसी समय मुझे पता चला कि कंगन और उसके खोलने का क्या 'मतलब' है कि उसके बिना रात को दूल्हा, दुल्हन का मेल नही हो सकता.) और उसके बाद देवी दर्शन की, मौरी सेरवाने की और उसी के साथ मुझे पता चला कि मज़ाक, गाने और खास कर गालियो मे मेरी ससुराल वालिया, मेरे मायके वालो से कम नही बल्कि ज़्यादा ही थी. और खास तौर से चमेली भाभी वो गाव की थी, 24-25 साल की दीर्घ नितंब, और कम से कम 36 डी.. और इतनी खुल के गालिया बंद ही नही होती थी. पूरे मौरी सेरवाने के समय अंजलि और उसकी सहेलियो के पीछे पड़ी रही.
जब सारी रस्मे ख़तम हो गयी तो नीरा भाभी, मुझे एक कमर्रे मे ले गयी और बोली कि अभी डेढ़ बज रहा है. तुम कुछ खा लो मैं ले आती हू. उसके बाद मैं बाहर से दरवाजा बंद कर दूँगी. तुम थोड़ी देर आराम कर लो. शाम को साढ़े 5 बजे तुम्हे ब्यूटी पार्लर जाना है. मेरी भतीजी, गुड्डी, उससे तो तुम मिली होगी,
वो तुम्हे ले जाएगी. मेरी जेठानी ने इसरार कर के मेरे मना करने पे भी अच्छी तरह खिलाया और बाहर से कमरा बंद कर दिया कि आके मुझे कोई डिस्टर्ब ने करे. तीन घंटे मैं जम के सोई. दरवाजा खाट खटाने की आवाज़ से मेरी नींद खुली. बस मैं ये सोच रही थी कि काश एक गरम चाय की प्याली मिल जाए, और गुड्डी ने दरवाजा खोला, गरम चाय के साथ. और मेने सोचा कि शायद इस समय मेने जो कुछ माँगा होता तो वो मिल जाता लेकिन फिर मुझे ये ख्याल आया कि जो कुछ मेने चाहा था वो तो मुझे मिल ही गया है और बाकी आज रात को और वो सोच के मैं खुद शर्मा गई. गुड्डी, 15-16 साल की थी, अंजलि की हम उमर, और वो भी टेन्थ मे थी, अंजलि की पक्की सहेली भी. ससुराल वाली होने के कारण गालिया तो उसको भी पड़ ही जाती थी और छेड़ना भी, लेकिन मेरी जेठानी की भतीजी होने के कारण वो हमारे साथ थी.
थोड़ी ही देर मे हम पार्लर पहुँच गये. पता ये चला कि जिसने मेरे शहर मे ब्राइडल मेकप किया था उसी की ब्रांच थी ये और न सिर्फ़ उन लोगो ने बल्कि भाभी ने भी इन्हे 'डीटेल्ड इन्स्ट्रक्षन्स' दे रखे थे. दो तीन लड़कियो ने साथ साथ मेकप शुरू किया और सबसे पहले तो एक टब मे सो कर के जिसमे गुलाब जल और गुलाब की पंखुड़िया और ना जाने क्या क्या पड़ा था. थोड़ी देर मे ही मेरा सारा टेन्षन, थकान काफूर हो गये. उसके बाद पूरे बदन पे मसाज और हल्के से चंदन और गुलाब का लेप. फिर फेशियल. गुड्डी को मेरे कपड़े और जेवर भी मेरी जेठानी ने दे दिए थे ( जिसे भाभी ने खास तौर पे आज रात केलिए सेलेक्ट किया था.). वो भी उन्ही लोगो ने पहनाई और फिर जब मेने शीशे मे अपने को देखा तो मैं खुद शरमा गई.
"वाह भैया सालियो को तो पूरे 1000 और हम लोगो को सिर्फ़ 500"उनकी भाभी, नीरा भाभी मेरी जेठानी एकदम मेरी भाभी की तरह पूरा मेरा साथ दे रही थी. वो बोली,
"अर्रे सालिया तो सालिया होती है, तुम सब इनके साथ वो काम कर सकती हो जो सालिया कर सकती है, "लेकिन ननद टस से मस नही हुई. आख़िर मेरी जेठानी बोली, अच्छा चलो मैं तुम लोगो को 500 रुपये देती हू, लेकिन ये वादा रहा कि ये अड्वान्स पेमेंट है, तुम सबको मैं अपने देवर की साली बना के मानूँगी. "अंजलि ने आगे बढ़ के रुपये ले लिए.
और उस के बाद ढेर सारी रस्मे, गाने लेकिन मेरी जेठानी ने एक के बाद एक सारी रस्मे जल्द ही करवा दी. वहाँ भी जुए का खेल था दूध से भरी परात से कंगन निकालने का. पहली बार तो मैं अपने नखुनो की सहायता से जीत गई,
लेकिन दूसरी बार उन्होने बाजी मार ली. पर जब तक वो अपनी मुट्ठी से कंगन निकाल के दिखाते, मेरी जेठानी बोली कि देवर जी अगर तुमने दुल्हन से जीतने की कोशिश की ना तो बस समझ रखना, मैं कंगन नही खुलवाउंगी.. बस सारी रात टोपते रहना. बस बेचारे वो. उन्होने सीधे मेरी मुट्ठी मे.
उसके बाद कंगन खोलने की रसम थी और उनकी भाभियो ने उन्हे खूब चिड़ाया (उसी समय मुझे पता चला कि कंगन और उसके खोलने का क्या 'मतलब' है कि उसके बिना रात को दूल्हा, दुल्हन का मेल नही हो सकता.) और उसके बाद देवी दर्शन की, मौरी सेरवाने की और उसी के साथ मुझे पता चला कि मज़ाक, गाने और खास कर गालियो मे मेरी ससुराल वालिया, मेरे मायके वालो से कम नही बल्कि ज़्यादा ही थी. और खास तौर से चमेली भाभी वो गाव की थी, 24-25 साल की दीर्घ नितंब, और कम से कम 36 डी.. और इतनी खुल के गालिया बंद ही नही होती थी. पूरे मौरी सेरवाने के समय अंजलि और उसकी सहेलियो के पीछे पड़ी रही.
जब सारी रस्मे ख़तम हो गयी तो नीरा भाभी, मुझे एक कमर्रे मे ले गयी और बोली कि अभी डेढ़ बज रहा है. तुम कुछ खा लो मैं ले आती हू. उसके बाद मैं बाहर से दरवाजा बंद कर दूँगी. तुम थोड़ी देर आराम कर लो. शाम को साढ़े 5 बजे तुम्हे ब्यूटी पार्लर जाना है. मेरी भतीजी, गुड्डी, उससे तो तुम मिली होगी,
वो तुम्हे ले जाएगी. मेरी जेठानी ने इसरार कर के मेरे मना करने पे भी अच्छी तरह खिलाया और बाहर से कमरा बंद कर दिया कि आके मुझे कोई डिस्टर्ब ने करे. तीन घंटे मैं जम के सोई. दरवाजा खाट खटाने की आवाज़ से मेरी नींद खुली. बस मैं ये सोच रही थी कि काश एक गरम चाय की प्याली मिल जाए, और गुड्डी ने दरवाजा खोला, गरम चाय के साथ. और मेने सोचा कि शायद इस समय मेने जो कुछ माँगा होता तो वो मिल जाता लेकिन फिर मुझे ये ख्याल आया कि जो कुछ मेने चाहा था वो तो मुझे मिल ही गया है और बाकी आज रात को और वो सोच के मैं खुद शर्मा गई. गुड्डी, 15-16 साल की थी, अंजलि की हम उमर, और वो भी टेन्थ मे थी, अंजलि की पक्की सहेली भी. ससुराल वाली होने के कारण गालिया तो उसको भी पड़ ही जाती थी और छेड़ना भी, लेकिन मेरी जेठानी की भतीजी होने के कारण वो हमारे साथ थी.
थोड़ी ही देर मे हम पार्लर पहुँच गये. पता ये चला कि जिसने मेरे शहर मे ब्राइडल मेकप किया था उसी की ब्रांच थी ये और न सिर्फ़ उन लोगो ने बल्कि भाभी ने भी इन्हे 'डीटेल्ड इन्स्ट्रक्षन्स' दे रखे थे. दो तीन लड़कियो ने साथ साथ मेकप शुरू किया और सबसे पहले तो एक टब मे सो कर के जिसमे गुलाब जल और गुलाब की पंखुड़िया और ना जाने क्या क्या पड़ा था. थोड़ी देर मे ही मेरा सारा टेन्षन, थकान काफूर हो गये. उसके बाद पूरे बदन पे मसाज और हल्के से चंदन और गुलाब का लेप. फिर फेशियल. गुड्डी को मेरे कपड़े और जेवर भी मेरी जेठानी ने दे दिए थे ( जिसे भाभी ने खास तौर पे आज रात केलिए सेलेक्ट किया था.). वो भी उन्ही लोगो ने पहनाई और फिर जब मेने शीशे मे अपने को देखा तो मैं खुद शरमा गई.