इंतकाम की आग--18
गतान्क से आगे………………………
राज को कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या हो रहा है.. जो भी हो रहा था वह उसके समझ और पहुच के बाहर था… आख़िर एक खूबसूरत जवान स्त्री का साया मॉनिटर पर दिखने लगा. वह साया भले ही सुंदर और मोहक था फिर भी राज के बदन मे एक डर की सिहरन दौड़ गयी. वह मोहक साया अब एक भयानक और डरावने साए मे परिवर्तित हुआ. फिर से एक हवा का बड़ा झोंका तेज़ी से अंदर आया. इसबार उस झोंके का ज़ोर और बहाव बहुत तेज था. इतना कि राज उस झोंके की मार सहन नही कर पाया और दो फिट उपर उड़ के नीच गिर गया. वैसे भी उसके हाथ पैर पहले ही कमजोर पड़ चुके थे. उस झोंके की मार का प्रतिकार करने की शक्ति उसमे बाकी नही थी. नीचे पड़े हुए स्थिति मे उसको एहसास हुआ कि धीरे धीरे वह होश खोने लगा है. लेकिन होश पूरी तरह खोने से पहले उसने मॉनिटर पर दिख रही उस स्त्री की आखों मे दो बड़े बड़े आँसू बहकर नीचे आते हुए दिखे.
वेरहाउस मे नीचे मॉनिटर के सामने अचेतन अवस्था मे पड़े राज के सामने से मानो एक एक प्रसंग फ्लॅशबॅक की तरह जाने लगा….
…. मीनू और शरद रास्ते के किनारे पड़े एक ड्रेनेज पाइप मे छिपे हुए थे. इतने मे अचानक उन्हे उनकी तरफ आते हुए किसी के दौड़ने का आवाज़ सुनाई दी. वे अब हिल डुल भी नही सकते थे. उन्होने अगर उन्हे ढूँढ लिया तो वे बुरी तरह उनके कब्ज़े मे फँसने वाले थे. उन्होने बिल्ली की तरह अपनी आखे मूंद ली और जितना हो सकता है उतना उस छोटी से जगह मे सिकुड़ने का प्रयास किया. उसके आलवा वे कर भी क्या सकते थे…?
अचानक उनको एहसास हुआ कि उनका पीछा करने वालो मे से एक दौड़ते हुए उनके पाइप के एकदम पास आकर पहुँचा है. वह नज़दीक आते ही शरद और मीनू एकदम शांत होकर लगभग सांस रोके हुए स्तब्ध होकर वैसे ही बैठे रहे. वह अब पाइप के काफ़ी पास पहुच गया था.
वह उन चारो मे से ही एक, चंदन था. उसने इर्द गिर्द अपनी नज़रे दौड़ाई.
“कहाँ गायब हो गये साले…?” वह खुद पर ही झल्ला उठा.
इतने मे चंदन का ध्यान पाइप की तरफ गया.
ज़रूर साले इस पाइप मे छुपे होंगे…
उसने सोचा.. वह पाइप के और पास गया. वह अब झुक कर पाइप मे देखने ही वाला था कि इतने मे…
“चंदन… जल्दी इधर आओ…” उधर से सिकेन्दर ने उसे आवाज़ दी.
चंदन पाइप मे देखने के लिए झुकते हुए रुक गया, उसने आवाज़ आई उस दिशा मे देखा और पलट कर वह दौड़ते हुए उस दिशा मे निकल गया.
जा रहे कदमो की आवाज़ सुनते ही मीनू और शरद ने राहत की सांस ली.
चंदन के जाते ही शरद ने अपने जेब से मोबाइल निकाला. उसने कोई उन्हे ट्रेस ना करे इसलिए फोन स्विच ऑफ कर के रखा था. उसने वह स्विच ऑन किया और एक नंबर डाइयल किया.
“किस को फोन कर रहे हो…?” मीनू ने दबे स्वर मे पूछा.
“अपना क्लासमेट सुधीर को… वह इसी गाँव का है…”
उतने मे फोन लग गया, “हेलो…”
“अरे क्या शरद कहाँ से बोल रहे हो… सालो तुम लोग कहाँ गायब हो गये हो.. इधर सारे लोग कितने परेशान हो गये है…” उधर से सुधीर ने कहा.
शरद ने उसे संक्षिप्त मे सब बताया और कहा, “अरे हम यहाँ एक जगह फँसे हुए है…”
“फँसे…? कहाँ…?” सुधीर ने पूछा.
“अरे कुछ बदमाश हमारा पीछा कर रहे है… हम लोग अब कहाँ है यह बताना ज़रा मुश्किल है…” शरद बोल रहा था. इतने मे मीनू ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचते हुए टवर की तरफ इशारा किया.
“… हाँ यहाँ से एक टवर दिख रहा है जिसपर घड़ी लगी हुई है… उसके आसपास ही कही हम छिपे हुए है…” शरद ने उसे जानकारी दी…
“अच्छा… अच्छा… चिंता मत करो, पहले आपना दिमाग़ शांत करो और अपने आपका संभालो… और इतने बड़े शहर मे वे बदमाश तुम्हारा कुछ बिगाड़ सकते है यह डर दिल से पूरी तरह निकाल दो… हाँ निकाल दिया…?” उधर से सुधीर ने पूछा.
“हाँ ठीक है…” शरद ने कहा.
“ह्म्म्म… गुड. अब कोई टॅक्सी पाकड़ो और उसे हिल्टन होटेल को ले जाने के लिए कहो… वह वही कही नज़दीक उसी एरिया मे है…”
इतने मे उन्हे इतनी देर से कोई वहाँ नही दिखा था, लेकिन भगवान की कृपा से एक टॅक्सी उनकी तरफ आती हुई दिखाई दी…
“टॅक्सी आई है… अच्छा तुम्हे में बाद मे फोन करता हूँ…” शरद ने जल्दी से फोन कट कर दिया.
वे दोनो भी जल्दी जल्दी पाइप के बाहर आगये और शरद ने टॅक्सी को रुकने का इशारा किया. जैसे ही टॅक्सी रुक गयी वैसे दोनो टॅक्सी मे घुस गये.
Thriller -इंतकाम की आग compleet
Re: Thriller -इंतकाम की आग
“होटेल हिल्टन…” शरद ने कहा और टॅक्सी फिर से दौड़ने लगी.
टॅक्सी निकल गयी तो दोनो की जान मे जान आ गयी.. उन्होने राहत की सांस ली.
शिकेन्दर और उसके तीनो दोस्त अब भी पागलो की तरह मीनू और शरद को ढूँढ रहे थे…. आख़िर ढूँढ ढूँढ कर थकने के बाद फिर से जिस चोराहे से उन्होने उन्हे ढूँढ ने की शुरुआत की थी उस चोराहे पर शिकेन्दर और चंदन वापस आ गये… उनके पीछे पीछे बड़ी बड़ी साँसे लेते हुए साँसे फूला हुआ सुनील आ गया.
“मिल गयी…?” चंदन ने पूछा.
सुनील ने सिर्फ़ ना मे सर हिलाया.
“सालों को आसमान खा गया या पाताल निगल गया…?” सिकेन्दर चिढ़कर बोला.
इतने मे उन्हे दूर से अशोक उनकी और आता दिखाई दिया…. उन्होने बड़ी आस की साथ उसकी तरफ देखा. लेकिन उसने दूर से ही अपना अंगूठा नीचे कर वे नही मिलने का इशारा किया.
“सालो क्या बारह बजा हुआ मुँह लेकर आए हो… जाओ उसे ढुंढ़ो… और जब तक वह मिलती नही तब तक वापस मत आओ…”शिकेन्दर गरज उठा.
उतने मे शिकेन्दर के फोन की रिंग बजी.
शिकेन्दर ने फोन उठाया , “हेलो…”
“हे… में सुधीर बोल रहा हूँ…” उधर से मीनू और शरद का क्लास मेट सुधीर बोल रहा था.
“हाँ बोलो सुधीर…” शिकेन्दर बोला.
“एक खुशी की बात है.. मैने तुम्हारे लिए एक ट्रीट अरेंज की है…” उधर से सुधीर बोला.
“देखो सुधीर… अभी हमारा मूड कुछ ठीक नही है… और तुम्हारी ट्रीट अटेंड करना इतना तो है ही नही…” शिकेन्दर ने कहा.
“अरे फिर तो यह ट्रीट तुम्हारा मूड ज़रूर ठीक करेगी… पहले सुन तो लो… एक नया पंछी अपने शहर मे आया हुआ है… फिलहाल मैने उसे खास तुम्हारे लिए एक महफूस जगह भेजा है..” सुधीर का उधर से उत्साह से भरा स्वर आया.
“पंछी…? इस शहर मे नया… एक मिनिट.. एक मिनिट… क्या वह उसके बॉय फ्रेंड के साथ है..?” शिकेन्दर ने पूछा.
“हाँ…” उधर से सुधीर ने कहा.
“उसके गाल पर हस्ने के बाद डिंपल दिखने लगता है…?” शिकेन्दर ने पूछा.
“हाँ…” सुधीर ने कहा.
“उसके दाए हाथ पर शेर का टॅटू भी है… बराबर…” शिकेन्दर का चेहरा खुशी से खिलने लगा.
“हाँ… लेकिन यह सब तुम्हे कैसे पता…?” उधर से सुधीर ने आश्चर्य से पूछा.
“अरे वह तो वही लड़की है… अशोक, चंदन, सुनील और में सुबह से जिसके पीछे थे…. और अभी थोड़ी देर पहले वह हमे झांसा देकर यहाँ से गायब हो गयी है… लेकिन लगता है साली हमारे नसीब मे ही लिखी है…”
“सच…?” उधर से सुधीर भी आस्चर्य से बोला.
“यार… सुधीर… आज तो तुमने मेरा दिल खुश कर दिया है… इसे कहते है सच्चा दोस्त…” शिकेन्दर भी खुशी के मारे उत्तेजित होकर बोल रहा था.
“अरे अभी तो हम उसे पता नही कहाँ कहाँ ढूँढ रहे थे… किधर है वह…? सच कहूँ… हम लोग उसके बदले तुम्हे जो चाहिए दे देंगे…” शिकेन्दर ने खुशी के मारे वादा किया.
“देखो… फिर मुकर ना जाना…” सुधीर ने कहा.
“अरे नही.. इट्स गेंटल्मेन्स प्रॉमिस यार…” सिकेन्दर किसी राजा की तरह खुश होकर बोला.
“दो हज़ार डॉलर्स… हर एक के पास से… मंजूर…?” सुधीर ने भी वक्त के तकाज़े का फ़ायदा लेने की ठान ली.
“मंजूर…”शिकेन्दर ने बेफिक्र लहजे मे कहा.
शिकेन्दर, सुनील, चंदन और अशोक एक पुराने मकान मे, एक टेबल के इर्दगिर्द बैठे हुए थे. उनके हाथ मे आधे पिए हुए व्हिस्की के जाम थे… चारो भी अपने अपने विचारों मे खोए हुए व्हिस्की पी रहे थे… उनमे एक तनावपूर्ण सन्नाटा छाया हुआ था…
“उसे तुमने क्यों मारा…?” अशोक ने सन्नाटा तोड़ते हुए शिकेन्दर से सवाल किया.
वैसे तो तीनो मे से किसी की शिकेन्दर से इस तरह से सवाल पूछने की हिम्मत नही थी… लेकिन नौबत ही वैसी आ गयी थी.. और पीने की वजह से उनमे उतनी हिम्मत आगयि थी…
“आए… बेवकूफ़ की तरह बकबक मत कर.. मैने उसे मारा नही… वह उस हादसे मे मारी गयी…” शिकेन्दर ने बेफिक्र होकर कंधे उचकाते हुए कहा.
“हादसे मे…?”
भले ही सिकेन्दर इस बारे मे बेफिक्र है ऐसा जता रहा था फिर भी वह अंदर से बैचेन था.
अपनी बैचेनी छिपाने के लिए उसने व्हिस्की का एक बड़ा घूँट लिया, “देखो… वह कुछ ज़्यादा ही चिल्ला रही थी इसलिए… मैने उसका मुँह दबाकर बंद किया… और मुझे पता ही नही चला कि उसमे उसकी नाक भी दबकर बंद होगयि करके…”
“फिर अब क्या किया जाय…?” चंदन ने पूछा.
क्रमशः……………
टॅक्सी निकल गयी तो दोनो की जान मे जान आ गयी.. उन्होने राहत की सांस ली.
शिकेन्दर और उसके तीनो दोस्त अब भी पागलो की तरह मीनू और शरद को ढूँढ रहे थे…. आख़िर ढूँढ ढूँढ कर थकने के बाद फिर से जिस चोराहे से उन्होने उन्हे ढूँढ ने की शुरुआत की थी उस चोराहे पर शिकेन्दर और चंदन वापस आ गये… उनके पीछे पीछे बड़ी बड़ी साँसे लेते हुए साँसे फूला हुआ सुनील आ गया.
“मिल गयी…?” चंदन ने पूछा.
सुनील ने सिर्फ़ ना मे सर हिलाया.
“सालों को आसमान खा गया या पाताल निगल गया…?” सिकेन्दर चिढ़कर बोला.
इतने मे उन्हे दूर से अशोक उनकी और आता दिखाई दिया…. उन्होने बड़ी आस की साथ उसकी तरफ देखा. लेकिन उसने दूर से ही अपना अंगूठा नीचे कर वे नही मिलने का इशारा किया.
“सालो क्या बारह बजा हुआ मुँह लेकर आए हो… जाओ उसे ढुंढ़ो… और जब तक वह मिलती नही तब तक वापस मत आओ…”शिकेन्दर गरज उठा.
उतने मे शिकेन्दर के फोन की रिंग बजी.
शिकेन्दर ने फोन उठाया , “हेलो…”
“हे… में सुधीर बोल रहा हूँ…” उधर से मीनू और शरद का क्लास मेट सुधीर बोल रहा था.
“हाँ बोलो सुधीर…” शिकेन्दर बोला.
“एक खुशी की बात है.. मैने तुम्हारे लिए एक ट्रीट अरेंज की है…” उधर से सुधीर बोला.
“देखो सुधीर… अभी हमारा मूड कुछ ठीक नही है… और तुम्हारी ट्रीट अटेंड करना इतना तो है ही नही…” शिकेन्दर ने कहा.
“अरे फिर तो यह ट्रीट तुम्हारा मूड ज़रूर ठीक करेगी… पहले सुन तो लो… एक नया पंछी अपने शहर मे आया हुआ है… फिलहाल मैने उसे खास तुम्हारे लिए एक महफूस जगह भेजा है..” सुधीर का उधर से उत्साह से भरा स्वर आया.
“पंछी…? इस शहर मे नया… एक मिनिट.. एक मिनिट… क्या वह उसके बॉय फ्रेंड के साथ है..?” शिकेन्दर ने पूछा.
“हाँ…” उधर से सुधीर ने कहा.
“उसके गाल पर हस्ने के बाद डिंपल दिखने लगता है…?” शिकेन्दर ने पूछा.
“हाँ…” सुधीर ने कहा.
“उसके दाए हाथ पर शेर का टॅटू भी है… बराबर…” शिकेन्दर का चेहरा खुशी से खिलने लगा.
“हाँ… लेकिन यह सब तुम्हे कैसे पता…?” उधर से सुधीर ने आश्चर्य से पूछा.
“अरे वह तो वही लड़की है… अशोक, चंदन, सुनील और में सुबह से जिसके पीछे थे…. और अभी थोड़ी देर पहले वह हमे झांसा देकर यहाँ से गायब हो गयी है… लेकिन लगता है साली हमारे नसीब मे ही लिखी है…”
“सच…?” उधर से सुधीर भी आस्चर्य से बोला.
“यार… सुधीर… आज तो तुमने मेरा दिल खुश कर दिया है… इसे कहते है सच्चा दोस्त…” शिकेन्दर भी खुशी के मारे उत्तेजित होकर बोल रहा था.
“अरे अभी तो हम उसे पता नही कहाँ कहाँ ढूँढ रहे थे… किधर है वह…? सच कहूँ… हम लोग उसके बदले तुम्हे जो चाहिए दे देंगे…” शिकेन्दर ने खुशी के मारे वादा किया.
“देखो… फिर मुकर ना जाना…” सुधीर ने कहा.
“अरे नही.. इट्स गेंटल्मेन्स प्रॉमिस यार…” सिकेन्दर किसी राजा की तरह खुश होकर बोला.
“दो हज़ार डॉलर्स… हर एक के पास से… मंजूर…?” सुधीर ने भी वक्त के तकाज़े का फ़ायदा लेने की ठान ली.
“मंजूर…”शिकेन्दर ने बेफिक्र लहजे मे कहा.
शिकेन्दर, सुनील, चंदन और अशोक एक पुराने मकान मे, एक टेबल के इर्दगिर्द बैठे हुए थे. उनके हाथ मे आधे पिए हुए व्हिस्की के जाम थे… चारो भी अपने अपने विचारों मे खोए हुए व्हिस्की पी रहे थे… उनमे एक तनावपूर्ण सन्नाटा छाया हुआ था…
“उसे तुमने क्यों मारा…?” अशोक ने सन्नाटा तोड़ते हुए शिकेन्दर से सवाल किया.
वैसे तो तीनो मे से किसी की शिकेन्दर से इस तरह से सवाल पूछने की हिम्मत नही थी… लेकिन नौबत ही वैसी आ गयी थी.. और पीने की वजह से उनमे उतनी हिम्मत आगयि थी…
“आए… बेवकूफ़ की तरह बकबक मत कर.. मैने उसे मारा नही… वह उस हादसे मे मारी गयी…” शिकेन्दर ने बेफिक्र होकर कंधे उचकाते हुए कहा.
“हादसे मे…?”
भले ही सिकेन्दर इस बारे मे बेफिक्र है ऐसा जता रहा था फिर भी वह अंदर से बैचेन था.
अपनी बैचेनी छिपाने के लिए उसने व्हिस्की का एक बड़ा घूँट लिया, “देखो… वह कुछ ज़्यादा ही चिल्ला रही थी इसलिए… मैने उसका मुँह दबाकर बंद किया… और मुझे पता ही नही चला कि उसमे उसकी नाक भी दबकर बंद होगयि करके…”
“फिर अब क्या किया जाय…?” चंदन ने पूछा.
क्रमशः……………
Re: Thriller -इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--19
गतान्क से आगे………………………
उन चारों मे चंदन और सुनील सबसे ज़्यादा डरे हुए दिख रहे थे.
“और अगर पोलीस ने हमे पकड़ लिया तो…?” सुनील ने अपनी चिंता व्यक्त की.
“देखो कुछ भी हुआ नही है ऐसा व्यवहार करो… किसी ने कुछ पूछा भी तो ध्यान रहे कि हम कल रात से यहाँ ताश खेल रहे है… फिर भी अगर कोई गड़बड़ हुई तो हम उसमे से भी कुछ रास्ता निकालेंगे… और यह मत समझो कि यह मेरी पहली बारी है.. कि मैने किसी को मारा है..” सिकेन्दर झूठमूठ का धाँढस बाँधने की चेष्टा करते हुए बोला.
“लेकिन वह तुमने मारा था… और तब तुम्हे उन्हे मारना ही था…” अशोक ने कहा.
“उससे क्या फ़र्क पड़ता है… मरना और हादसे मे मारना… मारना मारना होता है..” शिकेन्दर ने कहा.
उतने मे दरवाज़े पर किसी की आहट सुनाई दी… और किसी ने दरवाज़े पर हल्के से नॉक किया.
कमरे के सब लोगों का बोलना और पीना बंद होकर वे एकदम स्तब्ध होगये.
उन्होने एकदुसरे की तरफ देखा.
कौन होगा…?
पोलीस तो नही होंगी…?
कमरे मे एकदम सन्नाटा छा गया.
शिकेन्दर ने चंदन को कौन है यह देखने के लिए इशारा किया.
चंदन धीरे से चलते हुए आवाज़ ना हो इसका ख़याल रखते हुए दरवाज़े के पास गया. बाहर कौन होगा इसका अंदाज़ा लिया और धीरे से दरवाज़ा खोलकर तिरछा करते हुए उसमे से बाहर झाँकने लगा… सामने सुधीर था… चंदन ने उसे अंदर आने के लिए इशारा कर अंदर लिया… जैसे ही सुधीर अंदर आया उसने फिर से दरवाज़ा बंद कर लिया.
अशोक ने और एक व्हिस्की का जाम भरते हुए कहा, “अरे…. आओ.. जाय्न अवर कंपनी…”
सुधीर अशोक ने ऑफर किया हुआ व्हिस्की का जाम लेते हुए उनके साथ उनके सामने बैठ गया.
“चियर्स…” अशोक ने उसका जाम सुधीर के जाम से टकराते हुए कहा.
“चियर्स…” सुधीर ने वह जाम अपने मुँह को लगाया और वह भी उनकी कंपनी मे शामिल हो गया.
शिकेन्दर, अशोक, सुनील, चंदन और सुधीर टेबल के इर्द गिर्द बैठकर व्हिस्की के जाम पर जाम खालीकर रहे थे. शिकेन्दर और उसके तीन दोस्त पीकर टून होगये थे… सुधीर अपनी हद मे रह कर ही पी रहा था.
“फिर सुधीर… इतनी रात गये इधर किधर घूम रहे हो…?” चंदन ने सुधीर के पीठ पर हल्के से मारते हुए पूछा.
“सच कहूँ तो में तुम्हारे यहाँ उस ट्रीट के बारे मे बात करने के लिए आया था…” सुधीर ने मौके का फ़ायदा उठाते हुए असली बात पर आते हुए कहा.
“कौन से ट्रीट…?” सुनील ने पूछा.
“अबे पगले… वह उस लड़की के बारे मे बोल रहा है…” सुधीर बात स्पष्ट करने के पहले ही अशोक बीच मे बोला.
“बाइ दा वे… तुम्हे ट्रीट का माजा आया कि नही…” सुधीर ने पूछा.
सबलॉग एकदम स्तब्ध, शांत और सीरीयस हो गये.
“देखो… तुम्हारी ट्रीट शुरू शुरू मे अच्छी लगी… लेकिन आख़िर मे…”
गतान्क से आगे………………………
उन चारों मे चंदन और सुनील सबसे ज़्यादा डरे हुए दिख रहे थे.
“और अगर पोलीस ने हमे पकड़ लिया तो…?” सुनील ने अपनी चिंता व्यक्त की.
“देखो कुछ भी हुआ नही है ऐसा व्यवहार करो… किसी ने कुछ पूछा भी तो ध्यान रहे कि हम कल रात से यहाँ ताश खेल रहे है… फिर भी अगर कोई गड़बड़ हुई तो हम उसमे से भी कुछ रास्ता निकालेंगे… और यह मत समझो कि यह मेरी पहली बारी है.. कि मैने किसी को मारा है..” सिकेन्दर झूठमूठ का धाँढस बाँधने की चेष्टा करते हुए बोला.
“लेकिन वह तुमने मारा था… और तब तुम्हे उन्हे मारना ही था…” अशोक ने कहा.
“उससे क्या फ़र्क पड़ता है… मरना और हादसे मे मारना… मारना मारना होता है..” शिकेन्दर ने कहा.
उतने मे दरवाज़े पर किसी की आहट सुनाई दी… और किसी ने दरवाज़े पर हल्के से नॉक किया.
कमरे के सब लोगों का बोलना और पीना बंद होकर वे एकदम स्तब्ध होगये.
उन्होने एकदुसरे की तरफ देखा.
कौन होगा…?
पोलीस तो नही होंगी…?
कमरे मे एकदम सन्नाटा छा गया.
शिकेन्दर ने चंदन को कौन है यह देखने के लिए इशारा किया.
चंदन धीरे से चलते हुए आवाज़ ना हो इसका ख़याल रखते हुए दरवाज़े के पास गया. बाहर कौन होगा इसका अंदाज़ा लिया और धीरे से दरवाज़ा खोलकर तिरछा करते हुए उसमे से बाहर झाँकने लगा… सामने सुधीर था… चंदन ने उसे अंदर आने के लिए इशारा कर अंदर लिया… जैसे ही सुधीर अंदर आया उसने फिर से दरवाज़ा बंद कर लिया.
अशोक ने और एक व्हिस्की का जाम भरते हुए कहा, “अरे…. आओ.. जाय्न अवर कंपनी…”
सुधीर अशोक ने ऑफर किया हुआ व्हिस्की का जाम लेते हुए उनके साथ उनके सामने बैठ गया.
“चियर्स…” अशोक ने उसका जाम सुधीर के जाम से टकराते हुए कहा.
“चियर्स…” सुधीर ने वह जाम अपने मुँह को लगाया और वह भी उनकी कंपनी मे शामिल हो गया.
शिकेन्दर, अशोक, सुनील, चंदन और सुधीर टेबल के इर्द गिर्द बैठकर व्हिस्की के जाम पर जाम खालीकर रहे थे. शिकेन्दर और उसके तीन दोस्त पीकर टून होगये थे… सुधीर अपनी हद मे रह कर ही पी रहा था.
“फिर सुधीर… इतनी रात गये इधर किधर घूम रहे हो…?” चंदन ने सुधीर के पीठ पर हल्के से मारते हुए पूछा.
“सच कहूँ तो में तुम्हारे यहाँ उस ट्रीट के बारे मे बात करने के लिए आया था…” सुधीर ने मौके का फ़ायदा उठाते हुए असली बात पर आते हुए कहा.
“कौन से ट्रीट…?” सुनील ने पूछा.
“अबे पगले… वह उस लड़की के बारे मे बोल रहा है…” सुधीर बात स्पष्ट करने के पहले ही अशोक बीच मे बोला.
“बाइ दा वे… तुम्हे ट्रीट का माजा आया कि नही…” सुधीर ने पूछा.
सबलॉग एकदम स्तब्ध, शांत और सीरीयस हो गये.
“देखो… तुम्हारी ट्रीट शुरू शुरू मे अच्छी लगी… लेकिन आख़िर मे…”